Monday, July 30, 2012

क्यों जरूरी है ज्योतिष की जानकारी ?

ज्योतिष सीखना और ज्योतिष से काम करना कोई बुरी बात नही है.लेकिन ज्योतिष पर अंधविश्वास करके चलना और खुद के द्वारा अनुमान नही लगापाना बुरी बात है.कोई भी कारण एक साथ नही बनता है,कारण समय से शुरु हो जाता है और समय आने पर कारण अपनी भूमिका अदा कर जाता है,जब कारण अपनी भूमिका अच्छे या बुरे प्रभाव मे अदा कर गया उसके बाद कारण को या कारक को या कारकत्व को दोष देना बेकार की बात ही मानी जायेगी। जन्म समय के ग्रह और गोचर के ग्रह आपसी सम्बन्ध से कारण पैदा करते है जो भी कारण पैदा होता है वह ग्रह राशि और भाव के अनुसार होता है,भाव हमारे अन्दर ही प्रकट होते है राशि का सीधा सा सिद्धान्त है कि वह एक क्षेत्र जिसके बारे मे भाव पैदा होगा उस भाव का फ़ल ग्रह के अनुसार मिलना जरूरी है। अच्छे भाव से अच्छे क्षेत्र से अगर ग्रह कारक को बल देगा तो कारकत्व अच्छा होगा और कार्य फ़ल की प्राप्ति भी अच्छी होगी लेकिन वही ग्रह बुरे भाव से बुरे क्षेत्र से बुरा फ़ल दे रहा होगा तो कारकत्व भी खराब होगा और फ़ल भी खराब मिलेगा।
घटना का सही आकलन करना
घटना का सही आकलन करने के लिये ग्रह की चाल देखी जाती है कब ग्रह किस भाव से और राशि से घटना के लिये सामने आ रहा है उस समय जिस कारक के साथ घटना घटनी है उस कारक के पास कोई बल है कि नही अगर बल है तो ग्रह अपनी शक्ति से प्रभाव तो देगा लेकिन बल उसे कम या अधिक कर देगा। बुखार आने के लिये कारण पहले से शुरु हो जायेगा,इन्फ़ेक्सन भाव है और क्षेत्र उस भाव से जुडा हुआ है,जब इन्फ़ेक्सन वाला कारण बनेगा तो अन्दाज पहले से ही होने लगेगा,कही ऐसे क्षेत्र मे जाना पडेगा जहां इन्फ़ेक्सन वाले कारण मौजूद है,उस क्षेत्र मे जाकर उन्ही कारको को प्रयोग मे लाना पडेगा जिससे इन्फ़ेक्सन फ़ैले और जैसे ही इन्फ़ेक्सन शरीर मे घुसा बुखार का आना शुरु हो गया। अगर शरीर के अन्दर इन्फ़ेक्सन को रोकने के लिये जरूरी तत्व मौजूद है तो वह बुखार के कारको को समाप्त कर देंगे थोडा बहुत असर जरूर होगा लेकिन बुखार से बच जायेंगे। इतनी सी बात को समझने के लिये जन्म कुंडली में रोग के कारक ग्रह को देखेंगे,वह खून के कारक ग्रह मंगल के साथ कब मिल रहा है,अगर उस क्षेत्र मे राहु जो इन्फ़ेक्सन का कारक है अगर रोग के कारक ग्रह को बल दे रहा है तो खून का कारक ग्रह मंगल इन्फ़ेक्टेड होगा और रोग के होने के आसार समझ मे आजायेंगे,लेकिन उसी जगह पर अगर जीवन रक्षक ग्रह या सहायता देने वाले ग्रहों में गुरु या बुध या लगन पंचम नवम भाव का ग्रह मजबूती से अपनी सहायता दे रहा है वह किसी प्रकार के अन्य बन्धन मे नही है तो बुखार के कारण शरीर मे खून के अन्दर प्रवेश करेंगे उसी समय वह ग्रह का बल उन इन्फ़ेक्सन को समाप्त करने के लिये अपनी युति प्रदान करने लगेंगे,अगर कोई जीवन रक्षक ग्रह मंगल को बल दे रहा है तो बुखार के आते ही मंगल जो खून का कारक है वह डाक्टर के रूप मे उसी राहु को जो इन्फ़ेक्सन का कारक भी है और सही बल मिलने से दवाई का रूप भी ले लेगा तो समय पर सहायता मिल जायेगी और रोग से बचाव हो जायेगा। अगर नवम पंचम या लगन का ग्रह मजबूत नही है और रोग का कारक ग्रह अपने बल को कम भी नही कर सकता है और हमे पता है कि रोग का कारक ग्रह जरूर असर करेगा तो हम अपने अनुसार लगन पंचम या नवम के लिये बल देने वाले प्रयोग करना शुरु कर देंगे,यह बल भौतिक रूप मे इनके मालिको के लिये रत्नो का प्रयोग अथवा ग्रह से सम्बन्धित खाद्य पदार्थ के रूप मे अथवा वनस्पति के रूप मे होगी अथवा शरीर की सबसे बडी शक्ति ह्रदय जिव्हा और तालू के साथ होंठ तथा गले के एक विशेष बल के साथ प्रयोग करने पर मंत्र शक्ति का प्रयोग लेने लगेंगे,और इन ग्रहों का असर बढने लगेगा और कारक जो है वह अपना बुरा असर प्रदान नही कर पायेगा हम बच जायेंगे।
पहले मानसिक गति बनती है
एक व्यक्ति का मन व्यथित है कि वह किसी भी काम मे सफ़ल नही हो पा रहा है वह जिस भी काम मे हाथ डालता है वह काम बेकार हो जाता है,उसकी रोजाना की जिन्दगी एक प्रकार से अस्त व्यस्त सी है और कभी कभी उसके मन मे आता है कि आत्म हत्या कर लेनी चाहिये। मन महिने में हर व्यक्ति का तीस घंटे के लिये व्यथित होता है वह अगर जाग्रत अवस्था मे है तो वह कारक के रूप मे और नींद की अवस्था मे है तो स्वप्न के रूप में व्यथा जरूर देता है। यह चन्द्रमा के द्वारा होता है चन्द्रमा जन्म के राहु के साथ गोचर के राहु के साथ और राहु जन्म के चन्द्रमा के साथ और गोचर के चन्द्रमा के जब जब अपनी युति को प्रदान करेगा तो मन मे व्यथा प्राप्त होगी,लेकिन गोचर का समय चन्द्रमा के लिये सवा दो घंटे में सत्रह मिनट के लिये ही होगा जबकि जन्म के चन्द्रमा के साथ राहु का गोचर पूरे चौवन महिने के लिये अपना असर देगा और इस साढे चार साल के अन्तराल मे जातक लगातार मानसिक व्यथा से जूझता रहेगा,इस व्यथा मे वह जो भी काम करेगा उसके लिये एक रास्ता नही दे पायेंगे हर काम मे दस अडचने उसके अपने मन के अनुसार मिलनी शुरु हो जायेंगी वह अपने विश्वास को अटल नही कर पायेगा। इस प्रकार से अगर एक साधारण व्यक्ति को कहा जाये कि वह ध्यान समाधि से अपने मन के ऊपर काबू रखे तो बेकार की बात है जब किसी काम खराब हो रहा हो तो वह काम की उलझन घर और बाहर की आफ़ते और खुद के जीवन मे अनियमिता के कारण कुछ भी करने मे असमर्थ सा हो जायेगा। इस समय मे देखा जाता है कि लोग अपने को चिन्ताओ के कारण नशे आदि मे ले जाते है,कुछ लोग अपने को भूल ही जाते है कि उनके पास कौन सी शक्ति है जो उन्हे उनके कारणो से बचा सकती है,शरीर मे कैमिकल बढने लगते है तरह तरह की बीमारी जैसे डायबटीज मोटापा झल्लाहट आदि जैसे कारण पैदा हो जाते है। इस मानसिक गति को सम्भालने के लिये अगर राहु का रूप तकनीकी रूप से मंगल के साथ जोड दिया जाये तो वह बडे प्रेम से दिये जाने वाले गलत प्रभाव को अच्छे प्रभाव मे बदलना शुरु कर देगा। मंगल के चार स्थान ही माने जाते है पहला धर्म स्थान मे दूसरा पुलिस थाने मे तीसरा अस्पताल मे और चौथा मानसिक बल में,इसके लिये जातक धर्म स्थान मे जाने लगे,उसके ऊपर जो आफ़ते आ रही है उनके लिये पुलिस की सहायता ले,अन्यथा अस्पताल मे जाकर मानसिक इलाज करवाये और भोजन मे बदलाव करे और मानसिक बल को बढाये,दो बाते हर आदमी आराम से कर सकता है,धर्म स्थान पर जाना और मानसिक बल को बढाकर समस्या का समाधान करना,धर्म स्थान मे जाना भी और धर्म से सम्बन्धित जानकारी अधिक लगाव करना केवल उन्ही बातो के लिये जरूरी है जो जितने समय धर्म स्थान मे रहे उतने समय के लिये मन धर्म मय हो जाता है,और जब मन के अन्दर रीफ़्रेस जैसी बाते पैदा हो जाती है तो मन के अन्दर बल बढना शुरु हो जाता है तरीके सामने आने लगते है और काम बनने लगते है,उसी तरह से मन की मजबूती के लिये या तो राहु के जाप करना,कारण राहु जो भी दिक्कत देता है वह भ्रम के कारण देता है जातक भ्रम के अन्दर फ़ंस जाता है कि वह अगर इस काम को करता है तो वह नही बना तो मेहनत और धन दोनो बरबाद हो जायेंगे या जो भी रिस्ता किया जा रहा है उसके अन्दर तो यह कमी है अथवा जो भी कारण मन के अन्दर लाया जा रहा है वह कारण असत्य है या अमुक ने ऐसा किया था तो ऐसा हुआ था अमुक ने ऐसा नही किया तो ऐसा नही हुआ था,अथवा अमुक ने अमुक तरह का कार्य किया था तो ऐसा हुआ था और अमुक ने अमुक के साथ ऐसा नही किया था तो ऐसा नही हुआ था। इस प्रकार के कारणो से लोगो की आस्था एक विशेष स्थान विशेष व्यक्ति की तरफ़ चली जाती है और इसके फ़ल मे यह प्राप्त होता है कि जब अमुक के साथ अमुक समस्या थी तो उस समय मे और उसके सामने के समय मे बहुत अन्तर है,अमुक का व्यवहार और सामने वाला व्यवहार भी अलग है,इस प्रकार से या तो जो भी बात सामने लाई जा रही है वह असत्य हो जायेगी या और अधिक अन्धकार मे जाना हो जायेगा। जब देखे कि भ्रम बहुत अधिक बढ गये है और किसी प्रकार से भ्रम दूर नही हो रहे है तो आराम से जब भ्रम अधिक परेशान करते है वह समय शाम का होता है,सूर्यास्त के बाद और रात के पहले प्रहर में कारण सूर्यास्त के बाद शरीर आराम की मुद्रा मे होता है और रात के पहले प्रहर के बाद सोने का समय शुरु होता है उस समय मे अगर राहु के मन्त्र का जाप शुरु कर दिया जाये और एक काल की अवधि मे होंठ जीभ तालू गले को मंत्र के अनुसार हिलाया जाये तो शरीर मे प्रवाहित रक्त के अन्दर के विषैले तत्व फ़िल्टर होने लगते है इस कारण से सिर के पीछे स्थापित मेडुला आबलम्ब गेटा के अन्दर विचित्र तरह की शक्ति का अर्जन होने लगता है शरीर एक प्रकार से उत्साह मे आजाता है। अगर खुद नही किया जा सके तो किसी विद्वान की संगति का लाभ लिया जाये वह लाभ केवल संकल्प से ही लिया जा सकता है,कारण जो मानसिक व्यथा संकल्प के समय मे होती है वह व्यथा संकल्प के साथ उस विद्वान के पास जाती है अगर वह विद्वान अपनी गति से ह्र्दय के अन्दर सहानुभूति या दया के रूप मे मंत्र का जाप करता है या करवाता है तो आराम मिलने मे कोई सन्देह नही होता है। जब मंत्र का जाप करवाया जाता है या किया जाता है तो शरीर मे तनाव की मात्रा कम होती है और सबसे पहला फ़ल नींद के रूप मे मिलता है,जैसे ही नींद पूरी होने लगती है शरीर से चिन्ताओ का कारण समाप्त होने लगता है और कार्य सफ़ल होने लगते है,यही कारण डाक्टरो ने अपने अनुसार मानसिक इलाज के लिये अपनाया है किसी भी डाक्टर के पास चले जाइये वह सबसे पहले नींद की दवा को देता है,नींद की दवा के साथ मानसिक बल बढाने के लिये भूख को खोलने के लिये दवा देता है,लेकिन यह कारण सामयिक तो बनता है जैसे ही शरीर से उस दवा के अनुसार साल्ट कम होते है फ़िर से वही कारण पैदा होने लगते है या तो उन्ही साल्ट्स के लिये आदी होना पडता है या फ़िर उन साल्ट को कम करने के लिये दूसरे साल्ट्स को प्रयोग मे लाना पडता है।
मानसिक व्यथा के शुरु होने से पहले ही यानी अठारह महिने पहले ही कारण बनने लगते है,अगर ज्योतिष की जानकारी है या ज्योतिषी से सामयिक परामर्श लिया जाता है तो कारण बनते ही उनका इलाज शुरु हो जाता है और समस्या के आने से पहले ही इलाज अगर हो जाता है तो समस्या अपने आप ही समाप्त हो जाती है,जैसे किसी से कहासुनी हो गयी और पता है कि सामने वाला किसी भी तरह से बदला ले सकता है या कहासुनी के बदले शरीर को हानि दे सकता है समय भी विपरीत है तो पहले से ही या तो सामने वाले से क्षमा याचना करना सही होता है फ़िर भी नही मानता है तो कानूनी सहायता के लिये या अदालती मामले के लिये पहले से ही अगर जान माल की सुरक्षा की गुहार की गयी है,या किसी केश मे फ़ंसने से पहले ही अग्रिम जमानत की कार्यवाही कर ली गयी है तो बचाव हो सकता है।
ज्योतिष भी राहु है
कहा जाता है कि लोहा हमेशा लोहे को काटता है उसी प्रकार से जो भी कारण जीवन मे पैदा होते है वह राहु के द्वारा ही पैदा होते है,राहु अगर तकनीकी पहलू मंगल की सहायता से दे दिया जाता है वह भी केन्द्र त्रिकोण मे तो राहु मंगल बजाय खराब असर देने के और अधिक बढोत्तरी देने लग जायेंगे और त्रिक भाव या पणफ़र भाव में राहु मंगल की युति को ले लिया गया तो समस्या बजाय घटने के और भी बढने लगेगी। राहु की सीमा नही है कितना कष्ट दे सकता है या कितनी ऊंचाई पर ले जा सकता है,जैसे हाथी का भरोसा नही है कि वह कब बल पूर्वक अच्छे काम करता है और कब बिगडने पर गली की गली साफ़ करने के लिये अपनी शक्ति को प्रयोग मे ला सकता है। राहु शुक्र की युति मिलने का समय आता है व्यक्ति के अन्दर प्रेम रोग का भूत सवार हो जाता है उसे अपनी दुनिया समझ मे ही नही आती है,अगर उसी युति को मंगल की सहायता से मिला लिया जाये तो वह भूत बजाय बिगाडने के ऊंची ऊंची पोजीसन भी दिलवा सकता है जितना है उससे करोडों गुना बढा भी सकता है। राहु गुरु की युति आती है आम आदमी भी अपने को शहंशाह समझने लगता है उसे लगता है कि उसके सामने उसकी बुद्धि के जैसा कोई नही है वह तर्क वितर्क से अपने प्रभाव देना शुरु कर देता है उसे एक गंदगी मे भी सोना नजर आने लगता है वह धर्म और शिक्षा के अलावा रिस्ते आदि मे अपनी सीमा को तादात से अधिक बढाने लगता है अगर साथ मे मंगल को लिया गया है तो वह इन्ही कारणो मे तकनीकी कारण देखने के बाद उस क्षेत्र मे अपने को नाम और यश के रास्ते ले जायेगा और मंगल की युति नही ली है या केवल शुक्र का सहारा लिया है तो धन और वैभव मे तो आगे बढ जायेगा सुरा सुन्दरी की प्राप्ति तो हो जायेगी लेकिन जैसे ही राहु गुरु का असर समाप्त हुआ उसके अपने ही लोग उसे ले डूबेंगे।
ज्योतिष समय की जानकारी देती है
सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त और सूर्यास्त से लेकर सूर्योदय तक जो भी देश काल और परिस्थिति के अनुसार प्रभाव होते है ज्योतिष जानकारी देती है।कार्य और शरीर की समय सीमा के लिये ज्योतिष लाभदायी है। एक ग्रह के तीन सौ साठ कारण और एक भाव के तीस कारण एक राशि के एक सौ पचास कारण यह सब अगर देश काल और परिस्थिति से समझ मे आजाते है तो व्यक्ति दुख मे भी सुख का कारण निकाल सकता है और सुख मे भी दुख पैदा कर सकता है,बाकी के लिये एक ही बात कही जा सकती है-"खाना पीना सोना दुनिया मे तीन तत्व,एक दिन मर जाओगे धरि छाती पर हत्थ"।  

