जीवन एक पहेली है इसे सुलझाने के लिये कई प्रकार के कारक प्रयोग मे लाये जाते है ज्योतिष भी एक प्रकार से कारक ही है जिससे जीवन की गुत्थी को सुलझाने के लिये प्रयास आदि काल से ही चले आ रहे है। कोई भी इस कारक मे सफ़ल नही है,कितना ही बडा विद्वान हो लेकिन किसी न किसी स्थान पर वह अटक ही जाता है। हम सब अपने अपने अनुसार प्रयास करते है कभी सच और कभी झूठ का सामना करना ही पडता है। मैने पिछले पच्चीस साल के अनुभव मे देखा है कि एक ग्रह लाखो कारण पैदा कर देता है,कारक के अभाव मे अगर कोई प्रश्न करना चाहता है तो वह एक गल्ती यह करता है कि बिना कारक के कारण बन ही नही सकता है,भौतिकता मे कैसे का जबाब दिया जा सकता है लेकिन क्यों का जबाब प्राप्त करने के लिये हर कोई अपनी अपनी राय देगा अनुभव को प्रस्तुत करेगा लेकिन क्यों का जबाब मिलना मुश्किल हो जाता है। प्रस्तुत कुंडली वृष लगन की है और प्रश्न कुंडली भी है,आज के ही ग्रह इस कुंडले मे लिखे गये है। प्रश्न है कि जातक को सफ़लता के लिये किस क्षेत्र मे जाना चाहिये ? मानसिक इच्छा के लिये चौथे भाव को देखना चाहिये या मन से मन का कारण जानना चाहिये ? मन का भाव चौथा है मन के सूक्ष्म विचार का भाव सप्तम है यानी चौथे से चौथा,उससे भी सूक्ष्म मे जाना है तो दसवा भाव और उससे भी सूक्ष्म मे जाना है तो लगन को देखना पडेगा लेकिन इससे अधिक सूक्ष्म मे जाने के लिये कोई रास्ता नही बचता है ! मतलब यही है कि एक भावना को जानने के लिये केन्द्र को खंगालना जरूरी है,बिना केन्द्र के खंगाले भावना का अर्थ सामने नही आ सकता है। लगन मे केतु है,चौथे भाव मे मंगल वक्री है सप्तम मे राहु है दसवा खाली है। लगन को राहु देख रहा है चौथे भाव को गुरु का बल मिला है,दसवे भाव को मंगल वक्री देख रहा है यह द्रिष्टि बल माना जाता है। सबसे पहले मन के भाव के मंगल वक्री की सिफ़्त को समझते है। मार्गी मंगल खुद के मन मे जलन पैदा करता है और उस जलन का परिणाम यह होता है कि कोई अपनी बात को कहना चाहता है कोई समझाना चाहता है लेकिन मन की जलन अगर शांत नही है तो समझाने वाले और कहने वाले पर भी झल्लाहट आजाती है,यही कारण क्लेश का कारण बनता है लेकिन जब मंगल वक्री होता है तो वह बजाय खुद को मन की जलन झेलने के दूसरो के मन की जलन को जानने की श्रेणी मे आजाता है। कायदे से मंगल बारहवे भाव का भी मालिक है और सप्तम का भी मालिक है,सप्तम जीवन साथी का भी है और साझेदार का भी है,बारहवा यात्रा का भी है तो खर्च का भी है। लेकिन मन का पैदा होना बारहवे भाव से ही है। कारण जैसे शरीर का पैदा होना नवे भाव से है तो मन का पैदा होना भी चौथे भाव के नवे भाव से ही है। यह भाव माता का भी है इसलिये माता के पिता यानी नाना का भाव भी बारहवा है,पिता के पिता का भाव यानी दादा का भाव नवे से नवा यानी पंचम भाव है। परदादा यानी दादा के पिता का भाव लगन बन जाती है। श्रेणी को सुलझाने के लिये वह उलझती ही चली जाती है लेकिन जब कारक के लिये ही जानने का उपक्रम चलता है तो कारक के स्थान को गौढ रूप से देखना पडता है।
