सूर्य का अधिकार सम्पूर्ण सृष्टि सहित ब्रह्माण्ड पर है,सूर्य की गति नियत है वह न तो कभी आगे है और न ही कभी पीछे है गति के अनुसार समय पर उदय होना है और समय पर ही अस्त होना है किसी प्रकार का बदलाव सृष्टि जगत में हलचल मचा सकता है। सूर्य उजाले का राजा है शक्ति का दाता है सूर्य की शक्ति से ही जगत का विकास सम्भव है। सूर्य की शक्ति ग्रहण की क्रिया जगत के विकास के लिये ही है वह गंदगी से भी शक्ति को ग्रहण कर सकता है और स्वच्छ जलवायु से भी शक्ति को प्राप्त कर सकता है इसलिये कहा भी गया है कि सूर्य समर्थ है और समर्थ को कोई दोष नही दे सकता है। सूर्य आग गंगाजी इन तीनो के लिये कोई भी पवित्र अपवित्र कारक मायना नही रखता है। प्रस्तुत कुंडली तुला लगन की है सूर्य ग्यारहवे भाव का मालिक है और लाभ तथा बडे भाई सहित मित्रो का कारक भी है शुक्र के घर मे स्थापित होने के कारण अहम का भी दाता बन जाता है बुध जो तुला लगन के लिये भाग्य और व्यय का कारक होने के कारण तथा वक्री होने के कारण सूर्य के साथ अपनी युति से न तो अस्त हो सकता है और न ही अपनी वास्तविकता को प्रदर्शित कर सकता है यह जो है उसका उल्टा प्रभाव देने के लिये माना जा सकता है कोई भी किसी प्रकार का साधन विद्या और धन आदि की बात मे यह बुध अपनी युति से उल्टी गिनती से अपना कार्य सफ़ल करने के लिये अपनी योग्यता को धारण करता है। सूर्य पर जब गुरु की द्रिष्टि मिलती है तो सूर्य जीवात्मा का कारक बन जाता है गुरु अगर जीव है तो सूर्य आत्मा है। इस कुंडली मे जीवात्मा का योग है और जातक के लिये ईश्वर अंश से जन्म लेना माना जा सकता है। लेकिन गुरु का बारहवे भाव मे होने से तथा बारहवे भाव का कारक राहु होने से गुरु के अन्दर एक प्रकार का अनौखा उद्वेग पैदा हो जाता है जो जीव जगत मे अपनी पहिचान करने के लिये उन्ही कारको का सहारा लेता है जो कारक सेवा और धन के साथ गणित विद्या मे माहिर होते है आंकडों के जाल की भाषा रचने का प्रभाव इस स्थान के गुरु को मिल जाता है वही प्रभाव गुरु अपनी वृहद नजर से गुरु और बुध को प्रदान करने लगता है। जातक के अन्दर धन सम्बन्धी विदेशी व्यापार सम्बन्धी एक प्रकार का गुण भर देता है जिसे प्रयोग करने के बाद जातक अपने जीवन मे सफ़लता प्राप्त करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करता चला जाता है।
सूर्य आसमान का राजा है अगर अष्टम भाव मे चला जाता है तो वह पाताल मे उजाला करने मे असमर्थ हो जाता है लेकिन वही सूर्य अगर आसमानी गुरु से देखा जा रहा है तो वह गुरु के बल से असीमित शक्ति को प्राप्त करने के बाद पाताल मे ग्यान रूपी उजाला फ़ैलाने के लिये अपनी शक्ति को पूरा करता है। गुरु जो जातक के रूप मे होता है अपने जन्म स्थान को त्याग कर घर से दक्षिण पूर्व दिशा मे जाकर अपनी शक्ति को प्रदर्शित करता है और धन सम्बन्धी सेवा सम्बन्धी धर्म सम्बन्धी क्रियाओं को पूरा करने के लिये अपनी अन्दरूनी चमक को जाहिर करता है। इस गुरु की नवी नजर सूर्य पर होने से और बुध वक्री के साथ युति बनाने से शेयर कमोडिटी बाजार भाव के उतार चढाव तथा उल्टी क्रिया जैसे जब जनता के अन्दर खरीददारी की ललक बनती है तो