Wednesday, March 28, 2012

नाम से विवेचन करना

एक सज्जन का ईमेल आया कि उनके बारे मे कैरियर के बारे मे जानना है लेकिन जन्म तारीख आदि नही है। बिना जन्म तारीख के दो ही तरीके होते है एक प्रश्न कुंडली से दूसरा नाम से,जब जातक ने प्रश्न किया था उस समय के सितारे और जब ईमेल हमारे पास तक पहुंचा तब के सितारों मे बदलाव हो चुका है। साकार भावना और निराकार प्राप्ति के बीच का अन्तर ही कहने और सुनने तक की सीमा को पूरा करता है। जातक का नाम सोनू कुमार है,नाम से कैरियर के बारे मे जानने के लिये जो तरीका प्रयोग किया जाता है वह इस प्रकार से है।
नाम के अक्षरो मे नौ का गुणा करना है मात्राओं को जोडना  है।
नाम के पांच अक्षर है और चार मात्रायें है।
पांच मे नौ का गुणा करने पर पैतालीस की संख्या आती है.मात्रायें जोडी तो कुल उनन्चास की संख्या मिलती है। प्राथमिक रूप से दो ग्रह सामने आते है,चार से केतु और नौ से मंगल यह कारण नम्बर के अनुसार है.
मंगल केतु को आपस मे मिलाने से पवन पुत्र हनुमान जी का रूप सामने आजाता है।
खोजबीन से सम्बन्धित काम।
रक्षा से सम्बन्धित काम।
सेवा सम्बन्धी काम।
धर्म और संस्कृति से जुडे काम।
तकनीकी और औषिधि से सम्बन्धित काम।
इन कामो मे जातक को अपने भाग्य को अंजवाना चाहिये।

Tuesday, March 27, 2012

वक्री शुक्र यानी बेवफ़ा प्रेमिका

बहुत ही सुन्दर फ़िल्मी गाना है- "दुश्मन न करे दोस्त ने वह काम किया है" इस गाना को वही लोग अधिक गाया करते है जो पैदा होने के समय वक्री शुक्र को त्रिकोण मे लेकर पैदा हुये होते है। जातक ने जो प्रश्न लिखा है वह किस प्रकार दिल को आहत करता है आप पढ सकते है - "pandit ji kuchh upay bataiye mujhe let night nid nhi ati befaltu ki
chating...ldkiyo se bat krte rhna  ye sb life bn gyi jisse mai thak
gya hu...
mai pre medical test ki taiyari kr rha hu lekin pdai me mn nhi lgta
meri one year se ek girl friend thi jisne abhi kuchh dino phle mujhe chhor diya
mai bhut dipreson me hu mera exam a gya lekin mai pd nhi pata hu,,,
kuchh upayr batiye,,, sare dost dusmn se ho gye jo din bhar cal krte
rhte the ab ek sms ni krte,,,pata nhi kya ho gya meri life ko
mai apni girl friend se bhut pyar krta hu lekin wo b sath chhor di...
life me kuchh dikh nhi rha
pa pdhi bachi,, na pyar bacha na aor kuchh.... kuchh upay bataye jisse
mera mn pdne me lg se.............. kya mai m.b.b.s kr paunga???? kya
guru ji meri girl friend mujhe waps mi skegi............. pizzzz guru
ji jaldi rispons dijiyega,,,,,,,,, " इस प्रश्न को पढने के बाद एक विचार जरूर दिमाग मे आता है कि क्या इसी तरह से होनहार बच्चे अपने जीवन के पथ से दूर होकर अपने को अन्धेरे मे ले जाते है और उनके इस अन्धेरे मे जाने का कारण होता है उनका प्रेमी,जो स्वार्थी भावना से जातक को इतना अपनत्व दे देता है कि वह अपने सभी कर्तव्यों को भूल कर उनके ही आगोश मे फ़ंसा रहता है जैसे ही फ़रेबी प्रेमी देखते है कि उनका काम हो गया और वह व्यक्ति अब आगे नही बढ पायेगा उसे छोड कर दूर चले जाते है। यह कोई कहानी नही है हकीकत के बयान है एक दर्द भरे व्यक्ति के जिसने अपने को दोस्तो के लिये ही कुर्बान कर दिया,यह कुर्बानी और किसी ने नही करवायी बल्कि वक्री शुक्र ने अपनी शक्ति को राहु के द्वारा और बढा कर पहले व्यक्ति को अपनी छाया मे लिया और एक दिन बिना कुछ कहे वह अलग हो गयी। एक तो जवानी की दहलीज ऊपर से अक्समात का झटका,कैसे इस व्यक्ति ने सहन कर पाया होगा यह बात तो इस जातक के द्वारा ही जानी जाती है।
कुन्ड्ली मे राहु लगन मे है और चन्द्रमा भी लगन मे ही है इस प्रकार से चन्द्रमा को राहु ने अपनी छाया मे लिया हुआ है,राहु ने अपनी छाया मे चन्द्रमा के अलावा भी नवे भाव मे विराजमान ग्रहों में गुरु सूर्य मंगल वक्री शुक्र और वक्री बुध को भी अपनी छाया मे लिया है यानी जो भी राहु चाहेगा वही यह ग्रह काम करेंगे। धनु का राहु नीच का कहा गया है इस राहु ने जब गुरु से अपना सम्बन्ध बनाया है तो जातक को असीमित ज्ञान प्राप्त करने की उत्कंठा है,जातक जो भी सम्बन्ध बनायेगा वह सम्बन्ध वृहद रूप से बनाने की कोशिश करेगा और वह चाहेगा कि उसके जो सम्बन्ध है वह जग जाहिर हो लोग उसके सम्बन्धो के बारे मे वाह वाह ही कहे उसे सम्बन्धो के नाम से गाली नही दें। लेकिन जातक यह भी चाहेगा कि जो भी सम्बन्ध बने वह उन सम्बन्धो को अपने अनुसार ही चलाये उसे अलावा लोगो की राय और शिक्षा की जरूरत नही है,वह हमेशा अपने समबन्धो को अपने अनुसार ही बनाकर चले। गुरु और राहु का आपसी सम्बन्ध जातक के जीवन के लिये बहुत ही खतरनाक माना जाता है कारण गुरु अगर हवा का रूप है तो राहु इन्फ़ेक्सन भी कहा जाता है जीने के लिये ली जाने वाली हवा मे अगर इन्फ़ेक्सन है तो वह जातक को सांस वाली बीमारियां दे देती है,वह बीमारिया फ़ेफ़डो को खराब करने के लिये भी मानी जाती है। इस राहु के सम्बन्ध के कारण जातक का पिता जो गुरु के रूप मे है अपनी औकात को बहुत आगे तक बढा लेता है और जातक का पिता कानूनी कारणो से चलकर कालेज शिक्षा विदेशी सम्बन्ध राजकीय सरंक्षण आदि के लिये इसलिये भी माना जाता है क्योंकि गुरु जो पिता का रूप भी नवे भाव मे जाकर बन जाता है उसी पिता को नवे सूर्य का बल भी प्राप्त है और वह अपने बल को कालेज शिक्षा के समय से ही प्राप्त करना शुरु कर देता है। इस प्रकार से गुरु और राहु का संयोग नवे भाव मे पारिवारिक रूप से भी अपनी युति से बल देने वाला माना जाता है और राहु जो धनु राशि का है एक बडे कुनबे के रूप मे भी माना जा सकता है,इस कुनबे के अन्दर राहु गुरु यानी जातक के पिता को सर्वोच्च स्थान भी देता है तो सूर्य को बल देकर राजनीति का संरक्षण भी देता है,सरकारी संपत्ति को संभालने का कार्य खेल कूद मनोरंजन आदि के साधन लोगो के लिये बनाने और उन्हे प्रदर्शित करने का कारण भी जातक का पिता पैदा करता है अपने अनुसार ही कानून को बनाकर कानून पर चलने के लिये परिवार या इसी क्षेत्र के लोगो के लिये भी अपनी युति को प्रदान करता है आदि बाते भी देखने को मिलती है। यही राहु गुरु और मंगल के साथ इकट्ठा सहयोग लेकर जातक के पिता को कानूनी रूप से बल मिलने और पुलिस रक्षा सेवा या तकनीकी रूप से प्रयोग किये जाने वाले कानूनी कारणो के लिये भी माना जा सकता है। वही गुरु जब मंगल से मिलता है सूर्य का बल प्राप्त करता है,गुरु का आकार लगनेश होने के कारण घर मे तीन की औकात तो देती है लेकिन दो का पता नही होता है कि वह अपनी औकात को किस प्रकार से जीवन मे चला सकते है चलाने से पहले ही अपने अपने अनुसार आगे निकल जाते है।
राहु अपनी युति तभी अधिक देता है जब वह लगन पंचम नवम मे होता है,साथ ही गोचर से भी अपना वही फ़ल प्रदान करता जाता है,जिस स्थान पर वह जन्म के समय मे होता है।

Sunday, March 25, 2012

जन्म नक्षत्र स्वाति

स्वाति नक्षत्र की ज्योतिष मे बहुत बडी मान्यता है कहा भी जाता है कि स्वाति नक्षत्र की बरसी हुयी पानी की बूंद अगर समुद्री सीप के अन्दर चली जाती है तो वह मोती का रूप ले लेती है। इसी प्रकार से अगर फ़सल मे स्वाति नक्ष्त्र का पानी लग जाता है तो फ़सल के दाने सुडौल और चमकीले हो जाते है उनके अन्दर एक अजीब सी पहिचान बन जाती है। स्वाति नक्षत्र का मालिक राहु होता है और इस नक्षत्र का राहु कुंडली मे कभी भी अपनी खराबी पैदा नही करता है,अगर राहु को कोई कलुषित ग्रह अपनी आभा से खराब नही कर रहा हो। जातक का जन्म एक ऐसे स्थान पर होता है जहां कोई पहले से ही महापुरुष या तो पैदा हो चुका होता है या जातक के पैदा होने के बाद पैदा होता है। स्वाती नक्षत्र तुला राशि के अन्तर्गत आता है इस प्रकार से इस राहु का सम्पर्क तुला राशि के मालिक शुक्र से भी होता है और तुला राशि का सन्सर्ग प्राप्त करने के कारण आशंकाओ के स्वामी राहु का बेलेन्स करने का दिमाग भी बन जाता है इस नक्षत्र मे जन्म लेने वाला जातक किसी भी आशंका से अपने को बुरी बातो से दूर रखता है वह आंख बन्द करने के बाद भरोसा तभी करता है जब उसे कोई भरोसा करने वाला व्यक्ति मिलता है,अन्यथा वह अपने को खराब लोगो से दूर रखता है। जातक के जीवन मे उतार चढाव लाने के लिये राहु ही माना जाता है। राहु की सीमा के बारे मे कहा जाता है कि इस छाया ग्रह की सीमा का आज तक कोई माप नही है कि कितनी दूरी तक यह विस्तार मे है। आसमान के रूप मे यह दिखाई देता है और समुद्र के रूप मे जमीन पर स्थापित होने के कारण भी इस राहु की उपाधि दी गयी है।
राहु को चन्द्रमा और सूर्य का शत्रु बताया जाता है लेकिन बिना राहु के चन्द्रमा की भी औकात नही है कारण जब आसमान ही नही होगा तो चन्द्रमा और सूर्य का स्थान कहां से प्राप्त होगा। राहु जो ग्रहण देता है लोग उसका उल्टा अर्थ निकालते है ग्रहण का मतलब होता है प्राप्त करना,ग्रहण का अर्थ यह नही होता है कि वह किसी बात को खराब कर रहा हो। समय चक्र के अनुसार जब बदलाव का कारण बनता है तो राहु की सीमा जरूर शामिल होती है अन्यथा बदलाव का कारण ही नही बने और जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहे। इस नक्षत्र मे पैदा होने वाला जातक बहुत अधिक कुशल होता है किसी भी तकनीक मे उसे लगा दिया जाये वह अच्छे बुरे और खराब की तकनीक को निकाल कर फ़ौरन ही बता सकता है,स्वाति मे जन्म लेने वाला जातक अपने बारे मे कोई टीका टिपणी सुनना पसंद नही करता है,अगर कोई स्वाति मे जन्म लेने वाले जातक के लिये टीका करना शुरु कर देता है तो जातक के लिये बहुत ही बडा दुश्मन बन जाता है। इसी प्रकार से विरोध करने वाला भी जातक की नजरो से हमेशा दूर ही रहता है,तथा दुश्मनी भी इसी प्रकार के जातको से होती है। अक्सर जो भी जातक का विरोध करता है उससे जातक निपटने की हिम्मत भी रखता है और दुश्मनी को आसानी से निपटाने की हिम्मत भी रखता है। जातक किसी को भी जो उसके बारे मे बुरा सोचता है उससे टकराने की एक भावना को भी रखता है जिससे आसपास वाले या कोई भी व्यक्ति उसके सामने टकराने की कोशिश नही करता है,अगर करता भी है तो जातक के द्वारा अल्प समय मे अपमानित भी हो जाता है। जातक स्वाति नक्षत्र मे चन्द्रमा के होने से जातक के शिक्षा के समय मे कोई कलंक जरूर लगता है भले ही वह कार्य जातक ने किया नही हो लेकिन वह विरोधियों से कलंकित किया जाता है। कभी कभी यह कलंक भाई अथवा भाई की पत्नी के लिये अथवा किसी विधवा स्त्री के बारे मे भी हो सकता है। अक्सर इस प्रकार के जातक दूसरो को वही राय देते है जो उन्होने अपने जीवन मे खुद के द्वारा सीखी या समझी हो अथवा उनके सामने आयी हो। लेकिन अपने परिवार मे अपनी पत्नी के प्रति इस प्रकार के लोग हमेशा ही वफ़ादार रहते है और किसी भी प्रकार की परेशानी अपनी पत्नी के लिये नही आने देते है। कभी कभी साफ़ बोलने के कारण और लोगों से हंसी मजाक करने के कारण लोग गलत समझ बैठते है लेकिन स्वाति नक्षत्र मे पैदा होने वाला जातक अपने मन वचन और कर्म से जिससे भी प्रेम बना लेता है उसके प्रति हमेशा ही समर्पित रहता है। धर्म के प्रति आस्था भी होती है चालाक लोगो से अक्सर ठगा भी जाता है,लेकिन ठगी करने वालो को जल्दी पहिचान भी लेता है किसी प्रकार की गलत रीति को पैदा करने वाले के लिये जातक के अन्दर एक प्रकार से बडा आक्रोस भी पैदा होता है। एक परिवार को हमेशा के लिये पालने के लिये विवस भी होता है । राहु का स्वभाव दिलफ़ेंक भी होता है कभी भी किसी पर भी दिल आने की शिकायत अक्सर इस नक्षत्र मे पैदा होने वाले जातक के लिये देखी जाती है। जीवन के बयालीस साल अक्सर यह इच्छा बहुत अधिक पनपती है,और होता भी यही है कि कोई न कोई स्त्री पुरुष के लिये और पुरुष स्त्री के लिये मनबहलाने के लिये मिल जाता है। इस समय जातक अगर अपने को सम्भाल कर चल जाये तो यह भावना धनी बनाने के लिये भी देखी जाती है राहु इस उम्र के बाद दो मे से एक ही सुख देता है या तो मन बहलाव या धन दोनो एक साथ नही देता है। कामुकता के होने के कारण भी राहु अपनी योग्यता को इस नक्षत्र मे दिखाने की योग्यता रखता है जातक के अन्दर कामकला की जानकारी अधिक होती है वह अपने से विपरीत लिंगी को सन्तुष्ट रखने की योग्यता को भी रखता है और जो भी उसके साथ एक बार चल देता है वह उसे किसी प्रकार से भूल भी नही पाता है।
अक्सर स्वाति मे पैदा होने वाले डरते नही है इसलिये भी लोग इनकी तरफ़ आकर्षित हो जाते है। कठिन से कठिन परिस्थितिओ मे रह सकते है किसी भी प्रकार का माहौल यह सौम्य बना सकते है। जहां लोग रो रहे हो वहां यह अपनी कार्य कुशलता से हंसी का फ़व्वारा निकाल सकते है। सांसारिक ज्ञान बहुत ही बारीकी से सीखा जाता है और उस ज्ञान की बजह से यह अपने जीवन के बयालीस साल की उम्र के बाद बहुत ही उन्नति करने मे आगे बढ जाते है। अक्सर इस नक्षत्र मे पैदा होने वाले जातक को एक धार्मिक व्यक्ति की बहुत सहायता मिलती है और उस व्यक्ति की राय से इस नक्षत्र मे पैदा होने वाले जातक उन्नति का मार्ग प्राप्त करते चले जाते है,लेकिन इस नक्षत्र मे पैदा होने वाले जातक के अन्दर एक प्रकार से कंजूसी भी होती है अगर यह अपने को सलाह देने वाले लोगों की सन्तुष्टि मे सहयोग देते जायें तो आगे की जिन्दगी मे उन्हे बिना मांगे सलाह भी मिल जाती है और किसी भी प्रकार की आफ़त भी निकल जाती है।
कार्य करने वाले स्थान पर सहयोगी भी इज्जत करने लगते है उसका एक ही कारण होता है कि जातक बहुत ही मेहनती और मन लगाकर काम करने वाला होता है। उम्र के अनुसार शरीर मे भी बल की पूर्ति होती जाती है और अन्दरूनी ज्ञान की तरह से जैसे समुद्र मे सीप जमीनी सतह पर रहकर अपने मोती को बनाती रहती है वैसे ही जातक अपने जीवन को लोगो के सामने कम लेकिन अन्दरूनी रूप से बहुत ही आगे निकालने मे सफ़ल होते जाते है।
स्वाति मे पैदा होने वाले जातक नाभि के नीचे की बीमारियों से परेशान रहते है इस का कारण एक ही है वह विपरीत लिंगी के प्रति अधिक लगाव और इस कारण से अक्सर भयंकर रोग भी पैदा हो जाते है जो जीवन मे कभी कभी जानलेवा भी होते है। इसलिये जातको को सचरित्र रहकर ही अपने जीवन को बिताना हितकर होगा। धर्म की तरफ़ लगे रहने से भी जातको किसी प्रकार की दिक्कत नही होती है। इस नक्षत्र के पहले चरण मे जन्म लेने वाला जातक व्यापारी होता है और वह शरीर से लिये जाने वाले कार्यों का व्यापारी होता है,दूसरे चरण मे जन्म लेने वाला जातक धन का व्यापार करता है जो धन से धन कमाने के लिये माना जाता है तीसरे चरण मे पैदा होने वाला जातक सोने चांदी और रत्न आदि के व्यवसाय मे अपने जीवन को निकाल कर ले जाता है कभी इस चरण मे पैदा होने वाले जातक प्राइवेट नौकरी करके भी अपनी जीविका को चलाते है चौथे चरण मे जन्म लेने वाला जातक ब्रोकर जैसे काम करता है और खरीद बेच करने शेयर सट्टा कमोडिटी आदि मे अपने मन को लगाकर पहले तो फ़ायदा लेते है कुछ समय बाद उन्हे बहुत घाटा होता है लेकिन यही काम उन्हे अक्समात फ़ायदा देने के लिये तभी माना जाता है जब जातक अपने खराब ग्रहो के बारे मे अपने रहने वाले माहौल मे अपना बदलाव कर ले। 

