जातक का जन्म 10/11/1975 Time 07:50:00 Am सिंघाना राजस्थान मे हुआ है जातक अपनी कुंडली मे राजयोग के बारे म जानना चाहता है.
तुला लगन की कुंडली है लगनेश शुक्र बारहवे भाव मे है,धनेश और सप्तमेश मंगल नवे भाव मे वक्री है,पराक्रम के स्वामी और कर्जा दुश्मनी बीमारी के स्वामी गुरु है जो स्वराशि मे छठे भाव मे वक्री है,सुखेश और पंचमेश शनि दसवे भाव मे है,लगनेश और अष्टमेश शुक्र बारहवे भाव मे है,कार्येश चन्द्र सुख भाव मे तथा लाभेश सूर्य लगन मे है राहु लगन मे तथा केतु सप्तम मे है।
पहला राजयोग
पंचमेश की युति सप्तमेश या दसवे भाव के स्वामी से हो तो राजयोग का निर्माण हो जाता है इस राजयोग मे जातक को कार्यों के मामले मे सन्तान के मामले मे जीवन साथी के मामले मे प्रसिद्धि भी मिलती है सम्मान भी होता है। कुंडली मे शनि ने चन्द्रमा से युति ली है चौथे भाव का असर चन्द्रमा ने प्राप्त किया है और पंचम का असर शनि ने लिया है लेकिन शनि चन्द्र की युति ने इस राजयोग मे बाधा इसलिये भी डाली है क्योंकि शनि चन्द्र की युति मे जातक स्वतंत्र रूप से कोई काम नही कर सकता है।
दूसरा राजयोग
लगनेश शुक्र पर छठे गुरु की द्रिष्टि है इस प्रकार से भी यह युति राजयोग की सीमा मे आजाती है लेकिन इस युति का प्रभाव इसलिये समाप्त हो गया है क्योंकि गुरु वक्री है और शुक्र कन्या राशि का है यह गुरु शुक्र की युति पति और पत्नी के लिये किसी न किसी प्रकार से पीडा देने वाली है.
तीसरा राजयोग
राहु केन्द्र या त्रिकोण मे हो इस युति को भी राजयोग की सीमा मे लाया गया है,राहु का अतिक्रमण जन्म के सूर्य बुध के साथ है इसलिये जातक को झूठ बोलने की आदत को देता है और अपने जन्म स्थान से पश्चिम दिसा मे भेजकर पहले भटकाव देता है उसके बाद तरक्की देता है। इस प्रकार से राहु वाले राजयोग के कारण को भी शंका मे माना जा सकता है.
चौथा राजयोग
कुंडली मे जो ग्रह नीच का है उस ग्रह की उच्च राशि का स्वामी जिस राशि मे बैठा है उस राशि का स्वामी केन्द्र मे हो यह भी एक राजयोग का कारण है,जातक की कुंडली मे सूर्य नीच राशि का है इस राशि की उच्च राशि का स्वामी मंगल नवे भाव मे मिथुन राशि मे बैठा है,मिथुन का स्वामी बुध केन्द्र मे लगन का होकर बैठा है इसलिये यह राजयोग पूर्ण हो जाता है.
पांचवा राजयोग
जो ग्रह नीच का हो वह जन्म समय मे अपने उच्च अंशो मे बैठे हो यह बात भी राजयोग की सीमा मे आजाती है,जातक की कुंडली मे सूर्य तुला राशि का नीच का है और वह गुरु के नक्षत्र मे विराजमान है इसलिये राजयोग को पैदा कर रहा है,इसके अलावा शुक्र नीच राशि मे है लेकिन वह सूर्य के नक्षत्र उत्तराफ़ाल्गुनी नक्षत्र मे विराजमान है.
