जीव के पैदा होने के बाद से ही अन्तिम गति निर्धारित कर दी जाती है। वह जिस स्थान पर पैदा हुआ होता है उसी स्थान से उसकी मृत्यु वाली दूरी को तय कर दिया जाता है और निश्चित समय पर जीव उसी स्थान पर अपने जीवन के अन्तिम समय मे पहुंचता है तथा पैदा होने के समय मे निर्धारित कारण से उसे अन्तिम गति की प्राप्ति होती है। जीव के कर्म भी समय समय पर निश्चित किये गये होते है वह अपने समय के अनुसार कर्म करता है और पूर्व के संस्कारों से वह अपने मानसिक कारणो को पैदा भी करता है और उन्ही मानसिक कारणो की गति के अनुसार अच्छे या बुरे कर्म करने के बाद उसे उन्ही कर्मो के अनुसार फ़ल मिलता है। मेष राशि का स्वामी मंगल है और इस मंगल का स्थान अष्टम भाव मे केतु के साथ है,राहु भी इस राशि के दूसरे भाव मे अपने आप स्थापित हो जाता है। दसवे भाव मे गुरु का होना और बारहवे भाव मे बुध का होना छठे भाव मे चन्द्रमा का होना बारहवे भाव मे ही सूर्य का होना आदि बाते भी इस जातक के साथ है। जातक का जन्म पिता के साथ पशुओं की खरीद फ़रोख्त के समय मे पिता के निवास स्थान से दक्षिण दिशा मे वीराने मे होता है उसे पैदा होने के बाद केवल माता के दूध के अलावा और कोई भी कारण नही मिल पाते है,माता को पिता के द्वारा खरीदे गये पशु पर सवारी करने के बाद निश्चित दूरी तय करनी होती है। रात के समय मे स्थान मिलने पर विश्राम होता है जो भी भोजन मिलता है किया जाता है,नही मिलता है तो खरीदे गये पशुओं के दूध या उनके मांस से ही जीवन चलता है। जब पिता के पास धन की कमी होती है तो सस्ते महंगे दामो मे रास्ते मे ही पशु को बेच दिया जाता है और रास्ते का खर्चा पूरा किया जाता है। अधिकतर पशुओं को खरीद कर बेचने वाले लोग कसाई वृत्ति की श्रेणी मे गिने जाते है,और जो लोग पशुओं की खरीद बेच करवाने का काम करते है अक्सर उनकी औलाद या तो होती ही नही है और होती भी है तो वह अपने पिता माता को सुख नही देती है। इसी प्रकार से जो लोग पशुओं को स्वयं खरीद कर बेचने का काम करते है उनकी औलाद भी उसी काम को करने लगती है और उनके अन्दर से दया धर्म आदि सब दूर की बाते हो जाती है। वे केवल धन को कमाना जानते है और धन से अपने आसपास के माहौल मे एक प्रकार का परिवर्तन करने के बाद केवल यही चाहते है कि वे सभी पर राज करें,सभी उनकी बातो को माने और जो वे कहे वही बात सबसे अधिक उनके समाज मे मानी जाये,अक्सर इस बात को लेकर ऐसे लोगो के आपसी समाज मे लडाई झगडे भी होते है और वह लडाई झगडे खूनी लडाई से देखे जाते है,बंजारा जीवन जीने के कारण एक दूसरे का समुदाय काफ़ी दूर दूर होता है और जैसे ही खबर पहुंचती है कि अमुक व्यक्ति को अमुक समुदाय के लोगों ने मार दिया है तो वे अपनी बदले की भावना को लेकर हत्या करने वाले समुदाय के प्रति बिना किसी बात के किसी भी व्यक्ति को मारने से नही चूकते है उनके लिये खून का बदला खून से लेने तक ही सीमित होता है।