Friday, March 23, 2012

धनु लगन

लगन मे धनु राशि होने पर व्यक्ति की सबसे अधिक इच्छा स्थाई आमदनी के रास्ते खोजने के लिये अधिक माना जाता है। उसे उन्ही कारणो की जरूरत समझ मे आती है जहां से लगातार कमाई आती रहे और बेकार मे सिरदर्द नही लिया जा सके। कालपुरुष के अनुसार धनु राशि का स्थान नवे स्थान मे है इसलिये यह राशि धर्म न्याय ऊंची शिक्षा पारिवारिक मर्यादा आदि के लिये अधिक जानी जाती है। यह राशि विदेश से सम्बन्ध रखने के कारण अक्सर जब सन्तान पैदा होती है तो वह अपना स्थान शिक्षा आदि विदेशी परिवेश मे ही प्राप्त करना चाहती है और वह अपनी उम्र मे आने के बाद विदेशी नीतियों को ही धीरे धीरे अपना लेती है। अक्सर इस लगन के व्यक्ति बैंक सेवा कर्जा दुश्मनी बीमारी को निपटाने की सेवा जो कार्य समय के अनुसार किये जाते है और समय का मूल्य जहां कीमत रखता है उन विभागो मे कार्य करने के लिये देखे जाते है। इस राशि वालो को कभी न कभी कोर्ट कचहरी की भागदौड मे जरूर शामिल होना पडता है। अक्सर इस राशि के लोग अपने परिवार को अपने जीवन साथी के भरोसे छोड कर अपने कार्य और अपनी कर्त्यव परायण नीति का उल्लेख अधिक दिया करते है। बखान करने मे तो धनु लगन मे पैदा होने वाले लोग खूब अपने परिवार समाज बुजुर्गो की नीतियों का बखान करते है लेकिन उनकी अपने अनुसार अपने ही घर मे चल नही पाती है बच्चो के अन्दर विदेशी नीति आजाने से वे अक्सर अपना मुंह अपने घर के लिये ही बन्द करके बैठ जाते है। दूसरो के लिये वे टीका टिप्पडी करने से नही चूकते है लेकिन अपनी बात आने पर वे एकान्त मे बैठ कर सोचने को मजबूर हो जाते है। उम्र की पचास साल तक का भाग इनके वश मे होता है लेकिन इसके बाद यह जीवन साथी और अपने बच्चो के ऊपर ही निर्भर हो जाते है उम्र की तीसरी सीढी मे जाकर इन्हे दुबारा से कोई काम करने की जरूरत पडती है और अन्त का समय यह अपने द्वारा किये जाने वाले कार्यों मे ही बिताते है। अक्सर इस लगन मे पैदा होने वाले जातक घर से दूर जाकर अपने जीवन को त्यागते है और इनके अन्तिम समय मे इनका खुद का परिवार भी साथ नही होता है। अपने हमेशा समर्थ समझने के कारण अक्सर यह अहम के अन्दर भी आजाते है और जिन लोगो की अपने द्वारा सहायता करनी चाहिये उन्हे यह दुत्कार देते है या वे खुद ही इनके अहम के कारण पास आना नही चाहते है। इस लगन मे पैदा होने वाले जातको के लिये एक विशेष बात और भी मानी जाती है कि यह अपने खास मित्र की सलाह को भी ठ्करा देते है और अपनी ही मर्जी से चलते हुये देखे जाते है। अगर कोई इस लगन के जातक के पास अपनी ख्वाहिस लेकर जाये कि वह उसकी सहायता कर दे या किसी कार्य मे सिफ़ारिस आदि कर दे तो वह अपनी अहम वाली स्थिति के कारण उसकी सहायता नही करते है और एक समय मे इनके खास लोग ही इनसे दूर होते चले जाते है। अक्सर राज्य सेवा राज्य से सम्बन्धित धन बैंक जो सरकारी क्षेत्र से जुडी होती है वित्त विभाग आदि के कार्य यह कर लेते है। जीवन के शुरु मे यह अपने को कार्यों की कुशलता के लिये माहिर भी माने जाते है,इस लगन के जातक अक्सर अपने भाइयों मे बडे होते है और कई वार यह छोटे होकर भी बडे भाइयो या बहिनो पर अपना हुकुम चलाते हुये माने जाते है। विदेशी धन की आवक या जावक के लिये भी इन्हे महरातता हासिल होती है इन्हे कृषि बागवानी या प्रकृति से जुडे क्षेत्र भी अच्छे लगते है। सन्तान का विदेश से जुडे होने या खुद की कार्य प्रणाली विदेश से जुडी होने के कारण या समुद्र के किनारे वाले प्रदेशो मे निवास करने अथवा अधिक पानी से पैदा होने वाले कारको के लिये इनकी कार्य की रुचि भी देखी जाती है।धनु लगन के जातक पैदल चलने पर अधिक विश्वास करते है इन्हे बचपन मे किसी न किसी प्रकार से आंख की चोट या बीमारी जरूर हुयी होती है। धर्म कार्य मे मन्दिर और धर्म स्थानो मे इनकी रुचि अधिक होती है अक्सर सर्वधर्मी भी यह बन जाते है और किसी ऐसे देवता को खोज लेते है जो सभी जातियों या धर्म के लोगो से पूजा जाता है। धनुलगन वाले जातक कपडो के भी शौकीन होते है इनकी शुरु की पसंद बहुत अच्छी मानी जाती है लेकिन ढलती उम्र मे यह कपडो से दूर होते चले जाते है। वकालत का भी ज्ञान होता है न्याय सेवा के लिये भी इनकी योग्यता को देखा जाता है,जो भी इरादा होता है वह अक्सर अटल ही होता है,दिमागी रूप से यह पैदाइसी जासूस होते है। इन्हे अगर प्रशासक बनने का मौका मिलता है तो यह अपने कार्य कुशल से बहुत आगे बढ जाते है। विवाह के बाद ही भाग्य का उदय होता देखा जाता है जीवन साथी भी अपनी योग्यता से समर्थ होता है,जनता के बीच मे रहना,अपने आदेश से काम चलाना,मुंहफ़ट होना भी देखा जाता है। धन की कमी नही होती है लेकिन अगर यह अधिक उम्र मे स्त्री पुरुषों की तरफ़ या पुरुष अन्य स्त्रियों की तरफ़ आकर्षित हो जाये तो यह अपने जीवन की कमाई गयी इज्जत को और धन को बरबाद करने मे कतई नही मान सकते है। अक्सर इस राशि वालो का जन्म पानी के किनारे या अधिक पानी वाले क्षेत्रो मे होता है इनके जन्म के समय मे भले ही वह परिवार गरीब रहा हो लेकिन इनके सामर्थ्य होते होते परिवार की भले ही यह सहायता नही करे लेकिन परिवार उन्नति की तरफ़ जाता हुआ देखा जा सकता है। धनु लगन के जातको की रुचि अपनी संस्कृति और मर्यादा को प्रसारित करने की रुचि होती है लेकिन सन्तान के द्वारा इसी कारण से धनु लगन वालो को अपमान सहना पडता है। उम्र के 22 से 24 वर्ष के बीच मे इनकी स्थिरता का समय शुरु होता है।

धनु लगन वाले जातक जहां भी कार्य करते है वे चलते फ़िरते तो कार्य कर सकते है लेकिन एक जगह स्थिर होकर कार्य करना उनके वश की बात नही होती है। इसका कारण भी है कि जहां भी यह स्थिर होकर कार्य करते है वही पर अपने लिये तमाम तरह के दुश्मन पैदा कर लेते है जो इनके लिये दूर करने के रास्ते निकालने लगते है। किसी भी कार्य का निश्चित होना भी इनके वश की बात नही होती है कभी कभी तो यह बहुत से वादे भी कर लेते है लेकिन वादो पर चलना इन्हे इनके जीवन साथी या परिवार के कारण पूरा नही हो पाता है। जीवन का 20,29,38,40,47,56 वां वर्ष बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। इसके बाद इनका जीवन स्थिर होना शुरु हो जाता है और इन्हे अपने जन्म स्थान या पुराने स्थान पर वापस आना पडता है,जहां इनके खुद के लोग इनकी सहायता करने से दूर हो जाते है और दूसरे लोग ही इनकी सहायता करते है। वृश्चिक लगन बारहवे भाव मे होने से यह अक्सर जादू टोने और इसी प्रकार से कारणो से ठगे भी जाते है इनके जीवन साथी की रुचि भी इन्ही क्षेत्रो मे अधिक होती है।मित्र बनाने के लिये इन्हे इनकी कुम्भ राशि बहुत सहायता देती है तीसरे भाव मे कुम्भ राशि होने से यह अपने प्रभाव से लिखने की कला से कई भाषाओ की जानकारी से बहुत से दोस्तो को बना लेते है और उन्ही दोस्तो के कारण अक्सर घर मे कलह भी होनी मानी जाती है। चौथे भाव मे मीन राशि के होने से इन्हे पहाडो पर जाने और पहाडी धर्म स्थानो से विशेष रुचि होती है,ऊंचे स्थानो पर जाकर यह अपने जीवन के कई क्षेत्र छोड भी सकते है और नये रास्ते अपना भी सकते है। पंचम भाव मे मेष राशि होने के कारण इनकी संतान अक्सर तकनीकी क्षेत्र मे ही विकास करती है कई बार रक्षा सेवा या बडी तकनीक से भी सम्बन्ध बनते देखे जा सकते है। पुरुष संतान अक्सर इकलौती ही होती है,लेकिन पुत्री संतान तीन तक हो सकती है। छठे भाव मे वृष राशि के होने से दूसरी संतान या तो धन वाले क्षेत्र मे अपना नाम करती है या बडे संस्थानो मे अस्पतालो मे या धन से सम्बन्धित कामो कमन्यूकेशन के कामो या कम्पनियों मे अपने को आगे ले जाती है। तीसरी संतान के जीवन के लिये बदे बडे आघात इसलिये भी माने जाते है कि सप्तम से आगे की राशि मौत का भाव माना जाता है अक्सर तीसरे नम्बर की संतान या तो पैदा होते समय या जीवन की पहली सीढी पर या तो परलोक सिधार जाती है या इतनी दूर चली जाती है कि वह अपने परिवार को पीछे घूम कर नही देखती है। धनु लगन के जातको को अपने कार्य काल मे जो भी मकान आदि बनवाया गया होता है वह इन्हे अपने जीवन के आखिरी पडाव मे त्यागना पडता है उसके लिये चाहे धर्म से या कानून से या विदेशी कारणो से या सन्तान की बेरुखी से माना जा सकता है। रहने वाले मकान का नाम अक्सर जीवन साथी के परिवार से जोड कर रखा जाता है या जीवन साथी के परिवार की सहायता मिली होती है।

जीवन साथी का व्यवहार अहम से भरा हुआ होता है और अक्सर उसे पिता का सुख नही मिल पाता है कारण धनु लगन के नवे भाव मे सिंह राशि आती है और इस राशि का प्रभाव सीधा जीवन साथी के नवे भाव मे आने वाली कुम्भ राशि पर आता है,इस राशि का स्वामी पिता को पहले तो अपने परिवार से दूर करता है बात मे वह खुद ही या तो दूर चला जाता है या परिवार मे अकर्मण्य होकर पडा रहता है। आदि बाते धनु लगन के जातको के लिये देखी जाती है।

तुला लगन

इस लगन के होने से कफ़ की मात्रा शरीर मे अधिक होती है। बेलेन्स बनाकर बोलने की आदत होती है,झूठ को भी सत्य बनाना और सत्य को भी झूठ बनाना आता है। जीवन मे जो भी काम किये जाते है वे निश्चित क्षेत्र के लिये सोच समझ कर पहले से ही निर्णय लेकर किये जाते है।तुला राशि शुक्र की राशि है कालपुरुष से जीवन साथी और साझेदार के लिये मानी जाती है पुरुष है तो स्त्री सम्बन्धी और स्त्री है तो पुरुष सम्बन्धी कामुक विचार आजीवन दिमाग मे बने रहने की बात भी मिलती है लेकिन ईश्वर भक्ति की तरफ़ ध्यान लगाने से इस प्रकार की भावनाये दूर हो जायेंगी। आपकी बातचीत की शैली आपको सत्य भाषी प्रस्तुत करती है।बडे बुजुर्गो के प्रति आपके दिल मे जगह होती है,आप उनके लिये आदर भाव प्रस्तुत करने के लिये हमेशा ही आगे रहने वाले है।घर को चलाने के लिये स्त्रियां और पुरुष दोनो ही अपनी अपनी योजना से आगे रहने वाले है। आपकी जो भी कार्य शक्ति है उसके लिये हमेशा ही आप अपने को सम्भाल कर लेकर चलने वाले है।जीवन मे अगर किसी ग्रह की बुरी नजर आपके लगन पंचम और नवम मे नही है तो किसी प्रकार का आक्षेप आप पर लगने की गुंजायस नही मिलती है। साफ़ जीवन जीने की आदत है,किसी से सम्मुख झगडा आदि करने की आदत नही है,लेकिन बिना कारण ही रास्ता चलते बुराई को देखकर बोलने से लोग आप से झगडा कर सकते है। जीवन मे कई बार अचानक ही अच्छी बाते सामने आयेंगी। पानी और पानी वाले क्षेत्रो मे आपका आना जाना रहेगा और तैरना तथा पानी वाले काम करना आपकी रुचि मे होगा। समुद्री सफ़र के लिये आपका मन हमेशा ही बना रहेगा। आपके जो भी संतान होगी उसमे पुत्र आपकी इच्छा के अनुसार काम करने वाले होंगे,वे कठिन से कठिन काम को करने वाले होंगे और सफ़लता भी प्राप्त करेंगे। आपके खुद के लोग ही समय पर शत्रुता का बर्ताव भी करेंगे,इसलिये खुद के पराक्रम को बढाकर और अपनी योग्यता का विकास करना आपके लिये जरूरी होगा। आपकी कोई सहायता मे नही आयेगा,जो भी सहायता मे आयेगा वही आपके लिये किसी न किसी समस्या को खडा करने वाला होगा। पुरुष के लिये स्त्री वाले कारण वाहन वाले कारण स्त्री धन से सम्बन्धित कारण ही क्लेश करने वाले होंगे। कफ़ की शरीर मे अधिकता होने के कारण लिये जाने वाले भोजन आदि से अपच जैसे रोग आपको जल्दी होने की बात मिलती है। शरीर मे कामोत्तेजना अधिक होने के कारण वीर्य और रज की कमी हो सकती है। मांस मदिरा आदि खाने पीने के शौकीन भी हो सकते है अधिक मिर्च मशाले वाले भोजन की तरफ़ आपका ध्यान जल्दी आकर्षित होगा। इस कारण से गले वाले रोग भी हो सकते है। स्त्री के लिये पुरुष और पुरुष के लिये स्त्री वाला सम्बन्ध भी लोक निन्दा का कारण बन सकता है। जल से पैदा होने वाले कारको का तथा खेती जमीन बाग बगीचा आदि से पैदा होने वाले कारको से लाभ की मात्रा अधिक मानी जाती है वाहन वाले कार्य यात्रा वाले कार्य तथा लोगो की भलाई से सम्बन्धित कार्य रास्ता बनाने वाले कार्य जल की उपलब्धि कराये जाने वाले कार्य आप जल्दी से करवा सकते है।

एक स्थान को छोड कर दूसरे स्थान पर बसना भी माना जा सकता है। जिस स्थान पर पैदा होते है वह स्थान एक बार समाप्त हो जाना भी माना जाता है। शिक्षा मे बार बार अवरोध भी आने का कारण मिलता है। पढ कर किये जाने वाले कार्यों मे सफ़लता नही मिल पाती है कार्य को करने के बाद सीख कर किये जाने वाले कार्यों मे सफ़लता मिल जाती है। कारखाना भी स्थापित किया जा सकता है भोजन वाले कार्य भी किये जा सकते है सुन्दर बाग बगीचा या फ़ार्म हाउस वाले कार्य भी किये जा सकते है। इस लगन मे पैदा होने वालो पर विपरीत सेक्स वाले लोग काफ़ी असर डालने वाले होते है। विवाह आदि के लिये अधिक खर्च करना होता है। दिमागी संतुलन के कारण धन कमाया तो जा सकता है और उसे बचाया तभी जा सकता है जब दोस्तो की भलाई वाली आदत और दोस्तो से छल की आदत से बचा जाये।इस लगन मे पैदा होने वाले जातक अपने कुल मे नाम करने वाले होते है वह नाम अच्छा भी हो सकता है,और बुरा भी हो सकता है। उम्र का 32,33,34,36 वां साल बहुत ही चमत्कारिक होता है।

जितनी जल्दी धन को कमाया जाता है उतनी ही जल्दी धन का गायब होना भी माना जा सकता है।उन्नति को देखकर अक्सर लोगो के अन्दर जलन की भावना भी होगी और उनके अन्दर यह विचार आयेगा कि इतनी जल्दी धन को कैसे कमा लिया गया,जरूर ही कोई गलत कार्य से धन कमाया जा रहा है। पास पडौस घर परिवार जान पहिचान वाले लोग मिलने पर तो बहुत ही सहानुभूत दिखायेंगे लेकिन दूर जाकर बुराई करने वाले होंगे।व्यापार करने के लिये मन तो बहुत बनेगा लेकिन साधन होने पर धन नही होगा और धन होने पर साधन इकट्ठे करने का मानस नही बन पायेगा। इस लगन मे पैदा होने वाले आजीवन पढने के शौकीन होते है और बाल की खाल निकालने मे माहिर होते है। धन को कैसे प्रयोग मे लिया जाता है यह आपको पता है,लेकिन खुले हाथ से खर्च करने के समय मे आपको ध्यान देने की जरूरत जरूर होनी चाहिये। अगर दिमाग को खुला रखा गया तो कठिनाई नही आ सकती है। जीवन के 15,22,24,29,31,36,42,44,51 बद्लाव के वर्ष माने जाते है।

