जीवन मे समस्यायें अनन्त होती है सभी समस्यायें अपने द्वारा भी पैदा की जाती है और प्रकृति से भी मिलती है। अपने द्वारा पैदा की गयी समस्याओं का अन्त अपने द्वारा ही किया जाता है लेकिन प्रकृति के द्वारा दी जाने वाली समस्याओं का अन्त प्रकृति ही करती है। खुद के द्वारा पैदा की गयी समस्या का अन्त कभी कभी प्रकृति भी कर देती है और प्रकृति के द्वारा पैदा की गयी समस्या को कभी कभी हम खुद भी कर लेते है,लेकिन प्रकृति जो समस्या पैदा करती है उसमे आगे चलकर हित होता है जबकि खुद के द्वारा पैदा की गयी समस्या हितकारी भी हो सकती है और दुखदायी भी हो सकती है। शरीर का ख्याल रखने से ही शरीर स्वस्थ रहेगा धन कमाने से ही आयेगा रहन सहन परिस्थिति के अनुसार ही बनाना पडेगा और जो जलवायु शरीर मन और कार्य के लिये उपयुक्त होती है उसी मे निवास भी करना पडेगा बुद्धि को बढाने के लिये शिक्षा भी प्राप्त करनी पडेगी रोजाना की दिक्कतो को दूर करने के लिये रोजाना के कामो को भी करना पडेगा,आगे की सन्तान और पारिवारिक सुख को लेकर चलना है तथा जीवन को सयंत बनाकर समाज के अनुसार जीना है तो शादी भी करनी पडेगी और ममत्व के लिये बच्चे भी पैदा करने पडेंगे,जिस देश जलवायु और लोगो के पास रहना है तो वहां के नियम कानून धर्म और लोगो के अनुसार ही रहना पडेगा जीवन को चलाने के लिये और अपने द्वारा पैदा किये गये कारणो के लिये ऐसे कार्य देखने पडेंगे जो हमेशा के लिये चलते रहे और बडे कार्यों के लिये बडी शिक्षा तथा छोटे कार्यों के लिये छोटी शिक्षा को ग्रहण करना पडेगा जब सभी प्रकार से कार्य सुचारु रूप से चलेंगे तो आवक भी होगी और उस आवक को जरूरत के अनुसार खर्च करने से तथा बचत करने से तरक्की भी होगी और जब जन्म लिया है तो मरना भी पडेगा।
शरीर का ख्याल नही रखा सर्दी गर्मी बरसात में जलवायु के अनुसार उसे सम्भाला नही छोटी सी बीमारी होने पर उसका इलाज नही किया जो हानिकारक भोजन है वह जीभ के स्वाद से खाते चले गये तो शरीर को बीमार होना ही है और शरीर बीमार हो जाये तथा दोष प्रकृति को दिया जाये तो बेकार की बात है.
पूर्वजो के दिये गये धन या सामान का ख्याल नही रखा जो था उसे सुरक्षा के अभाव मे खो दिया तो धन कहां से आयेगा और धन कमाने के लिये काम तो करना ही पडेगा.
जिस जगह पर रह रहे है वहां की जलवायु के अनुसार कपडे नही पहिने अपने को सुन्दर दिखाने के लिये या परिवेश से विपरीत फ़ैशन मे आकर अपने शरीर को उचित तरीके से ढका नही जो भाषा बोली जाती है या जहां भी रहते है वहां की परिस्थिति के अनुसार अपने को चलाना नही आया लोगो से कैसे बोला जाता है कैसे लोगो से लिख कर बताया जाता है आदि बातो का ध्यान नही रखा जहां नरमाई से काम लेना था वहां गर्माई से काम लेने लगे तो लोग दुत्कारने लगेंगे और जो भी आगे बढने का उपक्रम होता है उसमे पीछे रह जाओगे.
अपने समय के अनुसार विद्या को नही प्राप्त किया जहां जैसे माहौल मे रह रहे है वहां से आगे बढने का उपक्रम नही बनाया अपने सामर्थ्य के अनुसार शिक्षा का क्षेत्र नही चुना जो पढना लिखना था उसे पढा लिखा नही एक समय मे कई काम एक साथ लेकर चले सर्दी गर्मी बरसात और आने वाली प्राकृतिक आपदा के लिये अपने घर को सम्भाल कर नही रखा दिल के अन्दर दूसरो के प्रति दया का भाव नही रखा माता पिता और उनके लिये जो कर्तव्य होते है उन्हे पूरा नही किया तो भटकना जरूरी है,कारण निश्चित समय पर निश्चित रहने का कारण नही बना पाये.
