Wednesday, May 23, 2012

लालकिताब से सूर्य

जगत का स्वामी सूर्य है सभी ग्रह और नक्षत्र सूर्य के आसपास ही चक्कर लगा रहे है,वेदो मे सूर्य की आराधना सबसे अच्छी मानी गयी है जो भी संसार मे दिखाई देता है वह सब सूर्य की कृपा से ही सम्भव है,विद्वान लोग सूर्य आराधना के लिये मुख्य स्तोत्र विष्णु सहस्त्र नाम को ही मानते है। सूर्य का कुंडली मे पक्का घर एक पांच आठ नौ ग्यारह और बारह को ही कहा गया है सूर्य के मित्र ग्रहो में चन्द्रमा को भी माना गया है गुरु भी सूर्य का मित्र है और मंगल को भी सूर्य का मित्र तथा सहायक और सूर्य की रक्षा करने वाला कालान्तर के लिये सूर्य की गर्मी को सोख कर सूर्य की अनुपस्थिति मे संसार को गर्मी देने वाला माना गया है। साथ ही धरती के अन्दर के जीवो को गर्मी देने के लिये सूर्य का सहायक मंगल ही काम करता और उर्जा को देने के लिये अपनी शक्ति से सूर्य की गर्मी को सोख कर जीवो को प्रदान काता है। सूर्य पहले घर मे उच्च का माना जाता है और सातवे घर मे नीच का माना जाता है। सूर्य का समय सुबह सूर्योदय से एक घंटे के लिये और दिन रविवार माना गया है।सूर्य के खराब होने बुखार आना आंखो की रोशनी कम होना दिमाग के चढे रहने से सिर की तकलीफ़ रहना आदि माना जाता है साथ ही बिना बात के सरकारी आफ़तो का आना भी सूर्य के कारण ही होता है। सूर्य के बिना जो जीवन मे अपनी गति को प्रदान करने वाले ग्रह बुध और बुध के बाद शुक तथा शुक्र के बाद चन्द्रमा फ़िर धरती और उसके बाद मंगल को माना जाता है शुक्र और बुध को सूर्य के अधिक पास होने के कारण मनसुई ग्रह की उपाधि भी दी गयी है। जब जातक की कुंडली मे सूर्य पहले पांचवे और ग्यारहवे घर मे होता है तो इसकी शक्ति को श्रेष्ठ माना जाता है जब भी मंगल छठे घर मे होता है और केतु अगर पहले घर मे हो तो भी सूर्य सही फ़ल प्रदान करता है सूर्य की शक्ति कभी नीच की नही होती है यह अपनी नीचता को दूसरे ग्रह से जोड कर प्रदान करता है। सूर्य के अच्छे होने की पहिचान होती है कि व्यक्ति का हड्डी का ढांचा सुडौल और ऊंचा होने से लम्बाई और चौडाई अच्छी होती है सूर्य का कारक अंग आंखे होने से आंखे बडी और चमकदार होती है सूर्य से पहिचान का कारण होने से सूर्य उच्च कुल मे जन्म देने के साथ साथ चेहरे पर राजसी चमक का देने वाला भी होता है। सूर्य की शक्ति के कारण ही जातक के अन्दर साहस भी होता है हिम्मत भी होती है और जहां भी नीचता वाले कारण यानी शनि की सीमा शुरु होती है सूर्य के पहुंचने के साथ ही शनि की सीमा समाप्त हो जाती है। सूर्य किसी भी विकट परिस्थिति मे जिन्दा रखने की ताकत देता है यह जंगलो मे निवास के समय जडी बूटियों की पहिचान करवा देता है महलो मे रहने पर राजसी ठाटबाट को भी देने वाला होता है और राजसी कारणो को समझाने वाला और कानून को बनाने वाला भी माना जाता है। सूर्य अगर सशक्त है तो कोई