राहु और केतु को मान्यता केवल छाया ग्रह के रूप मे दी गयी है उनके लिये द्रश्य रूप कही भी देखने को नही मिलता है.राहु एक नशा है और केतु उस नशा को देने वाला साधन,इसके अलावा और कोई भी कारण नही माना जा सकता है। राहु के साथ जो भी ग्रह आजाता है वह अपने प्रभाव को उस ग्रह पर डालकर अपने नशे को ग्रह के द्वारा प्रदर्शित करने लगता है,इसी प्रकार से केतु भी जब किसी ग्रह के साथ आजाता है तो सामने बैठे राहु का असर उस ग्रह पर डालकर उसी ग्रह के अनुसार साधन देने लगता है। अगर इन दोनो ग्रहों की व्याख्या की जाये तो बहुत कुछ देखने समझने को मिलता है लेकिन इन दोनो छाया ग्रहों को ही समझा जाये तो इन्हे हकीकत मे कभी भी देखने की जरूरत नही पडती है।
संसार मे अक्सर लोग अपनी अपनी जातियों के प्रति अधिक उत्सुक होते है सौ मे से दस का तो माना जा सकता है कि वे अपने वजूद को ही देख कर चलते है लेकिन नब्बे का ध्यान अपनी जाति पर अवश्य जाता है।इसका मुख्य कारण पहले तो जन्म लेने से फ़िर परिवार के रीति रिवाज मे चलने से अपने नाम को लिखने से अपने नाम के पीछे या आगे माता पिता या समाज का नाम लिखने से रहने वाले स्थान में अपने परिवेश और जलवायु का असर समझने से साथ ही मानसिक सोच के कारण भी समझा जा सकता है। इसके अलावा जो भी प्राथमिक शिक्षा या मनोरंजन अथवा जो चाहत होती है अथवा जो भी कारण परिवार के लिये उत्सुकता के होते है उनके लिये भी व्यक्ति को सबसे पहले अपने परिवार रहने वाले स्थान का प्रभाव जरूर कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य देता है। किसी भी प्रकार के रोग रोजाना के किये जाने वाले कार्य और कार्यों से मिलने वाले कष्ट जैसे रोजाना के कार्यों को अगर सर्द जलवायु के क्षेत्र मे किये जाते है तो रोजाना के कार्यों के अन्दर सर्दी से बचाव के कारण लेके चलना पडता है अगर सर्द जलवायु का ध्यान नही रखा जाये तो भी शरीर के साथ परिवार का कष्ट और होने वाली बीमारिया साथ ही कार्यों के अन्दर रोजाना की पारिवारिक अथवा सामाजिक हलचल को देखना समझना पडता है,इसके साथ ही किये जाने वाले कार्यों और रहने वाले स्थानो के प्रति आपसी सामजस्य का नही बैठ पाना और लडाई झगडे तथा दिमागी रूप से अपने अहम को अधिक प्रदर्शित करने के कारण अधिक खर्च का होना और उस खर्च की एवज मे अधिक से अधिक कर्जा लेना और उसको चुकाने मे देर होना या कर्जा के प्रति चिन्ता करना आदि माना जाता है इसके अलावा जाति का सामजस्य शादी विवाह तथा सामाजिक रूप से घर गृहस्थी के कारणो को भी समझना जरूरी माना जाता है जैसे शादी की जाती है तो वैवाहिक सम्बन्धो को अगर अपने खून के अनुसार मिलान करने के बाद सम्बन्धो को बनाया जाता है तो भी जाति का असर अधिक माना जाता है अन्यथा किसी न किसी प्रकार से जाति से दूर होने के कारण शादी के बाद के जीवन को वे लोग अधिक समझते होंगे जो अपनी मर्जी से दूर के खून से सम्बन्ध बनाने के बाद किस प्रकार से बिना किसी कारण से पारिवारिक या सामाजिक उपेक्षता को सहन करते है और अपने को एकान्त मे रखने के अलावा और कोई भी चारा उनके पास नही बचता है। शादी विवाह के अलावा भी जब मृत्यु होती है तो भी सामाजिकता को देखना पडता है कि व्यक्ति किस जाति का है अगर हिन्दू है तो उसे जलाना जरूरी होता है मुस्लिम या ईशाई है तो उसे दफ़नाना और दफ़नाने या जलाने के बाद उसके प्रति की जाने वाली सामाजिक क्रियायें भी जरूरी जाति के अनुसार ही मानी जाती है आदमी कितना ही धनी हो जाये या कितना ही गरीब हो उसके मरने के बाद उसकी जाति का ध्यान जरूर रखा जाता है अथवा लावारिस होने के बाद और जाति आदि का महत्व नही होने के कारण उसके मृत शरीर को भी उपेक्षा से देखा जाता है या किसी अन्य प्रकार का कारण देकर उसे दफ़ना दिया जाता है या जला दिया जाता है.