Monday, November 5, 2012

विवाह मे देरी

कहा जाता है कि जन्म माता पिता के आधीन जीवन ईश्वर के आधीन विवाह समाज और परिवार के आधीन तथा मौत खुद के कर्मो के आधीन होती है। मनुष्य किसी भी स्थान पर अकेला नही चल सकता है। माता पिता के बिना जन्म नही हो सकता है,माता पिता के कर्म और समाज का व्यवहार व्यक्ति के लिये जीवन साथी और तरक्की के लिये नियत समय पर अपने अपने फ़लो को प्रदान करने के लिये मुख्य कारक माने जाते है। प्रस्तुत कुंडली कुम्भ लगन की है माता का कारक ग्रह शुक्र है और पिता का कारक ग्रह भी नवे भाव के अनुसार शुक्र ही है,शुक्र की स्थिति कुंडली मे दूसरे भाव मे उच्च राशि मीन मे है और शुक्र को बल प्रदान करने वाले ग्रहों केवल वक्री मंगल और वक्री शनि ही है.माता से पंचम मे और पिता से बारहवे भाव मे स्थापित शनि और मंगल की युति जातक के प्रति अपमान जोखिम शरीर के अन्दर बल की कमी चतुरता की अधिकता जीवन आराम वाले साधनो की अधिकता,पिता के भाव मे गुरु वक्री होने से जातक के पिता के लिये उन्ही कारको समझना पडता है जो कारक पिता के लिये दिमाग से धन कमाने अपनी अच्छी याददास्त के सहारे जीवन मे तरक्की करना कानूनी न्याय सरकारी क्षेत्र मे अपना अधिकार जमाना सरकारी कारणो से वकालत जैसे काम करना आदि बाते मानी जाती है माता के भाव मे बुध के स्थापित होने से माता का व्यवहार बातूनी धन सम्बन्धी कारणो को समझकर घर परिवार व्यवहार आदि के प्रति अधिक से अधिक चिन्ता करने के बाद अपनी ही सन्तान के प्रति शरीर मे कई बीमारियों के पैदा करने के बाद खून और शक्ल सूरत मे कमजोरी के कारको को पैदा करना माना जाता है। अक्सर माता का स्वभाव चन्द्रमा से भी देखा जाता है और जब चन्द्रमा राहु के घेरे मे आजाये तो माता को मानसिक रूप से कनफ़्यूजन के कारको मे गिना जाने लगता है और पिता का कारक सूर्य माना जाता है तो पिता से तीसरा राहु होने के कारन उनके अन्दर जनता से सम्बन्धित कनफ़्यूजन को शान्त करने की कला और न्याय तथा इसी बाहरी सहायताओ से दूसरो के लिये सहायता करना भी माना जाता है। जातक के अन्दर खून मे पिता के और माता के प्रभाव का समावेश होने से जातक के अन्दर बुद्धि से काम करवाने वाली कला याददास्त का तेज होना धर्म और कानून के अलावा भाग्य आदि के प्रति गुरु के वक्री होने से उल्टी क्रिया को करना शुरु कर देना जैसे बडी शिक्षा के अन्दर जाकर उसी प्रकार की शिक्षा को प्राप्त करना जो विदेशी कारको से जुडी हो और व्यापारिक कला के अन्दर गुरु बुध की षडाष्टक नीति से विदेशी भाषा के साथ साथ एक और भाषा का सही आकलन करना आता हो ज्योतिष तन्त्र और इंजीनियर जैसे दिमाग से दूसरो को सिखाने तथा बताने के साथ साथ उल्टे सम्बन्धो को सुधारने की कला भी जातक के अन्दर यही ग्रह युति पैदा करती है।

