Friday, December 7, 2012

एक कुंडली दैविज्ञ की !

दैविज्ञ का अर्थ होता है देव भाषा को जानने का और उस भाषा का प्रभाव जन सामान्य तक पहुँचाने का। लालकिताब के अनुसार दैविज्ञ की कुंडली का फ़लादेश करना बहुत ही विचित्र रूप से सामने आता है और उस विचित्रता का प्रभाव तब और समझ मे आने लगता है जब लाल किताब के सभी गणित बराबर खरे उतरते जाये। लालकिताब के अनुसार सूर्य तख्त पर विराजमान है,लेकिन उसके सामने कोई भी ग्रह नही है,केवल द्रिष्टि मे शनि चन्द्र है,जो सूर्य को समझने परखने रास्ता चलने के लिये आंख जैसी रोशनी दे रहे है। तख्त पर विराजमान ग्रह सप्तम की मंत्रणा को लेकर चलता है और अष्टम उसकी नजर कहा गया है लेकिन तख्त पर आसीन ग्रह तभी अपना प्रभाव प्रकट करता है जब ग्यारहवे भाव मे कोई ग्रह हो।
"तख्त हजारी तभी पनपता,जब सप्तम देता राय है,
अपनी मंजिल तभी पकडता घर ग्यारह दे पैर तो"
अर्थात लगन मे बैठा ग्रह तभी अपनी मंजिल को पकडता है जब सप्तम की राय साथ मे हो और ग्यारह के पैर उसके पास हों। लेकिन इस कुंडली मे सप्तम और ग्यारह दोनो खाली है इसलिये लग्न के ग्रह का सो जाना सही मायने मे उचित है और वह अपने अनुसार केवल द्रश्य तो होता रहेगा पर अपने अनुसार फ़ल नही दे पायेगा।
लालकिताब के अनुसार दूसरा घर छठे घर को देखता है छठा घर आठवे को देखता है आठवा घर बारहवे को देखता है और बारहवां घर दूसरे घर को देखता है अगर इन घरो मे ग्रह विराजमान है चाहे वे शत्रु हो या मित्र वे अपनी चाल को आजीवन कायम रखते है।
"घर खायेगा बैठ दूसरा छठे का पकड सहारा वो,
अष्टम नैया पर सवार हो द्वार बारहवे जायेगा"
दूसरे घर मे बुध विराजमान है यानी जातक अपनी वाणी अपने कमन्यूकेशन और अपनी प्रकाशित बातो के बल पर वह दैनिक कार्यो और जीवन के प्रति ली जाने वाली भौतिक सहायताओ को प्राप्त करता रहेगा,लेकिन रोजाना के कामो के लिये उसे छठे भाव मे बैठे केतु का सहारा लेना पडेगा,कारण छठा घर नौकरी का भी है तो रोजाना के किये जाने वाले कामो का भी है,इस घर के द्वारा जीवन के प्रति काम तो करना पडेगा केतु नौकरी करवायेगा लेकिन नौकरी भी अपनी नही हो पायेगी नौकरी दूसरो के लिये ही करनी पडेगी यथा-
"केतु छठा हुकुम का कुत्ता दुम बारह से हिलती है,
घर दूजे से पेट भरेगा खतरा आठ का साथ रहे"
छठे घर के केतु के बारे मे कहा गया है कि वह हमेशा दूसरो के लिये ही काम करता रहेगा वह जब तक दूसरो के हुकुम पर काम करता रहेगा उसका पेट दूसरे घर का ग्रह भरता रहेगा लेकिन उसकी मनचाही खुशी तभी मिलेगी जब बारहवे घर के ग्रह उसे देख रहे हों,वह किसी भी प्रकार की रिस्क लेने के लिये आठवे घर के ग्रहों के प्रति हमेशा सतर्क रहेगा।
उपरोक्त कुंडली मे बुध जातक को भोजन देता है लेकिन उसे गुलामी छठे केतु की करनी होगी उसे बारहवे भाव के शुक्र मंगल और राहु अपने अनुसार फ़ल देते रहेंगे और जितना उसे बारहवा भाव दे देगा वह उसी के अनुसार अपनी शक्ति को आठवे घर के चन्द्रमा और शनि के लिये अपनी सतर्कता को परख कर अपने अनुसार कार्य करता रहेगा।
