Friday, December 21, 2012

कन्या राशि मे चन्द्र मंगल की युति बनाम मानसिक क्रूरता

चन्द्रमा मन का राजा है,"मन है तो जहान है मन नही है तो शमशान है",यह कहावत चन्द्रमा के लिये बहुत अच्छी तरह से जानी जाती है। पल पल की सोच चन्द्रमा के अनुसार ही बदलती है चन्द्रमा जब अच्छे भाव मे होता है तो वह अच्छी सोच को कायम करता है और बुरे भाव मे जाकर बुरे प्रभाव को प्रकट करता है। लेकिन जब चन्द्रमा कन्या वृश्चिक और मीन का होता है तो अपने अपने फ़ल के अनुसार किसी भी भाव मे जाकर राशि और भाव के अनुसार ही सोच को पैदा करता है। जैसे मेष लगन का चन्द्रमा अगर कर्क राशि मे है तो वह भावनात्मक सोच को ही कायम करेगा अगर वह लगन मे है तो अपनी काया के प्रति भावनात्मक सोच को पैदा करेगा और वृष राशि मे है तो अपने परिवार के लिये धन के लिये और भौतिक साधनो के लिये भावनात्मक सोच को पैदा करेगा वही चन्द्रमा अगर मिथुन राशि का होकर तीसरे भाव मे चला गया है तो वह केवल अपने पहिनावे लिखने पढने और इसी प्रकार की सोच को पैदा करेगा,अष्टम मे है तो वह अपनी भावनात्कम सोच को अपमान होने और गुप्त रूप से प्राप्त होने वाले धन अथवा सम्मान के प्रति अपनी सोच को रखने के साथ साथ वह मौत के बाद के जीवन के प्रति भी अपनी सोच अपनी भावना मे स्थापित कर लेगा। इसी प्रकार से कन्या राशि का चन्द्रमा अगर अच्छे भाव मे है तो वह अच्छी सोच को पैदा करने के लिये सेवा वाले कारणो को सोचेगा और बुरे भाव मे है तो वह केवल चोरी कर्जा करना और नही चुकाना दुश्मनी को पैदा कर लेना और हमेशा घात लगाकर काम करना आदि के लिये ही सोच को कायम रख पायेगा। यह कुंडली मीन लगन की है गुरु जोखिम के भाव मे विराजमान है साथ मे शुक्र जो जोखिम के भाव का मालिक भी है और हिम्मत को भी प्रदान करता है का कारक भी है शुक्र के प्रति कहा जाता है कि जब शुक्र वक्री होता है तो वह अपने भाव और राशि के अनुसार अपने फ़ल को दूसरो को बताने और अपने काम को दूसरो के द्वारा करवाने के लिये भी माना जा सकता है। शुक्र का गुरु के साथ होने का मतलब होता है कि व्यक्ति अपनी ही सोच के कारण अपने मन मे ही सीधी और उल्टी सोच को कायम रखता है,वह अच्छा सोचता भी है तो बुरी सोच उसे अपने आप परेशान करने लगती है। लेकिन मंगल का का चन्द्रमा के साथ कायम होने का अर्थ सीधी तरह से मन मे सेवा के प्रति क्रूरता को सामने करता है जैसे व्यक्ति अगर पुलिस मे काम करता है तो वह हमेशा अपने मन के अन्दर किसी भी स्थिति मे अपनी सोच को क्रूरता के साथ ही रख पायेगा कारण जब भी कोई अच्छा आदमी भी मिलेगा और उसे किसी प्रकार की गल्ती मिलेगी तो वह अपने मन के अन्दर भी उस अच्छे आदमी को भी बुरी निगाह से देखेगा और कई बार किसी अच्छे व्यक्ति को बुरे व्यक्ति की संगति से सजा मिलने का कारण बन सकता है।

