Friday, April 27, 2012

केतु की करामात

कुंडली की परिभाषा बनाते समय एक एक ग्रह का ध्यान रखना जरूरी होता है। एक ग्रह एक भाव मे एक सौ चवालीस भाव रखता है,हर भाव का रूप राशि के अनुसार अपनी अपनी भावना से ग्रह शक्ति की विवेचना करता है। वही ग्रह मित्र होता है तो समय पर वही ग्रह शत्रु भी हो जाता है जो ग्रह बचाने वाला होता है वही मारने वाला भी बन जाता है।प्रस्तुत कुंडली मे केतु की करामात को समझने की जरूरत है,वही केतु बारहवे भाव मे बैठ कर मौज देने का मालिक है तो वही केतु चौथे भाव मे आकर परेशानी देने का मालिक है आगे यही केतु परेशानी देने के बाद स्त्री राशि का प्रभाव देकर सन्तान को देने के लिये भी अपनी युति को प्रदान करने की हिम्मत देगा और पराक्रम मे जाकर अपनी शक्ति को असीमित करने के बाद राहु का बल भी देने के लिये माना जा सकता है। वर्तमान मे यह केतु चौथे भाव मे है और अपनी शक्ति से जातक के रहने वाले स्थान पर अपनी छाया दे रहा है इस छाया के कारण चौथे भाव के प्रभाव जातक के लिये दिक्कत देने वाले बन गये है जैसे माता को परेशानी घर मे अशान्ति अजीब अजीब सी बीमारियां मिल रही है,केतु की नजर छठे भाव मे होने पर तथा जन्म के राहु को देखने के कारण पानी वाली बीमारियां फ़ेफ़डे वाली बीमारियां मिल रही है,अष्टम स्थान में गुरु शनि को देखने के कारण अस्प्ताली कारणो को पैदा कर रहा है जो भी हितू नातेदार रिस्तेदार है सभी अपमान की नजर से देख रहे है,केतु की नजर बारहवे भाव मे मंगल केतु और जन्म के बुध को देखने के कारण जो कमन्यूकेशन के साधन और बाहरी सहायताये देने के लिये अपने असर को जातक के लिये जीविका का साधन देने वाले थे वही अब केतु की नवी नजर से प्रभावित होने के बाद अपनी सहायताओ को बन्द कर रहे है। इन साधनो को बन्द करने के लिये राहु भी अपनी युति को दे रहा है राहु ने धन भाव मे विराजमान मीन के चन्द्रमा को देखा है यह चन्द्रमा वक्त पर सहायता देने वाले कारणो मे जाना जाता है और जब भी जातक मुशीबत मे होता है अपनी सहायता से जातक को दैनिक खर्चो और परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी मे अपनी सहायता करता है लेकिन राहु के ग्रहण के कारण जातक को पानी वाली बीमारियां देकर पानी के और खाने पीने के साधनो मे अपने इन्फ़ेक्सन को देकर जातक को रोजाना के काम भी नही करने दे रहा है तथा अपनी युति से कनफ़्यूजन देकर पीर फ़कीर मौलवी आदि के चंगुल मे भी भेजने के लिये अपनी शक्ति को दे रहा है। शनि से केतु का अष्टम मे होना भी जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट देने के लिये माना जा सकता है और इस शनि के प्रभाव से माता का भाव भी कष्ट मे जा रहा है और माता के लिये एक प्रकार से मृत्यु जैसे कष्ट देने के लिये भी माना जा सकता है। गोचर का शनि वैसे भी जन्म के शुक्र और सूर्य को अपनी ठंडक देकर जो भी सहायताये पिता और पिता की सम्पत्ति से मिलने वाली होती है उनके अन्दर भी अपनी ठंडक को दे रहा है।

अक्सर वेद पुराण और पुराने ग्रंथो मे केतु को छाया ग्रह कहा गया है और केतु की छाया को ही भूत प्रेत पिशाच  बैताल आदि की श्रेणी मे गिना गया है। केतु की छाया जहां जहां पडती है वहां की शक्ति क्षीण होती चली जाती है,अक्सर देखा होगा कि जिन मकानो के उत्तर-पूर्व दिशा किसी प्रकार से केतु की स्थानपना है यानी कोई पेड खम्भा मन्दिर की चोटी मस्जिद आदि बनी है तो वह सूर्योदय के समय की उन्नत ऊर्जा को खाने वाला माना जाता है अक्सर इस प्रकार के घर सन्तान विहीन भी हो जाते है और वीरान भी होते देखे गये है,अथवा जहाम तक छाया जाती है वहां तक कोई निर्माण हो भी जाता है तो वह बसावट नही कर पाता है। इसी प्रकार से कुंडली के अन्दर जब तक केतु की छाया किसी भी भाव मे रहती है वह अपने प्रभाव को देकर उस भाव के खाली पन के लिये जिम्म्देदार माना जाता है। जैसे उपरोक्त कुंडली मे मंगल केतु एक साथ है यह प्रभाव एक खूनी पिशाच की श्रेणी मे माना जाता है,जरूरी नही है कि पिशाच खुद आकर खून को पिये वह खून को चोट लगने से रक्त नलिका के अचानक फ़टने से अथवा कभी कभी देखा जाता है कि इस मंगल केतु की युति या तो रक्तदान करवा देती है या दूसरो का रक्त खुद के शरीर मे किसी भी बीमारी या चोट का बहाना बनाकर ले लेती है। लेकिन बुध के साथ होने से तथा राहु के छठे भाव मे जाने से जातक के लिये यही केतु कमन्यूकेशन के साधन देकर और उसके अन्दर शक्ति का विस्तार करने वाले कामो दे देती है जैसे मोबाइल का काम करना उन्हे रीचार्ज करना उनकी सप्लाई आदि को बनाना ठीक करना यही बदे रूप मे अगर देखा जाये तो कम्पयूटर नेट वर्क मे आगे बढ जाना आदि बाते देखने को मिलती है जब यह केतु गोचर से सही जगह पर जैसे लगन मे होता है तो यह केतु धन भाव को अपनी क्रियाओं से भरता है बारहवे भाव मे होता है तो लगन को अपनी शक्ति से ग्यारहवे भाव से शक्ति लेकर भरने के लिये अपनी योग्यता को देता है। वर्तमान ने इस केतु का प्रभाव चौथे भाव मे है तो वह पंचम की शक्ति को क्षीण करने के बाद तीसरे भाव को बल दे रहा है,तीसरा भाव केवल कमन्यूकेशन को करने का और पहिचान बनाकर रखने का है छोटी छोटी यात्रा करने के लिये माना जा सकता है धर्म कानून स्कूल आदि की शिक्षा की सहायता के लिये माना जा सकता है,माता के लिये बीमारी आदि मे खर्चा करना पिता की बीमारी मे और पिता के किये जाने वाले कार्यों मे बल देना,पत्नी के प्रति धार्मिक काम करने और उसकी पूर्ति करने के लिये भी माना जा सकता है।

केतु के उपाय के लिये सीधा सा उपाय हमारे पुराने ग्रंथो मे बताया गया है कि केतु की कारक वस्तुओं को चौथे भाव मे होने पर पानी मे बहाना,बारहवे भाव मे होने पर किसी भी धर्म स्थान मे पताका को लगाना और अष्टम भाव मे होने पर केतु के सामान को वीराने मे दबाना,यह भाव के अनुसार ही किया जाता है जैसे बारहवे भाव के केतु के लिये बारह पताकायें बारह बार धर्म स्थान पर लगाना चौथे भाव के लिये काले सफ़ेद तिल पानी मे बहाना आदि उपाय करने से केतु अपनी शक्ति को घटाने वाली शक्ति को कम किये रहता है।

Thursday, April 5, 2012

शक्ति बनाम राहु की संगति

कुंडली मे राहु जिस ग्रह के साथ गोचर करता है या जिस ग्रह के साथ जन्म समय से विराजमान होता है वही शक्ति जीवन के अन्दर काम करने के लिये मानी जाती है। घर की छत की शक्ति होती है कि वह हवा पानी धूप से रक्षा करती है,छतरी की शक्ति होती है कि वह पानी और धूप से शरीर को बचाती है,धूप की शक्ति होती है कि वह शरीर मे गर्मी पहुंचाती है,बरसात की शक्ति होती है कि वह शरीर को भीगने का सुख देती है,सर्दी की शक्ति होती है कि वह शरीर को ठंडा रखने का सुख देती है। यानी जहां जहां शक्ति है वहां वहां राहु की छाया है,घर की छत को भी राहु की उपाधि दी जाती है तो छतरी को भी राहु कहा जाता है,सूर्य की छाया यानी धूप भी राहु की श्रेणी मे आजाती है चन्द्रमा की शीतलता भी राहु की श्रेणी मे गिनी जाती है. इस प्रकार से जब ब्रह्माण्ड का कारक राहु ही है तो राहु से डरने का कारण क्या हो सकता है। जब राहु जिस ग्रह के साथ होता है तो उस ग्रह के बारे मे असीमित भावना को भर देता है,वह भावना अगर जन्म के राहु से टकरा रही है तो वह एक अमिट छाप यानी मोहर को लगा देती है।
राहु के साथ अगर सूर्य है शुक्र है तो राहु राजसी ठाटबाट को प्रस्तुत करने से चूकेगा नही उसी जगह पर अगर राहु के साथ मे शनि है वक्री बुध है तो उस आदमी को झूठ बोलने और चालाकी से काम निकालने के अलावा कुछ आता भी नही होगा। उदाहरण के लिये अपने क्रिकेत खिलादी सचिन तेन्दुलकर को ही देख लो कहने को तो राहु चौथे भाव मे बैठा है चन्द्रमा के साथ है अष्टम के सूर्य शुक्र से युति है तो वह राजकीय रूप से जनता के मन से धन धान्य के द्वारा आगे बढाने के लिये कमी नही दे रहा है। इसी बात को अगर और देखा जाये तो राहु का योग चौथे भाव मे भी है और राहु का योग अगर अष्टम भाव मे हो जाता है तो राहु अन्दरूनी भेद को भी जानने वाला बना देताहै,सचिन की कुंडली मे जन्म कुंडली से राहु चौथे भाव मे है और जिस घडी मे सचिन पैदा हुये है उस घडी मे राहु अष्टम मे बैठा हुआ है,अगर कारकांश कुंडली से देखा जाये तो भी चौथे भाव को मजबूत कर रहा है और उसे अगर होरा लगन से देखा जाये तो सीधा जाकर लाभ मे बैठ जाता है,इस प्रकार से जीवन मे प्रसिद्धि धन धान्य के लिये राहु अपनी गति को पूर्ण रूप से प्रदान करने वाला होता है। चन्द्र कुंडली से जब राहु लगन मे हो तो वह अपनी शक्ति को मजबूती से पैर जमाने के लिये और खुद की सोच से आगे बढने वाला भी बना देता है,नवांश से यह राहु अगर सप्तम मे चला जाये और शनि के साथ शुक्र का प्रभाव देकर आच्छादित कर दे और भी सोने मे सुहागा बना देने के लिये अपनी गति को और भी प्रदान करने वाला बन जाता है।
तीसरा सप्तम का और ग्यारहवा राहु अगर सही स्थिति मे है तो वह प्रसिद्धि देने के लिये बहुत ही उत्तम माना जाता है।वर्तमान मे राहु का गोचर तीसरे भाव मे है और वह सचिन को प्रसिद्धि दे रहा है तो अभी कुछ दिन पहले ही उन्हे सौवां शतक देकर इस राहु ने नवाजा है। इसके अलावा भी एक बात और भी सही है कि जब कुंडली मे राहु चौथा होता है तो वह धर्मी हो जाता है वह किसी भी प्रकार से जीवन मे खराबी नही पैदा कर सकता है चन्द्रमा के साथ होने से मां का आशीर्वाद हमेशा साथ रहने वाला होता है जो लोग मां को घूरा कूडा समझते है उन्हे इस बात को समझ लेना चाहिये कि जब तक माता का आशीर्वाद साथ है दुनिया साथ है जैसे ही इस आशीर्वाद मे बददुआ मिल जाती है अपना शरीर भी काम नही आता है।
आने वाले 25 जून 2012 के आसपास यही राहु संसार की उस वस्तु को प्रदान करने जा रहा है जो उनकी कल्पना मे भी नही होगी। यही राहु जो आज सचिन को उत्तम गति को प्रदान कर रहा है तेरह जनवरी दो हजार तेरह के बाद उन्हे स्वास्थ सम्बन्धी कष्ट भी देने के लिये माना जा सकता है,जनता के अन्दर क्षोभ भी पैदा करने के लिये माना जाता है।

Wednesday, April 4, 2012

कुंडली मे वीणा योग

वीणा माता सरस्वती के कर कमलो मे है,राहु चन्द्र जब पंचम मे विराजमान होते है केतु बुध शनि ग्यारहवे भाव मे होते है गुरु सूर्य बारहवे भाव मे और शुक्र मंगल दूसरे भाव मे होते है तो वीणा योग बन जाता है। इस योग मे पैदा होने वाला जातक संगीत की शिक्षा को देने वाला गाने और वीणा आदि बजाने मे चतुर होता है,लेकिन वह धन या यश दोनो मे से केवल एक कारक को ही प्राप्त कर पाता है। उपस्थिति कुंडली मे चन्द्र राहु पंचम मे वृष राशि के है इसलिये जातक अपनी वीणा बजाने की कला को सिखाने के बाद अपने जीवन को चलाने के लिये माना जा सकता है,बारहवे भाव मे गुरु सूर्य की उपस्थिति से जीवात्मा योग की परिभाषा से भी पूर्ण है यानी पैदा होने के बारहवी साल से ही गुरु की उपाधि प्राप्त कर लेता है। दूसरे भाव मे शुक्र मंगल की उपस्थिति होने से जातक कठोर और मुलायम स्वरो का जानकार होता है वह अपने शोध से वीणा बजाने की नयी कला का सृजन करता है और एक दिन पहुंचा हुआ वीणा वादक बन जाता है।जातक का जन्म 3 जनवरी 1985 को सुबह 9-30 पर जयपुर मे हुआ है। इस जातक का नाम उत्तम माथुर है और यह वीणा बजाने की कला मे प्रवीण है। वर्तमान मे जातक के लाभ भाव मे राहु के गोचर करने से तथा कार्य भाव मे शनि के गोचर करने से जातक अपनी दक्षता को बडी आसानी से प्रस्तुत करने मे तथा सिखाने आदि के काम मे उत्तम स्थान को प्राप्त कर सकता है,जातक से सम्पर्क कर सकते है जातक का मोबाइल नम्बर  +919829377852 है. इस प्रकार के सरस्वती से वरदान को प्राप्त महापुरुष कभी कभी ही इस धरती पर आते है,इस जातक की कुंडली को देखकर ही पता चलता है कि ग्रहों ने खुद ही वीणा का रूप धारण कर रखा है,मेरी शुभकामनाये उत्तम माथुर के साथ है.