पुराने जमाने मे राजयोग की सीमा बंधी होती थी जब व्यक्ति समाज धर्म और कानून मे बंधा होता था,मर्यादा के बिना कोई भी राजयोग काम नही करता है। एक व्यक्ति अगर मर्यादा मे चलने वाला हो और बाकी के मन चाहे अनुसार चलने वाले हो तो राजयोग की सीमा समाप्त हो जाती है। इस कुंडली मे गुरु वक्री हो गया है जातक को जल्दी से हर काम करने की आदत मे ले गया है,शनि चन्द्र का परिवर्तन योग है जहां कार्य की जरूरत होती है वहां सोचा जाता है और जहां सोचने की जरूरत होती है वहां कार्य शुरु कर दिया जाता है इस प्रकार से राजयोग तो छोडो कोई भी काम सरलता से नही बनता है। कहा भी जाता है कि कन्या का सूर्य दस दोष देने वाला होता है और कन्या का शुक्र हजार दोष प्रकट करने का कारण बनता है,यह कारण भी जातक के अन्दर बिना बात के बीमारी को पैदा करना बिना कारण के खर्चा करना जहां से कमाई होने की बात होती है वही पर किसी न किसी कारण से कोई न कोई छलने वाला सामने आजाता है,हिम्मत का मालिक और जीवन साथी का मालिक वक्री होकर न्याय भाव मे चला गया है जब जीवन मे पत्नी का पराक्रम ही साथ नही दे रहा है,तो फ़िर राजयोग की सीमा कैसे शुरु हो सकती है। जातक अपने अनुसार शनि की शांति को देकर अपने कार्यों को कर सकता है कारण कर्क राशि का शनि कार्यों को फ़्रीज कर रहा है जहां कार्य शुरु होने का असर होता है वहीं पर किसी न किसी प्रकार की रुकावट सामने आने लगती है,साथ ही जहां पर रहने का स्थान होता है वहां जनता के द्वारा या समाज के द्वारा कोई न कोई आक्षेप भी दिया जाता है इस कारण से जातक को पैदा होने के बाद रहने वाले स्थान को भी बदला जाता है,अक्सर इस युति मे जातक जिस स्थान पर पैदा होता है वह या तो बनता ही नही है और बनता है तो उसके अन्दर कोई रहता नही है।
तुला लगन की कुंडली है लगनेश शुक्र बारहवे भाव मे है,धनेश और सप्तमेश मंगल नवे भाव मे वक्री है,पराक्रम के स्वामी और कर्जा दुश्मनी बीमारी के स्वामी गुरु है जो स्वराशि मे छठे भाव मे वक्री है,सुखेश और पंचमेश शनि दसवे भाव मे है,लगनेश और अष्टमेश शुक्र बारहवे भाव मे है,कार्येश चन्द्र सुख भाव मे तथा लाभेश सूर्य लगन मे है राहु लगन मे तथा केतु सप्तम मे है।
पहला राजयोग
पंचमेश की युति सप्तमेश या दसवे भाव के स्वामी से हो तो राजयोग का निर्माण हो जाता है इस राजयोग मे जातक को कार्यों के मामले मे सन्तान के मामले मे जीवन साथी के मामले मे प्रसिद्धि भी मिलती है सम्मान भी होता है। कुंडली मे शनि ने चन्द्रमा से युति ली है चौथे भाव का असर चन्द्रमा ने प्राप्त किया है और पंचम का असर शनि ने लिया है लेकिन शनि चन्द्र की युति ने इस राजयोग मे बाधा इसलिये भी डाली है क्योंकि शनि चन्द्र की युति मे जातक स्वतंत्र रूप से कोई काम नही कर सकता है।
दूसरा राजयोग
लगनेश शुक्र पर छठे गुरु की द्रिष्टि है इस प्रकार से भी यह युति राजयोग की सीमा मे आजाती है लेकिन इस युति का प्रभाव इसलिये समाप्त हो गया है क्योंकि गुरु वक्री है और शुक्र कन्या राशि का है यह गुरु शुक्र की युति पति और पत्नी के लिये किसी न किसी प्रकार से पीडा देने वाली है.