Thursday, March 22, 2012

विक्रमी संवत २०६९

विक्रमी संवत की शुरुआत दिनांक 23 मार्च 2012 को सुबह 05:58:00 मे हो रही है,शुरु होने की लगन कुंम्भ है और चन्द्रमा मीन राशि मे है। लगनेश शनि नवे भाव मे है,जनता के घर मे केतु विराजमान है,कार्य के घर मे राहु की स्थिति है.पंचमेश और अष्टमेश बुध वक्री होकर दूसरे भाव मे है,शनि लगनेश भी है और बारहवे भाव के मालिक भी वक्री होकर जनता के भाग्य मे विराजमान है.कार्य और हिम्मत के मालिक मंगल वक्री है।सूर्य मीन राशि मे है।
संवत के फ़ल के अनुसार कुम्भ राशि वाले शरीर और अपने पूर्वजो की मान्यता मे अधिक विश्वास करेंगे,मीन राशि वाले धन और एक काम को छोड्कर दूसरे कामो को पकडने के लिये मानस बनाकर चलेंगे,मेष राशि वाले अपने पराक्रम को शन सम्पत्ति शादी विवाह और सन्तान आदि के लिये अपनी मनोकामना पूरी करेंगे वृष राशि वाले घरेलू कामो की जिम्मेदारी सम्भालने के लिये अपनी योग्यता का परिवचय देंगे अपने व्यापार को करने के लिये भी अपनी योग्यता को प्रस्तुत करेंगे,मिथुन राशि वाले जातक प्रेम प्यार किये गये कार्यों को दुबारा करने से तथा मनोरंजन की दुनिया मे अपने नाम को कमाने लग जायेंगे कर्क राशि वाले कर्जा दुश्मनी बीमारी पिता की तकलीफ़ो और मानसिक दिक्कत मे रह सकते है,सिंह राशि वाले कहने को तो साझेदारी मे काम कर सकते है लेकिन दिमाग मे कनफ़्यूजन रहने और घर मे मौत जैसे सन्नाटे से दिक्कत उठा सकते है खुद काम करने वाले स्थान मे ही कई प्रकार के इन्फ़ेक्सन भी समझ मे आ सकते है। कन्या राशि वाले अपमान जोखिम मृत्यु जैसे कष्ट भोग सकते है,पारिवारिक जिम्मेदारियों भी कई प्रकार की दिक्कत का सामना करना पड सकता है किसी पारिवारिक व्यक्ति की हानि भी हो सकती है,तुला राशि किसी प्रकार की हाथ बढाकर ली गयी आफ़त को गले लगा सकते है अदालती कार्यों मे या पारिवारिक अथवा पैत्रिक जायदाद के चक्कर मे भी जा सकते है किसी प्रकार का मान हानि का कारण भी बन सकता है। वृश्चिक राशि के जातक कहने को तो कार्य बहुत अधिक करेंगे लेकिन अक्सर उनके कार्यों से राज सम्बन्धी परेशानी आ सकती है धनु राशि वाले मित्रो की वाहवाही मे समय को गुजारेंगे और उनके लिये जो भी कहा जायेगा वह केवल आदतो के अनुसार अपने को कवित्त रूप से प्रस्तुत करने के लिये अपनी कार्य योजना को प्रस्तुत करेंगे घर मे शादी विवाह का माहौल भी बन सकता है,मकर राशि वाले घूमने फ़िरने मे और व्यय करने मे सबसे अधिक आगे रहेंगे इस बार उनका एक स्थान पर रुकना और सीमित खर्चा करने का स्वप्न न के बराबर ही होगा।
देश मे दक्षिणी भाग मे पांच राज्यों मे राजनीति उठापटक बनी रहेगी,पूर्व भाग मे बडे बडे कारण उभर कर समाने आयेंगे और पुराने मामले बहुत ही बडे रूप मे उठाये जायेंगे। किसी बडे नेता की आकस्मिक मौत का भी समाचार पूरे देश मे एक प्रकार का तनाव पैदा करने वाला होगा। शमशानी शांति के लिये पूर्व के हिस्सो को भी माना जायेगा। उत्तर मे मिशनरी कार्य बहुत अधिक पैमाने पर होंगे और किसी प्रकार के विदेशी कालेजों के प्रति या आवासीय शिक्षा का रूप भी दो लोगो के द्वारा दिखाई देगा,सुप्रीम कोर्ट जैसे न्याय क्षेत्रो मे वाद विवाद की अधिकता से दो जज अपने फ़ैसलो को बहुत ही महत्व पूर्ण रूप मे दे सकते है,किसी सर्वोच्च पदाधिकारी की नियुक्ति के लिये दक्षिण अपनी पूरी ताकत को लगा देगा। कमन्यूकेशन के मामले  मे जो लोग धर्म का कार्य करते थे वे ही धर्म की आड मे अपने प्रकार से लूटने का काम करेंगे और इस प्रकार से धर्म ज्योतिष आदि से लोगो का विस्वास उठ जायेगा।

Saturday, March 17, 2012

मानसिक इच्छाओं की पूर्ति का त्रिकोण

जीवन एक पहेली है इसे सुलझाने के लिये कई प्रकार के कारक प्रयोग मे लाये जाते है ज्योतिष भी एक प्रकार से कारक ही है जिससे जीवन की गुत्थी को सुलझाने के लिये प्रयास आदि काल से ही चले आ रहे है। कोई भी इस कारक मे सफ़ल नही है,कितना ही बडा विद्वान हो लेकिन किसी न किसी स्थान पर वह अटक ही जाता है। हम सब अपने अपने अनुसार प्रयास करते है कभी सच और कभी झूठ का सामना करना ही पडता है। मैने पिछले पच्चीस साल के अनुभव मे देखा है कि एक ग्रह लाखो कारण पैदा कर देता है,कारक के अभाव मे अगर कोई प्रश्न करना चाहता है तो वह एक गल्ती यह करता है कि बिना कारक के कारण बन ही नही सकता है,भौतिकता मे कैसे का जबाब दिया जा सकता है लेकिन क्यों का जबाब प्राप्त करने के लिये हर कोई अपनी अपनी राय देगा अनुभव को प्रस्तुत करेगा लेकिन क्यों का जबाब मिलना मुश्किल हो जाता है। प्रस्तुत कुंडली वृष लगन की है और प्रश्न कुंडली भी है,आज के ही ग्रह इस कुंडले मे लिखे गये है। प्रश्न है कि जातक को सफ़लता के लिये किस क्षेत्र मे जाना चाहिये ? मानसिक इच्छा के लिये चौथे भाव को देखना चाहिये या मन से मन का कारण जानना चाहिये ? मन का भाव चौथा है मन के सूक्ष्म विचार का भाव सप्तम है यानी चौथे से चौथा,उससे भी सूक्ष्म मे जाना है तो दसवा भाव और उससे भी सूक्ष्म मे जाना है तो लगन को देखना पडेगा लेकिन इससे अधिक सूक्ष्म मे जाने के लिये कोई रास्ता नही बचता है ! मतलब यही है कि एक भावना को जानने के लिये केन्द्र को खंगालना जरूरी है,बिना केन्द्र के खंगाले भावना का अर्थ सामने नही आ सकता है। लगन मे केतु है,चौथे भाव मे मंगल वक्री है सप्तम मे राहु है दसवा खाली है। लगन को राहु देख रहा है चौथे भाव को गुरु का बल मिला है,दसवे भाव को मंगल वक्री देख रहा है यह द्रिष्टि बल माना जाता है। सबसे पहले मन के भाव के मंगल वक्री की सिफ़्त को समझते है। मार्गी मंगल खुद के मन मे जलन पैदा करता है और उस जलन का परिणाम यह होता है कि कोई अपनी बात को कहना चाहता है कोई समझाना चाहता है लेकिन मन की जलन अगर शांत नही है तो समझाने वाले और कहने वाले पर भी झल्लाहट आजाती है,यही कारण क्लेश का कारण बनता है लेकिन जब मंगल वक्री होता है तो वह बजाय खुद को मन की जलन झेलने के दूसरो के मन की जलन को जानने की श्रेणी मे आजाता है। कायदे से मंगल बारहवे भाव का भी मालिक है और सप्तम का भी मालिक है,सप्तम जीवन साथी का भी है और साझेदार का भी है,बारहवा यात्रा का भी है तो खर्च का भी है। लेकिन मन का पैदा होना बारहवे भाव से ही है। कारण जैसे शरीर का पैदा होना नवे भाव से है तो मन का पैदा होना भी चौथे भाव के नवे भाव से ही है। यह भाव माता का भी है इसलिये माता के पिता यानी नाना का भाव भी बारहवा है,पिता के पिता का भाव यानी दादा का भाव नवे से नवा यानी पंचम भाव है। परदादा यानी दादा के पिता का भाव लगन बन जाती है। श्रेणी को सुलझाने के लिये वह उलझती ही चली जाती है लेकिन जब कारक के लिये ही जानने का उपक्रम चलता है तो कारक के स्थान को गौढ रूप से देखना पडता है।

गुरु और शुक्र बारहवे भाव मे है और गुरु की पूर्ण द्रिष्टि मंगल पर भी है और अष्टम स्थान पर चन्द्रमा पर भी है। गुरु आष्टम भाव का भी मालिक है और लाभ भाव का भी मालिक है। गुरु चाहता है कि वह लाभ को अष्टम से कैसे ले? या लाभ को अष्टम मे कैसे ले जाये ? या लाभ और अष्टम को चौथे भाव में कैसे स्थापित करे? यह त्रिकोण भी पूरा हो जाता है,चौथे मे मंगल अष्टम मे चन्द्रमा और बारहवे भाव मे गुरु और शुक्र,जब लगन का मालिक ही गुरु के साथ है तो गुरु को शरीर का लाभ भी मिला हुआ है,शुक्र शरीर का भी मालिक है और छठे भाव का भी मालिक है। लेकिन शरीर पर केतु ने कब्जा किया हुआ है,छठे भाव मे शनि वक्री ने कब्जा किया हुआ है,यानी शुक्र को शरण गुरु की ही लेनी पडेगी,उसे लगन से भी फ़ायदा नही मिलने वाला है और छठे भाव से भी फ़ायदा नही मिलने वाला है। शुक्र को छठे भाव का वक्री शनि भी देख रहा है,शनि मार्गी शरीर बल से काम लेने वाला होता है और वक्री शनि बुद्धि बल से काम लेकर अपना नाम करता है। शनि की नजर में अष्टम का चन्द्रमा भी है,अगर शनि मार्गी होता तो वह इस चन्द्रमा को फ़्रीज कर सकता था,लेकिन वक्री होने से उसने अष्टम में पडे चन्द्रमा को भी कुये से पानी निकालने जैसा बल दे दिया है। इसी प्रकार से शुक्र जो बारहवे भाव में उच्च रूप से विराजमान है को बल देने के लिये शनि अपनी युति को भी प्रदान कर रहा है इधर गुरु को भी शनि ने छठे भाव से बल दिया है,गुरु ने भी शनि को अपना बल दिया हुआ है। मन का कारक चन्द्रमा भी है मन की स्थिति मे दूसरे भाव को भी देखना पडेगा कारण चन्द्रमा दूसरे भाव को भी देख रहा है,लेकिन दूसरे भाव का मालिक बुध है जो लाभ भाव मे वक्री होकर सूर्य के साथ विराजमान है।बुध पर असर देने वाले ग्रहो मे सूर्य भी है और सप्तम मे विराजमान राहु भी है। राहु मृत्यु अपमान जोखिम रिस्क जासूसी शमशान मृत्यु स्थान मौत के कारण तथा गुप्त रूप से जानने वाली बातो धरती के अन्दर की जानकारी रखने वाली राशि वृश्चिक मे विराजमान है। मंगल की द्रिष्टि राहु पर पड रही है। मंगल की द्रिष्टि लाभ भाव मे भी सूर्य और वक्री बुध पर है। बुध का स्वभाव कहने सुनने और कमन्यूकेशन करने से होता है लेकिन जब यह मार्गी होता है तो वह खुद के लिये माना जाता है वक्री होने पर यह अपना असर दूसरो को देने वाला होता है। अधिकतर ब्रोकर लोग वक्री बुध के समय दूसरो को फ़ायदा दे जाते है और जब यह मार्गी होता है तो वे खुद फ़ायदा उठाने लगते है।मंगल का स्वभाव कन्ट्रोल करने का होता है वह अपने स्थान पर अपने से चौथे स्थान पर अपने से अष्टम स्थान को कन्ट्रोल करता है। इस प्रकार से आपने देखा कि सभी ग्रह कैसे आपस मे जुड कर अपना अपना बल एक दूसरे के द्वारा एक निश्चित स्थान पर दे रहे होते है।

सबसे अधिक बल मंगल को मिला हुआ है। चौथे भाव का मंगल दुर्घटना को भी देता है,मारकाट के लिये भी माना जाता है,आग लगना डकैती पडना,वाहन से दुर्घटना होना,घर मे झगडा हो जाना,सार्वजनिक स्थान मे तोडफ़ोड होना,जनता का उग्र हो जाना,आदि कारणो के मामले मे जाना जाता है। लेकिन मंगल पर अगर गुरु की द्रिष्टि होती है तो वह बजाये नुकसान देने के फ़ायदा देने वाला बन जाता है। गुरु चाहे साथ होता चाहे दसवे भाव मे होता या बारहवे भाव मे बैठ कर मंगल को बल दे रहा है बल देने का कारण मै पहले ही बताकर आया हूँ कि मृत्यु सम्बन्धी कारणो और लाभ के मामले मे ही गुरु मंगल को बल दे रहा है।मंगल की वक्री पोजीशन से यह मंगल खुद के लिये फ़ायदा नही देने के लिये भी जाना जा सकता है यह भी मै पहले आपको बताकर आया हूँ कि मंगल मार्गी खुद के लिये और मंगल वक्री दूसरो को ही असर देने वाला होता है। यह सहायता मंगल जिन कारको को देने के लिये माना गया है उनके अन्दर स्थान बल के अनुसार घर मकान वाहन दुकान व्यवसाय स्थान सुरक्षा के प्रति दूसरो को बल देने के लिये माना जा सकता है,इसके बाद सप्तम मे राहु के होने पर और उसे कन्ट्रोल करने की शक्ति के द्वारा अस्पताली कारण मृत्यु होने के बाद मिलने वाली सहायताओं के कारण किसी बडी बीमारी के होने के कारण जीवन साथी के साथ अपघात होने के कारणों मे फ़ायदा देने के लिये भी अपना असर दे रहा है। इसके अलावा एक बात और भी आपको बताना चाहूंगा कि दक्षिण भारत की नाडी ज्योतिष मे एक पांच नौ को एक ही भाव से देखा जाता है इस प्रकार से मंगल की युति चन्द्रमा से भी है और चन्द्रमा का बल भी मंगल को मिला हुआ है,चन्द्रमा का स्थान न्याय और धर्म तथा विदेश यात्रा आदि के कारणो वाली राशि मे होने के कारण तथा इन कारको का मृत्यु स्थान मे होने के कारण इस भाव से मानसिक सम्बन्ध रखने के कारण मंगल इन कारको को भी साथ लेकर चलने वाला है। मंगल का सप्तम द्रिष्टि से दसवे भाव को देखने पर और दसवे भाव पर शनि की पंचम द्रिष्टि होने पर (नाडी ज्योतिष से) केतु जो जातक के रूप मे है उसे कार्य करने के लिये अपनी शक्ति देने के लिये भी माना जा सकता है।

इस स्थान पर केतु की औकात का पता चलता है कि जातक जो केतु यानी एजेन्ट के रूप मे बीमा से सम्बन्धित काम करना चाहता है,वह दुर्घटना बीमा मृत्यु के बाद मिलने वाली सहायता का बीमा अस्पताली सम्बन्धी कारणो के लिये किये जाने वाले बीमा,घर की सुरक्षा के लिये किया जाने वाला बीमा,व्यवसाय स्थान के लिये किया जाने वाला बीमा वाहन आदि के लिये किया जाने वाला बीमा और छठे भाव मे शनि के होने से एक तो कार्य करने के लिये किस्त आदि को वसूल कर (वक्री होने पर कभी कभी,मार्गी होने पर हमेशा) कार्य करने के लिये अपनी बुद्धि से लोगो को समझा कर जो लोग इस बात से डरते है (अष्टम का चन्द्रमा) के लिये भी अपनी सहायता को करने के लिये माना जा सकता है। 

