शादी को उसी प्रकार से माना जा सकता है जैसे किसी कारण को लंबा बनाने के
लिए मुकद्दमे का दायर करना,जिस दिन से मुकद्दमा दायर हो जाता है उस दिन से
वकील जज और भाग दौड़ के अलावा तन मन धन सभी कारण मुकद्दमे के लिए खर्च होने
लगते है.वादी जातक होता है और प्रतिवादी जातक का जीवन साथी,जीवन साथी अपनी
जीत के लिए और जातक अपनी जीत के लिए दैहिक दैविक भौतिक रूप से लड़ाई लड़ता
है,दैहिक जीत में अगर पति जीतता है तो पुत्र की प्राप्ति होती है पत्नी
जीतती है तो पुत्री की प्राप्ति होती है,शारीरिक जीत के अलावा जब दैविक जीत
के मामले में देखा जाए तो पत्नी का धर्म और भाग्य तेज है उसे अपने पूर्वजो
पर अधिक विश्वास है वह अपने माता पिता के प्रति अधिक सोचने वाली है उसके
साथ माता पिता और परिवार ने बहुत ही अच्छे तरीके से व्यवहार किया है लड़का
लड़की में कोई भेद नहीं देखा है तो वह अपने पति को भी अपने मायके के
कानूनों पर चलाने के लिए बाध्य कर देगी और अगर पति का परिवार पत्नी के
परिवार से भी बढ़ चढ़ कर लड़की और बहू में अंतर नहीं समझता है तो वह अपने
अपने परिवार को त्याग कर पति परिवार के प्रति समर्पित हो जायेगी,यह सब
शुरुआत की जिन्दगी में देखा जाता है और पति पत्नी दोनों ही धर्म कर्म को
नहीं मानने वाले है स्वेच्छारी है दोनों अपने अपने विचारों को काफी समय तक
एक दूसरे पर थोपने की कोशिश करेंगे और एक दिन अपने ही विचारों के युद्ध में
हार कर या हराकर अपनी अपनी रास्ता को बदल कर दूर हो जायेगे,इसी तरह से
भौतिक कारणों में भी देखा जाता है अगर पत्नी के पास बौद्धिक बल अधिक है
उसके पास एक से चार करने की हिम्मत है तो वह पति को हराकर अपने प्रभुत्व को
स्थापित कर लेगी साथ ही पति का अगर एक के चार करने का असर अच्छा है तो पति
के सानिध्य में पत्नी को रहने को मजबूर होना पडेगा अगर दोनों ही एक से है
तो सामजस्य और दैविक विचार धारा अगर सही है दैहिक कारण अगर एक दूसरे के
पूरक है तो वे दोनों साथ रहने में कोई भेद नहीं समझेंगे और किसी भी प्रकार
की असमानता के चलते ही दोनों अलग अलग अपना अपना संसार बसाने के लिए मजबूर
भी हो जायेंगे.
Sunday, November 27, 2011
Friday, November 25, 2011
मूक प्रश्न विचार
प्रश्न कुंडली कुम्भ लगन की है जातक की नाम राशि या जन्म लगन कुम्भ होनी चाहिये,लगनेश शनि नवम भाव मे है इसलिये जातक का प्रश्न लम्बी यात्रा धार्मिक कथन जो शनि से सम्बन्धित हो न्याय और सन्तान के प्रति तरक्की से होनी चाहिये.मूक प्रश्न मे देखा जाता है कि लगनेश बली है या चन्द्रमा,इस कुंडली मे लगनेश नवे भाव मे है और चन्द्रमा राहु के साथ होने से कमजोर है,जो भी विचार किया जायेगा वह शनि से ही किया जायेगा.वैसे भी लगन कुम्भ वायु तत्व वाली राशि है इस कारण से जातक की सोच के लिये ही बात की जा सकती है वह कार्य रूप से सम्बन्धित कारणो से अपने को दूर रखने वाला होता है.कुम्भ राशि की दिशा पश्चिम दिशा की मानी जाती है जातक का मूल निवास पश्चिम दिशा का होना चाहिये और जातक विवाह के बाद पत्नी के घर पर रहना चाहिये.कुम्भ राशि का शीर्षोदय होने के कारण जातक की बुद्धि बहुत ही उत्तम होनी चाहिये,जातक का निवास जहां है वहां कुम्भ राशि के शूद्रवर्ण की होने से इसी प्रकार के लोगों का निवास होना चाहिये,कुम्भ राशि का अपद होने के कारण जातक एक स्थान पर बैठ कर बहुत से काम कर सकता है लेकिन चल फ़िर कर काम करने मे जातक को परेशानी अनुभव होनी चाहिये जिस स्थान पर जातक का निवास होना चाहिये वह चितकबरा रंगो से होना चाहिये यानी मकान या रहने वाले स्थान का रंग कई रंगो का होना चाहिये,इसे बिना पुता हुआ या निर्माण कार्यों से युति होने के कारण दाग धब्बे वाला स्थान मानना चाहिये कुम्भ राशि संचार की राशि होने से जातक के द्वारा जो भी बात करनी चाहिये उसके लिये संचार के साधनो का प्रयोग करना जरूरी मानना चाहिये। जिस समय जातक के द्वारा प्रश्न करना चाहिये उस समय उसे पानी के स्थान या रसोई अथवा किसी प्रकार के भोजन करने के समय से ही प्रश्न करना चाहिये। शनि से आयु के प्रति योगाभ्यास शयन आलस्य प्रमाद झगडे कानूनी विवाद ऐश्वर्य दम्भ प्रसिद्धि नौकरी और मोक्ष का विचार किया जाता है जब भी कुम्भ लगन के लगनेश शनि नवे भाव मे होते है तो चिन्ता कार्य मुद्रा मुकद्दमा या धन की हानि के विषय मे प्रश्न होता है.सूर्य जब लगनेश से दूसरे भाव मे होता है तो व्यक्ति को धन सम्मान या परिवार के बारे मे चिन्ता होती है,इस लगन से दसवे भाव मे विराजमान चन्द्रमा जिस ग्रह के साथ होता है उसके लिये यात्रा के कारणो को प्रदर्शित करता है जैसे इस कुंडली मे चन्द्रमा भी माता या किसी स्त्री का कारक बन जाता है,बुध वक्री पुत्र का कारक बन जाता है,सूर्य जातक की पत्नी का कारक माना जाता है,जब अदालती प्रश्न सामने होते है तो यह बुध बयान लेने या बयानो को देने के लिये माना जा सकता है.लेकिन मुकद्दमा से सम्बन्धित प्रश्न को देखने के लिये नवे भाव से लेकर दूसरे भाव के ग्रह वादी की तरफ़ और तीसरे भाव से लेकर अष्टम भाव तक के ग्रह प्रतिवादी के लिये अपनी युति को देते है.इस युति मे जातक के नवे भाव मे शनि दसवे भाव मे राहु बुध वक्री सूर्य चन्द्र शुक्र है तथा प्रतिवादी की तरफ़ गुरु वक्री मंगल और केतु है यह युति पारिवारिक रूप से चलने वाली लडाई के लिये भी माना जा सकता है जिसके अन्दर दो वकील एक ही व्यक्ति से बारी बारी से प्रश्न करते है और प्रश्न भी जातक के परिवार के व्यक्ति के लिये विदेश आदि जाने पर लगी पाबंदी के लिये माना जा सकता है लेकिन वक्री गुरु के कारण जो भी होता है वह जल्दबाजी के कारणो के लिये माना जा सकता है लेकिन मंगल के द्वारा अपनी युति से चन्द्रमा वक्री बुध सूर्य को देखने के कारण और शुक्र के साथ मंगल की युति से जातक के सम्बन्धी को विदेश जाने के लिये पुलिस आदि का बन्धन भी मिलता है.
Wednesday, November 23, 2011
चोरी का पता करना
प्रश्न कुंडली से चोरी के बारे मे पता करने के लिये समय और स्थान का पता होना बहुत जरूरी है,इसके बिना चोरी का पता नही किया जा सकता है.धनु लगन की कुंडली है इस लगन का मालिक गुरु है.गुरु से सप्तम में शनि राहु है और गुरु से छठे भाव में कन्या राशि है इस राशि को केतु देख रहा है,पहले जिसके यहां चोरी हुयी उसके बारे मे पता करना जरूरी है,गुरु जो वक्री है उसे एक स्थान को छोड कर दूसरे स्थान पर बसा हुआ माना जा सकता है.गुरु के पिता का कारक शनि और गुरु की माता का कारक चन्द्रमा है,शनि की डिग्री कम होने से शनि उपस्थित नही है,इसलिये पिता का होना नही माना जाता है केवल माता का होना भी माना जा सकता है,जातक के दादा का कारक शुक्र है शुक्र भी कम डिग्री का है और वह गुरु के नवे भाव मे होने से अपने ही पैदा होने के स्थान में कम उम्र मे ही खत्म हो गया था,जातक की दादी का कारक बुध है जो अपने पुत्र के कारक गुरु के साथ आकर अपने पिता के स्थान में आकर बसी है। जातक की पत्नी का कारक भी शुक्र है जो पंचम गुरु को भी देख रही है और नवे भाव से मंगल को भी देख रही है,गुरु प्राथमिक शिक्षा स्थान पंचम स्थान मे है और मंगल बडे शिक्षा स्थान में है,जातक की पत्नी प्राइमरी पाठशाला में भोजन बनाने का काम करती है.गुरु से चौथा स्थान जातक की दुकान है दुकान के अन्दर राहु सूर्य बुध को देखने के कारण दुकान में खिलौने आदि बेचने का काम होता है। रात को इस दुकान में चोरी हो गयी है और चोर दुकान के दो ताले तोड कर सामान ले गये है कबाडा सामान छोड गये है। सुबह जब बुध यानी गुरु की दादी ने फ़ोन से बताया तो चोरी का पता करने के लिये यह समय कुंडली का निर्माण किया गया। दुकान का मालिक गुरु है और गुरु के बारहवे भाव मे दुकान की हानि का पता करना जरूरी है.दुकान की हानि का मालिक ही गुरु है और गुरु से अष्टम मे हानि का कारक राहु ही माना जा सकता है और हानि देने के लिये राहु केतु का स्तेमाल करता है चोरी करने का कारक केतु है,केतु के चौथे स्थान में मंगल है और मंगल भी अपनी चौथी नजर से राहु सूर्य और बुध को देख रहा है.अपने रोजाना के खर्चे पूरे करने के लिये केतु ने यह चोरी का कार्य किया है.केतु गुरु का पडौसी भी है लेकिन पडौसी से गुरु का वक्री होना भी यह बताता है कि गुरु का घर पहले इस केतु के पास मे ही था.
Sunday, November 20, 2011
कैसे टूटते है सामाजिक रिस्ते
प्रस्तुत कुंडली एक सज्जन की है वह अपनी विवाहित पत्नी से अपनी परेशानी को बताकर किसी अन्य स्त्री से अपनी गृहस्थी बसाने के लिये लालियत है.धनु लगन की कुंडली है और चन्द्र राशि वृष है.लगनेश गुरु केतु बुध सूर्य के साथ बारहवे भाव मे विराजमान है.जन्म से ही गुरु जीवन साथी के भाव को अपमान जोखिम और बदनाम करने वाली नीति से देख रहा है,जीवन साथी का कारक बुध भी गुरु के साथ गुप्त रूप से अपनी संगति गुरु के साथ बनाकर चल रहा है.बुध सप्तमेश भी है तो कार्येश भी है.यानी जीवन साथी पत्नी का रूप भी अदा कर रहा है और कार्य भी कर रहा है,बारहवे भाव मे बैठने के कारण कार्यों को करने के बाद भी जेल जैसी जिन्दगी को भी जी रहा है.गुरु जो लगनेश है वह घुमक्कड जाति में जन्म लेकर एक स्थान पर स्थापित नही हो पाया है.अक्सर कुंडली के विश्लेषण के लिये सबसे पहले जातक के स्वभाव और खून के बारे मे सोचना जरूरी होता है कि जातक का पालन पोषण किस माहौल मे हुआ है और वह अपने जीवन मे किन किन कारणो से दुखी है तथा जातक के लिये प्राप्त क्या करना है और किस कारण को प्राप्त करने के बाद उसे शांति मिलेगी,जीवन का भटकाव समझने के लिये तथा भटकने का कारण समझने के लिये कुंडली का चौथा आठवा और बारहवा भाव समझना जरूरी होता है.
गुरु का बारहवे स्थान मे बैठना अपनी नजर से सबसे पहले दूसरे भाव को देखना,चौथे भाव पर नजर रखना तथा छठे भाव से लगातार अपनी युति को रखना और अपनी नवी द्रिष्टि से अष्टम भाव को देखना गुरु का शमशानी राशि में स्थापित होना और सप्तमेश कार्येश बुध के साथ साथ भाग्येश सूर्य और नकारात्मक भाव प्रदान करने वाले केतु का साथ होना जातक के लिये राहु के गोचर के समय में आगे की जिन्दगी के लिये खतरनाक स्थिति को समझा जा सकता है.बारहवा भाव जेल और अस्पताल का है,बारहवे भाव से तंत्र और मंत्र की स्थिति को भी देखा जा सकता है,बारहवे भाव से पिता के घर को और माता के भाग्य को धर्म को और समाज मे अपनी स्थिति को दर्शाने के लिये भी माना जा सकता है.
कुंडली की शुरुआत राहु यानी दादा से शुरु की जाती है,राहु धन खानपान श्रंगार बोली जाने वाली वाणी और अपनी संख्या को बताने वाली राशि वृष मे विराजमान है,लेकिन वृष राशि भचक्र की छठी राशि कन्या राशि मे अपनी स्थिति को बनाये है.इस राशि का स्वभाव रोजाना के कार्य चोरी नौकरी माता के पराक्रम पिता के कार्य और रोग आदि के लिये जाना जाता है.जातक के दादा की संख्या पुरुष वर्ग मे देखने के लिये राहु के साथ चन्द्रमा के होने से दो भाइयों के रूप मे देखी जा सकती है,दादा की पत्नी का मालिक मंगल शुक्र के साथ कन्या राशि मे दसवे भाव मे होने से तथा पंचम द्रिष्टि से राहु के द्वारा देखे जाने से दादा के पुत्र संतान का कारक बुध होने से और बुध का अस्पताली राशि मे होने से दादा का सम्बन्ध अपनी पुत्र वधू से गुप्त रूप से होना मिलता है,उस पुत्र वधू से गुरु के रूप मे जातक के पिता के पिता की उत्पत्ति मिलती है,पिता जो सूर्य के रूप मे है वह भी वृष राशि में राहु शुक्र के सप्तम मे होने से मानसिक रूप से कई स्त्रियों के साथ सम्पर्क मे रहा है,जिसमे उसके बडे भाई की स्त्री (सूर्य से ग्यारहवें भाव से पिता का बडा भाई और सूर्य से पंचम में बडे भाई की पत्नी भाभी) से अनैतिक सम्बन्धो के लिये भी स्थिति को माना जा सकता है,पिता के सामने राहु चन्द्र होने से तथ राहु का सम्बन्ध शुक्र मंगल से होने से पिता का अनैतिक रिस्ता नाचने वाली स्त्री के साथ भी होना माना जा सकता है और उसी स्त्री से जातक का जन्म होना भी माना जाता है (शुक्र मंगल से दूसरा शनि,लगनेश से चौथे भाव का मालिक),इस प्रकार से जातक के अन्दर जो खून और स्वभाव मिलता है तथा जो रहन सहन का परिवेश मिलता है उसके द्वारा जातक के अन्दर यह बात प्रकृति से उत्पन्न मानी जा सकती है कि वह अपनी शिक्षा आदि से अपनी वास्तविक सामाजिक स्थिति से तो ऊपर आ चुका है लेकिन जो खून उसके अन्दर है उसका असर राहु के गुरु के साथ गोचर करने से अक्समात ही प्रभाव देना शुरु करेगा.
