Monday, January 30, 2012

ग्रह अनुसार मिलने वाले धोखे-1

पिछली पोस्ट मे मैने आपको भावानुसार मिलने वाले धोखों से अवगत करवाया था आगे आपके सामने ग्रह के अनुसार धोखा देने वाली बातो को लिख रहा हूँ,जीवन मे सबसे अधिक अखरने वाला धोखा शुक्र और गुरु का धोखा देना होता है,बाकी के धोखे तो झेल भी लिये जाते है और धीरे से समय को निकालकर उन धोखो की पूर्ति भी कर ली जाती है,अथवा उन धोखो से अपने को शिक्षा मिलती है जिससे आगे फ़िर धोखा खाने का समय नही आता है। ग्रह धोखा देता भी है ग्रह को धोखा दिया भी जाता है,इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी होता है,जब लगनेश की युति राहु के साथ होती है तो जातक अपने अनुसार सभी ग्रहो को धोखा देता जाता है लेकिन जब सप्तमेश की युति  राहु से होती है तो सभी धोखा देने मे ही लगे रहते है,चाहे वह अपने हो या पराये सभी के दिमाग मे लगा रहता है कि सामने वाले को कैसे बनाया जाये और अपना काम सिद्ध करने के बाद रास्ता नाप लिया जाये। सूर्य धोखा देने के मामले मे अपने अपने भाव से धोखा देने के लिये माना जाता है.
सूर्य:- पहले भाव मे सूर्य अपने अहम के कारण नशे मे रखता है और लोग अहम का फ़ायदा उठाकर अपने कामो को निकालते रहते है,सूर्य जब धन भाव मे होता है तो वह आंख के नीचे से वस्तु को गायब करने के लिये माना जाता है और जातक को इस कारण से द्रिष्टि भ्रम की बात भी की जाती है अक्सर जादूगर और सम्मोहन वाले इसी सूर्य का फ़ायदा उठाते देखे गये है। तीसरे भाव का सूर्य अपने को अपने मे ही बडप्पन की नजर से देखा जाता है और राजकीय कार्य राजनीति मे अपनी निपुणता को प्रदर्शित करने के कारको मे भी देखा गया है कि सम्पूर्ण जीवन को इसी धोखे मे निकाल दिया जाता है कि एक दिन सबसे बडा राजनीतिज्ञ बनकर सामने आना है पर यह केवल भ्रम ही माना जाता है लोग नेता जी कहकर पुकारते रहते है और जातक नेताजी की अहम भावना मे अपने को लेकर चलता रहता है लोगो की सेवा करने मे अपने को लगाये रहता है घर पर लोग इन्तजार करते रहते है पत्नी या पति अपने आप ही परेशान रहता है न खाने का न पीने का और न सोने का समय होता है केवल अपने अहम को दिखाने के लिये कि वह अपनी जानकारी से सभी के काम निकालना जानता है उसने उसके काम को करवा दिया था उसने उसके काम को करवाने के लिये उसे इतना फ़ायदा दिला दिया था लेकिन खुद की जेब मे घर से निकलने के बाद शायद वापस आने के लिये भी बस का किराया भी नही होता है लोग ऐसे व्यक्ति को आजीवन अपने अहम से बाहर नही आने देते है चाहे वह ग्रह की बदलाव वाली पोजीसन हो या ग्रह की दशा ही क्यों न आजाये लेकिन सूर्य का इस भाव का धोखा इसलिये समाप्त नही होता है क्योंकि सूर्य का न कभी वक्री होता है न कभी अपने प्रभाव को खत्म करता है,वह केवल रात के लिये समय से जाता है और सुबह होते ही समय से उदय हो जाता है। चौथे भाव का सूर्य जब धोखे के कारणो मे फ़ंस जाता है तो जातक को राजकीय सम्पत्ति के मामले मे कई प्रकार के धोखे दिये जाते है यहां तक कि माता के द्वारा भी धोखा दिया जाता है यानी पालन पोषण भी पिता के द्वारा किया जाता है जब घर सम्भालने वाली बात आती है तो उन्ही कामो को सामने लाया जाता है जो दिखावे तो बहुत करने वाले होते है और उनके अन्दर की सत्यता से जब गुजरा जाये तो बहुत ही परेशानी देने वाली बात को भी जाना जाता है,इस प्रकार के लोगो की पहिचान होती है कि उनके घरो मे  अजीब अजीब सी पेडों की कलाकृतिया जानवरो के सिर आदि ड्राईग रूम सजाये गये होते है। पंचम का सूर्य सन्तान के मामले मे जब धोखा देने मे उतर आता है तो खुद की संतान ही धोखा देने के लिये मानी जाती है यह क्षेत्र राजनीति और शिक्षा से जुडा होने के कारण अक्सर खुद की शिक्षा ही धोखा दे जाती है कि पूरी मेहनत सरकारी क्षेत्र की नौकरी को करने के लिये की और अन्त मे किसी कारण से बीमार पड गये या तो कम्पटीशन की तैयारी नही हुयी या जिस परीक्षा को दिया था वह किसी और के हिस्से मे चली गयी। छठे भाव का सूर्य ननिहाल के लिये सातवे भाव का सूर्य जीवन साथी के अहम से आठवे भाव का सूर्य खुद की मानसिक स्थिति से नवे भाव का सूर्य जाति विरादरी समाज और विदेशी परिवेश से दसवे भाव का सूर्य पीछे के धोखो से ग्यारहवे भाव का सूर्य बडे भाई और मित्रो से बारहवे भाव का सूर्य सरकारी रूप से चलने वाली बडी संस्थाओ से और यात्रा वाले कारणो में बन्धन आदि मिलने से मानी जाती है.