Saturday, December 8, 2012

जीवन की उन्नति मे त्रिकोणो का महत्व


वक्री शनि के बारे मे मै पहले भी लिख चुका हूँ कि शनि मार्गी आदेश से काम करने वाला होता है लेकिन वक्री आदेश देकर काम करवाने वाला होता है। जिस भाव मे जिस राशि मे जिस ग्रह की युति वक्री शनि से मिलती है उसी ग्रह और उसी भाव राशि के अनुसार वह अपने बल से काम करवाने की हिम्मत रखता है। यह कुंडली हमारे माननीय प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह की है कुंडली मे शनि वक्री है और धन के भाव मे राज्य के कार्य वाली मकर राशि मे विराजमान है। शनि वक्री पर असर देने वाले ग्रह सूर्य बुध नवम पंचम योग से शुक्र चन्द्र मंगल अष्टम भाव से अपने अपने प्रभाव को प्रदान कर रहे है। कहा भी जाता है कि बुद्धिमान की बुद्धिमान से और पहलवान की पहलवान से ही पटती है वह चाहे मित्रता हो या दुश्मनी। कांग्रेस की अध्यक्ष माननीय सोनिया गांधी जी की कुंडली मे भी शनि देव वक्री है।
दोनो कुंडलियों में शनि की आमने सामने की स्थिति तथा दोनो कुंडलियों मे शनि का वक्री होना आपसी सहमति और मंत्रणा के लिये एक अतिउत्तम मान्यता को प्रकट करने के लिये अपना असर प्रदान करने के लिये माना जा सकता है। राज्य के कार्यों का कारक ग्रह मंगल श्रीमती सोनिया गांधी के लिये वरदान साबित हो रहा है वहीं माननीय प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह के लिये राज्य का कारक बुध राज्य भाव मे ही स्थापित होकर सूर्य का साथ लेकर श्रीमती सोनिया गांधी के छठे मंगल से अपने नवम पंचम के योग को बल दे रहा है। मंगल और सूर्य दोनो की युति जब अर्थ भाव मे बन जाती है और बुध शनि वक्री सहायक हो जाते है तो जीवन में किसी भी किये गये नैतिक अथवा अनैतिक कामो का खुलासा भी नही हो पाता है और जातक के जीवित रहने तक किसी भी बात को अन्यथा नही लिया जा सकता है। श्रीमती सोनिया गांधी के चौथे भाव मे तुला राशि का उच्च का गुरु शुक्र के साथ है,वास्तविकता से अगर परे नही जाया जाये तो यह गुरु अपनी मान्यता को दिशाओं के अनुसार भचक्र की उत्तर दिशा से अपने सम्बन्धो को स्थापित करने के बाद पश्चिम उत्तर दिशा के बल को गुप्त रूप मे प्राप्त करता है। लेकिन भचक्र की वास्तविक राशियों को देखा जाये तो वक्री शनि एक बुद्धिमानी का प्रमाण देकर उत्तर दिशा से अपनी पैठ को कर्क राशि से बनाता है तथा दक्षिण पश्चिम दिशा के सूर्य बुध और केतु की सहायता से अपने को आगे बढाता है। दुश्मनी का मालिक ग्रह गुरु है कारण यह छठे भाव का मालिक भी है और भाग्य का कारक भी है जब यह गुरु चौथे भाव मे बैठ जाता है तथा लाभ और चौथे भाव का शुक्र भी साथ होता है तो वह अपनी युति को हर कार्य मे छत्तिस का आंकडा ही बैठाता है लेकिन गुरु जो व्यापारिक भाव मे है और व्यापारिक राशि मे है शुक्र के स्वगृही होने से अपनी स्थिति को शुक्र के आधीन ही रखता है।
 जीवन के चार पुरुषार्थों के लिये कुंडली के चारों त्रिकोण पूर्ण करने के लिये शादी सम्बन्ध सहयोग मित्रता आदि के कारण आदिकाल से चले आ रहे है। शत्रुता भी इन्ही त्रिकोणो की बजह से होती है और आजीवन सम्बन्ध बनने की बात भी इन्ही त्रिकोणो पर निर्भर होती है। पुरुषार्थ चार होते है धर्म नामक पुरुषार्थ मेष सिंह और धनु से सम्बन्धित होता है,जिसके अन्दर पूर्वजो की मान्यता से लेकर खुद के शरीर और आगे आने वाली सन्तान के प्रति की जाने वाली व्याख्या होती है अर्थ के लिये वृष कन्या और मकर के लिये माना जाता है जिसके अन्दर पास मे उपस्थिति धन पूर्वजो के द्वारा दिया गया खुद के द्वारा कमाया गया और गुप्त रूप से जमा किया धन माना जाता है काम नामके पुरुषार्थ को मिथुन तुला और कुम्भ राशि से गिना जाता है जिसके अन्दर पत्नी बच्चे मित्रता सामयिक हास परिहास आदि के कारको को गिना जाता है आखिरी और जीवन के प्रति इच्छा रखने वाले कारक त्रिकोण में कर्क राशि वृश्चिक और मीन राशियां आती है। इन राशियों के द्वारा जातक के द्वारा पैदा होने के स्थान जोखिम लेकर की जाने वाली इच्छा पूर्ति और अन्त समय तक का जो भी उद्देश्य जातक के सामने होता है वह गिना जाता है,यह त्रिकोण जीवन में मानसिक रूप से कर्म के रूप से और सहायता के रूप से देखा जाता है जब इन सभी कारणो मे इच्छा पूर्ति होती है तो जातक का जीवन सफ़ल माना जाता है।प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी एक धार्मिक व्यक्ति है इस बात के लिये उनके गुरु केतु को जो सिंह राशि मे होने से माना जा सकता है,गुरु जो जीव का कारक है और केतु जो जीव को मान अपमान देने का कारक है केतु जब गुरु की नजर मे आजाता है तो मान देने लगता है और जब शनि के घेरे मे आजाता है तो अपमान देने लगता है।केतु को सिख समुदाय से भी जोड कर देखा जाता है और सिख समुदाय के साथ जब गुरु की भाग्य और मोक्ष के प्रति धारणा होती है तो वह पंच प्यारों के रूप मे अपनी स्थिति को बना लेता है। कुंडली नम्बर दो में केवल मंगल धनु राशि मे है जो श्रीमती सोनिया गांधी को कानून समाज उनके पैत्रिक स्थान आदि से मंगल की शक्ति से आधिपत्य जमाने की पूरी शक्ति देता है और जब मंगल गोचर से राहु के घेरे मे आता है तो यह मंगल की शक्ति आवेशात्मक प्रभाव मे आजाती है और बलपूर्वक कानून धर्म मर्यादा आदि का पालन करवाने के लिये अपनी शक्ति को देने लगता है लेकिन कुंडली नम्बर एक में श्री मनमोहन सिंह की गुरु केतु वाली नीति इस मंगल को न्याय धर्म और शांति के लिये बल देना शुरु कर देता है तो उनके द्वारा कोई गलत काम नही हो पाता है और एक निरंकुश शासक के रूप मे अपना काम नही कर पाती है। इसी प्रकार से कुंडली नम्बर दो के संतान भाव का स्वामी सूर्य संतान की तरक्की का मालिक बुध अपने शमशानी भाव के केतु के साथ होने से श्री मनमोहन सिंह के गुरु केतु के चौथे भाव मे होने से उनकी रक्षा और जीवन की उन्नति के लिये सहायक हो जाता है। लालकिताब के अनुसार कहा जाता है कि कुंडली के छठे और आठवे घर के ग्रह जो भी करते है वह एक प्रकार से गुप्त चाल को चला करते है उनकी गति को पहिचानना बहुत ही कठिन होता है। कन्या राशि का सूर्य और बुध श्री मनमोहन सिंह जी की कुंडली में गुप्त राजकीय भेदो बैंकिंग और फ़ायनेन्स वाली नीतियों के प्रति हमेशा सजगता से काम करने वाले माने जा सकते है तो श्रीमती सोनिया गांधी की कुंडली से सूर्य बुध और केतु हमेशा अपने द्वारा किसी भी प्रकार के राजनीति उद्देश्य व्यापारिक उद्देश्य संगठन आदि के लिये केतु की सहायता से दूसरो के द्वारा खुद के जीवन को चलाये जाने के लिये भी माना जा सकता है। इसका मुख्य कारण श्रीमती सोनिया गांधी के लिये वृश्चिक राशि का सूर्य उनकी संतान के लिये या तो विलय की तरफ़ इशारा करता है या गुप्त रूप से प्रवास के लिये अपना इशारा करता है उसी प्रकार से बुध जो पुत्री का कारक है तथा केतु जो दामाद का कारक है को भी उत्तर दिशा की तरफ़ पहाडी क्षेत्रो में सुखमय निवास के लिये सूचित करता है,इस काम के लिये आपका वक्री शनि बहुत ही सहायक है। वक्री शनि के लिये एक बात और भी मानी जा सकती है कि जैसे जैसे व्यक्ति बुजुर्ग होता जाता है वक्री शनि की बुद्धि बहुत ही सक्षम होती जाती है और वह अपने अनुसार लोगो से काम करवाने के लिये अपनी बुद्धि को बुजुर्ग समय मे काफ़ी महत्व देने के लिये अपनी शक्ति को प्रकट करता है।
पिछले समय मे जो दोनो लोगो के लिये गलत अफ़वाये फ़ैलायी गयी उनका कारण श्री मनमोहन सिंह जी की कुंडली का कुम्भ राशि का राहु जिम्मेदार है,तथा श्रीमती सोनिया गांधी की कुंडली में वृष राशि का राहु जिम्मेदार माना जा सकता है। हकीकत क्या है यह किसी को पता नही है,श्री मनमोहन सिंह के लाभ का प्रकार उनके मित्रो और शुभचिन्तको के लिये है जबकि उनके लिये केवल सरकारी रूप से जो भी सहायता मिलती है उसी पर उनका गुजारा चल रहा है,श्रीमती सोनिया गांधी के धन भाव मे जो राहु है वह केवल उनके लिये एक प्रकार से झूठी कल्पना करने के और लोगो के द्वारा बाते बनाये जाने के लिये ही मानी जाती है जबकि उनके खुद के जीवन के प्रति वृश्चिक राशि के सूर्य बुध केतु एक दुखदायी स्थिति को लेकर सामने खडे रहते है और उन्हे केवल दवाइयों पर अपने जीवन को चलाना पड रहा है। इस प्रकार से जो भी बाते भारत के इन लोगो के लिये कही जा सकती है वे मुख्य रूप से दक्षिण की राजनीति से ग्रसित मानी जा सकती है और दोनो ही लोगो को दक्षिण की राजनीति अपने कार्यों की सिद्धि के लिये प्रयोग मे ला रही है। यह बात कुंडली नम्बर दो के वृश्चिक राशि के सूर्य बुध और केतु अपने आप प्रकट कर देते है। किसी प्रकार से कुंडली नम्बर एक पत्नी और पत्नी परिवार के लोगो से सुरक्षित है,जो कर्क राशि के शुक्र मंगल और चन्द्र के द्वारा जानी जा सकती है जबकि कुंडली नम्बर दो का सुरक्षित रहना कानून के प्रति ही माना जा सकता है। (दोनो कुंडलियों का प्रारूप विकिपीडिया से लिया गया है)

Friday, December 7, 2012

एक कुंडली दैविज्ञ की !

