Tuesday, March 6, 2012

I WANT THE RICH IN MY LIFE. AND FULFIL THE ALL MY AMBIATION.

कल सपने के बारे मे लिखा था,आज भी यही प्रश्न सामने है कि मै धनी बनना चाहता हूँ.सपना धन का,बहुत ही महत्वपूर्ण बात है,जिसे देखो इसी प्रकार का सपना लेकर चल रहा है.चौथा आठवा और बारहवा भाव इच्छाओं का कहलाता है लेकिन इच्छा पूर्ति के लिये इन तीनो भावो के ग्यारहवे भाव भी बली होने जरूरी है,इस जातक की कुंडली मे चौथे के ग्यारहवे यानी दूसरे भाव मे भी कोई ग्रह नही है,आठवे के ग्यारहवे में केवल सूर्य लगनेश और शुक्र जो तृतीयेश और कार्येश है विद्यमान है,बारहवे भाव के ग्यारहवे भाव मे भी कोई ग्रह नही है इस प्रकार से एक बात और भी जानी जा सकती है कि चौथा भाव खाली है,केवल आठवे भाव मे और बारहवे भाव मे ही मंगल और चन्द्रमा है। चन्द्रमा केवल सोच को देने वाला है और मंगल हिम्मत को देने वाला है.चौथा भाव पूर्वजो से प्राप्त सम्पत्ति की सोच से आगे बढने वाला होता है आठवा भाव खुद के द्वारा परिश्रम करने के बाद नौकरी या सेवा वाले काम करने के बाद प्राप्त करने वाले धन के प्रति सोच कर आगे बढने के लिये माना जाता है और दसवा भाव जो कार्य बडी विद्या को लेकर किये गये होते है के लिये माना जाता है। जातक की प्राथमिक विद्या में बुध वक्री होकर विराजमान है यानी प्राथमिक विद्या मे भी बदलाव हुया है ऊंची विद्या मे शनि विराजमान है जो केवल करके सीखने के लिये ही अपनी शक्ति को प्रदान करता है डिग्री लेने या अन्य प्रकार के कारण पैदा करने के बाद विशेषता हासिल करने के लिये नही माना जाता है,इसके बाद जो किसी विषय मे अलावा योग्यता के लिये देखा जाता है वह दूसरे भाव से देखना जरूरी है,लेकिन यह भाव भी खाली है.

गुरु राहु की नवम पंचम युति को अक्सर फ़रेबी सम्बन्धो के लिये भी माना जा सकता है,जातक के दिमाग मे वही कारण पैदा होंगे जिससे वह फ़रेब से सम्बन्ध बनाकर धन कमाने के लिये अपनी इच्छाओं को पालेगा। धनु राशि का बुध अगर वक्री होता है तो वह उल्टे कानून बनाकर अपने कार्यों को लेकर चलने वाला होता है,केतु शनि और वक्री बुध की आपसी युति बन जाती है तो जातक कानून को अन्धेरे मे रखकर सत्ता या राजनीति का बल लेकर धन कमाने के लिये अपनी इच्छा को जाहिर करता है। लेकिन शनि जब भी किसी भी ग्रह को दसवी और चौथी नजर से देखता है तो वही ग्रह शनि की वक्र नजर से आहत हो जाते है। बारहवा चन्द्रमा नवी शनि से आहत है,छठे भाव के शुक्र और सूर्य दोनो ही इस शनि की दसवी नजर से आहत है। बारहवा भाव खर्च करने का मालिक भी है चन्द्रमा के बारहवे भाव मे होने से जातक मानसिक सोच को खर्च करने के लिये अपनी युति को देता है,इस चन्द्रमा की योग्यता से यह जिस भाव मे अपना गोचर करता है उसी को खर्च करने का मानस बना रहता है,जिस ग्रह के साथ रहता है उसी ग्रह की कारक वस्तुओ को खर्च करने के लिये माना जा सकता है। मंगल का प्रभाव भी इसी प्रकार से माना जाता है यह जिस भाव मे गोचर करता है उसी के प्रति अपनी मारक सोच रखता है,मीन राशि का मंगल होने के कारण अक्सर दिमागी झल्लाहट क भी प्रयोग करने के लिये माना जाता है,साथ ही यह मन्गल जन्म के जिस ग्रह के साथ अपना गोचर करेगा वह ग्रह भी मंगल की तपिस से नही बच पायेगा। राहु की सिफ़्त के अनुसार वह जिस भाव मे अपना गोचर करेगा उसी ग्रह या भाव से अपनी साझेदारी प्रकट करना शुरु कर देगा,वह साझेदारी किसी भी क्षेत्र से अच्छे या बुरे किसी भी कारण से हो सकती है केतु का स्वभाव अपनी उपस्थिति को देने है यह जिस भाव मे जिस ग्रह के साथ अपना गोचर करेगा वह अपनी उपस्थिति उसी भाव या राशि या ग्रह के अनुसार प्रदर्शित करना शुरु कर देगा। इस प्रकार से सूर्य और शुक्र के छठे भाव मे होने से साल के बारह महिनो मे जातक बारह प्रकार के कार्य सम्बन्धी बदलाओ को भी करेगा और जिस भी कार्य या स्थान मे हाथ डालने की कोशिश करेगा वह उसी से मानसिक और कार्य शत्रुता को अपने अन्दर बैठा लेगा.गुरु जो सम्बन्धो का कारक है जिस भाव राशि या ग्रह के साथ गोचर करेगा उसी भाव ग्रह के साथ व्यापारिक भाव पैदा कर लेगा,इस प्रकार से धन का कारक बुध जो वक्री है वह आयेगा तो लेकिन उल्टी गति से आकर वापस चला जायेगा।

2 comments:

  1. guruji ek baat to sach hai ki maya ne sabhi ko thaga "MAYA MAHA THAGINI"

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  2. माया को कर्म की माया भी कहा जाता है,जब कर्म और माया की आपसी टक्कर होती है तो माया का रूप और भी बढ जाता है,माया या आध्यात्म दो मे से एक की ही प्राप्ति हो पाती है,अन्यथा सभी कुछ छल के लिये माना जा सकता है.

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