ग्यारहवे भाव मे तुला राशि का शनि है,इस शनि का गोचर पिछले समय में जन्म के शुक्र मंगल पर रहा है इसका परिणाम जातक के द्वारा यह हुआ है कि सामाजिक स्थिति से जातक ने शादी कर ली है,लेकिन इस शादी के समय राहु का गोचर लगन पर था,और केतु का गोचर सप्तम मे था,केतु के प्रभाव से जातक को यह पता था कि जातक जिससे शादी कर रहा है उसके परिवार मे कोई नही है और उसकी चल अचल सम्पत्ति को वह प्राप्त कर लेगा तथा अपने पिछले समय में जब राहु धन भाव मे गोचर कर रहा था तथा जातक ने अपने ऐश आराम के लिये जो धन कर्ज आदि से लिया था वह चुका देगा,इसके साथ ही राहु का गोचर शुक्र मंगल और जन्म के राहु चन्द्र के साथ होने से उसे यह भी पता था कि जातक जिससे शादी कर रहा है वह पत्नी पढी लिखी भी है और वह आजीवन कमाकर उसे अपने ऐशो आराम के लिये साधन देती रहेगी.शादी के बाद जब जातक की पत्नी ने गर्भ ग्रहण किया तो राहु के बदलाव के बाद राहु का असर नवम और पंचम के साथ सप्तम के केतु पर भी हुआ,जातक ने जो सम्पत्ति धन आदि अपनी इकलौती पत्नी के परिवार से प्राप्त किया था वह जल्दी से धन कमाने के साधनो से यानी शेयर बाजार सट्टा आदि मे समाप्त कर लिया था (गुरु केतु बुध सूर्य से दूसरा राहु) अब उसके पास जो कमाई करने वाली स्त्री थी उसके गर्भ ग्रहण करने कारण बन्द हो गयी उसकी तबियत खराब रहने लगी,वह अस्पताली कारणो से जूझने लगी,तो बजाय कमाई आने के खर्च होने लगी,जातक ने अपनी पत्नी को सलाह दी कि वह अपने गर्भ को साफ़ करवा दे,(राहु का असर पंचम पर),जातक की पत्नी ने अपने गर्भ को जातक के कहने से साफ़ करवा दिया,लेकिन गर्भपात के बाद जातक की पत्नी की सेहत और गिरने लगी,परिणाम मे वह कार्य करने के लिये भी नही जा पायी और घर मे रहने के लिये भोजन आदि के लिये भी दिक्कत का सामना करना पडा,जातक के एक विदेशी दोस्त ने जातक को धन की सहायता दी.इसी बीच मे जातक की मुलाकात एक कालगर्ल से हुयी (राहु का गोचर गुरु केतु बुध सूर्य के साथ) उससे मुलाकात करने के बाद आपसी सम्पर्क बढने लगे.जातक की पत्नी घर में इन्फ़ेक्सन जैसे रोग तथा सांस की बीमारी से जूझने लगी,(गुरु के साथ केतु बुध और सूर्य पर राहु का भ्रमण),इस कारण से जातक के दिमाग मे यह चिन्ता सताने लगी कि कैसे भी इस पत्नी से छुटकारा प्राप्त किया जाये और जो पत्नी के नाम से बीमा आदि है उसका भुगतान लेकर अपनी जिन्दगी को आराम से बिताया जाये (वृश्चिक का गुरु बीमा और पुरानी बचत के लिये),लेकिन जातक के पास रहने के लिये केवल एक ही जगह है जो जातक की पत्नी के नाम से है,कारण जब जातक ने शादी की थी तो मकान जातक की पत्नी के नाम से ही रह गया था,बाकी की चल सम्पत्ति तो जातक ने खर्च कर ली लेकिन मकान पत्नी के नाम से होने के कारण वह उसे नही बेच पाया,उसे बेचने और उसे गिरवी रखने के लिये जातक ने पत्नी के साथ कई बार कोशिश भी की लेकिन जातक की पत्नी ने किसी भी प्रकार से मकान को किसी भी प्रकार से गिरवी या बेचने के लिये अपनी सहमति नही दी। (शनि का गोचर मंगल और शुक्र के साथ).जब जातक को यह महसूस होने लगा कि वह अपनी पत्नी के मकान को नही बेच पायेगा या गिरवी रख पायेगा तो उसने अपनी पत्नी से दूरिया बनाना शुरु कर दिया। पत्नी एक चाचा जो (शुक्र से दूसरा शनि) पत्नी के पास ही अपने व्यापारिक कार्यों को करते थे,तथा चाची (शुक्र के साथ मंगल) पत्नी की जाने अन्जाने मे सहायता करती थी ने भी अपना आना जाना पत्नी के पास कर लिया।
राहु का गोचर जन्म के गुरु के साथ शुरु हो गया है,और कहावतो के अनुसार करनी का फ़ल तो मिलना ही है,जातक को अनैतिक रिस्ता रखने के कारण पत्नी को अपने रास्ते से हटाने के लिये हत्या जैसे अपराध को करने का समय आ गया है,जनवरी दो हजार तेरह तक जातक अपनी अपनी पत्नी की हत्या के लिये प्रयास करेगा,और शनि उसकी पत्नी क बचाकर जातक को कारावास जैसी सजा से पूरित करेगा.
गुरु का बारहवे स्थान मे बैठना अपनी नजर से सबसे पहले दूसरे भाव को देखना,चौथे भाव पर नजर रखना तथा छठे भाव से लगातार अपनी युति को रखना और अपनी नवी द्रिष्टि से अष्टम भाव को देखना गुरु का शमशानी राशि में स्थापित होना और सप्तमेश कार्येश बुध के साथ साथ भाग्येश सूर्य और नकारात्मक भाव प्रदान करने वाले केतु का साथ होना जातक के लिये राहु के गोचर के समय में आगे की जिन्दगी के लिये खतरनाक स्थिति को समझा जा सकता है.बारहवा भाव जेल और अस्पताल का है,बारहवे भाव से तंत्र और मंत्र की स्थिति को भी देखा जा सकता है,बारहवे भाव से पिता के घर को और माता के भाग्य को धर्म को और समाज मे अपनी स्थिति को दर्शाने के लिये भी माना जा सकता है.
कुंडली की शुरुआत राहु यानी दादा से शुरु की जाती है,राहु धन खानपान श्रंगार बोली जाने वाली वाणी और अपनी संख्या को बताने वाली राशि वृष मे विराजमान है,लेकिन वृष राशि भचक्र की छठी राशि कन्या राशि मे अपनी स्थिति को बनाये है.इस राशि का स्वभाव रोजाना के कार्य चोरी नौकरी माता के पराक्रम पिता के कार्य और रोग आदि के लिये जाना जाता है.जातक के दादा की संख्या पुरुष वर्ग मे देखने के लिये राहु के साथ चन्द्रमा के होने से दो भाइयों के रूप मे देखी जा सकती है,दादा की पत्नी का मालिक मंगल शुक्र के साथ कन्या राशि मे दसवे भाव मे होने से तथा पंचम द्रिष्टि से राहु के द्वारा देखे जाने से दादा के पुत्र संतान का कारक बुध होने से और बुध का अस्पताली राशि मे होने से दादा का सम्बन्ध अपनी पुत्र वधू से गुप्त रूप से होना मिलता है,उस पुत्र वधू से गुरु के रूप मे जातक के पिता के पिता की उत्पत्ति मिलती है,पिता जो सूर्य के रूप मे है वह भी वृष राशि में राहु शुक्र के सप्तम मे होने से मानसिक रूप से कई स्त्रियों के साथ सम्पर्क मे रहा है,जिसमे उसके बडे भाई की स्त्री (सूर्य से ग्यारहवें भाव से पिता का बडा भाई और सूर्य से पंचम में बडे भाई की पत्नी भाभी) से अनैतिक सम्बन्धो के लिये भी स्थिति को माना जा सकता है,पिता के सामने राहु चन्द्र होने से तथ राहु का सम्बन्ध शुक्र मंगल से होने से पिता का अनैतिक रिस्ता नाचने वाली स्त्री के साथ भी होना माना जा सकता है और उसी स्त्री से जातक का जन्म होना भी माना जाता है (शुक्र मंगल से दूसरा शनि,लगनेश से चौथे भाव का मालिक),इस प्रकार से जातक के अन्दर जो खून और स्वभाव मिलता है तथा जो रहन सहन का परिवेश मिलता है उसके द्वारा जातक के अन्दर यह बात प्रकृति से उत्पन्न मानी जा सकती है कि वह अपनी शिक्षा आदि से अपनी वास्तविक सामाजिक स्थिति से तो ऊपर आ चुका है लेकिन जो खून उसके अन्दर है उसका असर राहु के गुरु के साथ गोचर करने से अक्समात ही प्रभाव देना शुरु करेगा.
ग्यारहवे भाव मे तुला राशि का शनि है,इस शनि का गोचर पिछले समय में जन्म के शुक्र मंगल पर रहा है इसका परिणाम जातक के द्वारा यह हुआ है कि सामाजिक स्थिति से जातक ने शादी कर ली है,लेकिन इस शादी के समय राहु का गोचर लगन पर था,और केतु का गोचर सप्तम मे था,केतु के प्रभाव से जातक को यह पता था कि जातक जिससे शादी कर रहा है उसके परिवार मे कोई नही है और उसकी चल अचल सम्पत्ति को वह प्राप्त कर लेगा तथा अपने पिछले समय में जब राहु धन भाव मे गोचर कर रहा था तथा जातक ने अपने ऐश आराम के लिये जो धन कर्ज आदि से लिया था वह चुका देगा,इसके साथ ही राहु का गोचर शुक्र मंगल और जन्म के राहु चन्द्र के साथ होने से उसे यह भी पता था कि जातक जिससे शादी कर रहा है वह पत्नी पढी लिखी भी है और वह आजीवन कमाकर उसे अपने ऐशो आराम के लिये साधन देती रहेगी.शादी के बाद जब जातक की पत्नी ने गर्भ ग्रहण किया तो राहु के बदलाव के बाद राहु का असर नवम और पंचम के साथ सप्तम के केतु पर भी हुआ,जातक ने जो सम्पत्ति धन आदि अपनी इकलौती पत्नी के परिवार से प्राप्त किया था वह जल्दी से धन कमाने के साधनो से यानी शेयर बाजार सट्टा आदि मे समाप्त कर लिया था (गुरु केतु बुध सूर्य से दूसरा राहु) अब उसके पास जो कमाई करने वाली स्त्री थी उसके गर्भ ग्रहण करने कारण बन्द हो गयी उसकी तबियत खराब रहने लगी,वह अस्पताली कारणो से जूझने लगी,तो बजाय कमाई आने के खर्च होने लगी,जातक ने अपनी पत्नी को सलाह दी कि वह अपने गर्भ को साफ़ करवा दे,(राहु का असर पंचम पर),जातक की पत्नी ने अपने गर्भ को जातक के कहने से साफ़ करवा दिया,लेकिन गर्भपात के बाद जातक की पत्नी की सेहत और गिरने लगी,परिणाम मे वह कार्य करने के लिये भी नही जा पायी और घर मे रहने के लिये भोजन आदि के लिये भी दिक्कत का सामना करना पडा,जातक के एक विदेशी दोस्त ने जातक को धन की सहायता दी.इसी बीच मे जातक की मुलाकात एक कालगर्ल से हुयी (राहु का गोचर गुरु केतु बुध सूर्य के साथ) उससे मुलाकात करने के बाद आपसी सम्पर्क बढने लगे.जातक की पत्नी घर में इन्फ़ेक्सन जैसे रोग तथा सांस की बीमारी से जूझने लगी,(गुरु के साथ केतु बुध और सूर्य पर राहु का भ्रमण),इस कारण से जातक के दिमाग मे यह चिन्ता सताने लगी कि कैसे भी इस पत्नी से छुटकारा प्राप्त किया जाये और जो पत्नी के नाम से बीमा आदि है उसका भुगतान लेकर अपनी जिन्दगी को आराम से बिताया जाये (वृश्चिक का गुरु बीमा और पुरानी बचत के लिये),लेकिन जातक के पास रहने के लिये केवल एक ही जगह है जो जातक की पत्नी के नाम से है,कारण जब जातक ने शादी की थी तो मकान जातक की पत्नी के नाम से ही रह गया था,बाकी की चल सम्पत्ति तो जातक ने खर्च कर ली लेकिन मकान पत्नी के नाम से होने के कारण वह उसे नही बेच पाया,उसे बेचने और उसे गिरवी रखने के लिये जातक ने पत्नी के साथ कई बार कोशिश भी की लेकिन जातक की पत्नी ने किसी भी प्रकार से मकान को किसी भी प्रकार से गिरवी या बेचने के लिये अपनी सहमति नही दी। (शनि का गोचर मंगल और शुक्र के साथ).जब जातक को यह महसूस होने लगा कि वह अपनी पत्नी के मकान को नही बेच पायेगा या गिरवी रख पायेगा तो उसने अपनी पत्नी से दूरिया बनाना शुरु कर दिया। पत्नी एक चाचा जो (शुक्र से दूसरा शनि) पत्नी के पास ही अपने व्यापारिक कार्यों को करते थे,तथा चाची (शुक्र के साथ मंगल) पत्नी की जाने अन्जाने मे सहायता करती थी ने भी अपना आना जाना पत्नी के पास कर लिया।
राहु का गोचर जन्म के गुरु के साथ शुरु हो गया है,और कहावतो के अनुसार करनी का फ़ल तो मिलना ही है,जातक को अनैतिक रिस्ता रखने के कारण पत्नी को अपने रास्ते से हटाने के लिये हत्या जैसे अपराध को करने का समय आ गया है,जनवरी दो हजार तेरह तक जातक अपनी अपनी पत्नी की हत्या के लिये प्रयास करेगा,और शनि उसकी पत्नी क बचाकर जातक को कारावास जैसी सजा से पूरित करेगा.
Friday, November 18, 2011
कैसे मिलते है कार्य मे आक्षेप (ब्लेम) ?
