जिद के कई शाब्दिक रूप है। इसे हठ करना भी कहते है किसी बात पर मचलना भी कहते है अपनी मानसिक रूप से सोची गयी क्रिया को फ़लित कर उसे प्राप्त करने की गति को भी कहते है। बच्चो के अलावा बडों की भी जिद देखी गयी है जो वे अपने अनुसार अपने ही भाव मे रहकर उसे पूरा करने की कोशिश करने के लिये अपने जीवन को भी दाव पर लगा देते है। कुंडली का चौथा भाव मानसिक गति का होता है और दूसरा भाव उस गति को लाभान्वित करने के लिये देखा जाता है। मानसिक गति को सोचने के बाद की प्राप्त करने की क्रिया को पंचम से देखा जाता है यानी जो सोचा जाये उसे प्राप्त कर लिया जाये। मानसिक गति को प्राप्त करने के लिये जो भी क्रिया करनी पडती है वह कुंडली के लगन भाव से देखा जाता है या चन्द्रमा के स्थापित स्थान से दसवे भाव के अनुसार समझा जाता है चन्द्रमा पर पडने वाले प्रभाव के साथ साथ चौथे भाव के स्वामी की गति को भी देखा जाता है और चौथे भाव का मालिक अगर चन्द्रमा का शत्रु है या चन्द्रमा से किसी प्रकार से गोचर से शत्रुता रख रहा है या त्रिक भाव से अपनी क्रिया को प्रदर्शित कर रहा है तो वह क्रिया भी प्रयास करने या प्रयास के दौरान अपनी प्रयोग की जाने वाली शक्ति को समझने के लिये मानी जा सकती है।
बुद्धि और सोच को एकात्मक करने की क्रिया मे अगर बल की कमी है,बल बुद्धि और सोच मे किसी प्रकार का भ्रम है,बुद्धि बल और सोच मे कोई न कोई नकारात्मक प्रभाव है तो क्रिया पूर्ण नही हो पायेगी। जब कोई भी क्रिया पूरी नही हो पाती है तो बुद्धि पर बल पर और सोच पर इन तीनो के प्रभाव मे एक प्रकार से जल्दी से प्राप्त करने की कोशिश शुरु हो जायेगी और जब अक्समात उस शक्ति को प्राप्त करने की क्रिया होगी तो यह जरूरी है कि उसके लिये पूर्ण रूप से बुद्धि बल शरीर बल और सोचने की शक्ति के बल मे से किसी पर भी या तीनो पर ही केन्द्र बन जायेगा और उस केन्द्र से अगर किसी प्रकार की बाहरी अलावा कारण को उपस्थिति किया जायेगा तो मानसिक क्रिया एक प्रकार से उद्वेग मे चली जायेगी परिणाम में वाणी व्यवहार और कार्य के अन्दर एक झल्लाहट का प्रभाव सामने आने लगेगा। यही झल्लाहट का भाव जिद के रूप मे सामने आने लगेगा।
कुंडली मे बुद्धि का कारक बुध है बल का कारक मंगल है और सोच का कारक चन्द्रमा है। बुद्धि के लिये पंचम भाव को सोच के लिये चौथे भाव को और शरीर के बल के लिये पहले भाव को देखना होता है इनके स्वामी और स्वामी की स्थिति के अनुसार ही परखना होता है कि बुद्धि बल शरीर बल और सोचने के बल के अन्दर कितनी दूरी है और कितने समय के बाद इनकी आपसी युति मे समावेश लाया जा सकता है और समावेश लाने के समय मे राहु का कनफ़्यूजन और केतु का खालीपन गुरु का सभी बलो मे भाव और राशि के अनुसार दिया जाने वाला बुद्धि का का प्रभाव सूर्य के द्वारा खुद के द्वारा ही कार्य को पूर्ण करने का अहम शुक्र के द्वारा दूसरो को दिखाने के लिये प्रयोग किये जाने वाले सृजन वाले कारण शनि के द्वारा उस कारक के प्रति किये जाने वाले मेहनत और साधनो के अभाव मे भी कार्य का जारी रखना आदि बाते देखने के बाद ही तीनो प्रकार के कारको को समझा जा सकता है।