दैविज्ञ का अर्थ होता है देव भाषा को जानने का और उस भाषा का प्रभाव जन सामान्य तक पहुँचाने का। लालकिताब के अनुसार दैविज्ञ की कुंडली का फ़लादेश करना बहुत ही विचित्र रूप से सामने आता है और उस विचित्रता का प्रभाव तब और समझ मे आने लगता है जब लाल किताब के सभी गणित बराबर खरे उतरते जाये। लालकिताब के अनुसार सूर्य तख्त पर विराजमान है,लेकिन उसके सामने कोई भी ग्रह नही है,केवल द्रिष्टि मे शनि चन्द्र है,जो सूर्य को समझने परखने रास्ता चलने के लिये आंख जैसी रोशनी दे रहे है। तख्त पर विराजमान ग्रह सप्तम की मंत्रणा को लेकर चलता है और अष्टम उसकी नजर कहा गया है लेकिन तख्त पर आसीन ग्रह तभी अपना प्रभाव प्रकट करता है जब ग्यारहवे भाव मे कोई ग्रह हो।
"तख्त हजारी तभी पनपता,जब सप्तम देता राय है,
अपनी मंजिल तभी पकडता घर ग्यारह दे पैर तो"
अर्थात लगन मे बैठा ग्रह तभी अपनी मंजिल को पकडता है जब सप्तम की राय साथ मे हो और ग्यारह के पैर उसके पास हों। लेकिन इस कुंडली मे सप्तम और ग्यारह दोनो खाली है इसलिये लग्न के ग्रह का सो जाना सही मायने मे उचित है और वह अपने अनुसार केवल द्रश्य तो होता रहेगा पर अपने अनुसार फ़ल नही दे पायेगा।
लालकिताब के अनुसार दूसरा घर छठे घर को देखता है छठा घर आठवे को देखता है आठवा घर बारहवे को देखता है और बारहवां घर दूसरे घर को देखता है अगर इन घरो मे ग्रह विराजमान है चाहे वे शत्रु हो या मित्र वे अपनी चाल को आजीवन कायम रखते है।
"घर खायेगा बैठ दूसरा छठे का पकड सहारा वो,
अष्टम नैया पर सवार हो द्वार बारहवे जायेगा"
दूसरे घर मे बुध विराजमान है यानी जातक अपनी वाणी अपने कमन्यूकेशन और अपनी प्रकाशित बातो के बल पर वह दैनिक कार्यो और जीवन के प्रति ली जाने वाली भौतिक सहायताओ को प्राप्त करता रहेगा,लेकिन रोजाना के कामो के लिये उसे छठे भाव मे बैठे केतु का सहारा लेना पडेगा,कारण छठा घर नौकरी का भी है तो रोजाना के किये जाने वाले कामो का भी है,इस घर के द्वारा जीवन के प्रति काम तो करना पडेगा केतु नौकरी करवायेगा लेकिन नौकरी भी अपनी नही हो पायेगी नौकरी दूसरो के लिये ही करनी पडेगी यथा-
"केतु छठा हुकुम का कुत्ता दुम बारह से हिलती है,
घर दूजे से पेट भरेगा खतरा आठ का साथ रहे"
छठे घर के केतु के बारे मे कहा गया है कि वह हमेशा दूसरो के लिये ही काम करता रहेगा वह जब तक दूसरो के हुकुम पर काम करता रहेगा उसका पेट दूसरे घर का ग्रह भरता रहेगा लेकिन उसकी मनचाही खुशी तभी मिलेगी जब बारहवे घर के ग्रह उसे देख रहे हों,वह किसी भी प्रकार की रिस्क लेने के लिये आठवे घर के ग्रहों के प्रति हमेशा सतर्क रहेगा।
उपरोक्त कुंडली मे बुध जातक को भोजन देता है लेकिन उसे गुलामी छठे केतु की करनी होगी उसे बारहवे भाव के शुक्र मंगल और राहु अपने अनुसार फ़ल देते रहेंगे और जितना उसे बारहवा भाव दे देगा वह उसी के अनुसार अपनी शक्ति को आठवे घर के चन्द्रमा और शनि के लिये अपनी सतर्कता को परख कर अपने अनुसार कार्य करता रहेगा।
गुरु जो हवा है गुरु जो जीवन का कारक है गुरु के अनुसार ही धन सम्पत्तिको प्राप्त किया जा सकता है लेकिन वैदिक ज्योतिष के अनुसार कोई भी ग्रह गुरु को उल्टी नजर यानी वक्री द्रिष्टि से देखना शुरु कर दे तो गुरु के अन्दर वही गुण आने लगते है जो ग्रह उसे अपनी वक्र द्रिष्टि से देखता हो। कहने के लिये तो गुरु दसवे भाव मे अपने प्रभाव को नीच की हैसियत से प्रदान करेगा लेकिन जब अष्टम मे विराजमान शनि अपनी वक्र द्रिष्टि से देख रहा है तो गुरु अपनी हैसियत को शनि के अनुसार प्रकट करने लगेगा,यानी दसवे घर मे गुरु नीच की हरकतो को त्याग कर उच्च की प्रभावशाली क्रिया को शुरु कर देगा,जैसे एक पंडित के घर मे कसाई आकर निवास करने लगे तो कुछ समय बाद कसाई के अन्दर भी पंडित के गुण अपने आप ही प्रकट होने लगते है उसी प्रकार से वक्री शनि की द्रिष्टि गुरु के अन्दर नीचता को बदल कर उच्चता मे शुरु कर देगा।
"वक्र उच्चता देदेता है जब नीच में जाकर बैठे वो,
वही नीचता देदेता है जब उच्च मे आकर बैठे वो"
यानी कोई भी ग्रह अपनी उच्च राशि मे आकर वक्री हो जाये तो वह नीच का फ़ल प्रदान करने लगेगा और जब वह नीच घर मे जाकर बैठ जाये तो वह उच्चता प्रदान करने लगेगा।
जातक की कुंडली मे शनि वक्री होकर अष्टम मे वैदिक ज्योतिष से अपनी ही राशि मे वक्री हो गया है,इस वक्री शनि के अन्दर तकनीकी मंगल के साथ तकनीकी कमन्यूकेशन की राशि कुम्भ का असर मिल गया है शनि मार्गी मेहनत का मालिक है तो शनि वक्री दिमागी काम करने का मालिक है। चन्द्रमा जो जातक के लिये लगनेश का फ़ल प्रदान करने के लिये अपनी शक्ति दे रहा है तो शनि के साथ मिलकर वह दिमागी रूप से काम करने का मालिक बन जाता है। यह चन्द्रमा अगर सही रूप मे देखा जाये तो लालकिताब के अनुसार कुये का पानी माना जाता है चौथे घर का चन्द्रमा दरिया का पानी होता है तो बारहवे घर का चन्द्रमा आसमानी यानी बारिस का पानी कहा गया है। शनि वक्री दिमागी रूप से काम करने का मालिक है तो कुये का पानी जातक दिमागी रूप से बाहर लाने के लिये अपनी बुद्धि वाली मेहनत से प्रयोग मे लायेगा ही। बुद्धि मे भी मंगल की तकनीक होगी और राशि का कमन्यूकेशन होगा यानी जातक अपने अनुसार कमन्यूकेशन तकनीक मे मास्टर बन जायेगा और गूढ बातो को खोज खोज कर सामने लायेगा।
"आठ मे बैठा शनि चन्द्र कुये से भाप निकलती है,
बर्फ़ पिघलती धीरे धीरे उमर आखिरी फ़ल देता है"
आठवे भाव मे अगर शनि चन्द्र बैठ जाते है तो लम्बी उम्र को भी देते है और दिमागी रूप से सोचने और हर काम मे गहरी सोच सोचने के कारण उसकी सोच उमर के आखिर मे फ़ल देने लगती है। शनि को अगर बर्फ़ मान लिया जाये तो आठवा घर मंगल सुलगते हुये मंगल की धरती के अन्दर की जमीन कहा जा सकता है शनि धीरे धीरे अपने प्रभाव को पानी के रूप मे बदलता है और उम्र के आखिर मे अपने पानी से दूसरे भाव को तर भी करता है साथ ही उसके साथ वाले ग्रह भी वास्तविक रूप मे आजाते है जैसे इस जातक की कुंडली मे चन्द्रमा वक्री शनि के साथ उम्र के आधे भाग तक केवल पानी की भाप के रूप मे ही नजर आता है लेकिन पचासवी साल के बाद वह अपने वास्तविक रूप मे आने के बाद चन्द्र यानी जनता को अपने प्रभाव से तृप्त करने के लिये फ़ल प्रदान करने लगता है।