गुरु और शुक्र बारहवे भाव मे है और गुरु की पूर्ण द्रिष्टि मंगल पर भी है और अष्टम स्थान पर चन्द्रमा पर भी है। गुरु आष्टम भाव का भी मालिक है और लाभ भाव का भी मालिक है। गुरु चाहता है कि वह लाभ को अष्टम से कैसे ले? या लाभ को अष्टम मे कैसे ले जाये ? या लाभ और अष्टम को चौथे भाव में कैसे स्थापित करे? यह त्रिकोण भी पूरा हो जाता है,चौथे मे मंगल अष्टम मे चन्द्रमा और बारहवे भाव मे गुरु और शुक्र,जब लगन का मालिक ही गुरु के साथ है तो गुरु को शरीर का लाभ भी मिला हुआ है,शुक्र शरीर का भी मालिक है और छठे भाव का भी मालिक है। लेकिन शरीर पर केतु ने कब्जा किया हुआ है,छठे भाव मे शनि वक्री ने कब्जा किया हुआ है,यानी शुक्र को शरण गुरु की ही लेनी पडेगी,उसे लगन से भी फ़ायदा नही मिलने वाला है और छठे भाव से भी फ़ायदा नही मिलने वाला है। शुक्र को छठे भाव का वक्री शनि भी देख रहा है,शनि मार्गी शरीर बल से काम लेने वाला होता है और वक्री शनि बुद्धि बल से काम लेकर अपना नाम करता है। शनि की नजर में अष्टम का चन्द्रमा भी है,अगर शनि मार्गी होता तो वह इस चन्द्रमा को फ़्रीज कर सकता था,लेकिन वक्री होने से उसने अष्टम में पडे चन्द्रमा को भी कुये से पानी निकालने जैसा बल दे दिया है। इसी प्रकार से शुक्र जो बारहवे भाव में उच्च रूप से विराजमान है को बल देने के लिये शनि अपनी युति को भी प्रदान कर रहा है इधर गुरु को भी शनि ने छठे भाव से बल दिया है,गुरु ने भी शनि को अपना बल दिया हुआ है। मन का कारक चन्द्रमा भी है मन की स्थिति मे दूसरे भाव को भी देखना पडेगा कारण चन्द्रमा दूसरे भाव को भी देख रहा है,लेकिन दूसरे भाव का मालिक बुध है जो लाभ भाव मे वक्री होकर सूर्य के साथ विराजमान है।बुध पर असर देने वाले ग्रहो मे सूर्य भी है और सप्तम मे विराजमान राहु भी है। राहु मृत्यु अपमान जोखिम रिस्क जासूसी शमशान मृत्यु स्थान मौत के कारण तथा गुप्त रूप से जानने वाली बातो धरती के अन्दर की जानकारी रखने वाली राशि वृश्चिक मे विराजमान है। मंगल की द्रिष्टि राहु पर पड रही है। मंगल की द्रिष्टि लाभ भाव मे भी सूर्य और वक्री बुध पर है। बुध का स्वभाव कहने सुनने और कमन्यूकेशन करने से होता है लेकिन जब यह मार्गी होता है तो वह खुद के लिये माना जाता है वक्री होने पर यह अपना असर दूसरो को देने वाला होता है। अधिकतर ब्रोकर लोग वक्री बुध के समय दूसरो को फ़ायदा दे जाते है और जब यह मार्गी होता है तो वे खुद फ़ायदा उठाने लगते है।मंगल का स्वभाव कन्ट्रोल करने का होता है वह अपने स्थान पर अपने से चौथे स्थान पर अपने से अष्टम स्थान को कन्ट्रोल करता है। इस प्रकार से आपने देखा कि सभी ग्रह कैसे आपस मे जुड कर अपना अपना बल एक दूसरे के द्वारा एक निश्चित स्थान पर दे रहे होते है।
