Friday, January 27, 2012

राशियां और धन

आज अगर ईश्वर से समान भाव रखा जाता है तो वह धन के प्रति रखा जाता है। अमीर गरीब अच्छे बुरे नीच ऊंच धार्मिक नास्तिक सभी लोग धन की कामना करते है और यह भावना बनाकर रखते है कि धन उनके पास आता रहे वे धन से अपनी सभी इच्छाओं को पूरा कर सकते है। मन्दिरो मे जो भीड लगती है उनमे लक्ष्मी मन्दिर मे अधिक ही देखी जाती है,अन्य मन्दिरो मे तो केवल कुछ लोग ही अपनी उपस्थिति को विभिन्न कारणो से दे पाते है। जिस प्रकार से धन कमान के लिये त्रिकोण का प्रयोग किया जाता है और उस त्रिकोण मे साधन विद्या और पूंजी को समझा जाता है उसी प्रकार से धन के लिये जन्म कुंडली के चारो त्रिकोण अपनी अपनी युति से जातक को धन देते भी है और धन को लेते भी है। कही धन का विनाश हो जाता है कही धन जाता है और वापसी मे अधिक लेकर आता है कभी कभी थोडा सा धन बहुत धन प्रदान कर जाता है कही अधिक धन खर्च करने बाद भी धन की आवक नही हो पाती है। शरीर से धन कमाने के लिये शरीर को साधन के रूप मे प्रयोग करना पडता है और शरीर से विद्या को प्राप्त करने के बाद जो  पूंजी बनायी जाती है वह सही प्राप्त होने पर धन का त्रिकोण पूरा हो जाता है और धन की आवक शुरु हो जाती है। उसी प्रकार से धन को धन से कमाने के लिये धन के पूर्वजो के द्वारा या अन्य प्रकार से प्राप्त धन को कर्जा देने से तथा उस कर्जे के लिये वसूली ब्याज के रूप मे प्राप्त करने के बाद जो धन का त्रिकोण बनाया जाता है वह पूरा होते ही धन प्राप्त होने लगता है। यह सभी कुंडली के चारो त्रिकोणो से समझने के बाद ही प्राप्त करने का कारण बनाया जाता है। कुंडली का पहला त्रिकोण लगन पंचम और नवम भाव को माना जाता है,इस त्रिकोण के द्वारा शरीर विद्या और साधन के रूप में भाग्य का प्रयोग लिया जाता है। इसे प्राचीन काल में शरीर से मंत्र विद्या को प्राप्त करने के बाद धर्म स्थानो पर प्रयोग करने के बाद धन की आवक की जाती थी,इसी बात को शरीर को मेहनती बनाकर ताकत से पूर्ण करने के बाद रक्षा करने वाली विद्या को प्राप्त करने के बाद बडे संस्थानो या महत्वपूर्ण लोगो की रक्षा करने के बाद धन की आवक की जाती थी,जैसे रक्षा सेवा का कार्य। इसी प्रकार से जब किसी मशीन या किसी कारीगरी वाली विद्या को प्राप्त करने के बाद खुद के साधन बनाकर प्रयोग मे करने के बाद जो धन का कमाना जाता था वह व्यवसाय आदि से प्राप्त करने के लिये जाना जाता था।
विद्या के साथ तकनीक को शामिल करने के बाद क्षेत्र को खोजा जाता है और क्षेत्र मे लगने वाले समय के द्वारा नौकरी आदि का कारण बनाया जाता है उस नौकरी से मिलने वाली उन्नति में योग्यता को प्राप्त करने के बाद धन की प्राप्ति की जाती है। यह तकनीक व्यवसाय से कहीं अधिक जटिल है। लेकिन प्रतिस्पर्धा के जमाने मे इस तकनीक का लोग अधिक प्रयोग कर रहे है,विद्या मे तकनीक और क्षेत्र के बीच मे कोई मतभेद होने के बाद समय बेकार भी जा सकता है और नौकरी का मिलना नही माना जाता है इस प्रकार से जब नौकरी नही मिलती है तो उन्नति भी सम्भव नही होती है। धन की सोच को केवल मानसिक सोच तक ही सीमित रखा जाता है यह सब प्रकार कभी कभी अधिक फ़लदायी भी हो जाते है और कभी कभी बिना कारण के संकुचित भी रह सकते है। कुंडली का पहला भाव पंचम भाव और नवम भाव सही है तो शरीर धन के लिये मन विद्या के लिये रिस्क लेने का स्वभाव भाग्य देने के लिये तथा कार्य करने की योग्यता लाभ देने के लिये सही प्रकार बना लेती है उसी प्रकार से लाभ की मात्रा को सही खर्च करना नही आता है तो रोज कमाना रोज खाना भी हो सकता है। कुंडली के त्रिक भाव हमेशा अपनी योग्यता से जातक के अन्दर अपनी अपनी युति से साहस की पूर्ति करते है,अगर छठा भाव रोजाना के कामो के अन्दर अपनी योग्यता को प्रदर्शित करता है तो आठवा भाव छठे भाव की पूर्ति पर जोखिम लेने या रिस्क लेने के लिये अपनी योग्यता को अपने आप उसी प्रकार से प्रदान करता है जैसे रोजाना सूल का कष्ट झेलने वाले अचानक होने वाले तलवार के वार से अपने को सुरक्षित कर लेते है और जोखिम को भी झेलने के उनके अन्दर अजीब सी शक्ति का आना जरूरी हो जाता है। कुंडली का दूसरा त्रिकोण धन भाव छठा भाव और दसवा भाव कहा जाता है यहां पर जो धन परिवार से मिला है उसे अगर बचत करने या जमा योजनाओं से सुरक्षित रखा जाता है तो धन ही धन को बढाने लगता है उस बढाने के अन्दर अगर रोजाना के प्रयास किये जाते है तो वह धन सही रूप से सुरक्षित रह जाता है। तीसरा त्रिकोण धन के लिये नौकरी का कारण पैदा करता है शरीर की योग्यता और जान पहिचान के अलावा तीसरे सातवे और ग्यारहवे भाव के ग्रहों का सही प्रयोग करना आता है तो धन के लिये यह त्रिकोण प्रदर्शन करने से अपने जीवन साथी की सहायता से और जीवन साथी की योग्यता से अपने को सही स्थान मे कार्य रत कर लेते है उनके पास अपने शरीर की भी सार संभाल का जिम्मा जीवन साथी पर ही हो जाता है वे धन कमाने मे समर्थ हो जाते है।अलग अलग राशियों के लिये धन का प्रभाव इस प्रकार से माना जाता है:-

