मकर लगन की कुंडली मे वक्री शनि अगर चौथे भाव मे हो तो जातक की ताकत माता के समान मानी जाती है,जैसा स्वभाव व्यवहार कार्य शक्ति माता की होती है वैसी ही शक्ति जातक को मिलती है। मार्गी शनि और वक्री शनि के व्यवहार के बारे मे मै बहुत पहले से पिछले ब्लागों मे लिखता आया हूँ,मार्गी अगर शरीर श्रम को देता है तो वक्री दिमागी रूप से श्रम करने की ताकत को देता है। चौथे भाव मे किसी भी ग्रह के अन्दर चन्द्रमा की आद्रता जरूर मिलती है इसलिये ही चौथे भाव के मंगल को ठीक नही माना जाता है कारण मंगल इस भाव मे अपनी गर्मी में आद्रता के आने से गर्म भाप बनाने जैसा व्यवहार करने लगता है। इसी प्रकार से शनि के इस भाव मे वक्री रूप से आने पर जातक की तेज बुद्धि मे आद्रता आने से कार्य और दिमाग में जो सोच होती है वह शनि के व्यवहार के कारण फ़्रीज होने लगती है इसी प्रकार से जातक की कुंडली मे चौथे भाव मे वक्री शनि होने से और राहु मंगल की युति अगर आठवे या बारहवे भाव मे है तो जातक को लगातार राहु मंगल से युक्त शक्ति को देना जरूरी हो जाता है इस शक्ति के देते रहने से जातक की बुद्धि जो फ़्रीज हो रही होती है उसे मंगल की गर्मी और राहु की शक्ति से पिघलाया जा सकता है इस प्रकार से जातक को अधिक बुद्धि का प्रयोग करना और बुद्धि के अन्दर लगातार गर्म शक्ति का प्रदान करना काम के योग्य हो जाता है। केतु को खाली स्थान और राहु को भरने वाला माना जाता है अगर शनि वक्री को केतु अपना बल दे रहा है तो इसका मतलब मान लेना चाहिये कि जातक को हर काम के अन्दर साधन को प्रयोग करने की आदत होनी चाहिये,साधन के बिना उसे काम करने की आदत नही होती है। जैसे मान लिया जाये कि बिना चम्मच के हाथ से भी खाना खाया जाता है लेकिन इस प्रकार के जातक को अगर चम्मच नही है तो हाथ से खाना खाने मे दिक्कत का सामना करना पडेगा। अगर इस केतु के साथ वक्री गुरु भी है तो जातक के लिये खुद के द्वारा किसी भी बात को याद रखने के लिये भी केतु रूपी सहायता की जरूरत पडेगी,जैसे उसे कोई सवाल करना है तो उसे केलकुलेटर के बिना उसे सवाल करना नही आयेगा,साथ ही इस केतु के धन स्थान मे होने से जातक को लेखा सम्बन्धी काम करने का मानस तो बनेगा लेकिन बिना किसी की सहायता से वह कार्य नही कर पायेगा। यही आदत माता के अन्दर भी मानी जायेगी कारण माता का स्वभाव वक्री शनि के अनुसार ही होगा अगर माता को अष्टम मंगल की राहु के साथ की शक्ति नही प्रदान की जाये तो वह भी इस केतु और गुरु वक्री की खाली जगह को भरने की जरूरत को हमेशा ही महसूस करती रहेगी,माता के अन्दर अष्टम स्थान के कारको को हमेशा प्रयोग मे लाते रहने से ही उसकी छवि बनी रहेगी और वह अष्टम के कारक जैसे तंत्र मंत्र दवाइयां तांत्रिक साधन मंत्र साधना गूढ ग्यान जैसे ज्योतिष और परा विज्ञान आदि की जानकारी के बिना अपने इस वक्री शनि की बुद्धि को नही पिघला पायेगी और जब वह एक बार किसी भी उपरोक्त क्रियाओं मे शुरु हो जायेगी तो वह लगातार अपने को मिलने वाली शक्तियों मे बढाती जायेगी,यह बात माता की उम्र की अट्ठाइसवी साल से शुरु होगी और उम्र के आखिरी पडाव तक जारी रहेगी।