भी दुश्मन ठहर नही पाता है वह पीठ पीछे बुराई कर सकता है लेकिन सामने आकर जी हुजूरी ही करता है। मंगल के साथ अगर सूर्य सही होता है तो वह रक्षा सेवा या सामाजिक कारणो मे अपने नाम और यश को फ़ैलाने मे सहायक हो जाता है। लेकिन शनि की नीचता के आते ही यानी किसी भी कारण मे रिस्वत तामसी भोजन या पर स्त्री पर पुरुष के संसर्ग से अपनी शक्ति को समेट लेता है साथ ही आगे के जीवन को घोर यातना मे ले जाता है शनि के सवार होते ही राहु का प्रकोप शुरु हो जाता है और जेल जाना या अस्पताल मे अपनी जिन्दगी को काटने के लिये मजबूर कर देता है। जब भी बेकार के ख्याल आने लगे लोग अधिक चमचागीरी करने लगे तो समझ लेना चाहिये कि सूर्य खराब होना शुरु हो गया है। सूर्य कभी भी दूसरो के ऊपर मोहताज नही होता है वह हमेशा अपनी कमाई पर ही निर्भर रहने वाला होता है उसे दान और इसी प्रकार के कारण देने तो आते है लेकिन वह लेना नही जानता है,सूर्य श्रेष्ठ वाला व्यक्ति कभी भी अपनी मर्यादा से बाहर नही जाता है वह अपनी जाति कुल और समाज को पहले देखकर चलने वाला होता है। सूर्य के सही फ़ल देने के कारण सभी ग्रह अपने अपने समय मे अच्छा फ़ल देने लगते है लेकिन बुध उम्र की जवानी की शुरुआत तक कुछ भी फ़ल नही देता है शनि जातक के पिता की आय पर और खुद की कमाई पर प्रभाव देने लगता है। सूर्य जब भी खराब होता है लार आना शुरु हो जाता है,कभी कभी शरीर का कोई एक हिस्सा अचानक काम करना बन्द कर देता है और उसी समय मे शरीर की हड्डी का टूटना या लम्बे समय के लिये चल फ़िर नही पाना आदि बाते भी देखी जाती है। जातक के पहले घर मे सूर्य के साथ अन्य कोई शत्रु ग्रह होता है तो वह सूर्य पर अपना प्रभाव डालने लगता है और जातक को कष्ट देता है लेकिन कोई भी कष्ट दिन के समय मे नही होता है रात को ही कष्ट होना माना जाता है,अगर सूर्य और शनि आमने सामने है तो कष्ट नही मिल पाते है इसका कारण होता है कि दिन मे सूर्य बचाता है और रात मे शनि रक्षा करने वाला होता है इसलिये पहले घर मे सूर्य को उच्च का कहा जाता है और सप्तम स्थान मे शनि को उच्च का कहा गया है। सूर्य जब भी राहु के साथ होगा आदमी के विचार गंदे हो जायेंगे वह जब भी सोचेगा गलत ही सोचेगा,सूर्य और शनि की टकराव वाली स्थिति मे चन्द्रमा दिक्कत मे आजाता है यानी घर मे अगर पिता पुत्र आपस  मे टकराने लगे तो माता को कष्ट पहुंचता है इसी प्रकार से अगर यह स्थिति हो तो सूर्य के विरोधी ग्रहो का उपचार करने से सूर्य और शनि की स्थिति सही होने लगती है।सूर्य अगर जन्म कुंडली के छठे या सातवे भाव मे हो तो किसी भी काम को शुरु करने से पहले कुछ मीठा खाकर काम शुरु करना चाहिये.इसके बाद जनता मे मीठी वस्तुयें बांटने से भी फ़ायदा होता है,रत्न धारण मे सूर्य जब अपने नक्षत्र मे हो उस समय सुबह के समय रविवार को तांबे मे या सोने मे माणिक का पहिनना ठीक होता है।

