किसी भी कारक की मात्रा को अगर लगातार सीमा से आगे बढाया जाता है तो वह धन की रचना मे आजाता है और किसी भी कारक को अगर ऋण की सीमा में किसी भी मात्रा तक घटाया जाता है तो वह ऋण की मात्रा के अनुसार रचना मे आजाता है। गणित का भी यही नियम है कि धन और धन मिलाकर भी धन होता है और ऋण और ऋण मिलाकर भी धन होता है,लेकिन धन और ऋण मिलाकर ऋण ही रहेंगे चाहे कितनी ही कोशिश कर ली जाये। ज्योतिष मे राहु केतु भी इसी प्रकार से गणना मे आते है। राहु का आकार धनात्मक रहता है या ऋणात्मक ही रहता है वह कभी धनात्मक और ऋणात्मक एक साथ नही होता है। वैसे ऋण की सीमा का कारक केतु है और धन की सीमा का कारक राहु है। यही बात गणित के परिधि और केन्द्र के बारे मे भी देखी जाती है केतु अगर केन्द्र है तो राहु परिधि है,वह किसी भी सीमा तक जायेगा लेकिन केतु के आमने सामने हमेशा ही रहेगा। बिना केतु के राहु का विस्तार नही हो सकता है जैसे बिना अभाव के पूर्ति का होना नही होता है। पूर्ति होगी तो अभाव होगा और अभाव होगा तो पूर्ति भी होगी।
प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और राहु का स्थान ग्यारहवे भाव मे गुरु के साथ है साथ ही केतु का स्थान पंचम भाव मे है। केतु ने चन्द्रमा से युति ली है और गुरु से अपनी आमने सामने की द्रिष्टि रखी है केतु ने लगन को भी देखा है तो केतु का रूप अगर केन्द्र बिन्दु से देखा जाये तो कुंडली का केन्द्र पंचम भाव है नवे भाव मे है और नवे भाव के चन्द्रमा पर है साथ ही राहु के साथ युति मिलाये गुरु से भी है लगन से भी केतु को केन्द्र माना जायेगा। केतु का स्वभाव मंगल के सम होता है वह केतु जब पंचम मे होता है तो पेट में पित्त की बढोत्तरी करता है,केतु जब लगन को देखता है तो शरीर को पतला करता है। लेकिन केतु का रूप सहायक के रूप मे होने से वह शिक्षा के क्षेत्र माता के क्षेत्र मे धर्म के क्षेत्र में शरीर व्यवस्था और आगे जाकर सरकारी सेवाये कालेज शिक्षा मे अपनी पहिचान बनाता चला जाता है अथवा यूं कहिये कि राहु का विस्तार केतु के केन्द्र बिन्दुओं से ही होता है। राहु बिना केतु के अपना विस्तार नही कर पायेगा जन्म समय के ग्रहो के अनुसार भी देखा जाये तो गुरु जो राहु के साथ है और राहु ने गुरु की सम्पूर्ण शक्ति को अवशोषित किया है,राहु गुरु के अनुसार फ़ल दे रहा है तो यह फ़ल बडे भाई के क्षेत्र मे होने से बडा भाई या तो राहु के चंगुल मे होगा या गुरु राहु के सम अपना व्यवहार कर रहा होगा यानी गुरु वक्री होगा। गुरु का फ़ैलाव भी अगर जातक की कुंडली से देखा जाये तो गुरु यानी बडा भाई पहले तो कमन्यूकेसन के क्षेत्र मे लाभ वाले कारणो मे अपना फ़ैलाव करेगा,दूसरे शिक्षा की राशि तथा लगन को देखने के कारण शरीर सम्बन्धी नियोजन के लिये सरकारी या राजनीतिक क्षेत्र को देखेगा,तीसरे भाव मे तुला राशि होने से सरकारी और कमन्यूकेशन सम्बन्धी कारणो को बेलेन्स करने के लिये अपने फ़ैलाव को देगा सूर्य के साथ युति होने से राहु पिता और पिता के कार्यों को फ़ैलाव देने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा,जीवन साथी के भाव मे अपने फ़ैलाव को देने के कारण वही कारण पैदा करने के बाद फ़ैलाव करेगा जो कारण जीवन साथी से लाभ के कारको मे देखे जाते हो और सूर्य राहु गुरु की आपसी युति से जीवन की जद्दोजहद का फ़ैलाव भी जीवन साथी और जीविका के प्रति ही होगा। लेकिन हर बार केतु के केन्द्र को ध्यान मे रखकर ही राहु के फ़ैलाव का समीकरण निकालना पडेगा।
