Wednesday, August 29, 2012

अष्टम सूर्य बनाम पाताल का राजा

सूर्य का अधिकार सम्पूर्ण सृष्टि सहित ब्रह्माण्ड पर है,सूर्य की गति नियत है वह न तो कभी आगे है और न ही कभी पीछे है गति के अनुसार समय पर उदय होना है और समय पर ही अस्त होना है किसी प्रकार का बदलाव सृष्टि जगत में हलचल मचा सकता है। सूर्य उजाले का राजा है शक्ति का दाता है सूर्य की शक्ति से ही जगत का विकास सम्भव है। सूर्य की शक्ति ग्रहण की क्रिया जगत के विकास के लिये ही है वह गंदगी से भी शक्ति को ग्रहण कर सकता है और स्वच्छ जलवायु से भी शक्ति को प्राप्त कर सकता है इसलिये कहा भी गया है कि सूर्य समर्थ है और समर्थ को कोई दोष नही दे सकता है। सूर्य आग गंगाजी इन तीनो के लिये कोई भी पवित्र अपवित्र कारक मायना नही रखता है। प्रस्तुत कुंडली तुला लगन की है सूर्य ग्यारहवे भाव का मालिक है और लाभ तथा बडे भाई सहित मित्रो का कारक भी है शुक्र के घर मे स्थापित होने के कारण अहम का भी दाता बन जाता है बुध जो तुला लगन के लिये भाग्य और व्यय का कारक होने के कारण तथा वक्री होने के कारण सूर्य के साथ अपनी युति से न तो अस्त हो सकता है और न ही अपनी वास्तविकता को प्रदर्शित कर सकता है यह जो है उसका उल्टा प्रभाव देने के लिये माना जा सकता है कोई भी किसी प्रकार का साधन विद्या और धन आदि की बात मे यह बुध अपनी युति से उल्टी गिनती से अपना कार्य सफ़ल करने के लिये अपनी योग्यता को धारण करता है। सूर्य पर जब गुरु की द्रिष्टि मिलती है तो सूर्य जीवात्मा का कारक बन जाता है गुरु अगर जीव है तो सूर्य आत्मा है। इस कुंडली मे जीवात्मा का योग है और जातक के लिये ईश्वर अंश से जन्म लेना माना जा सकता है। लेकिन गुरु का बारहवे भाव मे होने से तथा बारहवे भाव का कारक राहु होने से गुरु के अन्दर एक प्रकार का अनौखा उद्वेग पैदा हो जाता है जो जीव जगत मे अपनी पहिचान करने के लिये उन्ही कारको का सहारा लेता है जो कारक सेवा और धन के साथ गणित विद्या मे माहिर होते है आंकडों के जाल की भाषा रचने का प्रभाव इस स्थान के गुरु को मिल जाता है वही प्रभाव गुरु अपनी वृहद नजर से गुरु और बुध को प्रदान करने लगता है। जातक के अन्दर धन सम्बन्धी विदेशी व्यापार सम्बन्धी एक प्रकार का गुण भर देता है जिसे प्रयोग करने के बाद जातक अपने जीवन मे सफ़लता प्राप्त करने के लिये अपनी योग्यता को जाहिर करता चला जाता है।

सूर्य आसमान का राजा है अगर अष्टम भाव मे चला जाता है तो वह पाताल मे उजाला करने मे असमर्थ हो जाता है लेकिन वही सूर्य अगर आसमानी गुरु से देखा जा रहा है तो वह गुरु के बल से असीमित शक्ति को प्राप्त करने के बाद पाताल मे ग्यान रूपी उजाला फ़ैलाने के लिये अपनी शक्ति को पूरा करता है। गुरु जो जातक के रूप मे होता है अपने जन्म स्थान को त्याग कर घर से दक्षिण पूर्व दिशा मे जाकर अपनी शक्ति को प्रदर्शित करता है और धन सम्बन्धी सेवा सम्बन्धी धर्म सम्बन्धी क्रियाओं को पूरा करने के लिये अपनी अन्दरूनी चमक को जाहिर करता है। इस गुरु की नवी नजर सूर्य पर होने से और बुध वक्री के साथ युति बनाने से शेयर कमोडिटी बाजार भाव के उतार चढाव तथा उल्टी क्रिया जैसे जब जनता के अन्दर खरीददारी की ललक बनती है तो जातक के द्वारा बिक्री करने की गति पैदा होती है और जब जनता के अन्दर बिक्री की गति बनती है तो जातक के द्वारा खरीददारी की गति बनती है। इस प्रकार से जातक गुरु केतु की बुद्धि से अपनी बुद्धि को उल्टी रीति से घुमाकर जहां भी सेवा वाले काम करता है उसे फ़ायदा निरन्तर पहुंचाने की क्रिया को पूरा करता है। दूसरे भाव का सूर्य सोना होता है तो अष्टम भाव का सूर्य लोहे के रूप मे माना जाता है खनिज सम्पत्ति को जानना और उसकी क्रिया को पूरा करना भी उसे आता है साथ ही जातक के अन्दर चिकित्सा सम्बन्धी गुण भी होते है और वह अपनी क्रिया शक्ति के द्वारा उन्ही कारको का काम करता है जो कारक पोषक चीजो से अपनी युति प्रदान करते है। मंगल के दो रूप होते है अगर मंगल दूसरे छठे और दसवे भाव मे मार्गी होता है तो जातक के अन्दर धन के प्रति उत्तेजना देता है जो उत्तेजना मे खर्च होने के कारण जातक धन के लिये परेशान होता है लेकिन वही मन्गल अगर दूसरे भाव मे वक्री होता है तो जातक के लिये यह मंगल दिमागी रूप से धन की विवेचना करना और ताकत की बजाय तकनीकी बुद्धि से धन के प्रति भोजन के प्रति आहार विज्ञान के प्रति अपनी परिभाषा को प्रकट करता है। सूर्य का जब वक्री मंगल से योगात्मक प्रभाव सामने आता है तो जातक के पिता के बडे भाई या जातक के पिता के द्वारा सोने चांदी के कार्य दूसरो से करवाकर फ़ायदा अपने अनुसार लिया जाता है लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब जातक के पिता के छोटे भाई जो उम्र में कम से कम ढाई साल छोटे होते है वह अपनी स्थिति से सब कुछ बरबाद करने के बाद कई प्रकार के व्यापारिक कारण पैदा कर देते है और जातक के पिता का कार्य उस प्रकार से नही चल पाता है जैसे कि चलना चाहिये।

जातक की माता भी तीन बहिने होती है एक बहिन यात्रा वाले कार्यों से जुडे परिवार मे होती है दूसरी बहिन धन के लेनदेन वाले कार्यों से जुडे परिवार मे होती है और खुद जातक की माता कई प्रकार के जायदाद और रहने वाले स्थान के बदलाव के लिये अपनी शक्ति को प्रदर्शित करती है। इसी प्रकार से जातक के दादा भी अपने स्थान से बाहर रहने के लिये अपनी गति को प्रदान करते है और तीन भाई होकर अपनी शक्ति को प्रदर्शित करते है लेकिन उनका लालन पालन अपनी ननिहाल मे हुआ होता है उनके समय मे उनकी ननिहाल की स्थित भी रजवाडे के नामी लोगो के नाम से जानी जाती है और धन आदि के लेन देन मे उनका नाम होता है। जातक के एक दादा के दत्तक संतान के प्रति भी जाना जा सकता है या तो वह ननिहाल मे जायदाद के लिये या पत्नी खानदान मे अपनी स्थिति को पैदा करने के लिये अपनी स्थिति को बताते है। जातक के माता खानदान मे भी जायदाद का मिलना या इसी प्रकार का योगात्मक प्रभाव का होना माना जा सकता है।

