लाल किताब के लिये ज्योतिष जगत मे कई प्रकार की धारणाये भारतीय ज्योतिष के प्रति समर्पित है। विद्वानो ने अपनी अपनी ज्ञान की सीमा से लाल किताब की धारणाओं को समझा भी है और समझाने का प्रयास भी किया है। लेकिन जो मूल उद्देश्य लाल किताब के है वह अक्सर किसी न किसी प्रकार से सामने आते आते रह जाते है और जिज्ञासा का अंत नही हो पाता है। भारतीय परम्परा और भारतीय परिवेश से आच्छादित लाल किताब के मूल रहस्य बहुत ही विचित्र है यह अपनी धारणा टोटकों के रूप मे प्रस्तुत करते है लेकिन टोटके का मूल रूप समय और परिस्थिति के अनुसार बदल भी जाता है और उसके लिये जो भी पद्धति सुबह से शाम तक के कार्यों के प्रति अपनायी जाती है वह अपने अपने अनुसार बदल भी जाती है जो भारतीय रहन सहन की पद्धति बदलती जा रही है उसी के अनुसार लाल किताब की पद्धति भी बदलती जा रही है पीछे की पद्धति से कार्य करना और पीछे की पद्धति के अनुसार ही टोटकों आदि पर निर्भर रहना आज की पीढी के वश की बात नही है और इसी कारण से लोग इसे दकियानूसी और पाखंड आदि के कारणो से भी जोडने लगे है। पुराने जमाने मे किसी प्रकार से भी व्यक्ति इतना समर्थ नही होता था कि वह अपने बच्चे की जन्म कुंडली को सही रूप मे बनवा ले,जन्म कुंडली बनवाना केवल उन्ही लोगो के वश की बात थी जिनके पास उस समय के साधन और तरीके हुआ करते थे जन्म कुंडली बनवाने के लिये जिन ब्राह्मणो को यह कार्य दिया जाता है वह एक जन्म कुंडली को बनवाने मे जो मेहनत खर्च किया करते थे वह आज के जमाने मे बनायी जाने वाली कुंडली से हजारो गुना महंगी होती थी और जब सटीकता का अभाव परिवेश और जलवायु के अनुसार बदल जाता था जो लोग गणित मे अपनी कार्य प्रणाली को अपने ही रूप मे गलत धारणा बनाकर देखा करते थे।
लाल किताब का मूल उद्देश्य हाथ की रेखाओ और परिवार के सदस्यों की संख्या से सम्बन्धो से और रहन सहन के तरीके से देखी जाने का रिवाज था इसके लिये जन्म समय और जन्म विवरण की जरूरत नही पडती थी इसी कारण से लाल किताब का प्रचार बहुत बडे रूप मे हुआ था और चालाक लोगो ने इसे कई प्रकार से तोड मोड कर अपने अनुसार वर्णित करने तथा कई प्रकार के कारणो से डरा कर लोगो से धन ऐंठने का साधन भी बना लिया था और आज भी इसी के नाम से कई प्रकार के कार्य और कथन आदि प्रसारित करने के बाद वे साधारण लोगों को अपनी कथनी को कपट पूर्ण भाषा से भरकर केवल धन कमाने का जरिया ही मानने लगे है। जब लोगों को कोई और साधन नही मिला तो वे आज के संचार के युग मे अपनी योग्यता को जाहिर करने के लिये भले लोगों के द्वारा लिखे सिद्धान्तो को कापी करने के बाद अपनी अपनी साइट आदि बनाकर ब्लाग लिखकर अपने प्रसार को करने लगे है। लेकिन यह भी सत्य है कि नकल को भी अकल चाहिये और जब वक्त आता है तो वे जनमानस के द्वारा अपमानित होकर गायब भी हो जाते है। लाल किताब के लिये हाथ की रेखाओ को बहुत बडे रूप से समझाकर लिखने का रिवाज था कोई भी व्यक्ति अपनी उम्र के किसी भी भाग मे अपनी हाथ की छाप से पारिवारिक स्थिति को बताकर अपनी जन्म कुंडली को बनवा लेता था और जो भी उपाय उसके लिये बताये जाते थे वे सभी समय समय पर करने के बाद अपने जीवन को उन्नत तरीके से निकालने के लिये आगे बढते रहते थे।
