Friday, October 28, 2011

लक्ष्य की प्राप्ति बनाम राहु की दशा

रामकथा मे शिव पार्वती विवाह का वर्णन मिलता है.यह वर्णन राहु की दशा से पूर्ण कहानी के रूप मे समझ मे आ सकता है.केतु जो ब्रह्माण्ड की धुरी के रूप मे माना जाता है को ही शिव माना गया है,तथा पार्वती सती आदि उनकी पत्नी को राहु के रूप में उपस्थित किया गया है। शिवजी की पूर्व पत्नी सती का अपने पति के प्रति अपमान करने के कारण अपने पिता की यज्ञ मे शरीर को भस्म कर देने के बाद उनका पुनर्जन्म राजा हिमालय के यहां पार्वती के रूप मे हुया। नारद जी ने जब हिमालय के पुत्री जन्म का समाचार सुना तो वे उनके महल मे गये और पार्वती के प्रति अपनी भविष्यवाणी करने लगे,कहने लगे कि पार्वती संसार के सभी गुणो से पूर्ण है और अपने नाम को जगत की माता के रूप मे प्रकट करने वाली है,लेकिन इन्हे जो पति मिलेगा वह माता पिता से हीन होगा,हमेशा उदास रहने वाला होगा,जोगी के वेश मे होगा कोई कार्य नही करने वाला होगा उसे वस्त्र पहिनने और नही पहिनने से कोई मोह नही होगा,ऐसी रेखा पार्वती के हाथ मे है,सभी को पता था कि नारद जी का कथन कभी अधूरा नही होता था। नारद जी ने बाद मे कहा कि जो जो भेद पार्वती के पति के रूप मे बताये है वे सभी गुण भगवान शिव के अन्दर मिलते है.अगर पार्वती का विवाह शंकर जी के साथ हो जाता है तो सभी प्रकार से पार्वती का कल्याण ही माना जायेगा,इसलिये अगर पार्वती भगवान शिवजी को पति के रूप मे प्राप्त करने के लिये भगवान शिवजी की तपस्या करने लगे तो उन्हे वे पत्नी के रूप मे स्वीकार कर सकते है।

मन भगवान शिव की छवि को रखकर पार्वती जी जंगल मे जाकर तपस्या करने लगी,और अपने मन को पूर्ण रूप से भगवान शिव के प्रति अर्पित कर दिया.यही से गोस्वामी तुलसी दास जी ने राहु की दशा का पार्वती के लिये बहुत ही विचित्र तरीके से वर्णन किया है।

"संवत सहस मूल फ़ल खाये,सागु खाइ सत वरष गंवाये"

सहस नाम के संवत में केवल उन्होने मूल फ़ल यानी जडो के रूप मे प्राप्त फ़लो का भोजन किया और सात साल उन्होने शाक खाकर ही तपस्या की.कुछ दिन उन्होने पानी और हवा के सहारे ही बिताये और कुछ दिन उन्होने कठिन उपवास करके ही अपनी तपस्या को जारी रखा,बेल पत्री जो धरती पर सूखी पडी थी,सहस नाम के संवत मे तीन वर्ष तक उसी का सेवन किया। उसके बाद सूखे पत्ते भी खाने छोड दिये और उसी समय से उनका नाम अपर्णा रख दिया गया। जब शरीर सूख कर क्षीण हो गया उस समय उन्हे एक आकाशवाणी सुनाई दी,कि हे पार्वती ! तुम्हारी तपस्या सफ़ल हो गयी है,अपने कष्ट को भूल जाओ तुम्हे भगवान शिवजी पति रूप मे मिलेंगे.जैसे ही तुम्हारे पिता बुलाने के लिये आयें तुम अपने हठ को त्याग कर अपने घर चली जाना,जैसे ही सप्त ऋषि तुमसे मिलने आयें तभी यह प्रमाण मान लेना कि यह आकाशवाणी मिथ्या नही है। इतनी बात सुनने के बाद तपस्या से क्षीण शरीर मे स्फ़ूर्ति आ गयी।

इस प्रकार से पार्वती की राहु की दशा का अन्त हुआ और राहु की दशा समाप्ति के बाद गुरु की दशा लगते ही भगवान शिव के साथ उनका विवाह हुआ,जो हमेशा के लिये अमर हो गया।

राहु का समय शुरु होते ही जातक का दिमाग परिवेश के अनुसार भ्रम मे भर दिया जाता है। जो परिवेश आसपास का होता है जहां पर वह पैदा होता है वही तरह तरह के कारण व्यक्ति के दिमाग मे भर जाते है और उन्ही कारणो के अनुसार वह अपने जीवन को लेकर चलने लगता है। भगवान शिव की पहली शादी के रूप मे सती का रूप उनके साथ था,राहु का छलावा होने के कारण जब भगवान श्रीराम को वनवास हुआ था तो सती के दिमाग मे एक भ्रम भर गया कि जिस भगवान की पूजा शिवजी हमेशा करते है वही भगवान स्त्री वियोग के कारण वन मे भटक रहे है और सीते सीते रटने के अलावा उनके पास और कोई शब्द ही नही है। इसलिये उन्होने श्रीराम की परीक्षा लेने के लिये सीता का वेश बनाया और रास्ते मे बैठ गयी,उन्होने सोचा था कि अगर राम साधारण पुरुष होंगे तो उन्हे ही सीता समझ कर ग्रहण करने की कोशिश करेंगे,लेकिन हुआ उल्टा भगवान श्रीराम ने उन्हे पहिचान लिया और शिवजी के हाल चाल पूंछने लगे,शर्मिन्दा होकर सती भगवान शिव के पास गयी और शिवजी उन से जब पूंछा कि भगवान श्रीराम की परीक्षा कैसे ली तो उन्होने सीता बनकर परीक्षा लेने वाली बात को मन मे छुपा लिया और बोल दिया कि ऐसे ही परीक्षा ले ली थी,शिवजी ने ध्यान लगाकर देखा तो उन्हे समझ मे आ गया कि उन्होने जगतजननी सीता जो उनके लिये माता के समान थी का रूप धरने के बाद परीक्षा ली है,आराध्य की पत्नी के रूप मे वे सीताजी को माता के समान मानते थे,इसलिये उन्होने सती को त्याग दिया और अपने ध्यान मे रहकर अपने जीवन को बिताने लगे।

उपरोक्त भाव मे एक प्रकार का कथन कि राहु जब हावी होता है तो वह नाटक के पात्र की भांति जातक को आगे या पीछे ले जाने की अपनी योजना को सफ़ल करने की बात करता है,जैसे सती को पहले तो रूप परिवर्तन का ख्याल देना फ़िर शिवजी से ही झूठ बोलना कि ऐसे ही परीक्षा ली थी.पहले रूप परिवर्तन फ़िर झूठ बोलना यह राहु का मुख्य प्रभाव माना जाता है इसके बाद जब सती के पिता महाराज दक्ष ने यज्ञ किया और उस मे भगवान शिव को नही बुलाया लेकिन सती के अन्दर अपने पिता के प्रति मोह और यज्ञ को देखने की लालसा ने उन्हे शिवजी के मना करने पर कि जब पिता के द्वारा बुलाया नही गया है और वहां पर जाना उनके लिये दिक्कत देने वाला है और किसी भी कारण को पैदा किया जा सकता है,उनके मना करने के बाद भी वे अपने पिता की यज्ञ मे गयी और सभी को अपने अपने भाग का मिला देखना और अपने पति के भाग को नही देखने के कारण उन्होने अपने शरीर को उसी यज्ञ मे जला दिया। यह कारण भी राहु की दशा मे देखा जाता है कि व्यक्ति के अन्दर केवल अपनी सोच के अनुसार ही चलने की बात मानी जाती है व्यक्ति को अगर किसी प्रकार से मना किया जाये कि अमुक स्थान पर दिक्कत हो सकती है तो व्यक्ति के अन्दर एक ख्याल आता है कि पिछले किसी वैर भाव के कारण ही वह वहां जाने से मना कर रहा है और वह हठ से जाने की बात करता है लेकिन हठ से जाने के बाद उसे अपने जीवन से भी हाथ धोना पडता है। यह बात आगे राहु के अनुसार अपमान मौत और वैर लेने से कारण से निकलने के बाद राहु का प्रभाव आगे अपने प्रोग्रेस के जीवन के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करता है जिसके अन्दर व्यक्ति का स्वभाव केवल प्राप्ति करने के कारको मे अपने को लगा लेता है,उस धुन के आगे उसे कोई धुन समझ मे नही आती है कोई भी कितना भी बुद्धि वाला कारण उसे बताने की कोशिश करे उसे समझ मे नही आता है और अधिक कारण पैदा करने पर तर्क कुतर्क की बात भी करता है,राहु की दशा के अन्त मे राहु मे मंगल का अन्तर आने के बाद व्यक्ति को आत्महत्या या अस्पताली कारण या किसी प्रकार के भ्रम मे रहने के कारण या नशे मे रहने के कारण कोई कृत्य हो जाने के बाद वह इन्ही कारणो मे चला जाता है.इसके बाद गुरु की दशा लगने के बाद ही व्यक्ति का जीवन सही दिशा मे चलना शुरु हो जाता है.

 

राहु और दिमागी भ्रम

गोचर का राहु अपने अनुसार चिन्ता को देता है.केतु का गोचर चिन्ता का निवारण करता है.नाम राशि से चिन्ता का होना जन्म राशि से कहीं अधिक महत्व रखता है उसका एक कारण जो मुख्य रूप से माना जाता है वह है कि नाडी हमेशा नाम राशि को अपने कथन के लिये आगे रखकर चलती है। नाडी का उद्देश्य चन्द्रमा और चन्द्रमा की कलाओ पर अपने रूप को प्रदर्शित करने की क्षमता को भी रखना माना जाता है और साढे चार सेकेण्ड के भाग को वह नाडी के रूप मे अपने रूप को प्रदर्शित करने के कारण को बनाता है.इस बात को रावण संहिता जैसे ग्रंथ मे भी प्रकट किया गया है.रावण से ज्योतिष और राज्य का ज्ञान लेने पहुंचे लक्ष्मण जी से रावण ने सात पत्ते पान के लाने के लिये कहा,और जब वे पान के पत्ते लेकर आये तो उन पत्तो को सुई से बींधने के लिये कहा,जब पत्ते लक्ष्मण जी के द्वारा बींधे गये तो ऊपर वाला पत्ता सोने का उससे नीचे का चांदी का उससे नीचे का तांबे के रूप मे प्रकट हुआ,रावण ने बताया कि सभी पत्ते एक बार मे ही बींधे गये थे,लेकिन बींधने के समय मे अन्तर पैदा होने के कारण ही इन पत्तो की धातुओं मे बदलाव हो गया है,यही प्रकार जन्म समय के अनुसार भी माना जाता है।

राहु का गोचर नाम की राशि से अलग अलग रशियों पर जो प्रभाव डालता है वह इस प्रकार से है,जैसे राहु का गोचर वर्तमान मे वृश्चिक राशि पर और केतु का गोचर वृष राशि मे है,अगर मेष राशि वाले नाम के लिये की जाने वाली चिन्ता को देखना होगा तो पहले राहु को इस राशि के अष्टम के प्रति देखकर और राहु की द्रिष्टि वाले भावो की चिन्ता को उजागर करने पर मेष राशि के जातक की चिन्ता को जाना जा सकता है.उस चिन्ता के दूर करने वाले उपायो के लिये केतु को देखना होगा,उस केतु की द्रिष्टि वाले भावो और उपायो के लिये ग्रहों के बल को देखना पडेगा,इस प्रकार से चिन्ता का निवारण भी इन्ही दोनो छाया ग्रहों के द्वारा किया जा सकता है बाकी की शक्ति को अन्य ग्रहो और भाव तथा राशि के मालिकों का प्रयोग करने पर किया जाना माना जायेगा। जैसे राहु का स्थान मेष राशि में अष्टम स्थान मे है,इस राशि वालो को पहली चिन्ता सामने चलने वाले कार्यों पर होगी पिता के पराक्रम पर होगी माता के धर्म पर होगी,बाहरी स्थानो के रहने वाले स्थानो की होगी जेल या बन्धन वाले कारणो की होगी उसके बाद घर बनाने की घर मे रहने की और रहने वाले स्थान के प्रति होगी सबसे अधिक कारण कार्यों और पिता के प्रति माने जा सकते है.ऐसे ही सभी राशियों के प्रति अपने अपने भावो और राशियों के अनुसार माना जा सकता है.

राहु और ज्योतिष

ज्योतिष एक नशा है यह भी सौ प्रतिशत सत्य माना जा सकता है। बिना राहु के ज्योतिष नही की जा सकती है। अगर कुंडली मे राहु का रूप बुध के साथ सही सामजस्य बैठाये है तो ज्योतिष आराम से की जा सकती है,और राहु का सामजस्य अगर बुध के साथ सही नही है तो ज्योतिष करने में कठिनाई मानी जा सकती है। राहु का प्रयोग अगर बेलेंस करने मे ठीक है तो भी ज्योतिष का प्रकार अपने ही रूप मे होगा और बेलेंस नही किया जा सके तो वह रूप अपने दूसरे रूप मे होगा। जो लोग ज्योतिष को करना जानते है सबसे पहले वे अपने आसपास के माहौल के साथ अपने रूप को भी बदलना जरूरी समझते है,पहले उन्हे दाढी बढाने या दाढी की कटिंग अजीब तरीके से करवानी पडती है अधिकतर लोग अपनी दाढी को ही बढाते जाते है,इस दाढी के कारण अक्सर प्रश्न कर्ताओं के साथ आने वाले बच्चे भी डरने लगते है,या तो वह रोने लगते है या "दाढी वाला बाबा" कहकर दूर भागने लगते है,इसी प्रकार से महिलाओं के अन्दर एक भावना देखी जाती है,ज्योतिष करते समय तथा ज्योतिष मे अधिक समय देने के कारण उनकी शरीर की अन्य गतिया रुक जाती है उनके शरीर मे राहु का प्रवेश हो जाता है और वे अपने कम उम्र के जीवन काल मे ही मोटी होनी शुरु हो जाती है। ज्योतिषी महिलाओं के लिये एक बात और देखी जाती है कि वे मोटी किनारी की उत्तेजक रंगो से भरी हुयी साडी का चुनाव करती है,अगर वे अपने को अधिक विद्वान प्रदर्शित करना चाहती है तो अपने आसपास के माहौल को भी राहु से पूर्ण कर लेती है जैसे भगवान का चित्र किसी देवी देवता को बहुत ही आकर्षित रंग से सजा लेना,अपने बैठने वाले कमरे मे बहुत सी आकर्षक वस्तुयों को सजा लेना आदि माना जा सकता है। यही बात पुरुषों के लिये देखी जाती है वे अपने शरीर की गति को सामान्य नही रख पाने के कारण मोटे होते जाते है या उनकी तोंद बाहर की तरफ़ निकल जाती है वे अपने शरीर को एक अलग किस्म का दिखाने के लिये लम्बा कुर्ता या एक ऐसी धोती का स्तेमाल करने लगते है जो उन्हे खुद को अच्छी लगती हो भले ही वे किसी को पहिनावे मे अच्छे लगते हो या नही। एक बात जो सबसे अधिक जानी जाती है वह होती कि कौन कितना ज्योतिषी का आदर करता है,अगर आदर मे कमी होती है तो बजाय ज्योतिष के ज्योतिषी का अहम बोलने लगता है और वह जो कुछ भी मन मे आता है कहना शुरु कर देता है,कोई अपने को किसी देवता का और कोई अपने को किसी देवता का पुजारी बताकर उस देवता के नाम से अपने कार्य को पूरा करने के लिये भी मानते है।