क्यों भटकता है व्यक्ति नौकरी के लिये

व्यक्ति जब पैदा होता है तो व्यक्ति के लिये जीवन मे किये जाने वाले कार्य निश्चित कर दिये जाते है,वह जो कार्य साथ लेकर आता है उनमे अगर भटकाव पैदा हो जाता है तो व्यक्ति आजीवन उन्ही कारणो मे भटकता है और जो औकात उसे प्राप्त करनी होती है वह नही कर पाता है उसे भटकाव के कारण उसी प्रकार से फ़िर से जन्म लेकर आना पडता है और उन्ही उद्देश्यों की पूर्ति के लिये फ़िर से प्रयास शुरु करने पडते है। नौकरी के लिये तीन भाव देखे जाते है पहला दूसरे भाव और राशि को देखा जाता है,जो रोजाना के कामो को करने के बाद नगद धन प्राप्त करता है,दूसरा छठे भाव को देखा जाता है जो प्राथमिक शिक्षा को पूरा करने के बाद से ही शुरु हो जाता है,और रोजाना की जरूरतो को पूरा करने के लिये लोगो के लिये सेवा से सम्बन्धित काम करने के लिये अपनी गति को प्रदान करता है तीसरा दसवे भाव को देखा जाता है जो उच्च शिक्षा को प्राप्त करने के बाद नौकरी करने के लिये अपनी गति को प्रदान करता है,आप इन भावो को astrobhadauria.com के माध्यम से जान सकते है पढ सकते है.प्रस्तुत कुंडली मे मकर लगन है,सूर्य लगन मे स्थापित है जातक के अन्दर एक अहम है कि वह सरकारी आदमी बनकर दिखायेगा या इस प्रकार के परिवार मे पैदा हुया है जो सरकारी कार्य आदि दिमाग से करने के लिये जाना जाता है यह भावना पैदा होने वाले माहौल से प्राप्त होती है और समाज मर्यादा और संगठन आदि के लिये सूचित करती है। रोजाना के काम करने के मालिक और शरीर के मालिक शिक्षा वाले स्थान मे तथा जल्दी से धन कमाने के स्थान मे और मनोरंजन के स्थान मे शनि वक्री के रूप मे विराजमान है। शनि वक्री हमेशा ही बुद्धि को प्रयोग करके किये जाने वाले कामो के लिये जाना जाता है। लेकिन सूर्य और शनि की नवम पंचम की युति होने से जातक के पास पिता का दिमाग है और जातक सरकारी क्षेत्र की न्याय वाली सेवाओ को करना चाहता है। लेकिन कार्यों के लिये शक्ति का कारक मंगल जो लाभ के भाव मे विराजमान है,चौथे भाव का भी मालिक भी है नौकरी जैसे काम करने के लिये अपनी गति को आमने सामने की गति से विरोधाभास दे रहा है। केतु जो छठे भाव मे है वह जातक को लिखने पढने और टाइप आदि का काम करने के बाद विदेशी कार्यों बाहरी कमन्यूकेशन को करने के लिये भी माना जाता है। जातक को मीडिया एयर कमन्यूकेशन के बारे मे अच्छा ज्ञान है,इस ज्ञान के द्वारा जातक को बाहरी कारण और विदेशी सम्बन्धो की अच्छी जानकारी है इस कारण से जातक बाहरी कारणो को और बडे संस्थानो मे काम करने के लिये अपनी अच्छी योग्यता को प्रस्तुत करने के लिये भी माना जाता है।
जातक के लिये इस कुंडली के अनुसार केवल वही व्यवसाय काम कर सकते है जो पिता आदि के द्वारा किये गये है। कार्यों मे कमन्यूकेशन के कामो का अच्छा अनुभव होने के कारण विदेशी लोगो से ज्योतिश परामर्श धर्म संस्कृति आदि के कार्य भी जातक को अच्छा फ़ल प्रदान करेंगे जातक अगर चाहे तो जनवरी दो हजार तेरह के बाद अपना खुद का व्यवसाय स्थापित कर सकता है या जातक विदेशी कम्पनियों के लिए कम्पयूटर या आयात निर्यात से जुडे कामो को कर सकता है।

राहु गुरु यानी सम्बन्धो मे कनफ़्यूजन

राहु जिस भाव या राशि मे जिस ग्रह के साथ गोचर करता जाता है वह भाव राशि या ग्रह कनफ़्यूजन की स्थिति मे आजाता है,जन्म के समय मे राहु जिस राशि भाव ग्रह के साथ होता है आजीवन उस राशि भाव और ग्रह के लिये कनफ़्यूज ही रखता है.पैदा होने के समय प्रस्तुत कुंडली मे राहु धन भाव मे है और वह मंगल के साथ होने से कन्ट्रोल मे है,यह कन्ट्रोल मिथुन राशि मे होने के कारण कमन्यूकेशन धन को कमन्यूकेशन से लेने देने के मामले मे कमन्यूकेशन के मामले मे होस्ट आदि के काम करने से भी माना जा सकता है और इस भाव मे कनफ़्यूजन रखने से लेकिन मंगल के साथ अपनी युति लेकर कन्ट्रोल रहकर काम करने से यह फ़ायदा देने वाला बन जाता है। राहु जब तक मंगल के घेरे मे रहता है वह उचित काम करने के लिये माना जाता है जैसे ही मंगल की सीमा से दूर होता है वह मन मर्जी का अधिकारी बन जाता है और जो राहु के कारक कारण होते है पूरे जोर शोर से होने लगते है। प्रस्तुत कुंडली मे राहु मंगल के साथ है धन के क्षेत्र मे है और केतु के द्वारा कमन्यूकेशन करने के बाद ब्रोकर जैसे काम करने के लिये अपनी शक्ति को दे रहा है,यह कार्य सूर्य के आगे होने से जंगल से सम्बन्धित सामान और सरकारी क्षेत्र से जुडी कम्पनियों के लिये कार्य करना माना जाता है,यह राहु फ़ैसन के लिये भी अपनी युति को देता है और कपडो के काम के लिये भी अपनी महारत देने के लिये माना जा सकता है। पिछले समय मे राहु ने अपना गोचर जन्म के केतु के साथ दिया इस कारण से जातक को विदेशी परिवेश और ब्रोकर जैसे काम के लिये अपनी अच्छी युति दी और इतना काम दिया जो जातक के लिये सुनहरे सपने देखने के लिये सही माना जा सकता है लेकिन जैसे ही यह राहु गुरु के साथ अपने गोचर मे आया जातक के लिये बने हुये सम्बन्ध खटाई मे चले गये और साथ ही धन जो बचत करके रखा जाता है जो जमा पूंजी बचत करने के बाद बीमा आदि कार्यों से इकट्ठी की जाती है उसे बरबाद करने चीटिंग आदि के लिये भी माना जा सकता है। जातक के सप्तम मे राहु का गोचर गुरु के साथ है यह गोचर शादी विवाह के मामले मे कनफ़्यूजन देने के लिये भी माना जा सकता है जातक के लिये एक से एक रिस्ते आयेंगे लेकिन वह सभी किसी न किसी प्रकार के कनफ़्यूजन से दूर हो जायेंगे जब तक यह राहु जातक के गुरु के साथ है सम्बन्धो के मामले मे दिक्कत ही मानी जा सकती है इसके अलावा भी यह भी माना जाता है कि जातक के पिता के कार्यों मे भी यह कनफ़्यूजन पैदा करेगा और पिता की पीठ सम्बन्धी बीमारी भी देने के लिये अपना प्रभाव पैदा करेगा। जातक की माता के परिवार मे यानी ननिहाल मे भी दिक्कत का कारण माना जायेगा और जातक के कार्यों भी लाभ तो बहुत अधिक दिखाई देगा लेकिन इनकम के मामले मे जब राहु उतरेगा तो वही ढाक के तीन पात वाली कहावत का चरितार्थ होना माना जायेगा।
जनवरी दो हजार तेरह के बाद राहु का गोचर जन्म के शनि के साथ होग और इस शनि के साथ राहु का गोचर होने के कारण जातक के नौकरी आदि के किये जाने वाले कार्य भी अन्धेरे मे चले जाने का कारण माना जा सकता है जातक की माता के नाम से कोई व्यापारिक सम्पत्ति है उसे भी ग्रहण देने के लिये यह राहु अपना काम करेगा,इसके बाद जैसे जैसे यह मंगल की सीमा मे रहेगा वह अपना काम अच्छा करता जायेगा जैसे ही मंगल की सीमा से दूर होगा वह अपने असर से कनफ़्यूजन और दिक्कत को देने के लिये अपना प्रभाव दिखायेगा। यह राहु पिता के लिये भी दिक्कत का कारण माना जा सकता है पिता को पेट सम्बन्धी बीमारी भी इसी राहु के द्वारा मानी जा सकती है और गैस आदि के लिये भी इसी राहु को माना जा सकता है। जातक की शादी के लिये देरी करने के लिये शनि भी अपनी युति को प्रदान कर रहा है और इस शनि के कारण भी जातक की शादी देरी से होने की बात मिलती है। जून दो हजार तेरह मे जातक की शादी वाली स्थिति को बनना माना जाता है अगर जातक किसी प्रकार के दुर्घटना वाले कारणो से बच जाता है तो जातक की शादी होने का कारण भी बन जायेगा और जातक अपनी तरक्की भी कर लेगा।

