Monday, October 29, 2012

गाली ज्योतिष से.

 कानूनी रूप से गाली देने के लिये अलग अलग देशो मे अलग अलग धारायें लगती है और साबित होने पर कि अमुक को अमुक के द्वारा गाली देकर मानसिक रूप से आहत किया गया है तो गाली देने वाले को धन और शरीर से सजा भी झेलनी पडती है। गाली का क्यों दी जाती है कौन से ग्रह गाली देने के लिये अपनी युति प्रदान करते है कुंडली मे गाली देने से क्या लाभ और हानि होती है आदि बातो पर चलिये विवेचन करते है।

खुद को भी गाली दी जाती है जानते हुये भी काम को खराब खुद के द्वारा कर दिया जाता है तो मन मे गाली उपज जाती है,और खुद के द्वारा ही खुद को गाली दी जाती है यह बात राहु जब लगन मे होता है और दिमाग भ्रम मे चला जाता है तो काम बनता हुआ भी खराब हो जाता है अकेले मे बैठ कर जब बिगडे काम को सोचा जाता है तो गाली खुद के लिये भी निकलती है और खुद को लोग कम ही गाली देते है ईश्वर को और समय को दोष देकर गाली देने लगते है। यह बात लगन के लिये प्रयोग मे ली जाती है।

पंचम भाव संतान का होता है अगर पिता को पुत्र गाली देता है तो यह देखा जाता है कि पिता की गलत नीति भी हो सकती है पिता का अपने समाज के द्वारा चलायी जाने वाली मर्यादा से दूर होकर चलना होता है या सब कुछ होते हुये भी पिता के द्वारा पुत्र के प्रति वह काम नही किये जाते है जिनसे पुत्र की प्रोग्रेस हो रही हो,लेकिन पुत्र जब पिता को गाली देता है तो पिता का मृत्यु जैसा कारण बन जाता है,जैसे मौत भी आठ प्रकार की होती है और एक मौत यह भी कहलाती है कि पिता को पुत्र गाली दे।

नवा भाव धर्म का होता है और भाग्य का भी होता है लेकिन नवा भाव साली का भी होता है और देवर का भी होता है साली अगर गाली देती है तो बहुत अच्छी लगती है उसी जगह पर जब भाभी देवर को गाली देती है तो भी अच्छी लगती है इसके लिये एक बात को और भी देखा जाता है कि सप्तम जीवन साथी का होता है और जीवन साथी का पराक्रम नवा भाव होता है जीवन साथी का पराक्रम जितना अच्छा प्रभावी होता है उतना ही गाली खाने का सुख भी अलग से बहुत मायने रखता है। देवर अगर भाभी की गाली खाता है तो भाभी की मान्यता हंसी मजाक मे गाली देने के लिये मानी जाती है और लोग चलकर भाभी को छेडने का उपक्रम रचते है जिससे भाभी गाली दे और माहौल मे चलती हुयी नीरसता मे सरसता का प्रभाव शुरु हो जाये। उसी स्थान पर जब ससुराल मे साली खुद को गाली देती है तो भी सुनने मे अच्छा लगता है लोग ससुराल जाते भी इसी लिये है कि वे गाली सुने और प्रहसन को महसूस करे। नवा भाव दसवे का बारहवा होता है यह भाव किये जाने वाले कर्म का मोक्ष स्थान होता है जब काम से मन दूर होने लगता है तो प्रहसन का कारण लोग बनाने लगते है। क्योंकि नवा भी पंचम का पंचम है और पंचम जब मनोरंजन का है तो मनोरंजन से मनोरंजन को प्रकट करने वाला भाव भी नवा हो जाता है।

पति पत्नी को गाली देता है पत्नी भी पति को गाली देती है। पति पत्नी को तभी गाली देता है जब पति के अनुरूप पत्नी काम नही करती है। गाली देने का कारण हर भाव के बारहवे भाव से पैदा होता है जैसे पुत्र को गाली दी जाती है तो पुत्र के बारहवे भाव चौथे को सामने लाकर माँ की गाली से नवाजा जाता है साली को गाली दी जाती है तो अष्टम के शब्दों को प्रयोग मे लाया जाता है जो शब्द किसी न किसी प्रकार से यौन सम्बन्धो से जुडे होते है यही बात देवर के लिये भी देखी जाती है। पति जब पत्नी को गाली देता है तो गाली मे खुद के छठे भाव का रूप सामने होता है जैसे खुद का शरीर से स्वस्थ नही होना,काम का बोझ अधिक होना,नई नई शादी के बाद अधिक यौन सम्बन्धो से सिर का भारी रहना और शरीर मे बल की कमी हो जाना,शरीर मे अधिक यौन सम्बन्धो से बल की कमी होने से रोगो का प्रभावी हो जाना बुखार या टीबी जैसी बीमारी का हो जाना अधिक कमजोरी से माथे के भारी होने से काम मे मन नही लगना और जो करना उस काम का खराब हो जाना आदि बातो से होने वाली आय मे कमी हो जाना एक तरफ़ घर वालो की जिम्मेदारी एक तरफ़ पत्नी की जिम्मेदारी पत्नी और घर के सदस्यो या माता के सामजस्य को बैठाने मे तथा मानसिक कारणो के समझने या समझाने मे (चौथे से चौथा) भ्रम या कनफ़्यूजन से बात का बढते जाना आदि बाते मानी जाती है।

गाली मन को आहत करती है। सम्बन्धित भाव के चौथे भाव का मालिक जब राहु शनि मंगल सूर्य के साथ होता है तो गाली का रूप मे मन मे पैदा हो जाता है या तो गाली देनी पडती है या गाली सुननी पडती है। शनि जब अष्टम मे होता है तो गाली सुनने मे मजा आता है वह गाली चाहे जैसी भी हो,इसके साथ ही लगनेश का अष्टम मे होना आजीवन गाली सुनने का कारण बनता रहता है। बुध जब अष्टम मे हो तो आजीवन गाली देने की आदत बन जाती है,एक तकिया कलाम भी बोलते समय बन जाता है जो गाली के रूप मे भी हो सकता है और जब बुध के साथ चन्द्रमा अपने गोचर से चलता है तो गाली का रूप मजाकिया होता है बुध के साथ मंगल चलता है तो गाली कडे शब्दो की होती है इस युति मे अगर शनि की क्रिया भी गलत भावो से होती है तो गाली के बाद मरने मारने की बात भी सामने आजाती है रिस्ते खत्म हो जाते है लोगो को बडे से बडा नुकसान भी झेलना पडता है। लेकिन हर गाली के पहले का रूप केवल हंसी या प्रहसन ही होता है। बात को बढाने के लिये केवल अपनी पूरी जानकारी सामने वाले के पास होती है गाली को केवल मंगल का डर ही दबा सकता है बाकी मानसिक रूप से गाली देने को बददुआ भी कहा जाता है।

