Wednesday, February 20, 2013

नाम से जुडे काम

कुंडली से जन्म लगन चन्द्र लगन सूर्य लगन घटी लगन दशमांश आदि से कार्य के बारे मे खोजबीन ज्योतिष से की जाती है। किसी कारणवश अगर जन्म समय मे कोई अन्तर होता है तो किसी प्रकार से भी कार्य के प्रति धारणा नही बन पाती है और परिणाम मे ज्योतिष को भी बदनाम होना पडता है और काम भी नही होता है। ज्योतिष मे नाम को प्रकृति रखती है जरूरी नही है कि नाम चन्द्र राशि से ही रखा जाये,कभी कभी घर वाले और कभी कभी बाहर वाले भी नाम रख देते है और नाम प्रचलित होकर चलने लगता है कई बार ऐसा भी देखा जाता है कि नाम को खुद के द्वारा भी रखा जाता है। नाम मे जितने अक्षर होते है उन अक्षर और मात्रा के अनुसार व्यक्ति के बारे मे सोचा जा सकता है इसके लिये किसी प्रकार की जन्म तारीख समय आदि की जरूरत नही पडती है। नाम का पहला अक्षर व्यक्ति की मानसिकता के बारे मे अपनी भावना को व्यक्त करता है और नाम का दूसरा तीसरा चौथा पांचवा अक्षर व्यक्ति के कार्य के बारे मे अपनी भावना को प्रस्तुत करते है तथा नाम का आखिरी अक्षर व्यक्ति के आखिरी समय की गति की भावना को प्रस्तुत करता है।
नाम का पहला अक्षर
नाम का पहला अक्षर व्यक्ति की भावना को प्रस्तुत करता है व्यक्ति का स्वभाव भी भावना से जुडा होता है। व्यक्ति की शिक्षा का प्रभाव भी नाम के पहले अक्षर से जुडा होता है व्यक्ति के बारे मे परिवार के सदस्यों की गिनती के बारे मे परिवार के प्रति व्यक्ति की सोच आदि भी नाम के पहले अक्षर से जुडे होते है।
नाम का दूसरा अक्षर
नाम का दूसरा अक्षर व्यक्ति के कार्य व्यक्ति की शिक्षा के प्रति सोची गयी धारणा तथा शिक्षा की पूर्णता और कार्य के प्रति सोच रखना कार्य को करना आदि नाम के दूसरे अक्षर से देखी जा सकती है। व्यक्ति का व्यवहार भी नाम के दूसरे अक्षर से समझा जा सकता है नाम के दूसरे अक्षर से व्यक्ति के पिता दादा आदि के कार्य और उनके सामाजिक रहन सहन को भी देखा जा सकता है। व्यक्ति जीवन मे सच्चाई से चलने वाला है या फ़रेब आदि से जीवन को बिताने वाला है यह भी नाम के दूसरे अक्षर से देखा जा सकता है।
नाम का तीसरा या अन्तिम अक्षर
जब व्यक्ति जीवन की जद्दोजहद से गुजरता है तो वह अपने लिये अन्तिम समय के लिये गति को प्राप्त करने के लिये अपने कार्य व्यवहार आदि को करता है। नाम का आखिरी अक्षर हमेशा व्यक्ति की अन्तिम गति को बताता है यही नही व्यक्ति के आगे की सन्तति को भी नाम का तीसरा अक्षर प्रस्तुत करता है। नाम का पहला और आखिरी अक्षर वंश वृक्ष के प्रति भी प्रस्तुत करता है अर्थात व्यक्ति अपने जीवन मे दूसरो के लिये पैदा हुआ है या अपने द्वारा पैदा की गयी संतति के लिये अपने कामो को करेगा। व्यक्ति का मरने के बाद नाम होगा या बदनाम होगा आदि भी नाम के पहले और आखिरी अक्षर से समझा जा सकता है इसी प्रकार से व्यक्ति के जीवन साथी के बारे मे भी नाम के पहले और दूसरे अक्षर को मिलाकर समझा जा सकता है।
नाम की मात्रायें
मात्रा शब्द ही तीन दैविक शक्तियों के प्रति अपनी धारणा को प्रस्तुत करता है। मात्रय से मात्रा शब्द की उत्पत्ति होती है। लक्ष्मी काली और सरस्वती की शक्तियों से पूर्ण ही मात्राओं की शक्ति को वैदिक काल से प्रस्तुत किया गया है। उदाहरण के लिये आ की मात्रा व्यक्ति के थल भाग की शक्ति के लिये अपनी स्थिति को प्रस्तुत करता है ई की मात्रा थल या जल के पाताली प्रभाव को प्रस्तुत करने वाला होता है,ओ की मात्रा आसमानी शक्ति की स्थिति को प्रस्तुत करता है। जल और थल भाग की सतही भाग की देवी लक्ष्मी को माना गया है थल या जल के पाताल के प्रभाव को समझने के लिये काली देवी की शक्ति को प्रस्तुत किया गया है आसमानी शक्ति के लिये सरस्वती की मान्यता को प्रस्तुत किया गया है। अलावा मात्राओ को इन्ही तीन मात्राओं आ ई और ओ के साथ मिश्रण से मिलाकर प्रस्तुत किया जाता है।
उदाहरण
संसार की किसी भी भाषा से बनाये गये नाम अपने अपने अनुसार व्यक्ति की जिन्दगी को बताने मे सहायक होते है। लेकिन धारणा को हिन्दी के अक्षरो और मात्राओं के अनुसार ही समझा जा सकता है। इसके साथ ही जलवायु स्थान देश काल की गति को भी नाम के अनुसार ही समझा जा सकता है। कुछ नामो के उदाहरण इस प्रकार से प्रस्तुत है :-
राम
राम शब्द दो अक्षरो से जुडा है,अक्षर र मानवीय शरीर से जुडा है तुला राशि का अक्षर है और शरीर मे स्त्री और पुरुष दोनो के अंगो की स्थिति को बताने के लिये विवाह और जीवन को साथ साथ चलाने वाले जीवन साथी के कारण ही जीवन को बढाने और घटाने के लिये इस अक्षर का प्रयोग किया जाता है आ की मात्रा लगने के कारण थल और जल की शक्ति को सतही रूप मे प्रकट करने के लिये माना जा सकता है। आखिरी अक्षर म सिंह राशि का है और राज्य विद्या सम्मान सन्तान बुद्ध परिवार के प्रति आपनी धारणा को रखने के लिये माना जा सकता है। राम शब्द की मिश्रित रूप पुरुष सिंह के रूप मे भी जाना जा सकता है। इसी बात को समझकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने राम और लक्षमण के लिये दोहा लिखा था - "पुरुष सिंह दोउ वीर",अर्थात शेर के समान अपनी शक्ति को रखने वाले दोनो पुरुष रूपी अक्षर रा और म है । जिन लोगो ने राम के जीवन को पढा है उन्हे पता है कि राजकुल मे ही राम का जन्म हुआ था शरीर शक्ति के कारणो मे उनकी शक्ति अपार थी बडे बडे काम उन्होने शरीर शक्ति को प्रयोग करने के बाद ही किये थे,तुला और मेष के मिश्रण से अक्षर रा का रूप योधा के रूप मे र अक्षर का रूप किसी भी काम के अन्दर बेलेन्स करने के लिये तथा अक्षर र के प्रभाव से तुला राशि का रूप लेकर सीता जी से विवाह और विवाह के बाद सीता हरण तथा रावण वध आदि बाते समझी जा सकती है।
रावण
रा अक्षर राम की तरह ही वीरता को प्रस्तुत करता है लेकिन अक्षर व भौतिकता और धन सम्पत्ति तथा वैभव के प्रति अपनी धारणा को व्यक्ति करता है,व अक्षर वृष राशि का है जो केवल धन सम्पत्ति खुद के द्वारा निर्माण किये गये कुटुम्ब परिवार की पहिचान खाने पीने के कारण बोली जाने वाली भाषा और चेहरे की पहिचान के लिये जानी जाती है उसी प्रकार से अक्षर ण वृश्चिक राशि का है जो पराशक्तियों जमीनी कारणो पंचमकारात्मक प्रयोग जासूसी चिकित्सा शरीर के बल का गुप्त रूप से प्रयोग करने वाली कला बोली जाने वाली भाषा मे तीखी भाषा का प्रयोग करना गुप्त रूप से मृत्यु सम्बन्धी कारण प्रस्तुत करना शमशानी शक्तियों का सहारा लेना धरती के दक्षिण पश्चिम दिशा मे निवास करना आदि बातो को माना जा सकता है। रावण के जीवन के प्रति रामायण आदि ग्रंथो मे केवल अपने परिवार आदि के लिये ही जीवन को गुजारना स्त्री सम्बन्धो को सामने लाकर अपनी मौत को बुलावा देना और गुप्त शक्तियों का बुद्धि के प्रभाव से राम के द्वारा समाप्त कर देना आदि बाते देखी जा सकती है। 
 

