प्रस्तुत कुंडली मेष लगन की है और मेष ही राशि है,लगनेश और चन्द्र लगनेश मंगल है। मंगल का स्थान कार्येश और लाभेश शनि के साथ है। लगनेश अपनी शक्ति को छठे भाव मे दे रहे है जो त्रिक भाव की श्रेणी मे आता है और कर्जा दुश्मनी बीमारी आदि के क्षेत्र से अपना सम्बन्ध रखने के बाद जीवन मे की जाने वाली या प्राप्त की जाने वाली सेवाओं के प्रति अपनी भावना रखता है। वैसे तो शनि मंगल राहु केतु सभी क्रूर और खराब ग्रह त्रिक भाव मे जाकर अपना असर कम कर देते है,लेकिन जब कोई क्रूर ग्रह या खराब ग्रह त्रिक भाव मे जाकर वक्री हो जाता है तो दिक्कत का कारण जीवन मे अपने उदय अस्त वक्री और मार्गी के समय मे कर देता है। प्रत्येक भाव के आमने सामने के ग्रह और भाव हमेशा जातक के जीवन मे अपनी प्रतिस्पर्धा और विरोधी भावना को प्रकट करते है चाहे वह कितना ही सौम्य ग्रह क्यों नही हो लेकिन अपनी बात आते ही औकात को प्रकट करने से नही चूकता है,वह जीवन साथी के रूप मे पत्नी या पति माता पिता के रूप में हो पुत्र और पुत्रवधू के रूप मे या फ़िर कुंडली के अनुसार अन्य रिस्तो मे बन्धे लोग परिवार रिस्तेदार मित्र आदि हों। यह भी कहा जाता है कि कोई भी सौम्य ग्रह मार्गी होने के समय अपनी सौम्यता को दर्शाता है लेकिन वक्री होने के समय में सौम्य ग्रह भी क्रूर की उपाधि मे गिना जाने लगता है। यह बात भी इस कुंडली मे देखने को मिलती है शुक्र जो धन और जीवन साथी का कारक है अपनी क्रूरता को प्रकट कर रहा है बुध जो अपने को जगत मे दिखाने के लिये तीसरे भाव और रोजाना के काम और जीवन की जद्दोजहद से जूझने के लिये छठे भाव का मालिक है वक्री होकर अपनी गति को क्रूरता को बना रहे है। इस क्रूरता के कारण से जातक शुक्र जो जीवन साथी और धन का कारक है के प्रति क्रूरता और विश्वास घात जैसे कारण पैदा किये है तथा बुध जो राजयोग देने के लिये दसवे भाव मे अपनी युति को प्रदान करता है ने अपने क्रूर स्वभाव से राजयोग देने के स्थान पर जो भी योग्यता और खासियत थी उसे भी अपनी गलत सोच और नीची बुद्धि के कारण अथवा उल्टी बुद्धि के कारण हरण कर लिया। सूर्य जो पंचम स्थान विद्या और बुद्धि के प्रति अपनी सोच को देने वाला है ने अपने ही स्थान से छठे स्थान यानी दसवे भाव मे जाकर केवल राजकीय नौकरी आदि के लिये अपनी द्रिष्टि को तो दिया है लेकिन सफ़लता के लिये अपनी नीति को ही बदल दिया है।
कुंडली मे राहु का प्रभाव एक प्रकार से बहुत ही उत्तम कहा जा सकता है यह जिस भाव मे भी जायेगा अपनी युति को प्रदान करने के बाद अपनी पहिचान बनाने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा,लगनेश मंगल का छठे स्थान मे जाकर वक्री शनि से युति लेने के बाद केवल एक ही बात मानी जा सकती है कि जातक जिस स्थान पर भी काम करेगा उस स्थान के द्वारा कोई भी किया गया गलत काम किसी भी प्रकार से शनि वक्री और मंगल के कारण उजागर नही हो पायेगा। कारण जातक अपनी तकनीकी बुद्धि जो उल्टी चलने वाली है और शनि की कार्य बुद्धि जो वक्री शनि के कारण शरीर की बुद्धि से बिलकुल ही परे होकर कार्य बुद्धि के रूप मे जानी जाती है से उस कार्य स्थान को किसी भी अच्छे बुरे संकट से दूर करने के लिये अपनी होशियारी के लिये मशहूर होगा। वक्री शुक्र और वक्री बुध के कारण जातक का महत्वपूर्ण समय बेकार की सोच और अक्समात ही किसी न किसी होशियार व्यक्ति के चक्कर मे आकर बरबाद होने के लिये भी युति को प्रदान करेगा। आसमान का राजा सूर्य जो दसवे भाव में जाकर दोपहर का प्रभाव पैदा करता है के द्वारा वक्री शुक्र और वक्री बुध के साथ साथ वक्री शनि भी अहम की श्रेणी मे चला जायेगा और जो जातक को मिल रहा है वह भी मिलना बन्द हो जायेगा।