दुनिया दुरंगी

बचपन मे पिता के सहारे पुत्र चलता है और जैसे ही पुत्र जवान होता है वह पिता के लिये सहारा देना शुरु कर देता है लेकिन पिता की कुंडली मे पुत्र का कारक ग्रह वक्री है तो वह अपने स्वार्थ की पूर्ति के बाद दूर हो जायेगा,पिता का किया धरा सभी परे रह जायेगा और वह दूसरो पर आश्रित होकर अपने अन्त समय को निकालेगा। शादी तक पुत्री पिता पर निर्भर होती है और शादी के बाद वह अपने पति पर निर्भर होती है बिना पति के जीवन मे कुछ भी समझ मे नही आता है लेकिन पुत्री की कुंडली मे गुरु अगर वक्री है तो वह पहले तो पिता का बदला हुआ रूप देखेगी फ़िर अपने पति का बदला हुआ रूप देखेगी और अन्त तक अपने स्वार्थी भावना के कारण केवल स्वार्थ तक ही अपने सम्बन्धो को जाहिर करेगी। इस प्रकार से वक्री ग्रहो के प्रभाव से ही इस संसार के अन्दर दो प्रकार के अर्थ हर काम सम्बन्ध आदि के लिये बनाये गये है और दुनिया का रूप दो रंगा बना दिया है। यही बात तब और देखी जाती है कि जन्म समय का सूर्य मित्र भाव मे होता है और वह जब शत्रु भाव मे गोचर करता है तो उस सूर्य के अन्दर शत्रुता जैसे गुण आजाते है जो कार्य दोस्त आदि सहायक होते है वही विश्वासघात करने लगते है। यही बाद रोजाना की जिन्दगी मे चन्द्रमा के लिये मानी जाती है कर्क राशि का चन्द्रमा ह्रदय को द्रवित कर देता है लेकिन वही चन्दमा जब मकर राशि का होता है तो वह कठोर ह्रदय का कारक हो जाता है लेकिन जन्म के समय का कठोर चन्द्रमा जब गोचर से कर्क राशि मे आता है तो वह अपने स्वभाव को द्र्व बना लेता है और कभी कभी कसाई भी दया कर जाता है। लेकिन जिसका चन्द्रम जन्म से ही कर्क राशि का होता है या चौथे भाव का प्रभाव देने वाला होता है और वही चन्द्रमा जब दसवे भाव मे आता है या मकर राशि का होता है तो दया का प्रभाव समाप्त होकर केवल स्वार्थ की नीति को पैदा कर देता है और कहा जाये तो दया करने वाला भी कसाई का रूप धारण कर लेता है। केतु अपने उच्च समय मे जातक की जय जय कार करवाता है लेकिन वही नौ साल बाद केतु जब नीच राशि मे गोचर करता है बदनामी भी देता है और जितनी अधिक जय जय कार हुयी होती है उतनी ही नफ़रत का रूप भी प्रदान करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान कर देता है। राहु जब बारहवे भाव मे होता है तो ऊपरी बाधाओ को प्रदान करता है और जातक को आक्स्मिक कारण बनाकर कितने ही कष्ट प्रदान करता है लेकिन वही राहु जब छठे भाव मे गोचर करता है तो वह जातक को दूसरो के लिये आफ़त बनाकर सामने करता है।
समय के बारे मे यही धारणा बताई जाती है कहा भी जाता है "पुरुष बली नहि होत है समय होत बलवान"जो लोग समय को समझ कर चलते है वह किसी को दिक्कत भी नही देते और खुद भी दिक्कत का सामना नही करते है। भूतकाल पिता होता है तो वर्तमान काल खुद का जीवन होता है और भविष्य खुद की सन्तान का रूप होता है। अगर पिता ने अच्छे कर्म किये है तो खुद भी अच्छे जीवन को जियोगे और पिता के कर्मो का भोग प्राप्त करोगे लेकिन खुद ने जब कोई अच्छा काम नही किया तो कितनी ही अच्छी जिन्दगी जीने का हक मिले लेकिन सन्तान तो दुखी रहेगी उसे कोई रोक नही सकता है। यह संसार चक्की की तरह है और यह सामाजिकता बड के पेड की तरह से है सामाजिकता के नीचे यह संसार की चक्की चल रही है कहा भी है "चक्की चल रही बड के नीचे रस पीजा लांगुरिया" अब रस को पीकर कैसा चलना है वह सामाजिकता पर निर्भर करता है। जन्म हुआ है तो मरना भी होगा इसे कोई रोक नही सकता है जब सूर्य ने जन्म लिया है तो शनि भी जन्म लेगा जब शनि कुछ नही कर पायेगा तो अपने चेले राहु केतु से अपने कार्य को करवायेगा। शनि के साथ राहु मिलेगा तो उल्टे काम करवायेगा जो भी होगा वह केवल झूठ की दीवार पर खडा होगा और जिस दिन गुरु केतु की छाया उस दीवार पर आयी झूठ की दीवार पर खडा यह संसार धराशायी हो जायेगा। घमंड करना बेकार की बात है जो प्राप्त कर रहे हो वह अपने पूर्वजो के कर्मो से प्राप्त कर रहे हो अपनी अपनी तानी तो म के ऊपर लगी बिन्दी सीधी ड के नीचे आजायेगी और वही घमंड घमड. बन जायेगा और जैसे ही जीवन घमड. हुआ वैसे ही समझ लो कि घमंड का फ़ल मिलने लगा।
कभी भी एक ही ग्रह का आसरा नही पकडना चाहिये दिमाग मे जब बुरे भाव आने लगे तो सोचना चाहिये कि चन्दमा बुरे ग्रह के साथ है और कुंडली को देखकर समझ सकते हो तो समझ लो कि चन्द्रमा किस ग्रह के साथ या उस ग्रह की शक्ति के अन्दर अपना गोचर कर रहा है। अपने आप समझ मे आजायेगा कि कौन सा ग्रह खराब और कौन सा ग्रह अच्छा है। किसी भी सडी गली चीज से नफ़रत होना स्वाभिक है लेकिन वही सडी गली चीज कभी कभी मन को बहुत सुन्दर लगने लगती है जैसे भूख लगने पर फ़लो का सडा गला अचार कितना अच्छा लगता है। लडका अगर उद्दंड हो गया है बात को नही मानता है तो उसे प्रकृति के सहारे पर छोड कर चुप लगाना उचित होगा जैसे ही समय की मार लडके पर पडेगी वह अपने आप ही ठीक भी हो जायेगा और अपनी दुनियादारी भी बदल कर दो रंगी दुनिया का प्रभाव सामने कर देगा।

Friday, August 24, 2012

गणित का नियम और राहु केतु

किसी भी कारक की मात्रा को अगर लगातार सीमा से आगे बढाया जाता है तो वह धन की रचना मे आजाता है और किसी भी कारक को अगर ऋण की सीमा में किसी भी मात्रा तक घटाया जाता है तो वह ऋण की मात्रा के अनुसार रचना मे आजाता है। गणित का भी यही नियम है कि धन और धन मिलाकर भी धन होता है और ऋण और ऋण मिलाकर भी धन होता है,लेकिन धन और ऋण मिलाकर ऋण ही रहेंगे चाहे कितनी ही कोशिश कर ली जाये। ज्योतिष मे राहु केतु भी इसी प्रकार से गणना मे आते है। राहु का आकार धनात्मक रहता है या ऋणात्मक ही रहता है वह कभी धनात्मक और ऋणात्मक एक साथ नही होता है। वैसे ऋण की सीमा का कारक केतु है और धन की सीमा का कारक राहु है। यही बात गणित के परिधि और केन्द्र के बारे मे भी देखी जाती है केतु अगर केन्द्र है तो राहु परिधि है,वह किसी भी सीमा तक जायेगा लेकिन केतु के आमने सामने हमेशा ही रहेगा। बिना केतु के राहु का विस्तार नही हो सकता है जैसे बिना अभाव के पूर्ति का होना नही होता है। पूर्ति होगी तो अभाव होगा और अभाव होगा तो पूर्ति भी होगी।
प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और राहु का स्थान ग्यारहवे भाव मे गुरु के साथ है साथ ही केतु का स्थान पंचम भाव मे है। केतु ने चन्द्रमा से युति ली है और गुरु से अपनी आमने सामने की द्रिष्टि रखी है केतु ने लगन को भी देखा है तो केतु का रूप अगर केन्द्र बिन्दु से देखा जाये तो कुंडली का केन्द्र पंचम भाव है नवे भाव मे है और नवे भाव के चन्द्रमा पर है साथ ही राहु के साथ युति मिलाये गुरु से भी है लगन से भी केतु को केन्द्र माना जायेगा। केतु का स्वभाव मंगल के सम होता है वह केतु जब पंचम मे होता है तो पेट में पित्त की बढोत्तरी करता है,केतु जब लगन को देखता है तो शरीर को पतला करता है। लेकिन केतु का रूप सहायक के रूप मे होने से वह शिक्षा के क्षेत्र माता के क्षेत्र मे धर्म के क्षेत्र में शरीर व्यवस्था और आगे जाकर सरकारी सेवाये कालेज शिक्षा मे अपनी पहिचान बनाता चला जाता है अथवा यूं कहिये कि राहु का विस्तार केतु के केन्द्र बिन्दुओं से ही होता है। राहु बिना केतु के अपना विस्तार नही कर पायेगा जन्म समय के ग्रहो के अनुसार भी देखा जाये तो गुरु जो राहु के साथ है और राहु ने गुरु की सम्पूर्ण शक्ति को अवशोषित किया है,राहु गुरु के अनुसार फ़ल दे रहा है तो यह फ़ल बडे भाई के क्षेत्र मे होने से बडा भाई या तो राहु के चंगुल मे होगा या गुरु राहु के सम अपना व्यवहार कर रहा होगा यानी गुरु वक्री होगा। गुरु का फ़ैलाव भी अगर जातक की कुंडली से देखा जाये तो गुरु यानी बडा भाई पहले तो कमन्यूकेसन के क्षेत्र मे लाभ वाले कारणो मे अपना फ़ैलाव करेगा,दूसरे शिक्षा की राशि तथा लगन को देखने के कारण शरीर सम्बन्धी नियोजन के लिये सरकारी या राजनीतिक क्षेत्र को देखेगा,तीसरे भाव मे तुला राशि होने से सरकारी और कमन्यूकेशन सम्बन्धी कारणो को बेलेन्स करने के लिये अपने फ़ैलाव को देगा सूर्य के साथ युति होने से राहु पिता और पिता के कार्यों को फ़ैलाव देने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा,जीवन साथी के भाव मे अपने फ़ैलाव को देने के कारण वही कारण पैदा करने के बाद फ़ैलाव करेगा जो कारण जीवन साथी से लाभ के कारको मे देखे जाते हो और सूर्य राहु गुरु की आपसी युति से जीवन की जद्दोजहद का फ़ैलाव भी जीवन साथी और जीविका के प्रति ही होगा। लेकिन हर बार केतु के केन्द्र को ध्यान मे रखकर ही राहु के फ़ैलाव का समीकरण निकालना पडेगा।
जिन ग्रहों के साथ राहु केतु का विरोधी मित्रता पूर्ण और समान आचरण का व्यवहार होता है वह सब फ़ैलाव मे रोकने के लिये फ़ैलाव मे सहायता देने के लिये और फ़ैलाव में अच्छे बुरे का ख्याल नही रखने के लिये राहु के लिये माना जायेगा और केतु के लिये केन्द्रित होने के कारको मे जो ग्रह अपनी अपनी भाव के अनुसार मिश्रित क्रिया को कर रहे होंगे वही कारण जीवन मे निकलते चले जायेंगे। एक बात और भी ध्यान मे देनी चाहिये कि जब सूर्य चन्द्र का आमना सामना कुंडली के किसी भी भाव मे होता है तो राहु का केतु का सामना भी सूर्य चन्द्र के आमने सामने होने के बराबर ही देखना चाहिये,जैसे कुंडली मे माता का स्वभाव बात का पक्कापन और धर्म आदि के प्रति समर्पित होने के लिये नवे भाव से देखा जायेगा तो पिता का स्वभाव बनिया के जैसा और नीच की राजनीति पैदा करने के कारको मे देखा जायेगा वही कारण सूर्य के राहु गुरु के अन्दर आने से राहु गुरु नीच के सूर्य की हरकत को अपने जीवन मे उतारने के लिये देखे जायेंगे तथा जो स्वभाव पिता का है वही स्वभाव पुत्र का भी होगा लेकिन जातक की कुंडली मे केतु का असर चन्द्रमा से होने से जातक का स्वभाव माता के जैसा होगा और जातक ताउम्र अपनी माता के अनुसार ही अपने आचरण को दिखाने प्रकृति को व्यवहार मे लाने के लिये अपने असर को प्रदर्शित करेगा।
इस कुंडली मे केतु अगर वक्री शनि के साथ षडाष्टक योग पैदा करने के बाद शनि के द्वारा शिक्षा परिवार मनोरंजन खेलकूद राजनीति आदि को उखाड कर फ़ेंकने और केन्द्र से भटकाने का असर पैदा कर रहा है तो राहु गुरु छठे भाव के मंगल के साथ षडाष्टक योग पैदा करने के बाद अपनी युति को प्रदान कर रहा है। यह एक प्रकार से बदले की भावना से ग्रसित कुंडली मानी जाती है अगर राहु गुरु यानी बडा भाई जातक के लिये जातक का मंगल जो भाग्य का मालिक है को विदीर्ण करेगा तो शनि जो जातक का सप्तमेश है तो वह भी अपने बुद्धि वाले असर से जातक के बडे भाई की पत्नी आदि को विदीर्ण करने के लिये अपने असर को प्रदान करेगा। सप्तमेश का असर जब नवम पंचम भाव से शुक्र बुध से होता है और शनि के साथ मंगल का मिलान भी नवम पंचम से होता है तो जातक के लिये जातक के जीवन साथी के द्वारा विश्वासघात का कारण भी देखा जाता है यह विश्वासघात अक्सर धन के मामले मे सन्तान के मामले मे और सम्मुख राहु होने के कारण जातक के द्वारा विजातीय सम्बन्ध स्थापित करने के लिये माने जाते है। यह कारण ही वैवाहिक जीवन मे अपनी अस्थिरता को पैदा करते है।
केतु का शिक्षा के क्षेत्र मे होने से जातक का केन्द्र केतु यानी ईशाई सम्बन्धित शिक्षा के क्षेत्र से शुरु होकर ऊंची शिक्षा के लिये विदेश आदि का कारण भी बनेगा साथ ही गुरु राहु का असर तीन प्रकार की अपनी अपनी प्रकार की डिग्री लेने के बाद नियोजित रूप से तकनीकी कारण जो इस प्रकार के क्षेत्र के लिये देखे जा सकते है वह सभी जातक के लिये समझे जा सकते है।

