Tuesday, September 11, 2012

ज्योतिषीय कहावतें भाग २

गोद मे छोरा गांव में ढिंढोरा
ज्योतिष में माता की गोद को चौथा भाव कहा जाता है गांव का रूप चौथे भाव मे राहु के आजाने से पैदा हो जाता है,एक मे अनेक का प्रभाव देने के लिये राहु अपनी शक्ति को प्रदर्शित करता है। अपने पास रखी हुयी वस्तु या कारक के प्रति भ्रम पैदा हो जाता है तभी पास मे होने पर भी खो जाने का भ्रम पैदा हो जाता है। आंखो की द्शा विचित्र हो जाती है मन की दसा भी इसके लिये जिम्मेदार मानी जाती है. 
मकडजाल
ज्योतिष मे बुध को मकडी की उपाधि से नवाजा जाता है मकडी का काम होता है अपने पेट को भरने के लिये जाल को बुनना और उस जाल के द्वारा जीवो को फ़ंसाकर अपने आहार की पूर्ति करना,जाल जैसे जैसे पुराना होता जाता है उसके तन्तु मजबूत होते जाते है और एक समय ऐसा भी आजाता है कि मकडी अपने जाल मे खुद फ़ंस जाती है और अपने ही बुने जाल मे उलझ कर मर जाती है,अक्सर यह बात बुध प्रदान लोगो के लिये जानी जाती है वे अपने जाल को बनाया करते है और अपने ही जाल मे आखिर मे फ़ंस कर समाप्त हो जाते है बुध को कानून का रूप भी दिया गया है बुध प्रधान लोग अपने ही कानून को बनाकर उसी कानून के शिकंजे में फ़ंस जाते है और कानून का शिकार हो जाते है। मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान के भूत पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय श्री जुल्फ़िकार अली भुट्टो की कुंडली भी बुध से प्रभावित थी,उन्होने अपने ही प्रयास से बहुत से कानून बनाये और अपने ही कानून के अन्दर फ़ांसी पर लटक गये,उसी प्रकार से उनकी पुत्री के लिये भी देखा जाता है उनकी पुत्री स्वर्गीय बेनजीर भुट्टो अपने पिता के बनाये कानून पर चलने के बाद और मंगल राहु की चपेट मे आते ही विस्फ़ोट से समाप्त कर दी गयीं.
छत्तिस का आंकडा
छत्तिस को अंकशास्त्र के अनुसार अजीब संख्या से नवाजा जाता है इस संख्या मे अंक तीन को गुरु का अंक और अंक छ: को शुक्र का अंक कहा जाता है। गुरु का रुख आध्यात्मिक और सम्बन्धो के प्रति होता है जबकि शुक्र का रुख भौतिक और भोगात्मक रूप मे होता है दोनो के बीच का द्वंद होने की स्थिति मे ही इस कहावत का रूप दिया गया है।
निन्यानवे का फ़ेर
संख्या निन्यानवे दो अंको की सबसे बडी संख्या है। इस संख्या मे अगर एक और जोड दिया जाये तो संख्या सौ मे गिनी जाती है। इस संख्या को अगर आपस मे जोडा जाये तो भी अंक नौ बनता है और गुणा किया जाये तो भी इक्यासी की संख्या आने पर जोड नौ ही होता है। नौ और नौ को आपस मे समानता के लिये लिय अजाये तो आजीवन समानता का रूप देखा जाये फ़िर भी समानता का अन्तर नही मिल पाता है और अगर इन्हे जोडा जाता रहे तो भी एक की अनुपस्थिति मिलती है,इसी प्रकार से अगर इस संख्या में एक कारण और जोड दिया जाये तो संख्या पूरी सौ हो जाती है व्यक्ति आजीवन अपने अपने रूप मे काम धन्धे और इसी प्रकार के कारणो मे जूझता रहता है लेकिन सोचा हुआ काम पूरा नही होने के कारण निन्न्यावे के फ़ेर में पडा रहकर अंत मे चला जाता है।
पूत के पांव पालना में
बच्चा पैदा होता है तो उसके बारे मे पता करने के लिये उसके सुख स्थान को देखा जाता है सुख स्थान का भाव चौथा होता है और चौथे भाव से बारहवा भाव तीसरा भाव होता है जैसे ही बच्चा पालने मे सुलाया जाता है और वह अपने पैर पालने से बाहर निकालकर नीचे कूदने की कोशिश करने लगता है तो जान लिया जाता है कि बच्चे का बारहवां भावं उन्नत है और वह जीवन मे आगे बढेगा.
कुत्ते की पूंछ
केतु की उपाधि ज्योतिष से कुत्ते को दी जाती है। कहा जाता है कि कुत्ते की पूंछ को बारह साल तेल मे डालकर सीधा करने की कोशिश की जाती है तो वह फ़िर भी अपने रूप को नही बदलती है और टेढी की टेढी ही रहती है। केतु के लिये कितने ही उपाय किये जाये वह अपनी दी जाने वाली शक्ति को नही बदलता है उसी प्रकार से केतु के अन्तर्गत ससुराल मे जंवाई बहिन के घर भाई और मामा के घर भांजा की उपाधि भी दी जाती है। अगर व्यक्ति अपनी ससुराल मे रहना शुरु कर देता है तो उसे ससुराल के कानून कायदे के अनुसार चलना पडता है जो वह सहन नही कर पाता है और किसी न किसी बात पर कहा सुनी ही होती रहती है,वह अपने वास्तविक जीवन को नही बदलता है और इसी प्रकार की जद्दोजहद मे उसके जीवन का सफ़र पूरा होता रहता है उसी प्रकार से बहिन के घर मे अगर भाई रहना शुरु कर देता है तो वह अपने वास्तविक परिवार और समाज के अनुसार नही चल पाता है साथ ही वह अपनी कोई भी मालिकाना बात बहिन के घर मे नही कर सकता है,यही बात मामा के घर मे रहने वाले और पलने वाले बच्चो के लिये जानी जाती है वह हमेशा अपने को असहाय ही समझा करते है।
 

1 comment:

  1. प्रणाम गुरूजी ... अति सुंदर ... राहू और केतु के बारे में ज्योतिषीय कहावतें एक दम सटीक है ... राहू भरमा कर और केतु जिद से आपना प्रभाव बताते हैं ...

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