Friday, November 2, 2012

बाधकता से साधकता !

जन्म कुंडली मे बाधक ग्रहो और बाधक स्थानो के लिये कई प्रकार की डरावनी बाते कही जाती है। यह भाव बाधक यह ग्रह बाधक है और कार्य मे बाधा देगा आदि बाते बताकर लोग अपनी अपनी कथनी का विवेचन करते है। रुकावट होना और रुकावट के कारण कष्ट होना यह बात ग्रहों के भावो के अनुसार कथन किया जाता है। जन्म के बाद शरीर का पनपना और शरीर के पनपने के समय मे मिलने वाली कठिनाई बात करने मे अक्षरों का उच्चारण चलने मे पैरों का सही स्थान पर नही रखा जाना काम करते वक्त हाथ का सही काम नही कर पाना आदि कितने ही कारण शरीर की पनपाहट मे बाधक होते है और इस प्रकार की बाधकता को पार नही किया जाय तो वही अंग या अवयव नाकाम रह जायेगा जो लोग बाधकता से नही डरते है और अपने को लगातार प्रयास मे लगाये रहते है वह अन्य लोगो से अधिक लचीला और मजबूत अंग बनाने मे सफ़ल हो जाते है। कुंडली मे तीसरा स्थान सबसे पहले बाधक का काम करता है। तीसरा स्थान खुद के पहिचान बनाने के कारणो का भी होता है छोटे भाई बहिनो का भी होता है छोटी यात्रा करने के लिये भी माना जाता है मकान के बाहर रहने का कारण भी होता है पति या पत्नी के धर्म रिवाज समाज व्यवहार के लिये भी जाना जाता है जीवन साथी की ऊंची शिक्षा कानूनी प्रभाव विदेश आदि का रहना और विदेशी नीतियों को अपने परिवार आदि मे समायोजित करना भी होता है। अपनी पहिचान बोली भाषा आदि के लिये भी यही स्थान माना जाता है। शरीर मे बायें हिस्से का कारक भी माना जाता है। इस प्रकार से छोटे भाई बहिन को सम्भालना जीवन की बाधकता मे माना जाये तो यह कहना यथार्थ होगा कि व्यक्ति सामाजिकता से परे जा रहा है। रामायण मे भगवान श्रीराम की कथा में लक्षमण जी का आजीवन साथ रहना उनके तीसरे भाव का पराक्रम से जोडा गया रूप है माता सीता जी का आजीवन साथ रहना उनके सप्तम का सही रूप से विवेचित रूप है उनके बडे भाई होने का अहसास तथा उनके बडे भाई के कर्तव्यों का निर्वहन किया जाना उनके ग्यारहवे भाव के कारक को फ़लीभूत करने का साहस माना जाता है। जब बाधक ग्रह के प्रति लगातार चिंतन किया जाये और उसके ऊपर सफ़लता को प्राप्त कर लिया जाये तो वही विजय का रूप कहलाता है। कोर्ट केश दुश्मनी आदि बाते सप्तम भाव से देखी जाती है तथा जीवन साथी का भाव भी सप्तम स्थान के रूप मे ही समझा जाता है अगर कोर्ट केश को करने वाले व्यक्ति को बाधक के रूप मे लिया जाये तो यह कहना भी गलत नही होगा कि तीसरा भाव जब कमजोर है अपनी पहिचान और हिम्मत दिखाना नही आता है तो अपने आप ही सातवा भाव कमजोर हो जायेगा और सातवे के कमजोर होने से ग्यारहवा भाव अपने आप ही बजाय लाभ के हानि देना शुरु कर देगा।

तीसरा सप्तम और ग्यारहवा भाव और इनके स्वामी काम नाम के पुरुषार्थ से जुडे होते है। किसी भी पौधे के बढने और पनपने के लिये दूसरा भाव और जैसे ही पौधे की पहिचान होती है तीसरा भाव सामने आता है। पौधे से मिलने वाले लाभ और हानि तथा पौधे का जलवायु के अनुसार पनपाहट चौथे भाव से देखी जाती है पौधे का अन्य पौधो के साथ पनपना और मजबूत होना पंचम से देखा जाता है पौधे मे लगने वाले रोग और जडो की गहराई का विवेचन छठे भाव से किया जाता है उसी प्रकार से पौधे मे जब पनपाहट के बाद फ़ूल खिलता है तो वह सप्तम की पहिचान तीसरे के अनुसार ही मिलती है और फ़ूल के अन्दर जब पराग कण का निषेचन होता है तो वह अष्टम का कारण बन जाता है। फ़ूल का बनना बन्द होना और फ़ल का रूप शुरु होना नवे भाव से जोडा जाता है कच्चे फ़ल का रूप दसवे भाव से और फ़ल के पकने और उसके द्वारा मिलने वाले लाभ हानि का कारण ग्यारहवे भाव से देखा जाता है फ़ल की समाप्ति और फ़ल के असर का रूप समाप्त होने का भाव बारहवा है। इस प्रकार से तीसरा सातवा और ग्यारहवां ही पौधे की पहिचान पौधे की सुन्दरता और पौधे से मिलने वाले फ़ल का रूप है बिना बाधक भाव के और बाधक ग्रह के जीवन मे पहिचान नही बन पाती है जीवन मे जीने के लिये कारण नही मिल पाता है और जीवन जब जिया जाता है तो जीवन लेने का उद्देश्य भी नही मिल पाता है यानी जैसे व्यक्ति पैदा हुआ था और उसी प्रकार से बिना कुछ किये चला जाये तो यह समझना चाहिये कि जातक के जीवन मे बाधक ग्रहों का असर बाधक भावो का प्रभाव नही था।

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