Monday, March 12, 2012

भूत विश्लेषण

गुरु जीव का कारक है और सूर्य आत्मा है,इस बात से सभी परिचित है। जीव को बल देने के लिये जब भावानुसार ग्रह अपनी अपनी शक्ति से पूर्ण करते है तो जीव गुरु के रूप मे अपनी औकात को बनाता चला जाता है। जिन्दा रहने तक गुरु की स्थिति है और मरने पर शनि की स्थिति का बनना सत्य है.जब शनि राहु के साथ हो तो और भी सत्यता का प्रकट होना माना जाता है और जब मंगल भी अपनी युति शनि को दे दे तो मृत धारणा अपनी गर्मी को प्रकट करने के लिये भी गुप्त रहस्य को उजागर करने के लिये जानी जा सकती है। वृश्चिक लगन के लिये एक धारणा बहुत ही शक्तिशाली बन जाती है वह धारणा अक्सर रहस्य खोजने और रहस्यों से पर्दाफ़ास करने की भी होती है। इस लगन वाले जातक जब और अपनी धारणा को प्रकट करने मे समर्थ हो जाते है जब गुरु उनके अष्टम मे जाकर विराजमान हो जाये। गुरु जिस भाव मे होगा और जिस राशि मे होगा गुरु पर जो भी ग्रह अपना अच्छा बुरा असर दे रहे होंगे वही कारक गुरु के लिये बढाने वाले हो जायेंगे और गुरु उन्ही कारको मे अपने प्रयासो को जारी रखने सम्बन्ध बनाने और ज्ञान के क्षेत्र मे विस्तार के लिये माना जायेगा गुरु के आगे और गुरु के पीछे के ग्रह भी गुरु को जल्दी बल देने के लिये अपनी अपनी शक्ति का प्रयोग करना शुरु कर देंगे। किसी भी ग्रह से आगे राहु और केतु उस ग्रह से लेना शुरु कर देते है और ग्रह के पीछे के राहु केतु उस ग्रह को देना शुरु कर देते है,लेकिन जन्म के समय के राहु केतु हमेशा ही अपनी शक्ति से लेना और देना जारी रखते है। यथा ब्रह्माण्डे तथा पिण्डे कहावत के अनुसार जो ब्रह्माण्ड मे हो रहा है वह शरीर के अन्दर भी हो रहा है केवल पहिचानने की कला जरूरी है। जितने भी इतिहासकार हुये है उन्होने अपनी बुद्धि से उन रहस्यों को प्रकट करने की कला को जाहिर किया है जो वास्तव मे काफ़ी समय तक छुपे थे और मानव के लिये एक प्रकार से रहस्य बने हुये थे लेकिन इतिहासकारो ने अपनी बुद्धि का प्रयोग करने के बाद उन गुत्थियों को सुलझा लिया जो भौतिकता से परे भी थे और साधारण आदमी के लिये जानने के लिये पहुंच से भी दूर थे। यह कुंडली एक बडे इतिहासकार की है,गुरु जो सम्बन्धो का कारक है और वह वृश्चिक लगन से दूसरे तथा पंचम भाव का स्वमी होकर अष्टम मे विराजमान हो गया है तथा गुरु ने अष्टमेश तथा लाभेश बुध से आपस मे स्थान परिवर्तन का प्रभाव भी दिया है। जो इतिहासकार होते है उनकी बुद्धि मे सबसे पहले भूत प्रेत जिन्न बेताल और भूत के प्रति जिज्ञासा जन्म जात होती है,वे सबसे पहले उन्ही शक्तियों को जानना चाहते है जो समाज मे बखान की जाती है लेकिन वे देखी नही जा सकती है। देखना और समझना दोनो ही अपने अपने स्थान पर बहुत बडे भेद से समझी जा सकती है। अक्सर नवे केतु के लिये यह कहा जाता है कि व्यक्ति के प्रति वह केवल सर्वधर्मी की उपाधि देता है और समाज पिता और परिवार के जो भी कार्य होते है वह अपने स्तर से पूरा करने की कोशिश करता है लेकिन अष्टम गुरु से जब वह आगे के भाव मे यानी नवे भाव मे होता है तो वह गुरु से ज्ञान और सम्बन्ध के बारे मे ग्रहण करता रहता है तथा एक शिक्षा के रूप मे समाज दुनिया को बताता रहता है। नवा भाव ऊंची शिक्षा के लिये भी जाना जाता है और जो भी ऊंची शिक्षा प्राप्त की जाती है वह गुरु के द्वारा दिये गये प्रभाव से ही सम्बभ होती है अगर गुरु को परे कर दिया जाये तो ऊंच शिक्षा का प्रभाव नही बन पाता है,कारण इस भाव का मालिक कालपुरुष की कुंडली के अनुसार गुरु ही है। सतह के भाव को चौथा भाव कहा जाता है सतह से नीचे के भाव को अष्टम मे देखा जाता है और सतह से ऊपर के भाव को बारहवा भाव कहा जाता है,यानी जमीन पर जमीन के नीचे और जमीन के ऊपर। इस लगन मे गुरु का स्थान जमीन के नीचे है और जमीन के नीचे से मतलब होता है अवशेषों के बारे मे जानकारी जो हो चुका है,वह भी इसी भाव मे देखा जाता है जो होना है वह बारहवे भाव से और जो हो रहा है वह चौथे भाव से देखा जा सकता है। क्यों हुआ इसका पता आठवा भाव ही बतायेगा और जो आगे होगा उसके लिये बारहवा भाव ही प्रकट करेगा। जितने भी विद्वान ज्योतिषी है वे सबसे पहले अष्टम के अनुसार अपनी गणना को करना शुरु करते है और जो प्रभाव पिछले समय तक रहे है और उन प्रभावो ने जातक को जो फ़ल दिये है वह अष्टम से मिलते है तथा जो जातक के साथ वर्तमान मे हो रहे है और जातक को जो परेशानी है वह इसी भाव से देखे जा सकते है। तथा जातक के साथ भविष्य मे जो होगा वह बारहवे भाव के स्वामी से ही देखा जा सकता है।

इसी प्रकार से पिछले और अगले जन्म के बारे मे देखा जा सकता है पीछे का जन्म अष्टम से देखा जाता है अगला जन्म बारहवे भाव से तथा चलने वाला जन्म चौथे भाव के आधीन होता है। कल जो सोचा था वह अष्टम की बात थी कल के लिये जो सोचा जायेगा वह बारहवे भाव की बात होगी और अभी जो दिमाग मे चल रहा है वह चौथे भाव की बात होगी। यह भे माना जाता है कि इतिहास को देखकर चलने वाले समस्या का ख्याल रख कर चलते है लेकिन आज की सोच कर कल की देखने वाले अक्सर बरबाद ही होते देखे गये है। यह बात समझने के लिये ही इतिहास का देखना जरूरी होता है,जो इतिहास बताता है वह सत्य की घटना का वर्णन करता है लेकिन जो आगे भविष्य के बारे मे बताते है उनके बताये गये भेद मे कुछ अन्तर भी हो सकता है। इस कुण्डली मे गुरु की स्थिति अष्टम मे है और गुरु मिथुन राशि का है गुरु की नजर दसवे भाव मे भी है और दूसरे भाव मे भी है और चौथे भाव मे भी है। गुरू अपनी पूरी योग्यता का मालिक अष्टम से दे रहा है,जातक अपने द्वारा जो भी भूत के बारे मे सीखा है या उसे जो भी मालुम हुआ है वह पूरी तरह से उसे बखान करने की कोशिश करेगा वह जो भी इशारा या वर्णन करेगा वह अक्षरस: सत्य की तरफ़ ही होगा कारण गुरु झूठ जब तक नही बोलता जब तक उसके ऊपर राहु का प्रभाव नही हो। राहु कनफ़्यूजन देकर झूठ बोलने के लिये अपनी गति को प्रदान कर देगा तो गुरु सत्य से परे चला जायेगा। लेकिन जब गुरु सत्य से परे होगा तो गुरु की सामान्य स्थिति नही होगी वह किसी न किसी कारण से अटकने लगेगा,जैसे गुरु सांस लेने की गति प्रदान करता है सांस लेने का मुख्य स्तोत्र हवा होती है अगर हवा के अन्दर राहु के विषाणु होंगे तो वह गले मे जाकर खरास पैदा कर देंगे वह खरास की जाने वाली बात को अटकाने लगेगी यानी जो भी बात की जायेगी वह खांस कर की जायेगी,अक्सर जो लोग झूठ बोलते है उनके बारे मे भी देखा होगा कि वह बात करते हुये अटक जाते है और वही अटकन बता देती है कि सामने वाला झूठ बोलने की या बात बनाकर बोलने की चेष्टा कर रहा है। गुरु को अगर अनुभव की बातो से जोड कर देखा जाये तो भी एक बात देखने को मिलती है कि झूठ बोलने वाला व्यक्ति अपने किसी न किसी अंग को खुजलाने लगेगा,यह भी राहु का प्रभाव माना जाता है। एलर्जी के रोग तभी पैदा होते है जब जातक के सम्बन्ध उसकी जलवायु से विपरीत हो जाते है,वह जलवायु चाहे खून के विपरीत हो या रहन सहन से दूर हो। जातक का गुरु कर्म भाव को देख रहा है जहां सिंह राशि है इस राशि का मालिक गुरु से दसवे भाव मे है और बुध के साथ है,बुध ने गुरु से राशि परिवर्तन किया हुआ है,जब गुरु इतिहास की बाते बताने से दूर होने लगता है तो उस पर बुध हावी हो जाता है वह बुध पराशक्तियों और ज्योतिष की बाते करने लगता है। गुरु जो शिक्षा को देने वाला है वह बुध के सामने आते ही बोलने और कथन करने तथा ज्योतिष की बाते करने के लिये अपने को आगे लाने लगता है।गुरु सोचने का मालिक है समझने का मालिक जबकि बुध का स्वभाव गणना करने का एक प्रकार से एक दूसरे की बात को पहुंचाने का कारक भी होता है। यही गुरु जब धन भाव से अपनी युति को जोड लेता है और खुद भी धन भाव का मालिक होता है तो वह केवल किसी भी काम को धन से तौल कर देखने लगता है। गुरु जो वृश्चिक राशि के धन भाव का मालिक है और धनु राशि जो न्याय धर्म और कालेज शिक्षा की कारक है से गुरु अपने जीवन यापन के लिये धन को प्राप्त करने का कारण सोचने लगता है। लेकिन गुरु का सम्बन्ध अपने नवे स्थान यानी चौथे भाव मे शुक्र के साथ भी है। गुरु जो महानता का कारक है और शुक्र जो भौतिकता का कारक है से सम्बन्ध बन जाने से वही गुरु ऐश्वर्य की तरफ़ देखने की बात भी करता है और मैने जो पहले कहा है कि चौथा भाव वर्तमान जीवन का कारक है तो वही गुरु जो पहले के समय मे धर्म और आध्यात्मिकता के मामले मे गूढ जानकारी देने और खोजने के लिये माना जाता था वही गुरु अपनी युति से गूध बातो की जानकरी से भौतिकता मे जाकर राज करने की बात भी सोच सकता है।

शुक्र कुंड्ली मे सप्तम का मालिक भी है और बारहवे भाव का मालिक भी है यानी जीवन साथी का मालिक भी है और आराम के साधन जुटाने तथा अपनी औकात को भविष्य मे देखने के लिये भी अपनी सोच को रखने वाला है इसी शुक्र से सम्बन्ध होने के कारण जातक का वर्तमान जीवन अपने जीवन साथी के आधीन भी है। साथ ही आराम के साधन और दूसरी दुनिया की सोच को अपने साथ मिला लेने से वह केवल पिछली ऐतिहासिक जानकारी के लिये ही माना जा सकता है अगर इस गुरु को पिछले जन्म के लिये देखा जाये तो मिलता है कि पिछले जन्म मे भी जातक पुरुष शरीर मे ही था,दुनिया के नक्से मे मिथुन राशि का प्रभाव अलास्का आदि देशो की तरफ़ इशारा करता है तो गुरु का स्थान इसी प्रकार के ठंडे देशो की तरफ़ था। पिछले जन्म का समय अगर देखा जाये तो गुरु का स्थान लगन के अनुसार आठवे भाव मे आते आते 815 साल लग गये है,इस प्रकार से जातक का पिछला जन्म जातक के जन्म से आठ सौ पन्द्रह साल बाद हुआ है। गुरु का स्थान लगन मे रहने पर वृश्चिक राशि मे था इसलिये इस प्रकार के गुरु के कार्यों या तो तकनीकी कार्यों का होना माना जाता है या यही गुरु हेंडीक्राफ़्ट वाले कामो को करने के लिये माना जा सकता है। लगन से गुरु का अष्टम तक जाना धन हिम्मत सुख शिक्षा बीमारी संसार की लडाई इन सभी से वह पिछले समय मे जूझ चुका है इसलिये वह सच्चाई और रहस्यों के गूढ अर्थ को जानना चाहता है,वह पिछले समय मे तकनीकी बुद्धि को रखने वाला था इसलिये उसे अपनी तकनीकी दिमाग से ही सभी बाते जानने की इच्छा भी होनी मानी जा सकती है। जातक अपने दिमाग से पिचले अनुभव के आधार पर जान सकता है कि आगे क्या होने वाला है,कारण जो भी आगे के कारण जाने जाते है वह इतिहास के अनुभव पर भी देखे जाते है और ग्रह गणित और ज्योतिष तथा पराशक्तियों की सहायता से भी देखे जाते है,जातक जीवन के लिये कुछ इस प्रकार की सोच को रखता है कि वह एक भले व्यक्ति की तरह से देखा जाये। यह पिछले जन्म की धारणाओ और अनुभव के आधार पर ही कहा जा सकता है। अक्सर इस प्रकार का पिछला जन्म आगे के लिये जो सोच देता है वह सोच असहाय और बच्चो के भविष्य के विकास की सोच को रखता है,अगर जातक से कहा जाये कि वह किसकी सहायता करेगा तो वह फ़ौरन उत्तर देगा कि बुजुर्गो की सहायता और बच्चो के आगे बढने मे सहायता करना ही उसकी सोच है। इस जीवन मे आने का मतलब ही जातक के लिये माना जा सकता है कि जो सबसे नीचे के तबके के लोग है,जो हमेशा से गंदगी मे पडे रहे है उनकी सहायता करने के लिये जातक का जन्म हुआ है। वह अपनी सिद्धान्तो की दुनिया के बल पर लोगो की  सहायता भी करेगा और जो गूढ बाते है उनकी जानकारी भी प्राप्त करेगा। यह बाते पढने और सुनने मे एक प्रकार से कपोल कल्पना का आभास ही दे सकती है लेकिन इनकी सत्यता के लिये समझने के लिये उसी प्रकार से समझना जरूरी है जैसे एक शरीर केवल अपनी सीमा तक ही काम करने वाला है और जब सीमा समाप्त हो जाती है तो शरीर तो वही रहता है लेकिन वह काम नही कर पाता है। भूत की जानकारी ही इतिहास की जानकारी है जिसे इतिहास आता है वह वर्तमान को समझ कर भविष्य की कल्पना करने के बाद सुखी रह सकता है,जो आज की जिन्दगी को जीकर कल के सपने देखता है वह कल का सुख नही देख सकता है।

जन्म तारीख और नाम

गाजियाबाद के सुनील भाटी का जन्म 7-12-1980 को हुआ है,उनकी जन्म तारीख और नाम के अक्षरो मे समानता के बारे मे जानना है। वैसे जन्म कुंडली के अनुसार उनकी राशि वृश्चिक है लेकिन बोलता नाम सुनील है,जो उनके घर वालो ने किसी ने रखा होगा,लेकिन नाम जब चल गया तो यह माना जाता है कि नाम प्रकृति ने उसी प्रकार रखा है जैसे प्रकृति ने इस धरती पर जन्म दिया है। लेकिन गोचर से जिस भाव से राहु गुजरता है उस भाव के लिये मनुष्य के अन्दर कनफ़्यूजन पैदा ही कर देता है। वर्तमान मे उनके गोचर से भी राहु का गोचर तीसरे भाव मे है और सूर्य चन्द्र बुध के ऊपर अपना असर दे रहा है,तीसरे भाव का बुध भी नाम के लिये अपनी गणना की सूक्ष्म जानकारी चाहता है और जन्म समय का चन्द्रमा भी इस बात की टेन्सन दे रहा है कि क्या कारण है जो काम करने के बाद भी सफ़लता नही मिल रही है जहां भी जाते है जो भी काम करते है वह काम ही या तो मिलता नही है और मिलता भी है तो एक साथ मे दस आफ़ते और सामने आती है। इसी के सात सात गूढ बातो को जानने के लिये भी दिमाग चलता रहता है।

साधारण रूप से हिन्दी अक्षरो का महत्व भी बहुत अधिक है,कचटतप यह पांच कारक व्यंजनो के है और मात्रा तथा य से ज्ञ तक के अक्षर आपस मे मिले हुये है,मात्रा हमेशा शक्ति को दर्शाती है जबकि य से ज्ञ तक के अक्षर विभिन्न कारको को आपस मे मिलाने वाले होते है। भारतीय तिथि गणना को अंग्रेजी तारीख के साथ मिलाने मे दिक्कत भी होती है और जो नतीजा सामने आता है वह कभी कभी मिल जाये तो ठीक है लेकिन वह अक्सर मिलता नही है। हिन्दी गणना के अनुसार सुनील का जन्म 15-9-2037 यानी संवत दो हजार सैंतीस मे अगहन के महिने की अमावस्या को जन्म हुआ है। इस युति के द्वारा गणना करने पर कचटतप व्यंजन और मिश्रित प्रणाली के साथ मात्रा का भेद निकालने पर मिश्रित में पांचवां अक्षर है,पर लगी हुयी मात्रा स्वर श्रेणी मे पांचवी मात्रा है, अक्षर त वर्ग का पांचवां अक्षर है.और अक्षर य मिश्रित श्रेणी का तीसरा अक्षर है.इस प्रकार से 5+5+5+3=18 का जोड मिलता है,यानी कुल जोड 9 है.अगर भारतीय तिथि को भी जोडा जाये तो 1+5+9+2+0+3+7=27=9 का ही जोड मिलता है इस प्रकार से अगर अंग्रेजी से मिलाते है तो सुनील और तारीख मे भिन्नता मिलती है लेकिन हिन्दी तिथि से मिलाने पर सटीकता भी मिलती है साथ ही चन्द्रमा सूर्य लगनेश बुध वृश्चिक राशि मे है जिसका स्वामी मंगल है,और संख्या 9 का भी स्वामी मंगल है से समानता का प्रभाव मिलता है।