जातक अपनी माता के साथ अपने घर आजाता है वह भी जन्म के आठवे महिने मे उसके घर वाले उसके लिये जो भी संस्कार होते है करते है और समाज को आमिष भोजन के साथ जीमण आदि करवाया जाता है वक्त के साथ वह बडा होता है जो कार्य पिता के द्वारा किये जाते है उनके प्रति उसे अपने आप ही शिक्षा मिलती है उसे केवल इतना ही पता होता है कि अमुक प्रकार का पशु अमुक काम मे आता है और वह कितना अच्छा काम करता है या कितना उसका मांस के लिये वजन होता है उसी प्रकार से उसकी खरीद बेच की जाती है। जातक इन बातो को सीखता है और अपने जीवन मे माता पिता के साथ साथ धीरे धीरे सीखता है। समय पर शादी विवाह हो जाता है आगे की सन्तति चलने लगती है माता पिता का भी घर से दूर ही देहान्त होता है उनके शरीर की प्राप्ति भी जातक को नही हो पाती है जब तक वह अपने माता पिता के साथ चलने वाले पारिवारिक लोगो के पास पहुंचता है वे अन्य साथियों के द्वारा वीरान स्थान मे दफ़ना दिये गये होते है। केवल माता पिता के छोडे गये पशु ही उसे मिल पाते है वह उन पशुओं को जो साथ चलने वाले लोग होते है उन्हे जैसी भी कीमत मिलती है बेच कर अपने द्वारा चलाये गये समुदाय और पशुओं के बीच आजाता है और वह फ़िर से अपने काम मे लग जाता है।
अपने धन से अपने पिता के मकान आदि को बहुत अच्छी तरह से बनाता है और अपने पिता के नाम को ऊंचा करने के लिये अपनी पूरी मेहनत भी करता है समाज मे अच्छा नाम कमाता है और अपने व्यवसाय मे लगा होता है। दूसरे भाव का राहु अक्सर बिखरे हुये परिवार के बारे मे सूचित करता है लेकिन चौथा शनि हमेशा अपने पैतृक निवास पर ही अपनी साख बनाने के लिये जाना जाता है। बारहवा बुध जब भी वक्री होता है जातक को खरीद बेच का काम करने के लिये अपनी बुद्धि को प्रदान करता है अगर मार्गी है तो जातक पशुओं को खरीदता जाता है और वक्री है तो पशुओं को बेचता जाता है अस्त है तो वह एक स्थान पर काफ़ी समय के लिये रुक जाता है और जिस ग्रह के साथ बुध है उसी के अनुसार प्रकृति के जानवरो के खरीद बेच का काम करने के लिये जातक का दिमाग चलता है। दूसरा राहु अक्सर बहु विवाह या बहु सम्बन्ध बनाने के लिये भी जाना जाता है और जब भी जातक को मौका मिलता है तो दूसरे समुदाय की कन्या को धन और मूल्य आदि का प्रकार देकर प्राप्त कर लिया जाता है। इस प्रकार से जातक कई शादियां करता है सभी को उसी प्रकार से रखता है जैसे एक बकरियों के झुंड मे एक बकरे की हैसियत होती है।
मंगल केतु उम्र की आठवी साल मे घात करता है फ़िर बीस साल मे घात करता है अट्ठाइस साल मे घात करता है चालीस साल मे उसकी अन्तिम घात होती है अगर जातक के कोई सत्कर्म है तो वह बच जाता है अन्यथा चालीस साल की उम्र मे वह किसी न किसी प्रकार से मंगल केतु के हत्थे चढ ही जाता है। मेष राशि के इस मंगल और केतु की दिशा भी दक्षिण की होती है जब भी जातक दक्षिण की यात्रा करता है जातक को किसी न किसी प्रकार की जन हानि से जूझना पडता है। उम्र की आठवी साल मे जातक को सांप ने काटा था देशी दवाओं से बच गया बीसवी साल में उसे जहर दिया गया था लेकिन कुछ समय मे जहर के उपाय करने से वह बच गया था,अट्ठाइस साल मे पहली पत्नी के भाई ने घात से मारने की सोची थी