एक मिथिहासिक कहानी है। एक गांव मे एक चौधरी साहब रहते थे,जमीन जायदाद धन दौलत उनके पुरखो के जमाने से पनपती चली आ रही थी। आसपास के गांवो मे नाम भी था और धन आदि अधिक होने से पूंछ भी अच्छी थी। चौधरी साहब के गांव मे ही एक धासोलिया नामका व्यक्ति भी रहता था,उसके पूर्वजो के जमाने से सभी मेहनत करते आ रहे थे लेकिन उनकी बरक्कत किसी भी प्रकार से नही होती थी,कितना ही कमाया जाता था लेकिन शाम को भरपेट भोजन भी सही रूप से नही मिलता था। किसी भी काम मे चौधरी साहब के पास जाकर सहायता लेने के लिये मजबूर होना पडता था। जमीन मेहनत और कार्य आदि के बाद भी जब बरक्कत नही होती थी तो धासोलिया सोचा करता था कि चौधरी साहब के पास ऐसी कौन सी चीज है जिससे उनके परिवार मे बरक्कत होती जा रही है और उसके परिवार मे ऐसी कौन सी चीज है जो परिवार की बरक्कत को नही करने दे रही है। इसी उधेडबुन मे उसने कई महात्मा तपस्वी जानकार आदि लोगो से राय ली लेकिन उसे कोई सही उत्तर नही मिला। एक दिन वह पास के गांव मे गया था उसे एक ज्योतिषी जी मिले जो किसी बनिया के यहां आये थे और बनिया के परिवार के लिये ज्योतिष बता रहे थे,धासोलिया भी उत्सुकतावश वहां बैठ गया और ज्योतषीजी से अपनी व्यथा को कहने लगा। ज्योतिषी जी ने अपने ज्योतिष के ज्ञान से कहा कि चौधरी साहब के यहां तो शुक्कर शनीचर चाकरी कर रहे है और तुम्हारे यहां शुक्कर शनीचर खा रहे है। धसोलिया बात को समझ नही पाया और उसने साधारण भषा मे उनसे समझाने के लिये कहा।
ज्योतिषी जी साधारण भाषा मे धासोलिया को समझाना शुरु किया। उन्होने कहा कि चौधरी साहब के घर मे उनकी चौधराइन चौधरी साहब के कहे अनुसार काम करती है और अपनी राय केवल समय पर ही देती है और धासोलिया की पत्नी घर की हर बात मे अपनी राय देती है तथा उन्हे आराम करने की आदत है जबकि चौधराइन सुबह भोर से जागकर रात तक घर को सम्भालने का काम करती है इस प्रकार से घर की हर चीज को सम्भाल कर रखने कोई घर की चीज खराब नही हो उसे सुरक्षा से रखने के लिये अपने प्रयास को करती रहती है यह बात उन्होने अपनी सास से यानी चौधरी साहब की माताजी से सीखी थी। जबकि धासोलिया की पत्नी अपनी मर्जी से काम करती है जो भी बात धासोलिया की माता जी कहती है उस बात का उल्टा जबाब उन्हे दिया जाता है,उनकी हर बात का उल्टा किया जाता है,इस प्रकार से शुक्र जो घर का संचालक होता है वह धासोलिया के कमाये गये धन को खाये जा रहा है और धासोलिया कितनी ही कमाई करके लाये उसे सम्भालना तो दूर सही से उपयोग मे भी नही लाया जा रहा है इस प्रकार से हर वस्तु की समय पर जरूरत रहती है और धन की कमी बनी रहती है।