इन सब कारणो के अलावा ऐसा कोई भी विश्व मे परिवार नही है जो किसी न किसी प्रकार धर्म या सामाजिक कारण साथ लेकर नही चलता है जिस समाज मे पालना हो और उस समाज के प्रति व्यक्ति के अन्दर अगर अच्छी या बुरी कोई धारणा बन गयी है तो उस धारणा के अनुसार ही उसे आजीवन अपने जीवन को लेकर चलना पडता है। अधिकतर मामले मे सभी जातिया या धर्म एकत्रित भी हो जाते है,जैसे मानवता का धर्म,जाति के प्रति संकुचित भावना के अनुसार किसी विशेष पर्व पर एक साथ हो जाना या किसी विशेष कारण से इकट्ठा हो जाना आदि बाते भी देखी जाती है। कार्यों के अनुसार भी लोग अपने अपने धर्म को लेकर चलते है लेकिन वह धर्म केवल कार्य तक ही सीमित रहता है,कार्य क्षेत्र के बाहर होते ही वह अपने वास्तविक जाति या धर्म के प्रति घिर जाता है,लाभ के मामले मे मित्रता के मामले मे भी जाति धर्म और अपनी पहिचान का ख्याल रखना माना जाता है जैसे कोई भी अपनी जाति के बाहर के व्यक्ति को मित्र मान सकता है और अपने लिये समय समय पर कोई न कोई सहायता तो ले सकता है पर वह जब अपने किसी प्रकार के सामाजिक प्रयोजन मे जाता है या धार्मिक कारण के अन्दर प्रवेश करता है तो कितने ही लोग अपनी मित्रता को वहीं पर भूल भी जाते है,और अपने धर्म समुदाय और जाति के अनुसार उसे या तो नीचा देखने लगते है या फ़िर उसे उस समय बुलाते ही नही है। इस बात एक रूप और भी देखा जाता है कि लोग अपने अपने अनुसार बडे बडे दान आदि करते है और अपनी हस्ती से अधिक किसी समुदाय को स्थापित करने मे अपने समय को लगा देते है जब धर्म का कारण उस समुदाय से जुडता है तो लोग अपने आप ही उस समुदाय के प्रति या तो बहुत अधिक समर्पित हो जाते है या फ़िर किसी न किसी कारण से अपने को अपने समय को खर्च करने के बाद भी उससे दूर हो जाते है यह जाति धर्म और समाज आदि का कारण राहु के द्वारा अलग अलग प्रकार से खून पर असर डालने के कारण पैदा होता है साथ ही उस जाति धर्म और समुदाय के लिये केतु साधन बनाने के बाद व्यक्ति को रास्ते देता चला जाता है।
संसार मे अक्सर लोग अपनी अपनी जातियों के प्रति अधिक उत्सुक होते है सौ मे से दस का तो माना जा सकता है कि वे अपने वजूद को ही देख कर चलते है लेकिन नब्बे का ध्यान अपनी जाति पर अवश्य जाता है।इसका मुख्य कारण पहले तो जन्म लेने से फ़िर परिवार के रीति रिवाज मे चलने से अपने नाम को लिखने से अपने नाम के पीछे या आगे माता पिता या समाज का नाम लिखने से रहने वाले स्थान में अपने परिवेश और जलवायु का असर समझने से साथ ही मानसिक सोच के कारण भी समझा जा सकता है। इसके अलावा जो भी प्राथमिक शिक्षा या मनोरंजन अथवा जो चाहत होती है अथवा जो भी कारण परिवार के लिये उत्सुकता के होते है उनके लिये भी व्यक्ति को सबसे पहले अपने परिवार रहने वाले स्थान का प्रभाव जरूर कुछ न कुछ प्रभाव अवश्य देता है। किसी भी प्रकार के रोग रोजाना के किये जाने वाले कार्य और कार्यों से मिलने वाले कष्ट जैसे रोजाना के कार्यों को अगर सर्द जलवायु के क्षेत्र मे किये जाते है तो रोजाना के कार्यों के अन्दर सर्दी से बचाव के कारण लेके चलना पडता है अगर सर्द जलवायु का ध्यान नही रखा जाये तो भी शरीर के साथ परिवार का कष्ट और होने वाली बीमारिया साथ ही कार्यों के अन्दर रोजाना की पारिवारिक अथवा सामाजिक हलचल को देखना समझना पडता है,इसके साथ ही किये जाने वाले कार्यों और रहने वाले स्थानो के प्रति आपसी सामजस्य का नही बैठ पाना और लडाई झगडे तथा दिमागी रूप से अपने अहम को अधिक