Wednesday, August 22, 2012

लगनेश से मिलती है भाव अनुसार ताकत

मकर लगन की कुंडली मे वक्री शनि अगर चौथे भाव मे हो तो जातक की ताकत माता के समान मानी जाती है,जैसा स्वभाव व्यवहार कार्य शक्ति माता की होती है वैसी ही शक्ति जातक को मिलती है। मार्गी शनि और वक्री शनि के व्यवहार के बारे मे मै बहुत पहले से पिछले ब्लागों मे लिखता आया हूँ,मार्गी अगर शरीर श्रम को देता है तो वक्री दिमागी रूप से श्रम करने की ताकत को देता है। चौथे भाव मे किसी भी ग्रह के अन्दर चन्द्रमा की आद्रता जरूर मिलती है इसलिये ही चौथे भाव के मंगल को ठीक नही माना जाता है कारण मंगल इस भाव मे अपनी गर्मी में आद्रता के आने से गर्म भाप बनाने जैसा व्यवहार करने लगता है। इसी प्रकार से शनि के इस भाव मे वक्री रूप से आने पर जातक की तेज बुद्धि मे आद्रता आने से कार्य और दिमाग में जो सोच होती है वह शनि के व्यवहार के कारण फ़्रीज होने लगती है इसी प्रकार से जातक की कुंडली मे चौथे भाव मे वक्री शनि होने से और राहु मंगल की युति अगर आठवे या बारहवे भाव मे है तो जातक को लगातार राहु मंगल से युक्त शक्ति को देना जरूरी हो जाता है इस शक्ति के देते रहने से जातक की बुद्धि जो फ़्रीज हो रही होती है उसे मंगल की गर्मी और राहु की शक्ति से पिघलाया जा सकता है इस प्रकार से जातक को अधिक बुद्धि का प्रयोग करना और बुद्धि के अन्दर लगातार गर्म शक्ति का प्रदान करना काम के योग्य हो जाता है। केतु को खाली स्थान और राहु को भरने वाला माना जाता है अगर शनि वक्री को केतु अपना बल दे रहा है तो इसका मतलब मान लेना चाहिये कि जातक को हर काम के अन्दर साधन को प्रयोग करने की आदत होनी चाहिये,साधन के बिना उसे काम करने की आदत नही होती है। जैसे मान लिया जाये कि बिना चम्मच के हाथ से भी खाना खाया जाता है लेकिन इस प्रकार के जातक को अगर चम्मच नही है तो हाथ से खाना खाने मे दिक्कत का सामना करना पडेगा। अगर इस केतु के साथ वक्री गुरु भी है तो जातक के लिये खुद के द्वारा किसी भी बात को याद रखने के लिये भी केतु रूपी सहायता की जरूरत पडेगी,जैसे उसे कोई सवाल करना है तो उसे केलकुलेटर के बिना उसे सवाल करना नही आयेगा,साथ ही इस केतु के धन स्थान मे होने से जातक को लेखा सम्बन्धी काम करने का मानस तो बनेगा लेकिन बिना किसी की सहायता से वह कार्य नही कर पायेगा। यही आदत माता के अन्दर भी मानी जायेगी कारण माता का स्वभाव वक्री शनि के अनुसार ही होगा अगर माता को अष्टम मंगल की राहु के साथ की शक्ति नही प्रदान की जाये तो वह भी इस केतु और गुरु वक्री की खाली जगह को भरने की जरूरत को हमेशा ही महसूस करती रहेगी,माता के अन्दर अष्टम स्थान के कारको को हमेशा प्रयोग मे लाते रहने से ही उसकी छवि बनी रहेगी और वह अष्टम के कारक जैसे तंत्र मंत्र दवाइयां तांत्रिक साधन मंत्र साधना गूढ ग्यान जैसे ज्योतिष और परा विज्ञान आदि की जानकारी के बिना अपने इस वक्री शनि की बुद्धि को नही पिघला पायेगी और जब वह एक बार किसी भी उपरोक्त क्रियाओं मे शुरु हो जायेगी तो वह लगातार अपने को मिलने वाली शक्तियों मे बढाती जायेगी,यह बात माता की उम्र की अट्ठाइसवी साल से शुरु होगी और उम्र के आखिरी पडाव तक जारी रहेगी।

गुरु के वक्री होने और केतु के साथ होने से जातक का दिमागी प्रभाव किसी भी रिस्ते को केवल कार्य पूरा होने तक ही माना जा सकता है,जैसे ही कार्य पूरा होता है वह अपने रिस्ते को दूर कर दूसरे कामो की पूर्ति के लिये नया साधन खोजने की तैयारी मे शुरु हो जाता है और उसे यह भी ध्यान नही रहता है कि सहायता करने वाले पिछले लोग भी उससे अपनी मानसिक और कार्य रूपी शैली को जोड कर रखना चाहते है तथा जो व्यवहार के रूप मे उन लोगो ने जातक के साथ किया है उसका बदला किसी भी रूप मे लेना चाहते है,इन्ही कारणो से जातक से लोग व्यवहारिक रूप से खुश नही रहते है,जातक के अन्दर एक प्रकार वह सभ्यता जो उसके माता पिता और परिवार के रूप मे मिलती है वह उन सभी कारणो को जो मर्यादा के लिये माने जाते है केवल कार्य के पूरे होने या अपने को इच्छित क्षेत्र तक पहुंचने तक के लिये ही माने जाते है जातक किसी अलावा माहौल की क्रिया शैली को बहुत जल्दी अपनाने की शक्ति रखता है उदाहरण के लिये अगर जातक के माता पिता अपने समाज संस्कृति को अपनाने की आदत मे है तो जातक किसी अन्य और समय के अनुसार चलने वाली क्रिया शैली पर अपनी दिमागी शक्ति को प्रयोग मे लायेगा,अगर पिता ने चोटी रखाई है तो जातक अपने को फ़्रेंच कट दाढी रखने मे और पिता ने अगर धोती कुर्ता पहिना है तो जातक पेंट शर्ट मे अपने को आगे रखेगा। विदेशी लोग जो उसकी सभ्यता मर्यादा और संस्कृति को नही जानते है के प्रति जातक का आकर्षण अक्समात ही बनता रहेगा। उसे अपने दोस्तो का भी चुनाव अलग तरह के माहौल से सम्बन्ध रखने वाले लोगो से ही होगा और इस आदत से जातक अपने ही घर मे कभी कभी बेगाना सा लगता रहेगा। वह घर और परिवार मे इस प्रकार की आदतो को जारी रखेगा जिससे अपने ही लोग उसे समझने मे गल्ती करेंगे और जब वह किसी कार्य मे अपने आप जायेगा तो घर के लोग ही उसकी कार्य शैली से मुंह बनाने और गल्तिया खोजने के लिये अपनी व्यवहारिक नीति को जारी रखेंगे।