हाथ की रेखाओ हाथ की बनावट और हाथ मे विभिन्न स्थानो पर विभिन्न चिन्हो के द्वारा जीवन का वर्णन किया जाता था। हाथ की बीच की रेखाओं को गौढ रूप दिया जाता था और वही रूप जीवन के प्रथम भाग के लिये तथा बन्द मुट्ठी की रेखाओं से समझा जाता था,बन्द मुट्ठी का मुख्य कथन जातक के लिये माना जाता था कि वह जब पैदा हुआ है तो अपने साथ जो भाग्य लेकर पैदा हुआ है और जीवन वही भाग्य उसके लिये कहां कहां पर अपनी कसौटी पर खरा उतरेगा इसकी जानकारी बताने मे लाल किताबी अपनी योग्यता और समझ को प्रसारित करता था। हाथ की रेखाओं के अलावा जातक की बनावट जातक के रंग रूप और जातक के परिवार से भी जोड कर आगे के जीवन को बताया जाता था। जातक के परिवार मे जातक के लिये गुरु की संज्ञा दी जाती थी और सूर्य को पिता का रूप तथा चन्द्रमा को माता का रूप देकर नवाजा जाता था लेकिन सूर्य चन्द्रमा गुरु आदि को अलग अलग भावो के अनुसार अलग अलग प्रकार भी दिया जाता था मंगल को भाई की उपाधि से नवाजा जाता था और बुध को बहिन बुआ बेटी के रूप मे देखा जाता था शुक्र को पत्नी और स्त्री की कुंडली मे शुक्र को ही पति के रूप मे देखा जाता था शनि को घर के बुजुर्गो के रूप मे राहु को ससुराल के रूप मे और केतु को भान्जे भतीजे मामा साले आदि के रूप मे परखा जाता था।
हाथ की हथेली मे ही गुरु को केन्द्र मानकर जातक के लिये शुक्र पर्वत के नीचे से जाने वाली जीवन रेखा को पिता की रेखा से भी देखा जाता था तथा ह्रदय रेखा को माता के रेखा से भी समझा जाता था साथ ही बुद्धि की रेखा को जातक के प्रति आस्था से देखा जाता था। मंगल के नकारात्मक प्रभाव को बद मंगल से समझा जाता था और मंगल के सकारात्मक रूप से नेक मंगल की कार्य प्रणाली को देखा जाता था। उसी प्रकार से बुध का भी रूप भाव के अनुसार समझा जाता था। लाल किताब मे एक बात और भी देखने को मिलती थी कि जब लाल किताब से जातक की कुंडली बनायी जाती थी तो राशि का महत्व नही दिया जाता था। जातक के जन्म के बाद कभी भी जातक की जन्म कुंडली को बनाकर भूत वर्तमान और भविष्य के प्रति कथन कर दिया जाता था। जैसे जातक की उम्र तीस साल की है तो उस समय जातक के परिवार के सदस्यों की संख्या और उनके अनुसार कुंडली का निर्माण किया जाता था। कुंडली के बारह भाव बनाकर जातक की लगन के अनुसार सभी भावो को भरा जाता था,जैसे जातक से दो बडे भाई है तो जातक से बडे भाइयों की उम्र का पता किया जाता था और उसी उम्र के अनुसार मंगल की स्थिति को और मंगल के बाद सूर्य से और सूर्य के बाद शुक्र की स्थिति को रखा जाता था। यह नियम जिस प्रकार से होरा का नियम होता है कि सूर्य के बाद का होरा शुक्र का ही आयेगा तो वही कारक लाल किताब मे भाई बहिनो के लिये देखा जाता था। जातक के छोटे भाई बहिनो के लिये भी उनकी उम्र के अनुसा भावो की संख्या की गिनती की जाती थी जैसे जातक से तीन साल छोटी बहिन है तो सूर्य से तीन खाने छोड कर चन्द्रमा को स्थापित किया जाता था अगर दो साल का अन्तर होता था तो बुध को सूर्य से आगे के खाने मे स्थापित किया जाता था। छोटे और बडे भाई बहिन के लिये एक बात और भी ध्यान मे रखी जाती थी कि छोटे और बडे भाई बहिन के कारक ग्रह से जन्म के वर्षों के अन्तराल को सूर्य से पक्ष के लिये चन्द्रमा से और दिन के लिये तिथि से गणना की जाती थी,अस्त तिथि मे भाई बहिन के जीवन के लिये संकट या नही होने की बात भी देखी जाती थी।