Sunday, July 29, 2012

यात्रा और चन्द्रमा

मन का कारक चन्द्रमा है और जब मन यात्रा के लिये अपने प्रयास चालू करता है तो चन्द्रमा के अनुसार ही यात्रा हो सकती है,अब देखना यह होता है कि मन पर कौन कौन से ग्रह असर डाल रहे होते है,जो जो ग्रह मन पर असर डाल रहे होते है उसी प्रकार की यात्रा के लिये मन सोचने लगता है। चन्द्रमा अगर मेष राशि का होता है तो पूर्व की तरफ़ की यात्राओ के लिये इच्छा होती है और चन्द्रमा अगर वृष मे होता है तो यात्रा वायव्य दिशा के लिये देखी जाती है यही बात मिथुन लगन मे भी देखी जाती है तथा कर्क राशि मे चन्द्रमा के होने से उत्तर की यात्रा के लिये योग बनता है। सिंह लगन के लिये पश्चिमोत्तर दिशा की यात्रा का योग बनता है कन्या लगन से भी उत्तर दिशा की यात्रा का कारण बनता है साथ ही जब चन्द्रमा तुला राशि का होता है तो पश्चिम दिशा की यात्रा के लिये योग बनता है वृश्चिक राशि का चन्द्रमा दक्षिण पश्चिम की यात्रा को देता है धनु लगन का चन्द्रमा भी दक्षिण पश्चिम दिशा की यात्रा को देता है इसके अलावा मकर राशि मे चन्द्रमा का योग दक्षिण दिशा के लिये अपनी योजना को बनाने के लिये माना जात है कुम्भ राशि का चन्द्रमा दक्षिण पूर्व और यही बात मीन राशि मे देखने पर पता चलता है कि यात्रा का विषय ईशान दिशा मे किये जाने के लिये माना जाता है।

