परिवर्तन योग के बारे मे शास्त्रो मे बहुत कुछ पढने को मिलता है और वास्तविक जीवन मे भी देखने सुनने को मिलता है। परिवर्तन का सीधा अर्थ एक दूसरे की अदलाबदली से लिया जाता है। यह योग मेष सिंह और धनु राशि के मालिकों की आपसी अदलाबदली से राजयोग मे तब्दील करता है लेकिन वृश्चिक कर्क और मीन राशि के लिये अशुभ माना जाता है यही नही जब यह योग जोखिम और कार्य की पूरक राशियों मे अपना परिवर्तन योग सामने लाता है तो जातक आजीवन जद्दोजहद के लिये जुटा रहता है लेकिन सफ़लता फ़िर भी कोशो दूर होती है। राशि के स्वामियों का परिवर्तन योग नक्षत्रो के स्वामियों का परिवर्तन योग नक्षत्र के पदो के स्वामियों का परिवर्तन योग भावों के स्वामियों का परिवर्तन योग आदि मुख्य परिवर्तन योग माने जाते है यह बात अक्सर लगनो मे भी मान्य होती है जैसे चन्द्र लगन और लगन के आपसी परिवर्तन कारण सूर्य लगन और चन्द्र लगन के आपसी अथवा लगन और सूर्य लगन की आपसी सम्बन्धो के परिवर्तन का असर भी जातक के जीवन मे आता है,जब नवमांश् और लगन चन्द्र लगन सूर्य लगन कारकांश आदि के परिवर्तन का प्रभाव सामने लाया जाता है तो जातक का जीवन साथी के प्रति अच्छा प्रभाव भी होता है बुरा प्रभाव भी होता है।
प्रस्तुत कुंडली मकर लगन के एक जातक की है और वह लखनऊ मे पैदा हुआ है। शनि मंगल का परिवर्तन योग इस कुंडली मे विराजमान है ९० डिग्री का अन्तर पराक्रम और लाभ के प्रति मिलता है। जब पराक्रम दिखाने का समय आता है तो लाभ के प्रति सोच लिया जाता है और जब लाभ की बात सोची जाती है तो पराक्रम के बारे मे सोचा जाता है,यानी जब भी लाभ के प्रति सोचा जायेगा तो अपनी औकात को परखने का कारण सामने आजायेगा और जब औकात को बनाया जायेगा तब तक लाभ का साधन समाप्त हो जायेगा। यही बात दोनो ग्रहों के प्रति भी समझी जा सकती है जब मंगल उच्च के काम करने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा तो शनि अपनी युति को सामने लाकर कठिन परिश्रम और कम आय के लिये अपने प्रभाव को शुरु कर देगा,इसके साथ ही जो भी सौम्य ग्रह इन दोनो के गोचर से जन्म के स्थानो से प्रभाव मे आयेगा अपनी युति बदलने लगेगा और बजाय लाभ के साधन देने के हानि और असमंजस की स्थिति को पैदा कर देगा इस प्रकार जातक का जीवन शनि मंगल की आपसी परिवर्तन नीति के प्रयोग से हमेशा एक झूले की तरह से झूलता हुआ रहेगा।
मकर लगन का मालिक शनि है और मंगल लाभ का मालिक भी है और खुद के द्वारा किये जाने वाले काम का भी है मंगल जब लगन मे है तो जातक के प्रति मकर लगन का होने के कारण बात के प्रति पक्केपन की उपाधि भी देता है,जो भी काम किया जाता है वह स्पष्ट रूप से द्रश्य करने के लिये भी कहा जाता है लेकिन शनि जब लाभ भाव मे चला जाता है तो जो नीचे तबके के लोग होते है वह लाभ के प्रति अपनी सोच को बदल देते है और उन्हे न्याय संगत कामो से धन कमाने की अपेक्षा एन केन प्रकारेण धन कमाने के प्रति देखा जा सकता है। वैसे भी शनि मंगल की आपसी युति को कार्य के प्रति तकनीक और उत्तेजना ही माना जाता है जब भी शनि जन्म के मंगल के साथ या