गुरु के वक्री होने और केतु के साथ होने से जातक का दिमागी प्रभाव किसी भी रिस्ते को केवल कार्य पूरा होने तक ही माना जा सकता है,जैसे ही कार्य पूरा होता है वह अपने रिस्ते को दूर कर दूसरे कामो की पूर्ति के लिये नया साधन खोजने की तैयारी मे शुरु हो जाता है और उसे यह भी ध्यान नही रहता है कि सहायता करने वाले पिछले लोग भी उससे अपनी मानसिक और कार्य रूपी शैली को जोड कर रखना चाहते है तथा जो व्यवहार के रूप मे उन लोगो ने जातक के साथ किया है उसका बदला किसी भी रूप मे लेना चाहते है,इन्ही कारणो से जातक से लोग व्यवहारिक रूप से खुश नही रहते है,जातक के अन्दर एक प्रकार वह सभ्यता जो उसके माता पिता और परिवार के रूप मे मिलती है वह उन सभी कारणो को जो मर्यादा के लिये माने जाते है केवल कार्य के पूरे होने या अपने को इच्छित क्षेत्र तक पहुंचने तक के लिये ही माने जाते है जातक किसी अलावा माहौल की क्रिया शैली को बहुत जल्दी अपनाने की शक्ति रखता है उदाहरण के लिये अगर जातक के माता पिता अपने समाज संस्कृति को अपनाने की आदत मे है तो जातक किसी अन्य और समय के अनुसार चलने वाली क्रिया शैली पर अपनी दिमागी शक्ति को प्रयोग मे लायेगा,अगर पिता ने चोटी रखाई है तो जातक अपने को फ़्रेंच कट दाढी रखने मे और पिता ने अगर धोती कुर्ता पहिना है तो जातक पेंट शर्ट मे अपने को आगे रखेगा। विदेशी लोग जो उसकी सभ्यता मर्यादा और संस्कृति को नही जानते है के प्रति जातक का आकर्षण अक्समात ही बनता रहेगा। उसे अपने दोस्तो का भी चुनाव अलग तरह के माहौल से सम्बन्ध रखने वाले लोगो से ही होगा और इस आदत से जातक अपने ही घर मे कभी कभी बेगाना सा लगता रहेगा। वह घर और परिवार मे इस प्रकार की आदतो को जारी रखेगा जिससे अपने ही लोग उसे समझने मे गल्ती करेंगे और जब वह किसी कार्य मे अपने आप जायेगा तो घर के लोग ही उसकी कार्य शैली से मुंह बनाने और गल्तिया खोजने के लिये अपनी व्यवहारिक नीति को जारी रखेंगे।
केतु के साथ वक्री गुरु के होने से वक्री शनि पर असर डालने के कारण जातक जिस देश माहौल मे पैदा होता है उसे त्याग कर दूसरे देश और माहौल मे अपनी पैठ बनाना शुरु कर देता है अक्सर यह भी देखा गया है कि जातक पैदा तो अपने परिवार और देश मे होता है लेकिन एक निश्चित समय जब गुरु या केतु या शनि का समय शुरु होता है तो वह अपने परिवार समाज आदि से दूर जाकर रहने लगता है। इस बात को उसकी बचपन की उम्र से ही पहिचान मिल जाती है कि वह कपडो को खेलने के खिलौनो से पढाई के तरीके से लोगो से बात चीत करने के तरीको से आसानी से पहिचाना जा सकता है। वक्री शनि बुद्धि के कामो मे आगे रखता है और वक्री गुरु याददास्त को बहुत तेज करता है जो एक साधारण व्यक्ति यानी मार्गी गुरु वाला व्यक्ति एक साल मे जिस शिक्षाको प्राप्त करता है वही शिक्षा या जानकारी इस प्रकार का जातक तीन महिने मे ही पूरी कर लेता है,अधिक बुद्धि के प्रयोग करने के कारण और याददास्त को दुरुस्त रखने के कारण जातक के शरीर मे बल की कमी मानी जाती है और वह दिमागी काम को बहुत जल्दी पूरा कर सकता है लेकिन अपने बिस्तर को बिछाने मे उसे आलस आता है। भाई बहिनो पर उसे आदेश जमाने का भी शौक होता है साथ ही उसे उस प्रकार का लगाव नही हो पाता है कि वह अपने भाई बहिनो के लिये आत्मीय रिस्ता को कायम रखे बल्कि वह दोस्ताना व्यवहार ही अपने भाई बहिनो से रख पाता है।