यात्रा मे जाने से किस साधन का प्रयोग करना होगा इस बात को जानने के लिये शनि मंगल रेल यात्रा को दिलवाते है गुरु शुक्र हवाई यात्रा को दिलवाते है और जब शनि शुक्र यात्रा के लिये कारण बनाये तो साइकिल से भी यात्रा हो सकती है मंगल शुक्र शनि की युति से ट्रेक्टर से भी यात्रा हो सकती है चन्द्र शुक्र और राहु केतु से बस की यात्रा का योग माना जाता है,राहु कर्क राशि का मोटर बोट से और जलयान से भी यात्रा करवा सकता है लगनेश के साथ चन्द्रमा है तो कन्धे पर बैठ कर भी जाया जा सकता है और दूसरे भाव के कारक के चन्द्रमा के साथ होने से दो पहिया की वाहन से यात्रा देखी जाती ह मिथुन का चन्द्रमा आटो रिक्सा और तीन पहिया के वाहन से यात्रा करवा सकते है केतु के साथ होने से तथा गुरु की नजर होने से वही यात्रा तीन पहिया के हवाई जहाज से भी हो सकती है। इसके साथ ही यात्रा के समय मिलने वाले कष्ट आदि के लिये भी देखा जाता है मंगल शनि अगर यात्री को देख रहे है तो दुर्घटना भी हो सकती है और भोजन आदि मे भी दिक्कत हो सकती है रास्ते मे लूटमार भी हो सकती है और राहु अगर यात्रा के कारक को देख रहा है तो ठगी भी हो सकती है यात्रा मे विघ्न भी हो सकता है वक्री बुध से यात्रा का योग बन रहा है तो यात्रा की शुरुआत मे ही टिकट आदि का कैंसिल होना भी हो जाता है।

गुरु अगर चन्द्रमा को देख रहा है तो धर्म स्थान की यात्रा भी हो सकती है केतु साथ है शिव स्थान की यात्रा हो सकती है शुक्र भी साथ है एक साथ तीन धर्म स्थानो की यात्रा होसकती है राहु अगर चन्द्रमा के साथ है तो किसी ऐतिहासिक स्थान की यात्रा भी हो सकती है या किसी प्रकार के जंगल पहाड आदि मे भी जाना पड सकता है जितने ग्रह चन्द्रमा के साथ होते है उतने हीलोगो के साथ यात्रा का कारक देखा जाता है राहु चन्द्रमा हमेशा भीड भाड मे यात्रा की नौबत देता है राहु अच्छे स्थान मे है तो भीड से दिक्कत नही होती है और राहु अगर खराब स्थान पर है भीड मे बहुत दिक्कत झेलनी पडती है मंगल का साथ राहु के साथ हो गया है तो बुखार भी आ सकता है शनि मंगल की युति पाचन क्रिया से पेट को भी खराब कर सकते है आदि बाते चन्द्रमा के अनुसार देखी जाती है।

देश के आगे देश के पीछे !

लगन मे काल पुरुष की कुंडली से राज्य की राशि सिंह है.इस राशि के आगे मंगल शनि है पीछे सूर्य और वक्री बुध है.राज्य के लिये कार्य करने वाले लोग धन की राशि वृष के शुक्र गुरु और केतु है राज्य की जनता के रूप मे चन्द्र राहु वृश्चिक राशि मे जिसे शमशान स्थान कहा जाता है विराजमान है.राहु चन्द्र और शुक्र गुरु केतु का आमना सामना है.शनि मंगल की शक्ति लेकर राहु चन्द्र को देख रहा है,मंगल राहु चन्द्र के आगे प्लूटो को कन्ट्रोल कर रहा है,शनि मंगल अन्दरूनी रूप से अष्टम भाव मे विराजमान यूरेनस को देख रहे है,मंगल कानून को कन्ट्रोल करने के लिये अपनी शक्ति दे रहा है,शनि की निगाह शुक्र गुरु केतु के धन स्थान पर है।
राज्य मे कोई नही है,स्थान खाली पडा है राज्य का मालिक सूर्य बारहवे भाव मे है और बुध वक्री के साथ बारहवे भाव मे मजे कर रहा है। राज्य के धन स्थान मे मंगल शनि गुरु और केतु के आदेश से सुरक्षा कर रहे है,गुरु केतु की निगाह सूर्य और वक्री बुध पर है.चन्द्र राहु राज्य को भ्रम दे रहे है और जनता राहु के फ़ेर मे त्राहि त्राहि कर रही है.प्लूटो को मशीन के रूप मे कहा जाता है और यह कानून तथा धर्म की राशि मे विराजमान होने के कारण कानून को मशीन का बटन जैसा होने का आभास दे रहा है राज्य के पास और कुछ भी नही है केवल वह मशीनी कानून का बटन अपने हाथ मे लेकर बैठी है.बारहवा सूर्य वक्री बुध के साथ होने पर न्याय स्थान मीडिया सैटेलाइट आदि के फ़ेर मे अपने को सुरक्षित समझ रहा है क्योंकि अष्टम मे विराजमान यूरेनस गुप्त रूप से राहु चन्द्र की हलचल को सूर्य और वक्री बुध को पहुंचा रहा है। राहु रूपी भीड बनाकर चन्द्रमा रूपी जनता की सूचनायें राहु रूपी छद्म वेशी लोग जनता के अन्दर है और वह जनता की हर खबर को यूरेनस रूपी गुप्त कमन्यूकेशन से सूर्य रूपी राज्य और मीडिया रूपी वक्री बुध को दे रहे है। बदले मे उन्हे राज्य के धन स्थान मे बैठे शनि रूपी लोग सहायता दे रहे है वही पर मंगल का साथ लेकर शनि रूपी लोग शमशान मे बैठी जनता को उमस का रूप देकर बेहाल भी कर रही है.