मंगल जन्म के शनि के साथ गोचर करेगा जातक के किये जाने वाले कार्यों मे आक्षेप विक्षेप मिलने लगेंगे यानी जातक के द्वारा कार्य किया जायेगा और शनि की चालाकी से लाभ दूसरे लोग प्राप्त करने लगेंगे। इसके साथ ही जब कार्य तकनीकी रूप से किया जायेगा उस तकनीक मे शनि का अन्धेरा जातक के किये गये कार्यों को सामने नही लायेगा और जो भी जातक से कार्य करवाने वाले अधिकारी है वह जातक से किसी न किसी बात पर असन्तुष्ट बने रहेंगे और जातक को वह लाभ नही देंगे जो जातक को वास्तविक रूप से मिलना चाहिये। यह बात तो केवल ग्रह परिवर्तन योग के लिये मानी गयी है इसके अलावा जातक की कुंडली को सूक्ष्म विवेचन से देखा जाये तो जातक का गुरु राहु के नक्षत्र शतभिषा के चौथे पाये मे है लेकिन यह पाया मंगल का होने के कारण तथा मंगल जो श्रवण नक्षत्र के दूसरे पाये मे है वह गुरु का पाया होने के कारण गुरु मंगल का परिवर्तन योग की सीमा मे आजाता है। इस प्रकार से जातक ऊंची पढाइयां तो करेगा लेकिन वह पढाइयां केवल तकनीकी रूप से प्रयोग मे ली जाने वाली होंगी और उन पढाइयों के अनुसार जातक का प्राथमिक सोचने का कारण केवल उच्च पद की राजकीय सेवाओं के लिये अपना असर प्रदान करेगा लेकिन सूर्य का नीच का होने के कारण और नीच राशि बैठने के कारण तथा शुक्र का स्वराशि मे वक्री होने के कारण एक प्रकार से कार्य योजना के अनुसार अपने को नही लगा पायेगा और घरेलू झगडों शादी विवाह की चिन्ता और दूसरो की उन्नति को सामने रखकर अपनी योजना को चलाने के कारण अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा भी नही ले पायेगा तथा शुक्र की वक्री नीति की जल्दबाजी की नीति से की गयी पढाइयों का पूर्ण लाभ भी नही ले पायेगा।
एक प्रकार से शनि के अन्दर मंगल का भाव आने से वह अपने अन्दर तकनीकी बुद्धि को प्राप्त कर तो लेगा और जन्म के मंगल पर अपना असर भी तकनीकी बुद्धि के लिये देगा पर परिवर्तन योग के कारण वही मंगल शनि की चालाकी और विवेक हीन बुद्धि का असर प्रदान करने के बाद मंगल का असर लेने के बाद अपनी कन्ट्रोल करने वाली नीति को जन्म के गुरु को देगा और गुरु के अन्दर वक्री होने से स्वार्थी नीति होने तथा खुद के समाज परिवार और मर्यादा आदि का ख्याल नही रखने के कारण एक प्रकार से अपने ही लोगो से दूर रखकर अपने कार्यों के अन्दर कोई न कोई कमी लाने और उसे निकालने मे अपनी दिन चर्या को लगा देगा।
वक्री गुरु का एक असर और जातक के लिये देखा जा सकता है कि वह धन भाव मे होकर शनि की राशि मे अपने वक्री स्वरूप को प्रदान करता है इस प्रकार से जातक के अन्दर एक प्रकार से आधुनिकता के नाम से अलग ही दिखाई देने की प्रवृत्ति भी सामने आती है। इस प्रवृत्ति से वह अपने को दिखाना तो बहुत कुछ चाहता है लेकिन पराक्रम मे राहु होने के कारण वह डरता भी है और बाहरी कारणो नेट कम्पयूटर और बडी संस्थानो के प्रति तर्क वितर्क करने का एक जरिया भी बन जाता है जब भी राहु मीन राशि का होता है और शनि वृश्चिक राशि का होता है तो जातक के अन्दर केवल आशंकाओं की आंधिया चला करती है वह अपने अनुसार अपने कार्य क्षेत्र के प्रति प्रचार प्रसार और कबाड से जुगाड बनाने की नीति को प्रयोग मे लाता है।