जब कोई गल्ती की नही गयी हो और उस गल्ती का आक्षेप अगर लगाया जाये तो मन मे बहुत बडी टीस उठती है कि यह गल्ती की ही नही गयी है तो दिये जाने वाले आक्षेप का मतलब क्या हुआ ? अक्सर आक्षेप मिलने का एक समय होता है और उस समय मे बिना किसी कारण के ब्लेम मिलने लगते है। मन दुखी होता है और आगे से या तो काम करने के स्थान को ही छोडना पडता है या जो बार बार ब्लेम दे रहा है उसकी संगति ही त्यागनी पडती है.प्रस्तुत कुंडली मे केतु को सूर्य वक्री बुध और मंगल का बल मिला है,लगन का शनि अपनी दसम द्रिष्टि से केतु को देख रहा है राहु और गुरु की संगति चौथे भाव मे है जो बारहवे चन्द्र शुक्र की शक्ति को ग्रहण करने के बाद केतु को बल दे रहे है। इस प्रकार से यह कुंडली केतु पर निर्भर रहने वाली कुंडली है.हमेशा ध्यान रखने वाली बात है कि जब अधिक से अधिक ग्रह किसी एक ग्रह को निशाना बना रहे तो जीवन मे वही ग्रह अपनी प्रभुता को दिखाने वाला माना जायेगा.जैसे केतु पर लगभग सभी ग्रहो ने अपना असर दिया है लेकिन केतु के द्वारा एक ग्रह को असर नही दिया जा सका है वह शनि है,कारण केतु ने तीसरी नजर से बारहवे भाव मे बैठे शुक्र चन्द्र को युति दी है,केतु ने दूसरे भाव मे बैठे सूर्य मंगल और वक्री बुध को अपनी युति दी है चौथे भाव मे बैठे राहु और गुरु को भी अपनी युति दी है,यानी जातक का कार्य भाव का केतु शनि को छोड कर सभी को अपने अपने अनुसार बल दे सकता है लेकिन शनि बचा हुया है। शतरंज की चाल को समझने वाले इस कुंडली को आराम से समझ सकते है। शनि की चाल ढाई साल की है,शतरंज मे घोडे की चाल भी ढाई घर की है,केतु के सानिध्य मे रहने वाले सभी ग्रह प्यादा बन जाते है और राहु के सानिध्य मे रहने वाले सभी उल्टे चलने लगते है.बारहवे भाव के ग्रह आखिरी मुकाम पर होते है और लगन के सभी ग्रह बिछाई गयी शतरंज की बाजी के अनुसार माने जाते है। जिस ग्रह का इशारा अन्य ग्रहों पर अधिक होता है वही ग्रह पहली चाल चलने के लिये माना जाता है,इस कुंडली मे जातक सभी को सम्भाल सकता है लेकिन शनि की चाल से हमेशा परेशान और खतरे मे समझने वाला माना जा सकता है। जब भी जातक को मात मिलेगी तो शनि की तरफ़ से ही मिलेगी वह भी मात मिलने का कारण केवल शनि के द्वारा मिलने वाले ब्लेम के कारण ही माना जायेगा। वर्तमान मे शनि का गोचर जातक के विदेश मे रहने वाले स्थान के लिये माना जा सकता है। जातक विदेश मे ही है और शनि की चाल से परेशान है,जातक को काम के प्रति काम करने वाले साथियों की तरफ़ से ब्लेम दिये जाते है और वह चाहता है कि किस प्रकार से वह ब्लेम से बचने के लिये अपने कार्य स्थान को ही त्याग दे। केतु के चौथे भाव का कारक भी शनि है और केतु अगर शनि से मुक्ति के उपाय करता है तो वह कार्य से हमेशा के लिये दूर हो जाता है और शनि को बढाने के उपाय करता है तो यह शनि जातक के मन मस्तिष्क मे एक प्रकार का डर भरे रहेगा और किसी भी प्रकार से जातक को अदालती मामले मे जाना भी पड सकता है.
Thursday, November 17, 2011
शनि के द्वारा राशियों पर धन के लिये सफ़ल और निष्फ़ल योग
मेश राशि के लिये शनि तुला राशि मे गुरु से युति बनाने तक या जन्म के गुरु के साथ युति बनाने पर सफ़ल धन का योग देगा,वृष राशि मे भी शनि के साथ जब जब बुध युति बनायेगा धन की बरसात करेगा,साथ जब शुक्र शनि एक साथ मिलेंगे तब भी और शनि सूर्य भी मिलेंगे या गोचर से और जन्म से युति बनायेंगे तो धन की युति प्रदान करेंगे.गुरु और शनि का जब तक आमने सामने का योगात्मक रूप रहेगा तब तक और जन्म के गुरु के साथ शनि की युति बन रही होगी तब तक धन के प्रति निष्फ़ल योग बना रहेगा यानी प्रयास करने के बाद भी धन की आवक नही हो पायेगी। यही हाल गुरु और शुक्र के साथ होने पर और बुध के शनि के साथ भी योगात्मक रूप मे मिलने पर धन की कमी ही रहेगी.कर्क राशि के लिये भी गुरु और शनि आमने सामने रहने तक धन के लिये दिक्कत देते रहेंगे,साथ मे अगर मंगल और शुक्र का योग भी शुरु हो गया तो बहुत बडी समस्या धन के प्रति प्रकट होने लगेगी। यही हाल सिंह राशि वालो के लिये भी माना जाता है,गुरु के साथ शनि का युति मिलाना तो टेढा रहेगा ही लेकिन बीच म मंगल या शुक्र ने शनि या गुरु से युति मिलाली तो भी दिक्कत का कारण झेलना पड सकता है। कन्या राशि वालो के लिये जब भी बुध शनि के साथ अपना गोचर करेगा या जन्म के बुध के साथ शनि का गोचर शुरु हुआ है तो यह समझ लीजिये उनके लिये पौ बारह के दिन शुरु हो गये है।तुला राशि वालो के लिये कहने के लिये तो साढेशाती की युति बतायी जायेगी लेकिन शुक्र शनि की दोस्ती यहीं पर काम आयेगी जब भी शुक्र शनि के साथ गोचर से या जन्म की स्थिति से युति मिलायेगा बिगडा हुआ काम बनता चला जायेगा गुरु शनि की युति भी बहुत मेहनत करने और मेहनत करने के बाद उसका वास्तविक मूल्य देने के लिये गुरु शनि की युति काम आयेगी.बुध भी जब जब गोचर से शनि पर गुजरेगा तब तब धन की आवक का रास्ता खुल जायेगा इसके अलावा जब जब चन्द्रमा का मिलान शनि देव से होगा धन आना शुरु बना रहेगा.तुला राशि वालो के लिये बुध शनि और चन्द्रमा की युति ही धन देने वाली मानी जाती है। वृश्चिक राशि वाले भी चन्द्र और शनि की युति मे धन कमाने के लिये अपनी योग्यता को देंगे.धनु राशि वालो के लिये गुरु शनि की युति धन को बरबाद करने के लिये ही मानी जाती है मकर राशि वाले शनि के साथ शुक्र का गोचर होने पर धन की युति को प्राप्त करेंगे लेकिन शनि के साथ आमने सामने गुरु के होने से धन आया हुआ भी जा सकता है और धन के लिये प्रयास भी करने पड सकते है लेकिन प्रयास असफ़ल अधिक माने जायेंगे। कुम्भ राशि वाले भी शुक्र शनि की युति का लाभ उठा सकते है लेकिन शनि गुरु का योग उन्हे भी नुकसान देने के लिये माना जाता है सूर्य भी शनि के साथ जब जब आयेगा अशुभ योग को ही पैदा करेगा। मीन राशि वाले शनि की कृपा से केवल शनि की खरीद बेच और शनि मंगल की युति का लाभ ही उठा सकते है लेकिन जो भी काम किये जायेंगे या तो अन्त मे खराब हो जायेंगे या शुरु करने मे ही कठिनाई होगी। किसी को भी घबडाने की जरूरत भी नही होनी चाहिये जिन्हे शनि गोचर मे मार्गी होकर फ़ायदा देते है उन्हे ही वक्री होकर नुकसान भी पहुंचाते है।
तुला राशि पर शनि का गोचर
कल अवधेश ससुराल गये और अपने काम की चिन्ता को भूलकर अपने ससुराल के कामो मे व्यस्त हो गये,वही बात कल बलबीर के साथ हुयी घर से गये थे किसी बैंक वाले काम से और रास्ते मे एक दुकान किराये की तय करके आ गये,कमलेश भी अपनी माताजी के साथ मौसी की मौत की खबर सुनकर दाह क्रिया मे शामिल होने के लिये गये और बदले मे दाह क्रिया मे तो शामिल हो नही पाये यात्रा की दिक्कत झेलने के बाद गुरुजी के दर्शन करने ही चले गये,हर्षवर्धन की बात अजीब ही रही पहले उनका अच्छा काम केबिल सप्लाई का था लेकिन अब उन्होने अपनी दुकान भी बना ली है,मनोहर ने भी अब उन्ही कामो को करने की ठानी है जो दुकान पर बैठ कर नही चलफ़िर कर माल को बेचा जा सके,पवन ने भी जो पैसा उनके पास था उसे खर्च करने के बाद दुकान बनवाने के लिये जमीन खरीद कर डाल दी है भविष्य मे या तो दुकाने बन जायेंगी या अच्छे पैसे मिलने पर जमीन को ही बेच दिया जायेगा। रामकुमार का यह हाल है कि कल तक घूमने फ़िरने से ही फ़ुर्सत नही थी अब सर्दी जुकाम की बीमारी से परेशान है और घर पर पडे है,गर्मी है लेकिन रजाई की जरूरत उन्हे अभी से पडने लगी है,नीरज को भी एक धुन सवार हो गयी है कि घर मे नीचे वाले पोर्सन मे रहने की दिक्कत है तो वे अब ऊपरी मंजिल मे अपने घर को बनवाने के लिये प्रयास मे लग गये है,भंवर सिंह के बडे भाई बीमार है लेकिन वे अपने लडके की बहू के लिये नौकरी खोजने मे लगे है,जय सिंह की पत्नी बहुत बीमार रहने लगी है और इस बीमारी मे भी जय सिंह अपनी नौकरी को करने के चक्कर मे लगातार भागमभाग मे लगे है,समीर भी अपने पिता और दादा की जायदाद को बनाने के लिये अपने प्रयास करने मे लगे है लेकिन उनके साथ समस्या यह है कि वह जायदाद कमाने के उद्देश्य से बनाई जाये या रहने के मामले मे,दयालबाबू का ध्यान अब प्रापर्टी खरीदने बेचने के काम की तरफ़ मन जाने लगा है वे सोच रहे है कि नौकरी मे क्या रखा है.
यह बखान बारह राशियों के लिये शनि के गोचर का था,शनि देव ने अपना गोचर तुला राशि पर करना शुरु कर दिया है,तुला राशि भचक्र की सातवी राशि है और इसका स्वामी शुक्र है.शुक्र और शनि के बारे मे कहा जाता है कि यह जहां भी होते है वहां यह अपनी शरारतो से बाज नही आते है बहुत ही भूखा बताया गया है.इतना भूखा कि लकडी पत्थर चूना सीमेंट बजरी घास फ़ूस अनाज घी तेल दूध दही खट्टा मीठा चरपरा जो भी मिलता है सभी खा जाते है। लेकिन तुला राशि बेलेंस की राशि है और जो भी यह खाते है वह बेलेन्स बनाकर ही खाते है यह नही कि सभी को एक साथ खाना शुरु कर दें,जो अधिक कडा बनता है उसे जल्दी खा जाते है और दर्द भी बहुत देते है लेकिन जो मुलायम होता है उसे देर मे खाते है लेकिन दर्द नही देते है। सूर्य गुरु बुध मंगल चन्द्रमा जो भी अपने अपने समय मे निर्माण करते जाते है यह दोनो एक साथ इकट्ठे होकर उसे खा पीकर बरबाद करते जाते है। पिछले समय में यह एक साथ जब भी कन्या राशि मे इकट्ठे हुये तो काम करने वाले लोगों राज्य से जो भी मिला सभी को साफ़ कर दिया। अब इनका समय राज्य को बल देने वाले व्यवसाइयों पर आया है,यह उन्ही व्यवसाइयों को अपने घेरे मे लेंगे जो राजकीय लोगों को चन्दा देकर अपने कार्य राज्य से करवाने में अपने को महारथी समझते थे। इसके बाद इनका नम्बर वीरान पडी बंजर भूमि और शमशान कब्रिस्तान की जमीनो की तरफ़ जायेगा,वहां यह अपनी चालाकी से अथवा अपनी शातिर नजर से हजम करने के बाद उससे भी कमाने की कोशिश करेंगे और उसे खाने से कोई परहेज नही करेंगे। राहु शनि देव के सामने होने से और राहु का धीरे धीरे शनि देव की तरफ़ बढने से जो लोग धर्म भाग्य ईमानदारी विश्वास आदि को धोखा देने वाले लोग है हिंसा को अपना बल मानते है वे सभी इन शनि देव की तरफ़ बढते जा रहे है। इसी के साथ साथ जो देश या राज्य पहले से ही अनैतिक कार्यों में जुड कर चलने वाले थे सभी इनकी तरफ़ बढते जा रहे है। शनि देव की बिसात को समझने के लिये उस कडक ठंड का अन्दाज करना चाहिये और उस अमावस्या की काली अन्धेरी रात का अन्दाज करने के बाद ही शनि देव के बारे मे सोचना ठीक माना जा सकता है।
घर्म पर घमंड करने वाले लोग भी इनके शिकंजे मे आयेंगे और अपने शरीर का बल नापने वाले लोग भी इनके प्रभाव से अछूते नही रहेंगे,जो लोग अपने को वाहन और बडी बडी बिल्डिंग का मालिक समझ कर अहम करने लगे थे वे भी इनके शिकंजे मे आकर जाम होकर अंधेरे मे विलीन हो जायेंगे। जिन लोगों ने शादी जैसे पवित्र बंधन को भी कमाई और ऐशोआराम के लिये समझा था उनके लिये भी बहुत ही कठिन दिन शुरु हो गये है,या तो उनकी शादी ही नही होनी है और हो भी गयी तो रात रात भर रोने के सिवाय और कुछ नही होने वाला है. जिन लोगों ने न्याय को अपनी बपौती समझ लिया था उनके लिये भी बुरी खबर यह मानी जा सकती है उनकी चालाकी और फ़रेबी कागजों की फ़ौज भी मात खाने वाली है,जो भी राज्य के प्रति अपनी वफ़ादारी को भूल गये थे या तो न्याय को साथ लेकर चलेंगे अन्यथा उन्हे ऐसे बदनामी वाले कारणो मे फ़ंसना पडेगा कि वे अपनी सूरत को छिपाने के लिये जगह को भी खोजेंगे तो नही मिलेगी। वर्तमान मे पश्चिम दिशा के लोगो मे गर्मी अधिक पायी जाती है वह गर्मी अब शांत होकर फ़्रीज होने वाली पोजीशन मे जाने वाली है। साथ ही यह पोजीशन दक्षिण पश्चिम दिशा मे भी होनी है पूर्व दिशा मे भी दिक्कत का कारण बनना शुरु हो जायेगा और उत्तर दिशा मे भी भारी हिमपात जैसे कारणो से कार्य और व्यापार जैसे ठप्प से पडने लगेंगे।
यह बखान बारह राशियों के लिये शनि के गोचर का था,शनि देव ने अपना गोचर तुला राशि पर करना शुरु कर दिया है,तुला राशि भचक्र की सातवी राशि है और इसका स्वामी शुक्र है.शुक्र और शनि के बारे मे कहा जाता है कि यह जहां भी होते है वहां यह अपनी शरारतो से बाज नही आते है बहुत ही भूखा बताया गया है.इतना भूखा कि लकडी पत्थर चूना सीमेंट बजरी घास फ़ूस अनाज घी तेल दूध दही खट्टा मीठा चरपरा जो भी मिलता है सभी खा जाते है। लेकिन तुला राशि बेलेंस की राशि है और जो भी यह खाते है वह बेलेन्स बनाकर ही खाते है यह नही कि सभी को एक साथ खाना शुरु कर दें,जो अधिक कडा बनता है उसे जल्दी खा जाते है और दर्द भी बहुत देते है लेकिन जो मुलायम होता है उसे देर मे खाते है लेकिन दर्द नही देते है। सूर्य गुरु बुध मंगल चन्द्रमा जो भी अपने अपने समय मे निर्माण करते जाते है यह दोनो एक साथ इकट्ठे होकर उसे खा पीकर बरबाद करते जाते है। पिछले समय में यह एक साथ जब भी कन्या राशि मे इकट्ठे हुये तो काम करने वाले लोगों राज्य से जो भी मिला सभी को साफ़ कर दिया। अब इनका समय राज्य को बल देने वाले व्यवसाइयों पर आया है,यह उन्ही व्यवसाइयों को अपने घेरे मे लेंगे जो राजकीय लोगों को चन्दा देकर अपने कार्य राज्य से करवाने में अपने को महारथी समझते थे। इसके बाद इनका नम्बर वीरान पडी बंजर भूमि और शमशान कब्रिस्तान की जमीनो की तरफ़ जायेगा,वहां यह अपनी चालाकी से अथवा अपनी शातिर नजर से हजम करने के बाद उससे भी कमाने की कोशिश करेंगे और उसे खाने से कोई परहेज नही करेंगे। राहु शनि देव के सामने होने से और राहु का धीरे धीरे शनि देव की तरफ़ बढने से जो लोग धर्म भाग्य ईमानदारी विश्वास आदि को धोखा देने वाले लोग है हिंसा को अपना बल मानते है वे सभी इन शनि देव की तरफ़ बढते जा रहे है। इसी के साथ साथ जो देश या राज्य पहले से ही अनैतिक कार्यों में जुड कर चलने वाले थे सभी इनकी तरफ़ बढते जा रहे है। शनि देव की बिसात को समझने के लिये उस कडक ठंड का अन्दाज करना चाहिये और उस अमावस्या की काली अन्धेरी रात का अन्दाज करने के बाद ही शनि देव के बारे मे सोचना ठीक माना जा सकता है।
घर्म पर घमंड करने वाले लोग भी इनके शिकंजे मे आयेंगे और अपने शरीर का बल नापने वाले लोग भी इनके प्रभाव से अछूते नही रहेंगे,जो लोग अपने को वाहन और बडी बडी बिल्डिंग का मालिक समझ कर अहम करने लगे थे वे भी इनके शिकंजे मे आकर जाम होकर अंधेरे मे विलीन हो जायेंगे। जिन लोगों ने शादी जैसे पवित्र बंधन को भी कमाई और ऐशोआराम के लिये समझा था उनके लिये भी बहुत ही कठिन दिन शुरु हो गये है,या तो उनकी शादी ही नही होनी है और हो भी गयी तो रात रात भर रोने के सिवाय और कुछ नही होने वाला है. जिन लोगों ने न्याय को अपनी बपौती समझ लिया था उनके लिये भी बुरी खबर यह मानी जा सकती है उनकी चालाकी और फ़रेबी कागजों की फ़ौज भी मात खाने वाली है,जो भी राज्य के प्रति अपनी वफ़ादारी को भूल गये थे या तो न्याय को साथ लेकर चलेंगे अन्यथा उन्हे ऐसे बदनामी वाले कारणो मे फ़ंसना पडेगा कि वे अपनी सूरत को छिपाने के लिये जगह को भी खोजेंगे तो नही मिलेगी। वर्तमान मे पश्चिम दिशा के लोगो मे गर्मी अधिक पायी जाती है वह गर्मी अब शांत होकर फ़्रीज होने वाली पोजीशन मे जाने वाली है। साथ ही यह पोजीशन दक्षिण पश्चिम दिशा मे भी होनी है पूर्व दिशा मे भी दिक्कत का कारण बनना शुरु हो जायेगा और उत्तर दिशा मे भी भारी हिमपात जैसे कारणो से कार्य और व्यापार जैसे ठप्प से पडने लगेंगे।
Tuesday, November 8, 2011
दशा फ़ल
जन्तर मन्तर जयपुर सूर्य घडी. |
कब आयेगी मौत !
