Monday, February 11, 2013

कफ़न

जन्म के तुरत बाद ही मौत की कल्पना शुरु हो जाती है,जहां जन्म है वहां मौत भी है यह उसी प्रकार से है जैसे दिन के बाद रात सुख के बाद दुख आदि। जन्म के समय को ज्योतिष में लगन के रूप मे प्रकट किया जाता है तो जीवन का आखिरी भाग मौत के लिये आठवे भाव के रूप मे प्रकट किया जाता है। लगनेश को शरीर का रूप और अष्टम के मालिक को मौत होने के बाद का रूप माना जाता है,जन्म के बाद शरीर बढने लगता है और पुष्टता मे जाने लगता है जबकि मौत के बाद शरीर की क्षति होने लगती है और वह मिट्टी के रूप मे परिवर्तित होने लगता है। यह क्रिया प्रकृति के अनुसार बनाने और बिगाडने के लिये भी मानी जाती है,जन्म देने के लिये प्रकृति ही जिम्मेदार होती है और मौत देने के लिये भी प्रकृति को ही जिम्मेदार माना जाता है। कोई मौत स्वाभाविक होती है और कोई मौत बहाना लेकर होती है,जैसे दुर्घटना आदि मे शरीर का विनाश।
कफ़न शब्द उर्दू शब्द है। कफ़न मनुष्य की मौत के बाद दिया जाने वाला आखिरी वस्त्र है जो उसे श्रद्धा से भी दिया जाता है और नफ़रत से भी दिया जाता है,जब व्यक्ति की असमान्य परिस्थिति मे मौत होती है,जैसे किसी अन्जान स्थान मे जंगल पहाड समुद्र या किसी हिंसक जीव के द्वारा उसके शरीर का विनाश कर दिया जाता है तो उसे संसार के द्वारा दिया जाने वाला आखिरी कपडा कफ़न के रूप मे प्राप्त नही हो पाता है। इस बात को लालकिताब मे वर्णित किया गया है कि अगर कुंडली मे गुरु ग्यारहवे भाव मे है तो उसे मौत के बाद कफ़न तक नशीब नही होता है। कुंडली मे लगन जन्म के रूप मे है जब व्यक्ति जन्म के बाद पहली सांस इस संसार मे लेता है और सातवां भाव मौत के समय का जब व्यक्ति आखिरी सांस को छोडता है,जन्म के बाद दूसरे भाव में लोग जातक जीवित देखते है तो अष्टम भाव मे लोग जातक को मृत अवस्था मे देखते है तीसरे भाव से जातक की पहिचान भौतिक रूप मे की जाती है तो नवे भाव से जातक की पहिचान उसकी आत्मा के रूप मे की जाती है चौथे भाव से जातक के जीवित रहने के स्थान को देखा जाता है जहां जातक सुख से निवास करता है तो मृत्यु के बाद दसवे भाव की स्थिति को देखा जाता है कि जातक की आत्मा का निवास किस स्थान मे है,पंचम भाव से जातक की भौतिक बुद्धि को समझा जाता है तो ग्यारहवे भाव से जातक की आध्यात्मिक बुद्धि की परख की जाती है छठे भाव से जातक इस संसार को सेवायें देता है तो बारहवे भाव से जातक संसार से अपने लिये सेवाये प्राप्त करता है आदि बातें कुंडली के द्वारा विवेचित की जाती है। इस बात से समझा जाता है कि व्यक्ति जिस भाव से सुख प्राप्त कर रहा है उसके सप्तम से उसे दुख प्राप्त होना होता है। यहां तक कि लगन अगर पुरुष रूप मे होती है तो सप्तम अपने आप ही स्त्री रूप मे परिवर्तित हो जाता है।
कफ़न का रूप जातक की मौत के बाद मिलने वाली संसार की श्रद्धा के रूप मे होता है,उसे मौत के बाद किस नजरिये से देखा जायेगा इसके लिये जातक के ग्यारहवे भाव को समझना जरूरी होता है। ग्यारहवा भाव जातक के द्वारा किये गये कार्य जो संसार के लिये हित के लिये है या अहित के लिये उस रूप मे पहिचाने जाते है। अगर जातक के द्वारा अच्छे कर्म किये गये है तो ग्यारहवा भाव अच्छे ग्रहो से पूर्ण होगा और बुरे कार्य किये गये है तो ग्यारहवा भाव बुरे ग्रहों से पूर्ण होगा। ग्यारहवा भाव जीवन के भौतिक सुखो मे भी साथ देने वाला है चाहे वह जीवित रहने के वक्त मित्रो के रूप मे हो बडे भाई बहिन के रूप मे हो सन्तान के जीवन साथी के रूप मे हो अथवा कष्ट सह कर कमाये जाने वाले लगातार लाभ के रूप मे हो यह भाव ही जीवन के प्रति अपनी उन संवेदनाओ को प्रस्तुत करता है जो जीवन के रहने तक और जीवन के समाप्त होने के बाद तक अपनी स्थिति को वर्णित करता है।