ग्रामीण परिवेश मे महिलाये अक्सर अपने पति को गाली देने के लिये उल्टा सीधा काम करती है और जान बूझ कर भी चिढाने का प्रयास करती रहती है जिससे उनका पति गाली दे और आसपास के लोग समझे कि उस महिला का पति कितना गुस्सेबाज है। जब उस महिला से कहा जाता है कि उसका पति गाली देता है उसका जबाब क्यों नही देती है तो वह महिला कहती है- "अन्न की छार पिया की गारी,कबहुं ने मेटे नाथ हमारी",यानी घर से अन्न भोजन और पति की तेज तर्रार तथा गाली बातें ईश्वर उस महिला को हमेशा देता रहे।पति और पत्नी का रिस्ता उसी प्रकार से माना जाता है जैसे मुकद्दमा मे पक्ष और विपक्ष का होता है। मुकद्दमा चलने का कारण भी दूसरा भाव और अष्टम भाव होता है तो विवाह के बाद पति पत्नी के लिये भी आपसी सामजस्य दूसरे और अष्टम से जुडा होता है। अगर पक्ष और विपक्ष के दोनो भावो के ग्रह बली है तो आजीवन मुकद्दमा चलता रहता है उसी प्रकार से विवाह मे भी पति पत्नी के दोनो भावो के ग्रह मजबूत है तो आजीवन सम्बन्ध चलता रहता है। मुकद्दमे का न्याय जज करता है और पति पत्नी के सम्बन्धो का न्याय उनके द्वारा किये गये कर्म और प्रकृति करती है।

हिन्दी के जिस शब्द के अन्त मे अक्षर "ली" लगा होता है वहां पर गाली का कोई न कोई रूप सामने आजाता है,जैसे साली रिस्ते से गाली गलौज में घरवाली आजीवन की जद्दोजहद मे हमाली आदेश से काम करने वाले के प्रति दलाली खरीद बेच मे कमीशन के कम अधिक होने पर या ली जाने वाली चीज की गुण्वत्ता पर,ख्याली यानी काम नही करने पर और सोचने से ही जरूरतो को पूरा नही करने पर मलाली यानी समय की कीमत नही पहिचाने जाने पर समय का मूल्य नही मिलने पर असली को नकली के द्वारा बेअकली को अकली के द्वारा चली को बिना चली के द्वारा आदि शब्दो से सोचा जा सकता है।

जीवन मे गाली की बहुत बडी महत्ता है,शब्दो के द्वारा कार्य को बना दिया जाना या बिगाड दिया जाना,कोई रास्ता चलते अनजान व्यक्ति बुरी गाली देता है तो गाली देने वाले का सिर फ़ोड दिया जाता है। गाली तो शब्दो से दी गयी थी लेकिन कार्य शरीर ने कर दिया। अगर गाली का उद्देश्य समझ लिया जाता तो भी बहुत बडी बात सामने होती कि एक सीख मिल जाती या एक प्रकार की सहनशीलता का कारण बन जाता। पति पत्नी की गाली गलौज दोनो के प्रति तभी कारण रूप मे बनती है जब दोनो मे ही पति किसी न किसी प्रकार से कमजोर होता है,पति पत्नी की जीवन के क्षेत्र मे बराबर की लडाई मानी जाती है अगर पत्नी किसी भी बात मे हर बार जीत जाती है तो वह पति को अन्दरूनी रूप से आहत करती रहती है और उस आहत होने का जबाब गाली गलौज से शुरु हो जाता है,इस प्रकार पति का दूसरा और अष्टम कमजोर होना माना जाता है यानी धन या भोजन की कमी और कामसुख और गुप्त बातो से अन्जान होना,इसी प्रकार से पत्नी भी तभी पति पर हावी हो सकती है जब वह दूसरे और अष्टम को सबल रखती हो यानी अपने परिवार धन और बातो से तथा गुप्त जानकारी रखने के बाद पति की हर बात का पता रखने पर और अन्दरूनी बातो को हर प्रकार से जानने पर। पति पत्नी मे गाली सामयिक ही होती है कभी भी लम्बी चलने वाली नही होती है समझदार लोग गाली देने वाले को और अधिक गाली देने के लिये उत्साहित करते है और चाहते है कि वह पूरी तरह से उत्तेजना मे आजाये और कोई अहित करने की सोच ले,जैसे ही सामने वाला अहित करने की सोचता है समझदार लोग गाली देने वाले को अपने शिकंजे मे ले लेते है,लेकिन जो समझदार नही होते है वह गाली देने वाले के समानान्तर मे गाली देना शुरु कर देते है,परिणाम मे खुद का भी बुरा कर लेते है और सामने वाले को आगे बढने का मौका भी देते है। कहा भी गया है- गाली आवत एक है,उलटत होय अनेक,जो कबीर चुपि हो रहे तो वही एक की एक यानी गाली देने वाले ने गाली दी है और उसका जबाब गाली से न दिया जाये और चुप रहा जाये तो गाली देने वाले को प्रतिउत्तर नही मिलने पर वह गाली एक ही रह जायेगी।

Saturday, October 6, 2012

विवाह और योनि भेद

विवाह एक पवित्र और सामाजिक बन्धन है। स्त्री के लिये पुरुष पूरक है और पुरुष के लिये स्त्री पूरक है। जैसे बिना खाई के पहाड की ऊंचाई नही नापी जा सकती है वैसे ही बिना स्त्री के पुरुष की उन्नति को नही जाना जा सकता है। जिस प्रकार से पानी के बिना नदी का आस्तित्व नही है वैसे ही पुरुष के बिना स्त्री का आस्तित्व नही है। एक ऋण है तो एक धन है बिना ऋण के धन के कोई महत्व नही है और बिना धन के ऋण को पूरा नही किया जा सकता है। लेकिन स्त्री धरती है तो पुरुष आसमान है। धरती का काम धारण करना है और पुरुष का काम धरती को अपने साये मे रखकर उसकी सुरक्षा करना है। गाय और स्त्री की मान्यता एक जैसी ही है,जिस समाज मे स्त्री की मान्यता नही होती है वह समाज या तो सामाजिक मूल्यों मे नगण्य है या पारिवारिक मर्यादा को हठधर्मी से जब चलाया जा सकता है चलता रहता है जिस दिन भी समय आता है समाज या परिवार बिखर जाता है।
ज्योतिष से जन्म के बाद स्त्री और पुरुष के प्रति योनि का आकलन किया जाता है। योनि का मतलब होता है कि जन्म लेने के बाद स्त्री या पुरुष किस योनि का व्यवहार आपसी सम्बन्धो को निभाने के प्रति करेगा। शादी विवाह के समय मे योनि का भेद भी ध्यान मे रखना जरूरी होता है,योनि भेद को समझने के बाद अगर विवाह का रूप प्रदान किया जाता है तो विवाह का चलना आजीवन सम्भव हो सकता है और योनि का समीकरण अगर जातक के साथ विवाह मे नही बैठ पाता है तो विवाह एक प्रकार से सामाजिक पवित्र बन्धन से दूर होता जाता है और कई प्रकार के कारण पैदा होने के बाद या तो विवाह टूट जाता है या विवाह को आजीवन ढोया जाता है।