दक्षिण भारत की ज्योतिष के अनुसार कुंडली के लिये चार भाग बनाये गये है जिनके द्वारा लगन पंचम और नवम भाव को धर्म से जोडा गया है दूसरे छठे और दसवे भाव को अर्थ से जोडा गया है तीसरे सातवे और ग्यारहवे भाव को काम से जोडा गया है और चौथे आठवे और बारहवे भाव को मोक्ष से जोडा गया है इस प्रकार से कुंडली का रूप धर्म अर्थ काम और मोक्ष रूपी चारो पुरुषार्थो के द्वारा सुसज्जित किया गया है। जातक की कुंडली के अनुसार सूर्य शरीर विद्या से पूर्ण है पंचम भी सूर्य की सीमा मे है और नवम भी सूर्य की सीमा मे है,लगन को अन्य किसी भी ग्रह ने अपनी द्रिष्टि से नही नवाजा है। सूर्य अकेला है,यानी जातक की स्थिति अपने परिवार मे अकेली है,वह किसी भी कारण से अपने पिछले परिवार से जुडा नही है,उसके लिये जो सामने आने वाले ग्रह है वह केवल बुध है बुध बहिन और बेटी से सम्बन्धित है,जातक के छ: बहिने है जिसमें पांच की उपस्थिति है लेकिन एक का सीमांकन केतु के द्वारा खाली किया गया है,यह भौतिक परिवार से ही संबन्ध रखता है,जिसे दूसरे भाव से छठे भाव से और दसवे भाव से जोड कर देखा गया है,यानी माया से जुडा परिवार जब तक माया रूपी जगत व्यवहार चलता रहेगा जातक के सामने बुध अपनी स्थिति को प्रदर्शित करता रहेगा जैसे ही माया का परिवार सामने से दूर होगा बुध अपनी स्थिति को दूर कर लेगा। इसके अलावा गुरु जो इस माया के परिवार से जुडा है केवल जातक के द्वारा शादी विवाह लेन देन तक ही सीमित है उसके अलावा अगर जातक को कोई कष्ट आता है तो उस समय बाहरी लोग ही उसकी सहायता मे आयेंगे घर के सदस्य उसके पास केवल अन्तिम संस्कार के समय ही उपस्थिति हो सकते है। बुध केवल मौत के घर को ही देख रहा है।
आधुनिक ज्योतिष से अगर जातक की कुंडली को देखा जाये तो गुरु के साथ बुध यूरेनस प्लूटो नेपच्यून और केतु जुडे है जो अर्थ क्षेत्र की मीमांशा करते है। गुरु पर असर वक्री शनि का है केतु का भी है,लेकिन गुरु अपनी शक्ति बारहवे भाव मे बैठे शुक्र मंगल और राहु को प्रदान कर रहा है। चार आठ और बारह के ग्रह हमेशा अपनी औकात के अनुसार एक प्रकार की चाहत रखते है जो जातक के अन्दर पैदा होती रहती है और उस चाहत के लिये वह आजीवन अपनी जद्दोजहद को कायम रखता है,जब तक उसे चार आठ और बारह की चाहत नही प्राप्त हो जाती है जातक अपनी क्रियाओं को जारी रखता है।
यूरेनस को कमन्यूकेशन का ग्रह माना जाता है और आज के जमाने मे कमन्यूकेशन के मामले मे कम्पयूटर मोबाइल और नये नये कमन्यूकेशन के तरीके भी माने गये है। प्लूटो को बिजली से चलने वाली मशीन के रूप मे माना जाता है,नेपच्यून को भाव के अनुसार आत्मीय सम्बन्ध से जोडा जाता है। बुध यूरेनस का प्रभाव अगर सही रूप से देखा जाये तो वह ज्योतिष शिक्षा कानून आदि के लिये माना जा सकता है जातक के पास लोगो के लिये बताने और ज्योतिष आदि के सोफ़्टवेयर आदि के प्रोग्राम करने उसे सम्भालने समझने लोगो को प्राथमिक रूप से शिक्षा के रूप मे बताने के लिये भी समझा जा सकता है उसी जगह पर प्लूटो के साथ आजाने से जातक ज्योतिष आदि को समझाने के लिये मशीनी प्रयोग जैसे कम्पयूटर आदि को सामने लाने और उसे चलाने तथा संधारण करने आदि के गुणो से प्राथमिक रूप से योग्य माना जा सकता है। कुंडली का पंचम प्राथमिक सप्तम इन्टरमीडियेट और नवम उच्च शिक्षा के लिये माना जाता है जिसे कालेज शिक्षा भी कहते है लेकिन दूसरा भाव हमेशा अलावा प्राप्त उपाधियों के लिये भी माना गया है,जैसे डिग्री डिप्लोमा आदि।
पंचम का मालिक मंगल है मंगल का स्थान बारहवे भाव मे है,शुक्र और राहु साथ मे है,जातक की प्राथमिक शिक्षा का क्षेत्र ननिहाल से जुडा है,इन्टरमीडियेट शिक्षा के लिये सप्तम को देखने पर उसका मालिक शनि है शनि का स्थान अष्टम में चन्द्रमा शनि वक्री के साथ है यानी जातक की इन्टरमीडियेट की शिक्षा का स्थान बदला है,वह एक से अधिक स्थानो पर अपनी शिक्षा के लिये गया है। नवम का मालिक गुरु है गुरु का स्थान दसवे भाव मे जातक की उच्च शिक्षा कार्य करने के समय मे प्राप्त की जानी मानी जाती है जो किसी कालेज या शिक्षा स्थान मे जाने से नही हुयी है,वह कार्य करने के दौरान ही मानी जाती है। कार्य और शिक्षा का रूप प्रदान करने के लिये गुरु का साथ आजाने से है गुरु पर शनि वक्री अपना असर प्रदान कर रहा है यानी जातक की शादी के बाद ही जातक अपने आगे के शिक्षा वाले प्रभाव को प्राप्त कर पाया है। लेकिन उच्च शिक्षा के प्रभाव को जातक पूरा नही कर पाया है शिक्षा का आधा रहना गुरु पर शनि वक्री की नजर ने अपना असर प्रदान किया है और रहने के साथ साथ बार बार स्थान बदलने का प्रभाव भी जातक पर रहा है।
"शनि चन्द्र की युति मिल जाती,मन भटकता रहता है,
रहना करना रहे बदलता स्थाई शनि के बाद में"
जातक की कुंडली मे शनि की चन्द्रमा से युति मिल गयी है उसका मन बार बार बदलता रहता है एक काम को करने और एक स्थान पर रहने की गुंजायश जातक के अन्दर नही है वह बार बार अपने रहने वाले स्थान को भी बदलता है और कार्य करने के स्थान को भी बदलने मे अपनी रुचि को रखता है। गुरु से शनि की युति रखने के कारण धर्म और विज्ञान के साथ सम्बन्धो को भी साथ लेकर चलता है,एक आचार्य जैसे काम भी करने का मानस रहता है और करता भी है,गुरु की नजर शुक्र पर रहने के कारण प्रदर्शन करने और तकनीकी कारण को भी प्राप्त करता है और इन्जीनियरिंग के प्रति रुझान भी रहता है। इंजीनियर की डिग्री भी प्राप्त करता है,लेकिन मास्टर डिग्री नही मिल पाती है। गुरु मे शनि का असर मिलने के बाद राहु से युति होने के बाद जातक के पास कम्पयूटर से सम्बन्धित जानकारी और इसी प्रकार से ज्योतिष विषय मे कई प्रकार की विधाओं वाली विद्याये जातक को प्राप्त होती रहती है। आई टी के क्षेत्र मे भी जातक का नाम होता है। लेकिन रुझान के लिये जातक का दिमाग पराविज्ञान और ज्योतिष आदि की तरफ़ अधिक जाता है उसका कारण केवल शुक्र राहु और मंगल की तकनीकी प्रभाव ही माना जाता है। यह प्रभाव जातक को विभिन क्षेत्रो मे प्रदर्शित भी करता है और समाचार पत्रो पत्रिकाओं इन्टरनेट आदि पर जातक की छवि भी प्रदर्शित होती रहती है।
"गुरु की गद्दी घर दसवे से पचपन साला होती है,
पैंतीस पर शनि चुप हो जाता दौर दूसरा चलता है"
गुरु अगर दसवे भाव मे है तो जातक को गुरु की गद्दी पचपन साल के बाद ही मिलती है,इसके पहले शनि जो मकान दुकान कार्य आदि का मालिक है चुप हो जाता है इस चुप रहने के समय में-
"शनि के साथ नही देने पर राहु केतु देते साथ,
राहु भ्रम से केतु खाली दर दर की ठोकर देता है"
जब शनि साथ नही देता है तो राहु केतु जो शनि के चेले है उन्हे साथ मे कर देता है और राहु केवल भ्रम के जीवन मे जीने के लिये तथा केतु से जो भी कमाया जाता है वह केवल खालीपन ही पैदा करता है .
"नौ कमावे तेरह भूखा,बुध का बरतन खाली है,
सुबह शाम की चिन्ता रोके काम जो बनने वाला हो"
शनि के साथ नही देने पर बुध भी चुप जाता है और बुध जो बर्तन के रूप मे है खाली रहने लगता है,कितना ही कमाया जाये शनि की अनुपस्थिति से स्थिर ठिकाना नही मिल पाता है और नौ कमाने के बाद तेरह की भूख बनी रहती है,कोई काम अगर सोच कर करने की क्रिया को भी शुरु किया जाये तो राहु अपनी चिन्ता को देकर काम को भी पूरा नही होने देता है।