राशिया बाताती है सम्बन्धो के प्रभाव को

जब हम जन्म लेते है उस समय आकाशीय प्रभाव हमारे ऊपर होता है,कहने को तो हमारा जन्म पैदा होने के नौ महिना दस दिन पहले शुरु हो गया होता है,लेकिन पैदा होने के समय चन्द्रमा की जो हालत होती है वह हम अपने जीवन मे लेकर चलते है और यही बात हमारी भारतीय ज्योतिष गणना के लिये प्रमुख मानी जाती है,कारण पाश्चात्य सायन प्रक्रिया वर्तमान के लिये अपने प्रभाव को प्रकट करती है जबकि लहरी पद्धति नौ महिना दस दिन का अन्तराल देती है,इसे अधिक जानने के लिये आप मेरी बेव साइट astrobhadauria.wikidot.com को पढ सकते है। जिस समय हमारा जन्म होता है एक लगन जन्म समय को सूचित करती है उसी लगन से हमारा व्यक्तित्व हमारे माता पिता भाई बहिन सगे सम्बन्धी सभी को देखा जाता है सभी की प्रकृति को समझा जाता है और किसके पास क्या है को भावानुसार ग्रहों की उपस्थिति से देखा जाता है।जो ग्रह जिसके पास होता है जिसके कार्य व्यवहार सम्बन्ध को प्रस्तुत करता है उसी का वर्णन करना ज्योतिष का फ़लादेश कहलाता है। जिस व्यक्ति को जितना व्यवहारिक और ग्रह भाव राशि का देश काल परिस्थिति के अनुसार ज्ञान होता है वह उसी के अनुसार फ़लादेश करना शुरु कर देता है,यह सब बाते अनुभव के आधार पर ही कही जाती है।
उपरोक्त कुंडली कर्क लगन की है कर्क लगन का स्वामी चन्द्रमा होता है,चन्द्रमा के अनुसार ही जातक की प्रकृति होती है जैसे चन्द्रमा पानी का कारक है पानी मे हल्की से हरकत करने पर वह हलचल पैदा कर देता है,इसी प्रकार से जातक के स्वभाव मे जरा सी बात को पकड कर सोचने की आदत होती है। चन्द्रमा माता का कारक होता है,इस लिये इस लगन वाला जातक माता के प्रति समर्पित होता है,चन्द्रमा रहने वाले स्थान के प्रति संवेदन शील भी बनाता है,चन्दमा के द्वारा ही जातक का रूप प्रतिरूप बनता बिगडता रहता है इस लगन मे पैदा होने वाला जातक जरा सी देर मे बहुत अच्छा है और जरा सी देर मे रूठ भी जाता है,चन्द्रमा का स्वभाव कोमल है इसलिये जातक का रूप और स्वभाव कोमलता की श्रेणी मे देखा जा सकता है। यह लगन का प्रकार आपने देखा इसके बाद धन भाव आता है धन के लिये सिंह राशि सामने आती है इस लगन मे पैदा होने वाला जातक धन को कमाने के लिये खेल कूद मनोरंजन राजनीति के बारे मे प्रस्तुति देना जातक के परिवार मे इन्ही बातो का सबसे अधिक प्रभाव होना भी देखा जा सकता है,जातक का कुटुम्ब भी इसी भाव से देखा जाता है सिंह राशि जब कुटुम्ब के रूप मे सामने होती है तो जातक का परिवार पढा लिखा भी माना जाता है,और सरकारी क्षेत्र से किसी न किसी रूप मे जुडा भी होता है। इसी प्रकार से यह भाव माता के बडे भाई बहिनो के लिये भी देखा जाता है पिता की प्राथमिक शिक्षा के लिये भी देखा जाता है जब इस भाव मे सिंह राशि होती है तो पिता की प्राथमिक शिक्षा सरकारी स्कूल मे होनी मानी जाती है। यह भाव बडे भाई बहिनो के रहने का स्थान भी माना जाता है इसलिये देखा जा सकता है कि जातक के बडे भाई बहिन सरकारी क्षेत्र के निवासो मे रहने वाले होते है और सरकार की तरफ़ से कोई न कोई जनता से सम्बन्धित काम भी करने को मिलते है यह भाव नानी का अष्टम मे होता है यानी जो बाते जातक के परिवार के लिये उत्तम फ़ल देने वाली होती है वही बाते नानी के लिये यानी माता परिवार के लिये अपमान रिस्क और जान जोखिम देने वाली होती है। यह माता के छोटे भाई बहिनो के लिये ऊंची शिक्षा मे जाने का माना जाता है,उन्हे कायदा कानून और सामाजिक मर्यादा की बाते प्राप्त करने के लिये भी देखा जाता है,जातक के पिता के द्वारा उन्हे प्राथमिक रूप से सहायता देने के लिये भी माना जाता है।
तीसरे भाव मे कन्या राशि आती है इस राशि मे मंगल और शनि के होने से जातक के लिये अपने को प्रस्तुत करने समाज को दिखाने और रोजाना के काम करने के तरीके और जो लोग जातक को जिस रूप मे जानते है की पहिचान के लिये माना जाता है शनि कार्य का कारक है तो मंगल तकनीक का भी कारक है शनि दुर्गम स्थानो के लिये तो मंगल रक्षा सेवा के लिये भी माना जाता है। यह भाव पिता के लिये अपने जीवन यापन और जीवन की लडाइयों को लडने का स्थान भी है माता के लिये यह भाव यात्रा खर्चा करना और अस्पताली दवाइयों के लिये भी माना जाता है। शनि अगर कार्य है तो मंगल रक्षा सेवा है पिता को रक्षा सेवा मे जाना और माता के लिये इसी सेवा से जुडे कार्यों के कारण यात्रा करना भी माना जाता है माता के लिये शनि मंगल की बारहवे भाव मे उपस्थिति से सिर की बीमारिया खून के थक्के जमने की बीमारी आदि के लिये भी माना जा सकता है। सिर मे चोट लगने के लिये भी माना जा सकता है.जातक को लिखने लोगो की भावनाये और उनकी गतिविधिया प्रदर्शित करने के लिये मीडिया समाचार पत्र आदि से जुडने,भोजन बनाने घर की साज सज्जा और तकनीकी जानकारी रखने के लिये भी देखा जा सकता है।इसी बात से जाना जा सकता है कि जातक को इन्टीरियर डिजायन घर को सजाने संवारने की अच्छी कला का आना चाहिये,कारण जिस भाव से जो भाव ग्यारहवां होता है वही भाव लाभ देने वाला होता है। कर्क राशि मे सूर्य के होने से जातक का लाभ कर्क के सूर्य से होना माना जाता है,कर्क राशि का सूर्य जंगली लकडी वन पहाड आदि की सम्पदा से माना जाता है,ग्यारहवां सूर्य बडे भाई के रूप मे भी देखा जा सकता है,इस प्रकार से जातिका का बडा भाई वन सेवा या रक्षा सेवा या इसी प्रकार की तकनीकी सेवाओं मे जाना माना जा सकता है। सूर्य से डाक्टरी सेवा को भी माना जा सकता है,जातिका के लिये और जातिका के बडे भाई के लिये इसी प्रकार की सेवाको के लिये भी जाना जा सकता है।पिता के कार्यों को देखने के लिये भी इसी भाव का रूप सामने आता है जो नौकरी के लिये रक्षा सेवा जो सरकारी रूप से हो तथा इस सेवा से ग्यारहवे भाव मे सूर्य होने से बहुत ऊंची पोस्ट हो,जीवन मे कम से छ: बार बडी दुर्घटनाओ को झेला हो आदि के लिये भी जाना जा सकता है। इस भाव से आगे गुरु के होने से जो भी कार्य या प्रदर्शन किया जाये वह दिमागी रूप से बेलेन्स बनाने के बाद करने के लिये भी जाना जाता है,गुरु का माता के भाव मे होने से माता का भाग्य पूरे परिवार मे उत्तम माना जा सकता है,दिशाओ मे पिता के भाग्य के लिये पैदा होने वाले स्थान से पश्चिम दिशा का फ़लदायी होना माना जा सकता है,यह भाव ही पिता के भाइयों के लिये भी अपना असर देता है पिता का दो भाई होना और जातक के लिये भी दो भाई होना माना जा सकता है। माता पैदा होने का स्थान रहने वाले स्थान के उत्तर-पश्चिम दिशा के लिये भी देखा जा सकता है।माता के छोटे भाई का कानूनी कारणो मे जाना बडे रूप से ठेकेदारी आदि के काम आदि करना और माता के छोटे भाई के भाग्य से पिता के लिये ऊंचे पद पर जाना भी जाना जा सकता है।
यूरेनस भी अपनी स्थिति को पैदा करता है और बताता भी है,जातक के शिक्षा मनोरंजन आदि के लिये भी अपनी युति को प्रदान करता है यही यूरेनस वृश्चिक राशि का होने के कारण तकनीकी और कमन्यूकेशन के प्राथमिक ज्ञान को भी जाना जाता है,संचार सम्बन्धी तकनीकी पढाई के लिये भी जाना जाता है। गूढ विषयों के सम्बन्ध मे भी जाना जा सकता है।यही भाव पिता के लिये भौगोलिक जानकारी नक्शा आदि को पढना बनाना जातक के द्वारा मीडिया कमन्यूकेशन और प्रदर्शन की कला जैसे फ़ैसन डिजायन वेष भूषा आदि के बारे मे अधिक जानकारी रखना कम से कम चार डिग्री डिप्लोमा का होना कहने सुनने लिखने आदि के लिये कम्पयूटर विद्या का पूरी तरह से जानना भी माना जा सकता है। यही भाव माता के भाई बहिनो के लिये भी जाना जा सकता है और कम से कम चार बहिनो के लिये और माता खानदान मे एक भाई के या एक बहनोई के द्वारा जमीन जायदाद को संभालना भी माना जा सकता है,कानूनी लडाइया और परिवार की आपसी रंजिस के कारण कई प्रकार के बनाव बिगाड भी माने जा सकते है। छठे भाव मे केतु के होने से और माता के भाव से तीसरे तथा पिता के भाव से नवे स्थान मे केतु के होने से गजटेड अफ़सर होने के लिये भी यह केतु अपना बल देता है,माता के सहयोगी मे माता का भतीजा या इसी प्रकार के लोग या माता के ननिहाल के लोग भी सहायता के लिये माने जाते है,अदालती काम और कानूनी कामो के लिये भी केतु को समझा जा सकता है। धन आदि के क्षेत्र मे बैंक बीमा फ़ायनेन्स के कामो के लिये और इसी प्रकार की कानूनी जानकारी के लिये भी इस केतु को समझा जा सकता है। जातक के सप्तम भाव का रूप मकर राशि के रूप मे है यह राशि हमेशा दोहरा कार्य करती है किसी भी कारक के लिये दो रूप प्रस्तुत करना एक रूप का बिगाड देना और एक का आगे के लिये बनाकर चलना भी माना जाता है। जातक का यह भाव और राशि एक सम्बन्ध को समाप्त करने के बाद दूसरे समबन्ध को बनाकर चलने के लिये माना जाता है जातक की दो शादिया होना एक का किसी प्रकार से दूर हो जाना चाहे वह विदेश चला जाये या वह किसी पारिवारिक कारण से दूर हो जाये के लिये भी माना जाता है। जातक के सम्बन्ध के लिये  सम्बन्ध उम्र की अठारहवी, फ़िर  बाइसवी फ़िर उन्तालीसवी साल मे माना जाता है और जीवन पर्यन्त सम्बन्ध उम्र की चवालिसवी साल मे माना जाता है,वैसे शादी का सही सम्बन्ध आने वाले बीस मई दो हजार तेरह मे माना जाना ठीक है,जब गुरु जन्म के मंगल के साथ युति करेगा।इस कुन्डली मे जातक के लिये नौकरी का कारक केतु है और केतु धनु राशि मे है जब भी केतु समान राशियों मे गोचर करेगा जातक के लिये काम धन्धे मे परेशानी आजायेगी,आने वाले तेरह जनवरी दो हजार तेरह से केतु का बदलाव मेष राशि मे होने पर जातक को नौकरी की बात भी शुरु होनी मानी जा सकती है पिछले समय मे केतु का गोचर एक तो समान राशि मे रहा है और दूसरे प्रदर्शन के मामले मे भी रहना माना जा सकता है,जातक के कार्यों मे हवाई यात्राओं से सम्बन्धित काम भी माने जाते है खान पा सम्बन्धी भी काम माने जा सकते है।

Tuesday, April 3, 2012

कितना प्रभावी होता है राजयोग ?

जातक का जन्म 10/11/1975 Time 07:50:00 Am सिंघाना राजस्थान मे हुआ है जातक अपनी कुंडली मे राजयोग के बारे म जानना चाहता है.
तुला लगन की कुंडली है लगनेश शुक्र बारहवे भाव मे है,धनेश और सप्तमेश मंगल नवे भाव मे वक्री है,पराक्रम के स्वामी और कर्जा दुश्मनी बीमारी के स्वामी गुरु है जो स्वराशि मे छठे भाव मे वक्री है,सुखेश और पंचमेश शनि दसवे भाव मे है,लगनेश और अष्टमेश शुक्र बारहवे भाव मे है,कार्येश चन्द्र सुख भाव मे तथा लाभेश सूर्य लगन मे है राहु लगन मे तथा केतु सप्तम मे है।
पहला राजयोग
पंचमेश की युति सप्तमेश या दसवे भाव के स्वामी से हो तो राजयोग का निर्माण हो जाता है इस राजयोग मे जातक को कार्यों के मामले मे सन्तान के मामले मे जीवन साथी के मामले मे प्रसिद्धि भी मिलती है सम्मान भी होता है। कुंडली मे शनि ने चन्द्रमा से युति ली है चौथे भाव का असर चन्द्रमा ने प्राप्त किया है और पंचम का असर शनि ने लिया है लेकिन शनि चन्द्र की युति ने इस राजयोग मे बाधा इसलिये भी डाली है क्योंकि शनि चन्द्र की युति मे जातक स्वतंत्र रूप से कोई काम नही कर सकता है।
दूसरा राजयोग
लगनेश शुक्र पर छठे गुरु की द्रिष्टि है इस प्रकार से भी यह युति राजयोग की सीमा मे आजाती है लेकिन इस युति का प्रभाव इसलिये समाप्त हो गया है क्योंकि गुरु वक्री है और शुक्र कन्या राशि का है यह गुरु शुक्र की युति पति और पत्नी के लिये किसी न किसी प्रकार से पीडा देने वाली है.
तीसरा राजयोग
राहु केन्द्र या त्रिकोण मे हो इस युति को भी राजयोग की सीमा मे लाया गया है,राहु का अतिक्रमण जन्म के सूर्य बुध के साथ है इसलिये जातक को झूठ बोलने की आदत को देता है और अपने जन्म स्थान से पश्चिम दिसा मे भेजकर पहले भटकाव देता है उसके बाद तरक्की देता है। इस प्रकार से राहु वाले राजयोग के कारण को भी शंका मे माना जा सकता है.
चौथा राजयोग
कुंडली मे जो ग्रह नीच का है उस ग्रह की उच्च राशि का स्वामी जिस राशि मे बैठा है उस राशि का स्वामी केन्द्र मे हो यह भी एक राजयोग का कारण है,जातक की कुंडली मे सूर्य नीच राशि का है इस राशि की उच्च राशि का स्वामी मंगल नवे भाव मे मिथुन राशि मे बैठा है,मिथुन का स्वामी बुध केन्द्र मे लगन का होकर बैठा है इसलिये यह राजयोग पूर्ण हो जाता है.
पांचवा राजयोग
जो ग्रह नीच का हो वह जन्म समय मे अपने उच्च अंशो मे बैठे हो यह बात भी राजयोग की सीमा मे आजाती है,जातक की कुंडली मे सूर्य तुला राशि का नीच का है और वह गुरु के नक्षत्र मे विराजमान है इसलिये राजयोग को पैदा कर रहा है,इसके अलावा शुक्र नीच राशि मे है लेकिन वह सूर्य के नक्षत्र उत्तराफ़ाल्गुनी नक्षत्र मे विराजमान है.
पुराने जमाने मे राजयोग की सीमा बंधी होती थी जब व्यक्ति समाज धर्म और कानून मे बंधा होता था,मर्यादा के बिना कोई भी राजयोग काम नही करता है। एक व्यक्ति अगर मर्यादा मे चलने वाला हो और बाकी के मन चाहे अनुसार चलने वाले हो तो राजयोग की सीमा समाप्त हो जाती है। इस कुंडली मे गुरु वक्री हो गया है जातक को जल्दी से हर काम करने की आदत मे ले गया है,शनि चन्द्र का परिवर्तन योग है जहां कार्य की जरूरत होती है वहां सोचा जाता है और जहां सोचने की जरूरत होती है वहां कार्य शुरु कर दिया जाता है इस प्रकार से राजयोग तो छोडो कोई भी काम सरलता से नही बनता है। कहा भी जाता है कि कन्या का सूर्य दस दोष देने वाला होता है और कन्या का शुक्र हजार दोष प्रकट करने का कारण बनता है,यह कारण भी जातक के अन्दर बिना बात के बीमारी को पैदा करना बिना कारण के खर्चा करना जहां से कमाई होने की बात होती है वही पर किसी न किसी कारण से कोई न कोई छलने वाला सामने आजाता है,हिम्मत का मालिक और जीवन साथी का मालिक वक्री होकर न्याय भाव मे चला गया है जब जीवन मे पत्नी का पराक्रम ही साथ नही दे रहा है,तो फ़िर राजयोग की सीमा कैसे शुरु हो सकती है। जातक अपने अनुसार शनि की शांति को देकर अपने कार्यों को कर सकता है कारण कर्क राशि का शनि कार्यों को फ़्रीज कर रहा है जहां कार्य शुरु होने का असर होता है वहीं पर किसी न किसी प्रकार की रुकावट सामने आने लगती है,साथ ही जहां पर रहने का स्थान होता है वहां जनता के द्वारा या समाज के द्वारा कोई न कोई आक्षेप भी दिया जाता है इस कारण से जातक को पैदा होने के बाद रहने वाले स्थान को भी बदला जाता है,अक्सर इस युति मे जातक जिस स्थान पर पैदा होता है वह या तो बनता ही नही है और बनता है तो उसके अन्दर कोई रहता नही है।