मेष राशि का शनि वक्री दिमागी ताकत को देता है तो मेष राशि से सप्तम मे बुध दूसरे नम्बर की बहिन को भी देता है जो अधिक चतुर होने के बाद अपने व्यवहार मे शनि की वक्री नीति को सामने रखती है। बुध से दसवे भाव का चन्द्रमा जो जातक की माता के रूप मे होता है उसकी पहिचान दांतो से होती है माता के दांत बहुत सुन्दर होते है लेकिन जातक की बहिन के पैदा होने के बाद माता के दांतो मे बीमारी या क्षरण से दिक्कत पैदा हो जाती है,यह बुध रूपी बहिन माता के साथ किसी न किसी प्रकार का विश्वासघात करने के लिये भी मानी जाती है और यही कारण जातक के लिये जब शादी सम्बन्ध वाली बात होती है तो बहिन के व्यवहार के कारण जातक की वैवाहिक जिन्दगी ठीक नही रह पाती है और जिस व्यक्ति से जातक की शादी होती है वह बहिन के छलावे के कारण और बुध की उपस्थिति से तलाक या धोखा देकर दूर चला जाता है। वक्री शनि से सप्तम मे बुध का होना और बुध पर किसी प्रकार से राहु मंगल की छाप पडने से तथा बुध का नवम पंचम योग वक्री गुरु तथा केतु से होने से समाज व्यवहार मर्यादा रीति आदि का उलंघन होना देखा जाता है इस युति मे जातक के लिये बहुत ही भयंकर क्रिया शैली का भी होना देखा गया है कि भाई बहिन भी आपस मे पति पत्नी जैसे रिस्ते को चलाते देखे गये है। इस शैली को रोकने के लिये तथा इस प्रकार के अवैद्य कारण को रोकने के लिये जातक राहु मंगल के उपाय करे या राहु मंगल की कारक वस्तुओं से दूर रहे यह वस्तुये तामसी चीजे नशे को पैदा करने वाली खाद्य वस्तुयें जातक और उसकी बहिन का एकान्त मे अकेले मे रहना तथा किसी होटल या पिकनिक स्थान मे अकेले जाना माता के अस्प्ताली कारण मे एकान्त मे रहना भी कारक का पैदा करना माना जा सकता है इस कारण को जातक से दूर करने के लिये बहिन को नीली गणेश को चांदी के पेंडल मे बनवाकर चांदी की चैन मे गले मे पहिनाये रखना चाहिये जिससे जातक की बहिन और जातक मे कोई अवैद्य रिस्ता नही बन पाये। जातक के लिये एक बात और भी ध्यान मे रखने वाली मानी जाती है कि जातक अपने बेकार के दोस्तो को भी अपने रिहायसी स्थान पर नही लाये या बहिन के साथ किसी मौज मस्ती के स्थान पर दोस्तो के साथ नही जाये।
लगनेश से पंचम मे राहु मंगल के होने से जातक को पेट और पाचन सम्बन्धी शिकायत को भी देखा जाता है,अक्सर गैस का बनना और अफ़ारा सा रहना भी माना जाता है यह कारण आगे चलकर जातक की प्रजनन क्षमता को भी खत्म करने वाला होता है या जैसे ही सन्तान पैदा करने का समय आता है जातक का जीवन साथी कोई न कोई कारण बनाकर जातक से दूर हो जाता है। यही बुध केतु की आपसी युति जातक को अपनी बहिन की सन्तान को गोद लेकर पालने के भी अपनी क्रिया को पूरा करती है। इस युति को रोकने के लिये शादी के समय जातक अपने हाथ से गरीब शिक्षा संस्थान मे लगातार पांच मंगलवार मीठे भोजन को बांटे तो यह युति समाप्त हो सकती है। जातक की माता अपने जीवन मे अगर मंगल यानी धर्म और राहु यानी शक्ति को अपने साथ स्थापित रखेगी तो भी जातक के साथ माता के रहने तक कोई अहित नही हो सकता है।
जातक अपने शिक्षा के समय तक ही पिता का कहना मानने के लिये भी देखा जा सकता है उसका कारण है कि मंगल राहु और केतु वक्री गुरु इन ग्रहो की युति से जातक को मानसिक रूप से भय युक्त भी रखती है और पिता के कार्य या साथ नही देने से तथा एक बार मे एक से अधिक काम करने से माता के द्वारा बहुत ही साधे स्वर मे बात करने से हर जरूरत के लिये जातक के द्वारा एक प्रकार से यह सोचने से कि वह कैसे परिवार मे पैदा हो गया आदि बाते देखी जा सकती है.