Thursday, December 6, 2012

कुम्भ लगन में बुध का प्रभाव

बुध को कमन्यूकेशन से जाना जाता है ग्रहों का युवराज है जब लगन मे आकर बैठ जाये तो व्यक्ति को अपने कार्य कौशल से जीवन मे उन्नति देता है,जातक मे बोलने की क्षमता का विकास कर देता है जातक जहां भी जाता है वह अपने कमन्यूकेशन और व्यक्तियों की सहायता से अपनी धाक जमाने भर के लोगो के साथ देने मे सहायता करता है। अकेला बुध सब कुछ करने मे समर्थ है जबकि अन्य ग्रहो के साथ बुध हमेशा उन्ही की गुलामी करता रहता है सूर्य के साथ अपनी बुद्धि और विवेक को प्रकट नही कर पाता है जैसे ही अकेला होता अपनी प्रभावशाली गरिमा से जातक को उन्नति का रास्ता तभी दिखा पाता है जब कोई ग्रह बुध के प्रति अपनी शत्रुता वाली नीति प्रकट नही कर रहा हो,इसके अलावा भी जातक को तब और प्रसिद्धि देता है जब जातक के जन्म के बाद से ही उसे कष्टो का सामना करना पडा हो। बुध की बिसात एक फ़ूल से की जा सकती है जो फ़ूल अधिक सुन्दर होता है वह कांटो मे ही अपनी गरिमा को कायम रख पाता है बिना कांटे के पेड मे बुध अपनी स्थिति को कायम नही रख पाता है कारण कोई भी बुध रूपी फ़ूल को कपट कर उसका आस्तित्व समाप्त कर सकता है।
लालकिताब से बुध बहिन बुआ बेटी के रूप मे जाना जाता है और बुध जब लगन मे स्थापित होता है कुम्भ लगन का जातक अपने संतान भाव के प्रभाव से केवल अपनी बुआ बहिन और अपने जीवन मे बेटी के कारण ही प्रसिद्धिइ ले सकता है। उपरोक्त कुंडली मे बुध लगन मे है लगन के बुध के लिये पहली लडकी कहा जा सकता है कुम्भ राशि के बुध के लिये बडी बहिन का रूप दिया जा सकता है,नवे भाव के शनि की युति से जायदाद और सम्पत्ति से युक्त बडी बुआ के रूप मे भी देखा जा सकता है। पारिवारिक स्थिति मे जब बुध को कोई सम्भालने वाला ग्रह होता है तो वह अपनी विशेष बुद्धि का असर जीवन मे प्रकट करने लगता है। जैसे कार्येश और तृतीयेश मंगल जब बुध को अपनी चौथी नजर बख्स रहे हो तो बुध को सम्भालने के लिये मंगल जिम्मेदार मान लिया जाता है,मंगल जिस ग्रह को अपनी द्रिष्टि से देखे तो समझ लेना चाहिये कि बुध कितना भी शैतान क्यों नही हो लेकिन दायरे से अधिक अपनी औकात को प्रकट नही कर सकता है।
उपरोक्त कुंडली मे भाग्येश और लगनेश का परिवर्तन योग है। भाग्येश बारहवे भाव मे है और लगनेश नवे भाव मे है,लगनेश की युति बुध से भी है और लगनेश का प्रभाव लाभ भाव से जुडकर तीसरे भाव के चन्द्रमा से भी है चन्द्रमा कर्जा दुश्मनी बीमारी का मालिक है और जब शनि चन्द्रमा से अपनी नजर लगा बैठता है तो व्यक्ति अपने को स्थिर नही रख पाता है,वह बात बात मे अपने मन को बदलने लगता है अभी कहता है कि यह काम करना है और तुरत ही अपने विचार को बदलने के बाद कहने लगता है कि यह काम नही करना है इस प्रकार से स्थिरता के कम होने से व्यक्ति अपने को उसी प्रकार से रख पाता है जैसे पानी मे पडा हुआ एक पत्ता पानी की लहरों से अपने को लहरो के द्वारा अस्थिर ही रखता है जब तक पानी की लहरे आती रहती है तब तक वह पत्ता ऊपर नीचे ही होता रहता है। अक्सर देखा होगा कि जो व्यक्ति अपने को प्रदर्शित करने में साफ़ दिखाई देते है या अपने को बात बात मे द्रवित करते रहते है वह अक्सर अन्दर से बडे कठोर होते है,वह अपनी किसी भी बात की मजबूरी को प्रकट करते समय द्रवित होकर सामने वाले को अपने प्रभाव मे ले तो लेते है लेकिन जैसे ही उनका वक्त बदला वे अपने को या तो बेरुखी से प्रदर्शित करने लगते है या दूरिया बनाकर किसी न किसी कारण का बहाना बनाकर सामने लाने से ही कतराने लगते है। इस प्रकार के व्यक्तिओ को प्रकृति बुध के रूप मे एक लडकी संतान को प्रदान करती है और वह लडकी अपने स्वभाव से इतनी बेरुखी इस प्रकार के व्यक्ति के सामने प्रकट करती है कि व्यक्ति लडकी के बिना रह भी नही सकता है और लडकी के सामने रहने पर झल्लाहट भी आती रहती है,लडकी का स्वभाव परिवार मर्यादा व्यवहार सभी मे देखने के लिये तो बहुत ही मधुर रहता है वह अपने को उच्चता मे प्रदर्शित करने के लिये अपनी योग्यता को अधिक से अधिक प्रकट करने का कारण तो पैदा करती है लेकिन दिमाग मे विदेशी नीति आजाने से वह अपने को पूरा विदेशी ही बना लेती है और या तो जातक से इतनी दूरिया बना लेती है कि जातक उसके लिये तडप पाल कर ही रह सकता है,संतान का कारक बुध होने और जल्दी से धन कमाने के लिये प्रभाव देने वाला बुध कला के क्षेत्र मे इतना अधिक प्रसिद्धि ले लेता है कि वह अपने जन्म स्थान से बाहर जाकर अपनी कला को प्रकट करता है और जातक को केवल मानसिक संतुष्टि से अपने जीवन को गुजारना पडता है।
जातक के लिये पुरुष संतान के रूप मे सूर्य जब त्रिक भाव मे होता है तो केतु अपना प्रभाव देने लगता है और संतान मे पुरुष संतान के रूप मे प्रकट होता है तथा भाव अनुसार जीवन मे अपना फ़ल प्रदान करता रहता है। केतु जो सहायक के रूप मे है केतु जो शाखा के रूप मे अपने प्रभाव को रखता है लेकिन केतु जब त्रिक भाव मे यानी छठे भाव मे होता है तो एक बीमार पुत्र के रूप मे देखा जा सकता है। जब वृश्चिक राशि के मंगल से अपनी युति को प्राप्त करता है तो केतु जो परिवार की शाखा को बढाने के लिये सामने होता है वह एक सूखी हुयी शाखा जो बीमारियों की तपन से तपने के बाद हरा भरा नही होने के कारण रूखा और बेरुखी से भरा हुआ माना जाता है इस प्रकार से लगन का बुध कभी भी जातक की नर संतान को आगे नही बढा सकता है यही कारण जातक की पुत्री के सामने प्रकट होता है,जातक की पुत्री भले ही अपनी कला के द्वारा संसार को अपने आधीन कर ले लेकिन कभी भी अपने वैवाहिक जीवन को या संतान आदि के द्वारा संतुष्ट नही कर सकती है।
इस प्रकार से जातक की बुध की स्थिति जो प्रभाव पैदा करती है वह इस प्रकार से है:-
जातक की बहिन बुआ बेटी संसार मे कला के क्षेत्र मे अपना नाम करते है उनके लिये कला के रूप मे मनोरंजन का क्षेत्र देश विदेश मे अपना प्रभाव देता है। शुक्र सूर्य और राहु की युति से बुध तरह तरह के कला के प्रदर्शन के तथा हाव भाव प्रकट करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करते है। बहिन बुआ बेटी को शुक्र सुन्दरता देता है सूर्य राजसी चमक देता है और राहु असीमित क्षेत्र मे काम करने का कारण पैदा करता है। जातक केतु के रूप मे अपनी बहिन बुआ बेटी के लिये सहायक का काम करने के लिये ही अपनी जिन्दगी को निकालता है और यही कारण जातक की पुत्र संतान के लिये माना जाता है। जातक के जीवन मे बहिन के रूप मे चन्द्रमा एक बडी हैसियत को बनाता है,और अपनी हैसियत को तब और अधिक बना देता है जब वह पैत्रिक क्षेत्र के कारणो को एक सीमा से अधिक बढाने के लिये अपने प्रभाव को प्रकट करता है इस प्रकार से एक जीवन जो मनोरंजन या कला के क्षेत्र मे समर्पित होता है वह सरकार और जनता के द्वारा पुरस्कार देने के तथा एक से अधिक एक कारण बनाकर सामने करता है। जातक के लिये एक प्रकार की आफ़त पुत्र संतान के प्रति ही मानी जा सकती है जो अपनी अस्पताली जिन्दगी के कारण हमेशा एक ऐसे रोग से ग्रसित रहता है जो रोग अच्छे अच्छे चिकित्सको को समझ मे भी नही आता है और उसका निदान भी नही हो सकता है। निदान तभी हो सकता है जब मंगल केतु की युति को पैशाचिक क्रिया कलाप से दूर किया जाये।
वर्तमान मे राहु जातक के लिये एक डरावनी फ़िल्म की तरह से कहानी बना रहा है,एक शमशानी शक्ति जमीन के नीचे से पैदा होती है और वह धार्मिक रूप से चार लोगो को अपने प्रभाव मे लेती है वह अपने रूप को कभी तो राजकीय रूप मे प्रदर्शित करती है कभी अपने को सुन्दरता के रूप मे ले जाकर अपने लिये रूप को बनाती है कभी हरे भरे मैदानी क्षेत्र मे विनाश का रूप धारण कर लेती है और कभी पानी मे बहते हुये एक बेसहारा तिनके की तरह से आने को सामने करने के लिये प्रभाव देती है। 