पल पल भारी ठेकेदारी

जीवन मे सबसे अधिक मेहनत दिमागी और हिम्मत वाला काम ठेकेदारी वाला कहलाता है।व्यक्ति जब इस काम को करने मे लग जाता है तो उसके सामने एक साथ हजारो मुशीबत एक साथ इकट्ठी हो जाती है इस काम मे अगर जरा सी चूक हो गयी तो मेहनत और धन दोनो ही बरबाद होते देखे जा सकते है। उसके बाद अगर किसी प्रकार से कार्य मे मेहनत करने के बाद भी करप्सन है तो यह कार्य और भी बेकार हो जाता है वहां पर मेहनत की कीमत खत्म हो जाती है और भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता है,आदमी एक बार तो धनी बन जाता है लेकिन उससे जीवन मे अन्य काम भी नही होता है,अक्सर इस काम मे लगे रहने वाले लोग अगर मेहनत का कमा कर नही खाते है तो राहु के गोचर के समय मे वे जो पास मे है वह भी गंवा देते है और नाम तथा पोजीसन भी उनकी गिर जाती है। इस कुंडली मे छठे भाव का मालिक मंगल है यी मंगल लगन का भी मालिक है। भाग्य के दाता चन्द्रमा मंगल के साथ है। लगनेश जब अष्टम मे होते है तो वह जोखिम लेने अपमान सहने खतरनाक काम करने तथा उन्ही कामो को करने का बीडा उठा लेते है जो काम अन्य कोई नही कर पाता है। यात्रा वाले भावो मे तीन तरह की यात्रायें मानी जाती है एक तो जल यात्रा होती है,एक स्थल यात्रा होती है तथा एक वायु यात्रा होती है। यात्रा के कारक भावो मे चौथा भाव अष्टम भाव और बारहवा भाव देखा जाता है। चौथा भाव जमीनी यात्रा या साधारण यात्रा या जनता के बीच मे की जाने वाली यात्रा भी मानी जाती है,केतु जब चौथे भाव मे आजाता है तो वह यात्रा के प्रकार को पटरियों पर रस्सी पर रोपवे आदि के लिये अपना प्रभाव देने लगता है।एक यात्रा खुद के वाहन से की जाती है एक यात्रा सरकारी वाहन से की जाती है,और जब यात्रा का कारक ग्रह लगनेश कार्येश भाग्येश लाभेश की द्रिष्टि मे आजाता है तो जातक यात्रा वाले कार्यों से धन को कमाना शुरु कर देता है। यात्रा के कारक ग्रहो मे शुक्र और चन्द्रमा को देखा जाता है। जातक का लगनेश मंगल चन्द्रमा के साथ अष्टम स्थान मे बैठा है,यह स्थान जोखिम लेकर किये जाने वाले कामो के लिये भी जाना जाता है। मंगल की द्रिष्टि लाभ भाव मे भी है और धन भाव तथा खानपान भाव के भाव मे भी है मंगल अपनी पूर्ण द्रिष्टि से गुरु और शनि को भी तीसरे स्थान पर विराजमान होने के कारण देख रहा है।
मंगल चन्द्र का मिला हुआ रूप सम्बन्धित भावो के लिये निराशा देने वाला भी होता है।साथ ही यह प्रभाव भाव के त्रिकोण पर भी जाता है,यह क्रिया एक प्रकार से जन्म कही और कार्य कहीं,अगर जातक का भाई है तो वह विदेश मे रहने वाला होता है,त्रिक भाव मे होने से माता को आपरेशन के दौर से भी गुजरना पड्ता है। आदि बाते मंगल चन्द्र की उपस्थिति से भी मिलती है। मंगल गर्मी से सम्बन्धित है मंगल बिजली से भी सम्बन्धित है मंगल लोहे से भी सम्बन्ध तब बना लेता है जब वह शनि को अपनी अष्टम द्रिष्टि से देख रहा हो। .इस प्रकार से जो कार्य करने का क्षेत्र जातक को मिलता है वह लोहे से सम्बन्धित वाहन जो पटरियों पर चलता हो और सूर्य के साथ होने पर सरकारी रूप से चलाया जाता हो के लिये माना जायेगा। लेकिन लाभ देने का मालिक बुध अगर मार्गी होता तो जातक रेलवे मे काम करता हुआ पाया जाता,वक्री होने से जातक रेलवे के कार्यों का ठेका लेने के लिये भी माना जाता है। चन्द्र मंगल सूर्य केतु बुध पांचो ग्रहो के मिलने से सरकारी निर्माण कार्य भोजन कार्य कभी कभी के लिये किये जाने वाले कार्यों के लिये भी अपनी युति को प्रदान करते है। राहु के लिये पहले मे लिख कर आया हूँ कि यह कभी काम खूब करवाता है और भूत की तरह से काम करने के लिये आगे बढाता है लेकिन कभी कभी यह बिलकुल ही निठल्ला बना देता है और जातक को कभी कभी ही काम करने के लिये देता है। केतु सूर्य और बुध जब चौथे भाव मे होते है और राहु जब कार्य भाव मे होता है तो जातक के द्वारा कमाया हुआ या किया हुआ कार्य चौथे भाव मे बैठे सरकारी कर्मचारी बुध वक्री यानी उल्टी बातो को थोप कर खा जाते है। इस बात को और भी गहरी नजर से देखने की जरूरत है। जनता मे भ्रष्ट आचार विचार व्यवहार फ़ैलाने वाले लोग उन्ही मे होते है जिनके बारहवे आठवे और दूसरे चौथे छठे भाव मे बुध वकी होता है।
राहु जब कार्यों का मालिक होता है तो वह अपने गोचर से जातक को कार्यों की उपलब्धि दिलवाता है,अगर केतु साथ दे रहा है तो राहु कमा कर बचा सकता है अगर केतु कमाने से अधिक खाने वाले ग्रहों के साथ है तो वह दिन रात कमाने के बाद भी पूर्ति नही डालपाता है।
पिछले समय मे केतु का गोचर अष्टम मे मंगल चन्द्र के साथ रहा है,इस गोचर के कारण जातक ने ठेकेदारी के कार्य किये उन्हे सप्तम के मालिक शुक्र के साझे मे कर दिया। मंगल और चन्द्र ने मिलकर केतु को और भूख दे दी जिससे जो भी कार्य किये गये थे वे उत्तेजना मे आने से और अपने काम को दूसरो से करवाने के कारण जातक के पास जो भी कार्य थे उनके अन्दर मोक्ष दे दिया।
जनवरी 2012 से राहु का गोचर लगन से हटकर बारहवे भाव मे जायेगा और यह राहु जन्म के मंगल चन्द्र सूर्य बुध (व) केतु को अपनी छाया मे लेगा। इस छाया का फ़ल जातक को दिक्कत देने वाला भी हो सकता है,जातक के किये गये कार्यों की बदौलत अगर जातक राहु के उपाय कर लेता है तो जातक को भली भांति सफ़लता भी दे सकता है,अन्यथा यह राहु शनि की सहायता से नवम्बर 2014 तक बेकार और असहाय बनाकर पटक देगा जिससे जातक आगे के जीवन मे केवल अपने परिवार की सहायता पर ही निर्भर होकर रह जायेगा।
  • राहु के उपायो मे जातक अनैतिक कामो को नही करे.
  • अधिक चिन्ता के कारण घर के माहौल में तनाव नही फ़ैलाये.
  • अपने को धर्म स्थानो मे ले जाकर श्रद्धा पूर्वक अपने इष्ट की सेवा को करता रहे.
  • इस राहु का असर पत्नी पर भी जाता है इसलिये जातक अपनी पत्नी की किसी भी बीमारी या दिमागी उलझन मे अपने को सहानुभूति से प्रस्तुत करे.
  • जातक घर के किसी भी सदस्य को कटु वचन नही कहे अन्यथा बुरी बाते तो पूरी हो जाती है भली बाते पूरी नही होती है.