धासोलिया ने ज्योतिषी जी से पूंछा और शनीचर कैसे खाये जा रहे है ? ज्योतिषी जी ने जबाब दिया कि चौधरी साहब तो किसी भी काम को समय से पूरा करने की कोशिश करते है समय से पहले किसी काम का ध्यान रखना जैसे खेत मे समय से जुताई निराई बीज बोना और फ़सल मे पानी देना समय से फ़सल को काट कर लाना और पैदा होने वाले अनाज को सुरक्षित रख देना फ़िर बाजार मे कीमत बढने पर उसे बेचना आने जाने वाले लोगो का मान सम्मान करना अपनी हैसियत के अनुसार सहायता करना अपने पिता के जानकार लोगो से मिलते रहना उनकी इज्जत करना आदि बाते है जिससे उन्हे हर समय धन और जान पहिचान का फ़ायदा मिल जाता है जबकि तुम्हारे यहां जब तुम खेत की जुताई करने जाते हो तो अपने साधन धन की कमी से नही रख पाने से खेत की जुताई बुवाई समय पर नही हो पाती है और काम जब पूरा नही हो पाता है तो फ़सल भी पूरी नही मिल पाती है साथ ही अनाज भी उतना पैदा नही हो पाता है जो बेचने के लिये रहे जितना आता है उतना या तो खा लिया जाता है या रख रखाव के अभाव मे बरबाद हो जाता है।
शुक्कर शनीचर की सेना भी घर को बनाने में और बिगाडने मे अपना सहयोग करती है। शुक्कर की सेना जब घर क बिगाडने के लिये आती है तो शुक्कर कुंडली चौथे भाव मे बैठ जाता है और अपनी सप्तम द्रिष्टि से जातक के दसवे भाव को देखना शुरु कर देता है इस प्रकार से जातक जो भी काम करता है वह पत्नी के द्वारा निर्देशित किया जाता है पत्नी को यह पता नही होता है कि काम करने के लिये क्या क्या चाहिये लेकिन वह अपनी मर्जी से अपनी राय को देती है,और वह राय कार्य के स्थान पर सफ़ल नही हो पाती है। इसके अलावा चौथे भाव के शुक्र के कारण इसकी सेना का मुख्य संचालक पत्नी का श्रंगार का साधन होता है श्रंगार के अंग भी गहने कपडे तरह तरह के बनाव श्रंगार के साधन आदि होते है पत्नी अपने घर के कामो समय पर नही कर पाती है अपने को दूसरो से रूप मे अच्छा दिखाने के चक्कर में खूब बनाती संवारती है और जो शरीर की शक्ति घर के विकास के कामो मे लगनी चाहिये वह शक्ति एक तो विकास के कामो मे नही लग पाती है और श्रंगार कहीं बिगड नही जाये इसलिये कोई काम तरीके से भी नही किया जाता है। जो घर के साधनो को बढाने के लिये धन को जोडा जाता है वह धन किसी न किसी प्रकार से गहनो कपडो और बनाव श्रंगार के साधनो वाहनो सजावटी कामो बेकार के कामो मे चला जाता है। चौथे भाव का शुक्र हमेशा घर के अन्दर औरतो की मीटिंग को भी जोडता है,इस मीटिंग मे आसपास के लोगो के लिये दूसरी औरतो के लिये किसका किससे सम्बन्ध है किसने किस प्रकार से क्या कमाया है कौन किस समय कहां जाता आता है,आदि बातो के चलने से बुराइया भलाइया चला करती है इस प्रकार से जो समय घर के संचालन मे प्रयोग होना चाहिये वह समय फ़ालतू की मीटिंग मे खर्च हो जाता है। शनीचर की सेना मे सबसे बडा मुखिया आलस होता है जब भी किसी काम को करने का समय होता है आलस आ जाता है और काम को समय पर पूरा नही किया जाता है। शनीचर की सेना मे ही रात को देर तक जागना दिन मे सोना बासी और तामसी भोजन को करना बाजार से लाये गये चटपटे और महंगे भोजन के सामान को प्रयोग मे लेना घर की साफ़ सफ़ाई का ध्यान नही रखना जिससे घर के अन्दर वस्तुओं के सडने और बदबू फ़ैलाने से घर के अन्दर एक प्रकार की अजीब