लगन का रूप लगनेश पर स्थिति होता है और लगनेश स्थिति राशि के मालिक पर निर्भर होते है लगनेश की राशि के मालिक उस राशि के मालिक पर निर्भर होते है जो उनके निवास की राशि है और निवास की राशि के मालिक फ़िर से लगनेश की राशि मे उपस्थित होते है तो जीवन चक्र एक प्रकार से भटकने जैसा होता है। प्रस्तुत कुंडली कुम्भ लगन की है और जातिका के लगनेश शनि है शनि शुक्र की राशि मे विराजमान है शुक्र गुरु की राशि मे विराजमान है गुरु शनि की राशि मे विराजमान है। लगनेश चौथे भाव की वृष राशि मे है यह राशि वास्तविक रूप से चन्द्रमा की राशि है। चन्द्रमा का स्थान कुंडली मे बुध (व) के घर कन्या राशि मे है,लेकिन वास्तविक रूप से तकनीकी राशि वृश्चिक के घेरे मे है जिसका मालिक मंगल है। चन्द्रमा की राशि का मालिक वक्री बुध है और वक्री बुध का स्थान भी शनि की राशि कुम्भ मे है जिसका मालिक भी शनि है। केतु पंचम भाव मे है और बक्री बुध की राशि मिथुन मे है बुध का स्थान भी लगन मे है तथा बुध की राशि का मालिक भी शनि है। राहु का स्थान गुरु की धनु राशि मे है और वास्तविक रूप से यह स्थान शनि का है राहु गुरु के घर मे है गुरु शनि के घर मे है। मंगल का स्थान शनि के घर मे है,सूर्य का स्थान गुरु के घर मीन राशि मे है और मीन राशि का मालिक गुरु है गुरु का स्थान भी शनि के घर मे है,शुक्र का स्थान भी गुरु के घर मीन राशि मे है और मीन राशि का मालिक गुरु भी शनि के घर मे है। इस प्रकार से पूरी कुंडली शनि के घेरे मे आजाती है। शनि के आगे केतु ने अपनी रोक लगा रखी है। मिथुन का केतु लिखने वाली कलम से जाना जाता है धागे के काम से जाना जाता है। जातिका का जीवन केतु से सम्बन्धित कामो पर निर्भर है। केतु के अनुसार जातिका तीसरे नम्बर की बहिन है। पहले नम्बर की बहिन ग्यारहवे भाव के राहु के रूप में दूसरे नम्बर की बहिन बक्री बुध के रूप मे और तीसरे नम्बर पर मंगल की राशि मेष है,इस राशि का मालिक मंगल गुरु के साथ होने से भाई के रूप मे सामने आता है। इस प्रकार से जातिका तीन बहिन एक भाई है,लेकिन सभी किसी न किसी रूप मे शनि के घेरे मे है।
केतु का प्रभाव सीधे रूप में सप्तम नवम ग्यारहवे और लगन मे प्रभाव देने के लिये अपना असर प्रदान कर रहा है। केतु को लेखनी के रूप मे धागे के रूप मे दर्जी वाले कामो के रूप में माना जाता है। केतु के सप्तम मे राहु का प्रभाव होने से ज्योतिष के रूप मे भी जाना जा सकता है जो लाभ के कारको को प्रदान कर रहा है। यही राहु अपना असर बुध वक्री पर दे रहा है जो दूसरो को सिखाने के लिये माना जा सकता है,यह लिखने किताब आदि बनाने के लिये भी माना जा सकता है।लेकिन चौथे शनि की वक्री नजर होने के कारण लिखी गयी कारक किताब या तो चौथे भाव के शनि के प्रभाव से फ़्रीज हो गयी होती है या धन की कमी के कारण जनता मे या सीखने वाले लोगो मे पहुंच नही पाती है। यह शनि इच्छा पूर्ति के भाव मे होने के कारण अष्टम के चन्द्रमा से अपनी युति कर्जा लेकर रिस्क लेकर अपने को जोखिम मे डालकर बारहवे भाव के गुरु मंगल तक जाने के प्रयास मे है लेकिन बीच मे राहु का असर आने से गुरु मंगल तक शनि की सीधी पहुंच नही जा पा रही है। गुरु भी अपनी पूरी शक्ति से दूसरे भाव के सूर्य और शुक्र पर अपनी नजर दे रहा है