Tuesday, February 19, 2013

पिता पुत्र की विमुखता

दादा से पिता पिता से पुत्र और पुत्र से पौत्र की श्रेणी को वंश वृक्ष कहा जाता है। पिता से जब पुत्र रूप मे नयी शाखा की उत्पत्ति होती है तो पिता का ही रूप सामने आना माना जाता है। गुण दोष खून का प्रभाव पूर्व मे किये गये कर्मो का हिसाब पुत्र के रूप मे ही मिलता है जो गल्तियां जीवन मे की जाती है उनके दुष्परिणाम पुत्र के द्वारा ही प्रस्तुत किये जाते है और पुत्र के द्वारा जो गल्तियां की जाती है वह पौत्र के रूप मे पुत्र के सामने आती है। पिता जब अपने पिता की मर्यादा को रखने मे अपनी रुचि रखता है तो जाहिर है कि पुत्र भी अपने पिता की मर्यादा को कायम रखने के लिये अपनी सीमा को मर्यादा के अन्दर ही रखेगा और पिता जब अपने पिता की मर्यादा को भूल कर निरंकुश हो जायेगा तो पुत्र भी अपने पिता की मर्यादा को भूल कर निरंकुश हो जायेगा । इस निरंकुश प्रभाव के कारण ही पिता पुत्र की आपसी सम्बन्धो और पारिवारिक मर्यादा को भूलने का प्रभाव सामने आकर परिवारो का बिखराव होना शुरु हो जाता है और एक समय ऐसा भी आता है जब पिता के लिये पुत्र दुश्मन के रूप मे सामने आने लगता है और कभी कभी तो बहुत बडी अनहोनी तक पुत्र के आपसी सम्बन्धो के कारण होने लगती है।
कुंडली मे गुरु को सम्बन्धो का कारक भी कहा जाता है और परिवार के प्रति समाज के प्रति और अपने शरीर से सम्बन्धित रिस्तेदारो के प्रति अपनी रिस्ते वाली भावना को कायम रखने के लिये मानसिक रूप से तथा परिवार समाज आदि के लिये बनाये गये नियम कानून के अन्दर चलने की गति को प्रस्तुत करने का कारण बनता है। लेकिन यह तभी सही माना जाता है जब गुरु का स्थान कुंडली मे केन्द्र त्रिकोण आदि को प्रभावित करता हो और गुरु पर किसी भी खराब ग्रह राशि और भाव का असर नही हो रहा हो। गोचर के समय भी गुरु का प्रभाव रिस्तो पर जरूर पडता है लेकि गोचर के समाप्त होने के बाद रिस्तो के अन्दर फ़िर से मजबूती आने लगती है और रिस्ते उसी प्रकार से चलने लगते है जैसे पूर्व मे थे और अक्सर रिस्ते के खराब होने के बाद भी कई बार देखा जाता है कि रिस्तो मे और अधिक मजबूती तथा सामजस्य इसलिये और बनने लगता है क्यों कि पहले घटी घटनाओ के कारण पिता पुत्र मे एक प्रकार का डर भी पैदा हो जाता है कि पहले की गयी गल्ती के कारण रिस्ता टूटा था और वही गल्ती दुबारा नही हो जाये जो रिस्ते के अन्दर दरार पैदा हो जाये।
शुक्र को रिस्ता बरबाद करने के लिये माना जाता है और लालकिताब के अनुसार भी शुक्र कभी भी अपनी गल्ती को अपने ऊपर स्वीकार नही करता है वह अपनी गल्ती को बुध पर डालता है बुध उस गल्ती को सीधा चन्द्रमा पर डालता है लेकिन इस प्रकार की एक दूसरे की गल्ती को एक दूसरे पर डालने के कारण या तो गुरु आहत होता है या सूर्य आहत हो जाता है दोनो के आहत होने का असर सीधा सा चन्द्रमा पर पहले दिखाई देने लगता है यानी मन का बदलाव और मन के अन्दर के प्रकार की वह सीमा रेखा बनने लगना जो पहले से बनने वाले रिस्तो के अन्दर नफ़रत या इसी प्रकार की सोच का पैदा हो जाना।
शुक्र को स्त्री के रूप मे माना जाता है पिता पुत्र का खून तो एक दूसरे को आकर्षित करता है लेकिन शुक्र उस आकर्षण को दूर करने के लिये अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना शुरु कर देता है। जैसे गुरु जो समाज परिवार व्यक्ति की मर्यादा को कायम रखने के लिये अपने अनुसार कानूनी और मानसिक लगाव को प्रभावित करता है तो शुक्र उस प्रभाव को भौतिक कारणो से सामने करने के बाद अचानक बदलाव देने के लिये अपनी शक्ति को प्रसारित करने लगता है।
शुक्र को ही स्त्री रूप मे जीवन संगिनी के रूप मे  माना जाता है और शुक्र का पहला रूप बुध के रूप मे दूसरा रूप चन्द्रमा के रूप मे मिलता है। बुध का रूप स्त्री के पिता के घर मे और चन्द्रमा का रूप पुत्र के सानिध्य मे प्राप्त होता है लेकिन स्त्री का स्तर शनि की छाया पडने पर कुटिलता की तरफ़ राहु की छाया पडने पर दुश्चरित्रता की तरफ़ केतु की छाया पडने पर अपने को केवल सहायिका के रूप मे तथा मंगल की छाया पडने पर कर्कशा के रूप मे सूर्य की छाया पडने पर अहम की सीमा से बाहर नही आने के रूप मे मानी जाती है। अगर पिता की कुंडली में शुक्र पर शनि की छाया है तो जाहिर है कि माता का रूप कुटिलता की तरफ़ जायेगा,पुत्र की कुंडली में शुक्र पर शनि की छाया है तो पुत्र वधू के अन्दर भी कुटिलता की तरफ़ जाना निश्चित है। वही पर अगर बुध के ऊपर शनि की छाया है तो स्त्री के पिता के घर पर कुटिलता से जाने से कोई नही रोक सकता है,चन्द्रमा पर शनि की छाया है तो पुत्र के पैदा होने के बाद जब स्त्री का रूप माता के रूप मे होगा तो कुटिल बनने से नही रोका जा सकता है। कई बार देखा जाता है कि बुध जब राहु से ग्रसित होता है तो पिता के घर मे रहने पर पुत्री का दिमाग दुश्चरित्रता की तरफ़ जाता है लेकिन विवाह होने के बाद उसका रूप अचानक बदल जाता है इसी प्रकार से शुक्र पर राहु की छाया होने से पत्नी पर दुश्चरित्रता का असर देखने को मिलता है वही रूप जब चन्द्रमा के ऊपर होता है तो माता के प्रति भी इसी धारणा को कायम होने का रूप देखा जा सकता है। यह रूप आने पर जब प्रमाण मिलने लगते है तो इन ग्रहो का उपाय करने से मिलने वाले प्रभावो मे कमी भी आने लगती है और कभी कभी लम्बे समय तक उपाय करते रहने से जो प्रभाव मिलते है वह प्रकृति के अनुसार बदलने भी लगते है।
अक्सर प्रश्न यह पैदा होते है कि क्या स्त्री के प्रति मिलने वाली धारणा या पिता के साथ या पुत्र के साथ मिलने वाली इस प्रकार की धारणा पूर्व जन्म के बाद ही देखने को मिलती है या फ़िर किसी प्रकार के पूर्व मे किये गये कर्मो के अनुसार इस प्रकार की युति जीवन मे देखने को मिलती है ? ज्योतिष से इस प्रकार के प्रश्नो के उत्तर मिल जाते है। जैसे जातक की कुंडली मे शुक्र के साथ राहु विराजमान है तो यह जरूरी है कि जातक के दादा के साथ किसी न किसी प्रकार से दुश्चरित्र स्त्री का साथ रहा है या दादा ने शुक्र जो सम्पत्ति के रूप मे भी माना जाता है वह अवैधानिक रूप से प्राप्त करने की कोशिश की है या फ़िर दादा के द्वारा उन कारको को किया गया है जो मर्यादा के विपरीत माने जाते है। जब केतु का साथ शुक्र के साथ मिलता है तो जातक के नाना परिवार से इस बाद की पुष्टि देखने को मिलती है। शनि का साथ जब शुक्र के साथ होता है तो जातक के किये गये पूर्व के कर्मो से इस प्रकार का योग देखने को मिलता है यही नही जातक के रहने वाले स्थान तथा रहने वाले माहौल को भी शनि शुक्र की युति नीच प्रकृति का रूप देने के लिये अपने सहयोग को देती है। यही कारण शुक्र के साथ मंगल के रूप मे भी देखा जाता है कि जब भी जातक अपने जीवन साथी से मिलता है तो उसके खून के अन्दर शुक्र का प्रभाव आवेग के साथ जुडने लगता है और वही शुक्र उत्तेजित होकर या तो झल्लाहट का रूप प्रस्तुत करने लगता है या फ़िर माथा फ़ोडने वाली बात सामने आने लगती है। बुध के साथ होने से गाली गलौज या कटु बात कहने से चन्द्रमा एक साथ होने से हर प्रकार की सोच मे उत्तेजना के साथ प्रकट होना भी देखा जाता है।
पिता पुत्र की आपसी युति को तोडने के लिये शनि को भी जिम्मेदार माना जाता है इस कारण मे सूर्य शनि की युति को देखा जाता है यह युति गोचर से भी होती है और जीवन मे जन्म लेने के समय के ग्रहो मे भी देखी जाती है जब यह युति जन्म से ही होती है तो जातक के खुद के विचार बनने के बाद भी पिता पुत्र की आपसी सहयोगी नीति नही मिलती है अन्यथा यह भी देखा जाता है कि पिता का साया पुत्र से दूर होने के कारण भी बनने लगते है इस प्रकार के कारणो मे अक्सर या तो काम धन्धे की बात भी होती है और कभी कभी शुक्र के सामने आने से पुत्र की शादी के बाद आने वाली पुत्र वधू के व्यवहार से भी देखने को मिलती है। इस युति मे पिता के सामने पुत्र की हैसियत नही बन पाती है और वह अपने पिता के आपसी विचारो से भी सहमत नही हो पाता है। यह जरूरी नही है कि परिवार मे पुत्र और पिता की युति को केवल शनि राहु मन्गल सूर्य केतु ही दूर करने मे अपना असर प्रदान कर रहे हो,बल्कि यह भी देखा जाता है कि अगर कुंडली मे मंगल और शनि की युति है तो छोटे और बडे भाई की आपसी सहयोग की नीति मे भी एक प्रकार की कसाई वाली नीति पैदा होती है और इस नीति के कारण भी सूर्य आहत होता है चन्द्रमा पर असर या तो होता नही है या फ़िर शनि या बडे भाई के सामने माता कुछ कह नही पाती है और उसे कुछ कहना भी होता है तो छोटे पुत्र पर कोई न कोई लांछन लगाकर उसे नीचा दिखाने की कोशिश होती है इस काम मे राहु और शुक्र भी अपना अपना असर देते है।

No comments:

Post a Comment