समान योनि से विवाह करना एक प्रकार से बुद्धिमानी का काम होता है और वैवाहिक जीवन आजीवन चलता रहता है विपरीत योनि से विवाह करने का मतलब होता है शादी के पहले दिन से ही गृहस्थ जीवन मे तकरार शुरु हो जाना और आजीवन विवाह को या तो ढोया जाना या सम्बन्धो का टूट जाना।
चन्द्रमा की राशि और नक्षत्र के पाये से योनि भेद को देखा जाता है। योनि भेद का कारण मुख्य रूप से स्त्री पुरुष के आपसी रति सम्बन्धो के प्रति बहुत जरूरी है,रति क्रिया और रति क्रिया के बाद की सन्तुष्टि ही स्त्री पुरुष के सम्बन्धो को कालान्तर तक चलाने के लिये आवश्यक पहलू है। रति सम्बन्धो मे अगर किसी प्रकार की विविधिता मिलती है तो या तो स्त्री पुरुष से सन्तुष्ट नही हो पाती है या पुरुष स्त्री से सन्तुष्ट नही हो पाता है,और परिणाम में या तो स्त्री चिढचिढी हो जाती है या पुरुष को दुत्कारने का कारण शुरु कर देती है या अपने सम्बन्धो को रति क्रिया की सन्तुष्टि के लिये अन्य पुरुषों की तरफ़ आकर्षित होने लगती है यही कारण पुरुष के साथ बनता है और वह अपने रति क्रिया की सन्तुष्टि के लिये अन्यत्र अपनी खोज चालू कर देता है और सम्बन्धो मे दरार आने लगती है कुछ समय तो सामाजिकता को निभाने के लिये जीवन चलाया जाता है बाद मे वह सम्बन्ध या तो धर्म समाज नैतिकता से ढोया जाता है और जीवन भर एक ही द्रिष्टि से हेय रूप से देखा जाता रहता है।

मेष राशि के नामाक्षर चू चे चो ला का रूप अश्व योनि से मान्यता मे आता है,इस योनि के जातक अश्व योनि के अनुरूप अपनी रति क्रिया को चाहते है,स्त्री अधिक गहरी भावना को चाहती है और पुरुष अधिक गहराई तक जाने की भावना को चाहता है,विपरीत अवस्था मे या तो पुरुष स्त्री के लिये सम्पूर्ण नही हो पाता है या स्त्री पुरुष को झेल नही पाती है।
मेष राशि के ली लु ले लो नामाक्षर गज योनि से जोड कर देखे जाते है इस योनि से जुडे पुरुष मोटापे और रति क्रिया के लिये मद से पूर्ण हो जाते है और आक्रामक भी होते है,विपरीत अवस्था मे अधिक कामुकता का पैदा हो जाना और अनैतिक रति सम्बन्धो की तरफ़ जाना आदि बाते मानी जाती है।
मेष राशि के अ ई और वृष राशि के उ ए नामाक्षर को छाग यानी बकरी की योनि के रूप मे मान्यता दी गयी है इस योनि के जातक एक से अधिक और नयेपन की कल्पना मे रहते है कामुकता का अधिक होना तथा बार बार सम्बन्धो को बदल कर अपनी रति क्रिया को पूर्ण करना जीवन के कच्चेपन से ही योन सम्बन्धो की तरफ़ झुकाव हो जाना आदि बाते मानी जाती है।
वृष राशि के ओ वा वी वू वे वो तथा मिथुन राशि के क की नामाक्षर के जातक सर्प योनि से जुडे होते है अक्सर इस योनि के जातक एक ही जीवन साथी से जुड कर रहना चाहते है और गुप्त रूप से अपने योन सम्बन्धो को स्थापित करते है,जब भी इनके रति सम्बन्धो मे बाधक बनता है वह चाहे इनके लिये खास ही क्यों न हो इस योनि के लोग आक्रामक हो जाते है और अपने चाहे गये सम्बन्धो को प्राप्त करने के लिये अपने ही घर मे आग लगा सकते है। इस योनि के जातक अपने जीवन साथी के लिये अपनी आहुति दे सकते है तथा अपने जीवन साथी के जीवन पर कष्ट नही आने देते है। अगर इनके साथ बलात रति सम्बन्धो के मामले मे कोई कारण पैदा किया जाये तो यह अपनी जान भी दे सकते है या जान भी ले सकते है। लम्बे वैवाहिक जीवन के लिये इस योनि के जातक अपनी मर्यादा को पूरी तरह से निभाते देखे जाते है।
मिथुन राशि के कू घ ड. छ नामाक्षर वाले जातक स्वान योनि से यानी कुत्ते की योनि से जोड कर देखे जाते है। इस योनि के जातक अपने एक क्षेत्र विशेष से बन्धे होते है,तथा अपनी ही श्रेणी के प्रति आकर्षित भी होते है किसी भी कारक को जाने बिना उससे उलझने की कोशिश करते है साथ ही अपने ही क्षेत्र के लोगो के बारे मे जानने की उत्सुकता और उम्र आदि का कोई लिहाज नही रखकर अपनी कामुकता की शांति के लिये गुप्त प्रयास देखे जाते है। इनका स्वभाव केवल अपनी काम शांति तक ही सीमित होता है उसके बाद अपनी परिवार की जिम्मेदारी से इन्हे कोई लेना देना नही होता है स्त्रियां भी अपने बच्चो के प्रति उतनी ही जिम्मेदार होती जबतक कि वे अपने पैरो पर खडे नही हो जाते है.एक समय विशेष मे इस योनि मे पैदा होने वाले जातको की कामुकता अधिक बढती है। परिवारिक जीवन केवल आदेश से चलता है और कोई बलवान आदेश देने वाला है और समझ कर घर को चलाने वाला है तो इस योनि के जातक अपनी जिम्मेदारी को पूरा करते है नही तो भगवान भरोसे पारिवारिक जीवन चलता रहता है।
मिथुन राशि के के को और कर्क राशि के ह ही अक्षर वाले लोग मार्जार यानी बिल्ली की योनि से अपने जीवन को लेकर चलने वाले होते है। बच्चे पैदा होने तक इस योनि के जातक एक ही स्थान पर टिक कर रहते है जैसे ही बच्चे पैदा हुये और इस योनि वाले जातको का स्थान बदलने का कारण शुरु हो जाता है।
इसी प्रकार से मूषक (चूहा) गौ (गाय) महिष (भैंस) व्याघ्र (चीता) मृग (हिरन) वानर (बन्दर) नकुल (नेवला) सिंह (शेर) आदि योनियो का भेद समझा जा सकता है.


