कुंडली की परिभाषा बनाते समय एक एक ग्रह का ध्यान रखना जरूरी होता है। एक ग्रह एक भाव मे एक सौ चवालीस भाव रखता है,हर भाव का रूप राशि के अनुसार अपनी अपनी भावना से ग्रह शक्ति की विवेचना करता है। वही ग्रह मित्र होता है तो समय पर वही ग्रह शत्रु भी हो जाता है जो ग्रह बचाने वाला होता है वही मारने वाला भी बन जाता है।प्रस्तुत कुंडली मे केतु की करामात को समझने की जरूरत है,वही केतु बारहवे भाव मे बैठ कर मौज देने का मालिक है तो वही केतु चौथे भाव मे आकर परेशानी देने का मालिक है आगे यही केतु परेशानी देने के बाद स्त्री राशि का प्रभाव देकर सन्तान को देने के लिये भी अपनी युति को प्रदान करने की हिम्मत देगा और पराक्रम मे जाकर अपनी शक्ति को असीमित करने के बाद राहु का बल भी देने के लिये माना जा सकता है। वर्तमान मे यह केतु चौथे भाव मे है और अपनी शक्ति से जातक के रहने वाले स्थान पर अपनी छाया दे रहा है इस छाया के कारण चौथे भाव के प्रभाव जातक के लिये दिक्कत देने वाले बन गये है जैसे माता को परेशानी घर मे अशान्ति अजीब अजीब सी बीमारियां मिल रही है,केतु की नजर छठे भाव मे होने पर तथा जन्म के राहु को देखने के कारण पानी वाली बीमारियां फ़ेफ़डे वाली बीमारियां मिल रही है,अष्टम स्थान में गुरु शनि को देखने के कारण अस्प्ताली कारणो को पैदा कर रहा है जो भी हितू नातेदार रिस्तेदार है सभी अपमान की नजर से देख रहे है,केतु की नजर बारहवे भाव मे मंगल केतु और जन्म के बुध को देखने के कारण जो कमन्यूकेशन के साधन और बाहरी सहायताये देने के लिये अपने असर को जातक के लिये जीविका का साधन देने वाले थे वही अब केतु की नवी नजर से प्रभावित होने के बाद अपनी सहायताओ को बन्द कर रहे है। इन साधनो को बन्द करने के लिये राहु भी अपनी युति को दे रहा है राहु ने धन भाव मे विराजमान मीन के चन्द्रमा को देखा है यह चन्द्रमा वक्त पर सहायता देने वाले कारणो मे जाना जाता है और जब भी जातक मुशीबत मे होता है अपनी सहायता से जातक को दैनिक खर्चो और परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी मे अपनी सहायता करता है लेकिन राहु के ग्रहण के कारण जातक को पानी वाली बीमारियां देकर पानी के और खाने पीने के साधनो मे अपने इन्फ़ेक्सन को देकर जातक को रोजाना के काम भी नही करने दे रहा है तथा अपनी युति से कनफ़्यूजन देकर पीर फ़कीर मौलवी आदि के चंगुल मे भी भेजने के लिये अपनी शक्ति को दे रहा है। शनि से केतु का अष्टम मे होना भी जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट देने के लिये माना जा सकता है और इस शनि के प्रभाव से माता का भाव भी कष्ट मे जा रहा है और माता के लिये एक प्रकार से मृत्यु जैसे कष्ट देने के लिये भी माना जा सकता है। गोचर का शनि वैसे भी जन्म के शुक्र और सूर्य को अपनी ठंडक देकर जो भी सहायताये पिता और पिता की सम्पत्ति से मिलने वाली होती है उनके अन्दर भी अपनी ठंडक को दे रहा है।
