Friday, September 28, 2012

बारह मात्रायें और कुन्डली की बारह भाव

हिन्दी के स्वर मात्राओं के रूप मे जाने जाते है.
अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अ: यह बारह स्वर है.
कुंडली का प्रत्येक भाव इन स्वरों पर और इनकी शक्ति पर आधारित है.
व्यंजन पांच तत्वो का वर्गीकरण करते है.
क च ट त प य यह व्यंजन है.
क अगर क्रूर शक्ति है तो का साधनो सहित शक्ति है,कि अगर स्त्री पुरुष से सम्मिलित है तो की जमीन के नीचे की यानी गूढ प्रभाव को प्रस्तुत करने वाली है,कु अगर विद्या और धन से पूर्ण है तो कू शरीर शक्ति को प्रयोग करने के बाद चलने वाली शक्ति है,के अगर मारक क्षमता रखती है तो कै कई मारक शक्तियों को साथ लेकर चलने वाली शक्ति है,को अगर धर्म और विज्ञान को साथ लेकर चलने वाली है तो कौ कई लोगो के साथ तथा साधनो के साथ मिलकर काम करने वाली शक्ति है,कं लाभ देने वाली और कार्य तथा साधनो के फ़ल से दबी शक्ति है तो क: जो भी शक्ति ने ग्रहण किया है उसे खर्च करने वाली शक्ति है।
ख जल मिश्रित और भावना से पूर्णता को लेकर चलने वाली शक्ति है.
ग भूमि इसे मिश्रित शक्ति है और
घ भूमि और जल से मिश्रित शक्ति है.
ड. उपरोक्त चारो शक्तियों से पूर्ण शक्ति है. (जन्म लेने के बाद बच्चे का स्वर इसी शक्ति से पूर्ण होता है)
च कारक की भाव शक्ति है.
ट कारक की तकनीकी रूप से प्रभाव मे लाकर चलाने वाली शक्ति है
त कारक की भौतिक बल और सम्पूर्णता की शक्ति है.
य अहंकार को समाप्त करने के बाद नये रूप मे जाने की शक्ति है.
बाकी की शक्तियां इन शक्तियों मे अक्षर क के रूप मे ही प्रस्तुत होती है.