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Wednesday, October 3, 2012

जीवन में भटकाने वाले कारकत्व

प्रस्तुत कुंडली मे मीन लगन है और लगनेश गुरु का स्थान पंचम भाव मे केतु के साथ है,लगनेश का केतु के साथ होने का अर्थ जीवन मे भटकाव के अलावा और कुछ भी प्राप्त नही होता है जिस भाव का केतु होता है उसी भाव के फ़लो मे जातक को भटकाने का काम करता है वह चाहे अच्छे रूप मे हो या खराब रूप में। गुरु का स्थान पंचम मे होने से विद्या और बुद्धि के क्षेत्र मे है,जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र मे है खेलकूद और रोजाना की जिन्दगी मे असीमित लालसाओं तथा प्राप्तियों के प्रति चिन्ता करने के क्षेत्र मे है। ग्यारहवे भाव का राहु भी गुरु को अपनी युति प्रदान कर रहा है। केतु का भटकाव नौकरी के लिये जल्दी से जल्दी धन कमाकर अपने को समाज मे प्रदर्शित करने के लिये शादी और कार्य करने वाली पत्नी की प्राप्ति के लिये गुरु केतु की तीसरी द्रिष्टि सप्तम मे होने से है,और सप्तम मे स्थापित शुक्र जो हिम्मत देने का भी मालिक है और अपमान करने के साथ साथ रोजाना की जिन्दगी मे जोखिम भी लेने के लिये माना जा सकता है। गुरु केतु की पंचम द्रिष्टि नवे भाव पर है और नवे भाव मे राहु के गोचर से होने से जातक का जो भी ऊंचे शिक्षा का क्षेत्र है वह भी बाधित हो गया है और धन आदि कमाने के चक्कर मे तथा शिक्षा के क्षेत्र मे जाने से अपनी वास्तविक कार्यप्रणाली को बदलने के भी उत्तरदायी है। गुरु कर्क राशि का उच्च का है इसलिये जीवन मे उन्नति साधारण मार्ग से अपने को इज्जत और मान मर्यादा मे रखकर चलने से भी मानी जायेगी केतु के साथ होने से और गुरु केतु के द्वारा अष्टम स्थान पर चन्द्र सूर्य बुध को व्यापारिक बल देने के कारण जातक को धन सम्बन्धी काम जैसे व्यापारिक धन को जोखिम से बचाना सरकारी कारणो से धन की बरबादी को बचाना व्यापारिक कानूनो के प्रयोग से जनता को धन सम्बन्धी बचाव का रास्ता देना आदि कारण जातक के लिये वास्तविक उद्देश्य का रास्ता बताते है लेकिन राहु पिछले चौवन महिने से जातक के ग्यारहवे भाव दसवे भाव और अब नवे भाव मे गोचर करने से जातक के अन्दर एक प्रकार का जल्दी से कमाने और धन की जरूरत को पूरा करने के लिये तथा छोटी सी उमर मे ही लोगो के लिये आदर्श बनने का भूत सवार कर रहा है। इस राहु के कारण जातक अपनी वास्तविक मर्यादा को भूल गया है वह अपने को कभी तो इतना व्यस्त कर लेता है कि खाने पीने सोने और मौज मस्ती से दूर चला जाता है,घर मे एक प्रकार का सन्नाटा प्रदान करने के लिये पिता के लिये माता के लिये सेहत सम्बन्धी कष्ट प्रदान करने का कारण चिन्ता से देने के लिये और जो भी कारण शिक्षा सम्बन्धित है वह केवल कनफ़्यूजन मे लेकर उन्हे समय से नही पूरा करने की बात से भी माने जाते है। जातक केवल घर की प्राथमिक अवस्थाओ को पूरा करने के बाद चाहता तो वह अपने वास्तविक उद्देश्य जो ऊपर धन सम्बन्धी कारणो की शिक्षा के लिये बताई गयी है एक चार्टेड एकाउन्टेन्ट की हैसियत से जीवन को निकालने के लिये प्रकृति ने जो साधन बुद्धि और ज्ञान दिया था वह प्रयोग नही करके केवल धन के प्रति सोचने और अपने को बेकार के कनफ़्यूजन मे ले जाकर समय और सेहत के साथ मूल्यवान समय को बरबाद करने का कारण ही तो जातक को मिल रहा है दोस्ती के भाव मे राहु के होने से जो भी जातक के दोस्त है वह जातक को कभी तो राजकीय सेवा मे जाने के लिये कभी स्कूली काम करवाकर बिना किसी लाभ के भटकाने के लिये कभी कुछ और कभी कुछ करने का भूत सवार करने के बाद जातक के टारगेट से दूर जाने का उपक्रम करने के लिये अपनी शक्ति को प्रदान कर रहा है।
गुरु से शनि की स्थिति छठे भाव मे होने से जातक के लिये कहा जा सकता है कि जातक का जीवन कठिन से कठिन मेहनत करने के बाद जो भी प्राप्त करेगा वह धन ग्यारहवे मंगल के प्रभाव के कारण जिस पर मित्र भाव के राहु का असर है अचानक खर्च करने के कारको मे अपना सब कुछ खर्च कर देगा और फ़िर वृष राशिका मंगल अपने कारको से परिवार की जिम्मेदारी के प्रभाव को साथ मे लाकर जातक को कर्जा दुश्मनी बीमारी से ग्रस्त करने के कारको को पैदा करेगा।
शुक्र जो मंगल के घेरे मे है साथ ही मित्र भाव के राहु के घेरे मे है जातक की शादी के बाद उसके मित्रो का प्रभाव पारिवारिक जीवन पर भी जायेगा और शुक्र जो पत्नी के रूप मे है जातक की अन्देखी के कारण वह अपने वैवाहिक जीवन को नही सम्भाल पायेगा जैसे ही शुक्र को मौका मिलेगा वह धन या खानपान के प्रभाव से अथवा उत्तेजना मे अपने को गुप्त रूप से परिवार के साथ विश्वासघात करने के लिये अपने असर को प्रदान करेगा।
जातक का यह कारण जातक के दादा से शुरु हुआ है जैसे जातक के दादा दो भाई थे और दोनो मे एक की ही पारिवारिक वंशावली आगे चली,दो दादिया एक दादा के रही घर का परिवार का जो भी संचालन था वह किसी धर्म या शिक्षा या घरेलू व्यापारिक कारण से बरबाद होता रहा जातक के दादा या पिता अपने परिवार को पैत्रिक माना जाता है को छोड कर दूसरी जगह पर जाकर बसे और उस बसावट मे न्याय आदि के कारण अपने पूर्वजो के प्रति धारणा जो चलनी चाहिये थी वह नही मिल पायी और पिता के कारणो से जातक को आजीवन भटकाव का रास्ता सामने मिल गया। जातक के पिता का रूप दो बहिने और दो भाई के रूप मे माना जाता है।