केतु के साथ वक्री गुरु के होने से वक्री शनि पर असर डालने के कारण जातक जिस देश माहौल मे पैदा होता है उसे त्याग कर दूसरे देश और माहौल मे अपनी पैठ बनाना शुरु कर देता है अक्सर यह भी देखा गया है कि जातक पैदा तो अपने परिवार और देश मे होता है लेकिन एक निश्चित समय जब गुरु या केतु या शनि का समय शुरु होता है तो वह अपने परिवार समाज आदि से दूर जाकर रहने लगता है। इस बात को उसकी बचपन की उम्र से ही पहिचान मिल जाती है कि वह कपडो को खेलने के खिलौनो से पढाई के तरीके से लोगो से बात चीत करने के तरीको से आसानी से पहिचाना जा सकता है। वक्री शनि बुद्धि के कामो मे आगे रखता है और वक्री गुरु याददास्त को बहुत तेज करता है जो एक साधारण व्यक्ति यानी मार्गी गुरु वाला व्यक्ति एक साल मे जिस शिक्षाको प्राप्त करता है वही शिक्षा या जानकारी इस प्रकार का जातक तीन महिने मे ही पूरी कर लेता है,अधिक बुद्धि के प्रयोग करने के कारण और याददास्त को दुरुस्त रखने के कारण जातक के शरीर मे बल की कमी मानी जाती है और वह दिमागी काम को बहुत जल्दी पूरा कर सकता है लेकिन अपने बिस्तर को बिछाने मे उसे आलस आता है। भाई बहिनो पर उसे आदेश जमाने का भी शौक होता है साथ ही उसे उस प्रकार का लगाव नही हो पाता है कि वह अपने भाई बहिनो के लिये आत्मीय रिस्ता को कायम रखे बल्कि वह दोस्ताना व्यवहार ही अपने भाई बहिनो से रख पाता है।

मेष राशि का शनि वक्री दिमागी ताकत को देता है तो मेष राशि से सप्तम मे बुध दूसरे नम्बर की बहिन को भी देता है जो अधिक चतुर होने के बाद अपने व्यवहार मे शनि की वक्री नीति को सामने रखती है। बुध से दसवे भाव का चन्द्रमा जो जातक की माता के रूप मे होता है उसकी पहिचान दांतो से होती है माता के दांत बहुत सुन्दर होते है लेकिन जातक की बहिन के पैदा होने के बाद माता के दांतो मे बीमारी या क्षरण से दिक्कत पैदा हो जाती है,यह बुध रूपी बहिन माता के साथ किसी न किसी प्रकार का विश्वासघात करने के लिये भी मानी जाती है और यही कारण जातक के लिये जब शादी सम्बन्ध वाली बात होती है तो बहिन के व्यवहार के कारण जातक की वैवाहिक जिन्दगी ठीक नही रह पाती है और जिस व्यक्ति से जातक की शादी होती है वह बहिन के छलावे के कारण और बुध की उपस्थिति से तलाक या धोखा देकर दूर चला जाता है। वक्री शनि से सप्तम मे बुध का होना और बुध पर किसी प्रकार से राहु मंगल की छाप पडने से तथा बुध का नवम पंचम योग वक्री गुरु तथा केतु से होने से समाज व्यवहार मर्यादा रीति आदि का उलंघन होना देखा जाता है इस युति मे जातक के लिये बहुत ही भयंकर क्रिया शैली का भी होना देखा गया है कि भाई बहिन भी आपस मे पति पत्नी जैसे रिस्ते को चलाते देखे गये है। इस शैली को रोकने के लिये तथा इस प्रकार के अवैद्य कारण को रोकने के लिये जातक राहु मंगल के उपाय करे या राहु मंगल की कारक वस्तुओं से दूर रहे यह वस्तुये तामसी चीजे नशे को पैदा करने वाली खाद्य वस्तुयें जातक और उसकी बहिन का एकान्त मे अकेले मे रहना तथा किसी होटल या पिकनिक स्थान मे अकेले जाना माता के अस्प्ताली कारण मे एकान्त मे रहना भी कारक का पैदा करना माना जा सकता है इस कारण को जातक से दूर करने के लिये बहिन को नीली गणेश को चांदी के पेंडल मे बनवाकर चांदी की चैन मे गले मे पहिनाये रखना चाहिये जिससे जातक की बहिन और जातक मे कोई अवैद्य रिस्ता नही बन पाये। जातक के लिये एक बात और भी ध्यान मे रखने वाली मानी जाती है कि जातक अपने बेकार के दोस्तो को भी अपने रिहायसी स्थान पर नही लाये या बहिन के साथ किसी मौज मस्ती के स्थान पर दोस्तो के साथ नही जाये।

लगनेश से पंचम मे राहु मंगल के होने से जातक को पेट और पाचन सम्बन्धी शिकायत को भी देखा जाता है,अक्सर गैस का बनना और अफ़ारा सा रहना भी माना जाता है यह कारण आगे चलकर जातक की प्रजनन क्षमता को भी खत्म करने वाला होता है या जैसे ही सन्तान पैदा करने का समय आता है जातक का जीवन साथी कोई न कोई कारण बनाकर जातक से दूर हो जाता है। यही बुध केतु की आपसी युति जातक को अपनी बहिन की सन्तान को गोद लेकर पालने के भी अपनी क्रिया को पूरा करती है। इस युति को रोकने के लिये शादी के समय जातक अपने हाथ से गरीब शिक्षा संस्थान मे लगातार पांच मंगलवार मीठे भोजन को बांटे तो यह युति समाप्त हो सकती है। जातक की माता अपने जीवन मे अगर मंगल यानी धर्म और राहु यानी शक्ति को अपने साथ स्थापित रखेगी तो भी जातक के साथ माता के रहने तक कोई अहित नही हो सकता है।

जातक अपने शिक्षा के समय तक ही पिता का कहना मानने के लिये भी देखा जा सकता है उसका कारण है कि मंगल राहु और केतु वक्री गुरु इन ग्रहो की युति से जातक को मानसिक रूप से भय युक्त भी रखती है और पिता के कार्य या साथ नही देने से तथा एक बार  मे एक से अधिक काम करने से माता के द्वारा बहुत ही साधे स्वर मे बात करने से हर जरूरत के लिये जातक के द्वारा एक प्रकार से यह सोचने से कि वह कैसे परिवार मे पैदा हो गया आदि बाते देखी जा सकती है.

Thursday, August 16, 2012

चेतन और अचेतन अवस्था मे चन्द्रमा का योगदान

चन्द्रमा जगत की उत्पत्ति का कारक है यह माता बनकर जीव को पैदा करता है और पानी बनकर जीव को पालता है तथा भावना बनकर जीव को अच्छे और बुरे काम करवाता है जीवन देने का कारक भी बनता तो मारने का भी कारक बनता है। भौतिक रूप से सभी ग्रहो के साथ मिलकर अपने रूप को बदलता है तथा राशि के अनुसार अपना स्वभाव बना लेता है भाव के अनुसार ही भावना को बनाने का कारक है. जब चन्द्रमा की जाग्रत अवस्था जीव मे होती है तो वह चेतन अवस्था मे होता है चन्द्र्मा की सुषुप्त अवस्था मे जीव जागते हुये भी अचेतन अवस्था मे चला जाता है। हिन्दी के चेतन शब्द का अर्थ देखने पर च जो चन्द्रमा का कारक है मे ऐ की मात्रा शक्ति उसी प्रकार से प्रदान करती है जैसे शब्द शव मे इ की मात्रा लगाने पर शिव का रूप बन जाता है। अक्षर तक के शामिल होने पर चेत यानी सजगता शुरु हो जाती है और अक्षर न जब जाग्रत अवस्था मे गुप्त रहस्यों को भी समझा जा सके। अर्थात जाग्रत अवस्था मे जब गुप्त रहस्य को भी समझा जा सके तभी चेतन अवस्था का होना माना जाता है।