तीसरा राजयोग
राहु केन्द्र या त्रिकोण मे हो इस युति को भी राजयोग की सीमा मे लाया गया है,राहु का अतिक्रमण जन्म के सूर्य बुध के साथ है इसलिये जातक को झूठ बोलने की आदत को देता है और अपने जन्म स्थान से पश्चिम दिसा मे भेजकर पहले भटकाव देता है उसके बाद तरक्की देता है। इस प्रकार से राहु वाले राजयोग के कारण को भी शंका मे माना जा सकता है.
चौथा राजयोग
कुंडली मे जो ग्रह नीच का है उस ग्रह की उच्च राशि का स्वामी जिस राशि मे बैठा है उस राशि का स्वामी केन्द्र मे हो यह भी एक राजयोग का कारण है,जातक की कुंडली मे सूर्य नीच राशि का है इस राशि की उच्च राशि का स्वामी मंगल नवे भाव मे मिथुन राशि मे बैठा है,मिथुन का स्वामी बुध केन्द्र मे लगन का होकर बैठा है इसलिये यह राजयोग पूर्ण हो जाता है.
पांचवा राजयोग
जो ग्रह नीच का हो वह जन्म समय मे अपने उच्च अंशो मे बैठे हो यह बात भी राजयोग की सीमा मे आजाती है,जातक की कुंडली मे सूर्य तुला राशि का नीच का है और वह गुरु के नक्षत्र मे विराजमान है इसलिये राजयोग को पैदा कर रहा है,इसके अलावा शुक्र नीच राशि मे है लेकिन वह सूर्य के नक्षत्र उत्तराफ़ाल्गुनी नक्षत्र मे विराजमान है.
पुराने जमाने मे राजयोग की सीमा बंधी होती थी जब व्यक्ति समाज धर्म और कानून मे बंधा होता था,मर्यादा के बिना कोई भी राजयोग काम नही करता है। एक व्यक्ति अगर मर्यादा मे चलने वाला हो और बाकी के मन चाहे अनुसार चलने वाले हो तो राजयोग की सीमा समाप्त हो जाती है। इस कुंडली मे गुरु वक्री हो गया है जातक को जल्दी से हर काम करने की आदत मे ले गया है,शनि चन्द्र का परिवर्तन योग है जहां कार्य की जरूरत होती है वहां सोचा जाता है और जहां सोचने की जरूरत होती है वहां कार्य शुरु कर दिया जाता है इस प्रकार से राजयोग तो छोडो कोई भी काम सरलता से नही बनता है। कहा भी जाता है कि कन्या का सूर्य दस दोष देने वाला होता है और कन्या का शुक्र हजार दोष प्रकट करने का कारण बनता है,यह कारण भी जातक के अन्दर बिना बात के बीमारी को पैदा करना बिना कारण के खर्चा करना जहां से कमाई होने की बात होती है वही पर किसी न किसी कारण से कोई न कोई छलने वाला सामने आजाता है,हिम्मत का मालिक और जीवन साथी का मालिक वक्री होकर न्याय भाव मे चला गया है जब जीवन मे पत्नी का पराक्रम ही साथ नही दे रहा है,तो फ़िर राजयोग की सीमा कैसे शुरु हो सकती है। जातक अपने अनुसार शनि की शांति को देकर अपने कार्यों को कर सकता है कारण कर्क राशि का शनि कार्यों को फ़्रीज कर रहा है जहां कार्य शुरु होने का असर होता है वहीं पर किसी न किसी प्रकार की रुकावट सामने आने लगती है,साथ ही जहां पर रहने का स्थान होता है वहां जनता के द्वारा या समाज के द्वारा कोई न कोई आक्षेप भी दिया जाता है इस कारण से जातक को पैदा होने के बाद रहने वाले स्थान को भी बदला जाता है,अक्सर इस युति मे जातक जिस स्थान पर पैदा होता है वह या तो बनता ही नही है और बनता है तो उसके अन्दर कोई रहता नही है।
चौथा राजयोग
ReplyDeleteकुंडली मे जो ग्रह नीच का है उस ग्रह की उच्च राशि का स्वामी जिस राशि मे बैठा है उस राशि का स्वामी केन्द्र मे हो यह भी एक राजयोग का कारण है,जातक की कुंडली मे सूर्य नीच राशि का है इस राशि की उच्च राशि का स्वामी मंगल नवे भाव मे मिथुन राशि मे बैठा है,मिथुन का स्वामी बुध केन्द्र मे लगन का होकर बैठा है इसलिये यह राजयोग पूर्ण हो जाता है.
