Thursday, September 6, 2012

ज्योतिषीय कहावतें - भाग एक

प्राचीन काल से ज्योतिषीय कहावते चलती आयी है तब भी उनका वही रूप था जो आज भी है समझदार लोग बजाय किसी कडवी बात को कहने के कहावत से ही काम चला लेते है और कहावते भी ऐसी कि हर कोई समझ भी जाये और बुरा भी नही माने। एक नही हजारो कहावतें समाज मे प्रचिलित है,एक भाषा मे नही है हिन्दी उर्दू फ़ारसी तमिल तेलगू बंगाली अंग्रेजी आदि सभी भाषाओं मे अपने अपने रूप मे यह ज्योतिषीय कहावते कही जाती है और सुनी भी जाती है अर्थ भी लगाया जाता है और कई बार तो एक कहावत कई अर्थ निकालती है,जिसे जैसी समझ होती है वह अपने अनुसार अनुमान लगाता रहता है।
रहिमन पानी राखिये,बिनु पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे मोती मानुष चून ॥
यह कहावत रहीमदास जी ने ज्योतिष के प्रति बखान की है,कुंडली का चौथा भाव पानी का होता है और बिना चौथे भाव की सबलता के जातक की कोई औकात नही होती है। चौथा भाव ही शरीर के पानी की मात्रा से जोडा जाता है और चौथा भाव ही रहने के स्थान और माता मकान आदि से भी जोडा जाता है,इस भाव का स्वामी चन्द्रमा कालपुरुष की कुंडली के अनुसार माना जाता है और इस भाव का स्वामी राशि से जो भी ग्रह होता है वह भी चन्द्रमा के स्वभाव से द्रवित हो जाता है राहु इस भाव मे धर्मी हो जाता है और किसी भी प्रकार की हरकत को नही करता है। शनि का प्रभाव इस भाव में पानी को जमाने जैसा होता है और व्यक्ति की ह्रदय की दशा को फ़्रीज करने के लिये मानसिक भावो को प्रकट नही करने के लिये कहा जाता है,पानी के बिना संसार मे कुछ भी नही है और पानी के जाने से पानी मे प्रकट होने वाला मोती भी नही है और मनुष्य के अन्दर से पानी की मात्रा समाप्त हो जायेगी तो वह भी नही रहेगा चून के दो अर्थ है एक तो आटा जो रोटी के बनाने के काम आता है वह भी नही समेला जायेगा और दूसरा अर्थ चूना से है जो बिना पानी के सूख कर मर जायेगा या आस्तित्वहीन हो जायेगा पानी का ही दूसरा अर्थ इज्जत से अगर व्यक्ति सभ्रांत परिवार मे जन्म लेता है तो उसकी इज्जत सही बनी रहती है और वह अपने कार्य और व्यवहार को सही रखता है इसी प्रकार से अगर वह खराब परिवार मे घर मे जन्म लेता है तो वह अपनी इज्जत आबरू को संभाल कर नही रख पाता है।
कभी घी घणा कभी मुट्ठी भर चना
घी का रूप दूध से बनता है पहले दूध को जमाया जाता है फ़िर दही बनाकर उसे बिलोकर दूध का सार रूप घी को निकाला जाता है.चौथे भाव का रूप दूध से है तो दूध का बदला हुआ रूप नवे भाव से है और नवे भाव का सार घी रूप मे बारहवा भाव है,बारहवा भाव हकीकत मे राहु से जोड कर देखा जाता है और राहु जो अद्रश्य रूप से अपनी शक्ति को रखता है कहने को तो घी तरल पदार्थ है लेकिन वह भोजन मे लेने से शरीर को तन्दुरुस्त बनाता है,चौथे भाव के राहु की नजर पहले तो अष्टम पर भी होती है फ़िर नवी नजर बारहवे भाव पर भी होती है इस भाव का राहु अगर राजी हो गया तो घी ही पैदा करता जाता है और राजी नही है तो वह छठे भाव से कडी मेहनत करवाने के बाद केवल मुट्ठी भर चने खिलाकर ही पेट पालने के लिये अपनी शक्ति को दे पाता है वैसे चना भी शनि के लिये कहा जाता है राहु शनि जब आमने सामने हो जाते है तो दसवे भाव का शनि जातक को कडी मेहनत के बाद भी मेहनत का फ़ल सही नही दे पाता है.
मीन मेख निकालना
कई बार कार्य को करने के बाद कई लोग उस कार्य के अन्दर अपनी अपनी जुगत लगाकर अपनी राय देने के लिये अपनी अपनी योजना को बताते है अगर सभी की राय से उस काम को किया जाता है तो कार्य शुरु भी होता है और बिना किसी फ़ल के समाप्त भी हो जाता है इसे ही मीन मेख निकालने वाली कहावत से जोडा जाता है। इस कहावत को ज्योतिषीय द्रिष्टि से देखा जाये तो मरे हुये को जिन्दा करने के कारको से समझा जा सकता है यानी मीन राशि समाप्ति की राशि है लेकिन मेष राशि जन्म लेने के लिये या शुरु करने के लिये जानी जाती है मेष से शुरु होता है और मीन मे समाप्त हो जाता है। इस बात का अर्थ लोग अपने अपने अनुसार लिया करते है कोई तो किये जाने वाले काम को सही बताता है और कोई उसी काम को बेकार का बताकर समाप्त करने की जुगत को पैदा करने लगता है।
भाग्य विधाता बनना