कुंडली का आठवां भाव मौत का भाव कहलाता है.बहुत सी गणानाओ का प्रयोग ज्योतिष से उम्र की लम्बाई के लिये किया जाता है लेकिन कुछ गणनाये बहुत ही सटीक मानी जाती है,उन गणनाओ के बारे मे आपको बताने की कोशिश कर रहा हूँ,आशा है आप इस प्रकार की गणना से और भी कुण्डलियों की गणना करेंगे और मुझे लिखेंगे.यह कुंडली एक स्वर्गीय सज्जन की है,अधिक शिक्षित होने के कारण तथा अपने ऊपर बहुत भरोसा होने के कारण धर्म कर्म पूजा पाठ परिवार समाज भाई बन्धु से सभी से एलर्जी थी,उनका कहना था कि जो वे करते है वही होता है ईश्वर तो केवल लोगों को बहलाने का तरीका है,उनकी बातों को सुनकर उस समय तो बहुत बुरा लगा था लेकिन प्रकृति की मीमांसा को समझने के बाद खुद पर सयंम रखना जरूरी समझ कर कुछ नही कहा,उन्हे केवल एक बात जरूर समझा दी थी कि मृत्यु दुनिया का सबसे बडा सत्य है जिसे लोग झुठला सकते है,केवल ज्योतिष को अंजवाने के लिये उन्हे तीन बातें मैने बतायी थी जो उनके दिमाग के अन्दर घर कर गयीं और वे जीवन के अंत मे ईश्वर के प्रति नरम रुख का प्रयोग करने लग गये थे.
मैने पहले बताया कि आठवे भाव से आयु का विचार किया जाता है,जीवन मे जो योग शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले होते है उन्हे अरिष्ट योग के नाम से जाना जाता है.जो मुख्य अरिष्ट योग बनते है उनके अन्दर एक तो जब चन्द्रमा कमजोर होकर पाप ग्रह (सूर्य मंगल शनि राहु केतु) या छठे आठवे बारहवें भाव के स्वामी के साथ या तो उनसे द्रष्ट हो अथवा आठवें स्थान मे चला गया हो तब पैदा होता है या चारो केन्द्र स्थानो १,४,७,१०, चन्द्र मंगल सूर्य शनि बैठे हों,या लगन मे चन्द्रमा बारहवे शनि नवे सूर्य आठवें मंगल हो या चन्द्रमा पाप ग्रह से युत होकर १,४,६,८,१२ भाव मे हो.इसके साथ ही इस प्रकार के अरिष्ट योग की समाप्ति भी ग्रहों के द्वारा देखनी जरूरी होती है कि राहु शनि मंगल अगर ३,६,११ मे विराजमान हो तो अरिष्ट भंग योग कहलाता है गुरु और शुक्र अगर केन्द्र यानी १,४,७,१० मे विराजमान हो तो भी अरिष्ट भंग योग बन जाता है.
आयु की लम्बाई नापने का सबसे उत्तम तरीका इस प्रकार से है:-
मैने पहले बताया कि आठवे भाव से आयु का विचार किया जाता है,जीवन मे जो योग शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले होते है उन्हे अरिष्ट योग के नाम से जाना जाता है.जो मुख्य अरिष्ट योग बनते है उनके अन्दर एक तो जब चन्द्रमा कमजोर होकर पाप ग्रह (सूर्य मंगल शनि राहु केतु) या छठे आठवे बारहवें भाव के स्वामी के साथ या तो उनसे द्रष्ट हो अथवा आठवें स्थान मे चला गया हो तब पैदा होता है या चारो केन्द्र स्थानो १,४,७,१०, चन्द्र मंगल सूर्य शनि बैठे हों,या लगन मे चन्द्रमा बारहवे शनि नवे सूर्य आठवें मंगल हो या चन्द्रमा पाप ग्रह से युत होकर १,४,६,८,१२ भाव मे हो.इसके साथ ही इस प्रकार के अरिष्ट योग की समाप्ति भी ग्रहों के द्वारा देखनी जरूरी होती है कि राहु शनि मंगल अगर ३,६,११ मे विराजमान हो तो अरिष्ट भंग योग कहलाता है गुरु और शुक्र अगर केन्द्र यानी १,४,७,१० मे विराजमान हो तो भी अरिष्ट भंग योग बन जाता है.
आयु की लम्बाई नापने का सबसे उत्तम तरीका इस प्रकार से है:-
- सबसे पहले केन्द्र की राशियों की गणना करना,उन्हे जोडना.
- त्रिकोण की राशियों का जोड.
- केन्द्र मे और त्रिकोण मे स्थित ग्रहों के अंको का जोड,ग्रहों के अंको को सीधे सीधे दिनो के नाम के अनुसार जोड लेते है जैसे सूर्य का १ चन्द्रमा का २ मंगल का ३ बुध का ४ गुरु का ५ शुक्र का ६ शनि का ७ राहु का ८ केतु का ९.
- इन सबका योगफ़ल करने के बाद १२ से गुणा किया जाता है और १० से भाग देने के बाद कुल संख्या से १२ घटा दिया जाता है,यह आयु प्रमाण माना जाता है.
- लेकिन आयु प्रमाण को एक ही रीति से सटीक नही माना जाता है इसे तीन बार सटीकता के लिये देखा जाता है.
- केन्द्र मे कन्या धनु मीन और मिथुन राशिया है,उनकी संख्या ६+९+१२+३=३० होती है.त्रिकोण की राशिया पंचम और नवम भाव मे मकर और वृष है उनकी संख्या को भी मिलाया जाता है १०+२=१२,३०+१२=४२ संख्या राशियों का जोड कहलाया.इसके बाद ग्रहो का जोड करना है,लगन मे चन्द्रमा चौथे मे शनि नवे मे सूर्य दसवे मे शुक्र बुध है.इनकी संख्या २+७+१+६+४=२० होती है.राशियों की संख्या और ग्रहों की संख्या को जोडा तो ४२+२०=६२ योगफ़ल आया.इस संख्या मे १२ का गुणा किया तो ७४४ योग आया,इस योग मे १० का भाग दिया तो योगफ़ल ७४.४ आया इसमे से १२ को घटाया तो कुल आयु ६२.४ साल की आयी.
- दूसरा प्रकार कुंडली के अन्दर जिन राशियों मे ग्रह विद्यमान है उन राशियों के ध्रुवांक जोडकर देखने पर भी आयु का प्रमाण मिलता है,राशियों के ध्रुवांक मेष का १० वृष का ६ मिथुन का २० कर्क का ५ सिंह का ८ कन्या का २ तुला का २० वृश्चिक का ६ धनु का १० मकर का १४ कुम्भ का ३ और मीन का १० होता है.उपरोक्त कुंडली में जिन राशियों ग्रह विद्यमान है वे इस प्रकार से है-मेष वृष मिथुन सिंह कन्या धनु और कुम्भ.राशियों के ध्रुवांक १०+६+२०+८+१०+३=५७ साल.
- तीसरा प्रकार इस प्रकार से है कुंडली के केन्द्र की राशियों का जोड करने के बाद जिस राशि मे मंगल और राहु विद्यमान है उन राशियों की संख्या का योग केन्द्र की राशियों के योग से घटाने पर तथा उसमे तीन का गुणा करने पर जो आयु बनती है उसे देखना जरूरी होता है,जैसे उपरोक्त कुंडली मे केन्द्र का ३० है मंगल और राहु जिस राशि मे विराजमान है वह कुम्भ है जिसकी संख्या ११ है,३०-११=१९ की संख्या को तीन से गुणा करने पर जोड ५७ साल का आया.
Sunday, November 6, 2011
वधू प्रवेश और द्विरागमन मुहूर्त बनाम लम्बा वैवाहिक सुख
विवाह के दिन से सोलह दिन के भीतर नौवे सातवे पांचवे दिन मे वधू प्रवेश घर मे शुभ है,यदि किसी कारण से सोलह दिन के भीतर वधू का प्रवेश नही हो पाये तो विषम मास विषम दिन और विषम वर्ष में वधू प्रवेश घर मे करवाना चाहिये। तीनो उत्तरा रोहिणी अश्विनी पुष्य हस्त चित्रा अनुराधा रेवती मृगशिरा श्रवण मूल मघा और स्वाति नक्षत्र मे रिक्ता तिथि यानी चौथ नौवीं और चतुर्दशी को छोड कर तथा रविवार मंगलवार बुधवार को त्याग कर वधू को घर मे प्रवेश करवाना चाहिये.
द्विरगमन का मुहूर्त भी कल्प ज्योतिष के अनुसार ही बनाया गया था,इसके द्वारा वर और वधू की सीमा परीक्षा यानी एक दूसरे के प्रति चाहत को जाग्रत करना,किसी भी प्रकार से चौथी की विदा करवाने (वधू के प्रथम गृह प्रवेश के चौथे दिन वापस विदा करना) के बाद पहली तीसरी पांचवी और सातवीं साल मे वर वधू को आपस मे नही मिलने देना तथा उनके प्रति आश्वस्त हो जाने की दशा मे ही द्विरागमन की विदा का रूप बताया जाता है। जब मेष वृश्चिक कुम्भ राशियों मे सूर्य हो,गुरुवार शुक्रवार सोमवार का दिन हो,मिथुन मीन कन्या तुला वृष यह लगने हों अश्विनी पुष्य हस्त उत्तराषाढा उत्तराफ़ाल्गुनी उत्तराभाद्रपद रोहिणी श्रवण धनिष्ठा शतभिषा पुनर्वसु स्वाति मूल मृगशिरा रेवती चित्रा अनुराधा यह नक्षत्र हो,चौथ नौवी और चतुर्दशी तिथि मे त्याज्य बाकी की तिथिया हो तभी विदा करना ठीक रहता है. किसी बात की शंका के लिये लिखे.
द्विरगमन का मुहूर्त भी कल्प ज्योतिष के अनुसार ही बनाया गया था,इसके द्वारा वर और वधू की सीमा परीक्षा यानी एक दूसरे के प्रति चाहत को जाग्रत करना,किसी भी प्रकार से चौथी की विदा करवाने (वधू के प्रथम गृह प्रवेश के चौथे दिन वापस विदा करना) के बाद पहली तीसरी पांचवी और सातवीं साल मे वर वधू को आपस मे नही मिलने देना तथा उनके प्रति आश्वस्त हो जाने की दशा मे ही द्विरागमन की विदा का रूप बताया जाता है। जब मेष वृश्चिक कुम्भ राशियों मे सूर्य हो,गुरुवार शुक्रवार सोमवार का दिन हो,मिथुन मीन कन्या तुला वृष यह लगने हों अश्विनी पुष्य हस्त उत्तराषाढा उत्तराफ़ाल्गुनी उत्तराभाद्रपद रोहिणी श्रवण धनिष्ठा शतभिषा पुनर्वसु स्वाति मूल मृगशिरा रेवती चित्रा अनुराधा यह नक्षत्र हो,चौथ नौवी और चतुर्दशी तिथि मे त्याज्य बाकी की तिथिया हो तभी विदा करना ठीक रहता है. किसी बात की शंका के लिये लिखे.