जिद करना अपनी बात को साम दाम दण्ड भेद की नीति से पूर्ण करना होता है। साम शरीर की क्रिया के द्वारा दाम धन और भौतिक कारको के अलावा सेवा आदि की नीति से पूर्ण करना दण्ड अपने सहयोगी की सहायता से बोलचाल और लोभ आदि के द्वारा भेद की नीति मन मे भेद पैदा करने से जोखिम का भय दिखा कर या सन्तुष्टि का मार्ग बताने के बाद अपनी जिद को पूरा करने के लिये माना जाता है। यह चारो प्रकार ही चार पुरुषार्थ के प्रति अपनी भावना को रखते है। यही कुंडली के चारो वर्ग जो लगन पंचम और नवम से धर्म दूसरे छठे और दसवे से अर्थ तीसरे सप्तम और ग्यारहवे से काम चौथे आठवे और बारहवे भाव से मोक्ष के प्रति समझे जा सकते है।
किसी भी अन्य जानकारी के लिये astrobhadauria@gmail.com से सम्पर्क करे.
बुद्धि और सोच को एकात्मक करने की क्रिया मे अगर बल की कमी है,बल बुद्धि और सोच मे किसी प्रकार का भ्रम है,बुद्धि बल और सोच मे कोई न कोई नकारात्मक प्रभाव है तो क्रिया पूर्ण नही हो पायेगी। जब कोई भी क्रिया पूरी नही हो पाती है तो बुद्धि पर बल पर और सोच पर इन तीनो के प्रभाव मे एक प्रकार से जल्दी से प्राप्त करने की कोशिश शुरु हो जायेगी और जब अक्समात उस शक्ति को प्राप्त करने की क्रिया होगी तो यह जरूरी है कि उसके लिये पूर्ण रूप से बुद्धि बल शरीर बल और सोचने की शक्ति के बल मे से किसी पर भी या तीनो पर ही केन्द्र बन जायेगा और उस केन्द्र से अगर किसी प्रकार की बाहरी अलावा कारण को उपस्थिति किया जायेगा तो मानसिक क्रिया एक प्रकार से उद्वेग मे चली जायेगी परिणाम में वाणी व्यवहार और कार्य के अन्दर एक झल्लाहट का प्रभाव सामने आने लगेगा। यही झल्लाहट का भाव जिद के रूप मे सामने आने लगेगा।
कुंडली मे बुद्धि का कारक बुध है बल का कारक मंगल है और सोच का कारक चन्द्रमा है। बुद्धि के लिये पंचम भाव को सोच के लिये चौथे भाव को और शरीर के बल के लिये पहले भाव को देखना होता है इनके स्वामी और स्वामी की स्थिति के अनुसार ही परखना होता है कि बुद्धि बल शरीर बल और सोचने के बल के अन्दर कितनी दूरी है और कितने समय के बाद इनकी आपसी युति मे समावेश लाया जा सकता है और समावेश लाने के समय मे राहु का कनफ़्यूजन और केतु का खालीपन गुरु का सभी बलो मे भाव और राशि के अनुसार दिया जाने वाला बुद्धि का का प्रभाव सूर्य के द्वारा खुद के द्वारा ही कार्य को पूर्ण करने का अहम शुक्र के द्वारा दूसरो को दिखाने के लिये प्रयोग किये जाने वाले सृजन वाले कारण शनि के द्वारा उस कारक के प्रति किये जाने वाले मेहनत और साधनो के अभाव मे भी कार्य का जारी रखना आदि बाते देखने के बाद ही तीनो प्रकार के कारको को समझा जा सकता है।