अक्सर देखा गया है जीवन मे शनि सूर्य और शनि चन्द्र अगर आमने सामने हो जाये या इनकी दशा में तब दिक्कतो का इजाफ़ा हो जाये जब यह अपनी युति को एक दूसरे के प्रति परेशान करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करने लगे। जैसे कुंडली मे लगनेश का स्थान बुध की कन्या राशि मे है और लगनेश मंगल के साथ वक्री शनि है,वक्री शनि ने मंगल की पूरी शक्ति को अपने मे प्राप्त कर लिया है कुंडली मे सूर्य और चन्द्र लगनेश के विरोधी हो गये है जब भी सूर्य और चन्द्र की दशा अन्तर्दशा चलेगी तब तब जातक को परेशानी का अनुभव होना शुरु हो जायेगा। साथ ही जब जब सूर्य और चन्द्र का गोचर शनि के साथ होगा या शनि का गोचर सूर्य और चन्द्रमा पर होगा तब तब जातक के लिये परेशानी का प्रभाव भाव और राशि के अनुसार देखा जायेगा। इसके विपरीत जब जब बुध शुक्र राहु केतु का गोचर शनि या शनि का गोचर इन ग्रहो के साथ होगा जातक को फ़ायदा मिलना शुरु होगा यही बात दशा और अन्तर्दशा के बीच भी देखी जायेगी।
कहा जाता है कि चित्रा नक्षत्र का पहला पाया मंगल का होता है,लेकिन यहां पर मंगल आकर अपनी शक्ति को गंवा बैठता है इसके साथ ही राहु केतु और शनि वक्री के स्वभाव मे एक रूप होने से कारण इन तीनो का प्रभाव उल्टा हो जाने से मंगल अपनी शक्ति को प्रयोग मे नही ला पायेगा,इसके बाद भी मंगल का शत्रु बुध है और बुध के घर मे मंगल के रहने से भी मंगल अपनी शक्ति को प्रयोग मे नही ला पायेगा। इस कारणो को और भी एक प्रकार से समझा जा सकता है कि लगनेश से दसवे भाव मे राहु होने से जातक के जीवन के लिये जो भी करना होगा वह राहु के अनुसार ही होगा। जब कुंडली मे राहु कार्य क्षेत्र का मालिक हो जाता है और जीवन मे कैरियर का मालिक हो जाता है तो जातक को एक तो उल्टी भाषा का ज्ञान का हो जाता है और जातक इस भाषा का प्रयोग कमन्यूकेशन इन्फ़ोर्मेशन तकनीक मे तथा इसी प्रकार के क्षेत्र मे प्रयोग करने लगता है। एक बात और भी देखी जाती है लगनेश मंगल का प्रभाव राहु पर जाने से और शनि का प्रभाव भी वक्री होकर राहु पर जाने से जातक को चिकित्सा क्षेत्र के बारे मे भी एक प्रकार से बहुत अच्छा ज्ञान पैदा हो जाता है लेकिन यह भी सीमित समय के लिये होता है जब भी राहु तुला मिथुन और कुम्भ राशि मे गोचर करेगा जातक के लिये इस क्षेत्र से बाहर जाकर बेलेन्स बनाकर या व्यापारिक संस्थानो के प्रति वही काम करने पडेंगे जो तकनीकी रूप से जनता के लिये किये जाते हो,यह बात गुरु राहु के साथ साथ होने से पश्चिम दिशा की कम्पनिया जैसे विदेश मे जाकर अरब कन्ट्री या गुजरात जैसे प्रान्त मे जाकर अपने कामो को करने का प्रभाव मिलता है।