Tuesday, September 11, 2012

ज्योतिषीय कहावतें भाग २

गोद मे छोरा गांव में ढिंढोरा
ज्योतिष में माता की गोद को चौथा भाव कहा जाता है गांव का रूप चौथे भाव मे राहु के आजाने से पैदा हो जाता है,एक मे अनेक का प्रभाव देने के लिये राहु अपनी शक्ति को प्रदर्शित करता है। अपने पास रखी हुयी वस्तु या कारक के प्रति भ्रम पैदा हो जाता है तभी पास मे होने पर भी खो जाने का भ्रम पैदा हो जाता है। आंखो की द्शा विचित्र हो जाती है मन की दसा भी इसके लिये जिम्मेदार मानी जाती है. 
मकडजाल
ज्योतिष मे बुध को मकडी की उपाधि से नवाजा जाता है मकडी का काम होता है अपने पेट को भरने के लिये जाल को बुनना और उस जाल के द्वारा जीवो को फ़ंसाकर अपने आहार की पूर्ति करना,जाल जैसे जैसे पुराना होता जाता है उसके तन्तु मजबूत होते जाते है और एक समय ऐसा भी आजाता है कि मकडी अपने जाल मे खुद फ़ंस जाती है और अपने ही बुने जाल मे उलझ कर मर जाती है,अक्सर यह बात बुध प्रदान लोगो के लिये जानी जाती है वे अपने जाल को बनाया करते है और अपने ही जाल मे आखिर मे फ़ंस कर समाप्त हो जाते है बुध को कानून का रूप भी दिया गया है बुध प्रधान लोग अपने ही कानून को बनाकर उसी कानून के शिकंजे में फ़ंस जाते है और कानून का शिकार हो जाते है। मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान के भूत पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय श्री जुल्फ़िकार अली भुट्टो की कुंडली भी बुध से प्रभावित थी,उन्होने अपने ही प्रयास से बहुत से कानून बनाये और अपने ही कानून के अन्दर फ़ांसी पर लटक गये,उसी प्रकार से उनकी पुत्री के लिये भी देखा जाता है उनकी पुत्री स्वर्गीय बेनजीर भुट्टो अपने पिता के बनाये कानून पर चलने के बाद और मंगल राहु की चपेट मे आते ही विस्फ़ोट से समाप्त कर दी गयीं.
छत्तिस का आंकडा
छत्तिस को अंकशास्त्र के अनुसार अजीब संख्या से नवाजा जाता है इस संख्या मे अंक तीन को गुरु का अंक और अंक छ: को शुक्र का अंक कहा जाता है। गुरु का रुख आध्यात्मिक और सम्बन्धो के प्रति होता है जबकि शुक्र का रुख भौतिक और भोगात्मक रूप मे होता है दोनो के बीच का द्वंद होने की स्थिति मे ही इस कहावत का रूप दिया गया है।
निन्यानवे का फ़ेर
संख्या निन्यानवे दो अंको की सबसे बडी संख्या है। इस संख्या मे अगर एक और जोड दिया जाये तो संख्या सौ मे गिनी जाती है। इस संख्या को अगर आपस मे जोडा जाये तो भी अंक नौ बनता है और गुणा किया जाये तो भी इक्यासी की संख्या आने पर जोड नौ ही होता है। नौ और नौ को आपस मे समानता के लिये लिय अजाये तो आजीवन समानता का रूप देखा जाये फ़िर भी समानता का अन्तर नही मिल पाता है और अगर इन्हे जोडा जाता रहे तो भी एक की अनुपस्थिति मिलती है,इसी प्रकार से अगर इस संख्या में एक कारण और जोड दिया जाये तो संख्या पूरी सौ हो जाती है व्यक्ति आजीवन अपने अपने रूप मे काम धन्धे और इसी प्रकार के कारणो मे जूझता रहता है लेकिन सोचा हुआ काम पूरा नही होने के कारण निन्न्यावे के फ़ेर में पडा रहकर अंत मे चला जाता है।
पूत के पांव पालना में
बच्चा पैदा होता है तो उसके बारे मे पता करने के लिये उसके सुख स्थान को देखा जाता है सुख स्थान का भाव चौथा होता है और चौथे भाव से बारहवा भाव तीसरा भाव होता है जैसे ही बच्चा पालने मे सुलाया जाता है और वह अपने पैर पालने से बाहर निकालकर नीचे कूदने की कोशिश करने लगता है तो जान लिया जाता है कि बच्चे का बारहवां भावं उन्नत है और वह जीवन मे आगे बढेगा.
कुत्ते की पूंछ
केतु की उपाधि ज्योतिष से कुत्ते को दी जाती है। कहा जाता है कि कुत्ते की पूंछ को बारह साल तेल मे डालकर सीधा करने की कोशिश की जाती है तो वह फ़िर भी अपने रूप को नही बदलती है और टेढी की टेढी ही रहती है। केतु के लिये कितने ही उपाय किये जाये वह अपनी दी जाने वाली शक्ति को नही बदलता है उसी प्रकार से केतु के अन्तर्गत ससुराल मे जंवाई बहिन के घर भाई और मामा के घर भांजा की उपाधि भी दी जाती है। अगर व्यक्ति अपनी ससुराल मे रहना शुरु कर देता है तो उसे ससुराल के कानून कायदे के अनुसार चलना पडता है जो वह सहन नही कर पाता है और किसी न किसी बात पर कहा सुनी ही होती रहती है,वह अपने वास्तविक जीवन को नही बदलता है और इसी प्रकार की जद्दोजहद मे उसके जीवन का सफ़र पूरा होता रहता है उसी प्रकार से बहिन के घर मे अगर भाई रहना शुरु कर देता है तो वह अपने वास्तविक परिवार और समाज के अनुसार नही चल पाता है साथ ही वह अपनी कोई भी मालिकाना बात बहिन के घर मे नही कर सकता है,यही बात मामा के घर मे रहने वाले और पलने वाले बच्चो के लिये जानी जाती है वह हमेशा अपने को असहाय ही समझा करते है।
 