Saturday, July 28, 2012

तुला का शनि

तुला राशि व्यापार की राशि है बेलेन्स करने वाली राशि है और कालपुरुष के अनुसार जीवन साथी के साथ साझेदारी की भी राशि कही जाती है जब आमने सामने की मंत्रणा की जाती है तो जीवन में साझेविचार करने की राशि है। इस राशि का स्वामी शुक्र है.ज्योतिष मे ग्रहो का रूप बहुत ही अनौखा है जैसे कठिनाई के बाद सफ़लता का मिलना होता है वैसे ही क्रूर के बाद मुलायम प्रकृति के बारे मे भी विचार किया जाता है। शनि ठंडा है तो सूर्य गर्म एक अन्धेरी रात का मालिक है दूसरा उजाले का मालिक है एक कार्य को देता है तो एक आराम को देता है.उसी तरह से जब गुरु वायु के रूप मे प्राण देने की प्रतिक्रिया करता है तो शुक्र का काम उस वायु से चन्द्रमा की सहायता से तरलता को निकालकर जीवन को चलाने वाले पौष्टिक तत्वो को प्रदान करता है। शुक्र की सिफ़्त मुलायम है तो शनि की सिफ़्त कठोर है शुक्र के साथ मिलकर शनि शुक्र द्रश्य रूप मे दिखाने की हिम्मत रखता है शुक्र के आयतन को बढाकर भौतिक रूप मे द्रश्य करता है लेकिन सूर्य और मंगल के साथ होने से आयतन और सुन्दरता मे क्षरण होना शुरु हो जाता है। तुला राशि शुक्र की सकारात्मक राशि है,सकारात्मक और नकारात्मक के भेद को जानने के लिये सभी राशियों का आपसी सामजस्य समझना जरूरी है। वृष राशि भी शुक्र की राशि है लेकिन नकारात्मक राशि के लिये जाना जाता है जो भी वृष के पास है कालान्तर मे क्षीण हो जाता है धन के रूप मे है तो धन और भोज्य पदार्थ है तो भोजन और वाणी की प्रखरता है तो वाणी सुन्दरता है तो सुन्दरता,लेकिन तुला का बेलेन्स करने का कारण और हमेशा के लिये जूझने और जीवन को निकालने का कारण तुला के रूप मे हमेशा चला करता है। ईश्वर ने सभी प्राणियों मे बेलेन्स करने के लिये दो आंखे और बीच मे नाक का जो रूप बनाया है उसका एक ही कारण है कि दोनो आंखो से समान देखा जाये तो बेलेन्स बन जाता है और एक आंख से कम और एक से अधिक देखा जाये तो भेंगापन से कुछ तो अलग दिखाई देने का कारण बन ही जायेगा। बेलेन्स करने के बाद जो भी निर्णय लेना होता है वह नाक के ऊपर के हिस्से से सजह चक्र से निर्णय लिया जाता है जिसकी निर्णय लेने की क्षमता अच्छी है वह तरक्की कर जाता है और जो निर्णय केवल वस्तु व्यवहार से लेता है वह जहां का तहां ही हमेशा बना रहता है। कहा जाता है कि तुला राशि के लिये शनि अगर काम नही करे तो पलडे हवा मे ही झूलते रहेगे,यानी जब तक तुला के साथ शनि नही हो तो तुला राशि वाला केवल ख्वाबी विचार बनाने मे ही मशूगल रहेगा उसे ख्वाब मे तो सभी फ़ल मिलते नजर आयेंगे लेकिन हकीकत कोशो दूर होगी.इसका कारण ही बडा अजीब है तुला राशि के माता मन मकान वाहन प्राथमिक विद्या जन्म लेने का स्थान शरीर मे पानी की मात्रा और बचपन का जीवन शनि पर ही निर्भर रहता है तुला राशि वाला व्यक्ति इसी शनि की सहायता से करके सीकने वाला होता है उसे पढ कर जितना नही सिखाया जा सकता है उतना वह करके सीख सकता है इसलिये जितने लोग भी प्रेक्टिकल होते है वह शनि का उपयोग जरूर करते है। तुला राशि वाला अक्सर प्राथमिक शिक्षा मे कमजोर होता है लेकिन याद करने की बजाय उसे रटने की आदत होती है,उसका परिवार जब बढता है तो सन्तान को भी वह करने के बाद सीखने की शिक्षा देता है और सन्तान भी कम नही होती है वह भी करके सीखने के बाद तुला राशि को बाय बाय करके चली जाती है और तुला राशि वाला अपना बेलेन्स बनाता ही रह जाता है। तुला राशि वाला व्यक्ति अपने जीवन की पैंतीसवी साल तक कठोर मेहनत करता है और उसका शरीर भी मेहनत करने के कारण बडा ही मजबूत हो जाता है लेकिन पैंतीस का होने के बाद तुला राशि वाला व्यक्ति शनि की मेहरबानी से मजे करने के लिये तैयार हो जाता है उसके सभी काम अपने आप बनते चलते जाते है जो राहु केतु उसे अर्धायु तक परेशान करते है वही राहु केतु शनि के कारण सहायता करने लगते है। तुला राशि मे जब शनि का असर शुरु होता है तो जातक का कमन्यूकेशन का दायरा पक्का हो जाता है यानी इस समय मे जो भी वह मित्र बनाता है कार्य करता है वह हमेशा के लिये याद रखने के लिये बन जाता है और वह अपने जीवन का सबसे बडा काम शनि के लगन मे गोचर के समय ही कर जाता है उसे शनि की अधिकता के कारण अपने घर द्वार और माया सभी से अलगाव सा लगने लगता है उसके जीवन साथी मे एक प्रकार की उत्तेजना आजाती है और वह जो भी मंत्रणा अपने जीवन साथी से लेना चाहता है तुला राशि वाला जातक अपने ही ख्यालो मे मस्त रहने के कारण पूंछे जाने वाले कारण का जबाब भी नही देता है और जीवन साथी को यह लगता है कि वह उसकी बात को सुनने का मानस ही नही बना रहा है या उसकी औकात को नजरंदाज कर रहा है इस प्रकार से तुला राशि के जीवन साथी को ऊंचा बोलना आजाता है यह बात झल्लाहट से भी जोड कर मानी जाती है और शुक्र मंगल मे शनि का असर भी माना जाता है शुक्र मंगल का असर भी इसी प्रकार का होता है कि पति पत्नी के अन्दर कहां तो इतनी उत्तेजना होती है और कहां वह उत्तेजना शनि के कारण लुप्त सी होती जाती है। शनि अपनी गोचर की स्थिति मे तुला राशि वाले जातक के अन्दर मेहनत करने और शरीर को भूखे प्यासे रहकर पालने मे भी मदत करता है साथ ही अपनी अनौखी समझ वाली ताकत को देकर वह जातक के अन्दर एक बुजुर्ग स्वभाव भी भर देता है।
तुला राशि के व्यक्ति मे शनि का असर जब भी खराब होता है तो माना जाता है कि जातक ने कोई एक तरफ़ा काम ही किया है,जैसे कई जातको को एक ही करवट लेटकर नींद आती है जब शनि गोचर से तुला राशि पर आयेगा तो वह जातक को सीधा लेटने से आराम देने की अपनी क्रिया को करेगा,अगर जातक एक ही करवट लेटता है तो जातक का एक तरफ़ का अंग दर्द करने लगेगा सुन्न सा हो जायेगा,इस शनि का काम बेलेन्स करना होता है अगर जातक सीधा लेट कर अपनी नींद को निकालेगा तो जातक आराम से सुबह को जागकर अपने काम को करने लगेगा। इसी प्रकार से कई जातको मे एक प्रकार की आदत होती है कि वे अपने एक तरफ़ के दांतो को इस्तेमाल करते है तुला राशि वाला जातक अगर अपनी बतीसी को दोनो तरफ़ से प्रयोग नही करता है तो एक तरफ़ के दांत निश्चित रूप से जिन्हे वह प्रयोग मे ले रहा है या तो दर्द करने लगेगे या दूसरे तरफ़ के दांत बिना काम किये ही उखडने लगेंगे। इसी प्रकार से यह भी देखा जाता है कि जातक शरीर मे जो भी अंग तुला राशि से सम्बन्धित है उन अंगो पर शनि का असर भी होगा जैसे मेष राशि मे तुला राशि सप्तम मे है,सप्तम का प्रभाव नाभि के नीचे के हिस्से से माना जाता है अगर जातक एक ही पुट्ठे के बल बैठने की कोशिश करेगा तो शनि के इस गोचर के समय मे जातक के दूसरे पुट्ठे मे अपने आप ही दर्द होना शुरु