Monday, November 19, 2012

रत्न धारण कैसे और कब करें ?

जीवन की दो गतियां होती है एक तो भौतिक होती है जो दिखाई देती है और एक अद्रश्य होती है जिसे देखने की चाहत जीव जन्तु जड चेतन सभी के अन्दर होती है। ज्योतिष मे शरीर को लगन से देखा जाता है.लगन एक प्रकार से द्रश्य है जो शरीर के रूप मे सामने दिखाई देती है,अगर लगन मे कोई ग्रह नही है तो इसका मतलब है कि शरीर का मालिक यानी लगनेश जिस भाव मे विराजमान है वह भाव लगन के लिये देखा जायेगा। इसी प्रकार से लगनेश द्रश्य होता है तो लगनेश जिस भाव को देखता है और वहां कोई ग्रह है तो लगनेश को जीवन में आमना सामना करने के लिये द्रश्य प्रभाव मिल जाता है और आजीवन लगनेश सामने वाले ग्रह से जूझता रहता है अगर सामने वाला बलवान होता है तो लगनेश हार कर जीवन को जल्दी समाप्त कर लेता है और लगनेश बलवान होता है तो सामने वाले ग्रहो को परास्त करने के बाद लम्बे जीवन को भी जीने के लिये शक्ति को प्राप्त करता है और गोचर से चलने वाले ग्रहो को भी समयानुसार प्रभाव मे लाकर अपने को मन से वाणी से कर्म से फ़लीभूत कर लेता है। यह पहले ही बताया जा चुका है कि शनि एक ठंडा और अन्धेरा ग्रह है और इसके प्रभाव से जीवन मे जो भी प्रभाव आता है वह केवल अपनी सिफ़्त के अनुसार ही मिलता है लेकिन वही शनि अगर वक्री है तो वह जीवन को उत्तरोत्तर आगे बढाने के लिये भी अपनी शक्ति को देता है। एक व्यक्ति शनि के मार्गी रहने पर केवल काम करना जानता है और एक व्यक्ति शनि के वक्री रहने पर लोगो से काम करवाना जानता है। सफ़लता उसी को मिलती है जो काम को करवाना जानता है काम को करने वाला अगर एक वस्तु का निर्माण कर सकता है तो काम को करवाने वाला कई वस्तुओं का निर्माण भी कर लेता है और काम करने वाले से काम करवाने के कारण अपना नाम धन मान सम्मान आदि को बढाता है। कुंडली के किसी भी भाव मे शनि के वक्री होने पर शनि को उत्तम ही देखा जाता है।

प्रस्तुत कुंडली एक व्यक्ति की है जिसने नीलम पन्ना जिरकान मूंगा पहिन रखा है और उसकी इच्छा है कि वह सूर्य रत्न माणिक को भी पहिने। लगनेश शनि मित्र भाव मे वकी होकर विराज रहे है,वक्री शनि के सामने द्रश्य कोई भी ग्रह नही है और बुद्धि का भाव खाली है गोचर से कभी कभी जो भी ग्रह सामने आजाता है जातक उसी के अनुसार अपनी बुद्धि को प्रयोग मे लाता है और गोचर के ग्रह का समय समाप्त होने पर जातक की बुद्धि फ़िर से खालीपन को महसूस करने लगती है। उदाहरण के लिये इस बात को ऐसे भी देखा जा सकता है कि लगन एक प्रकार से कार की तरह से है और पंचम स्थान कार को चलाने के लिये सीखी गयी विद्या ड्राइवरी की तरह से और कार के अन्दर कार को चलाने के लिये पेट्रोल की जरूरत को पूरा करने के लिये नवम का रूप भाग्य के रूप मे मिलता है,अगर तीनो भावो में ग्रह उपस्थित है तो कार अपनी उम्र के अनुसार चलती रहेगी और ग्रह नही है तो कार केवल तभी चलेगी जब गोचर से कोई ग्रह स्थान पर आयेगा। लेकिन जरूरी नही है कि कार के रूप मे शरीर सामने ही हो या बुद्धि के रूप मे ड्राइवर उपस्थित ही या पेट्रोल के रूप मे भाग्येश भी साथ हो जब तीने स्थानो के मालिक अपने अपने स्थान पर होंगे तभी कार रूपी शरीर की यात्रा शुरु हो सकेगी। अन्यथा गोचर से चलाने के कारण चन्द्रमा मासिक गति सूर्य वार्षिक गति में तथा अन्य ग्रह भी अपनी अपनी गति के अनुसार आते जायेंगे और जीवन को उम्र के अनुसार चलाते जायेंगे।