अक्सर अपने सम्मान की बातो को ज्योतिषी बढ चढ कर बखान करने की कोशिश भी करते है,अपने सम्बन्धो को राजनीतिक लोगों से और अच्छी जान पहिचान बनाने के लिये किसी न किसी प्रकार से मीडिया के साथ भी अपने सम्बन्धो को रखने की कोशिश भी ज्योतिषियों की होती है,मीडिया भी राहु के अन्दर अपनी हैसियत को अच्छी तरह से प्रदर्शित करने की बात रखता है,जहां बारहवां शुक्र और राहु आपस में मिले छठा केतु भीतर की बातो को सम्वाद दाता के रूप मे प्रदर्शित करने की कला को राहु को सौंपना शुरु कर देता है,उसी प्रकार से जो धन से सम्बन्धित बाते होती है आडम्बर जैसी बाते होती है या किसी प्रकार की छल वाली बाते होती है मीडिया वाले ज्योतिषी के प्रति अपना प्रभाव बहुत जल्दी से देना शुरु कर देते है,अगर ज्योतिषी को बारहवे भाव का बेलेन्स बनाने की कला आती है तो वह मीडिया और जनता तथा जोखिम वाले कारण तथा अपमान करने रिस्क लेने मृत्यु सम्बन्धी कारण बताने तथा जो जनता तथा समाज मे गूढ रूप से चल रहा है उसे प्रकट करने का काम मीडिया का संवाददाता और ज्योतिषी अपने अपने अनुमान को प्रकट करने का काम भी राहु के द्वारा ही करते है।

जब ज्योतिषी किसी भी प्रश्न कर्ता के लिये अपनी भावना को प्रकट करने का कार्य करता है तो वह किसी न किसी प्रकार के साधन से अपनी बात को प्रकट करने की कोशिश करता है जैसे अगर उसे कुछ जातक के प्रति कुछ कहना है तो वह या तो अपने ज्ञान से कुंडली बनाकर अपने ज्ञान के द्वारा जातक के प्रति कथन शुरु करेगा या फ़ेस रीडिंग को देखकर अपने भाव प्रदर्शित करेगा,या कोई न कोई ज्योतिष से सम्बन्धित कारक का बल लेकर ही जातक के भाव को प्रदर्शित करेगा। कई लोग जो बिना पढे लिखे होते है वे किसी न किसी प्रकार की साधनाओ का रूप अपने साथ लेकर चलते है और अपने कथन को सही करने के लिये वे दूसरी शक्तियों पर अपना विश्वास बनाकर चलते है। कई ज्योतिषी एक प्रकार का ही कथन सभी के साथ भावानुसार करते है उस भाव का रूप अलग अलग कारको पर फ़लीभूत होने पर वह अपने शब्दो का जाल जातक के सामने प्रस्तुत करते है और समय पर बताने की कोशिश मे वे अपने कथन को सही साबित करने की बात भी करते है। कई ज्योतिषी जुये जैसा कार्य भी करते है जैसे पासे फ़ेंकने का काम कोडी को पलटने का काम आदि भी देखा जाता है उसके अन्दर उनकी भावना भी कौडियों या पासों के अनुसार होती है। जितना राहु जिसका बलवान होता है उतना ही ज्योतिषी अपनी भाषा को प्रकट करता चला जाता है।

Wednesday, October 26, 2011

राहु केतु बनाम मुस्लिम ईसाई


केतु धुरी है तो राहु पृथ्वी की गति,राहु केतु का अधिकार पृथ्वी के एक सौ अस्सी अंशों में है,एक सौ अस्सी में ही  में बाकी की जातियां अपना अपना अधिकार बनाकर रखती है। यह जरूरी भी नही है कि कोई व्यक्ति हिन्दू के घर में पैदा हुआ है और वह मुस्लिम नही है,अथवा यह भी जरूरी नही है कि कोई व्यक्ति मुस्लिम के घर मे पैदा होकर भी मुस्लिम ही हो,इसी प्रकार से हर घर के अन्दर कई मुस्लिम अपने आप ही पैदा हो जाते है और हर घर के अन्दर ईसाई भी अपने आप ही पैदा हो जाते है.

राहु की पांच गतियों में पहली वह शरीर पर देता है दूसरी हिम्मत को देता है तीसरी वह परिवार और समाज तथा प्राथमिक शिक्षा पर देता है चौथी वह शादी सम्बन्ध आदि पर देता है और पांचवी गति जो मुख्य होती है वह धर्म कानून और भाग्य को देता है.इसी तरह से पांच गतियों को केतु राहु के विरोध मे रहकर देता है,राहु के विरोध मे बैठ कर केतु सबसे पहले अपना असर शादी सम्बन्ध के प्रति देत है दूसरा असर जिस धर्म और कानून को राहु मानता है जिस समाज समुदाय को राहु अपनाना चाहता वहां देता है तीसरा असर केतु राहु जहां से अपनी लाभ वाली स्थिति को देता है जहां से राहु को लाभ होता है जो भी राहु कार्य करता है और उससे जो फ़ल प्राप्त होने वाले होते है राहु के जो मित्र होते है वहां पर भी केतु अपना असर देता है,इसके अलावा रहा जिस स्थान पर बैठा होता है केतु अपनी विरोधी गति वहां भी देता है,पांचवीं गति केतु के द्वारा राहु के पराक्रम और हिम्मत या कहने सुनने या अपनी स्थिति को दिखाने वाले कारको मे भी देता है.राहु केतु के संबन्ध में अपना अधिकार केवल शिक्षा और प्रारम्भिक जीवन मे तथा सन्तान पर नही दे पाता है,उसी प्रकार से केतु भी अपनी शक्ति राहु के शिक्षा परिवार और सन्तान पर नही दे पाता है,इसलिये केतु और राहु का बाकी का असर चाहे कैसा भी रहे लेकिन सन्तान परिवार शिक्षा प्रारम्भिक जीवन इन कारकों के क्षेत्र मे पूरा नही हो पाता है इसलिये यह दोनो प्रकार संसार में चाहे कितने ही पास क्यों न रहे इनके अन्दर कभी भी आपसी सामजस्य नही बैठ पाता है.दोनो ही पृथ्वी के चाहे किसी भी भूभाग मे रहें एक दूसरे के प्रति हमेशा ही विरोधी स्वभाव प्रकट करते रहेंगे,जहां भी केतु का शासन होगा वहां राहु अपनी गति प्रदान करने के बाद कब्जा कर लेगा और जहां भी राहु अपना शासन करता होगा वहां केतु अपना बल प्रयोग करने के बाद अपना अधिकार जमा लेगा। इन दोनो ग्रहों के कारण ही पृथ्वी की गति बनी हुयी है,और लोग अपने अपने अनुसार चलने के लिये मजबूर है,केतु जहां भी अपनी धुरी जमाने की कोशिश करता है राहु वहीं पर अपनी गति बनाकर कंपन पैदा कर देता है और धुरी पर हलचल होने के कारण केतु का कार्य खतरे मे पड जाता है। उसी प्रकार से राहु जहां भी गति और कंपन पैदा करने की कोशिश करता है केतु वहीं जाकर अपनी धुरी बनाने की कार्य योजना को शुरु कर देता है।

राहु अपने इष्ट को अल्लाह के रूप मे मानता है तो केतु अपने इष्ट को ईशा के रूप मे मानता है। जब राहु अपनी आवाज से अपने इष्ट को अल्लाह के नाम से पुकारता है तो केतु उस आवाज को पलट कर अकबर के नाम से वापस कर देता है,उसी तरह से जब ईशाई अपने इष्ट ईशा को पुकारते है तो राहु उसे मसीह के रूप मे वापस कर देता है। राहु केतु के बाद पैदा हुआ है,केतु पहले पैदा हुआ था.केतु धरती है तो राहु पानी है,राहु पानी है तो केतु पानी का फ़ैन है,फ़ैन केतु है तो फ़ैन पर जमने वाले अन्य पदार्थ जो मिट्टी के रूप मे है वे राहु है,राहु जमने वाले अन्य पदार्थ है तो केतु जीव के रूप मे है,केतु जीव के रूप मे है तो राहु उसके अन्दर मिलने वाली शक्ति के रूप मे है,केतु गला है तो राहु सांस है तो केतु ह्रदय है,केतु ह्रदय है तो राहु धडकन है.राहु धडकन है तो केतु खून है,केतु खून है तो राहु खून का बल है,खून का बल राहु  है तो शक्तिवान शरीर के रूप मे केतु जीव है।केतु मनुष्य है तो राहु उसका परिवार है,केतु परिवार का नाम है तो राहु समुदाय है समुदाय का नाम केतु है तो रहने वाले भूभाग का मालिक केतु है.इस तरह से राहु केतु को एक अलग अलग भी नही देखा जा सकता है। दोनो ही अपनी अपनी योग्यता से केवल छाया देना ही जानते है वास्तविक रूप तो इन्हे अलावा ग्रहों से मिलता है जिसे हम देख और समझ पाते है।

राहु केतु की वास्तविकता भाग 2

राहु केतु का आस्तित्व शरीर मे ही नही हर वस्तु जीव वनस्पति कारण कारक सभी मे उपस्थित है किसी को भी राहु केतु से अलग नही देखा जा सकता है। यह मेरी मान्यता भी और अगर आप किसी भी कारण से देखने की सोचने की जरूरत को समझे तो सोच भी सकते है समझ भी सकते है,जब भी आप गहरे विचार से सोचने की कोशिश करेंगे तो आपको समझ मे आजायेगा कि भदौरिया जी ने कितनी सटीक बात कही है। उदाहरण के लिये व्यक्ति के खून के अन्दर राहु केतु का रूप समझने की कोशिश करे,एक व्यक्ति के खून पर राहु का असर मंगल के साथ है और केतु का स्थान पराक्रम की राशि से सम्बन्धित है तो समझने की कोशिश करे,उस व्यक्ति के अन्दर किस प्रकार का नशा होगा,यह जाति से सम्बन्धित नशा होगा। मंगल के साथ राहु का खून के अन्दर उच्च जाति का होने का नशा देता है साथ मे केतु हिम्मत के साधन पैदा कर देता है,जैसे राजपूत के अन्दर मंगल राहु का एक साथ होना तथा केतु का हिम्मत के कारकों से जुडा होना एक राजपूती आन बान शान का प्रतीक माना जा सकता है,राहु के प्रभाव से वह अपने को हमेशा उद्वेग मे रखेगा और जो भी नीची या हल्की बात होगी या किसी प्रकार की हिम्मत वाली चुनौती को दिया जायेगा तो वह अक्समात अपनी केतु के द्वारा साधन देने वाली नीति से तलवार पिस्तौल बन्दूक का इस्तेमाल करने की कोशिश करेगा। इसी प्रकार से अगर राहु का असर गुरु या गुरु की राशि पर है और केतु धर्म आदि के कारक ग्रह के साथ है या धर्म से सम्बन्धित राशियों से अपना सम्बन्ध बनाता है तो जातक के अन्दर ज्ञान के प्रति मीमांसा करने का धर्म के प्रति जीवन भर रुचि रहेगी उन रुचियों के अन्दर वह हमेशा जिन साधनो का प्रयोग करेगा वे धर्म से ही सम्बन्धित होंगे,जैसे माला पूजा का सामान पूजा पाठ की किताबे पूजा पाठ के लिये साधन जैसे मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च आदि। वही राहु जब बुध पर अपना असर डालेगा और केतु का व्यापार के साधनो की राशि या व्यापारिक राशियों से अपना सम्बन्ध स्थापित होगा तो जातक के अन्दर व्यापार करने की और व्यापारिक साधनो का प्रयोग करने का एक जोश पैदा होता रहेगा,जो भी जातक व्यापार के कारको का प्रयोग करेगा वह राहु और केतु के बलावल के अनुसार ही होगा और व्यक्ति को बनिया की उपाधि दी जायेगी जो आज के जमाने मे व्यवसाय के रूप मे समझा जायेगा। इसी प्रकार से अगर राहु शनि के ऊपर प्रभाव डाल रहा है और शनि का सेवा वाली राशि से सेवा करने वाले ग्रह से सम्बन्ध है तथा केतु का रूप साधन देने से है तो जातक के अन्दर एक जोश सेवा करने से होगा और उस सेवा के अन्दर वह उन्ही कारणो का प्रयोग करना शुरु कर देगा जो राहु शनि को अपने द्वारा प्रयोग मे लाने की कला को प्रदर्शित करेंगे,जैसे एक नाई का रूप अगर शनि मंगल की युति से देखा जाये तो वह हजामत के लिये प्रयोग मे लाने वाले शनि मंगल के रूप मे लोहे के हथियार उस्तरा आदि तथा राहु मंगल के रूप मे एन्टीबायटिक दवाइया जो हजामत के बाद प्रयोग मे ली जाती है राहु शनि के रूप मे साफ़ सफ़ाई वाले लोशन आदि का प्रयोग भी माना जायेगा,इसी प्रकार से अगर राहु शनि का योगात्मक रूप शनि मंगल की डाक्टरी वाली राशियॊम में हो अथवा कुंडली मे वह डाक्टरी राशियों मे अपना प्रभाव डाल रहा हो तो जातक उन्ही कारकों का प्रयोग अपने द्वारा करेगा जो डाक्टरी के प्रति अपनी आस्था को रखने वाले है,जैसे केतु अगर चेहरे वाली राशियों मे मंगल के साथ अपनी युति को ले रहा है और शनि का प्रभाव है तो जातक दांतो का डाक्टर होगा वही अगर चन्द्रमा की राशि या चन्द्रमा से अपनी युति को लेकर चल रहा होगा तो पानी वाले रोगो या ह्रदय सम्बन्धी बीमारी को सम्भालने वाला होगा।

इसी कारण को अगर वस्तुओ मे प्रयोग किया जाये तो राहु केतु का प्रभाव हर वस्तु में भी मिलता है। जैसे हम मोबाइल फ़ोन को ही ले लेते है,मेष का केतु लम्बे मोबाइल को प्रयोग करेगा और राहु तुला मे जाने के कारण उसे केवल पत्नी से या पति से सम्बन्ध रखने के लिये भी प्रयोग करेगा और व्यापार के लिये तथा साझेदार से भी बात करने का कारण पैदा करेगा,वही राहु जो धन के रूप मे मोबाइल को चार्ज करेगा वह व्यापार के साधनो से या पति पत्नी के द्वारा ही रीचार्ज करवाया जायेगा,उसके अन्दर जो बैटरी होगी वह केतु के रूप मे होगी,उसके अन्दर जो प्रोग्राम होंगे वह राहु के रूप मे होंगे उसके अन्दर जो बटन होंगे वह केतु और बटन के द्वारा जो नम्बर आपरेट किये जायेंगे वह बुध के रूप मे तथा जहां पर नम्बर मिलाया जायेगा वह शंका को निवारण के लिये तथा जो प्रयोग करने के समय मे खर्चा होगा वह राहु के रूप मे माना जायेगा इसी प्रकार से जो प्रोग्राम राहु के रूप मे प्रयोग किये जा रहे है वे अगर शुक्र के साथ प्रयोग मे आ रहे है तो सुन्दर कलाकारी के रूप मे जैसे फ़ोटो भेजना या वीडियो काल करना माना जायेगा उसी राहु का सीधा सम्बन्ध धनु राशि से होने के कारण उसे संसार से भी जोड कर रखा जायेगा और इन्टरनेट आदि का प्रयोग किया जायेगा। राहु का सम्बन्ध मित्र राशि से होने के कारण और लाभ के लिये होने से व्यक्ति उसे प्रयोग करने के लिये मित्रों का प्रयोग करेगा और जो भी बात करेगा वह लाभ के लिये ही की जायेगी,इसके अलावा राहु का सम्बन्ध तीसरे भाव से होने के कारण जो भी बात की जायेगी वह असीमित भी हो सकती है ठंडे के सामने गर्म और गर्म के साथ ठंडे रूप मे भी हो सकती है। बिना राहु केतु के मोबाइल को भी प्रयोग मे नही लाया जा सकता है,इसे भी आप अच्छी तरह से समझ गये होंगे।

राहु केतु की वास्तविकता

राहु और केतु को मान्यता केवल छाया ग्रह के रूप मे दी गयी है उनके लिये द्रश्य रूप कही भी देखने को नही मिलता है.राहु एक नशा है और केतु उस नशा को देने वाला साधन,इसके अलावा और कोई भी कारण नही माना जा सकता है। राहु के साथ जो भी ग्रह आजाता है वह अपने प्रभाव को उस ग्रह पर डालकर अपने नशे को ग्रह के द्वारा प्रदर्शित करने लगता है,इसी प्रकार से केतु भी जब किसी ग्रह के साथ आजाता है तो सामने बैठे राहु का असर उस ग्रह पर डालकर उसी ग्रह के अनुसार साधन देने लगता है। अगर इन दोनो ग्रहों की व्याख्या की जाये तो बहुत कुछ देखने समझने को मिलता है लेकिन इन दोनो छाया ग्रहों को ही समझा जाये तो इन्हे हकीकत मे कभी भी देखने की जरूरत नही पडती है।

