Saturday, December 31, 2011

शेयर बाजार और सोने में तेजी मंदी.2012

  • शेयर बाजार की तेजी शनि के वक्री होने के बाद होती है.आने वाली आठ फ़रवरी दो हजार बारह से शेयर बाजार में तेजी शुरु होगी और यह तेजी लगातार पच्चीस जून दो हजार बारह तक रहेगी।
  • शेयर बाजार की मन्दी शनि के मार्गी होने के दो माह बाद होती है इसलिये शेयर बाजार की मन्दी छ्बीस अगस्त दो हजार बारह से शुरु होगी,लेकिन बाकी की ग्रह युति इस साल में शेयर बाजार मे लगातार तेजी को बनाये रखने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगी,जैसे बुध वक्री,शनि मंगल का साथ शानि राहु का साथ शेयर बाजार को तेज रखता है.
  • वक्री बुध शेयर बाजार में तेजी लाता है इसलिये 15 जुलाई 2012 से तेजी शुरु होगी और 9 अगस्त 2012 तक तेजी रहेगी.
  • शनि मंगल का साथ आने वाले 15 अगस्त 2012 से होगा,शनि मंगल की यह युति 28 सितम्बर तक रहेगी.
  • सात नवम्बर दो हजार बारह से बुध वक्री होगा,इस समय से भी तेजी होने का आसार है,जो सत्ताइस नवम्बर दो हजार बारह तक तेजी को रखने के लिये कायम होगा.आगे शनि राहु की युति शेयर बाजार को तेज रखने के लिये अपने प्रभाव को जारी रखेगी.
  • बुध अस्त समय मे मन्दी का कारक होता है.
  • मंगल के वक्री होने के समय सोने में तेजी आती है,यह समय 24 जनवरी 2012 से शुरु होगा और सोना चढता चला जायेगा,यह तेजी आने वाले 14 अप्रैल 2012 तक लगातार जारी रहेगी.

भूत का निर्माण

लोगो की राय होती है कि भूत को नही बनाया जा सकता है भविष्य को बनाने के लिये वर्तमान का उपयोग करना चाहिये.लेकिन वर्तमान बिना भूत के पैसा कैसे हो जायेगा ? आज का वर्तमान कल का भूत बन जायेगा.भविष्य को जानने के लिये बडे बडे ज्ञानी ध्यानी आ गये लेकिन भविष्य को नही देख पाये केवल भूत के कारको से वर्तमान को बनाते रहे। भूत बहुत बडी उपयोगिता भी है और वर्तमान का साधन भी है,बिना भूत के वर्तमान के साधन बन ही नही सकते है,यानी समय को भी देखा जाये तो श्रेणीक्रम से बिना दो हजार ग्यारह गये दो हजार बारह आ भी नही सकती है और बिना व्यक्ति के क्रम मे देखा जाये तो बिना बाप के बेटा पैदा कैसे हो सकता है।अगर भूत को बनाया जायेगा तो भविष्य जरूर बन जायेगा अगर भूत को भुला दिया गया तो भविष्य वास्तव मे ही पता नही कैसा होगा। भूत कैसे बन सकता है,वर्तमान तो बन सकता है लेकिन लेकिन भूत जो कल चला गया है कैसे बन सकता है? वास्तव मे बात तो बहुत ही कठिन है नाई ने जो बाल काट दिये है वह वापस कैसे सुधारे जा सकते है जो कल मर गये है वे वापस आज कैसे जिन्दा किये जा सकते है,कल जो मकान गिरा दिया गया था वह कैसे खडा किया जा सकता है। कल जो कहा गया था वह आज कैसे चुप मे बदला जा सकता है,पता नही इसी प्रकार के सवाल आकर सामने खडे होकर मुस्कराने लगेंगे,कहिये क्या जबाब है तुम्हारे पास,इसी प्रकार से भूत को बनाने का जिम्मा ले रहे थे ! अब बनाओ कैसे बनाते हो भूत को ? हम से बडे बडे घबडाते है,रात को कैसी भी छाया दिख भर जाये लोगो की घिग्घी बन्ध जाती है,भूत को उतारने के लिये बडे बडे पीर फ़कीरो और भगतों के पसीने आ जाते है,फ़िर भी अपनी मर्जी से उतरता हूँ,मुझे भूत कहते है? इतनी सी बात सुनकर वास्तव मे मुझे भी पसीना आ गया,यह भूत कैसे बनेगा,मरा हुआ कैसे जिन्दा होगा? अक्समात ही भगवान श्रीकृष्ण की बात याद आ जाती है,मरता तो शरीर है आत्मा तो जिन्दा ही रहती है आत्मा कभी मरती ही नही है। हाँ वह आत्मा अगर मिल जाये तो उसे नये शरीर में डाल दिया जाये,लेकिन शरीर भी तो बिना भूत के कैसे बन सकता है? फ़िर जरूरत पड गयी भूत की! भूत का मतलब अलग ही है,पंचभूत ! यह शरीर भी पंचभूत का बना है,इन भूतो के अन्दर आग भी है पानी भी है हवा भी है पृथ्वी भी है,आकाश भी है,सब कुछ पकडा जा सकता है लेकिन आकाश नही पकडा जा सकता है। जैसे ही पकडने की कोशिश की जायेगी,मुँह के बल धडाम से जमीन पर गिरना पडेगा,हो सकता है आकाश को पकडने के चक्कर मे दो चार सामने वाले और चले जायें। मजाक की बात नही है आकाश को भी पकडना पडेगा,आखिर मे आकाश है क्या ? जो इसकी गिनती भूतों मे की जाने लगी है? उछलो तो आकाश पीछे धकेल देता है,किसी ऊंचे से ऊंचे स्थान पर चले जाओ हवाई जहाज मे जाओ मगर आकाश और ऊंचा ही ऊंचा दिखाई देता है,इसकी कोई सीमा ही नही है। और अधिक आगे जाओगे तो रेलवे स्टेशन की तरह से कोई और ग्रह आजायेगा लेकिन आकाश का अन्त नही आयेगा। पीछे से आकाश की आवाज आयी,अरे हम तो पीछे खडे है,हमी तो आकाश है,जरा घूम के देखो,बहुत बडा विस्मय ! आकाश वास्तव मे पीछे से आवाज दे रहा है,मैं अन्दाज हूँ,और अन्दाज को कभी पकडा नही जा सकता है,अन्दाज का नाम ही आत्मा से दिया गया है,आत्मा को किसी ने नही देखा है,किसी ने आत्मा की फ़ोटो नही खींची है,कभी आत्मा के बारे मे कोई सकारात्मक रूप सामने नही आया है,अच्छा तो यही अन्दाज आत्मा है ! बडे ही आश्चर्य की बात है कि लोग जिसे देखते नही है पहिचानते नही है कभी दो दो हाथ नही हुये,कभी भी आत्मा के साथ बैठ कर गप्पे नही लडाई फ़िर भी अन्दाज से कहते है कि आत्मा है! 

मैने तो प्यास लगने के कारण पानी को पिया था,मुझे क्या पता था कि पानी पूरे शरीर मे फ़ैल जायेगा। मैने तो भूख लगने पर खाना बनाया था,मुझे क्या पता था कि वह पूरे शरीर मे मांस मज्जा खून और हड्डी का भी निर्माण करने लगेगा। मैने तो शरीर सुख के लिये मैथुन किया था मुझे क्या पता था कि सन्तान भी सामने आजायेगी,बहुत ही विचित्र बात है,किया किसके लिये जाये और हो कुछ जाये,लेकिन अन्दाज का तो कहना ही क्या ! कहते है आत्मा ईश्वर का अंश है और हम ईश्वर को मानते है,अगर हम ईश्वर को नही मानते तो आत्मा जो ईश्वर का अंश है उसे कैसे मानेंगे,और आत्मा को नही मानेगें तो शरीर के अन्दर जो है जो चला रहा है घुमा रहा बात चीत करा रहा है,कानो से सुनने की शक्ति दे रहा है आंखों से देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है नाक से सूंघने की शक्ति का विकास कर रहा है,तो इन सभी बातों को नकारा साबित कर देना चाहिये,नही है आत्मा वात्मा सब बेकार की बाते है किसी ने नही देखा है आत्मा को ! अक्समात ही तुलसीदासजी की रामचरित मानस की चौपाई याद आगयी-"बिनु पग चलै सुनै बिनु काना,कर बिनु कर्म करै विधि नाना",समस्या जटिल से जटिल बनती जा रही है,जो बिना पैर के चलता है,बिना कान के सुन सकता है हाथ के बिना काम भी कर सकता है वह भी एक नही कितने ही,यह बात आज के जमाने के लिये अगर रोबोट के लिये कही जाती तो उसकी भी एक सीमा है लेकिन तुलसीदास जी के जमाने मे तो रोबोट तो क्या रेडियो भी नही बना था। हां एक बात कही जा सकती है कि उस जमाने में बिना किसी साधन के लोग मंगल तक की यात्रा जरूर करके आते थे,वरना तुलसीदास जी से जब पूंछा गया कि मंगल के बारे मे उनकी क्या राय है तो उन्होने काशी के ब्राह्मणो को लिखित मे जबाब दे दिया था-"लाल देह लाली लसे और धरि लाल लंगूर,बज्र देह दानव दलन जय जय कपि शूर॥"कहा था मंगल का रूप लाल है दूर से भी लाल दिखाई देता है,कठोर भी है और मंगल के देवता हनुमान जी को ही माना है,वह ही किसी भी दैत्य को केवल नाम से दूर करने की क्षमता रखते है। भूत को बनाया जा सकता है,अगर हनुमान जी के नाम से ही भूत को भगाया जा सकता है तो भूत को बुलाया भी जा सकता है। इसके लिये हमे पीछे की बातो का ध्यान रखकर ही भूत को बनाने की कोशिश करनी चाहिये।