तुला में शनि देव को उच्च माना गया है.यहाँ नीच भंग योग जरूर बन रहा है किन्तु वह मंगल नहीं अपितु शनि के द्वारा बन रहा है.कृपया जरा शंका का निवारण करें.ये मात्र जिज्ञासा है,इसे आपके ज्ञान को चुनौती कदापि न समझें.मैं आपके बालक सामान हूँ.
यहाँ सूर्य नीच का ग्रह है उस ग्रह की उच्च की राशि मतलब मेष उसका स्वामी मतलब मंगल जिस राशि मे हो उसका स्वामी मंगल मिथुन राशि मे है उसका स्वामी बुध लग्न में होने से नीचभंग हुआ
Deleteकुंडली मे जो ग्रह नीच का है.
ReplyDeleteनीचता गौढ रूप मे राशि से,भाव से,अंश से,नक्षत्र से,नक्षत्र पद से,नीच ग्रह की संगति से,स्वांस की आवगमन की गति से,महत्व रखता है.
त्रिक भाव में,त्रिक भाव के स्वामी से,त्रिक भाव के समस्त नक्षत्र और उनके पदों से,त्रिक भाव पर नजर रखने वाले क्रूर ग्रहों से,आठों द्रिष्टियों से,ग्रह लाभदायी हो जाता है.विपरीत अवस्था मे चोट मे चोट देने वाला बन जाता है.
सावधानी चोट से बचने के लिये होती है,लेकिन सावधानी के रहते भी स्वांस की गति चोट देने के लिये काफ़ी होती है.इसे ही नाडी स्पंदन की परिभाषा मे परिभाषित किया गया है.
आगे जाने मे हानि.
पीछे जाने मे हानि,
रुकने मे हानि.
गतिशील होने मे हानि.
दिखाई देने मे हानि,
न दिखाई देने मे हानि.
सहायता देने मे हानि,
सहायता लेने मे हानि,
आदि एक हजार आठ प्रकार के दोष नीचता की परिभाषा में है.इतने ही उच्चता की परिभाषा में है किसी एक प्रकार को मन मे रखना अटकने वाला स्वभाव होता है.
उदाहरण के लिये :-
पानी मे शक्कर मिलाकर शर्बत बनाने की क्रिया.
एक गिलास पानी एक चम्मच शक्कर.
एक चम्मच पानी एक गिलास शक्कर.
अंश से कम करने या बढाने से अलग अलग रूप बनते जायेंगे,लेकिन आजीवन लगे रहने पर भी फ़ारमूला फ़िट नही हो पायेगा.
यहाँ सूर्य नीच का है तो सूर्य की उच्च राशि मतलब मेष का स्वामी मतलब मंगल जिस राशि मे हो उसका स्वामी यह मंगल मिथुन राशि मे है और उसका स्वामी बुध है तो बुध लग्न में होने से नीचभंग हो रहा है।
Deleteस्वामीजी मेरी कुंडली का भी अध्ययन कीजियेगा
ReplyDeleteनाम :विशाल
तारीख : 06-09-1985
समय : 06:30 am
स्थान : पोरबंदर - गुजरात
मेरा सवाल ये हे की मुझे कोई लक्ष्य नहीं मिल रहा हे, दिमाग अपसेट रहता हे, और आर्थिक स्थिति क्या होगी भविष्य में, भाग्योदय कब होगा, में बिजनस करूँगा या नोकरी ही करनी पड़ेगी,
नाम- रश्मि चौधरी
ReplyDeleteतारीख- 21-11-1985
समय- 4:30 am
स्थान- सीवान, बिहार
मुझे मेरे कैरियर की संभावना और शादी के बारे में बताये।
किस प्रकार का भविष्य रहेगा।