Saturday, March 10, 2012

सूर्य और उसके फ़ल

सूर्य ब्रह्माण्ड की आंख बताई जाती है। यह प्रथम भाव मे उच्च का फ़ल देने वाला होता है तो सप्तम मे नीच का फ़ल देने वाला होता है। उच्च का फ़ल जातक के अपने अहम से सम्बन्ध रखने वाला होता है जबकि सप्तम का फ़ल जातक के विरोधी का अहम वाला फ़ल देने के लिये जाना जाता है। सूर्य दूसरे भाव मे जाकर सरकार से फ़ायदा देगा तो अष्टम मे जाकर सरकार को फ़ायदा देने वाला बन जायेगा। तीसरे भाव का सूर्य सहयोगी बन जायेग तो नवे भाव मे जाकर विरोध करना शुरु कर देगा,चौथे भाव मे जाकर राजकीय सुख को देने वाला होगा तो दसवे भाव में राज को सुख देने वाला बन जायेगा,पंचम मे जाकर राज्य की प्राप्ति देगा तो ग्यारहवे भाव मे जाकर राज्य को हरण करने वाला बन जायेगा। इसी तरह से छठे भाव मे जाकर राजकीय दुख देगा तो बारहवे भाव मे जाकर राजकीय सुख देने के लिये अपनी युति को प्रदान करने लगेगा। चन्द्रमा के साथ पहले भाव मे होगा तो माता पिता के साथ रहने वाला माना जायेगा और सप्तम मे होगा तो जीवन साथी या साझेदार की राजनीति से घर मे ही विद्रोह करवाने वाला होगा दूसरे भाव मे चन्द्रमा के साथ होगा तो जनता से सरकारी सम्बन्ध होने के कारण रोजाना की ऊपरी कमाई करवायेगा लेकिन अष्टम मे जाकर राजकीय कमाई को जनता मे वितरण करने वाला बना देगा,तीसरे भाव मे चन्द्रमा के साथ होगा तो राज्य और सरकार दोनो ही हिम्मत देने वाले बन जायेंगे और नवे भाव मे जाकर राज्य और सरकार दोनो ही विपरीत प्रभाव देने लगेंगे,चौथे भाव मे जाकर सूर्य और चन्द्र दोनो सुख के कारक बन जायेंगे तथा सरकार और जनता का प्रिय बना देंगे और जब वही दोनो दसवे भाव मे होंगे तो जनता और सरकार के काम करने के कारण तथा हर काम को समय पर पूरा नही करने के कारण समय ही नही मिलेगा साथ मे बदनामी भी मिलने लगेगी। पंचम भाव मे राज्य को देगा मनोरंजन के विभाग सौंपेगा तो ग्यारहवे भाव मे जाकर राज्य और मनोरंजन को राजकीय लोगो के लिये करना पडेगा,छठे भाव मे जाकर सरकारी चाकरी करवायेगा और रोजाना के कामो के अन्दर मानसिकता को आघात देगा तो बारहवे भाव मे जाकर वह मानसिकता को आगे बढाने वाला होगा और ऊपरी पहुंच को भी बनाने मे मदद करेगा। सूर्य चन्द्रमा के साथ पहले भाव मे मंगल के होने से घर विरोधी और अपमान को कन्ट्रोल करने वाला बना देगा तथा सप्तम मे युति होने के कारण इन्ही कारणो में नीचा दिखाने का भी काम करेगा और विरोधी के द्वारा कार्य अवरोध मे किये जायेंगे शरीर को बन्धक बनाकर रखना होगा तथा भोजन और धन आदि पर अंकुश लगा रहेगा। दूसरे भाव मे होने पर धन और परिवार में सरकारी सहायता भी मिलेगी तथा पिता माता छोटी बहिन का साथ भी होगा और समय पर सहायता भी मिलती रहेगी लेकिन अष्टम मे जाने पर ह्र्दय पर अधिक वजन होने के कारण आघात भी होगा बदनामी भी होगी और जीवन साथी के लिये भी किसी न किसी प्रकार का कष्ट बना रहेगा। तीसरे भाव मे होने से खुद को ही अपने परिवार के लिये हिम्मत जुटानी पडेगी और जो भी कार्य किये जायेंगे उसके अन्दर लोगो का दखल भी होगा लोगो की राजनीति भी होगी और किये जाने वाले कार्यों का श्रेय दूसरे ले जायेंगे,यही बात नवे भाव मे जाकर मुकद्दमा केश न्याय के लिये भागना पारिवारिक रंजिस से परेशान रहना होने लगेगा। चौथे भाव मे उन्नत भोजन और रहन सहन को प्राप्त करवायेगा घर के अन्दर सुरक्षा के लिये राजकीय और जनता का सहयोग रहेगा वही दसवे भाव मे जाकर जनता का भी सहयोग करना पडेगा लोगो के रहने और भोजन आदि का बंदोबस्त भी करना पडेगा। इसी प्रकार से पंचम भाव मे जाने से राजनीति और शिक्षा के लिये तकनीकी बुद्धि का प्रयोग करना पडेगा खेल कूद आदि के द्वारा मनोरंजन का अवसर मिलेगा जबकि ग्यारहवे भाव मे जाने से लोगो के लिये बडे भाई के लिये और परिवार के लिये कंजूसी से मिले साधनोके द्वारा सभी काम करने पडेंगे। आदि बाते सूर्य के फ़लो के लिये जानी जा सकती है।

Friday, March 9, 2012

राजनीति और छल

कालपुरुष की कुंडली के अनुसार सिंह राशि को राज्य की कारक बताया जाता है। सिंह राशि का केतु अगर मंगल चन्द्र बुध शुक्र से युति रखता है तो वह राज्य मे पद दिलवाने के लिये माना जाता है। कारण केतु के पास मेष के मंगल के रूप मे बाहुबल यानी जो कहा वह करके दिखाना साथ ही मंगल अपने साथ मे पराक्रम से अपने को दिखाने वाले लोगों के साथ में चलने के लिये भी हिम्मत और साहस के लिये भी अपने बल को देता है,चन्द्रमा जो केतु से बारहवे भाव का मालिक है वह भी अगर जातक के केतु से नवे भाव मे आजाता है तो वह जातक के लिये न्याय भाव के प्रति अपनी युति को प्रदान करता है,केतु से न्याय भाव मे बुध के होने से भी केतु कानून का कारक बनता है,और कानूनो को जानने वाला भी बनता है। केतु से नवे भाव मे शुक्र होने से जातक के लिये स्त्री जातक भी अपनी स्थिति के अनुसार सहायता करने वाले होते है। जब लगनेश शनि वक्री होकर अष्टम मे होते है तो जातक अन्दरूनी जानकारियों के लिये भी जाना जाता है,वक्री शनि की द्रिष्टि राज्य भाव मे बुध की राशि मिथुन मे होने से भी जातक के अन्दर गूढ कारणो का जानन भी माना जा सकता है। लेकिन वक्री होने के कारण जातक के अन्दर बुद्धि बल अधिक होता है। मीन का गुरु जातक को सन्तुष्टि भी देता है और जातक के सूर्य का जो गुरु के साथ होता है तो जातक को गुरु सूर्य की युति से जीवात्मा संयोग की उपाधि भी देता है।
इस कुंडली मे जातक ने वर्तमान मे चुनाव को जीतने के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग किया लेकिन वह हार गया। राहु गोचर से गुरु को देख रहा है सूर्य को भी देख रहा है,गोचर से राज्य के कारक बुध को भी देख रहा है। राहु राज्य के कार्यों की तरफ़ भी देख रहा है,चुनाव स्थान से दक्षिण दिशा को भी देख रहा है,उत्तर पश्चिम दिशा मे विराजमान मुख्य चुनाव की राजनीति को प्रभावित करने वाले कानून के साथ ऊंची पहुंच को भी देख रहा है,राहु की नजर मे राज्य को देने वाला केतु भी है जो चौथे भाव मे खुद की ही हैसियत को साथ लेकर चलने वाला व्यक्ति भी देख रहा है।
मात देने के लिये इस कुंडली मे केतु को जिम्मेदार माना जा सकता है केतु की स्थिति चौथे भाव मे होने से तथा राज्य मे राहु की स्थिति को नजर मे रखने के कारण तथा गुप्त नीति से शनि वकी को अपनी स्थिति को लगातार बताते रहने से भी यह एक बडी साजिस की तरफ़ इशारा करता है,इस केतु को मंगल जो अपनी हैसियत से सम्भालने वाला था वह गोचर से केतु के साथ ही वकी होने से अपने हित के लिये जातक की गुप्त सूचनाओ को देने वाला भी माना जा सकता है यह गुप्त सूचनाये या तो जातक के खास व्यक्ति की जो घर के अन्दर रहता हो या वाहन चलाने वाले व्यक्ति की जिसे पूरी तरह से सभी बाते जातक की पता थी के लिये भी जाना जा सकता है।

भ्राम से भ्रम भ्रीम से भ्रम की गहरायी और भ्रौम से भ्रम से ऊंची उडान

राहु के मन्त्र जाप के लिये वैदिक और तांत्रिक मंत्र को बताया गया है इस मंत्र के जाप के द्वारा बडी से बडी शंका का समाधान खुद ब खुद होने लगता है। इस मंत्र का अर्थ केवल भ्रम यानी शक होना या नतीजे पर नही पहुंचने के कारण दिमागी भटकाव का अर्थ दिया जाता है। लेकिन वैदिक अक्षर और शब्द की महत्ता वैदिक मंत्र के उच्चारण के द्वारा मिली हुयी कठिनाई के शब्द के उच्चारण से ही दूर होने की बात भी मिलती है। राहु जो आसमान का राजा कहा जाता है और जिसे भी जिस भावना से ग्रहण देता है वह उसी धारणा के बहाव मे अपने को लेकर चलता रहता है जब तक राहु का असर गोचर से रहता है तो भी उसी धारणा के अन्दर जातक के अन्दर एक प्रकार से नशा सा भर देता है। लेकिन जो भी नशा जातक के अन्दर होता है वह केवल जन्म के राहु के अनुसार ही उसके अन्दर रहता है। जैसे इस कुंडली मे राहु का स्थान छठे भाव मे सूर्य बुध मंगल के साथ है,लेकिन वर्तमान मे वह जन्म के गुरु के साथ गोचर कर रहा है तो राहु अपने स्वभाव के अनुसार जिस भाव राशि और ग्रह के साथ होता है उसी के अनुसार ग्रह राशि और भाव का बल अपने मे ग्रहण कर लेता है,तथा उस ग्रह के फ़ल को उस भाव के फ़ल को उस राशि के फ़ल को प्रदान करने लगता है। इस कुण्ड्ली मे मकर लगन है और राशि मेष है चन्द्रमा चौथे भाव मे है और राहु के बल को केतु मे जाने तथा केतु का बल चन्द्रमा मे जाने से जातक की मानसिक सोच पहले तो छठे भाव की जैसे कर्जा दुश्मनी बीमारी नौकरी रोजाना के कार्यों तथा रोजाना के सम्बन्धो के मामले मे होगी फ़िर उसके अन्दर सूर्य से युति लेने के कारण सरकारी कार्यों में पिता के कार्यों मे माता के बडे भाई मे धन आदि के लिये मंगल के प्रदर्शन यानी तकनीकी कारणो मे बुध यानी बोलने और सीखने वाली भाषा के कारणो मे ज्योतिष और पराविज्ञान की सोच मे होगी उस सोच को वह धनु राशि के केतु के द्वारा प्राप्त करने के बाद यानी मीडिया बाहरी ज्योतिषीय साइट्स आदि के लिये चन्द्रमा को प्रदान करेगा,वह चन्द्रमा अपनी सोच को प्राप्त करने के लिये अपनी युति से जन्म के शुक्र के बारे मे जो सिंह राशि का है और अष्टम मे है तथा कार्य और शिक्षा तथा प्रेम आदि के मामले मे उपस्थिति होकर गूढ जानकारी को देने के लिये माना जाता है के प्रति अपनी जिज्ञासा को जाहिर करने के लिये मान जायेगा। राहु के मंत्र भ्राम यानी मनुष्य जीव आदि की संज्ञा के रूप मे प्राप्त भ्रम भ्रीम यानी गूढ रूप से अन्दरूनी जानकारी अथवा जमीन के नीचे के भ्रम तथा भौम यानी आकाशीय रूप से पैदा होने वाले दैविक आदि भ्रम को पैदा करने वाला ही राहु है.नम: लगाने के लिये यह कहा जाता है कि उक्त कारण पैदा करने वाले राहु को नमस्कार करता हूँ। इस कुंडली मे वर्तमान मे राहु जन्म के गुरु के साथ गोचर कर रहा है और चन्द्रमा से अष्टम मे है,गुरु के साथ होने से जातक के लिये अपने अन्तरन्ग मित्रो के बारे मे जिज्ञासा चाहिये,वह जिज्ञासा की शांति के लिये अपने केतु का प्रयोग कर रहा है यानी कमन्यूकेशन के साधन जो आसमानी साधन जैसे मीडिया और नेट आदि की जानकारी से प्राप्त करना चाहता है। वर्तमान मे राहु का गोचर जन्म के राहु से आठवा है इस राहु का सीधा असर गुरु से भी षडाष्टक योग की भावना को पैदा कर रहा है। यह भावना गुरु यानी सम्बन्ध गुरु यानी धन और गुरु यानी गुप्त रूप से पहले से बचत किये गये धन, आदि के बारे मे जानकारी करने के लिये अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहता है,इस कुंडली मे राहु की गति भ्राम और भ्रीम से है लेकिन भ्रौम तक जातक नही जा पा रहा है। भ्रीम जो अष्टम शुक्र के लिये है और भ्राम जो चौथे चन्द्रमा के लिये है के द्वारा जातक अपनी पत्नी के लिये कि वह कैसी होगी,उसका रंग रूप कैसा होगा वह कितना धनी या निर्धन होगी वह कितनी शिक्षित होगी के बारे मे जानना चाहता है,जबकि जातक का सम्बन्ध हो चुका है वह अपनी पत्नी के बारे मे सब कुछ जानता है और केवल यह बात समझना चाहता है कि ज्योतिष उसकी पत्नी के बारे मे कितना बता सकती है,वह अपने प्रश्न को एक से अधिक लोगो से एक बार मे ही पूंछना चाहता है। आदि बाते उसकी जन्म के राहु से वर्तमान के राहु के गोचर से युति के लिये मानी जा सकती है।

राहु उतारने का तंत्र होली

लोग एक दूसरे से आपसी रंजिस मान लेते है कोई किसी बात पर कोई किसी बात पर इन सब बातो से दूर जाने के लिये राहु को उतारना जरूरी होता है। संवत की समाप्ति पर हिन्दू त्यौहारों में दुश्मनी को समाप्त करने के लिये भी एक त्यौहार का प्रचलन आदि काल से भारत मे चल रहा है जिसे होली के नाम से जाना जाता है। होली का शाब्दिक अर्थ हो +ली यानी जो होना था वह हो चुका,और जो हो चुका है उसे साथ लेकर चलने से कोई फ़ायदा नही है इसी बात को ध्यान मे रखकर रंगो का त्यौहार होली मनाया जाता है।होली का प्रचलन कब हुआ किसी को पता नही है लेकिन आदि काल से होली के लिये कई प्रकार के वृतांत लिखे और प्रचलन मे चलते हुये देखे जाते है। होली का एक रूप भगवान शिव के बदन पर उपस्थित भभूत को भी माना जा सकता है। साथ ही भक्त प्रहलाद की बुआ होलिका के द्वारा उन्हे जलाने के लिये किये जाने वाले प्रयास से भी माना जा सकता है। राहु का उदाहरण देखने के बाद पता चलता है कि जो अपने प्रभाव से ग्रहण में ले ले उसे राहु की उपाधि से विभूषित किया जाता है। होलिका को वरदान था कि वह अपने आंचल से जिसे ढक लेगी वह भस्म हो जायेगा और वह खुद बच जायेगी,इस बात को भी तांत्रिक रूप से देखा जा सकता है। दूसरे प्रकार को भी माना जाता है कि भगवान शिव अपने शरीर को भस्म से ढक कर रखते है,यह भस्म और कुछ नही बल्कि उनकी पूर्व पत्नी सती के शरीर की भस्म ही है जो उन्होने अपने पिता दक्ष की यज्ञ मे पिता के द्वारा अपमान के कारण आहुति देकर शरीर को जला डाला था। इस बात मे भी सती की ह्रदय से चाहत ही उन्हे सती की भस्म से विभूषित होने के लिये मानी जा सकती है। रंगो के द्वारा लोग एक दूसरे को रंगते है तो इसका भी मतलब होता है कि लोग अपने अपने अनुसार लोगों को अपने अपने पसंद के रंगो से रंगने के बाद देखकर खुश होते है। भले ही जिसके रंग लगाया जा रहा है वह उसे पसंद नही हो लेकिन दूसरा व्यक्ति अपने रंग से रंगने के बाद देखकर खुश होता है। राहु के इस रंगो के रूप को देखकर भी एक प्रकार से जो व्यक्ति होली के रंगो से रंगने के पहले होता है वह रंगने के बाद उसकी शक्ल मे परिवर्तन होना भी इसी राहु की स्थिति से ग्रहण मे आया हुआ माना जाता है। आज के युग मे जब रंगो की उपलब्धि आराम से हो जाती है पुराने जमाने मे कैमिकल रंगो की अनुपस्थिति से और पेड पौधो की उपस्थिति से प्राकृतिक रंगो से संयोजन से जो होली मनाई जाती थी वह एक प्रकार से उपयुक्त भी होती थी और लोगो के लिये उनके शरीर से कोई दिक्कत नही देने वाली होती थी बल्कि उन रंगो से मौसम के अनुसार त्वचा और मन को पसंद करने वाले रंगो के कारण शरीर और मन को खुशिया देने के लिये भी मानी जा सकती थी। जब शरीर पर मल मल कर रंगो को पोता जाता है तो शरीर से उन रंगो को छुटाने के लिये शरीर को साफ़ भी करना होता है जब शरीर को साफ़ किया जाता है तो सर्दी के मौसम मे रोम कूपों मे जमा मैल भी छूटता है और त्वचा की बीमारिया तथा हर्षोल्लास के कारण मन् का ग्रहण भी कुछ समय के लिये दूर होता है यह बदलाव व्यक्ति के लिये चिन्ता आदि से दूर रहने का मुख्य कारण भी माना जाता है।