शनि मंगल का आपसी सम्बन्ध एक प्रकार से भौतिक पदार्थों मे गर्म पत्थर के कैसा भी माना जाता है साथ ही शनि मंगल को आपसी सम्बन्धो मे एक ऐसी आग के रूप मे देखा जाता है जो धीरे धीरे एक बर्फ़ के पहाड को पिघलाने का काम करती है इसे ही गरीबी धन अभाव का कारक भी माना जाता है जैसे अधिक जिम्मेदारियां होने के बाद अपनी कम आवक से जिम्मेदारियों को पूरा करते जाना।
ग्यारहवे भाव मे शनि का रूप बडे भाई के रूप मे भी देखा जा सकता है,और लगन का मंगल केवल अकेले होने की बात भी करता है,इसके साथ ही शुक्र वक्री होकर तथा साथ मे तुला राशि का बुध होने से पत्नी और पत्नी की बहिन के लिये एक ही स्थान या परिवेश या घर मे होने की बात भी करता है एक सम्बन्ध को हटाकर दूसरे सम्बन्ध के प्रति भी अपनी भावना को प्रदान करता है। नीच का सूर्य होने से जातक को अक्सर पत्नी और ससुर पर निर्भर भी करता है। इस सूर्य की युति को कम करने के लिये जातक को लाल किताब के उपाय के अनुसार चार तांबे के चौकोर वर्गाकार टुकडे लेकर चार रविवार लगातार बहते पानी मे बहाने से सूर्य जो राजयोग को जला रहा है वह बुध को स्वतंत्र कर सकता है और जातक को कुछ हद तक सूर्य शनि के बीच के बुध और शुक्र की पापकर्तरी योग की सीमा को कम करने के लिये भी कारगर सिद्ध हो सकता है। इसी प्रकार से पंचम का चन्द्रमा भी जब नवे केतु से सम्पर्क रखता है तो जातक को सहायक के काम करने के लिये ही अपनी गति को प्रदान करता है इस प्रकार से जातक का सम्पर्क तो बहुत बडे और अमीर लोगो से होता है लेकिन उनके लिये केवल सहायता के काम करने के बाद कुछ समय के लिये ही जीवन यापन के साधन मिल पाते है मंगल के साथ केतु की युति लेने से जातक के अन्दर धन और जनता से वसूले जाने वाले धन के प्रति जिम्मेदारिया तो मिलती है लेकिन राहु के द्वारा जनता के कारक चन्द्रमा से युति लेने से एक प्रकार का डर जो धन आदि से सम्बन्धित होता के प्रति भी अपनी बात को जाहिर करता है।
परिवर्तन योग के कारण जो शनि चन्द्रमा से युति लेकर कार्य को कुये से पानी निकालने का काम करता है उसी प्रकार से मंगल की युति से चन्द्रमा उसे दवाइयों या गर्म पानी के रूप मे अपनी युति को प्रदान करता है,यही कारण केतु के लिये भी अपनी प्रभाव वाली नीति को सामने लाता है धन से सम्बन्धित या शिक्षा न्याय स्कूली कार्य आदि के प्रति अपनी युति को शनि के द्वारा खनिज सम्पत्ति और गुप्त कार्यों के प्रति प्रसारित करता है तो मंगल की युति से दक्षिण दिशा और यात्रा आदि के कार्यों को करने ब्रोकर वाले कामो को करने की अपनी योजना को प्रदान करता है। जातक के लिये केतु भी अपनी भूमिका को अदा करता है सबसे पहले केतु के सामने सूर्य होने से जातक सरकार से प्रदत्त सहायता प्राप्त संस्था मे काम करता है वक्री शुक्र होने से वह कार्य प्रायोजित कामो को करने के लिये स्त्री सम्बन्धी सुविधाओ को प्रदान करने के लिये बुध के साथ होने से कार्य को व्यवसाय के रूप मे लाने के