एक बात चेतन अवस्था के लिये और भी मानी जाती है कि जब सूर्य के साथ चन्द्रमा होता है तो चन्द्रमा की औकात नही होती है वह सूर्य के अहम के आगे अपने प्रभाव रूपी भावना को प्रदर्शित भी नही कर सकता है और कोई भी रहस्य समझने की उसमे ताकत भी नही होती है। जैसे जैसे चन्द्रमा सूर्य से दूर होता जाता है वैसे वैसे उसके अन्दर ताकत आती जाती है जैसे जैसे चन्द्रमा सूर्य के पास आता जाता है उसकी ताकत कम होती जाती है। शुक्ल या कृष्ण पक्ष की सप्तमी से अष्टमी के बीच मे चन्द्रमा की ताकत निश्चित मात्रा मे होती है और पूर्णिमा के दिन जब चन्द्रमा सूर्य से एक सौ अस्सी अंश की दूरी पर होता है तो चन्दमा पूर्ण बलवान होता है अक्सर बडे काम इसी तिथि को पूर्ण होते है और प्रत्येक जीव की अच्छी या बुरी ताकत बढ जाती है। अक्सर इस तिथि को भावना रूपी बल के कारण ही मंगल राहु आदि ग्रहों की सहायता से बलात्कार जैसे केश अधिक होते है और मंगल शनि के बीच मे चन्द्रमा के आने से एक्सीडेन्ट और हत्या जैसे मामले भी होते देखे गये है,पुलिस रिकार्ड को अगर खंगाला जाये तो सबसे अधिक दुर्घटना या बुरे काम पूर्णिमा के दिन ही होते और अगर तीर्थ स्थानो पर या धार्मिक स्थानो पर भीड को देखा जाये तो पूर्णिमा के दिन ही अधिक भीड देखी जा सकती है।

मंगल के साथ चन्द्रमा की स्थिति या तो क्रूरता पूर्ण हो जाती है या वह बिलकुल ही मन्द गति की हो जाती है खून को शक्ति का कारक माना जाता है और शक्ति मे अगर पानी की मात्रा अधिक है तो वह भावनात्मक शक्ति बन जाती है और नीच के मंगल के होने से मन की स्थिति बहुत ही कमजोर मानी जाती है वही चन्दमा जब मंगल के शनि के घर मे होने से मकर राशि का होता है तो वह अपनी मंगल की शक्ति को दस गुनी चन्द्रमा को दे देता है शनि की चालाकी और भावना का विनाश भी मंगल को मिल जाता,और यह भाव चन्दमा को भी उच्चता मे ले जाता है जो कहना है करना है वह कडक भाषा मे कहा जाता है और खरे स्वभाव से काम भी किया जाता है।

बुध के साथ चन्द्र्मा के मिलने से ह्रदय मे एक मजाकिया का प्रभाव बन जाता है प्रहसन करना जो भी ह्रदय मे आता है कह देना और जो भी काम मन को प्रफ़ुल्लित करे उसे बखान कर देना लिखने के अन्दर मन को प्रदर्शित करने वाली बातो को कहना आदि भी माना जाता है चन्द्र बुध का व्यक्ति हमेशा खुले मन का होता है वह अपने अद्नर कोई बात छुपा नही पाता है अगर वही बुध खराब राशि जैसे मीन राशि मे या वृश्चिक राशि मे चला जाता है और चन्द्रमा का साथ हो जाता है बात का गूढ पन तथा मन के अन्दर एक प्रकार की इतिहास बखान करने वाली बात या गडे मुर्दे उखाडने की बात भी मानी जा सकती है। यह मन को जो अचेतन अवस्था मे होता है को तीखे शब्दो और तीखे कामो के द्वारा जाग्रत करने का अजीब रूप भी बन जाता है। योगी की बुद्धि भी चन्द्रमा के वृश्चिक राशि मे जाने से हो जाता है और किसी प्रकार से राहु का साथ भी हो जाये तो आने वाले समय की आशंका भी व्यक्त कर दिया जाता है। जो नही है वह भी उसके साथ हो जाता है और जो है उसे नही भी बताया जा सकता है। यही चन्द्रमा जब सूर्य के साथ अगर वृश्चिक राशि का हो जाता है तो व्यक्ति अपने मन की व्यथा को किसी के सामने व्यक्त भी नही कर सकता है।

दोनो आंखो की द्रिष्टि को नाक के ऊपर वाले हिस्से मे टिका कर बन्द आंखो से मिलने वाले अन्धेरे को देखा जाये तो एक अचेतन अवस्था भी चेतन अवस्था मे बदल जाती है। साथ ही यह क्रिया अगर लगातार की जाती रहे तो वे रहस्य जो हमेशा साथ नही होते है या मरते वक्त तक पता नही चल पाते है वह भी सामने आ जाते है मौत के बाद की अवस्था या पिछले जीवन की अवस्था भी सामने आजाती है या जो भी व्यक्ति सामने आता है उसके आगे पीछे के सभी कार्य व्यवहार रीति रिवाज और अच्छे बुरे काम सामने आजाते है।

अक्सर अधिक सोचने के कारण या मोह लोभ आदि के भ्रम मे आकर चेतन मन भी अचेतन हो जाता है व्यक्ति जागता हुआ भी सोता रहता है यानी अपने ख्यालो मे इतना खो जाता है,कि उसे होश भी नही रहता है कि कोई व्यक्ति क्या कह गया है या उसने अपने ख्यालो मे रहकर कोई ऐसा काम कर दिया जिससे खुद की या किसी अन्य की जोखिम की बात भी हो गयी है,यह बात उन लोगो से भी समझी जा सकती है जो हत्या आदि करने के बाद जब व्यक्ति जेल मे जाता है और जब उसका चेतन रूप जाग्रत होता है उस समय उसे खुद के ऊपर भी विश्वास नही रहता है कि उसने वह काम कैसे कर दिया है।

Wednesday, August 15, 2012

यह कैसी स्वतंत्रता ?