Monday, December 26, 2011

सरकारी नौकरी का भूत

यह मिथुन लगन की कुंडली है और बुध इसका स्वामी है.जातक का जन्म राजस्थान के झुंझनू जिला मे हुआ है.जातक के दिमाग मे केवल सरकारी नौकरी करने का भूत सवार है इसलिये वह किसी भी क्षेत्र की अन्य नौकरियों या व्यवसाय में सफ़ल नही हो पा रहा है। इस कुंडली मे एक खास विशेषता आपको मिलेगी कि जब राहु केतु अपनी नजर किसी भी ग्रह पर नही डालपाते है तो वह जातक को पूरी जिन्दगी भ्रम में ही रखते है,राहु विद्या को देने वाला और केतु साधनो को देने वाला है,वह साधन चाहे गलत कारको से दे या राहु विद्या को गलत भाव से दे,लेकिन दोनो ही जातक के लिये लाभ देने वाले ही होते है.अगर राहु चोरी करने के मालिक से अपनी युति रखता है तो वह जातक के जीवन को चोरी करने के कारण से ही बिताने के लिये अपनी युति को देता है अगर जातक धर्म के मालिक से अपनी युति को रखता है तो वह जातक को धर्म से ही जीवन को बिताने के लिये अपनी युति को देता है। राहु का स्थान लाभ भाव मे है और केतु का स्थान सरकारी कारणो की राशि पंचम में है। चन्द्रमा से भी जातक की मानसिक प्रकृति को देखते है तो वह नौकरी के भाव मे ही विद्यमान है,साथ मे शनि को भी साथ लिये है,चन्द्रमा का छठे भाव मे बैठने का कारण किसी भी प्रयास मे अगर प्लान बनाकर काम किया जाये तो वह सफ़ल नही हो पाता है वैसे रास्ता चलते सभी काम सफ़ल होते जाते है। चन्द्र लगनेश का भी गुरु की राशि मे मीन मे होने और शुक्र जो बारहवे भाव का मालिक भी है और पंचम का मालिक भी है लाभ के मालिक और नौकरी के मालिक मंगल के साथ होने से जातक के लिये मानसिक इच्छा में सरकारी नौकरी से ही धन को प्राप्त करने की चाहत मिलती है.राहु केतु ने भी सीमा बांध रखी है,राहु ने मंगल शुक्र को अपने ग्रहण मे ले रखा है और केतु ने चन्द्र शनि को बल दिया हुआ है। राहु के भूत को अगर केतु के साधन अपना बल दे दें तो किसी भी जातक की तरक्की मे कोई बाधा नही मिलती है। केतु के दूसरे भाव में और राहु के बारहवे भाव में ग्रहों का प्रभाव भी समझने के लिये माना जा सकता है,किसी भी ग्रह से अगर राहु आगे के भाव मे है तो वह ग्रह से उसकी शक्ति को ग्रहण कर लेगा,अगर किसी ग्रह से राहु पीछे के भाव मे है तो वह उस ग्रह को अपनी शक्ति से पीछे के भाव के बल को दे देगा। यही बात केतु के लिये जानी जाती है,जब केतु किसी भी ग्रह से आगे होता है तो वह साधनो के रूप मे बल प्राप्त करने के लिये ग्रह की ताकत को खींचनाशुरु कर देगा,लेकिन जब केतु किसी ग्रह के बारहवे भाव मे है तो वह अपनी शक्ति से ग्रह के साधनो को बल देना शुरु कर देगा। लेकिन साधन उसी भाव के देगा जिस भाव मे ग्रह स्थापित है.इस कुंडली में शनि चन्द्र शमशानी राशि वृश्चिक मे है और छाठे भाव मे भी है,जातक को केतु तुला राशि का बल देगा तुला राशि प्राइवेट कम्पनी मे और खुद का व्यापार करने वाली राशि है तथा केतु इसी भाव का बल लेकर जातक को देता रहेगा.जातक की मानसिक इच्छा तो सरकरी नौकरी मे जाने की होगी लेकिन वह सरकार से सम्बन्धित व्यापार भाव रखने वाली कम्पनी मे तो काम कर सकता है लेकिन पूरी तरह से सरकारी नौकरी नही कर सकता है.

कैसे देखते है अपने इष्ट देव को ?

संसार का प्रत्येक जीव अपने अपने समय में अपने अपने गण को लेकर पैदा होता है। जो जिसका गण होता है उसी के अनुसार व्यक्ति के इष्ट को समझा जाता है.जन्म कुंडली में बारह राशिया है और लगन में जो राशि होती है उस राशि का मालिक ही व्यक्ति के गण का मालिक होता है उस मालिक के गण का प्रमुख देवता कौन सा है वह अपने अपने धर्म के अनुसार ही माना जाता है। उदाहरण के लिये कर्क लगन की कुंडली है और इस लगन का मालिक चन्द्रमा है,चन्द्रमा तीसरे भाव मे है और चन्द्रमा की राशि कन्या है.कन्या राशि का मालिक बुध है,बुध ही जातक का इष्टदेव का कारक है,बुध अगर तुला राशि का होकर चौथे भाव मे सूर्य और शुक्र के साथ बैठा है तो जातक के लिये माना जाता है कि जातक के पिता और माता ने मिलकर मनौती को मांग कर पुत्र को प्राप्त किया है वह मनौती जातक के पिता के ही इष्ट का दूसरा रूप रखने वाली देवी के लिये कहा जा सकता है। हर ग्रह का अलग अलग देवता होता इस बात को वैसे तो मतान्तर से भेद रखने वाली बाते मिलती है लेकिन सही रूप में जानने के लिये लाल किताब ने बहुत ही बारीकी से ग्रह और उसके देवता का वर्णन किया है। जैसे सूर्य से विष्णु को मानते है,चन्द्रमा से शिवजी को मानते है मंगल से हनुमान जी को भी मानते है और अगर मंगल बद होता है तो हनुमान जी की जगह पर भूत प्रेत पिशाच की सेवा करने के कारण मिलने लगते है,बुध को दुर्गा के लिये जाना जाता है गुरु को ब्रह्मा जी से जोडा गया है शुक्र को लक्ष्मी से जोड कर देखा गया है,शनि को भैरों बाबा के लिये पूजा जाता है और राहु को सरस्वती के लिये तथा केतु को गणेशजी के लिये समझा जाता है। लालकिताब के अनुसार जातक का इष्टदेव देवी दुर्गा ही मानी जायेगी। अगर कुंडली मे शनि की स्थिति मार्गी है तो देवी की मूर्ति की पूजा मे ध्यान लगाना फ़ायदा देने वाला माना जाता है शनि के वक्री होने पर मूर्ति की जगह पर दिमागी पूजा यानी मंत्र जाप आदि से फ़ल मिलना माना जा सकता है। इसी प्रकार से जैसे इस कुंडली मे बुध के साथ सूर्य भी है और शुक्र भी है शनि सामने होकर दसवे भाव मे विराजमान है.तुला राशि को पश्चिम की दिशा मानी जाती है,भारत मे चार दिशाओं में भगवान विष्णु के चार धाम है,पूर्व मे जगन्नाथ को विष्णु को रूप में उत्तर में बद्री विशाल को पश्चिम मे द्वारिकाधीश को और दक्षिण में भगवान विष्णु को राम के रूप मे पूजा जाता है.शुक्र और बुध तुला राशि के सूर्य के साथ है तो राधा और रुक्मिणी के साथ द्वारकाधीश की प्रतिमा को जाहिर करते है। सूर्य और शुक्र के साथ बुध की स्थिति पानी वाले भाव यानी चौथे भाव मे है इसलिये अष्टम भाव का राहु समुद्र के किनारे की बात को उजागर करता है,इसलिये इस कुन्डली मे द्वारिकाधीश के साथ राधा और रुक्मिणी की पूजा को करना और उन्हे मानना सही और फ़लदायी माना जा सकता है। राधा लक्ष्मी रूप मे और रुक्मिणी शक्ति के रूप मे अपना अपना फ़ल जातक को देने वाली है। लेकिन यहां एक शंका यह पैदा होती है कि अगर जातक इन्ही ग्रहों को लेकर इंग्लेंड मे पैदा हुआ है तो वह द्वारिकाधीश और राधा रुक्मिणी को कहां से प्राप्त करेगा। भारतीय भू-भाग पर पैदा होने के बाद तो चारो दिशाओं के सूर्य को विष्णु के रूप में मान भी लिया गया है। इंगेलंड मे इन ग्रहों के कारक बदल जायेंगे,इन कारकों में सूर्य के स्थान पर राज्य का मालिक या राजा होगा,और शुक्र तथा बुध के कारको में वह राजकीय धन और कानूनो का मालिक होगा। जहां लोग ईश्वर पर विश्वास रखते है वहां पर यह ग्रह ईश्वरीय शक्ति के रूप मे देखे जाते है और जहां मनुष्य केवल कर्म पर विश्वास रखता है वहां यह ग्रह मनुष्य रूप में स्थापित अधिकारियों के रूप मे काम करने लगते है।

राहु से मिलने वाली शिक्षा

कर्क लगन की कुंडली है और चन्द्रमा पंचम भाव में वृश्चिक राशि का होकर कार्येश और पंचमेश मंगल तथा केतु के साथ विराजमान है। शनि चौथे भाव मे उच्च का होकर तुला राशि में है,लाभेश और चतुर्थेश शुक्र तथा व्ययेश और तृतीयेश बुध सिंह राशि के होकर धन भाव में विराजमान है.धनेश सूर्य लगन में ही विराजमान है,भाग्यश और षष्ठेश गुरु वक्री होकर छठे भाव में ही विराजमान है,राहु ग्यारहवे भाव में वृष राशि का होकर विराजमान है,जातक को जो चिन्ता है :-
  • उसका आगे का भविष्य क्या है ?
  • उसकी शादी कब होगी ?
  • उसे पत्नी कैसी मिलेगी ?
इन तीन प्रश्नो के उत्तर के लिये कुंडली के पंचम को देखना जरूरी है.पंचम भाव मानसिकता का दूसरा स्थान है जो मन से सोचा जाता है वह पंचम में जाकर प्रदर्शन के लिये तैयार हो जाता है इसलिये मंत्रणा और धारणा के लिये इस भाव की जानकारी बहुत जरूरी है। वर्तमान मे राहु का गोचर इस भाव मे है और अपने प्रभाव से चन्द्रमा मंगल और केतु को अपना असर दे रहा है। राहु जन्म से जिस भाव में होता है उसी भाव का फ़ल गोचर के समय अपने अनुसार अलग अलग भावों मे देता जाता है। इस कुंडली मे राहु का प्रभाव लाभ भाव मे है और वह जो भी फ़ल देगा वह लाभ भाव के ही अच्छे या बुरे फ़ल गोचर से देगा। चन्द्र राशि से राहु सप्तम मे है इसलिये भी राहु की सोच मन के कारक चन्द्रमा पर अपना असर देने वाली होगी,चन्द्रमा से चन्द्र लगन का मालिक मंगल है इसलिये राहु जो शंका देगा वह मन से शरीर के लिये भी और सोचे जाने के साथ केतु जो साधनो के लिये जाना जाता है के प्रति अपनी लाभ वाली शक्ति को प्रकाशित करेगा। इस राहु के फ़ल कैसे प्राप्त होते है,इसे इस प्रकार से फ़लित करना ठीक रहेगा:-
  • जातक की माता को कष्ट रहना माना जा सकता है जातक की माता को इन्फ़ेसन वाली बीमारी है,चन्द्रमा राहु के साथ मिलकर दिमाग मे भ्रम देता है और इस भ्रम के कारण झूठ बोलने की आदत से मजबूर है,जन्म स्थान के पास या वर्तमान मे राने के स्थान क पास पानी का स्थान हो या जंगल बीहड वाले स्थान का होना भी माना जा सक्ता है.जातक के पेट में किसी न किसी बीमारी को माना जा सकता है माता को कैंसर जैसी बीमारी का होना भी माना जा सकता है,जातक को मानसिक परेशानी भी मिल सकती है। राहु चन्द्रमा के साथ मिलकर मानसिक कष्ट को भी देने वाला है.भाई जो छोटा होता है उसे परेशानी या खुद के लिये भी परेशानी अथवा बहिन के पुत्र को परेशानी मानी जा सकतीहै. जातक को अधिक सोचने के कारण एक दम उत्तेजना का कारण भी बनता है और इस प्रकार के कारण से जो जीवन के प्रति नई बीमारी होती है उसे ब्लड प्रेसर के नाम से जाना जाता है,सवारी गाडी या किसी जमीनी हथियार बिजली आदि से अथवा किसी दवाई आदि से जीवन को खतरा होना भी मिल सकता है.कार्य के अन्दर मन्द गतिपैदा होती है जातक को भूत प्रेत मंत्र तंत्र आदि के लिये उत्सुकता जागृत होती है.
  • राहु का असर सप्तम पर जाने से जातक को विवाह की चिन्ता होती है लेकिन जातक का मानसिक प्रेम भी चलता है जो केवल कमन्यूकेशन तक ही सीमित रहता है,जातक को डर भी लगता है और जातक अपनी मानसिकता के कारण झूठ भी बोलता है जिससे प्रेम करने वाले व्यक्ति को राहु के गोचर के बाद नफ़रत भी हो जाती है.
  • राहु का असर विदेश भाव मे होने से जातक को विदेश जाने की बात भी मिलती है या किसी प्रकार के कारण से न्याय आदि के प्रति जाने की बात भी मिलती है अगर जातक किसी तकनीकी कार्य में है तो उस कार्य से उसे अक्समात ही हानि होने का डर भी मिलता है.राहु का असर जन्म के सूर्य के साथ होने से किसी व्यापारिक स्थान या घर की सजावट पर अक्समात ही किसी प्रकार का आग का कारण या सरकारी वाहन की टक्कर आदि से परेशानी या पिता को परेशानी का समय भी मिलता है,बिजली के शार्ट सर्किट का कारण भी पैदा होता है,पिता के पेट का आपरेशन भी होने की बात मिलती है.
  • राहु का प्रभाव आने वाली जनवरी दो हजार तेरह तक रहेगा इस प्रकार से जातक के लिये यह समय कष्ट का माना जा सकता है.