विद्या ग्रहण के समय मनोरन्जन में मन लगा लिया जब पढना था तब खेलने मे लग गये,जल्दी से धन कमाने के लिये जुआ लाटरी सट्टा मे मन को लगा लिया इश्कबाजी मे ध्यान चला गया बुद्धि को एक स्थान की बजाय कई स्थानो पर प्रयोग किया जाने लगा जब परिपक्व हुये तो हाथ मे कुछ नही रहा,अब तो दूसरो के भरोसे रहना ही पडेगा.
समय पर शरीर को संभाल कर नही रखा तो बीमार हो गये धन को मनमाने ढंग से खर्च किया और कल का ख्याल नही रखा तो कर्जा हो गया जो सीखा है उसे प्रयोग नही करके दूसरो की कमाई या अन्य बातों मे ध्यान को लगाया खर्चे अधिक होने से जरूरत पर चोरी की आदत पड गयी किसी ने समझाने की कोशिश की तो उससे लडाई हो गयी और दुश्मनी भी पाल ली गयी,अपने घर मे रह नही पाये मामा मौसी आदि के पास रहने लग गये,जब उम्र कुछ सीखने की थी तो नौकरी करके पेट पालने वाली बात बन गयी पूरे जीवन की दिक्कत खुद के द्वारा ही पैदा की गयी है उसके लिये कौन जिम्मेदार होगा.
कई बार लोगों के द्वारा अनर्गल बयान दिये जाते है कि अमुक पत्थर के पहिनते ही उन्हे आशातीत लाभ हो गया,अमुक ज्योतिषी ने अमुक रत्न दिया था उससे उन्हे बहुत लाभ हो गया,लेकिन यह क्यों नही सोचा जाता है कि ज्योतिषी केवल तत्व की मीमांशा का ही हाल देता है कभी भी ज्योतिषी केवल रत्न पहिने के बाद आराम मिलना नही बोलता है,रत्न एक यंत्र की तरह से है,रत्न का मंत्र रत्न की विद्या की तरह से है और रत्न का कब प्रयोग करना है कैसे प्रयोग करना है कैसे उसे सम्भालना है आदि की जानकारी तंत्र है। केवल रत्न के पहिनने से कोई लाभ नही होता है ऐसा मैने अपने ज्योतिषीय जीवन मे नही देखा है,वैसे अपने श्रंगार के लिये कितनी ही अंगूठिया पहिने रहो हार मे कितने ही रत्न जडवा दो लेकिन इस मान्यता मे रत्न पहिन लिया जाये कि केवल रत्न ही काम करेगा यह असम्भव बात ही मिलती है। बुध व्यापार का कारक है बुध का रत्न पन्ना है,हजारो मजदूर पन्ने का काम करते है और सुबह से शाम तक पन्ना ही उनके हाथ मे रहता है लेकिन मैने कभी नही सुना है कि पन्ना का कारीगर एक अच्छा व्यापारी बन गया है।
मनुष्य जब भ्रम मे चला जाता है तो उसके लिये ध्यान को भंग करना जरूरी होता है यह मनोवैज्ञानिक कारण है,जब किसी के सामने अपनी समस्या को बताया जाता है तो वह समस्या को सुनता है समस्या की शुरुआत का समय सितारों से निकाला जाता है,समस्या के अन्त का समय भी सितारों से निकाला जाता है,अगर सितारा जो गलत फ़र्क दे रहा है तो उस सितारे के लिये रत्न का पहिना जाना उत्तम माना जाता है,सबसे पहले अच्छे रत्न की पहिचान करना जरूरी होता है,इसे कोई जानने वाला ही पहिचान करवा सकता है वैसे आजकल रत्न परीक्षणशाला बन गयी है और रत्न का परीक्षण करने के लिये रत्नो की कठोरता रत्न के अन्दर की कारकत्व वाली स्थिति को बताया जाता है,जब प्रयोगशाला बन गयी है तो प्रयोगशाला से किन किन तत्वो का निराकरण मिलता है उसके बारे मे रत्न का व्यवसाय करने वालो के लिये जानकारी भी मिल गयी है कि मशीन से कितना और क्या बताया जा सकता है,आजकल की वैज्ञानिक सोच को समझने वाले लोग यह भी समझते है कि रत्न जो भूमि के नीचे से प्राप्त होता है की परिस्थितिया भी सर्दी गर्मी बरसात पर निर्भर होकर और जीवांश के मिश्रण से ही बनी होती है। और उन्होने साधारण तरीका