लगनेश शनि वक्री है और शनि के लिये लगभग सभी ज्योतिष ग्रंथ विद्वान आदि नीलम के प्रति धारणा रखते है,नीलम शब्द से ही मान्य है कि नीलम नीला होता है,शनि का रंग काला होता है,राहु का रंग नीला होता है,फ़िर शनि के लिये राहु का रंग नीला क्यों ? इसके बाद भी एक किंवदंती कि शनि मार्गी है तो भी नीलम और शनि वक्री है तो भी नीलम ? मार्गी शनि मेहनत करने वाला व्यक्ति है तो वक्री शनि बुद्धि को प्रयोग मे लाकर काम करवाने वाला व्यक्ति है,मेहनत करने वाले और मेहनत करवाने वाले के बीच के भेद को समझे बिना ही एक साथ दोनो के लिये एक ही रत्न को बताना क्या बेमानी नही है ? बुद्धिमान के लिये कोई रत्न काम नही करता है और बेवकूफ़ के लिये भी कोई रत्न काम नही करता है यह भी जानना जरूरी है,जैसे सपूत अगर है तो उसके लिये धन संचय करने से कोई फ़ायदा नही है वह अपने बाहुबल से धन को संचित कर लेगा और कपूत के लिये भी धन संचय से कोई फ़ायदा नही है वह अपनी बेवकूफ़ी से संचित धन को बरबाद कर देगा ! "पूत सपूत तो का धन संचय और पूत कपूत तो का धन संचय" वाली कहावत को भी समझना चाहिये। वक्री शनि वाला व्यक्ति बुद्धि को सही स्थान पर प्रयोग करे इसके लिये उसे ज्ञान की आवश्यकता होगी और ज्ञान के लिये हर कोई जानता है कि बुद्धि के भाव यानी पंचम का रत्न धारण करना उपयुक्त है,इसलिये जातक को कुंडली के अनुसार पंचम के लिये हीरा या जिरकान उपयुक्त रत्न है,जिसे चांदी या सफ़ेद धातु मे बनवाकर शनि की उंगली मध्यमा में शुक्रवार के दिन धारण करना चाहिये। नीलम को पहिनने से चलने वाली बुद्धि वक्री शनि वाले व्यक्ति के लिये मार्गी होने पर कुंद हो जायेगी और वक्री समय मे जो कुछ समय के लिये है काम करती रहेगी। शनि को राहु के द्वारा सकरात्मक होने पर और केतु के द्वारा नकारात्मक होने पर ही संभाला जा सकता है,बाकी शनि को संभालने के लिये किसी भी ग्रह का प्रयोग रत्न के द्वारा करना एक प्रकार से बुद्धिमानी की श्रंखला मे नही माना जा सकता है।