गुरु जो हवा है गुरु जो जीवन का कारक है गुरु के अनुसार ही धन सम्पत्तिको प्राप्त किया जा सकता है लेकिन वैदिक ज्योतिष के अनुसार कोई भी ग्रह गुरु को उल्टी नजर यानी वक्री द्रिष्टि से देखना शुरु कर दे तो गुरु के अन्दर वही गुण आने लगते है जो ग्रह उसे अपनी वक्र द्रिष्टि से देखता हो। कहने के लिये तो गुरु दसवे भाव मे अपने प्रभाव को नीच की हैसियत से प्रदान करेगा लेकिन जब अष्टम मे विराजमान शनि अपनी वक्र द्रिष्टि से देख रहा है तो गुरु अपनी हैसियत को शनि के अनुसार प्रकट करने लगेगा,यानी दसवे घर मे गुरु नीच की हरकतो को त्याग कर उच्च की प्रभावशाली क्रिया को शुरु कर देगा,जैसे एक पंडित के घर मे कसाई आकर निवास करने लगे तो कुछ समय बाद कसाई के अन्दर भी पंडित के गुण अपने आप ही प्रकट होने लगते है उसी प्रकार से वक्री शनि की द्रिष्टि गुरु के अन्दर नीचता को बदल कर उच्चता मे शुरु कर देगा।
"वक्र उच्चता देदेता है जब नीच में जाकर बैठे वो,
वही नीचता देदेता है जब उच्च मे आकर बैठे वो"
यानी कोई भी ग्रह अपनी उच्च राशि मे आकर वक्री हो जाये तो वह नीच का फ़ल प्रदान करने लगेगा और जब वह नीच घर मे जाकर बैठ जाये तो वह उच्चता प्रदान करने लगेगा।
जातक की कुंडली मे शनि वक्री होकर अष्टम मे वैदिक ज्योतिष से अपनी ही राशि मे वक्री हो गया है,इस वक्री शनि के अन्दर तकनीकी मंगल के साथ तकनीकी कमन्यूकेशन की राशि कुम्भ का असर मिल गया है शनि मार्गी मेहनत का मालिक है तो शनि वक्री दिमागी काम करने का मालिक है। चन्द्रमा जो जातक के लिये लगनेश का फ़ल प्रदान करने के लिये अपनी शक्ति दे रहा है तो शनि के साथ मिलकर वह दिमागी रूप से काम करने का मालिक बन जाता है। यह चन्द्रमा अगर सही रूप मे देखा जाये तो लालकिताब के अनुसार कुये का पानी माना जाता है चौथे घर का चन्द्रमा दरिया का पानी होता है तो बारहवे घर का चन्द्रमा आसमानी यानी बारिस का पानी कहा गया है। शनि वक्री दिमागी रूप से काम करने का मालिक है तो कुये का पानी जातक दिमागी रूप से बाहर लाने के लिये अपनी बुद्धि वाली मेहनत से प्रयोग मे लायेगा ही। बुद्धि मे भी मंगल की तकनीक होगी और राशि का कमन्यूकेशन होगा यानी जातक अपने अनुसार कमन्यूकेशन तकनीक मे मास्टर बन जायेगा और गूढ बातो को खोज खोज कर सामने लायेगा।
"आठ मे बैठा शनि चन्द्र कुये से भाप निकलती है,
बर्फ़ पिघलती धीरे धीरे उमर आखिरी फ़ल देता है"
आठवे भाव मे अगर शनि चन्द्र बैठ जाते है तो लम्बी उम्र को भी देते है और दिमागी रूप से सोचने और हर काम मे गहरी सोच सोचने के कारण उसकी सोच उमर के आखिर मे फ़ल देने लगती है। शनि को अगर बर्फ़ मान लिया जाये तो आठवा घर मंगल सुलगते हुये मंगल की धरती के अन्दर की जमीन कहा जा सकता है शनि धीरे धीरे अपने प्रभाव को पानी के रूप मे बदलता है और उम्र के आखिर मे अपने पानी से दूसरे भाव को तर भी करता है साथ ही उसके साथ वाले ग्रह भी वास्तविक रूप मे आजाते है जैसे इस जातक की कुंडली मे चन्द्रमा वक्री शनि के साथ उम्र के आधे भाग तक केवल पानी की भाप के रूप मे ही नजर आता है लेकिन पचासवी साल के बाद वह अपने वास्तविक रूप मे आने के बाद चन्द्र यानी जनता को अपने प्रभाव से तृप्त करने के लिये फ़ल प्रदान करने लगता है।
दक्षिण भारत की ज्योतिष के अनुसार कुंडली के लिये चार भाग बनाये गये है जिनके द्वारा लगन पंचम और नवम भाव को धर्म से जोडा गया है दूसरे छठे और दसवे भाव को अर्थ से जोडा गया है तीसरे सातवे और ग्यारहवे भाव को काम से जोडा गया है और चौथे आठवे और बारहवे भाव को मोक्ष से जोडा गया है इस प्रकार से कुंडली का रूप धर्म अर्थ काम और मोक्ष रूपी चारो पुरुषार्थो के द्वारा सुसज्जित किया गया है। जातक की कुंडली के अनुसार सूर्य शरीर विद्या से पूर्ण है पंचम भी सूर्य की सीमा मे है