संसार मे अक्सर लोग अपनी अपनी जातियों के प्रति अधिक उत्सुक होते है सौ मे से दस का तो माना जा सकता है कि वे अपने वजूद को ही देख कर चलते है लेकिन नब्बे का ध्यान अपनी जाति पर अवश्य जाता है।इसका मुख्य कारण पहले तो जन्म लेने से फ़िर परिवार के रीति रिवाज मे चलने से अपने नाम को लिखने से अपने नाम के पीछे या आगे माता पिता या समाज का नाम लिखने से रहने वाले स्थान में अपने परिवेश और जलवायु का असर समझने से साथ ही मानसिक सोच के कारण भी समझा जा सकता है। इसके अलावा जो भी प्राथमिक शिक्षा या मनोरंजन अथवा जो चाहत होती है अथवा जो भी कारण परिवार के लिये उत्सुकता के होते है उनके लिये भी व्यक्ति को सबसे पहले अपने परिवार रहने वाले स्थान का प्रभाव जरूर कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य देता है। किसी भी प्रकार के रोग रोजाना के किये जाने वाले कार्य और कार्यों से मिलने वाले कष्ट जैसे रोजाना के कार्यों को अगर सर्द जलवायु के क्षेत्र मे किये जाते है तो रोजाना के कार्यों के अन्दर सर्दी से बचाव के कारण लेके चलना पडता है अगर सर्द जलवायु का ध्यान नही रखा जाये तो भी शरीर के साथ परिवार का कष्ट और होने वाली बीमारिया साथ ही कार्यों के अन्दर रोजाना की पारिवारिक अथवा सामाजिक हलचल को देखना समझना पडता है,इसके साथ ही किये जाने वाले कार्यों और रहने वाले स्थानो के प्रति आपसी सामजस्य का नही बैठ पाना और लडाई झगडे तथा दिमागी रूप से अपने अहम को अधिक प्रदर्शित करने के कारण अधिक खर्च का होना और उस खर्च की एवज मे अधिक से अधिक कर्जा लेना और उसको चुकाने मे देर होना या कर्जा के प्रति चिन्ता करना आदि माना जाता है इसके अलावा जाति का सामजस्य शादी विवाह तथा सामाजिक रूप से घर गृहस्थी के कारणो को भी समझना जरूरी माना जाता है जैसे शादी की जाती है तो वैवाहिक सम्बन्धो को अगर अपने खून के अनुसार मिलान करने के बाद सम्बन्धो को बनाया जाता है तो भी जाति का असर अधिक माना जाता है अन्यथा किसी न किसी प्रकार से जाति से दूर होने के कारण शादी के बाद के जीवन को वे लोग अधिक समझते होंगे जो अपनी मर्जी से दूर के खून से सम्बन्ध बनाने के बाद किस प्रकार से बिना किसी कारण से पारिवारिक या सामाजिक उपेक्षता को सहन करते है और अपने को एकान्त मे रखने के अलावा और कोई भी चारा उनके पास नही बचता है। शादी विवाह के अलावा भी जब मृत्यु होती है तो भी सामाजिकता को देखना पडता है कि व्यक्ति किस जाति का है अगर हिन्दू है तो उसे जलाना जरूरी होता है मुस्लिम या ईशाई है तो उसे दफ़नाना और दफ़नाने या जलाने के बाद उसके प्रति की जाने वाली सामाजिक क्रियायें भी जरूरी जाति के अनुसार ही मानी जाती है आदमी कितना ही धनी हो जाये या कितना ही गरीब हो उसके मरने के बाद उसकी जाति का ध्यान जरूर रखा जाता है अथवा लावारिस होने के बाद और जाति आदि का महत्व नही होने के कारण उसके मृत शरीर को भी उपेक्षा से देखा जाता है या किसी अन्य प्रकार का कारण देकर उसे दफ़ना दिया जाता है या जला दिया जाता है.इन सब कारणो के अलावा ऐसा कोई भी विश्व मे परिवार नही है जो किसी न किसी प्रकार धर्म या सामाजिक कारण साथ लेकर नही चलता है जिस समाज मे पालना हो और उस समाज के प्रति व्यक्ति के अन्दर अगर अच्छी या बुरी कोई धारणा बन गयी है तो उस धारणा के अनुसार ही उसे आजीवन अपने जीवन को लेकर चलना पडता है। अधिकतर मामले मे सभी जातिया या धर्म एकत्रित भी हो जाते है,जैसे मानवता का धर्म,जाति के प्रति संकुचित भावना के अनुसार किसी विशेष पर्व पर एक साथ हो जाना या किसी विशेष कारण से इकट्ठा हो जाना आदि बाते भी देखी जाती है। कार्यों के अनुसार भी लोग अपने अपने धर्म को लेकर चलते है लेकिन वह धर्म केवल कार्य तक ही सीमित रहता है,कार्य क्षेत्र के बाहर होते ही वह अपने वास्तविक जाति या धर्म के प्रति घिर जाता है,लाभ के मामले मे मित्रता के मामले मे भी जाति धर्म और अपनी पहिचान का ख्याल रखना माना जाता है जैसे कोई भी अपनी जाति के बाहर के व्यक्ति को मित्र मान सकता है और अपने लिये समय समय पर कोई न कोई सहायता तो ले सकता है पर वह जब अपने किसी प्रकार के सामाजिक प्रयोजन मे जाता है या धार्मिक कारण के अन्दर प्रवेश करता है तो कितने ही लोग अपनी मित्रता को वहीं पर भूल भी जाते है,और अपने धर्म समुदाय और जाति के अनुसार उसे या तो नीचा देखने लगते है या फ़िर उसे उस समय बुलाते ही नही है। इस बात एक रूप और भी देखा जाता है कि लोग अपने अपने अनुसार बडे बडे दान आदि करते है और अपनी हस्ती से अधिक किसी समुदाय को स्थापित करने मे अपने समय को लगा देते है जब धर्म का कारण उस समुदाय से जुडता है तो लोग अपने आप ही उस समुदाय के प्रति या तो बहुत अधिक समर्पित हो जाते है या फ़िर किसी न किसी कारण से अपने को अपने समय को खर्च करने के बाद भी उससे दूर हो जाते है यह जाति धर्म और समाज आदि का कारण राहु के द्वारा अलग अलग प्रकार से खून पर असर डालने के कारण पैदा होता है साथ ही उस जाति धर्म और समुदाय के लिये केतु साधन बनाने के बाद व्यक्ति को रास्ते देता चला जाता है।

Tuesday, October 25, 2011

गुरु वक्री अमेरिकी दीपावली

एक कहावत कही जाती है कि जब घर गेहूँ होय सदा दिवाली सामने,यानी जब घर के अन्दर खाने के लिये गेंहूँ हों तभी दीपावली का त्यौहार है.शुक्र का त्यौहार दीपावली है,वैश्य वर्ण अपने लिये खास रूप से इस त्यौहार का प्रयोग करना जानता है.क्षत्रिय के लिये तो दसहरा माना जाता है ब्राह्मण के लिये राखी का त्यौहार और शूद्र के लिये होली का त्यौहार शास्त्रो मे भी बताया गया है.लेकिन धर्म और मर्यादा से त्यौहार मनाने के लिये गुरु का सही होना जरूरी है.गुरु अगर वक्री है तो मर्यादा से और सामाजिकता से अलग जाकर त्यौहार मनाया जायेगा,गुरु अस्त है तो त्यौहार के बारे मे लोग अपनी अपनी धारणा से त्यौहार को मनाने की कोशिश करेंगे जैसे दीपावली पर रंग का खेलना,रक्षा बन्धन पर पटाखे फ़ोडना,इसी प्रकार से जब गुरु अपने नीच स्थानो मे होता है तो लोगो का हुजूम बजाय धर्म कर्म के मदिरा और तामसी कारणो मे जाता हुआ देखा जा सकता है.इसी प्रकार से गुरु जब कन्या राशि का होता है तो मजदूर वर्ग मे अधिक उल्लास देखा जाता है गुरु अगर वृश्चिक का है तो उस त्यौहार को मनाने से लोग दूर हो जाते है,इसी प्रकार से जब गुरु मीन राशि का होता है तो लोग बहुत बढ चढ कर त्यौहार को मनाने की कोशिश करते है.गुरु के अनुसार ही लोग बाजारो मे देखे जाते है,जैसे गुरु अगर वक्री होकर मेष राशि का है तो लोग विदेशी चीजो को अधिक खरीदने की कोशिश करेंगे,अगर गुरु मार्गी होता तो अपनी सभ्यता और परिवेश से अपनी खरीददारी करते नजर आते। इस गुरु वक्री के समय मे जो भी धर्म कर्म को मानने वाले लोग है वे किसी न किसी कारण से अपने को या तो कार्य मे लगाये रहते है या किसी प्रकार से बाहर रहने के बाद अपने परिजनो के साथ ही नही आ पाते है.लोग कहते है कि उनके पास समय ही नही है जो किसी प्रकार से त्यौहार पर घर आ सकते,अधिकतर किसी न किसी प्रकार की उल्टी रीति देखी जा सकती है.

Monday, October 24, 2011

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जातक की लगन मेष है और मंगल जातक के धन भाव में विराजमान है,छठे भाव में राहू है अष्टम में गुरु और नवे भाव में शनि विराजमान है,सूर्य बुध दसवे भाव में चन्द्र शुक्र ग्यारहवे भाव में और केतु बारहवे भाव में है.
जातक का जन्म मेष लगन के अश्विनी नक्षत्र में हुआ है उसका मालिक केतु है,जातक का जीवन केतु पर आधारित है,जातक का चन्द्रमा कुम्भ राशि का है और शुक्र के साथ है लेकिन चन्द्रमा का अस्त होना और धनिष्ठा में स्थापित होने का मतलब है की जातक की सोच मंगल की जैसी है,अस्त होने के कारण वह अपनी सोच को मानसिक रूप से दबा कर केवल इसलिए ही अपने कार्यों को कर रहा है की उसके पास धन की कमी है,धन का कारक शुक्र शतभिषा नक्षत्र में है जिसका मालिक राहू है इसलिए राहू की सोच जातक के दिमाग में जाती है की वह किसी प्रकार के लों आदि से अपने खुद का कार्य करे.

व्यापार के चार भाव माने जाते है चौथा भाव खुद के व्यापार का होता है अष्टम भाव संतान के व्यापार का होता है,बारहवा भाव पूर्वजो के जमाने से चलने वाले व्यापार के बारे में अपनी युति को बताता है.लगन और चौथे भाव में कोइ ग्रह नहीं है इसलिए खुद के द्वारा व्यापार करने का रास्ता नहीं है,पंचम स्थान को शुक्र और चन्द्रमा देख रहे है,तथा पंचम के चौथे भाव में यानी अष्टम भाव में गुरु विराजमान है,लगनेश मंगल और गुरु का आपसी रिश्ता भी है,यह प्रभाव जातक के लिए शुक्र यानी कोइ स्त्री दोस्त और चन्द्रमा यानी बड़ी बहिन अपनी राय से किसी कार्य को करने के लिए अपने बल को दे रहे है.

वर्त्तमान की ग्रह स्थिति के अनुसार जातक के कार्य भाव में सूर्य बुध छठे भाव में शनि राशि और धन भाव में मंगल है,अगर शनि मंगल और सूर्य की युति को पकड़ते है तो जातक की राजकीय सेवा होती है कार्य में कठिनाई होती है जो पद होता है उसके अन्दर किसी न किसी प्रकार की आशंका से बारहवा केतु पदावनति करता है,शनि मंगल और बुध को देखते है तो जातक तकनीकी कार्य करता है लेकिन व्यापार में भी मन होता है और बड़े प्रतिष्ठान में कार्य करने का अवसर मिलता है इसी से जातक को कम्पयूटर का काम करने वाला भी माना जाता है लेखा वाले काम भी करने का अनुभव होता है एक भाई को व्यापार होना भी माना जा सकता है किसी प्रकार के अनुभव को लिखाकर और उसे प्रकाशित भी किया जा सकाता है,शनि मंगल राहू को साथ लेकर चलते है तो जातक को साधारण कार्य होने की बात मिलाती है जीवन धन और परिवार की तरफ से संघर्ष के लिए माना जाता है भाई से झगड़ा होना भी माना जाता है यह ग्रह योग पिछले समय का कष्ट वाला जीवन भी माना जा सकाता है,इसके अन्दर पुलिस या अस्पताल या इसी प्रकार के कारण भी पाए जाते है.अगर शनि बुध और सूर्य को देखते है तो जातक के पास सरकारी कार्य भी हो और व्यापार भी हो साथ ही पिता के द्वारा या राज्य के द्वारा कृषि भूमि भी खरीदी गयी हो जातक अपने कार्यों को अपने मित्रो की सहायता से पूरा करना चाहता हो जातक का सामाजिक व्यवहार अच्छा रहा हो,अगर शनि बुध के साथ मंगल को साथ में लेकर चलते है तो शिक्षा के व्यवधान के कारण राजकीय बड़ी सेवा में नहीं जा पाया हो अधिक परिश्रम करने के बाद ही जीवन यापन चल रहा हो विद्युत् ऊर्जा जैसे कार्य हो तकनीकी कार्य हो,शनि बुध के साथ राहू को मिला लेते है तो जातक की भाई बहिन का जीवन संघर्ष पूर्ण हो जातक के विशवास घाती मित्र हो पितामह किसी क्षेत्र में व्यापार जैसी गति विधि को चलाने वाले रहो हो,इस कारण से व्यापार तो बड़ा हो सकता है लेकिन कभी धोखा होने से जातक का जीवन राहू के कारण अकस्मात ही दिक्कत वाला माना जा सकता है,जैसे पिछले जमा धन को जैसे बीमा आदि के द्वारा या किसी प्रकार से शेयर आदि के काम से धन को कमाया गया हो और किसी विदेशी व्यक्ति या किसी बड़े संस्थान के मालिक से बात होने पर अपने धन को प्रयोग में लाया जाए लेकिन दो या तीन साल में वह व्यक्ति अपने हाथ ऊपर कर दे तथा विदेशी लोगो या अपने से बाहर वाले लोगो के पास धन फंस जाने से दिक्कत हो जाए आदि बाते मानी जा सकती है.

please tell me about my Seventh house.

सिंह लगन की कुंडली है,लगनेश सूर्य छठे भाव में है.
धनेश और लाभेश बुध सप्तम भाव में है.
सहजेश और कार्येष शुक्र भी सप्तम स्थान में है.
सुखेश और भाग्येश मंगल सुख स्थान यानी चौथे भाव में है.

पंचमेश और अष्टमेश गुरु भी सप्तम भाव में है.
शत्रु और सप्तम के मालिक शनि भी सुख भाव में है.
व्ययेश चन्द्रमा अष्टम भाव में है.
राहू नवे भाव में है और केतु तीसरे भाव में है.

जातक को अपने सप्तम स्थान के बारे में जानने की इच्छा है.
कुंडली में चार पुरुषार्थ देखे जाते है पहला धर्म का जिसके अन्दर लगन पंचम और नवं भाव आता है.इनके ग्रहों को देख कर पता किया जाता है की व्यक्ति कितना अपने समाज परिवार और धर्म भाग्य की तरफ अपना रुझान रखता है वह शिक्षा की तरफ जाता है या किसी अन्य प्रकार के और काम के अन्दर जाता है.
दूसरा पुरुषार्थ अर्थ का आता है जिससे पता किया जाता है की जातक धन अपने कुटुंब से लेता है या जातक अपनी मेहनत से धन को कमाता है या अपने पूर्वजो के कार्यों और ऊंची शिक्षा को प्राप्त करने के बाद धन को प्राप्त करता है इसमे दूसरा भाव खुद के धन से छठा भाव खुद के द्वारा किये जाने वाले शरीर की मेहनत से और दसवे भाव से ऊंची शिक्षा और पूर्वजो के प्रताप से धन का कामाया जाना जाता है.
कुंडली का तीसरा पुरुषार्थ काम नामक पुरुषार्थ से जाना जाता है जो अपने पर जिम्मेदारियों को निभाने के लिए और आगे की संतति को पैदा करने के बाद संतान के प्रति आजीविका और उनके लिए जीवन साथी आदि के लाने और जिम्मेदारियों को पूरा करने का अर्थ समझा जाता है यह प्रकार तीसरे भाव सातवे भाव और ग्यारहवे भाव से समझा जाता है.
कुंडली के अन्दर चौथा पुरुषार्थ उपरोक्त तीनो पुरुषार्थो के पूरे होने पर संतोष के प्राप्त होने का माना जाता है,यह प्रकार कुंडली में तीसरे भाव से यानी हिम्मत से दूसरा पत्नी यानी जीवन साथी के भाव से दूसरा और लाभ के भाव से यानी ग्यारहवे भाव से दूसरा भाव माना जाता है.जब हम शरीर और नाम से संतुष्ट होते है तो चौथे भाव का सुख माना जाता है,जब हम जीवन साथी और उनके द्वारा प्राप्त सेवाओं से संतुष्ट होते है तो अष्टम का सुख माना जाता है और जब लाभ आदि के साधन को खर्च करने के बाद मानसिक संतोष को प्राप्त करते है तो वह बारहवे भाव का सुख कहा जाता है,यही सुख मोक्ष को देने वाला होता है.

