Wednesday, May 1, 2013

परिवर्तन योग बनाम अधिकारों की अदला बदली

परिवर्तन योग के बारे मे शास्त्रो मे बहुत कुछ पढने को मिलता है और वास्तविक जीवन मे भी देखने सुनने को मिलता है। परिवर्तन का सीधा अर्थ एक दूसरे की अदलाबदली से लिया जाता है। यह योग मेष सिंह और धनु राशि के मालिकों की आपसी अदलाबदली से राजयोग मे तब्दील करता है लेकिन वृश्चिक कर्क और मीन राशि के लिये अशुभ माना जाता है यही नही जब यह योग जोखिम और कार्य की पूरक राशियों मे अपना परिवर्तन योग सामने लाता है तो जातक आजीवन जद्दोजहद के लिये जुटा रहता है लेकिन सफ़लता फ़िर भी कोशो दूर होती है। राशि के स्वामियों का परिवर्तन योग नक्षत्रो के स्वामियों का परिवर्तन योग नक्षत्र के पदो के स्वामियों का परिवर्तन योग भावों के स्वामियों का परिवर्तन योग आदि मुख्य परिवर्तन योग माने जाते है यह बात अक्सर लगनो मे भी मान्य होती है जैसे चन्द्र लगन और लगन के आपसी परिवर्तन कारण सूर्य लगन और चन्द्र लगन के आपसी अथवा लगन और सूर्य लगन की आपसी सम्बन्धो के परिवर्तन का असर भी जातक के जीवन मे आता है,जब नवमांश् और लगन चन्द्र लगन सूर्य लगन कारकांश आदि के परिवर्तन का प्रभाव सामने लाया जाता है तो जातक का जीवन साथी के प्रति अच्छा प्रभाव भी होता है बुरा प्रभाव भी होता है।
प्रस्तुत कुंडली मकर लगन के एक जातक की है और वह लखनऊ मे पैदा हुआ है। शनि मंगल का परिवर्तन योग इस कुंडली मे विराजमान है ९० डिग्री का अन्तर पराक्रम और लाभ के प्रति मिलता है। जब पराक्रम दिखाने का समय आता है तो लाभ के प्रति सोच लिया जाता है और जब लाभ की बात सोची जाती है तो पराक्रम के बारे मे सोचा जाता है,यानी जब भी लाभ के प्रति सोचा जायेगा तो अपनी औकात को परखने का कारण सामने आजायेगा और जब औकात को बनाया जायेगा तब तक लाभ का साधन समाप्त हो जायेगा। यही बात दोनो ग्रहों के प्रति भी समझी जा सकती है जब मंगल उच्च के काम करने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा तो शनि अपनी युति को सामने लाकर कठिन परिश्रम और कम आय के लिये अपने प्रभाव को शुरु कर देगा,इसके साथ ही जो भी सौम्य ग्रह इन दोनो के गोचर से जन्म के स्थानो से प्रभाव मे आयेगा अपनी युति बदलने लगेगा और बजाय लाभ के साधन देने के हानि और असमंजस की स्थिति को पैदा कर देगा इस प्रकार जातक का जीवन शनि मंगल की आपसी परिवर्तन नीति के प्रयोग से हमेशा एक झूले की तरह से झूलता हुआ रहेगा।
मकर लगन का मालिक शनि है और मंगल लाभ का मालिक भी है और खुद के द्वारा किये जाने वाले काम का भी है मंगल जब लगन मे है तो जातक के प्रति मकर लगन का होने के कारण बात के प्रति पक्केपन की उपाधि भी देता है,जो भी काम किया जाता है वह स्पष्ट रूप से द्रश्य करने के लिये भी कहा जाता है लेकिन शनि जब लाभ भाव मे चला जाता है तो जो नीचे तबके के लोग होते है वह लाभ के प्रति अपनी सोच को बदल देते है और उन्हे न्याय संगत कामो से धन कमाने की अपेक्षा एन केन प्रकारेण धन कमाने के प्रति देखा जा सकता है। वैसे भी शनि मंगल की आपसी युति को कार्य के प्रति तकनीक और उत्तेजना ही माना जाता है जब भी शनि जन्म के मंगल के साथ या मंगल जन्म के शनि के साथ गोचर करेगा जातक के किये जाने वाले कार्यों मे आक्षेप विक्षेप मिलने लगेंगे यानी जातक के द्वारा कार्य किया जायेगा और शनि की चालाकी से लाभ दूसरे लोग प्राप्त करने लगेंगे। इसके साथ ही जब कार्य तकनीकी रूप से किया जायेगा उस तकनीक मे शनि का अन्धेरा जातक के किये गये कार्यों को सामने नही लायेगा और जो भी जातक से कार्य करवाने वाले अधिकारी है वह जातक से किसी न किसी बात पर असन्तुष्ट बने रहेंगे और जातक को वह लाभ नही देंगे जो जातक को वास्तविक रूप से मिलना चाहिये। यह बात तो केवल ग्रह परिवर्तन योग के लिये मानी गयी है इसके अलावा जातक की कुंडली को सूक्ष्म विवेचन से देखा जाये तो जातक का गुरु राहु के नक्षत्र शतभिषा के चौथे पाये मे है लेकिन यह पाया मंगल का होने के कारण तथा मंगल जो श्रवण नक्षत्र के दूसरे पाये मे है वह गुरु का पाया होने के कारण गुरु मंगल का परिवर्तन योग की सीमा मे आजाता है। इस प्रकार से जातक ऊंची पढाइयां तो करेगा लेकिन वह पढाइयां केवल तकनीकी रूप से प्रयोग मे ली जाने वाली होंगी और उन पढाइयों के अनुसार जातक का प्राथमिक सोचने का कारण केवल उच्च पद की राजकीय सेवाओं के लिये अपना असर प्रदान करेगा लेकिन सूर्य का नीच का होने के कारण और नीच राशि बैठने के कारण तथा शुक्र का स्वराशि मे वक्री होने के कारण एक प्रकार से कार्य योजना के अनुसार अपने को नही लगा पायेगा और घरेलू झगडों शादी विवाह की चिन्ता और दूसरो की उन्नति को सामने रखकर अपनी योजना को चलाने के कारण अपनी बुद्धि और विवेक का सहारा भी नही ले पायेगा तथा शुक्र की वक्री नीति की जल्दबाजी की नीति से की गयी पढाइयों का पूर्ण लाभ भी नही ले पायेगा।
एक प्रकार से शनि के अन्दर मंगल का भाव आने से वह अपने अन्दर तकनीकी बुद्धि को प्राप्त कर तो लेगा और जन्म के मंगल पर अपना असर भी तकनीकी बुद्धि के लिये देगा पर परिवर्तन योग के कारण वही मंगल शनि की चालाकी और विवेक हीन बुद्धि का असर प्रदान करने के बाद मंगल का असर लेने के बाद अपनी कन्ट्रोल करने वाली नीति को जन्म के गुरु को देगा और गुरु के अन्दर वक्री होने से स्वार्थी नीति होने तथा खुद के समाज परिवार और मर्यादा आदि का ख्याल नही रखने के कारण एक प्रकार से अपने ही लोगो से दूर रखकर अपने कार्यों के अन्दर कोई न कोई कमी लाने और उसे निकालने मे अपनी दिन चर्या को लगा देगा।
वक्री गुरु का एक असर और जातक के लिये देखा जा सकता है कि वह धन भाव मे होकर शनि की राशि मे अपने वक्री स्वरूप को प्रदान करता है इस प्रकार से जातक के अन्दर एक प्रकार से आधुनिकता के नाम से अलग ही दिखाई देने की प्रवृत्ति भी सामने आती है। इस प्रवृत्ति से वह अपने को दिखाना तो बहुत कुछ चाहता है लेकिन पराक्रम मे राहु होने के कारण वह डरता भी है और बाहरी कारणो नेट कम्पयूटर और बडी संस्थानो के प्रति तर्क वितर्क करने का एक जरिया भी बन जाता है जब भी राहु मीन राशि का होता है और शनि वृश्चिक राशि का होता है तो जातक के अन्दर केवल आशंकाओं की आंधिया चला करती है वह अपने अनुसार अपने कार्य क्षेत्र के प्रति प्रचार प्रसार और कबाड से जुगाड बनाने की नीति को प्रयोग मे लाता है।
शनि मंगल का आपसी सम्बन्ध एक प्रकार से भौतिक पदार्थों मे गर्म पत्थर के कैसा भी माना जाता है साथ ही शनि मंगल को आपसी सम्बन्धो मे एक ऐसी आग के रूप मे देखा जाता है जो धीरे धीरे एक बर्फ़ के पहाड को पिघलाने का काम करती है इसे ही गरीबी धन अभाव का कारक भी माना जाता है जैसे अधिक जिम्मेदारियां होने के बाद अपनी कम आवक से जिम्मेदारियों को पूरा करते जाना।
ग्यारहवे भाव मे शनि का रूप बडे भाई के रूप मे भी देखा जा सकता है,और लगन का मंगल केवल अकेले होने की बात भी करता है,इसके साथ ही शुक्र वक्री होकर तथा साथ मे तुला राशि का बुध होने से पत्नी और पत्नी की बहिन के लिये एक ही स्थान या परिवेश या घर मे होने की बात भी करता है एक सम्बन्ध को हटाकर दूसरे सम्बन्ध के प्रति भी अपनी भावना को प्रदान करता है। नीच का सूर्य होने से जातक को अक्सर पत्नी और ससुर पर निर्भर भी करता है। इस सूर्य की युति को कम करने के लिये जातक को लाल किताब के उपाय के अनुसार चार तांबे के चौकोर वर्गाकार टुकडे लेकर चार रविवार लगातार बहते पानी मे बहाने से सूर्य जो राजयोग को जला रहा है वह बुध को स्वतंत्र कर सकता है और जातक को कुछ हद तक सूर्य शनि के बीच के बुध और शुक्र की पापकर्तरी योग की सीमा को कम करने के लिये भी कारगर सिद्ध हो सकता है। इसी प्रकार से पंचम का चन्द्रमा भी जब नवे केतु से सम्पर्क रखता है तो जातक को सहायक के काम करने के लिये ही अपनी गति को प्रदान करता है इस प्रकार से जातक का सम्पर्क तो बहुत बडे और अमीर लोगो से होता है लेकिन उनके लिये केवल सहायता के काम करने के बाद कुछ समय के लिये ही जीवन यापन के साधन मिल पाते है मंगल के साथ केतु की युति लेने से जातक के अन्दर धन और जनता से वसूले जाने वाले धन के प्रति जिम्मेदारिया तो मिलती है लेकिन राहु के द्वारा जनता के कारक चन्द्रमा से युति लेने से एक प्रकार का डर जो धन आदि से सम्बन्धित होता के प्रति भी अपनी बात को जाहिर करता है।
परिवर्तन योग के कारण जो शनि चन्द्रमा से युति लेकर  कार्य को कुये से पानी निकालने का काम करता है उसी प्रकार से मंगल की युति से चन्द्रमा उसे दवाइयों या गर्म पानी के रूप मे अपनी युति को प्रदान करता है,यही कारण केतु के लिये भी अपनी प्रभाव वाली नीति को सामने लाता है धन से सम्बन्धित या शिक्षा न्याय स्कूली कार्य आदि के प्रति अपनी युति को शनि के द्वारा खनिज सम्पत्ति और गुप्त कार्यों के प्रति प्रसारित करता है तो मंगल की युति से दक्षिण दिशा और यात्रा आदि के कार्यों को करने ब्रोकर वाले कामो को करने की अपनी योजना को प्रदान करता है। जातक के लिये केतु भी अपनी भूमिका को अदा करता है सबसे पहले केतु के सामने सूर्य होने से जातक सरकार से प्रदत्त सहायता प्राप्त संस्था मे काम करता है वक्री शुक्र होने से वह कार्य प्रायोजित कामो को करने के लिये स्त्री सम्बन्धी सुविधाओ को प्रदान करने के लिये बुध के साथ होने से कार्य को व्यवसाय के रूप मे लाने के लिये और शनि के साथ युति होने से आकस्मिक चिकित्सीय सहायताओं के लिये भी माना जाता है। यह केतु ननिहाल खानदान मे खाली पन देता है मीन का राहु जातक के दादा परदादा को अपने जन्म स्थान से दूर लेजाकर बसाता है साथ ही जो भी जातक की जन्म भूमि है उसे नेस्तनाबूद करना या जातक को उस जन्म भूमि से कोई फ़ायदा नही होना भी देखा जा सकता है यही युति जातक को कमर सम्बन्धी बीमारी भी प्रदान करता है साथ ही जातक को सन्तान सम्बन्धी कारण होने के कारण चन्द्रमा से युति लेने के कारण जातक के द्वारा जीवन मे अर्जित आय को पुत्री धन के रूप मे देखता है।

Monday, April 15, 2013

कैसे देखते है,ग्रह एक दूसरे को ?

लगन आदि स्थानो के बारे मे पहले ही लिख चुका हूँ भावानुसार जन्म के ग्रह एक दूसरे को किस प्रकार से देखते है और उनके आपसी सम्बन्ध किस प्रकार का प्रभाव जीवन मे देते है इसके बाद गोचर के ग्रह भी जन्म के ग्रह को और जन्म के ग्रह गोचर के ग्रह को कैसा प्रभाव देते है इस बात को समझाने के लिये प्रस्तुत कुंडली की विवेचना कर रहा हूँ आप लोगों ने जिस प्रकार से मेरी बेवसाइट को प्रयोग किया है और हमारे ब्लाग पसन्द किये है उसके लिये आप लोगों का आभारी हूँ,पाठको की हिम्मत देने वाली बाते केवल तभी मालुम चलती है जब पाठक अपने अच्छे और बुरे दोनो प्रकार के कारण प्रस्तुत करते है,अन्यथा मै भी हाड मांस से बना एक साधारण मनुष्य ही हूँ।
सहायता करना अच्छी बात है सहायता से पता चल जाता है कि दुनिया मे इंसानियत जिन्दा है और लोगो के अन्दर मानवीय व्यवहार करने का प्रयास जारी है.कई बार कार्य क्षेत्र के लोग घर की सहायता करने मे और घर के अन्दर चलने वाले शक या भ्रम वाले कारण दूर करने के लिये अपनी शक्ति का प्रयोग सहायता के रूप मे करते है। सहायता वही कर सकता है जो केतु ग्रह से युक्त होता है केतु दुनियावी कुत्ते के रूप मे माना जाता है जिसे लालकिताब मे भी बहुत ही रोचक स्थिति से नवाजा गया है। कहते है बहिन के घर भाई,ससुराल  मे जंवाई और मामा के घर भानजा,यह इंसानी रूप मे केवल आदेश से काम करने वाले होते है और यह अपने दिमाग का प्रयोग नही कर सकते है। जितना कहा जाये उतना करने पर ही इनकी औकात होती है और अगर अपने दिमाग से काम करना इन्हे बता दिया जाये तो केवल उन्ही कामो को कर सकते है जो पहले से इन्हे बताया गया है। दुनियावी समझ इनके अन्दर नही होती है। केतु को केन्द्र भी कहा जाता है,राहु फ़ैलाव देता है तो केतु उसका केन्द्र होता है। इस कुंडली मे केतु की स्थिति दसवे भाव मे है तो कार्य क्षेत्र जो जीवन के प्रति किया जाता है वह इस केतु के जिम्मे डाला गया है,यह केतु कुम्भ राशि मे होने के कारण और कुम्भ राशि का स्वामी कहने को तो शनि लेकिन वास्तविकता मे यूरेनस के होने से संचार कमन्यूकेशन सन्देशे पहुंचाने वाला और इधर की बात उधर करने वाला आदि कार्य करने के लिये अपनी योग्यता को प्रदान कर व्यक्ति से इसी प्रकार के काम भी करवाता है और दोस्त बडे भाई और बडे भाई बहिन मामा का लडका आदि के रूप मे पारिवारिक स्थिति को भी सम्भालने का काम करता है। यह स्थिति केवल पहले से सीखे गये या बताये गये कामो पर ही निर्भर करता है केतु का यह रूप अक्सर सरकारी कामो के लिये फ़ाइलो के अम्बार को देखने वाला भी हो सकता है राहु की परिधि चौथे भाव मे होने से सरकारी रूप से जनता के लिये किये जाने वाले कामो के लिये भी माना जा सकता है,सरकारी रूप से जनता के लिये प्राथमिक शिक्षा के लिये लिये किये जाने वाले कामो से भी माना जाता है और साले भांजे मामा आदि के लिये दूध का व्यवसाय या पानी आदि के क्षेत्र मे काम करना भी माना जाता है वैसे दसवे भाव का कुम्भ राशि का केतु सरकारी शिक्षा मे मास्टरी करने का मतलब भी देता है। इस केतु पर अष्टम शनि और गुरु की नजर होने से यह केतु न्याय सम्बन्धी बचत और बीमा वाले धन के प्रति कानूनी रूप से धन आदि को सम्भालने और कानूनी रूप से लोगो के प्रति कमन्यूकेशन के प्रति इन्टरनेट बेवसाइट आदि के प्रति नजर रखने और बनाने बिगाडने का काम भी कर सकता है जो लोग धर्म और न्याय के प्रति गुप्त काम करते है आने जाने विदेश आदि से अपना सम्बन्ध रखने के बाद न्याय के विपरीत काम करते है सरकारी रूप से टेक्स आदि के प्रति चोरी और कानूनी रूप से छल करने की कोशिश करते है यह केतु उनकी पहिचान भी करने मे सहायता करता है और जनता के प्रति फ़ैले भ्रम को भी दूर करने की कोशिश करता है। वैसे गुरु केतु के आपसी सामजस्य को समझने के बाद एक बात और भी देखी जाती है कि केतु इस भाव मे रहकर व्यक्ति को तैराक भी बना देता है और खेल कूद मे नाम भी देने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करता है,इसके अलावा मनोरंजन के क्षेत्र मे भी अपना नाम करता है। जैसे एक हीरो कई फ़िल्म बनाकर अपना नाम कर जाता है वैसे इस क्षेत्र का केतु नाटक करने और नाटकीय काम करने मे भी उस्ताद माना जाता है। कई बार देखा होगा कि कोई व्यक्ति गाली देने मे उस्ताद होता है तो किसी किसी को केवल ठोकने पीटने मे ही मजा आता है मिथुन का मंगल अक्सर बजाय बोलने के ठोकने का काम अधिक करता है उसे बोलना कम आता है केवल उसे ठोकने से मतलब होता है वह ठोकना चाहे बोलने की भाषा मे हो वह भावुकता को समझकर उस भावुकता की भाषा को इस प्रकार से प्रकट करता है जैसे कि वह बजाय बोलने के गिन गिन कर मार रहा हो। यह बात जब भावुकता से जुडती है तो चन्द्र मंगल की युति को मिथुन राशि मे होना देखा जाता है इसके बाद एक बात और भी देखी जाती है कि मिथुन का मंगल माता की छोटी बहिन के पति की बहिन तब बन जाता है जब इस मंगल का साथ देने के लिये चन्द्रमा भी मिथुन राशि मे होता है। लेकिन मिथुन राशि अगर कुंडली मे दूसरे भाव मे होती है तो व्यक्ति ठंडी और गरम दोनो प्रकार की मिली जुली बात को करता है वह एक स्थान पर कतई टिकने वाला नही होता है। वह एक दम तो नकारात्मक बोलना शुरु कर देगा और एक दम सकारात्मक होकर गरम होकर बोलना शुरु कर देगा। यह बात पराक्रम के लिये भी सोची जा सकती है। धन की राशि मे मंगल और चन्द्र के मिथुन राशि मे होने के कारण शुक्र का प्रभाव अधिक होने से व्यक्ति के अन्दर उन स्त्रियों से पारिवारिक सम्बन्ध भी बन जाते है जो कम से कम अपने घर परिवार और रिस्तो से कटु अनुभवों को सहती रहती है। यह केतु उन स्त्रियों के साथ मित्रता का व्यवहार करता है और जब इस केतु को किसी प्रकार की रक्षा वाली स्थिति का मुकाबला करना होता है तो बुजुर्ग स्त्रियां जो खरे स्वभाव की होती है वे इस केतु की सहायता के लिये सामने आजाती है। कुम्भ राशि मे केतु के रहने से केतु जमीन से जुडा रहता है लेकिन मीन राशि मे केतु के जाते ही वह आसमान मे उडने के लिये या जमीन से सम्बन्धो का समाप्त होना भी माना जाता है जैसे कम्पयूटर की वायरिंग अगर जमीन तक सीमित है तो वह कुम्भ राशि तक अपना प्रभाव तारो से रखेगी और वह अगर मीन राशि मे चली जाती है तो कम्पयूटर का संचार क्षेत्र डाटा कार्ड और ब्लूटूथ जैसे कारको से केतु के प्रति अपना रूप बदल देगा। इस केतु का रूप अगर सही मायने मे देखा जायेगा तो नगद धन की प्राप्ति के लिये और लोगो की सेवा वाले कामो से ही सम्बन्ध रख सकता है यह किसी प्रकार के व्यवसाय मे केवल सफ़ल तभी हो सकता है जब यह राहु की परिधि को कार्य वाले केतु के केन्द्र से जोड कर रखता है।
राहु केतु का एक नियम और होता है कि इनकी चाल उल्टी होने के कारण यह अपने से बारहवे भाव से लेकर अपने से दूसरे भाव को प्रदान करते है,अगर केतु नवे भाव मे है तो वह आठवे भाव के सभी साधनो को चाहे वह मौत से सम्बन्धित हो या जासूसी से सम्बन्धित हो या दलाली के हो या फ़िर कानूनी रूप से गुप्त भेदो को अपमान मौत जान जोखिम विदेशी कारणो से सम्बन्धित हो सभी का रूप लेकर कार्य भाव को प्रदान कर देगा।
इसी नियम के अनुसार एक बात अलावा ग्रह अपने से दूसरे भाव से लेकर बारहवे भाव को प्रदान करते है जैसे इस कुंडली मे विराजमान सप्तम का शुक्र जातक की पत्नी भाव मे है और यह शुक्र अष्टम गुरु यानी बीमा बचत विदेश ताऊ खानदान गुप्त भेद जो न्याय ज्योतिष आदि से सम्बन्धित होते है उन्हे प्राप्त करने के बाद छठे भाव के सूर्य यानी पत्नी की आंखो की बीमारिया पैरो की हड्डियों की बीमारिया नौकरी आदि के लिये दी जाने वाली रिस्वत कानूनी सहायता के द्वारा सरकारी क्षेत्र से प्राप्त धन आदि को प्रदान करने का काम करेगा.यह बात रत्नो से भी जुडी हो सकती है प्राचीन धर्म स्थानो से भी जुडी हो सकती है खुद के द्वारा न्याय आदि के कामो मे दलाली करने से भी जुडी हो सकती है। यह शुक्र जब भी कोई ग्रह इस कुंडली के बारहवे भाव मे गोचर करेगा तो उसके बारे मे कर्जा दुश्मनी बीमारी आदि निकालने की क्रिया को करने लगेगा जैसे ही कोई शुक्र के अष्टम मे गोचर करेगा उसके अपमान मौत गुप्त भेद आदि निकालने का काम करने लगेगा जिसे आज की भाषा मे तकनीक भी कहा जाता है इंजीनियरिंग भी कहा जाता है। जब भी कोई ग्रह इस शुक्र के चौथे भाव मे जायेगा तो वह मानसिक रूप से अपने प्रभाव को प्रस्तुत करने लगेगा और कमन्यूकेशन और अन्य साधनो से लोगो की खुद के व्यवसाय के रूप मे सहायता करने लगेगा.
इस प्रकार की बातो से समझा जा सकता है कि ग्रह कैसे एक दूसरे के प्रति अपनी भावना को भी रखते है और अपनी भावना को प्रसारित करने के लिये कैसे कैसे नियम सामने रखते है.

