भागवत पुराण मे एक कथा आती है कि सुदामा और श्रीकृष्ण को उनकी गुरुमाता ने लकडी लाने के लिये जंगल मे भेजा,जंगल मे बरसात होने लगी,बरसात से बचने के लिये श्रीकृष्ण और सुदामा एक पेड के नीचे अपने को बचाने के लिये बैठ गये,रात हो गयी,सुदामा को गुरुमाता ने जंगल मे भूख लगने पर भोजन के लिये चने दिये थे,सुदामा ने उन चनो को अकेले ही खा लिया और श्रीकृष्ण को नही दिये,जब वे कुटुर कुटुर खा रहे थे तो श्रीकृष्ण ने पूंछा सुदामा तुम कुछ खा रहे हो,सुदामा जबाब दिया,मै कुछ खा नही रहा हूँ,ठंड के कारण दांत बज रहे है। खैर श्रीकृष्ण तो द्वरिका पुरी के राजा बने और सुदामा को आजीवन भीख मांगनी पडी,यह चरित्र इसलिये कहा जाता है कि एक छोटी सी भूल जो मित्र के साथ दगा करने से की जाती है आजीवन भीख मांगने के लिये बेवश कर देती है। सुदामा दिन मांगते रात मांगते लेकिन जैसे ही खाने के लिये बैठते श्राप वश वही एक चन्दिया और एक रोटी रह जाती,जब वे श्रीकृष्ण से मिलने द्वारिका गये तो उन्होने अपनी गल्ती का पश्चाताप किया और फ़िर से उनके दिन सही हुये। इस कुंडली मे कुछ ऐसा ही श्राप लगा हुआ है। मित्र भाव का मालिक सूर्य है और सूर्य पंचम स्थान मे विराजमान है,इस सूर्य के साथ बारहवे और नवे भाव का स्वामी बुध भी बक्री होकर विराजमान है। सूर्य मित्र के रूप मे है और बुध मित्र का कार्य और धन है,वक्री होने का मतलब है कि जातक ने अपने जीवन मे किसी प्रकार से अपने मित्र के साथ दगा किया है। यह भाव बडे भाई का भी होता है और इस भाव मे बुध के होने से बडे भाई या मित्र के साथ किये जाने वाले साझेदारी के कामो के अन्दर या पारिवारिक रूप से फ़ायदा लेकर कुछ न कुछ बुरा किया गया है।
तुला लगन का मालिक जब शुक्र बनकर चौथे भाव मे बैठ जाता है और केतु उस शुक्र के साथ हो जाता है तो दसवे भाव का राहु कितना ही कमाये कितनी ही मेहनत करे लेकिन यह चौथे भाव का शुक्र और केतु सभी कुछ खा जाता है। मंगल जातक का धनेश है और सप्तमेश भी है यह भी जातक के लिये सूचित करता है कि जातक जहां प्रेम और बुद्धि से काम लेने के बाद कार्य को करता वहीं पर जातक अपने अहम से अपनी तकनीक को लगाकर अपने किये कार्यों को ही बरबाद कर लेता है। बक्री बुध अक्सर बुद्धि को घुमा देता है जैसे ही फ़ायदा वाला समय आता है वह अपनी फ़ायदा को लेने के समय किसी दूसरी योजना मे अपनी बुद्धि को प्रयोग मे लाना शुरु कर देता है और वह बुद्धि आने वाले फ़ायदा को नही आने देती इस प्रकार से जातक दिन रात काम करता है लेकिन वह फ़ायदा नही ले पाता है।
सूर्य जिस भाव मे होता है उसके सप्तम का नीच प्रभाव देने लगता है।पंचम मे सूर्य होने का मतलब है मित्र या बडे भाई के जीवन साथी के मन मे ओछी राजनीति का आजाना। उस ओछी राजनीति के आने से जातक अपने मंगल के प्रभाव से उस राजनीति को प्रतिस्पर्धा का कारण बनाकर दूर तो करता है लेकिन कथनानुसार वह पाप की श्रेणी मे जला जाता है।
सूर्य मंगल का वक्री बुध पर पडने वाला प्रभाव एक प्रकार से और भी देखा जाता है कि सन्तान भाव मे वर्की बुध के होने से सूर्य मंगल के साथ होने से पति पत्नी ने मिलकर गर्भ मे उपस्थित कन्या का भ्रूण हत्या जैसा पाप भी किया जाना माना जाता है। अथवा किसी शिक्षा स्थान मे बुध जो विद्या का कारक है के हरण से भी एक श्राप का लगना माना जा सकता है। इन कारको के पैदा होने से जातक का शनि बारहवे भाव मे जाकर वक्री हो गया है,यह कार्य स्थान के बदलाव लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकने के लिये और बार बार मन के बदलने से कारण वकी शनि के साथ चन्द्रमा भी है,वकी शनि के साथ वक्री गुरु होने से भी सम्बन्धो का बदलाव और कार्य स्थान मे जो कार्य करने वाले लोग है उनकी बुद्धि को प्रयोग करने के बाद उनकी मेहनत को हरण करने वाला भी माना जा सकता है।
जातक का प्रयास कार्य भाव मे राहु के होने से अथक परिश्रम करने से भी देखा जा सकता है वह परिश्रम केवल धन को सामने रख कर किया जाता है लेकिन इसी राहु की छठे भाव मे नजर जाने से तथा छठे भाव का मालिक गुरु वक्री होने से की जाने वाली मेहनत को बाहरी लोग बिजनिस का कारण बनाकर खाने के लिये भी माने जाते है।