भारतवर्ष की आजादी के दिन केतु का लगन मे होना और राहु का सप्तम मे बैठ कर सूर्य चन्द्र बुध शुक्र शनि से सहायता प्राप्त करना और उस सहायता को केतु से दूसरे और राहु से अष्टम मंगल को देना वह भी किसी अच्छे कारण के लिये नही केवल विध्वंशक कार्यों के लिये,इस युति मे स्वतंत्रता को प्राप्त करने का अर्थ क्या रहा ? हमारे भारत में बडे बडे मनीषियों और विद्वानो की राय से भारत की स्वतंत्रता का समय निश्चित किया गया था.कर्क का चन्द्रमा शनि के साथ फ़्रीज हो रहा था,कर्क का सूर्य शनि के साथ मिलकर केवल भवन निर्माण और जंगली सम्पदा को फ़्रीज करने मे लगा था,कर्क का शुक्र शनि के साथ मिलकर देश मे केवल सीमेन्ट और पत्थरो का निर्माण करने का ही मानस दे रहा था,कर्क का बुध शनि के साथ मिलकर देश मे केवल भवन और जमीन जायदाद का व्यवसाय करने की युति दे रहा था कर्क का शनि धर्म कर्म और नीति मर्यादा को त्याग कर केवल स्वार्थ की नीति को प्रदान कर रहा था कर्क का चन्दमा शनि के साथ मिलकर जनता को वक्त पर बोलने की शक्ति से दूर रखकर मौन धारण करने के लिये कह रहा था,इसके साथ ही सूर्य चन्द्र बुध शुक्र के बारहवे भाव मे बैठा मंगल हर काम में उत्तेजना को दे रहा था,इन ग्रहों के अन्दर जिसकी लाठी उसकी भैंस प्राप्त करने का प्रभाव दे रहा था किसी भी काम को करने के लिये चन्द्रमा रूपी जनता को पंचम राहु का भरोसा लेना जरूरी था वह राहु भी एक ऐसे स्थान पर जहां केवल शमशानी राख बिखरी पडी हो,यानी जिससे सहायता लेने के लिये जनता चाहे वही शमशानी राख भोला भंडारी बनाकर जनता को एक किनारे पर खडा कर दे वही चन्द्रमा राहु अनैतिक कार्य करने के लिये और किसी भी तरह से जल्दी से धन कमाने के चक्कर मे आपस मे ही स्वार्थ सिद्धि को अपनी युति दे यह कहां तक ठीक था ? यही नही चन्द्रमा रूपी जनता शनि के चक्कर मे फ़्रीज हो रही है राहु अपनी सिद्धि को प्राप्त करने के लिये हठधर्मी होता जा रहा हो,राहु के स्वार्थ का जनता को पता भी चले,वह मानवीय मिट्टी को सम्पूर्ण देश मे बिखेरने के लिये अपनी गति दे रहा हो,शनि चन्द्र राहु की युति जब यह प्रभाव देती है कि शनि मरे और ठंडे चन्द्रमा भावना के द्वारा राहु बने हुये कब्रिस्तान की लगातार बढोत्तरी देता रहा और यह भारत जो देव भूमि के नाम से जाना जाता था वहां कब्रिस्तान पर बैठ कर सूर्य  बनकर राज्य करे ? वही शुक्र जो लक्ष्मी का रूप है शनि के साथ काला पत्थर होकर लोगो की मिल्कियत बनता जा रहा है ? वही बुध जो कानून का रूप है शनि के साथ मिलकर केतु के प्रभाव से इतना मंद हो गया है कि चीटी की चाल तो भी बहुत तेज है लेकिन कानून की चाल इतनी धीमी होने के बाद भी जनता को न्याय नही मिल पाता है धन की राशि मे बैठा केतु वकील की हैसियत से मंगल की तर्क वितर्क के सहारे सूर्य से राज्य की फ़ीस चन्द्रमा से भावनाओ की फ़ीस शुक्र से न्याय स्थान की फ़ीस शनि से कार्य को करने के लिये अगली तारीख की फ़ीस ही लेता रहे और कानून का पता ही नही चले कि कानून चल भी रहा है कि नही ? इस केतु ने जो पहिनावा पहिना है वह भी केतु से धारीदार पेंट शनि से काला कोट चन्द्रमा से सफ़ेद टाई शुक्र से ऐशो आराम का रहने का स्थान सूर्य से रहने वाले स्थान पर डिग्री सहित नेमप्लेट बुध से बातों के छल्ले,और जब राय ली जाये तो राहु से झूठ का सहारा और जीतने वाले काम मे भी हारने का डर पैदा कर देना,पूर्वजो के केश आगे की औलादो को भुगतने पडे ?
मिथुन राशि का मंगल डाक्टर बन गया,अपने से बारहवे भाव के केतु से जो धन की राशि मे बैठा है दोहरी डिग्री ले ली,उस डिग्री के सहारे गुरु यानी जीव जो भारत की कुंडली मे छठे स्थान पर बैठा है बीमार आदमी के रूप मे है को भी व्यापार की तराजू मे तौल कर कीमत वसूलने का कारक बन रहा है,वह सूर्य से सरकारी ताकत चन्द्रमा से सम्बन्धी की जो बीमार आदमी को अस्पताल मे ले जाये की मानसिक भावना को परखने के बाद शुक्र कितना धनी है या निर्धन है बुध डाक्टरी कानून जो राहु की छत्रछाया मे बना है,वह दवाइयां जो वास्तविक रूप से दो नम्बर मे बनी है को मरीज को देकर राहु यानी इन्फ़ेक्सन में भेज कर मामूली बुखार को डेंगू की उपाधि देकर जितना हो सकता है उतना धन लेकर मरीज मर जाये तो कोई बात नही है शव को भी कीमत लेकर देने के लिये अपना असर प्रदान कर रहा है।
मिथुन राशि का मंगल धन के भाव मे होने से वित्त विभाग को सम्भालने वाला बना है। उसके पास भी केतु का बल है उच्च डिग्री भले ही किसी देशी विदेशी विश्वविद्यालय से धन की कीमत पर प्राप्त की गयी हो किसी प्रकार की केतु की पहिचान से ग्रस्त हो,सूर्य से सरकारी बल लेकर शुक्र से आलीशान आफ़िस बनाकर शनि से कर्मचारी जो केवल भावना से काम करते हो यानी किये जाने वाले काम में भावुकता भर दी जाये काम के अन्दर राजनीति भर दी जाये कि अगला कितना करता है वह कितना अच्छा है काम को समय पर करता है उसे कितनी कम सैलरी दी जा रही है फ़िर भी अच्छा काम करता है,दस बीस रुपये का मैडल बनवा कर सूर्य यानी अहम की छाप लगाकर मंगल यानी भोजन और पार्टी का आयोजन करने के बाद भावना का बल देकर कम कीमत देकर काम करने वाले से काम को करवाने की कला से निपुण होकर लूट रहा है। यह ही नही यह मंगल अपने से दूसरे भाव मे शनि के होने से तथा शनि के कर्क राशि मे होने से जो भी धन को कमाया जा रहा है वह धन कर्क यानी उत्तर दिशा और शनि यानी देश जो बर्फ़ीले क्षेत्र के है मे इस मंगल के द्वारा दिया जा रहा है वह धन जाकर वहीं पर फ़्रीज हो सकता है लेकिन चन्द्र्मा जो शनि के साथ बैठा है वह मंगल की कानूनी नीति से कन्ट्रोल मे तो रखा जा रहा है जनता पर लाखो कानून लाद दिये गये है और उन्हे कन्ट्रोल करने के लिये सुरक्षा बलो की भारी भरकम फ़ौज भी है को केवल जनता को कन्ट्रोल करने के लिये ही प्रयोग मे लिया जाता है,लेकिन जनता को जो चन्द्रमा के रूप मे है सहायता नही दी जा सकती है !
यह मंगल जो देश के अन्दर सुरक्षा करने के लिये अपनी छाप को लेकर बैठा है,सुरक्षा बल के व्यक्ति के लिये भी देखा जाता है,भर्ती होते ही तीन जिम्मेदारी एक साथ दी जाती है,पहली मंगल से बारहवे केतु का आर्डर फ़ोलो करना,दूसरा केतु केवल धन की राशि मे होने से जो भी आर्डर देगा वह किसी न किसी प्रकार के धन से सम्बन्धित होगा,वह धन सेवा की गुप्त शर्तों को मंगल से छठे राहु की है वह घूस के रूप मे भी हो सकता है,या किसी प्रकार के गुप्त कार्य जो छठे गुरु के कानूनी शिकंजे में फ़ंसने के बाद प्राप्त किया जाता है,समय पर पहुंचा देना,अगर नही पहुंचाया तो यही धन की राशि मे बैठा केतु किसी न किसी प्रकार के गुप्त कानून से जो राहु की सहायता से प्राप्त किया जायेगा और नौकरी से दूर भी कर सकता है सस्पेंड भी कर सकता है,तीसरा कानून यह केतु अपनी खुद की पोजीसन से प्राप्त करेगा यानी जो भी केतु के द्वारा प्राप्त की शक्ति जैसे सूर्य से सरकारी शक्ति शुक्र से वाहन और वर्दी की शक्ति चन्द्रमा से जन शक्ति बुध से कानून की शक्ति शनि से देखना नही केवल साबूत की शक्ति और राहु का सहारा लेकर शनि जब शक्ति मे आजाये तो किसी भी धुरंधर को जेल की कोठरी मे आराम करने की शक्ति स्वतंत्रता को प्राप्त करने के समय इस केतु को दी गयी थी,वह किसी भी मामले मे मंगल का बल लेकर अपनी शक्ति को प्रयोग मे ला सकता है। गुरु जो बेचारा जनता के रूप मे है जो जनता धर्म को मानती है जो जनता मर्यादा मे चलकर अपने रिस्तो को मानती है जो जनता सच्चाई पर चलकर अपने जीवन को निकालने के लिये प्रयास करती है जो जनता खुद की मेहनत से कमा कर खाना जानती है,को यह केतु इतना मजबूर कर देता है कि वही जनता गलत कार्यों मे चली जाती है वह कर्जाई बन जाती है वह कर या मर की शक्ति से आवेशित होकर कानून के चक्कर मे फ़ंस जाती है वह जो भी काम करती है उस काम के बारे मे बहुत से कानून बने होने के बाद वह किसी न किसी कानून मे फ़ंसाकर इस केतु के द्वारा जिल्लत भरी जिन्दगी जीने के लिये मजबूर हो जाती है,इस मंगल के रक्षक के रूप मे केवल वर्दी का रूप दिखाने से और मिथुन का मंगल जो बोलता नही बजाता है,के द्वारा लाठी और हथियार जो इस मंगल को दिये गये है,सूर्य से सरकारी मोहर बुध से गोल शनि से काली या नीली शुक्र से भौतिक रूप से बोल कर सुनाकर प्रदान की जाती है इस मंगल से जो पहिचान सुरक्षा के लिये दी गयी है वह सूर्य से खाकी बुध से हरी शुक्र से सजी हुयी और चौकस शनि से भारी भरकम जूतो के साथ उस ड्रेस का सहारा लेकर यह मंगल जनता के अन्दर केवल धन का दंगल तो कर सकता है लेकिन बल का दंगल करने के समय मे किसी भी आफ़त मे फ़ंसने के समय मे केतु का सहारा लेकर भाग जाने मे ही भलाई को समझने वाला है।