और नवम भी सूर्य की सीमा मे है,लगन को अन्य किसी भी ग्रह ने अपनी द्रिष्टि से नही नवाजा है। सूर्य अकेला है,यानी जातक की स्थिति अपने परिवार मे अकेली है,वह किसी भी कारण से अपने पिछले परिवार से जुडा नही है,उसके लिये जो सामने आने वाले ग्रह है वह केवल बुध है बुध बहिन और बेटी से सम्बन्धित है,जातक के छ: बहिने है जिसमें पांच की उपस्थिति है लेकिन एक का सीमांकन केतु के द्वारा खाली किया गया है,यह भौतिक परिवार से ही संबन्ध रखता है,जिसे दूसरे भाव से छठे भाव से और दसवे भाव से जोड कर देखा गया है,यानी माया से जुडा परिवार जब तक माया रूपी जगत व्यवहार चलता रहेगा जातक के सामने बुध अपनी स्थिति को प्रदर्शित करता रहेगा जैसे ही माया का परिवार सामने से दूर होगा बुध अपनी स्थिति को दूर कर लेगा। इसके अलावा गुरु जो इस माया के परिवार से जुडा है केवल जातक के द्वारा शादी विवाह लेन देन तक ही सीमित है उसके अलावा अगर जातक को कोई कष्ट आता है तो उस समय बाहरी लोग ही उसकी सहायता मे आयेंगे घर के सदस्य उसके पास केवल अन्तिम संस्कार के समय ही उपस्थिति हो सकते है। बुध केवल मौत के घर को ही देख रहा है।
आधुनिक ज्योतिष से अगर जातक की कुंडली को देखा जाये तो गुरु के साथ बुध यूरेनस प्लूटो नेपच्यून और केतु जुडे है जो अर्थ क्षेत्र की मीमांशा करते है। गुरु पर असर वक्री शनि का है केतु का भी है,लेकिन गुरु अपनी शक्ति बारहवे भाव मे बैठे शुक्र मंगल और राहु को प्रदान कर रहा है। चार आठ और बारह के ग्रह हमेशा अपनी औकात के अनुसार एक प्रकार की चाहत रखते है जो जातक के अन्दर पैदा होती रहती है और उस चाहत के लिये वह आजीवन अपनी जद्दोजहद को कायम रखता है,जब तक उसे चार आठ और बारह की चाहत नही प्राप्त हो जाती है जातक अपनी क्रियाओं को जारी रखता है।
यूरेनस को कमन्यूकेशन का ग्रह माना जाता है और आज के जमाने मे कमन्यूकेशन के मामले मे कम्पयूटर मोबाइल और नये नये कमन्यूकेशन के तरीके भी माने गये है। प्लूटो को बिजली से चलने वाली मशीन के रूप मे माना जाता है,नेपच्यून को भाव के अनुसार आत्मीय सम्बन्ध से जोडा जाता है। बुध यूरेनस का प्रभाव अगर सही रूप से देखा जाये तो वह ज्योतिष शिक्षा कानून आदि के लिये माना जा सकता है जातक के पास लोगो के लिये बताने और ज्योतिष आदि के सोफ़्टवेयर आदि के प्रोग्राम करने उसे सम्भालने समझने लोगो को प्राथमिक रूप से शिक्षा के रूप मे बताने के लिये भी समझा जा सकता है उसी जगह पर प्लूटो के साथ आजाने से जातक ज्योतिष आदि को समझाने के लिये मशीनी प्रयोग जैसे कम्पयूटर आदि को सामने लाने और उसे चलाने तथा संधारण करने आदि के गुणो से प्राथमिक रूप से योग्य माना जा सकता है। कुंडली का पंचम प्राथमिक सप्तम इन्टरमीडियेट और नवम उच्च शिक्षा के लिये माना जाता है जिसे कालेज शिक्षा भी कहते है लेकिन दूसरा भाव हमेशा अलावा प्राप्त उपाधियों के लिये भी माना गया है,जैसे डिग्री डिप्लोमा आदि।