Tuesday, February 19, 2013

पिता पुत्र की विमुखता

दादा से पिता पिता से पुत्र और पुत्र से पौत्र की श्रेणी को वंश वृक्ष कहा जाता है। पिता से जब पुत्र रूप मे नयी शाखा की उत्पत्ति होती है तो पिता का ही रूप सामने आना माना जाता है। गुण दोष खून का प्रभाव पूर्व मे किये गये कर्मो का हिसाब पुत्र के रूप मे ही मिलता है जो गल्तियां जीवन मे की जाती है उनके दुष्परिणाम पुत्र के द्वारा ही प्रस्तुत किये जाते है और पुत्र के द्वारा जो गल्तियां की जाती है वह पौत्र के रूप मे पुत्र के सामने आती है। पिता जब अपने पिता की मर्यादा को रखने मे अपनी रुचि रखता है तो जाहिर है कि पुत्र भी अपने पिता की मर्यादा को कायम रखने के लिये अपनी सीमा को मर्यादा के अन्दर ही रखेगा और पिता जब अपने पिता की मर्यादा को भूल कर निरंकुश हो जायेगा तो पुत्र भी अपने पिता की मर्यादा को भूल कर निरंकुश हो जायेगा । इस निरंकुश प्रभाव के कारण ही पिता पुत्र की आपसी सम्बन्धो और पारिवारिक मर्यादा को भूलने का प्रभाव सामने आकर परिवारो का बिखराव होना शुरु हो जाता है और एक समय ऐसा भी आता है जब पिता के लिये पुत्र दुश्मन के रूप मे सामने आने लगता है और कभी कभी तो बहुत बडी अनहोनी तक पुत्र के आपसी सम्बन्धो के कारण होने लगती है।
कुंडली मे गुरु को सम्बन्धो का कारक भी कहा जाता है और परिवार के प्रति समाज के प्रति और अपने शरीर से सम्बन्धित रिस्तेदारो के प्रति अपनी रिस्ते वाली भावना को कायम रखने के लिये मानसिक रूप से तथा परिवार समाज आदि के लिये बनाये गये नियम कानून के अन्दर चलने की गति को प्रस्तुत करने का कारण बनता है। लेकिन यह तभी सही माना जाता है जब गुरु का स्थान कुंडली मे केन्द्र त्रिकोण आदि को प्रभावित करता हो और गुरु पर किसी भी खराब ग्रह राशि और भाव का असर नही हो रहा हो। गोचर के समय भी गुरु का प्रभाव रिस्तो पर जरूर पडता है लेकि गोचर के समाप्त होने के बाद रिस्तो के अन्दर फ़िर से मजबूती आने लगती है और रिस्ते उसी प्रकार से चलने लगते है जैसे पूर्व मे थे और अक्सर रिस्ते के खराब होने के बाद भी कई बार देखा जाता है कि रिस्तो मे और अधिक मजबूती तथा सामजस्य इसलिये और बनने लगता है क्यों कि पहले घटी घटनाओ के कारण पिता पुत्र मे एक प्रकार का डर भी पैदा हो जाता है कि पहले की गयी गल्ती के कारण रिस्ता टूटा था और वही गल्ती दुबारा नही हो जाये जो रिस्ते के अन्दर दरार पैदा हो जाये।
शुक्र को रिस्ता बरबाद करने के लिये माना जाता है और लालकिताब के अनुसार भी शुक्र कभी भी अपनी गल्ती को अपने ऊपर स्वीकार नही करता है वह अपनी गल्ती को बुध पर डालता है बुध उस गल्ती को सीधा चन्द्रमा पर डालता है लेकिन इस प्रकार की एक दूसरे की गल्ती को एक दूसरे पर डालने के कारण या तो गुरु आहत होता है या सूर्य आहत हो जाता है दोनो के आहत होने का असर सीधा सा चन्द्रमा पर पहले दिखाई देने लगता है यानी मन का बदलाव और मन के अन्दर के प्रकार की वह सीमा रेखा बनने लगना जो पहले से बनने वाले रिस्तो के अन्दर नफ़रत या इसी प्रकार की सोच का पैदा हो जाना।
शुक्र को स्त्री के रूप मे माना जाता है पिता पुत्र का खून तो एक दूसरे को आकर्षित करता है लेकिन शुक्र उस आकर्षण को दूर करने के लिये अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना शुरु कर देता है। जैसे गुरु जो समाज परिवार व्यक्ति की मर्यादा को कायम रखने के लिये अपने अनुसार कानूनी और मानसिक लगाव को प्रभावित करता है तो शुक्र उस प्रभाव को भौतिक कारणो से सामने करने के बाद अचानक बदलाव देने के लिये अपनी शक्ति को प्रसारित करने लगता है।
शुक्र को ही स्त्री रूप मे जीवन संगिनी के रूप मे  माना जाता है और शुक्र का पहला रूप बुध के रूप मे दूसरा रूप चन्द्रमा के रूप मे मिलता है। बुध का रूप स्त्री के पिता के घर मे और चन्द्रमा का रूप पुत्र के सानिध्य मे प्राप्त होता है लेकिन स्त्री का स्तर शनि की छाया पडने पर कुटिलता की तरफ़ राहु की छाया पडने पर दुश्चरित्रता की तरफ़ केतु की छाया पडने पर अपने को केवल सहायिका के रूप मे तथा मंगल की छाया पडने पर कर्कशा के रूप मे सूर्य की छाया पडने पर अहम की सीमा से बाहर नही आने के रूप मे मानी जाती है। अगर पिता की कुंडली में शुक्र पर शनि की छाया है तो जाहिर है कि माता का रूप कुटिलता की तरफ़ जायेगा,पुत्र की कुंडली में शुक्र पर शनि की छाया है तो पुत्र वधू के अन्दर भी कुटिलता की तरफ़ जाना निश्चित है। वही पर अगर बुध के ऊपर शनि की छाया है तो स्त्री के पिता के घर पर कुटिलता से जाने से कोई नही रोक सकता है,चन्द्रमा पर शनि की छाया है तो पुत्र के पैदा होने के बाद जब स्त्री का रूप माता के रूप मे होगा तो कुटिल बनने से नही रोका जा सकता है। कई बार देखा जाता है कि बुध जब राहु से ग्रसित होता है तो पिता के घर मे रहने पर पुत्री का दिमाग दुश्चरित्रता की तरफ़ जाता है लेकिन विवाह होने के बाद उसका रूप अचानक बदल जाता है इसी प्रकार से शुक्र पर राहु की छाया होने से पत्नी पर दुश्चरित्रता का असर देखने को मिलता है वही रूप जब चन्द्रमा के ऊपर होता है तो माता के प्रति भी इसी धारणा को कायम होने का रूप देखा जा सकता है। यह रूप आने पर जब प्रमाण मिलने लगते है तो इन ग्रहो का उपाय करने से मिलने वाले प्रभावो मे कमी भी आने लगती है और कभी कभी लम्बे समय तक उपाय करते रहने से जो प्रभाव मिलते है वह प्रकृति के अनुसार बदलने भी लगते है।
अक्सर प्रश्न यह पैदा होते है कि क्या स्त्री के प्रति मिलने वाली धारणा या पिता के साथ या पुत्र के साथ मिलने वाली इस प्रकार की धारणा पूर्व जन्म के बाद ही देखने को मिलती है या फ़िर किसी प्रकार के पूर्व मे किये गये कर्मो के अनुसार इस प्रकार की युति जीवन मे देखने को मिलती है ? ज्योतिष से इस प्रकार के प्रश्नो के उत्तर मिल जाते है। जैसे जातक की कुंडली मे शुक्र के साथ राहु विराजमान है तो यह जरूरी है कि जातक के दादा के साथ किसी न किसी प्रकार से दुश्चरित्र स्त्री का साथ रहा है या दादा ने शुक्र जो सम्पत्ति के रूप मे भी माना जाता है वह अवैधानिक रूप से प्राप्त करने की कोशिश की है या फ़िर दादा के द्वारा उन कारको को किया गया है जो मर्यादा के विपरीत माने जाते है। जब केतु का साथ शुक्र के साथ मिलता है तो जातक के नाना परिवार से इस बाद की पुष्टि देखने को मिलती है। शनि का साथ जब शुक्र के साथ होता है तो जातक के किये गये पूर्व के कर्मो से इस प्रकार का योग देखने को मिलता है यही नही जातक के रहने वाले स्थान तथा रहने वाले माहौल को भी शनि शुक्र की युति नीच प्रकृति का रूप देने के लिये अपने सहयोग को देती है। यही कारण शुक्र के साथ मंगल के रूप मे भी देखा जाता है कि जब भी जातक अपने जीवन साथी से मिलता है तो उसके खून के अन्दर शुक्र का प्रभाव आवेग के साथ जुडने लगता है और वही शुक्र उत्तेजित होकर या तो झल्लाहट का रूप प्रस्तुत करने लगता है या फ़िर माथा फ़ोडने वाली बात सामने आने लगती है। बुध के साथ होने से गाली गलौज या कटु बात कहने से चन्द्रमा एक साथ होने से हर प्रकार की सोच मे उत्तेजना के साथ प्रकट होना भी देखा जाता है।
पिता पुत्र की आपसी युति को तोडने के लिये शनि को भी जिम्मेदार माना जाता है इस कारण मे सूर्य शनि की युति को देखा जाता है यह युति गोचर से भी होती है और जीवन मे जन्म लेने के समय के ग्रहो मे भी देखी जाती है जब यह युति जन्म से ही होती है तो जातक के खुद के विचार बनने के बाद भी पिता पुत्र की आपसी सहयोगी नीति नही मिलती है अन्यथा यह भी देखा जाता है कि पिता का साया पुत्र से दूर होने के कारण भी बनने लगते है इस प्रकार के कारणो मे अक्सर या तो काम धन्धे की बात भी होती है और कभी कभी शुक्र के सामने आने से पुत्र की शादी के बाद आने वाली पुत्र वधू के व्यवहार से भी देखने को मिलती है। इस युति मे पिता के सामने पुत्र की हैसियत नही बन पाती है और वह अपने पिता के आपसी विचारो से भी सहमत नही हो पाता है। यह जरूरी नही है कि परिवार मे पुत्र और पिता की युति को केवल शनि राहु मन्गल सूर्य केतु ही दूर करने मे अपना असर प्रदान कर रहे हो,बल्कि यह भी देखा जाता है कि अगर कुंडली मे मंगल और शनि की युति है तो छोटे और बडे भाई की आपसी सहयोग की नीति मे भी एक प्रकार की कसाई वाली नीति पैदा होती है और इस नीति के कारण भी सूर्य आहत होता है चन्द्रमा पर असर या तो होता नही है या फ़िर शनि या बडे भाई के सामने माता कुछ कह नही पाती है और उसे कुछ कहना भी होता है तो छोटे पुत्र पर कोई न कोई लांछन लगाकर उसे नीचा दिखाने की कोशिश होती है इस काम मे राहु और शुक्र भी अपना अपना असर देते है।