सी महक का पैदा होना जिससे जो दिमाग साफ़ और स्वस्थ वातावरण मे काम करने के लिये या स्फ़ूर्ति को महसूस करता है वह दिमाग उस बदबूदार वातावरण से खराब रहना बात बात मे गुस्सा आना अपने ही घर के अन्दर अपने ही लोगो के साथ बात बात मे क्लेश होना या कुत्ते बिल्ली की तरह से लडने लग जाना,जो भी जोडा गया वह चूहो पक्षियों आदि से बरबाद होना,नजर नही रखने से चोरी हो जाना रख रखाव नही रखने से वस्तु का समय से पहले खराब हो जाना आदि शनिचर की सेना के भाग है।
ज्योतिषी जी साधारण भाषा मे धासोलिया को समझाना शुरु किया। उन्होने कहा कि चौधरी साहब के घर मे उनकी चौधराइन चौधरी साहब के कहे अनुसार काम करती है और अपनी राय केवल समय पर ही देती है और धासोलिया की पत्नी घर की हर बात मे अपनी राय देती है तथा उन्हे आराम करने की आदत है जबकि चौधराइन सुबह भोर से जागकर रात तक घर को सम्भालने का काम करती है इस प्रकार से घर की हर चीज को सम्भाल कर रखने कोई घर की चीज खराब नही हो उसे सुरक्षा से रखने के लिये अपने प्रयास को करती रहती है यह बात उन्होने अपनी सास से यानी चौधरी साहब की माताजी से सीखी थी। जबकि धासोलिया की पत्नी अपनी मर्जी से काम करती है जो भी बात धासोलिया की माता जी कहती है उस बात का उल्टा जबाब उन्हे दिया जाता है,उनकी हर बात का उल्टा किया जाता है,इस प्रकार से शुक्र जो घर का संचालक होता है वह धासोलिया के कमाये गये धन को खाये जा रहा है और धासोलिया कितनी ही कमाई करके लाये उसे सम्भालना तो दूर सही से उपयोग मे भी नही लाया जा रहा है इस प्रकार से हर वस्तु की समय पर जरूरत रहती है और धन की कमी बनी रहती है।
धासोलिया ने ज्योतिषी जी से पूंछा और शनीचर कैसे खाये जा रहे है ? ज्योतिषी जी ने जबाब दिया कि चौधरी साहब तो किसी भी काम को समय से पूरा करने की कोशिश करते है समय से पहले किसी काम का ध्यान रखना जैसे खेत मे समय से जुताई निराई बीज बोना और फ़सल मे पानी देना समय से फ़सल को काट कर लाना और पैदा होने वाले अनाज को सुरक्षित रख देना फ़िर बाजार मे कीमत बढने पर उसे बेचना आने जाने वाले लोगो का मान सम्मान करना अपनी हैसियत के अनुसार सहायता करना अपने पिता के जानकार लोगो से मिलते रहना उनकी इज्जत करना आदि बाते है जिससे उन्हे हर समय धन और जान पहिचान का फ़ायदा मिल जाता है जबकि तुम्हारे यहां जब तुम खेत की जुताई करने जाते हो तो अपने साधन धन की कमी से नही रख पाने से खेत की जुताई बुवाई समय पर नही हो पाती है और काम जब पूरा नही हो पाता है तो फ़सल भी पूरी नही मिल पाती है साथ ही अनाज भी उतना पैदा नही हो पाता है जो बेचने के लिये रहे जितना आता है उतना या तो खा लिया जाता है या रख रखाव के अभाव मे बरबाद हो जाता है।