पंचम का मालिक मंगल है मंगल का स्थान बारहवे भाव मे है,शुक्र और राहु साथ मे है,जातक की प्राथमिक शिक्षा का क्षेत्र ननिहाल से जुडा है,इन्टरमीडियेट शिक्षा के लिये सप्तम को देखने पर उसका मालिक शनि है शनि का स्थान अष्टम में चन्द्रमा शनि वक्री के साथ है यानी जातक की इन्टरमीडियेट की शिक्षा का स्थान बदला है,वह एक से अधिक स्थानो पर अपनी शिक्षा के लिये गया है। नवम का मालिक गुरु है गुरु का स्थान दसवे भाव मे जातक की उच्च शिक्षा कार्य करने के समय मे प्राप्त की जानी मानी जाती है जो किसी कालेज या शिक्षा स्थान मे जाने से नही हुयी है,वह कार्य करने के दौरान ही मानी जाती है। कार्य और शिक्षा का रूप प्रदान करने के लिये गुरु का साथ आजाने से है गुरु पर शनि वक्री अपना असर प्रदान कर रहा है यानी जातक की शादी के बाद ही जातक अपने आगे के शिक्षा वाले प्रभाव को प्राप्त कर पाया है। लेकिन उच्च शिक्षा के प्रभाव को जातक पूरा नही कर पाया है शिक्षा का आधा रहना गुरु पर शनि वक्री की नजर ने अपना असर प्रदान किया है और रहने के साथ साथ बार बार स्थान बदलने का प्रभाव भी जातक पर रहा है।
"शनि चन्द्र की युति मिल जाती,मन भटकता रहता है,
रहना करना रहे बदलता स्थाई शनि के बाद में"
जातक की कुंडली मे शनि की चन्द्रमा से युति मिल गयी है उसका मन बार बार बदलता रहता है एक काम को करने और एक स्थान पर रहने की गुंजायश जातक के अन्दर नही है वह बार बार अपने रहने वाले स्थान को भी बदलता है और कार्य करने के स्थान को भी बदलने मे अपनी रुचि को रखता है। गुरु से शनि की युति रखने के कारण धर्म और विज्ञान के साथ सम्बन्धो को भी साथ लेकर चलता है,एक आचार्य जैसे काम भी करने का मानस रहता है और करता भी है,गुरु की नजर शुक्र पर रहने के कारण प्रदर्शन करने और तकनीकी कारण को भी प्राप्त करता है और इन्जीनियरिंग के प्रति रुझान भी रहता है। इंजीनियर की डिग्री भी प्राप्त करता है,लेकिन मास्टर डिग्री नही मिल पाती है। गुरु मे शनि का असर मिलने के बाद राहु से युति होने के बाद जातक के पास कम्पयूटर से सम्बन्धित जानकारी और इसी प्रकार से ज्योतिष विषय मे कई प्रकार की विधाओं वाली विद्याये जातक को प्राप्त होती रहती है। आई टी के क्षेत्र मे भी जातक का नाम होता है। लेकिन रुझान के लिये जातक का दिमाग पराविज्ञान और ज्योतिष आदि की तरफ़ अधिक जाता है उसका कारण केवल शुक्र राहु और मंगल की तकनीकी प्रभाव ही माना जाता है। यह प्रभाव जातक को विभिन क्षेत्रो मे प्रदर्शित भी करता है और समाचार पत्रो पत्रिकाओं इन्टरनेट आदि पर जातक की छवि भी प्रदर्शित होती रहती है।
"गुरु की गद्दी घर दसवे से पचपन साला होती है,
पैंतीस पर शनि चुप हो जाता दौर दूसरा चलता है"
गुरु अगर दसवे भाव मे है तो जातक को गुरु की गद्दी पचपन साल के बाद ही मिलती है,इसके पहले शनि जो मकान दुकान कार्य आदि का मालिक है चुप हो जाता है इस चुप रहने के समय में-
"शनि के साथ नही देने पर राहु केतु देते साथ,
राहु भ्रम से केतु खाली दर दर की ठोकर देता है"
जब शनि साथ नही देता है तो राहु केतु जो शनि के चेले है उन्हे साथ मे कर देता है और राहु केवल भ्रम के जीवन मे जीने के लिये तथा केतु से जो भी कमाया जाता है वह केवल खालीपन ही पैदा करता है .
"नौ कमावे तेरह भूखा,बुध का बरतन खाली है,
सुबह शाम की चिन्ता रोके काम जो बनने वाला हो"
शनि के साथ नही देने पर बुध भी चुप जाता है और बुध जो बर्तन के रूप मे है खाली रहने लगता है,कितना ही कमाया जाये शनि की अनुपस्थिति से स्थिर ठिकाना नही मिल पाता है और नौ कमाने के बाद तेरह की भूख बनी रहती है,कोई काम अगर सोच कर करने की क्रिया को भी शुरु किया जाये तो राहु अपनी चिन्ता को देकर काम को भी पूरा नही होने देता है।

1 comment:

  1. गुरुदेव सादर चरण स्पर्श
    गुरुदेव की जय हो............

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