भाग्य का भाव नवा होता है और भाग्य को बनाने वाला नवे से नवा यानी पंचम होता है. पंचम बुद्धि का कारक है और नवा बुद्धि को उत्तम रूप से बनाने के लिये जाना जाता है जो लोग भाग्य विधाता बनने की कोशिश करते है वे सबसे पहले अपनी बुद्धि को सही रूप से सम्भाल कर चलते है फ़िर जो भी कारक सही रूप मे जातक के लिये पैदा होता है उसे ही जातक को जीवन मे प्रयोग करने के लिये अपनी शिक्षा से प्रेरित करते है एक साधारण आदमी भी अपनी बुद्धि के बल से अपने को आगे बढाता जाता है और एक समर्थ से भी आगे निकल जाता है वही पर जो व्यक्ति समर्थ भी होता है और अपने को किसी प्रकार की बुद्धि से सही रूप से प्रयोग करने के बाद नही चलता है तो वह बनता हुआ काम भी बिगाडने के बाद अपने काम को खराब कर लेता है।
कलम विधाता
कई बार व्यक्ति न्याय आदि के लिये अपनी योग्यता को बनाकर जज जैसे काम करने लगता है वह अपने काम से लोगो के लिये अपनी कलम से भाग्य को लिखने का काम करने लगता है,जब व्यक्ति का बुरा समय आता है तो ग्रह उसे इन्सानी न्याय करने वाले के पास ले जाते है और वह इन्सानी न्याय करने वाला अपने कानून की बदौलत उसे फ़ांसी भी दे सकता है और कभी कभी जो व्यक्ति धर्म और मर्यादा से चला करता है तो उस कलम विधाता की कलम से बना न्याय भी वकील की प्रक्रिया से दूर होकर बाइज्जत बरी हो जाता है।
नौ दिन चले अढाई कोस
शनि की चाल मन्दी कही जाती है वह नौ दिन के अन्दर ढाई अंश की दूरी तय कर पाता है वह मार्गी है तो भी और वक्री है तो भी उल्टा सीधा कैसा भी चलने पर वह केवल ढाई अंश की दूरी को ही तय कर पाता है.पुराने जमाने की ज्योतिष से एक कोश का एक अंश माना जाता है यानी दो मील या तीन किलोमीटर.
दूज का चांद
अमावस्या के बाद का दूसरा दिन दूज का कहलाता है और उस दिन चांद पश्चिम दिशा मे कुछ समय के लिये ही सूर्यास्त के बाद द्रश्य होता है कम दिखाई देने के कारण लोगो के लिये वह द्रश्य करना उत्तम फ़ल देने वाला माना जाता है कई बार तो लोग उन लोगो के लिये भी यह कहावत कहना शुरु कर देते है जो लोग कम दिखाई देते है और उनके लिये कहा जाने लगता है -"अरे भाई ! आजकल तो दूज का चांद हो रहे हो।
चौदहवीं का चांद
पूर्णिमा से पहले दिन चतुर्दशी कहलाती है अमावस्या के एक पहले भी चतुर्दशी होती है एक शुक्ल पक्ष की होती है और एक कृष्ण पक्ष की होती है,चतुर्दशी का चन्द्रमा जो पूर्णिमा के एक दिन पहले होती के लिये कहा जाता है कि वह बहुत ही सुन्दर होता है और स्त्री अथवा बच्चे के मुख जैसा दिखाई देता है,उसी प्रकार से अमावस्या के एक दिन पहले चन्द्रमा सूर्योदय के समय पूर्व दिशा मे उगता है और अच्छा नही माना जाता है यानी इस चतुर्दशी को पैदा होने वाले जातक के लिये कहा जाता है कि इस दिन जातक जो पुरुष या स्त्री जातक होते है उनके पहले कोई स्त्री संतान का जन्म हुआ होता है और वह कुछ घंटे ही जीवित रहकर चली जाती है लेकिन एक धारणा छोड जाती है कि आने वाला जातक अब पुरुष जातक ही होगा।
चौथ का चन्द्रमा
भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की रात का चन्द्रमा देखना बिना किये हुये कार्य का आक्षेप देने वाला होता है अगर कोई भूल से उसे देख लेता है तो वह अपने इस दोष को हटाने के लिये दूसरो के घरो पर पत्थर भी फ़ेंकता है यह चौथ अक्सर पथर चौथ के लिये जानी जाती है और लोग डर की बजह से भी अपने अपने घरो से बाहर नही आते है कि कोई पत्थर उनके कहीं आकर नही लग जाये,कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस चौथ के दिन गाय के खुर मे भरे पानी मे इस चन्द्र्मा का अक्श देख लिया था और उन्हे भी स्यमंतक मणि की चोरी लगी थी।
रात भर पीसना पारे मे बटोरना
दिन के उजाले मे किया जाने वाला काम सुन्दर भी होता है और कार्य करने के समय मे स्फ़ूर्ति भी बनी रहती है लेकिन जो कार्य रात को किया जाता है वह अन्धेरे की बजह से किसी न किसी प्रकार की कमी को छोड जाता है दिखाई नही देने के कारण पुराने जमाने में औरते रात को आटा पीसने की चक्की को चलाया करती थी और उस चक्की से अन्दाज नही लगने के कारण कितना आठा पीसा गया है उसका पता नही चलने के कारण पूरी मेहनत करने के बाद पारे मे यानी कटोरी में पिसा आटा बटोरने के लिये माना जाता था। यह कहावत ज्योतिष के लिये ही कही जाती है कि बिना किसी मुहूर्त के काम शुरु करने का मतलब होता है अन्धेपन मे काम को शुरु करना और जब पूरी मेहनत को करने के बाद भी फ़ल नही मिलता है तो उपरोक्त कहावत ही सामने आती है.