माता पिता की उम्र के लिये माता पिता के स्थान से या माता पिता के कारक ग्रहों से छठे स्थान का राहु महत्वपूर्ण माना जाता था और अरिष्ट के लिये राहु के अनुसार ही बखान किया जाता था। भाग्य और सम्बन्ध के लिये गुरु की गणना ही की जाती थी और बुद्धि के लिये तथा शिक्षा के लिये राहु और बुध का योग देखा जाता था जातक का बुध जितना राहु के निकट हुआ करता था जातक को उतनी ही बुद्धि से परे माना जाता था तथा बुध जितना केतु के सम्पर्क मे होता था उतना ही जातक को क्रिया से दूर होना माना जाता था। सूर्य और राहु की निकटता को जातक के प्रति परिवार मे व्याप्त व्यभिचार से देखा जाता था साथ ही राहु और गुरु को साथ देखने पर जातक के लिये धर्म मे पाखंड के प्रति आकर्षित माना जाता था। शुक्र के सप्तम मे आने से विवाह आदि की उम्र का ध्यान रखा जाता था और उम्र की गिनती के लिये गुरु और राहु की दूरी तथा आने वाले वर्षों मे राहु का मृत्यु वाले स्थानो से गोचर करना भी देखा जाता था। मूक प्रश्न के लिये लालकिताबी ज्ञान वाले लोग अपने आसपास के माहौल और कारको के द्वारा भी अपनी धारणा को व्यक्त करते थे जैसे जातक के प्रश्न करने के समय लाल किताबी अपने आसपास के माहौल को देखता था अगर लाल किताबी पूर्व की तरफ़ अपना मुंह करके बैठा है और उसके दाहिनी तरफ़ कोई स्त्री साध्वा या विधवा है तो उसके अनुसार वह दसवे भाव मे शुक्र को गुरु या राहु से द्रश्य दिखा कर प्रश्न कुंडली का निर्माण कर लेता था यही नही सूर्य को भी देखा जाता था और चन्द्रमा को भी तिथि के अनुसार स्थापित कर दिया जाता था। बाकी ग्रहो की स्थिति को भी कारको से और समय से स्थापित कर दिया जाता था।
इस प्रकार से लाल किताब के रहस्य को समझने के लिये लाल किताबी को पहले अपने आसपास के परिवार के और रिस्तेदारी सम्बन्धित ग्रहो की जानकारी के बाद ही कारक और कारकत्व का बखान करना होता था इस प्रकार की जानकारी ही अद्भुत रहस्यों की तरफ़ लाल किताब की मीमांसा को जाहिर करते थे।
लाल किताब का मूल उद्देश्य हाथ की रेखाओ और परिवार के सदस्यों की संख्या से सम्बन्धो से और रहन सहन के तरीके से देखी जाने का रिवाज था इसके लिये जन्म समय और जन्म विवरण की जरूरत नही पडती थी इसी कारण से लाल किताब का प्रचार बहुत बडे रूप मे हुआ था और चालाक लोगो ने इसे कई प्रकार से तोड मोड कर अपने अनुसार वर्णित करने तथा कई प्रकार के कारणो से डरा कर लोगो से धन ऐंठने का साधन भी बना लिया था और आज भी इसी के नाम से कई प्रकार के कार्य और कथन आदि प्रसारित करने के बाद वे साधारण लोगों को अपनी कथनी को कपट पूर्ण भाषा से भरकर केवल धन कमाने का जरिया ही मानने लगे है। जब लोगों को कोई और साधन नही मिला