जातक के द्वारा बिक्री करने की गति पैदा होती है और जब जनता के अन्दर बिक्री की गति बनती है तो जातक के द्वारा खरीददारी की गति बनती है। इस प्रकार से जातक गुरु केतु की बुद्धि से अपनी बुद्धि को उल्टी रीति से घुमाकर जहां भी सेवा वाले काम करता है उसे फ़ायदा निरन्तर पहुंचाने की क्रिया को पूरा करता है। दूसरे भाव का सूर्य सोना होता है तो अष्टम भाव का सूर्य लोहे के रूप मे माना जाता है खनिज सम्पत्ति को जानना और उसकी क्रिया को पूरा करना भी उसे आता है साथ ही जातक के अन्दर चिकित्सा सम्बन्धी गुण भी होते है और वह अपनी क्रिया शक्ति के द्वारा उन्ही कारको का काम करता है जो कारक पोषक चीजो से अपनी युति प्रदान करते है। मंगल के दो रूप होते है अगर मंगल दूसरे छठे और दसवे भाव मे मार्गी होता है तो जातक के अन्दर धन के प्रति उत्तेजना देता है जो उत्तेजना मे खर्च होने के कारण जातक धन के लिये परेशान होता है लेकिन वही मन्गल अगर दूसरे भाव मे वक्री होता है तो जातक के लिये यह मंगल दिमागी रूप से धन की विवेचना करना और ताकत की बजाय तकनीकी बुद्धि से धन के प्रति भोजन के प्रति आहार विज्ञान के प्रति अपनी परिभाषा को प्रकट करता है। सूर्य का जब वक्री मंगल से योगात्मक प्रभाव सामने आता है तो जातक के पिता के बडे भाई या जातक के पिता के द्वारा सोने चांदी के कार्य दूसरो से करवाकर फ़ायदा अपने अनुसार लिया जाता है लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब जातक के पिता के छोटे भाई जो उम्र में कम से कम ढाई साल छोटे होते है वह अपनी स्थिति से सब कुछ बरबाद करने के बाद कई प्रकार के व्यापारिक कारण पैदा कर देते है और जातक के पिता का कार्य उस प्रकार से नही चल पाता है जैसे कि चलना चाहिये।
जातक की माता भी तीन बहिने होती है एक बहिन यात्रा वाले कार्यों से जुडे परिवार मे होती है दूसरी बहिन धन के लेनदेन वाले कार्यों से जुडे परिवार मे होती है और खुद जातक की माता कई प्रकार के जायदाद और रहने वाले स्थान के बदलाव के लिये अपनी शक्ति को प्रदर्शित करती है। इसी प्रकार से जातक के दादा भी अपने स्थान से बाहर रहने के लिये अपनी गति को प्रदान करते है और तीन भाई होकर अपनी शक्ति को प्रदर्शित करते है लेकिन उनका लालन पालन अपनी ननिहाल मे हुआ होता है उनके समय मे उनकी ननिहाल की स्थित भी रजवाडे के नामी लोगो के नाम से जानी जाती है और धन आदि के लेन देन मे उनका नाम होता है। जातक के एक दादा के दत्तक संतान के प्रति भी जाना जा सकता है या तो वह ननिहाल मे जायदाद के लिये या पत्नी खानदान मे अपनी स्थिति को पैदा करने के लिये अपनी स्थिति को बताते है। जातक के माता खानदान मे भी जायदाद का मिलना या इसी प्रकार का योगात्मक प्रभाव का होना माना जा सकता है।