चन्द्रमा के अनुसार जातक का संसारी जीवन एक प्रकार से मिथुन का चन्द्रमा होने से कमन्यूकेशन के क्षेत्र मे उन्नत माना जाता है जातक को कम्पयूटर के ज्ञान तथा सोफ़्टवेयर की अधिक जानकारी शिक्षा के साधनो और कोड आदि के बनाने से सोफ़टवेयर बनाने उसे प्रयोग करने और संचार के साधनो मे किसी भी विदेशी सहयोग से नये नये कारण पैदा करने के लिये भी माना जा सकता है। राहु के साथ चन्द्रमा के होने से जातक की सोच मे एक प्रकार का इतना बडा फ़ैलाव हो जाता है कि वह अपनी जीवन की सोच को इकट्ठा करना चाहे तो भी वह इकट्ठा नही कर पाता है यही बात शिक्षा के प्रति अगर चन्द्रमा के पंचम भाव मे आने से देखी जाये तो जातक की शिक्षा का बदलाव पंचम से पंचम मे गुरु के वक्री होने से भी देखा जा सकता है,एक प्रकार से अपनी गरिमा को दूर करने के बाद उस गरिमा के ऊपर चलते जाना जिसका समाज परिवार व्यवहार आदि मे कोई स्थान नही माना जाता है और इन्ही कारणो से समाज ऐसे जातको को अपने से धीरे धीरे दूर करता चला जाता है। जातक अपने को अकेला समझता जरूर है लेकिन हर प्रकार से अपनी काबलियत पर भरोसा करने के कारण कभी अपने को हारा हुआ भी नही मानता है रिस्तो के प्रति स्वार्थी बदलाव से भी जातक को गृहस्थ जीवन चलाने मे दिक्कत का सामना करना पडता है। गुरु के वक्री होने के कारको मे यह भी देखा जाता है कि जातक विवाह आदि सम्बन्ध अपने कुल या रीति से करता भी है तो वह विवाह के कारणो को निभा पाने मे असमर्थ रहता है वह अपनी सोच के कारण और आधुनिकता के भ्रम मे वह सब नही कर पाता है जो परिवर समाज और जान पहिचान वाले लोग चाहते है इस प्रकार से या तो सम्बन्ध बन नही पाते है और बन भी जाते तो वह अधिक समय तक चल नही पाते है। सबसे बडा कारण एक और भी माना जा सकता है कि पंचम मे चन्द्रमा के साथ राहु के होने से सोच प्रेम प्रसंगो के प्रति अधिक उलझ जाती है वह अपने अन्दर इस बात का गहन विचार नही कर पाता है कि आखिर मे प्रेम प्रसंगो के बाद का जीवन कैसा रह पायेगा। इस प्रकार के जातक अपने को कभी कभी शनि मंगल के अष्टम मे वक्री होने के कारण सेक्स आदि के कारणो मे असमर्थ भी मान लेते है और सन्तान के अभाव का रूप भी देखा जा सकता है उनका जीवन बुध के चौथे भाव मे होने से केवल बातो मे ही उलझ कर रह जाता है और सप्तम से दूसरे भाव मे शनि मंगल के वक्री होने से जो भी जीवन साथी का चुनाव करने के बाद जीवन मे मान्यता दी जाती है वह वैवाहिक जीवन को रति क्रिया के अभाव मे एक प्रकार से बदलाव वाली नीति को धारण करने मे ले कर चलने वाला हो जाता है और इस प्रकार से जातक को या तो पुत्र की प्राप्ति नही हो पाती है या होती भी है तो वह अपने को अपने माता पिता से दूर ले जाकर अपने जीवन को जीने के लिये मजबूर हो जाता है।