3 comments:

  1. Guru Ji pranam

    Guru ji Mere ek friend ka DOB 17.04.1980 Time : 09:13 PM , Place of Birth : Jamshedpur , kya aap inki Age bata sakte hai or iske dekhne ka tarika please guru ji
    Please Guru ji help

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  2. लक्ष्मन जी दिये गये जन्म समय के अनुसार जातक की कुंडली वृश्चिक लगन की है,लगनेश मन्गल है और मन्गल का स्थान दसवे भाव मे वक्री शनि वक्री गुरु और राहु के साथ है,लगन से गुरु लगनेश से बुध सूर्य लगन से शुक्र मारक का काम करेगा,लेकिन राहु के साथ मंगल की युति होने से मंगल का रूप भी राहु जैसा हो जाता है और गुरु के वक्री होने से और शनि के वक्री होने से राहु का असर गुरु और शनि पर नही जाता है.इस कुंडली मे गुरु बजाय मारने के बचाने का काम करेगा साथ ही बुध खुद ही वक्री गुरु वक्री शनि और राहु मन्गल से अष्टम मे होने से पंचम भाव मे अपनी स्थिति से परेशान है,भाग्येश चन्द्रमा जातक के सप्तम मे है जो छल वाले काम करेगा और विवाह शादी अथवा अलावा सम्बन्धो के कारण चन्द्रमा शुक्र का साथ लेकर चन्द्रमा ही मारक बन जाता है,सूर्य से दूसरे भाव मे होने से और सूर्य का छठे भाव मे होने से हड्डियो के अन्दर से शुक्र वीर्य और चन्दमा पानी की कमी होने से जातक के लिये अलावा सम्बन्ध ही मारक बनेंगे.

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    1. Guru Ji mafi chahunga , inki mritu ho chuki hai 08.09.2012 ko subha 07:52 Am me , but kaise hui or kyun hui mai wo janana chahata hu. please please please help or main ye bhi janana chahatu hu ki kya mukjhe astrology learn karni chahiya ? kya mera future hai isme ?

      Mera DOB : 29.08.1983
      Time : 03:39 AM
      Place : Jamshedpur

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      Lakshman Rao

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