Thursday, August 9, 2012

सकाम और निष्काम भाव

कुंडली जीवन का दर्पण है कौन सा भाव क्या काम करेगा वह जन्म समय और लगन पर निर्भर है। जीवन का रूप लगन से भी देखने को मिलता है और चन्द्रमा से सोच मिलती है सूर्य से जो भी सोच है वह द्रश्य रूप मे सामने आती है लेकिन शनि उसे कर्म के रूप मे सामने करता है। बाकी के ग्रह अपनी अपनी शक्ति से भाव या ग्रह को शक्ति देने संवारने और रूप परिवर्तन के लिये अपनी अपनी गति को प्रदान करते है। चार प्रकार के पुरुषार्थ की भावना ही कुंडली का असली रूप है। धर्म के भावो मे प्रथम पंचम और नवम भाव को रखा गया है अर्थ के भावो मे दूसरे और छठे के साथ दसवे को रखा गया है काम के भाव मे तीसरे सप्तम और ग्यारहवे भाव को रखा गया है तथा शांति के कारक मोक्ष के स्थान को चौथे आठवे और बारहवे भाव मे रखा गया है। व्यक्ति का जीवन खुद अपने लिये कम और दूसरो के लिये अधिक प्रयोग मे आता है। मसलन एक व्यक्ति दिन भर मेहनत करने के बाद अगर लाखो रुपये कमाकर लाता है तो वह केवल पेट का भोजन और शरीर पर कपडे के अलावा अपने रहने वाले स्थान की जलवायु के अनुसार शरीर को सुख देने वाले कारको को ही प्रयोग मे ला सकता है इसके अलावा उसके साथ काम का पुरुषार्थ जुडने से जीवन साथी बच्चे और पारिवार का रूप उसे अलावा कार्य करने के लिये अपनी गति को प्रदान करता है जैसे ही काम पूरे होते है वह अपने कामो से सन्तोष को प्राप्त करता है और उसने अपने कर्म अगर सही किये है तो वह अच्छी गति को प्राप्त करता है और खराब काम किये है तो वह गति भी खराब ही प्राप्त करेगा। जो काम दूसरे के लिये बिना किसी स्वार्थ के किये जाते है वह निष्काम भाव के श्रेणी मे आते है,हर भाव का चौथा भाव निष्काम भावना से किये जाने वाले कार्यों के लिये माना जाता है। लगन से चौथा भाव अगर माता का है तो माता के लिये जो भी काम किया जायेगा उसके प्रति क्या प्राप्त होता है उसकी कल्पना नही की जायेगी उसी प्रकार से पिता से पुत्र का चौथा भाव होने से पिता अपने पुत्र के लिये जो भी काम करेगा उसके लिये पिता पुत्र से कोई चाहत नही रखेगा। लेकिन जैसे ही नियम बदला और धर्म का काम से अर्थ का मोक्ष से प्रभाव से आमना सामना हुआ वही निष्काम भावना बदल जायेगी,और बजाय कोई काम नि:स्वार्थ करने के स्वार्थ की भावना से किया जायेगा।

उदाहरण के लिये पुत्र के लिये पिता तो निष्काम भावना से सभी काम करेगा लेकिन वही पुत्र वधू जो भी काम अपने स्वसुर के लिये करेगी उसे चाहत होगी कि उसका स्वसुर उसके लिये क्या करने और क्या नही करने के योग्य है या नही अगर स्वसुर योग्य है तो बहू मन लगाकर अधिक प्राप्ति की आशा करने के बाद खूब सेवा करेगी। यही भावना माता के लिये भी देखी जायेगी माता की माता यानी नानी का भाव भी सप्तम का है और माता नानी के लिये जो भी काम करेगी वह निस्वार्थ मे किया जायेगा लेकिन वही भाव जब सप्तम मे आयेगा तो भावना स्वार्थ मे बदल जायेगी,जैसे बहू सास के लिये कितनी सार्थक है और कितनी निरर्थक है। अगर बहू अधिक उन्नति देने वाली है और सास के प्रति लगाव रखते समय बदले की भावना नही है तो वह बहू का अधिक ख्याल रखेगी,और अगर बहू बेकार का वजन बढाने वाली है शादी के बाद भी अपनी माता की नि:स्वार्थ सेवा मे लगी हुयी है तो सास का बहू से मन हट जायेगा और वह किसी न किसी प्रकार से पंगा करना शुरु कर देगी। यह बात तब और देखी जा सकती है कि पिता के लिये पुत्र का कार्य केवल स्वार्थ के लिये होगा लेकिन पिता का पुत्र के लिये नि:स्वार्थ होगा। इस कारण को यह भी कहा जा सकता है जो भाव नि:स्वार्थ की सीमा मे आता है उसका विरोधी भाव यानी सप्तम स्वार्थ की सीमा मे प्रवेश कर जाता है।

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