Thursday, March 8, 2012

अमीर बनने का स्वप्न

जीवन स्वप्न के रूप मे ही समझा बेहतर होता है लोग अपने अपने अनुसार स्वप्न बुना करते है और उन स्वप्नो को पूरा करने के लिये अपनी अपनी युक्तियां लगाया करते है उद्देश्य केवल चार ही होते है जो पुरुषार्थ के रूप मे माना जाता है,धर्म अर्थ काम और मोक्ष यही चार पुरुषार्थ है। धर्म की तरफ़ जाने से जातक अपने आप को आगे दुनिया मे दिखाना चाहता है,वह दिखावा भले ही शरीर की बनावट से हो या शरी के द्वारा किये जाने वाले करतबो से हो वह चाहे शरीर की विशेष क्रिया के द्वारा भगवान के प्रति अपने को दिखाना चाहता हो या वह अपने को खुद ही ईश्वर बनाकर दिखाने की चेष्टा मे हो। अर्थ के मामले मे जातक अपने को अधिक से अधिक धनी बनाने के लिये युक्तियां बनाया करता हो या अपने को हर प्रकार का साधन धन से प्राप्त करने की योजना मे लगा रहता हो,चमक दमक से अपने जीवन को सभी के सामने प्रस्तुत करने के लिये भी आर्थिक रूप से बढावा देने के लिये माना जाता हो,इसी प्रकार से काम नाम के पुरुषार्थ की बढोत्तरी के लिये वह लोगो से अपने कार्यों को सिद्ध करने की कला को प्रस्तुत करना जानता हो अपने साथ समाज को भी साथ लेकर चलने के लिये अपनी योजनाओ को बनाया करता हो या अकेले मे अपने जीवन साथी और पुत्र पुत्री आदि सन्तान के रूप मे अपने आप को आगे बढाने के लिये प्रयास रत हो आदि बाते काम नामक पुरुषार्थ की श्रेणी मे आती है इसी प्रकार से जब व्यक्ति इन तीनो प्रकार के पुरुषार्थो को या तो प्राप्त कर चुका हो या उनके प्रति लगाव खत्म हो गया हो अथवा इतना भोग लिया हो कि वह बुरा लगने लगा हो या फ़िर अपने परिवार समाज या रीति रिवाज घर परिवार मे वह किसी बात से हमेशा ही तरसता रहा हो इसी के नाम को मोक्ष का प्रकार का कहा जाता है। मोक्ष का मतलब होता है सन्तुष्ट हो जाना,कुंडली में चौथा आठवा और बारहवा भाव जीवन की संतुष्टि के लिये की जाने वाली इच्छाओं के लिये माना गया है।

प्रस्तुत कुंडली मे धनु लगन है,लगनेश गुरु चौथे भाव मे है,गुरु का पंचम नवम योग राहु से अष्टम भाव मे है और जातक का बारहवा भाव खाली है। जातक का यह त्रिकोण पूरा नही है केवल चन्द्रमा से इस त्रिकोण को महिने मे सवा दो दिन के लिये पूरा किया जाता है,यह कारण जातक की इच्छा की तृप्ति के लिये अपनी कमी को बता रहा है।

इच्छा की तृप्ति क्यों पैदा हो रही है इस बात को जानने के लिये जातक के दादा पिता माता नाना आदि की इच्छाओं की तृप्ति के लिये भी देखना जरूरी है जातक के किस सम्बन्धी की इच्छा की तृप्ति हो रही है,इस बात का विवेचन इसलिये जरूरी होता है क्योंकि जातक को इच्छाओं की तृप्ति के लिये सोच केवल अपने परिवार से ही प्राप्त हुयी होती है वह अलग से लेकर नही आता है। दादा के लिये जातक के राहु को देखेंगे,राहु के बारहवे भाव मे शुक्र है,राहु के चौथे भाव मे मंगल वक्री है,राहु का अष्टम भाव खाली है,इसका मतलब है कि दादा की उन्नति के कारण उनके पिता थे और शादी के बाद दादा के जीवन को उनकी पत्नी यानी दादी ने सम्भाल लिया था (बारहवा शुक्र).दादा की मानसिक इच्छा एक व्यवसायिक स्थान बनाने की थी लेकिन वह व्यवसायिक स्थान निर्माण मे अधूरा रह गया (वक्री मंगल तुला राशि का),जातक के दादा मे रिस्क लेने जोखिम लेने पूर्वजो के ऊपर ही अपने को निर्भर करने जितना कमाना और उतना ही खर्च लेना की आदत से उनकी इच्छायें पूरी नही हो पायीं (राहु से अष्टम भाव खाली कुम्भ राशि). पिता के लिये देखने के लिये सूर्य की स्थिति को देखते है,सूर्य से बारहवे भाव मे गुरु है सूर्य से चौथे भाव मे राहु है और सूर्य से अष्टम में कोई भी ग्रह नही है,इस प्रकार से जातक के पिताजी तीन भाई और तीन भाइयों मे जातक के पिता का स्थान बडप्पन के स्थान मे होने से तथा जातक के पिता के द्वारा अपने परिवार का पालन पोषण शिक्षा विवाह शादी आदि करने मे अपने धन को लगाया गया,चौथे भाव मे राहु के होने से जो भी कमाया गया वह किसी न किसी कारण से आक्समिक रूप से खर्च कर दिया गया और अपने नाम को कमाने के चक्कर मे या सामाजिक मर्यादा को दिखाने के चक्कर मे सयंत नही रखा गया,पिता का भी अष्टम खाली होने के कारण पिता मे भी जोखिम लेने की आदत नही थी जो भी हो रहा है सीधे से होने और सीधे से चलने मे ही विश्वास था। जातक की माता के लिये देखते है तो चन्द्रमा के चौथे भाव मे गुरु है,जातक की माता पूजा पाठ धर्म कर्म आदि से पूर्ण थी और अपने घर मे ही सामाजिक संगठन आदि के लिये अपने अनुसार कार्य करती थी उनका ध्यान धर्म संस्कृति और लोगो के साथ उच्चता मे जाने का था बडे समुदाय के रूप मे उन्होने भी अपने पति के परिवार के लिये कार्यों मे योगदान दिया,तीन लोगो की परवरिस और उन्हे आगे बढाने की योग्यता प्रदान की,माता के अष्टम मे राहु होने से जातक की माता को अक्समात रिस्क लेने की आदत थी वह किसी भी प्रकार से अपने को सोच विचार कर कार्य करने के लिये नही जाना जाता है,सभी कुछ सामने होने के बाद भी वह केवल आकस्मिक सोच के कारण नही प्राप्त कर पायीं। यही बात जातक के नाना के लिये देखने पर केतु से बारहवे भाव मे चन्द्रमा के होने से जातक के नाना का प्रभाव धर्म और पराशक्तियों की सहायता से अच्छा था वे बडे धार्मिक स्थानो और धार्मिक लोगो के लिये अपने विचार सही रखते थे लेकिन उनके चौथे भाव मे सूर्य बुध शनि के होने से जातक के नाना के पास घर मे वही काम थे जो सुबह शाम किये जाते है और अक्सर उनके पास केवल पिता के दिये गये कार्य और सरकार आदि से मिलने वाली मामूली सहायता को ही माना जा सकता है उन्होने भी अपनी तीन सन्तानो को आगे बढाने पढाने लिखाने मे खर्च किया,केतु से अष्टम भाव खाली होने से भी जातक के नाना को भी रिस्क लेने और जोखिम लेने की आदत नही थी इस कारण से वे भी अतृप्त रह गये।

इस प्रकार से जातक के लिये भी जातक की माता की तरह से ही बारहवे भाव के त्रिकोण को पूरा करने के लिये किये जाने वाले खर्चे जीवन को संयत बनाने के लिये आहार विहार और जो भी आकस्मिक प्राप्त होता है उसे छठे भाव को भरने के लिये जमा करने और रोजाना के कार्यों मे सोचने से अधिक कार्य करने अपने जीवन को खाने पीने और दोस्त आदि के लिये कार्य करने कमन्यूकेशन के साधनो को केवल काम तक ही सीमित करने के लिये अक्समात ही बीमार आदि होने से बचने के लिये अन्जान स्थान के रिस्क लेने वाले कारण अथवा गुपचुप रूप से शिक्षा वाले समय को गंवाने आदि के लिये माना जा सकता है। अगर जातक अष्टम राहु का उपयोग उसी प्रकार से करे जैसे बिजली को प्रयोग करने के लिये उसके उपयोग को जानना,अगर जातक अपने द्वारा किये जाने वाले खर्चो से अपने को संभाल कर रखे तो जातक को धनी बनाने से कोई नही रोक सकता है।

गगन लहरी योग

जब कुंडली मे सभी ग्रह एक तीन नौ और दसवे भाव मे इकट्ठे हो जायें तो गगन लहरी योग का निर्माण हो जाता है। ऐसा जातक गेंद की तरह से सारी उम्र एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाता रहता है और एक गेंद की भांति उसका आस्तित्व एक स्थान पर नही बन पाता है। प्रस्तुत कुंडली मे सूर्य बुध पहले भाव मे है बुध आदित्य योग का निर्माण तो हो रहा है लेकिन बुध के वक्री होने पर वह खुद के द्वारा आदेश से काम नही करवा कर दूसरे के आदेश से काम करने वाला होता है,वह खुद कानूनो का पालन नही करने के बाद दूसरो को कानून का पालन करने का आदेश देता है,वह दूसरो को केवल कुछ शब्दो में सुनता है और उसका जबाब विस्तृत रूप मे लोगो को देता है,अक्सर कन्या संतान या बहिन बुआ से बनती नही है या होती ही नही है। पिता का कानूनी मामले मे या समाज संगठन मे वर्चस्व रहा होता है,पिता के खुद के लोग ही जड काटने के लिये माने जाते है पिता का कानून से काम करवाना या कानून का पालन करवाना या धन आदि के मामले मे दूसरो की सहायता करना और एक समय मे उसी धन आदि के लिये दूसरो पर कानून का इस्तेमाल करना आदि भी पाया जाता है। इस प्रकार के जातक अक्सर बोलने के लिये कार्य करने के लिये स्थान स्थान पर यात्रा करते रहते है,अक्सर राहु जिस ग्रह के साथ या जिस भाव मे होता है जातक को उसी क्षेत्र मे अपने नाम और यश कमाने के लिये योग्यता का निर्माण करना पडता है,या तो जातक मानसिक रूप से अपने को आकासीय कारणो मे विचरण करने के लिये माना जाता है या किसी प्रकार मीडिया या सम्पादन मे छुपे भेद खोलने के लिये काम करना पडता है या फ़िर यात्रा आदि के कामो मे उसे लगातार लगा रहना होता है नवे भाव के ग्रहो के अनुसार उसे अपने जीवन को चलाना पडता है,अगर नवे भाव मे कानून या धर्म से सम्बन्धित ग्रह होते है तो कानून और धर्म आदि के बारे मे बाते करता है और उन्ही के द्वारा कन्ट्रोल होकर चलने के लिये मजबूर होता है,इस कुंडली मे गुरु के वक्री होने पर जातक को अपने देश या माहौल से दूर रहकर दूसरे देश या माहौल के लिये ही काम करना होगा,एक समस्या या एक कारण को कई रूप मे विवेचन करने के लिये उसे काम करना होगा,उसे काम करने का एक संयत क्षेत्र नही मानना होगा वह केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति तक ही काम करेगा,इसके अलावा वह राहु के मीन राशि मे और शनि तथा शुक्र के साथ होने से विश्व की तीन बडी कम्पनियों के सानिध्य मे उन्ही के आदेश से अपने जीवन को निकालने वाला होगा। उसके खरी बोलने की आदत को यही काम करने वाली कम्पनिया या विचार राहु शनि शुक्र के रूप मे मंगल और चन्द्रमा को कन्ट्रोल करेंगे जैसे इस जातक के दसवे भाव मे मंगल और चन्द्रमा है जो जातक के लिये बेलेन्स बनाकर तकनीकी काम करने के लिये अपनी युति को देते है लेकिन जातक राहु शनि और शुक्र की युति से अपने खरे बोलने के प्रभाव को खुद के लिये व्यापारिक नीति से काम करने के लिये अपनी युति को प्रदान करने के बाद कन्ट्रोल करने के लिये माना जायेगा। अगर जातक किसी प्रकार के छोटी यात्रा वाले काम करता है या किसी प्रकार से किसी ऐसे संस्थान के लिये काम करता है जो दूसरो को कुछ समय के लिये या हमेशा के लिये बन्धन वाले या कानूनी कारण पैदा करते है उनके ऊपर भी ऊपर का अंकुश उसे अपने मर्जी से काम नही करने देगा। जातक को पैदा होने से लेकर मृत्यु पर्यंत तक इधर से उधर ही रहना होगा या आना जाना पडेगा। किसी भी प्रकार से उसे विदेश आदि जाने मे दिक्कत नही होगी,जहां लोग विदेश आदि मे जाने के लिये तमाक कानूनी कार्यवाही मे उलझे रहेंगे जातक एक ही प्रयास मे विदेश आदि जाने के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग करने के माना जायेगा।

Wednesday, March 7, 2012

शादी कब होगी ?

मनुष्य का जन्म हो जाता है शिक्षा होजाती धन कमाने के रास्ते मिल जाते है लेकिन विवाह के बारे मे जीवन अनिश्चितता की तरफ़ ही रहता है। अगर कहा जाये कि धनी बनकर शादी जल्दी हो जाती है या सम्बन्ध अच्छा मिल जाता है तो गलत ही माना जा सकता है,खूब पढ लिख कर अगर सम्बन्ध अच्छा बन जाये पत्नी मन या पति मनचाहा मिल जाये तो भी गलत बात ही मानी जाती है,शादी सम्बन्ध हमेशा संस्कारों से पूर्व के कृत पाप पुन्य से और समाज आदि के द्वारा समर्थन से ही सही मिलते है। प्रस्तुत कुंडली वृश्चिक लगन की है.मंगल इस कुण्डली मे लगनेश है और सप्तमेश शुक्र बुध के साथ तीसरे भाव मे विद्यमान है,शुक्र को कुंडली के अष्टम मे बैठा राहु मारक द्रिष्टि से देख रहा है। राहु ने चन्द्रमा को भी ग्रहण दिया हुया है और अपनी नवी द्रिष्टि से सूर्य को भी ग्रहण दिया है। सूर्य चन्द्र को ग्रहण देने के बाद राहु से वक्री गुरु का सम्बन्ध भी बन गया है। वक्री गुरु ने भी सूर्य को असर दिया है। गुरु मार्गी होना ही सम्बन्ध का उत्तम रूप से फ़लदायी माना जाता है,गुरु के मार्गी होते ही जातक के अन्दर स्वार्थी भावना आजाती है वह सम्बन्ध को नफ़ा नुकसान के रूप मे सोचने लगता है,कारण वक्री गुरु का प्रभाव जीवन मे नर संतान नही देने अथवा देने के बाद भी नर संतान का सुख नही देने के लिये माना जाता है। शनि और मंगल के बारे मे भी अगर देखा जाये तो शनि भी कन्या राशि का होकर वक्री है और मंगल भी कन्या राशि मे वक्री हो गया है मंगल पौरुष का कारक है और शनि मेहनत करने वाले कामो का कारक है जातक के अन्दर जब पौरुष ही नही होगा तो वह मेहनत वाले कामो को नही कर पायेगा। इस प्रकार से जातक के अन्दर मेहनत वाले कामो को नही करने से दिमागी बुद्धि का विकास अधिक हो जायेगा और वह अपने को हर सीमा मे बुद्धिमान समझने की कोशिश करेगा जिस समाज या परिवार से वह शादी विवाह की बात को चलाने की कोशिश करेगा उसी समाज या परिवार से अति आधुनिकता मे होने के कारण या विदेशी परिवेश मे रहने या नियमो को अपनानेके कारण भी समाज या परिवार शादी विवाह के लिये हिचकिचायेगा।

शुक्र के बारे मे भी कहा जाता है कि जब यह बुध के साथ मकर राशि का तीसरे भाव मे होता है तो जातक के पास शादी विवाह के प्रपोजल खूब आते है लगता भी है कि शादी हो जायेगी लेकिन बात किसी न किसी बात से टूट जाती है अक्सर सोच यह भी होती है कि पत्नी काम करने वाली हो और वह घर संभालने के साथ साथ कमाई भी करे। केतु जिन साधनो से परिवार को आगे बढाने की कोशिश करता है राहु उन्ही साधनो की पूर्ति से परिवार को छोटा करता चला जाता है। जातक के रिस्ते की दो बाते चलेंगी लेकिन एक बात इस साल मे अगर बैठ भी जाती है तो वह किसी न किसी बात से टूट भी सकती है इस कारण को दूर करने के लिये अपने को अपनी मर्यादा समाज और परिवार के बारे मे खुल कर बात करनी चाहिये,विदेशी नीति रीति या अधिक आधुनिकता है तो उसे त्यागने मे ही भलाई है.राहु के द्वारा सूर्य और चन्द्र को ग्रहण देने की नीति से दूर रहने के लिये जातक को अपने पूर्वजो के प्रति श्रद्धा रखकर महिने या साल मे उनके नाम से किसी न किसी धर्म स्थान पर उनकी मान्यता का ध्यान भी रखकर अपने जीवन के क्षेत्र को आगे बढाने का प्रयास करते रहना चाहिये.

Tuesday, March 6, 2012

I WANT THE RICH IN MY LIFE. AND FULFIL THE ALL MY AMBIATION.

कल सपने के बारे मे लिखा था,आज भी यही प्रश्न सामने है कि मै धनी बनना चाहता हूँ.सपना धन का,बहुत ही महत्वपूर्ण बात है,जिसे देखो इसी प्रकार का सपना लेकर चल रहा है.चौथा आठवा और बारहवा भाव इच्छाओं का कहलाता है लेकिन इच्छा पूर्ति के लिये इन तीनो भावो के ग्यारहवे भाव भी बली होने जरूरी है,इस जातक की कुंडली मे चौथे के ग्यारहवे यानी दूसरे भाव मे भी कोई ग्रह नही है,आठवे के ग्यारहवे में केवल सूर्य लगनेश और शुक्र जो तृतीयेश और कार्येश है विद्यमान है,बारहवे भाव के ग्यारहवे भाव मे भी कोई ग्रह नही है इस प्रकार से एक बात और भी जानी जा सकती है कि चौथा भाव खाली है,केवल आठवे भाव मे और बारहवे भाव मे ही मंगल और चन्द्रमा है। चन्द्रमा केवल सोच को देने वाला है और मंगल हिम्मत को देने वाला है.चौथा भाव पूर्वजो से प्राप्त सम्पत्ति की सोच से आगे बढने वाला होता है आठवा भाव खुद के द्वारा परिश्रम करने के बाद नौकरी या सेवा वाले काम करने के बाद प्राप्त करने वाले धन के प्रति सोच कर आगे बढने के लिये माना जाता है और दसवा भाव जो कार्य बडी विद्या को लेकर किये गये होते है के लिये माना जाता है। जातक की प्राथमिक विद्या में बुध वक्री होकर विराजमान है यानी प्राथमिक विद्या मे भी बदलाव हुया है ऊंची विद्या मे शनि विराजमान है जो केवल करके सीखने के लिये ही अपनी शक्ति को प्रदान करता है डिग्री लेने या अन्य प्रकार के कारण पैदा करने के बाद विशेषता हासिल करने के लिये नही माना जाता है,इसके बाद जो किसी विषय मे अलावा योग्यता के लिये देखा जाता है वह दूसरे भाव से देखना जरूरी है,लेकिन यह भाव भी खाली है.