कैसे निकाला जाये विवाह का मुहूर्त
सही विवाह नही मिलान होने से वर ने आत्महत्या कर ली |
मूल अनुराधा मृगशिरा रेवती हस्त उत्तराफ़ाल्गुनी उत्तराषाढा उत्तराभाद्रपत स्वाति मघा रोहिणी इन नक्षत्रो मे और ज्येष्ठ माघ फ़ाल्गुन बैशाख मार्गशीर्ष आषाढ इन महीनो मे विवाह करना शुभ है। विवाह का सामान्य दिन पंचांग मे लिखा रहता है अत: पांचांग के लिये दिन को लेकर उस दिन वर कन्या के लिये यह विचार करना कन्या के लिये गुरुबल वर के लिये सूर्य बल दोनो के लिये चन्द्रबल देख लेना चाहिये।
गुरुबल विचार:-गुरु कन्या की राशि से नवम एकादश द्वितीय और सप्तम राशि मे शुभ होता है दसम तृतीय छठा और प्रथम राशि मे दान देने से शुभ और चौथे आठवे बारहवी राशि मे अशुभ होता है।
सूर्य बल विचार:- सूर्य वर की राशि से तीसरा छठा दसवा ग्यारहवा शुभ होता है,दूसरा पांचवा सातवा और नवां दान देने से शुभ माना जाता है,चौथा आठवां बारहवां सूर्य अशुभ होता है।
चन्द्रबल विचार:- चन्द्रमा वर और कन्या की राशि से तीसरा छठा सातवां दसवा ग्यारहवां शुभ पहला दूसरा पांचवां नौवां दान से शुभ और चौथा आठवां बारहवां अशुभ होता है।
विवाह मे त्यागने वाली लगनें:- दिन मे तुला वृश्चिक और रात्रि में मकर राशि बधिर है,दिन मे सिंह मेष वृष और रात्रि में कन्या मिथुन कर्क अन्धी है,दिन मे कुंभ और रात्रि मे मीन दोनो लगने पंगु है,सिंह मेष वृष मकर कुम्भ मीन ये लगन सुबह और शाम के समय कुबडे होते है.
त्यागने वाली लगनों का फ़ल:- अगर विवाह बधिर लगन मे होता है तो वर कन्या चाहे कुबेर के खजाने से लदे हुये जाये लेकिन दरिद्र हो जायेंगे,दिन की अन्धी लगनो मे विवाह किया जाता है तो कन्या को वर से दूरी मिलनी ही है,रात्रि की अन्धी लगन मे विवाह होता है तो संतति होने का सवाल ही नही होता है और होती भी है तो जिन्दा नही रहती है,लगन पंगु होती है तो धन नाश और परिवार की मर्यादा का नाश होने लगता है।
लगन शुद्धि:- लगन से बारहवे शनि दसवे मंगल तीसरे शुक्र लग्न मे चन्द्रमा और क्रूर ग्रह अच्छे नही होते है लगनेश और सौम्य ग्रह आठवें भाव मे अच्छे नही होते है सातवे भाव मे कोई भी ग्रह शुभ नही होता है।
ग्रहों का बल:- पहले चौथे पांचवे नवें और दसवे स्थान मे गुरु सब दोषों को नष्ट करने वाला होता है,सूर्य ग्यारहवे स्थान स्थिति तथा चन्द्रमा वर्गोत्तम लगन मे स्थिति नवांश दोष को नष्ट करता है बुध लगन से चौथे पांचवे नौवें और दसवे स्थान मे हो तो अक्सर खराब से खराब दोष को शुभ करता है। लगन का स्वामी और नवांश का स्वामी एक ही भाव राशि के हों तो भी अक्सर दोष शांति को माना जाता है.किसी भी विवाह सम्बन्धी मिलान के लिये अथवा किसी शंका के लिये लिखें.
राहु के साथ वाले भी वक्री !
राहु के देवता भैरोंजी |
भाव का असर भी देखने मे बहुत ही अजीब सा लगता है अगर राहु लगन मे बैठ जाये तो उल्टा काम और बोलने चालने मे प्रदर्शन मे सभी कार्यो मे उल्टा फ़ल प्रदान करने लगता है आदमी है तो औरत वाली हरकते करने लगता है और औरत है तो आदमी वाले व्यवहार करने लगता है.राहु धन मे बैठ जाता है तो बजाय देने के लेने लगता है तीसरे भाव मे आजाये तो समझ कर चलने बोलने आदि की कला को बदल कर लडने झगडने और अपने को छुपाकर चलने मे अपना रूप प्रदर्शित करने लगे,चौथे भाव मे आजाये तो बजाय सोचकर बोलने और सोचकर चलने के कनफ़्यूजन को पैदा करदे,जो कुछ सीखा जा रहा था उसे करना शुरु कर दे और जब भी मौका मिले तो बजाय पानी के शराब के लिये अपना रुख जाहिर करने लगे,जो घर बरबाद हो गया था उसे आबाद करने लगे और जो आबाद है उसे बरबाद करने लगे,पंचम मे जाकर बजाय सीखने और याद करने के लोगो को याद करवाने लगे और छठे भाव मे जाकर जब कर्जा लेने की युति बने तो लोगो को कर्जा देने लगे,बजाय दुश्मनी की घात को पास लाने के दुश्मनो का ही विनाश करने लगे,सप्तम मे आजाये तो पत्नी का रूप पति की तरह हो जाये और पति महोदय बजाय शेर के बिल्ली होकर म्याऊँ की आवाज मे बोलने लग जायें आठवे भाव मे जाने से मौत को बचाने के बजाय मौत को ही गले लगाने लग जाये,नवे भाव मे जाते ही बजाय भाग्य को दूसरे से पूंछने के खुद ही भाग्य को बताने लग जाये दसवे भाव मे जाकर जैसे ही राहु अपनी गति को शुरु करे तो बजाय काम करने के सोने लग जाये और जो सो रहे हो उन्हे जगाकर काम करवाना शुरु कर दे,लाभ के भाव मे जाते ही जहां लाभ होता है वहां से लाभ की बजाय हानि देने के लिये तैयार हो जाये और जहां पर काम के बदले मे काम का मेहनताना मिलना था वहां अपनी जेब से भरना पड जाये यही हाल बारहवे भाव का है जब शांति का समय आये तो डर दिमाग मे भर जाये और जब कोई अपनी आत्मा को संतुष्टि देने लग जाये तो भूत प्रेत का असर सामने आने लग जाये किसी ने जीवन भर मेहनत करने के बाद पूजा पाठ करने से लोगो का भला करने के बाद गति प्राप्त करने के लिये धर्म किये थे लेकिन मरने के समय राहु का गोचर अगर बारहवे भाव मे हो गया तो अंत समय मे कोई ऐसा काम हो जाये कि अधोगति को प्राप्त करने के बाद नरक योनि मे भटकने के लिये मजबूर होना पडे.
यही बात राशि के अनुसार भी मानी जाती है,मेष मे राहु के होने से बजाय शरीर की शक्ति के दिमागी शक्ति का प्रयोग करने लगे या मानसिक सोच से काम करने लगे वृष राशि मे जाते ही बजाय चुप रहने के बकर बकर करने लग जाये मिथुन राशि मे जाने से बजाय बोलने के दिखाने लग जाये कर्क राशि मे जाकर बजाय पानी के शराब का आदी बना दे और सिंह राशि मे जाकर बजाय राज्य करने के झाडू लगवाने की कला को पैदा करदे,कन्या राशि मे जाकर सेवा करने की बजाय लोगो से सेवा करवाने लग जाये तुला राशि का होने पर बजाय तौल कर बोलने के अनर्गल बोलना शुरु कर दे,वृश्चिक राशि मे जाकर बजाये दवाई देने के भभूत देने लग जाये,अस्पताल मे बजाय जीवन दान देने के जीवन को खरीदना बेचना शुरु कर दिया जाये,धनु मे जाते ही बाप दादा की औकात को दूर रखकर मन के अनुसार काम कर लिये जाये,मकर मे जाने के बाद बजाय काम करने के सोने और खाली बैठ कर जीवन को गुजार दिया जाये,कुम्भ मे जाने से मित्रता को स्वार्थ की भावना से देखा जाये और बजाय बडे भाई की सहायता लेने के देनी पड जाये,मीन राशि का होने पर धर्म स्थान की बजाय पाप स्थान मे जाने का मन करने लगे।
वह तो मंगल की फ़ेरी जीवन मे अच्छी मानी जाती है जैसे ही राहु अपनी हरकतो को उल्टा करना शुरु कर देता है वह अपनी तकनीक से राहु की हरकत से अपने अनुसार फ़ायदा वाली बातो को करने लगता है.इसी लिये कहा है कि राहु हाथी है तो मंगल हाथी को संभालने वाला अंकुश और आज के जमाने मे राहु बिजली है तो मंगल उसका तकनीकी बटन.
Friday, November 4, 2011
कन्या राशि पत्नी
"क्या कन्या राशि सामान लाकर रखा है,क्या कन्या राशि काम को करने का मानस बनाया है,क्या कन्या राशि व्यक्ति से पाला पडा है,यहां तक कि किसी घर मे भोजन करने के बाद अगर तबियत खराब भी हो गयी है तो यही कहा जाता है- उस कन्या राशि के यहां का भोजन किया था इसलिये तबियत खराब हो गयी है.आप बुरा नही माने अगर आपका भी किसी मामले मे कन्या राशि से पाला पडा है.
घर मे प्रवेश करते ही अगर घर मे चुप्पी छा जाये और किसी भी बात को करने पर केवल आदेश का पालन किया जाये तथा शक्ल को देखकर ही पानी पीने को मिल जाये नास्ता समय पर आजाये कोई सामान इधर उधर रखा है और वह तरीके से जमा दिया जाये तो यह मत समझना कि कन्या राशि इस काम को करना जानता है अथवा सलीके से वह किसी भी काम को करना जानता है,बल्कि यह समझना कि उस समय आपके तेवर कुछ चढे है और आप किसी भी प्रकार से घर के अन्दर कोई आदेश या गुस्सा से काम करने जा रहे है अथवा आपको घर मे किसी कारण से नाराजगी से समय निकालने का अवसर मिला है। कन्या राशि की पत्नी को पता चल जाता है कि सामने वाले का भाव क्या है वह किस प्रकार से नाराज है या क्या उसे चाहिये,कारण कन्या राशि का असर सीधा द्रिष्टि के अनुसार मीन राशि पर होता है,पैरो की तरफ़ देखने के बाद भी उसे पता होता है कि वह जो काम कर रहा है वह किसी न किसी प्रकार से गलत हुआ है या वह किसी बडे काम को करने के समय कुछ भूल गया है। यही बात अगर आपको और अधिक देखनी है तो आप पास के किसी स्त्री रोग अस्पताल मे जाकर पता कर सकते है कि सबसे अधिक महिला मरीज कन्या राशि के ही रजिस्टर मे दर्ज मिलेंगे। अगर कोई दवाई कहीं नही मिल रही है तो आप सीधे से कन्या राशि की महिला से जाकर ले सकते है,किसी प्रकार से भी अगर आपको अपनी बीमारी समझ मे नही आ रही है तो आप कन्या राशि वाली महिला के सामने अपने मर्ज का गुणगान करने लगे तो आपको बीमारी का भी पता लग जायेगा और दवा का नाम भी फ़्री मे मिल जायेगा।
अक्सर घर मे औरतो मे खुशर फ़ुसर के मामले काफ़ी सुने होंगे,अगर आपके घर मे कोई कन्या राशि महिला है तो आपको समझ लेना चाहिये कि पडौस से लेकर नाते रिस्तेदारी के सभी भेद उसके पास है,वह एक अन्दरूनी खबरी की तरह से सब की सूचनाये तो अपने पास रखता ही है लेकिन अपनी खबर को कभी भी कहीं भी प्रसारित नही होने देना चाहता है। कन्या राशि की पहिचान अगर की जाती है तो एक बात जरूर है कि आप सामने वाली महिला का चेहरा देखकर ही पता कर सकते है,जैसे माथा चौडा होगा लेकिन थोडी तक आते आगे चेहरा बिलकुल ही त्रिभुजाकार हो जायेगा,और अन्ग्रेजी के V अक्षर की पहिचान वाला चेहरा किसी न किसी प्रकार से कन्या राशि का प्रभाव अपने मे रखता होगा। हाथो और पैरो के मुकाबले मे कन्धे से जांघो तक जाने मे भी आपको V अक्षर की पहिचान ही समझ मे आयेगी। वैसे इस अक्षर का अर्थ लिया जाता है कि V फ़ार विक्ट्री यानी इस राशि वाली पत्नियां हमेशा ही अपनी जीत की कामना करती रहती है और साम दाम दण्ड भेद की नीति से हमेशा अपने को आगे रखने की कोशिश करती है,वैसे बाहर की राजनीति तो आपने खूब देखी होगी लेकिन घर के अन्दर की राजनीति देखनी है तो आप कन्या राशि की महिला से आराम से सीख सकते है। घर के किस सदस्य से कैसे काम लेना है उसके द्वारा की गयी बुराई को कैसे गुप्त रूप मे पता करने के बाद अपने पास सबूत के तौर पर रखना है,परिवार और समाज मे गुप्त रूप से कैसे उसके बारे मे की गयी बुराई को प्रसारित करना है,अगर उस महिला के देवर जेठ है तो वह किस प्रकार से अपने पति को बहुत आगे बढाने और बाकी के लोगो को अपना गुलाम बनाने के लिये कैसे कैसे गुल अन्दर ही अन्दर खिलाती है इसका प्रभाव वही लोग अधिक जानते है जो कन्या राशि की महिला के साथ पारिवारिक जीवन को बिताते आये है।
विवाह के बाद कन्या राशि की महिला एक ही उद्देश्य होता है कि वह किस प्रकार से अपने परिवार और समाज से दूर रहकर अपने जीवन को चला सकती है,कैसे वह अपने बच्चो और अपने पति को स्थायित्व दे सकती है,किस प्रकार से सास स्वसुर को अपने अनुसार चलाने के लिये बाध्य कर सकती है,कैसे कोई भी जमा पूंजी जो सास या स्वसुर ने अपने द्वारा कमाई है या जोड कर रखी है उसे ले सकती है। जब भी कोई बडा सामूहिक काम हो तो कन्या राशि की महिला को कार्य करते हुये देखा जा सकता है,उसका एक ही नारा होता है,-"काम मत करो,लेकिन काम काम कहते रहो",कोई दूसरा काम कर रहा है तो जैसे ही उसका काम पूरा हो उसके गुण दोष देखना और उस काम के अन्दर इतनी कमियां निकाल देना कि सामने वाला मान जाये कि वास्तव मे उसके पास कोई काम करने का ज्ञान ही नही है। यह कारण भी शास्त्रो मे लिखा है कि बुध की कन्या राशि भौतिक राशि होती है वह सोचती नही है केवल करती है,और उस करने के अन्दर केवल दिखावा अधिक होता है अगर उस किये गये काम को दूर गामी रूप मे देखा जाये तो फ़ल नकारात्मक ही होता है।