हो जायेगा शनि की बीमारी जैसे खून के थक्के बन जाना सूजन आजाना किसी अंग का अचानक बढने लग जाना,फ़ील पांव पोतो मे पानी आजाना जांघो मे सूजन आने लगना पिण्डलियो मे दर्द की शिकायत हो जाना टखने में एक तरफ़ के पैर मे दर्द होने लगना आदि बाते सामने आने लगेंगी इसी प्रकार से वृष राशि वालो के लिये भी मानना पडेगा कि पाचन क्रिया के बिगडने का भी मामला सामने आने लगेगा गुर्दो की बीमारी या किडनी मे सूजन जैसे कारण बनने लगेंगे मिथुन राशि वालो के लिये पाचन क्रिया औरतो मे बच्चे दानी की शिकायत पेट मे गैस बनना आदि शुरु हो जायेगा,कर्क राशि वालो के लिये सांस की तकलीफ़ पानी वाली बीमारियां छाती मे दर्द पसली का ऊपर नीचे चढ जाना ह्रदय मे खून का थक्का जमने का कारण बन जाना ह्रदय के वाल्व सही रूप से कार्य मे नही होना फ़ेफ़डे मे बलगम जम जाना आदि सिंह राशि वाले बायें हिस्से के कंधे से परेशान हो जायें कार्य मे उनके कमन्यूकेशन का क्षेत्र धीमा हो जाये बायें हाथ मे या दाहिने तरफ़ के पुट्ठे पसली मे दिक्कत का हो जाना आलसी स्वभाव अधिक होना ठंड की बीमारिया होना,बोलने मे कमी हो जाना आदि कन्या राशि वाले अक्सर इस शनि के गोचर से मुंह की बीमारियों से दिक्कत मे आ सकते है जीभ और तालू की बीमारिया होना भोजन मे बासी भोजन और फ़्रीज भोजन को अधिक प्रयोग मे लेना धन की कमी होने लगना जो भी धन चालू खाते मे है वह जमा सम्पत्ति के चक्कर मे फ़्रीज हो जाना खुद के परिवार से ही झगडा और दूरिया बन जाना,मुंह पर काले धब्बे बनने लगना आदि बाते देखी जा सकती है इसी प्रकार से तुला राशि वाले सिर दर्द की परेशानी से काम मे दिक्कत मिलने आंखो की शिकायत मिलना पैदल चलने से शरीर के हिस्से मे दर्द होने ऊंचे स्थान या अन्धेरे स्थान मे फ़िलने आदि से सिर की चोटों मे जिसमे गूमड का पड जाना आदि भी देखा जा सकता है बुद्धि का प्रयोग अधिक नही कर पाना सर्दी के रोगो से परेशान होने लगना आदि माना जा सकता है,लेकिन इस शनि के कारण एक बात और भी देखी जाती है जो भी तुला राशि वाले काम करेंगे वह पक्का और आने वाले समय मे उनके लिये काम करने के लिये देखा जायेगा.वृश्चिक राशि वालो के लिये अब घर से बाहर रहने मे अच्छा लगेगा पहाडी क्षेत्र और घर से अग्नि कोण मे उनके लिये रहने तथा जिनके पास एक ही मंजिल के मकान है वे दूसरी मंजिल को बनाने के लिये भी अपने प्रकार को समझ सकते है यात्रा और आने जाने के कारणो मे कंजूसी भी बनने के प्रभाव मिलने का कारण होगा जहां खर्जा अधिक किया जाता था अचानक ही खर्चे मे कमी आने की बात भी समझी जा सकती है पुराने समय मे जो भी काम कर्जा किस्त आदि से किया था उसके अन्दर किस्त और कर्जा का ब्याज आदि चुकाने मे कमी के कारण बनने लगेंगे। अपने निवास मे आते ही दिक्कत होने लगेगी.धनु राशि वाले कानूनी काम जायदाद बनाने के काम मे अपनी सन्तान के प्रति विवाह आदि के कारणो मे उलझ जायेंगे सन्तान की शिक्षा मे दाहिने कन्धे की बीमारी मे जीवन साथी के पेट और बच्चेदानी आदि के कारणो मे दिक्कत उठा सकते है,मकर राशि वालो को यह शनि अधिक मेहनत और कम कमाई का कारण देने लगेगा काम करने वाले स्थान से अरुचि होने लगेगी और काम को बदलने का कारण बनाने लगेंगे यह समय मकर राशि के जीवन साथी और साझेदार के क्षेत्र मे भी दिक्कत करने वाला है यह अलगाव का समय भी माना जाता है साथ ही इस राशि वाले अपने पिता की सेहत से भी दुखी हो सकते है अपनी माता के बडबोलेपन से अपने परिवार मे भी दिक्कत ला सकते है ससुराल खानदान से बिगाड हमेशा के लिये पैदा हो सकता है आदि बाते मानी जा सकती है। कुम्भ राशि वाले कानूनी काम मे सफ़लता प्राप्त कर सकते है लेकिन पिता और माता की तरफ़ से उन्हे बहुत ही सतर्क रहना पड सकता है सन्तान से दूरिया बनने का कारण भी शुरु हो गया है,रहने वाले स्थान से अरुचि भी होनी मानी जा सकती है,अपने प्रकार से अलग रहने का कारण भी बन सकता है,शरीर के दाहिने बायें अंग मे दिक्कत का कारण पैदा हो सकता है ह्रद्य सम्बन्धी तकलीफ़ हो सकती है जिनकी माता बुजुर्ग है उन्हे विशेष कर ध्यान देने की जरूरत है। इस राशि वालो के लिये मामा खानदान के लिये यह शनि विश्वास घात देने वाला माना जा सकता है जो भी किराया से रहते है या ब्याज का धन्धा करते है उनके लिये इस राशि वाले दिक्कत का कारण बन सकते है कोर्ट केश या इसी प्रकार के अधिक कारण बन सकते है। मीन राशि वालो के लिये खरीद बेच के काम व्यापारिक स्थानो को खरीदने बेचने का काम शादी विवाह या जीवन साथी सम्बन्धी कारणो मे परेशानी का होना नौकरी आदि के क्षेत्र मे दिक्कत का होना,जो लोग नगद धन की ब्रोकर आदि का काम करते है उनके काम के अन्दर अक्समात ही फ़्रीजिंग होने लगना,घर की पूंजी का विनाश होने लगना आदि भी माना जा सकता है।
उपायों के लिये मेष राशि वाले कमर मे काले रंग का सिलाई वाला उन्नीस हाथ का धागा करधनी बनाकर पहिने,दाहिने हाथ में बीच की उंगली में नीलम या काकानीली पहिने,वष राशि वाले कन्याओं को भोजन करवाये जहां भी कन्यादान का अवसर मिले अपनी सेवाओ को दें,हरे पत्ते वाली सब्जियों से बचाव रखे,कर्जा दुश्मनी बीमारी से अपने को दूर रखे किसी की जमानत और किराये से मकान आदि नही दिलवाये,धन को जहां तक हो सके ब्याज पर नही दे,बाहरी लोगो से बचने का प्रयास करे,यात्रा आदि मे चीटिंग से भी बचे,कमन्यूकेशन के साधनो का व्यवसाय करने के लिये रुके गहरे हरे रंग का पन्ना अपने बायें हाथ की अनामिका मे धारण करें यह स्त्री और पुरुष दोनो के लिये ही मान्य है। मिथुन राशि वाले स्कूल यात्री निवास आदि मे सहायता प्रदान करे सन्तान के प्रति आलसी भाव नही रखे,पेट के इन्फ़ेक्सन से बचे आलू जिमीकंद अरबी जैसी गरिष्ठ सब्जी से परहेज करे,आयुर्वेदिक लोहासव का सेवन वैद्य की राय से शुरु करे,मूंगा दाहिने हाथ की अनामिका मे धारण करे, कर्क राशि वाले सफ़ेद नीलम को बायें हाथ की बीच वाली उंगली मे धारण करे,सर्दी से बचाव रखे ठंडी और पहाडी हवा से बचाव रखे यात्रा कम से कम करे,माता और पानी वाले साधनो पर ध्यान रखकर चले,गीले और शुष्क वातावरण से अपने को बचा कर चले,ह्रदय मे भारीपन होने पर अकीक भस्म शहद के साथ वैद्य की राय से लेना शुरु करे,सिंह राशि वाले भी हर्तिमा लिये हुये नीलम को धारण कर सकते है,बायें हाथ की भुजा पर लाल रंग के ऊन का धागा बांध कर रखें,छोटी यात्राओं बाहर आने जाने मे आलस नही करे कमन्यूकेशन के साधनो को सम्भाल कर रखे चोरी आदि की घटनाओ से बचाव रखे सुरक्षा व्यवस्था को चौकस रखे,इसी प्रकार से अन्य राशियों वाले भी अपने अपने अनुसार उपाय कर सकते है,या अपने प्रश्न ईमेल से भेज कर उत्तर प्राप्त कर सकते है.

