Friday, January 20, 2012

केतु की छाया

राहु केतु का प्रभाव जीवन मे बहुत ही दुखदायी होता अगर राहु केतु कही भी अपनी युति को त्रिक भाव मे जन्म समय से रखते है.प्रस्तुत कुण्डली मे जन्म समय के ग्रहो मे केतु और राहु का स्थान अष्टम और दूसरे भाव मे है,जन्म के केतु का प्रभाव अष्टम स्थान मे है दसवे स्थान मे है,बारहवे स्थान मे है,दूसरे स्थान मे है और चौथे स्थान में है.राहु का प्रभाव दूसरे स्थान मे है चौथे स्थान मे है छठे स्थान मे है आठवे स्थान मे है दसवे स्थान मे है.गोचर से जब राहु केतु अपने प्रभाव से दूसरे चौथे छठे आठवे दसवे बारहवे भाव को अपनी छाया मे ले लेते है तो इस केतु को पिशाच की छाया से ग्रसित कहा जाता है,यह तभी माना जाता है जब केतु का स्थान जन्म से ही अष्टम स्थान में हो। इस केतु के गोचर से जो प्रभाव जातक के जीवन मे पडते है वह केतु के अस्पताली भाव मे होने से दवाइयां चलना लेकिन कोई फ़ायदा नही होना,केतु का प्रभाव सीधे से दसवे भाव मे होने से काम काज पिता और पिता के धन को बरबाद करने वाली स्थिति का होना बारहवे भाव पर असर होने के कारण आराम नही होना और किसी भी बडे से बडे सन्स्थान मे चैक अप करवाने के बाद कोई भी रिजल्ट नही निकलना दूसरे भाव पर असर होने के कारण पिता और माता की कमाई का अधिकांश हिस्सा दवाइयों और अस्पताली कारणो मे तथा यात्रा बाहर के आने जाने ठहरने के कामो मे खर्च होना,चौथे भाव मे केतु का असर होने से रहने वाले घर मे हमेशा एक नकारात्मक शक्ति का उपस्थित रहना। इस केतु की उपस्थिति का एक कारण और भी देखा जाता है कि जातक का मुंह लम्बा होता जाना दांतो का बाहर निकलते जाना रोजाना के कार्यों का नही होना मल मूत्र आदि मे बदबू आना पीठ मे अधिक लेटे रहने के कारण बदबू आने लगना,जहां भी आराम किया जाता है वहां पर दवाइयों और इसी प्रकार की बदबू का भरा रहना। इस केतु के कारण जो भाव प्रभावित होते है वे भोजन करने के कारण यानी भूख का नही लगना,सांस मे दिक्कत आने लगना हाथ पैर पतले होते जाना किसी भी काम को करने मे दिक्कत होना मल मूत्र त्याग मे कठिनाई होना काम के स्थान पर बदबू का बना रहना,अस्पताली कारणो मे खर्च होने से घर की अलावा प्रगति मे बाधा होना।
क्यों होता है यह प्रभाव जातक के साथ
जातक का केतु जब अष्टम में खराब राशि मे तभी बैठता है जब माता के द्वारा अथवा पिता के कार्यों के द्वारा किसी प्रकार से केतु को सताया जाता है। जैसे पिता के द्वारा शादी के बाद ससुराल खानदान मे सालो को परेशान किया जाना,बहिन के पुत्र पुत्रियों को उनका हिस्सा नही देना,बहनोई और जंवाई आदि को किसी प्रकार से दिक्कत का देते रहना। कुत्तो को मारना सूअर या मुर्गे आदि को हत्या के बाद खाना मछली को आहार के रूप मे लेना,जो लोग साथ मिलकर काम करते है उनके साथ दगा करना और उनकी मेहनत को हजम करते जाना,किसी जनता की सार सम्भाल वाली कार्य योजना मे अपनी राजनीति को चलाकर अधिक लाभ लेने के चक्कर मे धोखा देना,मजदूरो की मजदूरी को हजम कर जाना या उन्हे धोखा देना ब्याज के काम करना और किसी को भी प्रताणित करने के बाद केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति हेतु धन को ग्रहण करना और जरूरत वाले व्यक्ति को भटकने के लिये मजबूर कर देना,किसी प्रकार से रक्षा सेवा मे जाना और अपने अत्याचार से निर्बलों पर अपने बल को प्रयोग करना उन्हे शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताणित करना,मिले अधिकारों का गलत रूप मे प्रयोग करना आदि माना जाता है। इस प्रकार से जातक की सन्तान खुद का शरीर उम्र की तीसरी अवस्था मे बरबाद होना शुरु हो जाता है,सन्तान बीमार बनी रहती है या किसी प्रकार के गलत काम करने के बाद उसे बरबादी की तरफ़ जाना पडता है,हाथ पैर या रीढ की हड्डी की बीमारी या एक्सीडेंट आदि में बरबाद होना पडता है और जातक चलने फ़िरने के लिये मजबूर हो जाता है,सन्तान जिसके लिये धन को जोडा गया होता है वह धन अस्पताल मे या किसी प्रकार के मुकद्दमे मे या फ़िर छल से हरण कर लिया जाता है।
उपाय
केतु की इस छाया को रोकने के लिये अनैतिक काम एकदम बन्द कर देने चाहिये। शराब मांस मदिरा मछली आदि का खाना बिलकुल बन्द कर देना चाहिये। घर के अन्दर भी इस प्रकार के कारण नही पैदा होने चाहिये। अपने जीवन को सदाचार और लोकहित मे लगा लेना चाहिये। घर मे एक अखंड दीपक का चलना जरूरी होता है। घर के अन्दर कूडा करकट और इसी प्रकार के कारक दक्षिण पश्चिम दिशा मे या ईशान कोण मे नही होने चाहिये। मछलियों को पालने का उपक्रम करना चाहिये एक्वेरियम को लगाकर नौ या ग्यारह मछलिया पालनी चाहिये। गणेशजी की पूजा पाठ मे मन लगाना चाहिये। जंवाई बहनोई भानजे भानजी भतीजे भतीजी को कभी उदास नही करना चाहिये,मजदूर की पूरी मजदूरी देकर उसे भेजना चाहिये,अगर किराये से ही गुजारा होता हो तो किराये का कुछ भाग केतु से सम्बन्धित रिस्तेदारों को दान मे या भोजन आदि में व्यय करना चाहिये,अगर कोई जनता से सम्बन्धित कार्य जैसे रक्षा आदि का मिला है तो अपने शरीर से किसी को किसी भी कारण से कष्ट नही देना चाहिये,केतु का रत्न लहसुनिया जो हरे और पीले रंग की हो पंचधातु के अन्दर गले मे पहिननी चाहिये। केतु की चीजे जैसे काले सफ़ेद तिल आबादी के बाहर शमशानी स्थान मे खड्डा खोदकर दबाना चाहिये,कम्बल या धारीदार कपडे गरीब और असहाय लोगो को दान करना चाहिये। 

1 comment:

  1. प्रणाम गुरुजी...

    आज जा के नैट का सदुपयोग हो सका..आपका लेख पढ़ने को मिला.
    पर मेरा भी केतु अष्टम है गुरुजी..वृषभ लग्न, मेष राशि...डरने की तो कोई बात नहीं ना..शनि की छटे भाव से केतु पर दृष्टि है वैसे.

    आशुतोष जोशी
    नोएडा

    ReplyDelete