Thursday, September 6, 2012

ज्योतिषीय कहावतें - भाग एक

प्राचीन काल से ज्योतिषीय कहावते चलती आयी है तब भी उनका वही रूप था जो आज भी है समझदार लोग बजाय किसी कडवी बात को कहने के कहावत से ही काम चला लेते है और कहावते भी ऐसी कि हर कोई समझ भी जाये और बुरा भी नही माने। एक नही हजारो कहावतें समाज मे प्रचिलित है,एक भाषा मे नही है हिन्दी उर्दू फ़ारसी तमिल तेलगू बंगाली अंग्रेजी आदि सभी भाषाओं मे अपने अपने रूप मे यह ज्योतिषीय कहावते कही जाती है और सुनी भी जाती है अर्थ भी लगाया जाता है और कई बार तो एक कहावत कई अर्थ निकालती है,जिसे जैसी समझ होती है वह अपने अनुसार अनुमान लगाता रहता है।
रहिमन पानी राखिये,बिनु पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे मोती मानुष चून ॥
यह कहावत रहीमदास जी ने ज्योतिष के प्रति बखान की है,कुंडली का चौथा भाव पानी का होता है और बिना चौथे भाव की सबलता के जातक की कोई औकात नही होती है। चौथा भाव ही शरीर के पानी की मात्रा से जोडा जाता है और चौथा भाव ही रहने के स्थान और माता मकान आदि से भी जोडा जाता है,इस भाव का स्वामी चन्द्रमा कालपुरुष की कुंडली के अनुसार माना जाता है और इस भाव का स्वामी राशि से जो भी ग्रह होता है वह भी चन्द्रमा के स्वभाव से द्रवित हो जाता है राहु इस भाव मे धर्मी हो जाता है और किसी भी प्रकार की हरकत को नही करता है। शनि का प्रभाव इस भाव में पानी को जमाने जैसा होता है और व्यक्ति की ह्रदय की दशा को फ़्रीज करने के लिये मानसिक भावो को प्रकट नही करने के लिये कहा जाता है,पानी के बिना संसार मे कुछ भी नही है और पानी के जाने से पानी मे प्रकट होने वाला मोती भी नही है और मनुष्य के अन्दर से पानी की मात्रा समाप्त हो जायेगी तो वह भी नही रहेगा चून के दो अर्थ है एक तो आटा जो रोटी के बनाने के काम आता है वह भी नही समेला जायेगा और दूसरा अर्थ चूना से है जो बिना पानी के सूख कर मर जायेगा या आस्तित्वहीन हो जायेगा पानी का ही दूसरा अर्थ इज्जत से अगर व्यक्ति सभ्रांत परिवार मे जन्म लेता है तो उसकी इज्जत सही बनी रहती है और वह अपने कार्य और व्यवहार को सही रखता है इसी प्रकार से अगर वह खराब परिवार मे घर मे जन्म लेता है तो वह अपनी इज्जत आबरू को संभाल कर नही रख पाता है।
कभी घी घणा कभी मुट्ठी भर चना
घी का रूप दूध से बनता है पहले दूध को जमाया जाता है फ़िर दही बनाकर उसे बिलोकर दूध का सार रूप घी को निकाला जाता है.चौथे भाव का रूप दूध से है तो दूध का बदला हुआ रूप नवे भाव से है और नवे भाव का सार घी रूप मे बारहवा भाव है,बारहवा भाव हकीकत मे राहु से जोड कर देखा जाता है और राहु जो अद्रश्य रूप से अपनी शक्ति को रखता है कहने को तो घी तरल पदार्थ है लेकिन वह भोजन मे लेने से शरीर को तन्दुरुस्त बनाता है,चौथे भाव के राहु की नजर पहले तो अष्टम पर भी होती है फ़िर नवी नजर बारहवे भाव पर भी होती है इस भाव का राहु अगर राजी हो गया तो घी ही पैदा करता जाता है और राजी नही है तो वह छठे भाव से कडी मेहनत करवाने के बाद केवल मुट्ठी भर चने खिलाकर ही पेट पालने के लिये अपनी शक्ति को दे पाता है वैसे चना भी शनि के लिये कहा जाता है राहु शनि जब आमने सामने हो जाते है तो दसवे भाव का शनि जातक को कडी मेहनत के बाद भी मेहनत का फ़ल सही नही दे पाता है.