Thursday, February 14, 2013

वर्षफ़ल निकालने का सरल तरीका

जैसे ही नई साल शुरु होती है लोग अपने अपने बारे मे पूरी साल के लिये जानने के लिये उत्सुक हो जाते है,विभिन्न तरीको से लोग अपने अपने लिये साल भर के लिये जानकारी इकट्टी करना शुरु कर देते है,कई लोग अपने लिये पूरे साल का प्लान बना लेते है कि हर महिने मे उनके लिये क्या क्या अच्छा होगा और क्या क्या बुरा होगा,अखबार बेवसाइट टीवी आदि सभी अपने अपने अनुसार लिखने लगते है कोई कुछ लिखता है और कोई कुछ लिखता है,लेकिन यह जरूरी नही है कि एक राशि का प्रभाव सभी पर अपना एक ही प्रभाव दे दे,मेरे ख्याल से सभी के लिये एक ही प्रकार से लिखना सही नही है,हर किसी की कुंडली अलग अलग प्रकार से अलग प्रभाव देती है,नौ ग्रहो बारह भावो और बारह राशियों के साथ सत्ताइस नक्षत्रो अठारह सौ नाडियों के लिये लोग इतनी आसानी से अपने भविष्य कथन को कहने लगते है जैसे उन्होने यह समझ लिया हो कि यह सब साधारण है ! सभी को पता है कि कम्पयूटर चलाने के लिये अभी तक 0-1 केवल दो अंको से दुनिया भर के कार्य किये जा रहे है तो नौ ग्रहो के लिये कितनी बाइट्स बन कर तैयार हो जायेंगी,जीरो और एक अंक की क्रिया पर आदमी को घंमंड हो गया है कि उसने बहुत बडी विद्या हाशिल कर ली है जबकि एक से नौ ग्रहों की कितनी बाइट्स बनेगी,उन बाइट्स को लोग सरल भाषा मे समझ कर जैसे सुना पढा वैसे कहना शुरु कर दिया। देश काल परिस्थिति मौसम जलवायु रहन सहन आदि कितने कारक और जुड जाते है जब ज्योतिष का फ़लकथन किया जाता है।
वर्षफ़ल निकालने के लिये जरूरी नही है कि एक साल का ही निकाला जाये महिने का भी निकाला जा सकता है दिन का भी निकाला जा सकता है एक सप्ताह का भी निकाला जा सकता है एक घंटे और एक मिनट का भी निकाला जा सकता है। इसका बहुत ही सरल उपाय है जिसे कोई भी प्रयोग मे ला सकता है,और कभी भी प्रयोग मे ला सकता है शर्त है कि उसे अपनी जन्म लगन याद हो,कुंडली मे ग्रहो की स्थिति याद हो।
उदाहरण के लिये प्रस्तुत कुंडली तुला लगन की है और इसका आज से साल भर का वर्षफ़ल निकालना है। इसके लिये इस कुंडली की जन्म तारीख को महिना साल को देखना है। इसकी तारीख 29 है महिना 4 था यानी अप्रैल का है,साल 1957 की है और जन्म का समय शाम के 6 बजकर 30 मिनट का है। आज की तारीख 13 है महिना 2 है यानी फ़रवरी है,और साल 2013 है,समय सुबह के 7 बजकर 9 मिनट हुये है। इस कुंडली को आज की तारीख और समय तक घुमाकर लाना है,इसके लिये लगन से साल को गिनना शुरु करते है,कुंडली को दाहिने से बायें गिना जाता है,लगन को जन्म की साल मानकर गिनने पर जैसे तुला लगन के लिये 1957 दूसरे भाव वृश्चिक राशि जहां नम्बर 8 लिखा है 1958 जहां नम्बर 9लिखा है 1959 जहां नम्बर 10 लिखा है 1960 इसी क्रम से गिनते चले जायेंगे,इस कुंडली के अनुसार आने वाली अप्रैल के महिने से वर्षफ़ल के लिये नम्बर 3 पर पहुंचेंगे जबकि आज के लिये नम्बर 2 तक साल 2012तक ही गिनकर आगे महिने की गिनती शुरु कर देंगे,जैसे वृष राशि तक 2012 की गणना की जायेगी और 2013 अप्रैल महिने से आगे की साल का वर्षफ़ल निकाला जायेगा। लेकिन आज के वर्षफ़ल के लिये 2012 के अप्रैल महिने तक ही गिनकर आगे के लिये दसवे भाव की कर्क राशि को लगन मानकर गिनती की जा्येगी।
इसी प्रकार से किसी भी दिन का फ़लादेश निकालना आसान है और बिना किसी अधिक माथापच्ची के फ़लादेश किया जा सकता है। गोचर की ग्रहो का प्रभाव भी इसी प्रकार से निकाला जाता है। जातक जब प्रश्न पूंछने आता है तो जातक की कुंडली को देखते है,पिछले बीते हुये समय का फ़लादेश करने के लिये जातक के पिछले साल का फ़लादेश दिया जाता है और वर्तमान मे चलने वाले समय का वर्तमान मे गोचर के ग्रह और जन्म के ग्रहो के साथ आपसी सम्बन्ध देखा जाता है तथा भविष्य के लिये आज के ग्रहो का अगली गोचर की स्थिति को देखकर दिया जाता है।
इसमे मन का कारक चन्द्रमा जो इच्छा को समझने के लिये देखा जायेगा चौथा वर्तमान और भावुकता से सोची जाने वाली बात को प्रसारित करेगा आठवा भाव गुप्त सोच को प्रकट करेगा और बारहवे भाव की सोच हवाई किले बनाने जैसी होती है। लगन का चन्द्रमा शरीर और नाम के प्रति धन भाव का धन के प्रति और गुप्त रूप से किये जाने वाले कामो के प्रति तीसरे भाव का चन्दमा धर्म और न्याय के प्रति तथा खुद की यात्रा के प्रति चौथे भाव का चन्द्रमा भावनाओ को ध्यान मे रखकर सोची जाने वाली बातो के लिये और इसी प्रकार से अन्य भावो की बाते देखी जा सकती है।

