Monday, January 30, 2012

भावानुसार मिलने वाले धोखे

कुंडली भी एक अजीब  पहेली मानी जाती है,कौन सा ग्रह कहाँ पर धोखा दे रहा है या कब धोखा देगा,अथवा खुद ही धोखा बनकर संसार में विचरण करने के लिये जीवन को प्रदान कर रहा है इस बात की जानकारी करना बहुत जरूरी होता है। कौन कैसे कहाँ धोखा देता है इस बात की जानकारी मनुष्य रूप मे समझने के लिये मनुष्य जीवन के कारक ग्रहों का जानना भी जरूरी है। धोखे का भाव कौन सा है किस ग्रह के साथ कौन सा धोखा हो सकता है इस बात को भी जानना जरूरी है,किस स्थान पर कैसे कौन धोखा देगा,वह मित्र के रूप मे धोखा देगा,दोस्त के रूप मे धोखा देगा या खुद ही अपने मन से धोखा खाने के लिये अपने चेहरे पर बोर्ड लगाकर घूमेगा कि आओ मुझे धोखा दो, और जो देखो वही धोखा देकर चलता बने खुद धोखा खा कर अपने आप चुपचाप बैठ जाओ। धोखा देने से पहले क्या होता है और किस प्रकार से धोखा मिलता है आइये कुछ जीवन से सम्बन्धित कारको पर ध्यान देते है:-
  • जन्म हो गया तो शरीर है और शरीर है तो किसी ने तो जन्म दिया ही है,जन्म के कारक ग्रह का धोखे मे होना भी एक प्रकार से जन्म देने का धोखा माना गया है,जैसे माता को ध्यान ही नही था कि उसे गर्भ रह सकता है,और धोखे से गर्भ रह गया और जन्म भी हो गया,जन्म के बाद माता ने त्याग कर दिया और किसी अस्पताल या किसी अन्य प्रकार से शरीर को दूसरो के हवाले कर दिया यह धोखा लगनेश के साथ धोखा होना माना जाता है और लगनेश के द्वारा राहु की छत्रछाया मे रहना तथा जिसे अपना समझा गया है वह अपना है ही नही और जिसे अपना नही माना गया है वह अपना है इस प्रकार की भ्रांति जीवन मे चलती रहती है,जैसे अक्सर दत्तक संतान के मामले मे जाना जाता है,जब बच्चे को छोटी उम्र मे ही गोद दे दिया जाता है और उस बच्चे का पालन पोषण दूसरे स्थान पर होता है,वह बच्चा बडा होकर किसी भी प्रकार से यह मानने के लिये तैयार नही होता है कि वह जिसको माता कह रहा था वह माता है ही नही या गोद देने के बाद जब जातक बडा होने लगा और जिसने गोद दे दिया,कालान्तर मे गोद लेने और गोद देने वाले के बीच मे शत्रुता हो जाती है तो बालक जिसके पास गोद गया है वह अपने खुद के माता पिता से शत्रुता तो कर ही लेगा,लेकिन उसे पता नही है कि वह अपने से ही शत्रुता कर रहा है और जो उसका शत्रु है उससे अपनी मित्रता को किये बैठा है.
  • दूसरे भाव के बारे मे धोखा भी देने वाला दूसरे भाव का ग्रह होता है अक्सर जो पूंजी माता पिता के द्वारा इकट्टी की जातीहै और कहा जाता है कि यह पूंजी जातक के लिये ही है वह चाहे सोना चांदी हो हीरा मोती हो या नगद धन हो,अथवा खुद के परिवार के लोग ही हो,लेकिन जैसे ही जातक बडा होता है खुद के लोग ही उस धन को यह कहकर हडप लेते है कि वह उस परिवार मे केवल पालने पोषने के लिये ही रखा गया था और उस धन पर अधिकार अलावा लोगो का है,जैसे ननिहाल मे पला जातक,किसी अन्य रिस्तेदार के पास पला जातक किसी दोस्त के घर पर पला जातक आदि इसी श्रेणी मे आते है।
  • तीसरे भाव के धोखे के बारे मे कहा जाता है कि जातक जहां है वही के लोगो के साथ अपनी दिनचर्या को बना रहा है,उसी प्रकार की जलवायु मे अपने समय को निकाल रहा है खान पान रहन सहन भोजन कपडा आदि उसी स्थान के प्रति ग्रहण कर रहा है,उसने अपने द्वारा प्रदर्शित करने वाले कारक जैसे ड्रेस आदि जो अपनाये है वह उसी रहने वाले स्थान के अनुरूप अपनाये है जो धर्म अपनाया जा रहा है रहने वाले स्थान के अनुसार ही अपनाया जा रहा है,लेकिन बाद मे पता चलता है कि वह केवल अपने माता पिता की कार्य की रूप रेखा की वजह से वहां निवास कर रहा था और उसे जब सभी कुछ बदलने के लिये बताया जाता है तो वह तीसरे भाव का धोखा माना जाता है.