मीन मेख निकालना
कई बार कार्य को करने के बाद कई लोग उस कार्य के अन्दर अपनी अपनी जुगत लगाकर अपनी राय देने के लिये अपनी अपनी योजना को बताते है अगर सभी की राय से उस काम को किया जाता है तो कार्य शुरु भी होता है और बिना किसी फ़ल के समाप्त भी हो जाता है इसे ही मीन मेख निकालने वाली कहावत से जोडा जाता है। इस कहावत को ज्योतिषीय द्रिष्टि से देखा जाये तो मरे हुये को जिन्दा करने के कारको से समझा जा सकता है यानी मीन राशि समाप्ति की राशि है लेकिन मेष राशि जन्म लेने के लिये या शुरु करने के लिये जानी जाती है मेष से शुरु होता है और मीन मे समाप्त हो जाता है। इस बात का अर्थ लोग अपने अपने अनुसार लिया करते है कोई तो किये जाने वाले काम को सही बताता है और कोई उसी काम को बेकार का बताकर समाप्त करने की जुगत को पैदा करने लगता है।
भाग्य विधाता बनना
भाग्य का भाव नवा होता है और भाग्य को बनाने वाला नवे से नवा यानी पंचम होता है. पंचम बुद्धि का कारक है और नवा बुद्धि को उत्तम रूप से बनाने के लिये जाना जाता है जो लोग भाग्य विधाता बनने की कोशिश करते है वे सबसे पहले अपनी बुद्धि को सही रूप से सम्भाल कर चलते है फ़िर जो भी कारक सही रूप मे जातक के लिये पैदा होता है उसे ही जातक को जीवन मे प्रयोग करने के लिये अपनी शिक्षा से प्रेरित करते है एक साधारण आदमी भी अपनी बुद्धि के बल से अपने को आगे बढाता जाता है और एक समर्थ से भी आगे निकल जाता है वही पर जो व्यक्ति समर्थ भी होता है और अपने को किसी प्रकार की बुद्धि से सही रूप से प्रयोग करने के बाद नही चलता है तो वह बनता हुआ काम भी बिगाडने के बाद अपने काम को खराब कर लेता है।
कलम विधाता
कई बार व्यक्ति न्याय आदि के लिये अपनी योग्यता को बनाकर जज जैसे काम करने लगता है वह अपने काम से लोगो के लिये अपनी कलम से भाग्य को लिखने का काम करने लगता है,जब व्यक्ति का बुरा समय आता है तो ग्रह उसे इन्सानी न्याय करने वाले के पास ले जाते है और वह इन्सानी न्याय करने वाला अपने कानून की बदौलत उसे फ़ांसी भी दे सकता है और कभी कभी जो व्यक्ति धर्म और मर्यादा से चला करता है तो उस कलम विधाता की कलम से बना न्याय भी वकील की प्रक्रिया से दूर होकर बाइज्जत बरी हो जाता है।
नौ दिन चले अढाई कोस
शनि की चाल मन्दी कही जाती है वह नौ दिन के अन्दर ढाई अंश की दूरी तय कर पाता है वह मार्गी है तो भी और वक्री है तो भी उल्टा सीधा कैसा भी चलने पर वह केवल ढाई अंश की दूरी को ही तय कर पाता है.पुराने जमाने की ज्योतिष से एक कोश का एक अंश माना जाता है यानी दो मील या तीन किलोमीटर.