बनाया कि किसी सामान्य पत्थर को पीसकर उन्ही स्थितियों को मिलाया उसमे कलर दिया और भट्टी मे गर्म करने के बाद उसी कठोरता और उसी मिश्रण की स्थितियों से बिलकुल रत्न की कारकत्व वाली वस्तुओं के अनुरूप बना दिया,अब कैसे पहिचाना जायेगा कि यह असली है या नकली है,सार्टीफ़िकेट भी बनाया जा सकता है और एक डाक्टर जैसे दूसरे डाक्टर की बुराई नही कर सकता है वैसे ही एक जोहरी भी दूसरे की बुराई नही कर सकता है ग्राहक तो एक बार आयेगा लेकिन उन्हे हमेशा एक ही परिवेश मे व्यवसाय करना है आदि बाते रत्न की परीक्षा और असली नकली मे अपनी भूमिका निभाने के लिये मानी जाती है।
शरीर का ख्याल नही रखा सर्दी गर्मी बरसात में जलवायु के अनुसार उसे सम्भाला नही छोटी सी बीमारी होने पर उसका इलाज नही किया जो हानिकारक भोजन है वह जीभ के स्वाद से खाते चले गये तो शरीर को बीमार होना ही है और शरीर बीमार हो जाये तथा दोष प्रकृति को दिया जाये तो बेकार की बात है.
पूर्वजो के दिये गये धन या सामान का ख्याल नही रखा जो था उसे सुरक्षा के अभाव मे खो दिया तो धन कहां से आयेगा और धन कमाने के लिये काम तो करना ही पडेगा.
जिस जगह पर रह रहे है वहां की जलवायु के अनुसार कपडे नही पहिने अपने को सुन्दर दिखाने के लिये या परिवेश से विपरीत फ़ैशन मे आकर अपने शरीर को उचित तरीके से ढका नही जो भाषा बोली जाती है या जहां भी रहते है वहां की परिस्थिति के अनुसार अपने को चलाना नही आया लोगो से कैसे बोला जाता है कैसे लोगो से लिख कर बताया जाता है आदि बातो का ध्यान नही रखा जहां नरमाई से काम लेना था वहां गर्माई से काम लेने लगे तो लोग दुत्कारने लगेंगे और जो भी आगे बढने का उपक्रम होता है उसमे पीछे रह जाओगे.
अपने समय के अनुसार विद्या को नही प्राप्त किया जहां जैसे माहौल मे रह रहे है वहां से आगे बढने का उपक्रम नही बनाया अपने सामर्थ्य के अनुसार शिक्षा का क्षेत्र नही चुना जो पढना लिखना था उसे पढा लिखा नही एक समय मे कई काम एक साथ लेकर चले सर्दी गर्मी बरसात और आने वाली प्राकृतिक आपदा के लिये अपने घर को सम्भाल कर नही रखा दिल के अन्दर दूसरो के प्रति दया का भाव नही रखा माता पिता और उनके लिये जो कर्तव्य होते है उन्हे पूरा नही किया तो भटकना जरूरी है,कारण निश्चित समय पर निश्चित रहने का कारण नही बना पाये.
विद्या ग्रहण के समय मनोरन्जन में मन लगा लिया जब पढना था तब खेलने मे लग गये,जल्दी से धन कमाने के लिये जुआ लाटरी सट्टा मे मन को लगा लिया इश्कबाजी मे ध्यान चला गया बुद्धि को एक स्थान की बजाय कई स्थानो पर प्रयोग किया जाने लगा जब परिपक्व हुये तो हाथ मे कुछ नही रहा,अब तो दूसरो के भरोसे रहना ही पडेगा.
समय पर शरीर को संभाल कर नही रखा तो बीमार हो गये धन को मनमाने ढंग से खर्च किया और कल का ख्याल नही रखा तो कर्जा हो गया जो सीखा है उसे प्रयोग नही करके दूसरो की कमाई या अन्य बातों मे ध्यान को लगाया खर्चे अधिक होने से जरूरत पर चोरी की आदत पड गयी किसी ने समझाने की कोशिश की तो उससे लडाई हो गयी और दुश्मनी भी पाल ली गयी,अपने घर मे रह नही पाये मामा मौसी आदि के पास रहने लग गये,जब उम्र कुछ सीखने की थी तो नौकरी करके पेट पालने वाली बात बन गयी पूरे जीवन की दिक्कत खुद के द्वारा ही पैदा की गयी है उसके लिये कौन जिम्मेदार होगा.
