Friday, January 20, 2012

चौथे और सप्तम की चिंता

चौथे और सप्तम की चिन्ता
प्रस्तुत कुंडली सिंह लगन की है और स्वामी सूर्य धनु राशि का होकर बुध के साथ पंचम स्थान मे विराजमान है.सूर्य को युति देने वाले ग्रहों मे वक्री गुरु और राहु भी है बुध का साथ जन्म से ही है.गोचर से मंगल का गोचर वर्तमान मे सिंह राशि मे चल रहा है इसलिये जातक की चिन्ता मंगल की द्रिष्टि के अनुसार मानी जाती है।मंगल अपनी चौथी द्रिष्टि से मकान के लिये अपनी सोच को देता है और सप्तम से पत्नी के लिये अपनी सोच को प्रदान कर रहा है किसी भी सोच को पूरा करने के लिये हमेशा चन्द्रमा का साथ जरूरी है इसलिये आज चन्द्रमा भी राहु के साथ होने से तथा चन्द्रमा का विचार गोचर के केतु के साथो होने से गुप्त रूप से होने वाली पत्नी के लिये भी विचार दिमाग मे चलना पाया जाता है.कुंडली मे घर का मालिक भी मंगल है और धर्म भाग्य पिता और लम्बी यात्रा का मालिक भी मंगल है इस मंगल के गुरु और राहु के संयुक्त प्रभाव से जातक का सोचना कार्य से नही माना जा सकता है केवल वह सोच को प्राप्त करने के लिये अपने ठंडे दिमाग का प्रयोग करने के लिये माना जाता है शनि का स्थान वक्री होकर धन स्थान मे नौकरी की राशि मे है और इस शनि का साथ बारहवे भाव के मालिक चन्द्रमा से भी है और त्रिकोण के अनुसार कार्य भाव का मालिक शुक्र तथा प्रदर्शन के भाव का मालिक शुक्र भी शनि चन्द्र के साथ है वर्तमान मे कार्य स्थान मे केतु भी अपने गोचर से कार्य कर रहा है। जातक का गुप्त प्रेम भी इसी केतु के द्वारा छठे भाव मे शुक्र पर होने से कार्य मे साथ काम करने वाली स्त्री से होना माना जाता है।शनि जब भी चौथे भाव मे गोचर करेगा तभी जातक का मकान बनेगा और गुरु जब जन्म के केतु के साथ गोचर करेगा तभी शादी का होना माना जा सकता है.

2 comments:

  1. गुरुजी इस कुंड़ली में चिंता का कारक मंगल ही क्यूँ माना...समझ नहीं आया...

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  2. sir, kirpa karke ap,date of birth &time bhi diya kare,aap ki ati kirpa hogi.aur bhi detail,s diya kare.

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