  • चौथे भाव का धोखा सबसे अधिक खराब माना जाता है,अक्सर इस भाव के स्वामी का राहु के साथ होने पर हमेशा ही मानसिक भ्रम दिया करता है जातक को कभी भी किसी भी स्थान पर चैन से नही रहने देता है जब भी जातक यात्रा करता है तो अक्सर उसकी यात्रा की रास्ता किसी न किसी प्रकार से बदल जाती है वह पानी पी रहा होता है तो उसे यह ध्यान ही नही रहता है कि उसे कितना पानी पीना है,अथवा वह अपने इस दोष के कारण शराब आदि पेय पदार्थो को अपने लिये प्रयोग करना इसीलिये शुरु कर देता है कि वह अपने इस भ्रम वाले स्वभाव से थोडा आराम ले सके लेकिन यह प्रभाव उसे अक्सर बडी बीमारियों से ग्रस्त कर देता है और ऊपरी बीमारियों के साथ जनन तंत्रों वाली बीमारियां भी उसे परेशान करने लगती है.
  • पंचम भाव का धोखा बहुत ही दिक्कत वाला माना जाता है,जातक को या तो अपने प्रति इतना भरोसा हो जाता है कि किसी को कुछ भी नही गिनता है हमेशा अपने को ही आगे गिनने के चक्कर मे किसी समय बहुत बडे संकट मे आजाता है,या फ़िर अपने लिये आगे की सन्तति से दूर रखने वाला इसलिये ही माना जाता है कि उसके जीवन साथी के प्रति हमेशा ही किसी न किसी प्रकार से बनाव बिगाड चलते रहते है जब भी सन्तान पैदा करने का समय आता है जातक के प्रति कई प्रकार की धारनाये या तो जीवन साथी बदल देता है या जातक खुद ही जीवन साथी से भ्रम से दूर हो जाता है। इस प्रकार के धोखा देने वाले कारण अक्सर राजनीति से सम्बन्ध रखने वाले लोगों फ़िल्म मीडिया मे काम करने वालो लोगों शिक्षा के क्षेत्र मे या मनोरंजन के क्षेत्र मे काम करने वाले लोगो के साथ होता देखा जाता है इस बात से सन्तान का आना केवल पुत्र संतान के लिये ही माना जाता है स्त्री संतान मे यह धोखा कभी भी अपना कार्य नही रोकता है। इसी प्रकार से जातक के अन्दर अधिक अहम आने के कारण जातक अपनी परिवार की स्थिति को भी बरबाद करने के लिये माना जाता है जैसे पीछे अठारह साल की कमाई को वह केवल अठारह महिने के अन्दर ही बरबाद करने की अपनी युति को पैदा कर लेता है जैसे वह लाटरी सट्टा जुआ आदि वाले कामो के अन्दर अपनी औकात को बढाने के चक्कर मे खराब करता जाता है उसी के जानकार उसकी ही बुद्धि और उसी के द्वारा पैदा किये जाने वाले साधन उसे बरबाद करने के लिये अपनी पूरी जुगत बना देते है। यह बात खेल कूद के लिये भी देखी जाती है,कारण यही भाव खेल कूद से भी जुडा है और पिछले समय मे एक प्रश्न यह भी आया था कि खेल कूद का सट्टा लगने का क्या कारण है उसका एक ही जबाब था कि जब खेल कूद और सट्टा एक ही घर यानी भाव के कारक है तो उन्हे नही रोका जा सकता है.
