Tuesday, October 2, 2012

जब जीवन मे हावी हो जायें राहु केतु

प्रस्तुत कुंडली कुम्भ लगन की है और जातिका की राशि भी कुम्भ है.कुम्भ लगन मित्र राशि का कार्य करती है वह मिलती है तो मित्र की तरह से और कार्य करती है तो एक बडे भाई बहिन की हैसियत से अपने को समाज परिवार मे और रीति रिवाज मे बडप्पन जब तक इस लगन के जातक को नही मिलता है तब तक जातक या जातिका का मानसिक भाव पूरा नही होता है। अक्सर इस लगन के जातक जायदाद और लाभ के कारणो मे अधिक जाते देखे गये है और अपने को संचार के माध्यम से और प्रसारण मीडिया तथा लोगो की अन्दरूनी जानकारी के बाद ही अपने भाव प्रस्तुत करने के लिये अपनी भावनाओ को रखना उनका मुख्य उद्देश्य होता है। प्राचीन कवि रहीमदास जी एक दोहा लिखा था- "जिन खोजा तिन्ह पाइयां गहरे पानी पैठि। मै बपुरा ढूंढन चला रहा किनारे बैठि॥" यह दोहा मुझे लगता है कुम्भ लगन के जातको के लिये ही लिखा गया था। कारण कुम्भ लगन के जातक अक्सर अपने कार्यों को उसी प्रकार से करते है जैसे गहरे पानी के अन्दर पडी वस्तु को खोजने का काम, और इस लगन वाले जातक जनता पानी पानी मे पैदा होने वाली चीजे जनता के द्वारा से प्राप्त किये गये मानसिक कारण जो एक दूसरे के प्रति दिये और लिये जाते है के प्रकारो मे खोजी भाव रखते हो,घर गृहस्थी के मामले मे भी इस लगन जातक के लिये एक प्रकार से घरेलू मामले मे अन्दर तक घुस कर पूरी जानकारी प्राप्त करने का निमित्त भी जाना जा सकता है अगर इस लगन के जातक को किसी के घरेलू बनाव बिगाड के कारणो को खोजने के लिये कह दिया जाये तो वे अपनी कुशल बुद्धि से किस कारण से घर मे बनाव या बिगाड हुआ है उसका पर्दाफ़ास कर सकते है। इस लगन के जातक को हमेशा तीन कारणो से अधिक आजीवन जूझना पडता है एक तो नगद धन की प्राप्ति के लिये भागदौड करने के काम दूसरे रिस्क लेने के मामले मे लिये गये धन और धन को प्राप्त करने के बाद नही चुकाने के बाद अपमानित होने वाले कारण तीसरे जो भी करना है वह खुद के लिये नही किया जाता है हमेशा दूसरो के लिये ही किया जाता है और अक्सर कार्यों के लिये पिता के लिये और सरकारी कारणो के लिये ही खर्च करना पडता है। इन तीन कारणो से आजीवन इस लगन वाले जूझते रहते है।
इस लगन के जातक के लिये राहु और केतु मुख्य रूप से अपनी भूमिका को आजीवन निभाने का काम करते है। कारण राहु को आसमान की ऊंचाई के रूप मे भी देखा जाता है जो मीन राशि का कारक है राहु को समुद्र की गहरायी के रूप मे भी देखा जाता है जो कर्क राशि का कारक है और राहु को जमीन के पाताली क्षेत्र के रूप मे भी देखा जाता है जो वृश्चिक राशि के घेरे मे आता है। कुम्भ लगन के जातक को आसमानी ऊंचाइयों के लिये धन चमक दमक ऊंचे घर या संस्थान को सम्भालने का काम नगद धन को व्यय करने का काम हवाई यात्राओ को और बाहरी कारणो पर खर्च केवल इसलिये करना पडता है क्योंकि कुम्भ लगन के सामने यानी दूसरे भाव मे मीन लगन आती है और जब भौतिक शक्तियों मे आसमानी शक्ति का रूप सामने आजाये तो जब भी धन कुटुम्ब या परिवार का कारण सामने आजाये तो आसमान की तरफ़ ताकने का यानी ईश्वर के