Saturday, December 1, 2012

ग्रहों की योगकारक चिकित्सा

ग्रहों के जन्म से अथवा गोचर से शरीर पर प्रभाव पडता रहता है और उस प्रभाव के कारण या तो शरीर की क्षति होती रहती है या शरीर काम करने के योग्य नही रहता है। जब शरीर ही स्वस्थ नही है तो दिमाग मी स्वस्थ नही रहेगा और मानसिक सोच मे भी बदलाव आजायेगा या तो चिढचिढापन आजायेगा या किसी भी काम को करने का मन नही करेगा अच्छी शिक्षा के बावजूद भी जब समय पर शिक्षा का प्रयोग नही हो पायेगा तो धन और मान सम्मान की कमी बनी रहेगी। अक्सर यह भी देखा जाता है कि दो कारण एक साथ जीवन मे जवान होने के समय मे उपस्थित होते है पहला कारण अच्छी तरह से कमाई के साधन बनाने के और दूसरे रूप मे जीवन साथी के प्राप्ति के लिये,दोनो कारणो से शरीर मे कोई न कोई व्याधि लगना जरूरी हो जाता है जैसे कमाई के साधनो की प्राप्ति के लिये अधिक दिमाग का और मेहनत का प्रयोग किया जाना वही जीवन साथी और उम्र के चढाव के साथ कामसुख की प्राप्ति के लिये सहसवास आदि से शरीर के सूर्य रूपी वीर्य या रज का नष्ट होने लगना कुछ समय तो यह हालत सम्भाल कर रखी जा सकती है लेकिन अधिक समय तक इसे सम्भालना भी दिक्कत देने वाला होता है इसी कारण से अक्सर धन की प्राप्ति तो हो सकती है वह भी अगर पहले से कोई पारिवारिक या व्यक्तिगत सहायता मिली हुयी है और नही मिली है तो पारिवारिक जीवन भी खतरे मे होता है धन कमाने का कारण भी दिक्कत देने लगता है जीवन साथी से बिगडने लगती है और अक्सर यह कारण संतानहीनता के लिये भी देखे जाते है। इन सबके लिये शरीर का सही रहना जरूरी होता है,शरीर को सम्भाल कर रखने के लिये और मानसिक शांति के लिये लोग कई प्रकार के नशे की आदतो मे भी चले जाते है वे समझते है कि उनकी मानसिक शांति अमुक नशा करने से प्राप्त होती है लेकिन उन्हे यह पता नही होता है नशा कोई भी अपना घर अगर शरीर के अन्दर बना लेता है तो वह आगे जाकर आदी बना देता है बजाय लाभ के वह हानि देने लगता है आदि बाते भी पैदा होती है। ग्रहो से सहायता लेकर अगर सभी ग्रहों की मिश्रित चिकित्सा की जाती रहे तो ग्रह अपने अनुसार बल नही देंगे तब भी शरीर के अन्दर उस ग्रह की उपस्थिति होने से खराब कारण पैदा करने वाला ग्रह भी अपनी शक्ति से शरीर और मन के साथ बुद्धि को खराब नही होने देगा। मैने अपने अनुसार जो आयुर्वेदिक रूप ग्रहों के लिये प्रयोग मे लिया है उसके अनुसार पुराने समय के बीमार सिर के रोगी संतान हीन लोग ह्रदय और सांस के मरीज पेट की पाचन क्रिया से ग्रसित लोग कमजोरी से अंगो के प्रभाव मे नही रहने से अपंगता वाले लोग अपने वास्तविक जीवन मे लौटते देखे है। जब कोई भी आयुर्वेदिक दवाई का लिया जाना होता है तो पहले किसी भी प्रकार के नशे की लत को छोडना जरूरी होता है तामसी भोजन से भी बचना होता है जैसे अधिक खटाई मिठाई चरपरी चीजे त्यागनी होती है। इस आयुर्वेदिक चिकित्सा का प्रयोग करने से पहले यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि किसी प्रकार से अन्य औषिधि जो डाक्टरो के द्वारा दी जा रही है,उसके साथ लेने से और भी दिक्कत हो सकती है साथ ही अगर पास मे कोई आयुर्वेदिक चिकित्सा का केन्द्र है या कोई वैद्य है तो उससे भी इस चिकित्सा के लिये परामर्श लेना जरूरी है।
हमेशा शरीर को स्वस्थ रखने के लिये आयुर्वेदिक चिकित्सा का नुस्खा
ग्रहों की रश्मियों के बिना वनस्पति भी अपने अनुसार नही उग सकती है,वनस्पति को पैदा करने मे ग्रहों का भी बहुत बडा योगदान है,जैसे सूर्य की अच्छी स्थिति मे ही गेंहू की पैदावार होती है,जब सूर्य पर किसी शत्रु ग्रह की छाया होती है या साथ होता है तो फ़सल मे किसी न किसी प्रकार की दिक्कत आजाती है,इसके अलावा भी शनि चने का कारक है और चना तभी सही रूप से पैदा हो पाता है जब जमीन मे नमी हो लेकिन बारिस ऊपरी कम हो अगर शनि की फ़सल मे पानी की अधिक मात्रा का प्रयोग कर दिया जाता है तो फ़सल मे पैदावार कम हो जाती है उसी प्रकार से चन्द्रमा की फ़सल चावल के समय मे अगर राहु का प्रकोप चन्द्रमा पर अधिक हो या किसी प्रकार से दु:स्थान पर हो तो फ़सल मे कीडे लग जाते है या खाद आदि के प्रयोग से फ़सल जल जाती है या कम हो जाती है इसके अलावा राहु की अधिकता होने पर जैसे कर्क के राहु मे चावल की पैदावार कम होती है लेकिन चावल के पुआल की मात्रा बढ जाती है। शरीर मे सभी प्रकार के ग्रहो के तत्वो को पूरा करने के लिये आयुर्वेद मे जडी बूटियों का प्रयोग किया जाता है।यह नुस्खा इस प्रकार से है:
  1. दक्षिणी गोखुरू (सूर्य बुध राहु) १०० ग्राम
  2. असगंध (शनि केतु) १०० ग्राम
  3. शुद्ध कौंच (गुरु शनि) १०० ग्रम
  4. शतावरी (मंगल गुरु) १०० ग्राम
  5. बिदारी कंद (चन्द्र शनि) १०० ग्राम
  6. सतगिलोय (राहु मंगल) १२५ ग्राम
  7. चित्रक की छाल (मंगल शनि) ३० ग्राम
  8. तिल काले (शनि केतु) १०० ग्राम
  9. मिश्री (चन्द्र मंगल) ४५० ग्राम
  10. शहद (चौथा मंगल) २२५ ग्राम
  11. गाय का घी (शुक्र राहु) १२५ ग्राम
  12. काली मूसली (अष्टम शनि चन्द्र) १०० ग्राम
  13. सफ़ेद मूसली (चौथा चन्द्र शनि) १०० ग्राम
  14. खरैंटी (राहु गुरु) १०० ग्राम
  15. तालमखाना (अष्टम चन्द्र शुक्र) १०० ग्राम
  16. मकरध्वज (बारहवां मंगल) ५ ग्राम
  17. प्रवाल पिष्टी (लगन का मंगल) २० ग्राम
  18. बसंत कुसुमाकर (बुध शनि केतु) २० ग्राम
इन अठारह जडी बूटियों को साफ़ सफ़ाई से पीस कर आटा चालने वाली छलनी से बडी परात में छान कर मिला लेना चाहिये बाद में घी और शहद को मिला लेना चाहिये,इन्हे मिलाकर किसी साफ़ स्टील के बडे बर्तम मे रख लेना चाहिये। यह दवाई किसी भी उम्र के लिये अत्यन्त फ़ायदे वाली है,बच्चों के दिमागी रूप से कमजोर होने पर दी जा सकती है जिन बच्चो की आंखो की कमजोरी है याददास्त कमजोर है उन्हे भी दी जा सकती है। चिन्ता करने वाले लोग भी इसे प्रयोग मे लाकर दिमागी काम कर सकते है नि:सन्तान लोग भी इस दवाई के लगातार प्रयोग से संतान को प्राप्त कर सकते है,जिनके जननांग मे कमजोरी है और वे सन्तान पैदा करने मे असमर्थ है वे लोग रोजाना सुबह शाम को डाबर का सांडे का तेल और मल्ल तेल मिलाकर जननांग पर चार बूंद मालिस करते रहे तो जननांग की कमजोरी मे फ़ायदा होता है। दिमागी काम करने वाले लोग इसे लेते रहे तो किसी भी प्रकार के दिमागी काम मे उनकी उन्नति देखी जा सकती है। इस दवाई को बच्चे आधा चम्मच फ़ीके गुनगुने दूध के साथ ले सकते है,बडे लोग एक चम्मच फ़ीके गुनगुने दूध के साथ तथा बुजुर्ग लोग डेढ चम्मच फ़ीके दूध गुनगुने दूध के साथ ले सकते है। इस दवाई के लेने के समय मे युवा लोग मैथुन आदि से एक महिने दूरी रखे,बुजुर्गों के घुटनों का दर्द पीठ का दर्द मास पेशियों का दर्द सभी मे यह रामबाण औषिधि की तरह से काम करती है। जिन लोगो के द्वारा इस दवाई को नही बनाया जा सकता है या सामान नही मिलता है वह मुझे ईमेल से लिख सकते है - astrobhadauria@gmail.com