Tuesday, October 2, 2012

जब गुरु बन जाये बुध जैसा

जीवन के चतुष्कोणीय आकार मे गुरु का महत्व जीव के रूप मे देखा जाता है यह जिस भाव मे अपनी युति को प्रदान करता है वह भाव एक प्रकार से सम्पूर्ण जीवन का केन्द्र बिन्दु बन जाता है। गुरु के दो तीन प्रभाव माने जाते है एक प्रभाव मार्गी गुरु का होता है और दूसरा प्रभाव वक्री गुरु का तथा तीसरा भाव अस्त गुरु का होता है। गुरु जब कुंडली मे मार्गी होता है तो जातक के लिये अपने परिवार समाज रिस्ते नाते शिक्षा आदि के साथ संस्कृति का कारण वही बन जाता है जो उसके पैदा होने के बाद उसे बिरासत मे मिले होते है लेकिन वही गुरु अपने समाज परिवार और रीति रिवाज से दूर होकर अपने कार्य व्यवहार समझ और अपनी खुद की योग्यता से अपने भविष्य का निर्माण करने के लिये उत्तरदायी हो जाता है। गुरु का मार्गी होना एक प्रकार से बहती हवा के साथ चलना होता है और वक्री होने से बहती हवा से विरुद्ध चलने जैसा होता है। इस बात को एक प्रकार और भी समझा जा सकता है कि जो लोग लीक से हटकर चलने वाले होते है वह वक्री गुरु की श्रेणी मे आजाते है,कहा भी जाता है - "लीक छोड तीनो चलें शायर शेर सपूत",यानी लेखक और शेर के साथ सपूत को भी जोडा गया है यह तीनो ही लीक को छोड कर चलने वाले होते है।
प्रस्तुत कुंडली मकर लगन की है और स्वामी शनि सप्तमेश के साथ अष्टम भाव मे है। अष्टम भाव के लिये ज्योतिष मे जो विवरण मिलता है वह सबसे उत्तम विवरण जोखिम से सम्बन्धित कामो के लिये मिलता है इसके साथ ही जब शनि जो लगनेश है वह जोखिम के कामो के साथ सप्तमेश को साथ ले लेते है तो व्यक्ति के अन्दर एक प्रकार से अपनी गति विधि के प्रसारित करने के कारण जो भी इस भाव से सम्बन्धित कारक होते है वह फ़्रीज होने लगते है। जैसे कोई व्यक्ति अपने कार्य से राज्य के प्रति स्कूल के प्रति सरकारी और राजनीति से सम्बन्धित गुप्त कार्य कर रहा होता है और जातक अपनी हलचल अगर इस प्रकार के लोगो के साथ शुरु कर देता है तो लोग अक्समात चुप हो जाते है। और उस समय इतने शांत हो जाते है कि व्यक्ति को आगे चलकर अहसास भी नही होता है कि जहां उसने अपनी गतिविधि को शुरु किया है वहां कभी गलत गतिविधि भी हुआ करती थी। कुंडली का मुख्य केन्द्र बिन्दु गुरु वक्री होकर कर्जा दुश्मनी बीमारी और नौकरी के भाव मे है जातक को इन्ही क्षेत्रो के प्रति अधिक रुझान होना इनके बारे मे ज्ञान प्राप्त करना और इन्ही कारको के प्रति अपनी योग्यता को जाहिर करने का अवसर जीवन मे मिलता रहता है। इसके साथ ही जातक के लिये एक बात और भी देखी जा सकती है कि जातक को यह गुरु अपनी युति से वह सब प्रदान करता है जो एक साधारण व्यक्ति को प्रदान नही कर पाता है जैसे एक साधारण व्यक्ति अपनी रुचि से बहुत कोशिश करता है कि वह दिये गये पाठ या चलने वाली गतिविधि को याद कर ले पर वह याद नही कर पाता है और वही पर अगर गुरु वक्री वाला जातक अपनी बुद्धि को चलाने के लिये सामने आता है तो एक चौथाई समय मे ही अपनी योग्यता से होने वाली घटना किये जाने वाले काम और कठिन से कठिन विषय को याद करने मे अपने को आगे बढाता चला जाता है। यह गुरु किसी भी प्रकार के किये जाने वाले गुप्त कार्य धन से सम्बन्धित वह कार्य जो गुप्त होते है और वह सामने नही आते है उन्हे अपनी योग्यता से निकालकर बाहर ले आता है।
इस गुरु का पहला मार्ग मंगल को साथ लेकर शनि चन्द्र के साथ मिलने की योग्यता को धारण करता है,शनि गुरु के प्रभाव से शिक्षा के क्षेत्र स्थानीय रक्षा के कारण स्कूली विषयों मे रुचि रखने वाले लोग इस गुरु की शक्ति मे इजाफ़ा करते है। गुरु जो अपनी युति को उल्टे रूप मे प्रस्तुत करने वाला होता है वह बुध की मिथुन राशि मे होने के कारण लेखन क्रिया मे अपनी योग्यता को तुरत फ़ुरत ग्रहण कर लेता है इसके अलावा भी गुरु का कालपुरुष की कुंडली से कन्या राशि मे होने से जातक को नौकरी आदि के क्षेत्र मे अच्छी प्रगति देता है लेकिन अपनी गति से उल्टे रूप से धन को प्राप्त करने के लिये गुरु से आगे के मंगल को अपने सामने रखता है। जातक की कुंडली मे मंगल नीच का है और नीच के मंगल का योग लाभ भाव मे विराजमान बुध से भी है बुध भी इस कुंडली मे छठे भाव का मालिक भी है और भाग्य का कारक भी है इसलिये जातक को अपनी शक्ति से गूढ विषयों के प्रति जानकारी प्राप्त करना,लोगो के भावो को समझ कर अपने कार्यों को करना जो भी कार्य किये जाये वह एक प्रकार से ब्रोकर की हैसियत से करना और जो लोग गुप्त रूप से अपने को जमीनी कारणो से जुड कर और भूमिगत काम करने वाले होते है उनके बारे मे खुद के अनुभव से समीक्षा करने की शक्ति गुरु के अनुसार ही मिलती है। गुरु बुध के घर मे होने से बुध के प्रभाव को प्रस्तुत करने वाला है और वक्री होने के कारण अपने को बैंकिंग आदि के क्षेत्र से जोड कर भी चलता है। नीच का मंगल सप्तम मे होने से विवाह आदि के कारणो मे क्लेश का कारण भी बनाता है मंगल पर केतु की नजर होने से जातक को एक से अधिक विवाह करने की अपनी योग्यता को भी प्रदान करता है लेकिन गुरु के वक्री होने से शादी विवाह का रूप अलावा जाति से सम्बन्धित भी हो सकता है और बुध के वृश्चिक राशि मे होने से विवाह वैधव्य आदि के कारको से भी जुडा होता है जैसे दुर्घटना आदि के कारणो से जुडे लोग और असहाय लोग जो जातक की कृपा पर आधारित होते है आदि बाते विवाह के लिये मानी जा सकती है। लगनेश शनि का सप्तमेश चन्द्रमा के साथ होने से विवाह मे देरी का कारण भी बनता है और जो भी शादी सम्बन्ध वाली बात चलती है उसके अन्दर जातक को एक प्रकार से धीरे धीरे प्रोग्रेस करने के कारण भी शादी विवाह के लिये दिक्कत मे जाना जा सकता है। चन्द्रमा के साथ होने से जो भी भावनाओ से रिस्ते आदि जोडे जाते है वह भी एक प्रकार ठंडी और सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी से अलग होने के कारण अपनी भावनाओ को कह भी नही पाते है और दूर रहकर केवल गतिविधियों पर अपनी नजर को रखते है। जातक की शादी का समय आने वाले साल दो हजार तेरह मे सात जून के आसपास मिलता है।