लेकिन गुरु शुक्र की आपसी दुश्मनी के कारण तथा गुरु के नीच प्रभाव मे होने पर और शुक्र के उच्च प्रभाव के कारण गुरु कमजोर हो जाता है केवल अपने स्वार्थ की भावना से काम करने वाला होता है। सूर्य भी उच्च के शुक्र को अपनी शक्ति से कमजोर इसलिये कर रहा है क्योंकि सूर्य के तेज के कारण शुक्र का प्रभाव अस्त है। लगनेश से आगे का ग्रह अपनी शक्ति से जीवन को चलाने की शक्ति को प्रदान करने के लिये माना जाता है। लेकिन केतु का स्वभाव कि वह आगे वाले ग्रह से लेकर पीछे देने के लिये अपनी शक्ति को रखता है इसलिये वह जो भी कमाया जाता है वह कर्जा दुश्मनी के भाव मे दे रहा है चाहे वह ब्याज के रूप मे हो या दैनिक कार्यों की भरपाई के लिये हो। बारहवे भाव मे गुरु मंगल की युति से जातिका को जितना आता है वह उससे अधिक ज्ञान के काम करने की कोशिश करती है फ़लस्वरूप कार्य भी पूरा नही हो पाता है और किये गये काम मे कमी आने के कारण दिमाग भी सन्तुष्ट नही हो पाता है।
इस कुंडली मे अकेले लगनेश के उपाय करने से कोई फ़ल प्राप्त नही हो सकता है लगनेश के मालिक शुक्र को स्वतंत्र किया जाये,फ़िर गुरु को नीच के प्रभाव से बचाया जाये तब जाकर शनि की क्रिया जीवन के प्रति सही रूप से काम कर सकती है। चौथे शनि का रास्ता छठे भाव मे है दसवे भाव मे है और लगन मे है। लगन मे बक्री बुध शनि की स्थिति को सुधारने का काम कर सकता है,इस बक्री बुध को मार्गी बनाने के लिये रोजाना धर्म स्थान मे जाकर फ़ूल जो बुध के कारक है उन्हे चढाकर वापस लाया जाये तथा घर मे सामने के भाग में किसी गमले आदि में लगे पेड पर के नीचे रखा जाये जो पेड चौडे पत्ते वाला हो या किसी फ़ैलती हुयी लता के रूप मे हो। इस प्रकार से बुध का बल बढते ही शनि बुध की आपसी युति पहले से किये गये काम जैसे किताब आदि की कीमत रायलटी के रूप मे सही मिलने लगेगी। इसके बाद शनि शुक्र के मालिक गुरु का स्थान मंगल से हटाने के लिये गुरु को चौथे भाव के शनि से मिलाया जाये इसे मिलाने के लिये घर के वायव्य में उत्तर की तरफ़ आसन लगाकर दोपहर के समय ध्यान लगाया जाये और ध्यान में शिवजी को लाया जाये या ऊँ को सुनहले अक्षरों में ध्यान मे आरोपित किया जाये। वैसे गुरु मंगल की कारक देवी माता तारा के लिये दर्शन पर्शन और पूजा मंत्र - "ऊँ तारे तुरुतुरे तुरे स्वाहा" का जाप रोजाना शाम के समय दक्षिण-पूर्व की तरफ़ ध्यान लगाकर किया जाये। गले मे सोना पहिनना मूंगा और नीलम बायें हाथ की अनामिका और मध्यमा मे पहिनने से भी स्थिति मे सुधार आ सकता है और देश विदेश मे नाम के साथ साथ धन की स्थिति बहुत अच्छी बन सकती है।
केतु का प्रभाव सीधे रूप में सप्तम नवम ग्यारहवे और लगन मे प्रभाव देने के लिये अपना असर प्रदान कर रहा है। केतु को लेखनी के रूप मे धागे के रूप मे दर्जी वाले कामो के रूप में माना जाता है। केतु के सप्तम मे राहु का प्रभाव होने से ज्योतिष के रूप मे भी जाना जा सकता है जो लाभ के कारको को प्रदान कर रहा है। यही राहु अपना असर बुध वक्री पर दे रहा है जो दूसरो को सिखाने के लिये माना जा सकता है,यह लिखने किताब आदि बनाने के लिये भी माना जा सकता है।