यही मिथुन राशि मीडिया है,इस मीडिया मे बैठा मंगल मीडिया कर्मी है। केतु मीडिया से बारहवे भाव का है,यह केतु आसमानी संचार का कारक है,जो वृष राशि के देशो से सम्बन्ध रखता है वह सम्बन्ध चाहे अमेरिका से हो या ब्रिटेन से हो केवल दोनो देशो की शक्ति ही इस मीडिया को सम्भालने की शक्ति रखती है,भारतीय व्यक्ति के आगे तो यह मीडिया केवल संवाददाता बनाने तक ही सीमित है बाकी का काम कमाई आदि तो सभी केतु के संचालन से चाहे सैटेलाइट के रूप मे हो चाहे वह सम्पर्क करने के रूप मे हो चाहे वह सोसल रूप से दिखावा करने के रूप मे हो अपनी शक्ति को प्रदान करने के बाद सच को झूठ और झूठ को सच बनाने की कला मे निपुणता को हासिल किये है। यह मीडिया काम करने वाले की केवल तीन जरूरतो को पूरा करता है वह जरूरते केवल सूर्य से सरकारी लोगो के साथ भोजन करने से शुक्र से कैमरा और वाहन के साथ यात्रा करने में बुध से बोलने के लिये सूर्य वाला अहम साथ रखने और कानूनी घेरे के अन्दर ही बोलने अपनी पहिचान बताने के लिये अपनी कम्पनी का कार्ड साथ रखने शनि से गंदे स्थानो मे और नीच लोगो के बारे मे खोजबीन करने के द्वारा जो भी रास्ता चलते जरूरते पूरी हो जाये,यानी आलीशान शाही निवास सूर्य से मिलता है शुक्र से सजी सजायी स्त्रियां और मोहक द्रश्य देखने को मिलते है,बोलने के अन्दर कलाकारी पैदा करने के लिये शुक्र और बुध का साथ लेकर सजी सजायी कामुकता को प्रदान करती हुयी पच्चीस साल तक की स्त्रियां अपनी सहायता देती है,बुध से अंग्रेजी शुक्र से हाव भाव केतु से हाथ पैरों का प्रदर्शन राहु से केवल पहिचान बनाना और लोगो के अन्दर एक प्रकार का ऐसा भाव भरना कि लोग उस मीडिया वाले चैनल समाचार पत्र या आकाशवाणी को समय समय पर सुनते रहने के लिये मजबूर हो जायें,इस मीडिया मे भी बुध शुक्र का अपना असर और भी शामिल हो गया है वह बुध से विज्ञापन और शुक्र से अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लिये उत्पादन का प्रसार प्रचार,यही कमाई है मीडिया है इस मीडिया की नजर मे जनता के अन्दर जाकर चन्द्रमा की भावनाओं को प्रसारित करना वह भावनाये जो किसी के लिये जीवन दे सकती है और कितनो का जीवन ले भी सकती है उनकी कोई कीमत नही होती है मीडिया का काम केवल धन के लिये प्रसारण करना ही होता है। मीडिया कर्मी जो केतु के इशारे से नाच रहा होता है उसे पता है कि उसकी औकात अधिक दिन के लिये नही है और वह अपनी थोडी सी जिन्दगी को कुछ समय बडी शान से जीना चाहता है इसी चाहत मे वह भूल जाता है कि वह जिस देश का रहने वाला है जिस देश की माटी ने उसे पाला पोशा और जीने के लिये जीवन दिया है उसी देश की सभ्यता को मर्यादा को भावनाओ को वह तोड मोड कर जाति के नाम से लोगो के द्वारा किये जाने वाले रोजाना के कामो के नाम से जहां से धन प्राप्त होना हो वहां के बारे मे बहुत ही उत्तम रूप से प्रचार प्रसार करने से सच को भी झूठ और झूठ को भी सच साबित करने के लिये अपने प्रयासो को कर रहा होता है।
यही मंगल भारतीय बैंक भी है यह धन के भाव के केतु के इशारे पर चलती है। केवल दो ही विदेशी बैंक हमारे देश के बैंक को चलाने की हिम्मत रखते है एक विश्व बैंक और दूसरा स्विस बैंक तीसरी बैक कभी सामने नही आयी और न ही आयेगी। जनता के लिये धन ही सबसे बडा हथियार काम का है,जनता राहु के कनफ़्यूजन से यह भूल जाती है कि उसके पास और भी बल है,वह धन को प्राप्त करने के लिये विभिन्न तरीके अपनाती है जैसे सूर्य की सहायता से राजनीति मे जाना,शुक्र की सहायता से वाहनो के काम करना,बुध की सहायता से जमीनो के टुकडे काट कर उन्हे रिहायसी प्लाट बनाकर बेचना,भवन निर्माण करना और फ़िर ऊंची कीमतो मे बेचना, राहु की सहायता से सीमेंट पेट्रोल दवाई जमीन के नीचे से निकलने वाले अयस्क जैसे सेमीकन्डक्टर बनाके के खनिज आदि की सहायता लेना,उनके व्यापार मे अधिक से अधिक मन लगाना, जल्दी से धन कमाने के साधनो के लिये शेयर आदि का काम करना मरती हुयी पूंजी को फ़िर से जिन्दा करना,दिखावा अच्छे काम करना और उस अच्छे काम के पीछे कितने ही गलत काम करने के बाद अधिक से अधिक धन कमाना लेकिन यह राहु भी कम नही पडता है जैसे ही व्यक्ति उन्नति की तरफ़ जाता है यह राहु भूत की तरह से उसके पीछे लग जाता है वह तरह तरह की बीमारी पैदा कर देता है शरीर मे अधिक कामुकता और यौन सम्बन्धो से एड्स जैसी बीमारिया पैदा कर देता है,फ़िर यह जनता अस्पतालो के चक्कर मे डाक्टरो के चक्कर मे गलत कमाये हुये धन को सही करने के लिये बीमा कम्पनियो के चक्कर में धन की तकनीक को जानकर किस कानून से कहां बचा जा सकता है की जानकारी देकर धन का केतु यानी सी ए जैसी पोस्ट वाले लोगो का सहारा लेकर अथवा कर्जा चुकाने के लिये तरह तरह के उपाय करने से अपने को बचाने का प्रयत्न करती है। इन दोनो बैंको ने अपनी शक्ति का सहारा लेकर चन्द्रमा को बन्धक बना लिया है यह चन्द्रमा खेती करने वाले किसान के रूप मे बन्धक है,नौकरी करने वाला अपनी नौकरी को बन्धक बनाकर बन्धक बना हुआ है,व्यापार करने वाला अपने व्यवसाय स्थान को बन्धक बनाकर बन्धक बना हुआ है,और कुछ नही तो धन की प्रतिस्पर्धा मे आगे निकलने के होड में शिक्षित और बुद्धिमान दिमाग भी अधिक कमाने के चक्कर मे बन्धक बना हुआ है। आज आदमी की कीमत कुछ भी नही जिसे देखो वह धन की निगाह से तौला जाता है,एक दर्द से कराह रहा है अगर उसके पास धन है तो कितने ही आकर सहायता मे खडे हो जायेंगे और धन नही है तो वह अपना दर्द अपने आप ही झेल कर मर जायेगा लेकिन कोई पास नही आयेगा।
इस प्रकार की स्वतंत्रता का प्रभाव यानी इकत्तीस राज्य एक हजार छ: सौ भाषाओं तथा छ: हजार जातियों के साथ छ: धर्म छ: ही ऐसे समुदाय जो देश के लिये अपनी सेवायें दे रहे है,इस देश मे जहां उन्तीस त्यौहार मनाये जाते है के लिये कितना सफ़ल है इस बाद को समझने के लिये ऊपर की बातो को ध्यान मे रखना जरूरी है।
इस भारत को सुधारने का एक ही तरीका है जो इस प्रकार की स्वतंत्रता को कायम रख सकता है.
  • मंगल मिथुन राशि का है यह बोलना कम बजाना अधिक जानता है अगर लोग किसी भी मामले मे बोलने की बजाय बजाने मे विश्वास रखने लगे तो वास्तविक स्वतंत्रता मिल सकती है.
  • यह मंगल केतु से आगे है,यह केतु मंगल का सहारा लेकर सेना और पुलिस की मदद से डाक्टर और बैंक की मदद से स्वतंत्रता मे बाधक बन रहा है जो भी राजनीतिक लोग है गलत रूप से मंगल का प्रयोग कर रहे है यह मंगल सार्वजनिक रूप से ऐसे लोगो को सहायता देने से मना कर दे तो स्वतंत्रता सही मायने मे चल सकती है.
  • गुरु के आगे राहु है गुरु ही भारतीय है जो भी लोग भारत के बाहर के है और भारत मे कचडा फ़ैलाने की नीति को अपना रहे है उन्हे यह गुरु अपने पास से हटा दे,कारण यह लोग गुरु के साथ रहकर गुरु की हर गतिविधि को अपनी नीति को बनाकर गुरु को परास्त करने की कोशिश करते है.
  • भारतीय व्यक्ति को लोभ मे आकर धन को कर्ज से लेना और धन के लोभ मे गलत काम करना बन्द कर देना चाहिये.
  • सरकारी काम मे जहां देरी हो रही हो यानी सूर्य मे शनि का प्रभाव आ गया हो वहां पर ही मंगल की बजाने वाली नीति को प्रयोग मे ले लेना चाहिये.
  • बुध जो कानून के रूप मे है शनि के साथ है मन्द गति से चल रहा है और राहु के रूप मे मुकद्दमो का अम्बार लगाये बैठा है,न्याय करने वाले अधिकारी को इसी मंगल की सहायता से मुकद्दमे का फ़ैसला करने के बाद ही धन की सहायता दी जानी चाहिये,न्याय करने वाले पर राहु की सहायता से हर क्रिया की गुप्त नजर रखनी चाहिये यहां तक कि जब तक न्याय करने वाला अपनी सेवा को दे रहा है उसे मंगल की नजर मे रहना चाहिये.
  • केतु के रूप मे जो बाहरी शक्तियां आकर अपना वर्चस्व चाहे रीति रिवाज के रूप मे हो क्योंकि केतु को ईशाई माना जाता है और यह शक्तियां धर्म कर्म कानून आदि को अपनी ही रीति से प्रसारित करने की इच्छा मे रहती है के अहंकार और भुलावे मे नही आना चाहिये.
  • हमारे देश के मुस्लिम सम्प्रदाय को हत्या करना शमशानी काम करना और जिन्दा को मारना तथा मरे के साथ व्यापारिक काम करना बन्द कर देना चाहिये,जिससे आपसी सामजस्य भी बने और एक देश एक कानून के अन्दर अपने अपने विचारो का खुला समर्थन बना रहे,राहु उल्टा बोलता है इस बात को भी ध्यान मे रखना चाहिये,साथ ही मुस्लिम समाज को इन्जीनियरिंग जमीन के नीचे के खनिज दवाइयों में कल कारखानो मे जहां राख से साख पैदा की जाती है के प्रति शिक्षा को प्राप्त करने के बाद आगे आना चाहिये.
  • गुरु हिन्दू है गुरु को चाहिये कि वह लोभ मे आकर अपने घर समाज परिवार संस्था आदि के प्रति उधार लेना बन्द कर दे,जितना है उसी से काम चलाये तो वह अपनी सामाजिस व्यवस्था को कायम रख सकता है.
  • बुध भाषा है,जब तक पूरे भारत मे एक भाषा का विस्तार नही किया जायेगा तब तक कोई भी काम समानता से नही चल पायेगा,एक ऐसी भाषा का प्रयोग शुरु कर देना चाहिये जो भारत की मर्यादा साख और नीतियों को सभी को समझा सके सभी उस भाषा को आसानी से समझ भी सके और बोल भी सके.गुरु के दसवे भाव मे बुध के साथ शनि होने से तथा राहु के द्वारा असर करने से हिन्दी भाषा को माना तो गया है लेकिन कर्क का शनि प्रान्तीयता को बढावा दे रहा है,इस शनि की चाल के कारण ही भाषा का विस्तार नही हो पा रहा है.
  • प्रकृति ने जिन जीवो को पैदा किया है वे सभी बेलेन्स बनाने के लिये है हिंसा के द्वारा इन्हे नही मारा जाना चाहिये कारण एक जीव एक जीवन मे कितना बेलेन्स बनायेगा यह बहुत ही शोध की बात है मारने के बाद उसी जीव के द्वारा कितनी असमानता आजायेगी जो जीवो मे श्रेष्ठ मानव जाति के लिये कितनी अहितकर हो जायेगी इस बात को बहुत सोच कर ही प्रयोग मे लाना चाहिये.जीवो से बने भोज्य पदार्थ आदि से दूरिया बनाकर चलने से बीमारिया अकाल मृत्यु गर्मी सर्दी बरसात के मौसमो की असमानता से बचा जा सकता है.
(इस लेख मे कोई त्रुटि हो गयी हो तो बुद्धिमान लोग ह्रदय मे नही रखकर क्षमा करेंगे)