Monday, February 11, 2013

कफ़न

जन्म के तुरत बाद ही मौत की कल्पना शुरु हो जाती है,जहां जन्म है वहां मौत भी है यह उसी प्रकार से है जैसे दिन के बाद रात सुख के बाद दुख आदि। जन्म के समय को ज्योतिष में लगन के रूप मे प्रकट किया जाता है तो जीवन का आखिरी भाग मौत के लिये आठवे भाव के रूप मे प्रकट किया जाता है। लगनेश को शरीर का रूप और अष्टम के मालिक को मौत होने के बाद का रूप माना जाता है,जन्म के बाद शरीर बढने लगता है और पुष्टता मे जाने लगता है जबकि मौत के बाद शरीर की क्षति होने लगती है और वह मिट्टी के रूप मे परिवर्तित होने लगता है। यह क्रिया प्रकृति के अनुसार बनाने और बिगाडने के लिये भी मानी जाती है,जन्म देने के लिये प्रकृति ही जिम्मेदार होती है और मौत देने के लिये भी प्रकृति को ही जिम्मेदार माना जाता है। कोई मौत स्वाभाविक होती है और कोई मौत बहाना लेकर होती है,जैसे दुर्घटना आदि मे शरीर का विनाश।
कफ़न शब्द उर्दू शब्द है। कफ़न मनुष्य की मौत के बाद दिया जाने वाला आखिरी वस्त्र है जो उसे श्रद्धा से भी दिया जाता है और नफ़रत से भी दिया जाता है,जब व्यक्ति की असमान्य परिस्थिति मे मौत होती है,जैसे किसी अन्जान स्थान मे जंगल पहाड समुद्र या किसी हिंसक जीव के द्वारा उसके शरीर का विनाश कर दिया जाता है तो उसे संसार के द्वारा दिया जाने वाला आखिरी कपडा कफ़न के रूप मे प्राप्त नही हो पाता है। इस बात को लालकिताब मे वर्णित किया गया है कि अगर कुंडली मे गुरु ग्यारहवे भाव मे है तो उसे मौत के बाद कफ़न तक नशीब नही होता है। कुंडली मे लगन जन्म के रूप मे है जब व्यक्ति जन्म के बाद पहली सांस इस संसार मे लेता है और सातवां भाव मौत के समय का जब व्यक्ति आखिरी सांस को छोडता है,जन्म के बाद दूसरे भाव में लोग जातक जीवित देखते है तो अष्टम भाव मे लोग जातक को मृत अवस्था मे देखते है तीसरे भाव से जातक की पहिचान भौतिक रूप मे की जाती है तो नवे भाव से जातक की पहिचान उसकी आत्मा के रूप मे की जाती है चौथे भाव से जातक के जीवित रहने के स्थान को देखा जाता है जहां जातक सुख से निवास करता है तो मृत्यु के बाद दसवे भाव की स्थिति को देखा जाता है कि जातक की आत्मा का निवास किस स्थान मे है,पंचम भाव से जातक की भौतिक बुद्धि को समझा जाता है तो ग्यारहवे भाव से जातक की आध्यात्मिक बुद्धि की परख की जाती है छठे भाव से जातक इस संसार को सेवायें देता है तो बारहवे भाव से जातक संसार से अपने लिये सेवाये प्राप्त करता है आदि बातें कुंडली के द्वारा विवेचित की जाती है। इस बात से समझा जाता है कि व्यक्ति जिस भाव से सुख प्राप्त कर रहा है उसके सप्तम से उसे दुख प्राप्त होना होता है। यहां तक कि लगन अगर पुरुष रूप मे होती है तो सप्तम अपने आप ही स्त्री रूप मे परिवर्तित हो जाता है।
कफ़न का रूप जातक की मौत के बाद मिलने वाली संसार की श्रद्धा के रूप मे होता है,उसे मौत के बाद किस नजरिये से देखा जायेगा इसके लिये जातक के ग्यारहवे भाव को समझना जरूरी होता है। ग्यारहवा भाव जातक के द्वारा किये गये कार्य जो संसार के लिये हित के लिये है या अहित के लिये उस रूप मे पहिचाने जाते है। अगर जातक के द्वारा अच्छे कर्म किये गये है तो ग्यारहवा भाव अच्छे ग्रहो से पूर्ण होगा और बुरे कार्य किये गये है तो ग्यारहवा भाव बुरे ग्रहों से पूर्ण होगा। ग्यारहवा भाव जीवन के भौतिक सुखो मे भी साथ देने वाला है चाहे वह जीवित रहने के वक्त मित्रो के रूप मे हो बडे भाई बहिन के रूप मे हो सन्तान के जीवन साथी के रूप मे हो अथवा कष्ट सह कर कमाये जाने वाले लगातार लाभ के रूप मे हो यह भाव ही जीवन के प्रति अपनी उन संवेदनाओ को प्रस्तुत करता है जो जीवन के रहने तक और जीवन के समाप्त होने के बाद तक अपनी स्थिति को वर्णित करता है।
उपरोक्त कुंडली मे गुरु ग्यारहवे भाव मे वक्री है नौ दस ग्यारह बारह भाव एक उस चौकडी को प्रस्तुत करते है जो मौत के बाद की स्थिति को सामने करती है। जिस प्रकार से पहला दूसरा तीसरा और चौथा भाव जन्म लेकर माता की गोद मे खेलने तक अपनी स्थिति को प्रस्तुत करता है उसी प्रकार से नौ दस ग्यारह और बारह मौत के बाद से लेकर परलोक के निवास तक को समझाने मे मदद करता है। लगन से चौथे भाव तक व्यक्ति को भौतिक शरीर को पालने के लिये जल रूपी कारक को ग्रहण करने की शक्ति मिलती है तो नौ से लेकर बारह तक जातक को वायु रूपी कारक को ग्रहण करने के लिये भौतिक कारको को त्यागने के बाद की स्थिति मिलती है। गुरु के वक्री होने के कारण गुरु जो इस कुंडली मे ग्यारहवे भाव मे है लालकिताब के अनुसार कहा गया है कि गुरु जब ग्यारहवे भाव मे हो तो जातक को कफ़न तक नशीब नही होता है लेकिन उस गुरु की कल्पना आदि काल मे की जाती थी जब जातक को अकेले रहने की बात से माना जा सकता हो,गुरु जो आध्यात्मिकता के प्रति अपनी भावना को प्रस्तुत करता था,गुरु जो रिस्तो के प्रति अपनी शक्ति को प्रस्तुत करता था गुरु जो वायु रूप मे शरीर के जिन्दा रहने तक सांस के रूप मे अपनी उपस्थिति को देने का कारक माना जाता था। इस कुंडली मे गुरु का वक्री रूप एक अजीब कारण को प्रस्तुत करता है जैसे यह कुंडली पुरष रूप मे है तो जातक के ग्यारहवे भाव मे यह गुरु वक्री होकर जातक की बडी बहिन के रूप मे है,साथ ही यह गुरु पिता के समाज की जगह पर माता के समाज के द्वारा पालन पोषण और शरीर की उन्नति के प्रति अपनी उपस्थिति को प्रकट करता है,इसी प्रकार से यह गुरु जो दिमागी शक्ति का कारक है वह एक साधारण व्यक्ति से अधिक याददास्त को रखने को कारक भी बन गया है,यह कारण केवल इसलिये बना है क्योंकि जातक जो भी बात दिमागी रूप से ग्रहण करने की कोशिश करता है वह उल्टे रूप मे ही प्रयोग मे लाता है जब मुख्य रूप पहले देखा जायेगा तो सामान्य रूप अपने आप ही समझ मे आजायेगा।