Sunday, December 25, 2011

सुदर्शन चक्र

कुन्डली की तीनो लगनो का मूल्य निकालने के लिये सुदर्शन चक्र की बहुत जरूरत पडती है। लगन चन्द्र लगन सूर्य लगन इन तीन लगनो से सुदर्शन चक्र का निर्माण होता है। तीनो लगने अपनी अपनी विशेषता को अपने अपने भावों के अनुसार कथन प्रसारित करते है। यह कुंडली हमारे भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी की है। हमेशा इस बात को ध्यान में रखकर ही फ़लकथन को मूल्य देना चाहिये,कि सूर्य देखता है,चन्द्र सोचता है और लगन शरीर है जिससे शनि अपने कार्य को करवाता है। बाकी के ग्रह अपने अपने स्थान पर अपने बल को प्रदान करने वाले होते है,कोई ग्रह किसी स्थान पर शत्रु भी होता है तो वही ग्रह किसी स्थान पर मित्र भी बन जाता है और वही ग्रह किसी स्थान पर जाकर अपने बल को समाप्त कर देता है। यह जरूरी नही है कि लगन से जो ग्रह शत्रुता दे रहा हो वह सोच में जाकर अपनी मित्रता को भी दे सकता है और जिस कारक को कार्य मे लिया जा रहा है वही ग्रह जाकर उसके अन्दर अपनी शक्ति को समाप्त भी कर ले। सुदर्शन चक्र में ग्रह गणित का बहुत महत्व होता है। जैसे मंगल और राहु मिलकर चौथे स्थान पर मीठा नशा बन जाते है तो वही मंगल राहु अस्पताल में अपनी शरीर की बीमारी को भी ठीक करवाने के लिये माने जाते है। वही मंगल राहु अगर मीठा पानी बनते है और वही मंगल राहु मीठी दवाई भी बन जाते है। भाव का कथन करना भी उतना जरूरी होता है जितना कि ग्रह का और राशि का मूल्य भी फ़लकथन में सामने रखा जाता है। इस कुंडली में लगन तो मेष है लेकिन चन्द्र लगन वृश्चिक है,सूर्य लगन धनु है। इन तीनो लगनो का अगर मूल्यांकन किया जाता है,तो मेष लगन अकेले रहकर पराक्रम की शक्ति शरीर से मानी जाती है,तो शरीर की सोच और मूल्य को अपने द्वारा प्रसारित करने के लिये अगर वृश्चिक लगन को देखा जाता है तो शरीर को काम में तो खूब लिया लेकिन शरीर से आगे के लिये कुछ भी प्राप्त नही हो पाया,कारण मेष लगन जन्म की राशि है तो वृश्चिक राशि मृत्यु और शमशान की राशि है,उसी स्थान पर सूर्य लगन जो देखने के लिये जिसे लोग देखते है शरीर भी देखता है इतिहास भी देखता है के लिये धनु लगन का स्थान है,यह लगन ऊंची शिक्षा को भी देखती है पिता के व्यवसाय को भी देखती है पिता के द्वारा अर्जित आय को भी देखती है और पिता के द्वारा दिये जाने वाले संस्कार भी देखती है। दूसरा भाव भी राशि के अनुसार अगर देखा जाता है तो यह कुटुम्ब के साथ भौतिक सम्पत्ति का भी कारक है। इस भाव मे वृष राशि है तो मकर राशि भी है और सोचने के लिये धनु राशि भी है। वृष राशि अगर धन को सूचित करती है तो मकर राशि उस धन का प्रयोग कार्य के लिये प्रयोग में लाने की बात भी करती है उस धन का प्रयोग धनु राशि से विदेश में भी किया जाता है और न्याय आदि के कार्यों के साथ साथ जनहित में भी किया जाता है। इसी प्रकार से ग्रह गणित को अगर देखते है, तो वृष राशि में केतु भी है सूर्य भी है गुरु भी है और वक्री बुध भी है.गुरु कहीं पर तो न्याय का कारक है तो वही गुरु जब केतु के साथ होता है तो वह न्याय को देने वाला और दत्तक जैसी भूमिका को निभाने वाला हो जाता है केतु जब वक्री बुध के साथ हो और सूर्य साथ हो तो सूर्य जो शिक्षा को देने वाला होता है वही सूर्य कुटुम्ब भाव मे बुध वक्री जो दत्त्क पुत्री की भूमिका को केतु के सहयोग से निभाने की बात करती है अपने प्रभाव से कुटुम्ब में भी शामिल होती है गुरु और वक्री बुध हमेशा शिक्षक की विवाहित पुत्री के रूप में माने जाते है। इसी प्रकार से जब तीसरे भाव को देखते है तो केतु का उपस्थित होना और ग्यारहवे भाव के शनि और सप्तम भाव के शनि की युति से जो दत्तक की हैसियत से होता है वह कानूनी कारण और बंटवारे के बाद अपनी हैसियत को भी दिखाने के लिये माना जाता है इसी केतु के द्वारा सेवा भी की जाती है और जीवन के प्रति शांति वाले कार्यों को भी किया जाता है,यही केतु जब सामने मंगल और राहु की उपस्थिति को चौथे भाव मे देखता है तो केतु की सीमा केवल अस्पताली कारणो के लिये ही मानी जाती है इसके बाद शनि की मार से आहत केतु अपनी औकात में कहां तो यह सोचता है कि वह सेवा से अपने सम्मान को प्राप्त करेगा कहां उसके लिये पग पग पर चलने के भी दिक्कत आने लगती है यानी यही केतु शरीर के अंगो का जोड बन जाता है और शनि की ठंडक से वह शरीर के जोडो को फ़्रीज करने के लिये भी अपनी शक्ति को देने लगता है। इसी प्रकार से सुदर्शन चक्र की भूमिका को ग्रह गणित भाव गणित और राशि गणित के अनुसार देखा जाता है.
फ़लकथन के लिये प्रयोग गणित
फ़ल कथन के लिये लगन से लेकर बारहवे भाव तक की राशियों की गणना भावों की गणना के साथ जोड कर समझा जाता है,ग्रह जिन जिन भावों में विराजमान होते है उनके गणित को एक दूसरे की आपसी युति का परिणाम करने के लिये भाव और राशियों में ग्रह का प्रकार आदि का गणित करना पडता है। इनके गणित का उपरोक्त कुंडली से विशेल्षण का उदाहरण इस प्रकार से है:-
  1. लगन में राशियों का संयोग ऊपर से नीचे के लिये गणना में लिया जायेगा,जैसे बाद की राशि धनु उसके बाद वृश्चिक फ़िर लगन की मेष राशि की प्रकृति को मिलाना पडेगा.धनु+वृश्चिक+मेष=पूर्वज त्याग शरीर बल.
  2. दूसरे भाव में भी इसी प्रकार से   मकर+धनु+वृष=कार्य पूर्वज धन बल.
  3. तीसरे भाव में भी इसी प्रकार से गणना की जायेगी,कुम्भ+मकर+मिथुन=लाभ कार्य लिखना पढना और बोलने का बल.
  4. चौथे भाव से भी राशियों की गणना की जायेगी,मीन+कुम्भ+कर्क=मोक्ष लाभ रहने वाले स्थान जानपहिचान का बल.
  5. पंचम भाव के लिये मीन+सिंह+मेष=मोक्ष राज्य शरीर बल.
  6. छठे भाव के लिये कन्या+वृष+मेष=सेवा धन शरीर बल.
  7. सप्तम के लिये तुला+मिथुन+वृष=बेलेंस करने की क्षमता,बोलचाल और लिखने पढने में,धन बल.
  8. अष्टम भाव के लिये वृश्चिक+कर्क+मिथुन=पूर्वजों का स्थान जंगल बीहड,पानी के किनारे,केवल नाम के लिये मिलने वाला बल.
इसी प्रकार से अन्य भावों में स्थापित राशियों के लिये गणना की जायेगी.