भावानुसार मिलने वाले धोखे

कुंडली भी एक अजीब  पहेली मानी जाती है,कौन सा ग्रह कहाँ पर धोखा दे रहा है या कब धोखा देगा,अथवा खुद ही धोखा बनकर संसार में विचरण करने के लिये जीवन को प्रदान कर रहा है इस बात की जानकारी करना बहुत जरूरी होता है। कौन कैसे कहाँ धोखा देता है इस बात की जानकारी मनुष्य रूप मे समझने के लिये मनुष्य जीवन के कारक ग्रहों का जानना भी जरूरी है। धोखे का भाव कौन सा है किस ग्रह के साथ कौन सा धोखा हो सकता है इस बात को भी जानना जरूरी है,किस स्थान पर कैसे कौन धोखा देगा,वह मित्र के रूप मे धोखा देगा,दोस्त के रूप मे धोखा देगा या खुद ही अपने मन से धोखा खाने के लिये अपने चेहरे पर बोर्ड लगाकर घूमेगा कि आओ मुझे धोखा दो, और जो देखो वही धोखा देकर चलता बने खुद धोखा खा कर अपने आप चुपचाप बैठ जाओ। धोखा देने से पहले क्या होता है और किस प्रकार से धोखा मिलता है आइये कुछ जीवन से सम्बन्धित कारको पर ध्यान देते है:-
  • जन्म हो गया तो शरीर है और शरीर है तो किसी ने तो जन्म दिया ही है,जन्म के कारक ग्रह का धोखे मे होना भी एक प्रकार से जन्म देने का धोखा माना गया है,जैसे माता को ध्यान ही नही था कि उसे गर्भ रह सकता है,और धोखे से गर्भ रह गया और जन्म भी हो गया,जन्म के बाद माता ने त्याग कर दिया और किसी अस्पताल या किसी अन्य प्रकार से शरीर को दूसरो के हवाले कर दिया यह धोखा लगनेश के साथ धोखा होना माना जाता है और लगनेश के द्वारा राहु की छत्रछाया मे रहना तथा जिसे अपना समझा गया है वह अपना है ही नही और जिसे अपना नही माना गया है वह अपना है इस प्रकार की भ्रांति जीवन मे चलती रहती है,जैसे अक्सर दत्तक संतान के मामले मे जाना जाता है,जब बच्चे को छोटी उम्र मे ही गोद दे दिया जाता है और उस बच्चे का पालन पोषण दूसरे स्थान पर होता है,वह बच्चा बडा होकर किसी भी प्रकार से यह मानने के लिये तैयार नही होता है कि वह जिसको माता कह रहा था वह माता है ही नही या गोद देने के बाद जब जातक बडा होने लगा और जिसने गोद दे दिया,कालान्तर मे गोद लेने और गोद देने वाले के बीच मे शत्रुता हो जाती है तो बालक जिसके पास गोद गया है वह अपने खुद के माता पिता से शत्रुता तो कर ही लेगा,लेकिन उसे पता नही है कि वह अपने से ही शत्रुता कर रहा है और जो उसका शत्रु है उससे अपनी मित्रता को किये बैठा है.
  • दूसरे भाव के बारे मे धोखा भी देने वाला दूसरे भाव का ग्रह होता है अक्सर जो पूंजी माता पिता के द्वारा इकट्टी की जातीहै और कहा जाता है कि यह पूंजी जातक के लिये ही है वह चाहे सोना चांदी हो हीरा मोती हो या नगद धन हो,अथवा खुद के परिवार के लोग ही हो,लेकिन जैसे ही जातक बडा होता है खुद के लोग ही उस धन को यह कहकर हडप लेते है कि वह उस परिवार मे केवल पालने पोषने के लिये ही रखा गया था और उस धन पर अधिकार अलावा लोगो का है,जैसे ननिहाल मे पला जातक,किसी अन्य रिस्तेदार के पास पला जातक किसी दोस्त के घर पर पला जातक आदि इसी श्रेणी मे आते है।
  • तीसरे भाव के धोखे के बारे मे कहा जाता है कि जातक जहां है वही के लोगो के साथ अपनी दिनचर्या को बना रहा है,उसी प्रकार की जलवायु मे अपने समय को निकाल रहा है खान पान रहन सहन भोजन कपडा आदि उसी स्थान के प्रति ग्रहण कर रहा है,उसने अपने द्वारा प्रदर्शित करने वाले कारक जैसे ड्रेस आदि जो अपनाये है वह उसी रहने वाले स्थान के अनुरूप अपनाये है जो धर्म अपनाया जा रहा है रहने वाले स्थान के अनुसार ही अपनाया जा रहा है,लेकिन बाद मे पता चलता है कि वह केवल अपने माता पिता की कार्य की रूप रेखा की वजह से वहां निवास कर रहा था और उसे जब सभी कुछ बदलने के लिये बताया जाता है तो वह तीसरे भाव का धोखा माना जाता है.
  • चौथे भाव का धोखा सबसे अधिक खराब माना जाता है,अक्सर इस भाव के स्वामी का राहु के साथ होने पर हमेशा ही मानसिक भ्रम दिया करता है जातक को कभी भी किसी भी स्थान पर चैन से नही रहने देता है जब भी जातक यात्रा करता है तो अक्सर उसकी यात्रा की रास्ता किसी न किसी प्रकार से बदल जाती है वह पानी पी रहा होता है तो उसे यह ध्यान ही नही रहता है कि उसे कितना पानी पीना है,अथवा वह अपने इस दोष के कारण शराब आदि पेय पदार्थो को अपने लिये प्रयोग करना इसीलिये शुरु कर देता है कि वह अपने इस भ्रम वाले स्वभाव से थोडा आराम ले सके लेकिन यह प्रभाव उसे अक्सर बडी बीमारियों से ग्रस्त कर देता है और ऊपरी बीमारियों के साथ जनन तंत्रों वाली बीमारियां भी उसे परेशान करने लगती है.
  • पंचम भाव का धोखा बहुत ही दिक्कत वाला माना जाता है,जातक को या तो अपने प्रति इतना भरोसा हो जाता है कि किसी को कुछ भी नही गिनता है हमेशा अपने को ही आगे गिनने के चक्कर मे किसी समय बहुत बडे संकट मे आजाता है,या फ़िर अपने लिये आगे की सन्तति से दूर रखने वाला इसलिये ही माना जाता है कि उसके जीवन साथी के प्रति हमेशा ही किसी न किसी प्रकार से बनाव बिगाड चलते रहते है जब भी सन्तान पैदा करने का समय आता है जातक के प्रति कई प्रकार की धारनाये या तो जीवन साथी बदल देता है या जातक खुद ही जीवन साथी से भ्रम से दूर हो जाता है। इस प्रकार के धोखा देने वाले कारण अक्सर राजनीति से सम्बन्ध रखने वाले लोगों फ़िल्म मीडिया मे काम करने वालो लोगों शिक्षा के क्षेत्र मे या मनोरंजन के क्षेत्र मे काम करने वाले लोगो के साथ होता देखा जाता है इस बात से सन्तान का आना केवल पुत्र संतान के लिये ही माना जाता है स्त्री संतान मे यह धोखा कभी भी अपना कार्य नही रोकता है। इसी प्रकार से जातक के अन्दर अधिक अहम आने के कारण जातक अपनी परिवार की स्थिति को भी बरबाद करने के लिये माना जाता है जैसे पीछे अठारह साल की कमाई को वह केवल अठारह महिने के अन्दर ही बरबाद करने की अपनी युति को पैदा कर लेता है जैसे वह लाटरी सट्टा जुआ आदि वाले कामो के अन्दर अपनी औकात को बढाने के चक्कर मे खराब करता जाता है उसी के जानकार उसकी ही बुद्धि और उसी के द्वारा पैदा किये जाने वाले साधन उसे बरबाद करने के लिये अपनी पूरी जुगत बना देते है। यह बात खेल कूद के लिये भी देखी जाती है,कारण यही भाव खेल कूद से भी जुडा है और पिछले समय मे एक प्रश्न यह भी आया था कि खेल कूद का सट्टा लगने का क्या कारण है उसका एक ही जबाब था कि जब खेल कूद और सट्टा एक ही घर यानी भाव के कारक है तो उन्हे नही रोका जा सकता है.
  • छठे भाव का धोखा अक्सर बीमारी के मामले मे कर्जा के मामले मे ब्याज कमाने के मामले मे दुश्मनी करने के मामले मे नौकरी के मामले मे या नौकरो के मामले मे देखा जाता है। इस भाव मे आकर कोई भी ग्रह अपनी युति से धोखा देता है। वह राहु से सम्बन्ध रखे या नही रखे। अक्सर बीमारी के मामले मे भी धोखा देखा जाता है कि मामूली सा बुखार समझते समझते पता चलता है कि वह तो बहुत बडा वायरल या डेंगू जैसा बुखार है,किसी हल्की सी फ़ुन्सी को समझने के बाद पता चलता है कि वह एक केंसर का रूप है या किसी प्रकार के रोजाना के काम को लगातार करने के बाद पता चलता है कि वह काम केवल दिखावा ही था उस काम को करने के बाद कोई फ़ायदा भी नही है और नुकसान भी खूब लग गया है,किसी को कर्जा देने के बाद पहले यानी कर्जा लेने तक तो वह व्यक्ति अपने आसपास घूमने वाला अपनी हर हां मे हां मिलाने वाला था लेकिन जैसे ही कर्जा दिया वह अक्समात ही दूर भी होने लगा और उसने दुश्मनी भी बना ली,या जिस बैंक या किसी फ़ाइनेंस के क्षेत्र मे ब्याज के लोभ से धन को जमा किया जा रहा था वह बैंक या फ़ाइनेंस कम्पनी ही धोखा देकर धन को बरबाद करने के बाद जाने कहां चली गयी। इसके अलावा भी कोई अपनी जुगत लगाकर अन्दरूनी दुश्मनी को निकालने के लिये पहले अपने घर आता था और बहुत अच्छे से सम्बोधन को प्रयोग करता था,जैसे कोई अपने मित्र की पत्नी को  बहिन के रूप मे तो मानता था लेकिन उसके अन्दर धोखे को देने वाली बात थी वह बहिन का दर्जा देकर एक दिन पत्नी को लेकर ही फ़रार हो गया,अथवा कोई घर मे आकर अपनी पैठ बनाकर घर के वातावरण को समझता रहा और एक दिन मौका पाकर वह घर का महंगा सामान समेट कर चलता बना आदि बाते देखी जाती है,इसके अलावा भी नौकर को बहुत ही अच्छी तरह से रखा गया था,वह अपनी चाल से एक दिन कोई बडा अहित करने के बाद चलता बना,किसी की नौकरी करते करते बहुत समय हो गया और वह नौकरी करवाने वाला व्यक्ति एक दिन किसी बडे फ़रेब को देकर दूर हो गया और जेल आदि की बाते खुद को झेलनी पडी अथवा नौकरी करने के बाद जब सैलरी को मांगा गया तो कोई दूसरा आरोप देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया आदि बाते मानी जाती है.
  • सप्तम का धोखा भी नौकरी और जीवन साथी के अलावा साझेदार के लिये माना जाता है,सप्तम का मालिक राहु के साथ है या शनि के साथ है तो धोखा मिलना जरूरी है उसे जीवन साथी से भी धोखा मिलता है उसे साझेदार से भी धोखा मिलता है उसे जो भी काम अपने जीवन यापन के लिये करना होता है वहां से भी धोखा मिलता है,किसी प्रकार के लेन देन के समय के अन्दर किसी की जमानत आदि करने मे भी धोखा मिलता है किसी का बीच बचाव करने या किसी रिस्ते के प्रति बेलेन्स बैठाने के अन्दर भी धोखा मिलता है। इसी प्रकार से जब जातक के साथ किसे एका मुकद्दमा आदि चलता है तो उसके द्वारा भी धोखा दिया जाता है,किसी प्रकार के कागजी धोखे को भी इसी क्षेत्र से माना जाता है। पुरुषा जाति के लिये शुक्र राहु और स्त्री जाति के लिये गुरु राहु का साथ हमेशा ही धोखा देने वाला माना जाता है।
  • अष्टम भाव का धोखा अक्सर किये जाने वाले कामो से देखने को मिलते है,पहले आशा लगी रहती है कि इस काम को करने के बाद बहुत लाभ होगा और एक समय ऐसा आता है कि पूरी मेहनत भी लग चुकी होती है पास का धन भी चला गया होता है पता चलता है कि काम का मूल्य ही समाप्त हो चुका है,इसी प्रकार का धोखा अधिकतर मंत्र तंत्र और यंत्र बनाने वाले अद्भुत चीजो का व्यापार करने वाले शमशान सिद्धि का प्रयोग करने वाले भी करते है जब राहु का स्थान किसी के अष्टम मे होता है या अष्टम का स्वामी किसी प्रकार से राहु केतु शनि के घेरे मे होता है तो वह इन्ही लोगो के द्वारा धोखा खाने वाला माना जाता है यह कारण दशा के अन्दर भी देखा जाता है जैसे धनेश और राहु की दशा मे या अष्टमेश और राहु की दशा मे इसी प्रकार की धोखे वाली बात होती देखी जाती है.अक्सर इसी प्रकार के धोखे शीलहरण के लिये स्त्रियों मे भी देखे जाते है जब भी कोई अपनी रसभरी बातो को कहता है या अपने प्रेम जाल मे ले जाने के लिये चौथे भाव या बारहवे भाव की बातो को प्रदर्शित करता है तो उन्हे समझ लेना चाहिये कि उनके लिये कोई बडा धोखा केवल उनके शील को हरने के लिये किया जा रहा है,इस धोखे के बाद उनका मन मस्तिष्क और ईश्वरीय शक्तिओं से भरोसा उठना भी माना जा सकता है,इस भाव का धोखा उन लोगो के लिये भी दिक्कत देने वाला होता है जो डाक्टरी काम करते है वह अपने धोखे के अन्दर आकर किसी बीमारी को समझ कर कोई दवाई दे देते है और उस दवाई को देने के बाद मरीज बजाय बीमारी से ठीक होने के ऊपर का रास्ता पकड लेता है। यही बात इन्जीनियर का काम करने वाले लोगो के साथ भी होता है वह धोखे मे आकर अपनी रिपेयर करने वाली चीज मे या तो अधिक वोल्टेज की सप्लाई देकर उसे बजाय ठीक करने के फ़ूंक देते है या सोफ़्टवेयर को गलत रूप से डालकर पूरे प्रोग्राम ही समाप्त कर लेते है।
  • नवे भाव के ग्रह के लिये धोखा देने वाली बाते अक्सर धर्म स्थान मे धोखा होना यात्रा जो बडे रूप से की जा रही है या विदेश का रूप बनाया जा रहा है के लिये माना जाता है यह बात ऊंची शिक्षा के मामले मे भी देखी जाती है कानून के अन्दर भी देखी जाती है और सही रूप मे माने तो जाति बिरादरी और समाज के लिये भी मानी जाती है। कभी कभी एक धर्म स्थान के लिये लगातार प्रचार किया जाता है और उस प्रचार के अन्दर एक भावना धोखा देने वाली छुपी होती है.उस धोखे मे वही लोग अधिक ठगे जाते है जिनके नवम भाव के मालिक का कारक या तो राहु की चपेट मे होता है या त्रिक स्थानो के स्वामी के साथ अपने गोचर से चल रहा होता है अथवा दशा का प्रभाव चल रहा होता है। 
  • दसवे भाव के धोखे वाली बातो के लिये माना जाता है कि कार्य करने के बाद या सरकरी क्षेत्र की सेवा करने के बाद नौकरी आदि के लिये किसी बडी जानकारी के बाद जीवन भर लाभ के लिये की जाने वाली किसी कार्य श्रेणी को शुरु करने वाली बात के लिये माना जाता है.
  • ग्यारहवे भाव के लिये मित्रो से अपघात बडे भाई या बहिन से अपघात लाभ के क्षेत्र मे की जाने वाली अपघात माता के गुप्त धन के प्रति अपघात पिता के पत्नी के परिवार से जुडी या उसकी संगति से मिलने वाली अपघात के लिये जाना जाता है.
  • बारहवे भाव की जाने वाली खरीददारी मे धोखा यात्रा के अन्दर सामान या मंहगे कारक का गुम जाना कही जाना था और कही पहुंचाने वाली बात का धोखा किसी धर्म स्थान मे ठहरने के बाद कोई धोखा होना किसी बडी संस्था को सम्भालने के बाद मिलने वाला धोखा आदि की बाते मानी जाती है.