जिन ग्रहों के साथ राहु केतु का विरोधी मित्रता पूर्ण और समान आचरण का व्यवहार होता है वह सब फ़ैलाव मे रोकने के लिये फ़ैलाव मे सहायता देने के लिये और फ़ैलाव में अच्छे बुरे का ख्याल नही रखने के लिये राहु के लिये माना जायेगा और केतु के लिये केन्द्रित होने के कारको मे जो ग्रह अपनी अपनी भाव के अनुसार मिश्रित क्रिया को कर रहे होंगे वही कारण जीवन मे निकलते चले जायेंगे। एक बात और भी ध्यान मे देनी चाहिये कि जब सूर्य चन्द्र का आमना सामना कुंडली के किसी भी भाव मे होता है तो राहु का केतु का सामना भी सूर्य चन्द्र के आमने सामने होने के बराबर ही देखना चाहिये,जैसे कुंडली मे माता का स्वभाव बात का पक्कापन और धर्म आदि के प्रति समर्पित होने के लिये नवे भाव से देखा जायेगा तो पिता का स्वभाव बनिया के जैसा और नीच की राजनीति पैदा करने के कारको मे देखा जायेगा वही कारण सूर्य के राहु गुरु के अन्दर आने से राहु गुरु नीच के सूर्य की हरकत को अपने जीवन मे उतारने के लिये देखे जायेंगे तथा जो स्वभाव पिता का है वही स्वभाव पुत्र का भी होगा लेकिन जातक की कुंडली मे केतु का असर चन्द्रमा से होने से जातक का स्वभाव माता के जैसा होगा और जातक ताउम्र अपनी माता के अनुसार ही अपने आचरण को दिखाने प्रकृति को व्यवहार मे लाने के लिये अपने असर को प्रदर्शित करेगा।
इस कुंडली मे केतु अगर वक्री शनि के साथ षडाष्टक योग पैदा करने के बाद शनि के द्वारा शिक्षा परिवार मनोरंजन खेलकूद राजनीति आदि को उखाड कर फ़ेंकने और केन्द्र से भटकाने का असर पैदा कर रहा है तो राहु गुरु छठे भाव के मंगल के साथ षडाष्टक योग पैदा करने के बाद अपनी युति को प्रदान कर रहा है। यह एक प्रकार से बदले की भावना से ग्रसित कुंडली मानी जाती है अगर राहु गुरु यानी बडा भाई जातक के लिये जातक का मंगल जो भाग्य का मालिक है को विदीर्ण करेगा तो शनि जो जातक का सप्तमेश है तो वह भी अपने बुद्धि वाले असर से जातक के बडे भाई की पत्नी आदि को विदीर्ण करने के लिये अपने असर को प्रदान करेगा। सप्तमेश का असर जब नवम पंचम भाव से शुक्र बुध से होता है और शनि के साथ मंगल का मिलान भी नवम पंचम से होता है तो जातक के लिये जातक के जीवन साथी के द्वारा विश्वासघात का कारण भी देखा जाता है यह विश्वासघात अक्सर धन के मामले मे सन्तान के मामले मे और सम्मुख राहु होने के कारण जातक के द्वारा विजातीय सम्बन्ध स्थापित करने के लिये माने जाते है। यह कारण ही वैवाहिक जीवन मे अपनी अस्थिरता को पैदा करते है।