Saturday, May 12, 2012

नौकरी मे कनफ़्यूजन

प्रस्तुत कुंडली मे जातक का कथन है कि वह वर्तमान मे इंजीनियर का कार्य कर रहा है और वह यह जानना चाहता है कि वह यही काम करे या सिविल सर्विस मे अपनी योग्यता को दिखाकर कार्य करे। इस कुंडली मे राहु का गोचर जन्म के केतु के साथ है और केतु का गोचर जन्म के राहु के साथ है,लगनेश गुरु का गोचर जन्म के चन्द्रमा के साथ चल रहा है शनि का गोचर लाभ भाव के मंगल और शनि पर चल रहा है। शनि गुरु और राहु केतु के द्वारा जातक का जीवन शासित है। कारण राहु और केतु के बीच मे शनि जो कार्य का दाता है और मंगल जो कार्य शक्ति के साथ कार्य तकनीक और शरीर की शक्ति का दाता भी है विराजमान है। राहु धन की राशि मे नौकरी वाले भाव मे है लेकिन यह भाव अक्सर सप्तम से बारहवे भाव मे होने से जो भी जातक के सामने जीवन मे जूझने वाले कारण है उनके अन्दर डर पैदा करने वाला है। यह राहु जो भी कारण पैदा कर रहा है वह धन की शक्ति को मुख्य शक्ति के रूप मे देख रहा है उसके बाद जो भी जीवन के प्रति नशा है वह केवल अपने कार्यों के द्वारा ही धन को प्राप्त करने का कारण लगनेश का लगन मे बैठना और लगनेश के साथ शुक्र का होना जातक को उच्च शिक्षा के साथ साथ भौतिकता मे ले जाने के लिये भी अपनी युति को प्रदान कर रहा है,लेकिन लगनेश के साथ शुक्र का भी केतु और सूर्य के बीच मे होने से जातक के एक तरफ़ तो केतु की तकनीक है जो लम्बे समय तक चलने वाली है और एक तरफ़ सूर्य है जो जातक को राजकीय सेवा और सिविल सर्विस वाली सोच को पैदा कर रहा है। केतु तकनीकी राशि मे होने के कारण जातक को राख से साख निकालने और मरे हुये को जिन्दा करने यानी किसी भी कारण को अपनी तकनीक से दुबारा से शक्ति देकर चलाने के लिये माना जा सकता है जबकि सूर्य का साथ बुध के साथ होने से और राहु के द्वारा पूर्ण द्रिष्टि देने से जातक को यह भ्रम भरा हुआ है कि वह सिविल सर्विस मे आगे जा सकता है। केतु के पीछे शनि मंगल है जो जातक को व्यापारिक तकनीक और शनि के उच्च राशि मे होने पर बडे व्यापारिक संस्थानो मे अपनी तकनीक को प्रस्तुत करने का अच्छा ग्यान प्राप्त है वही पर सूर्य को मंगल और शनि के द्वारा वक्र द्रिष्टि देने से तथा छठे राहु की नजर आने से जातक को जो कर रहा है वह भी छोड देने के लिये और भटकाव पैदा करने के लिये माना जा सकता है। सूर्य भाग्य का कारक है लेकिन दुर्भाग्य का कारक शनि भी है,जब भाग्य का कारक नगद धन मे हो और दुर्भाग्य का कारक ग्रह लाभ मे हो तो जातक को यह लगता है कि वह अपने मेहनत करने वाले कार्यों से दूर जाकर कम मेहनत करने वाले कामो से और आजीवन लाभ लेकर आदेश देने वाले कामो को करे।

कुंडली मे अपमान का कारक ग्रह चन्द्रमा है जो सरकारी भाव यानी पंचम मे बैठ कर अपमान देने के लिये भी जाना जाता है और शादी के बाद पहली सन्तान के रूप मे पुत्री को भी देने वाला है लगनेश गुरु चौथे भाव के मालिक भी है इसलिये जातक का मन जनता से जुडे कामो को करने के लिये अपनी युति को प्रदान कर रहा है,एक बात और भी जो जीवन के लिये महत्वपूर्ण है कि जातक के जीवन साथी का कारक बुध सूर्य के साथ है और यह ग्रह सूर्य के सानिध्य मे रहकर जातक के जीवन साथी के पिता के उच्च पद पर होने और सूर्य से पंचम मे राहु के होने तथा राहु के धन की राशि मे होने से उसे लगता है कि जातक के जीवन साथी के पिता ने राज्य से बहुत अधिक फ़ायदा ले लिया है लेकिन जातक के जीवन साथी के पिता के प्रति यह नही देखा है कि जो केतु जातक को इंजीनियर वाले कामो से उच्चता का पद दे रहा है और नित नही खोजो आविष्कारो का कारण पैदा कर रहा है वह अगर जातक छोड देगा तो दिक्कत का होना और भटकने के लिये अपना प्रभाव देने लगेगा।