Saturday, January 28, 2012

विवाह और जिम्मेदारी

तुला लगन की इस कुंडली मे सप्तम का कारक मंगल है.मंगल का स्थान पांचवे स्थान मे है और यह मंगल चन्द्रमा के साथ भी जो जुडा है जो कार्य का मालिक है और गुरु के साथ भी जुडा है जो शादी सम्बन्ध का मालिक है। गुरु शादी सम्बन्ध के अलावा भी हिम्मत का भी मालिक है और गुप्त जानकारी कर्जा दुश्मनी बीमारी का भी मालिक है..सप्तम स्थान पर गुरु अपनी पूर्ण द्रिष्टि दे रहा है और शुक्र भी अपनी पूर्ण द्रिष्टि दे रहा है। वर्तमान मे गुरु का गोचर भी सप्तम स्थान मे है। चन्द्रमा का मंगल के साथ होना और चन्द्रमा का कार्य का मालिक होना यह बात की तरफ़ इशारा करता है कि जातक रक्षा सेवा जो जनता से सम्बन्धित हो मे कार्य करता है,गुरु के साथ होने से तथा गुरु कुम्भ राशि में होने से जातक  जातक का बडा भाई भी इसी प्रकार के कार्यों में होना पाया जाता है.पिता का कारक भी चन्द्रमा है यह भी रक्षा सेवा के लिये अपनी युति को प्रदान करता है.पंचम गुरु तरक्की देने के लिये अपनी युति को तभी प्रदान करता है जब जातक सदाचारी हो,और गुरु का प्रभाव पंचम मे होने के बाद धर्म और भाग्य स्थान मे जाता है। गुरु शिक्षा के क्षेत्र मे होने से जातक की शादी उसी परिवार मे होती है जहां से जीवन साथी का पिता शिक्षा क्षेत्र से जुडा हो या धार्मिक प्रवचन आदि से सम्बन्ध रखता हो। सप्तम स्थान को गुरु अपनी पूर्ण द्रिष्टि दे रहा है,इस प्रकार से शादी का कारण धार्मिक तरीके से ही होता है।गुरु भाग्य को देख रहा है इसलिये शादी के बाद ही जातक का भाग्योदय होता है। गुरु के द्वारा लाभ भाव को देखे जाने के कारण जातक के लाभ की बढोत्तरी भी शादी के बाद ही होती है और बडे भाई की पदवी भी बढती है। गुरु का शुक्र पर प्रभाव देने के कारण शादी के बाद जीवन साथी के आजाने से व्यवसायिक भवन आदि का निर्माण भी होता है। जातक का शनि जो मकान जमीन जायदाद तथा शिक्षा का कारक है के लिये पिता परिवार अपने पूर्वजो की जमीन जायदाद को त्याग कर दूसरे स्थान में बसने के लिये माने जाते है.पिता तीन भाई इसलिये माने जाते है क्योंकि सूर्य बुध शनि की युति जातक के दूसरे भाव मे है।  कन्या के केतु के द्वारा बारहवे भाव से सूर्य शनि बुध को देखे जाने के कारण जातक के पिता की ननिहाल या इसी प्रकार की जायदाद का मिलना भी पाया जाता है.शनि का दक्षिण दिशा तथा पूर्व दिशा से सम्बन्ध रखने के कारण जातक के पिता का प्राचीन स्थान दक्षिण से माना जा सकता है। जातक के धन का स्थान शनि बुध और सूर्य से ग्रसित होने के कारण जो भी कार्य पिता के रहते करवाये जाते है वे सभी अचल सम्पत्ति के रूप में समयानुसार काम देने वाले होते है.जातक के पास पिता के द्वारा खरीदी गयी जमीन काम देने केलिये भी नही मानी जाती है। शनि के असर के कारण जो भी जमीन है वह या तो बीहड बंजर के रूप मे होती है,या इसी प्रकार के क्षेत्र मे होती है। बुध खेती का कारक है इसलिये जातक के निवास से दक्षिण मे खेती की जमीन भी होती है। सरकारी पट्टे या इसी प्रकार की जमीन भी पिता को मिलती है। 
जातक की दो बहिने मानी जाती है एक बहिन दक्षिण में बुध के रूप मे होती है और एक बहिन दक्षिण पूर्व मे चन्द्रमा के रूप मे होती है,एक बहिन का लगाव अपनी माता से होता है और दूसरी बहिन का लगाव केवल अपने साधनो की सुरक्षा के लिये पिता से होता है एक बहिन माता से विमुख होती है एक बहिन पिता को ही अपनी कार्य योजना को निबटाने के लिये काम करती है। एक बहिन का पति बहुत ही जिम्मेदारी की पोस्ट पर किसी रक्षा या धन स्थान से सम्बन्ध रखने वाला होता है दूसरी बहिन का पति भी अपने पूर्वजो की जायदाद को छोड कर दूर जाकर बसता है। लेकिन जातक की शादी सम्बन्ध के लिये बडी बहिनो का असर माता के साथ अधिक रहने के कारण शादी विवाह का नियोजन करने मे सहायक होता है। गुरु का प्रभाव वर्तमान मे सप्तम मे होने के कारण और जन्म के शुक्र से युति लेने का समय आने वाले महिने में यानी 3 मार्च 2012 को मिलता है शादी की रस्म पक्की होने की तारीख यही मानी जाती है। शादी के लिये प्रभाव देने के लिये जो कारक सामने आयेंगे वे इस प्रकार से है:-

  • जातक की शादी के भाव को देखने के लिये बारहवे केतु की अष्टम द्रिष्टि है यह विवाह एक ऐसे व्यक्ति से इंगित करवाया जायेगा जो समाज से अपनी मर्जी से त्यक्त हो।
  • जातक की शादी की बात करने के लिये जातक का साला सबसे पहले अपनी बहिन के पास जायेगा (गुरु सप्तम से ग्यारहवा बडा भाई,चन्द्रमा बडी बहिन,मंगल बहिन का पति).लेकिन बहिन के पति की मारक द्रिष्टि केतु पर होने से जिसने यह रिस्ता इंगित किया है के दिमाग मे व्यवहारिक और सामाजिक तथा पारिवारिक कारण पैदा होने लगेंगे।लेकिन गुरु और चन्द्रमा के बीच मे मंगल होने से जातक का साढू अपनी इस सोच  को भी कन्ट्रोल करने के बाद अपनी योजना को कार्य योजना में रखने को मजबूर होगा।
  • जातक का हाल शादी के लिये उसी प्रकार से माना जा सकता है जैसे राम को प्राप्त करने के लिये तुलसीदास जी ने अपने को पहले प्रेत से जोडा था प्रेत ने हनुमान जी का रास्ता बताया था और हनुमान जी ने राम को मिलाया थ.उसी प्रकार से समाज से त्यक्त व्यक्ति साढू और रिस्ता इसी श्रेणी मे गिने जा सकते है.
  • जातक का जीवन साथी केतु के बारहवे होने और चन्द्रमा से अष्टम मे होने के कारण लम्बाई मेकम होगा.
  • शुक्र के बारहवां केतु जातक की पत्नी के लिये बडी जिम्मेदारियों को सम्भालने के कारण कार्य मे बहुत अधिक जिम्मेदारी भी देगा.
  • शुक्र का असर लगन पर होने से जातक हमेशा अपनी पत्नी के वश मे रहेगा.
  • शुक्र का स्वग्रही होने से जातक की पत्नी जातक के लिये कार्य व्यवहार और शिक्षा जैसे भाव मे रहकर आर्थिक सहायता भी करेगी तथा पिता माता और जातक के घर के क्लेश भी दूर करने की अपनी बुद्धि का प्रयोग करेगी.
  • जातक की शादी की साल में ही यानी पिछली मई 2011 से आगे आने वाले मार्च 2013 तक पिता बडी बहिन जमीन पूर्वजो की जमीन आदि के प्रति शंका ही देखी जा सकती है। वर्तमान मे जातक का गुप्त प्रभाव भी माना जा सकता है जैसे दिमाग मे कई रास्ते एक साथ चलने से जातक शादी के बाद अपने पूर्वजो की जमीन और पारिवारिक मतभेद को दूर करने के लिये अपने बडे भाई की गुप्त बीमारी जैसे ह्रदय रोग या किसी प्रकार के इन्फ़ेक्सन जैसे किडनी आदि की बीमारिया भी जातक को अपने बडे भाई पिता आदि के लिये समझी जा सकती है.