  • छठे भाव का धोखा अक्सर बीमारी के मामले मे कर्जा के मामले मे ब्याज कमाने के मामले मे दुश्मनी करने के मामले मे नौकरी के मामले मे या नौकरो के मामले मे देखा जाता है। इस भाव मे आकर कोई भी ग्रह अपनी युति से धोखा देता है। वह राहु से सम्बन्ध रखे या नही रखे। अक्सर बीमारी के मामले मे भी धोखा देखा जाता है कि मामूली सा बुखार समझते समझते पता चलता है कि वह तो बहुत बडा वायरल या डेंगू जैसा बुखार है,किसी हल्की सी फ़ुन्सी को समझने के बाद पता चलता है कि वह एक केंसर का रूप है या किसी प्रकार के रोजाना के काम को लगातार करने के बाद पता चलता है कि वह काम केवल दिखावा ही था उस काम को करने के बाद कोई फ़ायदा भी नही है और नुकसान भी खूब लग गया है,किसी को कर्जा देने के बाद पहले यानी कर्जा लेने तक तो वह व्यक्ति अपने आसपास घूमने वाला अपनी हर हां मे हां मिलाने वाला था लेकिन जैसे ही कर्जा दिया वह अक्समात ही दूर भी होने लगा और उसने दुश्मनी भी बना ली,या जिस बैंक या किसी फ़ाइनेंस के क्षेत्र मे ब्याज के लोभ से धन को जमा किया जा रहा था वह बैंक या फ़ाइनेंस कम्पनी ही धोखा देकर धन को बरबाद करने के बाद जाने कहां चली गयी। इसके अलावा भी कोई अपनी जुगत लगाकर अन्दरूनी दुश्मनी को निकालने के लिये पहले अपने घर आता था और बहुत अच्छे से सम्बोधन को प्रयोग करता था,जैसे कोई अपने मित्र की पत्नी को  बहिन के रूप मे तो मानता था लेकिन उसके अन्दर धोखे को देने वाली बात थी वह बहिन का दर्जा देकर एक दिन पत्नी को लेकर ही फ़रार हो गया,अथवा कोई घर मे आकर अपनी पैठ बनाकर घर के वातावरण को समझता रहा और एक दिन मौका पाकर वह घर का महंगा सामान समेट कर चलता बना आदि बाते देखी जाती है,इसके अलावा भी नौकर को बहुत ही अच्छी तरह से रखा गया था,वह अपनी चाल से एक दिन कोई बडा अहित करने के बाद चलता बना,किसी की नौकरी करते करते बहुत समय हो गया और वह नौकरी करवाने वाला व्यक्ति एक दिन किसी बडे फ़रेब को देकर दूर हो गया और जेल आदि की बाते खुद को झेलनी पडी अथवा नौकरी करने के बाद जब सैलरी को मांगा गया तो कोई दूसरा आरोप देकर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया आदि बाते मानी जाती है.