मृत्यु का समय

जिसने जन्म लिया है उसे मरना भी है यह अटल सत्य है.न कभी यह क्रम रुका है और न रुक सकता है। काल की गणना करना और काल का रूप समझना यह बात ज्योतिष से भलीभांति समझी जा सकती है। एक बात और भी समझने वाली है कि हर क्षण मृत्यु सामने रहती है और हर क्षण जीवन अपने प्रभाव को सामने रखता है। समझदर होते है वह अपने जीवन के समय को सुचारु रूप से निकाल लेते है और साधारण अपने जीवन को काल के अनुसार निकालने के लिये मजबूर होते है। निर्माण होता है रूप परिवर्तित होता है और समाप्त होकर वह नया रूप प्राप्त करने के लिये समय के अनुसार शुरु हो जाता है।कालान्तर से यह क्रम चलता आया है और चलता रहेगा।
प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है स्वामी सूर्य मौत के ग्रह गुरु के साथ ही सप्तम भाव मे विराजमान है.जो मौत का ग्रह है वह जीवन साथी के भाव मे है और जीवन साथी के भाव मे ही लगनेश का होना पति पत्नी को मौत से जूझने के लिये जो भी कारक प्राप्त होंगे वह सप्तम के ही प्राप्त होंगे। लेकिन जो मौत का ग्रह है वही ग्रह पंचम मे सन्तान शिक्षा परिवार खेलकूद मनोरन्जन का भी ग्रह है,जातक को और जातक के जीवन साथी को जो भी रिस्क लेनी होती है वह इन्ही कारको मे अपनी रिस्क लेने के लिये हमेशा तैयार रहने के लिये माना जा सकता है। यानी वह जो भी शिक्षा को ग्रहण करेगा वह मृत्यु अपमान जान जोखिम मे डालना मौत के बाद के जीवन के बारे मे जानना गुप्त जासूसी करना और तंत्र मंत्र अस्पताली कारणो को समझने के लिये अपनी योग्यता को बढाना आदि माने जाते है साथ ही वह जो भी खेल कूद और मनोरंजन के साधनो को अपनायेगा वह भी रिस्क लेने वाले होंगे,वह अपने जीवन को किसी भी छड मय जीवन साथी के दाव पर लगाने के लिये तैयार रहेगा।

जीवन रक्षक कारको मे मृत्यु वाले ग्रह का विरोधी ग्रह अगर मृत्यु वाले ग्रह के साथ है तो मृत्यु वाला ग्रह कभी भी अपनी आक्स्मिक योजना को सफ़ल नही कर पायेगा.इस कुंडली मे भी बुध जो गुरु का विरोधी ग्रह है,लेकिन मारकेश का रूप लेकर सामने है वह मारेगा नही केवल मारने वाले या मरने वाली विद्या को प्रदान करने के लिये अपनी योजना को प्रदान करेगा,साथ ही जब मारकेश लाभ का मालिक बन जाता है तो वह भी मृत्यु सम्बन्धी कारणो से लाभ को लेने वाला बन जाता है,यानी वह खुद तो नही मरेगा लेकिन जिन लोगो के प्रति वह काम करेगा उनकी मृत्यु के बाद के साधनो को अन्य को प्रदान करने के बाद अपने लिये लाभ प्राप्त करेगा। पुराने जमाने मे इस काम को करने के लिये या तो कफ़न बेचने वाले सामने आते थे या कब्र को खोदने वाले सामने आते थे अथवा वे लोग जो किसी अन्जान व्यक्ति की परवरिस किया करते थे और जिसकी परवरिस की जानी है उसकी मौत के बाद उसके धन का उपभोग किया करते थे। लेकिन आज के जमाने मे ग्रह युति वही है रूप बदल गया है इस काम को करने के लिये बीमा कम्पनिया बन गयी है और लोग बीमा करवा कर अपनी रिस्क को भी भुनाने का काम करते है और अपनी मौत के बाद के फ़ायदे को दूसरे के नाम करने के लिये भी अपनी योजना को बना लेते है।वह बीमा करवाते है और नोमीनी बनाने के किसी दूसरे को फ़ायदा देने के लिये भी और अपने द्वारा रिस्क लेने वाले कामो को करने के बाद भी फ़ायदा लेने की कोशिश करने से भी नही चूकते है।