श्री अटल बिहारी बाजपेयी

हमारे भूतपूर्व प्रधान मंत्री श्री अटल बिहारी बाजपेयी जी का जन्म २५ दिसम्बर १९२४ को दोपहर दो बजे ग्वालियर मध्यप्रदेश नामक स्थान पर हुआ था.उनकी कुंडली मेष लगन की है और लगनेश मंगल का स्थान बारहवे भाव मे है.आज उनका जन्म दिन भी है.लगनेश से ग्यारहवे केतु है और लगनेश से दसवें सूर्य गुरु वक्री बुध है,लगनेश से नवे भाव में शुक्र चन्द्र है,लगनेश से अष्टम में शनि है,इस प्रकार से आपके कुल चार भाइयों की संख्या मिलती है,तीन बहिने भी मिलती है,शुक्र चन्द्र राहु की हैसियत को प्रदर्शित करती है.भाई बहिनो की संख्या को जोडने के लिये  लगनेश के त्रिकोण की राशियों के नम्बर को जोड लेना एक आसान तरीका है,जिसमे मीन की तीन कर्क की चार और वृश्चिक की आठ संख्या को जोडने पर पन्द्रह की संख्या आती है इस संख्या को छोटा बनाने के लिये आपस में जोडा तो कुल संख्या छ: की मिलती है,आगे की सन्तति चलने के लिये कुछ छ: की संख्या को ही माना जा सकता है आपने शादी ही नही की। मंगल के बाद वाले त्रिकोण में राहु का होना आपकी एक छोटी बहिन को भी बताता है,आपके पिता के भाई बहिनो की संख्या कुल तीन मिलती है जिनमें दो भाई तो मिलते है लेकिन बुध के वक्री होने के कारण होना नही मिलता है.माता के स्थान मे राहु के होने से माता का पिता से जल्दी परलोक सिधारना मिलता है,पिता का बाद में जाना मिलता है,आखिरी वक्त में रहने वाले स्थान से उत्तर दिशा में उनके इलाज का कारण भी मिलता है। सूर्य का नवे भाव मे होना और गुरु के साथ मे होना पिता को शिक्षक के रूप में भी जाना जा सकता है। पिता से नवे भाव मे सिंह राशि का होना आपके दादा के लिये अपनी स्थिति को बताता है,जो संख्या में दो की गिनती में मिलते है,आपके दादा की हैसियत पुजारी और पूजा पाठ वाले काम धार्मिक कृत्य तथा कथा भागवत को पढना भी मिलता है,बारहवे राहु होने के कारण एक ज्योतिषी के रूप में भी उनकी औकात को माना जा सकता है। राहु के द्वारा चौथे भाव में शनि का उच्च का होना पिता का स्थान परिवर्तन मिलता है,पिता के बारहवे भाव में शुक्र चन्द्र का होना पिता का जन्म किसी नदी के किनारे होना और वहां शंकर जी की स्थापना होने की बात भी मिलती है। वास्तव में इनके पिता का जन्म स्थान जिला आगरा में बटेश्वर नामक स्थान में हुआ था और वहां यमुना नदी बहती भी है तथा महाराज भदावर के द्वारा स्थापित शिव स्थान भी जो बड के पेड के नीचे स्थापित होने के कारण बटेश्वर के नाम से प्रसिद्ध भी है। कुंडली के अनुसार केतु ही राज्य को देने वाला है,तथा केतु से तीसरे भाव में लगनेश मंगल का होना पद के रूप में सर्वोच्च पद का देने वाला भी माना जाता है। गुरु का स्वराशि में होना और सूर्य के साथ होना धर्म और कानून की रक्षा करने वाला भी माना जाता है।

राहु शुक्र चन्द्र की युति होने से आपकी रुचि कविता करने में भी मानी जाती है,शुक्र का वृश्चिक राशि मे चन्द्रमा के साथ होने से दादा और पिता की सम्पत्ति का त्याग भी माना जा सकता है। अपने हिस्से की सम्पत्ति को राहु को प्रदान करने का मतलब किसी पुस्तकालय या स्कूली कार्यों के लिये दान मे देना भी माना जा सकता है। राहु का नवे भाव में मंगल का होना लगन से मंगल का दक्षिण-पूर्व दिशा में होना पिता का पलायन बटेश्वर से ग्वालियर में होना भी माना जा सकता है।

आपके पिता की केन्द्र आयु चौरासी साल थी,जिसमे से बारह साल राहु के द्वारा समाप्त करने से बहत्तर साल कुछ महिने की मिलती है,उसी प्रकार से आपकी केन्द्र आयु भी इतनी है लेकिन राहु के चौथे भाव में बैठने के कारण बारह साल राहु के द्वारा प्रदान किये गये है। ईश्वर से प्रार्थना है कि आपको शतायु प्रदान करने के बाद आपकी कार्यों की रोशनी से जन साधारण शिक्षा ले,और आपका नाम इतिहास के पन्नो पर स्वर्णाक्षरो से लिखा जाये। 

Tuesday, December 20, 2011

चतुर्थांश यानी भाग्य

कुंडली विवेचन मे चतुर्थांश के बिना फ़लादेश करना उसी प्रकार से है जैसे गर्मी की ऋतु में दूर रेगिस्तान में मृग मारीचिका को जल समझ कर भागना। लगन कुंडली शरीर के लिये चन्द्र कुंडली मानसिक रूप से संसार के लिये नवमांश कुंडली जीवन साथी और जीवन की जद्दोजहद के लिये सप्तांश कुंडली संतान सुख के लिये होरा कुंडली धन सम्पत्ति के लिये देखी जाती है उसी प्रकार से चतुर्थांश कुंडली को भाग्य के लिये देखना बहुत जरूरी होता है। एक जातिका की कुंडली का विवेचन प्रस्तुत है,यह जातिका बिजनौर उ.प्र. में दिनांक २४ दिसम्बर १९७८ को शाम ६ बजकर ३० मिनट पर पैदा हुयी है। जातिका की मिथुन लगन है और चन्द्र राशि कन्या है,लेकिन जातिका का नाम तुला राशि से रखा गया है। इस कुंडली मे लगन को बल देने वाले ग्रह सूर्य मंगल और केतु है.सूर्य छोटे भाई बहिन का कारक है और मंगल चाचा और बडे भाई का कारक है,केतु जातिका की दादी और नानी के लिये माना जायेगा.जातिका के शरीर की पालन पोषण की जिम्मेदारी इन्ही तीनो पर है.लगनेश बुध छठे भाव मे है और बुध के साथ वक्री गुरु अपनी स्थिति को दे रहा है। लगनेश का स्थान वृश्चिक राशि मे होने के कारण जातिका को नौकरी और गूढ ज्ञान की अच्छी जानकारी है। शरीर का मालिक बुध छठे भाव मे होने के कारण जातिका को अनुवांशिक बीमारी से भी ग्रस्त माना जाता है। चन्द्र शुक्र और बुध तीनो ही राहु शनि सूर्य मंगल के बीच मे होने के कारण यह अनुवांशिक बीमारी माता के परिवार से मानी जा सकती है। वैसे ज्योतिष के अनुसार सूर्य हड्डियों का कारक होता है चन्द्रमा शरीर के पानी का कारक है,मंगल रक्त का कारक है,बुध स्नायु का और नसों का कारक है,गुरु शरीर की वायु का कारक है,शुक्र शरीर की सुन्दरता का कारक है शनि बाल खाल त्वचा का कारक है,राहु जिस ग्रह के साथ होता है उसी की बीमारी को देता है,केतु का असर जहां तक होता है वहां तक वह अपना असर सहायता के लिये देना माना जाता है। वैसे केतु को भी शरीर के जोड प्रयोग किये जाने वाले अंगो केलिये माना जाता है। राहु का शनि के साथ होने से जातिका को त्वचा की बीमारी है,शनि से आगे चन्द्रमा के होने से त्वचा में सफ़ेद रंग के दाग माने जाते है राहु शनि की तीसरी पूर्ण द्रिष्टि शुक्र पर पडने के कारण शरीर की सुन्दरता पर ग्रहण दिया हुआ है,इसी के साथ केवल राहु की पंचम द्रिष्टि मंगल और सूर्य पर पडने के कारण खून के अन्दर इन्फ़ेक्सन और शरीर के ढांचे में भी ग्रहण दिया माना जाता है यह राहु का प्रभाव जातिका के बडे और छोटे भाई बहिनो पर भी है। लेकिन एक बात का और भी सोचना जरूरी होता है कि राहु के पास वाले ग्रह और भाव अगर दिक्कत देने वाले होते है तो केतु के आसपास वाले ग्रह और भाव दिक्कतो से बचे रहने वाले भी माने जाते है। अगर राहु शरीर के प्रति अपनी सुन्दरता मे कमी देने का कारक है तो केतु उस सुन्दरता में अपनी योग्यता से उसे बुद्धिमान बनाने के लिये भी अपनी योग्यता को दे रहा है। सबसे अधिक प्रभाव जातिका के जीवन मे भाग्य के प्रति माना जा सकता है,अगर चतुर्थांश की कुंडली को बनाया जाये तो इस प्रकार से कुंडली का निर्माण होगा :-
जातिका के चतुर्थांश में कालपुरुष की दो त्रिक राशियां मीन और वृश्चिक जातिका के लगन और नवे भाव मे है,तथा तीसरी त्रिक राशि सप्तम यानी पति के स्थान मे है। इन तीनो त्रिक राशियों का प्रभाव जातिका के जीवन में आजीवन रहना निश्चित है।लगन कुंडली मे जैसे राहु का प्रकोप जातिका के प्रदर्शन यानी तीसरे भाव मे शनि के साथ है तो भाग्य मे भी राहु का प्रकोप बुध के साथ तीसरे भाव मे ही है। यहां शरीर की सुन्दरता पर असर देने वाले राहु और केतु दोनो ही है,गुरु के वक्री होने के कारण और बारहवे शनि से गुरु की युति होने के साथ साथ गुरु का प्रभाव मंगल और चन्द्र पर भी है। भाग्य मे चन्द्रमा का साथ मंगल के साथ होने से और चन्द्रमा से गुरु वक्री के साथ पंचम सम्बन्ध होने तथा चन्द्रमा से भाग्य में नवे भाव मे शनि के होने से माता के दोष से ही जातिका का भाग्य विदीर्ण होना माना जायेगा। माता के बारहवे भाव में बुध राहु के होने से झूठ बोलना और फ़रेब से अपना काम बनाने की युति रखना तथा बुध से सप्तम में वृश्चिक का केतु होना इस बात की तरफ़ इशारा करता है कि कोई जायदाद जो मृत्यु के बाद किसी को मिलनी थी वह जायदाद झूठे कारण से खुद के लिये प्राप्त करने के कारण यह राहु का दोष बुध यानी लडकी पर स्थापित हो गया। यह एक प्रकार का अभिशाप भी कहा जाता है जो अन्तर्मन से दिया जाता है। चन्द्रमा के आगे शुक्र के होने से जातिका की माता ने अपने स्वार्थ के लिये व्यापार करने वाला स्थान या रहने वाला घर अथवा कोई सरकारी क्षेत्र का अधिकार झूठ से प्राप्त किया जाना भी मिलता है इस कारण से सन्तान यानी वक्री गुरु पर राहु का असर होने से और गुरु वक्री से आगे केतु के होने से सन्तान को सब कुछ प्राप्त होने के बाद भी कुछ नही होना माना जा सकता है,अक्सर चन्द्रमा से वक्री गुरु के पंचम मे होने से गुरु अपने पुरुष प्रभाव को छोड कर वक्री होने पर स्त्री प्रभाव को बली कर देता है और बजाय पुरुष सन्तान के स्त्री संतान का होना माना जाता है। इस प्रभाव से जातिका की माता को भी छठा केतु होने के कारण शरीर के जोडो और जननांग सम्बन्धी बीमारियां इन्फ़ेक्सन और गुदा सम्बन्धी बीमारियां भी परेशान करने के लिये मानी जा सकती है।
गुरु के वक्री होने से एक बात और भी समझी जा सकती है कि जो व्यक्ति अपनी चालाकी से किसी असहाय की सम्पत्ति को हडप कर उसे अपनी संतान के लिये प्रयोग मे लाना चाहते है समय की मार शुरु होते ही वह असहाय की हाय जातक के जीवन को तबाह करके रख देती है। चतुर्थांश में गुरु के अष्टम में वक्री होने के इस रूप को भली भांति समझा जा सकता है। जातिका पूर्ण रूप से दिमागी ताकत से पूर्ण है,जातिका को बुद्धि वाले काम करने की पूरी योग्यता है,जातक के सभी अंग सुरक्षित है लेकिन त्वचा पर सफ़ेद दाग होने से जातिका की शादी विवाह और सम्बन्धो के मामले मे दिक्कत है। इस गुरु के वक्री होने पर अक्सर जातक के सन्तान में पहले तो सन्तान सुख होता ही नही है और होता भी है तो केवल पुत्री सन्तान हो जाती है जो शादी के बाद अपने ससुराल जाकर माता पिता को अकेले छोड जाती है। गुरु की सिफ़्त के अनुसार अगर वक्री गुरु होता है तो वह जल्दबाजी का कारक भी होता है इस गुरु के आगे घर मे बजाय पुरुष वर्ग के चलने के स्त्री वर्ग की अधिक चलती है और वह अपनी ही सन्तान और परिवार को अधिक देखने के कारण तथा अन्य लोगों के साथ दुर्व्यवहार रखने से भी अपनी भाग्य की शैली को अन्धेरे मे डाल कर रखती है।