काम नामका पुरुषार्थ सप्तम से जुडा है अगर सप्तमेश बलवान है और किसी प्रकार से क्रूर फरेबी ग्रहों से नहीं जुड़े है तो सप्तम को पूर्ण सुख देने वाला भाव माना जाता है,अगर किसी प्रकार से सूर्य शनि मंगल राहू केतु से सप्तमेश जुड़े है तो वह दुःख देने वाला भाव कहा जाता है,लेकिन सिंह और कर्क लगन वालो के लिए सप्तम का मालिक शनि है,तुला और वृष राशि या लगन वालो के लिए मंगल ही सप्तमेश है,तो दोनों ग्रहों के प्रभाव से तो मान लेना चाहिए की तुला वृष और सिंह तथा कर्क राशि वालो का जीवन तो वास्तव में अपने जीवन साथी के द्वारा कष्ट में होना चाहिए? कारण सूर्य तो खुद ही क्रूर है और वह ठन्डे तथा अँधेरे ग्रह शनि को साथ जीवन साथी के रूप में कैसे लेकर चल सकता है,ऊपर से दोनों का अर्थ भी पिता पुत्र के रूप में है,इसके साथ ही शनि और सूर्य की युति भी सुबह शाम की होती है,कारण सूर्य का समय दिन है और शनि का समय रात है दोनों के मिलाने का समय सुबह या शाम का है,तो फिर इन दोनों राशियों की गृहस्थी सुख कैसे बन पाता होगा ? इसी प्रकार से चन्द्र की कर्क राशि और शनि की मकर राशि,शनि और चन्द्र बहुत ही दिक्कत वाला मामला माना जा सकता है,चन्द्रमा तो कोमल भावुक और ज़रा सी बात पर भावुकता में बहाने वाला,शनि ठंडा अधेरा और कठोर ग्रह दोनों के प्रकार को अगर देखा जाए तो पत्थर की चट्टान पर गिराने वाले झरने जैसा रूप ही समझ में आयेगा,या किसी कसाई के सामने दयालु व्यक्ति का होना ही माना जाएगा,यह युति मिलाने से कितनी कष्ट दाई स्थिति होती होगी यह तो उन्ही लोगो से पूँछिये जो इन लगनो में पैदा हुए और अपने अपने जीवन को निकाल रहे है,वाह वाही करने के लिए कोइ भी अपनी अपनी हांकने लगे लेकिन अगर इन लगनो के व्यक्ति अपने दिल पर हाथ रखकर कहे तो साफ़ पता लग जाएगा की कितनी महानता इन लगनो के जीवन साथियों के साथ होने से मिलाती है.इसी प्रकार से कोमल राशिया जैसे शुक्र बुध चन्द्र की राशिया,इनके अन्दर शनि मंगल सूर्य की राशियों का सम्बन्ध करवा दिया जाए तो कितनी दिक्कत आनी शुरू हो जायेगी.

हकीकत और कुछ है देखने में जो लगता है वह अन्दर से कुछ और ही होता है,जैसे सूर्य दिन भर की तपन से जब आहत होता है तो वह संध्या की गोद में जाकर विश्राम करता है शनि रूपी रजनी उसे विश्राम देती है तब ऊषा रूपी भोर उसे नया जीवन देकर फिर से चमकने का साहस देती है.यह सिंह और कुम्भ राशि का प्रभाव है,उसी प्रकार से वृश्चिक राशि कामुकता की राशी है अगर वृष राशि से इसका सम्बन्ध नहीं होता तो सांड के अन्दर कामुकता ही नहीं होती और वह वृश्चिक राशि वाला व्यक्ति अपनी कामुकता की आग में जल जाता,उसी प्रकार से अगर चन्द्रमा जो छल कपट का राजा भी कहा जाता है,जो गुरु पत्नी तारा को भी हरण करके ला सकता है,और बुध जैसे अनैतिक संतान को पैदा कर सकता है अगर उसके सामने मकर जैसा जीव नहीं दिया जाता तो वह अन्य पानी के जीवो से इतना गंदा हो जाता की वह किसी प्रकार से अपनी सफाई और उज्ज्वलता के लिए जाना ही नहीं जाता,मकर यानी मगर ही चन्द्रमा रूपी सरोवर की सफाई करने के लिए काफी होता है.इसी प्रकार से तुला राशि के सामने मंगल की मेष राशि होती है तुला राशि का कार्य होता बेलेंस करने के बाद किसी बात की पुष्टि करना लेकिन मेष राशि का कार्य होता है की वह जो कहना है उसे पूरा करना है,तुला रिश्ते के अन्दर भी बेलेंस कर सकता है,लेकिन मेष जिस रिश्ते को लेकर चलने वाला है उसी रिश्ते को लेकर चलता रहेगा चाहे उसे अपनी कुर्बानी कसाई के तुला (तराजू) में अपने गोस्त को तुलने के लिए क्यों न जाना पड़े.अगर तुला राशि को संभालने वाला मेष यानी मेढा सामने नहीं होता तो तुला राशि के व्यक्ति का जीवन कभी भी स्थिर हो ही नहीं सकता था.
बात कुछ अधिक हो गयी है जातक का प्रश्न अधूरा रह गया है बाकी का उसने खुद समझ लिया होगा की उसके सप्तम के स्वामी शनि का क्या प्रभाव है,इस कुंडली में शनि का प्रभाव चौथे भाव में मंगल के साथ है,चौथा मंगल नीच का मंगल कहलाता है नीच के मंगल को साधारण रूप में अगर वह वृश्चिक राशि का है और शनि के साथ है तथा उससे राहू का छठे भाव में है तो जमीन के अन्दर एक मिट्टी को उबालने वाला ऐसा ज्वाला मुखी कहा जाएगा जो अपने धुएं और राख को जातक के पूर्वजो तक पर डालने का काम करेगा.वह धुंआ जातक के लाभ को जातक के शरीर और नाम को जातक के पराक्रम और हिम्मत को जातक के संतान के भाव को भी ढकने और गंदा करने का काम करेगा.जो भी शिक्षा जातक ने ली होगी जो भी तकनीकी योग्यता उसके अन्दर होगी वह अपने जीवन साथी के कारणों से भूल जाएगा,जो भी जातक का भाग्य होगा पूर्वजो का नाम होगा वह जीवन साथी के कारणों से बरबाद होना शुरू हो जाएगा जातक के जीवन में ह्रदय में एक आग की तरह सुलगाने वाला राख से भरा कोयला ही इस प्रकार के शनि मंगल के प्रभाव को समझा जा सकाता है.

जातक का प्रभाव जमीनी चीजो को घर से बाहर रहकर छोटी छोटी यात्रा करने के बाद खरीदने बेचने का होगा जबकि जातक का जीवन साथी कहने को तो बहुत ही सलीके से काम करने वाला होगा लेकिन राहू के पराक्रम से अपनी हैसियत को बहुत दूर का कहने वाला कार्यों के अन्दर कसाई जैसे काम करने वाला भी माना जा सकाता है.

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कन्या लगन की यह कुंडली है और लगनेश बुध सिंह राशि में होकर बारहवे भाव में धन और भाग्य के मालिक शुक्र खर्चे के मालिक सूर्य के साथ विराजमान है.बुध कार्य और पिता के भाव के भी मालिक है.जातिका अहमदाबाद में पिछले नौ सितम्बर २०११ में पैदा हुयी है.कुंडली में लगन में शनि विराजमान है और कन्या लगन का दूसरा द्रेष्कान जातिका के लिए अपनी पोजीशन को बता रहा है,इस द्रेष्कान के बारे में शास्त्रों में कथन है की हाथ में धनुष आय व्यय का हिसाब रखने वाला श्यामवर्ण शरीर लेखन कार्य में चतुर बालो से भरा शरीर.जातिका के बारे में इस द्रेष्कान का अर्थ बहुत ही गहरा लिया जाता है,हाथ में धनुष इस बात का अर्थ चौथे भाव की धनु राशि से माना जाएगा,आय व्यय का हिसाब रखने वाला का मतलब ग्यारहवे भाव और बारहवे भाव से लिया जाएगा,श्याम वर्ण शरीर का अर्थ शनि कहाँ है इस बात से लिया जाएगा,बालो से भरा शरीर इस बात के लिए राहू को देखा जाएगा की वह कहाँ है.जातिका का पूरा जीवन इन्ही बातो पर निर्भर करता है.धनु राशि जातिका के चौथे भाव में है और यह स्थान जन्म स्थान के बारे में बताया गया है,इस राशि पर मंगल की दृष्टि है,अष्टम वक्री गुरु की दृष्टि है,तथा यह राशि राहू और चन्द्रमा के बीच में स्थिति है.यह स्थान मंगल से देखे जाने के कारण अस्पताल के मामले में जाना जाता है,जन्म स्थान के बारहवे भाव में राहू के होने से तथा राहू की दृष्टि चन्द्र केतु पर जाने से केतु की दृष्टि शनि पर जाने से और शनि की दृष्टि मंगल पर जाने से मंगल की दृष्टि शनि तथा चन्द्रमा पर जाने से जिन कारको को प्रदर्शित करता है और जातिका के चौथे भाव की धनु राशि का प्रभाव इस प्रकार से बताता है:-
  • मंगल अस्पताल है,तथा मंगल ही खून का कारक है,मंगल ही मिथुन राशि में होने के कारण तथा अष्टम से तीसरे भाव में होने से सहायक डाक्टर के रूप में माना जाता है,वक्री गुरु होने से और वक्री गुरु का प्रभाव मंगल पर जाने से डाक्टर को स्त्री डाक्टर के रूप में जाना जाता है,मंगल को लगन का शनि जो कन्या राशि में होने के कारण तथा मंगल पर दसवी नजर रखने के कारण डाक्टर के निवास स्थान से उत्तर में खुद का अस्पताल होने या किराए का अस्पताल होने की बात मानी जा सकती है.मंगल के द्वारा पंचम चन्द्रमा पर नजर रखने के कारण डाक्टर को संतान संबंधी रोगों का जानकार माना जा सकता है इस डाक्टर को राहू के द्वारा चन्द्रमा पर नजर रखने के कारण संतान पैदा होने के समय के इन्फेक्सन आदि के बारे में माहिर जाना जा सकता है.राहू के सप्तम  में केतु के होने से और केतु से दूसरे  भाव में मंगल के होने से डाक्टर ने अपने अस्पताल का नाम दूसरा बदला है यह भी माना जा सकता है.
  • शनि के द्वारा राहू को देखे जाने से अस्पताल में काम करने वाले सहायको के प्रति भी देखा जाता है जो राहू यानी साफ़ सफाई करने वाले और साथ में काम भी करने वाले माने जाते है,राहू का तीसरे भाव में होना और केतु का नवे भाव में होना राहू का इन्फेक्सन के घर में होना तथा केतु का लगाए जाने वाले इंजेक्सन से होना इंजेक्सन में भरी जाने वाली दवा गुरु के केतु से बारहवे भाव में होने से जातिका के लिए जो दवा पहले प्रयोग की गयी थी उसे किसी कारण से बदल दिया गया,चन्द्रमा से छठे भाव में मंगल के होने से जातिका की माता के पृष्ठ भाग में नितम्ब पर वह इंजेक्सन लगाया गया और उस इंजेक्सन के लगाने के बाद जातिका का जल्दी से जन्म करवाने की प्रक्रिया का उपयोग किया गया,जातिका का उलटा पैदा होना भी गुरु के वक्री होने से माना जाता है और पैदा होने के समय गर्भाशय की झिल्ली फट जाने से जातिका के मुहं में गंदा पानी (राहू के अष्टम में मंगल) का जाना भी माना जा सकता है.
  • जातिका के पैदा होने के बाद जातिका को कृत्रिम सांस देकर भी ज़िंदा रखने की कोशिश की जाती है (शनि से अष्टम वक्री गुरु) उसके बाद जातिका को स्थान बदल कर ऊपरी मंजिल पर रखा जाता है.
  • इस कुंडली में जन्म के समय गंदा पानी जाने से जातिका को इन्फेक्सन वाले रोग है जिनसे जातिका को सांस लेने की परेशानी है,नाभि के नीचे के भाग में पानी की मात्रा का अधिक होना और पाचन क्रिया का सही नहीं होना तथा पीलिया जैसे रोग का होना भी माना जाता है. (अष्टम का वक्री गुरु तथा गुरु से आगे केतु) .
  • लगनेश से छठे भाव में चन्द्रमा के होने से जातिका को पानी संबंधी बीमारी का होना माना जाता है साथ ही चन्द्रमा की दशा चलने से और आने वाले नवम्बर के महीने तक शनि के कन्या राशि में ही रहने से जातिका को पाचन क्रिया वाली बीमारिया खून के इन्फेक्सन आदि की बीमारिया रहना माना जाता है.
जातिका के लिए मंगल शनि और शुक्र को दिक्कत देने वाला माना जता है लेकिन माता के रहते अक्सर सभी दुःख माता पर ही जाते है,अक्सर जातिका के इस बीमारी का कारण एक और माना जाता है की या तो जातिका की माता ने गर्भ के समय में प्राथमिक समय में कोइ दवाईया गर्भपात के लिए ली हो या किसी प्रकार से अधिक से अधिक इन्फेक्टेड भोजन को किया हो.मोती लगा हुआ चांदी का चन्द्रमा जातिका के गले में पहिनाने से फ़ायदा मिलेगा.

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कुंडली वृश्चिक लगन की है लगनेश बुध के साथ ग्यारहवे भाव में लाभ भाव में विराजमान है,बुध बड़े बड़े भाई बहिनों और मित्र के अलावा गुप्त रूप से काम करने धन के प्रति कोइ तकनीकी ब्रोकर शिप करने के लिए भी माना जाएगा क्योंकि बुध अष्टम के साथ साथ लाभ का भी मालिक है.केतु नौकरी के भाव में है राहू व्यय भाव में है,लगन से लेकर पंचम भाव तक कोइ भी ग्रह नहीं है,इसलिए कुंडली के अनुसार शेषनाग नामक काल सर्प योग की मीमांशा भी जरूरी है,इस काल सर्प योग का प्रभाव यह होता है की जातक हमेशा अवसर की तलास में रहता है,वह अवसर चाहे धन की तरफ से हो पारिवारिक कार्य करने की तरफ से हो किसी प्रकार के ज्ञान के आहात से होकर किसी की आलोचना करने की तरफ से माना जाता है,जातक मेहनती भी होता है,लेकिन मंगल बुध की लाभ भाव में स्थिति होने से जातक को कठोर बात करने की आदत होती है जिससे उसकी शत्रुता भी हो जाती है,बैठे बैठ जातक को कभी कभी कल्पना होती है की उसके शरीर के किसी हिस्से में कीड़े रेंग रहे है,अथवा किसी न किसी प्रकार के कीड़ो के काटने से भी दिक्कत मानी जा सकती है.पिछले समय में भी जातक ने सवाल किया था और उस समय जातक का गुरु चन्द्रमा से कार्येष मंगल से अपनी युति पच्चीस जनवरी दो हजार ग्यारह को ले रहा था,पता नहीं उसके बाद जातक का कोइ प्रश्न नहीं आया,आज जातक ने फिर से सवाल किया है.