पंचम भाव माता के आंचल से जोडा जाता है जब माता अपनी संतान को दूध पिलाती है तो अपने आंचल से ढक लेती है उसी प्रकार से जब मृत्यु हो जाती है तो शरीर को ताबूत काठी टिकटी ठठरी आदि मे रखा जाता है और उस शरीर को रखने से पहले शरीर को एक वस्त्र के द्वारा ढका जाता है जिसे कफ़न कहा जाता है। यह कफ़न उसी प्रकार से है जैसे जन्म के बाद माता के आंचल का रूप होता है। गुरु चूंकि वायु का कारक है इसलिये ग्यारहवे गुरु को मरने के बाद वायु रूप मे मिलने वाले कफ़न के रूप मे माना जाता है यानी जो कफ़न किसी भौतिक वस्तु से नही बना हो। खुले शरीर का धरती मे निर्गम ही ग्यारहवे गुरु की श्रेणी मे रखा जाता है। लेकिन मेरी अपनी सोच के अनुसार गुरु अगर मार्गी है तो जातक को मौत के बाद खुले शरीर से ही धरती मे निर्गम से माना जाता है और वक्री होने पर उस शरीर को धरती तक निर्गम के लिये वह लोग अपनी सहायता को देते है जो जातक के समाज परिवार धर्म और सीमा से बाहर के लोग होते है।
कफ़न को चन्द्रमा से पानी से घिरे क्षेत्र मे प्रवाहित होने के लिये माना जाता है,सूर्य से लकडी आदि से ढकर शरीर को धरती के साथ निर्गम करने से माना जाता है,मंगल से दुर्घटना या गहरे स्थान मे मिट्टी से दबकर निर्गम को माना जाता है बुध से फ़ूलो और कोमल वस्तुओं से शरीर को ढकर कर धरती तक निर्गम के लिये माना जाता है गुरु से शरीर को खुले रूप मे वायु के द्वारा धरती तक निर्गम के लिये माना जाता है शुक्र से सजावटी स्थान मे रखकर शरीर को श्रंगार आदि करने के बाद धरती मे निर्गम किया जाता है शनि से पहाडो जमीन के अन्दर गहरे स्थानो भीगे और नम स्थानो में शरीर को दफ़ना कर निर्गम करने से माना जाता है,राहु से शरीर को टुकडे टुकडे करने के बाद धरती मे निर्गम करने से माना जाता है केतु से समाधि देकर अथवा लम्बे ताबूत आदि मे रखने के बाद निर्गम करने के कारण को माना जाता है। 

Sunday, February 10, 2013

सूर्य बुध का साथ नेपच्यून के साथ छठे भाव में

सूर्य आसमान का राजा है बुध सूर्य का सहयोगी है और अक्सर सूर्य के सानिध्य मे आकर बुध आदिय योग का निर्माण करता है। रोजाना के काम करने कर्जा करने दुश्मनी पालने बीमार रहने और लोगो की सेवा के बाद जीविकोपार्जन करने का कारण आसमान के राजा को मिल जाये तो जीवन मे दस दोषों का निर्माण अपने आप होने लगता है,साथ मे बुध हो तो सूर्य के सानिध्य मे जो राजकुमार घमंड और अहम के प्रति अपनी धारणा को रखता है वह सूर्य यानी पिता राज्य और उपरोक्त कारको के कारण धीमे रूप मे बोलकर विनम्रता को धारण करने के बाद बोलने की क्षमता को रखने के लिये मजबूर हो जाता है। नेपच्यून को आत्मीय रूप दिया जाता है एक ऐसे सन्यासी की उपाधि दी जाती है जो लोगो के लिये हित को करने वाला होता है लेकिन बदले मे अपने लिये कुछ भी प्राप्त करने वाला नही होता है वह केवल प्राप्त करना चाहता है तो लोगो के द्वारा मिलने वाली सहानुभूति और लोगो के द्वारा मिलने वाला आत्मीय प्यार को प्राप्त करने के लिये काफ़ी माना जाता है। नेपच्यून की गति जो चौथे आठवे और बारहवे भाव से हमेशा उन कारको को प्राप्त करने के लिये मानी जाती है जो कारक सह्रदय के रूप मे माने जाते है लेकिन वही सन्यासी किसी न किसी प्रकार से राजकीय तथा धन आदि की क्षमता को सेवा के भाव से देखना शुरु कर दे तो यही माना जा सकता है कि एक सन्यासी को भी लोगो के लिये पेट पालने के लिये धन की आवश्यकता होने लगी है और वह लोगो के लिये किये जाने वाले कल्याण के लिये अपनी सह्रदयता को भुनाने के लिये राजकीय सहायता को प्राप्त करने का प्रयास करने लगा है।
छठे सूर्य के बारे मे कहा जाता है कि जातक के पिता को अपनी गरीबी के समय को ध्यान रखकर जातक को पाला पोषा जाता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि जातक के पिता का प्राथमिक जीवन उसके चाचा या मामा अथवा मौसी के घर पर बीता है इसके अलावा जातक का लालन पालन अभाव मे हुआ है और उस अभाव से जातक को अपनी पहिचान बनाने के लिये अपने ही समाज मे परिचय को देना होता है इसके अलावा भी यह माना जाता है कि जातक को बचपन मे कुपोषण जैसे रोग पैदा हो गये थे जो जातक को जवानी से लेकर बुढापे की अवस्था मे हड्डियों की बीमारियों को पैदा करने जोडों का दर्द देने के लिये आंखो की परेशानी को देने के लिये भी माना जाता है इसके अलावा यह भी माना जाता है कि जातक का जो जीवन साथी है उसके लिये आंखो के रोग होना और सिर का दर्द हमेशा बना रहना भी माना जाता है सूर्य अगर किसी प्रकार से गुरु की द्रिष्टि मे है तो यह भी माना जाता है कि जातक का जीवन साथी अपने परिवार के किसी ऊंची पहुंच वाले व्यक्ति की सहायता से सरकारी अथवा बाहरी सहायता को प्राप्त करने मे समर्थ हुआ और उम्र की तीसरी साल से अपने को आगे से आगे ले जाने के लिये अपनी योग्यता को प्रदर्शित करने लगा है। छठा भाव उम्र की दूसरी और तीसरी सीढी के बीच का हिस्सा है,जीवन का पहला अंश चौथा भाव जीवन का दूसरा अंश सातवा भाव तीसरा अंश दसवा भाव और चौथा तथा अन्तिम अंश पहले भाव को माना जाता है।
नेपच्यून को सूर्य के साथ होने से एक ऐसी आत्मा को भी माना जाता है जो अपने जीवन के प्रभाव को अपनी गरीबी और अपने प्राथमिक परिवार को पालने की जुगत मे भूल जाता है साथ ही जब बुध का प्रभाव सामने आजाता है तो औकात होने के बाद भी अपने जीवन की गति को प्रदर्शित करने मे असमर्थ होता है।