गुरु राहु की नवम पंचम युति को अक्सर फ़रेबी सम्बन्धो के लिये भी माना जा सकता है,जातक के दिमाग मे वही कारण पैदा होंगे जिससे वह फ़रेब से सम्बन्ध बनाकर धन कमाने के लिये अपनी इच्छाओं को पालेगा। धनु राशि का बुध अगर वक्री होता है तो वह उल्टे कानून बनाकर अपने कार्यों को लेकर चलने वाला होता है,केतु शनि और वक्री बुध की आपसी युति बन जाती है तो जातक कानून को अन्धेरे मे रखकर सत्ता या राजनीति का बल लेकर धन कमाने के लिये अपनी इच्छा को जाहिर करता है। लेकिन शनि जब भी किसी भी ग्रह को दसवी और चौथी नजर से देखता है तो वही ग्रह शनि की वक्र नजर से आहत हो जाते है। बारहवा चन्द्रमा नवी शनि से आहत है,छठे भाव के शुक्र और सूर्य दोनो ही इस शनि की दसवी नजर से आहत है। बारहवा भाव खर्च करने का मालिक भी है चन्द्रमा के बारहवे भाव मे होने से जातक मानसिक सोच को खर्च करने के लिये अपनी युति को देता है,इस चन्द्रमा की योग्यता से यह जिस भाव मे अपना गोचर करता है उसी को खर्च करने का मानस बना रहता है,जिस ग्रह के साथ रहता है उसी ग्रह की कारक वस्तुओ को खर्च करने के लिये माना जा सकता है। मंगल का प्रभाव भी इसी प्रकार से माना जाता है यह जिस भाव मे गोचर करता है उसी के प्रति अपनी मारक सोच रखता है,मीन राशि का मंगल होने के कारण अक्सर दिमागी झल्लाहट क भी प्रयोग करने के लिये माना जाता है,साथ ही यह मन्गल जन्म के जिस ग्रह के साथ अपना गोचर करेगा वह ग्रह भी मंगल की तपिस से नही बच पायेगा। राहु की सिफ़्त के अनुसार वह जिस भाव मे अपना गोचर करेगा उसी ग्रह या भाव से अपनी साझेदारी प्रकट करना शुरु कर देगा,वह साझेदारी किसी भी क्षेत्र से अच्छे या बुरे किसी भी कारण से हो सकती है केतु का स्वभाव अपनी उपस्थिति को देने है यह जिस भाव मे जिस ग्रह के साथ अपना गोचर करेगा वह अपनी उपस्थिति उसी भाव या राशि या ग्रह के अनुसार प्रदर्शित करना शुरु कर देगा। इस प्रकार से सूर्य और शुक्र के छठे भाव मे होने से साल के बारह महिनो मे जातक बारह प्रकार के कार्य सम्बन्धी बदलाओ को भी करेगा और जिस भी कार्य या स्थान मे हाथ डालने की कोशिश करेगा वह उसी से मानसिक और कार्य शत्रुता को अपने अन्दर बैठा लेगा.गुरु जो सम्बन्धो का कारक है जिस भाव राशि या ग्रह के साथ गोचर करेगा उसी भाव ग्रह के साथ व्यापारिक भाव पैदा कर लेगा,इस प्रकार से धन का कारक बुध जो वक्री है वह आयेगा तो लेकिन उल्टी गति से आकर वापस चला जायेगा।

Monday, March 5, 2012

बारहवें भाव के सपने और कार्य क्षेत्र

कुंडली का बारहवां भाव जीवन के सपने बुनता है वह सपने दिन के भी हो सकते है और रात के भी हो सकते है.चलते फ़िरते भी हो सकते है और बैठे ठाले हो भी हो सकते है यात्रा मे भी हो सकते है और धार्मिक स्थानो की यात्रा करने पर भी हो सकते है.लम्बी यात्रा मे भी हो सकते है और आखिरी नींद लेने मे भी हो सकते है। हकीकत मे देखा जाये तो जीवन को बनाने बिगाडने के लिये स्वपनो की बहुत बडी भूमिका होती है। बारहवे भाव मे चन्द्रमा के गोचर के अनुसार सपने बुने जाते है और उस समय अगर सो रहे होते है तो सपने अच्छे भी होते है नींद भी अच्छी ला सकते है और रात को जगाकर बैठा भी सकते है,कभी कभी यात्रा करने पर और ड्राइवरी करते वक्त भी इन्ही सपनो की वजह से दुर्घटना भी होती है और उसी दुर्घटना के कारण जेल जैसी सजा भी होती है। हकीकत मे देखा जाये तो बारहवा भाव बन्धन का होता है वह मुक्त आकाश के बारे मे सोच सकता है लेकिन मुक्त आकाश मे विचरण नही कर सकता है। इसका कारण भी एक प्रकार से चौथे और आठवे भाव के मोह से बन्धा होना भी माना जाता है तथा दूसरे भाव के अनुसार अपने को समाज मे दिखाने के लिये भी माना जाता है पंचम से कई तरह की घर परिवार समाज एक दूसरे की सहमति और आज के जमाने मे प्रेम करने लव करने और एक विचित्र प्रकार की सोच जो कभी सोची भी नही गयी हो और देखी भी नही गयी हो के बारे मे भी होता है। अक्सर मनोरंजन के समय मे जब तक बारहवे भाव की भूमिका को फ़िल्मी कलाकार टीवी सीरियल वाले सोच कर नही बनाते है तब तक वह सीरियल और फ़िल्म आदि सफ़ल भी नही होती है जब ग्रह बारहवे भाव से अपने को जोड कर चलता है तो जभी उस फ़िल्म या सीरियल का चलना माना जाता है जैसे ही कालपुरुष की कुंडली के अनुसार बारहवे भाव का ग्रह नीचे या ऊपर चला जाता है उसी समय से वह फ़िल्म सीरियल आदि सफ़ल और असफ़ल आदि के मामले मे देखे जाते है जब कोई अटल ग्रह बारहवे भाव मे होता है तो कार्य हमेशा के लिये याद करने के लिये मान लिये जाते है जो मनोरंजन की कीमत को देने मनोरंजन को द्रिष्टि मे रह्कने और मनोरंजन के मानसिक रूप से देखे जाने के लिये माने जाते है।

केतु शनि को अक्सर मिलाकर देखा जाये तो जातक को वह भाव और राशि के अनुसार तथा पडने वाले ग्रहो की छाया के अनुसार कार्य करने के लिये दर्जी जैसे पैबन्दो को जोड कर एक नया नाम वाला वस्त्र बनाने जैसा होता है वही हाल अक्सर देखा जाता है जब एक कम्पनी वाला कई प्रकार के कस्टमर को जोड कर एक नई कम्पनी को खडी कर देता है या किसी प्रकार से कई कारको को मिलाकर एक उपयोगी कारकत्व वाली वस्तु को बना देता है। उपरोक्त कुंडली मे केतु शनि का स्थान तीसरे भाव मे है और तुला राशि मे है,तुला राशि एक प्रकार से बेलेन्स बनाने की कला मे भी जानी जाती है और व्यापार के लिये भी देखी जाती है जो व्यक्ति बेलेन्स करने के बाद बोलना जानता है और अन्य लोगो की तुलना मे अपने उत्पादन को प्रदर्शित करने के मामले मे वह अगर कम्पीटर के उत्पादन की विवेचना करने मे माहिर होता है तो वह अपने उत्पादन को कम्पटीटर के उत्पाद के आगे बेच कर आजाता है साथ ही वह अगर वह किसी बहुत ही शक्तिशाली ग्रह के फ़ेर मे होता है तो कम्पटीटर का सामान भले ही बहुत अच्छा हो उसके आगे कोई खरीद भी नही सकता है और इस प्रकार के व्यक्ति से लिया गया सामान ही पसंद करता है। चाहे वह बीच मे अपनी चालाकी से अन्य उत्पादनो को भी उसी की श्रेणी मे बेलेन्स करने के बाद बेचने के बाद ही क्यों न गया हो। केतु शनि को देखने वाले ग्रह बारहवे भाव का मंगल है जो नीच राशि मे है और नीचता का फ़ल देने के लिये भी माना जा सकता है,अक्सर यह भी देखा जाता है कि बारहवे भाव का मंगल अगर नीच का है तो वह पिछले जन्म मे जरूर किसी के द्वारा मारे जाने के बाद दुबारा से जन्मा है और अपनी स्थिति को बनाकर पिछले जन्म के बदले को पूरा करने के लिये अपनी योग्यता आदि से दंड आदि देने के लिये भी अपनी योग्यता को रखने वाला हो सकता है इस मंगल के साथ सूर्य के होने से भी जातक को सरकार का बल मिल जाता है या किसी प्रकार की राजनीति का बल भी मिल जाता है,जो जातक को किसी भी क्षेत्र मे अस्पताली कारणो मे अथवा उन संस्थानो के लिये जो सरकारी रूप से गृह रक्षा के लिये प्रयोग मे लाये जाते है अथवा तब जब जातक जेल संस्थान बडे अस्पताल जैसे संस्थान जनता से जुडे वायु सम्बन्धी संस्थान आदि के लिये भी अपनी युतिको देने वाला होता है यह केतु शनि पर बल देने के कारण तथा शनि की दसवी पूर्ण द्रिष्टि से बेधित होने के कारण भी मंगल के अन्दर एक प्रकार से व्यवसायी नीति का बनना माना जा सकता है।

कर्क राशि का मंगल सूर्य के साथ होने से तब और अधिक कारगर हो जाता है जब वह किसी प्रकार से गुरु से उसे देखा जा रहा हो,इस कुंडली मे एक जातक हरदोई उत्तर प्रदेश से अपने बारे मे जानना चाहता है कि क्या वह सरकारी नौकरी मे सफ़ल हो सकता है,इस बात के लिये पहले उसके कार्य के मालिक को देखने पर पता चलता है कि चन्द्रमा से दसवे भाव का मालिक सूर्य होने से और सूर्य पर मकर के गुरु की नजर होने से जो वक्री है से जातक को सरकारी नौकरी तो मिलेगी लेकिन मंगल के कार्य के बाद,कारण मंगल का होना पुष्य नक्षत्र के दूसरे पाये मे है जिसका स्वामी शुक्र है और उसी नक्षत्र मे सूर्य के होने से जो तीसरे पाये मे है का स्वामी चन्द्रमा है,शनिका असर दोनो ही ग्रहों पर है और शनि की द्रिष्टि भी है एक तो द्रिष्टि बल से भी है दूसरे नक्षत्र बल से भी है और तीसरे गुरु के द्वारा दिये जा रहे बल से भी मानी जा सकती है। अक्सर यह भी ध्यान मे आना चाहिये कि गुरु वक्री होकर छ्ठे भाव मे है और गुरु को इस स्थान मे कमजोर इसलिये माना जा सकता है कि एक तो कालपुरुष की कुंडली के अनुसार वह बुध के घर मे है दूसरे राशि के अनुसार वह शनि के घर मे है और तीसरे नीच के मंगल की द्रिष्टि है तथा शनि केतु से चौथी और राहु से दसवी द्रिष्टि से भी गुरु को प्रताणित किया जा रहा है लेकिन इन सब कारको के होने के बाद भी गुरु अपने स्थान पर बहुत बली इसलिये हो गया है कि गुरु वक्री अगर नीच राशि मे है तो वह उच्च का फ़ल देने लगता है गुरु अगर बुध या शत्रु के साथ वक्री हो जाता है तो भी वह उच्च का फ़ल देने लगता है साथ ही किसी प्रकार से अगर वह त्रिक स्थान मे भी है तो भी उसके बल के अन्दर कोई कमी नही आती है बल्कि वह जिस भी भाव मे बैठता है उसके लिये विपरीत राजयोग का कारण भी पैदा कर देता है।

चन्द्रमा जब अपने ही भाव मे हो और वह किसी भी राशि मे हो अपने ही भाव का फ़ल प्रदान करेगा,जैसे इस कुंडली मे चन्द्रमा वृश्चिक राशि मे है और वह तरल पदार्थों की उपस्थिति का विवेचन करता है,साथ ही मंगल और सूर्य की नवम पंचम की योगात्मक नजर चन्द्रमा के साथ है इसलिये यह चन्द्रमा गंदा पानी या कुये का पानी नही होकर चिकित्सा मे प्रयोग किया जाने वाला पानी ही माना जायेगा,इस जातक के द्वारा फ़ार्मा की डिग्री भी ली गयी है और यह अपने प्रयास से फ़ार्मा कम्पनी मे सेल्स मे भी काम कर रहा है लेकिन यह सेल्स का काम उसे रास इसलिये नही आ रहा है क्योंकि शनि अपनी कालगति के अनुसार उसी राशि मे आ गया है जहां से उसके जन्म के समय मे था। इस गति मे जातक के लिये अन्य ग्रहो का सहायता देने वाला कारण भी माना जा सकता है मंगल और सूर्य के द्वारा अपने आगे सूर्य की ही रासि और लगन से बजाय किसी कारक के केवल व्यक्ति के शरीर को ही उन्नतशील बनाने का कारण भी माना जा सकता है के लिये अपनी युति को प्रदान करने वाला माना जा सकता है। इस नीच राशि के वक्री गुरु ने अपने प्रभाव से सूर्य को भी बली बना दिया है जो साज सज्जा से पूर्ण और जन सुरक्षा के अधिकारी के रूप मे बैठा कर जातक को उन्नति देने के लिये भी अपनी युति को प्रदान कर रहा है तो मंगल की उम्र मे वह जातक को चिकित्सीय कार्यों के लिये भी अपनी ज्ञान वाली बात को पैदा कर रहा है। सन दो हजार पांच से जातक के लिये इस शनि ने भी अपनी युति को देकर चिकित्सा वाले कारणो मे जाने के लिये अपनी कार्य शक्ति का दिया जाना माना जा सकता है तो जातक को आगे की उन्नति के लिये भी शनि ने सूर्य के साथ अपनी युति बनाकर जातक के मन मे एक सपना बुना है कि वह एक बडा अधिकारी बनकर जनता के लिये उसकी जीवन रक्षा के लिये कोई जिम्मेदारी वाले कामो को करे.यह शनि जातक के लिये आने वाले नवम्बर दो हजार बारह के समय मे सूर्य के साथ युति देकर आगे बढाने का कार्य और पबलिक सर्विस की नौकरी मे ले जाने के लिये अपनी योग्यता को प्रदान करेगा।

राहु कुंडली के अन्दर गलत फ़ल को देने वाला है और केतु भी राहु क इशारे से अपने कारणो को बदलने के लिये भी माना जा सकता है नवे भाव मे राहु पूर्वजो के आशीर्वाद से ही आगे बढता है साथ ही नवे भाव मे राहु के होने से और जातक के बारहवे भाव मे मंगल सूर्य की युति होने के कारण जातक के पिता परिवार वाले जो एक पिता की संतान होने के बाद किसी प्रकार से अपनी अहम की प्रणाली से दूर होने और किसी धर्म स्थान या इसी प्रकार के कारणो को आधुनिकता की अहम वाली श्रेणी मे आने के बाद राहु को भूल चुके है जो उनके लिये पूर्वजो का कारक माना जाता है,यह राहु अपनी नजर से जातक के लिये आने वाले अगस्त के महिने से अपनी भ्रम वाली नीति को देना शुरु कर देगा तथा परिवार या अपने ही घर मे अचानक हादसो का कारण भी देगा अगर जातक अपने पूर्वजो के प्रति उपाय कर लेता है या करवा लेता है तो जातक को राजकीय सेवा से कोई नही रोक सकता है। (नीचे अपने विचार भी प्रस्तुत करें)