Friday, January 27, 2012

विभिन्न लगन और जीवन

जन्म के बाद जीवन के प्रति विभिन्न लगनो का योगदान अपने अपने अनुसार महत्व रखता है.जन्म समय से जन्म लगन,राशि के लिये चन्द्र लगन,द्रश्य संसार के लिये सूर्य लगन,जीवन मे आने का प्रभाव कारकांश लगन जीवन साथी और जीवन की लडाई के लिये देखी जाने वाली नवमांश की लगन को अधिक प्रयोग मे लिया जाता है। प्रस्तुत कुंडली कन्या लगन की है और लगनेश बुध मंगल चन्द्र के साथ कार्य भाव मे विराजमान है.लगनेश के चौथे भाव मे यानी लगन मे शनि गुरु विराजमान है,जातक को अति धर्मी का दर्जा दिया जाता है,लगनेश का साथ मंगल के साथ होने से जातक को तकनीकी बात करने वाला भी कहा जा सकता है लगनेश के साथ चन्द्रमा के होने से जागक को जनता के अन्दर अपने को तकनीकी कार्यो व्यापार आदि के लिये भी समझा जा सकता है। अष्तमेश मंगल है,तथा तृतीयेश भी मंगल है,मंगल का साथ लगनेश के साथ होना जातक के लिये एक प्रकार से दुखदायी माना जा सकता है। मंगल वैसे अमंगल नही करता है लेकिन जब मंगल का साथ बुध के साथ हो जाता है तो जातक के अन्दर अपने कार्य या व्यवहार के समय तकनीकी बाते बनाकर कार्य करने के लिये माना जा सकता है,यह कार्य व्यवहार उन लोगों को बहुत अधिक अखरता है जो सीधे सच्चे लोग होते है और अपने को कपट आदि से दूर रखकर अपने कार्यों को समाज हित के लिये किया करते है। लगनेश से तीसरे भाव मे शुक्र के होने से और शुक्र का कुंडली मे बारहवे भाव मे होने से जातक की दिमागी स्थिति को अधिक धार्मिक भी माना जा सकता है,जातक की रोजाना की जिन्दगी मे धर्म के प्रति अपनी आस्था को भी रखना जाना जा सकता है। लगनेश को बल देने वाले ग्रहों में मंगल चन्द्र और शनि है। इस प्रकार से जो प्रभाव लगन और लगनेश को मिलते है वह इस प्रकार से है:-
  • लगन:-कन्या लगन राशि से बुध का प्रभाव.
  • लगन:- कन्या लगन ग्यारहवे राहु का प्रभाव
  • लगन:- कन्या लगन दसवे मंगल का प्रभाव.
  • लगन:- कन्या लगन पंचम केतु का प्रभाव
  • लगन:- कन्या लगन गुरु का लगन मे उपस्थिति का प्रभाव
  • लगन कन्या लगन शनि का लगन मे उपस्थिति का प्रभाव
इस प्रकार से लगन को बल देने वाले ग्रह -बुध,राहु मंगल केतु गुरु शनि.
जातक के पास शरीर बल में बोलने की कला बुध से,धार्मिक व्यक्ति होने का आभास गुरु से,कार्य के अन्दर अधिक मेहनत करने का प्रभाव शनि से लाभ तथा अनन्य कार्यों के लिये बल देने वाला छाया ग्रह राहु सन्तान का भाव देने वाला ग्रह केतु को माना जायेगा.
इस भावना मे जातक के लिये बुध राहु कम्पयूटर और सोफ़्टवेयर आदि मे निपुण,मंगल के साथ मिल जाने से तकनीकी कार्यों मे दक्ष,गुरु के मिल जाने से धन और बचत आदि के कार्यों की जानकारी,शनि के साथ मिल जाने से बडे संस्थानो के प्रति मेहनत करने वाले कार्यों के लिये अपनी युति को प्रदान करने वाला माना जाता है.इसी प्रकार से शरीर की बनावट के लिये गुरु शनि से गेहुआं रंग मंगल के द्वारा प्रभाव देने से अस्पताली कारणो से अधिक जूझने वाला और रोजाना के कार्यों के अन्दर कोई न कोई दिक्कत का आना,गुरु के साथ मंगल का कन्ट्रोल करने का भाव जाति से घर सजाने और जंगली उत्पादन आदि से सजावट के कार्यों को करने वाला माना जाता है.
चन्द्र लगन को भी प्रभाव देने वाले ग्रहों में लगन की राशि से बुध बुध का उपस्थिति होना बुध का डबल योगदान,मंगल का साथ होना चन्द्रमा का साथ होना शनि के द्वारा दसम द्रिष्टि से चन्द्र लगन को बल देना माना जाता है। इस प्रकार से जातक की सोच आदि के लिये कमन्यूकेशन लोगो से मिलने जुलने और बातों के व्यापार से धन कमाने के कारण पैदा करना शनि गुरु के आपसी योगदान से जातक का कार्य करने का भाव प्राइवेट कम्पनी आदि मे धन की सार सम्भाल करना और केतु का अष्टम मे होना ब्रोकर जैसे कामो का करना होता है,केतु की युति शनि गुरु से होने से लोगो को वाहनो घरो और व्यापार के लिये धन आदि को प्राप्त करवाना आदि माना जाता है। राजकीय परिक्षेत्र मे भी जातक की रुचि अधिक होना माना जा सकता है तथा बडे बडे भवनो की सार संभाल करने का कारण भी इसी लगन से देखा जा सकता है।
सूर्य लगन पर जो जातक के लिये द्रश्य भाव को पैदा करता है और जातक की स्थिति को समाज मे प्रदर्शित करता है से लगन कर्क राशि की होने से चन्द्रमा का प्रभाव सूर्य का लगन मे होना सूर्य का प्रभाव राहु के स्थापित होने के कारण तथा राहु के द्वारा शनि गुरु केतु पर प्रभाव देने से जातक को या तो गृहस्थ सुख या धन दोनो मे से एक को ही प्रकट करने वाला माना जाता है,केतु का प्रभाव भी लगन पर होने से जातक को पिता के लिये ननिहाल या इसी प्रकार की जायदाद का मिलना या पिता को किसी राजकीय कार्य से धन का मिलना जो शनि के मृत्यु स्थान का कारक होने से और मंगल के प्रभाव से पेंसन आदि का मिलना और जरूरत पर पिता के पैसे का प्रयोग करना आदि भी माना जाता है। इस लगन से तीसरे भाव मे शनि होने से जातक के पिता के लिये और पूर्वज परिवार के लिये एक पूर्वजो का बनाया गया मकान भी माना जाता है और पिता तथा पिता के भाई आदि की बसावट से पूर्ण भी माना जाता है,सूर्य से बारहवे भाव मे मंगल बुध और चन्द्र के होने से जातक की बुआ बहिन आदि के लिये उनके पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वहन आदि जातक के पिता के द्वारा ही किया जाता है और जातक की पैदाइस के स्थान से बुआ बहिन आदि का रहने वाले स्थान से दक्षिण-पूर्व दिशा मे स्थापित होने का कारण भी जाना जाता है तथा अधिकतर मामले मे जातक की बोलचाल के कारणो मे जातक कमन्यूकेशन के क्षेत्र मे सरकारी संस्थानो के प्रति कार्य करना भी माना जाता है. इस लगन पर असर देने वाले ग्रह सूर्य राहु चन्द्र केतु ही है। तथा इन सभी ग्रहों के आपसी सहयोग से जो धारणा बनती है वह जातक के पिता परिवार और पूर्वजों के परिवार का अन्यत्र से आगमन भी माना जाता है और अपनी जाति आदि के लिये भी किसी प्रकार का बदलाव करने या नाम परिवर्तन का योग भी माना जाता है। 
नवांश की कुंडली को जीवन साथी के लिये भी देखा जाता है और जीवन मे लडी जाने वाली लडाइयों के लिये भी जाना जाता है जीवन की जद्दोजहद भी इसी कुंडली से देखी जाती है। प्रस्तुत कुंडली मे असरकारक ग्रह लगन को राशि से गुरु स्थान से केतु लगनेश को शनि और मंगल मंगल को असर देने वाले ग्रह राहु के साथ शुक्र का कारण भी देखा जा सकता है। बुध जो बातों के व्यापार के लिये भी जाना जाता है जो सूर्य और चन्द्र से युति रखने के कारण उन्ही संस्थानो मे सफ़ल होने के कारण देखता है जो वाहन जमीनी काम बैंक और फ़ाइनेन्स वाले काम सरकारी संस्थाओ के बेलेन्स करने वाले काम आदि माने जाते है इस लगन मे अक्सर धर्म से जुडा क्षेत्र भी देखा जाता है जैसे इस लगन मे धर्म का कारक ग्रह मंगल है लेकिन मंगल ग्रह वृश्चिक राशि का मालिक होने और यही राशि धर्म मे स्थापित होने के लिये जातक अटूट श्रद्धा मंगल के देवता हनुमान जी पर रखने वाला होगा लेकिन मंगल का उच्च राशि मे होने से और राहु की युति मंगल से होने के कारण जब तक जातक धर्म के देवता से अपनी युति को बनाकर चलता रहेगा तब तक उसके लिये कोई भी काम सफ़लता से रोकने मे कामयाब नही होगे,लेकिन जैसे जातक मंगल और शुक्र की आमने सामने की युति से प्यार मोहब्बत या कबूतर बाजी के चक्कर मे आयेगा यह मंगल अपनी युति से जातक के गुरु और शनि दोनो को राहु के प्रभाव से प्रताणित करने लगेगा जातक को शरीर की चोटो या बीमारी से भी ग्रस्त कर देगा और जातक केपास आने वाले धन को भी अपनी युति से बन्द कर देगा। जातक दो कामो से एक काम को ही मान्यता दे सकता है या तो वह हनुमान जी को मानता रहे या शुक्र के साथ केतु की युति वाली मे शाकिनी दोष से पीडित होकर अपने जीवन को बरबाद करता रहे,इस युति मे जातक अगर अपने माता पिता या समाज वाली स्थिति से शादी विवाह को रूप देता है तो यह शाकिनी दोष की सीमा से बाहर हो जाता है और यह मंगल जो उच्च की स्थिति मे राहु के साथ मिलकर अपनी युति को लाभ वाले स्थान मे दे रहा है वह जीवन की उन्नति मे जा सकता है।

राशियां और धन

आज अगर ईश्वर से समान भाव रखा जाता है तो वह धन के प्रति रखा जाता है। अमीर गरीब अच्छे बुरे नीच ऊंच धार्मिक नास्तिक सभी लोग धन की कामना करते है और यह भावना बनाकर रखते है कि धन उनके पास आता रहे वे धन से अपनी सभी इच्छाओं को पूरा कर सकते है। मन्दिरो मे जो भीड लगती है उनमे लक्ष्मी मन्दिर मे अधिक ही देखी जाती है,अन्य मन्दिरो मे तो केवल कुछ लोग ही अपनी उपस्थिति को विभिन्न कारणो से दे पाते है। जिस प्रकार से धन कमान के लिये त्रिकोण का प्रयोग किया जाता है और उस त्रिकोण मे साधन विद्या और पूंजी को समझा जाता है उसी प्रकार से धन के लिये जन्म कुंडली के चारो त्रिकोण अपनी अपनी युति से जातक को धन देते भी है और धन को लेते भी है। कही धन का विनाश हो जाता है कही धन जाता है और वापसी मे अधिक लेकर आता है कभी कभी थोडा सा धन बहुत धन प्रदान कर जाता है कही अधिक धन खर्च करने बाद भी धन की आवक नही हो पाती है। शरीर से धन कमाने के लिये शरीर को साधन के रूप मे प्रयोग करना पडता है और शरीर से विद्या को प्राप्त करने के बाद जो  पूंजी बनायी जाती है वह सही प्राप्त होने पर धन का त्रिकोण पूरा हो जाता है और धन की आवक शुरु हो जाती है। उसी प्रकार से धन को धन से कमाने के लिये धन के पूर्वजो के द्वारा या अन्य प्रकार से प्राप्त धन को कर्जा देने से तथा उस कर्जे के लिये वसूली ब्याज के रूप मे प्राप्त करने के बाद जो धन का त्रिकोण बनाया जाता है वह पूरा होते ही धन प्राप्त होने लगता है। यह सभी कुंडली के चारो त्रिकोणो से समझने के बाद ही प्राप्त करने का कारण बनाया जाता है। कुंडली का पहला त्रिकोण लगन पंचम और नवम भाव को माना जाता है,इस त्रिकोण के द्वारा शरीर विद्या और साधन के रूप में भाग्य का प्रयोग लिया जाता है। इसे प्राचीन काल में शरीर से मंत्र विद्या को प्राप्त करने के बाद धर्म स्थानो पर प्रयोग करने के बाद धन की आवक की जाती थी,इसी बात को शरीर को मेहनती बनाकर ताकत से पूर्ण करने के बाद रक्षा करने वाली विद्या को प्राप्त करने के बाद बडे संस्थानो या महत्वपूर्ण लोगो की रक्षा करने के बाद धन की आवक की जाती थी,जैसे रक्षा सेवा का कार्य। इसी प्रकार से जब किसी मशीन या किसी कारीगरी वाली विद्या को प्राप्त करने के बाद खुद के साधन बनाकर प्रयोग मे करने के बाद जो धन का कमाना जाता था वह व्यवसाय आदि से प्राप्त करने के लिये जाना जाता था।
विद्या के साथ तकनीक को शामिल करने के बाद क्षेत्र को खोजा जाता है और क्षेत्र मे लगने वाले समय के द्वारा नौकरी आदि का कारण बनाया जाता है उस नौकरी से मिलने वाली उन्नति में योग्यता को प्राप्त करने के बाद धन की प्राप्ति की जाती है। यह तकनीक व्यवसाय से कहीं अधिक जटिल है। लेकिन प्रतिस्पर्धा के जमाने मे इस तकनीक का लोग अधिक प्रयोग कर रहे है,विद्या मे तकनीक और क्षेत्र के बीच मे कोई मतभेद होने के बाद समय बेकार भी जा सकता है और नौकरी का मिलना नही माना जाता है इस प्रकार से जब नौकरी नही मिलती है तो उन्नति भी सम्भव नही होती है। धन की सोच को केवल मानसिक सोच तक ही सीमित रखा जाता है यह सब प्रकार कभी कभी अधिक फ़लदायी भी हो जाते है और कभी कभी बिना कारण के संकुचित भी रह सकते है। कुंडली का पहला भाव पंचम भाव और नवम भाव सही है तो शरीर धन के लिये मन विद्या के लिये रिस्क लेने का स्वभाव भाग्य देने के लिये तथा कार्य करने की योग्यता लाभ देने के लिये सही प्रकार बना लेती है उसी प्रकार से लाभ की मात्रा को सही खर्च करना नही आता है तो रोज कमाना रोज खाना भी हो सकता है। कुंडली के त्रिक भाव हमेशा अपनी योग्यता से जातक के अन्दर अपनी अपनी युति से साहस की पूर्ति करते है,अगर छठा भाव रोजाना के कामो के अन्दर अपनी योग्यता को प्रदर्शित करता है तो आठवा भाव छठे भाव की पूर्ति पर जोखिम लेने या रिस्क लेने के लिये अपनी योग्यता को अपने आप उसी प्रकार से प्रदान करता है जैसे रोजाना सूल का कष्ट झेलने वाले अचानक होने वाले तलवार के वार से अपने को सुरक्षित कर लेते है और जोखिम को भी झेलने के उनके अन्दर अजीब सी शक्ति का आना जरूरी हो जाता है। कुंडली का दूसरा त्रिकोण धन भाव छठा भाव और दसवा भाव कहा जाता है यहां पर जो धन परिवार से मिला है उसे अगर बचत करने या जमा योजनाओं से सुरक्षित रखा जाता है तो धन ही धन को बढाने लगता है उस बढाने के अन्दर अगर रोजाना के प्रयास किये जाते है तो वह धन सही रूप से सुरक्षित रह जाता है। तीसरा त्रिकोण धन के लिये नौकरी का कारण पैदा करता है शरीर की योग्यता और जान पहिचान के अलावा तीसरे सातवे और ग्यारहवे भाव के ग्रहों का सही प्रयोग करना आता है तो धन के लिये यह त्रिकोण प्रदर्शन करने से अपने जीवन साथी की सहायता से और जीवन साथी की योग्यता से अपने को सही स्थान मे कार्य रत कर लेते है उनके पास अपने शरीर की भी सार संभाल का जिम्मा जीवन साथी पर ही हो जाता है वे धन कमाने मे समर्थ हो जाते है।अलग अलग राशियों के लिये धन का प्रभाव इस प्रकार से माना जाता है:-