संघर्षमय जीवन

भागवत पुराण मे एक कथा आती है कि सुदामा और श्रीकृष्ण को उनकी गुरुमाता ने लकडी लाने के लिये जंगल मे भेजा,जंगल मे बरसात होने लगी,बरसात से बचने के लिये श्रीकृष्ण और सुदामा एक पेड के नीचे अपने को बचाने के लिये बैठ गये,रात हो गयी,सुदामा को गुरुमाता ने जंगल मे भूख लगने पर भोजन के लिये चने दिये थे,सुदामा ने उन चनो को अकेले ही खा लिया और श्रीकृष्ण को नही दिये,जब वे कुटुर कुटुर खा रहे थे तो श्रीकृष्ण ने पूंछा सुदामा तुम कुछ खा रहे हो,सुदामा जबाब दिया,मै कुछ खा नही रहा हूँ,ठंड के कारण दांत बज रहे है। खैर श्रीकृष्ण तो द्वरिका पुरी के राजा बने और सुदामा को आजीवन भीख मांगनी पडी,यह चरित्र इसलिये कहा जाता है कि एक छोटी सी भूल जो मित्र के साथ दगा करने से की जाती है आजीवन भीख मांगने के लिये बेवश कर देती है। सुदामा दिन मांगते रात मांगते लेकिन जैसे ही खाने के लिये बैठते श्राप वश वही एक चन्दिया और एक रोटी रह जाती,जब वे श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका गये तो उन्होने अपनी गल्ती का पश्चाताप किया और फ़िर से उनके दिन सही हुये। इस कुंडली मे कुछ ऐसा ही श्राप लगा हुआ है। मित्र भाव का मालिक सूर्य है और सूर्य पंचम स्थान मे विराजमान है,इस सूर्य के साथ बारहवे और नवे भाव का स्वामी बुध भी बक्री होकर विराजमान है। सूर्य मित्र के रूप मे है और बुध मित्र का कार्य और धन है,वक्री होने का मतलब है कि जातक ने अपने जीवन मे किसी प्रकार से अपने मित्र के साथ दगा किया है। यह भाव बडे भाई का भी होता है और इस भाव मे बुध के होने से बडे भाई या मित्र के साथ किये जाने वाले साझेदारी के कामो के अन्दर या पारिवारिक रूप से फ़ायदा लेकर कुछ न कुछ बुरा किया गया है।
तुला लगन का मालिक जब शुक्र बनकर चौथे भाव मे बैठ जाता है और केतु उस शुक्र के साथ हो जाता है तो दसवे भाव का राहु कितना ही कमाये कितनी ही मेहनत करे लेकिन यह चौथे भाव का शुक्र और केतु सभी कुछ खा जाता है। मंगल जातक का धनेश है और सप्तमेश भी है यह भी जातक के लिये सूचित करता है कि जातक जहां प्रेम और बुद्धि से काम लेने के बाद कार्य को करता वहीं पर जातक अपने अहम से अपनी तकनीक को लगाकर अपने किये कार्यों को ही बरबाद कर लेता है। बक्री बुध अक्सर बुद्धि को घुमा देता है जैसे ही फ़ायदा वाला समय आता है वह अपनी फ़ायदा को लेने के समय किसी दूसरी योजना मे अपनी बुद्धि को प्रयोग मे लाना शुरु कर देता है और वह बुद्धि आने वाले फ़ायदा को नही आने देती इस प्रकार से जातक दिन रात काम करता है लेकिन वह फ़ायदा नही ले पाता है।
सूर्य जिस भाव मे होता है उसके सप्तम का नीच प्रभाव देने लगता है।पंचम मे सूर्य होने का मतलब है मित्र या बडे भाई के जीवन साथी के मन मे ओछी राजनीति का आजाना। उस ओछी राजनीति के आने से जातक अपने मंगल के प्रभाव से उस राजनीति को प्रतिस्पर्धा का कारण बनाकर दूर तो करता है लेकिन कथनानुसार वह पाप की श्रेणी मे जला जाता है।
सूर्य मंगल का वक्री बुध पर पडने वाला प्रभाव एक प्रकार से और भी देखा जाता है कि सन्तान भाव मे वर्की बुध के होने से सूर्य मंगल के साथ होने से पति पत्नी ने मिलकर गर्भ मे उपस्थित कन्या का भ्रूण हत्या जैसा पाप भी किया जाना माना जाता है। अथवा किसी शिक्षा स्थान मे बुध जो विद्या का कारक है के हरण से भी एक श्राप का लगना माना जा सकता है। इन कारको के पैदा होने से जातक का शनि बारहवे भाव मे जाकर वक्री हो गया है,यह कार्य स्थान के बदलाव लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकने के लिये और बार बार मन के बदलने से कारण वकी शनि के साथ चन्द्रमा भी है,वकी शनि के साथ वक्री गुरु होने से भी सम्बन्धो का बदलाव और कार्य स्थान मे जो कार्य करने वाले लोग है उनकी बुद्धि को प्रयोग करने के बाद उनकी मेहनत को हरण करने वाला भी माना जा सकता है।
जातक का प्रयास कार्य भाव मे राहु के होने से अथक परिश्रम करने से भी देखा जा सकता है वह परिश्रम केवल धन को सामने रख कर किया जाता है लेकिन इसी राहु की छठे भाव मे नजर जाने से तथा छठे भाव का मालिक गुरु वक्री होने से की जाने वाली मेहनत को बाहरी लोग बिजनिस का कारण बनाकर खाने के लिये भी माने जाते है।
जातक को श्राप उद्धार के लिये सरकारी शिक्षण संस्थान मे गरीब बच्चो की सहायता करनी चाहिये जिससे वक्री बुध जो भाग्य का मालिक भी है वह सही कार्य करने लगे,साथ ही बहिन बुआ बेटी का आदर करना चाहिये,वैसे बुध के वक्री होने के कारण जातक के पास लडकी पैदा नही होती है वह अगर लडकी को पालने के लिये गोद लेकर पालना शुरु कर दे तो भी जातक का भाग्य लगातार बढने लगेगा,कार्य को शुरु करते समय अगर वह प्लास्टिक के खिलौने छोटे बच्चो मे बांटे तो भी भाग्य का सही होना माना जा सकता है।

कार्य का चुनाव और धन की उन्नति

प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और जातिका का प्रश्न है कि उसे कौन सा कैरियर चुनना है साथ ही धन की उन्नति कब होगी ? मैने अभी बताया था कि जीवन मे कार्य करने के लिये दूसरा छठा और दसवा भाव एक साथ देखा जाता है व्यवसाय के लिये चौथा आठवा और बारहवा भाव देखा जाता है। लेकिन राहु जिस भाव मे अपना असर देता है उस भाव के त्रिकोण का पूरा ध्यान रखकर कैरियर का चुनाव किया जाता है। जातिका के भाग्य के मालिक मंगल है और वह लगन मे जाकर वक्री हो गये है.मंगल को हिम्मत और पराक्रम का कारक माना जाता है लेकिन जब वह बक्री हो जाता है तो हिम्मत और पराक्रम उल्टे कामो मे दिखाने की कोशिश करता है साथ ही जब वक्त पडता है तो वह हिम्मत को तोड देता है। तीसरे भाव मे राहु पराक्रम मे भी है और कमन्यूकेशन मे भी है,साथ ही व्यवसाय की राशि मे भी है,राहु ने अपना बल पंचम के शुक्र को भी दिया है,और राहु ने अपने बल को सप्तम मे विराजमान शनि और चन्द्र को भी दिया है। राहु का बल लेकर केतु ने अपने बल को लगन के मंगल को भी दिया है इस प्रकार से राहु इस कुंडली मे गौढ रूप धारण कर रहा है। जातिका के लिये उन्ही कामो को मुख्य माना जाता है जो प्रदर्श्न के लिये अपनी युति को प्रदान करते हो वह प्रदर्शन चाहे शुक्र से युति लेने से कपडो का हो,शनि चन्द्र से युति लेने के कारण चाहे लोगो को नौकरी और शादिया करवाने से हो,या जमीनी कारको को कागज पर उकेर कर दिखाने का हो,शनि चन्द्र कुम्भ राशि मे शीशे से भी अपना रूप बना लेते है और शीशा जहां अपने कारण को प्रस्तुत करता है वह द्रश्य रूप से मीडिया मे भी जा सकता है और कार्य स्थान को चुनने के लिये शीशे से बनी बिल्डिंग को भी चुन सकता है। यह कारण मन्द बुद्धि से सम्बन्धित लोगो को शिक्षा देने से भी माना जा सकता है।
सूर्य छठे भाव मे है जातिका को पिता की तरफ़ से वह सहायता नही मिली है जो मिलनी चाहिये थी,कारण शिक्षा का स्वामी चौथे भाव मे वृश्चिक राशि का है,और इस भाव मे शिक्षा के स्वामी के आने से जातिका का शिक्षा का जीवन एक बार बाधित होता है,कारण राहु और सूर्य के बीच मे गुरु शुक्र दोनो के आने से हो सकता है। शुक्र की स्थिति धनु राशि मे होने से जातिका के लिये विदेशी परिवेश से सम्बन्धित या किसी विदेशी महिला के सहयोग से बडे शिक्षा संस्थान को बनाना और एन जी ओ जैसे कार्यों को करना भी माना जा सकता है। बुध के छठे भाव मे वक्री होने से भी और मकर राशि मे सूर्य के साथ होने से जातिका सरकारी उपक्रमो से सहायता लेकर या ठेकेदारी लेकर भी कार्य कर सकती है। शनि का जीवन साथी के भाव मे होने से और शनि का चन्द्रमा के साथ होने से दिमाग का बार बार बदलना एक कार्य को छोड कर दूसरे की तरफ़ भाग जाना भी धन को देने के लिये अपने असर को कम करता है। धनेश और लाभेश बुध का वक्री होना भी लोन आदि के काम करना लोगो को लोन आदि दिलवा कर खुद का धन से धन कमाने का कारण पैदा करना,गुरु के वृश्चिक राशि मे होने के कारण धन को विदेशो से लाकर लोगो की सहायता करना और बदले मे मेहनत के रूप मे कमीशन को प्राप्त करना भी माना जा सकता है धन के लिये जातिका को बुध के उपाय करने चाहिये।

मन की आजादी जीवन की बरबादी

प्रस्तुत कुंडली मे जातिका प्रश्न है कि शादी कब होगी? गुरु वक्री है और तीसरे भाव मे मकर राशि का विराजमान है,इस गुरु का स्वभाव है कि जब यह नीच राशि मे वक्री हो जाता है तो वह उच्च का हो जाता है,गुरु सम्बन्धो का कारक है जब गुरु किसी भी ग्रह से अपनी युति करता है या भावानुसार गोचर करता है तो सम्बन्ध उसी प्रकार से बनते जाते है राहु जिस भाव से गोचर करता जाता है सम्बन्धो को खराब करता चला जाता है शनि जिस भाव से गोचर करता है उसी भाव के काम करवाता है और सम्बन्धो को फ़्रीज करता जाता है केतु जिस भाव से गोचर करता जाता है उसी भाव के ग्रहो और राशि के प्रभाव से मोक्ष दिलवाता जाता है। चन्द्रमा केवल मानसिक सोच को पैदा करता है लेकिन वह मानसिक सोच अधिक समय तक नही रहती है जैसे ही चन्द्रमा का गोचर भाव या ग्रह से दूर हुआ वह मानसिक बदल भी जाती है और व्यक्ति उस सोच को भूल भी जाता है। वक्री गुरु तीसरे भाव मे होने से जातिका को बुद्धिमान बना रहा है लेकिन अपने समाज धर्म और मर्यादा को भूलकर बाहरी धर्म मर्यादा और समाज की रीति रिवाजो को ग्रहण करने के लिये अपनी योग्यता को दे रहा है जातिका के अन्दर आधुनिकता का भूत सवार होना भी माना जा सकता है। गुरु की पहली तीसरी नजर मीन राशि के चन्द्रमा पर पंचम मे पड रही है जातिका शिक्षा या बाहरी परिवेश मे अपने को हमेशा ले जाने के लिये तत्पर मानी जाती है वह मानसिक रूप से विदेशी परिवेश को ही ग्रहण करना चाहती है। गुरु की पंचम नजर नीच के सूर्य पर सप्तम भाव मे है सूर्य धन की राशि में है और राहु शुक्र मंगल बुध के बीच मे है इसलिये जातिका के लिये जो जीवन साथी की चाहत है वह राजनीति से जुडे या धनी परिवार मे जाने की है साथ ही सूर्य का वृष राशि मे होने से और उत्तर-पश्चिम दिशा के गुरु का असर होने के कारण जातिका अपने को इंगलेंड आदि जैसे देशो मे नागरिकता को प्राप्त व्यक्ति को अपना जीवन साथी बनाना चाहती है।
पंचम चन्द्रमा मीन राशि का है और गुरु के साथ साथ लगन मे विराजमान यूरेनस का प्रभाव भी है साथ ही लगन वृश्चिक राशि की है और स्वामी मंगल अष्टम स्थान मे है बुध भी साथ है इसलिये जातिका का सोचना विदेश मे जाकर ही शादी करने का है। शुक्र राहु का स्थान छठे भाव मे है राहु के साथ शुक्र होने से अक्सर दिमाग मे विजातीय सम्बन्ध बनाने की रहती है,शुक्र का छठे भाव मे होना शास्त्रो मे भी दोष से युक्त कहा जाता है और स्त्री जाति मे अगर शुक्र छठा है तो जीवन मे उसे केवल नौकरी करने के बाद ही जीवन यापन करना पडता है शुक्र सप्तम का मालिक भी है और सप्तम भाव के आगे मंगल बुध के होने से जातिका मे तकनीकी ज्ञान है और इस तकनीकी ज्ञान का अहम भी जातिका के अन्दर सूर्य के कारण माना जा सकता है,इस अहम के कारण भी जातिका के लिये एक से अधिक सम्बन्ध बनने की बात मिलती है। मंगल बुध के लिये एक बात और भी मानी जाती है कि जब यह एक साथ होते है तो घर मे भाई से और ससुराल मे पति से हमेशा किसी न किसी बात पर कहासुनी होती रहती है,इस प्रकार से जो भी बात की जाती है वह कठोर होती है और बात की तकनीकी को नही समझने के कारण अक्सर इस प्रकार के जातको के गुप्त दुश्मन भी बन जाते है। अस्प्ताली भाव मे मंगल और बुध के होने से जातिका को या तो अस्पताली पढाई पढनी पडती है या तकनीकी रूप से कम्पयूटर या इलेक्ट्रोनिक आदि की जानकारी करनी पडती है। भाषाई जानकारी भी बहुत अच्छी होती है।
शनि के साथ केतु जब बारहवे भाव मे होता है तो जातिका के शादी या शारीरिक सम्बन्ध बनने का समय उम्र की बीसवी साल छब्बिसवी साल बत्तिसवी साल के लिये शास्त्रो मे कहा गया है। लेकिन वर्तमान मे जातिका की उम्र छब्बिसवी पूरी होकर सत्ताइसवी मे चल रही है,अक्सर इस कारण मे जातिका की शादी की बात किसी स्थान पर चल रही हो और हां ना की पोजीसन मे जातिका की शादी नही हो पा रही हो लेकिन आने वाले मई 2012 के महिने मे जब गुरु केतु से अपना सम्पर्क बनायेगा उस समय शादी का योग शुरु हो जाता है,लेकिन इस समय यह भी देखने की बात मानी जाती है कि अगर जातिका का उम्र के पहले लिखे गये उम्र के दौर मे शादी का कारण बन चुका है या जातिका ने किसी प्रकार से गूढ सम्बन्ध पहले से ही बना लिये है तो शादी का समय तीन साल बाद ही माना जा सकता है।

व्यवसय या नौकरी ?