Sunday, April 7, 2013

कानूनी चक्कर और बचाव

कानून दो प्रकार के होते है एक तो प्रकृति का कानून जिसे प्रकृति खुद बनाती बिगाडती है दूसरा इंसानी कानून जो इंसान खुद के बचाव और रक्षा के लिये बनाता है। प्रकृति का कानून सर्वोपरि है। प्रकृति को जो दंड देना है या बचाव करना वह स्वयं अपना निर्णय लेती है। अंत गति सो मति कहावत के अनुसार जीव उन कार्यों के लिये अपनी बुद्धि को बनाता चला जाता है जो उसे अंत समय मे खुद के अनुसार प्राप्त हों। कानून के अनुसार भी जीव को तीन तरह की सजाये दी जाती है पहली सजा मानसिक होती है जो व्यक्ति खुद के अन्दर ही अन्दर रहकर सोचता रहता है और वह अपने शरीर मन और दैनिक जीवन को बरबाद करता रहता है दूसरी सजा शारीरिक होती है जो प्रकृति के अनुसार गल्ती करने पर मिलती है और उस गल्ती की एवज मे अपंग हो जाना पागल हो जाना भ्रम मे आकर अपने सभी व्यक्तिगत कारको का त्याग कर देना और तीसरी सजा होती है जो हर किसी को नही मिलती है वह शारीरिक मानसिक और कार्य रूप से बन्धन मे डाल देना,इसे आज की भाषा मे जेल होना भी कहा जाता है। बन्धन योग के लिये एक बात और भी कही जाती है कि व्यक्ति अगर खुद को एक स्थान मे पैक कर लेता है या कोई सामाजिक पारिवारिक कारण सामने होता है वह अपनी इज्जत मान मर्यादा या लोगो की नजरो से बचाव के लिये अपना खुद का रास्ता एकान्त मे चुनता है तो वह भी स्वबन्धन योग की सीमा मे आजाता है। उपरोक्त कुंडली देश के एक जाने माने कलाकार और राजनीतिज्ञ की है महत्वपूर्ण व्यक्ति होने के कारण कहा जाये तो गुरु जो बारहवे भाव मे बैठ कर एक प्रकार से "खुदा महरबान तो गधा पहलवान" वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है। गुरु शनि के प्रति अपनी शक्ति प्रदान करने बाद बुद्धि को प्रखर बना रहा है और वाणी के स्थान मे शनि के वक्री होने के कारण तथा वाणी के कारक बुध का भाग्य मे वक्री होने के कारण उल्टा बोलना भी एक प्रकार से इस व्यक्ति को आगे से आगे रास्ता देने के लिये माना जाता है। लगनेश राज्य भाव मे है और इनके साथ शुक्र होने के कारण एक तो राज्य की सीमा मे प्रवेश करवाते है और दूसरे एक्टिंग के क्षेत्र मे अपनी प्रसिद्धि देते है। शनि वक्री के साथ नवम पंचम का योग होने के कारण जो भी काम होते है वह बुद्धि से जुडे होते है,लेकिन एक बात और भी देखी जाती है कि चन्द्रमा जो सलाहकार के रूप मे सप्तम मे है और भाग्य का मालिक भी है कभी कभी इस व्यक्ति के साथ छल करने का काम करता है आप समझ गये होगे कि इस व्यक्ति के साथ दो बार विवाह के प्रति छल हुआ और इसी प्रकार से यह व्यक्ति भावुकता के वश मे होकर खुद को उतना आगे नही कर पाया जितना इसे किया जाना था। केतु जो इस व्यक्ति को मनोरंजन और राज्य के प्रति सर्वोच्च ऊंचाइयों मे ले जाता है वह जब पिछले समय मे सूर्य और वक्री बुध के साथ था तो देश के गणमान्य व्यक्तियों मे नाम दिया लेकिन शुक्र मंगल के साथ होने पर तथा जन्म के केतु और गोचर के केतु के बीच मे षडाष्टक योग होने के कारण और इसके द्वारा आगे प्राप्त पद के लिये अन्दरूनी दुश्मनी होने के कारण कानूनी जाल मे फ़ंसाने का क्रम भी इसी मंगल ने किया। कहा जाता है कि मंगल दो प्रकार का होता है एक नेक मंगल जो मकर राशि मे हो और खुद के निर्णय को लेने मे समर्थ हो हर काम को नेक तरीके से करता जाये और दूसरा होता है बद मंगल जिन्होने लाल किताब का अध्ययन किया है उन्हे वास्तविक रूप से पता होगा कि मंगल का बद होना तभी मुनासिब होता है जब वह शुक्र के साथ हो बुध के साथ हो या शनि राहु केतु की सीमा मे अपना दखल दे रहा हो। यह मंगल शुक्र के साथ होने से बद मंगल की श्रेणी मे आजाता है और इस मंगल के लिये उच्च भाव मे होने के बाद भी अपनी शुक्र की नीति से तकनीकी मनोरंजन के साथ साथ तकनीकी राजनीति का कारण भी पैदा कर देता है।
राहु इस मंगल के आगे होने के कारण चल कर आफ़त पालने के लिये भी माना जाता है,लेकिन कन्या राशि का होने के कारण और पंचम केतु के साथ साथ वक्री शनि से देखे जाने के कारण अचानक सहायता मे भी आजाता है और जो घटना या कारण इसके लिये एक प्रकार से समाप्त करने का कारण पैदा करती है वही घटना या कारण अक्समात बचाव करने के बाद प्रसिद्धि देने के लिये भी बन जाता है। इस राहु को मंगल और शुक्र की युति प्राप्त होने के कारण या राहु से बारहवे भाव मे मंगल शुक्र होने के कारण राहु खुद को समाप्त करने के बाद प्रसिद्धि देता है। यह बात आप लोगो को याद होगी जब इनकी पहली पत्नी को ब्रेन ट्यूमर हुआ था और इसके बाद राहु जो जीवन साथी के रूप मे सामने आया था वह खुद को समाप्त करने के बाद इन्हे प्रसिद्धि देता चला गया। राहु अपने कनफ़्यूजन को जरूर देता है चाहे वह खुद के प्रति हो या दूसरो के प्रति हो.
यही राहु बारहवे केतु से विरोधाभास करने के बाद कभी कभी खुद को लम्बी अडचल मे भी डाल देता है,उल्टा बोलने के कारण और खुद के प्रति अधिक आत्मीय विश्वास होने के कारण यह व्यक्ति अपनी साख को कायम रखने के लिये प्रसिद्ध है,और कोई भी जेल या बन्धन इस व्यक्ति को छ: महिने से अधिक नही रख सकता है उसका कारण है कि यह राहु शुक्र मंगल से लेकर बारहवे गुरु को सहायता प्रदान कर रहा है जब बारहवा गुरु सहायता मे हो तो सहायता राहु के द्वारा ही प्राप्त हो जाती है।

Thursday, March 7, 2013

तुला राशि का जन्म का राहु

भचक्र से तुला राशि सातवी राशि है और इस राशि का महत्व जीवन साथी साझेदार जीवन मे लडी जाने वाली जंग तथा सेवा आदि से प्राप्त आय सेवा के प्रति समाप्त करने वाले कारण सन्तान की हिम्मत और सन्तान कैसी है किस प्रकार के आचार विचार उसके अन्दर है वह अपने को समाज मे किस प्रकार के क्षेत्र से जुडकर अपने को संसार मे दिखायेगी माता के घर और माता की मानसिक स्थिति को पिता के कार्य को और कार्यों से जुडे धन आदि की समीक्षा करने के लिये अपनी क्रिया को करेगी. राहु को वैसे छाया ग्रह कहा जाता है,इसके साथ ही राहु के बारे मे कहा जाता है कि ऐसा कोई भी कारक नही है जो आसमान से नही जुडा है चाहे वह अच्छा हो या बुरा सभी की शक्ति को समेटने के लिये राहु का प्रभाव बहुत ही बडे रूप मे या आंशिक रूप से समझना जानना जरूरी है। तुला राशि का राहु मानसिक रूप से अपने को हमेशा उपरोक्त कारणो से जोड कर रखता है और इस राहु का प्रभाव घर के सदस्यों में अच्छे और बुरे रूप से भी देखा जाता है। जिस दिन इस राहु के साथ जन्म होता है उसके अठारह महिने पहले से ही घर के बुजुर्ग सदस्यों पर असर को देखा जाने लगता है। राहु का प्रभाव पिता के बडे भाई पर पहले पडता है इसके बाद यह प्रभाव बडे भाई या बहिन पर पडता है फ़िर इसका प्रभाव छोटे भाई बहिन पर भी पडता है । इसके साथ ही जातक की आमदनी के क्षेत्र पर जातक एके भेषभूषा पर भी पर इसका असर पडता है इस राहु के कारण पैदा होने वाले जातक अक्सर सबसे पहले बायें हाथ से लिखने पढने वाले या इस हाथ से काम करने के लिये पहले ही अपने को उद्धत करते है अक्सर यह भी देखा जाता है कि इस राशि मे राहु वाले व्यक्ति अपने को जीवन साथी के भरोशे ही रखते है उनके लिये कोई भी काम करना मुश्किल होता है जबतक कि वे अपनी भावना को आशंका को अपने जीवन साथी से न बता दें,यह भी देखा गया है कि इस राशि का राहु पति पत्नी के बीच मे एक प्रकार का आशंकाओं का जाल भी बुन देता है और दोनो के बीच मे वाकयुद्ध कारण अक्सर घर का माहौल तनाव वाला बन जाता है और कुछ समय के लिये ऐसा लगता है कि पति पत्नी मे एक ही रहेगा। इस राशि के राहु वाला व्यक्ति पैदा होने के बाद एक प्रकार से आवारगी का जीवन बिताने के लिये भी माना जाता है वह कहां जा रहा है किसके लिये जा रहा है,उसे खुद पता नही होता है। इसके अलावा भी कई शास्त्रो ने अपने अपने अनुसार कथन किये है जो आज के युग मे कम ही फ़लीभूत होते देखे गये है।

कहा जाता है कि तुला राशि का राहु व्यक्ति के अन्दर अधिक कामुकता को देता है और कामुकता के कारण व्यक्ति का सम्बन्ध कई व्यक्तियों से होता है। यह बात मेरे अनुसार तभी मानी जाती है जब राहु शुक्र या गुरु पर अपना असर दे रहा हो तो शुक्र पर असर होने के कारण पति के प्रति कई स्त्रियों से सम्बन्ध बनाने के लिये और पत्नी पर अपने को सजाने संवारने के प्रति अधिक देखा जाता है जब यह जीवन की जद्दोजहद मे आजाता है तो व्यक्ति एक से अधिक कार्य करने साझेदारी और इसी प्रकार के कामो से अपने को आगे बढाने के लिये भी देखा जाता है। तुला राशि का राहु शुक्र के घर मे होने से और व्यवसाय के प्रति अपनी सोच रखने के कारण व्यक्ति को हर मामले मे बडी सोच देकर व्यवसाय के लिये अपनी समझ को देता है। अक्सर इस असर के कारण ही कई लोग तो आसमान की ऊंचाइयों मे चले जाते है और कई लोग अपने पूर्वजो के धन को भी अपनी समझ से बरबाद करने के बाद शराब आदि के आदी होकर अपने जीवन को तबाह कर लेते है। जिन लोगो ने विक्रम बेताल की कथा को पढा होगा उन्हे इस राहु का पूरा असर समझ मे आ गया होगा,यह राहु एक भूत की तरह से व्यक्ति के ऊपर सवार होता है और अपनी क्रिया से जीवन की वह बाते सामने ला देता है जिन्हे हर कोई अपनी बुद्धि से सामने नही ला सकता है जैसे ही व्यक्ति अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है यह राहु का नशा अपने आप ही पता नही कहां चला जाता है। इस राहु का नशा एक प्रकार से या तो बहुत ही भयंकर हो जाता है और उतारने के लिये व्यक्ति पुलिस स्टेशन लाया जाता है,या इस राहु के नशे को उतारने के लिये अस्पताल काम मे आते है या इस राहु का नशा उतारने के लिये धर्म स्थान अपना काम करते है इसके अलावा इसका नशा तब और भी खतरनाक उतरता है जब व्यक्ति अपनी धुन मे चलने के कारण सडक या किसी अन्य प्रकार के कारण से दुर्घटनाग्रस्त हो जाता है।