जब जीवन मे हावी हो जायें राहु केतु

प्रस्तुत कुंडली कुम्भ लगन की है और जातिका की राशि भी कुम्भ है.कुम्भ लगन मित्र राशि का कार्य करती है वह मिलती है तो मित्र की तरह से और कार्य करती है तो एक बडे भाई बहिन की हैसियत से अपने को समाज परिवार मे और रीति रिवाज मे बडप्पन जब तक इस लगन के जातक को नही मिलता है तब तक जातक या जातिका का मानसिक भाव पूरा नही होता है। अक्सर इस लगन के जातक जायदाद और लाभ के कारणो मे अधिक जाते देखे गये है और अपने को संचार के माध्यम से और प्रसारण मीडिया तथा लोगो की अन्दरूनी जानकारी के बाद ही अपने भाव प्रस्तुत करने के लिये अपनी भावनाओ को रखना उनका मुख्य उद्देश्य होता है। प्राचीन कवि रहीमदास जी एक दोहा लिखा था- "जिन खोजा तिन्ह पाइयां गहरे पानी पैठि। मै बपुरा ढूंढन चला रहा किनारे बैठि॥" यह दोहा मुझे लगता है कुम्भ लगन के जातको के लिये ही लिखा गया था। कारण कुम्भ लगन के जातक अक्सर अपने कार्यों को उसी प्रकार से करते है जैसे गहरे पानी के अन्दर पडी वस्तु को खोजने का काम, और इस लगन वाले जातक जनता पानी पानी मे पैदा होने वाली चीजे जनता के द्वारा से प्राप्त किये गये मानसिक कारण जो एक दूसरे के प्रति दिये और लिये जाते है के प्रकारो मे खोजी भाव रखते हो,घर गृहस्थी के मामले मे भी इस लगन जातक के लिये एक प्रकार से घरेलू मामले मे अन्दर तक घुस कर पूरी जानकारी प्राप्त करने का निमित्त भी जाना जा सकता है अगर इस लगन के जातक को किसी के घरेलू बनाव बिगाड के कारणो को खोजने के लिये कह दिया जाये तो वे अपनी कुशल बुद्धि से किस कारण से घर मे बनाव या बिगाड हुआ है उसका पर्दाफ़ास कर सकते है। इस लगन के जातक को हमेशा तीन कारणो से अधिक आजीवन जूझना पडता है एक तो नगद धन की प्राप्ति के लिये भागदौड करने के काम दूसरे रिस्क लेने के मामले मे लिये गये धन और धन को प्राप्त करने के बाद नही चुकाने के बाद अपमानित होने वाले कारण तीसरे जो भी करना है वह खुद के लिये नही किया जाता है हमेशा दूसरो के लिये ही किया जाता है और अक्सर कार्यों के लिये पिता के लिये और सरकारी कारणो के लिये ही खर्च करना पडता है। इन तीन कारणो से आजीवन इस लगन वाले जूझते रहते है।
इस लगन के जातक के लिये राहु और केतु मुख्य रूप से अपनी भूमिका को आजीवन निभाने का काम करते है। कारण राहु को आसमान की ऊंचाई के रूप मे भी देखा जाता है जो मीन राशि का कारक है राहु को समुद्र की गहरायी के रूप मे भी देखा जाता है जो कर्क राशि का कारक है और राहु को जमीन के पाताली क्षेत्र के रूप मे भी देखा जाता है जो वृश्चिक राशि के घेरे मे आता है। कुम्भ लगन के जातक को आसमानी ऊंचाइयों के लिये धन चमक दमक ऊंचे घर या संस्थान को सम्भालने का काम नगद धन को व्यय करने का काम हवाई यात्राओ को और बाहरी कारणो पर खर्च केवल इसलिये करना पडता है क्योंकि कुम्भ लगन के सामने यानी दूसरे भाव मे मीन लगन आती है और जब भौतिक शक्तियों मे आसमानी शक्ति का रूप सामने आजाये तो जब भी धन कुटुम्ब या परिवार का कारण सामने आजाये तो आसमान की तरफ़ ताकने का यानी ईश्वर के प्रति विश्वास रखने के अलावा और कुछ नही होता है। कुंडली का छठा भाव शरीर की मेहनत से या लोगो की मेहनत से काम लेने और काम करवाने के लिये भी अपनी युति को रखता है यह जीवन के बचत और धन सम्बन्धी कारणो को अपने सामने रखने के लिये तथा जीवन के गूढ को प्राप्त करने का एक स्थान होता है। इस स्थान का मुख्य रूप से मालिक बुध होता है और बुध की उपस्थिति कुम्भ लगन वाले जातको के लिये पंचम विद्या से और अष्टम जोखिम के भाव के मालिक के रूप मे होने से तथा छठे भाव का स्वामी चन्द्रमा होने से और चन्द्रमा के रूप मे बुध के साथ योगदान होने से एक प्रकार से मजाकिया कारण बन जाता है। जातक किसी भी काम को करने के लिये अपने द्वारा दुख के समय मे भी अपनी भावनाओ को मजाकिया रूप मे प्रस्तुत करने के लिये किसी को शिक्षा देनी है जनता या समाज मे अपने को प्रस्तुत करना है तो मजाकिया रूप मे प्रस्तुत करने की आदत से देखा जा सकता है। व्यक्ति जो भी बात करता है वह एक प्रकार से बिच्छू के डंक और शिक्षात्मक पहलू से जुडा देखा जा सकता है अक्सर परिवार के अन्दर खुद के ही लोग जातक से अपने आप धीरे धीरे दूरिया बनाते जाते है यहां तक भी देखा जाता है कि बुध जो पुत्रियों के रूप मे होता है उसमे इस लगन के जातक के लिये एक पुत्री जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र और शिक्षा के पहलू के लिये देखी जाती है