जातक का प्रश्न है कि क्या वह व्यवसाय कर सकता है और कर सकता है तो कौन सा व्यवसाय कर सकता है ? ध्यान रखने वाली बात है कि चार आठ और बारह व्यवसाय के लिये देखे जाते है और छ दस और दूसरा भाव नौकरी के लिये देखा जाता है।जन्म कुंडली मे इन छ: भावो मे राहु जिस भाव मे होता है उसी भाव का कारण जातक के जीवन मे बना रहता है और वह उन्ही भावो के अनुसार अपने कार्यों को आगे बढाने के लिये प्रस्तुत करता है। जातक की कुंडली मे राहु दूसरे भाव मे है जो दो छ: और दस को प्रभावित कर रहा है जातक को नौकरी करना ठीक है,अगर जातक व्यवसाय करता है तो बारह मे बैठे सूर्य और मंगल सरकारी धन को बरबाद कर सकते है पिता और चाचा की सम्पत्ति को बरबाद कर सकते है या भाई और खुद के लिये कर्जाई होने का रूप सामने आ सकता है। चौथे भाव मे गुरु शनि के होने से धर्मी मानस बन जाता है दुकानदारी बिना उधारी के नही चलती है और उधार देकर जो वसूलने की हिम्मत रखता है वही दुकानदारी कर सकता है। चौथे भाव से अष्टम भाव पंचम मे होता है जातक को जितना अधिक रिस्क लेने का भाव होगा उतना ही वह दुकानदारी मे आगे भी बढ सकता है और जितना वह डरने वाला या धर्मी यानी किसी की मजबूरी समझ कर सामान या सेवा दे दी लेकिन उसकी परिस्थिति को देखकर वसूलने मे भी रहम आ रहा है,यह बात सामने वाले को बेइमान बनाने मे और खुद को लुटवाने का कारन बन सकता है। इसके अलावा व्यवसाय के लिये जो सबसे बडी बात होती है वह व्यवसाय स्थान को स्थाई कायम करने के लिये और भी देखा जाता है अगर व्यसाय स्थान किराये का है तो जातक व्यवसाय को करने के बाद आगे बढाता चला गया और स्थान की कीमत बढ गयी लेकिन जैसे ही किराये के मकान या दुकान वाले की मर्जी हुयी दुकान या मकान खाली करने के लिये कहा गया उस समय वह स्थान की कीमत और की गयी मेहनत का बेकार होना भी माना जा सकता है,यह बात ब्रांच जो व्यवसाय के लिये बनायी जाती है उसके लिये कोई मायना नही रखता है लेकिन किराये से बनाया गया मुख्यालय हमेशा दिक्कत देने वाला हो जाता है। जातक की कुंडली मे शनि और गुरु कन्या राशि मे विराजमान है कन्या का शनि चौथे भाव मे होने से या तो किराये से लाभ करवाता है या किराये से रहने और व्यापार करने के लिये अपने मन को प्रदान करता है। साथ ही इस गुरु और मंगल की केतु मंगल और सूर्य से युति भी है शनि ने अपनी मारक द्रिष्टि से लगन मे वक्री बुध और शुक्र को भी काटा है इस प्रकार से जातक दूसरे के लिये किये गये काम से तो लाभ ले सकता है लेकिन अपने द्वारा किये गये काम से कभी फ़ायदा लेने वाला नही हो सकता है। खुद का काम करने का मानस बनाने के लिये छठे भाव मे राहु का गोचर असर देने वाला है,राहु नौकरी वाले स्थान पर है और जातक को लगता है कि पता नही कब नौकरी से दूर होना पडे इसलिये खुद का व्यवसाय करना ठीक है लेकिन अष्टम मे बैठा केतु और छठा बैठा राहु जो कारण पैदा कर देता है वह कारण अक्सर साधारण रूप से समझ मे नही आते है। जातक को नौकरी ही करनी चाहिये और आने वाले जनवरी के महिने से दूसरी नौकरी की तलाश भी करनी चाहिये जहां यह राहु अपनी गति से लोगो के लिये पार्ट टाइम मे कमन्यूकेशन लोन आदि के लिये कार्य करने से फ़ायदा देने वाला हो सकता है.

परमस्वतंत्र न सिर पर कोई.

यह कुंडली वृश्चिक लगन की है और राशि भी वृश्चिक है,मन का कारक चन्द्रमा शमशानी राशि मे विराजमान है यानी जब सोचे तब मरा हुआ सोचे जब महसूस करे तब मरा हुआ महसूस करे और जब कुछ कार्य करने की कही जाये तो मन यह भावना पैदा हो कि वश की बात नही है। शनि वक्री होकर पंचम भाव मे मीन राशि का है,मार्गी शनि मेहनत करने वाला होता है और वक्री शनि बुद्धि और चालाकी से काम लेने वाला होता बुद्धि के भाव मे इस शनि के बैठ जाने से बुद्धि मे एक प्रकार की चालाकी का भाव पैदा हो गया है इस चालाकी का परिणाम यह है कि किसी भी काम को करने के लिये बुद्धि का प्रयोग किया जाये और जब काम नही हो तो दुबारा से शुरु किया जाये साथ ही मीन राशि मे होने से जब मेहनत का काम पडे तो जगह से दूर हट जाये जब काम हो जाये तो सबसे पहले हाजिर हो जाये। गुरु उच्च का होकर नवे भाव मे है कर्क राशि का है इस गुरु के कारण पिता बहुत ही उन्नत और धार्मिक व्यक्ति है सब की भली सोचने वाले है,कोई साथ देने वाला नही है फ़िर भी अपनी भलाई से सभी के लिये अच्छा सोचने की बात करते है पिता का धर्म स्थानो मे बहुत लगाव है पूरे परिवार और मर्यादा से चलने वाले है। यही बात जातक के अन्दर है कि पिता ने जिन लोगो का भला किया है जातक उन लोगो से अपने निजी फ़ायदे की बात को सोचने वाला है पिता के द्वारा भला जिन लोगो के साथ किया गया है उन लोगो से अपनी भलाई को प्राप्त करना जातक का काम है,मंगल सिंह राशि मे प्लूटो भी है और यूरेनस भी है मंगल तकनीक का कारक है लेकिन सिंह राशि प्रेम प्यार से राजनीति से काम करने वाली है मंगल के बैठ जाने से जातक ऊंची आवाज मे बात करता है काम को मशीनो से करने का कारण बन सकता है लेकिन काम को करने के लिये मशीनी कारण सामने लाये जाते है कन्ट्रोल करने के लिये मशीन का प्रयोग करता है। शुक्र ग्यारहवे भाव मे है कन्या राशि का है जीवन साथी को दोस्तो के भाव से प्राप्त करना माना जाता है लेकिन जो शुक्र जीवन मे साथ चलने के लिये अपनी गति को प्रदान करता है वही शुक नौकरी और सेवा वाले कार्यों को करने के लिये अपनी गति को प्रदान कर रहा है इसके साथ ही बीमारी तथा मशीनी आदेश भी शुक्र के लिये परेशान करने वाले है शुक्र यानी पत्नी पिता के रहते किसी बुरे काम को नही करने वाली है जैसे ही पिता का जाना होगा शुक्र किसी  घर को छोड कर जा सकता है। बुध तुला राशि का है जातक का बाहरी लोगो से प्रेम सम्बन्ध बनाने के लिये देखा जा सकता है तुला का बुध सूर्य के साथ है तुला का सूर्य नीच का होता है जातक कहने को तो सामने बहिन जैसा व्यवहार करेगा लेकिन उसकी मानसिक इच्छा स्त्री की तरह से भोगने की होगी केतु भी साथ है पहले जातक बहुत ही भोले रूप मे लोगो से तकनीकी कमन्यूकेशन से पहिचान बनायेगा किसी भी बात को बेलेन्स करने मे और अपने द्वारा सहानुभूति का प्रयोग करेगा लेकिन समय का इन्तजार करेगा और जैसे ही दाव लगा किसी न किसी राजनीति या गलत डर को पैदा करने के बाद अपने काम को निकालने की बात सोचेगा। राहु छठे भाव मे है यह छुपे हुये भूत की तरह से अपना असर पैदा करेगा जैसे ही दाव लगेगा अक्समात ही झटका मारेगा और जो भी माल असबाब या इज्जत है साफ़ कर देगा। वर्तमान मे राहु का गोचर चन्द्रमा पर चल रहा है जातक का दिमाग बहुत ही भ्रम मे है,अक्सर जातक का लगाव इस समय मे शमशानी शक्तिओ से सहायता प्राप्त करने का होगा वह चाहेगा किसी तंत्र मंत्र से मुफ़्त का माल प्राप्त हो जाये। केतु का गोचर सप्तम मे है वह अपने लिये साधन के रूप मे किसी भी कारण मे धन को सहायता के लिये प्राप्त करने की कोशिश करेगा,वह धन किसी प्रकार से छल से या किसी प्रकार से तकनीकी रूप से प्राप्त करने का कारण दिमाग मे लायेगा। गुरु राहु के साथ गोचर कर रहा है जातक जो सहायता करेगा उसी के लिये काटने की कोशिश करेगा। शनि बुध के साथ है किसी भी व्यवसाय स्थान मे काम करने की सोचेगा लेकिन बुद्धि काम नही करेगी केवल यही होगा कि किस प्रकार से बाहरी कमन्यूकेशन से धन को प्राप्त किया जा सके शनि सूर्य के साथ है पिता के साथ विचारो के नही मिलने से दिमाग मे हमेशा अपने ही परिवार के प्रति भेद रहेगा समय मिलने पर अपने ही परिवार से बिलग भी हो सकता है और अपने ही परिवार का अहित भी कर सकता है। शनि का गोचर केतु के साथ है कार्य मे मन नही लगेगा और जो भी कार्य किया जा रहा होगा वह छूटने के कारण और भी दिमाग कनफ़्यूजन मे जायेगा।

