राहु के मन्त्र जाप के लिये वैदिक और तांत्रिक मंत्र को बताया गया है इस मंत्र के जाप के द्वारा बडी से बडी शंका का समाधान खुद ब खुद होने लगता है। इस मंत्र का अर्थ केवल भ्रम यानी शक होना या नतीजे पर नही पहुंचने के कारण दिमागी भटकाव का अर्थ दिया जाता है। लेकिन वैदिक अक्षर और शब्द की महत्ता वैदिक मंत्र के उच्चारण के द्वारा मिली हुयी कठिनाई के शब्द के उच्चारण से ही दूर होने की बात भी मिलती है। राहु जो आसमान का राजा कहा जाता है और जिसे भी जिस भावना से ग्रहण देता है वह उसी धारणा के बहाव मे अपने को लेकर चलता रहता है जब तक राहु का असर गोचर से रहता है तो भी उसी धारणा के अन्दर जातक के अन्दर एक प्रकार से नशा सा भर देता है। लेकिन जो भी नशा जातक के अन्दर होता है वह केवल जन्म के राहु के अनुसार ही उसके अन्दर रहता है। जैसे इस कुंडली मे राहु का स्थान छठे भाव मे सूर्य बुध मंगल के साथ है,लेकिन वर्तमान मे वह जन्म के गुरु के साथ गोचर कर रहा है तो राहु अपने स्वभाव के अनुसार जिस भाव राशि और ग्रह के साथ होता है उसी के अनुसार ग्रह राशि और भाव का बल अपने मे ग्रहण कर लेता है,तथा उस ग्रह के फ़ल को उस भाव के फ़ल को उस राशि के फ़ल को प्रदान करने लगता है। इस कुण्ड्ली मे मकर लगन है और राशि मेष है चन्द्रमा चौथे भाव मे है और राहु के बल को केतु मे जाने तथा केतु का बल चन्द्रमा मे जाने से जातक की मानसिक सोच पहले तो छठे भाव की जैसे कर्जा दुश्मनी बीमारी नौकरी रोजाना के कार्यों तथा रोजाना के सम्बन्धो के मामले मे होगी फ़िर उसके अन्दर सूर्य से युति लेने के कारण सरकारी कार्यों में पिता के कार्यों मे माता के बडे भाई मे धन आदि के लिये मंगल के प्रदर्शन यानी तकनीकी कारणो मे बुध यानी बोलने और सीखने वाली भाषा के कारणो मे ज्योतिष और पराविज्ञान की सोच मे होगी उस सोच को वह धनु राशि के केतु के द्वारा प्राप्त करने के बाद यानी मीडिया बाहरी ज्योतिषीय साइट्स आदि के लिये चन्द्रमा को प्रदान करेगा,वह चन्द्रमा अपनी सोच को प्राप्त करने के लिये अपनी युति से जन्म के शुक्र के बारे मे जो सिंह राशि का है और अष्टम मे है तथा कार्य और शिक्षा तथा प्रेम आदि के मामले मे उपस्थिति होकर गूढ जानकारी को देने के लिये माना जाता है के प्रति अपनी जिज्ञासा को जाहिर करने के लिये मान जायेगा। राहु के मंत्र भ्राम यानी मनुष्य जीव आदि की संज्ञा के रूप मे प्राप्त भ्रम भ्रीम यानी गूढ रूप से अन्दरूनी जानकारी अथवा जमीन के नीचे के भ्रम तथा भौम यानी आकाशीय रूप से पैदा होने वाले दैविक आदि भ्रम को पैदा करने वाला ही राहु है.नम: लगाने के लिये यह कहा जाता है कि उक्त कारण पैदा करने वाले राहु को नमस्कार करता हूँ। इस कुंडली मे वर्तमान मे राहु जन्म के गुरु के साथ गोचर कर रहा है और चन्द्रमा से अष्टम मे है,गुरु के साथ होने से जातक के लिये अपने अन्तरन्ग मित्रो के बारे मे जिज्ञासा चाहिये,वह जिज्ञासा की शांति के लिये अपने केतु का प्रयोग कर रहा है यानी कमन्यूकेशन के साधन जो आसमानी साधन जैसे मीडिया और नेट आदि की जानकारी से प्राप्त करना चाहता है। वर्तमान मे राहु का गोचर जन्म के राहु से आठवा है इस राहु का सीधा असर गुरु से भी षडाष्टक योग की भावना को पैदा कर रहा है। यह भावना गुरु यानी सम्बन्ध गुरु यानी धन और गुरु यानी गुप्त रूप से पहले से बचत किये गये धन, आदि के बारे मे जानकारी करने के लिये अपनी जिज्ञासा को शांत करना चाहता है,इस कुंडली मे राहु की गति भ्राम और भ्रीम से है लेकिन भ्रौम तक जातक नही जा पा रहा है। भ्रीम जो अष्टम शुक्र के लिये है और भ्राम जो चौथे चन्द्रमा के लिये है के द्वारा जातक अपनी पत्नी के लिये कि वह कैसी होगी,उसका रंग रूप कैसा होगा वह कितना धनी या निर्धन होगी वह कितनी शिक्षित होगी के बारे मे जानना चाहता है,जबकि जातक का सम्बन्ध हो चुका है वह अपनी पत्नी के बारे मे सब कुछ जानता है और केवल यह बात समझना चाहता है कि ज्योतिष उसकी पत्नी के बारे मे कितना बता सकती है,वह अपने प्रश्न को एक से अधिक लोगो से एक बार मे ही पूंछना चाहता है। आदि बाते उसकी जन्म के राहु से वर्तमान के राहु के गोचर से युति के लिये मानी जा सकती है।
nice and different post
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