दूज का चांद
अमावस्या के बाद का दूसरा दिन दूज का कहलाता है और उस दिन चांद पश्चिम दिशा मे कुछ समय के लिये ही सूर्यास्त के बाद द्रश्य होता है कम दिखाई देने के कारण लोगो के लिये वह द्रश्य करना उत्तम फ़ल देने वाला माना जाता है कई बार तो लोग उन लोगो के लिये भी यह कहावत कहना शुरु कर देते है जो लोग कम दिखाई देते है और उनके लिये कहा जाने लगता है -"अरे भाई ! आजकल तो दूज का चांद हो रहे हो।
चौदहवीं का चांद
पूर्णिमा से पहले दिन चतुर्दशी कहलाती है अमावस्या के एक पहले भी चतुर्दशी होती है एक शुक्ल पक्ष की होती है और एक कृष्ण पक्ष की होती है,चतुर्दशी का चन्द्रमा जो पूर्णिमा के एक दिन पहले होती के लिये कहा जाता है कि वह बहुत ही सुन्दर होता है और स्त्री अथवा बच्चे के मुख जैसा दिखाई देता है,उसी प्रकार से अमावस्या के एक दिन पहले चन्द्रमा सूर्योदय के समय पूर्व दिशा मे उगता है और अच्छा नही माना जाता है यानी इस चतुर्दशी को पैदा होने वाले जातक के लिये कहा जाता है कि इस दिन जातक जो पुरुष या स्त्री जातक होते है उनके पहले कोई स्त्री संतान का जन्म हुआ होता है और वह कुछ घंटे ही जीवित रहकर चली जाती है लेकिन एक धारणा छोड जाती है कि आने वाला जातक अब पुरुष जातक ही होगा।
चौथ का चन्द्रमा
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की रात का चन्द्रमा देखना बिना किये हुये कार्य का आक्षेप देने वाला होता है अगर कोई भूल से उसे देख लेता है तो वह अपने इस दोष को हटाने के लिये दूसरो के घरो पर पत्थर भी फ़ेंकता है यह चौथ अक्सर पथर चौथ के लिये जानी जाती है और लोग डर की बजह से भी अपने अपने घरो से बाहर नही आते है कि कोई पत्थर उनके कहीं आकर नही लग जाये,कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस चौथ के दिन गाय के खुर मे भरे पानी मे इस चन्द्र्मा का अक्श देख लिया था और उन्हे भी स्यमंतक मणि की चोरी लगी थी।
रात भर पीसना पारे मे बटोरना
दिन के उजाले मे किया जाने वाला काम सुन्दर भी होता है और कार्य करने के समय मे स्फ़ूर्ति भी बनी रहती है लेकिन जो कार्य रात को किया जाता है वह अन्धेरे की बजह से किसी न किसी प्रकार की कमी को छोड जाता है दिखाई नही देने के कारण पुराने जमाने में औरते रात को आटा पीसने की चक्की को चलाया करती थी और उस चक्की से अन्दाज नही लगने के कारण कितना आठा पीसा गया है उसका पता नही चलने के कारण पूरी मेहनत करने के बाद पारे मे यानी कटोरी में पिसा आटा बटोरने के लिये माना जाता था। यह कहावत ज्योतिष के लिये ही कही जाती है कि बिना किसी मुहूर्त के काम शुरु करने का मतलब होता है अन्धेपन मे काम को शुरु करना और जब पूरी मेहनत को करने के बाद भी फ़ल नही मिलता है तो उपरोक्त कहावत ही सामने आती है.