उपरोक्त कुंडली मे राहु के साथ मंगल भी है और मंगल का रूप वक्री होने के कारण अक्सर जातक द्वारा खुद दुर्घटना का शिकार नही होकर दूसरे लोगो को दुर्घटना मे शिकार होने पर लाभ दिया जाना माना जाता है लेकिन मंगल के वक्री समय मे खुद की भी दुर्घटना का कारण बनना भी माना जाता है,यह कारण अक्सर देखा जाता है कि मंगल जब नीच राशि मे वक्री होता है तो वह उच्च के फ़ल देने लगता है और वही मंगल जब उच्च राशि मे वक्री होता है तो नीच के फ़ल देने लगता है,यह कारण शायद हर किसी को पता नही है,यह कारण बनने के कारण अक्सर कम्पयूटर से कुंडली से कम्पयूटर मिलान के समय मे भी समझा जा सकता है कि जो लोग कम्पयूटर से कुंडली मिलान मे विश्वास रखते है उनके लिये मंगली दोष की सीमा मे जाने का कारण भी इसी नियम से समाप्त भी हो जाता है और बन भी जाता है। राहु और केतु जिस भी ग्रह के साथ होते है उस ग्रह की शक्ति को अपने मे शोषित कर लेते है और वह जो भी प्रभाव जीवन मे देते है वह प्रभाव अक्सर उन्ही ग्रहो के अनुसार दिया जाता है जो ग्रह राहु या केतु के साथ होते है।

उपरोक्त कुंडली मे राहु का साथ मंगल के साथ होने से और राहु का अष्टम द्रिष्टि से सप्तम भाव को देखना और सप्तम मे गुरु जो मौत का और शिक्षा का कारक ग्रह गुरु है को देखना लगनेश को देखना लाभेश और धनेश को देखना जातक के लिये उसी समय मारक बन जायेगा जब मंगल वक्री हो,राहु वृश्चिक मीन या कर्क राशि मे गोचर कर रहा हो,जब मंगल मार्गी होगा उस समय जातक को इन्ही कारको से फ़ायदा देने के लिये भी राहु अपनी युति को प्रदान करने के लिये भी माना जायेगा। जो भी दुर्घटना का कारण बनेगा वह यात्रा वाले कारणो से दवाइयों के कारणो से वाहनो वाले कारणो से ही बनेगा और जब यह दिक्कत देगा तो पत्नी के भाई को पत्नी के पिता को और खुद के जीवन साथी को अधिक असर देगा इसके बाद पत्नी की बहिन को पत्नी के शिक्षा वाले क्षेत्र को भी असर देने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा। सभी कारको मे अच्छा फ़ल देने पर यह उपरोक्त कारको मे फ़ायदा देने वाला माना जायेगा,यहां एक बात और भी ध्यान मे रखने के लिये मानी जा सकती है जब मंगल वक्री होगा तो गलत असर खुद पर होगा और अच्छा असर पत्नी खानदान के साथ होगा लेकिन मार्गी होने पर अच्छा असर खुद के साथ होगा गलत असर पत्नी खानदान पर होगा। साथ ही जब राहु अच्छा फ़ल दे रहा होगा तो केतु गलत असर को देगा और केतु जब अच्छा फ़ल दे रहा होगा तो राहु खराब फ़ल देगा।