कन्या राशि का रूप कर्जा दुश्मनी बीमारी बचत नौकरी गुप्त कार्य माता का दाहिना हाथ पिता का भाग्य पति या पत्नी के बाहरी जोखिम सन्तान के लिये नगद धन राज्य के लिये जो भी कार्य किये जाते है उनके अन्दर गुप्त रूप से अधिक से अधिक कमाई जाने वाली पूंजी,सेवा करने से तीमारदारी करने से,अपने लोगो की बुराई दूसरो से करने और दूसरे लोगों की बडाई अपने घर मे करने से,देखा जाता है। स्वसुर के लिये अक्सर इस राशि की महिलायें बहुत ही सलीके से पेश आती है कायदे से घूंघट अगर रखा जाता है तो भले ही स्वसुर के बडे भाई के लिये घूंघट नही किया जाये लेकिन स्वसुर के आते ही या सामने होते ही घूंघट या चुन्नी का पल्ला सिर पर अपने आप चला जाता है.अपनी माता के किसी भी काम के लिये हमेशा हाजिर होना एक कमजोरी होती है कही सुई भी रखी है तो माता हमेशा अपनी पुत्री को ही पूंछेगी कि वह कहां रखी है.कन्या राशि अपने पति की कमाई को कभी भी समझने वाली नही होती है उसे केवल कमाई के बाद एक ही बात सामने होती है कि कैसे उस पैसे को कहां खर्च किया जाये और जब काम पडे तो पति को बता दिया जाये कि अमुक स्थान पर खर्च हो गया था,अगर खर्च नही करते तो दिक्कत बहुत ही बडी सामने आ सकती थी। इसके अलावा भी एक बात और भी देखी जाती है कि इस राशि की महिलाओ के पति अक्सर नौकरी करते ही नजर आते है कभी भी खुद का काम अगर कर लिया तो जरूरी है कि वे या तो दिवालिया हो जाते है या एक बार धनी होकर निर्धन हो जाते है और उसके बाद वे किसी व्यवसाय को करना तो दूर सोचना भी बन्द कर देते है। नौकरी करने वाले पति अक्सर दूर ही रहते है और कभी कभी ही कन्या राशि वाली पत्नी से मिल पाते है। नौकरी करने का क्षेत्र भी इनके पतियों का बाहर ही रहता है और साल छ: महिने मे इनका मिलना होता है जिससे जो भी आपसी मतभेद होता है वह दूर हो जाता है।
कन्या राशि की पत्नी का स्वभाव कुछ इस प्रकार का होता है कि किसी भी बात मे स्वार्थी और लाभ का भाव पहले देखा जाता है,बेलेंस करने की कला का होना भी होता है,उनेह अपने शरीर से अधिक चेहरे को सम्भालने की बहुत चिन्ता होती है,धन को बढाने के लिये वे किसी साधन की तलास मे हमेशा रहते है और अक्सर इस कार्य को बोली के द्वारा अधिक क्या जाता है,यानी कमाने का क्षेत्र बोलने के द्वारा ही अधिक माना जा सकता है,तुला राशि इस राशि के सामने आती है,वृश्चिक राशि तीसरे भाव मे होने से जो भी कमन्यूकेशन या कार्य शक्ति का उपयोग किया जाता है वह हमेशा गुप्त रूप मे किया जाता है जासूसी की आदत जन्म जात होती है,जब भी कोई बडा काम करने या जिम्मेदारी को निभाने की बात की जाये तो हमेशा कोई न कोई बीमारी का कारण बताकर उससे छुटकारा कर लिया जाता है,दवाइयों अस्पताली कारणो बचत किये जाने वाले धन तथा बीमा आदि के द्वारा पूरा अपने प्रति ख्याल रखा जाता है.अधिकतर पहिनावे मे कत्थई रंगो का अधिक उपयोग किया जाता है.धनु राशि के चौथे भाव मे होने से यह ख्याल हमेशा रहता है कि बडा शानदार घर हो,उस घर मे आने जाने के रास्ते एक नही बल्कि दो दो हों,गाडी आदि के लिये पोर्च भी हो और घनी बस्ती मे मकान का होना भी मिलता है,तीसरे भाव में वृश्चिक राशि होने से पडौसियों से अक्सर मानसिक मुलाकत ही रहती है और एक दूसरे की चुगली वाली बातो से दिक्कत भी आती है अक्सर नाली सडक या किसी प्रकार के अजीब से कारण जैसे टोना टोटका आदि के मामले मे अनबन ही रहती है,कभी कभी तो इन्ही कारणो के कारण मरने मारने की बात भी होती देखी गयी है। तीसरा भाव ही पति भाव से नवा होने के कारण पति के पूर्वजो के निवास को शमशानी क्षेत्र मे बदलने का काम भी माना जाता है अथवा जो पति परिवार की धर्म मर्यादा या रीति रिवाज होते है उनके लिये कोई न कोई अजीब सी बात को पैदा करने के बाद बरबाद भी करते हुये देखा गया है.बुध की राशि मिथुन से जैसे अहसास कराने के लिये माना जाता है वैसे ही बुध की कन्या राशि का स्वभाव मानसिक विरोध पैदा करने के लिये माना जाता है।
कन्या राशि के पंचम भाव मे मकर राशि का असर होने से शनि के गुण सन्तान के अन्दर आजाते है एक बार शिक्षा का टूटना और बाद मे पूरा होना या शादी के बाद शिक्षा को पूरा करना माना जाता है। सन्तान को अपने जीवन साथी को कंधे पर लाद कर चलने वाला भी माना गया है,कारण इस राशि की संतान के अन्दर शनि की रूखी और चालाकी भरी आदत होने के कारण जो भी सन्तान के जीवन साथी होते है वे भावुकता से पूर्ण होते है उनकी भावनाओं की कोई कीमत नही होने के कारण वे अक्सर इस राशि की महिलाओं से दुखी ही रहते है,कारण इस राशि की सन्तान के जीवन साथी के लिये सास हमेशा ही बुरी होती है। पुरुष सन्तान भी अपने को शनि की गिरफ़्त मे आने के कारण अक्सर वह काम कर जाती है जो समाज मे निन्दनीय होते है और स्त्री सन्तान होने के बाद भी अक्सर यही देखा जाता है,भौतिकता मे कितना ही उनके पास बल हो लेकिन सामाजिक बल उनके पास केवल शनि प्रकृति के लोगों से ही होता है बाकी के लिये उनके पास कोई भी परिवार का या समाज का बल नही होता है। कन्या राशि की महिलाओं के छठे भाव मे कुंभ राशि होने से अक्सर इनके लिये मित्रो के भेद जानने और उनकी आय व्यय का ब्यौरा अपने पास रखने से भी माना जा सकता है,यह अपने दिक्कत के समय मे अपने मित्रो को ही प्रयोग मे लाने की कोशिश करते है और मित्रो की भी जान पहिचान अच्छे राजनीतिक लोगों से या पढे लिखे लोगो से होने के कारण उनके काम भी आसानी से निकल जाते है। अचल सम्पत्ति के नाम से उनके पास घर मकान तो कम होते है लेकिन ब्याज से बैंक से बीमा से फ़ायनेन्स से अधिक आय होने की बात भी मानी जा सकती है,सन्तान के द्वारा की गयी कमाई और धन को अधिकतर गुप्त रूप से बनाई जाने वाली जायदाद के रूप मे लगाया जाता है और अक्सर सभी कार्य किस्तो के अन्दर या एक सामयिक अवधि के अन्दर किया जाता है.सन्तान भाव में मकर राशि का प्रभाव होने से एक या दो सन्तान का समय से पहले आक्समिक मृत्यु का कारण भी माना जा सकता है। कन्या राशि के सप्तम मे मीन राशि होने से अक्सर जीवन साथी बडे बडे संस्थानो मे काम करने वाले होते है और उन्हे अपने जन्म स्थान से दूर ही रहना पडता है,जीवन साथी का चुनाव अक्सर जन्म स्थान से दक्षिण-पश्चिम दिशा से ही करना पडता है.पति की कमाई अक्सर लोगो के द्वारा ही होती है और इस राशि के जीवन साथी अक्सर अस्पताली कार्य ब्याज या किराये वाले कार्य बीमा आदि के कार्य लोगों को प्लेसमेंट देने के कार्य सुरक्षा सम्बन्धी कार्य करने जैसे धन की सुरक्षा के कार्य आदि करने के लिये माने जाते है,इस राशि के जीवन साथी भी अपनी अहमियत को धन के रूप मे इसलिये प्रसारित करने के लिये माने जाते है क्योंकि इनके तीसरे भाव मे धन की वृष राशि आती है,यही बात अक्सर इस राशि की स्त्रियों के लिये भी माना जाता है कि वे अपने पैतृक कारणो से अक्सर धन को प्राप्त करने का अवसर प्राप्त करती रहती है,धन की राशि का जिसका मालिक शुक्र है नवे भाव मे होने से धर्म भाग्य मान मर्यादा औकात जीवन का आयाम केवल धन के द्वारा ही देखा जाता है,इसके अलावा उनके लिये जो कार्य विदेश सम्बन्धी होते है वे पाश्चात्य सभ्यता से जुडे माने जाते है और उनके लिये यूरोप जैसी सभ्यता का कारण अपने परिवार मे पैदा करने के लिये भी माना जा सकता है.
Thursday, November 3, 2011
वाल्मीकि रामायण में राहु की माता सिंहिका का वर्णन
प्ल्वमानं तु तं द्रष्टा सिंहिका नाम राक्षसी,
मनसा चिन्तयामास प्रवृद्धा कामरूपिणी।
अद्य दीर्घस्य कालस्य भविष्याम्यहमाशिता,
इदं मम महासत्वं चिरस्य वशमागतम।
इति संचिन्त्य मनसा च्छायामस्य समाक्षिपत,
छायायां गृह्यमाणायां चिन्तयामास वानर:।
समाक्षिप्तोऽस्मि सहसा पंगुकृतपराक्रम:,
प्रतिलोमेन वातेन महानौरिव सागरे।
अर्थ:- हनुमानजी सीताजी की खोज मे जब सागर को पार कर लंका को जा रहे थे तो इच्छानुसार रूप धारण करने वाली विशालकाया सिंहिका नामवाली राक्षसी ने देखा,देखकर वह मन ही मन इस प्रकार विचार करने लगी,आज दीर्घकाल के बाद यह विशाल जीव मेरे वश मे आया है,इसे खा लेने पर बहुत दिनों के लिये मेरा मेट भर जायेगा,अपने ह्रदय मे ऐसा सोच कर उस राक्षसी ने हनुमान जी की छाया पकड ली। छाया पकडी जाने पर वानरवीर हनुमान जी ने सोचा,अहो ! सहसा किसने मुझे पकड लिया, इस पकड के सामने मेरा पराक्रम पंगु हो गया है,जैसे प्रतिकूल हवा चलने पर समुद्र मे जहाज की गति अवरुद्ध हो जाती है,वैसी ही दशा आज मेरी भी हो गयी है।
ज्योतिष अनुसार भावार्थ:- राहु और केतु को ज्योतिष मे छाया ग्रहो के नाम से जाना जाता है.राहु की माता का नाम सिंहिका है,इस वाक्य मे राहु से चौथे भाव का विवरण माना जाता है,राहु की तीसरी द्रिष्टि उसकी हिम्मत चौथी द्रिष्टि उसकी सोच और पंचम द्रिष्टि उसकी कला सप्तम द्रिष्टि जहां केतु स्थापित होता है राहु के द्वारा विरोधी गतिविधि और आठवी द्रिष्टि से मारक गति नवी द्रिष्टि से भूतकाल की बदले वाली नीति के कारको मे माना जाता है.हनुमान जी को कालान्तर से ही मंगल के रूप मे देखा जाता है और मंगल की सेवा के लिये ही हनुमान जी की भक्ति की जाती है.
राहु के द्वारा जब व्यक्ति पर अपना प्रभाव दिया जाता है तो वह एक तरह से अपंग सा हो जाता है,उसे राहु के अन्दर की बाते ही समझ मे आती है और केवल अपने पराक्रम विद्या वेध और भाग्य के प्रति ही उसकी सोच रह जाती है,उसी अपंगता के कारको मे जब उसे यह समझ मे आजाता है कि अमुक समस्या ने उसे जकडा हुआ है तो वह अपने हिम्मत से काम लेने की कोशिश करता है,जैसे जैसे वह समस्या को सुलझाने की कोशिश करता है वैसे वैसे सिंहिका की तरह से समस्या का रूप बडा होता जाता है.अगर व्यक्ति उस समय अपनी बुद्धि को एकत्रित करके रखता है जैसे हनुमानजी को एक ही कार्य का ध्यान था,वह ध्यान केवल सीता जी की खोज के लिये था,अगर उनके भी ध्यान मे कई कारण चल रहे होते तो वह सिंहिका का मुकाबला नही कर पाते,और सिंहिका उनके कार्य के पूरे होने के पहले ही समाप्त कर देती। सिंहिका को समाप्त करने के लिये उन्होने उसे जड से समाप्त करने की कोशिश नही की बल्कि सिंहिका के बहुत ही मुलायम अंगो पर अपना वार किया,जैसे ह्रदय को विदीर्ण करने के लिये उन्हे उसके पेट मे जाना पडा और अपने नाखूनो से उसके ह्रदय को फ़ाड कर बाहर आगये,वह सिंहिका मृत्यु को प्राप्त करने के बाद समुद्र मे गिर पडी। राहु जब किसी समस्या को देता है तो व्यक्ति अपनी बुद्धि से अगर उस समस्या का बहुत ही सूक्ष्म तरीके से निरीक्षण करने के बाद उसका समाधान करने की सोचता है तो वह समस्या से निजात उसी प्रकार से प्राप्त कर सकता है जैसे हनुमान जी ने सिंहिका का वध किया था।
मनसा चिन्तयामास प्रवृद्धा कामरूपिणी।
अद्य दीर्घस्य कालस्य भविष्याम्यहमाशिता,
इदं मम महासत्वं चिरस्य वशमागतम।
इति संचिन्त्य मनसा च्छायामस्य समाक्षिपत,
छायायां गृह्यमाणायां चिन्तयामास वानर:।
समाक्षिप्तोऽस्मि सहसा पंगुकृतपराक्रम:,
प्रतिलोमेन वातेन महानौरिव सागरे।
अर्थ:- हनुमानजी सीताजी की खोज मे जब सागर को पार कर लंका को जा रहे थे तो इच्छानुसार रूप धारण करने वाली विशालकाया सिंहिका नामवाली राक्षसी ने देखा,देखकर वह मन ही मन इस प्रकार विचार करने लगी,आज दीर्घकाल के बाद यह विशाल जीव मेरे वश मे आया है,इसे खा लेने पर बहुत दिनों के लिये मेरा मेट भर जायेगा,अपने ह्रदय मे ऐसा सोच कर उस राक्षसी ने हनुमान जी की छाया पकड ली। छाया पकडी जाने पर वानरवीर हनुमान जी ने सोचा,अहो ! सहसा किसने मुझे पकड लिया, इस पकड के सामने मेरा पराक्रम पंगु हो गया है,जैसे प्रतिकूल हवा चलने पर समुद्र मे जहाज की गति अवरुद्ध हो जाती है,वैसी ही दशा आज मेरी भी हो गयी है।
ज्योतिष अनुसार भावार्थ:- राहु और केतु को ज्योतिष मे छाया ग्रहो के नाम से जाना जाता है.राहु की माता का नाम सिंहिका है,इस वाक्य मे राहु से चौथे भाव का विवरण माना जाता है,राहु की तीसरी द्रिष्टि उसकी हिम्मत चौथी द्रिष्टि उसकी सोच और पंचम द्रिष्टि उसकी कला सप्तम द्रिष्टि जहां केतु स्थापित होता है राहु के द्वारा विरोधी गतिविधि और आठवी द्रिष्टि से मारक गति नवी द्रिष्टि से भूतकाल की बदले वाली नीति के कारको मे माना जाता है.हनुमान जी को कालान्तर से ही मंगल के रूप मे देखा जाता है और मंगल की सेवा के लिये ही हनुमान जी की भक्ति की जाती है.