Monday, April 2, 2012

दोस्ती से दुश्मनी तक

कुण्डली मे दोस्ती का भाव ग्यारहवा है,और दोस्तो का जो ख्याल जातक के लिये होता है वह कुंडली का दूसरा भाव होता है। दोस्तो का मुख्य ध्येय केवल पंचम भाव तक और दोस्त जो लाभ लेना चाहते है वह कुंडली के नवे से देखा जाता है साथ ही जहां दोस्त जातक के लिये खर्च कर सकते है वह दसवा भाव देखा जाता है। कन्या राशि वाले के लिये देखा जाता है कि पलक झपकते ही दोस्ती हो जाती है और पलक झपकते ही दुश्मनी बन जाती है अभी वह किसी के लिये अच्छा कह रहा होता है और थोडी देर मे वह बुराई काने लग जाता है। अथवा जिन लोगो के ग्यारहवे भाव मे चन्द्रमा विराजमान है वह भी इसी बीमारी से ग्रसित है। यह प्रभाव कर्क राशि के कन्या की ग्यारहवी होने से देखा जाता है और चन्द्र्मा जो मन का कारक है उसके लिये भी देखा जाता है। आजकल सोसियल साइट बन गयी है जैसे फ़ेस बुक ओर्कुट और भी बहुत सी साइट है जिनमे दोस्ती बनाने और दोस्ती चलाने का राज देखा जा सकता है।
राशि और उसके स्वामी से दोस्ती का अधिक चलने और कम चलने का तथा कभी चलने का और कभी नही चलने का कारण देखा जाता है। मेष राशि वालो के ग्यारहवे भाव का मालिक यूरेनस होता है यह संचार के कारको के लिये माना जाता है। भारतीय ज्योतिष पद्धति से शनि को माना गया है,यूरेनस की चाल और शनि की चाल मे बहुत अन्तर है। यूरेनस एक राशि पर लगभग साढे छ: साल गोचर करता है,और शनि केवल ढाई साल के लिये ही गोचर करता है। फ़ेसबुक वर्तमान मे बढचढ कर आगे चल रही है वैसे अन्य सोसियल साइट भी चल रही है लेकिन इस साइट के अधिक चलने का मतलब यूरेनस का ही प्रभाव माना जा सकता है। नाम के अनुसार फ़ेस बुक धनु राशि के नक्षत्र पूर्वाषाढ और वृष राशि के रोहिणी नक्षत्र के लिये अपना प्रभाव प्रदर्शित करने वाला है। धनु राशि से वर्तमान मे यूरेनस चौथे भाव मे गोचर कर रहा है,यह भाव जनता का भाव है और धनु राशि भी विश्व पटल के लिये मानी जाती है। मीन राशि मे यूरेनस का गोचर फ़रवरी दो हजार दस मे शुरु हो गया था और आने वाले अगस्त दो हजार सोलह तक ही रहेगा,इसके बाद यूरेनस का गोचर मेष राषि मे हो जायेगा,और यह मकर राशि वालो के लिये अपना प्रभाव जनता को देने लगेगा। इस समय के बाद जो लोग अक्षर भ ज ख ग क्रम से शुरु करेंगे उनके लिये सोसियल साइट का आगे बढना माना जायेगा। इस प्रकार की दोस्ती मे यूरेनस की चाल का फ़र्क भी मिलता है यह एक साल मे चालीस दिन के लिये वक्री भी होता है और इस समय मे जो अलावा साइट होती है वह अपने लिये स्थान बना लेती है लेकिन यूरेनस के मार्गी होते है उनकी पूंछ बन्द हो जाती है।यूरेनस का अगस्त सोलह तक मीन राशि मे गोचर करने का मतलब है मीडिया की उत्तरोत्तर पहिचान यह आकाशीय क्षेत्र मे वर्तमान मे अपनी पहिचान बना रही है जबकि यूरेनस के मेष राशि मे आने से जो भी कमन्यूकेशन बनता है वह मनुष्य या जीव कृत कमन्यूकेशन बनता है। इस बात से भी दो प्रकार के कारण समझ मे आते है कि या तो तब तक मनुष्य किसी ऐसी तकनीक का विकास कर लेगा कि व्यक्ति बिना किसी मीडिया सहायता के खुद के द्वारा ही एक दूसरे से कमन्यूकेशन करने लगेगा या फ़िर कोई ऐसी घटना हो जायेगी जो चलने वाले सभी साधन नकारा हो जायेंगे,और मनुष्य केवल मनुष्य के द्वारा ही समाचार या इसी प्रकार के कारण कर पायेगा। यूरेनस की अधिक जानकारी के लिये astrobhadauria.wikidotcom साइट मे या astroveda.wikidtot.com मे पढ सकते है। यूरेनस की क्रिया पर ही संसार की सभी कमन्यूकेशन की मशीने निर्भर है,जबकि प्लूटो केवल मशीनी निर्माण और उन्हे तकनीक से चलाने के लिये जाना जाता है।
इसी प्रकार से हर राशि के लिये दोस्ती का समय अलग अलग राशियों के ग्यारहवे भाव के मालिक के अनुसार ही होता है दोस्तो का रूप भी ग्यारहवे भाव के स्वामी के रूप मे ही होता है। जैसे मेष राशि वाला दोस्ती केवल उन्ही लोगो से करेगा जो जमीनी पाताली और आसमानी जानकारी को रखने वाला होगा,जो कमन्यूकेशन मे एक्सपर्ट होगा। वृष राशि वाला भी दोस्ती उन्ही लोगो से करेगा जो बडे संस्थान के मालिक होंगे धर्म स्थान या भाग्य स्थान के मालिक होंगे जिन्हे विदेश मे रहना होता होगा या जो आसमानी शक्तियों को जानते होंगे अथवा जिन्हे घर परिवार मन की बाते आदि जान लेने का अच्छा प्रभाव होगा जो नीति पर चलने वाले लोग होंगे उसी प्रकार से मिथुन राशि का दोस्ती वाला प्रभाव उन्ही लोगो से होगा जो अपने पराक्रम को प्रदर्शित करने वाले होंगे चाहे वह एक्टर हो या कोई शरीर से करतब दिखाने वाले लोग हो,अथवा जो विपरीत लिंगी हो और जो वक्त पर उनकी जरूरतो को पूरा करने वाले कर्जा दुश्मनी बीमारी मे साथ देने वाले हो,उसी प्रकार से कर्क राशि वाले भी उन्ही लोगो से दोस्ती करेंगे जो देखने मे सुन्दर हो धन के क्षेत्र मे आगे बढे चढे हो बोलना अच्छा आता हो और खानपान सम्मान करना आता हो उनकी भावना को समझ कर उसके प्रति बोलना आता हो। सिंह राशि वालो को भी उन्ही लोगो से दोस्ती अच्छी लगती है जब इस राशि वाले कटु परिस्थिति का सामना करे तो वे सौम्यता से सामने आये और जब उन पर कोई अहम सवार हो तो उसके लिये वे कानूनी ऊंची शिक्षा से सम्भालने के लिये अपनी युति को जाहिर कर सके,वैसे सिंह राशि वालो को वही मित्र अच्छे लगते है जो उनके बारे लिखते भी रहे और कहते भी रहे वह जो कर रहे है उसकी वाहवही करना जिन्हे आता हो वही उनके सच्चे मित्र हो सकते है। कन्या राशि वालो के लिये बताया ही है कि वे उन्ही मित्रो को पसंद करते है जो जनता से जुडे हो और भावनाओ को प्रस्तुत करना जानते हो,वह घर परिवार माहौल और जनता के बारे मे उन्हे सुझाव देते रहे,तुला राशि वालो को शेर दिल मित्रो की चाहत रहती है साथ ही तुला राशि वाले उन्ही मित्रो को अधिक पसंद करते है जो राजनीति से कैसे भी जुडे हो और तुला राशि के लाभ के साधनो को बढाने मे राजनीतिक सहायता को करना जानते हो अक्सर ऐसा भी देखा जाता है कि तुला राशि उन मित्रो से भी घिरे होते है जो खेल कूद जल्दी से धन कमाने और मनोरंजन मे उनके साथ चलते है जल्दी से धन कमाने के साधन बताने वाले लोग उनके लिये प्रिय होते है लेकिन उन्हे इस प्रकार के  मित्र तभी मिलते है जब वे किसी बडी समस्या से घिरे हो उन्हे अपमान मौत अस्पताली सहायता पराशक्तियों से मिलने वाले कष्ट जेल या किसी बडी समस्या से सुलझाने के लिये जिन्हे प्रभाव तुला राशि वालो का अच्छा लगे। वृशचिक राशि वालो के लिये उन्ही लोगो की दोस्ती अच्छी लगती है जो उन्हे कर्जा दुश्मनी बीमारी और रोजाना के काम मे सहायता देते हो जो लोग इस राशि के प्रभाव को समझ रहे हो धार्मिक हो और ऊंचे कुल से पैदा हुये हो या जो धन आदि मे हमेशा उनके लिये सहायता करते रहे। धनु राशि वालो के लिये उन्ही मित्रो की जरूरत पडती है जो मानसिक रूप से उनके लिये केवल बेलेन्स बनाने के कारण बताना जानते हो जो लोग किये जाने वाले कार्यों मे और लाभ मे बेलेन्स करने के लिये सामने आते हो वह बेलेन्स चाहे धन का हो कार्य का हो या न्याय से सम्बन्धित हो या जाति बिरादरी की बातो को आगे दिखाने का हो अक्सर उन्ही लोगो को पसन्द भी करते है जो सामने रहकर उनकी जातिकी बाते बडे रूप मे करने वाले हो भले ही वे दोस्ती से बाहर की सीमा मे अपने प्रभाव को उल्टी गति से देख रहे हो। मकर राशि वालो को उन्ही दोस्तो की जरूरत पडती है जो उनकी सहायता किसी भी जोखिम मे करना जानते हो उन्हे वह गुद दे सके जो अन्य कोई नही जानता है,अथवा उन्ही लोगो की संगति मिलती है जो किसी प्रकार से जोखिम वाले काम करने के बाद बरबाद हो चुके है या क्राइम की दुनिया मे नाम है अथवा वे गुप्त रूप से कार्य करने के आदी हो अधिकतर मामले मे डाक्टर इन्जीनियर सीआई डी आदि विभाग वाले इस राशि के मित्रों की श्रेणी मे आते है। कुम्भ राशि हमेशा उन्ही मित्रो की सीमा को चाहती है जो मर्यादा मे रहना जानते हो उन्हे विदेश आदि का पूरा ज्ञान हो जो लोग ऊंची शिक्षा प्राप्त किये हो जो लोग अपने समाज के मुखिया हो जिन्हे ऊंची शिक्षा का पता हो जो लोग कोर्ट कचहरी मे अपनी पैठ बनाकर चलना जानते हो जो लोग उनकी जाति से सम्बन्धित हो इसी प्रकार मीन राशि वालो को भी काम करने वाले लोग राजकीय कर्मचारी जो लोग राजतंत्र को जानते हो जिन्हे राजनीति करनी आती हो जो लोग लेकिन इस राशि वाले जातक अपने मित्रो से धोखा अधिक खाते है जैसे उनकी मानव शक्ति को क्षीण कर देना और उनकी मानवीय सहायता को प्राप्त कर लेना आदि बाते मानी जाती है।
दोस्ती चलाने वाले लोगो मे यूरेनस प्लूटो से सम्बन्धित लोग अधिक दिन तक फ़ायदा देने वाले होते है वे अधिक दिन तक फ़ायदा देते है तो अधिक दिन तक नुक्सान भी देते है। जैसे ही ग्यारहवे भाव का स्वामी ग्यारहवे भाव से त्रिक भाव यानी जातक के चौथे भाव छठे भाव बारहवे भाव मे गोचर करता है या सप्तम मे जाकर विरोध मे बोलना शुरु कर देता है तभी दोस्त भी दुश्मनी बना लेता है।

