Thursday, December 6, 2012

कुम्भ लगन में बुध का प्रभाव

बुध को कमन्यूकेशन से जाना जाता है ग्रहों का युवराज है जब लगन मे आकर बैठ जाये तो व्यक्ति को अपने कार्य कौशल से जीवन मे उन्नति देता है,जातक मे बोलने की क्षमता का विकास कर देता है जातक जहां भी जाता है वह अपने कमन्यूकेशन और व्यक्तियों की सहायता से अपनी धाक जमाने भर के लोगो के साथ देने मे सहायता करता है। अकेला बुध सब कुछ करने मे समर्थ है जबकि अन्य ग्रहो के साथ बुध हमेशा उन्ही की गुलामी करता रहता है सूर्य के साथ अपनी बुद्धि और विवेक को प्रकट नही कर पाता है जैसे ही अकेला होता अपनी प्रभावशाली गरिमा से जातक को उन्नति का रास्ता तभी दिखा पाता है जब कोई ग्रह बुध के प्रति अपनी शत्रुता वाली नीति प्रकट नही कर रहा हो,इसके अलावा भी जातक को तब और प्रसिद्धि देता है जब जातक के जन्म के बाद से ही उसे कष्टो का सामना करना पडा हो। बुध की बिसात एक फ़ूल से की जा सकती है जो फ़ूल अधिक सुन्दर होता है वह कांटो मे ही अपनी गरिमा को कायम रख पाता है बिना कांटे के पेड मे बुध अपनी स्थिति को कायम नही रख पाता है कारण कोई भी बुध रूपी फ़ूल को कपट कर उसका आस्तित्व समाप्त कर सकता है।
लालकिताब से बुध बहिन बुआ बेटी के रूप मे जाना जाता है और बुध जब लगन मे स्थापित होता है कुम्भ लगन का जातक अपने संतान भाव के प्रभाव से केवल अपनी बुआ बहिन और अपने जीवन मे बेटी के कारण ही प्रसिद्धिइ ले सकता है। उपरोक्त कुंडली मे बुध लगन मे है लगन के बुध के लिये पहली लडकी कहा जा सकता है कुम्भ राशि के बुध के लिये बडी बहिन का रूप दिया जा सकता है,नवे भाव के शनि की युति से जायदाद और सम्पत्ति से युक्त बडी बुआ के रूप मे भी देखा जा सकता है। पारिवारिक स्थिति मे जब बुध को कोई सम्भालने वाला ग्रह होता है तो वह अपनी विशेष बुद्धि का असर जीवन मे प्रकट करने लगता है। जैसे कार्येश और तृतीयेश मंगल जब बुध को अपनी चौथी नजर बख्स रहे हो तो बुध को सम्भालने के लिये मंगल जिम्मेदार मान लिया जाता है,मंगल जिस ग्रह को अपनी द्रिष्टि से देखे तो समझ लेना चाहिये कि बुध कितना भी शैतान क्यों नही हो लेकिन दायरे से अधिक अपनी औकात को प्रकट नही कर सकता है।
उपरोक्त कुंडली मे भाग्येश और लगनेश का परिवर्तन योग है। भाग्येश बारहवे भाव मे है और लगनेश नवे भाव मे है,लगनेश की युति बुध से भी है और लगनेश का प्रभाव लाभ भाव से जुडकर तीसरे भाव के चन्द्रमा से भी है चन्द्रमा कर्जा दुश्मनी बीमारी का मालिक है और जब शनि चन्द्रमा से अपनी नजर लगा बैठता है तो व्यक्ति अपने को स्थिर नही रख पाता है,वह बात बात मे अपने मन को बदलने लगता है अभी कहता है कि यह काम करना है और तुरत ही अपने विचार को बदलने के बाद कहने लगता है कि यह काम नही करना है इस प्रकार से स्थिरता के कम होने से व्यक्ति अपने को उसी प्रकार से रख पाता है जैसे पानी मे पडा हुआ एक पत्ता पानी की लहरों से अपने को लहरो के द्वारा अस्थिर ही रखता है जब तक पानी की लहरे आती रहती है तब तक वह पत्ता ऊपर नीचे ही होता रहता है। अक्सर देखा होगा कि जो व्यक्ति अपने को प्रदर्शित करने में साफ़ दिखाई देते है या अपने को बात बात मे द्रवित करते रहते है वह अक्सर अन्दर से बडे कठोर होते है,वह अपनी किसी भी बात की मजबूरी को प्रकट करते समय द्रवित होकर सामने वाले को अपने प्रभाव मे ले तो लेते है लेकिन जैसे ही उनका वक्त बदला वे अपने को या तो बेरुखी से प्रदर्शित करने लगते है या दूरिया बनाकर किसी न किसी कारण का बहाना बनाकर सामने लाने से ही कतराने लगते है। इस प्रकार के व्यक्तिओ को प्रकृति बुध के रूप मे एक लडकी संतान को प्रदान करती है और वह लडकी अपने स्वभाव से इतनी बेरुखी इस प्रकार के व्यक्ति के सामने प्रकट करती है कि व्यक्ति लडकी के बिना रह भी नही सकता है और लडकी के सामने रहने पर झल्लाहट भी आती रहती है,लडकी का स्वभाव परिवार मर्यादा व्यवहार सभी मे देखने के लिये तो बहुत ही मधुर रहता है वह अपने को उच्चता मे प्रदर्शित करने के लिये अपनी योग्यता को अधिक से अधिक प्रकट करने का कारण तो पैदा करती है लेकिन दिमाग मे विदेशी नीति आजाने से वह अपने को पूरा विदेशी ही बना लेती है और या तो जातक से इतनी दूरिया बना लेती है कि जातक उसके लिये तडप पाल कर ही रह सकता है,संतान का कारक बुध होने और जल्दी से धन कमाने के लिये प्रभाव देने वाला बुध कला के क्षेत्र मे इतना अधिक प्रसिद्धि ले लेता है कि वह अपने जन्म स्थान से बाहर जाकर अपनी कला को प्रकट करता है और जातक को केवल मानसिक संतुष्टि से अपने जीवन को गुजारना पडता है।