लाल किताब के रहस्य

लाल किताब के लिये ज्योतिष जगत मे कई प्रकार की धारणाये भारतीय ज्योतिष के प्रति समर्पित है। विद्वानो ने अपनी अपनी ज्ञान की सीमा से लाल किताब की धारणाओं को समझा भी है और समझाने का प्रयास भी किया है। लेकिन जो मूल उद्देश्य लाल किताब के है वह अक्सर किसी न किसी प्रकार से सामने आते आते रह जाते है और जिज्ञासा का अंत नही हो पाता है। भारतीय परम्परा और भारतीय परिवेश से आच्छादित लाल किताब के मूल रहस्य बहुत ही विचित्र है यह अपनी धारणा टोटकों के रूप मे प्रस्तुत करते है लेकिन टोटके का मूल रूप समय और परिस्थिति के अनुसार बदल भी जाता है और उसके लिये जो भी पद्धति सुबह से शाम तक के कार्यों के प्रति अपनायी जाती है वह अपने अपने अनुसार बदल भी जाती है जो भारतीय रहन सहन की पद्धति बदलती जा रही है उसी के अनुसार लाल किताब की पद्धति भी बदलती जा रही है पीछे की पद्धति से कार्य करना और पीछे की पद्धति के अनुसार ही टोटकों आदि पर निर्भर रहना आज की पीढी के वश की बात नही है और इसी कारण से लोग इसे दकियानूसी और पाखंड आदि के कारणो से भी जोडने लगे है। पुराने जमाने मे किसी प्रकार से भी व्यक्ति इतना समर्थ नही होता था कि वह अपने बच्चे की जन्म कुंडली को सही रूप मे बनवा ले,जन्म कुंडली बनवाना केवल उन्ही लोगो के वश की बात थी जिनके पास उस समय के साधन और तरीके हुआ करते थे जन्म कुंडली बनवाने के लिये जिन ब्राह्मणो को यह कार्य दिया जाता है वह एक जन्म कुंडली को बनवाने मे जो मेहनत खर्च किया करते थे वह आज के जमाने मे बनायी जाने वाली कुंडली से हजारो गुना महंगी होती थी और जब सटीकता का अभाव परिवेश और जलवायु के अनुसार बदल जाता था जो लोग गणित मे अपनी कार्य प्रणाली को अपने ही रूप मे गलत धारणा बनाकर देखा करते थे।

लाल किताब का मूल उद्देश्य हाथ की रेखाओ और परिवार के सदस्यों की संख्या से सम्बन्धो से और रहन सहन के तरीके से देखी जाने का रिवाज था इसके लिये जन्म समय और जन्म विवरण की जरूरत नही पडती थी इसी कारण से लाल किताब का प्रचार बहुत बडे रूप मे हुआ था और चालाक लोगो ने इसे कई प्रकार से तोड मोड कर अपने अनुसार वर्णित करने तथा कई प्रकार के कारणो से डरा कर लोगो से धन ऐंठने का साधन भी बना लिया था और आज भी इसी के नाम से कई प्रकार के कार्य और कथन आदि प्रसारित करने के बाद वे साधारण लोगों को अपनी कथनी को कपट पूर्ण भाषा से भरकर केवल धन कमाने का जरिया ही मानने लगे है। जब लोगों को कोई और साधन नही मिला तो वे आज के संचार के युग मे अपनी योग्यता को जाहिर करने के लिये भले लोगों के द्वारा लिखे सिद्धान्तो को कापी करने के बाद अपनी अपनी साइट आदि बनाकर ब्लाग लिखकर अपने प्रसार को करने लगे है। लेकिन यह भी सत्य है कि नकल को भी अकल चाहिये और जब वक्त आता है तो वे जनमानस के द्वारा अपमानित होकर गायब भी हो जाते है। लाल किताब के लिये हाथ की रेखाओ को बहुत बडे रूप से समझाकर लिखने का रिवाज था कोई भी व्यक्ति अपनी उम्र के किसी भी भाग मे अपनी हाथ की छाप से पारिवारिक स्थिति को बताकर अपनी जन्म कुंडली को बनवा लेता था और जो भी उपाय उसके लिये बताये जाते थे वे सभी समय समय पर करने के बाद अपने जीवन को उन्नत तरीके से निकालने के लिये आगे बढते रहते थे।