गुरु के वक्री होने और केतु के साथ होने से जातक का दिमागी प्रभाव किसी भी रिस्ते को केवल कार्य पूरा होने तक ही माना जा सकता है,जैसे ही कार्य पूरा होता है वह अपने रिस्ते को दूर कर दूसरे कामो की पूर्ति के लिये नया साधन खोजने की तैयारी मे शुरु हो जाता है और उसे यह भी ध्यान नही रहता है कि सहायता करने वाले पिछले लोग भी उससे अपनी मानसिक और कार्य रूपी शैली को जोड कर रखना चाहते है तथा जो व्यवहार के रूप मे उन लोगो ने जातक के साथ किया है उसका बदला किसी भी रूप मे लेना चाहते है,इन्ही कारणो से जातक से लोग व्यवहारिक रूप से खुश नही रहते है,जातक के अन्दर एक प्रकार वह सभ्यता जो उसके माता पिता और परिवार के रूप मे मिलती है वह उन सभी कारणो को जो मर्यादा के लिये माने जाते है केवल कार्य के पूरे होने या अपने को इच्छित क्षेत्र तक पहुंचने तक के लिये ही माने जाते है जातक किसी अलावा माहौल की क्रिया शैली को बहुत जल्दी अपनाने की शक्ति रखता है उदाहरण के लिये अगर जातक के माता पिता अपने समाज संस्कृति को अपनाने की आदत मे है तो जातक किसी अन्य और समय के अनुसार चलने वाली क्रिया शैली पर अपनी दिमागी शक्ति को प्रयोग मे लायेगा,अगर पिता ने चोटी रखाई है तो जातक अपने को फ़्रेंच कट दाढी रखने मे और पिता ने अगर धोती कुर्ता पहिना है तो जातक पेंट शर्ट मे अपने को आगे रखेगा। विदेशी लोग जो उसकी सभ्यता मर्यादा और संस्कृति को नही जानते है के प्रति जातक का आकर्षण अक्समात ही बनता रहेगा। उसे अपने दोस्तो का भी चुनाव अलग तरह के माहौल से सम्बन्ध रखने वाले लोगो से ही होगा और इस आदत से जातक अपने ही घर मे कभी कभी बेगाना सा लगता रहेगा। वह घर और परिवार मे इस प्रकार की आदतो को जारी रखेगा जिससे अपने ही लोग उसे समझने मे गल्ती करेंगे और जब वह किसी कार्य मे अपने आप जायेगा तो घर के लोग ही उसकी कार्य शैली से मुंह बनाने और गल्तिया खोजने के लिये अपनी व्यवहारिक नीति को जारी रखेंगे।
केतु के साथ वक्री गुरु के होने से वक्री शनि पर असर डालने के कारण जातक जिस देश माहौल मे पैदा होता है उसे त्याग कर दूसरे देश और माहौल मे अपनी पैठ बनाना शुरु कर देता है अक्सर यह भी देखा गया है कि जातक पैदा तो अपने परिवार और देश मे होता है लेकिन एक निश्चित समय जब गुरु या केतु या शनि का समय शुरु होता है तो वह अपने परिवार समाज आदि से दूर जाकर रहने लगता है। इस बात को उसकी बचपन की उम्र से ही पहिचान मिल जाती है कि वह कपडो को खेलने के खिलौनो से पढाई के तरीके से लोगो से बात चीत करने के तरीको से आसानी से पहिचाना जा सकता है। वक्री शनि बुद्धि के कामो मे आगे रखता है और वक्री गुरु याददास्त को बहुत तेज करता है जो एक साधारण व्यक्ति यानी मार्गी गुरु वाला व्यक्ति एक साल मे जिस शिक्षाको प्राप्त करता है वही शिक्षा या जानकारी