Monday, March 4, 2013

राहु घुमा देता है बुद्धि को

कुंडली मे राहु का गोचर जन्म के गोचर से कुछ अलग ही माना जाता है जन्म के समय का राहु तो व्यक्ति के अन्दर अपनी शक्ति के अनुसार सम्बन्धित भाव और राशि तथा ग्रहों का प्रभाव अजीवन देता है लेकिन गोचर का राहु अपने अनुसार कुछ अलग से ही अपने असर को प्रदान करता है। एक प्रसिद्धि आदमी बदनामी को झेलने लगता है और एक बदनाम आदमी प्रसिद्ध हो जाता है यह सब राहु का खेल ही माना जाता है।
कहा जाता है कि नशा आदमी को या तो बरबाद कर देता है या इतना आबाद कर देता है कि उसकी सात पुस्तो में कोई आबाद या बरबाद नही हुआ होता है। आदमी को कई प्रकार के नशे झेलने को मिलते है,कुंडली के बारह भावो के अनुसार नसे भी बारह भावो से जुडे होते है बदलती है तो केवल प्रकृति राशि ग्रहो के असर और ग्रहो की द्रिष्टि से नशे की लत बदल जाती है।
राहु पहले भाव मे अपने को अपने शरीर से अलग ही नही होने देता है वह जो भी सोचने को मजबूर करता है वह केवल अपने शरीर अपने नाम अपने परिवार अपनी जीवन शैली अपने धर्म और भाग्य के प्रति ही सोचता रहता है इन्ही कारको को वह आगे बढाने के लिये कितने ही प्रयास होते है वह करता रहता है। शरीर के बल को बढाने के लिये राहु हमेशा ही अपने प्रयास जारी रखता है,वह असर दवाइयों के प्रयोग से अपने को शक्ति से पूर्ण करने के लिये राहु के साधनो का प्रयोग करना आदि बाते मानी जाती है। यह भी देखा जाता है ऐसा व्यक्ति अपने आसपास के माहौल से एक प्रकार की लोगो की भीड को भी इकटठा करना जानता है और उसे अपने बाहु बल के लिये भीड का प्रयोग करना भी आता है। यही बात पहले भाव के नाम के लिये भी जानी जाती है अक्सर देखा होगा कि एक व्यक्ति कितने ही लोगो से अपने को जोड कर रखता है और वह अकेले रहने के लिये कभी भी तैयार नही होता है वह भीड भाड वाले स्थान पर रहने लोगो के कलरव के बीच अपनी बात को कहने के लिये और जितने भी लोग उसके आसपास होते है उन्हे सभी को अपने अनुसार अपने घेरे मे रखने के लिये अपनी तैयारी भी रखता है और जैसे भी हो राशि और ग्रहो के असर से वह सभी को अपने घेरे मे रख कर जिन्दा रखना चाहता है। उसे बिना लोगो के साथ रहे चैन भी नही आता है उसे लगता है कि जब वह लोगो से दूर होता है तो वह कुछ है ही नही या उसके पास से सब कुछ छीन लिया है।
अपने नाम को प्रसारित करने के लिये भी उसकी तैयारी चलती रहती है वह चाहता है कि कितने ही लोग उसके नाम को ले,अपने नाम को वह राशि और ग्रहो के अनुसार प्रसारित करने के लिये अपनी बुद्धि को का प्रयोग करता है। वह अगर मेष राशि का प्रभाव प्राप्त करता है तो वह चाहता है कि उसके लिये एक प्रकार से रक्षा करने वाले कारणो मे उसका नाम बडे रूप मे लिया जाये उसे कोई पदक या या इसी प्रकार की पोस्ट मिले जिससे वह अपने को अपनी पोस्ट और पदक के अनुसार अपनी छाया मे रख सके उसे अपने नाम के प्रति अभिमान बना रहे वह अपने नाम का प्रयोग करने के बाद अपने काम को करवा ले वह अपने नाम के आगे किसी और नाम को सुनना भी नही चाहता है। उसका नाम अखबारो मे चले उसका नाम टीवी पर चले और जो देखो वह उसके नाम का ही गुणगान करे। यह एक प्रकार का बडा नशा इसलिये माना जाता है कि हर व्यक्ति अपने नाम को ही सुनना चाहता है उसे किसी अन्य का नाम सुनने के बाद एक प्रकार की अजीब सी अशान्ति सी होती है। वह चाहता है कि लिये जाने वाले नाम के स्थान पर उसका नाम लिया जाता तो कितनी अच्छी बात होती । इसके अलावा भी कई बार कहानियों मे गाथाओ मे इतिहास मे सुनने मे आता है कि एक व्यक्ति ने अपने रक्षात्मक कारणो से दूसरो के लिये बलिदान कर दिया,इस बात को अगर ज्योतिष के भाव से देखा जाये तो वह बलिदान का रूप राहु रूपी छाया का एक हिस्सा था,वह चाहे जान कर किया गया हो या अन्जाने मे किया गया हो,कोई न कोई कारण राहु का ही सामने आता है। वृष राशि के लिये भी राहु का प्रभाव देखा जाता है कि व्यक्ति अपने को भौतिक धन के मामले मे नामी ग्रामी बनना चाहता है वह चाहता है कि लोग उसे धनपति के रूप मे देखे और वह अपने को जहां भी जाये एक धनी व्यक्ति की हैसियत से दिखावा करे,लोग उसके प्रति अपने सम्मान को उसकी आज्ञा को  उसके प्रति किये जाने वाले व्यवहार को धन के कारण ही उच्च का समझे,वह जो भी चाहे करे और जो भी चाहे खरीदे जिसे भी चाहे प्राप्त करे। इस बात के लिये उसके अन्दर एक प्रकार का नशा पैदा हो जाता है वह केवल हर बात को काम को इन्सान को व्यवहार को धन के रूप मे ही देखना पसन्द करता है उसे इस बात से कतई भरोसा होता है कि इन्सानियत की भी कीमत होती है व्यवहार मे भी केवल एक दूसरे की सहायता का कारण होता है या इन्सान का जन्म ही केवल लोगो की सहायता करने के लिये हुआ है। उसके लिये केवल सहायता का कारण भी पैदा होता है तो वह केवल अपनी सहायता को धन के रूप मे करना चाहता है उसे अपने धन की कीमत जब पता चलती है जब वृश्चिक का केतु अपना असर देकर असहनीय दर्द और कष्ट देना शुरु करता है,तब वह सोचता है कि वह धन के नशे के अन्दर कितना दुनियादारी को भूल गया था,वह अपने धन से बडे अस्पतालो के चक्कर लगाता है जगह जगह मारा मारा घूमता है और उस समय वह वृश्चिक का केतु मजे से उसका धन हरण भी करता है और वह अपने शरीर को भी बरबाद करता है। कहा जाता है कि मिथुन राशि का राहु बडबोला बना देता है जब भी कोई बात होती है तो बात को इतना विस्तार से कहा जाता है कि इतिहास से लेकर आगे के भविष्य के लिये भी कथन शामिल हो जाता है। अगर यही राहु अपनी सी पर आजाता है तो व्यक्ति के अन्दर पहिनने ओढने के लिये रूप को संवारने के लिये इत्र तेल फ़ुलेल प्रयोग करने के लिये सेंट लगाने के लिये परफ़्यूम को प्रयोग करने के लिये अपनी चाहत को देने लगता है व्यक्ति के अन्दर लिखने पढने फ़ोटोग्राफ़ी करने बेव साइट बनाने कम्पयूटर की विद्याओ को सीखने और सिखाने तथा उनके प्रयोग करने मंत्र शक्ति ओ प्रवाहित करने अपनी कला से ख्वाब दिखाकर अपने जीवन को संवारने के लिये अपने लिये प्रभाव पैदा करने लगता है। यह भी कहा जाता है कि इस राशि का राहु व्यक्ति को बात बात मे तर्क करने की शक्ति को भी देने लगता है वह अपनी बात को मनवाने के लिये अपनी किसी भी हद की सीमा से बाहर जा सकता है,या वह लडाई झगडा आदि कुछ भी कर सकता है वह अपनी बातो मे गाली गलौज ला सकता है। जरा सी देर मे वह बात को कहीं से कहीं पहुंचा सकता है। कर्क राशि का राहु माता को झूठ बोलकर या खुद के द्वारा किसी भी बात का भ्रम पैदा करने के लिये काफ़ी है व्यक्ति किसी भी बात मे एक प्रकार का डर पैदा करने के लिये भी अपनी शक्ति को प्रवाहित कर सकता है उसके लिये कोई भी माता पिता भाई बहिन परिवार आदि कोई मान्यता नही रखते है घर के अन्दर वह खालीपन चाहता है उसे लगता है कि उसके साथ रहने वाले लोग कोई ऐसी बात न पैदा कर दे जो उसके किये गये कार्यों का खुलासा कर दें, वह अपनी बात को मनवाने के लिये अपने को चालाकी के रास्ते मे ले जाता है वह झूठ भी बोलता है और किसी भी बात को कनफ़्यूजन मे लाने के लिये तथा घर के अन्दर राहु वाले कारण पैदा करने के लिये जैसे बिजली के काम पानी और कैमिकल के काम करने का मानस बनाता है उन कामो के अन्दर जहां भीड इकट्ठी होती है वहां ही उसके काम करने का कारण बनता है वह अगर अपनी जीविका के लिये कोई साधन पैदा करता है तो कमन्यूकेशन के काम ही सामने आते है वह सहायता वाले काम भी करता है जैसे किसी भीड को सम्भालना जहां प्रोग्राम आदि होते है वहां पर अपनी उपस्थिति को देना और जो साधारण लोग है भावुक लोग है उनके अन्दर अपनी छवि को पैदा कर देना।

Sunday, March 3, 2013

सातवी सीढी का रहस्य

जीवन मे सात अंक का रूप राहु के रूप मे जाना जाता है। हिन्दी मे या अंग्रेजी मे सात का अंक एक हथियार का रूप प्रस्तुत करता है तो चीन मे सात का अंक ड्रेगन के रूप मे देखा जाता है। इस अंक की विशेषता यह होती है कि मकान दुकान घर कार्यालय मे इसकी उपस्थिति से लोग अपने अपने अनुसार राहु का प्रयोग करते देखे गये है। लेकिन घर के अन्दर अक्सर सात सीढी उन्ही लोगो के यहां मिलती है जो लोग या तो शराब के व्यवसाय मे या फ़ैसन के लिये अथवा दवाइयों और फ़ार्मेशी वाली कामो मे बिजली पेट्रोल या शक्ति वाले साधनो से जुडे होते है। कहने को तो सूर्य सबसे बलवान है लेकिन राहु की छाया से वह भी ग्रसित है सातवा दिन वैसे तो शनिवार का होता है लेकिन हर दिन सुबह शाम राहु का होता है। जब दिन निकलता है तो राहु की छाया अन्धेरे से उजाले की तरफ़ ले जाती है और जब शाम होती है तो राहु की छाया दिन को रात की तरफ़ ले जाती है। सात की संख्या मे सीढी का प्रयोग और भी हितकारी जब हो जाता है जब घर के अन्दर पूर्वजो की मान्यता को माना जाता है। लेकिन इन सीढियों के बारे मे दिशा के अनुसार अपना अपना असर देखने को मिलता है।
  • सीढी का महत्व दिशा के अनुसार समझने के लिये बहुत जरूरी होता है,जिन घरो मे सीढिया पहले दक्षिण की तरफ़ चढती है और बाद मे उत्तर की तरफ़ चढती है तो उस घर मे अगर गुस्सा करने वाली स्त्री है तो उसका गुस्सा पारे की तरह अचानक चढता है और पारे की तरह से ही जल्दी उतर भी जाता है घर के अन्दर शराब कबाब का अधिक महत्व है तो वह लगातार परिवार मे बढता ही जाता है.
  • अगर सीढी उत्तर की तरफ़ पहले चढती है तो और वह सात की संख्या मे पहली स्टेप है तो यह जरूरी है कि या तो धन की बढोत्तरी लगातार अनाप सनाप होती जायेगी और बाद मे अक्समात ही समाप्त होकर कर्जे के लिये जाना पड सकता है लेकिन जो भी होगा वह बहुत बुरी तरह से बढाने वाला या घटाने वाला होगा अक्सर इस संख्या मे जाने वाली उत्तर की तरफ़ की सीढिया जुआरी जल्दी से धन कमाने वाले शेयर सट्टा आदि का काम करने वाले कर्जा देने वाले और कर्जा लेने वाले लोगो के लिये देखा गया है जो लोग वित्तीय संस्था को चलाने वाले होते है उनके लिये भी यह सात की संख्या मे सीढियों का होना देखा गया है लेकिन उनका फ़ैलाव अगर हो रहा है तो वे अपनी फ़ैलाव की परिधि को बढाते जाते है और जब वे सिमटते है तो धीरे धीरे बिलकुल ही समाप्त हो जाते है.
  • अगर सीढी का चढाव पूर्व की तरफ़ हो रहा है तो घर के अन्दर भजन कीर्तन या किसी प्रकार की भक्ति आदि का इतना महत्व होगा कि परिवार के सभी व्यक्ति जुडे होंगे,वे सभी अपनी अपनी गति से किसी भी भगवान या देवी देवता की तरफ़ लगातार बढते जायेंगे और इतने बढते जायेंगे कि वे अन्य किसी काम को करना समझ ही नही पायेंगे,लेकिन दूसरा स्टेप जब दक्षिण या उत्तर की तरफ़ जाता हुआ मिलता है तो या तो भोजन या प्रसाद के रूप मे घर मे आवक होगी या किसी प्रकार की वित्तीय सहायता के लिये अन्य लोगो के प्रति आस्था रखी जायेगी.
  • अगर सीढी का चढाव पश्चिम की तरफ़ है पहली स्टेप की संख्या सात मे है तो जरूरी है कि घर के लोग भौतिक रूप से जमीन जायदाद घर मकान व्यवसायिक क्षेत्र मे लगातार प्रगति करने वाले होंगे वे किसी भी राशि या किसी भी क्षेत्र से पहले जुडे हो लेकिन इस प्रकार के मकान मे प्रवेश करते ही उनकी प्रोग्रेस इन्ही क्षेत्रो मे होने लगती है। 
  • अगर सीढी का चढाव ईशान की तरफ़ है तो व्यक्ति अपनी प्रोग्रेस को धार्मिक रूप से या कानूनी रूप से या ऊंची शिक्षा के रूप से उन्नति मे सहायक होते है अक्सर इस क्षेत्र के लोग ही विदेश मे जाकर या विदेशी कामो में सफ़लता प्राप्त करते है,लेकिन यह भी देखा गया है कि जैसे ही उनके लिये किसी प्रकार का बदलाव तीन साल या इससे अधिक अवधि का होता है वे नीचे गिरते हुये भी देखे जाते है राहु का समय अठारह महिने का होता है और यही कारण पीछे की चिन्ता आगे की चिन्ता और चलने वाले कामो की चिन्ता के लिये भी माना जा सकता है.
  • अगर सीढी का चढाव वायव्य की तरफ़ है तो व्यक्ति इस प्रकार के मकान मे रहकर समाचार पत्रो या अपनी कार्य प्रसिद्धि से या अपने सुझाव देने वाली नीति से अपने को प्रसिद्धि मे लाता है यही कारण उसकी प्रोग्रेस का होता है अक्सर इस प्रकार के मकान माता के नाम होते है या उनके किसी ऐसे पूर्वज के नाम से होते है जिसने अपनी जिन्दगी मे नाम कमाया होता है.

Saturday, March 2, 2013

राहु का गोचर और काम मे कनफ़्यूजन

प्रस्तुत कुंडली कन्या लगन की है,लगनेश बुध सप्तमेश और चतुर्थेश गुरु लाभेश चन्द्र्मा के साथ विराजमान है। गुरु शुक्र का परिवर्तन योग है। शुक्र गुरु चन्द्र बुध पाप कर्तरी योग मे है। राहु केतु कालसर्प योग का निर्माण कर रहे है। विद्या बुद्धि का मालिक होने के साथ रोजाना के कामो का मालिक नौकरी आदि का मालिक शनि है जो लगन मे विराजमान है और इस शनि की युति जन्म के सूर्य पर है साथ ही शनि केतु की युति मे एक बात और भी कही जाती है कि जो लोग नौकरी आदि मे अपनी योग्यता को बनाना चाहते है वे अपने लिये कभी भी प्रोग्रेस नही कर पाते है,वह भी जब शनि कन्या राशि का हो और केतु मकर राशि का हो तो वे केवल अपने नौकरी करने वाले स्थान के लिये ही तरक्की को देने वाले होते है उनका काम भी एक प्रकार से दर्जी की तरह से होता है जैसे दर्जी एक कपडे के कई टुकडों को जोडकर एक वस्त्र का नाम देता है उसी प्रकार से इस युति वाले जातक कई लोगो को या फ़र्मो को जोड कर एक प्रकार से नई कम्पनी का नाम बना देते है यह ही नही इस युति मे अगर गुरु का असर मिलता है तो जातक अपनी योग्यता को इतना बढा लेता है कि वह बडे से बडे ठेके आदि लेकर अपनी योग्यता से धन और आव इज्जत मे अपनी योग्यता को बनाता चला जाता है।
पाप कर्तरी योग मे फ़ंसे ग्रह अक्सर बलहीन इसलिये हो जाते है कि वे अगर अपनी शक्ति को खर्च करते है तो वह शक्ति बेकार चली जाती है जैसे इस कुंडली मे शुक्र धनु राशि का है और चौथे भाव मे अपनी स्थिति को बना रहा है धन भाव मे बैठा गुरु इस शुक्र को बल दे रहा है फ़िर भी इस शुक्र के आगे केतु होने से जातक के पास विद्या मे बुद्धि मे सन्तान मे प्राथमिक रूप मे जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र मे अक्समात ही साधनो के प्रति खर्चा करना होता है या बडे भाई मामा परिवार दोस्तो आदि के फ़रेब मे आकर या जल्दी से धन कमाने वाली स्कीमो मे जाकर अपने को बरबाद करने के लिये यह केतु अपना काम करने लगता है अधिक कामुकता की बजह से या तो पुरुष सन्तान नही हो पाती है या हो भी पाती है तो कमजोर रहती है इसके अलावा भी पुत्री सन्तान के होने से और पुत्री सन्तान पर  निर्भर होने के कारण भी समाज घर परिवार आदि मे इज्जत का प्राप्त करना नही हो पाता है। इस शुक्र के पीछे सूर्य होने से कोई भी काम जातक अपनी मर्जी से भी नही कर पाता है इसका कारण भी यह है कि जातक जब भी अपने समाज और अपनी शिक्षा तथा पिता के जमाने से चली आयी मर्यादा के विरुद्ध काम करने की सोचता है वैसे ही उसके मन मे अहम के प्रति अपने समाज के प्रति तथा जीवन मे की जाने वाली प्रगति रिस्तेदारो के दबाब आदि के कारण नही कर पाता है। शुक्र के पीछे सूर्य होने का एक असर यह भी होता है जब भी जातक अपने धन्धे व्यवसाय मे आगे बढने के लिये कोशिश करता है और जब भी प्रोग्रेस का समय आता है कोई न कोई बात जो सरकारी कारणो से घिरी होती है या सरकारी दबाब आदि के कारण या राजनीति मे जाने या राजनीति के प्रति अहम होने से भी जातक को यह सूर्य कमाने वाले क्षेत्र से दूर करने मे अपना असर प्रदान करने की बात को करता है।
यही बात गुरु चन्द्र और बुध के लिये मानी जाती है यह तीनो ग्रह सौम्य ग्रह है और इन ग्रहो के आगे सूर्य और पीछे शनि होने से जैसे ही जातक किसी भी बाहरी काम के प्रति आने जाने के प्रति अपने मन से काम करने के प्रति बोलने चालने मे विवाह शादी सम्बन्ध या अपने अनुसार काम करने की सोचता है तो शनि जो इन ग्रहो से बारहवा है जल्दी से अपनी युति के कारण कष्ट देना शुरु कर देता है अगर इन कारको को वह अपने अनुसार करना चाहे तो वह अपने घर और अपने परिवार के अन्दर नही कर पाता है वह अगर इन कारको को सोचे तो घर से बाहर जाकर ही सोच सकता है। एक बात और भी देखी जाती है कि जातक का शनि जब चन्द्रमा से बारहवा होता है तो जातक के लिये किये जाने वाले खर्चो आने जाने के कारको तथा अपने अनुसार शांति को प्राप्त करने मे हमेशा किसी न किसी बात से बन्धे रहना भी होता है,तथा जब वह इन कामो को करना चाहे तो आगे सूर्य होने से राज्य की दिक्कत या पिता सम्बन्धी मान मर्यादा की इज्जत भी सामने आजाती है।
पिछले समय मे राहु ने पंचम चतुर्थ तीसरे भाव मे गोचर किया है इस गोचर से केतु जो कार्य के प्रति साधन के रूप मे थे विद्या के क्षेत्र मे या ब्रोकर वाले काम थे,फ़िर घरेलू मकान सम्पत्ति भवन आदि के प्रति बाद मे जो भी इस राहु से बचा वह पिता और अस्पताली कारणो के प्रति सरकारी टेक्स आदि के प्रति खर्चा कर दिया गया यह सब केवल बडे से बडे कनफ़्यूजन के कारण ही होना माना जा सकता है अब यह राहु जन्म के गुरु चन्द्र और बुध पर अपना गोचर कर रहा है इस कारण से जातक के लिये एक तो जीवन साथी से सम्बन्धित साझेदारी से धन आदि कमाने के प्रति तथा ससुराल मे सास ससुर और साली के प्रति एक प्रकार का जिम्मेदाराना प्रभाव माना जाता है यही नही व्यवसाय को अधिक से अधिक बडा रूप देने के लिये भी यह राहु अपना असर प्रदान करने की योजना का प्रभाव दे रहा है।
इस राहु के कारण यह भी समझा जाता है कि अधिक से अधिक कनफ़्यूजन होने और एक काम के अन्दर बडे बडे काम अपने आप बन जाने का प्रभाव भी देखा जाता है.इस प्रभाव के कारण जातक के लिये लक्ष्य से दूरी बन जाती है और जो लक्ष्य प्राप्त करना है वह लक्ष्य दूर हो जाता है,तथा बेकार के कारणो मे जाने से और बेकार की बातो को ध्यान मे रखने से राहु का गोचर अपना काम करता है इस गोचर के प्रभाव से बचने के लिये अपने किये जाने वाले काम मे विस्तार को जारी रखना चाहिये और भोजन नींद तथा तामसी प्रभाव से बचने का हर हाल मे प्रयास करना चाहिये.

