प्रस्तुत कुंडली मे मीन लगन है और लगनेश गुरु का स्थान पंचम भाव मे केतु के साथ है,लगनेश का केतु के साथ होने का अर्थ जीवन मे भटकाव के अलावा और कुछ भी प्राप्त नही होता है जिस भाव का केतु होता है उसी भाव के फ़लो मे जातक को भटकाने का काम करता है वह चाहे अच्छे रूप मे हो या खराब रूप में। गुरु का स्थान पंचम मे होने से विद्या और बुद्धि के क्षेत्र मे है,जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र मे है खेलकूद और रोजाना की जिन्दगी मे असीमित लालसाओं तथा प्राप्तियों के प्रति चिन्ता करने के क्षेत्र मे है। ग्यारहवे भाव का राहु भी गुरु को अपनी युति प्रदान कर रहा है। केतु का भटकाव नौकरी के लिये जल्दी से जल्दी धन कमाकर अपने को समाज मे प्रदर्शित करने के लिये शादी और कार्य करने वाली पत्नी की प्राप्ति के लिये गुरु केतु की तीसरी द्रिष्टि सप्तम मे होने से है,और सप्तम मे स्थापित शुक्र जो हिम्मत देने का भी मालिक है और अपमान करने के साथ साथ रोजाना की जिन्दगी मे जोखिम भी लेने के लिये माना जा सकता है। गुरु केतु की पंचम द्रिष्टि नवे भाव पर है और नवे भाव मे राहु के गोचर से होने से जातक का जो भी ऊंचे शिक्षा का क्षेत्र है वह भी बाधित हो गया है और धन आदि कमाने के चक्कर मे तथा शिक्षा के क्षेत्र मे जाने से अपनी वास्तविक कार्यप्रणाली को बदलने के भी उत्तरदायी है। गुरु कर्क राशि का उच्च का है इसलिये जीवन मे उन्नति साधारण मार्ग से अपने को इज्जत और मान मर्यादा मे रखकर चलने से भी मानी जायेगी केतु के साथ होने से और गुरु केतु के द्वारा अष्टम स्थान पर चन्द्र सूर्य बुध को व्यापारिक बल देने के कारण जातक को धन सम्बन्धी काम जैसे व्यापारिक धन को जोखिम से बचाना सरकारी कारणो से धन की बरबादी को बचाना व्यापारिक कानूनो के प्रयोग से जनता को धन सम्बन्धी बचाव का रास्ता देना आदि कारण जातक के लिये वास्तविक उद्देश्य का रास्ता बताते है लेकिन राहु पिछले चौवन महिने से जातक के ग्यारहवे भाव दसवे भाव और अब नवे भाव मे गोचर करने से जातक के अन्दर एक प्रकार का जल्दी से कमाने और धन की जरूरत को पूरा करने के लिये तथा छोटी सी उमर मे ही लोगो के लिये आदर्श बनने का भूत सवार कर रहा है। इस राहु के कारण जातक अपनी वास्तविक मर्यादा को भूल गया है वह अपने को कभी तो इतना व्यस्त कर लेता है कि खाने पीने सोने और मौज मस्ती से दूर चला जाता है,घर मे एक प्रकार का सन्नाटा प्रदान करने के लिये पिता के लिये माता के लिये सेहत सम्बन्धी कष्ट प्रदान करने का कारण चिन्ता से देने के लिये और जो भी कारण शिक्षा सम्बन्धित है वह केवल कनफ़्यूजन मे लेकर उन्हे समय से नही पूरा करने की बात से भी माने जाते है। जातक केवल घर की प्राथमिक अवस्थाओ को पूरा करने के बाद चाहता तो वह अपने वास्तविक उद्देश्य जो ऊपर धन सम्बन्धी कारणो की शिक्षा के लिये बताई गयी है एक चार्टेड एकाउन्टेन्ट की हैसियत से जीवन को निकालने के लिये प्रकृति ने जो साधन बुद्धि और ज्ञान दिया था वह प्रयोग नही करके केवल धन के प्रति सोचने और अपने को बेकार के कनफ़्यूजन मे ले जाकर समय और सेहत के साथ मूल्यवान समय को बरबाद करने का कारण ही तो जातक को मिल रहा है दोस्ती के भाव मे राहु के होने से जो भी जातक के दोस्त है वह जातक को कभी तो राजकीय सेवा मे जाने के लिये कभी स्कूली काम करवाकर बिना किसी लाभ के भटकाने के लिये कभी कुछ और कभी कुछ करने का भूत सवार करने के बाद जातक के टारगेट से दूर जाने का उपक्रम करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान कर रहा है।