इस प्रकार का जातक तीन महिने मे ही पूरी कर लेता है,अधिक बुद्धि के प्रयोग करने के कारण और याददास्त को दुरुस्त रखने के कारण जातक के शरीर मे बल की कमी मानी जाती है और वह दिमागी काम को बहुत जल्दी पूरा कर सकता है लेकिन अपने बिस्तर को बिछाने मे उसे आलस आता है। भाई बहिनो पर उसे आदेश जमाने का भी शौक होता है साथ ही उसे उस प्रकार का लगाव नही हो पाता है कि वह अपने भाई बहिनो के लिये आत्मीय रिस्ता को कायम रखे बल्कि वह दोस्ताना व्यवहार ही अपने भाई बहिनो से रख पाता है।
मेष राशि का शनि वक्री दिमागी ताकत को देता है तो मेष राशि से सप्तम मे बुध दूसरे नम्बर की बहिन को भी देता है जो अधिक चतुर होने के बाद अपने व्यवहार मे शनि की वक्री नीति को सामने रखती है। बुध से दसवे भाव का चन्द्रमा जो जातक की माता के रूप मे होता है उसकी पहिचान दांतो से होती है माता के दांत बहुत सुन्दर होते है लेकिन जातक की बहिन के पैदा होने के बाद माता के दांतो मे बीमारी या क्षरण से दिक्कत पैदा हो जाती है,यह बुध रूपी बहिन माता के साथ किसी न किसी प्रकार का विश्वासघात करने के लिये भी मानी जाती है और यही कारण जातक के लिये जब शादी सम्बन्ध वाली बात होती है तो बहिन के व्यवहार के कारण जातक की वैवाहिक जिन्दगी ठीक नही रह पाती है और जिस व्यक्ति से जातक की शादी होती है वह बहिन के छलावे के कारण और बुध की उपस्थिति से तलाक या धोखा देकर दूर चला जाता है। वक्री शनि से सप्तम मे बुध का होना और बुध पर किसी प्रकार से राहु मंगल की छाप पडने से तथा बुध का नवम पंचम योग वक्री गुरु तथा केतु से होने से समाज व्यवहार मर्यादा रीति आदि का उलंघन होना देखा जाता है इस युति मे जातक के लिये बहुत ही भयंकर क्रिया शैली का भी होना देखा गया है कि भाई बहिन भी आपस मे पति पत्नी जैसे रिस्ते को चलाते देखे गये है। इस शैली को रोकने के लिये तथा इस प्रकार के अवैद्य कारण को रोकने के लिये जातक राहु मंगल के उपाय करे या राहु मंगल की कारक वस्तुओं से दूर रहे यह वस्तुये तामसी चीजे नशे को पैदा करने वाली खाद्य वस्तुयें जातक और उसकी बहिन का एकान्त मे अकेले मे रहना तथा किसी होटल या पिकनिक स्थान मे अकेले जाना माता के अस्प्ताली कारण मे एकान्त मे रहना भी कारक का पैदा करना माना जा सकता है इस कारण को जातक से दूर करने के लिये बहिन को नीली गणेश को चांदी के पेंडल मे बनवाकर चांदी की चैन मे गले मे पहिनाये रखना चाहिये जिससे जातक की बहिन और जातक मे कोई अवैद्य रिस्ता नही बन पाये। जातक के लिये एक बात और भी ध्यान मे रखने वाली मानी जाती है कि जातक अपने बेकार के दोस्तो को भी अपने रिहायसी स्थान पर नही लाये या बहिन के साथ किसी मौज मस्ती के स्थान पर दोस्तो के साथ नही जाये।