ग्रहों की पंचायत और राहु का दखल

इस संसार मे दो लोग जीवन मे तरक्की नही कर पाते है एक वे जो कुछ नही जानते है और एक वे जो सब कुछ जानते है। नही जानने वाला व्यक्ति अपनी जरूरत के अनुसार विषय वस्तु को प्राप्त करता रहता है और जीवन साधारण तरीके से निकल जाता है। जानने वाला व्यक्ति लोगो को बताते बताते अपना जीवन निकाल देता है और उसका जीवन भी अपने बारे मे कभी नही सोचने के कारण साधारण रूप से ही निकल जाता है। प्रस्तुत कुंडली के अनुसार मीन लगन की जातिका है और लगनेश गुरु छठे भाव मे वक्री होकर विराजमान है लेकिन लगनेश के मालिक सूर्य लगन मे ही विराजमान है,इस प्रकार से सूर्य और गुरु का परिवर्तन योग भी पैदा हो जाता है। जातिका के लिये कभी तो दिमागी रूप से सूर्य जैसी चमक चाहिये और कभी छठे गुरु जैसी लोगो की सहायता करने की आदत उनकी दुख पीडा को दूर करने के उपाय आदि। जातिका के लिये गुरु एक प्रकार से फ़लदायी तभी बनता है जब वह अपने अनुसार अपनी सर्वोच्च याददास्त का प्रयोग करे,कारण गुरु वक्री जब कुंडली मे बैठता है तो वह उसी भाव और राशि का प्रभाव इतना अधिक दे देता है कि जो साधारण लोग तीन साल मे कर पाये वह एक साल मे ही कर देता है। कुंडली मे लगन मे एक साथ पांच ग्रह की पंचायत है यह पंचायत शुक्र बुध शनि राहु सूर्य की है। इस पंचायत के सामने केवल केतु ही सहायक है बाकी चन्द्रमा शिक्षा के अन्दर है और गुरु रोजाना के काम काज के लिये अपनी युति कभी कभी दे देता है। इस पंचायत का प्रभाव साधारण रूप से समझने के लिये लगन को कढाही समझा जाये और ग्रहों को सब्जियों के रूप मे देखा जाये तथा सप्तम के केतु से पकाने की आग का रूप दिया जाये वक्री गुरु को सब्जियों के प्रति पकाने के समय ध्यान रखने का कारक समझा जाये,तथा मंगल को इन सब्जियों का रखवाला माना जाये,तो एक विचित्र बात पैदा होती है। मीन राशि का शुक्र आसमानी बादलो की तरह से है,जिन्हे देख तो सकते है लेकिन पकड नही सकते है अथवा उनका प्रयोग भी नही कर सकते है यह बादलो की मर्जी है कि वे बरसात देकर जमीन की प्यास बुझा दें या जमीन पर घनघोर बारिस देकर जमीन को दलदल बनादे या तालाब बनाकर सराबोर कर दें। मीन राशि का बुध हवा मे उडता हुआ गुब्बारे की तरह से है वह चलने वाली हवा पर निर्भर होता है अगर हवा गर्म है तो ऊंचा उठता जायेगा और हवा सर्द है तो जमीन की तरफ़ नीचे आता जायेगा,जिस दिशा की हवा चलेगी उसी दिशा मे चलता चला जायेगा,और कभी भी बिना किसी कारण के सीमा तक पहुंचने के पहले ही या सीमा तक जाने के बाद भी अपनी गति को कायम रखेगा या गति से विहीन होकर जमीन पर गिर कर फ़ूट जायेगा। मीन राशि का शनि हवा मे लटके पत्थर की तरह से है,वह दिवालो का सहारा लेकर खडा कर दिया जाये तो छत के रूप मे होता है और उसे अगर रहने वाले स्थान के रूप मे देखा जाये तो वह जन्म के बाद के स्थान को हमेशा के लिये त्याग कर दूसरे स्थान पर चला जाये केवल याददास्त मे रखा जाये कि अमुक शान पर पैदा हुये थे। मीन राशि का राहु अनन्त आकाश की कल्पना है,आकाश को देखा जा सकता है लेकिन उसकी सीमा का आकलन नही किया जा सकता है,वह प्रकाश के कारणो को समझ सकता है प्रकाश की गति से द्रश्य और अद्रश्य हो सकता है,इस राहु को एक ऐसे शिक्षा संस्थान के बारे मे या एक ऐसे निवास के बारे मे भी कल्पित किया जाता है जैसे एक जेल एक कालेज जहां से बिना अन्य की मर्जी से बाहर भी नही निकला जा सकता है और जहां से अपनी मर्जी से कोई काम भी नही किया जा सकता है सभी काम दायरे से बाहर के होते है,केवल राहु से सप्तम के केतु की खाली जगह को भरने के लिये ही इसका प्रयोग किया जा सकता है। मीन राशि का सूर्य आसमान मे चमकता हुआ सितारा भी है और सुबह के पहले प्रहर का उदय होता प्रकाश भी है जो प्रकाश अपनी सीमा को बढाने मे है एक आत्मा के रूप मे अगर देखा जाये तो आसमान से जगत को देखती हुयी आत्मा के रूप मे है वह देख सकता है लेकिन उसे करने के लिये साधनो के रूप मे कुछ भी प्राप्त नही है वह प्रकाश दे सकता है जिससे लोग देख सकते है वह गर्मी दे सकता है जिससे लोग अपने जीवन को चला सकते है,लेकिन खुद के लिये कोई भी कुछ नही कर सकता है।
इस प्रकार से ग्रहों की पंचायत का सम्मिलित रूप जो सामने आता है उसके अनुसार इस जातिका के जीवन को ख्याली जीवन के रूप मे देखा जा सकता है।कुंडली मे अकेला ग्रह केतु ही पूरी पंचायत से टक्कर लेने के लिये माना जाता है और केतु के कारण ही जातिका को केवल सहायता के काम और लोक हित के काम करने का सौभाग्य प्राप्त होता है। यह केतु जातिका को कन्या राशि से सम्बन्धित कारको को प्रसारित करने का कारण पैदा करता है,यह कारण केतु के पीछे बैठे गुरु वक्री की योग्यता के अनुसार ही माना जा सकता है जैसा गुरु प्रभाव देता है वैसा ही केतु अपने अनुसार प्रसारित करने की अपनी योग्यता को सामने रखता है।गुरु और केतु दोनो ही डाक्टरी प्रभाव भी देते है अगर चिकित्सा के कारक ग्रह शनि और राहु केतु और गुरु को अपना असर प्रदान करते है। केतु के लिये तब और मुश्किल पैदा हो जाती है जब मंगल से केतु का षडाष्टक योग पैदा हो जाता है केतु मंगल को अपनी जड से उखाडने वाली नजर से देखता है और मंगल केतु को अपने लिये सहायक का काम करने के लिये सामने रखता है। मैने पहले भी कहा है कि केतु कलम है और वह उसी भाव और राशि के असर को जीवन मे लिखता है जिस भाव या राशि मे वह स्थापित होता है। केतु को लिखने के लिये जो विषय जातिका के सामने आते है वह शुक्र से आंखो की बीमारी स्त्री सम्बन्धी बीमारी प्रजनन सम्बन्धी बीमारी और उसके निदान के लिये बुध से स्नायु सम्बन्धी बीमारी खोपडी के विकार आदि के कारण शरीर के नर्व सिस्टम के लिये प्रकाशित करना शनि से बुद्धि के जडता वाले रोग शरीर के बाल खाल त्वचा वाले रोग एक साथ रहने पर लगने वाले छूत वाले रोग आदि के लिये तथा राहु से शरीर के इन्फ़ेक्सन कानो के इन्फ़ेक्सन छूत से लगने वाले रोग पेट और सांस के अन्दर लगने वाले रोग जननांग सम्बन्धी रोग जो सहसवास और अनैतिक सम्बन्धो के कारण पैदा होते है आसमानी रोग जैसे अचानक बीमार हो जाना डर जाना आदि वाले रोगो के लिये जाना जाता है। चन्द्रमा के पानी की राशि और राज्य के भाव मे होने से चन्द्रमा पानी वाले रोग पानी के कारण शरीर मे व्याप्त रोग सांस की दिक्कत जुकाम का अधिक बना रहना मोटापा और मनोवैज्ञानिक रोग के लिये जानकारी देते रहना,केतु से पेट के अन्दर आंतो वाले रोग पेट की बीमारिया पाचन क्रिया आदि के रोग भी केतु से जाने जाते है। सूर्य से हड्डी वाले रोग नेत्र रोग आंखो में लगने वाली चोटो के रोग पैरों के पंजो मे होने वाले रोग आदि के लिये भी सूर्य अपनी पहिचान को देता है। इस सभी ग्रहो की आपसी युति के लिये भी एक साथ इतने कारण बन जाते है कि उनका विश्लेषण करने पर बहुत बडी व्याख्या की जा सकती है और एक साधारण आदमी के लिये यह एक असम्भव जैसी बात हो सकती है।