लेकिन चौथे शनि की वक्री नजर होने के कारण लिखी गयी कारक किताब या तो चौथे भाव के शनि के प्रभाव से फ़्रीज हो गयी होती है या धन की कमी के कारण जनता मे या सीखने वाले लोगो मे पहुंच नही पाती है। यह शनि इच्छा पूर्ति के भाव मे होने के कारण अष्टम के चन्द्रमा से अपनी युति कर्जा लेकर रिस्क लेकर अपने को जोखिम मे डालकर बारहवे भाव के गुरु मंगल तक जाने के प्रयास मे है लेकिन बीच मे राहु का असर आने से गुरु मंगल तक शनि की सीधी पहुंच नही जा पा रही है। गुरु भी अपनी पूरी शक्ति से दूसरे भाव के सूर्य और शुक्र पर अपनी नजर दे रहा है लेकिन गुरु शुक्र की आपसी दुश्मनी के कारण तथा गुरु के नीच प्रभाव मे होने पर और शुक्र के उच्च प्रभाव के कारण गुरु कमजोर हो जाता है केवल अपने स्वार्थ की भावना से काम करने वाला होता है। सूर्य भी उच्च के शुक्र को अपनी शक्ति से कमजोर इसलिये कर रहा है क्योंकि सूर्य के तेज के कारण शुक्र का प्रभाव अस्त है। लगनेश से आगे का ग्रह अपनी शक्ति से जीवन को चलाने की शक्ति को प्रदान करने के लिये माना जाता है। लेकिन केतु का स्वभाव कि वह आगे वाले ग्रह से लेकर पीछे देने के लिये अपनी शक्ति को रखता है इसलिये वह जो भी कमाया जाता है वह कर्जा दुश्मनी के भाव मे दे रहा है चाहे वह ब्याज के रूप मे हो या दैनिक कार्यों की भरपाई के लिये हो। बारहवे भाव मे गुरु मंगल की युति से जातिका को जितना आता है वह उससे अधिक ज्ञान के काम करने की कोशिश करती है फ़लस्वरूप कार्य भी पूरा नही हो पाता है और किये गये काम मे कमी आने के कारण दिमाग भी सन्तुष्ट नही हो पाता है।
इस कुंडली मे अकेले लगनेश के उपाय करने से कोई फ़ल प्राप्त नही हो सकता है लगनेश के मालिक शुक्र को स्वतंत्र किया जाये,फ़िर गुरु को नीच के प्रभाव से बचाया जाये तब जाकर शनि की क्रिया जीवन के प्रति सही रूप से काम कर सकती है। चौथे शनि का रास्ता छठे भाव मे है दसवे भाव मे है और लगन मे है। लगन मे बक्री बुध शनि की स्थिति को सुधारने का काम कर सकता है,इस बक्री बुध को मार्गी बनाने के लिये रोजाना धर्म स्थान मे जाकर फ़ूल जो बुध के कारक है उन्हे चढाकर वापस लाया जाये तथा घर मे सामने के भाग में किसी गमले आदि में लगे पेड पर के नीचे रखा जाये जो पेड चौडे पत्ते वाला हो या किसी फ़ैलती हुयी लता के रूप मे हो। इस प्रकार से बुध का बल बढते ही शनि बुध की आपसी युति पहले से किये गये काम जैसे किताब आदि की कीमत रायलटी के रूप मे सही मिलने लगेगी। इसके बाद शनि शुक्र के मालिक गुरु का स्थान मंगल से हटाने के लिये गुरु को चौथे भाव के शनि से मिलाया जाये इसे मिलाने के लिये घर के वायव्य में उत्तर की तरफ़ आसन लगाकर दोपहर के समय ध्यान लगाया जाये और ध्यान में शिवजी को लाया जाये या ऊँ को सुनहले अक्षरों में ध्यान मे आरोपित किया जाये। वैसे गुरु मंगल की कारक देवी माता तारा के लिये दर्शन पर्शन और पूजा मंत्र - "ऊँ तारे तुरुतुरे तुरे स्वाहा" का जाप रोजाना शाम के समय दक्षिण-पूर्व की तरफ़ ध्यान लगाकर किया जाये। गले मे सोना पहिनना मूंगा और नीलम बायें हाथ की अनामिका और मध्यमा मे पहिनने से भी स्थिति मे सुधार आ सकता है और देश विदेश मे नाम के साथ साथ धन की स्थिति बहुत अच्छी बन सकती है।
बहुत सही प्रस्तुति गुरुद्देव................
ReplyDeleteमैं अभी इसी दौर से गुजर रहा हूँ.......
पूरी जिंदगी घूम रही हे ..
धन्यवाद