हाथ की रेखाओ हाथ की बनावट और हाथ मे विभिन्न स्थानो पर विभिन्न चिन्हो के द्वारा जीवन का वर्णन किया जाता था। हाथ की बीच की रेखाओं को गौढ रूप दिया जाता था और वही रूप जीवन के प्रथम भाग के लिये तथा बन्द मुट्ठी की रेखाओं से समझा जाता था,बन्द मुट्ठी का मुख्य कथन जातक के लिये माना जाता था कि वह जब पैदा हुआ है तो अपने साथ जो भाग्य लेकर पैदा हुआ है और जीवन वही भाग्य उसके लिये कहां कहां पर अपनी कसौटी पर खरा उतरेगा इसकी जानकारी बताने मे लाल किताबी अपनी योग्यता और समझ को प्रसारित करता था। हाथ की रेखाओं के अलावा जातक की बनावट जातक के रंग रूप और जातक के परिवार से भी जोड कर आगे के जीवन को बताया जाता था। जातक के परिवार मे जातक के लिये गुरु की संज्ञा दी जाती थी और सूर्य को पिता का रूप तथा चन्द्रमा को माता का रूप देकर नवाजा जाता था लेकिन सूर्य चन्द्रमा गुरु आदि को अलग अलग भावो के अनुसार अलग अलग प्रकार भी दिया जाता था मंगल को भाई की उपाधि से नवाजा जाता था और बुध को बहिन बुआ बेटी के रूप मे देखा जाता था शुक्र को पत्नी और स्त्री की कुंडली मे शुक्र को ही पति के रूप मे देखा जाता था शनि को घर के बुजुर्गो के रूप मे राहु को ससुराल के रूप मे और केतु को भान्जे भतीजे मामा साले आदि के रूप मे परखा जाता था।

हाथ की हथेली मे ही गुरु को केन्द्र मानकर जातक के लिये शुक्र पर्वत के नीचे से जाने वाली जीवन रेखा को पिता की रेखा से भी देखा जाता था तथा ह्रदय रेखा को माता के रेखा से भी समझा जाता था साथ ही बुद्धि की रेखा को जातक के प्रति आस्था से देखा जाता था। मंगल के नकारात्मक प्रभाव को बद मंगल से समझा जाता था और मंगल के सकारात्मक रूप से नेक मंगल की कार्य प्रणाली को देखा जाता था। उसी प्रकार से बुध का भी रूप भाव के अनुसार समझा जाता था। लाल किताब मे एक बात और भी देखने को मिलती थी कि जब लाल किताब से जातक की कुंडली बनायी जाती थी तो राशि का महत्व नही दिया जाता था। जातक के जन्म के बाद कभी भी जातक की जन्म कुंडली को बनाकर भूत वर्तमान और भविष्य के प्रति कथन कर दिया जाता था। जैसे जातक की उम्र तीस साल की है तो उस समय जातक के परिवार के सदस्यों की संख्या और उनके अनुसार कुंडली का निर्माण किया जाता था। कुंडली के बारह भाव बनाकर जातक की लगन के अनुसार सभी भावो को भरा जाता था,जैसे जातक से दो बडे भाई है तो जातक से बडे भाइयों की उम्र का पता किया जाता था और उसी उम्र के अनुसार मंगल की स्थिति को और मंगल के बाद सूर्य से और सूर्य के बाद शुक्र की स्थिति को रखा जाता था। यह नियम जिस प्रकार से होरा का नियम होता है कि सूर्य के बाद का होरा शुक्र का ही आयेगा तो वही कारक लाल किताब मे भाई बहिनो के लिये देखा जाता था। जातक के छोटे भाई बहिनो के लिये भी उनकी उम्र के अनुसा भावो की संख्या की गिनती की जाती थी जैसे जातक से तीन साल छोटी बहिन है तो सूर्य से तीन खाने छोड कर चन्द्रमा को स्थापित किया जाता था अगर दो साल का अन्तर होता था तो बुध को सूर्य से आगे के खाने मे स्थापित किया जाता था। छोटे और बडे भाई बहिन के लिये एक बात और भी ध्यान मे रखी जाती थी कि छोटे और बडे भाई बहिन के कारक ग्रह से जन्म के वर्षों के अन्तराल को सूर्य से पक्ष के लिये चन्द्रमा से और दिन के लिये तिथि से गणना की जाती थी,अस्त तिथि मे भाई बहिन के जीवन के लिये संकट या नही होने की बात भी देखी जाती थी।