Thursday, August 9, 2012

सकाम और निष्काम भाव

कुंडली जीवन का दर्पण है कौन सा भाव क्या काम करेगा वह जन्म समय और लगन पर निर्भर है। जीवन का रूप लगन से भी देखने को मिलता है और चन्द्रमा से सोच मिलती है सूर्य से जो भी सोच है वह द्रश्य रूप मे सामने आती है लेकिन शनि उसे कर्म के रूप मे सामने करता है। बाकी के ग्रह अपनी अपनी शक्ति से भाव या ग्रह को शक्ति देने संवारने और रूप परिवर्तन के लिये अपनी अपनी गति को प्रदान करते है। चार प्रकार के पुरुषार्थ की भावना ही कुंडली का असली रूप है। धर्म के भावो मे प्रथम पंचम और नवम भाव को रखा गया है अर्थ के भावो मे दूसरे और छठे के साथ दसवे को रखा गया है काम के भाव मे तीसरे सप्तम और ग्यारहवे भाव को रखा गया है तथा शांति के कारक मोक्ष के स्थान को चौथे आठवे और बारहवे भाव मे रखा गया है। व्यक्ति का जीवन खुद अपने लिये कम और दूसरो के लिये अधिक प्रयोग मे आता है। मसलन एक व्यक्ति दिन भर मेहनत करने के बाद अगर लाखो रुपये कमाकर लाता है तो वह केवल पेट का भोजन और शरीर पर कपडे के अलावा अपने रहने वाले स्थान की जलवायु के अनुसार शरीर को सुख देने वाले कारको को ही प्रयोग मे ला सकता है इसके अलावा उसके साथ काम का पुरुषार्थ जुडने से जीवन साथी बच्चे और पारिवार का रूप उसे अलावा कार्य करने के लिये अपनी गति को प्रदान करता है जैसे ही काम पूरे होते है वह अपने कामो से सन्तोष को प्राप्त करता है और उसने अपने कर्म अगर सही किये है तो वह अच्छी गति को प्राप्त करता है और खराब काम किये है तो वह गति भी खराब ही प्राप्त करेगा। जो काम दूसरे के लिये बिना किसी स्वार्थ के किये जाते है वह निष्काम भाव के श्रेणी मे आते है,हर भाव का चौथा भाव निष्काम भावना से किये जाने वाले कार्यों के लिये माना जाता है। लगन से चौथा भाव अगर माता का है तो माता के लिये जो भी काम किया जायेगा उसके प्रति क्या प्राप्त होता है उसकी कल्पना नही की जायेगी उसी प्रकार से पिता से पुत्र का चौथा भाव होने से पिता अपने पुत्र के लिये जो भी काम करेगा उसके लिये पिता पुत्र से कोई चाहत नही रखेगा। लेकिन जैसे ही नियम बदला और धर्म का काम से अर्थ का मोक्ष से प्रभाव से आमना सामना हुआ वही निष्काम भावना बदल जायेगी,और बजाय कोई काम नि:स्वार्थ करने के स्वार्थ की भावना से किया जायेगा।

उदाहरण के लिये पुत्र के लिये पिता तो निष्काम भावना से सभी काम करेगा लेकिन वही पुत्र वधू जो भी काम अपने स्वसुर के लिये करेगी उसे चाहत होगी कि उसका स्वसुर उसके लिये क्या करने और क्या नही करने के योग्य है या नही अगर स्वसुर योग्य है तो बहू मन लगाकर अधिक प्राप्ति की आशा करने के बाद खूब सेवा करेगी। यही भावना माता के लिये भी देखी जायेगी माता की माता यानी नानी का भाव भी सप्तम का है और माता नानी के लिये जो भी काम करेगी वह निस्वार्थ मे किया जायेगा लेकिन वही भाव जब सप्तम मे आयेगा तो भावना स्वार्थ मे बदल जायेगी,जैसे बहू सास के लिये कितनी सार्थक है और कितनी निरर्थक है। अगर बहू अधिक उन्नति देने वाली है और सास के प्रति लगाव रखते समय बदले की भावना नही है तो वह बहू का अधिक ख्याल रखेगी,और अगर बहू बेकार का वजन बढाने वाली है शादी के बाद भी अपनी माता की नि:स्वार्थ सेवा मे लगी हुयी है तो सास का बहू से मन हट जायेगा और वह किसी न किसी प्रकार से पंगा करना शुरु कर देगी। यह बात तब और देखी जा सकती है कि पिता के लिये पुत्र का कार्य केवल स्वार्थ के लिये होगा लेकिन पिता का पुत्र के लिये नि:स्वार्थ होगा। इस कारण को यह भी कहा जा सकता है जो भाव नि:स्वार्थ की सीमा मे आता है उसका विरोधी भाव यानी सप्तम स्वार्थ की सीमा मे प्रवेश कर जाता है।

Wednesday, August 1, 2012

अष्टम भाव और जीवन मे लिये जाने वाले जोखिम

अक्सर अष्टम भाव को मृत्यु के भाव से जाना जाता है और इसे अपमान तथा जोखिम के भाव से भी जाना जाता है इस भाव का कारक अस्पताल भी है और इस भाव से ही मौत का अन्दाज लगाया जाता है.प्रस्तुत कुंडली मे लगनेश सूर्य ने अपनी अष्टम द्रिष्टि से शनि वक्री और केतु को देखा है तथा सप्तमेश ने भी पंचमेश और अष्टमेश गुरु को जो नीच के है और छठे भाव मे है को अष्टम से देखा है,मंगल जो वक्री है ने नवे भाव से लगनेश को अष्टम से देखा है। यह एक स्त्री की कुंडली है। जातिका की शादी एक डाक्टर से हुयी है,पति का कारक शनि वक्री है और केतु के साथ है,मार्गी शनि होने पर व्यवहारिक कार्य शरीर की मेहनत से किये जाते है,वक्री होने पर जो भी काम किये जाते है वह बुद्धि से किये जाते है और और केतु के साथ होने से बुद्धि से जो भी सहायक होते है उनसे कार्य के अलावा अन्य रिस्ते भी बनाने के कारण भी देखे जाते है। शनि केतु के द्वारा अष्टम से गुरु नीच को देखे जाने तथा गुरु नीच का छठे भाव मे होने से जो कर्जा दुश्मनी बीमारी आदि के कार्य होते है के लिये कार्य करना माना जाता है,जातिका पति जो शनि के रूप मे है अपनी निगाह मे डाक्टरी काम करने और पंचम का स्वामी होने से दिल फ़ेंक व्यक्ति की हैसियत भी रखता है उसके लिये सामाजिक रिस्ते बनाना और बनाकर चलना एक अजीब बात ही मानी जाती है.जातिका के पंचम भाव से जातिका की सन्तान के लिये भी देखा जा सकता है शुक्र राहु और चन्द्र शनि केतु से युति लेकर एक पुत्र और एक पुत्री को प्रदान कर रहे है और जातिका शनि का लगनेश शनि केतु को अष्टम द्रिष्टि से देखे जाने से जैसे ही जातिका का पति अलावा रिस्ते बनाने के लिये अपनी नजर शुरु करता है जातिका इन्ही शनि केतु को एक वकील की हैसियत से वकीलो का सहारा लेकर अपनी वैवाहिक जिन्दगी को बचाने की कोशिश करती है.पति जो डाक्टर है वह अपने शनिकेतु वाले दिमाग को प्रयोग करने के बाद जो भी सहायक काम करने वाली नर्से आदि होती है उनसे रिस्ते बनाकर शादी आदि की बात शुरु कर देता है। शनि वक्री हो और बुध भी वक्री हो तथा केतु के साथ हो तो अक्सर यह बात उन लोगो के अन्दर भी देखी जाती है जो लोग पहले तो बहिन का रिस्ता चलाने की कोशिश करते है और जैसे ही उनके चंगुल मे बहिन का रिस्ता आजाता है वह बहिन को पत्नी बनाने की कोशिश मे लग जाते है। यह तब और अधिक होता है जब राहु शुक्र शनि वक्री केतु और शनि वक्री केतु की नजर वक्री बुध पर बनी रहे.गुरु का नीच होना ही इस बात के लिये सूचित करता है कि व्यक्ति रिस्ते के नाम पर एक तो नाजायज फ़ायदा लेने की कोशिश करता है दूसरे जो भी लोगो को कार्य के बाद कार्य फ़ल प्रदान करने की बात होती है उसके लिये भी यह गुरु अपनी हरकत से बाज नही आता है यह गुरु नौकरी के नाम पर महिलाओ को अपने पास रखता है और बाद मे उनसे सम्बन्ध बनाकर अनैतिकता मे भी चला जाता है।