Monday, December 19, 2011

अतिचार

वृष लगन की कुंडली है शुक्र नवे भाव मे विराजमान है,स्वामी शुक्र का नवे भाव मे होने का अर्थ साधारण रूप से लगाया जाता है कि जातक भाग्यशाली है और उसके लिये हर कदम पर सहायता मिलती रहेगी। लेकिन जातिका के लगन मे केतु विराजमान है और सप्तम मे बुध और राहु मिलकर विराजमान है मंगल नीच का होकर चौथे भाव मे विराजमान है मंगल की नीचता का असर सीधे से बुध और राहु पर भी है। जातिका की शादी सभ्रान्त परिवार मे हुयी,पति मंगल घर के कामो मे अपने पिता और भाइयों के साथ मिलकर चल रहा था।पति की माँ शनि पति भाव से बारहवे भाव मे है और पति के पिता सूर्य को अपनी तीसरी नजर से देख रही है साथ ही पति की माँ के सप्तम मे गुरु वक्री है,पति की माँ अपने पति को विदेशी रूप से चलाने के लिये अपनी राय देती है लेकिन पति का पिता अपने अनुसार चलता है और चौथे भाव के मंगल के अनुसार वाहन के पार्ट बनाकर अपने व्यवसाय को चलाने के लिये अपनी बुद्धि को प्रयोग में लाता है। शनि से सप्तम मे गुरु के वक्री होने के कारण जातिका की सास के सम्बन्ध अनैतिक भी है जो पति के बाहर रहने पर समय कुसमय पर दूर के रिस्ते के भाई के साथ अपने शारीरिक सम्बन्धो को भी बनाने की बात मिलती है। शनि से दूसरे भाव मे राहु बुध (झूठी बहिन) और राहु से छठे भाव मे वक्री गुरु गुप्त रूप से बने हुये सम्बन्धो के बारे मे भी खुलासा होता है। जातिका की शादी के बाद पति की माँ दहेज में वह सब सामान मांगती है जो जातिका के परिवार वालो के लिये असम्भव भी है और देने मे किसी प्रकार से भी असमर्थ है। जातिका को शादी के बाद से ही प्रताणित किया जाने लगता है,लेकिन पति का लगाव जातिका की तरफ़ होने से वह अपने किसी भी प्रकार के अपमान को सहन कर लेती है सास की मार भी खाती रहती है। पति के पिता को बुरा लगता है कि पत्नी के कर्कश स्वभाव के कारण वह कुछ कह भी नही सकता है। लगन का केतु जातिका को सहायता करता है और नवे शुक्र तथा पन्चम चन्द्र की सहायता से एक पुत्र और एक पुत्री का जन्म भी होता है,जातिका के पति का झुकाव लगातार जातिका की तरफ़ होने लगता है और वह अपनी माता से जातिका के साथ अलग रहने की बात भी करता है। जातिका की सास जातिका पर कई प्रकार के गलत लांछन लगाती है और जातिका को अपने मायके मे जाकर रहना पडता है। जातिका का पति अपने घर मे जातिका के लिये विद्रोह पैदा करता है घर मे लडाई झगडे होने लगते है और जातिका का पति अपनी माता के साथ कुछ समय के लिये बोलचाल भी बन्द कर देता है,साथ ही अपने हिस्से को मांग कर अलग रहने की बात भी करता है।
जातिका की सास के दिमाग मे यह बात बिलकुल भी हजम नही होती है कि वह अपने बेटे को बहू के लिये अलग कर दे,वह पहले जातिका के पति को अपनी झूठी बातो से समझाने की कोशिश करती है लेकिन वह जब नही मानता है तो उसे जहर देकर खुद जातिका की सास उसके पति को मार देती है।(राहु बुध का असर शुक्र पर होने से और शुक्र मंगल का षडाष्टक योग खाने पीने वाली चीजो मे मिलाया जाने वाला जहर),जातिका के पति के मरने के समय जातिका अपने माता पिता के पास होती है,जातिका की सास जातिका के पति के रूप मे नकली सोसाइट नोट बनाती है और पुलिस को जाहिर करती है कि जातिका ही उसके पुत्र को मारने के लिये जिम्मेदार है।
जातिका को पुलिस के द्वारा पुलिस स्टेशन बुलाया जाता है और जातिका को अदालती कानून का सहारा लेकर झूठे अभियोग में जेल में भेज दिया जाता है। बुध राहु दोनो मिलकर वक्री गुरु के षडाष्टक योग की सीमा का पूरा प्रयोग करते है,सप्तम का बुध अगर राहु के साथ है तो जातक को पत्नी या पति के कष्टो से तब और भी प्रताणित करता है जब वह वृश्चिक राशि के हो और अपनी हर बात मे शमशानी घास जैसा बर्ताव करते हो। यह हकीकत की कहानी है और ग्रहों के द्वारा फ़ैलाये जाने वाले जाल का सच्चा रूप।

Saturday, December 17, 2011

We are not getting along with each other well.is there any second marriage predicted for any one of us?when?will it survive?what is my life time how many years?

प्रस्तुत कुंडली विजयवाडा के एक सज्जन की है वह इस समय इक्यावन साल से ऊपर के है।इनके जन्म के त्रिकोण अगर देखे जाये तो केवल धन वाला त्रिकोण पूरा है और बाकी के त्रिकोण किसी न किसी प्रकार से अधूरे है। जीवन की इच्छाओं की पूर्ति करने वाला त्रिकोण चौथा आठवा और बारहवा भाव वाला त्रिकोण है। इस त्रिकोण मे वर्तमान मे केतु का संचरण हो रहा है और जातक की इच्छाओ मे कुछ बल मिलने की बात मिलती है। इस कुंडली मे भी केतु की प्रधानता है और केतु भी मीन राशि का होकर उच्च का है। धन और पद वाले मामले मे केतु की ताकत बहुत अच्छी है। यह केतु जातक को ऊंची पदवी भी दे रहा है और मंगल जो नीच का है और शुक्र के साथ है पर भी धन स्थान के केतु का असर है इसके साथ ही गुरु जो जीवन मे रिस्तो का कारक है नीच स्थान मे जाकर गुरु के वक्री होने से वह अपनी गति को उच्च का बना रहा है। धर्म स्थान का केतु बच्चो के मामले मे सूर्य एक पुत्र और बुध एक पुत्री के लिये अपनी गति को दे रहा है पुत्र और पुत्री डाक्टरी या इन्जीनियरिंग से अपनी ताकत को धन के क्षेत्र मे बढाने मे है,जातक का कारक केतु वक्री शनि और चन्द्रमा की ताकत से बुद्धि वाले कार्य करने मे चतुर है लेकिन मंगल और शुक्र के द्वारा पूर्वजों की स्थिति को कन्ट्रोल करने के कारण जातक अपने धन से अपनी योग्यता से जो भी करना चाहता है वह कर नही सकता है इसका कारण उसकी पत्नी ही है जो अपने शिकंजे मे पति को कसे हुये है। इस मंगल शुक्र की स्थिति को अगर सही रूप से देखा जाये तो जातक जितना अन्दरूनी मामले से कमाने की हिम्मत रखता है और किसी भी गलत कमाई को कमाने की हिम्मत को रखता है उतना ही उसकी पत्नी गुरु के वक्री होने के कारण अपने रिस्ते को साधने मे भी चतुर मानी जा सकती है वह जातक के हर कार्य पर निगाह रखती है और किसी भी गलत काम के लिये घर मे जातक का सोना खाना हराम करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदर्शित कर रही है। जातक के काम नाम का त्रिकोण वक्री शनि और चन्द्र से पूर्ण है,जातक अपनी पत्नी से बन ठन कर और बाजारू स्त्रियों जैसी चमक दमक को देखना चाहता है लेकिन सूर्य और बुध से आगे मंगल शुक्र इस बात से बिलकुल खिलाफ़ है तथा जातक के साथ उस प्रकार के कार्यों को नही देखना चाहती है जो उसे समाज और परिवार मे बदनामी तथा बच्चो के आगे बेइज्जत होने के लिये बाध्य करे। वर्तमान मे राहु का गोचर जातक के जन्म के गुरु के साथ है और राहु का प्रभाव जातक के जन्म के केतु पर भी है जातक के शुक्र और मंगल पर भी है इसलिये जातक अपने बारे मे असमन्जस मे है कि वह क्या करे,गुरु के वक्री रहने तक जातक का बल रिस्ते को तोडने के लिये माना जा सकता है लेकिन जातक मंगल और शुक्र की पकड के आगे तोड नही सकता है। इसके बाद जातक यह राहु जातक के जीवन को भी कोई कष्ट नही दे सकता है उसका कारण भी गुरु का वक्री होना है राहु कभी वक्री ग्रह को हानि नही पहुंचाता है। राहु का असर केवल मंगल जो शुक्र के पास है अपनी इन हरकतो से अपनी पत्नी को हाई ब्लड प्रेसर जरूर दे सकता है। लेकिन वह भी कुछ समय अस्पताल आदि मे रहकर अपने को स्वस्थ बनाने के लिये सब कुछ जानती है। कुंडली के अनुसार जातक की आयु भी शनि चन्द्र की जडता से सत्तर साल की मिलती है।