लिये और शनि के साथ युति होने से आकस्मिक चिकित्सीय सहायताओं के लिये भी माना जाता है। यह केतु ननिहाल खानदान मे खाली पन देता है मीन का राहु जातक के दादा परदादा को अपने जन्म स्थान से दूर लेजाकर बसाता है साथ ही जो भी जातक की जन्म भूमि है उसे नेस्तनाबूद करना या जातक को उस जन्म भूमि से कोई फ़ायदा नही होना भी देखा जा सकता है यही युति जातक को कमर सम्बन्धी बीमारी भी प्रदान करता है साथ ही जातक को सन्तान सम्बन्धी कारण होने के कारण चन्द्रमा से युति लेने के कारण जातक के द्वारा जीवन मे अर्जित आय को पुत्री धन के रूप मे देखता है।
प्रस्तुत कुंडली मकर लगन के एक जातक की है और वह लखनऊ मे पैदा हुआ है। शनि मंगल का परिवर्तन योग इस कुंडली मे विराजमान है ९० डिग्री का अन्तर पराक्रम और लाभ के प्रति मिलता है। जब पराक्रम दिखाने का समय आता है तो लाभ के प्रति सोच लिया जाता है और जब लाभ की बात सोची जाती है तो पराक्रम के बारे मे सोचा जाता है,यानी जब भी लाभ के प्रति सोचा जायेगा तो अपनी औकात को परखने का कारण सामने आजायेगा और जब औकात को बनाया जायेगा तब तक लाभ का साधन समाप्त हो जायेगा। यही बात दोनो ग्रहों के प्रति भी समझी जा सकती है जब मंगल उच्च के काम करने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा तो शनि अपनी युति को सामने लाकर कठिन परिश्रम और कम आय के लिये अपने प्रभाव को शुरु कर देगा,इसके साथ ही जो भी सौम्य ग्रह इन दोनो के गोचर से जन्म के स्थानो से प्रभाव मे आयेगा अपनी युति बदलने लगेगा और बजाय लाभ के साधन देने के हानि और असमंजस की स्थिति को पैदा कर देगा इस प्रकार जातक का जीवन शनि मंगल की आपसी परिवर्तन नीति के प्रयोग से हमेशा एक झूले की तरह से झूलता हुआ रहेगा।
मकर लगन का मालिक शनि है और मंगल लाभ का मालिक भी है और खुद के द्वारा किये जाने वाले काम का भी है मंगल जब लगन मे है तो जातक के प्रति मकर लगन का होने के कारण बात के प्रति पक्केपन की उपाधि भी देता है,जो भी काम किया जाता है वह स्पष्ट रूप से द्रश्य करने के लिये भी कहा जाता है लेकिन शनि जब लाभ भाव मे चला जाता है तो जो नीचे तबके के लोग होते है वह लाभ के प्रति अपनी सोच को बदल देते है और उन्हे न्याय संगत कामो से धन कमाने की अपेक्षा एन केन प्रकारेण धन कमाने के प्रति देखा जा सकता है। वैसे भी शनि मंगल की आपसी युति को कार्य के प्रति तकनीक और उत्तेजना ही माना जाता है जब भी शनि जन्म के मंगल के साथ या मंगल जन्म के शनि के साथ गोचर करेगा जातक के किये जाने वाले कार्यों मे आक्षेप विक्षेप मिलने लगेंगे यानी जातक के द्वारा कार्य किया जायेगा और शनि की चालाकी से लाभ दूसरे लोग प्राप्त करने लगेंगे। इसके साथ ही जब कार्य तकनीकी रूप से किया जायेगा उस तकनीक मे शनि का अन्धेरा जातक के किये गये कार्यों को सामने नही लायेगा और जो भी जातक से कार्य करवाने वाले अधिकारी है वह जातक से किसी न किसी बात पर असन्तुष्ट बने रहेंगे और जातक को वह लाभ नही देंगे जो जातक को वास्तविक रूप से मिलना चाहिये। यह बात तो केवल ग्रह परिवर्तन योग के लिये