शुक्कर शनीचर

एक मिथिहासिक कहानी है। एक गांव मे एक चौधरी साहब रहते थे,जमीन जायदाद धन दौलत उनके पुरखो के जमाने से पनपती चली आ रही थी। आसपास के गांवो मे नाम भी था और धन आदि अधिक होने से पूंछ भी अच्छी थी। चौधरी साहब के गांव मे ही एक धासोलिया नामका व्यक्ति भी रहता था,उसके पूर्वजो के जमाने से सभी मेहनत करते आ रहे थे लेकिन उनकी बरक्कत किसी भी प्रकार से नही होती थी,कितना ही कमाया जाता था लेकिन शाम को भरपेट भोजन भी सही रूप से नही मिलता था। किसी भी काम मे चौधरी साहब के पास जाकर सहायता लेने के लिये मजबूर होना पडता था। जमीन मेहनत और कार्य आदि के बाद भी जब बरक्कत नही होती थी तो धासोलिया सोचा करता था कि चौधरी साहब के पास ऐसी कौन सी चीज है जिससे उनके परिवार मे बरक्कत होती जा रही है और उसके परिवार मे ऐसी कौन सी चीज है जो परिवार की बरक्कत को नही करने दे रही है। इसी उधेडबुन मे उसने कई महात्मा तपस्वी जानकार आदि लोगो से राय ली लेकिन उसे कोई सही उत्तर नही मिला। एक दिन वह पास के गांव मे गया था उसे एक ज्योतिषी जी मिले जो किसी बनिया के यहां आये थे और बनिया के परिवार के लिये ज्योतिष बता रहे थे,धासोलिया भी उत्सुकतावश वहां बैठ गया और ज्योतषीजी से अपनी व्यथा को कहने लगा। ज्योतिषी जी ने अपने ज्योतिष के ज्ञान से कहा कि चौधरी साहब के यहां तो शुक्कर शनीचर चाकरी कर रहे है और तुम्हारे यहां शुक्कर शनीचर खा रहे है। धसोलिया बात को समझ नही पाया और उसने साधारण भषा मे उनसे समझाने के लिये कहा।

ज्योतिषी जी साधारण भाषा मे धासोलिया को समझाना शुरु किया। उन्होने कहा कि चौधरी साहब के घर मे उनकी चौधराइन चौधरी साहब के कहे अनुसार काम करती है और अपनी राय केवल समय पर ही देती है और धासोलिया की पत्नी घर की हर बात मे अपनी राय देती है तथा उन्हे आराम करने की आदत है जबकि चौधराइन सुबह भोर से जागकर रात तक घर को सम्भालने का काम करती है इस प्रकार से घर की हर चीज को सम्भाल कर रखने कोई घर की चीज खराब नही हो उसे सुरक्षा से रखने के लिये अपने प्रयास को करती रहती है यह बात उन्होने अपनी सास से यानी चौधरी साहब की माताजी से सीखी थी। जबकि धासोलिया की पत्नी अपनी मर्जी से काम करती है जो भी बात धासोलिया की माता जी कहती है उस बात का उल्टा जबाब उन्हे दिया जाता है,उनकी हर बात का उल्टा किया जाता है,इस प्रकार से शुक्र जो घर का संचालक होता है वह धासोलिया के कमाये गये धन को खाये जा रहा है और धासोलिया कितनी ही कमाई करके लाये उसे सम्भालना तो दूर सही से उपयोग मे भी नही लाया जा रहा है इस प्रकार से हर वस्तु की समय पर जरूरत रहती है और धन की कमी बनी रहती है।

धासोलिया ने ज्योतिषी जी से पूंछा और शनीचर कैसे खाये जा रहे है ? ज्योतिषी जी ने जबाब दिया कि चौधरी साहब तो किसी भी काम को समय से पूरा करने की कोशिश करते है समय से पहले किसी काम का ध्यान रखना जैसे खेत मे समय से जुताई निराई बीज बोना और फ़सल मे पानी देना समय से फ़सल को काट कर लाना और पैदा होने वाले अनाज को सुरक्षित रख देना फ़िर बाजार मे कीमत बढने पर उसे बेचना आने जाने वाले लोगो का मान सम्मान करना अपनी हैसियत के अनुसार सहायता करना अपने पिता के जानकार लोगो से मिलते रहना उनकी इज्जत करना आदि बाते है जिससे उन्हे हर समय धन और जान पहिचान का फ़ायदा मिल जाता है जबकि तुम्हारे यहां जब तुम खेत की जुताई करने जाते हो तो अपने साधन धन की कमी से नही रख पाने से खेत की जुताई बुवाई समय पर नही हो पाती है और काम जब पूरा नही हो पाता है तो फ़सल भी पूरी नही मिल पाती है साथ ही अनाज भी उतना पैदा नही हो पाता है जो बेचने के लिये रहे जितना आता है उतना या तो खा लिया जाता है या रख रखाव के अभाव मे बरबाद हो जाता है।

शुक्कर शनीचर की सेना भी घर को बनाने में और बिगाडने मे अपना सहयोग करती है। शुक्कर की सेना जब घर क बिगाडने के लिये आती है तो शुक्कर कुंडली चौथे भाव मे बैठ जाता है और अपनी सप्तम द्रिष्टि से जातक के दसवे भाव को देखना शुरु कर देता है इस प्रकार से जातक जो भी काम करता है वह पत्नी के द्वारा निर्देशित किया जाता है पत्नी को यह पता नही होता है कि काम करने के लिये क्या क्या चाहिये लेकिन वह अपनी मर्जी से अपनी राय को देती है,और वह राय कार्य के स्थान पर सफ़ल नही हो पाती है। इसके अलावा चौथे भाव के शुक्र के कारण इसकी सेना का मुख्य संचालक पत्नी का श्रंगार का साधन होता है श्रंगार के अंग भी गहने कपडे तरह तरह के बनाव श्रंगार के साधन आदि होते है पत्नी अपने घर के कामो समय पर नही कर पाती है अपने को दूसरो से रूप मे अच्छा दिखाने के चक्कर में खूब बनाती संवारती है और जो शरीर की शक्ति घर के विकास के कामो मे लगनी चाहिये वह शक्ति एक तो विकास के कामो मे नही लग पाती है और श्रंगार कहीं बिगड नही जाये इसलिये कोई काम तरीके से भी नही किया जाता है। जो घर के साधनो को बढाने के लिये धन को जोडा जाता है वह धन किसी न किसी प्रकार से गहनो कपडो और बनाव श्रंगार के साधनो वाहनो सजावटी कामो बेकार के कामो मे चला जाता है। चौथे भाव का शुक्र हमेशा घर के अन्दर औरतो की मीटिंग को भी जोडता है,इस मीटिंग मे आसपास के लोगो के लिये दूसरी औरतो के लिये किसका किससे सम्बन्ध है किसने किस प्रकार से क्या कमाया है कौन किस समय कहां जाता आता है,आदि बातो के चलने से बुराइया भलाइया चला करती है इस प्रकार से जो समय घर के संचालन मे प्रयोग होना चाहिये वह समय फ़ालतू की मीटिंग मे खर्च हो जाता है। शनीचर की सेना मे सबसे बडा मुखिया आलस होता है जब भी किसी काम को करने का समय होता है आलस आ जाता है और काम को समय पर पूरा नही किया जाता है। शनीचर की सेना मे ही रात को देर तक जागना दिन मे सोना बासी और तामसी भोजन को करना बाजार से लाये गये चटपटे और महंगे भोजन के सामान को प्रयोग मे लेना घर की साफ़ सफ़ाई का ध्यान नही रखना जिससे घर के अन्दर वस्तुओं के सडने और बदबू फ़ैलाने से घर के अन्दर एक प्रकार की अजीब सी महक का पैदा होना जिससे जो दिमाग साफ़ और स्वस्थ वातावरण मे काम करने के लिये या स्फ़ूर्ति को महसूस करता है वह दिमाग उस बदबूदार वातावरण से खराब रहना बात बात मे गुस्सा आना अपने ही घर के अन्दर अपने ही लोगो के साथ बात बात मे क्लेश होना या कुत्ते बिल्ली की तरह से लडने लग जाना,जो भी जोडा गया वह चूहो पक्षियों आदि से बरबाद होना,नजर नही रखने से चोरी हो जाना रख रखाव नही रखने से वस्तु का समय से पहले खराब हो जाना आदि शनिचर की सेना के भाग है।

Friday, March 1, 2013

लगनेश से दसवें राहु और कैरियर

प्रस्तुत कुंडली मेष लगन की है और मेष ही राशि है,लगनेश और चन्द्र लगनेश मंगल है। मंगल का स्थान कार्येश और लाभेश शनि के साथ है। लगनेश अपनी शक्ति को छठे भाव मे दे रहे है जो त्रिक भाव की श्रेणी मे आता है और कर्जा दुश्मनी बीमारी आदि के क्षेत्र से अपना सम्बन्ध रखने के बाद जीवन मे की जाने वाली या प्राप्त की जाने वाली सेवाओं के प्रति अपनी भावना रखता है। वैसे तो शनि मंगल राहु केतु सभी क्रूर और खराब ग्रह त्रिक भाव मे जाकर अपना असर कम कर देते है,लेकिन जब कोई क्रूर ग्रह या खराब ग्रह त्रिक भाव मे जाकर वक्री हो जाता है तो दिक्कत का कारण जीवन मे अपने उदय अस्त वक्री और मार्गी के समय मे कर देता है। प्रत्येक भाव के आमने सामने के ग्रह और भाव हमेशा जातक के जीवन मे अपनी प्रतिस्पर्धा और विरोधी भावना को प्रकट करते है चाहे वह कितना ही सौम्य ग्रह क्यों नही हो लेकिन अपनी बात आते ही औकात को प्रकट करने से नही चूकता है,वह जीवन साथी के रूप मे पत्नी या पति माता पिता के रूप में हो पुत्र और पुत्रवधू के रूप मे या फ़िर कुंडली के अनुसार अन्य रिस्तो मे बन्धे लोग परिवार रिस्तेदार मित्र आदि हों। यह भी कहा जाता है कि कोई भी सौम्य ग्रह मार्गी होने के समय अपनी सौम्यता को दर्शाता है लेकिन वक्री होने के समय में सौम्य ग्रह भी क्रूर की उपाधि मे गिना जाने लगता है। यह बात भी इस कुंडली मे देखने को मिलती है शुक्र जो धन और जीवन साथी का कारक है अपनी क्रूरता को प्रकट कर रहा है बुध जो अपने को जगत मे दिखाने के लिये तीसरे भाव और रोजाना के काम और जीवन की जद्दोजहद से जूझने के लिये छठे भाव का मालिक है वक्री होकर अपनी गति को क्रूरता को बना रहे है। इस क्रूरता के कारण से जातक शुक्र जो जीवन साथी और धन का कारक है के प्रति क्रूरता और विश्वास घात जैसे कारण पैदा किये है तथा बुध जो राजयोग देने के लिये दसवे भाव मे अपनी युति को प्रदान करता है ने अपने क्रूर स्वभाव से राजयोग देने के स्थान पर जो भी योग्यता और खासियत थी उसे भी अपनी गलत सोच और नीची बुद्धि के कारण अथवा उल्टी बुद्धि के कारण हरण कर लिया। सूर्य जो पंचम स्थान विद्या और बुद्धि के प्रति अपनी सोच को देने वाला है ने अपने ही स्थान से छठे स्थान यानी दसवे भाव मे जाकर केवल राजकीय नौकरी आदि के लिये अपनी द्रिष्टि को तो दिया है लेकिन सफ़लता के लिये अपनी नीति को ही बदल दिया है।

कुंडली मे राहु का प्रभाव एक प्रकार से बहुत ही उत्तम कहा जा सकता है यह जिस भाव मे भी जायेगा अपनी युति को प्रदान करने के बाद अपनी पहिचान बनाने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा,लगनेश मंगल का छठे स्थान मे जाकर वक्री शनि से युति लेने के बाद केवल एक ही बात मानी जा सकती है कि जातक जिस स्थान पर भी काम करेगा उस स्थान के द्वारा कोई भी किया गया गलत काम किसी भी प्रकार से शनि वक्री और मंगल के कारण उजागर नही हो पायेगा। कारण जातक अपनी तकनीकी बुद्धि जो उल्टी चलने वाली है और शनि की कार्य बुद्धि जो वक्री शनि के कारण शरीर की बुद्धि से बिलकुल ही परे होकर कार्य बुद्धि के रूप मे जानी जाती है से उस कार्य स्थान को किसी भी अच्छे बुरे संकट से दूर करने के लिये अपनी होशियारी के लिये मशहूर होगा। वक्री शुक्र और वक्री बुध के कारण जातक का महत्वपूर्ण समय बेकार की सोच और अक्समात ही किसी न किसी होशियार व्यक्ति के चक्कर मे आकर बरबाद होने के लिये भी युति को प्रदान करेगा। आसमान का राजा सूर्य जो दसवे भाव में जाकर दोपहर का प्रभाव पैदा करता है के द्वारा वक्री शुक्र और वक्री बुध के साथ साथ वक्री शनि भी अहम की श्रेणी मे चला जायेगा और जो जातक को मिल रहा है वह भी मिलना बन्द हो जायेगा।

अक्सर देखा गया है जीवन मे शनि सूर्य और शनि चन्द्र अगर आमने सामने हो जाये या इनकी दशा में तब दिक्कतो का इजाफ़ा हो जाये जब यह अपनी युति को एक दूसरे के प्रति परेशान करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करने लगे। जैसे कुंडली मे लगनेश का स्थान बुध की कन्या राशि मे है और लगनेश मंगल के साथ वक्री शनि है,वक्री शनि ने मंगल की पूरी शक्ति को अपने मे प्राप्त कर लिया है कुंडली मे सूर्य और चन्द्र लगनेश के विरोधी हो गये है जब भी सूर्य और चन्द्र की दशा अन्तर्दशा चलेगी तब तब जातक को परेशानी का अनुभव होना शुरु हो जायेगा। साथ ही जब जब सूर्य और चन्द्र का गोचर शनि के साथ होगा या शनि का गोचर सूर्य और चन्द्रमा पर होगा तब तब जातक के लिये परेशानी का प्रभाव भाव और राशि के अनुसार देखा जायेगा। इसके विपरीत जब जब बुध शुक्र राहु केतु का गोचर शनि या शनि का गोचर इन ग्रहो के साथ होगा जातक को फ़ायदा मिलना शुरु होगा यही बात दशा और अन्तर्दशा के बीच भी देखी जायेगी।

कहा जाता है कि चित्रा नक्षत्र का पहला पाया मंगल का होता है,लेकिन यहां पर मंगल आकर अपनी शक्ति को गंवा बैठता है इसके साथ ही राहु केतु और शनि वक्री के स्वभाव मे एक रूप होने से कारण इन तीनो का प्रभाव उल्टा हो जाने से मंगल अपनी शक्ति को प्रयोग मे नही ला पायेगा,इसके बाद भी मंगल का शत्रु बुध है और बुध के घर मे मंगल के रहने से भी मंगल अपनी शक्ति को प्रयोग मे नही ला पायेगा। इस कारणो को और भी एक प्रकार से समझा जा सकता है कि लगनेश से दसवे भाव मे राहु होने से जातक के जीवन के लिये जो भी करना होगा वह राहु के अनुसार ही होगा। जब कुंडली मे राहु कार्य क्षेत्र का मालिक हो जाता है और जीवन मे कैरियर का मालिक हो जाता है तो जातक को एक तो उल्टी भाषा का ज्ञान का हो जाता है और जातक इस भाषा का प्रयोग कमन्यूकेशन इन्फ़ोर्मेशन तकनीक मे तथा इसी प्रकार के क्षेत्र मे प्रयोग करने लगता है। एक बात और भी देखी जाती है लगनेश मंगल का प्रभाव राहु पर जाने से और शनि का प्रभाव भी वक्री होकर राहु पर जाने से जातक को चिकित्सा क्षेत्र के बारे मे भी एक प्रकार से बहुत अच्छा ज्ञान पैदा हो जाता है लेकिन यह भी सीमित समय के लिये होता है जब भी राहु तुला मिथुन और कुम्भ राशि मे गोचर करेगा जातक के लिये इस क्षेत्र से बाहर जाकर बेलेन्स बनाकर या व्यापारिक संस्थानो के प्रति वही काम करने पडेंगे जो तकनीकी रूप से जनता के लिये किये जाते हो,यह बात गुरु राहु के साथ साथ होने से पश्चिम दिशा की कम्पनिया जैसे विदेश मे जाकर अरब कन्ट्री या गुजरात जैसे प्रान्त मे जाकर अपने कामो को करने का प्रभाव मिलता है।