प्रदर्शित करने के कारण अधिक खर्च का होना और उस खर्च की एवज मे अधिक से अधिक कर्जा लेना और उसको चुकाने मे देर होना या कर्जा के प्रति चिन्ता करना आदि माना जाता है इसके अलावा जाति का सामजस्य शादी विवाह तथा सामाजिक रूप से घर गृहस्थी के कारणो को भी समझना जरूरी माना जाता है जैसे शादी की जाती है तो वैवाहिक सम्बन्धो को अगर अपने खून के अनुसार मिलान करने के बाद सम्बन्धो को बनाया जाता है तो भी जाति का असर अधिक माना जाता है अन्यथा किसी न किसी प्रकार से जाति से दूर होने के कारण शादी के बाद के जीवन को वे लोग अधिक समझते होंगे जो अपनी मर्जी से दूर के खून से सम्बन्ध बनाने के बाद किस प्रकार से बिना किसी कारण से पारिवारिक या सामाजिक उपेक्षता को सहन करते है और अपने को एकान्त मे रखने के अलावा और कोई भी चारा उनके पास नही बचता है। शादी विवाह के अलावा भी जब मृत्यु होती है तो भी सामाजिकता को देखना पडता है कि व्यक्ति किस जाति का है अगर हिन्दू है तो उसे जलाना जरूरी होता है मुस्लिम या ईशाई है तो उसे दफ़नाना और दफ़नाने या जलाने के बाद उसके प्रति की जाने वाली सामाजिक क्रियायें भी जरूरी जाति के अनुसार ही मानी जाती है आदमी कितना ही धनी हो जाये या कितना ही गरीब हो उसके मरने के बाद उसकी जाति का ध्यान जरूर रखा जाता है अथवा लावारिस होने के बाद और जाति आदि का महत्व नही होने के कारण उसके मृत शरीर को भी उपेक्षा से देखा जाता है या किसी अन्य प्रकार का कारण देकर उसे दफ़ना दिया जाता है या जला दिया जाता है.इन सब कारणो के अलावा ऐसा कोई भी विश्व मे परिवार नही है जो किसी न किसी प्रकार धर्म या सामाजिक कारण साथ लेकर नही चलता है जिस समाज मे पालना हो और उस समाज के प्रति व्यक्ति के अन्दर अगर अच्छी या बुरी कोई धारणा बन गयी है तो उस धारणा के अनुसार ही उसे आजीवन अपने जीवन को लेकर चलना पडता है। अधिकतर मामले मे सभी जातिया या धर्म एकत्रित भी हो जाते है,जैसे मानवता का धर्म,जाति के प्रति संकुचित भावना के अनुसार किसी विशेष पर्व पर एक साथ हो जाना या किसी विशेष कारण से इकट्ठा हो जाना आदि बाते भी देखी जाती है। कार्यों के अनुसार भी लोग अपने अपने धर्म को लेकर चलते है लेकिन वह धर्म केवल कार्य तक ही सीमित रहता है,कार्य क्षेत्र के बाहर होते ही वह अपने वास्तविक जाति या धर्म के प्रति घिर जाता है,लाभ के मामले मे मित्रता के मामले मे भी जाति धर्म और अपनी पहिचान का ख्याल रखना माना जाता है जैसे कोई भी अपनी जाति के बाहर के व्यक्ति को मित्र मान सकता है और अपने लिये समय समय पर कोई न कोई सहायता तो ले सकता है पर वह जब अपने किसी प्रकार के सामाजिक प्रयोजन मे जाता है या धार्मिक कारण के अन्दर प्रवेश करता है तो कितने ही लोग अपनी मित्रता को वहीं पर भूल भी जाते है,और अपने धर्म समुदाय और जाति के अनुसार उसे या तो नीचा देखने लगते है या फ़िर उसे उस समय बुलाते ही नही है। इस बात एक रूप और भी देखा जाता है कि लोग अपने अपने अनुसार बडे बडे दान आदि करते है और अपनी हस्ती से अधिक किसी समुदाय को स्थापित करने मे अपने समय को लगा देते है जब धर्म का कारण उस समुदाय से जुडता है तो लोग अपने आप ही उस समुदाय के प्रति या तो बहुत अधिक समर्पित हो जाते है या फ़िर किसी न किसी कारण से अपने को अपने समय को खर्च करने के बाद भी उससे दूर हो जाते है यह जाति धर्म और समाज आदि का कारण राहु के द्वारा अलग अलग प्रकार से खून पर असर डालने के कारण पैदा होता है साथ ही उस जाति धर्म और समुदाय के लिये केतु साधन बनाने के बाद व्यक्ति को रास्ते देता चला जाता है।
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