लगनेश से पंचम मे राहु मंगल के होने से जातक को पेट और पाचन सम्बन्धी शिकायत को भी देखा जाता है,अक्सर गैस का बनना और अफ़ारा सा रहना भी माना जाता है यह कारण आगे चलकर जातक की प्रजनन क्षमता को भी खत्म करने वाला होता है या जैसे ही सन्तान पैदा करने का समय आता है जातक का जीवन साथी कोई न कोई कारण बनाकर जातक से दूर हो जाता है। यही बुध केतु की आपसी युति जातक को अपनी बहिन की सन्तान को गोद लेकर पालने के भी अपनी क्रिया को पूरा करती है। इस युति को रोकने के लिये शादी के समय जातक अपने हाथ से गरीब शिक्षा संस्थान मे लगातार पांच मंगलवार मीठे भोजन को बांटे तो यह युति समाप्त हो सकती है। जातक की माता अपने जीवन मे अगर मंगल यानी धर्म और राहु यानी शक्ति को अपने साथ स्थापित रखेगी तो भी जातक के साथ माता के रहने तक कोई अहित नही हो सकता है।
जातक अपने शिक्षा के समय तक ही पिता का कहना मानने के लिये भी देखा जा सकता है उसका कारण है कि मंगल राहु और केतु वक्री गुरु इन ग्रहो की युति से जातक को मानसिक रूप से भय युक्त भी रखती है और पिता के कार्य या साथ नही देने से तथा एक बार मे एक से अधिक काम करने से माता के द्वारा बहुत ही साधे स्वर मे बात करने से हर जरूरत के लिये जातक के द्वारा एक प्रकार से यह सोचने से कि वह कैसे परिवार मे पैदा हो गया आदि बाते देखी जा सकती है.
सुंदर विवेचन गुरूजी .......
ReplyDeleteAmazing Guru ji. AAp se nivedan hai k kripya mere kundli study kijeye... Please aap jo kehte hai sach kehte hai please help me.
ReplyDeleteMine details are.
25.07.1982
8.00 AM
Hoshiarpur
Punjab
प्रवीण जी लगनेश बारहवे भाव मे है,पैदा होने के बाद से ही चौथे दिन मौत का साया सामने आ जाता है लेकिन ग्यारहवे शुक्र राहु और तीसरे गुरु मंगल की युति ज्ञानी डाक्टर की कोशिश से बचा लिया जाता है,जो तथ्य म्रुत्यु के बाद के जीवन के है वह नंगी आंखो से देखने को मिलते रहते है पराविज्ञान की तरफ़ रुचि अपने आप ही पनपती जाती है,पत्नी संस्कारी मिलती है साथ ही पत्नी के पिता और भाई अति आधुनिक कारणो मे चलते हुये माने जाते है कोई न कोई कलाकारी पत्नी परिवार के नाम को हमेशा उज्ज्वल रखती है,खुद के लिये भी व्यवसाय कम्पयूटर तकनीक साज सज्जा और ऊंचे मकानो की रिहायस मन भावन होती है.पेशे से धन व्यापार की तकनीक कानूनी कामो से और ब्रोकर जैसे कामो से बहुत अच्छी मिलती है,ज्योतिष आदि के बारे मे भी उत्तम ज्ञान होता है राख से भी साख निकालकर पूंजी बनाने की कला होती है.अधिक जानकारी के लिये वेब साइट http:www.astrobhadauria.com से प्रश्न भेजे.
ReplyDeleteGuru ji mere carrier ke bare me bataye mujhe aage kya karna chahiye , government job h ya nhi , mujhe kis disha me badhana chahiye ,
ReplyDeleteName- atul
Dob- 22-07-1991
Time - 1:08am
Place- sumerpur (u.p.)