केतु का शिक्षा के क्षेत्र मे होने से जातक का केन्द्र केतु यानी ईशाई सम्बन्धित शिक्षा के क्षेत्र से शुरु होकर ऊंची शिक्षा के लिये विदेश आदि का कारण भी बनेगा साथ ही गुरु राहु का असर तीन प्रकार की अपनी अपनी प्रकार की डिग्री लेने के बाद नियोजित रूप से तकनीकी कारण जो इस प्रकार के क्षेत्र के लिये देखे जा सकते है वह सभी जातक के लिये समझे जा सकते है।
प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और राहु का स्थान ग्यारहवे भाव मे गुरु के साथ है साथ ही केतु का स्थान पंचम भाव मे है। केतु ने चन्द्रमा से युति ली है और गुरु से अपनी आमने सामने की द्रिष्टि रखी है केतु ने लगन को भी देखा है तो केतु का रूप अगर केन्द्र बिन्दु से देखा जाये तो कुंडली का केन्द्र पंचम भाव है नवे भाव मे है और नवे भाव के चन्द्रमा पर है साथ ही राहु के साथ युति मिलाये गुरु से भी है लगन से भी केतु को केन्द्र माना जायेगा। केतु का स्वभाव मंगल के सम होता है वह केतु जब पंचम मे होता है तो पेट में पित्त की बढोत्तरी करता है,केतु जब लगन को देखता है तो शरीर को पतला करता है। लेकिन केतु का रूप सहायक के रूप मे होने से वह शिक्षा के क्षेत्र माता के क्षेत्र मे धर्म के क्षेत्र में शरीर व्यवस्था और आगे जाकर सरकारी सेवाये कालेज शिक्षा मे अपनी पहिचान बनाता चला जाता है अथवा यूं कहिये कि राहु का विस्तार केतु के केन्द्र बिन्दुओं से ही होता है। राहु बिना केतु के अपना विस्तार नही कर पायेगा जन्म समय के ग्रहो के अनुसार भी देखा जाये तो गुरु जो राहु के साथ है और राहु ने गुरु की सम्पूर्ण शक्ति को अवशोषित किया है,राहु गुरु के अनुसार फ़ल दे रहा है तो यह फ़ल बडे भाई के क्षेत्र मे होने से बडा भाई या तो राहु के चंगुल मे होगा या गुरु राहु के सम अपना व्यवहार कर रहा होगा यानी गुरु वक्री होगा। गुरु का फ़ैलाव भी अगर जातक की कुंडली से देखा जाये तो गुरु यानी बडा भाई पहले तो कमन्यूकेसन के क्षेत्र मे लाभ वाले कारणो मे अपना फ़ैलाव करेगा,दूसरे शिक्षा की राशि तथा लगन को देखने के कारण शरीर सम्बन्धी नियोजन के लिये सरकारी या राजनीतिक क्षेत्र को देखेगा,तीसरे भाव मे तुला राशि होने से सरकारी और कमन्यूकेशन सम्बन्धी कारणो को बेलेन्स करने के लिये अपने फ़ैलाव को देगा सूर्य के साथ युति होने से राहु पिता और पिता के कार्यों को फ़ैलाव देने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा,जीवन साथी के भाव मे अपने फ़ैलाव को देने के कारण वही कारण पैदा करने के बाद फ़ैलाव करेगा जो कारण जीवन साथी से लाभ के कारको मे देखे जाते हो और सूर्य राहु गुरु की आपसी युति से जीवन की जद्दोजहद का फ़ैलाव भी जीवन साथी और जीविका के प्रति ही होगा। लेकिन हर बार केतु के केन्द्र को ध्यान मे रखकर ही राहु के फ़ैलाव का समीकरण निकालना पडेगा।