वर्ल्ड टूर का त्रिकोण

प्रस्तुत कुंडली वृष लगन की है और स्वामी शुक्र मंगल गुरु के साथ सप्तम स्थान मे विराजमान है। जातक भोपाल में पैदा हुआ है। पेशे से इन्जीनियर है। वर्तमान मे जातक नाइजीरिया में कार्य रत है। ज्योतिष के अनुसार जीवन के चार त्रिकोण है और इन त्रिकोणो मे किस किस त्रिकोण को कब पूरा होना यह बात विद्वजन ही जान सकते है। इन चार त्रिकोणो के नाम है धर्म अर्थ काम और मोक्ष। धर्म नाम का त्रिकोण लगन पंचम और नवम भाव को जुड कर बनता है,अर्थ यानी धन का त्रिकोण दूसरा छठा और दसवा भाव जोड कर बना है,काम अर्थात पत्नी नौकरी आदि का त्रिकोण तीसरे सातवे और ग्यारहवे भाव को जोड कर बनता है तथा मोक्ष नामका त्रिकोण चार आठ और बारहवे भाव के त्रिकोण को जोड कर बनता है। जातक के जन्म के समय जो भाव ग्रहों से युक्त होते है वह अपने अपने त्रिकोण को पूरा करते है,वैसे हर किसी के हर त्रिकोण का पूरा होना मिलता है लेकिन कुछ के लिये कभी कभी त्रिकोण पूरा हो पाता है और किसी किसी का जन्म के समय से ही त्रिकोण का पूरा होना मिलता है।गुरु और शुक्र जिस जिस त्रिकोण को बल देते जाते है वह त्रिकोण सर्व सम्पन्न होता जाता है शनि राहु केतु जिस जिस त्रिकोण को देखते जाते है वही त्रिकोण दुख वाला बन जाता है। किसी किसी के जन्म के समय से ही इन त्रिकोणो को यह शनि राहु केतु घेर कर बैठे होते है और किसी के लिये यह अपना रूप बिखेर कर देते है। इस कुंडली में चौथे भाव मे केतु अष्टम भाव मे बुध और बारहवे भाव मे वक्री शनि विराजमान है। इस त्रिकोण को मोक्ष का त्रिकोण कहा जाता है। लेकिन इस त्रिकोण का आधिपत्य केतु को मिला है,राहु सूर्य और शनि के घेरे मे आकर अपनी जाति को भूल गया है। केतु चन्द्रमा और शनि के बीच मे है इसलिये जातक के लिये इस त्रिकोण का पूरा पूरा लाभ केतु ने ही दिया है। शनि वैसे धर्म और कर्म का मालिक है लेकिन बारहवे भाव मे जाकर वक्री होने से वह बजाय दुख देने के सुख देने का कारक बन गया है। इस शनि ने केतु को अपना बुद्धि से काम करने का बल दिया है और इसी शनि ने ही अपनी नवम पंचम द्रिष्टि से बुध को भी कार्य शक्ति जो बुद्धि से प्रयोग होने वाली होती है दी है। वर्तमान मे जातक की गुरु की दशा चल रही है और गुरु के द्वारा वर्तमान मे वक्री शनि को बल दिया जा रहा है। शुक्र मंगल और गुरु जन्म से ही सप्तम स्थान मे बैठ कर नौकरी मे तकनीकी बल को दे रहे है। यह केतु वर्तमान मे लगन मे विराजमान हो गया है और धर्म भाग्य बुद्धि वाला त्रिकोण पूरा कर दिया है। इस केतु के द्वारा चन्द्रमा और सूर्य दोनो को बल दिया गया है,चन्द्रमा जातक की पारिवारिक स्थिति को देख रहा है और सूर्य जातक की विदेश मे रहकर भाग्य बढाने की शक्ति को देख रहा है। राहु का त्रिकोण पूरा नही है इसलिये जातक के साथ कोई दुर्घटना इस प्रकार की नही है कि जातक को लम्बे समय तक किसी प्रकार की उलझन से जूझना पडे। गुरु के प्रभाव के कारण जातक को विदेश मे रहकर बुद्धि से कार्य करने के लिये बल मिल गया है और इस त्रिकोण मे गुरु का असर आने से जो कार्य वह एक स्थान पर रह कर रहा था उसके लिये केतु के बल से चन्द्र यानी रात और सूर्य यानी दिन दोनो के उपस्थिति रहने मे यात्रा का योग और चारो तरफ़ आने जाने का कारण पैदा हो गया है।
इस कुण्डली को अगर साधारण रूप से देखा जाये तो सभी का ध्यान इसमे काल सर्प दोष की तरफ़ भी जायेगा और वर्तमान जन्म के राहु का असर शनि और गुरु के साथ होने से धूर्त और पाखंडी योग का निर्माण भी करेगा लेकिन इस गुरु का केतु से सानिध्य होने से यह दोनो ही योग समाप्त हो गये है और वही काल सर्प दोष कुंडली मे शनि के बाहर होने से और और शनि के वक्री होने से बजाय खराबी पैदा करने के फ़ायदा देने वाला बन गया है। जातक की अगली चार साल तक पूरे विश्व मे घूमने का योग बन गया है और वह भी सम्माननीय द्रिष्टि से भी तथा धन के अथाह भंडार से पूर्ण होकर।

पुनर्जन्म

प्रस्तुत कुंडली लखनऊ की एक जातिका की है,उसका जन्म 5th Dec.1999 Time 07:14 AM पर हुआ था। इस कुंडली के अनुसार पुनर्जन्म के प्रति ज्योतिष से विवरण मिलता है। जातिका के दादा (राहु) का स्थान कर्क राशि मे नवे भाव मे है। जातिका के दादा की संख्या गिनती में कुल छ: मिलती है जबकि ज्योतिष से पांच की औकात यानी पुत्र सन्तान के प्रति मिलती है बाकी एक की या तो शादी नही होती है या शादी के बाद केवल पुत्री संतान का होना मिलता है। जातिका के दादा अपने भाइयों में बडे मिलते है (ग्यारहवे भाव से ग्यारहवां भाव) उनकी तीन शादियां मिलती है। पहली केतु दूसरी मंगल और तीसरी केतु मंगल। दूसरे नम्बर की शादी जो मंगल से सम्बन्ध रखती है वह जातिका की दादी के रूप में घरेलू क्लेश के कारण जल कर खत्म होने की बात मिलती है। वही दादी जातिका के रूप में आकर घर में दुबारा से पैदा होती है। लगनेश मंगल केतु के साथ है,और मंगल की चतुर्थ द्रिष्टि गुरु और शनि (दोनो ही वक्री) पर होनी मिलती है। जातिका की दादी अपने परिवार से बहुत लगाव रखती थी और वक्री यानी वापसी मे दुबारा से आकर उसी घर मे जन्म लेती है। जातिका की दादी की मौत छ: दिसम्बर को हुयी थी और जातिका का जन्म पांच दिसम्बर को हुआ है। जातिका के जन्म के पहले जातिका के पिता को स्वप्न में एक स्त्री दिखाई देती है जिसका मुंह जला हुआ है। यही स्वप्न जातिका की नानी को भी दिखाई देता है। जातिका का स्वभाव बहुत ही उग्र है वह कभी भी किसी भी काम के लिये एक स्थान पर टिकती नही है,कमन्यूकेशन कम्पयूटर और तकनीकी कामो मे उसका खूब मन लगता है याददास्त भी बहुत अच्छी है। कभी कभी बीमार हो जाती है तो कोई भी डाक्टर अपनी रिपोर्ट को सही नही बता पाता है अलग अलग जांच मे अलग अलग बीमारी को प्रकट किया जाता है लेकिन वास्तविक रूप से किसी भी बीमारी को नही प्रकट किया जाता है। अभी जातिका के दादा जिन्दा है वह अपने दादा से बहुत नफ़रत करती है और अपने माता पिता को जी जान से अधिक चाहती है। जातिका की माता भी तीन बहिने है,(चौथे भाव को शुक्र चन्द्र और बुध के द्वारा देखा जाना) जातिका के दो मामा है। जातिका की माता बहुत ही भली महिला है और हर बात को बहुत अधिक सोचने के लिये तथा पूजा पाठ मे बहुत अधिक ध्यान देने वाली है।

when i earn money for my parent ?

प्रस्तुत कुंडली कुचामन राजस्थान के एक इक्कीस वर्षीय युवक की है वह जानना चाहता है कि अपने माता पिता के लिये कब धन कमाना शुरु कर देगा। जीवन की लम्बी चाल के लिये मुख्य चार ग्रह माने गये है सबसे पहले शनि फ़िर राहु केतु और गुरु बाकी के ग्रह समय का सहारा देने वाले माने जाते है। धन देने के लिये तीन भाग मुख्य माने जाते है एक शरीर के द्वारा धन को प्राप्त करना दूसरा बुद्धि के द्वारा धन को प्राप्त करना तीसरा पूर्वजो के धन से प्राप्त धन को प्राप्त करने के बाद उसे घटाना बढाना। इस कुंडली में शरीर से धन कमाने का दूसरा भाव है और उस भाव का स्वामी जीवन साथी के भाव मे विराजमान है,इसका मतलब है कि शरीर से धन कमाने के लिये जीवन साथी को आगे आना पडेगा,शुक्र इस भाव का स्वामी है तो शुक्र से चौथे भाव मे शनि वक्री विराजमान है यानी शरीर से धन कमाने के लिये पत्नी शिक्षा और विद्या स्थान में बुद्धि से कार्य करेगी,कारण सप्तम से पंचम का स्थान बुद्धि के क्षेत्र का कारक है और शनि वक्री मेहनत वाले कार्यों से दूर रखकर बुद्धि वाले काम ही करवाता है। दूसरा प्रकार धन कमाने के लिये बुद्धि का माना जाता है इसलिये जातक के पंचम भाव मे सिंह राशि है,इस राशि से धन वाले क्षेत्र में जो छठा भाव कहलाता है गुरु सूर्य और बुध विराजमान है,यानी जातक ने जो भी विद्या प्राप्त की है वह धन से सम्बन्धित है और सरकारी क्षेत्र के लिये अपनी विद्या को प्रयोग करने की तैयारी कर रहा है। तीसरा प्रकार पूर्वजो से प्राप्त धन का है इस कुंडली मे नवे भाव मे राहु विराजमान है जातक के पिता का स्वभाव बुद्धि मे तो तेज था लेकिन स्थान परिवर्तन के बाद जातक के पिता का क्षेत्र अपनी माता के खानदान मे किसी का नही होना और मृत्यु के बाद की जायदाद को भी सम्भालना और अपने स्थान के कार्यों को भी देखना यह दोनो बाते होने से जातक के पिता के पास कोई संचित धन नही हो पाया इसलिये राहु से दसवे भाव मे गुरु सूर्य बुध यानी अपनी तीन सन्तानो की परवरिश में जातक के पिता लगे रहे और हमेशा ही किसी भी बडे काम में धन को उधार लेकर ही प्रयोग मे लाते रहे और समय समय पर कठिन मेहनत करने के बाद उस उधारी को चुकाते रहे। वर्तमान मे जब शनि जो जातक की कुंडली मे वक्री है अपने पिता के लिये धन कमाने की चाहत रखता है वह शुक्र के साथ गोचर करने से और राहु पर अपनी तीसरी द्रिष्टि से देखने के कारण जात को चाहत है कि वह अपने माता पिता को कब धन कमाकर देना शुरु कर देगा। गुरु जो जातक के भाग्य का मालिक है और साथ ही वह जो भी अपने फ़लो को देगा वह नौकरी आदि के फ़ल ही देगा,जातक सत्रह जून दो हजार बारह के बाद अपने को किसी बैंक बीमा या फ़ायनेन्श से जुडे क्षेत्र मे जाकर धन कमाने की शुरुआत करेगा और धीरे धीरे धन कमाकर अपने पिता माता को धन की सहायता करने लगेगा। राहु का स्थान अष्टम मे होने के कारण चन्द्रमा जो जातक की माता के रूप मे है और घर मे बडी है की बीमारी का कारण भी देखा जा सकता है इसलिये जातक आने वाले जनवरी दो हजार तेरह तक अपनी माता के स्वास्थ सम्बन्धी चिन्ता से भी ग्रसित रहेगा।

