Friday, February 1, 2013

गुरु मंगल की युति बनाम तारा शक्ति

माता तारा की शक्ति के लिये गुरु मंगल का होना जरूरी है राशि का असर भी इस शक्ति को विस्तृत करने का एक प्रमुख कारण माना जा सकता है। गुरु मंगल को जितने ग्रह अपने असर मे लेते है उसी प्रकार की शक्ति माता तारा से प्राप्त की जा सकती है।
माता तारा का रूप उस समय की स्थिति को दर्शाता है जब भगवान शिव ने समुद्र से निकले हलाहल को पिया था और उस हलाहल जहर की गर्मी से उन्हे मूर्छता आ गयी थी,उस समय आदि शक्ति माता तारा ने जो शमशान की शक्ति की रूप मे जानी जाती है ने अपने क्षीर को भगवान शिव को पुत्रवत गोद मे लेकर पिलाया था और उनकी हलाहल की जलन को दूर करने के लिये अपने अमृत स्वरूप ममत्व को प्रदान किया था,भगवान शिव को उस समय से एक अनौखी शांति जो भय और बन्धन से दूर थी मिली थी।
गुरु को जीव माना जाता है और मंगल को तपती हुयी बिना लौ की अग्नि। दोनो के आपसी सम्बन्ध से जीव के अन्दर एक तपिस जो जीवन पर्यन्त चलती रहती है वह जीव को बारहवे भाव के कारणो के प्राप्त नही होने के कारण जलाती रहती है। कहा भी जाता है कि अन्त गति सो मति,जीव अपनी अन्त समय की गति को प्राप्त करने के लिये अपने जीवन भर अपने अन्दर की तपिस को साक्षात रूप मे प्रदर्शित करने के लिये चलता रहता है दुनिया समाज परिवार आदि से अपनी इस जलन की स्थिति को मिटाने के लिये अपने कार्यों चाहे वह मनसा हो वाचा हो या कर्मणा हो को सामने लाता रहता है,लेकिन गुरु मंगल की युति बारहवे भाव मे होने पर उसकी हालत वही होती है जो एक चिता की शमशान मे सुलगने के समय होती है जीव के मरने के बाद उसके शरीर मे पनपने वाले कीडों की गर्मी से होती है या फ़िर जमीन मे दफ़नाने के बाद मिट्टी की गर्मी से शरीर के तत्वो की समाप्ति और शरीर का शिवमय होना भी इस बात को प्रकट करता है।
जीव की गति का प्रादुर्भाव तभी मान्य होता है जब जीव के अन्दर खून की गर्मी होती है और जीव का खून जितना गर्म होता है उतना ही उसे शक्ति से पूर्ण माना जाता है,लेकिन किसी प्रकार की जैविक जलन भी जीव को अत्यन्त गर्म तब बना देती है जब उसके अन्दर जीव के प्रति किसी प्रकार का मानसिक प्रभाव प्रतिस्पर्धा या किसी प्रकार का शारीरिक बल अपना असर देकर अहम की शक्ति को पैदा कर रहा हो इस जलन को जीव अपनी गति के अनुसार कार्य को करता है।
माता तारा की शक्ति को प्राप्त करने के

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