सबसे अधिक बल मंगल को मिला हुआ है। चौथे भाव का मंगल दुर्घटना को भी देता है,मारकाट के लिये भी माना जाता है,आग लगना डकैती पडना,वाहन से दुर्घटना होना,घर मे झगडा हो जाना,सार्वजनिक स्थान मे तोडफ़ोड होना,जनता का उग्र हो जाना,आदि कारणो के मामले मे जाना जाता है। लेकिन मंगल पर अगर गुरु की द्रिष्टि होती है तो वह बजाये नुकसान देने के फ़ायदा देने वाला बन जाता है। गुरु चाहे साथ होता चाहे दसवे भाव मे होता या बारहवे भाव मे बैठ कर मंगल को बल दे रहा है बल देने का कारण मै पहले ही बताकर आया हूँ कि मृत्यु सम्बन्धी कारणो और लाभ के मामले मे ही गुरु मंगल को बल दे रहा है।मंगल की वक्री पोजीशन से यह मंगल खुद के लिये फ़ायदा नही देने के लिये भी जाना जा सकता है यह भी मै पहले आपको बताकर आया हूँ कि मंगल मार्गी खुद के लिये और मंगल वक्री दूसरो को ही असर देने वाला होता है। यह सहायता मंगल जिन कारको को देने के लिये माना गया है उनके अन्दर स्थान बल के अनुसार घर मकान वाहन दुकान व्यवसाय स्थान सुरक्षा के प्रति दूसरो को बल देने के लिये माना जा सकता है,इसके बाद सप्तम मे राहु के होने पर और उसे कन्ट्रोल करने की शक्ति के द्वारा अस्पताली कारण मृत्यु होने के बाद मिलने वाली सहायताओं के कारण किसी बडी बीमारी के होने के कारण जीवन साथी के साथ अपघात होने के कारणों मे फ़ायदा देने के लिये भी अपना असर दे रहा है। इसके अलावा एक बात और भी आपको बताना चाहूंगा कि दक्षिण भारत की नाडी ज्योतिष मे एक पांच नौ को एक ही भाव से देखा जाता है इस प्रकार से मंगल की युति चन्द्रमा से भी है और चन्द्रमा का बल भी मंगल को मिला हुआ है,चन्द्रमा का स्थान न्याय और धर्म तथा विदेश यात्रा आदि के कारणो वाली राशि मे होने के कारण तथा इन कारको का मृत्यु स्थान मे होने के कारण इस भाव से मानसिक सम्बन्ध रखने के कारण मंगल इन कारको को भी साथ लेकर चलने वाला है। मंगल का सप्तम द्रिष्टि से दसवे भाव को देखने पर और दसवे भाव पर शनि की पंचम द्रिष्टि होने पर (नाडी ज्योतिष से) केतु जो जातक के रूप मे है उसे कार्य करने के लिये अपनी शक्ति देने के लिये भी माना जा सकता है।
इस स्थान पर केतु की औकात का पता चलता है कि जातक जो केतु यानी एजेन्ट के रूप मे बीमा से सम्बन्धित काम करना चाहता है,वह दुर्घटना बीमा मृत्यु के बाद मिलने वाली सहायता का बीमा अस्पताली सम्बन्धी कारणो के लिये किये जाने वाले बीमा,घर की सुरक्षा के लिये किया जाने वाला बीमा,व्यवसाय स्थान के लिये किया जाने वाला बीमा वाहन आदि के लिये किया जाने वाला बीमा और छठे भाव मे शनि के होने से एक तो कार्य करने के लिये किस्त आदि को वसूल कर (वक्री होने पर कभी कभी,मार्गी होने पर हमेशा) कार्य करने के लिये अपनी बुद्धि से लोगो को समझा कर जो लोग इस बात से डरते है (अष्टम का चन्द्रमा) के लिये भी अपनी सहायता को करने के लिये माना जा सकता है।