जिद करना अपनी बात को साम दाम दण्ड भेद की नीति से पूर्ण करना होता है। साम शरीर की क्रिया के द्वारा दाम धन और भौतिक कारको के अलावा सेवा आदि की नीति से पूर्ण करना दण्ड अपने सहयोगी की सहायता से बोलचाल और लोभ आदि के द्वारा भेद की नीति मन मे भेद पैदा करने से जोखिम का भय दिखा कर या सन्तुष्टि का मार्ग बताने के बाद अपनी जिद को पूरा करने के लिये माना जाता है। यह चारो प्रकार ही चार पुरुषार्थ के प्रति अपनी भावना को रखते है। यही कुंडली के चारो वर्ग जो लगन पंचम और नवम से धर्म दूसरे छठे और दसवे से अर्थ तीसरे सप्तम और ग्यारहवे से काम चौथे आठवे और बारहवे भाव से मोक्ष के प्रति समझे जा सकते है।
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गुरुदेव ,चौथा भाव मानसिक गति के लिए और चन्द्रमा सोच के लिए माना जाता है यह सत्य है.प्राप्ती कर देनेवाला दूसरा भाव है.अगर चौथे भाव मे उच्च का शुक्र हो और चन्द्रमा शुक्र की राशि मे हो तो सांसारिक मानसिक गति को बदलने के लिए जो की अधोगामी है और उसको उर्ध्वगामी करना है याने की ३,७,११ से होते हुए ४,८,१२ तक पहुँचाना है और वह भी १,५,९ से तय करना होता है ,तो कैसे करे ???????
ReplyDeleteप्रिय कैलाश
Deleteयह मानसिक गति है और इसे तीन से चार तक पहुंचाने के लिये तीन का भाव जो भावुकता के साथ प्रदर्शन करने से होता है वह भाव भावनाओ को समझने से सात की गति को आठ मे पहुंचाने के लिये सम्बन्धो को शुरु करने से पहले सम्बन्धो के परिणाम को समझना ग्यारह से बारह मे पहुंचाने के लिये मानसिक गति को बजाय हर समय लाभ के सोचने के उसे पराशक्ति के सहारे छोडना सही है। उदाहरण के लिये अगर शुक्र के साथ चन्द्रमा का सम्बन्ध एक बारह का है और वह भी तीन चार मे है तो शुक्र के प्रति चन्द्रमा सोच हमेशा यात्रा आदि के कारको सम्बन्धो मे स्त्री जातको की भावनाओ को देखने मानसिकता मे उन्ही बातो को कहने जो भावना से पूर्ण हो से शुक्र को चन्द्रमा से जोडना बेहतर होगा,इसके लिये जो भी भौतिक सम्पत्तियों में घर मकान जमीन वाहन आदि है उनके लिये व्यवहारिकता मे सोचना और उन पर व्यवहारिकता से अमल करना किसी की भावना को देखकर उसकी सहायता करने से पहले उस भावना को अपनी हैसियत आदि से परखना बजाय रूप के प्रति ध्यान भटकाने के उस रूप को समझकर उसके प्रति प्रतिक्रिया को व्यक्त करना सही होगा.आदि बातो से गति को बदला जा सकता है.इसे अगर तंत्र के रूप मे देखा जाये तो शुक्र चौथे भाव का रहने का भवन है और उस भवन की बाहरी साज सज्जा जो उच्च का होने के कारण ऊपरी और सबसे नीचे की सज्जा को बनाने मे ध्यान जाता है साथ ही चन्द्रमा के बुध के घर मे होने से और उच्च के शुक्र से बारहवे भाव मे होने से आवरण में हरे सफ़ेद रंग का मिश्रण पैदा हो जाता है,लेकिन उसी प्रकार को अगर बीच के कारको मे पैदा कर दिया जाये और मकान आदि के बाहरी आवरण को अन्दर के आवरण मे स्थापित कर दिया जाये तो उस स्थान की मजबूती और लोगो के लिये मानसिक शांति का कारक बन जायेगा.