Wednesday, May 23, 2012

लालकिताब से सूर्य

जगत का स्वामी सूर्य है सभी ग्रह और नक्षत्र सूर्य के आसपास ही चक्कर लगा रहे है,वेदो मे सूर्य की आराधना सबसे अच्छी मानी गयी है जो भी संसार मे दिखाई देता है वह सब सूर्य की कृपा से ही सम्भव है,विद्वान लोग सूर्य आराधना के लिये मुख्य स्तोत्र विष्णु सहस्त्र नाम को ही मानते है। सूर्य का कुंडली मे पक्का घर एक पांच आठ नौ ग्यारह और बारह को ही कहा गया है सूर्य के मित्र ग्रहो में चन्द्रमा को भी माना गया है गुरु भी सूर्य का मित्र है और मंगल को भी सूर्य का मित्र तथा सहायक और सूर्य की रक्षा करने वाला कालान्तर के लिये सूर्य की गर्मी को सोख कर सूर्य की अनुपस्थिति मे संसार को गर्मी देने वाला माना गया है। साथ ही धरती के अन्दर के जीवो को गर्मी देने के लिये सूर्य का सहायक मंगल ही काम करता और उर्जा को देने के लिये अपनी शक्ति से सूर्य की गर्मी को सोख कर जीवो को प्रदान काता है। सूर्य पहले घर मे उच्च का माना जाता है और सातवे घर मे नीच का माना जाता है। सूर्य का समय सुबह सूर्योदय से एक घंटे के लिये और दिन रविवार माना गया है।सूर्य के खराब होने बुखार आना आंखो की रोशनी कम होना दिमाग के चढे रहने से सिर की तकलीफ़ रहना आदि माना जाता है साथ ही बिना बात के सरकारी आफ़तो का आना भी सूर्य के कारण ही होता है। सूर्य के बिना जो जीवन मे अपनी गति को प्रदान करने वाले ग्रह बुध और बुध के बाद शुक तथा शुक्र के बाद चन्द्रमा फ़िर धरती और उसके बाद मंगल को माना जाता है शुक्र और बुध को सूर्य के अधिक पास होने के कारण मनसुई ग्रह की उपाधि भी दी गयी है। जब जातक की कुंडली मे सूर्य पहले पांचवे और ग्यारहवे घर मे होता है तो इसकी शक्ति को श्रेष्ठ माना जाता है जब भी मंगल छठे घर मे होता है और केतु अगर पहले घर मे हो तो भी सूर्य सही फ़ल प्रदान करता है सूर्य की शक्ति कभी नीच की नही होती है यह अपनी नीचता को दूसरे ग्रह से जोड कर प्रदान करता है। सूर्य के अच्छे होने की पहिचान होती है कि व्यक्ति का हड्डी का ढांचा सुडौल और ऊंचा होने से लम्बाई और चौडाई अच्छी होती है सूर्य का कारक अंग आंखे होने से आंखे बडी और चमकदार होती है सूर्य से पहिचान का कारण होने से सूर्य उच्च कुल मे जन्म देने के साथ साथ चेहरे पर राजसी चमक का देने वाला भी होता है। सूर्य की शक्ति के कारण ही जातक के अन्दर साहस भी होता है हिम्मत भी होती है और जहां भी नीचता वाले कारण यानी शनि की सीमा शुरु होती है सूर्य के पहुंचने के साथ ही शनि की सीमा समाप्त हो जाती है। सूर्य किसी भी विकट परिस्थिति मे जिन्दा रखने की ताकत देता है यह जंगलो मे निवास के समय जडी बूटियों की पहिचान करवा देता है महलो मे रहने पर राजसी ठाटबाट को भी देने वाला होता है और राजसी कारणो को समझाने वाला और कानून को बनाने वाला भी माना जाता है। सूर्य अगर सशक्त है तो कोई भी दुश्मन ठहर नही पाता है