Tuesday, July 24, 2012

राशियां और उनके उपाय (वृष)

वृष राशि का व्यक्ति जब सामने आजाता है तो उसे पहिचानने की सबसे अच्छी कला है कि उसके नीचे के होंठ वाला हिस्सा ऊपर के होंठ से दबा होता है थोडी वाला हिस्सा चौकोर और संकडा होता है.नाक के छेद बडे और सांसों का स्वर तेज निकलता हुआ होता है,नाक का हिस्सा चौडा हो गया होता है और आंखे दोनो कानो की तरफ़ चली गयी होती है कान आगे की ओर झुके होते है नीचे से चौडे और ऊपर जाकर पतले हो गये होते है माथे पर दोनो आंखो के ऊपर गोलाई में हुड निकल गये होते है। भौतिक राशियों में वृष राशि का स्थान नकद धन से देखा जाता है जो सामने है उसी पर विश्वास करना इनकी आदत होती है,आज का दिन ही इनके लिये जीने का मुख्य उद्देश्य होता है कल क्या हुआ था कोई चिन्ता नही है कल क्या होना है कोई चिन्ता नही है। जीवन मे कितना भार सहन करना है और कितनी लोगो की परवरिस करनी है.जब तक दांत सुरक्षित है जीवन भी सुरक्षित है जैसे ही दांतो का जाना हुआ जीवन के प्रति कब समाप्त हो जाये कोई पता नही होता है बरसात के दिनो में गले की बीमारियां सर्दी की ऋतु में पैरों की बीमारिया और गर्मी की ऋतु में पेट फ़ूलने की बीमारिया इन्हे आमतौर पर होती है। भोजन मे अधिक तर शाकाहारी भोजन को यह पसन्द करते है। लोगों के बारे मे जानने की उत्सुकता होती है,कौन कहां है यह इन्हे घर से बाहर के लोगो के बारे मे अधिक पता होता जहां पर यह रहते है उस स्थान के प्रति यह आस्वस्त होते है.
आसपास के माहौल मे यह अपनी पहिचान कार्य और बोलचाल से ही रखते है किसी के प्रति बुरा करना इन्हे तब तक नही आता है जब तक कि इन्हे बुरी तरह से छेडा नही जाये। अपने जीवन साथी के प्रति यह हमेशा ही वफ़ादारी निभाते है भले ही इनका जीवन साथी गुपचुप रूप से कुछ भी करता रहे। खोजी आदत होने के कारण यह भूतकाल की घटनाओ को चिन्हो से खोजने की कला रखते है। खुद का दिमाग प्रयोग करने मे इन्हे आलस आता है लोगो के कहने पर यह कोई भी काम कर सकते है हर काम के करने मे इन्हे उसके मूल्य के बारे मे पहले सोचना होता है चाहे वह खुद के लिये हो या अन्य के लिये। एक बात का तकिया कलाम पकडने की भी आदत होती है और किसी भी बात को शुरु करने से पहले या बाद मे वाक्य या शब्द के रूप मे जरूर आता है। जिन्हे तकिया कलाम की आदत नही होती है वे किसी भी बात को कहने से पहले अटकते है.इनकी पहिचान मे भावुकता का होना भी देखा जाता है अपनी माता और अपने बचपन के लोग इन्हे बहुत याद रहते है.शाही रूप से रहना और शाही विचार रखना इनकी एक आदत के अन्दर माना जाता है.सन्तान के कारणो मे यह अधिकतर धन के कारण दुखी होते है कन्या सन्तान से इन्हे जरूर दिक्कत मिलती है,वह चाहे शिक्षा के सम्बन्ध मे हो या रिस्तेदारी के सम्बन्ध मे हो,दस साल तक के बच्चो के प्रति इन्हे यह भावना नही रहती है कि यह अपने है या पराये है सभी की उन्नति की कामना होती है लेकिन वही बच्चा अगर अपना भी है और वह चालाकी या इसी प्रकार की गतिविधि इनके सामने रखता है तो यह विदक जाते है और फ़िर हमेशा के लिये उस बच्चे या व्यक्ति से दूरिया ही बनाकर रखना पसन्द करते है। परिणय कारणो मे इन्हे दिक्कत होती है और जीवन साथी के परिवार वालो से अक्सर किसी न किसी बात से बिगाड ही बना रहता है साथ ही इनकी जब भी कोई शत्रुता वाली बात होती है तो वह उसके अन्दर जीवन साथी का कोई न कोई सम्बन्ध जरूर होता है अक्सर इस राशि वालो की साझेदारी नही चल पाती है,साझेदारी से ही अक्सर बडी शत्रुता का कारण बनता है। उम्र की तीसवी साल के बाद इन्हे कमर की बीमारिया होती है और शादी विवाह के लिये इनकी उम्र इक्कीसवी साल सत्ताइसवी साल तेतीसवी साल महत्वपूर्ण होते है.शादी के बाद जो भी परिवार मिलता है इन्हे शादी के बाद जीवन साथी के निवास से जीवन साथी सहित दूर जाकर रहना भी पडता है और अक्सर जहां इनकी शादी होकर जाती है वह स्थान बरबाद ही हो जाता है। यह अपने धर्म समाज पिता परिवार आदि के लिये कोई भी जोखिम ले सकते है अक्सर इन्ही बातो मे इन्हे अपमानित भी होना पडता है और दुखी भी रहना पडता है पिता का जीवन इनके जन्म के बाद अक्सर संघर्षपूर्ण ही माना जाता है। इस राशि वालो के पिता अक्सर कई भाइयों के होने के बावजूद भी एक की ही औकात चलती है और माता भी कई बहिने होने के बाद खुद का नाम चलाने के लिये आजीवन संघर्ष मे रहती है। इन्हे कर्म पर ही विश्वास होता है और यह दिखावे वाली तथा अन्धविश्वास वाली पूजा पाठ से दूर रहते है। कार्य स्थान के मित्रो पर इन्हे विस्वास होता है मित्रो की संख्या उच्च समाज या उच्च स्थानो से सम्बन्धित होते है अस्पताल ईश्वर ऊपरी शक्तियों पर विश्वास करने वाले इनकी मित्रता की श्रेणी मे होते है,इनकी यात्रायें अधिकतर मानव सम्बन्धो को लेकर की जाती है वह चाहे जन्म से सम्बन्धित हो या मृत्यु से सम्बन्धित हो।
  • अपने भाग्य के विस्तार के लिये इन्हे वरुण देवता तस्वीर जो मगर पर सवार है पूजा स्थान मे रखनी चाहिये.
  • धर्म यात्राओं के लिये इन्हे दक्षिण दिशा के धर्म स्थानो की यात्रा लाभदायक होती है.
  • काले पत्थरो से बनी मूर्तिया प्रार्थना भवन स्थान आदि लाभदायक होते है.
  • नीलम पहिनना इनके लिये हमेशा ही शुभ है लेकिन वह नीला न होकर काला हो.
  • दोपहर के समय मे सोचा गया कार्य पूरा करने मे कोई दिक्कत नही होती है.लेकिन दोपहर के समय में कोई लडाई झगडा आजीवन के लिये दुख देने वाला हो जाता है.
  • बातो से धन प्राप्त करना इनकी शिफ़्त मे होता है इसलिये उन्ही कार्यों को अपनाना चाहिये जहां बातो से धन प्राप्त होता है.
  • गहरे रंग इनके लिये शुभ होते है अंक आठ हमेशा ही लाभदायी होता है शनिवार का दिन इनके लिये ठीक होता है.अंक एक इनके लिये निवास स्थान के लिये तथा वाहन के नम्बरो में कुल जोड पांच का शुभ फ़लदायी होता है,किराये से वाहन चलवाना इनके लिये फ़ायदे वाला काम होता है.
  • पुत्री सन्तान इनके लिये कर्जा दुश्मनी बीमारी मे सहायक होती है.
  • पुत्र सन्तान मे अहम की मात्रा अधिक होने से और शादी विवाह के बाद दूरिया बनना अक्सर देखा जाता है.
  • शिक्षा मे धन से सम्बन्धित शिक्षा कम शिक्षा वाले कारणो मे ठीक रहती है और नौकरी आदि के लिये आजीविका देने वाली होती है कपडे का काम सिलाई आदि भी ठीक रहता है उच्च शिक्षा मे इन्हे सरकारी रूप से प्रशासनिक कार्य करने समुदाय के लिये काम करना थीक रहता है,उच्च डिग्री या अलावा उपाधि के लिये कमन्यूकेशन कम्पयूटर आदि के लिये भी सही माना जाता है.
  • अक्सर सिर दर्द की शिकायत इस राशि के जातको को अधिक होती है उसके लिये बालो मे मेहंदी लगाना (काली नही) तथा नारियल के तेल मे कपूर मिलाकर लगाते रहना ठीक रहता है,नीबू पानी और नमक मिलाकर छाछ आदि बहुत लाभदायक होती है.
  • इस राशि वाले भोजन देर से करते है या उन्हे भोजन के मामले मे फ़िक्र नही होती है इसलिये सुबह और दोपहर के भोजन का नियम रखा बहुत लाभदायक होता है.गर्मी मे यह पेट के मरीज हो जाते है और अक्सर गैस आदि की शिकायत अधिक रहती है गैस बनने के कारण ही नाभि के नीचे का हिस्सा चौडा होता जाता है.

Friday, July 20, 2012

नौकरी ही क्यों ?