अक्सर मीन राशि का राहु अचानक दिमाग को बदलने वाला होता है और जब देखो तभी किसी न किसी प्रकार से बने बनाये गणित को समाप्त कर देता है किसी भी प्रकार से सोचे गये काम को नही होने देता है और जो भी काम बन भी रहा हो तो केवल अपनी शक्ति से अचानक समाप्त कर देता है। राहु के साथ शनि के मिल जाने से शक्ति के रूप मे दवाइयों की जानकारी देता है और अचानक पारिवारिक स्थिति मे अपनी युति बनाकर काली आंधी के रूप मे सामने समझ मे आता है यह शनि राहु कृष्ण भक्ति के प्रति भी धारणा बना देता है और किये जाने वाले कामो मे भगवान श्रीकृष्ण की उपस्थिति को आधार बनाकर चलने वाला होता है।अपने माता पिता के प्रति समर्पित होता है और आजीवन अपने सुख आदि को त्याग कर खुद के माता पिता के प्रति एक छतरी की तरह से तना रहकर अपनी सेवाओ को देता है। राहु के साथ जब सूर्य का मिलना होता है तो उम्र की बयालीस साल के बाद से ही स्थिति मे सुधार आने की बात मिलती है और बयालीस साल तक दूसरो पर ही निर्भर रहना पडता है जितना भी काम किया जाये वह एक प्रकार से फ़ूस के झोपडे जैसा ही असर प्रदान करने वाला होता है। रोज मर्रा की जिन्दगी मे अपनी स्थिति को हमेशा शंका और भ्रम से पूर्ण रखने के कारण आगे भी नही बढने देता है। मीन राशि का सूर्य राहु के घर मे ही होता है जो भी किया जाता है वह भ्रम और लोगो की शंका को दूर करने के लिये एक प्रकार से बडे संस्थान जैसे काम करता है लेकिन केतु की वजह से वह केवल अपने विचार शनि शुक्र की युति वाले कारक कागज पर उतारने के अलावा बुध राहु के संयोग से कम्पयूटर पर डिजायन बनाना आंकडो को लिखना फ़ार्मूला प्रकाशित करने की कल्पना करना आदि बाते मानी जाती है लेकिन बुध और राहु के असीमित गणित के कारण जो भी फ़ार्मूला आदि चिकित्सा क्षेत्र के लिये बनाये जाते है वह साधारण व्यक्ति की समझ से बाहर होने की बजह से भी प्रयोग मे नही लिये जा सकते है।
अक्सर सूर्य शनि की युति के साथ चन्द्रमा का नवम पंचम का योग होने से जातक अपने माता पिता के रहते अपने जीवन के लिये कुछ भी नही सोच पाता है उसे अपने माता पिता का किसी भी कारण से ख्याल रखना होता है और उन ख्याल रखने वाली बातो से तथा किसी पर भी उनके लिये की गयी सेवा से संतुष्टि नही मिलने से जातिका अपने द्वारा ही की गयी सेवा भाव से संतुष्ट रहता है।मीन राशि के सूर्य के लिये एक बात और भी देखी जाती है कि जातक को जो भी राजकीय सम्मान या विदेशो मे प्रसिद्धि का कारण बनता है वह जीवन के अन्तिम समय मे या मृत्यु के बाद ही सम्मान मिलने की बात देखी जाती है इसी प्रकार से शनि की सूर्य से युति मीन राशि मे होने से जातक को समझने के लिये कई वैज्ञानिक एक साथ विचार विमर्श करते है तभी जाकर जातिका की छवि और उसके ज्ञान का आकलन कर पाते है एक व्यक्ति अगर जातिका के बारे मे समझना चाहता है तो वह जातिका के बराबर का ज्ञान रखे तभी सम्भव माना जा सकता है अन्यथा जातिका के ज्ञान के स्वरूप अलग अलग ग्रहो से पूर्ण शक्ति वाले ग्रह ही जातिका के लिये अपनी समझ को प्रसारित कर सकते है जैसे कुंडली मे बुध राहु शनि राहु सूर्य राहु शुक्र राहु आदि की युति रखते हो।
जातिका के परिवार के लिये अगर देखा जाये तो जातिका के दादा तीन भाई होते है और वे अपनी पैत्रिक जायदाद को छोड कर बाहर जाकर बसे होते है। दादा का स्थान जातिका के पैदा होने के स्थान से दक्षिण-पूर्व दिशा की तरफ़ होता है जातिका के पिता अपने पैत्रिक कारणो को सम्भालने मे कालेज शिक्षा न्याय आदि के कारणो से जुडे होते है माता का प्रभाव भी इन्ही क्षेत्रो के कारको से निबटने के लिये माना जाता है जातिका की छवि भी अपनी माता से मिलती है और दांतो की बनावट बहुत ही खूबशूरत होती है। जातिका का ख्याल केवल अपने पुराने जीवन से जुडा होता है वह इतिहास के बारे मे अधिक जानती है और अपने परिवार के पूर्व इतिहास को बताने मे रुचि रखती है। जातिका को भावुक भी माना जाता है और वह अपनी भावना को प्रकट करने के लिये ऊपर लिखे ग्रहो के अनुसार ही अपने को प्रसारित कर सकती है। अधिक सोचने और अधिक स्मय एकान्त मे व्यतीत करने से तथा बाहरी कारणो को लगातार ध्यान मे रखने से घटनाओ के अधिक समय तक याद रखने से शरीर के अन्दर यह राहु और चन्द्रमा मिलाकर एक प्रकार का एसिड तैयार करता रहता है जिससे आंखो पर भी असर पडता है सांस लेने के कारणो मे भी दिक्कत आती है और मानसिक बोझ भी बढता है, इस कारण से जातिका को मोटापे का शिकार भी होना पडता है अथवा अधिक एसिड बढ जाने से भोजन करने के बाद पेट का अफ़ारा आंतो का सही रूप से काम नही करना आदि बाते भी मानी जा सकती है। शुक्र राहु की युति से जातिका के अन्दर के प्रकार से अनगिणत रूप से आगे बढने का मानसिक प्रभाव भी उत्तेजना देने के लिये माना जा सकता है और जातिका की चाहत होती है कि वह अपने नाम और धन के साथ बहुत आगे बढने के लिये अपनी सीमा रेखा को बना सके उसके पास दो सहायक होते है जो उसके लिये अपनी भावनाओ से प्रकट करने की योग्यता रखते है लेकिन आपसी बहस करने और आपसी विचार एकत्रित नही होने के कारण अक्सर बातचीत मे तर्क वितर्क की मात्रा भी बढ जाती है।
वर्तमान मे चन्द्रमा से चौथे घर मे शनि के आजाने से तथा सूर्य से अष्टम मे शनि के आने से जो भी जातिका के द्वारा कार्य किया गया है उसे परखने का और समझने का समय शुरु हुआ है सूर्य से पिता के अष्टम मे शनि के आने से पिता को पाचन क्रिया सम्बन्धी बीमारिया और भोजन का नही पकना और लैट्रिन आदि की समस्या का कारण बनना माना जाता है तथा माता के चौथे भाव मे शनि के आने से माता को यात्रा वाले कारणो मे जाना साथ ही सर्दी वाली बीमारियों का होना छाती मे जकडन आदि होना भी माना जा सकता है। इस समय की युति से माता के लिये छाती मे जकडन का हो जाना और कफ़ का जमा हो जाना भी माना जा सकता है लेकिन खुद के दूसरे मंगल की द्रिष्टि इस चन्द्रमा पर होने से माता पर दवाइयों का प्रयोग भी सही समय पर किया जाना माना जा सकता है। राहु का गोचर आने वाले जनवरी 2013 तक नवम भाव मे रहने से पिता के लिये आक्समिक आघात का समय भी माना जा सकता है साथ ही राहु का गोचर अष्टम मे होने से निवास से दक्षिण पश्चिम दिशा में व्यापारिक चिकित्सालय मे काम करना भी माना जा सकता है। इसके अलावा नवम्बर 2014 से शनि की युति जब लगन के ग्रहो से होगी तभी जातिका के द्वारा लिखे गये और मानसिक तथा बुद्धि के कारणो से प्रकाशित कथनो के प्रति जैसे प्रकाशित होना और प्रकाशित होने के बाद उनके प्रसारण आदि की बाते मानी जा सकती है,वही समय जातिका के लिये धन और सम्मान से उदय होने का समय माना जा सकता है।