वह पीठ पीछे बुराई कर सकता है लेकिन सामने आकर जी हुजूरी ही करता है। मंगल के साथ अगर सूर्य सही होता है तो वह रक्षा सेवा या सामाजिक कारणो मे अपने नाम और यश को फ़ैलाने मे सहायक हो जाता है। लेकिन शनि की नीचता के आते ही यानी किसी भी कारण मे रिस्वत तामसी भोजन या पर स्त्री पर पुरुष के संसर्ग से अपनी शक्ति को समेट लेता है साथ ही आगे के जीवन को घोर यातना मे ले जाता है शनि के सवार होते ही राहु का प्रकोप शुरु हो जाता है और जेल जाना या अस्पताल मे अपनी जिन्दगी को काटने के लिये मजबूर कर देता है। जब भी बेकार के ख्याल आने लगे लोग अधिक चमचागीरी करने लगे तो समझ लेना चाहिये कि सूर्य खराब होना शुरु हो गया है। सूर्य कभी भी दूसरो के ऊपर मोहताज नही होता है वह हमेशा अपनी कमाई पर ही निर्भर रहने वाला होता है उसे दान और इसी प्रकार के कारण देने तो आते है लेकिन वह लेना नही जानता है,सूर्य श्रेष्ठ वाला व्यक्ति कभी भी अपनी मर्यादा से बाहर नही जाता है वह अपनी जाति कुल और समाज को पहले देखकर चलने वाला होता है। सूर्य के सही फ़ल देने के कारण सभी ग्रह अपने अपने समय मे अच्छा फ़ल देने लगते है लेकिन बुध उम्र की जवानी की शुरुआत तक कुछ भी फ़ल नही देता है शनि जातक के पिता की आय पर और खुद की कमाई पर प्रभाव देने लगता है। सूर्य जब भी खराब होता है लार आना शुरु हो जाता है,कभी कभी शरीर का कोई एक हिस्सा अचानक काम करना बन्द कर देता है और उसी समय मे शरीर की हड्डी का टूटना या लम्बे समय के लिये चल फ़िर नही पाना आदि बाते भी देखी जाती है। जातक के पहले घर मे सूर्य के साथ अन्य कोई शत्रु ग्रह होता है तो वह सूर्य पर अपना प्रभाव डालने लगता है और जातक को कष्ट देता है लेकिन कोई भी कष्ट दिन के समय मे नही होता है रात को ही कष्ट होना माना जाता है,अगर सूर्य और शनि आमने सामने है तो कष्ट नही मिल पाते है इसका कारण होता है कि दिन मे सूर्य बचाता है और रात मे शनि रक्षा करने वाला होता है इसलिये पहले घर मे सूर्य को उच्च का कहा जाता है और सप्तम स्थान मे शनि को उच्च का कहा गया है। सूर्य जब भी राहु के साथ होगा आदमी के विचार गंदे हो जायेंगे वह जब भी सोचेगा गलत ही सोचेगा,सूर्य और शनि की टकराव वाली स्थिति मे चन्द्रमा दिक्कत मे आजाता है यानी घर मे अगर पिता पुत्र आपस  मे टकराने लगे तो माता को कष्ट पहुंचता है इसी प्रकार से अगर यह स्थिति हो तो सूर्य के विरोधी ग्रहो का उपचार करने से सूर्य और शनि की स्थिति सही होने लगती है।सूर्य अगर जन्म कुंडली के छठे या सातवे भाव मे हो तो किसी भी काम को शुरु करने से पहले कुछ मीठा खाकर काम शुरु करना चाहिये.इसके बाद जनता मे मीठी वस्तुयें बांटने से भी फ़ायदा होता है,रत्न धारण मे सूर्य जब अपने नक्षत्र मे हो उस समय सुबह के समय रविवार को तांबे मे या सोने मे माणिक का पहिनना ठीक होता है।

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