कई बार लोगों के द्वारा अनर्गल बयान दिये जाते है कि अमुक पत्थर के पहिनते ही उन्हे आशातीत लाभ हो गया,अमुक ज्योतिषी ने अमुक रत्न दिया था उससे उन्हे बहुत लाभ हो गया,लेकिन यह क्यों नही सोचा जाता है कि ज्योतिषी केवल तत्व की मीमांशा का ही हाल देता है कभी भी ज्योतिषी केवल रत्न पहिने के बाद आराम मिलना नही बोलता है,रत्न एक यंत्र की तरह से है,रत्न का मंत्र रत्न की विद्या की तरह से है और रत्न का कब प्रयोग करना है कैसे प्रयोग करना है कैसे उसे सम्भालना है आदि की जानकारी तंत्र है। केवल रत्न के पहिनने से कोई लाभ नही होता है ऐसा मैने अपने ज्योतिषीय जीवन मे नही देखा है,वैसे अपने श्रंगार के लिये कितनी ही अंगूठिया पहिने रहो हार मे कितने ही रत्न जडवा दो लेकिन इस मान्यता मे रत्न पहिन लिया जाये कि केवल रत्न ही काम करेगा यह असम्भव बात ही मिलती है। बुध व्यापार का कारक है बुध का रत्न पन्ना है,हजारो मजदूर पन्ने का काम करते है और सुबह से शाम तक पन्ना ही उनके हाथ मे रहता है लेकिन मैने कभी नही सुना है कि पन्ना का कारीगर एक अच्छा व्यापारी बन गया है।
मनुष्य जब भ्रम मे चला जाता है तो उसके लिये ध्यान को भंग करना जरूरी होता है यह मनोवैज्ञानिक कारण है,जब किसी के सामने अपनी समस्या को बताया जाता है तो वह समस्या को सुनता है समस्या की शुरुआत का समय सितारों से निकाला जाता है,समस्या के अन्त का समय भी सितारों से निकाला जाता है,अगर सितारा जो गलत फ़र्क दे रहा है तो उस सितारे के लिये रत्न का पहिना जाना उत्तम माना जाता है,सबसे पहले अच्छे रत्न की पहिचान करना जरूरी होता है,इसे कोई जानने वाला ही पहिचान करवा सकता है वैसे आजकल रत्न परीक्षणशाला बन गयी है और रत्न का परीक्षण करने के लिये रत्नो की कठोरता रत्न के अन्दर की कारकत्व वाली स्थिति को बताया जाता है,जब प्रयोगशाला बन गयी है तो प्रयोगशाला से किन किन तत्वो का निराकरण मिलता है उसके बारे मे रत्न का व्यवसाय करने वालो के लिये जानकारी भी मिल गयी है कि मशीन से कितना और क्या बताया जा सकता है,आजकल की वैज्ञानिक सोच को समझने वाले लोग यह भी समझते है कि रत्न जो भूमि के नीचे से प्राप्त होता है की परिस्थितिया भी सर्दी गर्मी बरसात पर निर्भर होकर और जीवांश के मिश्रण से ही बनी होती है। और उन्होने साधारण तरीका बनाया कि किसी सामान्य पत्थर को पीसकर उन्ही स्थितियों को मिलाया उसमे कलर दिया और भट्टी मे गर्म करने के बाद उसी कठोरता और उसी मिश्रण की स्थितियों से बिलकुल रत्न की कारकत्व वाली वस्तुओं के अनुरूप बना दिया,अब कैसे पहिचाना जायेगा कि यह असली है या नकली है,सार्टीफ़िकेट भी बनाया जा सकता है और एक डाक्टर जैसे दूसरे डाक्टर की बुराई नही कर सकता है वैसे ही एक जोहरी भी दूसरे की बुराई नही कर सकता है ग्राहक तो एक बार आयेगा लेकिन उन्हे हमेशा एक ही परिवेश मे व्यवसाय करना है आदि बाते रत्न की परीक्षा और असली नकली मे अपनी भूमिका निभाने के लिये मानी जाती है।
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