प्रति विश्वास रखने के अलावा और कुछ नही होता है। कुंडली का छठा भाव शरीर की मेहनत से या लोगो की मेहनत से काम लेने और काम करवाने के लिये भी अपनी युति को रखता है यह जीवन के बचत और धन सम्बन्धी कारणो को अपने सामने रखने के लिये तथा जीवन के गूढ को प्राप्त करने का एक स्थान होता है। इस स्थान का मुख्य रूप से मालिक बुध होता है और बुध की उपस्थिति कुम्भ लगन वाले जातको के लिये पंचम विद्या से और अष्टम जोखिम के भाव के मालिक के रूप मे होने से तथा छठे भाव का स्वामी चन्द्रमा होने से और चन्द्रमा के रूप मे बुध के साथ योगदान होने से एक प्रकार से मजाकिया कारण बन जाता है। जातक किसी भी काम को करने के लिये अपने द्वारा दुख के समय मे भी अपनी भावनाओ को मजाकिया रूप मे प्रस्तुत करने के लिये किसी को शिक्षा देनी है जनता या समाज मे अपने को प्रस्तुत करना है तो मजाकिया रूप मे प्रस्तुत करने की आदत से देखा जा सकता है। व्यक्ति जो भी बात करता है वह एक प्रकार से बिच्छू के डंक और शिक्षात्मक पहलू से जुडा देखा जा सकता है अक्सर परिवार के अन्दर खुद के ही लोग जातक से अपने आप धीरे धीरे दूरिया बनाते जाते है यहां तक भी देखा जाता है कि बुध जो पुत्रियों के रूप मे होता है उसमे इस लगन के जातक के लिये एक पुत्री जल्दी से धन कमाने के क्षेत्र और शिक्षा के पहलू के लिये देखी जाती है और जो भी काम करती है वह मनोरंजन से जुडा होता है साथ ही दूसरी पुत्री जिसे केवल डंक मारने किसी भी बात को चुभने वाली व्याख्या से कहने तथा जोखिम को लेकर किसी भी काम मे कूद पडने की बात से जुडा माना जा सकता है इस लगन के जातक की छोटी पुत्री अक्सर जोखिम लेकर अपनी जान की परवाह भी नही करती है इसलिये इस लगन के जातको को आपनी दूसरे नम्बर की पुत्री की जोखिम से बचकर ही रहना सही होता है। इस लगन के जातक के अक्सर देखा जाता है कि पहली पुत्री होती है अगर वह रहती है तो अपने को प्रदर्शन के मामले मे शिक्षा के मामले मे और मनोरंजन के मामले मे खेलकूद के मामले मे बोलने चालने और फ़ैसन आदि के मामले आगे रहती है दूसरे नम्बर का पुत्र माना जाता है अगर होता है तो वह पिता के पगचिन्हो पर चलने वाला होता है तीसरे नम्बर की पुत्री मानी जाती है अगर शुक्र पुरुष प्रधान नक्षत्र मे है और पाया भी पुरुष नक्षत्र का है तो वह पुत्री के स्थान पर पुत्र का रूप जरूर बनाता है लेकिन शादी तक या जीवन मे चढाव के समय मे किसी न किसी प्रकार की बुध के बिगडने की बात यानी जुबानी बीमारिया या हकलाहट तुतलाहट कभी भी किसी भी समय उल्टा बोल जाना किसी न किसी प्रकार की अपंगता से ग्रस्त हो जाना आदि भी माना जा सकता है जातक के चौथे नम्बर की सन्तान भी पुत्र के रूप मे ही होती देखी गयी है लेकिन वह भी एकलौती पुत्र सन्तान के रूप मे तभी सही मानी जाती है जब जातक की कुंडली मे गुरु की स्थिति सही हो। अगर गुरु किसी प्रकार से वक्री है तो अस्त है या स्त्री राशि मे है नक्षत्र या पाये मे है तो वह पुरुष की शक्ल मे होने के बावजूद भी स्त्री जैसे व्यवहार करने के लिये समझा जा सकता है।
कैसे होते है राहु केतु जीवन मे हावी ?