और जो भी काम करती है वह मनोरंजन से जुडा होता है साथ ही दूसरी पुत्री जिसे केवल डंक मारने किसी भी बात को चुभने वाली व्याख्या से कहने तथा जोखिम को लेकर किसी भी काम मे कूद पडने की बात से जुडा माना जा सकता है इस लगन के जातक की छोटी पुत्री अक्सर जोखिम लेकर अपनी जान की परवाह भी नही करती है इसलिये इस लगन के जातको को आपनी दूसरे नम्बर की पुत्री की जोखिम से बचकर ही रहना सही होता है। इस लगन के जातक के अक्सर देखा जाता है कि पहली पुत्री होती है अगर वह रहती है तो अपने को प्रदर्शन के मामले मे शिक्षा के मामले मे और मनोरंजन के मामले मे खेलकूद के मामले मे बोलने चालने और फ़ैसन आदि के मामले आगे रहती है दूसरे नम्बर का पुत्र माना जाता है अगर होता है तो वह पिता के पगचिन्हो पर चलने वाला होता है तीसरे नम्बर की पुत्री मानी जाती है अगर शुक्र पुरुष प्रधान नक्षत्र मे है और पाया भी पुरुष नक्षत्र का है तो वह पुत्री के स्थान पर पुत्र का रूप जरूर बनाता है लेकिन शादी तक या जीवन मे चढाव के समय मे किसी न किसी प्रकार की बुध के बिगडने की बात यानी जुबानी बीमारिया या हकलाहट तुतलाहट कभी भी किसी भी समय उल्टा बोल जाना किसी न किसी प्रकार की अपंगता से ग्रस्त हो जाना आदि भी माना जा सकता है जातक के चौथे नम्बर की सन्तान भी पुत्र के रूप मे ही होती देखी गयी है लेकिन वह भी एकलौती पुत्र सन्तान के रूप मे तभी सही मानी जाती है जब जातक की कुंडली मे गुरु की स्थिति सही हो। अगर गुरु किसी प्रकार से वक्री है तो अस्त है या स्त्री राशि मे है नक्षत्र या पाये मे है तो वह पुरुष की शक्ल मे होने के बावजूद भी स्त्री जैसे व्यवहार करने के लिये समझा जा सकता है।
कैसे होते है राहु केतु जीवन मे हावी ?
राहु केतु जितने ग्रहो को अपने कब्जे मे ले लेते है उतने ग्रहो को वे अपने अनुसार ही आजीवन चलाने के लिये बाध्य कर देते है। प्रस्तुत कुंड्ली मे राहु दसवे भाव मे है और केतु चौथे भाव मे है राहु के साथ मंगल है और शनि भी है जब राहु किसी ग्रह के साथ बैठता है तो वह ग्रह की शक्ति को अपने अन्दर अवशोषित कर लेता है और ग्रह को अपनी ही आदत आचार विचार व्यवहार करने की पूरी शक्ति प्रदान कर देता है,इसी प्रकार से उपरोक्त कुंडली मे देखा जा सकता है कि राहु ने कार्य भाव मे बैठ कर शनि और मंगल को अपने घेरे मे लिया है कार्य मे राहु का अर्थ है इतना काम जिसका कोई अन्त नही हो और राहु के साथ मंगल का होना कार्य करने के लिये इतनी शक्ति का प्रयोग करना जिसका कोई अन्त नही हो साथ कार्य करने के लिये इतने सारे लोग हो कि कार्य किसके द्वारा क्या किया जा रहा है कोई पता नही हो,राहु ने इस कुंडली मे अपनी तीसरी नजर बुध को दी है बुध बारहवे भाव मे है और मकर राशि का होने के कारण यह बुध मीडिया और प्रसारण के क्षेत्र मे अपना आकार प्रकार प्रस्तुत कर रहा है उसी स्थान पर जातक के लिये एक प्रकार से बुद्धि को व्यय करने के लिये और यात्रा करने के लिये अपनी स्थिति को प्रदान कर रहा है अगर इसे धार्मिक रूप से देखा जाये तो यही बुध वैष्णो देवी या किसी ऐसी देवी के लिये जो पहाडी क्षेत्र मे अपना निवास बनाकर बैठी हो के लिये भी माना जाता है यही बुध एक पुत्री के लिये भी अपने असर को प्रदान कर रहा है जो लडकी अपनी स्थिति और अपनी मेहनत से विदेश मे जाकर नाम करने के लिये भी मानी जा सकती है यही बुध राहु के साथ मंगल और शनि की शक्ति लेकर खनिज बिजली दक्षिण दिशा के प्रति लोगो के लिये किये जाने वाले काम इंजीनियरिंग तेल कम्पनी या धन के प्रति किये जाने वाले काम जो देखने मे कुछ और पीछे से कुछ होते है मौत के बाद के कारण समझने और मौत के बाद के कारण पता करने के बाद सुलझाने के लिये किये जाने वाले कारण आदि के लिये भी जाना जा सकता है राहु की नजर बारहवे भाव मे होने जो भी कारक बाहरी रूप से देखे जाते है चाहे वह बाहरी लोगो के लिये रहने खाने भोजन की व्यवस्था यात्रा आदि से जुडे हो या बडे रूप मे अपनी योग्यता से किसी बात को रूपान्तरित करने वाले कारणो को प्रयोग करने की बात हो को समझा जा सकता है। यही राहु धन भाव मे विराजमान शुक्र पर अपनी नजर को रख रहा है यह भी देखा जा सकता है कि मीन का शुक्र उच्च का शुक्र होता है इस शुक्र का मुख्य रूप ऊंची चमक दमक बाहरी धन और किये जाने वाले कामो का पूर्ण रूप से नगद प्राप्त किया जाना माना जा सकता है राहु की नवी नजर छठे भाव मे विराजमान यूरेनस पर भी है यूरेनस को कमन्यूकेशन और मीडिया फ़िल्म लाइन के लिये भी माना जाता