विवाह मिलान में पाप पुण्य की गिनती

कई वैवाहिक सेवा देने वाली साइट अपने अनुसार विवाह मिलान मे पाप और पुण्य का लेखा जोखा और बताने लगी है। प्राचीन समय में केवल नाम से गुण दोष बताकर इतिश्री कर ली जाती थी और विवाह होने के बाद भी मर्यादा से तथा सामाजिकता से वैवाहिक जीवन चला करते थे। लोगों ने अपनी अपनी ढपली और अपने अपने राग अलापने शुरु किये जब से वैवाहिक जीवन को एक खेल की तरह से माना जाने लगा है। पति पत्नी के रिस्तो  मे जरा सी अनबन हुयी कि दोनो सीधे पारिवारिक न्यायालय जा पहुंचते है,या किसी प्रकार की सामाजिक खुंस को निकालने के लिये वधू पक्ष सीधा सा वर पक्ष पर दहेज प्रताणना का आरोप मढ देता है इस प्रकार से चलते हुये वैवाहिक सुख मे अहम के कारण दिक्कत आनी शुरु हो जाती है। इसके अलावा भी वर वधू का मिलान अगर आज के सोफ़्टवेयर से करना शुरु कर दिया जाये तो बिना ग्रह की वक्री नीच अस्त आदि की स्थिति को समझे सोफ़्टवेयर सीधा ही अपने मिलान करके बता देता है और लोग आये हुये अच्छे रिस्ते को अपने अनुसार विफ़ल कर देते है। ईश्वर मनुष्य को उसके अनुरूप ही जीवन साथी को देता है इस कथन को सभी प्राचीन ऋषि और सन्तो ने बताया है। जिस प्रकृति का मनुष्य है उसे उसके विपरीत प्रकृति का ही जीवन साथी मिलता है और यह कारण जीवन भर चलता रहता है। अर्थ के मामले मे चाहे विपरीत अवस्था भले ही आजाये लेकिन काम और धर्म के कारणो में यह कारण जरूर चला करता है। अगर व्यक्ति को भूख नही लगेगी तो वह प्रयास भी नही करेगा,अगर किसी को बिना प्रयास किये ही खाना दिया जाता रहे तो कुछ समय बाद भूख की महत्ता ही समाप्त हो जायेगी और वह व्यक्ति यह नही समझ पायेगा कि भूख क्या होती है। इस बात को भी समझने के लिये प्रयास को बहुत ही महत्व दिया जाता है। कारण ईश्वर बनाकर भेजता है और इस कारण को गुरु कुंडली मे अपनी स्थिति से बताता है कि शादी का समय कब और किस दिशा से आयेगा। गुरु की अनुपस्थिति मे रिस्ता नही बनता है। बिना गुरु की स्थिति के अगर रिस्ता बनाया जाता है या राहु के किसी भी प्रकार के असर को शामिल किया जाता है तो रिस्ता किसी न किसी कारण से चल नही पाता है और वही कारण अगर निवारण के रूप मे स्वीकार कर लिया जाये और निवारण के द्वारा उस दोष को समाप्त कर दिया जाये तो रिस्ता कुछ समय की अवरोधता को त्याग कर चलना शुरु हो जाता है।

गुरु भाव अनुसार अपने पाप और पुण्य को प्रदर्शित करता है। गुरु अगर खुद की राशि में भी है तो भी पाप और पुण्य को प्रदर्शित करने के लिये अपनी सीमा को बतायेगा। जैसे गुरु अगर मीन राशि का है और वह आखिरी द्रिष्काण मे है तो भी गुरु का मायना एक प्रकार के स्वार्थ के अन्दर देखा जायेगा,लेकिन इसके विपरीत अगर कोई सम्बन्ध कन्या राशि का सामने आता है तो उस सम्बन्ध से कोई हानि इसलिये नही मानी जायेगी क्योंकि उस सम्बन्ध का अर्थ सीधे से परस्वार्थ की भावना से बनना पाया जायेगा। अगर वही सम्बन्ध किसी भी प्रकार से योग्य बनाकर सिंह राशि से या तुला राशि से किया जायेगा तो सम्बन्धो मे कोई न कोई भेद पैदा हो जायेगा,लेकिन भेद को भी समझ कर अगर सही रूप से प्रयोग मे लाया जाये तो सम्बन्ध चलेगा भी और जातक के इन भावो की रक्षा भी होती रहेगी अथवा उन भावो के अनुसार उसे फ़ायदा भी होने लगेगा। पुराने जमाने मे जब पंडित किसी की जन्म पत्री को मिलाया करते थे तो देखा करते थे कि वर पक्ष की मजबूती है और वधू पक्ष का कमजोरी का हाल है तो वे त्रिक भावो की विशेषता को समझते हुये वधू पक्ष को वर पक्ष से मजबूती के लिये रिस्ता बना दिया करते थे,इस प्रकार से जब सम्बन्ध बन जाया करता था तो वर और वधू एक दूसरे के हितो को भी देख कर चला करते थे और अगर वर पक्ष के द्वारा वधू पक्ष की सहायता की जरूरत होती थी तो वह अपने आप ही सम्बन्धो के द्वारा सहायता भी हो जाती थी और वर पक्ष के लिये कन्या पक्ष सतत प्रयत्न मे रहता था कि उसके सम्बन्धी की कोई हानि नही हो पाये।

इसके अलावा भी अगर वर पक्ष के लिये कोई त्रिक भाव के अनुसार कोई बीमारी और कर्जा वाली स्थिति के अनुसार भी दोष मिलता था तो भी कन्या पक्ष को उसी भाव से जोड कर छठे भाव के अनुसार ही शादी की जाती थी जिससे जैसे ही वर पक्ष को इन बातो की जरूरत पडे कन्या पक्ष या कन्या खुद ही उन्हे दूर करने की योग्यता को रखने के बाद उन समस्याओं को दूर कर दे। आज के युग मे जिसे देखो वही भौतिक सुख की कल्पना मे अपनी शादी और विवाह के रिस्ते को देखता है लेकिन भौतिक सुख की भी एक सीमा होती है अगर फ़ाइव स्टार मे भोजन रोजाना किया जायेगा तो घर के भोजन की सीमा समाप्त हो जायेगी और एक वक्त ऐसा आयेगा जब जातक या उसके परिवार वाले किसी साधारण भोजन को कोई तबुज्जय नही देंगे और परिवार का बिखराव शुरु हो जायेगा। कन्या पक्ष की एक सोच और भी देखी जाती है कि वर कितना कमाता है कैसे रहता है,और किस प्रकार का चाल चलन है। इन बातो मे सबसे अधिक महत्व वर के कमाने से लिया जाता है अगर वर सरकारी नौकरी मे है तो उसे पहले ही महत्व दे दिया जाता है और उस कारण से भी वर पक्ष के सामने खुद ही एक चुनौती आजाती है कि अधिक से अधिक कैसे शादी मे धन को प्राप्त किया जाये,इस बात के लिये भी यह सोचना जरूरी होता है कि वर अगर सरकारी नौकरी मे है तो यह जरूरी नही है कि वह सरकारी नौकरी को करता ही रहेगा या सरकारी नौकरी से उसकी जिन्दगी मे कोई दुख नही आयेगा,जबकि सरकारी नौकरी के अन्दर ही अधिक से अधिक भ्रष्टाचार का पनपना देखा जाता है,जब व्यक्ति के अन्दर सरकारी नौकरी को करने के बाद भ्रष्टाचार का बोलबाला अधिक हो जायेगा तो वह जरूर ही अपनी चलती हुयी प्रकृति के अनुसार मानसिक कारण जीवन साथी के लिये प्रयोग मे लाना शुरु कर देगा। अथवा अपने अहम के कारण जीवन साथी के परिवार से किसी प्रकार का अनबन वाला भाव पैदा कर लेगा।

कितना ही समर्थ सोफ़्टवेयर चाहे क्यों न प्रयोग मे लिया जाये लेकिन प्रकृति के एक सेकेण्ड के बदलाव को कथन मे लाना वश की बात नही है,यह मेरा खुद का अनुभव भी है केवल कल्पना की जा सकती है और कथन को हाँक कर कह दिया जाता है। कर्ता के आगे सभी प्रकार की ज्योतिष फ़ेल ही मानी जा सकती है। एक कहावत भी भगवान राम के बारे मे कही गया है-"कर्म गति टारे नाहिं टरी,मुनि वशिष्ठ से पंडित ज्ञानी,शोधि के लगन धरी,सीता हरण मरण दसरथ को वन मे विपति परी,कर्म गति टारे नाहिं टरी"।

Friday, December 16, 2011

mujhe mere kismat ke baare main bataiye

दिल्ली से एक सज्जन का यह प्रश्न है। कुण्डली कुम्भ लगन की है और राशि कर्क है। राहु पन्चम स्थान मे विराजमान है,चन्द्रमा छठे भाव मे विराजमान है,शनि मंगल दोनो अष्टम स्थान मे विराजमान है,गुरु भाग्य भाव मे विराजमान है,सूर्य कार्य भाव मे है और केतु बुध लाभ भाव मे विराजमान है,तथा शुक्र जो नवे भाव का मालिक है वह बारहवे भाव मे विराजमान है।

"घर किस्मत का तभी पनपता,जीव उजाले बैठा हो,चार सात घर खाली होते जीव तन्हा रह जाता है"