  • मेष राशि के लिये धन का कारक शरीर की ताकत विद्या मे अहम और भाग्य मे समाज या प्रतिष्ठान का बल शामिल होता है।
  • वृष राशि मे परिवार से मिली सहायता उस सहायता के लिये दिमाग मे चलने वाला सेवा भाव और उस सेवा भाव से किये जाने वाले कार्य धन देने के लिये अपनी योग्यता को देते है.
  • मिथुन राशि के लिये दिमागी रूप से शरीर को प्रदर्शित करने की कला,दिमाग के अन्दर किसी भी बात का बेलेन्स करने की क्षमता और मित्रों आदि की सहायता धन देने के लिये मानी जाती है.
  • कर्क राशि के लिये मानसिकता से रिस्क लेने की कला और संस्थान आदि संभालने की योग्यता धन देने के लिये मानी जाती है।
  • सिंह राशि के लिये खुद के दिमाग मे चलने वाली राजनीति कानूनी ज्ञान और लोगों के शरीर को काम मे लेने की कला धन देने के लिये मानी जाती है.
  • कन्या राशि के लिये भावना को समझने की कला सेवा करने की क्षमता और कार्य मे अपने को लगाये रहना तथा चेहरे से पहिचानने की कला से धन की प्राप्ति होती है.
  • तुला राशि के लिये अपने को बेलेन्स करने के लिये तैयार रखना मित्रता बनाने की कला और वृहद जानकारी का ज्ञान धन देने के लिये माना जाता है.
  • वृश्चिक राशि के लिये गुप्त रहने का कारण बडे संस्थानो की गुप्त जानकारी और मानसिक भावना को रिस्क वाले कारणो के लिये तैयार रखना ही धन को देने वाले कारणो मे जानी जाती है.
  • धनु राशि के लिये धर्म मर्यादा कानूनी बडी शिक्षा के रूप मे प्रदर्शन राजनीति का भरपूर ज्ञान और मनुष्य या जीव धर्म को सम्भालने की कला धन देने वाली मानी जाती है.
  • मकर राशि के लिये हमेशा कार्य मे लगाने का कारण धन को प्राप्त करने रहने की कला और सेवा के लिये अपनी भावना रखना ही धन देने की योगकारक नीति है.
  • कुम्भ राशि में मित्र बनाने योजना कमन्यूकेशन का पूर्ण ज्ञान और बेलेन्स करने की क्षमता ही धन देने के लिये मानी जाती है.
  • मीन राशि वालो के लिये जन्म स्थान को त्यागना बाहरी लोगों के साथ मेलमिलाप भावनाओं को समझने और प्रयोग करने की कला तथा गुप्त रूप से किया जाने वाला व्यवहार ही धन देने के लिये माना जाता है.

छठे भाव का मंगल

प्रस्तुत कुंडली वृष लगन की है और स्वामी शुक्र तीसरे भाव के मालिक तथा राहु के साथ तीसरे भाव मे विराजमान है.धनेश और बुद्धि के मालिक बुध है जो अपनी सप्तम द्रिष्टि से विदेश भाव की राशि मीन को लाभ भाव मे देख रहे है.हिम्मत और प्रभाव पैदा करने के मालिक चन्द्रमा है हो स्वग्रही होकर तीसरे भाव मे बैठे है और अपनी सप्तम द्रिष्टि से नवे भाव मे मकर राशि को अपनी द्रिष्टि दे रहे है.चौथे भाव के मालिक सूर्य है जो मृत्यु तथा जोखिम और अन्दरूनी ज्ञान के मालिक के साथ साथ लाभ भाव के मालिक गुरु के साथ विराजमान है तथा कार्य भाव कुम्भ राशि जो लाभ की तथा मित्रो की राशि मे अपना बल दे रहे है.पंचम भाव जो सन्तान विद्या बुद्धि खेलकूद जल्दी से धन कमाने की शक्ति के लिये जाना जाता है सीखने की कला और दूसरो को अपने कार्य से सन्तुष्टि को देने वाला है के मालिक बुध अपनी ही राशि मे विराजमान है साथ मे भाग्य के मालिक होने के साथ कार्य के मालिक शनि भी है। छठे भाव मे मंगल विराजमान है यह भाव कर्जा दुश्मनी बीमारी और रोजाना के कार्यों के लिये भी जाना जाता है मंगल जो विदेश का कारक है और जीवन साथी का भी कारक है के रूप मे इस राशि को अपना बल दे रहे है।
जीवन को बल देने के लिये और अपनी शक्ति से पूर्ण करने के लिये तर्क शक्ति का मालिक तथा अपनी अचानक कार्य करने वाली इच्छा शक्ति से पूर्ण होने मे राहु बल दे रहा है,यही राहु बुद्धि को भी एक साथ कई रास्तो पर ले जा रहा है इस राहु का प्रभाव ही जीवन साथी और साझेदार के रूप मे सप्तम भाव को अपन बल दे रहा है इस राहु का प्रभाव भाग्य मे होने के कारण भी भाग्य को एक साथ कई दिशायों से बल मिल रहा है,इस राहु का कई प्रकार से विदेशी लाभ देने के लिये भी नवी द्रिष्टि से पूर्ण होने के लिये माना जाता है.तीसरे भाव से शुक्र भी भाग्य विदेश और ऊंची शिक्षा के कारको को अपना बल दे रहा है चन्द्रमा भी अपनी सप्तम द्रिष्टि से नवे भाव यानी भाग्य भाव को बल दे रहा है। चौथे भाव का मालिक सूर्य है और सूर्य अपने ही राशि मे विराजमान है उसे गुर का बल मिला हुआ है,इस सूर्य का असर चौथे भाव के साथ साथ कार्य भाव पर भी है,गुरु जो रिस्क लेने वाले कारणो का मालिक है और लाभ की राशि मीन का भी मालिक अपनी युति से जातक को घर के सुख राजकीय सुख पिता का सुख राजनीतिक सुख के साथ साथ रोजाना के काम के अन्दर व्यापारिक तकनीक कर्जा दुश्मनी बीमारी आदि के भाव मे विराजमान मंगल जो जीवन साथी के भी मालिक है और विदेश मे रहने के बाद शरीर के सुख के लिये भी माने जाते है का प्रभाव गुरु के द्वारा शाही रूप से दिया जा रहा है। इन्ही गुरु का पूरा बल जोखिम और मृत्यु भाव की राशि पर होने के कारण जातक को इन कामो के अन्दर बहुत अच्छी जानकारी तथा किसी प्रकार के जोखिम मृत्यु आदि के कारणो मे अपने पूर्ण ज्ञान से युक्त होकर अपना बल दे रहा है। गुरु का प्रभाव कार्य भाव पर भी है जो लाभ की राशि होने के कारण गुरु अपने बल से जातक को कार्य के प्रति भी अपना बल दे रहा है। गुरु का नवा और भाग्य वर्धक प्रभाव जातक के बारहवे भाव मे भी है जो विदेश मे रहने और आराम करने यात्रा आदि करने विदेश मे व्यापार आदि करने के कारणो मे किये जाने वाले खर्चो आदि के लिये अपनी उत्तम ज्ञान की श्रेणी को प्रदान कर रहा है।

बुद्धि भाव मे शनि बुध के होने से तथा बुध के अपनी ही राशि मे होने से जातक को कम बोलना और सुनना अधिक मिलता है,मीठा बोलना और सेवा कार्यों के समय अपनी बुद्धि को गूढ रूप से प्रयोग करना भी मिलता है,इसके साथ ही बुद्धि के कारक बुध और शनि के साथ रहने से बुद्धि के अन्दर किसी भी काम को करने के बाद सीखने की युति सही मिलती है यानी इस प्रकार के जातक पढकर कम सीख पाते है और देखने के बाद काम को जल्दी सीखने की कला को रखते है। अक्सर खेल कूद मे इसलिये भी शामिल नही हो पाते है क्योंकि खेलकूद या शरीर की किसी भी मेहनत मे इन्हे बुद्धि को तभी प्रकट करना आता है जब यह किसी भी प्रकार से खुद के द्वारा उस खेल के प्रति आस्वस्त नही हो जाते है। अक्सर खेल वाले कारणो से इन्हे कोई न कोई दिक्कत जैसे चोट लगना सूजन आना आदि भी माना जा सकता है। शिक्षा के समय मे कोई न कोई चमडी वाली बीमारी या पेट की तकलीफ़ का होना भी माना जाता है.शनि की नजर जो भाग्य भाव के लिये मानी जाती है और कार्य भाव का कारण भी बुद्धि वाले कामो से जोड कर देखी जाती है,यह भाव या तो आयुर्वेदिक दवाइयों के लिये माना जाता है या किसी ऐसी नौकरी के लिये माना जाता है जो अस्पताली प्लास्टिक कारण पत्थरो का व्यवसाय स्कूल आदि को चलाने का काम मूर्ति आदि का बनवाना और बेचने का काम खेल कूद का सामान बनाना और खेल कूद आदि से सम्बन्धित काम,कम्पयूटर फ़ोटो फ़्रेमिंग आदि का काम,भी माना जाता है इन्ही कामो को शनि से आगे मंगल के बैठने के कारण जातक शिक्षा के बाद बेरोजगार नही रहता है उसे शिक्षा के पूरी करते ही कोई न कोई काम मिल जाता है और वह बेलेन्स करने वाले काम या छोटे भाई के साथ मिलकर कोई काम करने के लिये भी या छोटे भाई जैसे व्यक्ति के साथ काम करने के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग करने लगता है। जातक को कार्य के अन्दर किसी भी तकनीकी और व्यापारिक कार्य को करने तथा व्यापार आदि की तकनीक को बेलेन्स करने का अच्छा ज्ञान भी इसी शनि के द्वारा भी माना जा सकता है जो भी पारिवारिक सम्बन्ध कर्जा दुश्मनी बीमारी आदि के कारण बनते है वह सभी ठंडे होते है उनके अन्दर अक्सर किसी प्रकार के बुद्धि भ्रम के कारण जातक को अपने ही लोगो से बोलचाल आदि से दूर रहना पडता है यही कारण जातक को शिक्षा मे रुकावट भी डालता है और पत्नी से कभी कभी शीतवार की बात भी मानी जा सकती है,लाभ के मामले मे कभी कभी रुकावट भी आनी मानी जाती है तथा नकद धन की कमी भी हमेशा ही बनी रहती है। जातक को गूढ कार्यों की जानकारी और किसी भी काम मे लेबर आदि जैसे लोगों से बुद्धि से बनाकर चलने की आदत होती है अक्सर लेबर क्लास लोग इस प्रकार के जातक से हमेशा ही सन्तुष्ट भी होते है।