इस कुंडली मे एक बात और भी समझी जा सकती है कि जातक को अडचन देने के लिये दो ग्रह अपनी अपनी मारक क्षमता का प्रयोग कर रहे है,एक तो केतु जो नवे भाव मे जाकर चन्द्रमा को आहत कर रहा है दूसरे राहु जो सप्तम के गुरु पर अपना असर देकर गुरु को आहत करने का काम कर रहा है और बालारिष्ट योग जीवन साथी और किये जाने वाले कार्य स्थान के प्रति दे रहा है। गुरु को राहु बचाने के बाद जीवन साथी और कार्य आदि के प्रति तरक्की प्राप्त की जा सकती है साथ ही चन्द्रमा को केतु से बचाने के बाद जीवन मे मानसिक सुख माता मन मकान वाहन यात्रा आदि के सुख प्राप्त किये जा सकते है।
तीसरे राहु से सप्तम गुरु को बचाने के लिये कन्यादान करना धर्म स्थानो शामियाना आदि का बन्दोबस्त करवाना राहु का तर्पण करवाना सही रहता है और केतु से चन्द्रमा को बचाने के लिये गणेश जी की पूजा अर्चना केतु की वस्तुओं का दान करना जिन्दा मछलियों को मछली बेचने वालो से खरीद कर तालाब आदि मे छोडना फ़ायदा देने वाला माना जा सकता है इसके बाद राहु केतु का चान्दी मे बना हुआ पेंडल पीले धागे मे गले मे धारण करना भी फ़ायदा देने के लिये माना जा सकता है एक उपाय बहुत ही अच्छा माना जाता है वह दादी का कोई सामान हमेशा अपने पास रखना।
कुंडली मे राहु का प्रभाव एक प्रकार से बहुत ही उत्तम कहा जा सकता है यह जिस भाव मे भी जायेगा अपनी युति को प्रदान करने के बाद अपनी पहिचान बनाने के लिये अपनी युति को प्रदान करेगा,लगनेश मंगल का छठे स्थान मे जाकर वक्री शनि से युति लेने के बाद केवल एक ही बात मानी जा सकती है कि जातक जिस स्थान पर भी काम करेगा उस स्थान के द्वारा कोई भी किया गया गलत काम किसी भी प्रकार से शनि वक्री और मंगल के कारण उजागर नही हो पायेगा। कारण जातक अपनी तकनीकी बुद्धि जो उल्टी चलने वाली है और शनि की कार्य बुद्धि जो वक्री शनि के कारण शरीर की बुद्धि से बिलकुल ही परे होकर कार्य बुद्धि के रूप मे जानी जाती है से उस कार्य स्थान को किसी भी अच्छे बुरे संकट से दूर करने के लिये अपनी होशियारी के लिये मशहूर होगा। वक्री शुक्र और वक्री बुध के कारण जातक का महत्वपूर्ण समय बेकार की सोच और अक्समात ही किसी न किसी होशियार व्यक्ति के चक्कर मे आकर बरबाद होने के लिये भी युति को प्रदान करेगा। आसमान का राजा सूर्य जो दसवे भाव में जाकर दोपहर का प्रभाव पैदा करता है के द्वारा वक्री शुक्र और वक्री बुध के साथ साथ वक्री शनि भी अहम की श्रेणी मे चला जायेगा और जो जातक को मिल रहा है वह भी मिलना बन्द हो जायेगा।
अक्सर देखा गया है जीवन मे शनि सूर्य और शनि चन्द्र अगर आमने सामने हो जाये या इनकी दशा में तब दिक्कतो का इजाफ़ा हो जाये जब यह अपनी युति को एक दूसरे के प्रति परेशान करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान करने लगे। जैसे कुंडली मे लगनेश का स्थान बुध की कन्या राशि मे है और लगनेश मंगल के साथ वक्री शनि है,वक्री शनि ने मंगल की पूरी शक्ति को अपने मे प्राप्त कर लिया है कुंडली मे सूर्य और चन्द्र लगनेश के विरोधी हो गये है जब भी सूर्य और चन्द्र की दशा अन्तर्दशा चलेगी तब तब जातक को परेशानी का अनुभव होना शुरु हो जायेगा। साथ ही जब जब सूर्य और चन्द्र का गोचर शनि के साथ होगा या शनि का गोचर सूर्य और चन्द्रमा पर होगा तब तब जातक के लिये परेशानी का प्रभाव भाव और राशि के अनुसार देखा जायेगा। इसके विपरीत जब जब बुध शुक्र राहु केतु का गोचर शनि या शनि का गोचर इन ग्रहो के साथ होगा जातक को फ़ायदा मिलना शुरु होगा यही बात दशा और अन्तर्दशा के बीच भी देखी जायेगी।