Saturday, February 9, 2013

कुंडली से कैसे पता करे कि बच्चा जिद्दी तो नही है ?

जिद के कई शाब्दिक रूप है। इसे हठ करना भी कहते है किसी बात पर मचलना भी कहते है अपनी मानसिक रूप से सोची गयी क्रिया को फ़लित कर उसे प्राप्त करने की गति को भी कहते है। बच्चो के अलावा बडों की भी जिद देखी गयी है जो वे अपने अनुसार अपने ही भाव मे रहकर उसे पूरा करने की कोशिश करने के लिये अपने जीवन को भी दाव पर लगा देते है। कुंडली का चौथा भाव मानसिक गति का होता है और दूसरा भाव उस गति को लाभान्वित करने के लिये देखा जाता है। मानसिक गति को सोचने के बाद की प्राप्त करने की क्रिया को पंचम से देखा जाता है यानी जो सोचा जाये उसे प्राप्त कर लिया जाये। मानसिक गति को प्राप्त करने के लिये जो भी क्रिया करनी पडती है वह कुंडली के लगन भाव से देखा जाता है या चन्द्रमा के स्थापित स्थान से दसवे भाव के अनुसार समझा जाता है चन्द्रमा पर पडने वाले प्रभाव के साथ साथ चौथे भाव के स्वामी की गति को भी देखा जाता है और चौथे भाव का मालिक अगर चन्द्रमा का शत्रु है या चन्द्रमा से किसी प्रकार से गोचर से शत्रुता रख रहा है या त्रिक भाव से अपनी क्रिया को प्रदर्शित कर रहा है तो वह क्रिया भी प्रयास करने या प्रयास के दौरान अपनी प्रयोग की जाने वाली शक्ति को समझने के लिये मानी जा सकती है।
बुद्धि और सोच को एकात्मक करने की क्रिया मे अगर बल की कमी है,बल बुद्धि और सोच मे किसी प्रकार का भ्रम है,बुद्धि बल और सोच मे कोई न कोई नकारात्मक प्रभाव है तो क्रिया पूर्ण नही हो पायेगी। जब कोई भी क्रिया पूरी नही हो पाती है तो बुद्धि पर बल पर और सोच पर इन तीनो के प्रभाव मे एक प्रकार से जल्दी से प्राप्त करने की कोशिश शुरु हो जायेगी और जब अक्समात उस शक्ति को प्राप्त करने की क्रिया होगी तो यह जरूरी है कि उसके लिये पूर्ण रूप से बुद्धि बल शरीर बल और सोचने की शक्ति के बल मे से किसी पर भी या तीनो पर ही केन्द्र बन जायेगा और उस केन्द्र से अगर किसी प्रकार की बाहरी अलावा कारण को उपस्थिति किया जायेगा तो मानसिक क्रिया एक प्रकार से उद्वेग मे चली जायेगी परिणाम में वाणी व्यवहार और कार्य के अन्दर एक झल्लाहट का प्रभाव सामने आने लगेगा। यही झल्लाहट का भाव जिद के रूप मे सामने आने लगेगा।
कुंडली मे बुद्धि का कारक बुध है बल का कारक मंगल है और सोच का कारक चन्द्रमा है। बुद्धि के लिये पंचम भाव को सोच के लिये चौथे भाव को और शरीर के बल के लिये पहले भाव को देखना होता है इनके स्वामी और स्वामी की स्थिति के अनुसार ही परखना होता है कि बुद्धि बल शरीर बल और सोचने के बल के अन्दर कितनी दूरी है और कितने समय के बाद इनकी आपसी युति मे समावेश लाया जा सकता है और समावेश लाने के समय मे राहु का कनफ़्यूजन और केतु का खालीपन गुरु का सभी बलो मे भाव और राशि के अनुसार दिया जाने वाला बुद्धि का का प्रभाव सूर्य के द्वारा खुद के द्वारा ही कार्य को पूर्ण करने का अहम शुक्र के द्वारा दूसरो को दिखाने के लिये प्रयोग किये जाने वाले सृजन वाले कारण शनि के द्वारा उस कारक के प्रति किये जाने वाले मेहनत और साधनो के अभाव मे भी कार्य का जारी रखना आदि बाते देखने के बाद ही तीनो प्रकार के कारको को समझा जा सकता है।
जिद करना अपनी बात को साम दाम दण्ड भेद की नीति से पूर्ण करना होता है। साम शरीर की क्रिया के द्वारा दाम धन और भौतिक कारको के अलावा सेवा आदि की नीति से पूर्ण करना दण्ड अपने सहयोगी की सहायता से बोलचाल और लोभ आदि के द्वारा भेद की नीति मन मे भेद पैदा करने से जोखिम का भय दिखा कर या सन्तुष्टि का मार्ग बताने के बाद अपनी जिद को पूरा करने के लिये माना जाता है। यह चारो प्रकार ही चार पुरुषार्थ के प्रति अपनी भावना को रखते है। यही कुंडली के चारो वर्ग जो लगन पंचम और नवम से धर्म दूसरे छठे और दसवे से अर्थ तीसरे सप्तम और ग्यारहवे से काम चौथे आठवे और बारहवे भाव से मोक्ष के प्रति समझे जा सकते है।
किसी भी अन्य जानकारी के लिये astrobhadauria@gmail.com से सम्पर्क करे.

Sunday, February 3, 2013

राहु का गोचर बनाम रग रग फ़डकती जिन्दगी !