इस कुंडली मे एक बात और भी समझी जा सकती है कि जातक को अडचन देने के लिये दो ग्रह अपनी अपनी मारक क्षमता का प्रयोग कर रहे है,एक तो केतु जो नवे भाव मे जाकर चन्द्रमा को आहत कर रहा है दूसरे राहु जो सप्तम के गुरु पर अपना असर देकर गुरु को आहत करने का काम कर रहा है और बालारिष्ट योग जीवन साथी और किये जाने वाले कार्य स्थान के प्रति दे रहा है। गुरु को राहु बचाने के बाद जीवन साथी और कार्य आदि के प्रति तरक्की प्राप्त की जा सकती है साथ ही चन्द्रमा को केतु से बचाने के बाद जीवन मे मानसिक सुख माता मन मकान वाहन यात्रा आदि के सुख प्राप्त किये जा सकते है।

तीसरे राहु से सप्तम गुरु को बचाने के लिये कन्यादान करना धर्म स्थानो शामियाना आदि का बन्दोबस्त करवाना राहु का तर्पण करवाना सही रहता है और केतु से चन्द्रमा को बचाने के लिये गणेश जी की पूजा अर्चना केतु की वस्तुओं का दान करना जिन्दा मछलियों को मछली बेचने वालो से खरीद कर तालाब आदि मे छोडना फ़ायदा देने वाला माना जा सकता है इसके बाद राहु केतु का चान्दी मे बना हुआ पेंडल पीले धागे मे गले मे धारण करना भी फ़ायदा देने के लिये माना जा सकता है एक उपाय बहुत ही अच्छा माना जाता है वह दादी का कोई सामान हमेशा अपने पास रखना।

वृश्चिक लगन,एक छुपा हुआ रहस्य

कभी कई लोग बुरे होकर याद रह जाते है और कई लोग अपनी एक ही बात को कहने के बाद याद रह जाते है कई लोग आजीवन अपनी कुर्बानी देते रहे लेकिन वे किसी भी प्रकार से याद नही रह पाते है। हर मनष्य की जिन्दगी मे वृश्चिक राशि का प्रभाव किसी न किसी प्रकार से देखने को मिलता रहता है। मेष राशि पर इस राशि का प्रभाव गुप्त कामो और रहस्य को उजागर करने के प्रति होता है तो स्त्री पुरुष सम्बन्धो के लिये भी यह राशि मेष राशि वालो को प्रभावित करती है,वृष राशि के लिये जीवन साथी की धारणा को गुप्त सम्बन्ध और धन आदि के लिये किये जाने वाले गुप्त कार्य के साथ साथ जो भी सहयोगी होते है वह भी गुप्त सम्बन्धो के कारण ही आजीवन चलते रहते है,मिथुन राशि के लिये वृश्चिक राशि रोजाना के कामो के लिये धन आदि की बचत के लिये और रोजाना के किये जाने वाले कामो के लिये भी अपना असर प्रदान करती है इस राशि वाले जातको को किये जाने वाले कामो मे लोगो की सेवा मे धन आदि की बचत मे अक्सर अपमान ही मिलता है वे किसी प्रकार से किसी की सेवा भी करते है तो उस सेवा के बदले मे उन्हे अक्सर अपमान ही सहने को मिलता है यही नही मिथुन राशि वाले सेवा के अन्दर किसी भी प्रकार के उस काम को कर सकते है जो किसी प्रकार से अन्य के वश की बात नही होती है जहां लोग मान अपमान का ध्यान रखते है जहां लोग अपने कार्यों में गंदे कार्यों को करने से डरते है वही इस राशि वाले किसी भी प्रकार के उन कार्यों को करने से नही डरते है जिन कार्यों को करने से लोग बचने का प्रयास करते रहते है। कर्क राशि के लिये तो वृश्चिक राशि के प्रकार से मनोरंजन का काम करती है जब तक उनकी जिन्दगी मे कोई बात भय देने वाली नही हो शमशानी कारण जब तक मनोरंजन मे नही आये तब तक उन्हे किसी भी प्रकार के मनोरंजन मे मजा ही नही आता है और वे अक्सर उन्ही मनोरंजन के साधनो को देखते रहते है जहां भय हो गुप्त रूप से खोजबीन करने वाले कामो को दिखा जाता है या फ़िर खेल कूद मे भी एक प्रकार से बडी रिस्क को लेने से नही चूकते है उनके परिवार मे काम मे रोजाना की शिक्षा मे और शुरु की की गयी पढाई आदि मे उनके लिये रिस्क अक्सर जुडी होती है। उन्हे बचपन से ही इस प्रकार की शिक्षा मिल जाती है किसी प्रकार के स्त्री पुरुष सम्बन्धो के प्रति उन्हे अपनी जवानी मे सीखने की जरूरत नही पडती है साथ ही वे इस प्रकार के सम्बन्ध बनाने और लोगो के भावनात्मक प्रभाव का फ़ायदा उठाने से भी इसी प्रकार से कार्य करने से नही चूकते है। सिंह राशि वाले तो अपने मन के अन्दर ही खोजबीन और भय के कारण बनाने और खुद मे महसूस करने के लिये रखते है जब तक सिंह राशि वाले वृश्चिक राशि का प्रभाव लेकर रहने वाले स्थान अपनी सीमा या हदबंदी के अन्दर भय या आतंक का माहौल नही बनापाते है उन्हे रहने वाले स्थान मे मजा ही नही आता है यही बात वे अपने घर के अन्दर भी देखते और करते है और यही बात जहां भी वे आना जाना रखते है वहां भी उनकी इस प्रकार की शैली को देखा जा सकता है। लेकिन इसी कारण से वे एक प्रकार से अपनी अहम की नीति को भी कायम रखना जानते है क्योंकि उन्हे अपने बचपन से ही रिस्क लेने का खोज बीन करने का गुप्त बातो को जानने का और मानसिक रूप से शक या इसी प्रकार की बातो से जूझना होता है अक्सर इस राशि वालो की माता का स्वभाव भी इसी प्रकार का होता है कि वह उन्हे बचपन से ही रिस्क लेने का अपनी ही ताकत से सिंह राशि के जातको को पालने पोषने का काम करती है पिता का नाम तो केवल नाम का ही होता है या केवल साथ धन और समाज आदि की इज्जत के लिये ही माना जाता है। कन्या राशि के लिये भी वृश्चिक राशि का प्रभाव एक प्रकार से बीमारी अस्पताली अथवा दवाइयों आदि के रूप मे लोगो की सहायता करना और एक प्रकार से अपने को दिखाने के लिये कि वे सेवा करना जानते है और किसी भी समय कैसा भी काम अपनी बोली जाने वाली भाषा और व्यवहार के कारण प्रस्तुत करना जानते है। यही नही वे अपने को अक्सर अपने कार्यों और पहिनावे के कारणो को गुप्त भी रखना जानते है वे क्या कर रहे है कब कहां जा रहे है उन्हे लोगो के सामने प्रकट करने मे हिचक लगती है जब भी वे कोई काम करना या अपने कार्यों को प्रस्तुत करना चाहते है वे उसे गुप्त रूप से समझकर ही करते है। इसके बाद एक और बात भी देखी जाती है कि जब भी वे अपने जीवन साथी के प्रति अधिक स्नेह की धारणा बनाते है तो उनके अन्दर एक भाव पैदा हो जाता है कि जीवन साथी के पिता और परिवार से प्राप्त सहायता कितनी मूल्यवान है और किस प्रकार से उस सहायता और मूल्य को गुप्त रूप से प्राप्त कर लिया जाये अक्सर कन्या राशि के जातको के जीवन साथी विवाह के बाद अपने परिवार और समाज तथा मान मर्यादा से दूर जाते देखे जा सकते है या तो वे दूर कहीं जाकर अपने जीवन को व्यतीत करते है या फ़िर अपने को अपनी संतान या कार्यों से अपने लोगो के अन्दर इतने दुखद रूप से गिरा लेते है कि वे खुद ही अपने अन्दर एक प्रकार की हीन भावना को समझते है और अपने प्रति कभी ऊंची नजर से अपने ही लोगो के अन्दर नही आ पाते है तुला राशि के लिये इस राशि का प्रभाव या तो दवाइया खाने के लिये या मुंह की बीमारी के लिये अथवा मुफ़्त मे प्राप्त की जाने वाली भौतिक सहायताओ के लिये जिनके अन्दर अक्सर वे वस्तुये होती है जो जन साधारण की जानकारी मे नही होती है जैसे दवाइयां वे शब्द जो जन साधारण के समझ से बाहर होते है आदि बाते आती है,इस राशि वालो के लिये वृश्चिक राशि अक्सर दवाइयों को खाते रहने हमेशा किसी न किसी प्रकार की रिस्क को झेलते रहने के लिये अपमानित होने के लिये समस्या को बनाते रहने के लिये आंखो के लिये तथा चेहरे के लिये अपने प्रति अस्पताली कारणो को पैदा करते रहने के लिये किसी न किसी प्रकार के तामसी भोजन को खाते रहने से अथवा उस प्रकार के भोजन को पसंद करते रहने के लिये जो जन साधारण मे हीन भावना से देखा जाता है आदि बाते देखी जा सकती है। धनु राशि वाले लोग इस राशि को अक्सर बाहरी यात्रा या खर्च करने के कारणो मे समझते रहते है जैसे किसी यात्रा मे जाने के समय मे यात्रा का निरर्थक हो जाना,यात्रा मे जाने के बाद किसी न किसी प्रकार की जोखिम को लेने की बात का होना आदि बाते देखी जा सकती है।

Wednesday, February 20, 2013

नाम से जुडे काम

कुंडली से जन्म लगन चन्द्र लगन सूर्य लगन घटी लगन दशमांश आदि से कार्य के बारे मे खोजबीन ज्योतिष से की जाती है। किसी कारणवश अगर जन्म समय मे कोई अन्तर होता है तो किसी प्रकार से भी कार्य के प्रति धारणा नही बन पाती है और परिणाम मे ज्योतिष को भी बदनाम होना पडता है और काम भी नही होता है। ज्योतिष मे नाम को प्रकृति रखती है जरूरी नही है कि नाम चन्द्र राशि से ही रखा जाये,कभी कभी घर वाले और कभी कभी बाहर वाले भी नाम रख देते है और नाम प्रचलित होकर चलने लगता है कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि नाम को खुद के द्वारा भी रखा जाता है। नाम मे जितने अक्षर होते है उन अक्षर और मात्रा के अनुसार व्यक्ति के बारे मे सोचा जा सकता है इसके लिये किसी प्रकार की जन्म तारीख समय आदि की जरूरत नही पडती है। नाम का पहला अक्षर व्यक्ति की मानसिकता के बारे मे अपनी भावना को व्यक्त करता है और नाम का दूसरा तीसरा चौथा पांचवा अक्षर व्यक्ति के कार्य के बारे मे अपनी भावना को प्रस्तुत करते है तथा नाम का आखिरी अक्षर व्यक्ति के आखिरी समय की गति की भावना को प्रस्तुत करता है।
नाम का पहला अक्षर
नाम का पहला अक्षर व्यक्ति की भावना को प्रस्तुत करता है व्यक्ति का स्वभाव भी भावना से जुडा होता है। व्यक्ति की शिक्षा का प्रभाव भी नाम के पहले अक्षर से जुडा होता है व्यक्ति के बारे मे परिवार के सदस्यों की गिनती के बारे मे परिवार के प्रति व्यक्ति की सोच आदि भी नाम के पहले अक्षर से जुडे होते है।
नाम का दूसरा अक्षर
नाम का दूसरा अक्षर व्यक्ति के कार्य व्यक्ति की शिक्षा के प्रति सोची गयी धारणा तथा शिक्षा की पूर्णता और कार्य के प्रति सोच रखना कार्य को करना आदि नाम के दूसरे अक्षर से देखी जा सकती है। व्यक्ति का व्यवहार भी नाम के दूसरे अक्षर से समझा जा सकता है नाम के दूसरे अक्षर से व्यक्ति के पिता दादा आदि के कार्य और उनके सामाजिक रहन सहन को भी देखा जा सकता है। व्यक्ति जीवन मे सच्चाई से चलने वाला है या फ़रेब आदि से जीवन को बिताने वाला है यह भी नाम के दूसरे अक्षर से देखा जा सकता है।
नाम का तीसरा या अन्तिम अक्षर
जब व्यक्ति जीवन की जद्दोजहद से गुजरता है तो वह अपने लिये अन्तिम समय के लिये गति को प्राप्त करने के लिये अपने कार्य व्यवहार आदि को करता है। नाम का आखिरी अक्षर हमेशा व्यक्ति की अन्तिम गति को बताता है यही नही व्यक्ति के आगे की सन्तति को भी नाम का तीसरा अक्षर प्रस्तुत करता है। नाम का पहला और आखिरी अक्षर वंश वृक्ष के प्रति भी प्रस्तुत करता है अर्थात व्यक्ति अपने जीवन मे दूसरो के लिये पैदा हुआ है या अपने द्वारा पैदा की गयी संतति के लिये अपने कामो को करेगा। व्यक्ति का मरने के बाद नाम होगा या बदनाम होगा आदि भी नाम के पहले और आखिरी अक्षर से समझा जा सकता है इसी प्रकार से व्यक्ति के जीवन साथी के बारे मे भी नाम के पहले और दूसरे अक्षर को मिलाकर समझा जा सकता है।
नाम की मात्रायें
मात्रा शब्द ही तीन दैविक शक्तियों के प्रति अपनी धारणा को प्रस्तुत करता है। मात्रय से मात्रा शब्द की उत्पत्ति होती है। लक्ष्मी काली और सरस्वती की शक्तियों से पूर्ण ही मात्राओं की शक्ति को वैदिक काल से प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के लिये आ की मात्रा व्यक्ति के थल भाग की शक्ति के लिये अपनी स्थिति को प्रस्तुत करता है ई की मात्रा थल या जल के पाताली प्रभाव को प्रस्तुत करने वाला होता है,ओ की मात्रा आसमानी शक्ति की स्थिति को प्रस्तुत करता है। जल और थल भाग की सतही भाग की देवी लक्ष्मी को माना गया है थल या जल के पाताल के प्रभाव को समझने के लिये काली देवी की शक्ति को प्रस्तुत किया गया है आसमानी शक्ति के लिये सरस्वती की मान्यता को प्रस्तुत किया गया है। अलावा मात्राओ को इन्ही तीन मात्राओं आ ई और ओ के साथ मिश्रण से मिलाकर प्रस्तुत किया जाता है।
उदाहरण
संसार की किसी भी भाषा से बनाये गये नाम अपने अपने अनुसार व्यक्ति की जिन्दगी को बताने मे सहायक होते है। लेकिन धारणा को हिन्दी के अक्षरो और मात्राओं के अनुसार ही समझा जा सकता है। इसके साथ ही जलवायु स्थान देश काल की गति को भी नाम के अनुसार ही समझा जा सकता है। कुछ नामो के उदाहरण इस प्रकार से प्रस्तुत है :-
राम
राम शब्द दो अक्षरो से जुडा है,अक्षर र मानवीय शरीर से जुडा है तुला राशि का अक्षर है और शरीर मे स्त्री और पुरुष दोनो के अंगो की स्थिति को बताने के लिये विवाह और जीवन को साथ साथ चलाने वाले जीवन साथी के कारण ही जीवन को बढाने और घटाने के लिये इस अक्षर का प्रयोग किया जाता है आ की मात्रा लगने के कारण थल और जल की शक्ति को सतही रूप मे प्रकट करने के लिये माना जा सकता है। आखिरी अक्षर म सिंह राशि का है और राज्य विद्या सम्मान सन्तान बुद्ध परिवार के प्रति आपनी धारणा को रखने के लिये माना जा सकता है। राम शब्द की मिश्रित रूप पुरुष सिंह के रूप मे भी जाना जा सकता है। इसी बात को समझकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम और लक्षमण के लिये दोहा लिखा था - "पुरुष सिंह दोउ वीर",अर्थात शेर के समान अपनी शक्ति को रखने वाले दोनो पुरुष रूपी अक्षर रा और म है । जिन लोगो ने राम के जीवन को पढा है उन्हे पता है कि राजकुल मे ही राम का जन्म हुआ था शरीर शक्ति के कारणो मे उनकी शक्ति अपार थी बडे बडे काम उन्होने शरीर शक्ति को प्रयोग करने के बाद ही किये थे,तुला और मेष के मिश्रण से अक्षर रा का रूप योधा के रूप मे र अक्षर का रूप किसी भी काम के अन्दर बेलेन्स करने के लिये तथा अक्षर र के प्रभाव से तुला राशि का रूप लेकर सीता जी से विवाह और विवाह के बाद सीता हरण तथा रावण वध आदि बाते समझी जा सकती है।
रावण
रा अक्षर राम की तरह ही वीरता को प्रस्तुत करता है लेकिन अक्षर व भौतिकता और धन सम्पत्ति तथा वैभव के प्रति अपनी धारणा को व्यक्ति करता है,व अक्षर वृष राशि का है जो केवल धन सम्पत्ति खुद के द्वारा निर्माण किये गये कुटुम्ब परिवार की पहिचान खाने पीने के कारण बोली जाने वाली भाषा और चेहरे की पहिचान के लिये जानी जाती है उसी प्रकार से अक्षर ण वृश्चिक राशि का है जो पराशक्तियों जमीनी कारणो पंचमकारात्मक प्रयोग जासूसी चिकित्सा शरीर के बल का गुप्त रूप से प्रयोग करने वाली कला बोली जाने वाली भाषा मे तीखी भाषा का प्रयोग करना गुप्त रूप से मृत्यु सम्बन्धी कारण प्रस्तुत करना शमशानी शक्तियों का सहारा लेना धरती के दक्षिण पश्चिम दिशा मे निवास करना आदि बातो को माना जा सकता है। रावण के जीवन के प्रति रामायण आदि ग्रंथो मे केवल अपने परिवार आदि के लिये ही जीवन को गुजारना स्त्री सम्बन्धो को सामने लाकर अपनी मौत को बुलावा देना और गुप्त शक्तियों का बुद्धि के प्रभाव से राम के द्वारा समाप्त कर देना आदि बाते देखी जा सकती है। 
 