जीवन की गति के लिये तीन कारण बहुत जरूरी होते है। एक तो शरीर को द्रश्य रखना,दूसरा बुद्धि को जाग्रत रखना और प्रयोग करते रहना तीसरे भाग्य की बढोत्तरी से ऊंची सोच शिक्षा परिवेश से बाहर निकल कर कानून धर्म समाज जाति देश आदि के द्वारा लगातार उन्नति का बल लेते रहना। अगर लगन खाली है तो लगनेश का रत्न,पंचम खाली है तो पंचमेश का रत्न और नवम खाली है तो नवमेश का रत्न धारण करना चाहिये। अगर तीनो भावो मे कोई ग्रह शत्रु या मित्र है तो उसके लिये ग्रह के अनुसार मिक्स प्रभाव देने वाला रत्न धारण करना जरूरी है। जैसे उपरोक्त लगन मकर है,और मकर लगन का मालिक शनि है,लेकिन लगन के समय मे सूक्षम रूप से देखे जाने पर श्रवण नक्षत्र की उपस्थिति जिसका मालिक चन्द्रमा है और इस नक्षत्र के चौथे पाये मे जातक का जन्म हुआ है तो उसका मालिक सूर्य बन जाता है इस प्रकार से सूर्य चन्द्र और शनि की मिश्रित आभा वाले रत्न को धारण करना लगन को द्रश्य करने के लिये काफ़ी है। सूर्य से गुलाबी चन्द्रमा से पानी की तरह से चमकीला और शनि के लिये काली आभा से पूर्ण रत्न का प्रयोग करना जरूरी है इस प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से एलेक्जेंडरा नामक रत्न मे तीनो आभा मिलती है,जातक को लगन को द्रश्य करने के लिये एलेक्जेन्डरा को सोने की अंगूठी मे बनवाकर दाहिने हाथ की बीच वाली उंगली मे पहिना जाना जरूरी है कारण पुरुष जातक है और उसी स्थान पर अगर स्त्री जातक होता तो बायें हाथ की बीच वाली उंगली मे यह रत्न काम करने लगता। इस जातक का पंचम स्थान भी खाली है,पंचम स्थान वृष राशि का है और यह स्थान वृष राशि का तेईस अंश बीता हुआ भाग है,इस अंश का मालिक रोहिणी नक्षत्र है और रोहिणी का मालिक चन्द्रमा है,इस प्रकार से बुद्धि की जाग्रति के लिये और द्रश्य प्रभाव देने के लिये शुक्र चन्द्र की युति वाला रत्न धारण करना जरूरी है। चांदी में जिरकान या हीरा पहिना जाना उपयुक्त है लेकिन पंचम का स्थान कालपुरुष के अनुसार सूर्य की राशि मे होने से सोने मे पहिने जाने से और भी फ़लदायी माना जा सकता है। इसी कुंडली मे जातक का नवा भाव भी खाली है इस भाव के लिये जातक तेईस अंश के मालिक हस्त नक्षत्र जिसका मालिक चन्द्रमा है के लिये गुरु कालपुरुष बुध राशि और नक्षत्र मालिक चन्द्रमा के अनुसार रत्न का उपयोग करने के बाद भाग्य जीवन की उन्नति और सहयोग के लिये आगे बढ सकता है। जातक केवल एलेक्जेन्डरा को ही प्रयोग करता है तो जातक को लगन पंचम और नवम का प्रभाव द्रश्य होने लगता है बाकी के रत्न धारण करने से गोचर से ग्रह के विपरीत अवस्था मे जाने से शनि के वक्री होने के समय में दिक्कत का कारण पैदा करने के लिये काफ़ी है।

7 comments:

  1. गुरुदेव .........
    सादर चरण स्पर्श .......

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  2. प्रणाम गुरुदेव..........
    कृपया आप अपना account no. एवं सहयोग राशि के बारे में जानकारी प्रदान करें . ताकि में ये तुच्छ भेंट आपको अर्पित कर सकू. गुरुदेव अभी बहुत परेशान चल रहा हूँ net banking की सुविधा नही हे

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    1. प्रतीक जी आप अपने सहयोग को किसी भी शरीर से असमर्थ व्यक्ति को प्रदान करें, जैसे अपंग को बीमार को कार्य करने से मजबूर व्यक्ति को,लाभ मेरे और आपके दोनो के खाते मे जमा हो जायेगा.

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  3. जी गुरुदेव .......
    प्रणाम ...........
    आप जैसे देवतुल्य व्यक्ति के सानिद्ध्य का सोभाग्य प्राप्त हुवा ये मेरा भाग्य हे परन्तु गुरुदेव मैं आपका आशीर्वाद चाहता हूँ ......... कृपया सहायता करें.......
    धन्यवाद .....

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  4. गुरुदेव..
    सादर चरण स्पर्श ........
    मैं आपसे किस प्रकार संपर्क कर सकता हूँ....

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  5. गुरुदेव..
    सादर चरण स्पर्श

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