मानी गयी है इसके अलावा जातक की कुंडली को सूक्ष्म विवेचन से देखा जाये तो जातक का गुरु राहु के नक्षत्र शतभिषा के चौथे पाये मे है लेकिन यह पाया मंगल का होने के कारण तथा मंगल जो श्रवण नक्षत्र के दूसरे पाये मे है वह गुरु का पाया होने के कारण गुरु मंगल का परिवर्तन योग की सीमा मे आजाता है। इस प्रकार से जातक ऊंची पढाइयां तो करेगा लेकिन वह पढाइयां केवल तकनीकी रूप से प्रयोग मे ली जाने वाली होंगी और उन पढाइयों के अनुसार जातक का प्राथमिक सोचने का कारण केवल उच्च पद की राजकीय सेवाओं के लिये अपना असर प्रदान करेगा लेकिन सूर्य का नीच का होने के कारण और नीच राशि बैठने के कारण तथा शुक्र का स्वराशि मे वक्री होने के कारण एक प्रकार से कार्य योजना के अनुसार अपने को नही लगा पायेगा और घरेलू झगडों शादी विवाह की चिन्ता और दूसरो की उन्नति को सामने रखकर अपनी योजना को चलाने के कारण अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा भी नही ले पायेगा तथा शुक्र की वक्री नीति की जल्दबाजी की नीति से की गयी पढाइयों का पूर्ण लाभ भी नही ले पायेगा।
एक प्रकार से शनि के अन्दर मंगल का भाव आने से वह अपने अन्दर तकनीकी बुद्धि को प्राप्त कर तो लेगा और जन्म के मंगल पर अपना असर भी तकनीकी बुद्धि के लिये देगा पर परिवर्तन योग के कारण वही मंगल शनि की चालाकी और विवेक हीन बुद्धि का असर प्रदान करने के बाद मंगल का असर लेने के बाद अपनी कन्ट्रोल करने वाली नीति को जन्म के गुरु को देगा और गुरु के अन्दर वक्री होने से स्वार्थी नीति होने तथा खुद के समाज परिवार और मर्यादा आदि का ख्याल नही रखने के कारण एक प्रकार से अपने ही लोगो से दूर रखकर अपने कार्यों के अन्दर कोई न कोई कमी लाने और उसे निकालने मे अपनी दिन चर्या को लगा देगा।
वक्री गुरु का एक असर और जातक के लिये देखा जा सकता है कि वह धन भाव मे होकर शनि की राशि मे अपने वक्री स्वरूप को प्रदान करता है इस प्रकार से जातक के अन्दर एक प्रकार से आधुनिकता के नाम से अलग ही दिखाई देने की प्रवृत्ति भी सामने आती है। इस प्रवृत्ति से वह अपने को दिखाना तो बहुत कुछ चाहता है लेकिन पराक्रम मे राहु होने के कारण वह डरता भी है और बाहरी कारणो नेट कम्पयूटर और बडी संस्थानो के प्रति तर्क वितर्क करने का एक जरिया भी बन जाता है जब भी राहु मीन राशि का होता है और शनि वृश्चिक राशि का होता है तो जातक के अन्दर केवल आशंकाओं की आंधिया चला करती है वह अपने अनुसार अपने कार्य क्षेत्र के प्रति प्रचार प्रसार और कबाड से जुगाड बनाने की नीति को प्रयोग मे लाता है।
शनि मंगल का आपसी सम्बन्ध एक प्रकार से भौतिक पदार्थों मे गर्म पत्थर के कैसा भी माना जाता है साथ ही शनि मंगल को आपसी सम्बन्धो मे एक ऐसी आग के रूप मे देखा जाता है जो धीरे धीरे एक बर्फ़ के पहाड को पिघलाने का काम करती है इसे ही गरीबी धन अभाव का कारक भी माना जाता है जैसे अधिक जिम्मेदारियां होने के बाद अपनी कम आवक से जिम्मेदारियों को पूरा करते जाना।