प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और सूर्य स्वामी है,सूर्य का स्थान लगन मे ही है और जीवन को उन्नति देने वाला ग्रह राहु तीसरे भाव मे है,तीसरे सातवे और ग्यारहवे भाव मे राहु के आने से आजीवन व्यक्ति को झंझावतो में झूले जैसी स्थिति से जूझना पडता है। उसके साथ ही जब केतु पर किसी खराब ग्रह की नजर पड रही हो और वह केतु केवल परिवार के लिये भोजन पानी की वय्वस्था जुटाने के लिये राहु से मदद मांगता रहे। इसके अलावा एक बात और भी जानी जाती है कि जब राहु केतु किसी भी ग्रह या भाव को अपने कब्जे मे ले लेते है तो दूसरा कोई भी ग्रह उन भावो और ग्रहो की रक्षा भी नही कर पाता है यह राहु केतु के कारण जीवन केवल इनकी गुलामी मे ही काटना पडता है। केतु नवे भाव मे है और केतु की नजर सूर्य बुध और शुक्र पर भी है,केतु को धन भाव मे विराजमान मंगल और बारहवे भाव के शनि ने भी अपनी पूरी नजर प्रदान की है.कर्क का शनि बारहवे भाव मे है और कन्या का मंगल धन भाव मे है,मंगल और शनि को बल देने के लिये गुरु चन्द्र भी दसवे भाव से अपनी पूरी सहायता प्रदान कर रहे है गुरु का साथ धन की राशि मे होने के साथ साथ नीच का प्रभाव भी है,जातक को जो भी ग्यान मिलेगा वह कार्य और शिक्षा के रूप मे नीच का ही मिलेगा यानी जातक को जो भी शिक्षा और सम्बन्ध मिलेंगे वे केवल धन कमाने के लिये अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिये और उन्नति के नाम से तकनीकी कारण दिमाग मे लाने के लिये ही मिलेंगे। कन्या का मंगल धन के भाव मे है वह धन जो नगद रूप से देखा जाये,लेकिन कन्या राशि धन के भाव मे होने से धन का रूप वही माना जा सकता है जो उधार लेकर प्राप्त किया जाये नौकरी करने के बाद प्राप्त किया जाये,पर गुरु की नजर आने के बाद जातक को यह मंगल उन्ही कारको मे नौकरी आदि करने के लिये अपनी गति को प्रदान करेगा जहां से जातक नौकरी करने के बाद लोगो को उधार का धन प्रदान करवाये साथ ही धन को प्रदान करवाने के लिये उन्ही कारको को देखा जाये जो शनि से सम्बन्धित हो शनि कर्क राशि का है और इस शनि की शिफ़्त उन्ही कारको से जुडी हो जो वाहन से सम्बन्धित रखते हो यात्रा से सम्बन्ध रखते हो मकान दुकान और आदि से सम्बन्ध रखते हो या बडे सन्स्थान जो लोगो की सहायता से चलाये जाते हो उनसे सम्ब्नध रखते हो,इस प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करने के बाद जातक के लिये कार्य का रूप माना जा सकता है।
मंगल का स्थान कन्या राशि मे होने से तथा गुरु के नीच प्रभाव से देखे जाने से जातक को लगता है कि वह केवल अपनी आजीविका को नौकरी से ही निकाल पाएगा,इसके अलावा भी कोई काम अगर जातक करता है तो उसके लिये हानिकारक होंगे। जातक का जन्म नीच के गुरु के समय में गुरुवार को ही हुआ है जातक के लिये कहा जा सकता है- "Birth on a Thursday makes you kind and compassionate. You can look forward to a happy family life. You combine practical wisdom and a philosophical and religious approach to life in a seamless manner." व्यापार के लिये इन सभी कारणो को नजरंदाज करना पडता है,कारण धन या परिवार मे एक ही का प्राप्त होना माना जा सकता है इस दिन जातक के जन्म के कारण जातक केवल अपने परिवार की ही भलाई को देखना चाहेगा और उसके लिये वह अपने को हर प्रकार से बलिदान करने के लिये अपनी आदत में ही रहेगा उसे स्वार्थी होने से बाहर वालो के लिये ही माना जा सकता है लेकिन वह अपने परिवार के लिये कतई स्वार्थी नही होगा। इसके बाद देखा जाता है कि तैतिल्य करण में पैदा होने वाला जातक एक स्थान पर नही टिक सकता है जबकि व्यापार के लिये एक ही स्थान से टिक कर रहना पड्ता है और अपने एक ही उत्पादन के लिये जी जान से लगना पडता है जब बार बार मन को बदला जायेगा स्थान को बदला जायेगा और जहां जातक पैदा हुआ है वहीं नही रह पायेगा तो उसकी स्थिति मे केवल नौकरी या इसी प्रकार के काम ही माने जायेंगे जो केवल चल फ़िर कर किये जायें यथा- "Since you are born in Taitila Karana, you may find it difficult to stick to your own ideas and words.Generally, you do not voice strong opinions. You may shift your residence often." नौकरी के अन्दर तो यह हो सकता है कि बार बार स्थान का बदलाव किया जाये और बार बार काम को बदल दिया जाये या बार बार कार्य क्षेत्र को बदल दिया जाये। इसके अलावा एक बात और भी देखी जाती है कि जातक अगर व्यघात योग में पैदा हो जाता है तो उसका मूड कब बदल जाये कोई पता नही होता है यथा -"A quick temper is one of the negative effects of VYAGHATHA NITHYAYOGA. You may seem intimidating to those around you. People are wary of your changing moods. Your plans change according to your whims. There is something distinctive about your eyes. You are generally well liked." वह अपनी बात को रखने के लिये और केवल अपनी ही सुनने के लिये अपने को कब झल्लाहट से पूर्ण कर ले कोई पता नही होता है,इस प्रकार से नौकरी के लिये यह योग और यह करण दोनो ही अपनी अपनी भूमिका आजीवन निभाने के लिये अपनी योग्यता को प्रदान करने के लिये जाने जाते है।
जन्म के मंगल पर जब भी शनि गोचर करता है तो जातक के कार्यों के अन्दर यह तकनीकी दिमाग मे फ़्रीजिंग भर देता है और जातक के ऊपर उसके अधिकारियों के आक्षेप विक्षेप लगने लगते है,वह जो भी काम करता है उसके काम के अन्दर लोग अपनी अपनी उंगली लगाकर काम को नकार देते है और जो काम वे खुद करते है या जातक के किसी काम को खुद के नाम पर करने के बाद जातक को अपमानित भी करने लगते है जातक को डर होता है कि उसकी बुद्धि काम नही कर रही है और उसका तकनीकी दिमाग फ़ेल जैसा हो गया है जातक घबडा जाता है और अपने स्थान को बदलने मे ही अपनी भलाई समझता है। इस प्रकार से जातक के जीवन मे परिवर्तन हमेशा ही आते रहते है। चन्द्रमा से पंचम का शनि कभी मानसिक रूप से परिवार सन्तान जीवन साथी जीविका लाभ के साधन दोस्त मित्र बडे भाई और धन तथा परिवार के खुद के लोगो से दिक्कत का कारण बनाने के लिये भी जाना जाता है.
अगर जातक अपनी दिमागी हालत को सुधार कर अपने डर को दूर करने के बाद व्यापार के लिये अपनी गति को शुरु करता है तो जिन गुरु चन्द्र ने अपने रहने वाले स्थान को छोडा है अपने घर और पैत्रिक स्थान को तिलांजलि दी है साथ ही अपने परिवार  मे सन्तान की शिक्षा और अस्पताली कारणो को समझ कर उसे आगे बढाया है से निजात पा सकता है। गुरु और चन्द्र का रुख फ़ौरन चौथे भाव की तरफ़ देखने लगेगा और वही मंगल जो इस घर का मालिक है चौथे भाव से ग्यारहवे भाव मे आकर लाभ का कारण पैदा करने लगेगा,शनि जो बारहवे भाव मे रहकर जन्म स्थान को छुडवा रहा है उसी जन्म स्थान से सम्बन्धित कार्य जो मंगल से जुडे हो यानी भूमि होटल खनिज आदि के काम मे आगे बढाने के लिये अपनी सहायता देने लगेगा।

Tuesday, July 17, 2012

मारक बुध

बुध का रूप बहुत ही कोमल नाजुक माना जाता है फ़ूल में पंखुडियां बुध की होती है पंखुडियों की सजावट शुक्र करता है और राहु खुशबू देता है,फ़ूल को साधने का काम भी बुध करता है वह हरे पत्तों के रूप में भी और हरे रंग के रूप में भी,केतु उसकी टहनी होती है,जड शनि और गुरु खुशबू को फ़ैलाने वाली वायु.फ़ूल के रंग अलग अलग ग्रहों के आधार पर देखे जाते है चन्द्रमा सफ़ेद सूर्य गुलाबी मंगल लाल गुरु से पीला शनि से काला राहु से धूमिल और केतु से चितकबरा.कई रंगो का मिलावटी रूप भी देखा जाता है जैसे गुलाब में गुलाबी भी होता है तो सफ़ेद भी होता है काला भी होता है लाल गुलाब भी होता है। समय कुंडली के नवांस से मन का कारक चन्द्रमा जिस भाव में होता है उस भाव और उस राशि का रंग ही दिमाग मे रहता है अक्सर चालाक ज्योतिषी पहले से ही फ़ूल का नाम लिख लेते है और जातक से जब फ़ूल का नाम पूंछा जाता है तो जातक उसी फ़ूल का नाम बताता है जो ज्योतिषी ने लिख लिया होता है,यह आश्चर्य की सीमा मे आजाता है और जातक का विश्वास ज्योतिषी पर पूरी तरह से हो जाता है। बुध जब मारक ग्रह का काम करता है तो मेष राषि वाले के लिये छठे भाव की बीमारियां देता है वृष राशि वाले को पेट की बीमारी देता है मिथुन राशि वाले को सांस की बीमारी देता है,कर्क राशि वाले को लकवा की बीमारी देता है सिंह राशि वाले को जुबान के रोग देता है कन्या राशि वाले को सिर के रोग देता है तुला राशि वाले को यात्राओं से इन्फ़ेक्सन देता है वृश्चिक राशि वालो को दाहिने हिस्से में सुन्नता देता है धनु राशि वाले को रीढ की हड्डी की बीमारी देता है मकर राशि वालो को पुट्ठों और नितम्बो की बीमारी देता है कुम्भ राशि वालो को जननांग सम्बन्धी बीमारी देता है,मीन राशि वालो को शरीर के नीचे के हिस्से यानी नाभि के नीचे की बीमारी देता है। आक्स्मिक हादसे में बुध जब राहु का साथ लेता है तो मेष राशि का जातक या तो बहुत सा धन इकट्ठा कर लेता है और डकैती आदि के कारण मारा जाता है अथवा बहुत बडी दुश्मनी अलावा जातियों से कर लेता है और सामाजिक दुश्मनी के कारण मारा जाता है अथवा वह अपने प्रयासो से इतना कर्जा कर लेता है कि कर्जा वसूलने वाले उसे मार डालते है,अथवा वह नौकरी आदि में अपनी बहादुरी दिखाने के चक्कर में मारा जाता है।