जातक को श्राप उद्धार के लिये सरकारी शिक्षण संस्थान मे गरीब बच्चो की सहायता करनी चाहिये जिससे वक्री बुध जो भाग्य का मालिक भी है वह सही कार्य करने लगे,साथ ही बहिन बुआ बेटी का आदर करना चाहिये,वैसे बुध के वक्री होने के कारण जातक के पास लडकी पैदा नही होती है वह अगर लडकी को पालने के लिये गोद लेकर पालना शुरु कर दे तो भी जातक का भाग्य लगातार बढने लगेगा,कार्य को शुरु करते समय अगर वह प्लास्टिक के खिलौने छोटे बच्चो मे बांटे तो भी भाग्य का सही होना माना जा सकता है।
तुला लगन का मालिक जब शुक्र बनकर चौथे भाव मे बैठ जाता है और केतु उस शुक्र के साथ हो जाता है तो दसवे भाव का राहु कितना ही कमाये कितनी ही मेहनत करे लेकिन यह चौथे भाव का शुक्र और केतु सभी कुछ खा जाता है। मंगल जातक का धनेश है और सप्तमेश भी है यह भी जातक के लिये सूचित करता है कि जातक जहां प्रेम और बुद्धि से काम लेने के बाद कार्य को करता वहीं पर जातक अपने अहम से अपनी तकनीक को लगाकर अपने किये कार्यों को ही बरबाद कर लेता है। बक्री बुध अक्सर बुद्धि को घुमा देता है जैसे ही फ़ायदा वाला समय आता है वह अपनी फ़ायदा को लेने के समय किसी दूसरी योजना मे अपनी बुद्धि को प्रयोग मे लाना शुरु कर देता है और वह बुद्धि आने वाले फ़ायदा को नही आने देती इस प्रकार से जातक दिन रात काम करता है लेकिन वह फ़ायदा नही ले पाता है।
सूर्य जिस भाव मे होता है उसके सप्तम का नीच प्रभाव देने लगता है।पंचम मे सूर्य होने का मतलब है मित्र या बडे भाई के जीवन साथी के मन मे ओछी राजनीति का आजाना। उस ओछी राजनीति के आने से जातक अपने मंगल के प्रभाव से उस राजनीति को प्रतिस्पर्धा का कारण बनाकर दूर तो करता है लेकिन कथनानुसार वह पाप की श्रेणी मे जला जाता है।
सूर्य मंगल का वक्री बुध पर पडने वाला प्रभाव एक प्रकार से और भी देखा जाता है कि सन्तान भाव मे वर्की बुध के होने से सूर्य मंगल के साथ होने से पति पत्नी ने मिलकर गर्भ मे उपस्थित कन्या का भ्रूण हत्या जैसा पाप भी किया जाना माना जाता है। अथवा किसी शिक्षा स्थान मे बुध जो विद्या का कारक है के हरण से भी एक श्राप का लगना माना जा सकता है। इन कारको के पैदा होने से जातक का शनि बारहवे भाव मे जाकर वक्री हो गया है,यह कार्य स्थान के बदलाव लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकने के लिये और बार बार मन के बदलने से कारण वकी शनि के साथ चन्द्रमा भी है,वकी शनि के साथ वक्री गुरु होने से भी सम्बन्धो का बदलाव और कार्य स्थान मे जो कार्य करने वाले लोग है उनकी बुद्धि को प्रयोग करने के बाद उनकी मेहनत को हरण करने वाला भी माना जा सकता है।
जातक का प्रयास कार्य भाव मे राहु के होने से अथक परिश्रम करने से भी देखा जा सकता है वह परिश्रम केवल धन को सामने रख कर किया जाता है लेकिन इसी राहु की छठे भाव मे नजर जाने से तथा छठे भाव का मालिक गुरु वक्री होने से की जाने वाली मेहनत को बाहरी लोग बिजनिस का कारण बनाकर खाने के लिये भी माने जाते है।
जातक को श्राप उद्धार के लिये सरकारी शिक्षण संस्थान मे गरीब बच्चो की सहायता करनी चाहिये जिससे वक्री बुध जो भाग्य का मालिक भी है वह सही कार्य करने लगे,साथ ही बहिन बुआ बेटी का आदर करना चाहिये,वैसे बुध के वक्री होने के कारण जातक के पास लडकी पैदा नही होती है वह अगर लडकी को पालने के लिये गोद लेकर पालना शुरु कर दे तो भी जातक का भाग्य लगातार बढने लगेगा,कार्य को शुरु करते समय अगर वह प्लास्टिक के खिलौने छोटे बच्चो मे बांटे तो भी भाग्य का सही होना माना जा सकता है।
guruji meri kundli ke baare m bhi batayen.16/12/1967----bharatpur(rajasthan)---time--9.40am.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कुंडली है घर मे छोटे होने के बावजूद भी मुखिया बनकर ही रहना है,परिवार के लोगो मे सामजस्य रखना और मशीनी जानकारी मे अपने को लगाये रखना मुख्य बात मानी जा सकती है,जीवन का पहला भाग भटकाव मे दूसरा लगातार मेहनत वाले कामो मे तीसरा और चौथा भाग आराम से निकलने की बात मानी जा सकती है,न तो किसी का विरोध है और न ही किसी का सम्मान है सादा जीवन उत्तम विचारो का होना भी माना जा सकता है,एक कमी मानी जा सकती है कि अपने प्रभाव मे लेने के लिये कभी कभी गलत बात को प्रयोग मे ले आते हो.जनवरी से समय बहुत ही उत्तम आयेग तब अपने को गले के इन्फ़ेक्सन और मौसमी बीमारियों से बचाकर रखने की जरूरत है.
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