अक्सर वेद पुराण और पुराने ग्रंथो मे केतु को छाया ग्रह कहा गया है और केतु की छाया को ही भूत प्रेत पिशाच बैताल आदि की श्रेणी मे गिना गया है। केतु की छाया जहां जहां पडती है वहां की शक्ति क्षीण होती चली जाती है,अक्सर देखा होगा कि जिन मकानो के उत्तर-पूर्व दिशा किसी प्रकार से केतु की स्थानपना है यानी कोई पेड खम्भा मन्दिर की चोटी मस्जिद आदि बनी है तो वह सूर्योदय के समय की उन्नत ऊर्जा को खाने वाला माना जाता है अक्सर इस प्रकार के घर सन्तान विहीन भी हो जाते है और वीरान भी होते देखे गये है,अथवा जहाम तक छाया जाती है वहां तक कोई निर्माण हो भी जाता है तो वह बसावट नही कर पाता है। इसी प्रकार से कुंडली के अन्दर जब तक केतु की छाया किसी भी भाव मे रहती है वह अपने प्रभाव को देकर उस भाव के खाली पन के लिये जिम्म्देदार माना जाता है। जैसे उपरोक्त कुंडली मे मंगल केतु एक साथ है यह प्रभाव एक खूनी पिशाच की श्रेणी मे माना जाता है,जरूरी नही है कि पिशाच खुद आकर खून को पिये वह खून को चोट लगने से रक्त नलिका के अचानक फ़टने से अथवा कभी कभी देखा जाता है कि इस मंगल केतु की युति या तो रक्तदान करवा देती है या दूसरो का रक्त खुद के शरीर मे किसी भी बीमारी या चोट का बहाना बनाकर ले लेती है। लेकिन बुध के साथ होने से तथा राहु के छठे भाव मे जाने से जातक के लिये यही केतु कमन्यूकेशन के साधन देकर और उसके अन्दर शक्ति का विस्तार करने वाले कामो दे देती है जैसे मोबाइल का काम करना उन्हे रीचार्ज करना उनकी सप्लाई आदि को बनाना ठीक करना यही बदे रूप मे अगर देखा जाये तो कम्पयूटर नेट वर्क मे आगे बढ जाना आदि बाते देखने को मिलती है जब यह केतु गोचर से सही जगह पर जैसे लगन मे होता है तो यह केतु धन भाव को अपनी क्रियाओं से भरता है बारहवे भाव मे होता है तो लगन को अपनी शक्ति से ग्यारहवे भाव से शक्ति लेकर भरने के लिये अपनी योग्यता को देता है। वर्तमान ने इस केतु का प्रभाव चौथे भाव मे है तो वह पंचम की शक्ति को क्षीण करने के बाद तीसरे भाव को बल दे रहा है,तीसरा भाव केवल कमन्यूकेशन को करने का और पहिचान बनाकर रखने का है छोटी छोटी यात्रा करने के लिये माना जा सकता है धर्म कानून स्कूल आदि की शिक्षा की सहायता के लिये माना जा सकता है,माता के लिये बीमारी आदि मे खर्चा करना पिता की बीमारी मे और पिता के किये जाने वाले कार्यों मे बल देना,पत्नी के प्रति धार्मिक काम करने और उसकी पूर्ति करने के लिये भी माना जा सकता है।
केतु के उपाय के लिये सीधा सा उपाय हमारे पुराने ग्रंथो मे बताया गया है कि केतु की कारक वस्तुओं को चौथे भाव मे होने पर पानी मे बहाना,बारहवे भाव मे होने पर किसी भी धर्म स्थान मे पताका को लगाना और अष्टम भाव मे होने पर केतु के सामान को वीराने मे दबाना,यह भाव के अनुसार ही किया जाता है जैसे बारहवे भाव के केतु के लिये बारह पताकायें बारह बार धर्म स्थान पर लगाना चौथे भाव के लिये काले सफ़ेद तिल पानी मे बहाना आदि उपाय करने से केतु अपनी शक्ति को घटाने वाली शक्ति को कम किये रहता है।