ग्यारहवे भाव मे शनि का रूप बडे भाई के रूप मे भी देखा जा सकता है,और लगन का मंगल केवल अकेले होने की बात भी करता है,इसके साथ ही शुक्र वक्री होकर तथा साथ मे तुला राशि का बुध होने से पत्नी और पत्नी की बहिन के लिये एक ही स्थान या परिवेश या घर मे होने की बात भी करता है एक सम्बन्ध को हटाकर दूसरे सम्बन्ध के प्रति भी अपनी भावना को प्रदान करता है। नीच का सूर्य होने से जातक को अक्सर पत्नी और ससुर पर निर्भर भी करता है। इस सूर्य की युति को कम करने के लिये जातक को लाल किताब के उपाय के अनुसार चार तांबे के चौकोर वर्गाकार टुकडे लेकर चार रविवार लगातार बहते पानी मे बहाने से सूर्य जो राजयोग को जला रहा है वह बुध को स्वतंत्र कर सकता है और जातक को कुछ हद तक सूर्य शनि के बीच के बुध और शुक्र की पापकर्तरी योग की सीमा को कम करने के लिये भी कारगर सिद्ध हो सकता है। इसी प्रकार से पंचम का चन्द्रमा भी जब नवे केतु से सम्पर्क रखता है तो जातक को सहायक के काम करने के लिये ही अपनी गति को प्रदान करता है इस प्रकार से जातक का सम्पर्क तो बहुत बडे और अमीर लोगो से होता है लेकिन उनके लिये केवल सहायता के काम करने के बाद कुछ समय के लिये ही जीवन यापन के साधन मिल पाते है मंगल के साथ केतु की युति लेने से जातक के अन्दर धन और जनता से वसूले जाने वाले धन के प्रति जिम्मेदारिया तो मिलती है लेकिन राहु के द्वारा जनता के कारक चन्द्रमा से युति लेने से एक प्रकार का डर जो धन आदि से सम्बन्धित होता के प्रति भी अपनी बात को जाहिर करता है।
परिवर्तन योग के कारण जो शनि चन्द्रमा से युति लेकर कार्य को कुये से पानी निकालने का काम करता है उसी प्रकार से मंगल की युति से चन्द्रमा उसे दवाइयों या गर्म पानी के रूप मे अपनी युति को प्रदान करता है,यही कारण केतु के लिये भी अपनी प्रभाव वाली नीति को सामने लाता है धन से सम्बन्धित या शिक्षा न्याय स्कूली कार्य आदि के प्रति अपनी युति को शनि के द्वारा खनिज सम्पत्ति और गुप्त कार्यों के प्रति प्रसारित करता है तो मंगल की युति से दक्षिण दिशा और यात्रा आदि के कार्यों को करने ब्रोकर वाले कामो को करने की अपनी योजना को प्रदान करता है। जातक के लिये केतु भी अपनी भूमिका को अदा करता है सबसे पहले केतु के सामने सूर्य होने से जातक सरकार से प्रदत्त सहायता प्राप्त संस्था मे काम करता है वक्री शुक्र होने से वह कार्य प्रायोजित कामो को करने के लिये स्त्री सम्बन्धी सुविधाओ को प्रदान करने के लिये बुध के साथ होने से कार्य को व्यवसाय के रूप मे लाने के लिये और शनि के साथ युति होने से आकस्मिक चिकित्सीय सहायताओं के लिये भी माना जाता है। यह केतु ननिहाल खानदान मे खाली पन देता है मीन का राहु जातक के दादा परदादा को अपने जन्म स्थान से दूर लेजाकर बसाता है साथ ही जो भी जातक की जन्म भूमि है उसे नेस्तनाबूद करना या जातक को उस जन्म भूमि से कोई फ़ायदा नही होना भी देखा जा सकता है यही युति जातक को कमर सम्बन्धी बीमारी भी प्रदान करता है साथ ही जातक को सन्तान सम्बन्धी कारण होने के कारण चन्द्रमा से युति लेने के कारण जातक के द्वारा जीवन मे अर्जित आय को पुत्री धन के रूप मे देखता है।