उपरोक्त कुंडली मे गुरु ग्यारहवे भाव मे वक्री है नौ दस ग्यारह बारह भाव एक उस चौकडी को प्रस्तुत करते है जो मौत के बाद की स्थिति को सामने करती है। जिस प्रकार से पहला दूसरा तीसरा और चौथा भाव जन्म लेकर माता की गोद मे खेलने तक अपनी स्थिति को प्रस्तुत करता है उसी प्रकार से नौ दस ग्यारह और बारह मौत के बाद से लेकर परलोक के निवास तक को समझाने मे मदद करता है। लगन से चौथे भाव तक व्यक्ति को भौतिक शरीर को पालने के लिये जल रूपी कारक को ग्रहण करने की शक्ति मिलती है तो नौ से लेकर बारह तक जातक को वायु रूपी कारक को ग्रहण करने के लिये भौतिक कारको को त्यागने के बाद की स्थिति मिलती है। गुरु के वक्री होने के कारण गुरु जो इस कुंडली मे ग्यारहवे भाव मे है लालकिताब के अनुसार कहा गया है कि गुरु जब ग्यारहवे भाव मे हो तो जातक को कफ़न तक नशीब नही होता है लेकिन उस गुरु की कल्पना आदि काल मे की जाती थी जब जातक को अकेले रहने की बात से माना जा सकता हो,गुरु जो आध्यात्मिकता के प्रति अपनी भावना को प्रस्तुत करता था,गुरु जो रिस्तो के प्रति अपनी शक्ति को प्रस्तुत करता था गुरु जो वायु रूप मे शरीर के जिन्दा रहने तक सांस के रूप मे अपनी उपस्थिति को देने का कारक माना जाता था। इस कुंडली मे गुरु का वक्री रूप एक अजीब कारण को प्रस्तुत करता है जैसे यह कुंडली पुरष रूप मे है तो जातक के ग्यारहवे भाव मे यह गुरु वक्री होकर जातक की बडी बहिन के रूप मे है,साथ ही यह गुरु पिता के समाज की जगह पर माता के समाज के द्वारा पालन पोषण और शरीर की उन्नति के प्रति अपनी उपस्थिति को प्रकट करता है,इसी प्रकार से यह गुरु जो दिमागी शक्ति का कारक है वह एक साधारण व्यक्ति से अधिक याददास्त को रखने को कारक भी बन गया है,यह कारण केवल इसलिये बना है क्योंकि जातक जो भी बात दिमागी रूप से ग्रहण करने की कोशिश करता है वह उल्टे रूप मे ही प्रयोग मे लाता है जब मुख्य रूप पहले देखा जायेगा तो सामान्य रूप अपने आप ही समझ मे आजायेगा।
पंचम भाव माता के आंचल से जोडा जाता है जब माता अपनी संतान को दूध पिलाती है तो अपने आंचल से ढक लेती है उसी प्रकार से जब मृत्यु हो जाती है तो शरीर को ताबूत काठी टिकटी ठठरी आदि मे रखा जाता है और उस शरीर को रखने से पहले शरीर को एक वस्त्र के द्वारा ढका जाता है जिसे कफ़न कहा जाता है। यह कफ़न उसी प्रकार से है जैसे जन्म के बाद माता के आंचल का रूप होता है। गुरु चूंकि वायु का कारक है इसलिये ग्यारहवे गुरु को मरने के बाद वायु रूप मे मिलने वाले कफ़न के रूप मे माना जाता है यानी जो कफ़न किसी भौतिक वस्तु से नही बना हो। खुले शरीर का धरती मे निर्गम ही ग्यारहवे गुरु की श्रेणी मे रखा जाता है। लेकिन मेरी अपनी सोच के अनुसार गुरु अगर मार्गी है तो जातक को मौत के बाद खुले शरीर से ही धरती मे निर्गम से माना जाता है और वक्री होने पर उस शरीर को धरती तक निर्गम के लिये वह लोग अपनी सहायता को देते है जो जातक के समाज परिवार धर्म और सीमा से बाहर के लोग होते है।
कफ़न को चन्द्रमा से पानी से घिरे क्षेत्र मे प्रवाहित होने के लिये माना जाता है,सूर्य से लकडी आदि से ढकर शरीर को धरती के साथ निर्गम करने से माना जाता है,मंगल से दुर्घटना या गहरे स्थान मे मिट्टी से दबकर निर्गम को माना जाता है बुध से फ़ूलो और कोमल वस्तुओं से शरीर को ढकर कर धरती तक निर्गम के लिये माना जाता है गुरु से शरीर को खुले रूप मे वायु के द्वारा धरती तक निर्गम के लिये माना जाता है शुक्र से सजावटी स्थान मे रखकर शरीर को श्रंगार आदि करने के बाद धरती मे निर्गम किया जाता है शनि से पहाडो जमीन के अन्दर गहरे स्थानो भीगे और नम स्थानो में शरीर को दफ़ना कर निर्गम करने से माना जाता है,राहु से शरीर को टुकडे टुकडे करने के बाद धरती मे निर्गम करने से माना जाता है केतु से समाधि देकर अथवा लम्बे ताबूत आदि मे रखने के बाद निर्गम करने के कारण को माना जाता है। 