तो वे आज के संचार के युग मे अपनी योग्यता को जाहिर करने के लिये भले लोगों के द्वारा लिखे सिद्धान्तो को कापी करने के बाद अपनी अपनी साइट आदि बनाकर ब्लाग लिखकर अपने प्रसार को करने लगे है। लेकिन यह भी सत्य है कि नकल को भी अकल चाहिये और जब वक्त आता है तो वे जनमानस के द्वारा अपमानित होकर गायब भी हो जाते है। लाल किताब के लिये हाथ की रेखाओ को बहुत बडे रूप से समझाकर लिखने का रिवाज था कोई भी व्यक्ति अपनी उम्र के किसी भी भाग मे अपनी हाथ की छाप से पारिवारिक स्थिति को बताकर अपनी जन्म कुंडली को बनवा लेता था और जो भी उपाय उसके लिये बताये जाते थे वे सभी समय समय पर करने के बाद अपने जीवन को उन्नत तरीके से निकालने के लिये आगे बढते रहते थे।
हाथ की रेखाओ हाथ की बनावट और हाथ मे विभिन्न स्थानो पर विभिन्न चिन्हो के द्वारा जीवन का वर्णन किया जाता था। हाथ की बीच की रेखाओं को गौढ रूप दिया जाता था और वही रूप जीवन के प्रथम भाग के लिये तथा बन्द मुट्ठी की रेखाओं से समझा जाता था,बन्द मुट्ठी का मुख्य कथन जातक के लिये माना जाता था कि वह जब पैदा हुआ है तो अपने साथ जो भाग्य लेकर पैदा हुआ है और जीवन वही भाग्य उसके लिये कहां कहां पर अपनी कसौटी पर खरा उतरेगा इसकी जानकारी बताने मे लाल किताबी अपनी योग्यता और समझ को प्रसारित करता था। हाथ की रेखाओं के अलावा जातक की बनावट जातक के रंग रूप और जातक के परिवार से भी जोड कर आगे के जीवन को बताया जाता था। जातक के परिवार मे जातक के लिये गुरु की संज्ञा दी जाती थी और सूर्य को पिता का रूप तथा चन्द्रमा को माता का रूप देकर नवाजा जाता था लेकिन सूर्य चन्द्रमा गुरु आदि को अलग अलग भावो के अनुसार अलग अलग प्रकार भी दिया जाता था मंगल को भाई की उपाधि से नवाजा जाता था और बुध को बहिन बुआ बेटी के रूप मे देखा जाता था शुक्र को पत्नी और स्त्री की कुंडली मे शुक्र को ही पति के रूप मे देखा जाता था शनि को घर के बुजुर्गो के रूप मे राहु को ससुराल के रूप मे और केतु को भान्जे भतीजे मामा साले आदि के रूप मे परखा जाता था।
हाथ की हथेली मे ही गुरु को केन्द्र मानकर जातक के लिये शुक्र पर्वत के नीचे से जाने वाली जीवन रेखा को पिता की रेखा से भी देखा जाता था तथा ह्रदय रेखा को माता के रेखा से भी समझा जाता था साथ ही बुद्धि की रेखा को जातक के प्रति आस्था से देखा जाता था। मंगल के नकारात्मक प्रभाव को बद मंगल से समझा जाता था और मंगल के सकारात्मक रूप से नेक मंगल की कार्य प्रणाली को देखा जाता था। उसी प्रकार से बुध का भी रूप भाव के अनुसार समझा जाता था। लाल किताब मे एक बात और भी देखने को मिलती थी कि जब लाल किताब से जातक की कुंडली बनायी जाती थी तो राशि का महत्व नही दिया जाता था। जातक के जन्म के बाद कभी भी जातक की जन्म कुंडली को बनाकर भूत वर्तमान और भविष्य के प्रति कथन कर दिया जाता था। जैसे जातक की उम्र तीस साल की है तो उस समय जातक के परिवार के सदस्यों की संख्या और उनके अनुसार कुंडली का निर्माण किया जाता था। कुंडली के बारह भाव बनाकर जातक की लगन के अनुसार सभी भावो को भरा जाता था,जैसे जातक से