राहु केतु जितने ग्रहो को अपने कब्जे मे ले लेते है उतने ग्रहो को वे अपने अनुसार ही आजीवन चलाने के लिये बाध्य कर देते है। प्रस्तुत कुंड्ली मे राहु दसवे भाव मे है और केतु चौथे भाव मे है राहु के साथ मंगल है और शनि भी है जब राहु किसी ग्रह के साथ बैठता है तो वह ग्रह की शक्ति को अपने अन्दर अवशोषित कर लेता है और ग्रह को अपनी ही आदत आचार विचार व्यवहार करने की पूरी शक्ति प्रदान कर देता है,इसी प्रकार से उपरोक्त कुंडली मे देखा जा सकता है कि राहु ने कार्य भाव मे बैठ कर शनि और मंगल को अपने घेरे मे लिया है कार्य मे राहु का अर्थ है इतना काम जिसका कोई अन्त नही हो और राहु के साथ मंगल का होना कार्य करने के लिये इतनी शक्ति का प्रयोग करना जिसका कोई अन्त नही हो साथ कार्य करने के लिये इतने सारे लोग हो कि कार्य किसके द्वारा क्या किया जा रहा है कोई पता नही हो,राहु ने इस कुंडली मे अपनी तीसरी नजर बुध को दी है बुध बारहवे भाव मे है और मकर राशि का होने के कारण यह बुध मीडिया और प्रसारण के क्षेत्र मे अपना आकार प्रकार प्रस्तुत कर रहा है उसी स्थान पर जातक के लिये एक प्रकार से बुद्धि को व्यय करने के लिये और यात्रा करने के लिये अपनी स्थिति को प्रदान कर रहा है अगर इसे धार्मिक रूप से देखा जाये तो यही बुध वैष्णो देवी या किसी ऐसी देवी के लिये जो पहाडी क्षेत्र मे अपना निवास बनाकर बैठी हो के लिये भी माना जाता है यही बुध एक पुत्री के लिये भी अपने असर को प्रदान कर रहा है जो लडकी अपनी स्थिति और अपनी मेहनत से विदेश मे जाकर नाम करने के लिये भी मानी जा सकती है यही बुध राहु के साथ मंगल और शनि की शक्ति लेकर खनिज बिजली दक्षिण दिशा के प्रति लोगो के लिये किये जाने वाले काम इंजीनियरिंग तेल कम्पनी या धन के प्रति किये जाने वाले काम जो देखने मे कुछ और पीछे से कुछ होते है मौत के बाद के कारण समझने और मौत के बाद के कारण पता करने के बाद सुलझाने के लिये किये जाने वाले कारण आदि के लिये भी जाना जा सकता है राहु की नजर बारहवे भाव मे होने जो भी कारक बाहरी रूप से देखे जाते है चाहे वह बाहरी लोगो के लिये रहने खाने भोजन की व्यवस्था यात्रा आदि से जुडे हो या बडे रूप मे अपनी योग्यता से किसी बात को रूपान्तरित करने वाले कारणो को प्रयोग करने की बात हो को समझा जा सकता है। यही राहु धन भाव मे विराजमान शुक्र पर अपनी नजर को रख रहा है यह भी देखा जा सकता है कि मीन का शुक्र उच्च का शुक्र होता है इस शुक्र का मुख्य रूप ऊंची चमक दमक बाहरी धन और किये जाने वाले कामो का पूर्ण रूप से नगद प्राप्त किया जाना माना जा सकता है राहु की नवी नजर छठे भाव मे विराजमान यूरेनस पर भी है यूरेनस को कमन्यूकेशन और मीडिया फ़िल्म लाइन के लिये भी माना जाता है इसी प्रकार से जो भी काम किये जाते है वह परिवार के द्वारा इसी कारण से जाने जाते है,यह ग्रह मशीनी ग्रह के रूप मे भी देखा जा सकता है,और इस ग्रह पर अगर राहु अपनी द्रिष्टि देता है तो व्यक्ति के अन्दर कमन्यूकेशन करने की एक प्रकार से बडी औकात हो जाती है व्यक्ति अपने असर से केवल बडी बडी सामाजिक संस्थाओ मे बडी बडी धन प्रदान करने वाली कम्पनियों मे अपने वर्चस्व को कायम रखने मे मजबूत हो जाता है और एक जुबान से ही कितना ही धन इकट्ठा करने की हैसियत को बना लेता है। इस प्रकार से इस कुंडली के राहु ने मंगल शनि बुध शुक्र को अपने घेरे मे ले रखा है आइये अब देखते है कुम्भ लगन मे चौथे केतु का क्या स्थान है। चौथा केतु धन की राशि वृष मे है चौथे केतु ने अपनी पहली योग्यता माता के घर से ही प्रदान की है और वह योग्यता के कारण जातिका का पहली