शनि की पहली नजर पत्नी भाव पर होने के कारण और बीच मे मंगल के होने से जातक पत्नी या साझेदार के सम्बन्ध के बीच मे तकनीकी कारण आने से अक्सर उत्तेजना मे आजाता है और जातक की पत्नी के प्रति तथा प्रेम आदि प्रकट करने मे ठंडक का होना भी माना जाता है यही कारण अक्सर दोस्तो के मामले मे भी माना जाता है जो जातक के या तो दोस्त बनते ही नही है और बनते भी है तो वही होते है जो काम काज मे साथ हो और काम के बाद उनसे कोई बडी सहायता की कामना नही की जाती है,जातक को बहुत मेहनत करने के बाद ही धन आदि और जीवन यापन के लिये धन की जरूरत को पूरा करना पडता है और इस मेहनत के कारण कभी कभी जातक का ध्यान अपने द्वारा किये जाने वाले कार्यों को अपनी तरफ़ से व्यापार के साथ जोडने की इच्छा भी होती है। जातक का अधिक मामले मे चुप रहना भी पारिवारिक लोगों को दूर रहने के कारणो मे माना जाता है।

जातक के छठे भाव मे मंगल है और मंगल का स्थान तुला राशि मे होने के कारण तथा मंगल पर गुरु की युति होने के कारण जातक अपने पिता और माता के ईश्वरीय कारण और धर्म आदि पर चलने के कारण जो भी तकनीकी कार्य करता है वह दूसरों को दिक्कत देने वाले नही होते है। जातक सबसे पहले अपने धर्म और कानून का ख्याल रखना जानता है साथ ही धर्म और कानून की इसी बात से जातक की पत्नी भी धर्म और मर्यादा पर चलने वाली होती है हालांकि उसके अन्दर पत्नी भाव से बारहवा मंगल होने के कारण किसी भी कारण को बेलेन्स लेने के समय या बाहर आने जाने के समय या किसी प्रकार के खर्चे के समय दिमाग मे उत्तेजना भी आती है उस उत्तेजना को शांत करने के लिये जातक अपनी अहम शक्ति का सही प्रयोग भी करता है और अपने परिवार की मर्यादा मे चलने के कारण अक्सर वह अपनी पत्नी की जल्दी से गुस्सा आने वाली आदत को दूर ही रखता है। उसे यह पता होता है कि जातक की पत्नी को कब गुस्सा आयेगा और कब उसे शांत किया जा सकता है। जातक की पत्नी भी अपने को अजीब कामो के अन्दर लगाकर अपने समय को अच्छी तरह से पूरा कर सकती है जातक की पत्नी किसी ऐसी बात से भी जुडी मानी जाती है जो काम इतिहास की द्रिष्टि से सही माने जाते है और जातक की पत्नी के द्वारा जो भी काम किये जाते है वह जातक के लिये उसके परिवार और समाज आदि के द्वारा हमेशा के लिये याद किये जाने वाले काम भी माने जाते है। अपनी मंगल वाली बेलेन्स करने की ताकत से जातक कभी भी किसी भी व्यापारिक या कानूनी काम मे या पत्नी पर आने वाले कष्टो को अपनी कन्ट्रोल करने वाली शक्ति से कानूनी विदेशी पुलिस अथवा असपताल बडी शिक्षा आदि को कन्ट्रोल रखने की एक अच्छी बुद्धि को रखता है। इसी प्रकार से जातक की पत्नी के लिये यह भी माना जाता है कि वह जो भी काम बेलेन्स करने वाले होते है बाहर आने जाने के समय मे किसी प्रकार की सन्तुष्टि जो भोजन या यात्रा मे रुकने वाले स्थानो आदि के लिये माने जाते है जातक को सहायता देने के लिये भी सही माना जाता है। इस मंगल का एक स्वभाव और भी माना जाता है कि जातक के धन सम्बन्धी कारणो को वह गुप्त रूप से सुलझाने की ताकत भी रखता है। जब भी कोई परिवार या घर  मे दिक्कत वाली बात आती है उस समय जातक अपने लोगो के अन्दर ही गुप्त रूप से गुत्थी को सुलझाने की हिम्मत भी रखता है और वह हिम्मत कभी भी खुलकर अलावा समाज के सामने नही आती है। वह अपने लोगो के अन्दर ही सामजस्य गुप्त रूप से निपटाकर अपने तकनीकी दिमाग का सही प्रयोग करना जानता है।

इस मंगल के दसवे भाव मे राहु चन्द्रमा और शुक्र के होने से जातक के अन्दर जमीनी कारणो वाहन होटल आदि के लिये भी सही माना जा सकता है जातक वाहन चलवाने छोटी यात्रा को करवाने के लिये कार्य करने टिकट आदि के कार्य करने लोगों को यात्रा टूर आदि करवाने के कामो मे भी निपुण माना जाता है इसके बाद जातक अपने द्वारा कोई भी व्यापारिक कार्य जो जनता से जुडे होते है वह कार्य चाहे कम्पयूट से या नेट वर्किंग से जुडे होते है भवन या कार्य स्थान पर किसी प्रकार की शक्ति जो अद्रश्य रूप से एल्कोहल या पेट्रोल डीजल या गैस से सम्बन्धित होते है करना अच्छी तरह से जानता है जातक का दिमाग द्रश्य और विजुअल मीडिया आदि के प्रति भी कार्य करना अच्छा योग यह मंगल देता है इसके द्वारा अगर जातक का कोई छोटा भाई है तो वह भी अपने को गूढ रूप से इसी प्रकार के कार्यों मे ले जाकर अपने को सफ़ल कर सकने मे समर्थ होता है।

यह मंगल सूर्य से तीसरा होने के कारण पिता के प्रति कभी छोटे भाई बहिन यानी चाचा बुआ आदि से कोई सहायता की बात को नही करता है पिता की स्थिति तकनीकी रूप से अपने को समाज मे प्रस्तुत करने और पिता की कार्य शैली मे एक आक्रमता होने व्यापारिक गुणो को भरपूर रूप से प्रयोग करने भोजन रहने वाले स्थान ठहरने वाले स्थानो के प्रति अच्छी जानकारी होने तथा राजनीति मे अच्छी पकड होने शिक्षा के क्षेत्र मे खुद की शिक्षा संस्था आदि चलाने या खेती के प्रति जमीनी काम अच्छी तरह से आने की वजह से पिता का सफ़ल होना माना जा सकता है। पिता के कारक सूर्य का गुरु के कारक जीव के साथ होने से जातक के पिता के लिये अक्सर यह भी माना जाता है कि वह जीवात्मा का योग लेकर पैदा होता है और ईश्वर अंश की उपस्थिति होने से जातक के लिये और जातक के परिवार के लिये कभी भी कोई शैतानी चाल सफ़ल नही हो पाती है और जब कभी पैदा भी होती है तो वह जातक की पत्नी की तरफ़ से अजीब से काम करने के बाद ही पैदा होती है लेकिन सूर्य और गुरु की युति मिलने से जातक के लिये के लिये समय पर कोई न कोई सहायता मिल जाती है। मंगल से चौथे भाव मे केतु के होने से जातक के लिये विदेश मे रहकर ईशाई समुदाय से अपने को जोड कर रखना पडता है और कार्य मे वह धर्म या कानून या विदेशी एजेन्ट के रूप मे अपने को शामिल करने के बाद अच्छी कन्ट्रोल रखने वाली स्थिति को भी कायम रखना जानता है। जातक की कई भाई होने के बाद भी इकलौती औकात का भी होना माना जाता है,इस केतु के कारण जातक को कभी कभी लाभ के मामले मे दिक्कत का होना या शरीर पर या रीढ की हड्डी मे कोई दिक्कत होना चोट लगना आदि भी माना जाता है साथ ही सरकारी सहायता एन जी ओ जैसे कार्यों मे भी जातक को अच्छी पकड का होना माना जाता है। जातक की पत्नी के तीसरे भाव मे केतु के होने से जातक की पत्नी धर्म वाले कामो मे आगे रहती है यह कारण जातक के प्रति सन्तान आदि के मामले मे पहले तो दिक्कत का कारण देना माना जाता है लेकिन समय पर जातक की पत्नी अपनी कमन्यूकेशन वाली आदत से कोई  न कोई सहायता का कारण खोज लेती है।

इस कुंडली मे एक बात और भी देखने के लिये है कि राहु और केतु के बीच मे कोई ग्रह नही है लेकिन राहु और केतु के आगे शुक्र और चन्द्रमा के होने से जातक का सहायता वाला कारण भी पूरा हो जाता है जातक के लिये तीसरे भाव मे राहु तथा चन्द्रमा के साथ राहु का होना जातक की पत्नी को तो चिन्ता मे ग्रस्त रखने वाला माना जाता है लेकिन जातक को फ़िल्म मीडिया टीवी आदि को देखने का शौक तथा सजावटी कामो के अन्दर अथवा किसी प्रकार के बिजली आदि के कामो मे सफ़लता को देने वाला भी माना जाता है। जातक के तीसरे भाव मे राहु की उपस्थिति से जातक की माता का स्वभाव आशंका से पूर्ण भी माना जाता है और समय पर जातक की परिवार से दूर की महिलाओं के द्वारा सहायता मिलने के कारण जातक कभी भी अपनी घरेलू परेशानियों से युक्त नही हो पाता है।

जातक के भाग्य का मालिक शनि है जो मंगल से बारहवा है इसलिये अगर जातक शनि के उपाय करता रहता है तो जातक को कठिन मेहनत करने की जरूरत नही पड सकती है तथा अपनी दिमागी शक्ति से वह अपने धन यश और जीवन के कई सुख प्राप्त करने का अधिकारी बन जाता है लेकिन शनि बुध के एक साथ होने से जातक के लिये वही शनि के रत्न धारण करना चाहिये जो बुध की शक्ल के हो और बुध के रंग में रंगे हों।