गुरु से शनि की स्थिति छठे भाव मे होने से जातक के लिये कहा जा सकता है कि जातक का जीवन कठिन से कठिन मेहनत करने के बाद जो भी प्राप्त करेगा वह धन ग्यारहवे मंगल के प्रभाव के कारण जिस पर मित्र भाव के राहु का असर है अचानक खर्च करने के कारको मे अपना सब कुछ खर्च कर देगा और फ़िर वृष राशिका मंगल अपने कारको से परिवार की जिम्मेदारी के प्रभाव को साथ मे लाकर जातक को कर्जा दुश्मनी बीमारी से ग्रस्त करने के कारको को पैदा करेगा।
शुक्र जो मंगल के घेरे मे है साथ ही मित्र भाव के राहु के घेरे मे है जातक की शादी के बाद उसके मित्रो का प्रभाव पारिवारिक जीवन पर भी जायेगा और शुक्र जो पत्नी के रूप मे है जातक की अन्देखी के कारण वह अपने वैवाहिक जीवन को नही सम्भाल पायेगा जैसे ही शुक्र को मौका मिलेगा वह धन या खानपान के प्रभाव से अथवा उत्तेजना मे अपने को गुप्त रूप से परिवार के साथ विश्वासघात करने के लिये अपने असर को प्रदान करेगा।
जातक का यह कारण जातक के दादा से शुरु हुआ है जैसे जातक के दादा दो भाई थे और दोनो मे एक की ही पारिवारिक वंशावली आगे चली,दो दादिया एक दादा के रही घर का परिवार का जो भी संचालन था वह किसी धर्म या शिक्षा या घरेलू व्यापारिक कारण से बरबाद होता रहा जातक के दादा या पिता अपने परिवार को पैत्रिक माना जाता है को छोड कर दूसरी जगह पर जाकर बसे और उस बसावट मे न्याय आदि के कारण अपने पूर्वजो के प्रति धारणा जो चलनी चाहिये थी वह नही मिल पायी और पिता के कारणो से जातक को आजीवन भटकाव का रास्ता सामने मिल गया। जातक के पिता का रूप दो बहिने और दो भाई के रूप मे माना जाता है।
गुरु से शनि की स्थिति छठे भाव मे होने से जातक के लिये कहा जा सकता है कि जातक का जीवन कठिन से कठिन मेहनत करने के बाद जो भी प्राप्त करेगा वह धन ग्यारहवे मंगल के प्रभाव के कारण जिस पर मित्र भाव के राहु का असर है अचानक खर्च करने के कारको मे अपना सब कुछ खर्च कर देगा और फ़िर वृष राशिका मंगल अपने कारको से परिवार की जिम्मेदारी के प्रभाव को साथ मे लाकर जातक को कर्जा दुश्मनी बीमारी से ग्रस्त करने के कारको को पैदा करेगा।
शुक्र जो मंगल के घेरे मे है साथ ही मित्र भाव के राहु के घेरे मे है जातक की शादी के बाद उसके मित्रो का प्रभाव पारिवारिक जीवन पर भी जायेगा और शुक्र जो पत्नी के रूप मे है जातक की अन्देखी के कारण वह अपने वैवाहिक जीवन को नही सम्भाल पायेगा जैसे ही शुक्र को मौका मिलेगा वह धन या खानपान के प्रभाव से अथवा उत्तेजना मे अपने को गुप्त रूप से परिवार के साथ विश्वासघात करने के लिये अपने असर को प्रदान करेगा।
जातक का यह कारण जातक के दादा से शुरु हुआ है जैसे जातक के दादा दो भाई थे और दोनो मे एक की ही पारिवारिक वंशावली आगे चली,दो दादिया एक दादा के रही घर का परिवार का जो भी संचालन था वह किसी धर्म या शिक्षा या घरेलू व्यापारिक कारण से बरबाद होता रहा जातक के दादा या पिता अपने परिवार को पैत्रिक माना जाता है को छोड कर दूसरी जगह पर जाकर बसे और उस बसावट मे न्याय आदि के कारण अपने पूर्वजो के प्रति धारणा जो चलनी चाहिये थी वह नही मिल पायी और पिता के कारणो से जातक को आजीवन भटकाव का रास्ता सामने मिल गया। जातक के पिता का रूप दो बहिने और दो भाई के रूप मे माना जाता है।
ati sunder vivechan...guruji prannam....
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