माता पिता की उम्र के लिये माता पिता के स्थान से या माता पिता के कारक ग्रहों से छठे स्थान का राहु महत्वपूर्ण माना जाता था और अरिष्ट के लिये राहु के अनुसार ही बखान किया जाता था। भाग्य और सम्बन्ध के लिये गुरु की गणना ही की जाती थी और बुद्धि के लिये तथा शिक्षा के लिये राहु और बुध का योग देखा जाता था जातक का बुध जितना राहु के निकट हुआ करता था जातक को उतनी ही बुद्धि से परे माना जाता था तथा बुध जितना केतु के सम्पर्क मे होता था उतना ही जातक को क्रिया से दूर होना माना जाता था। सूर्य और राहु की निकटता को जातक के प्रति परिवार मे व्याप्त व्यभिचार से देखा जाता था साथ ही राहु और गुरु को साथ देखने पर जातक के लिये धर्म मे पाखंड के प्रति आकर्षित माना जाता था। शुक्र के सप्तम मे आने से विवाह आदि की उम्र का ध्यान रखा जाता था और उम्र की गिनती के लिये गुरु और राहु की दूरी तथा आने वाले वर्षों मे राहु का मृत्यु वाले स्थानो से गोचर करना भी देखा जाता था। मूक प्रश्न के लिये लालकिताबी ज्ञान वाले लोग अपने आसपास के माहौल और कारको के द्वारा भी अपनी धारणा को व्यक्त करते थे जैसे जातक के प्रश्न करने के समय लाल किताबी अपने आसपास के माहौल को देखता था अगर लाल किताबी पूर्व की तरफ़ अपना मुंह करके बैठा है और उसके दाहिनी तरफ़ कोई स्त्री साध्वा या विधवा है तो उसके अनुसार वह दसवे भाव मे शुक्र को गुरु या राहु से द्रश्य दिखा कर प्रश्न कुंडली का निर्माण कर लेता था यही नही सूर्य को भी देखा जाता था और चन्द्रमा को भी तिथि के अनुसार स्थापित कर दिया जाता था। बाकी ग्रहो की स्थिति को भी कारको से और समय से स्थापित कर दिया जाता था।

इस प्रकार से लाल किताब के रहस्य को समझने के लिये लाल किताबी को पहले अपने आसपास के परिवार के और रिस्तेदारी सम्बन्धित ग्रहो की जानकारी के बाद ही कारक और कारकत्व का बखान करना होता था इस प्रकार की जानकारी ही अद्भुत रहस्यों की तरफ़ लाल किताब की मीमांसा को जाहिर करते थे।