इस बात को इस कुंडली से समझा जा सकता है,किस्मत का मालिक शुक्र है और शुक्र बारहवे भाव मे जाकर उच्च का हो जाता है। बारहवा भाव आसमान का घर भी कहलाता है। लेकिन चार और सात दोनो खाली है इस प्रकार से किस्मत उच्च की होने के बावजूद भी जातक का जीवन तन्हा है वह अपने को अकेले में ही रखना पसन्द करता है। शनि और मंगल उसके अष्टम मे है इस बात के लिये कहा जाता है:-

"सालन सस्ता फ़ूस से बनता,रोज कमाना खाना है,जीव अहारी मरा जो खावे अष्टम शनिमंगल की बलिहारी"

आठवे घर को शमशान की उपाधि दी जाती है,अस्पताल का घर भी कहा जाता है,शनि को सडा हुआ भी कहा जाता है और मंगल को पकाने वाला भी कहा जाता है। फ़ूस का अर्थ पत्ते वाले ईंधन से है किसी वस्तु को पकाने के लिये अगर पत्तों को जलाया जाये तो वह अपनी गर्मी को पैदा नही कर पाता है,जब तक पत्ते जलाते रहो तब तक आग बनी रहती है और जैसे ही पत्ते खत्म हो गये आग भी खत्म हो गयी,शनि काले रंग की राख ही मिलती है। यह अर्थ अक्सर शमशानी खाने से भी जोडा जाता है जैसे मांस का भोजन,शनि को शिथिलता से भी जोडा जाता है और इस शनि की शिथिलता को दूर करने के लिये दवाइयों के रूप में मंगल को भी देखा जाता है जो शिथिलता को दूर करे। अक्सर इस युति वाले जातक को मरा हुआ मांस या जमीन के नीचे पैदा होने वाले कंद आदि खाने का शौक भी होता है। जातक को मंगल और शनि की शिफ़्त से शुगर या केंसर जैसी बीमारी भी हो जाती है। लेकिन बारहवा शुक्र जो किस्मत का मालिक है दोनो ग्रहों से अपनी युति को बनाकर बैठता है तो जातक को धन वाली कम्पनी मे या अस्पताल मे अथवा गुप्त रहस्यों को खोजने और सुलझाने मे सहायता भी मिलती है,शुक्र वैज्ञानिक बनाने के लिये भी अपनी तकनीक को देता है।

"पंचम राहु नौटंकी वाला गुरु नवें से करता है".

पांचवे भाव मे राहु की नजर अगर पांचवी द्रिष्टि से गुरु पर पडती है तो जातक अक्सर व्यापार के मामले मे धन का ब्रोकर वाला कार्य करता है,यह कार्य लोगों के लिये किये जाने वाले मनोरंजन को भी व्यापारिक कारणो से जोड कर चलने वाला होता है। अपनी बाहरी जिन्दगी मे वह अपने जीवन की नैया को भाग्य के सहारे भी छोड कर अपने जीवन को लोगों के हित के लिये भी शुरु करने वाला होता है,लेकिन उसके लिये कोई भी जोखिम का काम नौटंकी करने जैसा ही होता है। यहां तक कि वह अपने आने वाली संतान के मामले मे भी दोहरी जिन्दगी को जीने की चाहत वाला माना जाता है इस प्रकार के जातक के कोई भी काम प्लान बनाकर सफ़ल नही हो पाते है वह जो भी काम रास्ता चलते करता है वह पूरा हो जाता है।

"शुक्र बारहवा सूर्य दसें में अन्धापन दे जाता है,कानूनी मसलों के कारण मन ही मन पछताता है"

अगर शुक्र बारहवा हो और सूर्य दसवे भाव मे हो तो किसी न किसी प्रकार की बीमारी आंख सम्बन्धी हो जाती है,यह युति अक्सर शरीर मे पोषक तत्वों की कमी के कारण ह्रदय रोग को भी देने वाला होता है और शरीर मे खून के थक्के जमने की बीमारी भी देता है। किडनी वाले रोग भी देने के लिये यह सूर्य और शुक्र की युति अपना काम करती है। अधिक से अधिक खर्चा दवाइयों और अस्पताली कारणो मे ही होता रहता है।

"शुक्र बारहवां त्रिया हितकारी"

बारहवे शुक्र के होने पर अगर जातक अपनी स्त्री से हित लगाकर चलता है तो वह जीवन मे दिक्कत नही उठाता है जितना वह अपनी स्त्री को परेशान करेगा उतना ही वह दुखी होगा,इसके अलावा भी अगर जातक मीडिया और सजावट वाले कामो को बिजली वाले कामो को लेकर चलता है तो वह जीवन मे धन के लिये भी दुखी नही हो पायेगा जैसे ही उसकी शादी होगी उसकी स्त्री जातक के सभी कष्टों को अपने पर झेलने के लिये तैयार हो जायेगी।

नाम बदलने का अधिकार

जीवन मे नाम का महत्व बहुत अधिक है किसी भी तरह के ज्योतिषीय प्रभाव से अधिक नाम का प्रभाव बहुत ही शक्तिशाली कहा गया है। अ के साथ क वर्ग जुडने से जीवन मे नाटकीय परिवर्तन होता देखा गया है,च वर्ग के जुडने से खुद की ही चिन्ता को करने वाला माना जाता है,ट वर्ग के जुडने से ख्याति का फ़ैलना देखा गया है,लेकिन अपने जीवन की नीची अवस्था को भी देखा जाता है। त वर्ग के जुडने से भी धन सम्पत्ति की भरमार मिलती है लेकिन सन्तान के मामले मे कोई न कोई दिक्कत का होना भी देखा गया है। प वर्ग के जुडने से अपने ही खानदान या देश की मर्यादा रीति रिवाज से दूर जाकर अपने मे ही मस्त रहना भी देखा जाता है। य वर्ग के जुडने से जीवन को कई हिस्सो मे लेकर जीने के लिये लाखो उदाहरण मिले है।
अ के साथ क वर्ग के जुडने से अधिकतर लोग शरीर की ताकत को अपनी दिमागी ताकत को बहुत अधिक जोडने और फ़ैलाने के साथ साथ केवल अपने जिन्दा रहने तक ही अपनी सामाजिक जिन्दगी को ऊंचा दिखा पाते है बाद मे उनके इतिहास को ही सराहा जाता है लेकिन उनकी औलाद या उनकी बची हुयी परिसम्पत्ति को कोई नही सराहता है। उदाहरण के रूप में अकबर नाम को ही देख लीजिये,अखबार का दूसरा रूप भी वस्तु के रूप मे है,अगर की महत्ता सुगन्ध के रूप मे उपस्थित होने तक यानी जब तक वह पूरा जल नही जाता तभी तक माना जा सकता है,जलने के बाद सुगन्ध समाप्त हो जाती है और राख ही मिलती है,अघोर की व्याख्या भी ऐसी और और अंगार की व्याख्या भी आप समझ सकते है। उसी प्रकार से अ के साथ च वर्ग के जुडने से खुद की महत्ता को देखना जातक के लिये जरूरी हो जाता है,जैसे अचला नाम स्त्रियों मे अधिक रखा जाता है,और इस नाम के जातको को अधिकतर अपने ही अन्दर खुश रहने से तथा अपने ही विचारों को व्यक्त करने के लिये देखा जाता है उन्हे दूसरो की परवाह भी नही होती है। अछ शब्द को भी सफ़ाई करने के लिये माना जाता है और यह शब्द केवल शरीर के लिये ही अन्दरूनी सफ़ाई के लिये माना जाता है। अज शब्द का अर्थ वैसे तो वेदों में ब्रह्मा से लिया गया है। लेकिन इसे भी शरीर निर्माण के लिये ही देखा जाता है और अपनी शरीर की शक्ति से भी इसे माना जाता है दुनियावी कारणो का इस शब्द से कोई लेना देना नही होता है। अझ शब्द से भी जुडने वाले नामो के लिये सभी कुछ एक झटके से समाप्त करने के लिये और अयँ शब्द भी केवल अटकने के लिये ही माना जाता है। अ के साथ तवर्ग के जोडने पर अत शब्द को भी अधिकता से लिया जाता है और इस प्रकार के नाम वाले केवल सन्तान आदि के मामले मे अधिक देखे जाते है बाकी की भौतिकता से कोई लेना देना नही होता है। अथ शब्द भी विस्तृत व्याख्या के लिये माना जाता है और इस शब्द के नाम जो शुरु होते है वे अधिकतर कोई भी कार्य विस्तार से करने के लिये माने जाते है। अद शब्द की उत्पत्ति का कारण किसी भी कारक के लिये शुरु से शुरुहोना माना जाता है जैसे जातक के पूर्वज बहुत नामी ग्रामी रहे होते है लेकिन जातक के पैदा होने तक उनका नाम और धन यश आदि समाप्त हो चुका होता है,जातक को अपने जीवन मे केवल शरीर की दौलत से ही सब कुछ इकट्ठा करने के बाद जीवन को चलाया जाना देखा जाता है। अध शब्द के लिये भी जीवन मे किसी न किसी बात की कमी को देखा जाता है वह सन्तान मे है तो धन के लिये नही और धन के लिये है तो शरीर के लिये नही बात को समझ कर देखा जा सकता है। इसी प्रकार से अन शब्द के लिये भी केवल खा पीकर मौज करने के बाद आगे के लिये नही सोचना माना जाता है। अ के साथ पवर्ग को जोडे जाने पर या तो जातक अप शब्द से जुडा है तो वह या तो शाही जिन्दगी को जीने वाला होता है या हमेशा ही किसी न किसी बात से दुखी रहता है। अफ़ शब्द से भी जुडने वाले नाम अक्सर ख्वाबों मे डूबे रहने वाले माने जाते है। अब शब्द से जुडे नाम अक्सर चलने वाले समाज मे अपने को अच्छे या बुरे नाम से जोड कर चलने वाले माने जाते है लेकिन इनके अन्दर एक विशेष बात यह भी देखी जाती है कि वे या तो बहुत ही नैतिकता का जीवन जीते है या फ़िर पूरी तरह से अनैतिकता मे ही अपने को लेकर चलने वाले होते है। अभ शब्द नाटकीय जीवन को जीने के लिये मजबूर करता है,वह देखने मे बहुत खुश हो सकता है लेकिन अन्दर से वह कितना दुखी है इस बात को वह प्रदर्शित नही करता है। अपने परिवार से दूर जाकर ही वह उन्नति को प्राप्त कर पाता है परिवार से जुड कर वह कभी भी अपनी हैसियत को नही बढा पाता है। अम शब्द भी चहुं मुखी विकास के लिये माना जाता है बचपन से वह कठिनाइयों मे ही जीने वाला होता है और एक साथ चार रास्ते देखने और समझ मे नही आने से वह अपने द्वारा ही अपनी जवानी की उम्र से बढना शुरु होता है लेकिन जीवन साथी के मामले मे देखा गया है कि कोई न कोई असमानता या तो शरीर से या शिक्षा से अथवा सामाजिक मूल्यों से अनुसार समान्तर से नही चल पाता है।