राहु के द्वारा जब व्यक्ति पर अपना प्रभाव दिया जाता है तो वह एक तरह से अपंग सा हो जाता है,उसे राहु के अन्दर की बाते ही समझ मे आती है और केवल अपने पराक्रम विद्या वेध और भाग्य के प्रति ही उसकी सोच रह जाती है,उसी अपंगता के कारको मे जब उसे यह समझ मे आजाता है कि अमुक समस्या ने उसे जकडा हुआ है तो वह अपने हिम्मत से काम लेने की कोशिश करता है,जैसे जैसे वह समस्या को सुलझाने की कोशिश करता है वैसे वैसे सिंहिका की तरह से समस्या का रूप बडा होता जाता है.अगर व्यक्ति उस समय अपनी बुद्धि को एकत्रित करके रखता है जैसे हनुमानजी को एक ही कार्य का ध्यान था,वह ध्यान केवल सीता जी की खोज के लिये था,अगर उनके भी ध्यान मे कई कारण चल रहे होते तो वह सिंहिका का मुकाबला नही कर पाते,और सिंहिका उनके कार्य के पूरे होने के पहले ही समाप्त कर देती। सिंहिका को समाप्त करने के लिये उन्होने उसे जड से समाप्त करने की कोशिश नही की बल्कि सिंहिका के बहुत ही मुलायम अंगो पर अपना वार किया,जैसे ह्रदय को विदीर्ण करने के लिये उन्हे उसके पेट मे जाना पडा और अपने नाखूनो से उसके ह्रदय को फ़ाड कर बाहर आगये,वह सिंहिका मृत्यु को प्राप्त करने के बाद समुद्र मे गिर पडी। राहु जब किसी समस्या को देता है तो व्यक्ति अपनी बुद्धि से अगर उस समस्या का बहुत ही सूक्ष्म तरीके से निरीक्षण करने के बाद उसका समाधान करने की सोचता है तो वह समस्या से निजात उसी प्रकार से प्राप्त कर सकता है जैसे हनुमान जी ने सिंहिका का वध किया था।
चिन्ता सांपिन केहि नहिं खाया,को जग जाहि न व्यापी माया.
प्रस्तुत कुंडली कन्या लगन की है और स्वामी बुध छठे भाव मे विराजमान है,दूसरे भाव मे चन्द्रमा है जो तुला राशि का है तीसरे भाव मे राहु वृश्चिक राशि का है पंचम भाव मे मंगल है जो मकर राशि का है सप्तम मे सूर्य और बुध अष्टम मे शुक्र नवे भाव मे केतु और दसवे भाव मे मिथुन राशि का शनि है.राहु और केतु के बीच मे जितने भी ग्रह होते है वे सभी जैसे एक सांप के पेट मे उसके खाये हुये जीव जन्तुओं जैसे माने जाते है.राहु के पास वाले ग्रह खतरे मे होते है और केतु के पास वाले ग्रह सुरक्षित होते है.लेकिन राहु अपने काल चक्र के अनुसार सभी ग्रहों पर अपना धावा बोलता है,धावा बोलने के समय मे अगर ग्रह वक्री हो जाता है तो बच जाता है और अगर वह अस्त है तो भी राहु उसके पास से निकल जाता है,मंगल की राशि मे ग्रह है तो बच जाता है,और यह मंगल पर द्रिष्टि से अपना प्रभाव डालता है तो मंगल भी राहु के अनुसार अपने कार्य करने लगता है लेकिन मंगल जब राहु को देखताहै तो वह एक गुलाम की तरह से अपना काम करने लगता है.जिस ग्रह को शनि देखता है या अपनी युति रखता है वह अगर शनि की चौथी और दसवी द्रिष्टि से ग्रस्त है तो राहु को उसे पचाने मे कोई दिक्कत नही होती है लेकिन शनि जिस ग्रह को तीसरे और पांचवे तथा सातवी नजर से देखता है वह राहु को पचाना भारी पड जाता है.सभी को पता है कि गुरु हवा का कारक है सूर्य रोशनी और ताप दोनो का कारक है चन्द्रमा पानी का कारक है,मंगल आग के गर्म पिंड के समान है,बुध जिसके साथ है या जिस भाव मे है उसी के जैसा हो जाता है शुक्र सजावट और द्रव्य पदार्थो मे बदले हुये रूप का कारक है,शनि ठण्डी वायु और काली मिट्टी का कारक माना जाता है.गुरु से पिछली राशि जातक का पिछला जन्म और गुरु से अगली राशि जातक का अगला जन्म माना जाता है। राहु से आगे की राशि जातक के पिछले जन्म मे मृत्यु का कारण और राहु से पीछे के राशि आगे के जन्म मे मृत्यु का कारण तथा राहु के स्थान को वर्तमान के जन्म मे मृत्यु का कारण माना गया है.राहु किये जाने वाले प्रयास का कारक है और केतु उन प्रयासो के लिये दिये जाने वाले साधनो का कारक है.राहु जिस भाव मे उसी भाव का और जिस राशि मे है उसी राशि का प्रभाव आजीवन देता है.गोचर से राहु जिस जिस भाव राशि ग्रह के साथ गुजरता जाता है उसी के प्रति जन्म के समय के राशि और भाव का प्रभाव प्रकट करता चला जाता है। केतु का स्वभाव विपरीत माना जाता है जहां जहां राहु अपने असर से दिक्कत पैदा करता चला जाता है वहीं वहीं केतु अपने गोचर से उसे ठीक भी करता चला जाता है,अगर राहु मार कर जाता है तो केतु उसी रूप को किसी न किसी रूप मे पैदा करके जाता है राहु अगर घर को जला कर जायेगा तो केतु नया घर बनाकर जायेगा,राहु अगर भटका कर जायेगा तो केतु उसे स्थापित करके जायेगा। यह समय चक्र लगभग एक सौ आठ महिने का होता है.राहु अपने स्वभाव से चन्द्रमा के साथ चिन्ता को देने वाला होता है मंगल के साथ खून मे इन्फ़ेक्सन को पैदा करता है गुरु के साथ सांस सम्बन्धी बीमारी को देता है बुध के साथ बहुत सारे दिमागी भ्रम भरने के बाद प्रसारण का कारण देता है अच्छे भाव मे है तो अच्छा और बुरे भाव मे है तो बुरा प्रभाव देता है,शुक्र के साथ भौतिक सम्पत्तियों और स्त्रियों के प्रति नशा देता है,शनि के साथ काली आंधी के रूप मे कार्यों और व्यवहार मे अपने को प्रस्तुत करता है.शुक्र के साथ माया का प्रभाव जोडता है और चन्द्रमा के साथ चिन्ता का कारण बनाता है,माया के वशीभूत होकर प्राणी अपने जीवन की गति को भूल कर अजीब से माहौल मे अपने को लगाकर भुला देता है कि वह है क्या और चिन्ता के कारण उसे यह भी पता नही होता है कि उसके जीवन का वास्तविक अर्थ क्या है.गोस्वामी तुलसीदास की रामचरित मानस की चौपाई इसी भाव को पैदा करने के बाद लिखी गयी थी.
Wednesday, November 2, 2011
Nature of Stars.
ज्योतिष में ग्रह की प्रकृति को समझना बहुत जरूरी होता है वैदिक ज्योतिष में बहुत से कारण केवल ग्रह की प्रकृति को जानने के बाद ही पता चलते है.अनंत ब्रह्माण्ड से बारह रश्मिया मिलाती है यह मानुष के जीवन को जन्म से मौत तक प्रारब्ध के अनुसार प्रभावित करती है,इन्ही रश्मियों की अधिकता और कमी से शरीर में मन में और खुद के जीवन में कमी भी आती है बढ़ोत्तरी भी होती है,शरीर स्वस्थ भी रहताहै और बीमार भी होता है व्यक्ति धनी भी बनाता है और निर्धन भी हो जाता है,कालपुरुष के अनुसार केंद्र में चारो ही राशिया चार राशिया होती है,इनके अन्दर ग्रह उच्च का होता है तो जीवन उन्नत हो जाता है ग्रह इनके अन्दर नीच का होता है तो जीवन संघर्षमय हो जाता है.जो त्रिकोण जीवन के प्रति मिलते है उनके अन्दर पहला त्रिकोण मेष सिंह और धनु राशि का है कुंडली में यह त्रिकोण जहां भी उपस्थित होता है वह धनात्मक प्रभाव को देने वाला होता है,इसी प्रकार से मिथुन तुला और कुम्भ का त्रिकोण भी धनात्म होता है,कर्क वृश्चिक और मीन राशिओं का त्रिकोण नकारात्मक है,वृष कन्या और मकर का त्रिकोण भी नकारात्मक प्रभाव को देने वाला है,इस प्रकार से राशियों में छः राशिया धनाताम्क है और छः राशिया नकारात्मक प्रभाव देने वाली है,यही प्रकार जीवन में उतार चढ़ाव देने वाले माने जाते है.लेकिन कभी कभी ग्रह उच्च के होने और नीच के होने से वक्री होने से अस्त होने से मार्गी होने से और भी कठिन दुःख सुख मिलाने शुरू हो जाते है.सबसे पहले सूर्य के बारे में जानने की कोशिश करते है.
सूर्य
सूर्य जगत का पिता है इसी की शक्ति से समस्त ग्रह चलायमान है यह आत्मा का कारक है और पिता तथा पुत्र के बारे में सूचित करता है,पुत्र राज्य सम्मान पद बड़ा भाई शक्ति दाहिनी आँख अस्पताली कारण इलाज के लिए किये जाने वाले उपाय आत्मा के साथ पूर्वजो के लिए किये जाने वाले कारण और उपाय भगवान शिव की भक्ति राजनीति में जाने और राजनीति में दखल देने कारण भी सूर्य से ही जाने जाते है.पहले भाव में अहम् देता है लेकिन नकारात्मक राशि में जाकर हीन भावना को पैदा करता है, राहू के साथ जाकर अँधेरे में चला जाता है और किये जाने वाले कार्य और काया पर दाग देता है आत्मा को गंदा बना देता है केतु के साथ जाकर अपने को लोगो के हित में जाने का शौक तो होता है लेकिन आसपास के माहौल और घरेलू परिवेश में वह किसी न किसी प्रकार से क्लेश देने का कारक भी बन जाता है.
Tuesday, November 1, 2011
रत्न के प्रभाव और दुष्प्रभाव
तीन प्रकार के रत्नो का प्रयोग आमतौर पर लोग करते है,शरीर के लिये परिवार और सन्तान के लिये तथा भाग्य के लिये,यही कारण प्राण रक्षा के लिये बुद्धि के विकास के लिये और समय पर कार्य हो जाने के लिये भी माना जाता है। आमतौर पर एक ही रत्न को लोग पहिनने की राय देते है,और उस रत्न के पहिनने के बाद कुछ सीमा मे फ़ायदा और कुछ सीमा मे नुकसान होने की बात से भी मना नही किया जा सकता है।
यह शरीर पंच भूतों से बना है और इन्ही के अधिकार मे सम्पूर्ण जीवन का विस्तार होता है। इन पंचभूतो मे किसी भी भूत की कमी या अधिकता जीवन के विस्तार मे अपने अपने प्रकार से दिक्कत देने के लिये अपना प्रभाव देने लगते है। ग्रहों के दो प्रकार सूर्य और चन्द्रमा के साथ देखे जाते है,जैसे मेष राशि का स्वामी मंगल है तो वह लगनेश के लिये मूंगा को पहिनने का कारक बनता है जो शरीर और प्राण रक्षा के लिये अपना प्रभाव देता है,लेकिन उसका असर धन के प्रति सही नही माना जा सकता है जैसे मंगल और शुक्र मे आपस मे नही बनती है,उसी प्रकार से बुध के साथ भी मंगल की नही बनती है,चन्द्रमा के साथ बराबर का असर रहता है सूर्य के साथ उसकी बहुत अधिक बढोत्तरी हो जाती है गुरु के साथ होने से अहम की मात्रा बढ जाती है और शनि के साथ मिलने से कसाई जैसी प्रकृति बन जाती है। तो मूंगा मेष लगन वालो के लिये धन व्यवहार कार्य जीवन साथी उन्नति के साधनो मे तो गलत असर देगा और शरीर मन आयु के साथ भलाई करेगा,अहम ज्ञान और शांति के साधनो मे बढोत्तरी करने से दिक्कत देने वाला बनेगा। अगर शनि लगन मे ही विराजमान है तो वह सिर दर्द की बीमारी देगा और जो भी सोचा जाता है उसके लिये अपनी तर्क शक्ति के विकास होने से तर्क वितर्क करने से होते हुये कार्य को भी बिगाडने की कोशिश करेगा। कार्य तकनीकी बन जायेगा और जो भी कार्य होगा वह मनुष्य शक्ति के अन्दर ही माना जायेगा जैसे शरीर विज्ञान मे रुचि,जो भी कार्य किया जायेगा उसके अन्दर नये नये आविष्कार होने के कारण कार्यों के अन्दर कठिनाई आने लगेगी,एक भाई को बहुत ही कठिनाई केवल इसलिये हो जायेगी कि वह परिवार मे सामजस्य बनाने की कोशिश करेगा और तामसी कारण बढ जाने से परिवार मे अशान्ति का माहौल बना रहेगा। युवावस्था मे अपनी ही चलाने के कारण घर के लोगो से दूरिया बन जायेंगी और विरोधी युवावस्था के बाद हावी हो जायेंगे,दुश्मनी अधिक बन जायेगी और जो भला भी करना चाहेंगे वे डर की बजह से दूर होते चले जायेंगे नाक पर गुस्सा होगा,यानी जरा सी बात का बतंगड बनाने में देर नही लगेगी। यही मंगल जब राहु पर गोचर से अपना असर दिखायेगा या जन्म के समय से ही राहु के सानिध्य मे होगा तो मूंगा का असर दिमाग को पहिया की तरह से घुमाने से बाज नही आयेगा,क्या कहना है किससे कैसे बात करनी है यह सोच विचार बिलकुल ही खत्म हो जायेगी,पारिवारिक कारणो मे भी अक्सर पैतृक सम्पत्ति के पीछे नये नये विवाद बनते जायेंगे और घर के सदस्य ही किसी न किसी प्रकार की घात लगाने लगेंगे,व्यवहार भी तानाशाही जैसा बन जायेगा,जो भी बात की जायेगी वह हुकुम जैसी होगी,इस बात का असर भाई पर भी जायेगा और वह अधिक चिन्ता के कारण या आन्तरिक दुश्मनी से दुर्घटना का शिकार भी हो जायेगा,अगर व्यक्ति का बडा भाई भी है तो उसकी चलेगी नही या मूंगा को धारण करने के बाद वह घर से अलग हो जायेगा,अधिक सोच के कारण से व्यक्ति के अन्दर ब्लड प्रेसर की बीमारी पैदा हो जायेगी। किसी प्रकार से मंगल की युति कुंडली मे केतु से है तो स्त्री जातक के लिये परेशानी का कारण बन जायेगा यानी पति का व्यवहार बिलकुल सन्यासी जैसा हो जायेगा,वह अकेला बैठ कर जाने क्या क्या सोचने लगेगा और दूर रहकर ही अपने जीवन को बिताने का कारण सोचने लगेगा,पति का इन्तजार पत्नी को और पत्नी का इन्तजार पति को रहेगा दोनो कभी इकट्ठे नही रह पायेंगे और रहेंगे भी तो जैसे कुत्ते बिल्ली लडते है वैसे आपस के विचारों की लडाई शुरु हो जायेगी,केतु के साथ मंगल के होने से कुंडली में मंगल दोष भले ही नही हो लेकिन मूंगा को पहिनने के बाद जबरदस्ती मे मंगली दोष को पैदा कर लिया जायेगा,शादी मे देरी हो जायेगी,घर मे किसी को भी मानसिक बीमारी पैदा हो सकती है लो ब्लड प्रेसर की बीमारी भी पैदा हो सकती है। अगर दो तीन भाई है तो एक तो किसी प्रकार से अनैतिक कार्यों की तरफ़ भागने लगेगा,और दूसरा किसी प्रकार से घर को त्याग कर ही चला जायेगा,इसलिये मेष लगन मे अगर केतु है और मंगल नीच का प्रभाव दे रहा है तो मूंगा कैसे भी नही पहिने। यहां मेष लगन वाले को शरीर और प्राण रक्षा के लिये हल्का पीला गोमेद पहिनना ही ठीक रहेगा। इसी प्रकार से बुध आदि ग्रहों के लिये कितना फ़ायदा देने वाला और कितना नुकसान देने वाला है उसी के अनुसार ही रत्न को पहिनना उचित माना जा सकता है।