राख से साख

बाबा फ़कीर तांत्रिक मांत्रिक झाडफ़ूंक करने वाले अपनी साख राख से बना लेते है। राख को भभूत भी कहा जाता है,भभूत को शाब्दिक अर्थ से जोडा जाये तो भ+भूत=भय का भूत,भविष्य का भूत,भचक्र का भूत,पिछले समय के कर्मो का भूत यानी भूतकाल का भूत। वर्तमान मे वृश्चिक राशि मे राहु गोचर कर रहा है,वृश्चिक राशि को शमशानी राशि कहा गया है,यह राहु पिछली मई से आने वाली जनवरी दो हजार तेरह तक अपना असर इस राशि पर डाल रहा है। कहा जाये तो वृश्चिक राशि को इस समय किसी को भी अंडर शेडो करना बडी आसानी का काम है.इस राशि वाले अपने नाम और अपनी क्रियाओं को इसी राहु की बदौलत जनता मे दिखाने का कारण पैदा कर रहे है। मनुष्य आशंकाओ का गुलाम है बाकी उसके सामने के जो कार्य है उन्हे पूरा करता जाये,जो कुछ भी पीछे की गल्ती से बुरा हो रहा है उस बुराई को हटाने का उपक्रम करता जाये तो वह भय से विहीन हो सकता है। लेकिन इस भागमभाग की जिन्दगी मे इस भभूत का प्रयोग बडी आसानी से होता समझ मे आ रहा है।
राहु का स्वभाव होता है कि वह अपने स्थान से अपने तीसरे भाव को पंचम भाव को सप्तम भाव को और नवे भाव को अपना ग्रहण देता है। इस ग्रहण मे जो जो राशिया और ग्रह आते जाते है वह इस राहु की बन्दिस मे आजाते है और इस राहु के द्वारा जो भी कहा जाता है जो भी करवाया जाता है वह करने और कहने के लिये तैयार हो जाते है। वर्तमान मे राहु वृश्चिक राशि मे है,इसलिये इस राशि को ग्रहण दे रहा है,तीसरी निगाह मकर राशि पर है पंचम निगाह मीन राशि पर है,सप्तम की निगाह वृष राशि पर है,और नवी निगाह कर्क राशि पर है। इन राशियों पर अपना प्रभाव देने के कारण वृश्चिक राशि अस्प्ताली कारणो से और अनजानी बीमारियों अक्स्मात मौत होने के कारणो के लिये जानी जाती है मकर राशि काम धन्धे नौकरी और जीवन यापन के लिये किये जाने वाले कामो के लिये मानी जाती है वृष राशि धन दौलत और कुटुम्ब के प्रति मानी जाती है कर्क राशि घर मकान रहने के साधन यात्रा के साधन मानसिक कारणो को बताने वाली होती है। अगर सूक्ष्म रूप से देखा जाये तो लोग इस राहु की नजर से काम धन्धे और सरकारी नौकरी आदि के लिये परेशान है,जो बाते उन्हे सन्तुष्टि दे सकती है जिन कार्यों को करने के बाद मानसिक शांति मिलती है उसके लिये परेशान है,धन और अपने परिवार कुटुम्ब आदि से परेशान है,रहने वाले साधन और जनता से जुडे कामो के लिये परेशान है। इन सभी कारको के लिये उन्हे वृश्चिक का राहु घेरे मे लेकर वह जो उनके बारे मे कहता है वह इन समस्याओ से ग्रसित व्यक्ति कहने भी लगते है और मानने भी लगते है। जब व्यक्ति किसी के भी कहने सुनने और विश्वास करने मे आजाता है तो यह राहु से ग्रसित व्यक्ति अपनी चालाकी के कारण सम्बन्धित व्यक्ति काटने से भी नही चूकता है। वह काटना चाहे धन से हो या किसी प्रकार की शारीरिक कारणो से हो।
राहु हमेशा सहायता के लिये केतु का प्रयोग करता है,जिस राशि डिग्री पर राहु होता है उस राशि की विपरीत राशि की उसी डिग्री पर केतु होता है। केतु राहु की सहायता करता है और राहु अपनी कामयाबी मे सफ़ल होता चला जाता है। वृष राशि मे केतु विराजमान है। केतु को संचार से भी जोडा जाता है,केतु को चेले के रूप मे भी देखा जाता है,केतु टेलीफ़ोन से भी है केतु चपरासी से भी है केतु की शिफ़्त सहायक के रूप मे भी है और केतु को कुत्ते के रूप मे भी देखा जाता है। जिनके पूंछ होती है वह भी केतु की श्रेणी मे आते है,जो लोग अपने को सहायको के रूप मे लेकर आगे चलते है वह भी केतु की सहायता को लेने के लिये माने जाते है। वृष राशि का केतु केवल धन के प्रति धन के द्वारा सहायता देने और लेने के लिये माना जाता है,केतु की द्रिष्टि भी राहु की द्रिष्टि पर समान होती है लेकिन केतु राहु के ग्यारहवे भाव को भी देखता है। ग्यारहवा भाव लाभ का होता है राहु बिना केतु के लाभ नही ले सकता है। राहु की अष्टम द्रिष्टि केतु के सामने होती है और केतु की अष्टम द्रिष्टि राहु के सामने होती है। इस प्रकार से राहु अपनी चालाकी मे केतु के बिना सफ़ल नही हो सकता है और केतु अपनी चालाकी मे राहु के बिना सफ़ल नही हो सकता है। अगर किसी का नाम वृश्चिक और वृष राशि से मिला जुला है तो वह और भी अपनी चालाकी मे सफ़ल हो सकता है।
उदाहरण के लिये एक नाम लेते है निरंकारी बाबा। इस नाम मे पहले शब्द मे वृश्चिक राशि और दूसरे शब्द मे वृष राशि है,इस नाम का व्यक्ति वर्तमान मे अपने नाम के पहले शब्द के द्वारा राहु की चालाकी और दूसरे शब्द का प्रयोग धन आदि के लिये प्रयोग करने के लिये माना जायेगा। इस नाम मे निरंकारी शब्द राहु के घेरे मे है और बाबा शब्द केतु के घेरे मे है। लेकिन दोनो की नजर एक दूसरे के लाभ मे होने से जो भी काम होगा वह एक दूसरे शब्द के लाभ के लिये ही माना जायेगा। केतु के लिये मैने पहले ही बताया है कि वह संचार के साधनो का कारक भी है,संचार के साधनो मे टेलीफ़ोन भी आता है तो मीडिया भी आती है,अगर इस नाम का व्यक्ति मीडिया और टेलीफ़ोन से अपने को आगे बढाने के लिये जाना पडता है तो वह एक दूसरे के लाभ को देखकर ही आगे जा सकता है। लाभ का रूप भी आधा आधा होता है,जितना टेलीफ़ोन या मीडिया को मिलेगा उसका आधा निरंकारी बाबा को भी मिलेगा। लेकिन यह भाव राहु के निरंकारी शब्द पर रहने तक ही सीमित है,यह प्रभाव आने वाली जनवरी दो हजार तेरह तक ही है,इसके बाद राहु का असर इस शब्द से हटते ही और राहु का पदार्पण वृश्चिक राशि से बारहवे भाव मे जाते ही वह जेल अस्पताल विदेश अथवा अडर ग्राउंड हो जाने वाली बात को भी सामने कर देगा। इसके पहले भी अगर मंगल इस राहु को चौथी द्रिष्टि से देखने लगता है तो इसे कंट्रोल भी किया जायेगा और यह अपनी की जाने वाली चालाकी की हरकतो को रोक भी सकता है। जैसे वर्तमान मे मंगल सिंह राशि का है और वक्री है,इस वक्री मंगल का प्रभाव यह भी माना जाता है कि जो भी इसकी क्रियायें है वह उल्टी है,सिंह राशि के चौथे भाव की राशि वृश्चिक है,मंगल भी राज्य की राशि मे विराजमान है,आने वाली चौदह अप्रैल तक इस मंगल की नजर राहु पर उल्टी है यानी वह जो क्रिया करता है करता रहेगा,लेकिन चौदह अप्रैल के बाद जैसे ही मंगल मार्गी होगा वह सरकारी रूप से इस प्रकार के चालाकी करने वाले व्यक्ति पर अपना अंकुश लगा देगा। लेकिन यह अंकुश आगे के लिये अपनी योजना को सफ़ल बनाकर शुरु करने के लिये अपनी गति को प्रदान देगा। इस गति के अनुसार इक्कीस जून को मंगल के कन्या राशि मे जाने के बाद यह मंगल इस राशि के द्वारा प्राप्त धन और जो लोग सहायक रहे है उनके धन पर अपना प्रभाव देकर खुलासा भी करेगा,साथ ही चौबीस जून के आसपास इस प्रकार के व्यक्ति अक्समात ही दक्षिण-पूर्व दिशा के देशो की तरफ़ भूमिगत होने के लिये भी प्रयास करेगा। यह शनि का प्रभाव होगा और इस राशि वाले व्यक्ति को जो चालाकी मे धन कमाने और किसी प्रकार गैर कानूनी कारण वाली मींमांसा मे लिप्त पाया गया है को सजा देने के लिये कार्यवाही भी करेगा।
यह वृश्चिक राशि की साढेशाती की शुरुआत के साथ साथ वृष राशि की साढेशाती भी मानी जा सकती है। बाबा का रूप भी समझना हर आदमी को जरूरी है,जिस नाम के आगे बाबा लगा हुया है या जो नाम वृश्चिक और वृष राशि के सयुंक्त शब्दो मे है उसके लिये यह ही माना जाता है कि जो भी कारण पैदा होगा वह किसी न किसी प्रकार की तकनीक से सम्बन्धित होगा। इन दोनो राशियों के पास एक तकनीक का काम करती है और दूसरी उस तकनीक को प्रयोग मे लेकर अपने जीवन को चलाने वाली होती है। कुंडली का सप्तम भाव जीवन के उद्देश्य और जीवन भर लडाई के लिये माना जाता है,यह स्थान जीवन साथी का भी है साझेदार का भी है और सलाह के लिये भी माना जाता है। वृश्चिक राशि वाला व्यक्ति अपने शरीर को ही तकनीक मे ले जायेगा चाहे वह भौतिक तकनीक का जानकार हो जाये जैसे वह बिगडी हुई इलेक्ट्रोनिक वस्तुओ को ठीक करने का माना जाये या मनुष्य को ठीक करने के लिये माना जाये इसलिये ही इस राशि को अस्पताली राशि की उपाधि दी गयी है,जैसे आदमी बीमार होता है तो अस्पताल जाता है अब यह सब अस्पताल पर निर्भर है कि वह उस आदमी को ठीक करके वापस भेजता है या उसे सीधा शमशान भेजता है। लेकिन जो भी कार्य वृश्चिक राशि का होगा वह केवल धन को भोजन को अपने को संसार मे प्रदर्शित करने को अपने को धनी दिखाने को ही माना जायेगा,जबकि वृष राशि का मतलब भी यही होता है कि वह अपने को लिखकर पढकर अपने को प्रदर्शित करने की भावना को लेकर अपने को संचार के क्षेत्र मे आगे ले जाने और जो है वह खुलासा करने के लिये अपने साथ सहायक इकट्टे करने के लिये माना जायेगा लेकिन इस राशि वालो को आजीवन केवल अस्पताली कारणो की मंत्रणा ही देता हुआ माना जायेगा चाहे वह शमशान से सम्बन्धित हो या उन जानकारियों के लिये जो जन सामान्य की जानकारी मे नही हो,या उन कारको के लिये जो किस प्रकार से गूढ कारणो से धन कमाने आदि के लिये जाने जाते है। वृश्चिक राशि का एक स्वभाव और भी देखा जाता है कि जो सामने है वह होता नही है और जो वह करता है वह सामने दिखाई नही देता है।
वृश्चिक और वृष राशि वाले अगर किसी प्रकार के चालाकी और झूठी बातो से अगर वर्तमान मे अपने को सफ़ल बनाने के कारणो मे जुडे है तो उन्हे सतर्क हो जाना चाहिये कि उनके लिये आने वाले इक्कीस जून से दिक्कत का समय शुरु हो रहा है,साथ ही जून के महिने से ही उनकी दूर गामी साढे सात साल के लिये परिस्थिति का बदलाव भी है,यह बदलाव अगर अच्छे काम किये है तो अच्छा होगा और बुरे काम किये है तो धन शरीर मन रहने वाले स्थान जीवन मे रक्षा करने वाले कारक सभी फ़्रीज होने मे देर नही लगेगी।

Sunday, April 1, 2012

ग्रह एक व्याख्या अनेक

जब जन्म पत्री देखी जाती है तो एक ग्रह के कई रूप बताये जाते है लोग अपनी अपनी समझ से ग्रह के रूप को समझ भी जाते है और जो अपने दिमाग का प्रयोग नही करना चाहते है वे सीधे से कह देते है कि ज्योतिष से कुछ भी समझ मे नही आ रहा है। वक्ता और श्रोता दोनो ही अपनी अपनी जगह पर सजग है तो ग्रह के रूप को समझा जा सकता है,ग्रह चन्द्रमा का रूप वर्णन करने की कोशिश कर रहा हूँ शायद आपको अच्छा लगे।
चन्द्रमा के बारे मे आप सभी ने पढा होगा सुना होगा और समझा भी होगा। चन्द्रमा को पानी का ग्रह कहा गया है लेकिन चन्द्रमा पर पानी नही है यह भी वैज्ञानिको ने अपने शोध मे प्रकट कर दिया है। जब चन्द्रमा पर पानी नही है तो फ़िर चन्द्रमा से पानी का सम्बन्ध कैसा इस बात को समझना जरूरी है। चन्द्रमा के अर्थ जो अधिक जानने के लिये माता के रूप को समझना होगा,जब तक बच्चा नही होता है माता के स्तन दूध से खाली होते है जैसे ही जीव का आना होता है प्रकृति जीव के लिये पहला आहार भेद देती है,माता को भी चन्द्रमा का रूप बताया गया है। जिस प्रकार से इस धरती पर पानी आग हवा का प्रसार है वैसे ही ब्रह्माण्ड मे भी इस सभी तत्वो का प्रचार प्रसार है। अगर नही होता तो करोडो ग्रहों के प्रति अक्समात तो धारणा बनायी नही जा सकती है। अगर हम केवल एक ही जगह पर रहने वाले है तो अन्य स्थान के बारे मे जानकारी करने के लिये कई साधनो का प्रयोग हमे करना पडेगा। उसी प्रकार से संसार मे जो समर्थ है और जिनकी जिज्ञासा अधिक है वे इस बारे मे अपने पूरे ध्यान और ज्ञान से सहयोग करने के कारणो का विकास भी कर रहे है और खोज के लिये भी अपने प्रयास कर रहे है। कभी चन्द्रमा पर अपने यान को भेजा जा रहा है तो कभी मंगल की परिधि मे यान भेजा जा रहा है कभी बडी बडी खगोलीय दूरबीनो से ग्रहो के वातावरण का पता लगाया जा रहा है बडी बडी सैटेलाइट धरती के चारो तरफ़ घूमने लगी है और यह सब केवल मनुष्य की जिज्ञासा और मनुष्य की उत्तरोत्तर विकास का कारण ही माना जा सकता है,अगर मन मे आगे बढने की आशा ही नही होती तो आज भी हम जानवरों की भांति जैसे है वैसे ही रहते।
चन्द्रमा भी प्रकृति का बनाया हुआ सैटेलाइट है जो अन्य ग्रहो से प्राप्त ऊर्जा को हम तक पहुंचाता है। चन्द्रमा मे चुम्बकीय शक्ति है जो जो जलीय कारको को अपनी तरफ़ आकर्षित करती है। लेकिन यह अपने समय पर अपने प्रभाव से ही आकर्षण मे लेती है यह नही है कि यह हमेशा ही उतना ही प्रभाव देता रहे जैसा पहले था। यह सब धरती के घूमने के कारण और चन्द्रमा का भी धरती के चारो तरफ़ चक्कर लगाने के कारण है। धरती शुक्र शनि बुध गुरु शनि सभी ग्रह सूर्य की सैटेलाइट है और चन्द्रमा धरती का सैटेलाइट है,चन्द्रमा की तरह से ही अन्य ग्रहो के चारो ओर भी कई उपग्रह चक्कर लगा रहे है इस प्रकार से प्रकृति अपनी चाल को कायम रखकर चल रही है। हमे जितना ज्ञान होता है उतना ही हम विश्लेषण कर लेते है लेकिन जो ज्ञान हमारे पास है उसको भी देने वाला कोई और भी है।
सूर्य को आग का गोला कहा गया है और कहा गया है कि सूर्य पर हाड्रोजन गैस है जो लगातार जलती रहती है,लेकिन यह भी सोचना जरूरी है कि आग का रूप किसी भी कारक को कुछ ही छणो मे जलाकर राख कर देना होता है आग के लिये तीन कारक बहुत जरूरी है एक तो ईंधन दूसरी आक्सीजन और तीसरा ताप,यह सब सूर्य को कौन दे रहा है ? अगर वास्तविक रूप से देखा जाये तो सूर्य को यह तत्व दूसरे ग्रह दे रहे है,जो ग्रह सूर्य की तरफ़ लगागार बढते जा रहे है वे ही ग्रह सूर्य को अपनी तरफ़ से ईंधन को दे रहे है। इन्हे ग्रहो से आक्सीजन जा रही है यही ग्रहों से ईंधन जा रहा है और इन्ही ग्रहो से ताप की पूर्ति की जा रही है यह प्रकृति की लीला अपरम्पार है,हम जरा सा ज्ञान प्राप्त करने के बाद सोचने लगते है कि हम  ज्ञान से पूर्ण हो चुके है और अब आगे सोचने की जरूरत नही है,लेकिन हम जितना आगे बढते जाते है उतनी ही आगे कई प्रकार की शाखायें और भी मिलती जाती है।