क्लास का रूप  किसी भी कान्वेंट स्कूल से जोड कर देखा जा सकता है या सर्वधर्मी संस्था से शुरु से ही जुडा हुआ माना जाता है इसके बाद केतु का प्रभाव छठे भाव मे जाता है और वहा यूरेनस की उपस्थिति से जातिका के लिये आदेश से काम करवाना ही माना जाता है जातिका खुद ही आदेश से किसी भी काम को करवाने की हैसियत को रखती है यही नही जातिका का काम उन्ही स्थानो मे होता है जहां कर्क राशि का प्रभाव हो यानी समुद्री स्थान हो या पानी के आसपास का क्षेत्र हो पिता का स्थान एक बडे उद्योग पति के रूप मे देखा जा सकता है माता की स्थिति भी एक प्रकार से बडे संस्थान को संभालने के कामो से जोड कर देखी जा सकती है। केतु की सातवी नजर मे मंगल शनि भी आते है और केतु की नवी नजर मे बारहवा बुध भी आता है इस प्रकार से यह भी देखा जा सकता है कि जातिका की माता की तीसरी बहिन के पुरुष संतान का अभाव और या तो गोद जाने वाली स्थिति या गोद लेने वाली स्थिति ही मानकर देखी जा सकती है यही कारण एक बडे वकील की हैसियत से भी देखी जा सकती है,जो वकील जातिका के पति परिवार से जुडा हो या जो वकील एक ऊंची राजनीति की हैसियत रखने के बाद बाहर से मदद देने का रूप हो आदि बाते इस केतु बुध की युति से मानी जाती है।
राहु केतु की नजर बचे ग्रह ?
राहु केतु से बचे ग्रह भी राहु केतु के आदेश से काम करने वाले होते है,जैसे केतु के दसवे भाव मे सूर्य चन्द्र होने से जीवन साथी और खुद के लिये बडी बहिन का रूप मे नाना परिवार या माता परिवार के सानिध्य मे रहना और कार्य करना माना जाता है अथवा खुद के नाना ने माता पिता को एक साथ रखकर खुद के लिये अपनी औकात को जाहिर किया हो,इसी प्रकार से राहु के साथ मंगल शनि की युति से सप्तम भाव के गुरु को अपनी नजर से आदेशात्मक रूप मे कार्य करवाने के लिये अपनी युति को प्रदान किया है,यानी जातिका की बुद्धि को बहुत तेज किया है उसकी याददास्त बहुत तेज है वह किसी भी काम को तकनीकी रूप से बहुत जल्दी समझ सकती है साथ ही खुद के परिवार समाज और रहने वाले स्थान से भिन्न होकर रहने की आदत से और विदेशी परिवेश को धारण करने तथा उसी के अनुसार चलने के लिये आधुनिकता के रूप मे अपने को प्रदर्शित करने के मामले मे अपने को आगे लेकर चलने की क्रिया को करना भी एक प्रकार से आदत मे माना जा सकता है जब तक खुद का स्वार्थ है किसी को भी प्रयोग मे लेना और बाद मे काम समाप्त होने के बाद भूल जाना आदि बाते भी देखी जा सकती है इसी कारण से जातिका को पुत्र सुख का मिलना एक प्रकार से नही माना जाता है एक तो पुत्र सन्तान नही होती है किसी भी सन्त या आसमानी शक्ति से अगर पुत्र सन्तान प्राप्त हो भी जाती है तो वह किसी न किसी कारण से एक प्रकार से अपंगता जैसी बात को सामने रखती है और वह मंगल शनि राहु की युति के कारण जीव के कारक गुरु को विपरीत भाव से देखती है जातक के खून के अन्दर उत्तेजना का समिश्रण हो जाता है और वह अपने पुत्र भाव से दूर रहकर अपने को या तो अस्पतालो से जुडा मान जाती है या वह अपने को एकान्त मे रह कर अपने ही बारे मे सोचने और शिक्षा आदि से बहुत जल्दी दूरिया बना लेती है,यह कारण एक प्रकार से पिशात्मक दोष भी माना जा सकता है यह दोष किसी साधारण उपाय से नही दूर किया जा सकता है कारण जो भी इस दोष को उतारने की कोशिश करता है खुद ही बलि का बकरा बन जाता है और पिशाच रूपी राहु शनि मंगल उस दोष को समाप्त करने वाले व्यक्ति को बदबू दार सडन मे लेकर या तो धीरे धीरे खूनी रोग से ग्रस्त कर देते है या किसी प्रकार की दुर्घटना आदि मे अन्त कर देते है।
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