Friday, January 20, 2012

चौथे और सप्तम की चिंता

चौथे और सप्तम की चिन्ता
प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और स्वामी सूर्य धनु राशि का होकर बुध के साथ पंचम स्थान मे विराजमान है.सूर्य को युति देने वाले ग्रहों मे वक्री गुरु और राहु भी है बुध का साथ जन्म से ही है.गोचर से मंगल का गोचर वर्तमान मे सिंह राशि मे चल रहा है इसलिये जातक की चिन्ता मंगल की द्रिष्टि के अनुसार मानी जाती है।मंगल अपनी चौथी द्रिष्टि से मकान के लिये अपनी सोच को देता है और सप्तम से पत्नी के लिये अपनी सोच को प्रदान कर रहा है किसी भी सोच को पूरा करने के लिये हमेशा चन्द्रमा का साथ जरूरी है इसलिये आज चन्द्रमा भी राहु के साथ होने से तथा चन्द्रमा का विचार गोचर के केतु के साथो होने से गुप्त रूप से होने वाली पत्नी के लिये भी विचार दिमाग मे चलना पाया जाता है.कुंडली मे घर का मालिक भी मंगल है और धर्म भाग्य पिता और लम्बी यात्रा का मालिक भी मंगल है इस मंगल के गुरु और राहु के संयुक्त प्रभाव से जातक का सोचना कार्य से नही माना जा सकता है केवल वह सोच को प्राप्त करने के लिये अपने ठंडे दिमाग का प्रयोग करने के लिये माना जाता है शनि का स्थान वक्री होकर धन स्थान मे नौकरी की राशि मे है और इस शनि का साथ बारहवे भाव के मालिक चन्द्रमा से भी है और त्रिकोण के अनुसार कार्य भाव का मालिक शुक्र तथा प्रदर्शन के भाव का मालिक शुक्र भी शनि चन्द्र के साथ है वर्तमान मे कार्य स्थान मे केतु भी अपने गोचर से कार्य कर रहा है। जातक का गुप्त प्रेम भी इसी केतु के द्वारा छठे भाव मे शुक्र पर होने से कार्य मे साथ काम करने वाली स्त्री से होना माना जाता है।शनि जब भी चौथे भाव मे गोचर करेगा तभी जातक का मकान बनेगा और गुरु जब जन्म के केतु के साथ गोचर करेगा तभी शादी का होना माना जा सकता है.

केतु की छाया

राहु केतु का प्रभाव जीवन मे बहुत ही दुखदायी होता अगर राहु केतु कही भी अपनी युति को त्रिक भाव मे जन्म समय से रखते है.प्रस्तुत कुण्डली मे जन्म समय के ग्रहो मे केतु और राहु का स्थान अष्टम और दूसरे भाव मे है,जन्म के केतु का प्रभाव अष्टम स्थान मे है दसवे स्थान मे है,बारहवे स्थान मे है,दूसरे स्थान मे है और चौथे स्थान में है.राहु का प्रभाव दूसरे स्थान मे है चौथे स्थान मे है छठे स्थान मे है आठवे स्थान मे है दसवे स्थान मे है.गोचर से जब राहु केतु अपने प्रभाव से दूसरे चौथे छठे आठवे दसवे बारहवे भाव को अपनी छाया मे ले लेते है तो इस केतु को पिशाच की छाया से ग्रसित कहा जाता है,यह तभी माना जाता है जब केतु का स्थान जन्म से ही अष्टम स्थान में हो। इस केतु के गोचर से जो प्रभाव जातक के जीवन मे पडते है वह केतु के अस्पताली भाव मे होने से दवाइयां चलना लेकिन कोई फ़ायदा नही होना,केतु का प्रभाव सीधे से दसवे भाव मे होने से काम काज पिता और पिता के धन को बरबाद करने वाली स्थिति का होना बारहवे भाव पर असर होने के कारण आराम नही होना और किसी भी बडे से बडे सन्स्थान मे चैक अप करवाने के बाद कोई भी रिजल्ट नही निकलना दूसरे भाव पर असर होने के कारण पिता और माता की कमाई का अधिकांश हिस्सा दवाइयों और अस्पताली कारणो मे तथा यात्रा बाहर के आने जाने ठहरने के कामो मे खर्च होना,चौथे भाव मे केतु का असर होने से रहने वाले घर मे हमेशा एक नकारात्मक शक्ति का उपस्थित रहना। इस केतु की उपस्थिति का एक कारण और भी देखा जाता है कि जातक का मुंह लम्बा होता जाना दांतो का बाहर निकलते जाना रोजाना के कार्यों का नही होना मल मूत्र आदि मे बदबू आना पीठ मे अधिक लेटे रहने के कारण बदबू आने लगना,जहां भी आराम किया जाता है वहां पर दवाइयों और इसी प्रकार की बदबू का भरा रहना। इस केतु के कारण जो भाव प्रभावित होते है वे भोजन करने के कारण यानी भूख का नही लगना,सांस मे दिक्कत आने लगना हाथ पैर पतले होते जाना किसी भी काम को करने मे दिक्कत होना मल मूत्र त्याग मे कठिनाई होना काम के स्थान पर बदबू का बना रहना,अस्पताली कारणो मे खर्च होने से घर की अलावा प्रगति मे बाधा होना।
क्यों होता है यह प्रभाव जातक के साथ
जातक का केतु जब अष्टम में खराब राशि मे तभी बैठता है जब माता के द्वारा अथवा पिता के कार्यों के द्वारा किसी प्रकार से केतु को सताया जाता है। जैसे पिता के द्वारा शादी के बाद ससुराल खानदान मे सालो को परेशान किया जाना,बहिन के पुत्र पुत्रियों को उनका हिस्सा नही देना,बहनोई और जंवाई आदि को किसी प्रकार से दिक्कत का देते रहना। कुत्तो को मारना सूअर या मुर्गे आदि को हत्या के बाद खाना मछली को आहार के रूप मे लेना,जो लोग साथ मिलकर काम करते है उनके साथ दगा करना और उनकी मेहनत को हजम करते जाना,किसी जनता की सार सम्भाल वाली कार्य योजना मे अपनी राजनीति को चलाकर अधिक लाभ लेने के चक्कर मे धोखा देना,मजदूरो की मजदूरी को हजम कर जाना या उन्हे धोखा देना ब्याज के काम करना और किसी को भी प्रताणित करने के बाद केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु धन को ग्रहण करना और जरूरत वाले व्यक्ति को भटकने के लिये मजबूर कर देना,किसी प्रकार से रक्षा सेवा मे जाना और अपने अत्याचार से निर्बलों पर अपने बल को प्रयोग करना उन्हे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताणित करना,मिले अधिकारों का गलत रूप मे प्रयोग करना आदि माना जाता है। इस प्रकार से जातक की सन्तान खुद का शरीर उम्र की तीसरी अवस्था मे बरबाद होना शुरु हो जाता है,सन्तान बीमार बनी रहती है या किसी प्रकार के गलत काम करने के बाद उसे बरबादी की तरफ़ जाना पडता है,हाथ पैर या रीढ की हड्डी की बीमारी या एक्सीडेंट आदि में बरबाद होना पडता है और जातक चलने फ़िरने के लिये मजबूर हो जाता है,सन्तान जिसके लिये धन को जोडा गया होता है वह धन अस्पताल मे या किसी प्रकार के मुकद्दमे मे या फ़िर छल से हरण कर लिया जाता है।
उपाय
केतु की इस छाया को रोकने के लिये अनैतिक काम एकदम बन्द कर देने चाहिये। शराब मांस मदिरा मछली आदि का खाना बिलकुल बन्द कर देना चाहिये। घर के अन्दर भी इस प्रकार के कारण नही पैदा होने चाहिये। अपने जीवन को सदाचार और लोकहित मे लगा लेना चाहिये। घर मे एक अखंड दीपक का चलना जरूरी होता है। घर के अन्दर कूडा करकट और इसी प्रकार के कारक दक्षिण पश्चिम दिशा मे या ईशान कोण मे नही होने चाहिये। मछलियों को पालने का उपक्रम करना चाहिये एक्वेरियम को लगाकर नौ या ग्यारह मछलिया पालनी चाहिये। गणेशजी की पूजा पाठ मे मन लगाना चाहिये। जंवाई बहनोई भानजे भानजी भतीजे भतीजी को कभी उदास नही करना चाहिये,मजदूर की पूरी मजदूरी देकर उसे भेजना चाहिये,अगर किराये से ही गुजारा होता हो तो किराये का कुछ भाग केतु से सम्बन्धित रिस्तेदारों को दान मे या भोजन आदि में व्यय करना चाहिये,अगर कोई जनता से सम्बन्धित कार्य जैसे रक्षा आदि का मिला है तो अपने शरीर से किसी को किसी भी कारण से कष्ट नही देना चाहिये,केतु का रत्न लहसुनिया जो हरे और पीले रंग की हो पंचधातु के अन्दर गले मे पहिननी चाहिये। केतु की चीजे जैसे काले सफ़ेद तिल आबादी के बाहर शमशानी स्थान मे खड्डा खोदकर दबाना चाहिये,कम्बल या धारीदार कपडे गरीब और असहाय लोगो को दान करना चाहिये। 

Monday, January 2, 2012

सिंह राशि

एक व्यक्ति अपनी सीमा मे रहकर अपने कामो को करता हो,अपने ही परिवार की मर्यादा के पालन मे लगा रहता हो,जिसे अपनी जीविका के लिये बहुत भाग दौड करनी पडती हो,जिसने अपने शरीर को अपने जीवन साथी के हवाले कर रखा हो,जब तक हिम्मत रहे तब तक जो अपने प्रयासों में लगा रहे,जब हिम्मत जबाब दे जाये तो अपने को एकान्त मे लेजाकर भूखे प्यासे मरने के लिये शरीर को छोड दे,जिसकी पाचन क्रिया कभी भी सही नही रही हो,जो अपना ही राज्य अपने को शक्तिशाली रहने तक कायम रखना चाहे,जिसके बच्चे अपनी ही शक्ति से आगे बढना जानते हो,जिसे अपने आसपास के माहौल में अपनी ही इज्जत को रखने का ख्याल हमेशा रहे,अपने परिवार अपने घर और अपने ही गांव शहर की राजनीति से जिसे गुस्सा भी आती हो और किसी अंजान की उपस्थिति के कारण उसे कष्ट होता हो यह सब बाते सिंह राशि के अन्दर मानी जाती है। सिंह राशि का व्यक्ति आज्ञा नही लेना जानता है वह केवल आज्ञा देना जानता है,उसे किसी प्रकार के सुख दुख की चिन्ता नही है उसे केवल अपने स्वाभिमान की चिन्ता है वह अपने स्वाभिमान के लिये भूखा भी रह सकता है,अकेले रहकर मरना पसन्द कर सकता है लेकिन हार कर मरना उसके वश की बात नही होती है,अपनो से पीडित होकर वह अकेली अपनी दुनिया को बसाना पसंद करता है लेकिन अपनो से पीडित होकर रहना पसन्द नही होता है। इस राशि वाले व्यक्ति अपनी मानसिकता को हमेशा खतरे से खेलने के लिये ही कायम रखना चाहते है।वे किसी बात से डरते नहीं है अपनी शक्ति के अनुसार ही अपने को जोखिम में डालने के लिए हमेशा तैयार रहते है जब तक सामने वाले किसी भी व्यक्ति की ताकत का अंदाज नहीं लगा लेते है तब तक उससे उलझाते नहीं है,अगर किसी प्रकार की मर्यादा की बात सामने आजाती है तो अपनी जान को जोखिम में डालकर अपने को उलझा लेते है.