है इसी प्रकार से जो भी काम किये जाते है वह परिवार के द्वारा इसी कारण से जाने जाते है,यह ग्रह मशीनी ग्रह के रूप मे भी देखा जा सकता है,और इस ग्रह पर अगर राहु अपनी द्रिष्टि देता है तो व्यक्ति के अन्दर कमन्यूकेशन करने की एक प्रकार से बडी औकात हो जाती है व्यक्ति अपने असर से केवल बडी बडी सामाजिक संस्थाओ मे बडी बडी धन प्रदान करने वाली कम्पनियों मे अपने वर्चस्व को कायम रखने मे मजबूत हो जाता है और एक जुबान से ही कितना ही धन इकट्ठा करने की हैसियत को बना लेता है। इस प्रकार से इस कुंडली के राहु ने मंगल शनि बुध शुक्र को अपने घेरे मे ले रखा है आइये अब देखते है कुम्भ लगन मे चौथे केतु का क्या स्थान है। चौथा केतु धन की राशि वृष मे है चौथे केतु ने अपनी पहली योग्यता माता के घर से ही प्रदान की है और वह योग्यता के कारण जातिका का पहली क्लास का रूप  किसी भी कान्वेंट स्कूल से जोड कर देखा जा सकता है या सर्वधर्मी संस्था से शुरु से ही जुडा हुआ माना जाता है इसके बाद केतु का प्रभाव छठे भाव मे जाता है और वहा यूरेनस की उपस्थिति से जातिका के लिये आदेश से काम करवाना ही माना जाता है जातिका खुद ही आदेश से किसी भी काम को करवाने की हैसियत को रखती है यही नही जातिका का काम उन्ही स्थानो मे होता है जहां कर्क राशि का प्रभाव हो यानी समुद्री स्थान हो या पानी के आसपास का क्षेत्र हो पिता का स्थान एक बडे उद्योग पति के रूप मे देखा जा सकता है माता की स्थिति भी एक प्रकार से बडे संस्थान को संभालने के कामो से जोड कर देखी जा सकती है। केतु की सातवी नजर मे मंगल शनि भी आते है और केतु की नवी नजर मे बारहवा बुध भी आता है इस प्रकार से यह भी देखा जा सकता है कि जातिका की माता की तीसरी बहिन के पुरुष संतान का अभाव और या तो गोद जाने वाली स्थिति या गोद लेने वाली स्थिति ही मानकर देखी जा सकती है यही कारण एक बडे वकील की हैसियत से भी देखी जा सकती है,जो वकील जातिका के पति परिवार से जुडा हो या जो वकील एक ऊंची राजनीति की हैसियत रखने के बाद बाहर से मदद देने का रूप हो आदि बाते इस केतु बुध की युति से मानी जाती है।
राहु केतु की नजर बचे ग्रह ?
राहु केतु से बचे ग्रह भी राहु केतु के आदेश से काम करने वाले होते है,जैसे केतु के दसवे भाव मे सूर्य चन्द्र होने से जीवन साथी और खुद के लिये बडी बहिन का रूप मे नाना परिवार या माता परिवार के सानिध्य मे रहना और कार्य करना माना जाता है अथवा खुद के नाना ने माता पिता को एक साथ रखकर खुद के लिये अपनी औकात को जाहिर किया हो,इसी प्रकार से राहु के साथ मंगल शनि की युति से सप्तम भाव के गुरु को अपनी नजर से आदेशात्मक रूप मे कार्य करवाने के लिये अपनी युति को प्रदान किया है,यानी जातिका की बुद्धि को बहुत तेज किया है उसकी याददास्त बहुत तेज है वह किसी भी काम को तकनीकी रूप से बहुत जल्दी समझ सकती है साथ ही खुद के परिवार समाज और रहने वाले स्थान से भिन्न होकर रहने की आदत से और विदेशी परिवेश को धारण करने तथा उसी के अनुसार चलने के लिये आधुनिकता के रूप मे अपने को प्रदर्शित करने के मामले मे अपने को आगे लेकर चलने की क्रिया को करना भी एक प्रकार से आदत मे माना जा सकता है जब तक खुद का स्वार्थ है किसी को भी प्रयोग मे लेना और बाद मे काम समाप्त होने के बाद भूल जाना आदि बाते भी देखी जा सकती है इसी कारण से जातिका को पुत्र सुख का मिलना एक प्रकार से नही माना जाता है एक तो पुत्र सन्तान नही होती है किसी भी सन्त या आसमानी शक्ति से अगर पुत्र सन्तान प्राप्त हो भी जाती है तो वह किसी न किसी कारण से एक प्रकार से अपंगता जैसी बात को सामने रखती है और वह मंगल शनि राहु की युति के कारण जीव के कारक गुरु को विपरीत भाव से देखती है जातक के खून के अन्दर उत्तेजना का समिश्रण हो जाता है और वह अपने पुत्र भाव से दूर रहकर अपने को या तो अस्पतालो से जुडा मान जाती है या वह अपने को एकान्त मे रह कर अपने ही बारे मे सोचने और शिक्षा आदि से बहुत जल्दी दूरिया बना लेती है,यह कारण एक प्रकार से पिशात्मक दोष भी माना जा सकता है यह दोष किसी साधारण उपाय से नही दूर किया जा सकता है कारण जो भी इस दोष को उतारने की कोशिश करता है खुद ही बलि का बकरा बन जाता है और पिशाच रूपी राहु शनि मंगल उस दोष को समाप्त करने वाले व्यक्ति को बदबू दार सडन मे लेकर या तो धीरे धीरे खूनी रोग से ग्रस्त कर देते है या किसी प्रकार की दुर्घटना आदि मे अन्त कर देते है।
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