जिन ग्रहों के साथ राहु केतु का विरोधी मित्रता पूर्ण और समान आचरण का व्यवहार होता है वह सब फ़ैलाव मे रोकने के लिये फ़ैलाव मे सहायता देने के लिये और फ़ैलाव में अच्छे बुरे का ख्याल नही रखने के लिये राहु के लिये माना जायेगा और केतु के लिये केन्द्रित होने के कारको मे जो ग्रह अपनी अपनी भाव के अनुसार मिश्रित क्रिया को कर रहे होंगे वही कारण जीवन मे निकलते चले जायेंगे। एक बात और भी ध्यान मे देनी चाहिये कि जब सूर्य चन्द्र का आमना सामना कुंडली के किसी भी भाव मे होता है तो राहु का केतु का सामना भी सूर्य चन्द्र के आमने सामने होने के बराबर ही देखना चाहिये,जैसे कुंडली मे माता का स्वभाव बात का पक्कापन और धर्म आदि के प्रति समर्पित होने के लिये नवे भाव से देखा जायेगा तो पिता का स्वभाव बनिया के जैसा और नीच की राजनीति पैदा करने के कारको मे देखा जायेगा वही कारण सूर्य के राहु गुरु के अन्दर आने से राहु गुरु नीच के सूर्य की हरकत को अपने जीवन मे उतारने के लिये देखे जायेंगे तथा जो स्वभाव पिता का है वही स्वभाव पुत्र का भी होगा लेकिन जातक की कुंडली मे केतु का असर चन्द्रमा से होने से जातक का स्वभाव माता के जैसा होगा और जातक ताउम्र अपनी माता के अनुसार ही अपने आचरण को दिखाने प्रकृति को व्यवहार मे लाने के लिये अपने असर को प्रदर्शित करेगा।
इस कुंडली मे केतु अगर वक्री शनि के साथ षडाष्टक योग पैदा करने के बाद शनि के द्वारा शिक्षा परिवार मनोरंजन खेलकूद राजनीति आदि को उखाड कर फ़ेंकने और केन्द्र से भटकाने का असर पैदा कर रहा है तो राहु गुरु छठे भाव के मंगल के साथ षडाष्टक योग पैदा करने के बाद अपनी युति को प्रदान कर रहा है। यह एक प्रकार से बदले की भावना से ग्रसित कुंडली मानी जाती है अगर राहु गुरु यानी बडा भाई जातक के लिये जातक का मंगल जो भाग्य का मालिक है को विदीर्ण करेगा तो शनि जो जातक का सप्तमेश है तो वह भी अपने बुद्धि वाले असर से जातक के बडे भाई की पत्नी आदि को विदीर्ण करने के लिये अपने असर को प्रदान करेगा। सप्तमेश का असर जब नवम पंचम भाव से शुक्र बुध से होता है और शनि के साथ मंगल का मिलान भी नवम पंचम से होता है तो जातक के लिये जातक के जीवन साथी के द्वारा विश्वासघात का कारण भी देखा जाता है यह विश्वासघात अक्सर धन के मामले मे सन्तान के मामले मे और सम्मुख राहु होने के कारण जातक के द्वारा विजातीय सम्बन्ध स्थापित करने के लिये माने जाते है। यह कारण ही वैवाहिक जीवन मे अपनी अस्थिरता को पैदा करते है।
केतु का शिक्षा के क्षेत्र मे होने से जातक का केन्द्र केतु यानी ईशाई सम्बन्धित शिक्षा के क्षेत्र से शुरु होकर ऊंची शिक्षा के लिये विदेश आदि का कारण भी बनेगा साथ ही गुरु राहु का असर तीन प्रकार की अपनी अपनी प्रकार की डिग्री लेने के बाद नियोजित रूप से तकनीकी कारण जो इस प्रकार के क्षेत्र के लिये देखे जा सकते है वह सभी जातक के लिये समझे जा सकते है।
प्रणाम गुरूजी ...गुरु राहू का चान्डाल योग का क्या ...
ReplyDeleteGood Evening Guru ji. I am ur great fan. please give me a favour please read my kundli and describe in your blog. Mine details are..
ReplyDelete25-07-1982
8.00 AM
Hoshiarpur
Punjab
Please mere kundli study kijiye or apne blong mai lekheye.. please sir.