अक्सर लोगो का बहम होता है कि व्यक्ति पर भूत प्रेत पिशाच का साया है और वह उनके प्रभाव मे आकर अपनी जिन्दगी को या तो तबाह कर लेता है। सीधा सा अर्थ है कि भूत कोई अन्जानी आत्मा नही है वह केवल अपने द्वारा किये गये प्रारब्ध यानी पूर्व के कर्मो का फ़ल है,पिशाच कोई खतरनाक आत्मा या द्रश्य रूप मे नरभक्षक नही है वह केवल अपने अन्दर की वासनाओं का कुत्सित रूप है। प्रेत का मतलब कोई खतरनाक यौनि नही है बल्कि स्थान विशेष पर किये गये कृत्यों का सूक्ष्म रूप है जो बडे आकार मे केवल सम्बन्धित व्यक्ति को ही द्रश्य होता है।
इन सब कारणो को प्रदर्शित करवाने के लिये राहु को जिम्मेदार माना जाता है यह कुंडली मे जिस भाव मे जिस ग्रह के साथ गोचर करता है उसी ग्रह और भाव तथा राशि के अनुसार अपनी शक्ति का एक नशा पैदा करता जाता है और जीवन मे या तो अचानक बदलाव आना शुरु हो जाता है। एक अच्छा आदमी बुरा बन जाता है या एक बुरा आदमी अच्छा बन जाता है आदि बाते राहु से समझी जा सकती है।
मेरी हमेशा भावना रही है कि जो कारण भौतिकता मे सामने आते है और जिन्हे हम वास्तव मे देखते है समझते है महशूश करते है उनके प्रति ही मै आपको बताऊँ कपोल कल्पित या सुनी सुनाई बात पर मुझे तब तक विश्वास नही होता है,जब तक प्रत्यक्ष रूप मे उसे प्रमाणित नही कर के देख लूँ। इस प्रमाणिकता के लिये कई बार जीवन को भी बडे जोखिम मे डाल चुका हूँ और राहु के प्रभाव को ग्रह के साथ गोचर के समय मिलने वाले प्रभाव को साक्षात रूप से समझकर ही लिखने और बताने का प्रयास करने का मेरा उद्देश्य रहा है। साथ ही राहु के प्रभाव को कम करने के लिये और उसके रूप को बदलने के लिये जितनी भी भावना रही है उनके अनुसार चाहे वह बदलाव चलने वाले प्रभाव को बाईपास करने से सम्बन्धित हो या बदलाव को अलग करने के लिये किये जाने वाले तांत्रिक कारणो से जुडे हो वह सभी अपने अपने स्थान पर कार्य जरूर करते है राहु के बुरे प्रभाव को समाप्त करने का सबसे सस्ता और उत्तम उपाय जो सामने आया वह केवल राहु के तर्पण से ही सार्थक होता हुआ मैने देखा भी है अंजवाया भी है और खुद के जीवन के प्रति राहु तर्पण का प्रभाव साक्षात रूप से देखा भी है।
राहु कैसे अपने प्रभाव को प्रकट करता है ?
राहु एक छाया ग्रह है वह जब किसी भी भाव मे अपना असर प्रदान करता है तो भाव के अनुसार उल्टी गति राहु के प्रभाव से भाव मे मिलनी शुरु हो जाती है इसके साथ ही राहु की गति उल्टी होती है वह अन्य ग्रहो के अनुसार सीधा नही चलता है उल्टे चलकर ही अपने प्रभाव को प्रदर्शित करता है,साथ ही जो भाव जीवन मे सहायक होता है उसके लिये वह अपने प्रभाव को देने के लिये सहायता वाले भाव के प्रति अपनी धारणा को पूर्व से ही बदलना शुरु कर देता है जैसे राहु को कोई बीमारी देनी है तो वह सबसे सहायता देने वाले डाक्टर या दवाई से दूरी पैदा कर देता है अगर समय पर डाक्टर की सहायता मिलनी है तो किसी न किसी बात पर डाक्टर के प्रति दिमाग मे क्षोभ पैदा कर देगा और उस डाक्टर से दूरी बना देगा,और जैसे ही बीमारी पैदा होगी उस डाक्टर की सहायता नही मिल पायेगी या जो दवाई काम आनी है वह पास मे नही होगी या उस दवाई को खोजने पर भी वह नही मिलेगी,अगर किसी प्रकार से मिल भी गयी तो वह दवाई पहले से ली गयी अन्य दवाइयों के असर मे आकर अपना वास्तविक प्रभाव नही दे पायेगी। राहु का मुख्य काम होता है वह घटना के पूर्व मे लगभग छत्तिस महिने पहले से ही अपने प्रभाव को देना शुरु कर देगा,जैसे बच्चे को पैदा होने के बाद किसी बडी बीमारी को देना है तो वह पहले माता पिता के अन्दर नौ महिने पहले से ही हाव भाव रहन सहन खानपान आदि मे बदलाव लाना शुरु करेगा उसके बाद के नौ महिने मे वह बीमारी वाले कारणो को माता पिता के अन्दर भरेगा उसके बाद वह उस बीमारी को बनाने वाले कारणो को मजबूत बनाने के लिये अपने प्रभाव को बच्चा पैदा करने वाले तत्वो के अन्दर स्थापित करेगा और जब आखिर के नौ महिने मे बच्चे का गर्भ मे आकर पैदा होने तक का समय होगा तो बच्चे के अन्दर वही सब बीमारी वाले तत्व समावेशित हो जायेंगे और बच्चा पैदा होने के बाद उसी बीमारी से जूझने लगेगा। जैसे बच्चे के पैदा होने के बाद अगर टिटनिस की बीमारी होनी है तो वह बीमारी बच्चे के अन्दर माता पिता के द्वारा उनके खून से मिलने वाली टिट्निस विरोधी कारको को शरीर मे नही आने देगा और खून के अन्दर कोई न कोई इन्फ़ेक्सन देकर अगर माता के द्वारा गर्भ समय मे टिटनिश का टीका भी लगवाया गया है या कोई दवाई ली गयी है तो उन तत्वो को वह शरीर से बाहर कर देगा,बाहर करने के लिये माता को कोई अजीब सी परेशानी होगी और वह उस परेशानी को दूर करने के लिये अन्य दवाइओं का प्रयोग करना शुरु कर देगी या किसी दवाई के गलत प्रभाव से बचने के लिये समयानुसार कोई डाक्टर उसे एविल आदि को दे देगा और वह तत्व समाप्त हो जायेंगे। इसके साथ ही बच्चे के पैदा होने के बाद नाडा छेदन के लिये कितनी ही जुगत से रखे गये चाकू या सीजेरियन हथियार मे टिटनिश के जीवाणु विराजमान हो जायेंगे,अथवा कोई नाडा छेदन करने वाला व्यक्ति अपने अन्दर बाहर से आने के बाद किसी प्रकार से उन जीवाणुओं के संयोग मे आजायेगा आदि कारण देखे जा सकते है। इसी प्रकार से जब राहु अन्य प्रकार के कारण पैदा करेगा तो वह अपने अनुसार उसी प्रकार की भावना को व्यक्ति के खून के अन्दर अपने इन्फ़ेक्सन को भर देगा,अथवा भावनाये जो व्यक्ति के लिये दुखदायी या सुखदायी होती है उन्ही भावनाओ के अनुसार लोगो से वह अपना सम्पर्क बनाना शुरु कर देगा और वह भावनाये उस व्यक्ति को अगर अच्छी है तो उन्नति देगा और बुरी है तो वह भावनाये व्यक्ति को समाप्त करने के लिये कष्ट देने के लिये अथवा आहत करने के लिये अपने अनुसार प्रभाव देने लगेंगी। कहा जाता है कि राहु अचानक अपना प्रभाव देता है लेकिन उस अचानक बने प्रभाव मे भी राहु की गति के अनुसार ही सीधे और उल्टे कारको का असर सामने आता है। अगर व्यक्ति का एक्सीडेंट होना है तो कारक पहले से ही बनने शुरु हो जायेंगे,व्यक्ति के लिये राहु अपने प्रभाव से किसी ऐसे जरूरी काम को पैदा कर देगा कि वह व्यक्ति उसी आहत करने वाले स्थान पर स्वयं जाकर उपस्थिति हो जायेगा और कारक आकर उसके लिये दुर्घटना का कारण बना देगा। अगर जातक को केवल कष्ट ही देना है तो कारक शरीर या सम्बन्धित कारण को आहत करेगा फ़िर व्यक्ति के भाग्यानुसार सहायता करने वाले कारक उसके पास आयेंगे उसे सम्बन्धित सहायता को प्रदान करेंगे और व्यक्ति राहु के समय के अनुसार कष्ट भोगकर अपने किये का फ़ल प्राप्त करने के बाद जीवन को बिताने लगेगा। राहु की गति प्रदान करने का समय नाडी ज्योतिष से अठारह सेकेण्ड का बताया गया है और वह अपनी गति से अठारह सेकेण्ड मे व्यक्ति को जीवन या मृत्यु वाले कारण को पैदा कर सकता है। जिस समय राहु का कारण पैदा होता है व्यक्ति के अन्दर एक प्रकार की विचित्र सी सनसनाहट पैदा हो जाती है,और उस सनसनाहट मे व्यक्ति जो नही करना है उसके प्रति भी अपने बल को बढा लेता है और उस कृत्य को कर बैठता है जो उसे शरीर से मन से वाणी से या कर्म से बरबाद कर देता है।
राहु का विभिन्न भावो के साथ गोचर करने का फ़ल
राहु कुंडली मे बारह भावो मे गोचर का फ़ल अपने अनुसार देता है लेकिन भाव के लिये भी राशि का प्रभाव भी शामिल होता है। जैसे राहु कन्या राशि मे दूसरे भाव का फ़ल दे रहा है तो राहु के लिये तुला राशि का पूरा प्रभाव उसके साथ होगा लेकिन जन्म लेने के समय राहु का जो स्थान है उस स्थान और राशि का प्रभाव भी उसके साथ होगा और वह प्रभाव दूसरे भाव मे तुला राशि के प्रभाव मे मिक्स करने के बाद व्यक्ति को धन या कुटुम्ब या अपने पूर्व के प्राप्त कर्मो को अथवा अपने नाम चेहरे आदि पर अपना असर प्रदान करने लगेगा।
राहु का विभिन्न ग्रहो के साथ मिलने वाला प्रभाव
राहु जब विभिन्न ग्रहो के साथ विभिन्न भावो और राशि मे गोचर करता है तो राहु अपने जन्म समय के भाव और राशि के प्रभाव को साथ लेकर ग्रह और ग्रह के स्थापित भाव तथा राशि के प्रभाव मे अपने प्रभाव को शामिल करने के बाद अपना असर प्रदान करेगा लेकिन जो भी प्रभाव होंगे वह सभी उस भाव और राशि के साथ राहु के साथ के ग्रह हो जन्म समय के है को मिलाकर ही देगा। अगर राहु वृश्चिक राशि का है और वह कुंडली के दूसरे भाव मे विराजमान है तो वह दसवे भाव मे गोचर के समय मे वृश्चिक राशि के साथ दूसरे भाव का असर मिलाकर ही दसवे भाव की कर्क राशि मे पैदा करने के बाद अपने असर को प्रदान करेगा,जैसे वृश्चिक राशि शमशानी राशि है और राहु इस राशि मे शमशाम की राख के रूप मे माना जाता है यह जरूरी नही है कि वह शमशान केवल मनुष्यों के शमशान से ही सम्बन्धित हो वह बडी संख्या मे मरने वाले जीव जन्तुओं के स्थान से भी सम्बन्ध रख सकता है वह किसी प्रकार की वनस्पतियों के खत्म होने के स्थान से भी सम्बन्ध रख सकता है वह अपने अनुसार जलीय जीवो के समाप्त होने के स्थान स्थलीय जीवो के अथवा आसमानी जीवो के प्रति भी अपनी धारणा को लेकर चल सकता है। राहु वृश्चिक राशि के दूसरे भाव मे होने पर वह अपने कारणो को दसवे भाव मे जाने पर कर्क राशि के अन्दर जो भावना को पैदा करेगा वह धन के रूप मे कार्य करने के लिये शमशानी वस्तुओं को खरीदने बेचने का काम ही करेगा आदि बाते राहु के ग्रहो के साथ गोचर करने पर मिलती है और इन्ही बातो के अनुसार घटना और दुर्घटना का कारण जाना जाता है। क्रमश:............................................