Wednesday, July 4, 2012

रत्न

जीवन मे समस्यायें अनन्त होती है सभी समस्यायें अपने द्वारा भी पैदा की जाती है और प्रकृति से भी मिलती है। अपने द्वारा पैदा की गयी समस्याओं का अन्त अपने द्वारा ही किया जाता है लेकिन प्रकृति के द्वारा दी जाने वाली समस्याओं का अन्त प्रकृति ही करती है। खुद के द्वारा पैदा की गयी समस्या का अन्त कभी कभी प्रकृति भी कर देती है और प्रकृति के द्वारा पैदा की गयी समस्या को कभी कभी हम खुद भी कर लेते है,लेकिन प्रकृति जो समस्या पैदा करती है उसमे आगे चलकर हित होता है जबकि खुद के द्वारा पैदा की गयी समस्या हितकारी भी हो सकती है और दुखदायी भी हो सकती है। शरीर का ख्याल रखने से ही शरीर स्वस्थ रहेगा धन कमाने से ही आयेगा रहन सहन परिस्थिति के अनुसार ही बनाना पडेगा और जो जलवायु शरीर मन और कार्य के लिये उपयुक्त होती है उसी मे निवास भी करना पडेगा बुद्धि को बढाने के लिये शिक्षा भी प्राप्त करनी पडेगी रोजाना की दिक्कतो को दूर करने के लिये रोजाना के कामो को भी करना पडेगा,आगे की सन्तान और पारिवारिक सुख को लेकर चलना है तथा जीवन को सयंत बनाकर समाज के अनुसार जीना है तो शादी भी करनी पडेगी और ममत्व के लिये बच्चे भी पैदा करने पडेंगे,जिस देश जलवायु और लोगो के पास रहना है तो वहां के नियम कानून धर्म और लोगो के अनुसार ही रहना पडेगा जीवन को चलाने के लिये और अपने द्वारा पैदा किये गये कारणो के लिये ऐसे कार्य देखने पडेंगे जो हमेशा के लिये चलते रहे और बडे कार्यों के लिये बडी शिक्षा तथा छोटे कार्यों के लिये छोटी शिक्षा को ग्रहण करना पडेगा जब सभी प्रकार से कार्य सुचारु रूप से चलेंगे तो आवक भी होगी और उस आवक को जरूरत के अनुसार खर्च करने से तथा बचत करने से तरक्की भी होगी और जब जन्म लिया है तो मरना भी पडेगा।

शरीर का ख्याल नही रखा सर्दी गर्मी बरसात में जलवायु के अनुसार उसे सम्भाला नही छोटी सी बीमारी होने पर उसका इलाज नही किया जो हानिकारक भोजन है वह जीभ के स्वाद से खाते चले गये तो शरीर को बीमार होना ही है और शरीर बीमार हो जाये तथा दोष प्रकृति को दिया जाये तो बेकार की बात है.

पूर्वजो के दिये गये धन या सामान का ख्याल नही रखा जो था उसे सुरक्षा के अभाव मे खो दिया तो धन कहां से आयेगा और धन कमाने के लिये काम तो करना ही पडेगा.

जिस जगह पर रह रहे है वहां की जलवायु के अनुसार कपडे नही पहिने अपने को सुन्दर दिखाने के लिये या परिवेश से विपरीत फ़ैशन मे आकर अपने शरीर को उचित तरीके से ढका नही जो भाषा बोली जाती है या जहां भी रहते है वहां की परिस्थिति के अनुसार अपने को चलाना नही आया लोगो से कैसे बोला जाता है कैसे लोगो से लिख कर बताया जाता है आदि बातो का ध्यान नही रखा जहां नरमाई से काम लेना था वहां गर्माई से काम लेने लगे तो लोग दुत्कारने लगेंगे और जो भी आगे बढने का उपक्रम होता है उसमे पीछे रह जाओगे.

अपने समय के अनुसार विद्या को नही प्राप्त किया जहां जैसे माहौल मे रह रहे है वहां से आगे बढने का उपक्रम नही बनाया अपने सामर्थ्य के अनुसार शिक्षा का क्षेत्र नही चुना जो पढना लिखना था उसे पढा लिखा नही एक समय मे कई काम एक साथ लेकर चले सर्दी गर्मी बरसात और आने वाली प्राकृतिक आपदा के लिये अपने घर को सम्भाल कर नही रखा दिल के अन्दर दूसरो के प्रति दया का भाव नही रखा माता पिता और उनके लिये जो कर्तव्य होते है उन्हे पूरा नही किया तो भटकना जरूरी है,कारण निश्चित समय पर निश्चित रहने का कारण नही बना पाये.

विद्या ग्रहण के समय मनोरन्जन में मन लगा लिया जब पढना था तब खेलने मे लग गये,जल्दी से धन कमाने के लिये जुआ लाटरी सट्टा मे मन को लगा लिया इश्कबाजी मे ध्यान चला गया बुद्धि को एक स्थान की बजाय कई स्थानो पर प्रयोग किया जाने लगा जब परिपक्व हुये तो हाथ मे कुछ नही रहा,अब तो दूसरो के भरोसे रहना ही पडेगा.

समय पर शरीर को संभाल कर नही रखा तो बीमार हो गये धन को मनमाने ढंग से खर्च किया और कल का ख्याल नही रखा तो कर्जा हो गया जो सीखा है उसे प्रयोग नही करके दूसरो की कमाई या अन्य बातों मे ध्यान को लगाया खर्चे अधिक होने से जरूरत पर चोरी की आदत पड गयी किसी ने समझाने की कोशिश की तो उससे लडाई हो गयी और दुश्मनी भी पाल ली गयी,अपने घर मे रह नही पाये मामा मौसी आदि के पास रहने लग गये,जब उम्र कुछ सीखने की थी तो नौकरी करके पेट पालने वाली बात बन गयी पूरे जीवन की दिक्कत खुद के द्वारा ही पैदा की गयी है उसके लिये कौन जिम्मेदार होगा.

कई बार लोगों के द्वारा अनर्गल बयान दिये जाते है कि अमुक पत्थर के पहिनते ही उन्हे आशातीत लाभ हो गया,अमुक ज्योतिषी ने अमुक रत्न दिया था उससे उन्हे बहुत लाभ हो गया,लेकिन यह क्यों नही सोचा जाता है कि ज्योतिषी केवल तत्व की मीमांशा का ही हाल देता है कभी भी ज्योतिषी केवल रत्न पहिने के बाद आराम मिलना नही बोलता है,रत्न एक यंत्र की तरह से है,रत्न का मंत्र रत्न की विद्या की तरह से है और रत्न का कब प्रयोग करना है कैसे प्रयोग करना है कैसे उसे सम्भालना है आदि की जानकारी तंत्र है। केवल रत्न के पहिनने से कोई लाभ नही होता है ऐसा मैने अपने ज्योतिषीय जीवन मे नही देखा है,वैसे अपने श्रंगार के लिये कितनी ही अंगूठिया पहिने रहो हार मे कितने ही रत्न जडवा दो लेकिन इस मान्यता मे रत्न पहिन लिया जाये कि केवल रत्न ही काम करेगा यह असम्भव बात ही मिलती है। बुध व्यापार का कारक है बुध का रत्न पन्ना है,हजारो मजदूर पन्ने का काम करते है और सुबह से शाम तक पन्ना ही उनके हाथ मे रहता है लेकिन मैने कभी नही सुना है कि पन्ना का कारीगर एक अच्छा व्यापारी बन गया है। 

मनुष्य जब भ्रम मे चला जाता है तो उसके लिये ध्यान को भंग करना जरूरी होता है यह मनोवैज्ञानिक कारण है,जब किसी के सामने अपनी समस्या को बताया जाता है तो वह समस्या को सुनता है समस्या की शुरुआत का समय सितारों से निकाला जाता है,समस्या के अन्त का समय भी सितारों से निकाला जाता है,अगर सितारा जो गलत फ़र्क दे रहा है तो उस सितारे के लिये रत्न का पहिना जाना उत्तम माना जाता है,सबसे पहले अच्छे रत्न की पहिचान करना जरूरी होता है,इसे कोई जानने वाला ही पहिचान करवा सकता है वैसे आजकल रत्न परीक्षणशाला बन गयी है और रत्न का परीक्षण करने के लिये रत्नो की कठोरता रत्न के अन्दर की कारकत्व वाली स्थिति को बताया जाता है,जब प्रयोगशाला बन गयी है तो प्रयोगशाला से किन किन तत्वो का निराकरण मिलता है उसके बारे मे रत्न का व्यवसाय करने वालो के लिये जानकारी भी मिल गयी है कि मशीन से कितना और क्या बताया जा सकता है,आजकल की वैज्ञानिक सोच को समझने वाले लोग यह भी समझते है कि रत्न जो भूमि के नीचे से प्राप्त होता है की परिस्थितिया भी सर्दी गर्मी बरसात पर निर्भर होकर और जीवांश के मिश्रण से ही बनी होती है। और उन्होने साधारण तरीका बनाया कि किसी सामान्य पत्थर को पीसकर उन्ही स्थितियों को मिलाया उसमे कलर दिया और भट्टी मे गर्म करने के बाद उसी कठोरता और उसी मिश्रण की स्थितियों से बिलकुल रत्न की कारकत्व वाली वस्तुओं के अनुरूप बना दिया,अब कैसे पहिचाना जायेगा कि यह असली है या नकली है,सार्टीफ़िकेट भी बनाया जा सकता है और एक डाक्टर जैसे दूसरे डाक्टर की बुराई नही कर सकता है वैसे ही एक जोहरी भी दूसरे की बुराई नही कर सकता है ग्राहक तो एक बार आयेगा लेकिन उन्हे हमेशा एक ही परिवेश मे व्यवसाय करना है आदि बाते रत्न की परीक्षा और असली नकली मे अपनी भूमिका निभाने के लिये मानी जाती है।