ग्यारहवां गुरु

ग्यारह को ज्योतिष की नजर से बहुत ही शुभ माना जाता है जिन लोगो की कुंडली मे ग्यारहवा भाव गुरु से देखा जाता है या लगनेश ग्यारहवे भाव मे गुरु की तरह से होते है उनके लिये कहा जाता है कि जीवन कोई भी परेशानी भले ही आजाये लेकिन उन्हे कष्ट अधिक सहन नही करने पडते है। गुरु के लिये जो विचार भारतीय संस्कृति से देखे जाते है वे पहले तो सम्बन्धो के लिये देखे जाते है उसके बाद गुरु को धर्म की द्रिष्टि से देखने पर पता होता है कि जीवन व्यक्ति के अन्दर कितनी दया है,यानी गुरु अगर ठीक है तो जातक के अन्दर दया का भाव भी होगा और जातक रीति नीति कानून आदि को समझ कर चलेगा वह एक बार भले ही जगत के कानूनो से दूर हो जाये लेकिन वह अपने अनुसार प्रकृति के कानूनो को मानने के लिये जरूर मजबूर हो जायेगा। कालपुरुष के अनुसार वैसे तो ग्यारहवा भाव शनि का कहलाता है और गुरु का प्रभाव इस भाव मे आकर ठंडा हो जाता है लेकिन वह किसी भी प्रकार से जातक की लगन को जातक के तीसरे भाव को जातक के पंचम भाव को तथ सप्तम को अपनी द्रिष्टि देने के कारन इन भावो को सुचारु रूप से धार्मिक बना देता है इन भावो के कारको को धर्म और कानून के मामले मे स्वच्छ रखता है अगर किसी प्रकार से गुरु का गोचर से भी किसी भी भाव यानी वह त्रिक हो या पणफ़र हो अथवा अपोक्लिम हो गुरु उन भावो के रूप को खराब से भी अच्छा फ़ल दिलाने की कोशिश करता है। ग्यारहवा गुरु बडे भाई का कारक होता है लेकिन अगर दो भाई हो और ग्यारहवा गुरु हो तो बडे भाई की औकात भले ही बडी हो लेकिन एक स्थान पर एक ही रहेगा और दूसरा अपने अनुसार समानन्तर से एक स्थान पर नही रखने देगा। प्रस्तुत कुंडलियों मे एक लगन मीन है और दूसरी लगन धनु है दोनो ही लगनो के स्वामी गुरु है और गुरु का स्थान दोनो ही लगनो मे ग्यारहवे भाव मे ही है,इस प्रकार के दोनो ही जातको के अन्दर एक सा रूप मिलने के कारण दोनो जातको का व्यवहार समाज रूप रेखा और पारिवारिक स्थिति एक सी ही मानी जायेगी। लेकिन भाव का बदलाव राशि का प्रभाव अपने अपने स्थान पर बदल जायेगा,एक मीन लगन का होने के कारण अपने लिये विदेश और विदेशी रूप से अपने धर्म नीति तथा सिद्धान्तो को फ़ैलाने वाला मिलेगा तथा दूसरा धनु लगन का होने के कारण अपने परिवार समाज रहने वाले देश और प्रान्त के लिये अपने कार्यों को करेगा यानी एक घर मे दूसरा बाहर अपनी औकात को एक बडप्पन के रूप मे प्रकाशित करने के लिये जाना जायेगा।
पहली कुंडली मे अगर गुरु का रूप मकर राशि का देखते है तो यह भी समझ मे आता है कि दोनो भाइयों मे एक की ही औकात मिलती है मकर का गुरु नीच राशि का होता है और वह होने मे तो दो भाइयों की उपाधि को दर्शित करता है लेकिन अपनी योजना से एक भाई की ही औकात रहने देता है कभी कभी इस गुरु के कारण या तो एक भाई देश से दूर चला जाता है और या वह अक्सर अपनी औकात को परिवार के अनुसार नही बनापाता है जैसे एक भाई की पुरुष सन्तान होना और दूसरे के केवल स्त्री सन्तान का ही होना या किसी प्रकार से सन्तान का होना ही नही अथवा शादी विवाह से दूर हो जाना भी माना जाता है। पहली कुंडली का गुरु ग्यारहवे भाव मे बैठ कर लगन मे बैठे शनि केतु को देख रहा है तथा सप्तम मे बैठे राहु और चन्दमा को भी देख रहा है। कन्या राशि मे चन्द्रमा और राहु के आने से जातक के अन्दर एक तो सेवा भावना पैदा हो जाती है दूसरे वह अपने लिये कम तथा दूसरो के लिये अपने जीवन को अधिक लगाने लगता है,लगन मे शनि के होने से और केतु के साथ होने से तथा ग्यारहवे भाव के गुरु के द्वारा बल देने के कारण वह अपने जीवन को परस्वार्थ के लिये खर्च करना शुरु कर देता है,साथ ही उसके लिये परिवार घर पिता माता आदि से कोई लेना देना नही रह जाता है वह केवल कार्य करना जानता है और शंका से गृसित जनता का दुख निवारण करने मे अपने जीवन को लगा देता है। गुरु का केतु पर असर देने के कारण जातक किसी विदेशी सन्त से अपनी लगन को लगा लेता है और वह लगन अक्सर मोक्ष वाले कारणो के लिये होती है यह भी माना जाता है कि गुरु अपने ही भाव को देखने के कारण तथा मीन राशि जो वास्तव मे मोक्ष की राशि के लिये अपनी योजना को केवल लोगो के लिये शांति के कार्यों के लिये भी करता हुआ पाया जाता है शनि मीन राशि मे किसी संस्था या समुदाय के लिये भी अपनी योजना को प्रसारित करता है साथ ही जब जातक की उम्र बारहवी साल की होती है तो जातक के अन्दर एक भाव पैदा हो जाता है कि वह लोगो के लिये ही अपनी जीवन शैली को लेकर आया है उसे अपने लिये कोई भेद नही होता है अगर जातक किसी कारण से रुक जाता है तो वह अक्सर मामा या मौसा के पास अपने जीवन को दत्तक पुत्र की तरह से बिताना शुरु कर देता है या उसका कोई रिस्तेदार ही उसके नाम से मृत्यु के बाद की सम्पत्ति को देकर चला जाता है इस प्रकार से जातक का कार्य केवल उस सम्पत्ति या समुदाय या संस्था को संभालने के लिये हो जाता है जिससे उसे कोई कमाई या किसी प्रकार के घाटे मुनाफ़े से कोई लेना देना नही होता है। सप्तम मे विराजमान चन्द्रमा को देखे जाने के कारण भी गुरु अपने बल से उस जनता को या उस व्यक्ति को अपनी अहमियत देता है जो लोग केवल सेवा से अपने को जोड कर रखते है। अगर कोई चालाकी या किसी प्रकार के फ़रेब से अपने को जोड कर रखना चाहता है तो जातक उस व्यक्ति या समुदाय से दूर चला जाना चाहता है चाहे वह अपने खुद के लोग ही क्यों न हों। अगर कोई जरा सा भी साथ दे जाये तो इस प्रकार के लोग अक्सर सनातन धर्म या ज्योतिष आदि मे भी अपना नाम करते है।

दूसरी कुंडली मे गुरु ग्यारहवे भाव मे है लेकिन वह शुक्र की राशि तुला मे है,यह भी एक विचित्र बात देखने मे आती है कि शुक्र गुरु के घर मे है और गुरु शुक्र के घर मे है। इस परिवर्तन योग के कारको को देखने से समझ मे आता है कि जातक अपनी पत्नी के द्वारा शासित होता है या पत्नी परिवार मे जाकर अपनी औकात को बडे के रूप मे प्रदर्शित करता है जैसे दो बहिनो के अन्दर बडी बहिन का पति होना और भाई नही होने के कारण ससुराल की सम्पत्ति को भोगना और बडप्पन बनाकर रखना। इस प्रकार से बडा भाई अपने पिता के स्थान पर और छोटा भाई अपनी ससुराल मे अपना बडप्पन बनाकर रखना भी माना जा सकता है। गुरु जब शुक्र की राशि तुला मे आजाता है तो जातक अक्सर अपनी शादी भी देर से करता है और वह सम्बन्धो के मामले मे भी बेलेन्स करने की अभूतपूर्व क्षमता को रखता है। शुक्र के गुरु के घर मे आजाने से भी जातक की पत्नी ही घर के लक्ष्मी सुख की कारक होती है वह अपने अनुसार शादी के बाद घर पर आकर अपने कार्यों और व्यवहारो से घर को सम्पत्ति से पूर्ण करने वाली होती है।यही बात परिवार की सुख सम्पाति के लिये भी मानी जाती है इस प्रकार के योग देखने के बाद यही पाया जाता है कि जातक पैदा तो अपने परिवार मे हुया है लेकिन उसके सुख को पत्नी परिवार के लोग भोगते देखे जाते है। इसके अलावा इस गुरु से दूसरी कुंडली मे मंगल के पंचम मे होने के कारण भी एक अन्दाज लगाया जाता है कि जातक की सबसे बडी दिक्कत अपने बडे भाई की मर्यादा को ठीक रखने की होतीहै अगर जातक का बडा भाई जो गुरु के रूप मेहै और वह अपने मंगल को जरा सा भी बिगाड लेता है तो छोटे भाई के द्वारा उसकी पत्नी को अथवा उसकी सम्पत्ति को भोगा जाता है यह एक प्रकार से दूषित कर्मो के रूप मे भी जाना जाता है यही बात तब और सही देखने के लिये मिलती जब शुक्र का नवम पंचम का योग मंगल से मिल जाता है इस प्रकार से कभी तो भाई की पत्नी शुक्र बनकर घर की बडी भाभी बन जातीहै और कभी वह देवर के साथ अपने जीवन को बिताने लगती है इस प्रकार के योग शुक्र मंगल की नवम पंचम की युति और गुरु शुक्र के परिवर्तन योग के अन्दर ही देखा जा सकता है,लेकिन बडा भाई अगर शादी नही करता है तो यह योग एक प्रकार से बडे आश्रम आदि के रूप मे भी देखा जा सकता है।

Saturday, March 3, 2012

चलते फ़िरते ग्रह

कई बार दिमाग मे धारणा आती है कि ज्योतिषी अपने द्वारा जब देखो तब ग्रहों के बारे बताते रहते है जब देखो तब सूर्य खराब है चन्द्रमा खराब है मंगल खराब है आदि बातो से दिमाग को बहलाने की कोशिश करते है सूर्य तो सभी के लिये उदय होता है चन्द्रमा भी सभी के जैसा ही दिखाई देता है फ़िर यह ग्रह केवल एक आदमी को ही क्यों परेशान करते है.वास्तव मे एक साधारण आदमी की इससे अधिक सोच हो भी क्या सकती है। कई बार तो लोग झल्लाकर कह ही उठते है कि आखिर मे भदौरिया जी यह शनि हमे ही क्यों परेशान कर रहा है ऐसा कोई रास्ता नही है कि इस शनि को हमसे दूर कर दिया जाये जिससे हम बिना शनि के कम से कम आराम से तो रह सकते है। लोगों की बात सुनकर काफ़ी गुस्सा भी आता है और हंसी भी आती है कि पहले तो शनि को दूर किया ही नही जा सकता है और शनि अगर साथ मे नही है तो आदमी अपने हाथ पैर हिलाना भी भूल जायेगा,उसे शेर मारे या नही मारे उसे चीटियां ही चुन जायेंगी। सही बात है बिना समझे ग्रह को हर कोई नही समझ सकता है।

आकाश मे ग्रह दिखाई देते है,वह पिण्ड ग्रह माने जाते है सूर्य दिखाई देता है भले ही वह कम या अधिक दिखाई देता हो लेकिन दिखाई जरूर देता है इसलिये सूर्य को सूर्य कहा जाता है,काली अन्धेरी रात मे चन्द्रमा का दर्शन जरूर होता है भले ही वह पन्द्रह दिन बढता हुआ दिखाई दे और पन्द्रह दिन घटता हुआ दिखाई दे,इसी प्रकार से मंगल बुध शुक्र शनि गुरु अदि ग्रह है जो बहुत ही दूर होने के कारण कभी छोटे और कभी कुछ बडे दिखाई देते है। इन ग्रहो की शक्तियां हमे उसी प्रकार से मिलती है जैसे सूर्य से प्रकाश भी मिलता है और ऊर्जा भी मिलती है चन्द्रमा से पानी पर असर मिलता है यानी चन्द्रमा के कारण ही धरती पर पानी का होना पाया जाता है,मंगल है दूर जरूर लेकिन उसकी लाल रश्मिया हमे धरती पर लाल रंग के रूप मे मिलती है बुध सूर्य के पास है इसलिये यह हमे धरती पर हरीतिमा का आभास देता है सूर्य के रहने तक हरा और सूर्य के छुपने के बाद बुध का रूप काले रंग मे दिखाई देने लगता है जैसे दिन मे कोई भी हरा भरा पेड हरा दिखाई देता है लेकिन रात होते ही वह हरा रंग काला दिखाई देने लगता है। गुरु की पीली आभा हमे मिलती है और गुरु के द्वारा ही हमे पीला रंग मिलता है,गुरु की पीली रश्मिया ही वायु को इधर उधर घुमाने के लिये और गुरु के उनन्चास उपग्रह हवा के उनचास रूप देने के लिये माने जाते है,शुक्र का रूप मे हमे प्रकृति की कलाकारी के रूप  मे मिलता है बुध के आसपास रहने से सूर्य से प्राप्त ऊर्जा को वह सुन्दरता के रूप मे प्रकट करता है इसलिये शुक्र हमे बल देने वाले कारको मे अपनी शक्ति को बिखेरता हुआ मिलता है शनि हमारे से बहुत दूर है लेकिन सूर्य और शनि की सीमा बन्धी हुयी है जिधर शनि होता है उसके विपरीत शनि की स्थिति होती है यानी जब सूर्य छुप जाता है तो शनि की सीमा अन्धेरे और ठंडी प्रकृति देने के लिये सामने होता है। इन सबकी शक्ति को लाने के लिये राहु और इनकी शक्ति को प्रयोग करने के लिये केतु का कार्य होता है। यह बात तो हुयी आसमानी शक्तियों के बारे में लेकिन वही शक्तिया हर व्यक्ति के अन्दर भी उपस्थित है।

बच्चे के लिये पिता सूर्य है माता चन्द्रमा है मंगल भाई है बुध बहिन बुआ बेटी है गुरु खुद जीव है शुक्र जीवन साथी है पुरुष के लिये स्त्री और स्त्री के लिये पुरुष मे है शनि बुजुर्ग लोग भी है राहु ससुराल है केतु साले भानजे भतीजे लडके आदि है। यह ग्रह चलते फ़िरते है। यही ग्रह शरीर के अन्दर है सूर्य से पहिचान हड्डियों का ढांचा नाम पहिचान आंखो की द्रिष्टि है तो चन्द्रमा से शरीर मे पानी की मात्रा और मन है जो हमेशा पानी और चन्द्र्मा की तरह से चलायमान है,मंगल शरीर मे खून मे शामिल है जितना अच्छा मंगल होता है उतनी ही अच्छी शक्ति मिलती है अच्छी जाति और अच्छी कुल की बात भी मंगल से देखी जाती है इसी प्रकार से बुध जो शरीर मे बोलने के लिये वाणी के रूप मे सुनने के लिये कानो के रूप मे समझने के लिये बुद्धि के रूप मे और सूंघने के लिये नाक के रूप मे भी शामिल है गुरु वायु के रूप मे जिन्दा रखने के लिये समझने के लिये रिस्तो के रूप मे और जीवित रहने के लिये प्राण वायु के द्वारा कार्य करने के लिये है शुक्र का रूप शरीर मे जननेन्द्रिय के रूप मे है शरीर की पहिचान को सुन्दर या बदशूरत बनाने के लिये है,शनि शरीर मे खाल और बालो के रूप मे है जिससे शरीर की सर्दी गर्मी बरसात मे रक्षा होती है बाहरी वातावरण के अनुसार शनि ही रक्षा करने वाला होता है। राहु आकस्मिक बचाव करने वाला है जिसे विचार की श्रंखला मे बदलाव करने वाला किसी एक या अधिक क्षेत्रो मे जाने की धुन सवार करने के लिये और केतु शरीर मे जोडों के रूप मे हाथ पैर शरीर के अंगो को प्रयोग करने के लिये अपनी शक्ति को देने वाला है।

शरीर परिवार के अलावा कुछ ग्रह ऐसे भी है जो केवल आभास देते है कुछ हर स्थान पर मजबूत होते है,जैसे तरबूज के अन्दर जो डंठल होता है वह बुध है तरबूज की बनावट सूर्य है,तरबूज के अन्दर पानी चन्द्रमा है तरबूज का गूदा शुक्र है तरबूज के बीज केतु है तरबूज का शरीर के लिये फ़ायदा या नुकसान देने का कारक राहु है तरबूज का छिलका शनि है। इसी प्रकार से किसी भी कारक मे ग्रहो का होना जरूरी है।

जिस घर मे हम रहते है उस घर की सामने की बनावट ऊंचाई नाम नम्बर आदि सूर्य है,घर के अन्दर पानी का स्थान चन्द्रमा है,घर के अन्दर मंगल रसोई है रोशनी का कारक भी सूर्य है,गुरु हवा आने के रास्तो से है,बुध घर के अन्दर संचार के साधनो से है शुक्र घर की सजावट है शनि घर की दिवालो मे लगे ईंट पत्थर सीमेट प्लास्टर और बाहरी दिवालो के रूप मे है राहु घर मे संडास और सीढिया है केतु घर के अन्दर खिडकी और झरोखों के रूप मे है।

जिस आफ़िस मे हम काम करत है उस आफ़िस का नाम सूर्य है उस आफ़िस के अन्दर काम करने वाले लोग चन्द्रमा है उस आफ़िस की कम्पटीशन मे शक्ति मंगल है आफ़िस के अन्दर टेलीफ़ोन इंटरनेट कम्पयूटर आदि बुध है आफ़िस का मालिक गुरु है आफ़िस की साज सज्जा शुक्र है आफ़िस की रक्षा करने वाले चौकीदार चपरासी आदि शनि है,साफ़ सफ़ाई करने वाले राहु आफ़िस मे कार्य करने के साधन केतु के रूप मे है,वह चाहे टूर  से काम कर रहे हो या बाहर की डाक लाने ले जाने का काम कर रहे हो।

पूजा पाठ मे भी ग्रह अपने अपने अनुसार विराजमान है,देवी देवता की बनावट सूर्य है देवी देवता के लिये सोची जाने वाली क्रिया शैली चन्द्रमा है हवन यज्ञ आदि दीपक अगरबत्ती की आग मंगल है बोली जाने वाली मंत्रो की भाषा प्रार्थना मानसिक प्रार्थना आदि बुध है,धारणा बनाना गुरु है मूर्ति आदि की बनावट पूजा की सजावट शुक्र है पूजा के अन्दर रक्षा करने वाले गेट कमरा अलमारी आदि शनि है फ़ोटो बिजली की सजावट फ़ूलो की सजावट आदि राहु हैऔर इसी राहु को देवता का आक्स्मिक दर्शन या दिया जाने वाला प्रभाव राहु है जितने भी कारक पूजा पाठ आदि के लिये प्रयोग मे लाये जाते है वह केतु के रूप में है।

हिन्दू देवी देवताओं मे सूर्य विष्णु है चन्द्रमा अर्धनारीश्वर शिव है बुध दुर्गा है गुरु ब्रह्मा है और बारह भावो के अनुसार इन्द्र के रूप मे पूजे जाते है शुक्र लक्ष्मी है और एक सौ आठ रूप मे यानी हर भाव मे बारह बारह प्रकार की सोच से अपनी कृपा को देने वाली है शनि भैरों के रूप मे भी है भौमिया के रूप मे भी है और शनि ही काले रंग के देवताओं के रूप मे है राहु सरस्वती भी है बोले जाने वाले जाप किये जाने वाले मंत्र है केतु गणेश भी है तो देवी देवताओं के वाहन के रूप मे भी देखे जाते है।

जातियों में सूर्य राजपूत है चन्द्रमा किसान है मंगल सैनिक है बुध व्यापारी है गुरु धर्म पुजारी है हिन्दू है शुक्र कलाकार है जो सजावट प्रिय है,शनि नौकरी करने वाली जातिया है राहु मुस्लिम भी है और खुशी मे खुशी की भावना देने वाले दुख मे दुख की भावना देने वालेहै यह डर के रूप मे भी है तो उत्साह के रूप मे भी है केतु जाति से सिक्ख भी है तो जाति हर ग्रह के साथ मिलकर अनेक प्रकार की सहायक जातियों के रूप मे भी देखी जाती है।