गुरु और शुक्र बारहवे भाव मे है और गुरु की पूर्ण द्रिष्टि मंगल पर भी है और अष्टम स्थान पर चन्द्रमा पर भी है। गुरु आष्टम भाव का भी मालिक है और लाभ भाव का भी मालिक है। गुरु चाहता है कि वह लाभ को अष्टम से कैसे ले? या लाभ को अष्टम मे कैसे ले जाये ? या लाभ और अष्टम को चौथे भाव में कैसे स्थापित करे? यह त्रिकोण भी पूरा हो जाता है,चौथे मे मंगल अष्टम मे चन्द्रमा और बारहवे भाव मे गुरु और शुक्र,जब लगन का मालिक ही गुरु के साथ है तो गुरु को शरीर का लाभ भी मिला हुआ है,शुक्र शरीर का भी मालिक है और छठे भाव का भी मालिक है। लेकिन शरीर पर केतु ने कब्जा किया हुआ है,छठे भाव मे शनि वक्री ने कब्जा किया हुआ है,यानी शुक्र को शरण गुरु की ही लेनी पडेगी,उसे लगन से भी फ़ायदा नही मिलने वाला है और छठे भाव से भी फ़ायदा नही मिलने वाला है। शुक्र को छठे भाव का वक्री शनि भी देख रहा है,शनि मार्गी शरीर बल से काम लेने वाला होता है और वक्री शनि बुद्धि बल से काम लेकर अपना नाम करता है। शनि की नजर में अष्टम का चन्द्रमा भी है,अगर शनि मार्गी होता तो वह इस चन्द्रमा को फ़्रीज कर सकता था,लेकिन वक्री होने से उसने अष्टम में पडे चन्द्रमा को भी कुये से पानी निकालने जैसा बल दे दिया है। इसी प्रकार से शुक्र जो बारहवे भाव में उच्च रूप से विराजमान है को बल देने के लिये शनि अपनी युति को भी प्रदान कर रहा है इधर गुरु को भी शनि ने छठे भाव से बल दिया है,गुरु ने भी शनि को अपना बल दिया हुआ है। मन का कारक चन्द्रमा भी है मन की स्थिति मे दूसरे भाव को भी देखना पडेगा कारण चन्द्रमा दूसरे भाव को भी देख रहा है,लेकिन दूसरे भाव का मालिक बुध है जो लाभ भाव मे वक्री होकर सूर्य के साथ विराजमान है।बुध पर असर देने वाले ग्रहो मे सूर्य भी है और सप्तम मे विराजमान राहु भी है। राहु मृत्यु अपमान जोखिम रिस्क जासूसी शमशान मृत्यु स्थान मौत के कारण तथा गुप्त रूप से जानने वाली बातो धरती के अन्दर की जानकारी रखने वाली राशि वृश्चिक मे विराजमान है। मंगल की द्रिष्टि राहु पर पड रही है। मंगल की द्रिष्टि लाभ भाव मे भी सूर्य और वक्री बुध पर है। बुध का स्वभाव कहने सुनने और कमन्यूकेशन करने से होता है लेकिन जब यह मार्गी होता है तो वह खुद के लिये माना जाता है वक्री होने पर यह अपना असर दूसरो को देने वाला होता है। अधिकतर ब्रोकर लोग वक्री बुध के समय दूसरो को फ़ायदा दे जाते है और जब यह मार्गी होता है तो वे खुद फ़ायदा उठाने लगते है।मंगल का स्वभाव कन्ट्रोल करने का होता है वह अपने स्थान पर अपने से चौथे स्थान पर अपने से अष्टम स्थान को कन्ट्रोल करता है। इस प्रकार से आपने देखा कि सभी ग्रह कैसे आपस मे जुड कर अपना अपना बल एक दूसरे के द्वारा एक निश्चित स्थान पर दे रहे होते है।