यह शरीर पंच भूतों से बना है और इन्ही के अधिकार मे सम्पूर्ण जीवन का विस्तार होता है। इन पंचभूतो मे किसी भी भूत की कमी या अधिकता जीवन के विस्तार मे अपने अपने प्रकार से दिक्कत देने के लिये अपना प्रभाव देने लगते है। ग्रहों के दो प्रकार सूर्य और चन्द्रमा के साथ देखे जाते है,जैसे मेष राशि का स्वामी मंगल है तो वह लगनेश के लिये मूंगा को पहिनने का कारक बनता है जो शरीर और प्राण रक्षा के लिये अपना प्रभाव देता है,लेकिन उसका असर धन के प्रति सही नही माना जा सकता है जैसे मंगल और शुक्र मे आपस मे नही बनती है,उसी प्रकार से बुध के साथ भी मंगल की नही बनती है,चन्द्रमा के साथ बराबर का असर रहता है सूर्य के साथ उसकी बहुत अधिक बढोत्तरी हो जाती है गुरु के साथ होने से अहम की मात्रा बढ जाती है और शनि के साथ मिलने से कसाई जैसी प्रकृति बन जाती है। तो मूंगा मेष लगन वालो के लिये धन व्यवहार कार्य जीवन साथी उन्नति के साधनो मे तो गलत असर देगा और शरीर मन आयु के साथ भलाई करेगा,अहम ज्ञान और शांति के साधनो मे बढोत्तरी करने से दिक्कत देने वाला बनेगा। अगर शनि लगन मे ही विराजमान है तो वह सिर दर्द की बीमारी देगा और जो भी सोचा जाता है उसके लिये अपनी तर्क शक्ति के विकास होने से तर्क वितर्क करने से होते हुये कार्य को भी बिगाडने की कोशिश करेगा। कार्य तकनीकी बन जायेगा और जो भी कार्य होगा वह मनुष्य शक्ति के अन्दर ही माना जायेगा जैसे शरीर विज्ञान मे रुचि,जो भी कार्य किया जायेगा उसके अन्दर नये नये आविष्कार होने के कारण कार्यों के अन्दर कठिनाई आने लगेगी,एक भाई को बहुत ही कठिनाई केवल इसलिये हो जायेगी कि वह परिवार मे सामजस्य बनाने की कोशिश करेगा और तामसी कारण बढ जाने से परिवार मे अशान्ति का माहौल बना रहेगा। युवावस्था मे अपनी ही चलाने के कारण घर के लोगो से दूरिया बन जायेंगी और विरोधी युवावस्था के बाद हावी हो जायेंगे,दुश्मनी अधिक बन जायेगी और जो भला भी करना चाहेंगे वे डर की बजह से दूर होते चले जायेंगे नाक पर गुस्सा होगा,यानी जरा सी बात का बतंगड बनाने में देर नही लगेगी। यही मंगल जब राहु पर गोचर से अपना असर दिखायेगा या जन्म के समय से ही राहु के सानिध्य मे होगा तो मूंगा का असर दिमाग को पहिया की तरह से घुमाने से बाज नही आयेगा,क्या कहना है किससे कैसे बात करनी है यह सोच विचार बिलकुल ही खत्म हो जायेगी,पारिवारिक कारणो मे भी अक्सर पैतृक सम्पत्ति के पीछे नये नये विवाद बनते जायेंगे और घर के सदस्य ही किसी न किसी प्रकार की घात लगाने लगेंगे,व्यवहार भी तानाशाही जैसा बन जायेगा,जो भी बात की जायेगी वह हुकुम जैसी होगी,इस बात का असर भाई पर भी जायेगा और वह अधिक चिन्ता के कारण या आन्तरिक दुश्मनी से दुर्घटना का शिकार भी हो जायेगा,अगर व्यक्ति का बडा भाई भी है तो उसकी चलेगी नही या मूंगा को धारण करने के बाद वह घर से अलग हो जायेगा,अधिक सोच के कारण से व्यक्ति के अन्दर ब्लड प्रेसर की बीमारी पैदा हो जायेगी। किसी प्रकार से मंगल की युति कुंडली मे केतु से है तो स्त्री जातक के लिये परेशानी का कारण बन जायेगा यानी पति का व्यवहार बिलकुल सन्यासी जैसा हो जायेगा,वह अकेला बैठ कर जाने क्या क्या सोचने लगेगा और दूर रहकर ही अपने जीवन को बिताने का कारण सोचने लगेगा,पति का इन्तजार पत्नी को और पत्नी का इन्तजार पति को रहेगा दोनो कभी इकट्ठे नही रह पायेंगे और रहेंगे भी तो जैसे कुत्ते बिल्ली लडते है वैसे आपस के विचारों की लडाई शुरु हो जायेगी,केतु के साथ मंगल के होने से कुंडली में मंगल दोष भले ही नही हो लेकिन मूंगा को पहिनने के बाद जबरदस्ती मे मंगली दोष को पैदा कर लिया जायेगा,शादी मे देरी हो जायेगी,घर मे किसी को भी मानसिक बीमारी पैदा हो सकती है लो ब्लड प्रेसर की बीमारी भी पैदा हो सकती है। अगर दो तीन भाई है तो एक तो किसी प्रकार से अनैतिक कार्यों की तरफ़ भागने लगेगा,और दूसरा किसी प्रकार से घर को त्याग कर ही चला जायेगा,इसलिये मेष लगन मे अगर केतु है और मंगल नीच का प्रभाव दे रहा है तो मूंगा कैसे भी नही पहिने। यहां मेष लगन वाले को शरीर और प्राण रक्षा के लिये हल्का पीला गोमेद पहिनना ही ठीक रहेगा। इसी प्रकार से बुध आदि ग्रहों के लिये कितना फ़ायदा देने वाला और कितना नुकसान देने वाला है उसी के अनुसार ही रत्न को पहिनना उचित माना जा सकता है।
दस खरीदेगा,ग्यारह पकायेगा तब बारह खायेगा !
वृष कन्या और मकर को एक त्रिकोण मे देखा जाता है और कार्य का त्रिकोण कहा जाता है। वृष और कन्या की निगाह मकर पर ही होती है,इस राशि मे या तो वृष यानी धन से पहुंचा जा सकता है या कन्या यानी सेवा से पहुंचा जा सकता है। बिना दोनो के प्रभाव के मकर तक पहुंचा ही नही जा सकता है। अर्थात मकर राशि वाले जातक से दोस्ती करनी है तो पहले वृष को पकडना पडेगा या कन्या का सहारा लेना पडेगा। बात एक जगह पर ही आ सकती है या तो चैक या जैक,चैक तो दमडी से और जैक चमडी से इन्हे घिसने के बाद ही मकर अपने क्षेत्र मे प्रवेश करने का अवसर देगा। यह बात उन लोगो के लिये है जो राज्य मे प्रवेश करना चाहते है और उन्हे राजनीति मे प्रवेश का कारण नही मिलता है। इन दोनो मे से एक का भी सहारा लिया जाता है तो मकर यानी राज्य अपने मे आने का अवसर प्रदान कर देता है। यही बात अगर साधारण रूप से देखी जाये तो मकर को बाजार कहा गया है,बाजार से कोई भी वस्तु प्राप्त करने के लिये या तो धन की जरूरत होती है या सेवा के द्वारा प्राप्त धन से बाजार से वस्तु को प्राप्त करना होता है,बिना इन दोनो के बाजार मे जाने और वहां से वस्तु को प्राप्त करने का कोई कारण ही नही बनता है,बाजार से आटा लाया जायेगा तो ग्यारहवां भाव उसे पकाकर देगा उसके बाद ही बारहवा भाव उस आटे से बनी रोटियों को खाने के लिये देगा। यानी उस बाजार की कीमत को बारहवे भाव मे ही आकर समाप्त करना होगा। यह बात शेयर बाजार मे रुचि रखने वाले लोगो के लिये भी देखी जाती है,मकर राशि अगर उनकी प्रबल है और कोई भी सशक्त ग्रह उसकी कुंडली में मकर राशि को बलवान बना रहा है तो वह व्यक्ति शेयर बाजार मे उन्नति कर जाता है,यानी उसके पास धन जो वृष राशि का कारक है साथ ही उसे बैंकिंग का ज्ञान है यानी कन्या राशि प्रबल है और उसके बाद वह बाजार का रास्ता जानता है और बाजार मे उसकी अच्छी साख है तो वह शेयर और जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र मे बहुत ही जल्दी सफ़ल हो सकता है। बाजार से जो लाया गया है उसे अगर ग्यारहवे ने अच्छी तरह से पकाया है तो बारहवे में खाने के बाद वह पका हुआ नुकसान नही देगा,यानी जो बारहवा खायेगा उसे सीधे से लेकर छठे मे पहुंचा देगा। पचाने के बाद अगर वह सही रूप से छठे मे जा पहुंचा है तो वह जरूर ही दोबारा से दसवे की राह को पकडने के लिये आसान रहेगा,अगर वह सही पचा ही नही है और बजाय बारहवे के पहुंचने के चौथे मे जाकर टकरा गया है या अष्टम मे जाकर बैठ गया है तो या तो वह पचाया गया घरेलू खर्चो मे जा बैठेगा जो कभे भी वापस नही आयेगा और अष्टम की युति होने से वह रिस्क ही मानी जायेगी,वहां से निकला और नही निकला तो फ़जीहत बाजार मे भी है और दूसरा भी बेरुखी से सीधा रास्ता छठे के लिये दिखाने मे कोई कसर नही छोडेगा,अगर छठे ने हेल्प नही की तो बात साफ़ है कि अष्टम गाली गलौज भी करेगा और सरे बाजार बेइज्जती भी करेगा। इस बात को अगर ध्यान से देखा जाये तो ग्यारहवे से पकाया गया अगर बारहवे में जाकर तरीके से रखा गया है जैसे खर्च करने के लिये वह धन सेवा के कारको में दिया गया है और बैंक आदि मे जमा किया गया है तो दसवा सशक्त हो जायेगा और उसे अगर सीधा सा ले जाकर घर मे दे दिया है तो वह या तो अचल सम्पत्ति या मकान आदि बनवाने के लिये या वाहन आदि खरीदने के मदो मे जाकर खर्च हो जायेगा,वह जो खर्च हुआ है वह रिस्क मे ही माना जायेगा,यानी समय पर अगर वाहन या मकान ने अपनी कीमत नही दी तो जहां से रिस्क लेने की बात होती है वह भी अगर सफ़ल नही हुआ तो बाजार मे दिक्कत तो आनी ही है,न तो खरीदा जा सकता है और न ही पकाया जा सकता है और न ही पकाकर खाया जा सकता है।
मंगल के प्रति फ़लादेश
वर्तमान मे मंगल का गोचर सूर्य की राशि मे शुरु हो गया है,यह कारण सरकारी क्षेत्र मे और राजनीति में जिद्दी होने की बात को प्रकट करता है,सबसे पहले जिद्दी शब्द की व्याख्या करना जरूरी है। जब किसी कार्य मे परेशानी का कारण पैदा होने लगता है तो उस कार्य को जबरदस्ती करने की दिमाग मे आती है,बाकी के सभी कार्य छोड कर एक ही कार्य करने की जिद दिमाग मे पैदा हो जाती है। इससे व्यक्ति रूप मे भी दिमाग मे जिद्दीपन आजाता है,और व्यक्ति के आसपास के जो कार्य होते है उनके अन्दर परेशानी का कारण पैदा होना शुरु हो जाता है। काल पुरुष के अनुसार मंगल का स्थान संतान परिवार विद्या बुद्धि मनोरंजन जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र खेलकूद के प्रति की जाने वाली भावना माता के परिवार माता के धन पिता के द्वारा रिस्क लेकर किये जाने वाले कार्य जीवन साथी के मित्र आदि के भाव मे इस मंगल का गोचर करना माना जाता है। इन सभी कारणो मे किसी न किसी प्रकार की उत्तेजना के कारण दिक्कत का होना माना जा सकता है। इन कारणो मे सरकार का परिवार का सन्तान का और इसी प्रकार के कारको का मानसिक तनाव भी माना जा सकता है। इन्ही क्षेत्रो मे कार्य करने वाले लोग किसी न किसी प्रकार से आहत भी होते है और चोट आदि के द्वारा दिक्कत भी उठाते है। मंगल खून की गर्मी का कारक है इस कारण से गुस्सा का बढना भी माना जाता है,जब कोई बढचढ कर बात करने के लिये अपनी मानसिकता को आगे रखता है या ताव खाता है तो अभिमान की मात्रा बढने से लडाई झगडे की नौबत भी आजाती है। अगर जातक की कुंडली में सूर्य भी इसी स्थान मे है तो जातक के पिता के प्रति यही धारणा मानी जा सकती है पुत्र के प्रति भी यही कारण माना जा सकता है इन दोनो को किसी प्रकार चोट आदि से पेट सम्बन्धी दिक्कत का होना भी माना जा सकता है.अगर इस भाव मे चन्द्रमा है तो जातक की माता को परेशानी का कारण पैदा होता है जनता के अन्दर किसी न किसी बात पर गुस्सा आता है और तोड फ़ोड जैसे कारण पैदा हो जाते है। शासन मे कोई स्त्री शासक यात्रा आदि मे अपने बिजी रखता है,परिवार मे भाई की यात्रा का कारण भी माना जा सकता है,इस युति से उतावलापन भी देखने को मिलता है। अगर इसी स्थान मे बुध है तो मानसिक अशान्ति और और दुश्मनी मे बढोत्तरी होने लगती है जो मित्र होते है वह भी अधिक अभिमान या अहम के कारण शत्रु बनने लगते है,पेट सम्बन्धी बीमारी का होना भी माना जा सकता है। अगर इस भाव मे गुरु के साथ मंगल का गोचर होता है तो जातक के अन्दर जितनी विद्या है उससे अधिक बात करने का कारण बनता है और कार्य के अन्दर जाकर वह झूठा अहम खत्म हो जाता है इसलिए अपमान भी होता है और अगर स्त्री की कुंडली मे यह युति बनती है तो उसके पति का यात्रा वाला या स्थान परिवर्तन का योग बनता है। वैसे उन्नति का समय भी माना जा सकता है। गोचर से जब मंगल इस भाव मे शुक्र पर आता है तो जान पहिचान मे बढोत्तरी होने की बात भी मिलती है सम्बन्धी घर आने लगते है,उत्सव आदि होने की बात भी होती है स्त्री जातक की कुंडली मे पति को लाभ होता है और भाई को किसी स्त्री से जान पहिचान का कारण भी माना जा सकता है। यही मंगल जब शनि पर गोचर करता है तो नौकरी आदि मे परेशानी देने का कारण बनता है किसी उच्च अधिकारी से मनमुटाव हो जाता है और धन की भी हानि होने का कारण बनता है यह बात अक्सर कार्य के अन्दर अधिक तकनीक लगाने और अपनी बात को उत्तेजना मे आगे रखने का कारण बनता है,यही पर राहु का असर होता है तो जातक के भाई पर परेशानी का कारण पैदा होता है जिद मे बढोत्तरी होती है पेट के अन्दर गैस का बनना और पाचन क्रिया का खराब होना भी माना जा सकता है,केतु के साथ मंगल का गोचर होने से भाई के अक्समात धार्मिक बनने की बात भी मानी जा सकती है या पति का किसी प्रकार से धर्म के प्रति लगाव शुरु हो जाता है।