  • मेष राशि के लिये धन का कारक शरीर की ताकत विद्या मे अहम और भाग्य मे समाज या प्रतिष्ठान का बल शामिल होता है।
  • वृष राशि मे परिवार से मिली सहायता उस सहायता के लिये दिमाग मे चलने वाला सेवा भाव और उस सेवा भाव से किये जाने वाले कार्य धन देने के लिये अपनी योग्यता को देते है.
  • मिथुन राशि के लिये दिमागी रूप से शरीर को प्रदर्शित करने की कला,दिमाग के अन्दर किसी भी बात का बेलेन्स करने की क्षमता और मित्रों आदि की सहायता धन देने के लिये मानी जाती है.
  • कर्क राशि के लिये मानसिकता से रिस्क लेने की कला और संस्थान आदि संभालने की योग्यता धन देने के लिये मानी जाती है।
  • सिंह राशि के लिये खुद के दिमाग मे चलने वाली राजनीति कानूनी ज्ञान और लोगों के शरीर को काम मे लेने की कला धन देने के लिये मानी जाती है.
  • कन्या राशि के लिये भावना को समझने की कला सेवा करने की क्षमता और कार्य मे अपने को लगाये रहना तथा चेहरे से पहिचानने की कला से धन की प्राप्ति होती है.
  • तुला राशि के लिये अपने को बेलेन्स करने के लिये तैयार रखना मित्रता बनाने की कला और वृहद जानकारी का ज्ञान धन देने के लिये माना जाता है.
  • वृश्चिक राशि के लिये गुप्त रहने का कारण बडे संस्थानो की गुप्त जानकारी और मानसिक भावना को रिस्क वाले कारणो के लिये तैयार रखना ही धन को देने वाले कारणो मे जानी जाती है.
  • धनु राशि के लिये धर्म मर्यादा कानूनी बडी शिक्षा के रूप मे प्रदर्शन राजनीति का भरपूर ज्ञान और मनुष्य या जीव धर्म को सम्भालने की कला धन देने वाली मानी जाती है.
  • मकर राशि के लिये हमेशा कार्य मे लगाने का कारण धन को प्राप्त करने रहने की कला और सेवा के लिये अपनी भावना रखना ही धन देने की योगकारक नीति है.
  • कुम्भ राशि में मित्र बनाने योजना कमन्यूकेशन का पूर्ण ज्ञान और बेलेन्स करने की क्षमता ही धन देने के लिये मानी जाती है.
  • मीन राशि वालो के लिये जन्म स्थान को त्यागना बाहरी लोगों के साथ मेलमिलाप भावनाओं को समझने और प्रयोग करने की कला तथा गुप्त रूप से किया जाने वाला व्यवहार ही धन देने के लिये माना जाता है.

2 comments:

  1. मेरी जन्मतिथि ०२/०३/१९७६ समय ११:४० सुबह स्थान दिल्ली है. कृप्या मार्गदर्शन करे.

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  2. मेरा नाम पृथ्वीराज जन्म तिथि मालूम नहीं कृपया मार्गदर्शन दे

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