  • सप्तम का धोखा भी नौकरी और जीवन साथी के अलावा साझेदार के लिये माना जाता है,सप्तम का मालिक राहु के साथ है या शनि के साथ है तो धोखा मिलना जरूरी है उसे जीवन साथी से भी धोखा मिलता है उसे साझेदार से भी धोखा मिलता है उसे जो भी काम अपने जीवन यापन के लिये करना होता है वहां से भी धोखा मिलता है,किसी प्रकार के लेन देन के समय के अन्दर किसी की जमानत आदि करने मे भी धोखा मिलता है किसी का बीच बचाव करने या किसी रिस्ते के प्रति बेलेन्स बैठाने के अन्दर भी धोखा मिलता है। इसी प्रकार से जब जातक के साथ किसे एका मुकद्दमा आदि चलता है तो उसके द्वारा भी धोखा दिया जाता है,किसी प्रकार के कागजी धोखे को भी इसी क्षेत्र से माना जाता है। पुरुषा जाति के लिये शुक्र राहु और स्त्री जाति के लिये गुरु राहु का साथ हमेशा ही धोखा देने वाला माना जाता है।
  • अष्टम भाव का धोखा अक्सर किये जाने वाले कामो से देखने को मिलते है,पहले आशा लगी रहती है कि इस काम को करने के बाद बहुत लाभ होगा और एक समय ऐसा आता है कि पूरी मेहनत भी लग चुकी होती है पास का धन भी चला गया होता है पता चलता है कि काम का मूल्य ही समाप्त हो चुका है,इसी प्रकार का धोखा अधिकतर मंत्र तंत्र और यंत्र बनाने वाले अद्भुत चीजो का व्यापार करने वाले शमशान सिद्धि का प्रयोग करने वाले भी करते है जब राहु का स्थान किसी के अष्टम मे होता है या अष्टम का स्वामी किसी प्रकार से राहु केतु शनि के घेरे मे होता है तो वह इन्ही लोगो के द्वारा धोखा खाने वाला माना जाता है यह कारण दशा के अन्दर भी देखा जाता है जैसे धनेश और राहु की दशा मे या अष्टमेश और राहु की दशा मे इसी प्रकार की धोखे वाली बात होती देखी जाती है.अक्सर इसी प्रकार के धोखे शीलहरण के लिये स्त्रियों मे भी देखे जाते है जब भी कोई अपनी रसभरी बातो को कहता है या अपने प्रेम जाल मे ले जाने के लिये चौथे भाव या बारहवे भाव की बातो को प्रदर्शित करता है तो उन्हे समझ लेना चाहिये कि उनके लिये कोई बडा धोखा केवल उनके शील को हरने के लिये किया जा रहा है,इस धोखे के बाद उनका मन मस्तिष्क और ईश्वरीय शक्तिओं से भरोसा उठना भी माना जा सकता है,इस भाव का धोखा उन लोगो के लिये भी दिक्कत देने वाला होता है जो डाक्टरी काम करते है वह अपने धोखे के अन्दर आकर किसी बीमारी को समझ कर कोई दवाई दे देते है और उस दवाई को देने के बाद मरीज बजाय बीमारी से ठीक होने के ऊपर का रास्ता पकड लेता है। यही बात इन्जीनियर का काम करने वाले लोगो के साथ भी होता है वह धोखे मे आकर अपनी रिपेयर करने वाली चीज मे या तो अधिक वोल्टेज की सप्लाई देकर उसे बजाय ठीक करने के फ़ूंक देते है या सोफ़्टवेयर को गलत रूप से डालकर पूरे प्रोग्राम ही समाप्त कर लेते है।
  • नवे भाव के ग्रह के लिये धोखा देने वाली बाते अक्सर धर्म स्थान मे धोखा होना यात्रा जो बडे रूप से की जा रही है या विदेश का रूप बनाया जा रहा है के लिये माना जाता है यह बात ऊंची शिक्षा के मामले मे भी देखी जाती है कानून के अन्दर भी देखी जाती है और सही रूप मे माने तो जाति बिरादरी और समाज के लिये भी मानी जाती है। कभी कभी एक धर्म स्थान के लिये लगातार प्रचार किया जाता है और उस प्रचार के अन्दर एक भावना धोखा देने वाली छुपी होती है.उस धोखे मे वही लोग अधिक ठगे जाते है जिनके नवम भाव के मालिक का कारक या तो राहु की चपेट मे होता है या त्रिक स्थानो के स्वामी के साथ अपने गोचर से चल रहा होता है अथवा दशा का प्रभाव चल रहा होता है। 
  • दसवे भाव के धोखे वाली बातो के लिये माना जाता है कि कार्य करने के बाद या सरकरी क्षेत्र की सेवा करने के बाद नौकरी आदि के लिये किसी बडी जानकारी के बाद जीवन भर लाभ के लिये की जाने वाली किसी कार्य श्रेणी को शुरु करने वाली बात के लिये माना जाता है.