सबसे अधिक बल मंगल को मिला हुआ है। चौथे भाव का मंगल दुर्घटना को भी देता है,मारकाट के लिये भी माना जाता है,आग लगना डकैती पडना,वाहन से दुर्घटना होना,घर मे झगडा हो जाना,सार्वजनिक स्थान मे तोडफ़ोड होना,जनता का उग्र हो जाना,आदि कारणो के मामले मे जाना जाता है। लेकिन मंगल पर अगर गुरु की द्रिष्टि होती है तो वह बजाये नुकसान देने के फ़ायदा देने वाला बन जाता है। गुरु चाहे साथ होता चाहे दसवे भाव मे होता या बारहवे भाव मे बैठ कर मंगल को बल दे रहा है बल देने का कारण मै पहले ही बताकर आया हूँ कि मृत्यु सम्बन्धी कारणो और लाभ के मामले मे ही गुरु मंगल को बल दे रहा है।मंगल की वक्री पोजीशन से यह मंगल खुद के लिये फ़ायदा नही देने के लिये भी जाना जा सकता है यह भी मै पहले आपको बताकर आया हूँ कि मंगल मार्गी खुद के लिये और मंगल वक्री दूसरो को ही असर देने वाला होता है। यह सहायता मंगल जिन कारको को देने के लिये माना गया है उनके अन्दर स्थान बल के अनुसार घर मकान वाहन दुकान व्यवसाय स्थान सुरक्षा के प्रति दूसरो को बल देने के लिये माना जा सकता है,इसके बाद सप्तम मे राहु के होने पर और उसे कन्ट्रोल करने की शक्ति के द्वारा अस्पताली कारण मृत्यु होने के बाद मिलने वाली सहायताओं के कारण किसी बडी बीमारी के होने के कारण जीवन साथी के साथ अपघात होने के कारणों मे फ़ायदा देने के लिये भी अपना असर दे रहा है। इसके अलावा एक बात और भी आपको बताना चाहूंगा कि दक्षिण भारत की नाडी ज्योतिष मे एक पांच नौ को एक ही भाव से देखा जाता है इस प्रकार से मंगल की युति चन्द्रमा से भी है और चन्द्रमा का बल भी मंगल को मिला हुआ है,चन्द्रमा का स्थान न्याय और धर्म तथा विदेश यात्रा आदि के कारणो वाली राशि मे होने के कारण तथा इन कारको का मृत्यु स्थान मे होने के कारण इस भाव से मानसिक सम्बन्ध रखने के कारण मंगल इन कारको को भी साथ लेकर चलने वाला है। मंगल का सप्तम द्रिष्टि से दसवे भाव को देखने पर और दसवे भाव पर शनि की पंचम द्रिष्टि होने पर (नाडी ज्योतिष से) केतु जो जातक के रूप मे है उसे कार्य करने के लिये अपनी शक्ति देने के लिये भी माना जा सकता है।
इस स्थान पर केतु की औकात का पता चलता है कि जातक जो केतु यानी एजेन्ट के रूप मे बीमा से सम्बन्धित काम करना चाहता है,वह दुर्घटना बीमा मृत्यु के बाद मिलने वाली सहायता का बीमा अस्पताली सम्बन्धी कारणो के लिये किये जाने वाले बीमा,घर की सुरक्षा के लिये किया जाने वाला बीमा,व्यवसाय स्थान के लिये किया जाने वाला बीमा वाहन आदि के लिये किया जाने वाला बीमा और छठे भाव मे शनि के होने से एक तो कार्य करने के लिये किस्त आदि को वसूल कर (वक्री होने पर कभी कभी,मार्गी होने पर हमेशा) कार्य करने के लिये अपनी बुद्धि से लोगो को समझा कर जो लोग इस बात से डरते है (अष्टम का चन्द्रमा) के लिये भी अपनी सहायता को करने के लिये माना जा सकता है।
वैसे तो सूर्य से नवा भाव पिता के लिये देखा जाता है लेकिन लगन पंचम नवम का त्रिकोण देह से सम्बन्धित है,इसलिये नवम से पिता लगन से खुद और पंचम से पुत्र के लिये देखा जाता है.
ReplyDeleteमन का पैदा होना भी चौथे भाव के नवे भाव से ही है। यह भाव माता का भी है इसलिये माता के पिता यानी नाना का भाव भी बारहवा है,
ReplyDelete