साथ चलने वाले लोग अक्सर इनसे स्वार्थ की पूर्ती की भावना को रखते है जैसे ही उनका स्वार्थ पूरा हो जाता है वे साथ छोड़ देते है और यह भी देखा जाता है जब तक इस राशि वाले कमाने और इकट्ठा करने की हिम्मत रखते है कितने ही लोग इनके साथ हो जाते है और जैसे ही इनके पास पूंजी या साधनों की कमी हो जाती है वही लोग दूर हो जाते है और बुराई भी देने लगते है.महिलाय पुरुषो की तरफ और पुरुष महिलाओं की तरफ अधिक आकर्षित होते है जो कमजोर और डराने वाले स्वभाव के लोग होते है वह इनसे दूर ही रहने की कोशिश करते है.इनके लिए लाभ का कारण तभी देखा जाता है जब इनके अन्दर कर्जा करने दुश्मनी को निपटाने और सेवा करवाने वाले साधनों से आय होती रहे,यह अपने को हमेशा किसी न किसी प्रकार के कमन्यूकेशन के साधन से जोड़ कर रखते है और जैसे ही इनके पास कोइ आफत या कोइ बिना बतायी मुशीबत आती है यह अपने को अपने कमन्यूकेशन के द्वारा अपने साधनों को इकट्ठा कर लेते है और डट कर मुकाबला करते है.जोखिम लेकर काम करने की आदत होने के कारण यह अपने को समाज परिवार या रहने वाले स्थान में चमका कर रखते है,विपरीत सेक्स वाले लोग इनसे अपने फ़ायदा को उठाना जानते है.स्त्री से पुरुष अपने फायदे को ले सकता है और पुरुष स्त्री से अपने फ़ायदा को ले सकती है बाकी के लोग तो इनसे अपने स्वार्थ की पूर्ती को ही करना जानते है.अपने खून के लोगो के लिए इनका स्वभाव माफिक होता है जब भी कोइ मुशीबत अपने खून के लोगो पर देखते है तो उनकी सहायता के लिए आगे आजाते है और इसी प्रकार की सहायता के बाद जब उनके खून के लोगो की स्वार्थ की भावना पूरी हो जाती है तो वे अक्सर इस प्रकार के लोगो की बदनामी किसी न किसी कारण से करते देखे जाते है,इनके अंदरूनी  दुश्मन अधिक होते है,वे किसी न किसी प्रकार इस राशि वालो की जड़ को काटा करते है.मामा भांजा भतीजा भतीजी भांजी साले और देवर जेठ आदि इस राशि वालो की जड़ को हमेशा काटने के लिए या शक्ति को कम करने के लिए अपनी राजनीति को हमेशा चला करते है,इनके खुद के भाई कुछ समय तक लगाव तो रखते है लेकिन भाई के जीवन साथी हमेशा ही इस राशि वालो की काट किया करते है.उन्हें यह डर रहता की कही अधिक औकात होने के कारण इस राशि वाले लोग उन्हें कोइ सामाजिक आर्थिक या किसी अन्य किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचा दे.परिवार के लोगो की राजनीति के कारण ही इस राशि के लोग अपने परिवार से दूर रहना पसंद करते है वे अक्सर अपने परिवार को कभी कभी हमेशा के लिए भी छोड़ देते है और जब वे अपने परिवार से दूर चले जाते है तो पीछे की बातो को भूल भी नहीं पाते है इसलिए उनका परिवार से सामजस्य भी नहीं बैठ पाता है,माता पिता के रहने तक तो वे अपने परिवार से जुड़े रहते है और उसके बाद दूरिया बढ़ती ही जाती है,यह दूरिया कभी कभी इस राशि वाले जातको को अंधेरी दुनिया में खो जाने के लिए भी मानी जाती है.

इस राशि के जातक अपनी मजबूरी में अपने को किसी नशे का आदी बना लेते है,अगर उनकी घर परिवार में चलती नहीं है तो वे अपने को अकेला रखने के लिए अपने शरीर को दूर नहीं रख सकते है तो अपने को मन से दूर रखने के लिए किसी नशे का आदी बना लेते है.अक्सर इस राशि वाले जातक तुरत नशा देने वाले कारको को पसंद नहीं करते है उन्हें उन्ही नशों की जरूरत पड़ती है जो उन्हें लम्बे समय तक अपने शरीर से दूर रखे और उन्हें अपनी सुधबुध नहीं रहे,इस प्रकार के नशे अधिकतर गांजा भांग अफीम और इसी प्रकार की वस्तुओ से माने जाते है.धुंआ वाले नशे इनके प्रिय होते है और गांजा सुल्फा बीडी सिगरेट आदि इनके लिए अधिक पसंदीदा नशा मानी जाती है.इस बात के लिए एक बात और मानी जाती है की इस राशि के चौथे भाव में जो फेफड़ो का कारक है और सांस लेने का कारक है में वृश्चिक राशि का होना भी माना जा सकता है इसके लिए एक बात और भी मानी जाती है की इनके माता परिवार में अक्सर कोइ बड़ी दुर्घटना होने के बाद वहां पर शमशानी माहौल ही बना रहता है,किसी प्रकार की अजीब से शमशान जैसी शान्ति जिसे समझने के लिए इस राशि के चौथे भाव की वृश्चिक राशि को समझना जरूरी होता है,इस राशि वाले लोगो की माता का स्वभाव अक्सर खरा होता है और वह किसी भी सामाजिक पारिवारिक और घरेलू कारण को प्रकट करते समय चुभने वाली बात को ही करना जानती है,अक्सर उन्हें भी रहने के लिए या अपने परिवार की पालना के लिए उन्ही स्थानों में रहना पड़ता है जहां पर कुछ भे ऐसा हासिल नहीं हो जो जल्दी से प्राप्त किया जा सके,चाहे वह भोजन हो या अन्य सुख सुविधा की वस्तुए हो.माता का रूप अक्सर विधवा रूप में भी देखने को मिलता है या पिता की लम्बी दूरिया भी इस राशि वालो के लिए देखी जाती है.

इस राशि वालो के लिए बड़ी संतान इनका नाम चलाने के लिए मानी जाती है,छोटी संतान अपने दोहरे प्रभाव के कारण इनके मन से दूर रहती है और छोटी संतान का जीवन साथी अक्सर इस राशि वालो के लिए दुःख देने का कारण भी होता है और दूर रहने के लिए भी माना जा सकता है जबकि छोटी संतान के लिए ही इस राशि वाले सबसे अधिक प्रयत्न भी करते है और उसकी सुख सुविधा के लिए अपने साधनों को भी प्रदान करते है लेकिन फिर भी वह अपने मन से नहीं चलने के कारण इनसे मानसिक दूरिया बनाकर ही चलती है.बड़ी संतान माता के लिए और छोटी संतान पिता के लिए हमेशा ही विपरीत प्रभाव को देती हुयी मानी जाती है यह शास्त्रीय कथन भी है और जग की मान्यता तथा सामाजिक उदहारण भी माना जा सकता है.तीसरे नंबर की संतान परिवार और सामाजिक मर्यादा से आने को लेकर चलने वाली होती है और अक्सर न्याय विदेश धर्म बड़ी यात्रा तीसरी नंबर की संतान के कारण ही करना पड़ता है और इन्ही कारणों में उलझाने के लिए भी माना जा सकता है जीवन की गति को ठहराने वाले कारको में तीसरी संतान का रूप ही अधिक माना गया है.चौथे नंबर की संतान का रूप इनके लिए लाभकारी सिद्ध होता है और जब से चौथे नंबर की संतान पैदा होती है इनके परिवार में घर में और सामाजिक रूप से इनकी बढ़ोत्तरी शुरू हो जाती है,पांचवी संतान से इन्हें शरीर सुख की प्राप्ति का होना भी माना जाता है लेकिन सौ में से नब्बे कारणों में पांचवी संतान अधिकतर ज़िंदा नहीं रहती है,उसके रूप में इस राशि वालो के पास में कोइ अन्य व्यक्ति इनकी सेवा रहना पाया जाता है.दूसरे नंबर की संतान का जीवन साथी के मामले में अक्सर दुःख ही देखने को मिलता है या तो छोटी संतान का जीवन साथी मन मर्जी का अधिकारी होता है और अपने मन की करने के कारण समाज परिवार या घर में बहुत ही उद्दंड हो जाता है या वह अपने चालाकी से अपने परिवार को तोड़ने के लिए माना जा सकता है इस राशि वालो के जीवन साथी के लिए भी दूसरे नंबर की संतान का जीवन साथी दुःख देने और मर्यादा का हनन करने के कारण मन से नहीं रह पाता है.

इस राशि वालो का बड़ा भाई बहिन आदि दूर ही रहने के लिए माने जा सकते है छोटे भाई बहिन का पद उत्तम हो जाता है और उन्हें इनके भाग्य से कोइ न कोइ बढ़िया जीवन जीने का साधन मिल जाता है.इस राशि वाले अक्सर अपने छोटे भाई के साथ या बहिन के साथ कोइ साझा काम करने के लिए भी माने जाते है और इस साझे के काम में अक्सर उन्हें फ़ायदा होना ही देखा जाता है.लेकिन यह भी देखा जाता है की छोटे भाई बहिन की अधिक उपस्थिति से इन्हें धन और भाग्य की प्राप्ति तो होती है पर कुछ समय बाद वे भी अपने स्वार्थ को पूरा करने के बाद दूर होते देखे जाते है.इस राशि वालो के लिए भाग्य की कारक वस्तुओ में वही कारक अधिक उत्तम माने जाते है जो तीसरे भाव से सम्बन्ध रखते है जैसे कमन्यूकेशन के साधन पश्चिम दिशा हीरा जिरकान या नीलम आदि मुख्य है.छोटे भाई के जीवन साथी की सहायता से इन्हें जीव बल मिलता है और पत्नी के छोटे भाई बहिन इनके लिए भाग्य के कारक पूर्वजो के प्रति सामाजिक मर्यादा को लगातार जीवित रखने के लिए भी अपने बल को देने वाले माने जा सकते है.इनके लिए दुर्भाग्य देने वाले बड़े भाई बड़ी बहिन के परिवार समाज और जान पहिचान के लोग मुख्य रूप से देखे गए गए.सरकारी कार्यों में अधिक मन को लगाने से तथा राजनीति के कारण भी इनकेलिये दिक्कत देने वाले माने जा सकते है,इनके लिए जोखिम और अपमान की दिशा दक्षिण-पूर्व है तथा बड़े संस्थानों की हिस्सेदारी करना जेल संबंधी कारणों से लगाव रखना,किसी बने मंदिर चैरिटेबल संस्थान की स्थापना करना भी दिक्कत का कारण माना जा सकता है.इन्हें वायु प्रदान करने तथा अपच को पैदा करने वाले भोजन से बचना चाहिए,भोजन के बाद इन्हें तुरत आराम नहीं करना चाहिए. नारायण भज भैया,जय हो जगदीश की.