जातक को काल सर्प की पूजा करवाना या करना बहुत जरूरी है,इसके लिए वह इन उपायों को करे:-
  • गणेश जी की मूर्ती जिसकी सूंड दाहिने हो उसकी पूजा उपासना विधिविधान से करे.
  • शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को शंकर जी की उपासना और रुद्राभिशेख करे.
  • रोजाना ॐ नमो शिवाय का जाप शाम के समय पंद्रह मिनट लगातार करे.
  • पूर्णिमा के दिन शिव लिंग पर दुग्धाभिशेख करे.
  • मनसा देवी की पूजा सोमवार के दिन किया करे.
  • नाग की अंगूठी ताम्बे की बनवाकर धारण करे साथ ही लहसुनिया पञ्च धातु में बनवाकर पेंडल की तरह से गले में धारण करे.
  • गोपाल सहस्त्र नाम का पाठ रोजाना करे या हरिवंश पुराण का पाठ किया करे.
  • काल भैरव की उपासना करे.
  • रुद्राक्ष की माला पहिने
  • भूखे को भोजन नंगे को कपडे और प्यासे को पानी पिलाए.
  • नागफनी का पेड़ गमले में लगाकर रखे और दूध मिले पानी से सोमवार को सींचा करे.
  • लाल टमाटर खाया करे.
  • साबुत जौ लेकर उन्हें अपने सिरहाने रखकर सोये,आठवे दिन उनका दलिया बनाकर रोजाना पक्षियों को डाला करे.
  • कभी समुद्री यात्रा हो तो नारियल समुद्र में डाला करे.
  • चूहों को मारना बंद कर दे.
इन उपायों को करने के बाद राहू अपनी गति को मन के माफिक बनाने में सहायता करेगा.

meri rashi kya hai.or karz kab tak utrega guru ji..?

इस जातक की धनु लगन की कुंडली है और गुरु दसवे भाव मे विराजमान है.चन्द्र राशि कुम्भ है,लेकिन इस जातक का नाम सिंह राशि से शुरु हो रहा है.इस बात का एक कारण जो नाडी ज्योतिष मे जाना जाता है उसके अनुसार जब जातक का नाम प्रकृति ने रखा हो और सोच समझ कर दुनियावी रीति से नही रखा गया हो तो उस प्रकृति का कैसे पता किया जा सकता है.अगर कुंडली मे गुरु को देखते है तो वह शनि के साथ दसवे भाव मे है यानी नीच का हो गया है साथ नाम को प्रदान करने वाले ग्रह चन्द्रमा का भी शनि की राशि कुम्भ मे जाना और केतु राहु के बीच मे अकेला फ़ंसा होना जातक के वास्तविक चन्द्र राशि से नाम का प्राप्त करना दिक्कत वाला है.समय पर अपने आप ही जातक के मन मे भावना पैदा हो जाती है कि वह अपने नाम की राशि को जाने और अपने ऊपर के संकट को हटाने का प्रयास भी करे.

"धनु लग्नोदयो जन्म तस्ये भूमि नन्दन,
चन्द्र पुत्र व्ययगेहे भृगु पुत्र समन्विते।
मृत्यु गेहे सिंहिकापुत्र भ्रातके रात्रिनाथ:,
दिवानाथ व्ययगेहे कर्मगेहे तस्य नन्दन:॥
लग्नाधीश: कर्म गेहे नीच भावे स्थित:,
कुटुम्ब गेहे हरण: सर्व सम्पदा:॥"

अर्थात- धनु लगन मे जन्म है मंगल लगन मे है,बुध व्यय भाव मे है शुक्र साथ मे है,राहु अष्टम मे है,छोटे भाई बहिन के घर मे चन्द्रमा है,सूर्य व्यय भाव मे है शनि कर्म स्थान मे है,लगनेश नीच भाव मे है और केतु सम्पत्ति और कुटुम्ब का नाश करने के लिये दूसरे भाव मे विराजमान है.

इस कुंडली मे जो ग्रह इस भाव को अपने अधिकार मे ले रहे है वे इस प्रकार से है:-

मंगल- लगन को अपने प्रभाव मे स्थिति से ले रहा है,चौथे भाव को अपनी चौथी नजर से कन्ट्रोल कर रहा है सप्तम भाव को अपना बल दे रहा है,अष्टम के राहु को अपने द्वारा कन्ट्रोल कर रहा है.

अर्थ- मंगल इस कुंडली मे पंचम और बारहवे भाव का मालिक है.यह जब लगन मे स्थापित हो गया तो पांचवे भाव और बारहवे भाव का असर जातक के शरीर पर डालता है,पांचवा भाव शिक्षा का भी माना जाता है और जल्दी से धन कमाने के लिये भी माना जाता है,शरीर मे यह पेट और संतान का कारक है,बारहवा भाव खर्चे का जाना जाता है,जातक को जल्दी से धन कमाने के गूढ अर्थ पता है वह जितना कमाता है उतना ही खर्च करने के लिये भी माना जाता है.जातक के रहने वाले स्थान को गुरु शनि राहु केतु देख रहे है,शनि धन का भी मालिक है और अपने द्वारा लिखने पढने और कार्य करने का भी मालिक है गुरु लगन का भी मालिक है और चौथे घर का भी मालिक है,जातक को गुरु शनि मिलकर अपना कार्य करने के लिये अपना बल दे रहे है,कार्य भी नौकरी करने और धन आदि के प्रति तकनीकी कार्य करने वाला बल प्रदान कर रहे है,लेकिन धन भाव का केतु जातक के साधनो के लिये और कार्य को जमाने वाले कारको के लिये बजाय धन देने के खर्च करवाने के लिये अपना प्रभाव दे रहा है,इधर राहु अष्टम भाव से जमीनी पानी जैसे डीजल पैट्रोल गैस आदि के मामले मे अपना काम बहुत आगे बढाने के लिये अपने प्रयास कर रहा है,अगर इसे दूसरे रूप मे देखा जाये तो वाहन चलाने और वाहन को कमीशन से चलाने का कार्य भी कहा जा सकता है.इस कारण को जातक का जल्दी से धन कमाने का कारण और खर्च करने की आदत से कर्जा होना भी माना जाता है.जातक का सूर्य जो भाग्य का मालिक है व्यय भाव मे है जातक को आंखो की परेशानी मानी जा सकती है पिता का कोई सहारा नही माना जा सकता है,बुध जो सप्तम और कार्य का मालिक है वह भी व्यय भाव मे है इस कारण से जातक के साझेदार या बोल कर किये जाने वाले काम साथ मे जीवन साथी वाले मामले मे भी बेकार का खर्च किया जाना माना जा सकता है,शुक्र जो लाभ और नौकरी के मालिक है बारहवे भाव मे है वह भी बुध और सूर्य के साथ होने से तथा तकनीकी राशि मे होने से जातक के प्रति सहायता से दूर है.

"दया दानेषु निरत्ता स्वास्थ्य चिन्ता यदा कदा,
एकत्रिंश: समायेते संहिता श्रुति गोचरा।"

पिछले समय मे राहु के मंगल पर गोचर करने के बाद लोगो पर दया करने से और बेकार मे अपने धन को दूसरो पर खर्च करने से धनहीन हो गया है और अपनी उम्र की इकत्तीसवी साल मे यह कथन सुन रहा है.

अपने कर्ज घरेलू दिक्कत को दूर करने के लिये कादम्बरी मंजरी का जाप चार लाख की संख्या मे करवाने से तथा दशांश का हवन करवाने से धन परिवार विदेश वास और परिवार की उन्नति सम्भव है.



Sunday, October 23, 2011

प्रश्न कर्ता जिस व्यक्ति के बारे मे प्रश्न करता है उसकी उम्र कितनी है

प्रश्न कुन्डली बनाकर अक्सर प्रश्न कर्ता किस उम्र के व्यक्ति बारे मे चिन्तित है उसके बारे मे जानने के लिये यदि बुध चौथे भाव मा स्वामी हो या तो वह इस भाव मे बैठा हो या देखता हो तो व्यक्ति को बालक के बारे मे चिन्ता होगी जो उम्र मे बारह साल के आसपास का होगा। इसके अलावा चन्द्रमा अगर चौथे भाव मे हो और देखा जाता हो तो व्यक्ति को जवान आदमी के बारे मे चिन्ता करना माना जाता है मन्गल अगर चौथे भाव का मालिक है या चौथे भाव को देख रहा है तो किसी युवक के बारे मे चिन्ता करना माना जा सकता है,शनि गुरु या सूर्य या राहु इस स्थान पर हो तो मानना चाहिये कि किसी बुजुर्ग व्यक्ति के बारे मे चिन्ता की जा रही है। इसके साथ ही यह भी बात ध्यान मे रखने वाली है कि जो प्रश्न कर रहा है उसकी आयु भी देखनी जरूरी होती है अगर शुक्र लगन को या लगनेश को देख रहा हो तो उम्र सोलह साल के आसपास की होती गुरु अगर अपना प्रभाव लगन पर दे रहा हो तो तीस साल के आसपास सूर्य और शनि या राहु देख रहे हो तो प्रश्नकर्ता की उम्र सत्तर साल के आसपास मानी जा सकती है.

शादी किस प्रकार की स्त्री से होगी विचारणीय प्रश्न

प्रश्न कुंडली से पता किया जाता है की प्रश्चक की शादी किस प्रकार की स्त्री से होगी,प्रश्न लगन वृष है इस लगन का दूसरा द्रेष्कान है केतु लगन में विराजमान है,तीसरे भाव में मंगल नीच का कर्क राशि का है,पंचम स्थान में शनि कन्या राशि का है छठे भाव में सूर्य बुध शुक्र विराजमान है,सप्तम में राहू विराजमान है,चन्द्रमा का स्थान चौथे भाव में है और गुरु वक्री होकर बारहवे भाव में है.पूंछने वाले के दिमाग में यह प्रश्न चन्द्रमा के अनुसार माना जाएगा,चन्द्रमा के दूसरे भाव में शनि है जो कन्या राशि का है इस शनि का प्रभाव सीधा केतु से सम्बन्ध रखने वाला है,तीसरे भाव में सूर्य बुध और शुक्र के होने से तथा बारहवे गुरु के द्वारा वक्री नजर से देखने के कारण जातक की शादी एक बार होनी मानी जाती है जातक की पत्नी भाव का मालिक चन्द्रमा से शनि दूसरे भाव में है इसलिए जातक दूसरी शादी करने के मूड में है,कारण चन्द्रमा से गुरु नवे भाव में है और गुरु विदेश भाव में है,न्याय भाव में है इसलिए उसकी शादी करने की इच्छा केवल अपने को विदेश में रहने के लिए और वहां के क़ानून के अनुसार स्थाई निवास के लिए मानी जा सकती है.

केतु शनि का प्रकार का स्त्री जातक से माना जाता है अगर यही केतु मंगल के कब्जे में होता तो स्त्री की जगह पर पुरुष की चिंता होती,लेकिन केतु स्त्री ग्रह शनि के कब्जे में है और केतु खुद शुक्र की राशि में है,जातक कार्य करने वाली स्त्री को जानता है स्त्री का कार्य शिक्षा स्थान में कार्य करने से भी माना जा सकाता है,इसके साथ ही राहू मंगल का आपसी योग भी जातक के अन्दर अंदरूनी सोच को ही प्रदर्शित कर रहा है की वह अपने जीवन की तरक्की के लिए कार्य करने वाली स्त्री के रूप में हो और जातक अपने लिए एक प्रकार की साख किसी काम करने वाली स्त्री की सहायता से आगे बढाने की कोशिश करे.गुरु वक्री होने से जातक की सोच में रिश्ते नाते पारिवारिक मर्यादा का कोइ मूल्य नहीं है,वह केवल अपने स्वार्थ और अधिक से अधिक धन कमाकर अपनी औकात को बनाकर ही आगे चलने के लिए अपनी इच्छा की पूर्ती को चाहता है.

किसी भी राशि का पहला द्रेष्कान बालक अवस्था की सोच को पैदा करता है दूसरा द्रेष्कान जवानी की अवस्थान को सूचित करता है और तीसरा द्रेष्कान बुढापे की अवस्था को सूचित करता है व्यक्ति जिस स्त्री से शादी करना चाहता है वह वृष लगन के दूसरे द्रेष्कान की सोच में माना जाता है,तथा किसी जवान स्त्री के लिए भी अपनी सोच को जाहिर करता है.राहू मंगल की युति से खून के अन्दर जो सोच चलाती है उसे भी माना जाता है जैसे उच्च के मंगल के साथ राहू की सोच होती है वह चिल्लाकर बोलने की मानी जाती है और नीच के मंगल की सोच गुपचुप रूप से सोचने के लिए मानी जाती है.

केतु का शनि के साथ सम्बन्ध होने से कार्य करने वाली और नीच वर्ण की स्त्री के लिए जाना जाता है,बारहवा गुरु होने से जातिका का पिता या बड़ा भाई किसी दूसरे देश में या दूर स्थान में नौकरी करने वाला होता है,वह अपने परिवार के साथ रहता है जबकि जातक जिसे चाहता है उसके पिता का कारक सूर्य छठे भाव में होने के कारण किसी व्यापारिक संस्थान में नौकरी करने वाला होता है,परिवार के रूप में सामने राहू होने के कारण जातिका का पिता किसी पारिवारिक लड़ाई झगड़े या किसी प्रकार के सामाजिक उत्पात की वजह से अपने जन्म स्थान को छोड़ कर किसी दूसरे स्थान में बसा हुआ भी माना जा सकता है.

कुंडली के रहस्य कैसे जाने भाग 2

पिछले पेज में मैंने बताया था की सूर्य मंगल राहू क्रूर ग्रह है और  यह मित्र भाव में या मित्र राशि से अपनी युति बना रहे हो लेकिन अपनी शक्ति को भाव अनुसार ही प्रदर्शित करने की कोशिश करेंगे,जैसे सूर्य आसमान का राजा कहलाता है शक्ति का कारक है आत्मा का बोधक है.पिता और पिता के परिवार से सम्बन्ध रखने वाला है लेकिन किसी न किसी कारण से साल में तीन महीने अपनी युति को अहम् से पूर्ण कर लेता है कनफ्यूजन भी देता है जब राहू के साथ आजाये,वैसे तो बड़े भाई की औकात से भी विभूषित करता है लेकिन जब भी गुरु कुंडली में या गोचर से वक्री हो जाए तो वह अपने रिश्ते को भूल कर अपने छोटे भाइयों को ही गुलाम बनाकर रखना चाहता है और कोइ भी काम व्यक्तिगत रूप से किया जाए तो उसे वह अपने द्वारा ही किया बताने के लिए हमेशा हाजिर रहता है.मंगल भाई का कारक बताया जाता है खून का सम्बन्ध जाहिर करता है लेकिन जब भी राहू के साथ आजाये तो अपने द्वारा कोइ न कोइ दिमागी प्रेसर देने के लिए अपनी युति को बनाकर देता रहता है.इस कुंडली में भी सप्तम में राहू के साथ मंगल है और मंगल का बल राहू अपने में ग्रहण कर रहा है,इस शक्ति का राहू अचानक प्रयोग धर्म न्याय और कानूनी भाव में देकर बुध को आहात कर रहा है,राहू और मंगल के असर से बुध आहात है,बुध की व्यथा को और भी बढाने के लिए शनि भी बारहवे भाव से अपने बल को दे रहा है,शुक्र गुरु बुध और चन्द्र यह चारो जो सौम्य ग्रह के रूप में जाने जाते है सूर्य और शनि के बीच में आकर अपनी योग्यता को बखान तो करना चाह रहे है लेकिन यह ग्रह पीछे देखने पर सूर्य यानी पिता की मर्यादा को कायम रखना चाह रहे है आगे इन्हें शनि रूपी संपत्ति का कारण भी दिखाई दे रहा है,जो ग्रह फ़ायदा देने वाले और कार्य के लिए अपनी सहायता को प्रदान करना चाहता है वही गुरु के रूप में नीच राशि में बैठ कर कार्य भाव को बाधित भी कर रहा है.राहू मंगल की युति को यह भी माना जाता है की मंगल जो खून का कारक है उसके अन्दर राहू का असर आजाने से खून में चालाकी की सीमा भी आजाती है वह अपने को बचाने के लिए या अपने काम को निकालने के लिए चालाकी को भी जाहिर करता है और उस चालाकी को अपने लिए भी रखे तो भी ठीक वह अपनी चालाकी से कमाया गया धन या मान मर्यादा आगे गुरु सूर्य और शुक्र के अष्टम में होने के कारण अस्पताली कारणों में रिस्तो के बिगाड़ में और कार्य को अधिक बढाने के चक्कर में लोगो के द्वारा ठगी का शिकार होने बरबाद करने वाला भी माना जा सकता है.