Tuesday, February 19, 2013

पिता पुत्र की विमुखता

दादा से पिता पिता से पुत्र और पुत्र से पौत्र की श्रेणी को वंश वृक्ष कहा जाता है। पिता से जब पुत्र रूप मे नयी शाखा की उत्पत्ति होती है तो पिता का ही रूप सामने आना माना जाता है। गुण दोष खून का प्रभाव पूर्व मे किये गये कर्मो का हिसाब पुत्र के रूप मे ही मिलता है जो गल्तियां जीवन मे की जाती है उनके दुष्परिणाम पुत्र के द्वारा ही प्रस्तुत किये जाते है और पुत्र के द्वारा जो गल्तियां की जाती है वह पौत्र के रूप मे पुत्र के सामने आती है। पिता जब अपने पिता की मर्यादा को रखने मे अपनी रुचि रखता है तो जाहिर है कि पुत्र भी अपने पिता की मर्यादा को कायम रखने के लिये अपनी सीमा को मर्यादा के अन्दर ही रखेगा और पिता जब अपने पिता की मर्यादा को भूल कर निरंकुश हो जायेगा तो पुत्र भी अपने पिता की मर्यादा को भूल कर निरंकुश हो जायेगा । इस निरंकुश प्रभाव के कारण ही पिता पुत्र की आपसी सम्बन्धो और पारिवारिक मर्यादा को भूलने का प्रभाव सामने आकर परिवारो का बिखराव होना शुरु हो जाता है और एक समय ऐसा भी आता है जब पिता के लिये पुत्र दुश्मन के रूप मे सामने आने लगता है और कभी कभी तो बहुत बडी अनहोनी तक पुत्र के आपसी सम्बन्धो के कारण होने लगती है।
कुंडली मे गुरु को सम्बन्धो का कारक भी कहा जाता है और परिवार के प्रति समाज के प्रति और अपने शरीर से सम्बन्धित रिस्तेदारो के प्रति अपनी रिस्ते वाली भावना को कायम रखने के लिये मानसिक रूप से तथा परिवार समाज आदि के लिये बनाये गये नियम कानून के अन्दर चलने की गति को प्रस्तुत करने का कारण बनता है। लेकिन यह तभी सही माना जाता है जब गुरु का स्थान कुंडली मे केन्द्र त्रिकोण आदि को प्रभावित करता हो और गुरु पर किसी भी खराब ग्रह राशि और भाव का असर नही हो रहा हो। गोचर के समय भी गुरु का प्रभाव रिस्तो पर जरूर पडता है लेकि गोचर के समाप्त होने के बाद रिस्तो के अन्दर फ़िर से मजबूती आने लगती है और रिस्ते उसी प्रकार से चलने लगते है जैसे पूर्व मे थे और अक्सर रिस्ते के खराब होने के बाद भी कई बार देखा जाता है कि रिस्तो मे और अधिक मजबूती तथा सामजस्य इसलिये और बनने लगता है क्यों कि पहले घटी घटनाओ के कारण पिता पुत्र मे एक प्रकार का डर भी पैदा हो जाता है कि पहले की गयी गल्ती के कारण रिस्ता टूटा था और वही गल्ती दुबारा नही हो जाये जो रिस्ते के अन्दर दरार पैदा हो जाये।
शुक्र को रिस्ता बरबाद करने के लिये माना जाता है और लालकिताब के अनुसार भी शुक्र कभी भी अपनी गल्ती को अपने ऊपर स्वीकार नही करता है वह अपनी गल्ती को बुध पर डालता है बुध उस गल्ती को सीधा चन्द्रमा पर डालता है लेकिन इस प्रकार की एक दूसरे की गल्ती को एक दूसरे पर डालने के कारण या तो गुरु आहत होता है या सूर्य आहत हो जाता है दोनो के आहत होने का असर सीधा सा चन्द्रमा पर पहले दिखाई देने लगता है यानी मन का बदलाव और मन के अन्दर के प्रकार की वह सीमा रेखा बनने लगना जो पहले से बनने वाले रिस्तो के अन्दर नफ़रत या इसी प्रकार की सोच का पैदा हो जाना।
शुक्र को स्त्री के रूप मे माना जाता है पिता पुत्र का खून तो एक दूसरे को आकर्षित करता है लेकिन शुक्र उस आकर्षण को दूर करने के लिये अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना शुरु कर देता है। जैसे गुरु जो समाज परिवार व्यक्ति की मर्यादा को कायम रखने के लिये अपने अनुसार कानूनी और मानसिक लगाव को प्रभावित करता है तो शुक्र उस प्रभाव को भौतिक कारणो से सामने करने के बाद अचानक बदलाव देने के लिये अपनी शक्ति को प्रसारित करने लगता है।
शुक्र को ही स्त्री रूप मे जीवन संगिनी के रूप मे  माना जाता है और शुक्र का पहला रूप बुध के रूप मे दूसरा रूप चन्द्रमा के रूप मे मिलता है। बुध का रूप स्त्री के पिता के घर मे और चन्द्रमा का रूप पुत्र के सानिध्य मे प्राप्त होता है लेकिन स्त्री का स्तर शनि की छाया पडने पर कुटिलता की तरफ़ राहु की छाया पडने पर दुश्चरित्रता की तरफ़ केतु की छाया पडने पर अपने को केवल सहायिका के रूप मे तथा मंगल की छाया पडने पर कर्कशा के रूप मे सूर्य की छाया पडने पर अहम की सीमा से बाहर नही आने के रूप मे मानी जाती है। अगर पिता की कुंडली में शुक्र पर शनि की छाया है तो जाहिर है कि माता का रूप कुटिलता की तरफ़ जायेगा,पुत्र की कुंडली में शुक्र पर शनि की छाया है तो पुत्र वधू के अन्दर भी कुटिलता की तरफ़ जाना निश्चित है। वही पर अगर बुध के ऊपर शनि की छाया है तो स्त्री के पिता के घर पर कुटिलता से जाने से कोई नही रोक सकता है,चन्द्रमा पर शनि की छाया है तो पुत्र के पैदा होने के बाद जब स्त्री का रूप माता के रूप मे होगा तो कुटिल बनने से नही रोका जा सकता है। कई बार देखा जाता है कि बुध जब राहु से ग्रसित होता है तो पिता के घर मे रहने पर पुत्री का दिमाग दुश्चरित्रता की तरफ़ जाता है लेकिन विवाह होने के बाद उसका रूप अचानक बदल जाता है इसी प्रकार से शुक्र पर राहु की छाया होने से पत्नी पर दुश्चरित्रता का असर देखने को मिलता है वही रूप जब चन्द्रमा के ऊपर होता है तो माता के प्रति भी इसी धारणा को कायम होने का रूप देखा जा सकता है। यह रूप आने पर जब प्रमाण मिलने लगते है तो इन ग्रहो का उपाय करने से मिलने वाले प्रभावो मे कमी भी आने लगती है और कभी कभी लम्बे समय तक उपाय करते रहने से जो प्रभाव मिलते है वह प्रकृति के अनुसार बदलने भी लगते है।
अक्सर प्रश्न यह पैदा होते है कि क्या स्त्री के प्रति मिलने वाली धारणा या पिता के साथ या पुत्र के साथ मिलने वाली इस प्रकार की धारणा पूर्व जन्म के बाद ही देखने को मिलती है या फ़िर किसी प्रकार के पूर्व मे किये गये कर्मो के अनुसार इस प्रकार की युति जीवन मे देखने को मिलती है ? ज्योतिष से इस प्रकार के प्रश्नो के उत्तर मिल जाते है। जैसे जातक की कुंडली मे शुक्र के साथ राहु विराजमान है तो यह जरूरी है कि जातक के दादा के साथ किसी न किसी प्रकार से दुश्चरित्र स्त्री का साथ रहा है या दादा ने शुक्र जो सम्पत्ति के रूप मे भी माना जाता है वह अवैधानिक रूप से प्राप्त करने की कोशिश की है या फ़िर दादा के द्वारा उन कारको को किया गया है जो मर्यादा के विपरीत माने जाते है। जब केतु का साथ शुक्र के साथ मिलता है तो जातक के नाना परिवार से इस बाद की पुष्टि देखने को मिलती है। शनि का साथ जब शुक्र के साथ होता है तो जातक के किये गये पूर्व के कर्मो से इस प्रकार का योग देखने को मिलता है यही नही जातक के रहने वाले स्थान तथा रहने वाले माहौल को भी शनि शुक्र की युति नीच प्रकृति का रूप देने के लिये अपने सहयोग को देती है। यही कारण शुक्र के साथ मंगल के रूप मे भी देखा जाता है कि जब भी जातक अपने जीवन साथी से मिलता है तो उसके खून के अन्दर शुक्र का प्रभाव आवेग के साथ जुडने लगता है और वही शुक्र उत्तेजित होकर या तो झल्लाहट का रूप प्रस्तुत करने लगता है या फ़िर माथा फ़ोडने वाली बात सामने आने लगती है। बुध के साथ होने से गाली गलौज या कटु बात कहने से चन्द्रमा एक साथ होने से हर प्रकार की सोच मे उत्तेजना के साथ प्रकट होना भी देखा जाता है।
पिता पुत्र की आपसी युति को तोडने के लिये शनि को भी जिम्मेदार माना जाता है इस कारण मे सूर्य शनि की युति को देखा जाता है यह युति गोचर से भी होती है और जीवन मे जन्म लेने के समय के ग्रहो मे भी देखी जाती है जब यह युति जन्म से ही होती है तो जातक के खुद के विचार बनने के बाद भी पिता पुत्र की आपसी सहयोगी नीति नही मिलती है अन्यथा यह भी देखा जाता है कि पिता का साया पुत्र से दूर होने के कारण भी बनने लगते है इस प्रकार के कारणो मे अक्सर या तो काम धन्धे की बात भी होती है और कभी कभी शुक्र के सामने आने से पुत्र की शादी के बाद आने वाली पुत्र वधू के व्यवहार से भी देखने को मिलती है। इस युति मे पिता के सामने पुत्र की हैसियत नही बन पाती है और वह अपने पिता के आपसी विचारो से भी सहमत नही हो पाता है। यह जरूरी नही है कि परिवार मे पुत्र और पिता की युति को केवल शनि राहु मन्गल सूर्य केतु ही दूर करने मे अपना असर प्रदान कर रहे हो,बल्कि यह भी देखा जाता है कि अगर कुंडली मे मंगल और शनि की युति है तो छोटे और बडे भाई की आपसी सहयोग की नीति मे भी एक प्रकार की कसाई वाली नीति पैदा होती है और इस नीति के कारण भी सूर्य आहत होता है चन्द्रमा पर असर या तो होता नही है या फ़िर शनि या बडे भाई के सामने माता कुछ कह नही पाती है और उसे कुछ कहना भी होता है तो छोटे पुत्र पर कोई न कोई लांछन लगाकर उसे नीचा दिखाने की कोशिश होती है इस काम मे राहु और शुक्र भी अपना अपना असर देते है।

Thursday, February 14, 2013

वर्षफ़ल निकालने का सरल तरीका

जैसे ही नई साल शुरु होती है लोग अपने अपने बारे मे पूरी साल के लिये जानने के लिये उत्सुक हो जाते है,विभिन्न तरीको से लोग अपने अपने लिये साल भर के लिये जानकारी इकट्टी करना शुरु कर देते है,कई लोग अपने लिये पूरे साल का प्लान बना लेते है कि हर महिने मे उनके लिये क्या क्या अच्छा होगा और क्या क्या बुरा होगा,अखबार बेवसाइट टीवी आदि सभी अपने अपने अनुसार लिखने लगते है कोई कुछ लिखता है और कोई कुछ लिखता है,लेकिन यह जरूरी नही है कि एक राशि का प्रभाव सभी पर अपना एक ही प्रभाव दे दे,मेरे ख्याल से सभी के लिये एक ही प्रकार से लिखना सही नही है,हर किसी की कुंडली अलग अलग प्रकार से अलग प्रभाव देती है,नौ ग्रहो बारह भावो और बारह राशियों के साथ सत्ताइस नक्षत्रो अठारह सौ नाडियों के लिये लोग इतनी आसानी से अपने भविष्य कथन को कहने लगते है जैसे उन्होने यह समझ लिया हो कि यह सब साधारण है ! सभी को पता है कि कम्पयूटर चलाने के लिये अभी तक 0-1 केवल दो अंको से दुनिया भर के कार्य किये जा रहे है तो नौ ग्रहो के लिये कितनी बाइट्स बन कर तैयार हो जायेंगी,जीरो और एक अंक की क्रिया पर आदमी को घंमंड हो गया है कि उसने बहुत बडी विद्या हाशिल कर ली है जबकि एक से नौ ग्रहों की कितनी बाइट्स बनेगी,उन बाइट्स को लोग सरल भाषा मे समझ कर जैसे सुना पढा वैसे कहना शुरु कर दिया। देश काल परिस्थिति मौसम जलवायु रहन सहन आदि कितने कारक और जुड जाते है जब ज्योतिष का फ़लकथन किया जाता है।
वर्षफ़ल निकालने के लिये जरूरी नही है कि एक साल का ही निकाला जाये महिने का भी निकाला जा सकता है दिन का भी निकाला जा सकता है एक सप्ताह का भी निकाला जा सकता है एक घंटे और एक मिनट का भी निकाला जा सकता है। इसका बहुत ही सरल उपाय है जिसे कोई भी प्रयोग मे ला सकता है,और कभी भी प्रयोग मे ला सकता है शर्त है कि उसे अपनी जन्म लगन याद हो,कुंडली मे ग्रहो की स्थिति याद हो।
उदाहरण के लिये प्रस्तुत कुंडली तुला लगन की है और इसका आज से साल भर का वर्षफ़ल निकालना है। इसके लिये इस कुंडली की जन्म तारीख को महिना साल को देखना है। इसकी तारीख 29 है महिना 4 था यानी अप्रैल का है,साल 1957 की है और जन्म का समय शाम के 6 बजकर 30 मिनट का है। आज की तारीख 13 है महिना 2 है यानी फ़रवरी है,और साल 2013 है,समय सुबह के 7 बजकर 9 मिनट हुये है। इस कुंडली को आज की तारीख और समय तक घुमाकर लाना है,इसके लिये लगन से साल को गिनना शुरु करते है,कुंडली को दाहिने से बायें गिना जाता है,लगन को जन्म की साल मानकर गिनने पर जैसे तुला लगन के लिये 1957 दूसरे भाव वृश्चिक राशि जहां नम्बर 8 लिखा है 1958 जहां नम्बर 9लिखा है 1959 जहां नम्बर 10 लिखा है 1960 इसी क्रम से गिनते चले जायेंगे,इस कुंडली के अनुसार आने वाली अप्रैल के महिने से वर्षफ़ल के लिये नम्बर 3 पर पहुंचेंगे जबकि आज के लिये नम्बर 2 तक साल 2012तक ही गिनकर आगे महिने की गिनती शुरु कर देंगे,जैसे वृष राशि तक 2012 की गणना की जायेगी और 2013 अप्रैल महिने से आगे की साल का वर्षफ़ल निकाला जायेगा। लेकिन आज के वर्षफ़ल के लिये 2012 के अप्रैल महिने तक ही गिनकर आगे के लिये दसवे भाव की कर्क राशि को लगन मानकर गिनती की जा्येगी।
इसी प्रकार से किसी भी दिन का फ़लादेश निकालना आसान है और बिना किसी अधिक माथापच्ची के फ़लादेश किया जा सकता है। गोचर की ग्रहो का प्रभाव भी इसी प्रकार से निकाला जाता है। जातक जब प्रश्न पूंछने आता है तो जातक की कुंडली को देखते है,पिछले बीते हुये समय का फ़लादेश करने के लिये जातक के पिछले साल का फ़लादेश दिया जाता है और वर्तमान मे चलने वाले समय का वर्तमान मे गोचर के ग्रह और जन्म के ग्रहो के साथ आपसी सम्बन्ध देखा जाता है तथा भविष्य के लिये आज के ग्रहो का अगली गोचर की स्थिति को देखकर दिया जाता है।
इसमे मन का कारक चन्द्रमा जो इच्छा को समझने के लिये देखा जायेगा चौथा वर्तमान और भावुकता से सोची जाने वाली बात को प्रसारित करेगा आठवा भाव गुप्त सोच को प्रकट करेगा और बारहवे भाव की सोच हवाई किले बनाने जैसी होती है। लगन का चन्द्रमा शरीर और नाम के प्रति धन भाव का धन के प्रति और गुप्त रूप से किये जाने वाले कामो के प्रति तीसरे भाव का चन्दमा धर्म और न्याय के प्रति तथा खुद की यात्रा के प्रति चौथे भाव का चन्द्रमा भावनाओ को ध्यान मे रखकर सोची जाने वाली बातो के लिये और इसी प्रकार से अन्य भावो की बाते देखी जा सकती है।