केतु के साथ केतु के साथ शुक्र शनि होने से शुक्र और शनि का असर केतु के पास है,शुक्र धन दौलत और मकान आदि का मालिक भी है घर के अन्दर स्त्री जातको का जो विवाहित है और दूसरे घरो से आयी के लिये माना जायेगा लेकिन शनि का असर नौकरी करना जायदाद का बनाना रोजाना के काम करना मामा चाचा आदि के लिये भी माना जायेगा,यह असर जीवन साथी के बारहवे भाव मे होने से घर से बाहर रहने के समय मे जीवन साथी के अन्दर एक भावना भी पैदा होगी जो शुक्र यानी घर की स्त्रियों के साथ उच्च पदवी प्राप्त करने वाले कारण शनि के बारहवे भाव मे रहने पर पत्नी के द्वारा जन्म लेने के बाद खुद के नाना परिवार या पैदा होने वाले स्थान से बाहर जाकर पलने के लिये और बाहरी जायदाद को बनाने के लिये तथा अपने खुद के परिवार और नगद धन सम्पत्ति खुद के पति की जायदाद घर और रोजाना के काम आदि मे फ़्रीज करने वाले कारणो को प्रदान करेगा.

मौत का समय जातक के लिये तभी आयेगा जब राहु मीन वृश्चिक कर्क राशि मे गोचर करेगा और केतु के साथ शनि का योगात्मक प्रभाव होगा। मौत के कारणो मे अगर केतु मौत का कारक बनता है तो पीठ वाली कमजोरी बीमारी स्पाइनल प्रोब्लम्ब ऊंचे स्थान से गिरने के कारण या कार्य करते समय अचानक होने वाले हादसो के लिये तथा राहु के द्वारा दिये जाने वाले प्रभावो मे अचानक एक्सीडेन्ट करने से अचानक किसी दवा का रियेक्शन कर जाना गलत रूप से दवाई का प्रयोग किया जाना राहु के साथ होने से किसी गलत शक्ति जैसे भूत प्रेत पिशाच आदि की सीमा मे जाकर अचानक हादसो को प्राप्त कर लेना शरीर के खून के अन्दर एलर्जी जैसी शिकायत होकर अचानक स्वसन क्रिया का बन्द हो जाना आदि।
(किन्ही कारणो से जातक के मृत्यु के समय का उद्बोधन नही किया जा रहा है)

Friday, May 11, 2012

कुम्भ राशि और तीसरा भाव

कहावत है कि तीसरे भाव का स्वामी मंगल होता है तो आदमी गाने की बजाय बजाने वाला होता है.कुम्भ राशि की कुंडली मे अक्सर इस बात को अधिक देखा जाता है,इस राशि वाले अगर लाल रंग का डंडा ले लें तो वे वे बात कम करेंगे और डंडे को अधिक प्रयोग करेंगे। पुलिस वाले या रक्षा सेवा वाले लोग हथियार को लेकर चलने पर या डंडे को लेकर चलने पर मुंह से कम बात करते है डंडे का या हथियार का अधिक प्रयोग करते है। अगर किसी प्रकार से बुध और केतु का साथ लगना या लगनेश के साथ हो जाये तो वे संगीत पैदा करने वाले कारको का स्तेमाल करने लगते है। जैसे बुध केतु है तो बांसुरी बजाना,शनि बुध केतु है तो गिटार बजाना,शुक्र भी साथ हो गया तो बजाना भी नाचना भी लेकिन गाना इनके वश की बात नही। इसी स्थान पर अगर लगन लगनेश  के साथ राहु है तो व्यक्ति हथियार से काम लेना शुरु कर देगा,मंगल अगर राशि या ग्रह के प्रभाव से बद हो गया है तो आतंकवादी का काम करना शुरु कर देगा गुरु के साथ है तो वह बजाय मारने के जिन्दा करने के लिये काम करने लगेगा इन कारणो मे बहुत गूढ रूप से देखा जाये तो कुम्भ राशि वाले दिमागी इलाज करना अधिक जानते है। अक्सर देखा जाता है जो लोग मस्तिष्क रोग को ठीक करना जानते है उनमे अधिकतर लोग कुम्भ लगन के लोग ही होते है।