लेकिन समय पर साथियों की सहायता मिलने से बच गया था। चालीसवी साल मे वह पशुओं की खरीद के लिये दक्षिण दिशा मे गया,और अकेला ही एक पहाडी के पार गांव से पशुओं की खरीद करने के लिये चला गया। रास्ते मे लौटते समय उसका पैर फ़िसला और वह लुढकता हुआ काफ़ी गहरी खाई मे चला गया,जहां पर साधारण आदमी की नजर नही जाती थी। उसके साथियों ने काफ़ी खोजा लेकिन नही मिला,एक दिन किसी व्यक्ति ने बताया कि अमुक स्थान पर एक लाश सडी गली अवस्था मे खाई मे पडी है,साथी गये तो दूर से ही देख कर रोने गाने लगे,उस लाश मे लाखों कीडे लगे हुये थे,मांस मे बजर बजर से अन्दर बाहर आजा रहे थे।
इस ग्रह युति से शिक्षा मिलती है कि जातक ने जीवो को जिस प्रकार से काटा था मारा था बेचा था उसी प्रकार से उसकी मौत भी आकस्मिक हुयी,जैसे उसने जीवो का भक्षण किया था और लोगो को करवाया था उसी प्रकार से उसके शरीर को कीडे खा रहे थे। अगर जातक अपने कर्मो को सुधार लेता वह इसी मंगल केतु की युति को वैद्य के रूप में प्रयोग मे लाकर लोगो की जान बचाने और दर्द मे राहत देने का काम करता तो जातक को ससम्मान समाज के आगे अन्तिम क्रिया की जाती और कालान्तर तक उसका नाम लिया जाता उसके जवानी मे मरने के कारण उसके द्वारा प्राप्त की गयी पत्नियां और किसी के आगोस मे नही जाती और बच्चे भी भटकने के लिये मजबूर नही होते।
जातक अपनी माता के साथ अपने घर आजाता है वह भी जन्म के आठवे महिने मे उसके घर वाले उसके लिये जो भी संस्कार होते है करते है और समाज को आमिष भोजन के साथ जीमण आदि करवाया जाता है वक्त के साथ वह बडा होता है जो कार्य पिता के द्वारा किये जाते है उनके प्रति उसे अपने आप ही शिक्षा मिलती है उसे केवल इतना ही पता होता है कि अमुक प्रकार का पशु अमुक काम मे आता है और वह कितना अच्छा काम करता है या कितना उसका मांस के लिये वजन होता है उसी प्रकार से उसकी खरीद बेच की जाती है। जातक इन बातो को सीखता है और अपने जीवन मे माता पिता के साथ साथ धीरे धीरे सीखता है। समय पर शादी विवाह हो जाता है आगे की सन्तति चलने लगती है माता पिता का भी घर से दूर ही देहान्त होता है उनके शरीर की प्राप्ति भी जातक को नही हो पाती है जब तक वह अपने माता पिता के साथ चलने वाले पारिवारिक लोगो के पास पहुंचता है वे अन्य साथियों के द्वारा वीरान स्थान मे दफ़ना दिये गये होते है। केवल माता पिता के छोडे गये पशु ही उसे मिल पाते है वह उन पशुओं को जो साथ चलने वाले लोग होते है उन्हे जैसी भी कीमत मिलती है बेच कर अपने द्वारा चलाये गये समुदाय और पशुओं के बीच आजाता है और वह फ़िर से अपने काम मे लग जाता है।