7 comments:

  1. Gurudev Itni Sundar Bhasa kewal aap hi likh sakte hai

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  2. व्यास जी यह सब आप लोगो के स्नेह का परिणाम है.

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  3. गुरुजी प्रणाम, बहुत ही गज़ब लिखा है आपने पड़कर एक बार तो रुह ही कांप गयी

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    1. राकेश जी जलचर थलचर और नभचर अपने अपने अनुसार इस शरीर को धारण करते है और जो है वह नही है के सिद्धान्त के अनुसार सभी के शरीर अपनी अपनी करनी और पूर्व के कृत्यों से जल मे थल में निर्गम होते है,इसी निर्गमन का उर्दू नाम कफ़न है,इसे हिन्दी मे शवावरण कहा जाता है.

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  4. गुरुजी प्रणाम, आप ऩै अती सुंदर शब्दों में कफ़न का संपूरण वयाखान कर दिया,हम आपके अत्यंत आभारी है

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  5. खुश रहो मजे करो शब्दो की माया और हकीकत का कथन है जो मिला है इसी संसार से मिला है जो दिया जा रहा है वह इसी संसार को दिया जा रहा है,कुछ आप का कुछ और किसी का जो है वह सामने है,धन्यवाद.

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  6. आप के राहू पर लिखे गए लेख अति उत्तम है जिज्ञासा बढाने वाले पर फिर भी लगता है ज्यादा से ज्यादा राहू के बारे में जान सकू.इंतजार रहेगा राहू के बारे मैं और भी जानने का .धन्यवाद गुरु जी

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