दो बडे भाई है तो जातक से बडे भाइयों की उम्र का पता किया जाता था और उसी उम्र के अनुसार मंगल की स्थिति को और मंगल के बाद सूर्य से और सूर्य के बाद शुक्र की स्थिति को रखा जाता था। यह नियम जिस प्रकार से होरा का नियम होता है कि सूर्य के बाद का होरा शुक्र का ही आयेगा तो वही कारक लाल किताब मे भाई बहिनो के लिये देखा जाता था। जातक के छोटे भाई बहिनो के लिये भी उनकी उम्र के अनुसा भावो की संख्या की गिनती की जाती थी जैसे जातक से तीन साल छोटी बहिन है तो सूर्य से तीन खाने छोड कर चन्द्रमा को स्थापित किया जाता था अगर दो साल का अन्तर होता था तो बुध को सूर्य से आगे के खाने मे स्थापित किया जाता था। छोटे और बडे भाई बहिन के लिये एक बात और भी ध्यान मे रखी जाती थी कि छोटे और बडे भाई बहिन के कारक ग्रह से जन्म के वर्षों के अन्तराल को सूर्य से पक्ष के लिये चन्द्रमा से और दिन के लिये तिथि से गणना की जाती थी,अस्त तिथि मे भाई बहिन के जीवन के लिये संकट या नही होने की बात भी देखी जाती थी।
माता पिता की उम्र के लिये माता पिता के स्थान से या माता पिता के कारक ग्रहों से छठे स्थान का राहु महत्वपूर्ण माना जाता था और अरिष्ट के लिये राहु के अनुसार ही बखान किया जाता था। भाग्य और सम्बन्ध के लिये गुरु की गणना ही की जाती थी और बुद्धि के लिये तथा शिक्षा के लिये राहु और बुध का योग देखा जाता था जातक का बुध जितना राहु के निकट हुआ करता था जातक को उतनी ही बुद्धि से परे माना जाता था तथा बुध जितना केतु के सम्पर्क मे होता था उतना ही जातक को क्रिया से दूर होना माना जाता था। सूर्य और राहु की निकटता को जातक के प्रति परिवार मे व्याप्त व्यभिचार से देखा जाता था साथ ही राहु और गुरु को साथ देखने पर जातक के लिये धर्म मे पाखंड के प्रति आकर्षित माना जाता था। शुक्र के सप्तम मे आने से विवाह आदि की उम्र का ध्यान रखा जाता था और उम्र की गिनती के लिये गुरु और राहु की दूरी तथा आने वाले वर्षों मे राहु का मृत्यु वाले स्थानो से गोचर करना भी देखा जाता था। मूक प्रश्न के लिये लालकिताबी ज्ञान वाले लोग अपने आसपास के माहौल और कारको के द्वारा भी अपनी धारणा को व्यक्त करते थे जैसे जातक के प्रश्न करने के समय लाल किताबी अपने आसपास के माहौल को देखता था अगर लाल किताबी पूर्व की तरफ़ अपना मुंह करके बैठा है और उसके दाहिनी तरफ़ कोई स्त्री साध्वा या विधवा है तो उसके अनुसार वह दसवे भाव मे शुक्र को गुरु या राहु से द्रश्य दिखा कर प्रश्न कुंडली का निर्माण कर लेता था यही नही सूर्य को भी देखा जाता था और चन्द्रमा को भी तिथि के अनुसार स्थापित कर दिया जाता था। बाकी ग्रहो की स्थिति को भी कारको से और समय से स्थापित कर दिया जाता था।
इस प्रकार से लाल किताब के रहस्य को समझने के लिये लाल किताबी को पहले अपने आसपास के परिवार के और रिस्तेदारी सम्बन्धित ग्रहो की जानकारी के बाद ही कारक और कारकत्व का बखान करना होता था इस प्रकार की जानकारी ही अद्भुत रहस्यों की तरफ़ लाल किताब की मीमांसा को जाहिर करते थे।
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