अक्सर वेद पुराण और पुराने ग्रंथो मे केतु को छाया ग्रह कहा गया है और केतु की छाया को ही भूत प्रेत पिशाच बैताल आदि की श्रेणी मे गिना गया है। केतु की छाया जहां जहां पडती है वहां की शक्ति क्षीण होती चली जाती है,अक्सर देखा होगा कि जिन मकानो के उत्तर-पूर्व दिशा किसी प्रकार से केतु की स्थानपना है यानी कोई पेड खम्भा मन्दिर की चोटी मस्जिद आदि बनी है तो वह सूर्योदय के समय की उन्नत ऊर्जा को खाने वाला माना जाता है अक्सर इस प्रकार के घर सन्तान विहीन भी हो जाते है और वीरान भी होते देखे गये है,अथवा जहाम तक छाया जाती है वहां तक कोई निर्माण हो भी जाता है तो वह बसावट नही कर पाता है। इसी प्रकार से कुंडली के अन्दर जब तक केतु की छाया किसी भी भाव मे रहती है वह अपने प्रभाव को देकर उस भाव के खाली पन के लिये जिम्म्देदार माना जाता है। जैसे उपरोक्त कुंडली मे मंगल केतु एक साथ है यह प्रभाव एक खूनी पिशाच की श्रेणी मे माना जाता है,जरूरी नही है कि पिशाच खुद आकर खून को पिये वह खून को चोट लगने से रक्त नलिका के अचानक फ़टने से अथवा कभी कभी देखा जाता है कि इस मंगल केतु की युति या तो रक्तदान करवा देती है या दूसरो का रक्त खुद के शरीर मे किसी भी बीमारी या चोट का बहाना बनाकर ले लेती है। लेकिन बुध के साथ होने से तथा राहु के छठे भाव मे जाने से जातक के लिये यही केतु कमन्यूकेशन के साधन देकर और उसके अन्दर शक्ति का विस्तार करने वाले कामो दे देती है जैसे मोबाइल का काम करना उन्हे रीचार्ज करना उनकी सप्लाई आदि को बनाना ठीक करना यही बदे रूप मे अगर देखा जाये तो कम्पयूटर नेट वर्क मे आगे बढ जाना आदि बाते देखने को मिलती है जब यह केतु गोचर से सही जगह पर जैसे लगन मे होता है तो यह केतु धन भाव को अपनी क्रियाओं से भरता है बारहवे भाव मे होता है तो लगन को अपनी शक्ति से ग्यारहवे भाव से शक्ति लेकर भरने के लिये अपनी योग्यता को देता है। वर्तमान ने इस केतु का प्रभाव चौथे भाव मे है तो वह पंचम की शक्ति को क्षीण करने के बाद तीसरे भाव को बल दे रहा है,तीसरा भाव केवल कमन्यूकेशन को करने का और पहिचान बनाकर रखने का है छोटी छोटी यात्रा करने के लिये माना जा सकता है धर्म कानून स्कूल आदि की शिक्षा की सहायता के लिये माना जा सकता है,माता के लिये बीमारी आदि मे खर्चा करना पिता की बीमारी मे और पिता के किये जाने वाले कार्यों मे बल देना,पत्नी के प्रति धार्मिक काम करने और उसकी पूर्ति करने के लिये भी माना जा सकता है।
केतु के उपाय के लिये सीधा सा उपाय हमारे पुराने ग्रंथो मे बताया गया है कि केतु की कारक वस्तुओं को चौथे भाव मे होने पर पानी मे बहाना,बारहवे भाव मे होने पर किसी भी धर्म स्थान मे पताका को लगाना और अष्टम भाव मे होने पर केतु के सामान को वीराने मे दबाना,यह भाव के अनुसार ही किया जाता है जैसे बारहवे भाव के केतु के लिये बारह पताकायें बारह बार धर्म स्थान पर लगाना चौथे भाव के लिये काले सफ़ेद तिल पानी मे बहाना आदि उपाय करने से केतु अपनी शक्ति को घटाने वाली शक्ति को कम किये रहता है।