कैसे पढें कुंडली के रहस्य

ज्योतिष से जीवन के रहस्य खोलने के लिए जन्म समय के अनुसार कुण्डली बनाना जरूरी होता है,अक्सर कुंडली बनाने के बाद उसके अन्दर भावो के अनुसार ग्रहों का विवेचन कैसे किया जाता है इस बात पर लोग अपने अपने ज्ञान के अनुसार कथन करते है,कई बार तो मैंने देखा है की कुंडली देखते ही कहना शुरू कर देते है की यह बात है इस बात का होना यह बात हुयी है लेकिन जो कुंडली को पूंछने के लिए आया है वह अपनी बात को कह ही नहीं पाया और तब तक दूसरे का नंबर आ गया,अपनी कुंडली को अपने आप जब तक पढ़ना नहीं आयेगा तब तक जीवन के भेद आप अपने लिए नहीं खोल पायेंगे,हर व्यक्ति के लिए तीन बाते जरूरी है की वह अपने समय को पहिचानना सीखे उसके बाद अपनी बात को दूसरे को समझना सीखे और तीसरी बात है की जब दुःख या कष्ट का समय है बीमारी है तो उसका अपने आप ही इलाज करना सीखे.समय को सीखना ज्योतिष कहलाता है और अपनी बात को समझाने की कला को मास्टर के रूप में जाना जाता है तीसरी बात जीवन के अन्दर आने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए वैद्य का होना भी जरूरी है,बाकी के काम जो जीवन में अपने लिए जरूरी है वे केवल कमाने खाने के लिए और लोगो के साथ रहने तथा आगे की संतति को चलाने से ही जुड़े होते है.ज्योतिष के अनुसार जब भेद खोले जा सकते है तो क्यों न भेद को खोल कर अपने हित के लिए देखा जाए और जो दिक्कत आने वाली है उसका निराकारण खुद के द्वारा ही कर लिया जाए तो कितना अच्छा होगा.आज कल कुंडली बनाने के लिए ख़ास मेहनत नहीं करनी पड़ती है कुंडली को बनाने के लिए बहुत से सोफ्ट वेयर आ गए उनके द्वारा अपनी जन्म तारीख और समय तथा स्थान के नाम से आप अपनी कुंडली को आसानी से बना सकते है.

उपरोक्त कुंडली में नंबर लिखे हुए और भावो के नाम लिखे है तथा ग्रहों के नाम लिखे हुए है.नंबर राशि से सम्बंधित है जैसे लगन जिस समय जातक का जन्म हुआ था उस समय तीन नंबर की राशि आसमान में स्थान ग्रहण किये हुए थी,एक नंबर पर मेष दूसरे नंबर की वृष तीसरे नंबर की मिथुन चौथे पर कर्क पांचवे पर सिंह छठे नंबर की कन्या सातवे नंबर की तुला आठवे की वृश्चिक नवे की धनु दसवे की मकर ग्यारहवे की कुम्भ और बारहवे नंबर की राशि मीन होती है.इसी प्रकार कसे लगन जो पहले नंबर का भाव होता है उसके अन्दर जो राशि स्थापित होती है वह लगन की राशि कहलाती है जैसे उपरोक्त कुंडली में तीन नंबर की मिथुन राशि स्थापित है.इससे बाएं तरफ देखते है चार नंबर लिखा है,इसी क्रम से भावो का रूप बना हुया होता है.पहले भाव को शरीर से दुसरे को धन से तीसरे को हिम्मत और छोटे भाई बहिनों से चौथे नंबर को माता मन मकान और सुख से पांचवे को संतान शिक्षा और परिवार से छठे भाव को दुश्मनी कर्जा बीमारी से सातवे नंबर के भाव को जीवन साथी पति या पत्नी के लिए आठवे भाव को अपमान मृत्यु जान जोखिम नवे को भाग्य और धर्म न्याय विदेश दसवे को कर्म और धन के लिए किये जाने वाले प्रयास ग्यारहवे को लाभ और बड़े भाई बहिन दोस्त के लिए बारहवे को खर्च और आराम करने वाले स्थान के नाम से जाना जाता है.

ग्रह तीन प्रकार के होते है एक अच्छे दुसरे खराब और तीसरे अच्छे के साथ अच्छे और खराब के साथ खराब.खराब ग्रहों में सूर्य मंगल शनि राहू केतु को माना जाता है अच्छे ग्रहों में चन्द्र बुध शुक्र और गुरु को माना जाता है लेकिन बुध और चन्द्रमा के बारे में माना जाता है की बुध जिस ग्रह के साथ होता है और अधिक नजदीक होने पर वह उसी ग्रह के अनुसार अपने काम करने लगता है तथा चन्द्रमा के बारे में कहा जाता है की वह शुक्र पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक बहुत अच्छा होता है तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी से अमावस्या तक बहुत खराब होता है बीच के समय में सामान्य अच्छा या बुरा फल देने वाला होता है.
कुंडली को पढ़ने के लिए सबसे पहले तीन बाते ध्यान में रखनी पड़ती है पहली तो ग्रह का स्थान दूसरा ग्रह के द्वारा कहाँ से प्रभाव लिया जा रहा है तीसरा ग्रह किस ग्रह के साथ बैठ कर क्या फल ग्रहण कर रहा है.इसके अलावा जो पांच बाते इसी के अन्दर आती है उनके अन्दर कुंडली में धन कहा है,कुंडली में खराब स्थान कहाँ है कुंडली में राज योग कहा है,कुंडली में ग्रह एक दूसरे को कहाँ एक दूसरे के बल को ग्रहण कर रहे है,और आखिर में देखा जाता है की कुंडली के अन्दर विशेषता क्या है?

उदाहरण के लिए उपरोक्त कुंडली को देखे,मिथुन लगन की कुंडली है इस लगन का मालिक बुध है,इसी प्रकार से हर राशि का अपना अपना मालिक होता है,जैसे लगन में मिथुन है तो उसका मालिक बुध है धन भाव में कर्क है तो इसका मालिक चन्द्रमा है तीसरे भाव में सिंह राशि है तो इसका मालिक सूर्य है चौथे भाव में कन्या राशि है तो इसका मालिक भी बुध है पंचम भाव में तुला राशि है तो उसका मालिक शुक्र है छठे भाव में वृश्चिक राशि है तो उसका मालिक मंगल है सप्तम में धनु राशि है इसका मालिक गुरु है अष्टम में मकर राशि है तो उसका मालिक शनि है नवे भाव में कुम्भ राशि है तो उसका मालिक भी शनि है दसवे भाव में मीन राशि तो उसका मालिक भी गुरु है लाभ भाव यानी ग्यारहवे भाव में मेष राशि है तो इसका मालिक भी मंगल है,बारहवे यानी खर्च के भाव में वृष राशि है तो उसका मालिक भी शुक्र है,इस प्रकार से सूर्य और चन्द्रमा के अलावा सभी ग्रहों की राशिया दो दो है.इन दो दो राशियों का भी एक गूढ़ है,एक राशि तो केवल सोचने वाली होती है और दूसरे राशि करने वाली होती है,जैसे बुध की मिथुन राशि तो सोचने वाली है और कन्या राशि कार्य को करने वाली है,उसी प्रकार से शुक्र की तुला राशि तो सोचने वाली होती है और वृष राशि करने वाली होती है गुरु की धनु राशि तो करने वाली होती है मीन राशि सोचने वाली होती है शनि की कुम्भ राशि तो सोचने वाली होती है और मकर राशि करने वाली होती है.वैसे चन्द्रमा के बारे में भी कहा जाता है की वह कृष्ण पक्ष में नकारात्मक सोच देता है तो शुक्ल पक्ष में सकारात्मक सोच देता है.सूर्य के बारे में भी कहा जाता है की वह दक्षिणायन यानी देवशयनी एकादशी से देवोत्थानी एकादसी तक नकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है और अलावा में सकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है.

इस कुंडली में बुध जो लगन का मालिक है वह जातक के बारे में बताता है की जातक धर्म न्याय और क़ानून के घर में है,यानी जातक का जन्म जहां हुआ है वह धर्म न्याय और क़ानून के लिए जाना जाता होगा.इसके अलावा ग्यारहवे भाव में चन्द्रमा है,चन्द्रमा मेष राशि का है मेष राशि पुरुष ग्रह मंगल की राशि है,चन्द्रमा को राहू मंगल का बल लेकर सप्तम भाव से देख रहा है,राहू जिस भाव में जिस ग्रह के साथ होता है उसी का बल प्रदान करता है,राहू ने मंगल का बल लेकर चन्द्रमा को दिया है यानी जातक के कई बहिने है भाई है,राहू अपनी पहिचान नहीं देता है,केवल ग्रहों की पहिचान देता है,मंगल चन्द्र बुध केतु राहू के साथ है यानी राहू ने अपनी पांच दृष्टियों से चार को काम में लिया है.पहली दृष्टि जहां वह विराजमान है,दूसरी वह तीसरी दृष्टि से बुध को देख रहा है पंचम दृष्टि से वह चन्द्रमा को देख रहा है और सप्तम दृष्टि से वह केतु को देख रहा है.जातक के धन भाव को अष्टम स्थान से सूर्य गुरु और शुक्र देख रहे है,सप्तम से मंगल भी देख रहा है.जातक के छोटे भाई बहिनों के घर को बुध देख रहा है जातक के माता मन मकान को अष्टम में विराजमान गुरु देख रहा है,जातक के संतान शिक्षा और परिवार भाव को चन्द्रमा और केतु दोनों देख रहे है.जातक के कर्जा दुश्मनी बीमारी के भाव को बारहवा शनि देख रहा है,जातक के जीवन साथी के भाव में मंगल और राहू विराजमान है तथा केतु भी देख रहा है,जातक के अपमान मृत्यु और जान जोखिम के भाव के अन्दर सूर्य गुरु और शुक्र विराजमान है जातक के नवे भाव में बुध विराजमान है और केतु लगन से तथा बारहवे भाव से शनि की वक्र दृष्टि भी इस भाव पर आ रही है,जातक के कार्य भाव को केवल मंगल देख रहा है,तथा अष्टम का गुरु भी देख रहा है,जातक के लाभ भाव में चन्द्रमा है और चन्द्रमा को राहू मंगल की शक्ति को लेकर देख रहा है,जातक के खर्चे के भाव में शनि विराजमान है साथ ही गुरु अष्टम भाव से इस भाव को देख रहा है.इस प्रकार से ग्रहों की स्थिति और ग्रहों की निगाह को देखा जाता है,मंगल अपने स्थान और अपने स्थान से चौथे भाव में सप्तम भाव में तथा अष्टम भाव में देखता है,गुरु राहू केतु अपने स्थान अपने से तीसरे स्थान पंचम स्थान सप्तम स्थान और नवे स्थान को देखते है,शनि अपने स्थान और अपने स्थान से तीसरे स्थान सप्तम स्थान और दसवे स्थान को देखता है.सूर्य चन्द्र बुध शुक्र केवल अपने से सातवे स्थान को ही देखते है.जो ग्रह द्रश्य स्थान को देखता है उस स्थान पर अपना असर छोड़ता है और उस स्थान का प्रभाव उस ग्रह के अन्दर भी शामिल होता है.छठे भाव के ग्रह कर्जा दुश्मनी बीमारी पालने वाले होते है और ब्याज आदि से खाने वाले होते है,अष्टम के ग्रह गुप्त रूप से परेशान करने वाले होते है और जो भी भाग्य से धर्म से कमाया जाए उसे किसी न किसी रूप से खा जाते है.बारहवे भाव के ग्रह किसी न किसी कारण से खर्च करवाने वाले होते है.लेकिन छः आठ बारह में खराब ग्रह लाभ देने वाले होते है और अच्छे ग्रह परेशान करने वाले होते है.अगर अच्छे ग्रह छः आठ भारह में वक्री हो जाए तो अच्छा फल देने वाले होते है और खराब ग्रह अगर छः आठ बारह में वक्री हो जाए तो और भी खराब हो जाते है.जो ग्रह स्थान परिवर्तन कर लेते है यानी अपनी राशि को छोड़ कर एक दूसरे की राशि में बैठ जाते है वे भी समय पर अपने फलो को बदलाने के लिए माने जाते है.

दीपावली पर खास

दीपावली अमावस्या को ही आती है और इस त्यौहार को अक्सर लक्ष्मी पूजा के लिये माना जाता है। लेकिन यह त्यौहार खासरूप से पितरो के लिये जाना जाता है,कई कहानिया कई मिथिहासिक सिद्धान्त अपने अपने रूप मे सबके लिये प्रस्तुत होते है लेकिन यह त्यौहार पूर्वजो के लिये ही खास है,इस त्यौहार के बाद ही देव शयन समाप्त होता है और धर्म कर्म से सम्बन्धित सभी कार्य शुरु हो जाते है,इस दिन पूर्वजो की मान्यता के जो सिद्धान्त ह वे इस प्रकार से माने गये है.
  • इस त्यौहार को दीपदान के लिये माना जाता है और घर बाहर बाग बगीचा धर्म स्थान तथा पूर्वजो के निमित्त भोग आदि का वर्गीकरण अलग अलग रूप मे किया जाता है.
  • अन्धकार को प्रकश मे परिवर्तित करने के बाद लोग आपसी मेल जोल तथा एक दूसरे के प्रति सद्भभावना को प्रस्तुत करते है.
  • गोबर्धन के रूप मे गाय को मान्यता भी पूर्वजो के हित को ध्यान मे रखकर ही की गयी है.
  • गोबर जो आस्तित्व हीन है उसके लिये भी पूजा की मान्यता केवल हिन्दू धर्म मे ही देखने को मिलती है कारण वही गोबर जब खाद के रूप मे अपना बल प्रदर्शित करता है तो जीव को अन्न और वनस्पति के विकास मे सहायक माना जाता है.
  • चावल की खील और बतासो का भोग अक्सर पूर्वजो के निमित्त ही किया जाता है.
  • तीन देवताओ की मान्यता भी पूर्वजो के प्रति की जाती है सन्तान के रूप मे गणेश जी स्त्री सम्बन्धी कारको के लिये लक्ष्मी जी और आसमानी हवाओ और अक्समात बचाव करने वाली देवी सरस्वती की पूजा का दिन भी यही है.
इसी कारण से दीवाली का महत्व पूर्वजो की पूजा के लिये मान्य है.पूर्वजो के लिये दीपदान से पहले अगर सात या नौ दीपक पूर्वजो के नाम से जला कर एक पंगत मे रखे जाये तथा उनकी मान्यता करने के बाद जो भी भोग चढाने के लिये रखे गये है उन्हे चढाना भाग्य और पूर्वजो की कृपा के लिये माना जाता है.