  • ग्यारहवे भाव के लिये मित्रो से अपघात बडे भाई या बहिन से अपघात लाभ के क्षेत्र मे की जाने वाली अपघात माता के गुप्त धन के प्रति अपघात पिता के पत्नी के परिवार से जुडी या उसकी संगति से मिलने वाली अपघात के लिये जाना जाता है.
  • बारहवे भाव की जाने वाली खरीददारी मे धोखा यात्रा के अन्दर सामान या मंहगे कारक का गुम जाना कही जाना था और कही पहुंचाने वाली बात का धोखा किसी धर्म स्थान मे ठहरने के बाद कोई धोखा होना किसी बडी संस्था को सम्भालने के बाद मिलने वाला धोखा आदि की बाते मानी जाती है.

3 comments:

  1. Guruji, rahu jaha baithata hai, aksar usi sthan par dokha hota hai , aisa kuch hai kya ? Kripya guide kare....

    ReplyDelete
    Replies
    1. अक्सर भ्रम कनफ़्यूजन धोखा फ़रेब चीटिंग अफ़वाह भटकाव नशा बेबजह आदि शब्द राहु के अनुसार ही कहे गये है,जो है उसके प्रति जो नही है उसके भी प्रति राहु अपने अपने स्थान से अपना अपना प्रकार प्रकट करता है साथ ही अगर व्यक्ति की सोच केन्द्रित नही है तो वह अपने सोचने वाले घेरे को लगातार बढाता जाता है और यही सोच उसे जीवन मे धोखा आदि देने के लिये मानी जाती है.लगन मे राहु के होने से जीवन के साथ ही धोखा होता है धन भाव मे होने से धन आदि की चीटिंग और खुद की आंखो के सामने धूल झोंकने वाली बात कही जाती है,तीसरे भाव मे नाटकीय ढंग से अपने विचार प्रकट करने के बाद स्वांग बनाकर ठगने वाली बात मानी जाती है,चौथे भाव मे मानसिक रूप से भावना आदि से ठगी की जाती है पंचम भाव मे मनोरंजन का नशा देकर या लाटरी सट्टॆ खेलकूद मे दिमाग मे लगा कर बुद्धि को भ्रम मे डाला जाता है,छठे भाव से कोई बीमारी नही होने पर बीमारीका भ्रम होना सातवे भाव मे जीवन साथी और साझेदारी के प्रति तादात से अधिक विश्वास कर लेना और जब भ्रम टूटे तो कही कुछ नही होना आठबे भाव मे उन शक्तियों के प्रति भम रहना जो शक्तिया न तो देखी गयी है और न ही उनके प्रति कभी विश्वास किया गया है इस भाव के राहु के द्वारा अक्सर गूढ कारणो की खोज के प्रति भ्रम ही बना रहता है और रेत के पहाड से हीरे की कणी निकालने जैसा होता है नवे भाव के राहु से खुद के खानदान और पूर्वजो के प्रति ही भ्रम बना रहना दसवे भाव मे काम के होते हुये भी और काम के करते हुये भी कभी काम पूरा नही होना ग्यारहवे भाव के प्रति चाहे पीछे से हानि ही हो रही हो लेकिन भ्रम से उसी काम को करते जाना जब पता लगना तब तक दिवालिया हो जाना या किसी मित्र पर इतना विश्वास करते जाना कि वह जीवन के हर क्षेत्र से सब कुछ बरबाद कर रहा है लेकिन फ़िर भी उसके प्रति विश्वास को बनाये रखना बाद मे दगा बाजी का रूप दे देना बारहवे भाव से जीवन के प्रति हमेशा डर लगा रहना आक्स्मिक चल देना हवाई किले बनाते रहना और खुद की स्थिति को जमीन पर आने ही नही देना जबकि है कुछ नही फ़िर भी सब कुछ होने का आभास होते रहना और जब हकीकत का पर्दा उठे तो कही कुछ नही आदि की बाते मानी जाती है.

      Delete
  2. Bahot bahot dhanyawad guruji ..... Aisehi marg dikhate jayiyega....

    ReplyDelete