शुक्कर शनीचर की सेना भी घर को बनाने में और बिगाडने मे अपना सहयोग करती है। शुक्कर की सेना जब घर क बिगाडने के लिये आती है तो शुक्कर कुंडली चौथे भाव मे बैठ जाता है और अपनी सप्तम द्रिष्टि से जातक के दसवे भाव को देखना शुरु कर देता है इस प्रकार से जातक जो भी काम करता है वह पत्नी के द्वारा निर्देशित किया जाता है पत्नी को यह पता नही होता है कि काम करने के लिये क्या क्या चाहिये लेकिन वह अपनी मर्जी से अपनी राय को देती है,और वह राय कार्य के स्थान पर सफ़ल नही हो पाती है। इसके अलावा चौथे भाव के शुक्र के कारण इसकी सेना का मुख्य संचालक पत्नी का श्रंगार का साधन होता है श्रंगार के अंग भी गहने कपडे तरह तरह के बनाव श्रंगार के साधन आदि होते है पत्नी अपने घर के कामो समय पर नही कर पाती है अपने को दूसरो से रूप मे अच्छा दिखाने के चक्कर में खूब बनाती संवारती है और जो शरीर की शक्ति घर के विकास के कामो मे लगनी चाहिये वह शक्ति एक तो विकास के कामो मे नही लग पाती है और श्रंगार कहीं बिगड नही जाये इसलिये कोई काम तरीके से भी नही किया जाता है। जो घर के साधनो को बढाने के लिये धन को जोडा जाता है वह धन किसी न किसी प्रकार से गहनो कपडो और बनाव श्रंगार के साधनो वाहनो सजावटी कामो बेकार के कामो मे चला जाता है। चौथे भाव का शुक्र हमेशा घर के अन्दर औरतो की मीटिंग को भी जोडता है,इस मीटिंग मे आसपास के लोगो के लिये दूसरी औरतो के लिये किसका किससे सम्बन्ध है किसने किस प्रकार से क्या कमाया है कौन किस समय कहां जाता आता है,आदि बातो के चलने से बुराइया भलाइया चला करती है इस प्रकार से जो समय घर के संचालन मे प्रयोग होना चाहिये वह समय फ़ालतू की मीटिंग मे खर्च हो जाता है। शनीचर की सेना मे सबसे बडा मुखिया आलस होता है जब भी किसी काम को करने का समय होता है आलस आ जाता है और काम को समय पर पूरा नही किया जाता है। शनीचर की सेना मे ही रात को देर तक जागना दिन मे सोना बासी और तामसी भोजन को करना बाजार से लाये गये चटपटे और महंगे भोजन के सामान को प्रयोग मे लेना घर की साफ़ सफ़ाई का ध्यान नही रखना जिससे घर के अन्दर वस्तुओं के सडने और बदबू फ़ैलाने से घर के अन्दर एक प्रकार की अजीब सी महक का पैदा होना जिससे जो दिमाग साफ़ और स्वस्थ वातावरण मे काम करने के लिये या स्फ़ूर्ति को महसूस करता है वह दिमाग उस बदबूदार वातावरण से खराब रहना बात बात मे गुस्सा आना अपने ही घर के अन्दर अपने ही लोगो के साथ बात बात मे क्लेश होना या कुत्ते बिल्ली की तरह से लडने लग जाना,जो भी जोडा गया वह चूहो पक्षियों आदि से बरबाद होना,नजर नही रखने से चोरी हो जाना रख रखाव नही रखने से वस्तु का समय से पहले खराब हो जाना आदि शनिचर की सेना के भाग है।
गुरुजी प्रणाम,
ReplyDeleteगुरुजी आज अपने जन्मदिन पर आपसे आर्शिवाद का अभिलाषी हुँ!
खुश रहो मजे करो फ़लो फ़ूलो तरक्की करो जीवन का हर पल खुशियों से पूर्ण रहे.
Deleteprnaam guruji dhnyvaad itni sundr jaankari dene ke liye
ReplyDeleteखुश रहो मजे करो फ़लो फ़ूलो तरक्की करो.
DeleteBadhiya guruji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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