Saturday, October 22, 2011

संतानहीनता कारण और निवारण

कहने को तो सभी जमीन एक सी ही होती है,लेकिन जमीन के जो रूप है वे अलग अलग होते है।कहीं जमीन का रूप ऊसर जैसा होता है,देखने मे बहुत सुन्दर लगती है सफ़ेद और रात मे भी चमकने वाली,लेकिन बीज का दाना बोने के बाद उसका भी पता नही चलता है,जमीन का रूप पथरीला होता है,देखने मे बहुत ही मजबूत होती है,जरा सा टुकडा भारी चोट मार सकता है,लेकिन बीज बोने के बाद वैसा का वैसा ही रखा रहता है। जमीन का रूप बिलकुल गीला होता है,बीज को जमाने की गर्मी ही नही होती है,जमीन का रूप रेतीला होता है बीज को जमने के लिये नमी का अता पता नही होता है,यह प्रकार जमीन के माने गये और भी कई प्रकार की जमीन होती है,ढालू जमीन भी होती है समतल जमीन भी होती है और पठारी भी जमीन होती है तो मरुस्थल वाली जमीन भी होती है। जिस जमीन के अन्दर बीज को जमाने के ही तत्व जैसे गर्मी नमी वायु की अनुकूलता नही हो तो वह जमीन बीज को कैसे जमायेगी। यही प्रकार स्त्री जातको का होता है,जिस ग्रह युति मे स्त्री जातक का जन्म होता है उसी ग्रह युति से पंच तत्व का समावेश स्त्री के अन्दर होता है,अगर मंगल की अधिकता हो जाती है तो गर्मी की अधिकता मानी जाती है,चन्द्रमा की अधिकता होती है तो नमी की मात्रा अधिक हो जाती है,बुध की अधिकता होती है तो पृथ्वी तत्व की अधिकता हो जाती है गुरु का तत्व अधिक हो जाता है तो जीव के प्रति सोच तो होती है लेकिन पालक की क्षमता का विकास नही हो पाता है शुक्र की अधिकता होती है तो सन्तान को पैदा करने की क्षमता तो होती है लेकिन अलावा तत्वो की कमी के कारण पोषण की कमी रह जाती है।

अक्सर मंगल शुक्र की युति मे देखा जाता है कि स्त्री के अन्दर संतान के विकास की कमी पायी जाती है,जिसके कारण अधिकतर मिस कैरिज जैसी घटनाये हो जाती है,मंगल गुरु की अधिकता में बच्चेदानी का मुख बडा हो जाता है जिससे भी संतान का गर्भ मे टिक पाना नही हो पाता है। अष्टम मे शनि होने से भी स्त्री जातक का अधिक शीत प्रभाव के कारण भी संतान का नही होना पाया जाता है।चन्द्र शनि की युति में भी जातिका का स्वभाव अपनी मानसिक चिन्ताओं के कारण रुग्ण शरीर वाला हो जाता है जिससे भी स्त्री जातक को ल्यूकोरिया जैसे रोग हो जाते है। राहु का गोचर से या जन्म से पंचम भाव सप्तम भाव या अष्टम भाव मे होना भी इन्फ़ेक्सन की बीमारिया या इसी प्रकार के रोग पैदा हो जाते है जिससे रज और शुक्राणुओं की उत्पत्ति मे बाधा पैदा हो जाती है। बुध की अधिकता के कारण या बुध के अष्टम मे बैठने के कारण बच्चा दानी या जननांग मे गांठ का पैदा हो जाना या बच्चेदानी का मुख नही खुलना किसी प्रकार से नर्व सिस्टम का महत्वहीन होना भी संतान की बाधा के लिये माना जाता है।

Thursday, October 20, 2011

दुर्गा सप्तशती के मंत्र का प्रभाव और भूत वाधा का निवारण

जिला मुरैना के एक गांव से एक व्यक्ति अपनी लडकी को लेकर मेरे पास आये उनकी लडकी विक्षिप्त अवस्था मे थी किसी से बात करने पर वह बेकार की अनाप शनाप बाते करती और कभी जोर जोर से हंसने लगती और कभी अपने आप रोने लगती,न कपडो का ख्याल होता और न ही शरीर का कि कहां लग रही है और कहां नही,रात रात भर उसके घर वाले उसे सम्भालने के लिये जागते रहते,जब भी उसे कोई बहाना मिलता वह घर से बाहर निकलकर जंगल की तरफ़ भागने की ताक मे रहती,चार चार दिन खाना भी नही खाना जैसा पानी मिल जाये पी लेना एक तरह से नरक जैसी जिन्दगी हो गयी थी,मैने उसके पिता और भाई से जन्म तारीख आदि को पूंछा और कुंडली के अनुसार उस के लगनेश पर जन्म से अष्टम राहु की छाया थी। वे लोग बहुत से सयानो झाडफ़ूंक वालो के पास गये लेकिन उन्हे कोई फ़ायदा नही हुआ,वे केवल अपनी मेहनत की कमाई को झाडफ़ूंक वालो को देकर आ गये,किसी ने मेरा पता उन्हे बता दिया वे मेरे ही किसी जानकार को लेकर मेरे पास पहुंचे।
 मैने उस लडकी को अपने पूजा स्थान मे बैठाया उसे शांत रखने के लिये पहले दुर्गा सप्तशती के श्लोक -"सर्वाबाधा प्रसमनम.." से एक हजार बार जाप करते हुये जाप के पानी से छींटे दिये और उसके बाद इसी मंत्र की एक हजार आहुति लौंग घी तथा शक्कर से दीं,उस लडकी का स्वास्थ्य दूसरे दिन ही अचानक ठीक होने लगा,उसके घर वाले भी चकित थे,और मै भी देवी की कृपा से चकित था,वह लडकी अपने घर के बारे मे बाते कर रही थी और उसे यह भी पता था कि वह पहले बीमार हो गयी थी,जानने के बाद पता लगा कि उसके घर के पास मे ही कोई पुराना शमशान था,उस शमशान में शाम के समय वह शौच को गयी थी उसी रात से उसकी तबियत खराब हो गयी थी। मैने पूंछा कि जब वह दूसरे झाडफ़ूंक वालो के पास गयी तो उसे पता था कि वह कहां जा रही है,उसने बताया कि उसे कुछ भी पता नही है। इतना पता था कि कभी कभी वह अपने बच्चो को देखकर रोना शुरु कर देती थी उसे कोई जबरदस्ती जंगल में पकड कर ले जाना चाहता था उस समय वह चिल्लाना शुरु कर देती थी उसे पता नही होता था कि वह कहां जा रही है क्या उसके पैर में चुभ रहा है या कहां से उसके खून निकल रहा है और कहां दर्द हो रहा है.यही बात उसके घर वाले भी कह रहे थे,वह तीन चार दिन मेरे घर पर रही और अपने भाई तथा पति के साथ अपने गांव चली गयी।
माता दुर्गा की कृपा से वह ठीक होने के बाद उनकी आराधना भी करने लगी और वही श्लोक मैने उसे दिया कि जब भी उसे कोई दिक्कत हो तो वह उसे शाम सुबह को श्रद्धा से जाप करे और जब भी नवरात्रा आये तो वह दुर्गा सप्तशती का का पाठ नियम से करे,उसने इसी श्लोक को अपने जीवन मे उतार लिया है कभी कभी फ़ोन आता है तो कहती है चाचाजी आपने मेरी जिन्दगी को उबार दिया नही तो मैं पागल होकर या तो मर गयी होती या किसी स्थान पर पड कर सड रही होती,मैने भी कई बार महसूस किया है कि जब किसी प्रकार का कष्ट सामने आता है तो उस समय कोई न कोई बेकार की चिन्ता दिमाग मे समा जाती है और उस समय अगर साफ़ सुथरा होकर माता दुर्गा की आराधना शुरु कर दी जाये तो वह कष्ट या बेकार की चिन्ता अपने आप ही दूर हो जाती है।
इस लडकी के अलावा भी कई लोग मेरे पास आये जो केवल इसी श्लोक की महत्ता से अपने को ठीक करने के बाद अपने घर चले गये,ज्योतिष के लिये भी मैने इसी श्लोक का उच्चारण दिन रात लगकर पूरा किया था और एक करोड जाप करने के बाद मुझे लगने लगा था कि मैं माता की असीम कृपा से पूर्ण होता जा रहा हूँ,यह उन लोगो के लिये भी सीख है जो बेकार मे ही किसी झाडफ़ूंक या तंत्र मंत्र के चक्कर में पडकर अपने धन और समय को बरबाद करते है,पहले डाक्टर की सलाह लेनी जरूरी है और जब डाक्टर से कोई रोग ठीक नही हो और व्यक्ति का माथा घूम रहा हो वह किसी प्रकार की अनर्गल बाते कर रहा हो तो उसे सबसे पहले किसी अच्छे ज्योतिषी से जातक के ग्रह देखने चाहिये अगर किसी प्रकार से राहु का प्रकोप जातक के लगनेश लगन या चौथे आठवे या बारहवें भाव के मालिक के साथ या इन्ही भावो में अथवा चन्द्रमा से गोचर से या जन्म से है तो वे दशा अन्तर्दशा मे दिक्कत दे सकते है उस समय दुर्गा सप्तशती के इसी श्लोक का पहले एक हजार बार जाप कर लेना चाहिये उसके बाद एक हजार मंत्रो के जाप से अभिमंत्रित जल से रोगी पर छींटे देने चाहिये,तथा उसके बाद एक हजार आहुतियां लौंग घी और शक्कर को मिलाकर देनी चाहिये,यह कार्य स्वच्छ और हवादार कमरे के अन्दर ही करना चाहिये,जो लोग पहले से ही शराब कबाब भूत के भोजन के वशीभूत है वे लोग कृपया इस मंत्र का जाप या इसका प्रयोग कदापि नही करें.
(सादर माँ दुर्गामर्पणस्तु)


कैसे लोग मानते है भूत प्रेत चुडैल

ग्रह अपने अनुसार बताने लगते है कि कौन सा ग्रह किस प्रकार से व्यक्ति को परेशान कर रहा है अक्सर कुंडलियों को देखने के बाद यह समझ मे आया है कि व्यक्ति की लगन लगनेश चन्दमा और चन्द्र लगनेश को जब ग्रह अपनी गिरफ़्त मे लेलेते है तो वह अपने अनुसार बाते करके और अपनी दिन चर्या के द्वारा लोगों के सामने पेश होने से अपने ग्रहों को स्वयं बखान करने लगता है।

जब व्यक्ति की लगन मे लगनेश पर या चन्द्रमा पर राहु शनि का रूप किसी प्रकार से अपना असर देता है या व्यक्ति के जन्म के समय के शनि या राहु पर या शनि राहु पर गोचर का राहु अपना असर देता है तो उस पर ऊपरी शिकायत की बात कही जाती है,जब इस प्रकार की युति ग्रह देते है तो वह व्यक्ति साधारण लोगो की तरह से बात नही करता है उसकी बातो से लगता है कि वह बहुत बडा ज्ञानी पुरुष या स्त्री है उसके अन्दर गजब की शक्ति भी आ जाती है वह गुस्से मे आजाये तो आठ दस लोगों के वश मे नही आता है।

जब राहु का असर गुरु के साथ हो जाता है और गुरु लगनेश या लगन अथवा चन्द्रमा से अपनी युति लेता है तो व्यक्ति के अन्दर देवताओं जैसे गुण आजाते है वह सदा साफ़ सुथरा रहने की कोशिश करता है स्त्री के प्रति वह हमेशा बाथरूम मे अधिक समय को व्यतीत करती है,स्त्री पुरुष सम्बन्धो से उसे अरुचि आजाती है जब भी उससे बात की जाये तो वह आशीर्वाद या वरदान देने की बात करता है,धूप बत्ती जलाना फ़ूलो को देखकर प्रसन्न होना संस्कृत भाषा का उच्चारण करना आदि बाते देखने को मिलती है,उसकी नजर एक स्थान पर थम सी जाती है आंखो की पुतलियों मे वह चंचलता नही रहती है जो साधारण व्यक्ति मे होती है.

शुक्र के साथ राहु का योगात्मक प्रभाव जब लगन लगनेश या चन्द्रमा से होता है तो वह व्यक्ति देवताओं की बाते करने पर गुस्सा करता है,शरीर मे पसीना अधिक आने लगता है उसे कितना ही खिला दो लेकिन किसी भी तरह से उसे भोजन मे संतुष्टि नही मिलती है ,गुरु शास्त्र और धर्म आदि की बातो मे उसे गुस्सा आने लगती है और वह कई प्रकार के दोष निकालने बैठ जाता है। इसे देवाशत्रु नाम की बाधा के नाम से जाना जाता है.

जब शुक्र राहु के साथ बुध भी शामिल हो जाता है तो व्यक्ति के शरीर पर गन्धर्वशक्ति का आना माना जाता है उस समय वह हमेशा प्रसन्न रहने की कोशिश करता है हंसी मजक करना और अधिक बाते करने मे भी उसका चित्त लगा रहता है बाग बगीचा देखकर उसे खुशी होती है अक्सर वन और जंगल में घूमने और अकेले बैठ कर गुनगुनाने मे उसे अच्छा लगता है उसे अगर ख्यालो से जगा जाये तो वह मुस्करा देता है।

लगन के केतु पर या लगनेश के साथ केतु से अथवा चन्द्रमा के साथ केतु के साथ जब राहु गुरु शनि या गोचर के केतु की छाया आने लगती है तो उसके अन्दर यक्ष वाला दोष बताया जाता है,वह व्यक्ति लाल कपडे अधिक पसंद करता है धीमे स्वर मे बात करता है शरीर मे पतलापन आजाता है उसकी चाल मे तेजी आ जाती है आंखो का रंग भी तांबे जैसा हो जाता है और उसके लिये एक बात और पहिचान के रूप मे देखी जाती है कि वह अक्सर अपनी आंखो से ही इशारे अधिक करने लगता है।

लगन मे या लगनेस पर या सूर्य पर राहु का गोचर होता है और राहु का सम्बन्ध जब नवे भाव से या नवे भाव के स्वामी के साथ हो जाता है तो व्यक्ति पर पितर दोष की बात भी देखी जाती है,व्यक्ति अचानक शान्त स्वभाव का हो जाता है किसी भी बात मे वह अकेले रहना पसंद करता है,उसके कोई भी काम सफ़ल नही हो पाते है उसकी एक पहिचान होती है कि वह जब भी वस्त्र पहिनता है तो किसी भी वस्त्र को बायें हिस्से के अंग के द्वारा पहले पहिनता है,व्यक्ति अपने परिवार के बुजुर्गो के बारे मे बाते करता है मीठा भोजन उसे अच्छा लगने लगता है अथवा वह तिल आदि से बने पदार्थ अधिक पसंद करता है.रात को सोते समय पैरो मे जलन होती है अथवा नींद नही आती है आदि बाते देखने को मिलती है.

जन्म के राहु पर जब केतु का गोचर होता है और किसी प्रकार से शनि की युति राहु केतु से मिलने लगती है तो व्यक्ति को नागदोष से पीडित माना जाता है,वह व्यक्ति सीधा लेटता है तो नींद नही आती है और छाती के बल लेटते ही नींद आजाती है वह जरा सी आहट मे जग जाता है और अपने शरीर को सिकोड कर सोने की आदत होती है,जब भी कोई बडी बात या जातक के प्रति बात की जाती है तो वह सांस छोडने लगता है अथवा अपनी जीभ से होंठो को चाटता रहता है,जातक को दूध और दूध से बने पदार्थ अच्छे लगते है,जातक अन्धेरे मे रहने और सोने की कोशिश करता है,भोजन के करते समय एक अजीब सी आवाज का आना भी देखा जाता है,अंडे और इसी प्रकार के बने भोजन वाले कारक उसे अच्छे लगते है.

वृश्चिक लगन हो या वृश्चिक लगन मे मंगल पर जब राहु का गोचर होता है तो व्यक्ति के शरीर मे राक्षसी कारण पैदा होने लगते है,शराब कबाब भूत के भोजन उसे पसंद आने लगते है वह दाढी को बढाने लगता है हमेशा मारकाट की बात करता है उसे मरता हुया जीव अच्छा लगता है तथा जिन्दा जीवो को भून कर खाने की उसकी आदत हो जाती है,वह किसी भी कारण से शमशान मे जाकर अपने को शांत समझता है,अस्पताल मे जाने पर उसे मरीजो की चीख पुकार अच्छी लगती है,किसी भी एक्सीडेंट आदि के समय वह बहुत पास जाकर उसे देखने की कोशिश करता रहता है,जो लोग मारकाट या लूटपाट के कारको से जुडे होते है उनसे वह अपनी दोस्ती जल्दी बना लेता है।

वृश्चिक लगन मे जब जन्म के केतु पर पर राहु का गोचर होता है तो वह व्यक्ति के अन्दर पिशाच बाधा को देता है,इस बाधा से व्यक्ति कमजोर हो जाता है,उसे कपडा पहिनने मे दिक्कत होती है कम से कम कपडा पहिनने की आदत हो जाती है,रात को वह एकान्त कमरे मे नंगा होकर सोना चाहता है,शरीर से दुर्गन्ध आने लगती है तथा उसे नहाने धोने और साफ़ रहने मे दिक्कत होती है स्वभाव मे बहुत चंचलता आजाती है वह अधिकतर निर्जन स्थानो मे घूमना चाहता है उसे बहुत भूख लगती है और कभी भी कितना ही खाने को देदो वह मना नही करता है,जानवरो के साथ अथवा अप्राकृतिक मैथुन करने मे उसकी रुचि बढ जाती है,अधिक कामुकता मे वह अपने जीवन साथी या किसी को भी जान से भी मार सकता है,अक्सर वह अपने होंठो को काट कर अपने ही रक्त को चाटता भी रहता है.