Monday, February 11, 2013

कफ़न

जन्म के तुरत बाद ही मौत की कल्पना शुरु हो जाती है,जहां जन्म है वहां मौत भी है यह उसी प्रकार से है जैसे दिन के बाद रात सुख के बाद दुख आदि। जन्म के समय को ज्योतिष में लगन के रूप मे प्रकट किया जाता है तो जीवन का आखिरी भाग मौत के लिये आठवे भाव के रूप मे प्रकट किया जाता है। लगनेश को शरीर का रूप और अष्टम के मालिक को मौत होने के बाद का रूप माना जाता है,जन्म के बाद शरीर बढने लगता है और पुष्टता मे जाने लगता है जबकि मौत के बाद शरीर की क्षति होने लगती है और वह मिट्टी के रूप मे परिवर्तित होने लगता है। यह क्रिया प्रकृति के अनुसार बनाने और बिगाडने के लिये भी मानी जाती है,जन्म देने के लिये प्रकृति ही जिम्मेदार होती है और मौत देने के लिये भी प्रकृति को ही जिम्मेदार माना जाता है। कोई मौत स्वाभाविक होती है और कोई मौत बहाना लेकर होती है,जैसे दुर्घटना आदि मे शरीर का विनाश।
कफ़न शब्द उर्दू शब्द है। कफ़न मनुष्य की मौत के बाद दिया जाने वाला आखिरी वस्त्र है जो उसे श्रद्धा से भी दिया जाता है और नफ़रत से भी दिया जाता है,जब व्यक्ति की असमान्य परिस्थिति मे मौत होती है,जैसे किसी अन्जान स्थान मे जंगल पहाड समुद्र या किसी हिंसक जीव के द्वारा उसके शरीर का विनाश कर दिया जाता है तो उसे संसार के द्वारा दिया जाने वाला आखिरी कपडा कफ़न के रूप मे प्राप्त नही हो पाता है। इस बात को लालकिताब मे वर्णित किया गया है कि अगर कुंडली मे गुरु ग्यारहवे भाव मे है तो उसे मौत के बाद कफ़न तक नशीब नही होता है। कुंडली मे लगन जन्म के रूप मे है जब व्यक्ति जन्म के बाद पहली सांस इस संसार मे लेता है और सातवां भाव मौत के समय का जब व्यक्ति आखिरी सांस को छोडता है,जन्म के बाद दूसरे भाव में लोग जातक जीवित देखते है तो अष्टम भाव मे लोग जातक को मृत अवस्था मे देखते है तीसरे भाव से जातक की पहिचान भौतिक रूप मे की जाती है तो नवे भाव से जातक की पहिचान उसकी आत्मा के रूप मे की जाती है चौथे भाव से जातक के जीवित रहने के स्थान को देखा जाता है जहां जातक सुख से निवास करता है तो मृत्यु के बाद दसवे भाव की स्थिति को देखा जाता है कि जातक की आत्मा का निवास किस स्थान मे है,पंचम भाव से जातक की भौतिक बुद्धि को समझा जाता है तो ग्यारहवे भाव से जातक की आध्यात्मिक बुद्धि की परख की जाती है छठे भाव से जातक इस संसार को सेवायें देता है तो बारहवे भाव से जातक संसार से अपने लिये सेवाये प्राप्त करता है आदि बातें कुंडली के द्वारा विवेचित की जाती है। इस बात से समझा जाता है कि व्यक्ति जिस भाव से सुख प्राप्त कर रहा है उसके सप्तम से उसे दुख प्राप्त होना होता है। यहां तक कि लगन अगर पुरुष रूप मे होती है तो सप्तम अपने आप ही स्त्री रूप मे परिवर्तित हो जाता है।
कफ़न का रूप जातक की मौत के बाद मिलने वाली संसार की श्रद्धा के रूप मे होता है,उसे मौत के बाद किस नजरिये से देखा जायेगा इसके लिये जातक के ग्यारहवे भाव को समझना जरूरी होता है। ग्यारहवा भाव जातक के द्वारा किये गये कार्य जो संसार के लिये हित के लिये है या अहित के लिये उस रूप मे पहिचाने जाते है। अगर जातक के द्वारा अच्छे कर्म किये गये है तो ग्यारहवा भाव अच्छे ग्रहो से पूर्ण होगा और बुरे कार्य किये गये है तो ग्यारहवा भाव बुरे ग्रहों से पूर्ण होगा। ग्यारहवा भाव जीवन के भौतिक सुखो मे भी साथ देने वाला है चाहे वह जीवित रहने के वक्त मित्रो के रूप मे हो बडे भाई बहिन के रूप मे हो सन्तान के जीवन साथी के रूप मे हो अथवा कष्ट सह कर कमाये जाने वाले लगातार लाभ के रूप मे हो यह भाव ही जीवन के प्रति अपनी उन संवेदनाओ को प्रस्तुत करता है जो जीवन के रहने तक और जीवन के समाप्त होने के बाद तक अपनी स्थिति को वर्णित करता है।
उपरोक्त कुंडली मे गुरु ग्यारहवे भाव मे वक्री है नौ दस ग्यारह बारह भाव एक उस चौकडी को प्रस्तुत करते है जो मौत के बाद की स्थिति को सामने करती है। जिस प्रकार से पहला दूसरा तीसरा और चौथा भाव जन्म लेकर माता की गोद मे खेलने तक अपनी स्थिति को प्रस्तुत करता है उसी प्रकार से नौ दस ग्यारह और बारह मौत के बाद से लेकर परलोक के निवास तक को समझाने मे मदद करता है। लगन से चौथे भाव तक व्यक्ति को भौतिक शरीर को पालने के लिये जल रूपी कारक को ग्रहण करने की शक्ति मिलती है तो नौ से लेकर बारह तक जातक को वायु रूपी कारक को ग्रहण करने के लिये भौतिक कारको को त्यागने के बाद की स्थिति मिलती है। गुरु के वक्री होने के कारण गुरु जो इस कुंडली मे ग्यारहवे भाव मे है लालकिताब के अनुसार कहा गया है कि गुरु जब ग्यारहवे भाव मे हो तो जातक को कफ़न तक नशीब नही होता है लेकिन उस गुरु की कल्पना आदि काल मे की जाती थी जब जातक को अकेले रहने की बात से माना जा सकता हो,गुरु जो आध्यात्मिकता के प्रति अपनी भावना को प्रस्तुत करता था,गुरु जो रिस्तो के प्रति अपनी शक्ति को प्रस्तुत करता था गुरु जो वायु रूप मे शरीर के जिन्दा रहने तक सांस के रूप मे अपनी उपस्थिति को देने का कारक माना जाता था। इस कुंडली मे गुरु का वक्री रूप एक अजीब कारण को प्रस्तुत करता है जैसे यह कुंडली पुरष रूप मे है तो जातक के ग्यारहवे भाव मे यह गुरु वक्री होकर जातक की बडी बहिन के रूप मे है,साथ ही यह गुरु पिता के समाज की जगह पर माता के समाज के द्वारा पालन पोषण और शरीर की उन्नति के प्रति अपनी उपस्थिति को प्रकट करता है,इसी प्रकार से यह गुरु जो दिमागी शक्ति का कारक है वह एक साधारण व्यक्ति से अधिक याददास्त को रखने को कारक भी बन गया है,यह कारण केवल इसलिये बना है क्योंकि जातक जो भी बात दिमागी रूप से ग्रहण करने की कोशिश करता है वह उल्टे रूप मे ही प्रयोग मे लाता है जब मुख्य रूप पहले देखा जायेगा तो सामान्य रूप अपने आप ही समझ मे आजायेगा।
पंचम भाव माता के आंचल से जोडा जाता है जब माता अपनी संतान को दूध पिलाती है तो अपने आंचल से ढक लेती है उसी प्रकार से जब मृत्यु हो जाती है तो शरीर को ताबूत काठी टिकटी ठठरी आदि मे रखा जाता है और उस शरीर को रखने से पहले शरीर को एक वस्त्र के द्वारा ढका जाता है जिसे कफ़न कहा जाता है। यह कफ़न उसी प्रकार से है जैसे जन्म के बाद माता के आंचल का रूप होता है। गुरु चूंकि वायु का कारक है इसलिये ग्यारहवे गुरु को मरने के बाद वायु रूप मे मिलने वाले कफ़न के रूप मे माना जाता है यानी जो कफ़न किसी भौतिक वस्तु से नही बना हो। खुले शरीर का धरती मे निर्गम ही ग्यारहवे गुरु की श्रेणी मे रखा जाता है। लेकिन मेरी अपनी सोच के अनुसार गुरु अगर मार्गी है तो जातक को मौत के बाद खुले शरीर से ही धरती मे निर्गम से माना जाता है और वक्री होने पर उस शरीर को धरती तक निर्गम के लिये वह लोग अपनी सहायता को देते है जो जातक के समाज परिवार धर्म और सीमा से बाहर के लोग होते है।
कफ़न को चन्द्रमा से पानी से घिरे क्षेत्र मे प्रवाहित होने के लिये माना जाता है,सूर्य से लकडी आदि से ढकर शरीर को धरती के साथ निर्गम करने से माना जाता है,मंगल से दुर्घटना या गहरे स्थान मे मिट्टी से दबकर निर्गम को माना जाता है बुध से फ़ूलो और कोमल वस्तुओं से शरीर को ढकर कर धरती तक निर्गम के लिये माना जाता है गुरु से शरीर को खुले रूप मे वायु के द्वारा धरती तक निर्गम के लिये माना जाता है शुक्र से सजावटी स्थान मे रखकर शरीर को श्रंगार आदि करने के बाद धरती मे निर्गम किया जाता है शनि से पहाडो जमीन के अन्दर गहरे स्थानो भीगे और नम स्थानो में शरीर को दफ़ना कर निर्गम करने से माना जाता है,राहु से शरीर को टुकडे टुकडे करने के बाद धरती मे निर्गम करने से माना जाता है केतु से समाधि देकर अथवा लम्बे ताबूत आदि मे रखने के बाद निर्गम करने के कारण को माना जाता है। 

Sunday, February 10, 2013

सूर्य बुध का साथ नेपच्यून के साथ छठे भाव में

सूर्य आसमान का राजा है बुध सूर्य का सहयोगी है और अक्सर सूर्य के सानिध्य मे आकर बुध आदिय योग का निर्माण करता है। रोजाना के काम करने कर्जा करने दुश्मनी पालने बीमार रहने और लोगो की सेवा के बाद जीविकोपार्जन करने का कारण आसमान के राजा को मिल जाये तो जीवन मे दस दोषों का निर्माण अपने आप होने लगता है,साथ मे बुध हो तो सूर्य के सानिध्य मे जो राजकुमार घमंड और अहम के प्रति अपनी धारणा को रखता है वह सूर्य यानी पिता राज्य और उपरोक्त कारको के कारण धीमे रूप मे बोलकर विनम्रता को धारण करने के बाद बोलने की क्षमता को रखने के लिये मजबूर हो जाता है। नेपच्यून को आत्मीय रूप दिया जाता है एक ऐसे सन्यासी की उपाधि दी जाती है जो लोगो के लिये हित को करने वाला होता है लेकिन बदले मे अपने लिये कुछ भी प्राप्त करने वाला नही होता है वह केवल प्राप्त करना चाहता है तो लोगो के द्वारा मिलने वाली सहानुभूति और लोगो के द्वारा मिलने वाला आत्मीय प्यार को प्राप्त करने के लिये काफ़ी माना जाता है। नेपच्यून की गति जो चौथे आठवे और बारहवे भाव से हमेशा उन कारको को प्राप्त करने के लिये मानी जाती है जो कारक सह्रदय के रूप मे माने जाते है लेकिन वही सन्यासी किसी न किसी प्रकार से राजकीय तथा धन आदि की क्षमता को सेवा के भाव से देखना शुरु कर दे तो यही माना जा सकता है कि एक सन्यासी को भी लोगो के लिये पेट पालने के लिये धन की आवश्यकता होने लगी है और वह लोगो के लिये किये जाने वाले कल्याण के लिये अपनी सह्रदयता को भुनाने के लिये राजकीय सहायता को प्राप्त करने का प्रयास करने लगा है।
छठे सूर्य के बारे मे कहा जाता है कि जातक के पिता को अपनी गरीबी के समय को ध्यान रखकर जातक को पाला पोषा जाता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि जातक के पिता का प्राथमिक जीवन उसके चाचा या मामा अथवा मौसी के घर पर बीता है इसके अलावा जातक का लालन पालन अभाव मे हुआ है और उस अभाव से जातक को अपनी पहिचान बनाने के लिये अपने ही समाज मे परिचय को देना होता है इसके अलावा भी यह माना जाता है कि जातक को बचपन मे कुपोषण जैसे रोग पैदा हो गये थे जो जातक को जवानी से लेकर बुढापे की अवस्था मे हड्डियों की बीमारियों को पैदा करने जोडों का दर्द देने के लिये आंखो की परेशानी को देने के लिये भी माना जाता है इसके अलावा यह भी माना जाता है कि जातक का जो जीवन साथी है उसके लिये आंखो के रोग होना और सिर का दर्द हमेशा बना रहना भी माना जाता है सूर्य अगर किसी प्रकार से गुरु की द्रिष्टि मे है तो यह भी माना जाता है कि जातक का जीवन साथी अपने परिवार के किसी ऊंची पहुंच वाले व्यक्ति की सहायता से सरकारी अथवा बाहरी सहायता को प्राप्त करने मे समर्थ हुआ और उम्र की तीसरी साल से अपने को आगे से आगे ले जाने के लिये अपनी योग्यता को प्रदर्शित करने लगा है। छठा भाव उम्र की दूसरी और तीसरी सीढी के बीच का हिस्सा है,जीवन का पहला अंश चौथा भाव जीवन का दूसरा अंश सातवा भाव तीसरा अंश दसवा भाव और चौथा तथा अन्तिम अंश पहले भाव को माना जाता है।
नेपच्यून को सूर्य के साथ होने से एक ऐसी आत्मा को भी माना जाता है जो अपने जीवन के प्रभाव को अपनी गरीबी और अपने प्राथमिक परिवार को पालने की जुगत मे भूल जाता है साथ ही जब बुध का प्रभाव सामने आजाता है तो औकात होने के बाद भी अपने जीवन की गति को प्रदर्शित करने मे असमर्थ होता है।

Saturday, February 9, 2013

कुंडली से कैसे पता करे कि बच्चा जिद्दी तो नही है ?

जिद के कई शाब्दिक रूप है। इसे हठ करना भी कहते है किसी बात पर मचलना भी कहते है अपनी मानसिक रूप से सोची गयी क्रिया को फ़लित कर उसे प्राप्त करने की गति को भी कहते है। बच्चो के अलावा बडों की भी जिद देखी गयी है जो वे अपने अनुसार अपने ही भाव मे रहकर उसे पूरा करने की कोशिश करने के लिये अपने जीवन को भी दाव पर लगा देते है। कुंडली का चौथा भाव मानसिक गति का होता है और दूसरा भाव उस गति को लाभान्वित करने के लिये देखा जाता है। मानसिक गति को सोचने के बाद की प्राप्त करने की क्रिया को पंचम से देखा जाता है यानी जो सोचा जाये उसे प्राप्त कर लिया जाये। मानसिक गति को प्राप्त करने के लिये जो भी क्रिया करनी पडती है वह कुंडली के लगन भाव से देखा जाता है या चन्द्रमा के स्थापित स्थान से दसवे भाव के अनुसार समझा जाता है चन्द्रमा पर पडने वाले प्रभाव के साथ साथ चौथे भाव के स्वामी की गति को भी देखा जाता है और चौथे भाव का मालिक अगर चन्द्रमा का शत्रु है या चन्द्रमा से किसी प्रकार से गोचर से शत्रुता रख रहा है या त्रिक भाव से अपनी क्रिया को प्रदर्शित कर रहा है तो वह क्रिया भी प्रयास करने या प्रयास के दौरान अपनी प्रयोग की जाने वाली शक्ति को समझने के लिये मानी जा सकती है।
बुद्धि और सोच को एकात्मक करने की क्रिया मे अगर बल की कमी है,बल बुद्धि और सोच मे किसी प्रकार का भ्रम है,बुद्धि बल और सोच मे कोई न कोई नकारात्मक प्रभाव है तो क्रिया पूर्ण नही हो पायेगी। जब कोई भी क्रिया पूरी नही हो पाती है तो बुद्धि पर बल पर और सोच पर इन तीनो के प्रभाव मे एक प्रकार से जल्दी से प्राप्त करने की कोशिश शुरु हो जायेगी और जब अक्समात उस शक्ति को प्राप्त करने की क्रिया होगी तो यह जरूरी है कि उसके लिये पूर्ण रूप से बुद्धि बल शरीर बल और सोचने की शक्ति के बल मे से किसी पर भी या तीनो पर ही केन्द्र बन जायेगा और उस केन्द्र से अगर किसी प्रकार की बाहरी अलावा कारण को उपस्थिति किया जायेगा तो मानसिक क्रिया एक प्रकार से उद्वेग मे चली जायेगी परिणाम में वाणी व्यवहार और कार्य के अन्दर एक झल्लाहट का प्रभाव सामने आने लगेगा। यही झल्लाहट का भाव जिद के रूप मे सामने आने लगेगा।
कुंडली मे बुद्धि का कारक बुध है बल का कारक मंगल है और सोच का कारक चन्द्रमा है। बुद्धि के लिये पंचम भाव को सोच के लिये चौथे भाव को और शरीर के बल के लिये पहले भाव को देखना होता है इनके स्वामी और स्वामी की स्थिति के अनुसार ही परखना होता है कि बुद्धि बल शरीर बल और सोचने के बल के अन्दर कितनी दूरी है और कितने समय के बाद इनकी आपसी युति मे समावेश लाया जा सकता है और समावेश लाने के समय मे राहु का कनफ़्यूजन और केतु का खालीपन गुरु का सभी बलो मे भाव और राशि के अनुसार दिया जाने वाला बुद्धि का का प्रभाव सूर्य के द्वारा खुद के द्वारा ही कार्य को पूर्ण करने का अहम शुक्र के द्वारा दूसरो को दिखाने के लिये प्रयोग किये जाने वाले सृजन वाले कारण शनि के द्वारा उस कारक के प्रति किये जाने वाले मेहनत और साधनो के अभाव मे भी कार्य का जारी रखना आदि बाते देखने के बाद ही तीनो प्रकार के कारको को समझा जा सकता है।
जिद करना अपनी बात को साम दाम दण्ड भेद की नीति से पूर्ण करना होता है। साम शरीर की क्रिया के द्वारा दाम धन और भौतिक कारको के अलावा सेवा आदि की नीति से पूर्ण करना दण्ड अपने सहयोगी की सहायता से बोलचाल और लोभ आदि के द्वारा भेद की नीति मन मे भेद पैदा करने से जोखिम का भय दिखा कर या सन्तुष्टि का मार्ग बताने के बाद अपनी जिद को पूरा करने के लिये माना जाता है। यह चारो प्रकार ही चार पुरुषार्थ के प्रति अपनी भावना को रखते है। यही कुंडली के चारो वर्ग जो लगन पंचम और नवम से धर्म दूसरे छठे और दसवे से अर्थ तीसरे सप्तम और ग्यारहवे से काम चौथे आठवे और बारहवे भाव से मोक्ष के प्रति समझे जा सकते है।
किसी भी अन्य जानकारी के लिये astrobhadauria@gmail.com से सम्पर्क करे.

Sunday, February 3, 2013

राहु का गोचर बनाम रग रग फ़डकती जिन्दगी !