कहा जाता है कि चित्रा नक्षत्र का पहला पाया मंगल का होता है,लेकिन यहां पर मंगल आकर अपनी शक्ति को गंवा बैठता है इसके साथ ही राहु केतु और शनि वक्री के स्वभाव मे एक रूप होने से कारण इन तीनो का प्रभाव उल्टा हो जाने से मंगल अपनी शक्ति को प्रयोग मे नही ला पायेगा,इसके बाद भी मंगल का शत्रु बुध है और बुध के घर मे मंगल के रहने से भी मंगल अपनी शक्ति को प्रयोग मे नही ला पायेगा। इस कारणो को और भी एक प्रकार से समझा जा सकता है कि लगनेश से दसवे भाव मे राहु होने से जातक के जीवन के लिये जो भी करना होगा वह राहु के अनुसार ही होगा। जब कुंडली मे राहु कार्य क्षेत्र का मालिक हो जाता है और जीवन मे कैरियर का मालिक हो जाता है तो जातक को एक तो उल्टी भाषा का ज्ञान का हो जाता है और जातक इस भाषा का प्रयोग कमन्यूकेशन इन्फ़ोर्मेशन तकनीक मे तथा इसी प्रकार के क्षेत्र मे प्रयोग करने लगता है। एक बात और भी देखी जाती है लगनेश मंगल का प्रभाव राहु पर जाने से और शनि का प्रभाव भी वक्री होकर राहु पर जाने से जातक को चिकित्सा क्षेत्र के बारे मे भी एक प्रकार से बहुत अच्छा ज्ञान पैदा हो जाता है लेकिन यह भी सीमित समय के लिये होता है जब भी राहु तुला मिथुन और कुम्भ राशि मे गोचर करेगा जातक के लिये इस क्षेत्र से बाहर जाकर बेलेन्स बनाकर या व्यापारिक संस्थानो के प्रति वही काम करने पडेंगे जो तकनीकी रूप से जनता के लिये किये जाते हो,यह बात गुरु राहु के साथ साथ होने से पश्चिम दिशा की कम्पनिया जैसे विदेश मे जाकर अरब कन्ट्री या गुजरात जैसे प्रान्त मे जाकर अपने कामो को करने का प्रभाव मिलता है।
इस कुंडली मे एक बात और भी समझी जा सकती है कि जातक को अडचन देने के लिये दो ग्रह अपनी अपनी मारक क्षमता का प्रयोग कर रहे है,एक तो केतु जो नवे भाव मे जाकर चन्द्रमा को आहत कर रहा है दूसरे राहु जो सप्तम के गुरु पर अपना असर देकर गुरु को आहत करने का काम कर रहा है और बालारिष्ट योग जीवन साथी और किये जाने वाले कार्य स्थान के प्रति दे रहा है। गुरु को राहु बचाने के बाद जीवन साथी और कार्य आदि के प्रति तरक्की प्राप्त की जा सकती है साथ ही चन्द्रमा को केतु से बचाने के बाद जीवन मे मानसिक सुख माता मन मकान वाहन यात्रा आदि के सुख प्राप्त किये जा सकते है।
तीसरे राहु से सप्तम गुरु को बचाने के लिये कन्यादान करना धर्म स्थानो शामियाना आदि का बन्दोबस्त करवाना राहु का तर्पण करवाना सही रहता है और केतु से चन्द्रमा को बचाने के लिये गणेश जी की पूजा अर्चना केतु की वस्तुओं का दान करना जिन्दा मछलियों को मछली बेचने वालो से खरीद कर तालाब आदि मे छोडना फ़ायदा देने वाला माना जा सकता है इसके बाद राहु केतु का चान्दी मे बना हुआ पेंडल पीले धागे मे गले मे धारण करना भी फ़ायदा देने के लिये माना जा सकता है एक उपाय बहुत ही अच्छा माना जाता है वह दादी का कोई सामान हमेशा अपने पास रखना।
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