Friday, February 1, 2013

गुरु मंगल की युति बनाम तारा शक्ति

माता तारा की शक्ति के लिये गुरु मंगल का होना जरूरी है राशि का असर भी इस शक्ति को विस्तृत करने का एक प्रमुख कारण माना जा सकता है। गुरु मंगल को जितने ग्रह अपने असर मे लेते है उसी प्रकार की शक्ति माता तारा से प्राप्त की जा सकती है।
माता तारा का रूप उस समय की स्थिति को दर्शाता है जब भगवान शिव ने समुद्र से निकले हलाहल को पिया था और उस हलाहल जहर की गर्मी से उन्हे मूर्छता आ गयी थी,उस समय आदि शक्ति माता तारा ने जो शमशान की शक्ति की रूप मे जानी जाती है ने अपने क्षीर को भगवान शिव को पुत्रवत गोद मे लेकर पिलाया था और उनकी हलाहल की जलन को दूर करने के लिये अपने अमृत स्वरूप ममत्व को प्रदान किया था,भगवान शिव को उस समय से एक अनौखी शांति जो भय और बन्धन से दूर थी मिली थी।
गुरु को जीव माना जाता है और मंगल को तपती हुयी बिना लौ की अग्नि। दोनो के आपसी सम्बन्ध से जीव के अन्दर एक तपिस जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है वह जीव को बारहवे भाव के कारणो के प्राप्त नही होने के कारण जलाती रहती है। कहा भी जाता है कि अन्त गति सो मति,जीव अपनी अन्त समय की गति को प्राप्त करने के लिये अपने जीवन भर अपने अन्दर की तपिस को साक्षात रूप मे प्रदर्शित करने के लिये चलता रहता है दुनिया समाज परिवार आदि से अपनी इस जलन की स्थिति को मिटाने के लिये अपने कार्यों चाहे वह मनसा हो वाचा हो या कर्मणा हो को सामने लाता रहता है,लेकिन गुरु मंगल की युति बारहवे भाव मे होने पर उसकी हालत वही होती है जो एक चिता की शमशान मे सुलगने के समय होती है जीव के मरने के बाद उसके शरीर मे पनपने वाले कीडों की गर्मी से होती है या फ़िर जमीन मे दफ़नाने के बाद मिट्टी की गर्मी से शरीर के तत्वो की समाप्ति और शरीर का शिवमय होना भी इस बात को प्रकट करता है।
जीव की गति का प्रादुर्भाव तभी मान्य होता है जब जीव के अन्दर खून की गर्मी होती है और जीव का खून जितना गर्म होता है उतना ही उसे शक्ति से पूर्ण माना जाता है,लेकिन किसी प्रकार की जैविक जलन भी जीव को अत्यन्त गर्म तब बना देती है जब उसके अन्दर जीव के प्रति किसी प्रकार का मानसिक प्रभाव प्रतिस्पर्धा या किसी प्रकार का शारीरिक बल अपना असर देकर अहम की शक्ति को पैदा कर रहा हो इस जलन को जीव अपनी गति के अनुसार कार्य को करता है।
माता तारा की शक्ति को प्राप्त करने के