अक्सर लोगो का बहम होता है कि व्यक्ति पर भूत प्रेत पिशाच का साया है और वह उनके प्रभाव मे आकर अपनी जिन्दगी को या तो तबाह कर लेता है। सीधा सा अर्थ है कि भूत कोई अन्जानी आत्मा नही है वह केवल अपने द्वारा किये गये प्रारब्ध यानी पूर्व के कर्मो का फ़ल है,पिशाच कोई खतरनाक आत्मा या द्रश्य रूप मे नरभक्षक नही है वह केवल अपने अन्दर की वासनाओं का कुत्सित रूप है। प्रेत का मतलब कोई खतरनाक यौनि नही है बल्कि स्थान विशेष पर किये गये कृत्यों का सूक्ष्म रूप है जो बडे आकार मे केवल सम्बन्धित व्यक्ति को ही द्रश्य होता है।
इन सब कारणो को प्रदर्शित करवाने के लिये राहु को जिम्मेदार माना जाता है यह कुंडली मे जिस भाव मे जिस ग्रह के साथ गोचर करता है उसी ग्रह और भाव तथा राशि के अनुसार अपनी शक्ति का एक नशा पैदा करता जाता है और जीवन मे या तो अचानक बदलाव आना शुरु हो जाता है। एक अच्छा आदमी बुरा बन जाता है या एक बुरा आदमी अच्छा बन जाता है आदि बाते राहु से समझी जा सकती है।
मेरी हमेशा भावना रही है कि जो कारण भौतिकता मे सामने आते है और जिन्हे हम वास्तव मे देखते है समझते है महशूश करते है उनके प्रति ही मै आपको बताऊँ कपोल कल्पित या सुनी सुनाई बात पर मुझे तब तक विश्वास नही होता है,जब तक प्रत्यक्ष रूप मे उसे प्रमाणित नही कर के देख लूँ। इस प्रमाणिकता के लिये कई बार जीवन को भी बडे जोखिम मे डाल चुका हूँ और राहु के प्रभाव को ग्रह के साथ गोचर के समय मिलने वाले प्रभाव को साक्षात रूप से समझकर ही लिखने और बताने का प्रयास करने का मेरा उद्देश्य रहा है। साथ ही राहु के प्रभाव को कम करने के लिये और उसके रूप को बदलने के लिये जितनी भी भावना रही है उनके अनुसार चाहे वह बदलाव चलने वाले प्रभाव को बाईपास करने से सम्बन्धित हो या बदलाव को अलग करने के लिये किये जाने वाले तांत्रिक कारणो से जुडे हो वह सभी अपने अपने स्थान पर कार्य जरूर करते है राहु के बुरे प्रभाव को समाप्त करने का सबसे सस्ता और उत्तम उपाय जो सामने आया वह केवल राहु के तर्पण से ही सार्थक होता हुआ मैने देखा भी है अंजवाया भी है और खुद के जीवन के प्रति राहु तर्पण का प्रभाव साक्षात रूप से देखा भी है।
राहु कैसे अपने प्रभाव को प्रकट करता है ?
राहु एक छाया ग्रह है वह जब किसी भी भाव मे अपना असर प्रदान करता है तो भाव के अनुसार उल्टी गति राहु के प्रभाव से भाव मे मिलनी शुरु हो जाती है इसके साथ ही राहु की गति उल्टी होती है वह अन्य ग्रहो के अनुसार सीधा नही चलता है उल्टे चलकर ही अपने प्रभाव को प्रदर्शित करता है,साथ ही जो भाव जीवन मे सहायक होता है उसके लिये वह अपने प्रभाव को देने के लिये सहायता वाले भाव के प्रति अपनी धारणा को पूर्व से ही बदलना शुरु कर देता है जैसे राहु को कोई बीमारी देनी है तो वह सबसे सहायता देने वाले डाक्टर या दवाई से दूरी पैदा कर देता है अगर समय पर डाक्टर की सहायता मिलनी है तो किसी न किसी बात पर डाक्टर के प्रति दिमाग मे क्षोभ पैदा कर देगा और उस डाक्टर से दूरी बना देगा,और जैसे ही बीमारी पैदा होगी उस डाक्टर की सहायता नही मिल पायेगी या जो दवाई काम आनी है वह पास मे नही होगी या उस दवाई को खोजने पर भी वह नही मिलेगी,अगर किसी प्रकार से मिल भी गयी तो वह दवाई पहले से ली गयी अन्य दवाइयों के असर मे आकर अपना वास्तविक प्रभाव नही दे पायेगी। राहु का मुख्य काम होता है वह घटना के पूर्व मे लगभग छत्तिस महिने पहले से ही अपने प्रभाव को देना शुरु कर देगा,जैसे बच्चे को पैदा होने के बाद किसी बडी बीमारी को देना है तो वह पहले माता पिता के अन्दर नौ महिने पहले से ही हाव भाव रहन सहन खानपान आदि मे बदलाव लाना शुरु करेगा उसके बाद के नौ महिने मे वह बीमारी वाले कारणो को माता पिता के अन्दर भरेगा उसके बाद वह उस बीमारी को बनाने वाले कारणो को मजबूत बनाने के लिये अपने प्रभाव को बच्चा पैदा करने वाले तत्वो के अन्दर स्थापित करेगा और जब आखिर के नौ महिने मे बच्चे का गर्भ मे आकर पैदा होने तक का समय होगा तो बच्चे के अन्दर वही सब बीमारी वाले तत्व समावेशित हो जायेंगे और बच्चा पैदा होने के बाद उसी बीमारी से जूझने लगेगा। जैसे बच्चे के पैदा होने के बाद अगर टिटनिस की बीमारी होनी है तो वह बीमारी बच्चे के अन्दर माता पिता के द्वारा उनके खून से मिलने वाली टिट्निस विरोधी कारको को शरीर मे नही आने देगा और खून के अन्दर कोई न कोई इन्फ़ेक्सन देकर अगर माता के द्वारा गर्भ समय मे टिटनिश का टीका भी लगवाया गया है या कोई दवाई ली गयी है तो उन तत्वो को वह शरीर से बाहर कर देगा,बाहर करने के लिये माता को कोई अजीब सी परेशानी होगी और वह उस परेशानी को दूर करने के लिये अन्य दवाइओं का प्रयोग करना शुरु कर देगी या किसी दवाई के गलत प्रभाव से बचने के लिये समयानुसार कोई डाक्टर उसे एविल आदि को दे देगा और वह तत्व समाप्त हो जायेंगे। इसके साथ ही बच्चे के पैदा होने के बाद नाडा छेदन के लिये कितनी ही जुगत से रखे गये चाकू या सीजेरियन हथियार मे टिटनिश के जीवाणु विराजमान हो जायेंगे,अथवा कोई नाडा छेदन करने वाला व्यक्ति अपने अन्दर बाहर से आने के बाद किसी प्रकार से उन जीवाणुओं के संयोग मे आजायेगा आदि कारण देखे जा सकते है। इसी प्रकार से जब राहु अन्य प्रकार के कारण पैदा करेगा तो वह अपने अनुसार उसी प्रकार की भावना को व्यक्ति के खून के अन्दर अपने इन्फ़ेक्सन को भर देगा,अथवा भावनाये जो व्यक्ति के लिये दुखदायी या सुखदायी होती है उन्ही भावनाओ के अनुसार लोगो से वह अपना सम्पर्क बनाना शुरु कर देगा और वह भावनाये उस व्यक्ति को अगर अच्छी है तो उन्नति देगा और बुरी है तो वह भावनाये व्यक्ति को समाप्त करने के लिये कष्ट देने के लिये अथवा आहत करने के लिये अपने अनुसार प्रभाव देने लगेंगी। कहा जाता है कि राहु अचानक अपना प्रभाव देता है लेकिन उस अचानक बने प्रभाव मे भी राहु की गति के अनुसार ही सीधे और उल्टे कारको का असर सामने आता है। अगर व्यक्ति का एक्सीडेंट होना है तो कारक पहले से ही बनने शुरु हो जायेंगे,व्यक्ति के लिये राहु अपने प्रभाव से किसी ऐसे जरूरी काम को पैदा कर देगा कि वह व्यक्ति उसी आहत करने वाले स्थान पर स्वयं जाकर उपस्थिति हो जायेगा और कारक आकर उसके लिये दुर्घटना का कारण बना देगा। अगर जातक को केवल कष्ट ही देना है तो कारक शरीर या सम्बन्धित कारण को आहत करेगा फ़िर व्यक्ति के भाग्यानुसार सहायता करने वाले कारक उसके पास आयेंगे उसे सम्बन्धित सहायता को प्रदान करेंगे और व्यक्ति राहु के समय के अनुसार कष्ट भोगकर अपने किये का फ़ल प्राप्त करने के बाद जीवन को बिताने लगेगा। राहु की गति प्रदान करने का समय नाडी ज्योतिष से अठारह सेकेण्ड का बताया गया है और वह अपनी गति से अठारह सेकेण्ड मे व्यक्ति को जीवन या मृत्यु वाले कारण को पैदा कर सकता है। जिस समय राहु का कारण पैदा होता है व्यक्ति के अन्दर एक प्रकार की विचित्र सी सनसनाहट पैदा हो जाती है,और उस सनसनाहट मे व्यक्ति जो नही करना है उसके प्रति भी अपने बल को बढा लेता है और उस कृत्य को कर बैठता है जो उसे शरीर से मन से वाणी से या कर्म से बरबाद कर देता है।
राहु का विभिन्न भावो के साथ गोचर करने का फ़ल
राहु कुंडली मे बारह भावो मे गोचर का फ़ल अपने अनुसार देता है लेकिन भाव के लिये भी राशि का प्रभाव भी शामिल होता है। जैसे राहु कन्या राशि मे दूसरे भाव का फ़ल दे रहा है तो राहु के लिये तुला राशि का पूरा प्रभाव उसके साथ होगा लेकिन जन्म लेने के समय राहु का जो स्थान है उस स्थान और राशि का प्रभाव भी उसके साथ होगा और वह प्रभाव दूसरे भाव मे तुला राशि के प्रभाव मे मिक्स करने के बाद व्यक्ति को धन या कुटुम्ब या अपने पूर्व के प्राप्त कर्मो को अथवा अपने नाम चेहरे आदि पर अपना असर प्रदान करने लगेगा।
राहु का विभिन्न ग्रहो के साथ मिलने वाला प्रभाव
राहु जब विभिन्न ग्रहो के साथ विभिन्न भावो और राशि मे गोचर करता है तो राहु अपने जन्म समय के भाव और राशि के प्रभाव को साथ लेकर ग्रह और ग्रह के स्थापित भाव तथा राशि के प्रभाव मे अपने प्रभाव को शामिल करने के बाद अपना असर प्रदान करेगा लेकिन जो भी प्रभाव होंगे वह सभी उस भाव और राशि के साथ राहु के साथ के ग्रह हो जन्म समय के है को मिलाकर ही देगा। अगर राहु वृश्चिक राशि का है और वह कुंडली के दूसरे भाव मे विराजमान है तो वह दसवे भाव मे गोचर के समय मे वृश्चिक राशि के साथ दूसरे भाव का असर मिलाकर ही दसवे भाव की कर्क राशि मे पैदा करने के बाद अपने असर को प्रदान करेगा,जैसे वृश्चिक राशि शमशानी राशि है और राहु इस राशि मे शमशाम की राख के रूप मे माना जाता है यह जरूरी नही है कि वह शमशान केवल मनुष्यों के शमशान से ही सम्बन्धित हो वह बडी संख्या मे मरने वाले जीव जन्तुओं के स्थान से भी सम्बन्ध रख सकता है वह किसी प्रकार की वनस्पतियों के खत्म होने के स्थान से भी सम्बन्ध रख सकता है वह अपने अनुसार जलीय जीवो के समाप्त होने के स्थान स्थलीय जीवो के अथवा आसमानी जीवो के प्रति भी अपनी धारणा को लेकर चल सकता है। राहु वृश्चिक राशि के दूसरे भाव मे होने पर वह अपने कारणो को दसवे भाव मे जाने पर कर्क राशि के अन्दर जो भावना को पैदा करेगा वह धन के रूप मे कार्य करने के लिये शमशानी वस्तुओं को खरीदने बेचने का काम ही करेगा आदि बाते राहु के ग्रहो के साथ गोचर करने पर मिलती है और इन्ही बातो के अनुसार घटना और दुर्घटना का कारण जाना जाता है। क्रमश:............................................

Friday, February 1, 2013

गुरु मंगल की युति बनाम तारा शक्ति

माता तारा की शक्ति के लिये गुरु मंगल का होना जरूरी है राशि का असर भी इस शक्ति को विस्तृत करने का एक प्रमुख कारण माना जा सकता है। गुरु मंगल को जितने ग्रह अपने असर मे लेते है उसी प्रकार की शक्ति माता तारा से प्राप्त की जा सकती है।
माता तारा का रूप उस समय की स्थिति को दर्शाता है जब भगवान शिव ने समुद्र से निकले हलाहल को पिया था और उस हलाहल जहर की गर्मी से उन्हे मूर्छता आ गयी थी,उस समय आदि शक्ति माता तारा ने जो शमशान की शक्ति की रूप मे जानी जाती है ने अपने क्षीर को भगवान शिव को पुत्रवत गोद मे लेकर पिलाया था और उनकी हलाहल की जलन को दूर करने के लिये अपने अमृत स्वरूप ममत्व को प्रदान किया था,भगवान शिव को उस समय से एक अनौखी शांति जो भय और बन्धन से दूर थी मिली थी।
गुरु को जीव माना जाता है और मंगल को तपती हुयी बिना लौ की अग्नि। दोनो के आपसी सम्बन्ध से जीव के अन्दर एक तपिस जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है वह जीव को बारहवे भाव के कारणो के प्राप्त नही होने के कारण जलाती रहती है। कहा भी जाता है कि अन्त गति सो मति,जीव अपनी अन्त समय की गति को प्राप्त करने के लिये अपने जीवन भर अपने अन्दर की तपिस को साक्षात रूप मे प्रदर्शित करने के लिये चलता रहता है दुनिया समाज परिवार आदि से अपनी इस जलन की स्थिति को मिटाने के लिये अपने कार्यों चाहे वह मनसा हो वाचा हो या कर्मणा हो को सामने लाता रहता है,लेकिन गुरु मंगल की युति बारहवे भाव मे होने पर उसकी हालत वही होती है जो एक चिता की शमशान मे सुलगने के समय होती है जीव के मरने के बाद उसके शरीर मे पनपने वाले कीडों की गर्मी से होती है या फ़िर जमीन मे दफ़नाने के बाद मिट्टी की गर्मी से शरीर के तत्वो की समाप्ति और शरीर का शिवमय होना भी इस बात को प्रकट करता है।
जीव की गति का प्रादुर्भाव तभी मान्य होता है जब जीव के अन्दर खून की गर्मी होती है और जीव का खून जितना गर्म होता है उतना ही उसे शक्ति से पूर्ण माना जाता है,लेकिन किसी प्रकार की जैविक जलन भी जीव को अत्यन्त गर्म तब बना देती है जब उसके अन्दर जीव के प्रति किसी प्रकार का मानसिक प्रभाव प्रतिस्पर्धा या किसी प्रकार का शारीरिक बल अपना असर देकर अहम की शक्ति को पैदा कर रहा हो इस जलन को जीव अपनी गति के अनुसार कार्य को करता है।
माता तारा की शक्ति को प्राप्त करने के

Sunday, January 13, 2013

नवग्रह की प्रार्थना

नवग्रह की सत्ता को प्रणाम करता हूँ और उनसे हमेशा यही प्रार्थना करता हूँ कि वे प्राणीमात्र को हमेशा दया की द्रिष्टि से देखते रहे और उनके जीवन को उच्चता के मार्ग पर अग्रसर करते रहे।
सबसे पहले उस चन्द्रमा रूपी माता को प्रणाम करता हूँ जो अपने दिल मे दया की हिलोरे लेकर जीव जगत को उत्पन्न करती है और उसे अपने स्वभाव के अनुसार नाम देती है।
जगत नियन्ता जीव की आत्मा के  स्वामी सूर्य जो अपनी ऊष्मा और अपनी रोशनी से जगत को शक्ति प्रदान करते है तथा पिता और पुत्र के रूप मे अपनी गरिमा को कायम रखते है को शत शत प्रणाम करता हूँ।
खून मे शक्ति देकर जीवन को निरोगी बनाने मे और बल को देने के बाद कार्य क्षमता को बढाने के बाद जीवन की तरक्की के मार्ग को प्रसस्त करने वाले मंगल देवता को शत शत नमन करता हूँ जिन्होने अपने अपार बल से संसार को बल दिया है और प्राणी मात्र के अन्दर खून के रूप मे बहकर उसे जीवन दिया है।
बोली भाषा और आपसी मिलने जुलने के कारणो को प्रदान करने वाले भगवान बुद्ध को प्रणाम करता हूँ जो सूर्य यानी समाज बल नाम बल परिवार बल पिता और पुत्र के आपसी सहयोग को कायम रखने के लिये अपनी शक्ति से सम्पर्क मे रखते है पहिचान करवाने के लिये अपनी योग्यता को प्राणीमात्र मे देते है।
आने जाने वाली सांसो के कारक तथा जीव को जिन्दा अवस्था को देने वाले भगवान बहस्पति को कोटि नमन है जो प्रत्येक जीव को प्राण वायु देकर अपनी जीवन शक्ति को प्रदान करते है,इनके द्वारा आपसी रिस्तो को कायम रखना तथा एक दूसरे के प्रति धर्म और जीवन की उन्नति के प्रति सोच को देना दया और एकात्मक जोडने के लिये हमेशा अपनी शक्ति को प्रदान करते रहते है,देखने से दिखाई नही देते लेकिन हर जीवित प्राणी मे अपनी अवस्था को समझाने वाले है।
भौतिक अवस्था मे जो भी वस्तु दिखाई देती है वह जिन्दा है या मृत है जड है या चेतन है सभी के अन्दर सुन्दरता का आभास देने वाले प्राणी मात्र के अन्दर जीव के विकास के कारण भगवान शुक्र को शत शत नमन है जो अपने अनुसार जीव को भौतिकता के लोभ मे संसार के अन्दर बदलाव को प्रदान कर रहे है,भौतिकता मे अधिकता देने के कारण प्राणी मात्र के अन्दर लोभ की भावना को देकर एकोऽहम की धारणा उत्पन्न कर रहे है जो स्वार्थ के कारक है और अपनी स्वार्थ की भावना से पूर्ण होने पर अपना मार्ग प्राणी को अलग से चलने के लिये बाध्य करते है उन शुक्र देव को कोटि कोटि प्रणाम है।
सभी रंगो को अपने अन्दर समाकर काले रूप मे दिखाई देने वाले जीवमात्र को निवास के लिये घर पेट भरने के लिये कार्य तथा शरीर और भौतिक कारणो की सुरक्षा के लिये चाक चौबन्द श्री शनि देव को मेरा कोटि कोटि प्रणाम है जो भैरो के रूप मे सहायता भी करते है और लोगो को उतना ही काम करने को देते है जितने काम को करने के लिये उनका जन्म हुआ है।
जीत को हार मे बदलने वाले तथा अपमान को मान मे बदलने वाले अक्समात ही कायापलट करने वाले श्री राहु देव को मेरा बारम्बार का प्रणाम है।
दूसरो को भरा पूरा करवाने वाले अपने स्थान को खाली रखने वाले तथा दुनिया के सभी कारणो का केन्द्र बिन्दु बनकर आशंकाओ की परिधि को लगातार बढाकर जीव की गति को एक से अनेक बनाने के लिये जीव को जीव की सहायता के लिये बल प्रदान करने वाले भगवान केतु देव को बारम्बार प्रणाम है।