लगन से शुक्र का पास होना कई रिस्ते बनने और बिगडने वाली बाते तब और करने लगता है जब शुक्र को शनि मंगल की वक्री नजर लग गयी होती है,उसे जो भी रिस्ता मिलता है वह शुक्र के सामने सूर्य के होने से एक प्रकार की चमक दमक को सामने लाने की कोशिश मे रहने लगता है कि वह ऐसे सम्बन्ध को बनाये जो उसे और उसके परिवार को एक प्रकार से पारिवारिक स्थिति मे बडप्पन दे सके,मकर यह सोच तब अधूरी रह जाती है जब सूर्य का प्रभाव तीसरे भाव मे होने से और पिता की इज्जत और धन आदि के कारको मे वह अपने बराबर का रूप खोजने मे अधिक समय को लगाने का रूप भी सामने आजाता है। उपरोक्त कुंडली मे विवाह की देरी के लिये जो कारण है वह इस प्रकार से है :-
  • लगनेश शनि अष्टम मे वक्री है इसलिये जातक बुद्धि के बल पर जीवन जीने का कारण जानता है,लेकिन अपने ही क्षेत्र मे वह इस प्रकार के जीवन साथी को चाहता है जो उसके बराबर की श्रेणी मे हो और उसके बराबर की सोच रखने वाला हो।
  • सप्तमेश सूर्य जब तीसरे भाव मे होते है तो पिता का भी अकेलापन देखा जाता है और पिता के भाई बहिन जो भी होते है उनके प्रति जातक का पिता अपने जीवन को और उनके जीवन मे आने वाले व्यवहारिक कारणो को निभा नही पाता है फ़लस्वरूप या तो पिता के भाई दूर हो गये होते है या चल बसे होते है अगर होते है तो वह अन्दरूनी तरीके से विवाह आदि के लिये अपने उल्टे कारणो को प्रसारित करते रहते है और नही होते है तो पिता के कमाई के साधन या पिता के अहम के कारण जो व्यापारिक रूप से जन सामान्य मे प्रयोग मे लाये जाते है वह कारण भी जातक के प्रति वैवाहिक जीवन को स्थापित कर पाने मे असमर्थ होते है।
  • ग्यारहवा केतु जब अपनी नवी नजर से सप्तम को देखता है तो वह सप्तम से प्राप्त करने के बाद अपने पंचम यानी तीसरे भाव मे विराजमान सूर्य को देना चाहता है,सूर्य एक प्रकार से तीसरे भाव मे या तो जीवन साथी का सरकारी रूप से समर्थ होने का बखान करता है या फ़िर सूर्य की कारक चीजे जैसे स्वर्ण अपनी हैसियत के प्रति सरकारी सहायता आदि।
  • वर्तमान मे चलने वाली शनि मे गुरु की दशा और राहु का प्रतियंतर भी विवाह आदि कारको मे अनिश्चितता देता है और इस भ्रम वाली स्थिति मे विवाह आदि का होना नही माना जाता है,
  • जीवन साथी का नेचर सप्तमेश सूर्य से देखा जा सकता है सूर्य का सप्तम मे प्रभाव होने से जीवन साथी की दिशा पश्चिम मे होनी मानी जाती है लेकिन नवम के प्रभाव के कारण पैदा होने के स्थान से दक्षिण-पश्चिम दिशा का होना माना जा सकता है.
  • जिस व्यक्ति से सम्बन्ध होना या तो उसकी शादी पहले होकर टूट गयी होगी या सम्बन्ध बनने के बाद ही समाप्त हो गया होगा.
  • शादी का समय आने वाले मई दो हजार तेरह के आसपास का मिलता है.

4 comments:

  1. आपकी नयी पोस्ट का बेसब्री से इन्तजार था .......
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति .................

    ReplyDelete
  2. गुरु देव इस पोस्ट में से कई बातें मेरे जीवन से मिलती-जुलती हैं.............
    मेरे पास net banking की सुविधा उपलब्ध नहीं हे कोई और तरीका जिससे मैं पारिश्रमिक आपके चरणों में अर्पित कर सकूँ हो तो बता दीजिये ............धन्यवाद
    आपका भक्त
    -प्रतीक

    ReplyDelete
  3. guru ji jay shree ram mera naam Vikram Verma h Meri date of birth 04-01-1985 h mera janm Sthaan CHHINDWARA (M.P.) or Time 11:55:10 h Mujhe apani Shaadi k baare me puchana h ki kab hogi mera jeevansaahti kesa hoga kis raashi ka hoga kripya bataane ki kripa kare

    ReplyDelete