कुम्भ लगन का मालिक शनि होता है और कुम्भ लगन के कार्य भाव मे वृश्चिक राशि होती है उनके द्वारा बहुत ही गुप्त काम करने का कारण बनता है अक्सर देखा जाता है शनि अगर कार्य भाव मे है तो व्यक्ति का झुकाव अधिकतर मृत्यु के बाद की सम्पत्ति को सम्भालने का होता है इसी प्रकार से अगर छठे भाव का कारक चन्द्रमा अगर साथ मे है तो व्यक्ति उधारी मे गये धन को वसूलने का काम भी करता है। और उसे गुप्त रूप से उधारी के धन को वसूलने की भी अच्छी जानकारी होती है। अगर इस भाव मे शनि बुध के साथ है तो जातक को उम्र की तीसरी अवस्था मे अपने पैदा होने वाले स्थान के दक्षिण मे जाकर निवास बनाने के लिये अपना प्रायोजन बनाना पडता है बुध साथ है तो सन्तान के पास और शुक्र पास मे है तो पत्नी के पास केतु साथ है तो मामा या नाना के साथ राहु साथ है तो भटकाव के साथ सूर्य साथ है तो राजनीति या पिता के साथ आदि कारण देखने को मिल जाते है। चन्द्रमा अगर चौथे भाव मे है तो व्यक्ति किसी भी कारण मे धन को अधिक मान्यता देता है अपने रहने वाले स्थान से ही धन को कमाने की युक्ति को प्रयोग मे लाता है राहु साथ है तो वह शराब और एल्कोहल या दवाइयों को प्रयोग करने वाला बन जाता है अगर गुरु ने साथ नही दिया तो वह धन और अपनी औकात बनाने के लिये कोई भी गलत काम कर सकता है।

अक्सर यह भी देखा जाता है कि ग्यारहवे भाव मे अगर सूर्य की उपस्थिति होती है तो जातक के बडे भाई की औकात बहुत ही उच्च की होती है वह अपने को मित्रता के भाव को रखने तक दुखी नही हो पाता है जैसे ही उसके अन्दर राहु की भ्रम वाली पोजीशन सामने आती है वह मित्रता के भाव को शत्रुता मे बदल लेता है और अपने बडे भाई के साथ साथ अपने पिता और पत्नी परिवार से भी बिगाड खाता बना लेता है.

कुम्भ लगन के दसवे भाव मे शनि होने के समय मे जातक न तो जीवन साथी से सुखी रह सकता है और न ही किये जाने वाले कार्यों से उसे तर्क करने की आदत हो जाती है किसी भी विषय पर वह तर्क करने मे माहिर होता है तर्क भी कोई हल्की फ़ुल्की नही होती है वे सभी कारण उस तर्क मे शामिल होते है जो सत्यता की कसौटी पर घरे उतरते है।

पानी वाले काम खेती वाले काम जनता से जुडे काम सुलझाने मे अक्सर कुम्भ लगन वाले जातक बहुत माहिर होते है,इसके अलावा बैंकिंग बचत ब्रोकर वाले काम लोन लेने और देने वाले काम भी उन्हे खूब भाते है। नौकरी के मामले मे चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार ही कार्य देखे जाते है जैसे चन्द्रमा अगर राहु के साथ है तो जातक को संगीत सिखाने का विद्यालय खोलने मे कोई दिक्कत नही होती है उसी प्रकार से अगर वह इस व्यवसाय से दूर रहकर अगर पानी के शुद्धिकरण का काम चांदी का काम भी करता है तो उसे रोजाना के जीवन मे अधिक उतार चढाव नही देखने पडते है.

शनि बुध और केतु के दसवे भाव मे होने से जातक ब्रोकर वाले काम अच्छे से कर सकता है लेकिन पत्नी के नाम से संगीत आदि का क्षेत्र चुनना काफ़ी सहायक बन जाता है.