जब किसी स्त्री के लगन मे मंगल शुक्र होते है और राहु का गोचर जब होता है तो व्यक्ति के अन्दर सती वाले गुण आजाते है वह अपने द्वारा सतियों के गुणगान करने लगती है,उस स्त्री को श्रंगार करने और सजने संवरने मे काफ़ी रुचि बढ जाती है स्त्री पुरुष के सम्बन्धो से वह दूरिया बनाने लगती है और इस कारण से घर मे क्लेश भी होने लगता है,अगर पहले से गर्भ होता है तो वह गिर जाता है,सन्तान की उत्पत्ति मे बाधा भी बन जाती है उसे नहाधोकर दिया बत्ती करने और बाकी का समय पूजा पाठ मे ही बिताने का शौक हो जाता है वह किसी भी रिस्तेदार या जान पहिचान वाले से बात करना पसंद नही करती है.अगर कोई बात घर के अन्दर ऐसी वैसी हो जाती है तो वह हमेशा जल कर मरने की बात करती है।

लगन मे केतु और मंगल की युति होने पर शनि का गोचर से इन दोनो पर असर देने से कामण दोष की उत्पत्ति को माना जाता है यह दोष स्त्री को ही लगता है पुरुष इस दोष से अपने को बचा जाते है और बेकार मे अपने को भटकाव और गलत लोगों की संगत मे लगा लेते है।स्त्री का माथा कन्धा और सिर का पिछला भाग हमेशा भारी रहता है मन में स्थिरता नही होती है शरीर दुर्बल होता जाता है गाल धंस जाते है स्तन और पुट्ठे सूख जाते है नाक हाथ तथा नेत्रों मे जलन रहती है शरीर का आकर्षण समाप्त होने लगता है,ल्यूकोरिया जैसे रोग सामने आजाते है।

जन्म लगन मे चन्द्रमा पर जब राहु का गोचर होता है और अष्ट्मेश की युति भी लगन मे होती है या अष्टमेश की दशा चल रही होती है तो व्यक्ति के अन्दर शाकिनी दोष का होना माना गया है। स्त्री के अन्दर हमेशा किसी न किसी बात मे चिल्लाने का स्वभाव बन जाता है,शरीर मे बिना बजह ही दर्द होता रहता है,आंखो मे जलन या रोशनी भी कम हो जाती है शरीर मे कंपन शुरु हो जाता है,बिना किसी बात के रोना चिल्लाना आदि बाते सामने आने लगती है उसे खाने पीने का कतई होश नही रहता है। किसी काम को करते समय कोई दूसरा काम होने लगता है रखी हुई चीज को भूलने की आदत होती है अपनी चीज को खोजने के लिये किसी न किसी पर आक्षेप लगाने की आदत भी होती है.

लगन से चौथे भाव मे जब राहु का गोचर होता है या चतुर्थेश पर राहु का असर होता है तो उस स्थिति मे व्यक्ति पर क्षेत्रपाल दोष का होना माना जाता है,अक्सर इस दोष मे व्यक्ति राख का तिलक करने लगता है उसे बुरे और डरावने स्वपन आने लगते है पेट दर्द की शिकायत होती है गले के रोग जैसे इन्फ़ेक्सन आदि का होना हमेशा छाती मे जकडन का होना भी देखा जाता है शरीर के जोड अपने आप ही दर्द करने लगते है.

वृश्चिक लगन मे जन्म के गुरु पर जब राहु का गोचर होता है तो वह ब्रह्मराक्षस के दोष से पीडित माना जाता है व्यक्ति के शरीर मे पीडा का होना देखा जाताहै,उसे लगता रहता है कि वह जल्दी ही मरने वाला है लेकिन वह मरता भी नही है जो भी लोग तीर्थ यात्रा या धर्म कर्म की बाते करते है सभी को वह विरोध की बात से दबाने की कोशिश करता है,वह अपने हठ से और तर्क से सभी से अपने को उच्च का समझने लगता है।

मेष लगन का जन्म का राहु जब अष्टम मे होता है और गोचर से जब भी जातक के बारहवे भाव मे गोचर करता है और किसी प्रकार से नवे भाव के मालिक गुरु से अपनी युति को बनाता है तो वह प्रेत दोष की श्रेणी मे गिना जाता है। अक्सर कहा जाता है कि अकाल मौत से मरने वाले या एक्सीडेंट से मरने वालो की आत्मा का असर व्यक्ति पर आ गया है,वह बेकार मे ही पता नही क्या क्या कहने लगता है किसी का नाम लेने लगता है किसी प्रकार से भय वाली आवाज मे चिल्लाने लगता है,बार बार भागने लगता है उसे अगर साधने की कोशिश की जाती है तो वह बहुत ही उत्तेजित हो जाता है और जहां से देखो वहीं से कूदने की फ़लांगने की कोशिश भी करता है,अपने शरीर को काटने दूसरो को आहत करने की कोशिश भी करने लगता है,बिना कुछ खाये पिये उसे बहुत ही ताकत मे देखा जाता है किसी का भी कहा नही मानता है और गाली गलौज आदि से बात करने के बाद वह अपनी ही बात को मनवाने की कोशिश करता है.

जब किसी स्त्री की कुंडली मे अष्टमेश पर राहु का गोचर होता है या लगनेश अष्टमेश एक साथ होने पर राहु का प्रभाव होता है तो वह स्त्री शरीर से सबल हो जाती है,उसके अन्दर कामुकता का अधिक होना पाया जाता है किसी भी प्रकार से वह पुरुषों की तरफ़ अधिक भागती है किसी भी रिस्ते को जाति को अथवा मान अपमान से उसे किसी प्रकार का लगाव नही होता है,वह शराब मांस आदि के भोजन मे रत रहने की कोशिश करती है,सदा मुस्कराने की आदत उसके अन्दर देखी जाती है,इसे चुडैल दोष के अन्तर्गत माना जाता है।

पत्नी और पति की उम्र मे अन्तर

पुरुष के लिए शुक्र और स्त्री के लिए गुरु जीवन साथी के रूप में माने जाते है.दक्षिण भारत में स्त्री के लिए मंगल को भी जीवन साथी के रूप में देखा जाता है.शनि की नजर जब शुक्र पर होती है तो स्त्री उम्र में बड़ी होती है और शनि की नजर जब गुरु या मंगल पर होती है तो स्त्री का पति उम्र में बड़ा होता है.बाकी के ग्रह अपने अपने अनुसार फल दाई होते है.अगर शुक्र शनि दोनों लगन में ही है तो पुरुष की पत्नी कुछ महीने ही बड़ी होगी,अगर दूसरे भाव में है तो एक  साल का फर्क होगा तीसरे भाव में दो साल का चौथे भाव में तीन साल का पांचवे भाव में चार साल का इसी तरह से छः में पांच सातवे भाव में छः साल का आठवे भाव में सात साल एक माह नवे भाव में सात साल दो माह का दसवे भाव में पूरे दस साल का अक्सर दूसरी जगह शादी और ग्यारहवे भाव में दस साल एक माह और बारहवे भाव में दस साल दो माह का अंतर माना जाता है.

पुरुष के लिए स्त्री के बड़ी उम्र की मिलाती है तो एक साथ कई फायदे देखे जाते है,एक तो शुक्र और शनि की युति मिलाती है जिसके कारण से वैवाहिक जीवन बहुत ही आराम से निकल जाता है किसी प्रकार की लड़ाई झगड़ा नहीं होता है दूसरा पुरुष का दूसरी स्त्रियों की तरफ जाने वाला ध्यान ख़त्म हो जाता है तीसरा कारण जो सबसे अच्छा माना जाता है की बड़ी उम्र की स्त्री कमाने वाले धन को सुरक्षित रखती है और भौतिक साधनों का पूरा पूरा उपयोग होना माना जाता है लेकिन व्यक्ति के अन्दर अधिक उम्र की स्त्री के साथ सहसवास करते करते शारीरिक बल में कमी आती है कभी कभी पुरुष अगर दस साल से अधिक का अंतर होता है तो वह शरीर सुख से दूर भागने लगता है तथा स्त्री जातको से उसे चिढ हो जाती है.इस प्रकार से उसके सामने केवल एक ही चिंता होती है की कितना धन और कैसे कमाया जाए,उम्र की बयालीस साल की उम्र तक वह अधिक चिंता करता है चाहे कितनी ही संपत्ति उसके पास आजाये लेकिन उसे धन की फिर भी जरूरत पड़ती रहती है.

स्त्री की कुंडली में अगर शनि गुरु को देख रहा होता है तो उसकी शादी बड़ी उम्र के पुरुष से होती है और शादी के सातवी साल से ही घर में किसी न किसी प्रकार का अनैतिकता का कारण बन जाता है अक्सर इसी अनैतिक कारणों की बजह से स्त्री अपनी कामुकता की शान्ति के लिए अलग अलग प्रकार के अनैतिक रास्ते अपना लेती है.इसी कारण से कामुकता के रोग भी पनपने लगते है और अंदरूनी बीमारिया भी मानी जाती है,अक्सर कम उम्र की स्त्री के पुरुष चाहे कितने ही साधन जुटा ले लेकिन उंके घर में हमेशा कलह होती ही रहती है,धन का कोइ मूल्य नहीं रह जाता है और जीवन में स्त्री हमेशा नीरसता का कारण ही पैदा करती रहती है.इसी प्रकार का कारण अगर शनि के द्वारा मंगल पर दिया जाता है तो स्त्री के अन्दर एक अंदरूनी आग हमेशा अपने प्रकार से जलती रहती है और वह अपने अपने कारणों से किसी न किसी प्रकार से अपनी उत्तेजना को परिवार समाज या घर की जमीन जायदाद पर दिखाती है.पति के परिवार वाले उसे अक्सर अपनी पहुँच से दूर ही अच्छे लगते है और पति के लिए तब और अधिक भारी समय आजाता है जब दो बच्चे हो जाते है और स्त्री का एनी पुरुषो की तरफ झुकाव पैदा हो जाता है.

राहू का असर अगर शनि गुरु के साथ किसी प्रकार से मिक्स हो जाता है तो पुरुष अपनी कमजोरी के कारण अक्सर शराब या अन्य नशों के गुलाम भी होते देखे गए है साथ ही उनके घर परिवार में क्या हो रहा है उन्हें पता नहीं होता है वे अपने ही ख्याल में पड़े रहकर अपने कार्यों से भी कभी कभी दूर होते देखे गए है.सौ में से बीस लोग संसार से समय आने से पहले ही शरीर की कमजोरी के कारण कूंच कर जाते है और जो बचाते है उनके अन्दर एक प्रकार का सामाजिक दोष भी देखने को मिलता है.

When will have my own house

कुम्भ लगन और राशि की कुंडली में शुक्र को ही रहने वाले स्थान यानी घर का मालिक कहा जाता है शुक्र की स्थिति को देखकर ही मकान का रूप समझा सकता है.इस जातक की कुंडली कुम्भ लगन की है और इसकी कुम्भ ही राशि है शुक्र का स्थान इसके दूसरे भाव में मीन राशि में है और इस शुक्र की नवम पंचम की युति में कोइ भी ग्रह नहीं है.शुक्र को देखने वाले ग्रहों में अष्टम स्थान से लगनेश शनि वक्री होकर देख रहे है और मंगल जो की जातक के बारहवे भाव का भी मालिक है और तीसरे भाव का भी मालिक है साथ है,जातक को अपने स्थान में रहने का कारण इसलिए भी नहीं मिल पाया है क्योंकि जातक का गुरु नवे भाव बैठ कर तुला राशि में वक्री हो गया है,इस गुरु के कारण जातक को बाहर ही रहना पडा है और वह किसी प्रकार से अपने लिए घर और परिवार की बात भी नहीं सोच पाया है,वैसे त्रिकोण से चन्द्र राहू और गुरु की युति से यह भी समझा जाता है की जातक को किसी न किसी प्रकार की विदेशी कार्यों और कानूनों के प्रति लगाव रहा है और अधिकतर ट्रांसफर जैसी नौकरी करने के बाद उसे रहने के लिए समय समय पर स्थान मिलते रहे है.

राहू हमेशा चिंता को देने वाला कहा गया है,वर्त्तमान में राहू का स्थान जातक के दसवे स्थान में है वह वह घर बनाने के लिए दूसरे भाव के शुक्र यानी बाहर के किसी संपत्ति को बेचने के बाद अथवा किसी बाहरी सहायता से धन को कमाने की बात सोच रहा है,घर बनाने का समय सत्रह जून से जब गुरु घर के भाव में प्रवेश करेगा शुरू हो जाएगा.

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मकर लगन की कुंडली है केतु चन्द्र दूसरे भाव में है मंगल छठे भाव में है और बाकी के सभी ग्रह अष्टम भाव में है.कुम्भ का केतु चन्द्रमा के साथ हो तो वैसे तो इन्फोर्मेशन तकनीक में माहिर माना जाता है लेकिन मंगल के छठे भाव में आने से और मिथुन के मंगल के होने से जातक को गुप्त तकनीक का ज्ञाता भी माना जाता है,ग्रह पंचायत जो अष्टम भाव में है उसके अन्दर राहू का उपस्थित होना किसी भी कारक के लिए एक साथ हजारो विचार देने के लिए माना जाता है जो की जातक के लिए या तो बहुत ही ऊंचाइयों पर जाने के लिए या बिलकुल बेकार होने के लिए भी अपनी युति को प्रदान करता है,इस प्रकार की कुंडली अक्सर वैज्ञानिकों की देखी जाती है और इस प्रकार के लोग देखने में कुछ नहीं होने के बावजूद भी अपने को अन्दर ही अन्दर आगे बढाने के लिए माने जाते है.

कहावत है की सतयुग में गुरु की मान्यता थी तो कलयुग में शुक्र की मान्यता है,शुक्र जब कार्य और पंचम का स्वामी होकर किसी प्रकार से अष्टम में बैठ जाता है तो जातक को अंदरूनी खोजो के प्रति अपने को आगे बढाने में मदद करता है,इस शुक्र को जब किसी प्रकार से राहू भी बल देता है तो व्यक्ति जमीनी तौर पर अपने को अन्दर ही अन्दर उन कारणों को प्रस्तुत करने का हौसला बना लेता है जिन्हें देख कर समझ कर जान कर लोग आगे अपने को बढाने में प्रस्तुत करते है.इसी शुक्र और राहू को गुरु भी बल देता है तो जातक शिक्षा के क्षत्र में स्वचालित मशीन की तरह अपने को सामने रखता है और उसके दिमाग को अगर किसी धन के कारण से नहीं जोड़ा जाए तो वह इतना शक्तिशाली हो जाता है की उसके सामने अच्छे अच्छे अपनी औकात को नहीं दिखा पाते है,इसी गुरु राशु शुक्र के साथ अगर शनि भी स्थापित हो जाता है तो जातक की खोजो को कार्य या वस्तु के रूप में सामने देखा जा सकता है साथ में बुध भी है तो जातक का स्वभाव कम बोलने और आगे बढ़ने में ही भलाई समझाने के लिए माना जाता है,अगर इस युति में जातक किसी प्रकार से रत्न व्यासाय या वह व्यवसाय जो शक्ति को बताने वाले होते है बहुत ही आगे बढाने के लिए अपनी युति को देता है अक्सर इस प्रकार के जातक इन्फोर्मेशन तकनीक डाक्टरी शिक्षा या किसी प्रकार की एन जी ओ वाली कार्य प्रणाली को अपने जीवन में लाकर बहुत ही अच्छी तरह से विदेशी कारको में अपने नाम को आगे बढ़ा सकाता है.

जातक की अभी शनि की दशा चल रही है और शनि के अन्दर राहू का अंतर चलने से जातक को अपने ही कारण और अपने ही कामो के अन्दर भटकाव मिल रहा है,आने वाली फरवरी के मध्य से जातक की शनि में गुरु की दशा का प्रभाव शुरू होगा यह प्रभाव जातक को स्थिरता प्रदान करने वाला होगा लेकिन जातक इस समय में अगर अपने को अपने कार्यों को धर्मी रूप में जैसे कार्य को किया और बदले में कुछ माँगा ही नहीं है या कार्य के फल के लिए दूसरो पर छोड़ दिया है तो वह दिक्कत देने वाला माना जा सकता है.