जातक के लिये पुरुष संतान के रूप मे सूर्य जब त्रिक भाव मे होता है तो केतु अपना प्रभाव देने लगता है और संतान मे पुरुष संतान के रूप मे प्रकट होता है तथा भाव अनुसार जीवन मे अपना फ़ल प्रदान करता रहता है। केतु जो सहायक के रूप मे है केतु जो शाखा के रूप मे अपने प्रभाव को रखता है लेकिन केतु जब त्रिक भाव मे यानी छठे भाव मे होता है तो एक बीमार पुत्र के रूप मे देखा जा सकता है। जब वृश्चिक राशि के मंगल से अपनी युति को प्राप्त करता है तो केतु जो परिवार की शाखा को बढाने के लिये सामने होता है वह एक सूखी हुयी शाखा जो बीमारियों की तपन से तपने के बाद हरा भरा नही होने के कारण रूखा और बेरुखी से भरा हुआ माना जाता है इस प्रकार से लगन का बुध कभी भी जातक की नर संतान को आगे नही बढा सकता है यही कारण जातक की पुत्री के सामने प्रकट होता है,जातक की पुत्री भले ही अपनी कला के द्वारा संसार को अपने आधीन कर ले लेकिन कभी भी अपने वैवाहिक जीवन को या संतान आदि के द्वारा संतुष्ट नही कर सकती है।
इस प्रकार से जातक की बुध की स्थिति जो प्रभाव पैदा करती है वह इस प्रकार से है:-
जातक की बहिन बुआ बेटी संसार मे कला के क्षेत्र मे अपना नाम करते है उनके लिये कला के रूप मे मनोरंजन का क्षेत्र देश विदेश मे अपना प्रभाव देता है। शुक्र सूर्य और राहु की युति से बुध तरह तरह के कला के प्रदर्शन के तथा हाव भाव प्रकट करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करते है। बहिन बुआ बेटी को शुक्र सुन्दरता देता है सूर्य राजसी चमक देता है और राहु असीमित क्षेत्र मे काम करने का कारण पैदा करता है। जातक केतु के रूप मे अपनी बहिन बुआ बेटी के लिये सहायक का काम करने के लिये ही अपनी जिन्दगी को निकालता है और यही कारण जातक की पुत्र संतान के लिये माना जाता है। जातक के जीवन मे बहिन के रूप मे चन्द्रमा एक बडी हैसियत को बनाता है,और अपनी हैसियत को तब और अधिक बना देता है जब वह पैत्रिक क्षेत्र के कारणो को एक सीमा से अधिक बढाने के लिये अपने प्रभाव को प्रकट करता है इस प्रकार से एक जीवन जो मनोरंजन या कला के क्षेत्र मे समर्पित होता है वह सरकार और जनता के द्वारा पुरस्कार देने के तथा एक से अधिक एक कारण बनाकर सामने करता है। जातक के लिये एक प्रकार की आफ़त पुत्र संतान के प्रति ही मानी जा सकती है जो अपनी अस्पताली जिन्दगी के कारण हमेशा एक ऐसे रोग से ग्रसित रहता है जो रोग अच्छे अच्छे चिकित्सको को समझ मे भी नही आता है और उसका निदान भी नही हो सकता है। निदान तभी हो सकता है जब मंगल केतु की युति को पैशाचिक क्रिया कलाप से दूर किया जाये।
वर्तमान मे राहु जातक के लिये एक डरावनी फ़िल्म की तरह से कहानी बना रहा है,एक शमशानी शक्ति जमीन के नीचे से पैदा होती है और वह धार्मिक रूप से चार लोगो को अपने प्रभाव मे लेती है वह अपने रूप को कभी तो राजकीय रूप मे प्रदर्शित करती है कभी अपने को सुन्दरता के रूप मे ले जाकर अपने लिये रूप को बनाती है कभी हरे भरे मैदानी क्षेत्र मे विनाश का रूप धारण कर लेती है और कभी पानी मे बहते हुये एक बेसहारा तिनके की तरह से आने को सामने करने के लिये प्रभाव देती है। 

3 comments:

  1. गुरुदेव सादर चरण स्पर्श ........
    जय रामजी की.............

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  2. धन्यवाद प्रभुजी ..........

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