अपने धन से अपने पिता के मकान आदि को बहुत अच्छी तरह से बनाता है और अपने पिता के नाम को ऊंचा करने के लिये अपनी पूरी मेहनत भी करता है समाज मे अच्छा नाम कमाता है और अपने व्यवसाय मे लगा होता है। दूसरे भाव का राहु अक्सर बिखरे हुये परिवार के बारे मे सूचित करता है लेकिन चौथा शनि हमेशा अपने पैतृक निवास पर ही अपनी साख बनाने के लिये जाना जाता है। बारहवा बुध जब भी वक्री होता है जातक को खरीद बेच का काम करने के लिये अपनी बुद्धि को प्रदान करता है अगर मार्गी है तो जातक पशुओं को खरीदता जाता है और वक्री है तो पशुओं को बेचता जाता है अस्त है तो वह एक स्थान पर काफ़ी समय के लिये रुक जाता है और जिस ग्रह के साथ बुध है उसी के अनुसार प्रकृति के जानवरो के खरीद बेच का काम करने के लिये जातक का दिमाग चलता है। दूसरा राहु अक्सर बहु विवाह या बहु सम्बन्ध बनाने के लिये भी जाना जाता है और जब भी जातक को मौका मिलता है तो दूसरे समुदाय की कन्या को धन और मूल्य आदि का प्रकार देकर प्राप्त कर लिया जाता है। इस प्रकार से जातक कई शादियां करता है सभी को उसी प्रकार से रखता है जैसे एक बकरियों के झुंड मे एक बकरे की हैसियत होती है।
मंगल केतु उम्र की आठवी साल मे घात करता है फ़िर बीस साल मे घात करता है अट्ठाइस साल मे घात करता है चालीस साल मे उसकी अन्तिम घात होती है अगर जातक के कोई सत्कर्म है तो वह बच जाता है अन्यथा चालीस साल की उम्र मे वह किसी न किसी प्रकार से मंगल केतु के हत्थे चढ ही जाता है। मेष राशि के इस मंगल और केतु की दिशा भी दक्षिण की होती है जब भी जातक दक्षिण की यात्रा करता है जातक को किसी न किसी प्रकार की जन हानि से जूझना पडता है। उम्र की आठवी साल मे जातक को सांप ने काटा था देशी दवाओं से बच गया बीसवी साल में उसे जहर दिया गया था लेकिन कुछ समय मे जहर के उपाय करने से वह बच गया था,अट्ठाइस साल मे पहली पत्नी के भाई ने घात से मारने की सोची थी लेकिन समय पर साथियों की सहायता मिलने से बच गया था। चालीसवी साल मे वह पशुओं की खरीद के लिये दक्षिण दिशा मे गया,और अकेला ही एक पहाडी के पार गांव से पशुओं की खरीद करने के लिये चला गया। रास्ते मे लौटते समय उसका पैर फ़िसला और वह लुढकता हुआ काफ़ी गहरी खाई मे चला गया,जहां पर साधारण आदमी की नजर नही जाती थी। उसके साथियों ने काफ़ी खोजा लेकिन नही मिला,एक दिन किसी व्यक्ति ने बताया कि अमुक स्थान पर एक लाश सडी गली अवस्था मे खाई मे पडी है,साथी गये तो दूर से ही देख कर रोने गाने लगे,उस लाश मे लाखों कीडे लगे हुये थे,मांस मे बजर बजर से अन्दर बाहर आजा रहे थे।
इस ग्रह युति से शिक्षा मिलती है कि जातक ने जीवो को जिस प्रकार से काटा था मारा था बेचा था उसी प्रकार से उसकी मौत भी आकस्मिक हुयी,जैसे उसने जीवो का भक्षण किया था और लोगो को करवाया था उसी प्रकार से उसके शरीर को कीडे खा रहे थे। अगर जातक अपने कर्मो को सुधार लेता वह इसी मंगल केतु की युति को वैद्य के रूप में प्रयोग मे लाकर लोगो की जान बचाने और दर्द मे राहत देने का काम करता तो जातक को ससम्मान समाज के आगे अन्तिम क्रिया की जाती और कालान्तर तक उसका नाम लिया जाता उसके जवानी मे मरने के कारण उसके द्वारा प्राप्त की गयी पत्नियां और किसी के आगोस मे नही जाती और बच्चे भी भटकने के लिये मजबूर नही होते।
यदि बुध और सूर्य बारहवें भाव में विराजमान हैं तो शुक्र छटे भाव में कैसे जा सकते हैं,थोडा अटपटा लग रहा है .
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