सूर्य आसमान का राजा है अगर अष्टम भाव मे चला जाता है तो वह पाताल मे उजाला करने मे असमर्थ हो जाता है लेकिन वही सूर्य अगर आसमानी गुरु से देखा जा रहा है तो वह गुरु के बल से असीमित शक्ति को प्राप्त करने के बाद पाताल मे ग्यान रूपी उजाला फ़ैलाने के लिये अपनी शक्ति को पूरा करता है। गुरु जो जातक के रूप मे होता है अपने जन्म स्थान को त्याग कर घर से दक्षिण पूर्व दिशा मे जाकर अपनी शक्ति को प्रदर्शित करता है और धन सम्बन्धी सेवा सम्बन्धी धर्म सम्बन्धी क्रियाओं को पूरा करने के लिये अपनी अन्दरूनी चमक को जाहिर करता है। इस गुरु की नवी नजर सूर्य पर होने से और बुध वक्री के साथ युति बनाने से शेयर कमोडिटी बाजार भाव के उतार चढाव तथा उल्टी क्रिया जैसे जब जनता के अन्दर खरीददारी की ललक बनती है तो जातक के द्वारा बिक्री करने की गति पैदा होती है और जब जनता के अन्दर बिक्री की गति बनती है तो जातक के द्वारा खरीददारी की गति बनती है। इस प्रकार से जातक गुरु केतु की बुद्धि से अपनी बुद्धि को उल्टी रीति से घुमाकर जहां भी सेवा वाले काम करता है उसे फ़ायदा निरन्तर पहुंचाने की क्रिया को पूरा करता है। दूसरे भाव का सूर्य सोना होता है तो अष्टम भाव का सूर्य लोहे के रूप मे माना जाता है खनिज सम्पत्ति को जानना और उसकी क्रिया को पूरा करना भी उसे आता है साथ ही जातक के अन्दर चिकित्सा सम्बन्धी गुण भी होते है और वह अपनी क्रिया शक्ति के द्वारा उन्ही कारको का काम करता है जो कारक पोषक चीजो से अपनी युति प्रदान करते है। मंगल के दो रूप होते है अगर मंगल दूसरे छठे और दसवे भाव मे मार्गी होता है तो जातक के अन्दर धन के प्रति उत्तेजना देता है जो उत्तेजना मे खर्च होने के कारण जातक धन के लिये परेशान होता है लेकिन वही मन्गल अगर दूसरे भाव मे वक्री होता है तो जातक के लिये यह मंगल दिमागी रूप से धन की विवेचना करना और ताकत की बजाय तकनीकी बुद्धि से धन के प्रति भोजन के प्रति आहार विज्ञान के प्रति अपनी परिभाषा को प्रकट करता है। सूर्य का जब वक्री मंगल से योगात्मक प्रभाव सामने आता है तो जातक के पिता के बडे भाई या जातक के पिता के द्वारा सोने चांदी के कार्य दूसरो से करवाकर फ़ायदा अपने अनुसार लिया जाता है लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब जातक के पिता के छोटे भाई जो उम्र में कम से कम ढाई साल छोटे होते है वह अपनी स्थिति से सब कुछ बरबाद करने के बाद कई प्रकार के व्यापारिक कारण पैदा कर देते है और जातक के पिता का कार्य उस प्रकार से नही चल पाता है जैसे कि चलना चाहिये।
जातक की माता भी तीन बहिने होती है एक बहिन यात्रा वाले कार्यों से जुडे परिवार मे होती है दूसरी बहिन धन के लेनदेन वाले कार्यों से जुडे परिवार मे होती है और खुद जातक की माता कई प्रकार के जायदाद और रहने वाले स्थान के बदलाव के लिये अपनी शक्ति को प्रदर्शित करती है। इसी प्रकार से जातक के दादा भी अपने स्थान से बाहर रहने के लिये अपनी गति को प्रदान करते है और तीन भाई होकर अपनी शक्ति को प्रदर्शित करते है लेकिन उनका लालन पालन अपनी ननिहाल मे हुआ होता है उनके समय मे उनकी ननिहाल की स्थित भी रजवाडे के नामी लोगो के नाम से जानी जाती है और धन आदि के लेन देन मे उनका नाम होता है। जातक के एक दादा के दत्तक संतान के प्रति भी जाना जा सकता है या तो वह ननिहाल मे जायदाद के लिये या पत्नी खानदान मे अपनी स्थिति को पैदा करने के लिये अपनी स्थिति को बताते है। जातक के माता खानदान मे भी जायदाद का मिलना या इसी प्रकार का योगात्मक प्रभाव का होना माना जा सकता है।